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Bigg Boss 16: प्रियंका की वजह से शिव और निमृत में हुई लड़ाई, क्या फिर हो पाएगी दोस्ती?

बिग बॉस 16 के फिनाले में सिर्फ कुछ दिन बचे हैं , ऐसे में सभी घरवाले अपना बेहतर पर्फॉर्मेंस देने की कोशिस कर रहे हैं. घर में एक टॉस्क के दौरान जब शिव ठाकरे से पूछा गया कि प्रियंका और निमृत में ज्यादा डिजरविंग कौन हैं.तो शिव ने निमृत की जगह प्रियंका का नाम लिया.

दरअसल, शिव और निमृत लंबे समय से दोस्त हैं ऐसे में अगर शिव निमृत को लेकर कुछ कहता है तोजाहिर सी बात है कि निमृत को झटका लगेगा. हाल ही में निमृत कौर ने शिव ठाकरे एक साथ बैठे थें उसी दौरान जब शिव ने प्रियंका को निमृत से ज्यादा बेहतर कंटेस्टेंट बताया तो निमृत को झटका लगा.

जिसके बाद से निमृत भी घरवालों के सामने यह कहती हुई नजर आईं कि मेरी और शिव की दोस्ती सिर्फ कैमरा के सामने ही हैं. इसके अलावा तो उसके दिल में मुझे लेकर कुछ और ही चलता रहता है.

वहीं सौदर्या और शालीन निमृत को समझाने की कोशिश कर रही थी कि जैसा तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं है. सौंदर्या ने कहा कि उसने प्रियंका के अलावा एमसी स्टेन का भी नाम लिया है.

सौंदर्या और शालिन ने कहा कि अपनी आंखे खोलकर काम करो ज्यादा इमोशनल होने कि जरुरत नहीं है. वहीं दूसरी तरफ निमृत इमोशनल होकर शिव को सुनाती है कि तुम्हें प्रियंका सही लगती है तो जाओ अपनी दोस्ती उसके साथ रखो. हालांकि शिव उसे समझाने की कोशिश करता है लेकिन वह सझती नहीं है.

जीत नामुमकिन नहीं -भाग 3 : जो सोचा वो किया

कुछ देर बाद सुंदर ने एक गहरी सांस ली. उस के चेहरे पर पसीना आ गया था. मैं जल्दी से जा कर एक गिलास पानी ले आई और उस का हाथ अपने हाथ से दबा कर दबाते हुए मैं ने उसे आश्वास्त किया.

“अब तक जो कुछ भी हुआ उसे भूल जाओ सुंदर… तुम यहां पूरी तरह सुरक्षित हो और तुम ने अपनी इच्छाशक्ति के बल पर ही इस बीमारी पर काबू पाया है, वरना तुम्हारी जो परिस्थिति थी, ऐसे में मुझे तो विश्वास नहीं था कि इतनी जल्दी सबकुछ ठीक हो सकेगा.”

“यह मेरी इच्छाशक्ति से भी ज्यादा तुम्हारी सेवा और मेहनत का फल है नीता. मुझे माफ कर दो कि मैं ने तुम्हारे साथ बहुत बुरा सुलूक किया.”

“ऐसा कुछ भी नहीं है. लेकिन हां, तुम जब मुझे मिले थे, तो तुम्हारे पास सिर्फ तुम्हारे अस्पताल के रिपोर्ट का पैकेट ही था. कपड़ों का कोई बैग मुझे नहीं दिखा.”

“मुझे तो कुछ भी याद नहीं नीता… क्या पता शायद मेरी परिस्थिति का फायदा उठा कर किसी ने वह बैग चुरा लिया हो.”

“हां, यह भी हो सकता है. खैर, कोई बात नहीं. अब तो तुम काफी हद तक ठीक हो चुके हो. बस, तुम्हारा यह पैरों का घाव ठीक हो जाए, फिर मैं खुद तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा आऊंगी. लेकिन, तुम वहां रह कर करोगे क्या?”

“देखता हूं… कुछ ना कुछ तो कर ही लूंगा. कुछ नहीं तो आसपास में ही कोई छोटामोटा काम देख लूंगा.”

“अरे, ऐसा क्यों कह रहे हो तुम? तुम ने अच्छीखासी पढ़ाई की है और इतना बड़ा बिजनैस चलाने का तुम्हारा अनुभव भी है. तुम्हें तो बहुत ही अच्छा काम मिल जाएगा,” मेरी बात सुन कर सुंदर हंसने लगा.

“अब इस उम्र में कौन देगा मुझे नौकरी?”

“ऐसी कोई बात नहीं है. तुम बस जल्दी से ठीक हो जाओ, फिर मैं कुछ ना कुछ देखती हूं.”

मैं सुंदर को समझा तो रही थी, मगर मुझे रहरह कर उस के पैरों का खयाल आजा रहा था. मैं ने उसे डाक्टर की कही हुई बात नहीं बतलाई थी. वह अपने पैरों के घाव को मामूली घाव समझ रहा था. मैं इसी चिंता में डूबी थी कि तभी मेरा मोबाइल बज उठा. अस्पताल से डाक्टर प्रधान का फोन था.

“नीता, तुम ने जो गैंग्रीन के मरीज की बात की थी ना, उस को कल अस्पताल में ले आओ. कल एक बहुत बड़े डाक्टर आ रहे हैं बाहर से. उन को दिखला देते हैं. शायद कुछ उपाय निकल जाए, क्योंकि वह HBOT विशेषज्ञ हैं.”

“ये क्या है सर?” नीता ने पूछा.

“HBOT मतलब हाइपरबेरिक औक्सीजन थेरेपी. जनवरी, 2013 में एक मधुमेह रोगी का हाइपरबेरिक औक्सीजन थेरेपी (HBOT) के साथ सफलतापूर्वक इलाज किया गया था. एक ऐसी चिकित्सा, जिस में मृत ऊतकों को औक्सीजन की आपूर्ति के साथ मधुमेह के घावों को ठीक किया जाता है. हालांकि डाक्टर को पहले रोगी के गैंगरेनस पैर के अंगूठे को काटना पड़ता है, लेकिन उच्च वायुमंडलीय दबाव में औक्सीजन सांस का उपयोग कर के तेजी से घाव भरने से इसे और फैलने से रोक दिया जाता है. यह उपचार घावों से पीड़ित मधुमेह रोगियों में पैर के विच्छेदन के जोखिम को काफी कम कर सकता है,” यह सब सुन कर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा. मैं अगले ही दिन सुंदर को ले कर अस्पताल गई.

अगले 2 महीने में सुंदर का पैर लगभग ठीक हो चुका था, सिर्फ अंगूठा काटना पड़ा. अब तो वह बिना किसी सहारे के चलने भी लगा है. आज हम सब लोग सुंदर को उस के घर छोड़ने जा रहे हैं. इस उम्मीद के साथ कि आगे सब अच्छा ही होगा, क्योकि अब सुंदर के अंदर भरपूर अत्मविश्वास जो था.

एक बार फिर टीआरपी लिस्ट में अनुपमा आगे, दर्शकों बनी दर्शकों की पहली पसंद

सीरियल अनुपमा हमेशा कि तरह इस बार भी टीआरपी लिस्ट में आगे है, इस सीरियल को देखने वाले दर्शकों की उत्सुकता दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है, इन दिनों सीरियल की कहानी में काफी ज्यादा ट्विस्ट आ गया है.

इस सीरियल में रूपीली गांगुली और गौरव खन्ना की जोड़ी को खूब पसंद किया जा रहा है, इस सीरियल को टीआरपी में आने के बाद सेट पर मौजूद सभी कलाकारों ने मिलकर एक साथ केक काटा है. इस दौरान सेट पर सभी को एक्टर एक दूसरे को केक खिलाते नजर आ रहे थें.

 

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इन दिनों सीरियल में काफी ज्यादा ट्विस्ट आ गया है, अनुपमा और अनुज की छोटी बेटी अनु की असली मां  जल्द शो में एंट्री करने वाली है. जिसके बाद कहानी में और भी ज्यादा ट्विस्ट आने वाली है. वहीं दूसरी तरफ काव्या और वनराज के बीच भी लड़ाई चल रही है, काव्या ने अपने मैनेजर को घर पर बुला लिया था, जिसके बाद से बा ने घर में तहलका मचा दिया था.

काव्या पर गलत-गलत इल्जाम लगा दिया था,जिसके बाद से काव्या लगातर सभी को सफाई देती नजर आ रही है. अनु को लेकर अनुपमा औऱ अनुज काफी ज्यादा परेशान नजर आ रहे हैं.

विंटर स्पेशल : एग पफ रेसिपी

सर्दियों में अगर आप कुछ बनाना चाहते हो तो एग पफ से बेहतर कुछ और ऑप्शन नहीं हो सकता है.

सामग्री:

– मैदा (150 ग्राम)

– घी/तेल ( 2 चम्मच)

– अंडा (2 उबले हुए)

– नमक (स्वादानुशार)

– प्याज (1कटे हुए)

– हरी मिर्च (2 कटे हुए)

– जीरा (1/2चम्मच)

– मिर्च पाउडर (1/2चम्मच)

– हल्दी पाउडर (1/2चम्मच)

– गरम मशाला (1 चम्मच)

बनाने की विधि:

– सबसे पहले एक बड़े कटोरे में मैदा को ले लें फिर उसमे एक चम्मच घी और थोड़ा सा नमक डाल कर उसे मिला दें .

– फिर उसे थोड़ा थोड़ा पानी डालकर उसे गूंथ लें, लोई कचौड़ी बनाने जैसी होनी चाहिए.

– और उसे 10 मिनट के लिए छोड़ दें.

– तब तक हम अंडे को फ्राई करके तैयार कर लेंगे.

– सबसे पहले गैस पे कढ़ाई रखें और उसमे थोड़ा सा घी/तेल डालें.

– गरम हो जाने पे उसमे जीरा डाल दें.

– फिर उसमे मिर्च और प्याज को डाल कर थोड़ी देर भुनें.

– प्याज को हल्का भूरा हो जाने पे उसमे हल्दी पाउडर, मिर्ची पाउडर,गरम मशाला और नमक डालकर उसे मिलायें.

– फिर उसे फ्राई करे और गैस को बंद कर दें.

– आटे को एक बार मिला और उसे बेल लें.

– फिर उसे मोड़ दें और फिर उसके ऊपर तेल लगा कर मैदा छिट दें.

– फिर उसके ऊपर तेल लगा दें और उसके ऊपर हल्का सूखा मैदा छिट दें.

– और उसे बेल ले और उसे चाकू से एक सामान का काट लें और अब दें.

– फिर उसके ऊपर थोड़ा सा मैदा लगाकर उसे फिर से बेल लें उसे बिच से मोड़ दें.

– फिर उसमे से एक लोई एक पीस को ले ले और उसे चारो तरफ से बेल लें.

– फिर एक भाग को लें और उसके ऊपर अंडे को एक रख दें और चारो कोनों को एक दूसरे से चिपका दें.

– फिर उस पर हल्का तेल लगा कर उसे पका लें.

– आपकी एग पफ बनकर तैयार हो गयी है.

– इसे गरमा गरम सौस या चटनी के साथ परोसें.

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विंटर स्पेशल : मंगौड़ी पापड़ की सब्जी, जानें कैसे बनाएं

मंगौड़ी का प्रयोग हम अपने घर पर बचपन से देखते हैं. लेकिन ज्यादातर इसका प्रयोग मारवाड़ी परिवार में होता है. मंगौड़ी का प्रयोग मूंगदाल से बनाया जाता है. इसे बनाने के बाद कुछ वक्त धूप में सूख जाता है. मंगौड़ी का प्रयोग हरी सब्जी में भी मिक्स करके बनाया जाता है.

मंगौड़ी के साथ पापड़ भी मिक्स करके बनाया जाता है. तो चलिए आज हम आपको मंगौड़ी की सब्जी बनाना बताते हैं. इसे बेहद ही आसान तरीके से घर पर बनाया जाता है. आप चाहे तो किसी खास दिन भी इस सब्जी को बना सकते हैं.

 

समाग्री

मंगौड़ी 1/2  कप

पापड़ 2

अदरक घिसा हुआ छोटा चम्मच

हरी मिर्च

जीरा क चम्मच

हींग चुटकी भर

हल्दी पाउडर छोटा चम्मच

धनिया पाउडर छोटा चम्मच

लाल मिर्च

नमक

घी एक चम्मच

पानी 2 कप

हरा धनिया

बनाने की विधी

सबसे पहले हरी मिर्च को  बारीक काट लें. कड़ाही में घी गर्म करें या फिर कुकर में घी गर्म करें, अब इसमें थोड़ा सा जीरा डाल दें. इसमें हींग भी डाल दें. अब कुछ देर के लिए अदरक और लहसून का पेस्ट डालकर  भूनें.

अब इसमें मंगौड़ी डालकर कुछ देर तक भूने.भूनने में 2-3 मिनट तक भूनें. अब इसमें नमक हरी मिर्च, पिसी लाल मिर्च  और मसाला धनिया डालकर का पता डालकर भूनें.

अब इसमें 2, 3 कप पानी डालकर भून लें, अब इसे धीमी आंच करके पकांए, अब इसमें मंगौड़ी डालकर पकाएं. जब सब्जी अच्छे से पकाएं, इसे थोड़ी देर के लिए ढ़क्कन डालकर पकाएं, जब सब्जी अच्छे से पक जाए तो उसमें गरम मसाला पकाए.

जब सब्जी अच्छी से बन जाए तो एक बार चेक करके उसमें धनिया का पत्ता डालकर मिलाएं. मगौड़ी की सब्जी को आप पराठा के साथ या फिर चावल के साथ भी खा सकते हैं.

मगौंड़ी के सब्जी में आप पापड़ को तलकर न डालें, इसमें पापड़ क टूकड़े को डालें. मगौड़ी को घी में डालकर भूनें इससे इसका स्वाद आ सकता है.

 

भगवन, तेरी कृपा बरसती रहे: भाग 3

पिताजी ने मां को पकड़ कर एक चौकी पर बैठा दिया. भक्तजन एकएक कर आते और मां को अपनी समस्या बताते और मां ज्वार के 1-2 या 5 दाने उन के हाथ पर रख देती और वे मां द्वारा बताए वाक्य दोहरा देते. ‘6 माह में आप की समस्या हल हो जाएगी या फिर रोज नहा कर देवीजी को पानी चढ़ाइए, समस्या दूर अथवा 3 माह तक बाल खोल कर 6 मुंह वाला दीया जलाइए. फिर देखिए परिणाम, माता की कृपा बरसेगी’ आदिआदि. इस के साथ ही, वे भक्त को हाथ में बांधने के लिए कलावा और सिर पर लगाने को भभूत भी देतीं. इस सब को पा कर भक्त इतना अभिभूत हो जाता कि उसे लगता कि उस की आधी समस्या तो मां के पास आनेभर से दूर हो गई है.

इन नौ दिनों में घर में साड़ी, रुपए, फल, मेवा आदि इतने आ जाते कि आगामी नवरात्र तक घर में किसी भी प्रकार की कोई कमी न रहती और इस प्रकार देवी मां की कृपा से घर की आर्थिक विपन्नता जाती रही और भगवन की कृपा से दोचार वर्ष में ही 2 कमरों का घर तीनमंजिला बन गया. घर के बाहरी हिस्से में भगवन का एक मंदिर बनवाया जहां पर रोज ही सुबहशाम पूजापाठ होता. साथ ही, प्रति गुरुवार और नवरात्र के नौ दिन तक मां सुरती देवी पर मां अम्बे की कृपा बरसती और उस कृपा से हम सब चैन की जिंदगी जी पाते. पंडितजी अपने पुराने दिनों में डूबते ही जा रहे थे कि पंडिताइन शाम की चाय ले कर आ गईं. पंडितजी उठ कर बैठे और बोले, ‘‘भोजन कर लिया था न पंडिताइन, हम ने तो इतना छक कर खाया कि बैठने तक का दम नहीं बचा था. बड़े दिनों बाद इतना स्वादिष्ठ भोजन मिला था,

दाल रोटी खाखा कर ऊब गए थे हम.’’ ‘‘भोजन तो स्वादिष्ठ था ही. हमें तो उन की दी हुई साड़ी बहुत पसंद आई. अगली बार कहीं जाएं तो सूट ले कर आइएगा.’’ अपनी नईनवेली दुलहन की फरमाइश सुन कर पंडितजी पहले तो हंसे, फिर मुसकराते बोले, ‘‘पंडिताइन, हम किसी से फरमाइश तो नहीं करते पर हां, देवीजी भी अब आधुनिक हो गई हैं. उन्हें भी अब हर तरह के परिधान चढ़ाना पुण्यदायक होगा. ऐसा कह कर यजमान को देवीजी की मंशा बता देंगे. सो, कुछ लोग चढ़ावे में सूट भी ले ही आएंगे. आप चिंता मत करिए, हमें अपने यजमानों को डील करना बहुत अच्छी तरह आता है.’’ पंडितजी अब शाम की पूजापाठ करने सोसाइटी के मंदिर की तरफ चल दिए.

रास्ते में पंडितजी सोच रहे थे कि मई, जून, जुलाई के 3 महीने उन्हें बहुत भारी लगते हैं क्योंकि इन दिनों में कोई विशेष पर्व नहीं होता, जिस से उन की दानदक्षिणा पर भी ग्रहण सा लग जाता है, ऊपर से गरमी में लोग घर पर भी कार्यक्रम कम करते हैं. खैर, अब अगस्त से तो त्योहारों का सीजन शुरू हो जाएगा. बस, भगवान अपनी कृपा उन पर यों ही बनाए रखे. मंदिर में नित्यप्रति की पूजा कर के वे कुछ देर मंदिर में ही बैठते थे. सो, आज भी बैठ गए. मन फिर से पुराने दिनों में जा पहुंचा. कालेज की पढ़ाई करने वे खिलचीपुर से उज्जैन आ गए थे. यहां आ कर कुछ ही दिनों में वे सम?ा गए थे कि देश में सुरसा की तरह पांव पसारे बेरोजगारी की गिरफ्त में आने से बचने के लिए उन्हें जीतो. मेहनत कर के आम युवाओं की तरह नौकरी के लिए कोशिशें करनी होंगी या फिर मां की तरह कोई जुगाड़ करना होगा.

उज्जैन यों भी बहुत धार्मिक शहर है जहां हर चार कदम पर एक न एक मंदिर अवश्य मिल जाता है. इसी ऊहापोह के बीच वे एक दिन पास के ही मंदिर में जा पहुंचे और मन ही मन बोले, ‘हे भगवन, अब तू ही रास्ता दिखा.’ यहीं उन की मुलाकात मंदिर के पुजारी समर्थ दास से हुई. जब भी मंदिर में किसी विशेष अवसर पर कोई पूजा होती तो समर्थ दास उन्हें अपनी मदद के लिए बुला लिया करते और मंदिर में आई दानदक्षिणा व चढ़ावे में से कुछ हिस्सा उन्हें भी दे दिया करते. धीरेधीरे उन्हें यह समस्या आ गया कि यही वह व्यवसाय है जहां दोचार मंत्र बोलने और कुछ धार्मिक ज्ञान बघारने से अच्छीखासी कमाई की जा सकती है और काफी दिनों के समुद्र मंथन के बाद एक दिन उन्होंने अपनी इच्छा गुरु समर्थ दास के समक्ष व्यक्त कर दी.

गुरुजी पहले तो मुसकराए, फिर बोले, ‘‘क्यों करना चाहते हो तुम यह सब?’’ ‘‘गुरुजी, इस में लेना एक न देना दो, बस, भगवान का दूत ही तो बनना है और कुछ मंत्रों का ज्ञान ही तो प्राप्त करना है. सो, आप के सान्निध्य में प्राप्त कर ही लूंगा. बस, आप तो मु?ो अपना चेला बना लो,’ पंडितजी ने कहा तो समर्थ दासजी बोले, ‘‘ठीक है, आज से तुम हर पूजा में मेरा साथ दिया करो. धीरेधीरे सब सीख जाओगे.’’ उन्हें अच्छी तरह याद है, शुरूशुरू में जब एक बार वे पंडित समर्थ दास के साथ एक विवाह करवाने गए तो मंत्र ही भूल गए. वह तो भला हो समर्थ दास का जो उन्होंने तुरंत स्थिति को संभाल लिया. वापस आ कर जब समर्थ दास को उन्होंने मंत्र भूल जाने की अपनी व्यथा बताई तो वे बोले, ‘‘ऐसा कभी हो जाए तो रुकने की जगह लगातार मंत्र बोलते रहो. यजमान को नहीं पता होता कि हम कौन सा मंत्र बोल रहे हैं.’’ धीरेधीरे वे मंत्रों के अभ्यस्त होते गए और एक मंदिर के पुजारी बन गए. यहां पर वे भगवान के दूत होते, लोग उन्हें सिर पर बैठा कर रखते. उन से उम्र में दोगुने, चौगुने बड़े लोग उन की चरण वंदना करते और जम कर दानदक्षिणा देते. इस से उन की जिंदगी आराम से चल रही थी और अब तो पंडिताइन भी आ गई थी, बस, भगवान की कृपा उन पर सदा बरसती रहे.

जय प्रभु की. ‘‘पंडितजी, नमस्कार. मु?ो अपने बेटे के लिए मंगलदोष की पूजा करवानी है. बताइए, कब करवाएं?’’ एक महिला स्वर से पंडितजी की तंद्रा टूटी और वे मन ही मन भगवन को धन्यवाद देते हुए बोले, ‘‘आइएआइए माताजी, देखिए मंगलदोष की पूजा मंगलवार के दिन मंगलनाथ मंदिर में ही करवाना श्रेष्ठ होता है और मंगल परसों ही है. तो, परसों करवा देते हैं.’’ ‘‘ठीक है, पंडितजी. हम अपने बेटे के साथ आ जाएंगे. पूजा की समस्त सामग्री आप ही ले आइएगा. उस की कीमत हम आप की दक्षिणा के साथ ही आप को दे देंगे,’’ कह कर वे देवीजी चली गईं. वे मन ही मन खुश हो गए क्योंकि हर पूजा में सामग्री वे खुद ही लाना चाहते हैं ताकि सामग्री का खालिस पैसा उन्हें मिल जाए क्योंकि एक बार प्रयोग की गई सामग्री को ही वे बड़े आराम से बारबार प्रयोग कर लिया करते हैं और यही उन की असली बचत होती है. सो, खुश होते हुए उन्होंने अपना ?ाली?ांडा उठाया व मन ही मन ‘भगवन तेरी कृपा यों ही बरसती रहे’ सोचते हुए बाइक स्टार्ट कर के अपने घर की तरफ चल दिए.

राखी सावंत हुईं गिरफ्तार, शर्लिन चोपड़ा ने लगाया ये आरोप

टीवी से लेकर बॉलीवुड तक अपनी पहचान बनाने वाली राखी सावंत आएं दिन चर्चा में बनी रहती हैं. हाल ही में एकट्रेस ने अपने बॉयफ्रेंड आदिल दुर्रानी से निकाह किया है.

निकाह को लेकर राखी सावंत काफी ज्यादा चर्चा में रही हैं. हाल ही में शर्लिन चोपड़ा ने एक ट्वीट किया है जिससे सभी हैरान हो गए हैं. शर्लिन ने 3 नवंबर 2022 को राखी सावंत के खिलाफ केस दर्ज करवाया था, जिसके बाद से अब जाकर पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लिया है.

जिसके बाद से पुलिस ने अब राखी सावंत को गिरफ्तार कर लिया है, दरअसल, शर्लिन ने राखी के खिलाफ मानहानी का केस दर्ज करवाया था. इससे पहले शर्लिन ने बिग बॉस 16 के कंटेस्टेंट साजिद खान के खिलाफ भी उल्टे सीधे बयान दिए थें.

जिसके बाद से शर्लिन और साजिद ने एक दूसरे के खिलाफ केस दर्ज करवाया था. हालांकि अब जाकर सारा मामला सही है.

इससे पहले राखी सावंत अपनी शादी को लेकर काफी ज्यादा परेशान थी, राखी का कहना था कि आदिल खान ने उनका साथ छोड़ दिया है, राखी के कहने का मतलब थी कि अब उन्हें रख नहीं रहे हैं. वहीं इन दिनों राखी के मां के इलाज का खर्चा मुकेश अंबानी दे रहे हैं.

अनुज और अनुपमा के बीच दरार डालने की कोशिश करेगी माया,जानें क्या होगा आगे?

अनुपमा सीरियल में आएं दिन ट्विस्ट आ रहे हैं, मेकर्स भी इस शो को टॉप पर रखने के लिए कई सारी नई- नई कहानियां बनाते नजर आ रहे हैं. जिससे शो की टीआरपी लगातार बढ़ती नजर आ रही है.

बीते दिनों अनुपमा में दिखाया गया कि बरखा अनुज और अनुपमा के सामने अंकुश का राज खोलती नजर आ रही है. वह बताती है कि उसका 15 साल का एक बेटा भी है. वहीं दूसरी तरफ बा का मनैजर शाह परिवार पहुंच जाता है. जिसे लेकर बा और वनराज तमाशा बनाना शुरू कर देते हैं.

 

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जिसके बाद काव्या उन्हें समझाती है कि उसे उसकी सीमाएं पता है कि उसे क्या करना है और क्या नहीं. लेकिन बा काव्या को ताना मारती है कि उसने वनराज से शादीशुदा होने के बाद भी अफेयर किया था. इस पर काव्या का दिल टूट जाता है.

जिसपर काव्या वनराज से कहती है कि मैंने तुमसे प्यार किया था, लेकिन क्या तुम्हें भी लगता है कि क्या मेरा तुमसे अफेयर हुआ है तो उससे भी हो जाएगा. वहीं उधर माया छोटी अनु के लिए वहीं ड्रेस भेजती है जो उसे संक्रात पर चाहिए थी. लेकिन जब अनुज और अनुपमा को यह बात पता चलती है तो उन्हें यह बात पसंद नहीं आती है.

वो दोनों माया से इस बारे में बात करने की कोशिश करते हैं.दूसरी ओर उन्हें बरखा और अंकुश के परिवार की चिंता सता रही होती है. वहीं जल्दी ही इस सीरियल में यह भी दिखाया जाएगा कि बा डिंपल पर नाराज होती है.

बांस की खेती: दे रोटी, कपड़ा और मकान

बां स एक बहुपयोगी घास है, जो हमारे जीवन में अहम जगह रखता है. इस को ‘गरीब आदमी का काष्ठ’, ‘लोगों का साथी’ और ‘हरा सोना’ आदि नामों से जाना जाता है. बांस के कोमल प्ररोह सब्जी व अचार बनाने और इस के लंबे तंतु रेऔन पल्प बनाने में प्रयोग किए जाते हैं, जिस से कपड़ा बनता है. आवास (झोंपड़ी) व हलके फर्नीचर बनाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बांस प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है. इस प्रकार यह आदमी की 3 प्रमुख जरूरतों जैसे रोटी, कपड़ा और मकान को पूरा करता है.

भारत बांस संसाधन से संपन्न है, क्योंकि यह देश के अधिकतर क्षेत्रों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. देश में इस समय बांस की लगभग 125 देशी व विदेशी प्रजातियां उपलब्ध हैं. पूरे देश के 89.6 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में बांस वाला वन क्षेत्र है, जो पूरे वन क्षेत्रफल का तकरीबन 12.8 फीसदी है. आमतौर पर गांव में लोग अपने घर के आसपास ही काफी अधिक मात्रा में बांस उगाते हैं, ताकि उस से वे अपने रोजाना की जरूरतें पूरी कर सकें. जलवायु और मिट्टी बहुत ठंडे क्षेत्रों को छोड़ कर लगभग हर प्रकार के क्षेत्रों में बांस का रोपण किया जा सकता है. इस के लिए उचित जल निकास वाली बलुई दोमट मिट्टी सर्वोत्तम रहती है. बांस जलोढ़, पथरीली व लाल मिट्टी में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है.

प्रमुख प्रजातियां वर्तमान में देश में बांस के 23 वंश (जेनरा) और 125 जातियां (स्पीसीज) पाई जाती हैं. क्षेत्र व जलवायु के हिसाब से बांस की अलगअलग प्रजातियां उपयुक्त होती हैं. उत्तरपूर्वी भारत (पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ आदि) में रोपण के लिए उपयुक्त जातियां (स्पीसीज ) हैं. * बैंबूसा बाल्कोवा * बैंबूसा टुल्डा * डैंड्रोकेलेमस स्ट्रिक्टस प्रारंभ की 2 जातियों में बांस की कटाई ज्यादा आसान रहती है. प्रवर्धन तकनीकी पौधशाला में तैयार पौधे श्रेष्ठ माने जाते हैं, क्योंकि इस तरह के पौधे स्वस्थ व तेज वृद्धि करने वाले होते हैं. बांस का प्रवर्धन पौधशाला में सीधे बीज की बोआई, प्रकंद रोपण, प्रशाखा (औफसैट), रोपण व नाल (कलम) रोपण द्वारा किया जाता है.

प्रमुख विधियों की संक्षिप्त तकनीकी इस तरह है : * बीज द्वारा सीधी बोआई : यह सब से सरल विधि है. इस में बांस के ताजा बीज को पौधशाला की क्यारियों में बोआई करते हैं. जब पौधे 8 से 10 सैंटीमीटर के हो जाते हैं, तब इन पौधो को पौलीथिन की थैलियों में दोबारा रोपित किया जाता है. पर, अधिकतर बांस की जातियों (स्पीसीज) में पुष्पन व बीजीकरण सामूहिक (ग्रिगेरियस) रूप में औसतन 40 से 50 साल के बाद होता है, जिस के कारण बांस का बीज उपलब्ध नहीं हो पाता है और बीजजनित पौधे धीमी वृद्धि करते हैं. इस वजह से आमतौर पर बांस का प्रवर्धन बीज से नहीं किया जाता है. * प्रकंद रोपण : इस विधि में जीवित प्रकंद का 1-2 आंखों वाला तकरीबन 30 सैंटीमीटर लंबा भाग 45 घन सैंटीमीटर आकार के गड्ढे में रोपित किया जाता है. गड्ढे में गोबर की खाद व मिट्टी का मिश्रण रोपण से पहले भर लिया जाता है. * प्रशाखा (औफसैट) रोपण : यह एक प्रचलित विधि है.

इस में प्रशाखा को रोपित किया जाता है. इस विधि में इस बात का ध्यान रखना जरूरी रहता है कि प्रशाखा में प्रकंद भाग के साथ एकवर्षीय कोमल नाल (कंड) का भी लगभग 70 से 80 सैंटीमीटर लंबा भाग जुड़ा हो. प्रशाखा को तैयार करने के लिए सब से पहले बांस की कोठी से एकवर्षीय नाल को 70-80 सैंटीमीटर लंबाई पर तिर्यक रूप से काट कर इस को प्रकंद व जड़ सहित खोद लेते हैं. खोदते समय यह ध्यान रखें कि प्रकंद में कम से कम एक आंख जरूर हो. इस तरह से तैयार प्रशाखा (औफसैट) को वर्षा ऋतु की शुरुआत में पर्याप्त आकार व गहराई के गड्ढे में इस प्रकार रोपित करते हैं कि 2-3 अंतर्गांठें (इंटरनोड) मिट्टी में दब जाएं व आंख को कोई क्षति न पहुंचे.

* बांसुरी विधि या नाल रोपण : अन्य विधियों जैसे प्रकंद, बीज आदि की तुलना में बांसुरी विधि बांस प्रर्वधन की एक उत्तम विधि है, जिस के द्वारा नर्सरी में कम समय में गुणवत्ता वाले व तेज वृद्धि करने वाले बांस के पौधे तैयार किए जा सकते हैं. शुआट्स, इलाहाबाद द्वारा विकसित इस विधि से पौधे तैयार करने के लिए अप्रैल माह में 18-24 माह पुराने, खोखले व पके बांस (गांठ पर कलीयुक्त) का चयन कर इस के 2-2 गांठ वाले टुकड़े काट लें और 2 गांठों के बीच 1 वर्ग इंच का छेद बना लें. इस के बाद इन टुकड़ों को क्लोरोपाइरीफास 20 ईसी के 2.5 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के घोल में डुबो कर नर्सरी बैड में 8-10 सैंटीमीटर की गहराई तक मिट्टी में दबा दें. छेद को किसी साफ प्लास्टिक शीट से ढक दें, ताकि छेद में मिट्टी न जा सके. तने के छेद के अंदर 100 पीपीएम नैप्थलिन एसिटिक एसिड (एनएए) घोल डालें और शुरू के 2-3 माह तक हर हफ्ते प्लास्टिक शीट हटा कर निरीक्षण करते रहें व बांस के टुकड़ों के अंदर पानी कम होने पर जरूरत के मुताबिक पानी डालते रहें. इस विधि द्वारा रोपित कलम/नाल से 10-12 दिनों में नए कल्ले व 45-60 दिनों में जड़ें आ जाती हैं. 6 से 9 माह के बाद इन कलमों को जमीन से जड़ सहित खोद कर आरी से गांठों को काट लें. इन गांठों को बड़ी पौलीथिन की थैली में दोबारा रोपित कर दें. 1-2 माह बाद पौध रोपण के लिए तैयार हो जाती है. रोपण तकनीकी रोपण की दूरी : बांस को खेत में 2 प्रकार से लगाया जा सकता है. पहले तरीके में मेंड़ पर 7-8 मीटर की दूरी पर और दूसरे तरीके में पंक्ति से पंक्ति एवं लाइन से लाइन 9-10 मीटर की दूरी पर पूरे खेत में सघन रोपण किया जा सकता है. प्रारंभ के कुछ वर्षों में बांस की कतारों के बीच उपयुक्त फसलें उगाई जा सकती हैं. डैंड्रोकेलेमस प्रजाति के रोपण के लिए रोपण की दूरी कम की जा सकती है. रोपण की विधि : मार्चअप्रैल माह में उपरोक्त रोपण की दूरी पर 45 घन सैंटीमीटर आकार का गड्ढा खोद लें व खुदी हुई मिट्टी को गड्ढे के पास ऋतुक्षरण के लिए छोड़ दें, जिस से कड़ी धूप की वजह से गड्ढा कीट व रोगाणुओं से मुक्त हो सकें.

वर्षा ऋतु प्रारंभ होने के 10 से 15 दिन पहले उक्त गड्ढों में गड्ढे की ऊपरी सतह की मिट्टी के साथ सड़ी गोबर की खाद (4:1 के अनुपात में), 50 ग्राम यूरिया, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट व 50 ग्राम म्यूरेट औफ पोटाश और 25 ग्राम क्लोरोपाइरीफास धूल मिला कर भर दें. गड्ढों में भरी मिट्टी भूमितल से कुछ ऊंची होनी चाहिए. वर्षा ऋतु (जुलाईअगस्त माह) के समय उक्त गड्ढों में विभिन्न विधियों से तैयार पौधों, प्रकंद, कलम आदि का रोपण करना चाहिए. बांस की फसल का प्रबंधन खाद और उर्वरक : पौधों की अच्छी वृद्धि के लिए रोपण के लगभग 45-50 दिन बाद व 7-8 माह के बाद प्रति पौध 50 ग्राम यूरिया रोपित पौधे के चारों तरफ मिला दें. बाद के वर्षों में बांस के लिए किसी विशेष खाद और उर्वरकों की जरूरत नहीं पड़ती है.

फिर भी अच्छी वृद्धि के लिए प्रति वर्ष अगस्तसितंबर माह में 50 ग्राम यूरिया व 50 ग्राम डीएपी और सड़ी हुई गोबर की खाद प्रति पुंज देनी चाहिए. हर एक पुंज को पुवाल या पत्ती के पलवार (मल्च) से ढकने पर नए बांस के कल्ले आने में आसानी रहती है.

पुंज की टैंडिंग व शाखा कर्तन क्रिया : मरे हुए पौधों व पुंज में बीमारी एवं कीड़ों द्वारा प्रभावित कलम को काट कर निकाल देें व पुंज से सभी प्रकार की झाडि़यों व लताओं को भी समयसमय पर निकालते रहें. जब (खासकर जुलाईसितंबर माह में) नई कोंपलें निकल रही हों, तब उस समय पुंज में किसी भी प्रकार की क्रिया नहीं करनी चाहिए. इस समय साफसफाई आदि कामों के प्रभाव से नई कोंपलें प्रभावित हो सकती हैं. बांस के रोपण के 15-16 महीने बाद नीचे की शाखाओं को काटा जा सकता है, पर 4-5 वर्ष पुराने बांस पुंज में यह क्रिया करनी ज्यादा लाभप्रद रहती है. शाखा कर्तन क्रिया हमेशा अक्तूबर से फरवरी माह के बीच करनी चाहिए. इस क्रिया के फलस्वरूप बांस निकालना आसान हो जाता है व पशुओं के लिए बांस की पत्तियों के रूप में चारा प्राप्त हो जाता है.

कीट व रोग प्रबंधन : बांस की पौधशाला में मुख्यत: डंपिंग औफ (आर्द्रगलन रोग) लगता है, जो एक फफूंदजनित रोग है. इस के नियंत्रण के लिए व्यापारिक ग्रेड की फार्मालीन को (15-20 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी के साथ) क्यारी की मिट्टी में डालना (ड्रैंचिंग) चाहिए. इस के अतिरिक्त कार्बंडाजिम (2 ग्राम प्रति लिटर पानी) से भी क्यारियों का उपचार किया जा सकता है. रोपण से पहले भी पौधों को उक्त फफूंदनाशी से उपचारित करना बेहतर रहता है. प्रकंदों के रोपण के समय भी प्रकंद को कार्बंडाजिम के घोल में 3 से 5 मिनट डुबोने पर फफूंदजनित रोगों से बचाव में सहायता मिलती है.

बांस में झाड़ू रोग, राइजोम राट, बेसल कलम राट आदि बीमारियां लगती हैं, जिन्हें उचित फफूंदनाशी जैसे कार्बंडाजिम (3 ग्राम प्रति लिटर पानी), डाइथेन एम. 45 (3 ग्राम प्रति लिटर पानी), मैनकोजेब (2 ग्राम प्रति लिटर पानी) द्वारा रोग लगने की शुरुआती अवस्था में उपचार करने से रोका जा सकता है. यदि कोई बांस का पुंज फफूंद से पूरी तरह संक्रमित है, तो इस को पूरी तरह जला देना ज्यादा उचित रहता है. बांस को 50 से अधिक प्रकार के कीट हानि पहुंचाते हैं, जिन में से सफेद ग्रब, दीमक, कटवर्म और तना छेदक कीट प्रमुख हैं. पौधशाला व रोपण में सफेद ग्रब व कटवर्म से बचाव के लिए फ्यूरोडौन 3 जी दवा (500 ग्राम प्रति 10 वर्गमीटर क्यारी या 100-150 ग्राम प्रति पुंज) का प्रयोग करना चाहिए. दीमक के नियंत्रण के लिए क्लोरोपाइरीफास (2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी) घोल का छिड़काव करें.

लीफ रोलर कीट बांस की पत्तियों को मोड़ कर बीड़ी की तरह बना देता है, जिस के नियंत्रण के लिए कारटौप हाईड्रोक्लोराइड (1 ग्राम प्रति लिटर पानी) के घोल का छिड़काव करें. नए कल्लों एवं बांस प्ररोह को तना छेदक भी बहुत नुकसान पहुंचाता है, जिस के नियंत्रण के लिए हरे बांस एवं कल्लों की सब से नीचे की अंतर्गांठ (इंटरनोड) के ऊपरी भाग पर बारीक छेद कर लें, फिर उस छेद में डाईक्लोरोवाश कीटनाशी (2 मिलीलिटर प्रति लिटर पानी) का घोल किसी इंजैक्शन या पिचकारी की सहायता से डाल दें, जिस से तना छेदक कीट नष्ट हो जाएगा. कटाई, उपज और आमदनी बांस की कटाई रोपण के 4-5 वर्षों के बाद प्रारंभ की जा सकती है.

कटाई हमेशा सर्दी (नवंबरफरवरी माह) में ही करना उचित रहता है. 4-5 वर्षों के बाद प्रति बांस पुंज लगभग 6-10 बांस हर साल प्राप्त किया जा सकता है. इस प्रकार 10×10 मीटर पर रोपित बांस के 1 हेक्टेयर रोपण (रोप वन) से लगभग 600 से 1,000 बांस हर साल प्राप्त किया जा सकता है. यदि एक बांस का औसत मूल्य 100 रुपए रखा जाए, तो 1 हेक्टेयर खेत से लगभग 60,000-1,00,000 रुपए कुल आय हर साल प्राप्त की जा सकती है. बांस के रोपण और प्रारंभ के 2-3 वर्षों तक ही लागत लगती है, जो 22,000 से 25,000 रुपए प्रति हेक्टेयर है. इस प्रकार 4-5 वर्षों के बाद बिना किसी विशेष लागत के बांस के 1 हेक्टेयर रोपण से औसतन 60,000 से 1,00,000 रुपए हर साल आसानी से प्राप्त किया जा सकता है. बांस को कागज मिल और शहर की बांस मंडियों में बेचा जा सकता है. शहरों व गांवों में घर बनाने के दौरान बांस की अच्छी मांग रहती है.

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