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Winter 2023: सर्दियों में मेथी से बनाएं ये 3 डिश

सर्दियों के मौसम में मेथी खूब मिलती है और इससे कई तरह की डिश आप बना सकते हैं तो इस मौसम में आप मेथी से बने डिश को जरूर ट्राय करें.

  1. मेथी बेसन कढ़ी बनाने की विधि

सामग्री :

– बेसन (01 कप)

– मेथी के पत्ते (250 ग्राम)

– टमाटर  (01 बारीक कटा हुआ)

– हरी मिर्च (02 बारीक कटी हुई)

– प्याज  (01 कटा हुआ)

– लहसुन (05 कली कुटा हुआ)

– अदरक (01 टुकड़ा कुटा हुआ)

– तेल (02 बड़े चम्मच)

– राई (01 छोटा चम्मच)

– जीरा (01 छोटा चम्मच)

– हल्दी पाउडर (1/2 छोटा चम्मच)

– अमचूर (1/2 छोटा चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

मेथी बेसन कढ़ी बनाने की विधि :

– सबसे पहले एक कढ़ाही मे तेल गर्म करें.

– तेल गर्म होने पर उसमें राई ज़ीरा का तड़का दें.

– उसके बाद प्याज, लहसुन, अदरक डाल कर अच्छी तह से भून लें.

– मसाला भुन जाने पर इसमें हरी मिर्च डाल का थोडा सा और भूनें.

– उसके बाद टमाटर डाल दें, साथ में हल्दी और नमक भी मिला दें और चलाते हुए भूनें.

– टमाटर के गल जाने पर कड़ाही में मेथी के पत्ते डाल दें और 2 मिनट के लिये ढक दें.

– इसके बाद एक कप बेसन में आठ कप पानी डालकर उसे अच्छी तरह से घोल लें और उस घोल को कढ़ाही में मेथी के साथ मिला दें.

– इसके बाद अमचूर डाल दें और चम्मच से चलाते हुए गाढ़ी होने तक पकाएं.

– लीजिए आपकी मेथी बेसन कढ़ी बनाने की विधि कम्‍प्‍लीट हुई.

– गाढ़ी होने पर कढ़ाही को उतार लें और रोटी चावल के साथ कढ़ी को परोसें.

2. मेथी पनीर बनाने की विधि

सामग्री :

– पनीर (250 ग्राम)

– मेथी (250 ग्राम)

– टमाटर प्‍यूरी (1/2 कप)

– लाल मिर्च (01 नग)

– गरम मसाला (01 छोटा चम्मच)

– धनिया पाउडर (01 छोटा चम्मच)

– लाल मिर्च पाउडर (01 छोटा चम्मच)

– तेल (फ्राई करने के लिये)

– नमक (स्‍वादानुसार)

मेथी पनीर बनाने की विधि :

– सबसे पहले मेथी के पत्तों को धो लें.

– उसके बाद पत्तों को भाग में बराबर-बराबर बांट दें.

– अब एक भाग वाले पत्‍तों को उबाल लें.

– उबालने के बाद उन्हें मिक्‍सर में महीन पीस लें.

– बाकी बचे मेथी के पत्तों को बारीक काट लें.

– अब पनीर को मनचाहे टुकड़े में काट लें.

– फिर एक पैन में तेल गर्म करें और उसमें पनीर को फ्राई कर लें.

– फ्राई करने के बाद पनीर के टुकड़ों को पानी में भिगो दें.

– इससे पनीर के टुकड़े नरम हो जायेंगे.

– अब एक कढ़ाई में दो छोटे चम्मच तेल डाल कर गरम करें.

– तेल गरम होने पर उसमें लाल मिर्च डाल कर तल लें.

– तली हुई मिर्चों को बाहर निकाल कर रख दें.

– उसके बाद तेल में टमाटर की प्यूरी डालें और थोड़ा सा फ्राई कर लें.

– अब कढ़ाई में नमक, गरम मसाला पाउडर, धनिया पाउडर और लाल मिर्च पाउडर डालें और थोड़ा सा भून लें.

– जब मसाला अच्छी तरह से भुन जाए, कढ़ाई में पिसी हुई मेथी और मेथी की पत्‍तियों को डालें और     चलाते हुए पकायें.

– मेथी अच्छी तरह से भुन जाने पर कढ़ाई में पनीर के टुकड़े डालें.

– अब इसे धीमी आंच में 2-3 मिनट पकायें और फिर गैस बंद कर दें.

– स्वादिष्ट मेथी पनीर की सब्जी तैयार है, इसे गर्मा-गरम निकालें और रोटी या पराठों के साथ पेश करें.

3. मेथी के चावल बनाने की विधि

सामग्री

– 1 कटोरी चावल (पानी में भींगे हुए)

– मेथी के पत्ते (1 कप)

-1 टमाटर (कटा हुआ)

–  स्वीटकौर्न (2 बड़े चम्मच)

–  हरीमिर्च  (1कटी हुई)

– 3 छोटे बैगन (कटे हुए)

– हल्दी पाउडर (1/4 छोटा चम्मच)

–  धनिया पाउडर (1/2 छोटा चम्मच)

– गरममसाला (1/4 छोटा चम्मच)

– नमक (स्वादानुसार)

– तेल (2 बड़े चम्मच)

–  जीरा (1 छोटा चम्मच)

बनाने की विधि

– कढ़ाई में तेल गरम कर जीरा, हल्दी पाउडर, धनिया पाउडर, गरममसाला, हरीमिर्च  भूनें

– फिर मेथी के पत्ते, टमाटर और बैगन मिला कर कुछ देर पकाएं.

– अब चावल, नमक और स्वीटकौर्न मिला कर धीमी आंच पर ढक कर पकाएं.

– चावल पक जाने पर धनिया पत्ती से सजा कर परोसें.

नायिका-भाग 2: जाटपुर की सुंदरी की क्या कहानी थी?

जगप्रसाद तो सुंदरी की यह हालत देख कर वहीं गश खा कर गिर पड़ा. एक बुजुर्ग ने अपनी पगड़ी खोल कर सुंदरी की आबरू को ढंका. गांव वालों ने सुंदरी के हाथपैर खोले, उस के मुंह में ठुंसा दुपट्टा निकाला और उसे लेकर जल्दी से गांव पहुंचे. वहां गांव का डाक्टर बापबेटी को होश में लाने में कामयाब रहा.

यह खबर गांव में आग की तरह फैल गई. हर कोई खबर सुन कर जगप्रसाद के घर की तरफ भागा जा रहा था. बलात्कारियों के परिवार वालों को खबर लगी तो वे गांव वालों के आक्रोश से बचने के लिए गांव छोड़ कर भाग खड़े हुए.

उधर ग्राम प्रधान मखना ने मामले की खबर पुलिस को कर दी थी. पुलिस ने आते ही अपनी काररवाई शुरू कर दी. बलात्कारियों के घर तोड़फोड़ की और सुंदरी को मैडिकल जांच के लिए बिजनौर के जिला अस्पताल भेजा.

जल्दी ही बलात्कारी गिरफ्तार कर लिए गए और सलाखों के पीछे भेज दिए गए. कानून अपना काम करता रहा लेकिन एक मुकदमा गांव में भी चलता रहा. इस मुकदमे की अदालत गांव थी. इस में वकील, जज और गवाह सब गांव वाले थे. अपराधी भी गांव की ही एक लड़की थी और वह थी सुंदरी. वह बिना किसी अपराध की अपराधी थी.

यह अपराध भी ऐसा था जो उस ने कभी किया ही नहीं था. लेकिन समाज के ठेकेदार उसे गुनहगार बनाने पर तुले हुए थे. समाज के ठेकेदारों ने सुंदरी पर अपराध की जो धाराएं लगाईं, वे न तो कानून की किताबों में कहीं मिलती हैं और न सभ्य समाज में. समाज के ठेकेदारों ने उस पर अपनी धाराएं लगाईं- बलात्कार की शिकार, पापिन, अछूत और अपशकुनी.

गांव वालों ने अपनी बेटियों को सुंदरी से दूर रहने की हिदायत दी. गांव के लड़के सुंदरी को छेड़ने के बजाय उसे ‘बेचारी’ कह कर पुकारने लगे थे. गांव की औरतों ने उसे ‘अछूत’ का दरजा दे दिया था. वह उन के लिए अपशकुनी बन गई थी. उस की परछाई से भी उन के सतीत्व के भंग होने का डर था. यहां तक कि जिन औरतों ने गांव में कईकई खसम पाल रखे थे, वे औरतें भी उस अपशकुनी से दूर ही रहती थीं क्योंकि सब से ज्यादा पतिव्रता का ढोंग ये ही औरतें करती थीं।

जगप्रसाद का घर गांव में अलगथलग पड़ चुका था. इस हादसे के बाद सुंदरी गुमसुम सी रहने लगी थी. गांव वालों के उपेक्षित व्यवहार से उसे ऐसा आभास होता था कि वह न जाने कितनी बड़ी अपराधी है. इस अपराधबोध ने सुंदरी को अंदर तक आहत कर दिया था. यह वह सजा थी जो सुंदरी को किसी कानूनी अदालत ने नहीं बल्कि सामाजिक अदालत ने बिना मुकदमे और बिना बहस के सुनाई थी. सुंदरी को समाज का यह असामान्य बहिष्कार बुरी तरह से अखर रहा था. उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि आखिर उस की गलती क्या है?

कुछ महीनों के बाद खबर मिली कि चारों बलात्कारी नकटू, शाकिब, कलवा और टिपलू जमानत पर जेल से बाहर आ गए हैं. यह सुनते ही सुंदरी के अंदर आक्रोश का लावा उबलने लगा. वह यह सोच कर बौखला गई कि आखिर ऐसे दरिंदों को अदालत कैसे जमानत पर छोड़ सकती है? इस से उस की मानसिक स्थिति विचलित होने लगी.

अब सुंदरी बातबात पर गुस्सा करती. कोई उस के खिलाफ कुछ कहता तो वह उस से भिड़ जाती, कोई उसे घूरता तो उसे गालियां बकने लगती. कई बार गुस्से में वह इतनी हिंसक हो जाती कि किसी पर कुछ भी उठा कर फेंक देती. वह इतनी हिंसक हो गई कि एक दिन गांव वालों को जगप्रसाद से कहना पड़ा, “जगप्रसाद, या तो सुंदरी को घर में बांध कर रखो या फिर इस का किसी पागलखाने भेज कर इस का इलाज करवाओ. नहीं तो तुम्हारी बेटी किसी दिन किसी का सिर फोड़ देगी, फिर उस का परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना.”

जब जगप्रसाद ने सुंदरी को समझाने की कोशिश की तो वह अपने बाप से ही उलझ बैठी. बापबेटी में तकरार इतनी बढ़ गई कि सुंदरी ने घर छोड़ने का ही पक्का इरादा कर लिया.

पास के गांव में ही एक ईंटभट्ठा था. सुंदरी ने सुन रखा था कि वहां पर बहुत सी महिला मजदूर काम करती हैं उस ने वहीं जाने का निर्णय किया. वहां काम करने वाली महिलाओं को रहने के लिए झोंपड़ी भी मिलती थी। अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुंदरी उसी भट्ठे पर काम करने लगी. वहीं अन्य महिलाओं की तरह उसे रहने का ठिकाना भी मिल गया.

 

फेसबुक फ्रैंडशिप-भाग 2 : जब सच्चाई से वास्ता पड़ता है तो ये होता है

फेसबुक पर सुंदर चेहरे से मित्रता होने  पर लड़के के अंदर उम्मीद जगी. विस्तृत विवरण देख कर उस ने हर पोस्ट पर लाइक और सुंदर कमैंट्स के ढेर लगा दिए. बात इसी तरह धीरेधीरे आगे बढ़ती रही. लड़की के थैंक्स के बाद जब गुडमौर्निंग, गुडइवनिंग और अर्धरात्रि में गुडनाइट होने लगी तो किसी भाव का उठना, किसी उम्मीद का बंधना स्वाभाविक था. लगता है कि दोनों तरफ आग बराबर लगी हुई है. लड़के को तो यही लगा.

लड़के ने विस्तृत विवरण में जाति, धर्म, शिक्षा, योग्यता, आयु सब देख लिया था. पूरा स्टेटस पढ़ लिया था और उस को ही अंतिम सत्य मान लिया था. जो बातें स्टेटस मेें नहीं थीं, उन्हें लड़का पूछ रहा था और लड़की जवाब दे रही थी. जवाब से लड़के को स्पष्ट जानकारी तो नहीं मिल रही थी लेकिन कोई दिक्कत वाली बात भी नजर नहीं आ रही थी. फेसबुक पर ऐसे सैकड़ों, हजारों की संख्या में मित्र होते हैं सब के. आमनेसामने की स्थिति न आए, इसलिए एक शहर के मित्र कम ही होते हैं. होते भी हैं तो लिमिट में बात होती है. सीमित लाइक या कमैंट्स ही होते हैं खास कर लड़केलड़की के मध्य.

लड़का छोटे शहर का था. विचार और खयालात भी वैसे ही थे. लड़कियों से मित्रता होती ही नहीं है. होती है तो भाई बनने से बच गए तो किसी और रिश्ते में बंध गए. नहीं भी बंधे तो सम्मानआदर के भारीभरकम शब्दों या किसी गंभीर विषय पर विचारविमर्श, लाइक, कमैंट्स तक. ऐसे में और उम्र के 20वें वर्ष में यदि किसी दूसरे शहर की सुंदर लड़की से जब बात इतनी आगे बढ़ जाए तो स्वाभाविक है उम्मीद का बंधना.

फोटो के सुंदर होने के साथसाथ यह भी लगे कि लड़की अच्छे संस्कारों के साथसाथ हिम्मत वाली है. किसी विशेष राजनीतिक दल, जाति, धर्म के पक्ष या विपक्ष में पूरी कट्टरता और क्रोध के साथ अपने विचार रखने में सक्षम है और आप की विचारधारा भी वैसी ही हो. आप जब उस की हर पोस्ट को लाइक कर रहे हैं तो जाहिर है कि आप उस के विचारों से सहमत हैं. लड़की की पोस्ट देख कर आप उस के स्वतंत्र, उन्मुक्त विचारों का समर्थन करते हैं, उस के साहस की प्रशंसा करते हैं और आप को लगने लगता है कि यही वह लड़की है जो आप के जीवन में आनी चाहिए. आप को इसी का इंतजार था.

बात तब और प्रबल हो जाती है जब लड़का जीवन की किसी असफलता से निराश हो कर परिवार के सभी प्रिय, सम्माननीय सदस्यों द्वारा लताड़ा गया हो, अपमानित किया गया हो, अवसाद के क्षणों में लड़के ने स्वयं को अकेला महसूस किया हो और आत्महत्या करने तक का विचार मन में आ गया हो. तब जीवन के एकाकी पलों में लड़के ने कोई उदास, दुखभरी पोस्ट डाली हो. लड़की ने पूछा हो कि क्या बात है और लड़के ने कह दिया हाले दिल का. लड़की ने बंधाया हो ढांढ़स और लड़के को लगा हो कि पूरी दुनिया में बस यही है एक जीने का सहारा.

लड़के ने पहले अपने ही शहर में महिला मित्र बनाने का प्रयास किया था, जिस में उसे सफलता भी मिली थी. लड़की खूबसूरत थी. पढ़ीलिखी थी. स्टेटस में खुले विचार, स्वतंत्र जीवन और अदम्य साहस का परिचय होने के साथ कुछ जबानी बातें भी थीं. लड़के ने इतनी बार उस लड़की का फोटो व स्टेटस देखा कि दोनों उस के दिलोदिमाग में बस गए. फोटो कुछ ज्यादा ही. अपने शहर की वही लड़की जब उसे रास्ते में मिली तो लड़के ने कहा, ‘‘नमस्ते कल्पनाजी.’’

लड़की हड़बड़ा गई, ‘‘आप कौन? मेरा नाम कैसे जानते हैं?’’

लड़के ने खुशी से अपना नाम बताते हुए कहा, ‘‘मैं आप का फेसबुक फ्रैंड.’’

और लड़की ने गुस्से में कहा, ‘‘फेसबुक फ्रैंड हो तो फेसबुक पर ही बात करो. घर वालों ने देख लिया तो मुश्किल हो जाएगी. उन्हें फेसबुक का पता चलेगा तो वह अकाउंट भी बंद हो जाएगा. चार बातें अलग सुनने को मिलेंगी. वे कहेंगे स्वतंत्रता दी है तो इस का यह मतलब नहीं कि तुम लड़कों से फेसबुक के जरिए मित्रता करो. उन से मिलो…और प्लीज, तुम जाओ यहां से, मैं नहीं जानती तुम्हें. क्या घर से मेरा निकलना बंद कराओगे? घर पर पता चल गया तो घर वाले नजर रखना शुरू कर देंगे.’’ फिर, घर वालों का प्रेम, विश्वास और भी बहुतकुछ कह कर लड़की चली गई.

तब लड़के के मन में खयाल आया कि एक ही शहर के होने में बहुत समस्या है. जो लड़की की समस्या है वही लड़के की भी है. लड़के ने हिम्मत कर के पूछ तो लिया, लेकिन लड़की ने कहा कि फेसबुक फ्रैंड हो तो फेसबुक पर मिलो. अपनी बात कहने के बाद लड़के ने भी सोचा कि यदि उसे भी कोई घर का या परिचित देख लेता तो प्रश्न तो करता ही. भले ही वह कोई भी जवाब दे देता लेकिन वह जवाब ठीक तो नहीं होता. यह तो नहीं कह देता कि फेसबुक फ्रैंड है. बिलकुल नहीं कह सकता था. फिर बातें उठतीं कि जब इस तरह की साइड पर लड़कियों से दोस्ती हो सकती है तो और भी अनैतिक, अराजक, पापभरी साइट्स देखते होंगे.

ऐसे में दूसरे शहर की वीर, साहसी, दलबल, विचारधारा, जाति, धर्म सब देखते हुए जिस में चेहरे का मनोहारी चित्र तो प्रमुख है ही, फ्रैंड रिक्वैस्ट भेजी जाती है और लड़की की तरफ से भी तभी स्वीकृति मिलती है जब उस ने सारा स्टेटस, फोटो, योग्यता, धर्म, जाति आदि सब देख लिया हो. और वह भी किसी कमजोर व एकांत क्षणों से गुजरती हुई आगे बढ़ती गई हो. लड़की क्यों इतना डूबती जाती है, आगे बढ़ती जाती है. शायद तलाश हो प्रेम की, सच्चे साथी की. उसे जरूरत हो जीवन की तीखी धूप में ठंडे साए की.

और जब बराबर लड़की की तरफ से उत्तर और प्रश्न दोनों हो रहे हो. मजाक के साथ, ‘‘मेरे मोबाइल में बेलैंस डलवा सकते हो?’’ और लड़के ने तुरंत ‘‘हां’’ कहा. लड़की ने हंस कर कहा कि मजाक कर रही हूं. तुम तो इसलिए भी तैयार हो गए कि इस बहाने मोबाइल नंबर मिल जाएगा. चाहिए नंबर?

‘‘हां.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘बात करने के लिए.’’

‘‘लेकिन समय, जो मैं बताऊं.’’

‘‘मंजूर है.’’

और लड़की ने नंबर भी भेज दिया. अब मोबाबल पर भी अकसर बातें होने लगीं. बातों से ज्यादा एसएमएस. बात भी हो जाए और किसी को पता भी न चले. बातें होती रहीं और एक दिन लड़की की तरफ से एसएमएस आया.

‘‘कुछ पूछूं?’’

‘‘पूछो.’’

‘‘एक लड़की में क्या जरूरी है?’’

‘‘मैं समझा नहीं.’’

‘‘सूरत या सीरत?’’

लड़के को किताबी उत्तर ही देना था हालांकि देखी सूरत ही जाती है. सिद्धांत के अनुसार वही उत्तर सही भी था. लड़के ने कहा, ‘‘सीरत.’’

‘‘क्या तुम मानते हो कि प्यार में उम्र कोई माने नहीं रखती?’’

‘‘हां,’’ लड़के ने वही किताबी उत्तर दिया.

‘‘क्या तुम मानते हो कि सूरत के कोई माने नहीं होते प्यार में?’’

‘‘हां,’’ वही थ्योरी वाला उत्तर.

और इन एसएमएस के बाद पता नहीं लड़की ने क्या परखा, क्या जांचा और अगला एसएमएस कर दिया.

‘‘आई लव यू.’’

भविष्यफल-भाग 3 : क्या मुग्धा भविष्यफल के जाल से बच पाई?

‘झंडा चौक’ घर से 1 किलोमीटर की दूरी पर ही था. फ्लैट में ताला लगा कर नीचे आ गई. बाजार की रौनक धीरेधीरे सिमटने के क्रम में थी. दुकानप्रतिष्ठान बंद होने लगे थे. पर चौक पर अभी भी खासी चहलपहल थी. बड़ेबड़े शोरूम अभी खुले हुए थे. बाईं ओर के लैंप पोस्ट तले एक गोलगप्पे वाला खोमचा लगाए खड़ा था. भीतर की निराशा को तिरोहित करने के लिए वह उस के पास आ गई. फिर एक के बाद एक, पूरे 10 गोलगप्पे, इमली का तीखा मसालेदार पानी उदर के भीतर गया तो मन रूई की तरह हलका हो गया.

गोलगप्पे वाले के बगल में ही रामखेलावन का फलों का ठेला था. वह रामखेलावन की स्थायी ग्राहक थी. रामखेलावन उसे देखते ही चहका, ‘क्या तौल दें, मेम साहब?’
मुग्धा ने एक नजर ठेले पर रखे फलों पर डाली. आदित्य को अंगूर खूब पसंद हैं. उस ने एक किलो अंगूर तौल देने को कहा.
‘कितने पैसे, भैया?’
‘90 रुपए, मेमसाहब.’

मुग्धा ने उस की ओर 100 का नोट बढ़ा दिया. तभी 2-3 ग्राहक और आ गए और रामखेलावन उन्हें तत्परता से सौदा देने में लग गया. उन के चले जाने के बाद वह एक क्षण को चिंतन की मुद्रा में आया और फिर बंडी की भीतरी जेब से 100-100 के 4 नोट निकाल कर उन में 10 का नोट मिलाया, फिर मुग्धा की ओर बढ़ा दिए, ‘ये रहे आप के बाकी पैसे.’

410 रुपए देख कर मुग्धा सकपका गई.

‘भैया, हिसाब ठीक से देख लिया न?’ रुपए थामते हुए वह हकला उठी.

‘लो, कर लो बात…’ रामखेलावन ने दांत निपोर दिए. उस के होंठों पर निश्छल हंसी खिल आई, ‘हिसाबकिताब के मामले में इतना भी कमजोर नहीं है मेम साहब. अरे, 500 में 90 गया तो कितना बचा? 410 ही न?’

मुग्धा के जेहन में डा. नारियलवाला का भविष्यफल कौंध गया, ‘अप्रत्याशित स्रोत से आकस्मिक धन प्राप्ति का निश्चित योग.’ ओह, दिन के आखिरी चरण में गुरुजी की भविष्यवाणी आखिरकार सत्य साबित हो ही गई न. वह मूर्ख तो बेकार ही विचलित हो रही थी. गुरुजी महान हैं.

नोट पर्स में डालते हुए उस के पांव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे.

सुबह 6 बजे ही नींद खुल गई. आज भी कालेज बंद था. आदित्य 11 बजे से पहले लौटने वाला नहीं था. वह बेसब्री से उस का इंतजार कर रही थी. इस अप्रत्याशित धन के मिल जाने की खुशी उस से बांटना चाहती थी. फिर आज के दिन को शानदार तरीके से सैलिब्रेट करने की योजना भी बनाने वाली थी.

ब्रश में पेस्ट लगा कर मुंह में डालती मुग्धा बालकनी में चली आई. बालकनी के सामने पक्की सड़क दोनों ओर दूर तक किसी लंबे अजगर की तरह पसरी हुई थी. दिन का उजाला अभी पूरी तरह खिला नहीं था और वातावरण में हलकी धुंध छाई हुई थी. रोड पर आवाजाही ज्यादा नहीं थी.

अचानक उस की नजर बाईं ओर से आते एक व्यक्ति पर चली गई. अरे, यह तो रामखेलावन लग रहा है. लग क्या रहा है, रामखेलावन ही है. तेजतेज लंबेलंबे डग भरता उसी की ओर चला आ रहा था वह. मुग्धा का कलेजा धक से रह गया.

संभावित अपमानजनक और जलालत की स्थिति की आशंका से पूरा बदन सूखे पत्ते की तरह कांप गया. निश्चित रूप से रामखेलावन को रात में हिसाब मिलाने के क्रम में भूल का एहसास हो गया होगा. रात भर सो नहीं पाया होगा. अपनी रकम लेने के लिए अल्लसुबह ही दौड़ा हुआ उस के फ्लैट पर आ पहुंचा है. उफ, एक क्षण को मुग्धा की पलकें भय से ढलक गईं. जेहन में एक कोलाज कौंध गया कि रामखेलावन हवा में हाथ नचा कर उसे खरीखोटी सुना रहा है, ‘वाह मेमसाहब, वाह, अरे, हम तो ठहरे गंवारजाहिल. आप तो कालेज की मास्टराइन हो. बच्चों को ईमानदारी और सचाई का पाठ पढ़ाती हो. जरा सी रकम पर नीयत खराब कर बैठीं? यह भी नहीं सोचा कि एक गरीब फेरी वाला इतनी बड़ी चोट कैसे बरदाश्त करेगा. हमारी तो कमर ही टूट जाएगी…’

उस के मुंह से आवाज नहीं निकल रही है. उस का दिमाग तेजी से किसी उत्तर के विकल्प को ढूंढ़ रहा है. इस के पहले कि रामखेलावन उस पर हावी हो जाए, उसे अपने व्यक्तित्व का रौब गांठ देना होगा, ‘इतना फनफनाने की क्या जरूरत है, भैया? भूल तुम ने की है. मैं ने तो नहीं कहा कि 10 की जगह 410 लौटाओ. जितना निकलता है तुम्हारा, ले लो न. बस.’

‘वह तो लेंगे ही, मेमसाहब,’ रामखेलावन अभी भी तैश में बोलते ही जा रहा है, ‘पर ताज्जुब हो रहा है कि ज्ञानविज्ञान की दुनियाभर में मशहूर किताबों को पढ़ कर भी आप को ईमानदारी और नैतिकता का महत्त्व सम?ा में नहीं आया?

दरअसल, दोष आप का नहीं. आंख मूंद कर जब आप जैसा पढ़ालिखा इंसान भी तथाकथित ज्योतिषीय भविष्यफल पर विश्वास करने लगता है तो उस के भीतर का सारा उच्च संस्कार कपूर की तरह हवा में उड़ कर घुलेगा ही. याद है, पांडे साहब ने एक बार आप के घर पर चाय पीते हुए कहा था कि ज्योतिष धर्मभीरु व्यक्ति को भाग्यवादी तो बनाता ही है, उस की संवेदनशीलता और तार्किकता का भी नाश करता है. कहा था न? आज वह बात बिलकुल सही साबित हो कर रही.’

‘शट अप, यू स्टुपिड, ज्यादा बकवास करने की जरूरत नहीं. ये लो अपने रुपए और दफा हो जाओ…’ मुग्धा पर्स से 410 रुपए के नोट निकाल कर रामखेलावन के मुंह पर दे मारती है.

कोलाज का सम्मोहन टूट गया. मुग्धा क्रोध और आवेश में थरथर कांप रही थी. बड़ी मुश्किल से उस ने स्वयं को संयत किया, पर उसे खूब सम?ा आ रहा था कि उस के सारे तर्क बेहद खोखले थे.

तभी कौलबैल बज उठी. रामखेलावन दरवाजे तक आ पहुंचा था. चेहरे पर दृढ़ता और निर्दोषपन की कलई लगाते हुए उस ने दरवाजा खोला. हड़बड़ाती हुई अनजान बनने का नाटक करते हुए बड़बड़ाई, ‘अरे रामखेलावन, तुम? इस वक्त? इतनी सुबह?’

‘हां मेमसाहब.’ रामखेलावन के होंठों पर ढकीछिपी मुसकान थिरक रही थी, ‘हम से बहुत बड़ा भूल हो गया है. रातभर सो नहीं सके हम.’

मुग्धा ने उस के आरोप को सुनने के पहले ही उस पर हावी हो जाने का प्रयास किया, ‘भूल हुई है तो फिर से हिसाब कर लो न, भैया. इतना तनतनाने की बात क्या है? हम कब इनकार कर रहे हैं?’

‘कैसा हिसाब, मेमसाहब?’ रामखेलावन एक क्षण के लिए हकबका गया कि मेमसाहब किस हिसाब की बात कर रही हैं. फिर बोला, ‘उफ, आप ने तो हम को डरा ही दिया. हिसाब नहीं, हम तो आप को कुछ देने आए हैं.’

आननफानन बंडी की भीतरी जेब से एक अंगूठी निकाल कर रामखेलावन मुग्धा की ओर बढ़ाते हुए हंसा, ‘यह आप की ही है न?’

अंगूठी पर नजर जाते ही मुग्धा एकदम से दहल गई. त्वरित गति से बाईं अनामिका का मुआयना किया. अंगूठी नदारद थी. पिछले माह ही डा. नारियलवाला के सु?ाव पर सोने की अंगूठी में हीरा जड़वा कर धारण किया था. रत्न समेत अंगूठी की कीमत तकरीबन 30 हजार रुपए थी. उंगली से कब निकल कर कहां गिर पड़ी, उसे तनिक भी आभास न हो सका.

‘रात को जब दुकान समेट रहे थे, हमारी नजर अंगूर की टोकरी के भीतर चली गई. वहीं ढेरी तले गुड़ीमुड़ी सी छिपी हुई थी ससुरी. देखते ही पहचान गए कि यह आप की ही है. आप जब हमारे ठेले पर फल छांट रही होती हैं तो अकसर आप की अंगूठी पर मेरी नजर चली जाया करती थी. रातभर सो नहीं पाए. कच्ची कोठरियां, कोई चोरउचक्का ले उड़ा तो क्या मुंह दिखाते आप को?’

मुग्धा ने अंगूठी थाम तो ली पर मुंह से एक बोल भी नहीं फूटा. कुछ पलों तक पथराई सी खड़ी रामखेलावन को निहारती रही. रामखेलावन हंस पड़ा, ‘ऐसे क्या देख रही हो, आप? अब तनिक खुश हो कर मुसकरा न दीजिए. अच्छा जी, नमस्ते.’

रामखेलावन जाने को मुड़ गया. मुग्धा तेजतेज चल कर बैडरूम की ड्रैसिंगटेबल के आदमकद शीशे के सामने आ खड़ी हुई. बिना किसी मेकअप के भी हर समय दिपदिपाता उस का गौर वर्ण चेहरा न जाने क्यों शीशे के भीतर धीरेधीरे स्याह होता दिख रहा था.

बगावत- : कैसे प्यार से भर गया उषा का आंचल

GHKKPM: विनायक को अपने साथ ले जाएगी सई, विराट होगा परेशान

सीरियल गुम है किसी के प्यार में इन दिनों लगातार चर्चा में बना हुआ है, इस सीरियल में लगातार ड्रामे देखने को मिल रहे हैं.  विराट और सई की जिंदगी में एक के बाद एक तूफान आते रह रहा है. सीरियल के बीते एपिसोड में देखने को मिला था कि सई के सामने विराट की सच्चाई आ जाती है.

आने वाले एपिसोड में देखने को मिलेगा कि विराट के ऊपर सी भड़कती नजर आती है. सई विराट को खरी खोटी सुनाती नजर आएगी. मंदिर में सई विराट से सवाल करेगी कि आपने विनू की सच्चाई मुझसे क्यों छुपाई. मैं आपको कभी मांफ नहीं करूंगी इसके लिए. यह कहकर वह वहां से चली जाती है.

सीरियल में दिखाया जाएगा कि सई को जैसे पता चलेगा वह विराट के स्कूल में पहुंच जाएगी. वह उससे मिलकर बहुत सारा प्यार लुटाएगी. वह अपने बेटे के साथ कुछ वक्त बीताने के लिए रेस्टोरेंट जाएगी. इस दौरान वह अपने बेटे के साथ खूब मस्ती करती दिखेगी.

इन सभी को देखकर पत्रलेखा परेशान हो जाती है. वह विराट को फो करके विनू के बारे में पूछती है.  उसके सीसीटीवी कैमरे  पता चलता है कि विनू सई के साथ है. तब विराट तुरंत सई के लोकेशन पर पहुंच जाता है.  अब आगे की कहानी आने वाले एपिसोड में आपको देखने को मिलेगा.

YRKKH: ये रिश्ता क्या कहलाता है में आया नया ट्विस्ट , अभिनव के सामने अक्षरा को सुनाया अभिमन्यु

ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं. अक्षरा और अभिमन्यु का 6 साल बाद सामना हुआ है. अक्षरा औऱ अभिमन्यु में लगातार उतार -चढ़ाव आ रहे हैं. जिसे देख फैंस भी काफी ज्यादा एक्साइटेड हैं.

फैंस को अभि और अक्षरा को एख साथ देखना चाहते हैं,बता दें कि पिछले एपिसोड में दिखाया गया है कि अक्षरा और अभिमन्यु कि मुलाकात अभिनव के  सामने होती है.

अक्षरा और अभिमन्यु की मुलाकात अभिनव अपनी पत्नी को रूप में कराता है. आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अकभिम्यु को अपने घर पर बुलाता है डिनर पर लेकिन अभिमन्यु को कोई सर्जरी होती है जिस वजह से वह नहीं आ पाता है.

 

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लेकिन जब वह काम खत्म करके घर पर आता है तो उसका सामना अक्षरा से होता है. लेकिन जब दोनों एक दूसरे को देखते हैं तो पुरानी यादों में खो जाते हैं. लेकिन जब बीच में अभिनव की आवाज सुनते हैं तो दोनों शॉक हो जाते हैं.

अभिनव अक्षरा को अपनी पत्नी बताता है. जिसे सुनकर अभिनव के होश उड़ जाते हैं. अक्षरा और अभिमन्यु एक-दूसरे को वर्षो बाद देखकर बाते करना चाहते हैं. लेकिन अक्षरा सीधे रूम में चली जाती है. इसके बाद अभिमन्यु अक्षरा के घर में लगी सारी फोटोज देखने लगता है.

अभिमन्यु खुद को संभालने की कोशिश करता है, सीरियल की कहानी में आगे आपको देखने को मिलेगा की अभिमन्यु खुद को रोक नहीं पाएगा.

पंच परमेश्वर पर भाजपा का “फंदा”

यह आज का कठोर सच है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र दामोदरदास मोदी और उनकी सरकार का एक ही लक्ष्य है सभी “संवैधानिक संस्थाओं” को अपने पाकेट में रख लेना और अपने मनोनुकूल देश को चलाना. किसी भी तरह के विरोध को नेस्तनाबूत कर देना.

देश के संविधान की शपथ लेकर सत्ता में आए भारतीय जनता पार्टी के यह चेहरे‌ ऐसा प्रतीत होता है वस्तुतः संविधान पर आस्था नहीं रखते, जिस तरह इन्होंने अपने भाजपा के संगठन में उदार चेहरों को हाशिए पर डाल दिया है वही स्थिति यहां भी कायम करना चाहते हैं. यह देश को उस दिशा में ले जाना चाहते हैं जो बहुत कुछ पाकिस्तान और तालिबान की है. यही कारण है कि अब कार्यपालिका, विधायिका के साथ चुनाव आयोग, सूचना आयोग को लगभग प्रभाव में लेने के बाद यह उच्चतम न्यायालय अर्थात न्यायपालिका को भी अपने मनोनुकूल बनाने के लिए बड़े ही उद्दंड रूप में सामने आ चुकी है.

दरअसल, भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा राष्ट्रीय स्वयं संघ से अनुप्राणित होती है जो देश की आजादी और देश को संजोने के लिए अपने प्राण देने वाले राष्ट्रपिता महात्मा गांधी,भगत सिंह, डॉक्टर बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे नायकों के विचारधारा से बिल्कुल उलट है. और जब कोई विपरीत विचारधारा सत्ता के सिंहासन पर विराजमान होती है तो वह लोकतंत्र पर विश्वास नहीं करती बल्कि तानाशाही को अपना आदर्श मानकर आम लोगों की भावनाओं को कुचल देना चाहती है और अपने विरोधियों को नेस्तनाबूद.
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कोलोजियम से कष्ट है
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आज सबसे ज्यादा कष्ट केंद्र में बैठी नरेंद्र मोदी सरकार को उच्चतम न्यायालय के कोलोजियम सिस्टम से है. भाजपा के नेता या भूल जाते हैं कि जब कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी अथवा अन्य दल तब भी यही सिस्टम काम कर रहा था क्योंकि यही आज की स्थिति में सर्वोत्तम है इसे बदलकर अपने अनुरूप करने की कोशिश देश हित में लोकतंत्र के हित पर नहीं है. कांग्रेस ने सोमवार को केंद्र सरकार पर न्यायपालिका पर कब्जा करने के लिए उसे डराने और धमकाने का आरोप लगाया है कांग्रेस पार्टी ने यह आरोप केंद्रीय कानून किरण रिजीजू की ओर से प्रधान न्यायाधीश डी. वाई चंद्रचूड़ को लिखे उस पत्र के मद्देनजर लगाया, जिसमें रिजीजू ने उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों के कालेजियम में केंद्र और राज्यों के प्रतिनिधियों को शामिल करने का सुझाव दिया है.

रिजीजू ने प्रतिनिधियों को शामिल करने की मांग करते हुए कहा है कि इससे न्यायाधीशों की नियुक्ति में पारदर्शिता और जनता के प्रति जवाबदेही लाने में मदद मिलेगी. इस पर कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया, ‘ उपराष्ट्रपति ने हमला बोला. कानून मंत्री ने हमला किया. यह न्यायपालिका के साथ सुनियोजित टकराव है, ताकि उसे धमकाया जा सके और उसके बाद उस पर पूरी तरह से कब्जा किया जा सके.’ उन्होंने कहा कि कालेजियम में
सुधार की जरूरत है, लेकिन यह सरकार उसे पूरी तरह से अधीन करना चाहती है. यह उपचार न्यायपालिका के लिए विष की गोली है.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इस मांग को बेहद खतरनाक करार दिया। उन्होंने ट्वीट किया -” यह खतरनाक है. न्यायिक नियुक्तियों में सरकार का निश्चित तौर पर कोई हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए.” भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा इतनी अलोकतांत्रिक है कि वह न तो विपक्ष चाहती है और ना ही कहीं कोई विरोध अवरोध यही कारण है कि सत्ता में आने के बाद वह सारे राष्ट्रीय चिन्ह और धरोहर जो स्वाधीनता लड़ाई से जुड़ी हुई है अथवा कांग्रेस पार्टी से उन्हें धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है इसके साथ ही सबसे खतरनाक स्थिति है कि आज सत्ता बैठे हुए देश के जनप्रतिनिधि देश की संवैधानिक संस्थाओं को सुनियोजित तरीके से कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं और चाहते हैं कि यह संस्था हमारी जेब में रहे हम जो चाहे वही होना चाहिए यह हमने देखा है कि किस तरह चाहे वह राष्ट्रपति हो अथवा उपराष्ट्रपति अथवा राज्यपालों की नियुक्तियां भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार ऐसे चेहरों को इन कुर्सियों पर बैठा रही है जो पूरी तरह अनुकूल है. एक बेहतर लोकतंत्र के लिए विपक्ष कहो ना उतना ही जरूरी है जितना कि देश को गति देने के लिए सत्ता मगर अब यह प्रयास किया जा रहा है कि विपक्ष खत्म कर दिया जाए और संवैधानिक संस्थाओं को अपने पॉकेट में रख कर देश को एक अंधेरे युग और ढकेल दिया जाए जहां हम जो चाहे वही अंतिम सत्य हो.

लाडो का पीला झबला : परिवार और प्यार की कहानी

सुबह सुबह ही शाहिस्ता ने सोहेल से कहा, ‘‘आज वक्त निकाल कर अपने लिए नई पतलून ले आइए. अब तो रफू के धागे भी जवाब दे चुके हैं.’’ सोहेल ने बड़ी बुलंद आवाज में कहा, ‘‘बेगम का हुक्म सिरआंखों पर. आज तो दिन भी बाजार का.’’

हर जुमेरात पर शहर के छोर पर नानानानी पार्क के पास वाली सड़क पर बाजार लगता था. सोहेल ने जल्दीजल्दी अपना काम खत्म कर के बाजार का रुख कर लिया. दिमाग में हिसाब चालू था. 2 ईद गुजर चुकी थीं, उसे खुद के लिए नया जोड़ा कपड़ा लिए हुए. इस बार 25 रुपए बचे हैं, महीने के हिसाब से… पूरे 12 किलोमीटर चलने के बाद बाजार आ ही गया. शाम बीतने को थी. अंधेरा हो चुका था. बाजार ट्यूबलाइट और बल्ब की रोशनी से जगमगा रहा था.

सोहेल ने अपनी जेब की गहराई के मुताबिक दुकान समझी और यहांवहां नजर दौड़ाने लगा. अचानक उस की नजर एक तरफ सजे हुए झबलों पर पड़ी. नीले, लाल, हरे, पीले और बहुत से रंग. दुकानदार ने सोहेल को कुछ पतलूनें दिखाईं. मोलभाव शुरू हुआ. 20 रुपए की पतलून तय हुई.

सोहेल ने पूछा, ‘‘भाई, बच्चों के वे रंगबिरंगे झबले कितने के हैं?’’ दुकानदार ने कहा, ‘‘25 के 3. कोई मोलभाव नहीं हो पाएगा इस में.’’सोहेल ने जेब से पैसे निकाले और 3 झबले ले लिए. 12 किलोमीटर चल के घर आतेआते रात काफी हो चली थी.

घर का दरवाजा खटखटाते ही शाहिस्ता ने दरवाजा तुरंत खोला, मानो वह दरवाजे से चिपक कर ही खड़ी थी. सोहेल ने पूछा, ‘‘हमारी लाडो सो गई क्या?’’

 

शाहिस्ता ने जवाब दिया, ‘‘वह तो कब की सो गई. मैं तो तुम्हारी नई पतलून का इंतजार कर रही थी.’’ सोहेल ने हंसते हुए जवाब दिया, ‘‘बेगम, आप का इंतजार और लंबा हो गया.’’

शाहिस्ता ने पैकेट खोला और उस में से निकले 3 झबले. उस ने बिना कुछ कहे खाना निकालना सही समझा. खाना लगा कर उस ने सिलाई मशीन में तेल डाला, काला धागा निकाला और पुरानी पतलून को रफू करने लगी.

सोहेल ने खाना खाते हुए मुसकरा कर कहा, ‘‘लाडो के ऊपर पीला झबला तो बड़ा ही खूबसूरत लगेगा. क्यों शाहिस्ता…’’ शाहिस्ता ने दांतों से धागा काटते हुए कहा, ‘‘लो, तुम्हारी पतलून फिर से तैयार हो गई.’’

हार : इस खेल में कौन हारा और कौन जीता

आबादी इतनी बढ़ गई है कि सड़क के दोनों किनारों तक शनीचरी बाजार सिमट गया है. चारों ओर मकान बन गए हैं. मजार और पुलिस लाइन के बीच जो सड़क जाती है, उसी सड़क के किनारे शनीचरी बाजार लगता है. तहसीली के बाद बाजार शुरू हो जाता है, बल्कि कहिए कि तहसीली भी अब बाजार के घेरे में आ गई है.

शनीचरी बाजार के उस हिस्से में केवल चमड़े के देशी जूते बिकते हैं. यहीं पर किशन गौशाला का दफ्तर भी है. अकसर गौशाला मैनेजर की झड़प मोचियों से हो जाती है. मोची कहते हैं कि उन के पुरखे शनीचरी बाजार में आ कर हरपा यानी सिंधोरा, भंदई, पनही यानी जूते बेचते रहे. तब पूरा बाजार मोचियों का था. जाने कहां से कैसे गौसेवक यहां आ गए. अगर सांसद के प्रतिनिधि आ कर बीचबचाव न करते तो शायद दंगा ही हो जाता.

लेकिन सांसद का शनीचरी बाजार में बहुत ही अपनापा है इसलिए मोचियों का जोश हमेशा बढ़ा रहता है. अपनापा भी खरीदबिक्री के चलते है. सांसद रहते दिल्ली में हैं, मगर हर महीने तकरीबन 25-30 जोड़ी खास देशी जूते, जिसे यहां भंदई कहा जाता है, दिल्ली में मंगाते हैं.

भंदई के बहुत बड़े खरीदार हैं सांसद महोदय. मोची तो उन्हें पहचानते ही नहीं, क्योंकि वे खुद तो आ कर भंदई नहीं खरीदते, पर उन के लोग भंदई खरीद कर ले जाते हैं.

गौशाला चलाने वाले भी सांसद का लिहाज करते हैं. आखिर उन्हीं की मेहरबानी से गौशाला वाले नजदीक की बस्ती जरहा गांव में 20 एकड़ जमीन जबरदस्ती कब्जा सके थे.

किशन गौशाला शहर के करीब बसे जरहा गांव में है. इस गौशाला में सांसद कई बार जा चुके हैं. पहले गौशाला वालों ने 10 एकड़ जमीन गांव के किसानों से खरीदी. वहां कुछ गायों को रखा. कृष्ण जन्माष्टमी के दिन एक कार्यक्रम हुआ था, जिस में सांसद चीफ गैस्ट बने थे. सरपंच के दोस्तों ने दही लूटने का कमाल दिखाया, फिर अखाड़े का करतब हुआ.

गांव वाले बहुत खुश हुए कि चलो गांव में गौमाता के लिए एक ढंग का आसरा तो बना. सांसद ने उस दिन गांव के मोचियों को भी इस समारोह में बुलाया. जरहा गांव शहर से सट कर बसा है. गौशाला का दफ्तर शहर में है और गौशाला है जरहा गांव में.

दफ्तर के पास जरहा गांव, बोरिद, अकोली के मोची चमड़े का सामान बेचने शनिवार को आते हैं, पर बाकी दिन वे गांव में भंदई बनाते हैं. जाने कब से यह सिलसिला इसी तरह चल रहा है.

लेकिन जब से सांसद भोलाराम भंदई खरीद कर दिल्ली ले जाने लगे हैं, तभी से मोचियों का कारोबार कुछ नए रंग पर आ गया है. ऊपर से सांसद ने अपनी सांसद निधि से जरहा गांव में मोची संघ के लिए पिछले साल 3 लाख रुपए दिए थे. वे गांवगांव में अलगअलग मंचों के लिए सांसद निधि से खूब पैसे देते हैं, मगर इन दिनों मंचों की धूम है.

इस इलाके में दलितों की तादाद ज्यादा?है, इसलिए सांसद अपने हिसाब से अपना भविष्य पुख्ता करते चल रहे हैं. मोची मंचों का भी लगातार फैलाव हो रहा है, तो गौशाला का भला हो रहा है.

गौशाला के कर्ताधर्ता सब दूसरे राज्य के हैं. वे शहर के जानेमाने कारोबारी हैं. सब ने थोड़ाथोड़ा पैसा लगा कर 10 एकड़ जमीन ले ली और किशन गौशाला खोल कर गांव में घुस गए. वहां 2 दुकानें भी अब इसी तबके की खुल गई हैं. एक स्कूल भी जरहा गांव में चलता है, जिसे किशनशाला नाम दिया गया है.

इस स्कूल में सभी टीचर सेठों के  जानकार लोग हैं. सांसद सेठों और मोचियों में बराबर से इज्जत बनाए हुए हैं. सब को पार लगाते हैं, चूंकि सब उन्हें पार लगाते हैं.

लेकिन इधर जब से बाबरी मसजिद ढही है, जरहा गांव में दूसरा दल भी हरकत में आ गया है. सेठ सांसद के विरोधी दल को पसंद करते हैं. जिले में 2 ही झंडे असर में हैं, तिरंगा और भगवा. 2 ही चिह्न यहां पहचाने जाते हैं, पंजा और कमल.

गौप्रेमी सभी सेठ कमल पर विराजने वाली लक्ष्मी मैया के भगत हैं, वहीं मोची, लुहार, धोबी, कुम्हार, कुर्मी,  तेली, इन्हीं जातियों की तादाद इस इलाके में ज्यादा है, इसीलिए आजादी के बाद कांग्रेस को भी इलाके के लोगों ने अपना समर्थन दिया. लेकिन जब से बाबरी मसजिद को ढहा कर जरहा गांव का नौजवान गांव लौटा है, कमल की नई रंगत देखते ही बन रही है.

लेकिन सांसद भोलाराम परेशान नहीं होते. वे जानते हैं कि सेठों को इस लोक पर राज करने के लिए धंधा प्यारा है और परलोक सुधारने के लिए है ही किशन गौशाला. दोनों के फायदे में है कि वे कभी भोलाराम का दामन न छोड़ें.

ये भोलाराम भी कमाल के आदमी हैं. एक बड़े किसान के घर में पैदा हुए. मैट्रिक पास कर आगे पढ़ना चाहते थे, लेकिन उन के पिताजी ने पैरों में बेड़ी पहनाने की ठान ली.

शादी की सारी तैयारी हो गई, लेकिन बरात निकलने के ठीक पहले दूल्हा अचानक ही गायब हो गया और प्रकट हुआ दिल्ली में. यह बात साल 1946 की है. सालभर में भोलाराम ने दिल्ली के एक बडे़ अखबार में अपने लिए जगह बना ली.

भोलाराम दल के लोग तो चुनाव के समय रोरो कर यह भी बताते हैं कि भोलारामजी तब रिपोर्टिंग के लिए गांधीजी की अंतिम प्रार्थना सभा में भी गए थे. नाथूराम ने जब गोलियां चलाईं, तो गांधीजी ‘हे राम’ कह कर भोलारामजी की गोद में ही गिरे थे.

भोलाराम के खास लोग तो यह भी कहते हैं कि भोलारामजी का खून से सना कुरता आज भी गांधी संग्रहालय में हैं. जिसे देखना हो दिल्ली जा कर देख आए.

इलाके के लोगों में वह कुरता देखने की कभी दिलचस्पी नहीं रही. भोलाराम लगातार आगे बढ़ते गए और दिल्ली में एक नामी पत्रकार हो गए.

एक दिन इंदिरा गांधी ने उन्हें इस इलाके का सांसद बना दिया. इस इलाके के लोग नेताओं की बात नहीं टालते.

इंदिरा गांधी ने पहली चुनावी सभा में कहा, ‘‘यह इलाका भोलेभाले लोगों का है. यहां भोलाराम ही सच्चे प्रतिनिधि हो सकते हैं.’’

इंदिरा गांधी से आशीर्वाद ले कर भोलाराम भी उस दिन जोश से भर गए. उन्होंने मंच पर ही कहा, ‘‘इंदिरा गांधी की बात हम सभी को माननी है. अगर विरोधियों के भालों से बचना है, तो भोले को समर्थन जरूर दीजिए.’’

भोले और भाले का ऐसा तालमेल इंदिरा गांधी को भी भा गया. उन्होंने मुसकरा कर भोलाराम को और अतिरिक्त अंक दे दिया.

तब से लगातार 5 बार भोलाराम ही यहां के सांसद बने. वे इलाके के बड़े लोगों की बेहद कद्र करते हैं, इसीलिए भोलाराम की बात भी कोई नहीं टालता.

महीनाभर पहले शनीचरी बाजार में हंगामा मच गया. हुआ यह कि भोलाराम अपने टोपीधारी विशेष प्रतिनिधि के साथ बाजार आए. चैतराम मोची की दुकान बस अभी लगी ही थी कि दोनों नेता उस के आगे जा कर खड़े हो गए.

चैतराम ने इस से पहले कभी भोलाराम को देखा भी नहीं था. वह केवल साथ में आए गोपाल दाऊ को पहचानता था.

गोपाल दाऊ ने ही चैतराम को भोलाराम का परिचय दिया. खादी का कुरतापाजामा और गले में लाल रंग का  गमछा.

भोलाराम तकरीबन 70 बरस के हैं, मगर चेहरा सुर्ख लाल है. चुनाव जीतने के बाद उन का सूखा चेहरा लाल होता गया और वे 2 भागों में बंट गए.

भोलाराम दिल्ली में रहते तो सूटबूट पहनते. गले में लाल रंग का गमछा तो खैर रहा ही. दिल्ली में रहते तो दिल्ली वालों की तरह खातेपीते, लेकिन अपने संसदीय इलाके में मुनगा, बड़ी, मछरियाभाजी, कांदाभाजी ही खाते.

अपने इलाके में भंदई पे्रमी सांसद भोलाराम को सामने पा कर चैतराम को कुछ सूझा नहीं. भोलाराम ने उस के कंधे पर हाथ रख दिया.

चैतराम ने भोलाराम के पैरों में अपने हाथों की बनी भंदई रख दी. भंदई छत्तीसगढ़ी सैंडल को कहते हैं. मोची गांव में मरे मवेशियों के चमड़े से इसे बनाते हैं. सूखे दिनों की भंदई अलग होती है, जबकि बरसाती भंदई अलग बनती है.

अपने हाथ की बनी भंदई पहने देख भोलाराम के सामने चैतराम झुक गया. भोलाराम ने कहा, ‘‘भाई, मुझे पता लगा है कि तुम्हीं मुझे भंदई बना कर देते हो, इसलिए मिलने चला आया. इस बार 100 जोड़ी भंदई चाहिए.’’

‘‘100 जोड़ी…’’ चैतराम का मुंह खुला का खुला रह गया.

भोलाराम ने कहा, ‘‘हां, 100 जोड़ी. दिल्ली में अपने दोस्तों को तुम्हारे हाथ की भंदई बहुत बांट चुका हूं. इस बार विदेशी दोस्तों का साथ होने वाला है.

‘‘मैं जब भी विदेश जाता हूं, तो वहां भंदई पर सब की नजर गड़ जाती है. सोचता हूं कि इस बार एकएक जोड़ी भंदई उन्हें भेंट करूं. बन जाएगी न?’’

चैतराम ने पूछा, ‘‘कब तक चाहिए मालिक?’’

‘‘2 महीने में.’’

‘‘2 महीने में… मालिक?’’

‘‘हांहां, 2 महीने में तुम्हें देनी है. मैं खुद आऊंगा तुम्हारे गांव में भंदई ले जाने के लिए.’’

‘‘मालिक, गांवभर के सारे मोची मिलजुल कर बनाएंगे. मैं गांव जा कर सब को तैयार करूंगा.’’

‘‘तुम जानो तुम्हारा काम जाने. मुझे तो भंदई चाहिए बस.’’

इतना सुनना था कि पास में दुकान लगाए उसी गांव के 2 और मोची एकसाथ बोल पड़े, ‘‘दाऊजी, आप की मेहरबानी से सब ठीकठाक है. हम सब मिल कर बना देंगे भंदई.

‘‘मगर मालिक, ये गौशाला वाले गांव में 20 एकड़ जमीन पर कब्जा कर के बैठ गए हैं. पिछले 2 साल से यहां के किसान अपने जानवरों को रिश्तेदारों के पास पहुंचाने लगे हैं.

‘‘हुजूर, यह जगह जानवरों के चरने के लिए थी, मगर सेठ लोगों ने घेर कर कब्जा कर लिया है.

‘‘2 साल से हम सब लोग फरियाद कर रहे हैं, पर कोई सुनता ही नहीं. अब आप आ गए हैं, तो कुछ तो रास्ता निकालिए. छुड़ाइए गायभैंसों के लिए उस 20 एकड़ जमीन को. गौशाला के नाम से सेठ लोग गाय के चरने की जगह को ही लील ले गए साहब. अजब अंधेर है.’’

भोलाराम को इस बेजा कब्जे की जानकारी तो थी, मगर वे यही सोच रहे थे कि सेठ लोग सब संभाल लेंगे. यहां तो पासा ही पलट सा गया है. भंदई का शौक अब उन्हें भारी पड़ रहा था. फिर भी उन्होंने चैतराम को पुचकारते हुए कहा, ‘‘मैं देख लूंगा. तुम लो ये एक हजार रुपए एडवांस के.’’

‘‘इस की जरूरत नहीं है मालिक,’’ हाथ जोड़ कर चैतराम ने कहा.

‘‘रख लो,’’ भोलाराम ने कहा.

चैतराम ने रखने को तो अनमने ढंग से एक हजार रुपए रख लिए, मगर सौ जोड़ी भंदई बना पाना उसे आसान नहीं लग रहा था.

गांव जा कर उस ने अपने महल्ले के लोगों को इकट्ठा किया. 4 लोगों ने 25-25 जोड़ी भंदई बनाने का जिम्मा ले लिया. चैतराम का जी हलका हुआ.

लेकिन सेठों को भी खबर लग गई कि गांव के मोची किशन गौशाला का विरोध सांसद भोलाराम से कर रहे थे. वे बहुत भन्नाए. उन्होंने गांव के अपने पिछलग्गू सरपंच, पंच और कुछ खास लोगों से बात की और गांव में बैठक हो गई. सरपंच ने मोची महल्ले के लोगों के साथ गांव वालों को भी बुलवाया.

सरपंच ने कहा, ‘‘देखो भाई, आज की बैठक बहुत खास है. गाय की वजह से बैठी है यह सभा.’’

चैतराम ने कहा, ‘‘मालिक, गाय का चारागाह सब गौशाला वाले दबाए बैठे हैं. चारागाह नहीं रहेगा, तो गौधन की बढ़ोतरी कैसे होगी?’’

चैतराम का इतना कहना था कि बाबरी मसजिद तोड़ने गई सेना में शामिल हो कर लौटे जरहा गांव का एकलौता वीर सुंदरलाल उठ खड़ा हुआ. उस ने कहा, ‘‘वाह रे चैतराम, तू कब से हो गया गौ का शुभचिंतक?’’

सुंदरलाल का इतना कहना था कि चैतराम के साथ उस के महल्ले के सभी लोग उठ खड़े हुए. उस ने कहा, ‘‘मालिक हो, मगर बात संभल कर नहीं कर सकते. हम मरे हुए गायभैंसों का चमड़ा उतारते हैं, आप लोग तो जीतीजागती गाय की जगह दबाने वालों के हाथों खेल गए.’’

ऐसा सुन कर सुंदरलाल सिटपिटा सा गया. तभी भोलाराम दल के एक जवान रामलाल ने कहा, ‘‘राजनीति करो, मगर धर्म बचा कर. आदिवासियों को गाय बांटने का झांसा तुम लोग देते हो और गांव की जमीन, जिस में गाएं चरती थीं, उसे पैसा ले कर बाहर से आए सेठों को भेंट कर देते हो.’’

सुंदरलाल ने कहा, ‘‘100 जोड़ी भंदई के लिए गायों को जहर दे कर मरवाओगे क्या…?’’

उस का इतना कहना था कि ‘मारोमारो’ की आवाज होने लगी और लाठीपत्थर चलने लगे. गांव में यह पहला मौका था, जब बैठक में लाठियां चल रही थीं.

3 मोचियों के सिर फट गए. चैतराम का बायां हाथ टूट गया. अखबार में खबर छप गई. सांसद भोलाराम ने जरहा गांव का दौरा किया. उन्होंने मोचियों से कहा, ‘‘तुम लोग एकएक घाव का हिसाब मांगने का हक रखते हो. यह गुंडागर्दी नहीं चलेगी. मैं सब देख लूंगा.’’

भाषण दे कर जब भोलाराम अपनी कार में बैठ रहे थे, तभी उन्हीं की उम्र के एक आदमी ने उन्हें आवाज दे कर रोका. भोलाराम ने पूछा, ‘‘कहो भाई?’’

उस आदमी ने कहा, ‘‘भोला भाई, अब आप न भोले हैं, न भाले हैं. मैं पहले चुनाव से आप का संगी हूं. जहां भाला बनना चाहिए, वहां आप भोला बन जाते हैं. जहां भोला बनना चाहिए, वहां भाला, इसलिए सबकुछ गड्डमड्ड हो गया.‘‘भाई मेरे कोई जिंदा गाय की राजनीति कर रहा है, तो कोई मरी हुई गाय की चमड़ी का चमत्कार बूझ रहा है. हैं दोनों ही गलत. मगर हमारी मजबूरी है कि 2 गलत में से एक को हर बार चुनना पड़ता है. इस तरह हम ही हर बार हारते हैं.’’

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