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जीत नामुमकिन नहीं -भाग 2 : जो सोचा वो किया

एक नर्स होने के नाते यह सब देखना मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी. मगर, सुंदर के लिए मैं ने ऐसा जीवन कभी नहीं चाहा था, इसलिए दिल में रहरह कर एक टीस उभर रही थी. अगर सुंदर को कुछ हो गया तो…?

“नहींनहीं, मैं अपने सुंदर को कुछ नहीं होने दूंगी,” मैं ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया और एक हफ्ते की छुट्टी ले ली. एक हफ्ते में मैं ने सब से पहले सुंदर का हुलिया बदला और उसे योग और प्राणायाम करने की आदत डाली.

ना जाने क्यों सुंदर मेरी हर बात बिना किसी विरोध के मान लेता था. यही बात उस के इलाज में भी सकारात्मकता ला रही थी और वह जल्दी ही सामान्य हो रहा था. मुझे बस एक डर था कि डाक्टर ने कहा था कि उस के पैरों को काटना पड़ेगा. मगर उस से पहले उस का स्वस्थ होना और मधुमेह का नियंत्रित होना बेहद जरूरी था. डिमेंशिया के इलाज के लिए भी मैं ने एक मनोचिकित्सक से संपर्क कर रखा था. जिस दिन पहली काउंसलिंग हुई थी, उस दिन वह बेहद घबराया हुआ था. मनोचिकित्सक ने भी मुझे आश्वासन दिया कि वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगा. एक दिन जब मैं किचन में काम कर रही थी, तभी मुझे सुंदर की आवाज सुनाई दी.

” नीता…” अपना नाम सुंदर के मुंह से सुन कर मुझे आश्चर्यमिश्रित खुशी का एहसास हुआ.

“तुम्हें सब याद आ गया सुंदर…” मैं ने उस का चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर झकझोरते हुए कहा.

“हां नीता, मैं तो तुम्हें कुछ दिन पहले ही पहचान गया था, मगर मेरी बीमारी और मेरा कमजोर आत्मविश्वास मेरा साथ नहीं दे रहा था.”

“ओह… सुंदर, तुम सोच भी नहीं सकते कि आज मुझे कितनी ज्यादा खुशी हो रही है. लेकिन, तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारी यह हालत हुई कैसे? इतने लापरवाह तो तुम कभी नहीं थे कि खुद का भी खयाल नहीं रख पाओ.”

“यह सब मेरी अति महत्वाकांक्षा और लालच का परिणाम है नीता… किसी की कोई गलती नहीं है. मैं ने जो बोया वही काट रहा हूं,” कहते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए.

“खुद पर काबू रखो सुंदर…. समय हमेशा एकजैसा नहीं रहता. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा,” मैं ने उसे समझाते हुए कहा, क्योंकि मैं जानती थी कि अभी वह इतना भी ठीक नहीं हुआ है कि कोई मानसिक तनाव झेल सके. इसलिए मैं ने उसे ले जा कर बिस्तर पर लिटा दिया और उस के हाथपैर सहलाने लगी.

थोड़ी देर शांत रहने के बाद उस ने अपनी रौ में बोलना शुरू कर दिया.

“मैं ने अपने ही कालेज में पढ़ने वाली सुनैना से शादी कर ली थी, क्योंकि मैं जानता था कि सुनैना एक बिजनेसमैन की इकलौती बेटी है और उस के पिता घरजमाई की चाहत रखते हैं. मैं अपने मातापिता की सारी आशाओं पर पानी फेरते हुए सुनैना के घर जा कर रहने लगा और अब उस के पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा.

“मेरे मातापिता इस गम को ना सह सके और 2 साल के अंदर ही दोनों चल बसे. अपने व्यवसाय को और आगे बढ़ाने के लिए सुनैना के परिवार के संग मैं भी मुंबई शिफ्ट हो गया. हमारा व्यवसाय मुंबई में खूब फलफूल रहा था, मगर सुनैना ने मुझे कभी भी अपना पति नहीं समझा. वह मुझे हमेशा अपना गुलाम समझती रही. पूरा व्यवसाय संभालने के बावजूद भी उस की कंपनी में मेरी हैसियत एक नौकर के जैसी थी. हमारी एक बेटी भी हुई, जो उस सुनैना का ही प्रतिरूप है.

“सुनैना के पिताजी ने भी मरने से पहले अपनी सारी जायदाद सुनैना के नाम पर ही लिख दी थी. उस के बाद तो वह और भी ज्यादा उच्छश्रृंखल हो गई. वह नौकरों तक के सामने भी मुझे जलील करने से बाज नहीं आती थी. मेरी किसी भी जरूरत के लिए वह मुझे पैसे देने से पहले हजार सवाल करती और ताने देती वो अलग.

“धीरेधीरे मैं अवसाद का शिकार होने लगा. डाक्टर ने मुझे उच्च रक्तचाप और मधुमेह टाइप 2 का मरीज बताया. लेकिन सुनैना ने मुझे अपना इलाज करवाने के लिए पर्याप्त पैसे भी नहीं दिए, इसलिए मैं सरकारी अस्पताल में अपना इलाज करवाने लगा.

“मैं ने उड़तीउड़ती खबर तो यह भी सुनी थी कि सुनैना का अपने किसी दोस्त के साथ अवैध संबंध भी है. जब मेरे पैरों में गैंग्रीन की शिकायत हो गई, तब तो सुनैना ने हद कर दी. उस ने मुझे आउटहाउस में भेज दिया. वह मुझे अपनी बेटी से भी नहीं मिलने दे रही थी. वह बारबार मुझे चले जाने को कहती. मेरा औफिस जाना भी बंद करवा दिया था उस ने.

“अब अपने कमरे में सारा दिन बंद रहतेरहते मैं मानसिक रोगी हो गया था. फिर एक दिन मैं ने फैसला किया कि अपने शहर गोरखपुर जाऊंगा. वैसे भी मैं ने अपना घर नहीं बेचा था और इसीलिए मैं थोड़े पैसे मांगने सुनैना के पास गया, मगर वहां का नजारा देखसुन कर तो मुझे गहरा आघात लगा.

अपने कमरे में वह आपत्तिजनक हालत में अपने दोस्त सुधीर के साथ उस की बांहों में बैठी उस को मुझे अपने रास्ते से हटाने का प्लान समझा रही थी.

फिर मैं जल्दी से अपने कमरे में आया और एक बैग में कुछ कपड़े और जरूरी सामान रख लिया. छोटे से एक बैग में सारे रिपोर्ट रख लिए, ताकि गोरखपुर जा कर अपना इलाज करवा सकूं. मेरे पास पैसे बिलकुल भी नहीं थे, तभी मेरी नजर उंगली में पड़ी अपनी शादी की अंगूठी पर गई. मैं ने उसे बेच दिया और स्टेशन जा कर टिकट खरीदा,” इतना कह कर सुंदर चुप हो गया.

 

कामवाली, वाइफ और हसबैंड : श्रीमती को खुश करने के चक्कर में…

हालांकि घर के लगभग सारे काम मेरे विवाह के अगले हफ्ते बाद से मेरे करकमलों द्वारा संपन्न होने शुरू हो गए थे. विवाह के बाद तब मैं ने श्रीमती को प्रसन्न करने के लिए ये काम इसलिए शुरू किए थे, ताकि उसे पता चल जाए कि मैं भी घर के काम करने का हुनर रखता हूं. पर, मुझे क्या पता था कि तब मेरे ये काम उस का मन रखने के लिए किए गए थे, वे एक दिन मेरे ही काम बन जाएंगे.

आज मेरी दशा या दिशा यह है कि मैं घर के सारे काम कर के ही औफिस जाता हूं और औफिस से समय से आधा घंटा पहले निकल कर सीधा घर पहुंचते ही घर के कामों में लीन हो जाता हूं.
मुझे औफिस जाने में देर हो जाए तो हो जाए, मेरे महीनों के औफिस के काम पेंडिंग पड़े रहें तो पड़े रहें, पर मेरी श्रीमती को घर के किसी काम की पेंडेंसी कतई पसंद नहीं. उस की नेचर है कि घर का जो काम जिस समय होना चाहिए उसी समय हो.

विवाह से पूर्व सुखी वैवाहिक जीवन के आंखें खोले सपने लेते कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी मेरे ये हाथ घर के काम करने में इतने दक्ष हो जाएंगे कि सोएसोए भी घर के कामों में व्यस्त रहा करेंगे.

विवाह से पूर्व यह भी सपने में नहीं सोचा था कि मेरे हाथ अपने ही हाथों की बनी चाय मुझे पिला, अपने ही हाथों की गरमागरम चपातियां मुझे खिला मयूर हो नाचा करेंगे.

सच कहूं तो अब अपने हाथों के जायके से मुझे इतना प्यार हो गया है कि दूसरों की बीवियों के हाथों की आधी रोटी खा कर मेरा पेट भारी हो जाता है. पेट में ऐसी अपच हो जाती है कि कई दिनों तक पेट साफ करने की दवाई खानी पड़ती है.

असल में विवाह के बाद मैं घर में काम करने वाली नहीं रखना चाहता था. सच्ची को जो श्रीमती को मुझ पर शक हो गया तो…? शादी से पहले मर्दों पर कोई शक करे तो करता रहे, पर विवाह के बाद सफल वैवाहिक जीवन के लिए किसी भी मर्द को अपने चरित्र पर शक की कतई सूई नहीं घूमने देनी चाहिए.

पर, जल्दी ही श्रीमती के कोमल मन को जब अड़ोसपड़ोस के घरों में काम करने वाली आतीजाती दिखती तो उस में हीनता जन्म लेने लगी. आदर्श पति होने के नाते मैं नहीं चाहता था कि मेरी श्रीमती के मन में और तो सब जन्म लें तो लें, पर हीनता कतई जन्म ले. सो, उस की हीनता का इलाज करने के लिए मैं ने कामवाली रख ली.

विवाह के बाद आदर्श से आदर्श पति की बीमारी का इलाज तो कहीं भी, किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में संभव नहीं, पर श्रीमती हर हाल में स्वस्थ रहनी चाहिए. आज भी उसे स्वस्थ रखने के लिए मैं धंवंतरि तक के पास जा सकता हूं. श्रीमती स्वस्थ तो बीमार पति भी फुली मस्त.
हर ब्राइटी के पति सफल पति होने के लिए बहुतकुछ बेकार का भी दिल पर पत्थर रख लेते हैं, सो मैं ने भी सफल दिवंगत पतियों के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए श्रीमती का मन रखने के लिए कामवाली रख ली. चंद ही दिनों में वह कामवाली श्रीमती को तो मुझ से भी प्रिय हो ही गई, पर मेरा कचराअधकचरा दिल भी कहीं न कहीं उस में बसने लगा. श्रीमती उस के आने से पहले ही उस के आने के इंतजार में पलकें बिछाए रहती तो मैं भी उस के आने से पहले ही उस के लिए चाय बना कर तैयार रखता. बेचारी पिछले घर की मालकिन के पास उस की पड़ोसन की गुप्त बातें बता कर आएगी तो पता नहीं कितनी थकी होगी? बहुत से घरों की मालकिनें इन दिनों घर में काम करने वालियों को घर के काम करने के लिए कम अपनी पड़ोसनों की खुफिया जानकारियों के लिए अधिक रखती हैं. घरों में काम करने वालियां पड़ोसनों की खबरें जितनी विश्वसनीयता से अपनी हर मालकिन को कमर मटकामटका कर सुनाती हैं, उतने विश्वसनीय खुफिया एजेंट भी नहीं होते. हो सकता है, मेरी श्रीमती इसलिए भी उस का बेसब्री से इंतजार करती हो. इस मामले में मैं डेड श्योर तो नहीं, पर बहुतकुछ श्योर जरूर हूं. और तब जिस दिन कामवाली न आती, तो श्रीमती का पारा बाहर माइनस 20 तापमान होने के बाद भी सातवें आसमान पर होता.

सच कहूं तो कामवाली घर के कामों में कहने को ही मेरा हाथ बंटाती है. उसे अभी मेरी तो नहीं, पर मेरी श्रीमती की कमजोरी का पता चल गया है. वैसे भी जितने समय पर वह आती है, उतने में तो मैं घर के लगभग नब्बे प्रतिशत काम तो कर चुका होता हूं. पर मुझे उस का आना फिर भी अच्छा नहीं, बहुत अच्छा लगता है. चलो, इस बहाने टीवी पर पसरे बाबा के आगे आठ पहर चौबीस घंटे उलटेसीधे योग की मुद्राएं करती श्रीमती के सूजे थोबड़े के सिवाय कोई दूसरी सूरत तो दिख जाती है, वरना देखते रहो औफिस जाते और औफिस से आते एक ही स्लिम फिट होता थुलथुला थोबड़ा.

कोई अपना -भाग 2: मधु ने शालीनी से मुंह क्यों मोड़ा

एक दिन मधु ऊन लाई और जिद करने लगी कि मैं उस के बेटे का स्वेटर बुन दूं. काफी मेहनत के बाद मैं ने रंगबिरंगा स्वेटर बुना था. उसे देख कर मधु बहुत खुश हुई थी, ‘भाभी, बहुत सफाई है आप के हाथ में. अब एक स्वेटर अपने देवर का भी बुन देना. ये कह रहे थे, इतना अच्छा स्वेटर तो उन्होंने आज तक नहीं देखा.’

‘मुझे समय नहीं मिलेगा,’ मैं ने टालना चाहा तो वह झट बोल पड़ी, ‘अपना भाई कहेगा तो क्या उसे भी इसी तरह इनकार कर देंगी?’

मधु के स्वर का अपनापन मुझे भीतर तक पुलकित कर गया था. वह आगे बोली, ‘माना कि हम में खून का रिश्ता नहीं है, फिर भी आप को अपनों से कम तो नहीं जाना. मुझे ऊन से एलर्जी है, तभी तो आप से कह रही हूं.’

आखिर मुझे उस की बात माननी पड़ी. लेकिन मेरे पति ने मुझे डांट दिया था, ‘यह क्या समाजसेवा का काम शुरू कर दिया है? उसे ऊन से एलर्जी है तो पैसे दे कर कहीं से भी बनवा लें. तुम अपनी जान क्यों जला रही हो?’

‘वे लोग हम से कितना प्यार करते हैं, और कुछ बना दिया तो क्या हुआ.’ मेरे पति खीझ कर चुप रह गए थे. हमारा आनाजाना लगा रहता और हर बार वे लोग ढेर सारा प्यार जताते. धीरेधीरे उन का आना कम होने लगा.

2 महीनों की छुट्टियों में हम अपने घर गए थे. जब वापस आए, तब भी वे हम से मिलने नहीं आए.

एक दिन मैं ने पति से कहा, ‘मधु नहीं आई हम से मिलने, वे लोग कहीं बाहर गए हुए हैं?’

‘पता नहीं,’ पति ने लापरवाही से उत्तर दिया.

‘क्या, केशव भाईसाहब आप से नहीं मिले?’

‘कल उस का भाई बैंक में आया था.’

‘तो आप ने उन का हालचाल नहीं पूछा क्या?’

‘नहीं. इतना समय नहीं होता, जो हर आनेजाने वाले के परिवार का हालचाल पूछता रहूं.’

‘कैसी रूखी बातें कर रहे हैं.’

किसी तरह पति मुझे टाल कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए और मैं यही सोचने लगी कि आखिर मधु आई क्यों नहीं? 15-20 दिनों बाद बच्चों के स्कूल में ‘पेरैंट्स मीटिंग’ थी. मधु का घर रास्ते में ही पड़ता था. अत: सो, वापसी पर मैं उस के घर चली गई.

 

मुहरे : विपिन के लिए रश्मि ने कैसा पैंतरा अपनाया

आउटसोर्सिंग-भाग 1 : क्या सुबोध मुग्धा के सपनों को पूरी कर पाया?

मुग्धा के लिए गरमागरम दूध का गिलास लेकर मानिनी उस के कमरे में पहुंची तो देखा, सारा सामान फैला पड़ा था.

‘‘यह क्या है, मुग्धा? लग रहा है, कमरे से तूफान गुजरा है?’’

‘‘मम्मी बेकार का तनाव मत पालो. सूटकेस निकाले हैं, पैकिंग करनी है,’’ मुग्धा गरमागरम दूध का आनंद उठाते हुए बोली.

‘‘कहां जा रही हो? तुम ने तो अभी तक कुछ बताया नहीं,’’ मानिनी ने प्रश्न किया.

‘‘मैं आप को बताने ही वाली थी. आज ही मुझे पत्र मिला है. मेरी कंपनी मुझे 1 वर्ष के लिए आयरलैंड भेज रही है.’’

‘‘1 वर्ष के लिए?’’

‘‘हां, और यह समय बढ़ भी सकता है,’’ मुग्धा मुसकराई.

‘‘नहीं, यह नहीं हो सकता. विवाह किए बिना तुम कहीं नहीं जाओगी.’’

‘‘क्या कह रही हो मां? यह मेरे कैरियर का प्रश्न है.’’

‘‘इधर, यह तुम्हारे जीवन का प्रश्न है. अगले मास तुम 30 की हो जाओगी. कोई न कोई बहाना बना कर तुम इस विषय को टालती रही हो.’’

‘‘मैं ने कब मना किया है? आप जब कहें तब मैं विवाह के लिए तैयार हूं. पर अब प्लीज मेरी आयु के वर्ष गिनाने बंद कीजिए, मुझे टैंशन होने लगती है.

मुझे पता है कि अगले माह मैं 30 की हो जाऊंगी.’’

‘‘मैं तो तुझे यह समझा रही थी कि हर काम समय पर हो जाना चाहिए. यह जान कर अच्छा लगा कि तुम शादी के लिए तैयार हो. सूरज मान गया क्या?’’

‘‘सूरज के मानने न मानने से क्या फर्क पड़ता है?’’ मुग्धा मुसकराई.

‘‘तो विवाह किस से करोगी?’’

‘‘यह आप की समस्या है, मेरी नहीं.’’

‘‘क्या? तुम हमारे चुने वर से विवाह करोगी? अरे तो पहले क्यों नहीं बताया? हम तो चांद से दूल्हों की लाइन लगा देते.’’

‘‘क्यों उपहास करती हो, मां. चांद सा दूल्हा तुम्हारी नाटी, मोटी, चश्मा लगाने वाली बेटी से विवाह क्यों करने लगा?’’

‘‘क्या कहा? नाटी, मोटी चशमिश? किसी और ने कहा होता तो मैं उस का मुंह नोच लेती. मेरी नजरों से देखो, लाखों में एक हो तुम. ऐसी बातें आईं कहां से तुम्हारे मन में? कुछ तो सोचसमझ कर बोला करो,’’ मानिनी ने आक्रोश व्यक्त किया.

मानिनी सोने चली गई थीं पर मुग्धा शून्य में ताकती बैठी रह गई थी. वह मां को कैसे बताती कि अपने लिए उपयुक्त वर की खोज करना उस के बस की बात नहीं थी. मां तो केवल सूरज के संबंध में जानती हैं. सुबोध, विशाल और रंजन के बारे में उन्हें कुछ नहीं पता. चाह कर भी वह मां को अपने इन मित्रों के संबंध में नहीं बता पाई. यही सब सोचती हुई वह अतीत के भंवर में घिरने लगी.

 

एक ही परिवार की 5 लाशों का खौफनाक सच

सौजन्य: मनोहर कहानियां

3 बच्चों के पिता राहुल के संबंध न सिर्फ उस की साली ज्योति से थे, बल्कि ससुराल की संपत्ति पर भीड्ड उस की नजर थी. 20 लाख रुपए कर्ज ले कर उस ने ससुराल में आलीशान मकान भी बनवा लिया था.

16अप्रैल, 2022 की सुबह साढ़े 7 बजे पुलिस कंट्रोलरूम से खबर दी गई कि प्रयागराज के थाना

नवाबगंज के गांव खागलपुर में सामूहिक नरसंहार हुआ है. इस खबर से पुलिस महकमे में अफरातफरी मच गई और पुलिस अधिकारी घटनास्थल की ओर रवाना हो लिए.

कुछ देर बाद एसएसपी अजय कुमार, एसपी (गंगाघाट) अभिषेक अग्रवाल, आईजी डा. राकेश सिंह, एडीजी प्रेम प्रकाश तथा डीएम संजय खत्री घटनास्थल पर पहुंच गए.

पुलिस अधिकारी घर के अंदर कमरे में पहुंचे तो वहां का दृश्य देख कर दहल उठे. कमरे के अंदर पड़ी चारपाई पर प्रीति (38 वर्ष) की लाश खून से सनी थी. किसी धारदार हथियार से गला काट कर उस की हत्या की गई थी.

चारपाई के पास ही चौकी पड़ी थी. उस पर उस की बेटियों माही (12 वर्ष), पीहू (9 वर्ष) तथा पाहू (5 वर्ष) की लाशें पड़ी थीं. उन तीनों की भी किसी धारदार हथियार से गला काट कर हत्या की गई थी.

कमरे के अंदर खून ही खून फैला था. दीवारों पर भी खून के छींटे दिखाई दे रहे थे. निरीक्षण के दौरान पुलिस अधिकारी आंगन में पहुंचे तो वहां का नजारा भी दिल दहला देने वाला था.

घर के मुखिया राहुल तिवारी का शव छत पर लगे लोहे के जाल में साड़ी के फंदे से झूल रहा था. आंगन में फोल्डिंग पलंग पड़ा था. जिस के ऊपर प्लास्टिक की 2 कुरसियां रखी थीं. संभवत: इन्हीं कुरसियों पर चढ़ कर उस ने फंदा गले में कसा था.

राहुल बनियान व पैंट पहने था. उस के हाथों व बनियान पर खून के छींटे थे. शरीर पर अन्य किसी तरह के चोट के निशान नहीं थे. राहुल की उम्र 42 वर्ष के आसपास थी. राहुल के शव के पास से पुलिस को 2 पन्नों का लिखा एक सुसाइड नोट भी मिला. पुलिस ने उसे सुरक्षित कर लिया.

पुलिस अधिकारियों को कमरे से 2 मोबाइल फोन बरामद हुए. वह संभवत: राहुल व उस की पत्नी प्रीति के थे. एक मोबाइल फोन में राहुल के बड़े भाई मुन्ना का फोन नंबर सेव था. अत: पुलिस ने घटना की जानकारी मुन्ना को दी और यथाशीघ्र घटनास्थल पर पहुंचने को कहा.

पुलिस के आला अधिकारियों ने घर के बाहर निरीक्षण किया तो घर के सामने प्याज के खेत में उन्हें खून सना चापड़ मिला. अधिकारियों ने अनुमान लगाया कि इसी चापड़ से प्रीति तथा उस की बेटियों की हत्या की गई होगी. साक्ष्य के तौर पर चापड़ को भी सुरक्षित कर लिया गया.

पुलिस निरीक्षण के बाद फोरैंसिक टीम ने घटनास्थल का निरीक्षण किया और साक्ष्य जुटाए. टीम ने चापड़, दीवार सहित कई जगह से फिंगरप्रिंट भी लिए.

सरोज ने देखी थीं घर में 5 लाशें

घटनास्थल पर मृतक राहुल तिवारी का पड़ोसी दद्दू सरोज मौजूद था. उस ने बताया कि राहुल के परिवार से उस के अच्छे संबंध थे. रोजाना मिलनाजुलना था. दोनों परिवारों के बच्चे एक साथ खेलते थे.

7 बजे के करीब उस की मंझली बेटी सुमन (10 वर्ष) पीहू को बुलाने पहुंची तो मुख्यद्वार पर लगा चैनल खुला हुआ था. पीहू को कई बार आवाज लगाने पर भी जब कोई जवाब नहीं मिला तो वह भीतर जाने लगी.

उस ने कुछ ही कदम बढ़ाए थे कि आंगन में राहुल को फंदे पर लटके देखा. वह चीखते हुए बाहर की ओर भागी. सुमन के चीखने की आवाज सुन कर वह और परिवार के अन्य लोग पहुंचे तो सब से पहले राहुल फांसी पर लटका दिखाई दिया.

शोरगुल मचाने पर आसपास के अन्य लोग आ गए. उस के बाद भीतर गए तो कमरे का दृश्य देख कर सब के होश उड़ गए. फिर थाना नवाबगंज पुलिस को सूचना दी. उस के बाद पुलिस की आवाजाही शुरू हो गई.

दद्दू सरोज ने पुलिस को यह भी जानकारी दी कि राहुल तिवारी ने उस के बेटे अभिषेक की शादी कौशांबी में तय कराई थी. आज दोनों परिवारों को गोद भराई की रस्म पूरी करने के लिए कौशांबी जाना था.

दद्दू सरोज ने यह भी बताया कि इस मकान में एक अन्य किराएदार संदीप भी है. वह राहुल की बेटियों को ट्यूशन पढ़ाता था. साथ ही नौकरी की तलाश में जुटा है. लेकिन इधर 2 दिन से घर पर नहीं है. पता नहीं कहां गया है.

संदीप शक के दायरे में आया तो पुलिस ने उस की तलाश शुरू कर दी. अब तक घटनास्थल पर भारी भीड़ जुट गई थी. घटना को ले कर लोगों में गुस्सा साफ नजर आ रहा था. कहीं अराजक तत्त्व इस का फायदा न उठा लें, अत: पुलिस अधिकारियों ने खागलपुर गांव को छावनी में बदल दिया और निगरानी में जुट गए.

घटना की सूचना पा कर सांसद केसरी देवी पटेल तथा क्षेत्रीय विधायक गुरु प्रसाद मौर्य भी घटनास्थल पर आ गए थे. उन्होंने एसएसपी अजय कुमार के साथ घटनास्थल का निरीक्षण किया और लोगों को भरोसा दिलाया कि जल्दी ही घटना का खुलासा हो जाएगा.

अभी सांसद और विधायक निरीक्षण कर ही रहे थे कि मृतक राहुल के परिवार वाले आ गए. भाई का शव देख कर मुन्ना व विवेक फफक पड़े. वहीं दोनों बहनें नीतू व ज्योति भी फूटफूट कर रोने लगीं. पुलिसकर्मियों ने किसी तरह उन्हें धैर्य बंधाया और शव से अलग किया.

ज्योति व नीतू ने रोते हुए आरोप लगाया कि उस के भाई की हत्या उस के ससुराल वालों ने की है. दोनों बहनों ने पुलिस अधिकारियों से हाथ जोड़ कर कहा कि वह ससुरालीजनों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें जेल भेजें.

बहनों ने ससुरालियों पर लगाया हत्या का आरोप

पुलिस अधिकारियों ने मृतक राहुल के भाई मुन्ना तिवारी से पूछताछ की तो उस ने बताया कि 12 अप्रैल को राहुल की बेटी पीहू का जन्मदिन था. तब वह अपने बेटे प्रिंस के साथ खागलपुर गांव आया था. उस समय सब कुछ सामान्य था. किसी के चेहरे पर कोई तनाव न था. पीहू का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया था. इस के बाद वह वापस घर चले गए थे.

मुन्ना ने आगे बताया कि राहुल अपनी ससुराल अंदावा (कौशांबी) में रहता था. वहां उस ने आलीशान मकान बनवाया था और कुछ जमीन भी खरीदी थी. लेकिन उस के साले जयप्रकाश उर्फ पिंटू तथा रामप्रकाश उर्फ चंद्रशेखर ने उस का मकान तथा जमीन छीन ली तथा मारपीट कर वहां से भगा दिया.

उस के बाद वह परिवार के साथ खागलपुर गांव में किराए के मकान में रहने लगा था. पशुओं का व्यापार कर वह अपने परिवार का खर्च चलाता था. मुन्ना ने तहरीर दे कर दोनों सालों तथा उस के दोस्त मनोज उर्फ मैनेजर तथा अभिषेक तिवारी के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार करने का अनुरोध किया.

अब तक सामूहिक नरसंहार की गूंज प्रयागराज से राजधानी लखनऊ तक पहुंच चुकी थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वयं ही इस घटना को संज्ञान में लेते हुए आईजी डा. राकेश सिंह तथा एडीजी प्रेम प्रकाश से बात की थी. उन्होंने आदेश दिया कि घटना की निष्पक्ष जांच हो और दोषी किसी भी हालत में बख्शे न जाएं. उन्होंने सहायता के लिए एसटीएफ को भी लगा दिया.

पुलिस अधिकारियों को राहुल के शव के पास 2 पन्नों का एक सुसाइड नोट मिला था, जिसे सुरक्षित कर लिया गया था. इस पत्र को अधिकारियों ने पढ़ा तो पहले पन्ने पर 11 नाम लिखे थे, जिन्हें राहुल ने मौत का जिम्मेदार बताया था. इन के नाम थे जयप्रकाश तिवारी उर्फ पिंटू, रामप्रकाश तिवारी उर्फ चंद्रशेखर, मंजू पत्नी जयप्रकाश, ज्योति पत्नी रामप्रकाश, सुनील, आशू, मनोज उर्फ मैनेजर, संतोष, अवध किशोर, शिवम तथा नमो नारायण सभी निवासी अंदावा (कौशांबी). इन में जयप्रकाश व रामप्रकाश मृतक राहुल के सगे साले तथा मंजू व ज्योति सलहज थीं. शेष लोग उन के सहयोगी थे. पत्र के दूसरे पन्ने पर मृतक राहुल ने लिखा था कि साले व ससुराल पक्ष के लोग 2 गाडि़योें से आए और उन की पत्नी व बेटियों की हत्या कर भाग गए. साले, सलहज तथा साले के दोस्त सामूहिक हत्या के दोषी हैं. लेकिन पुलिस जांच में यह बात गलत साबित हुई. क्योंकि ग्रामीणों ने बताया कि रात में कोई वाहन गांव में आया ही नहीं था.

मृतक राहुल के भाई मुन्ना की तहरीर तथा सुसाइड नोट में लिखे गए नामों के आधार पर थाना नवाबगंज इंसपेक्टर ए.के. सिंह ने भादंवि की धारा 302/34 के तहत रिपोर्ट दर्ज कर ली और उन की गिरफ्तारी के प्रयास में जुट गए.

रिपोर्ट दर्ज होने के बाद पुलिस अधिकारियों ने पांचों शव पोस्टमार्टम के लिए एसआरएन अस्पताल भिजवा दिए. 3 डाक्टरों के एक पैनल ने वीडियोग्राफी के साथ सभी शवों का पोस्टमार्टम किया.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार राहुल की मौत हैंगिंग से हुई थी, जबकि प्रीति व उस की बेटियों की मौत श्वांस नली के कटने तथा अधिक खून बहने से हुई थी.

संदीप ने दी जांच को नई दिशा

अब तक पुलिस ने घर में रह रहे दूसरे किराएदार संदीप पाल को भी हिरासत में ले लिया था. पुलिस अधिकारियों ने उस से पूछताछ की तो उस ने कई चौंका देने वाले खुलासे किए. संदीप पाल ने बताया कि वह सुरेश शुक्ला के मकान में किराए पर रहता है और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहा था. राहुल तिवारी के परिवार से उस के अच्छे संबंध थे. उस के बच्चों को वह ट्यूशन पढ़ाता था और परिवार के साथ ही खाना खाता था. राहुल की पत्नी प्रीति उसे अपने बच्चों जैसा मानती थी.

संदीप ने अधिकारियों को बताया कि राहुल और प्रीति के बीच रिश्ते अच्छे नहीं थे. उन में आए दिन झगड़ा होता रहता था. राहुल ससुराल पक्ष से चल रहे विवाद, कर्जदारी, साली से अवैध रिश्तों आदि से इतना परेशान था कि कई बार खुदकुशी की बात कह चुका था. कुछ मौकों पर तो उस ने यहां तक कहा कि मन करता है कि सभी को मार कर खुद मर जाऊं.

संदीप ने बताया कि राहुल गहरे मानसिक तनाव से जूझ रहा था. दरअसल, राहुल ने अपनी ससुराल अंदावा में एक आलीशान मकान बनवाया था जिस में लाखों रुपए खर्च किए थे.

इस के लिए उस ने काफी कर्ज लिया था. बाद में अपने सालों से विवाद के बाद उसे उस मकान से हाथ धोना पड़ा. यही नहीं, जिस जमीन को उस ने अपनी सास से अपने नाम बैनामा कराया था, वह भी उस के कब्जे से निकल गई.

राहुल के उस की साली ज्योति से अवैध संबंध थे, जिसे ले कर पत्नी से उस का विवाद होता रहता था.

पुलिस अधिकारी अब तक की गई जांच, पोस्टमार्टम रिपोर्ट, संदीप पाल व अन्य ग्रामीणों के बयान के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि घर के मुखिया राहुल ने ही पहले अपनी पत्नी प्रीति का कत्ल किया, उस के बाद बेटियों को भी मौत के घाट उतार दिया. ससुराली जनों एवं उन के सहयोगियों को फंसाने के लिऐ उस ने आत्महत्या करने के पूर्व उन के नाम सुसाइड नोट में लिख दिए.

हालांकि घटना की तसवीर साफ हो गई थी फिर भी नामजद आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए पुलिस अधिकारियों ने 7 टीमें बनाईं और उन्हें कौशांबी, फतेहपुर के लिए रवाना किया. कौशांबी के थाना कोखराज के अंदावा गांव में राहुल की ससुराल थी. लगभग सभी आरोपी इसी गांव के थे. अत: पुलिस की 2 टीमें अंदावा गांव पहुंचीं और ताबड़तोड़ छापा मार कर सभी 11 आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया.

सभी आरोपियों को थाना नवाबगंज लाया गया. पुलिस अधिकारियों ने उन से पूछताछ की तो आरोपी जयप्रकाश व रामप्रकाश ने अपने बहनोई राहुल से संपत्ति विवाद की बात तो स्वीकार की, लेकिन बहन व उस की बेटियों की हत्या से साफ इनकार कर दिया.

अन्य आरोपियों ने भी हत्या से साफ इनकार किया. लेकिन पुलिस ने उन की एक नहीं सुनी और सभी को कोर्ट में पेश कर नैनी जेल भेज दिया. पुलिस जांच से इस सामूहिक नरसंहार की जो घटना प्रकाश में आई, उस का विवरण इस प्रकार है—

उत्तर प्रदेश के कौशांबी जिले के थाना कोखराज अंतर्गत एक गांव है-अंदावा. इसी गांव में भोलानाथ तिवारी सपरिवार रहते थे. उन के परिवार में पत्नी पार्वती के अलावा

2 बेटे जयप्रकाश उर्फ पिंटू, रामप्रकाश उर्फ चंद्रशेखर तथा 2 बेटियां प्रीति व ज्योति थीं.

भोलानाथ तिवारी किसान थे. खेतीबाड़ी से ही वह अपने परिवार का पालनपोषण करते थे. वर्ष 1990 में गंभीर बीमारी के चलते भोलानाथ का निधन हो गया. पति की मौत के बाद 4 बच्चों के पालनपोषण की जिम्मेदारी पार्वती पर आ गई.

संकट के दिनों में पार्वती ने बच्चों को पालपोस कर बड़ा किया. जयप्रकाश व रामप्रकाश का मन खेतीकिसानी में नहीं लगता था. अत: दोनों भाइयों ने गांव छोड़ दिया और लखनऊ आ गए. यहां वे प्राइवेट नौकरी कर अपना खर्च चलाने लगे.

भाईबहनों में प्रीति सब से बड़ी थी. वह बचपन से ही चंचल स्वभाव की थी. जवान हुई तो उस में चंचलता और बढ़ गई. वह बनसंवर कर रहती और गलीमोहल्ले में इतरातीइठलाती चलती.

उस की मदमस्त जवानी और चंचलता ने कई युवकों की नींद हराम कर दी थी. वे बंद आंखों से उसे पाने का सपना संजोने लगे थे. लेकिन प्रीति उन्हें पास नहीं फटकने देती थी.

पार्वती के घर मुन्ना तिवारी का आनाजाना था. वह पड़ोसी गांव भदवां का रहने वाला था और दूर का रिश्तेदार था. मुन्ना 3 भाइयों में सब से बड़ा था. मंझला भाई राहुल था जबकि सब से छोटा विवेक था. 2 बहनें ज्योति व नीतू थीं. मुन्ना के पिता त्रिपुरारी कर्मकांडी ब्राह्मण थे. वह लगभग 8 बीघा उपजाऊ भूमि तथा 2 पक्के मकान के मालिक थे.

पार्वती के घर आतेजाते मुन्ना की निगाह उस की जवान बेटी प्रीति पर पड़ी. वह उसे अपने प्रेम जाल में फंसाने का प्रयत्न करने लगा. वह जब भी घर आता, प्रीति के लिए कोई न कोई उपहार जरूर लाता. उपहार पा कर प्रीति का चेहरा खिल उठता.

धीरेधीरे मुन्ना प्रीति से हंसीमजाक व शारीरिक छेड़छाड़ भी करने लगा. प्रीति वैसे भी चंचल स्वभाव की थी, मुन्ना की छेड़छाड़ से वह आनंदित होने लगी. दोनों के बीच प्यार बढ़ा तो एक रोज मुन्ना प्रीति को भगा ले गया.

मुन्ना ने छोटे भाई राहुल की करा दी प्रीति से शादी

बदनामी से बचने के लिए पार्वती ने मुन्ना के घर वालों से संपर्क किया और बेटी को वापस करने की गुहार लगाई.

मुन्ना की पत्नी आरती को जब पता चला कि उस का पति एक कुंवारी लड़की को भगा ले गया है तो उस ने बखेड़ा शुरू कर दिया. उस ने अपने स्तर पर पता लगा कर और पति पर दबाव बना कर प्रीति को बरामद किया और उस की मां को सौंप दिया.

प्रीति के भाग जाने से पार्वती की समाज में बदनामी हुई थी. अब उसे उस के ब्याह की चिंता सताने लगी थी. प्रीति कहीं दोबारा कोई गलत कदम न उठा ले, इसलिए वह जल्द ही उस के हाथ पीले कर देना चाहती थी.

इसी बीच प्रीति से संबंध बनाए रखने के लिए मुन्ना ने एक चाल चली. उस ने पार्वती को राजी कर प्रीति का विवाह (कोर्ट मैरिज) अपने भाई राहुल तिवारी से करा दिया. राहुल उस समय इलाहाबाद विश्वविद्यालय में संविदा पर काम करता था.

कोर्ट मैरिज करने के बाद प्रीति राहुल के साथ रहने लगी. जमीनी विवाद के कारण राहुल की अपने भाइयों से पटरी नहीं खाती थी. जमीनमकान को ले कर अकसर उस का झगड़ा भाइयों से होता रहता था. इस कारण राहुल शादी के बाद अपनी ससुराल अंदावा में रहने लगा.

ससुराल में रहते राहुल ने कुछ सालों में ही अपना सिक्का जमा लिया. यही नहीं उस ने सास पार्वती को बहलाफुसला कर 16 बिस्वा जमीन भी अपने नाम करा ली. भारी कर्ज ले क र उस ने ससुराल में एक आलीशान मकान भी बना लिया.

राहुल के भी हो गए साली ज्योति से संबंध

मायके में रहते प्रीति ने 3 बेटियों माही, पीहू व पाहू को जन्म दिया. राहुल अपनी बेटियों को बहुत प्यार करता था और उन की हर जरूरत को पूरा करता था. राहुल खुद भी ठाटबाट से रहता था और पत्नीबच्चों को भी अच्छे से रखता था. इस ठाटबाट के लिए वह कर्ज लेने से भी गुरेज नहीं करता था.

कौशांबी के पश्चिम शरीरा का रहने वाला सुनार पुष्पराज लोगों को ब्याज पर पैसे देता था. राहुल भी इसी पुष्पराज सुनार से पैसा लाता था. आलीशान मकान बनवाने व अन्य खर्चों के लिए वह लगभग 20 लाख रुपए पुष्पराज से ले चुका था. रुपए मांगने वह अकसर राहुल के पास आता था. रुपए न देने पर वह उसे धमकाता भी था.

राहुल रंगीनमिजाज भी था. 3 बेटियों को जन्म देने के बाद प्रीति अब उसे फीकी लगने लगी थी. इसी दौरान राहुल के अपनी 25 वर्षीया कुंवारी साली ज्योति से अवैध संबंध हो गए.

एक दिन पार्वती ने ज्योति को राहुल की बांहों में झूलते देखा तो वह अवाक रह गई. उस ने बेटी व दामाद दोनों को फटकार लगाई. यही नहीं, उस ने प्रीति को भी सतर्क कर दिया और राहुल पर नजर रखने को कहा.

निगाह रखने का परिणाम यह हुआ कि एक रात प्रीति ने भी राहुल को ज्योति के साथ देख लिया. फिर तो उस रात घर में जम कर हंगामा हुआ. प्रीति ने छोटी बहन ज्योति को भी खूब खरीखोटी सुनाई.

उस ने ज्योति से स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह उस की सौत बनने की कोशिश न करे, अन्यथा इस का परिणाम अच्छा नहीं होगा.

लेकिन चेतावनी के बाद भी न ज्योति मानी और न ही राहुल. दोनों को जब भी मौका मिलता मिलन कर लेते. ज्योति को ले कर अब प्रीति व राहुल के बीच अकसर झगड़ा होने लगा था. आजिज आ कर प्रीति ने मां पर दबाव बना कर ज्योति की शादी कुंडा (प्रतापगढ़) निवासी सूरज के साथ करा दी.

लेकिन राहुल ज्योति को ससुराल नहीं भेजता था. वह किसी भी कीमत पर ज्योति को खोना नहीं चाहता था. ज्योति मायके में ही ज्यादा रहती थी. इसी बीच बीमारी के चलते ज्योति के पति सूरज की मौत हो गई, तो वह मायके में ही रहने लगी थी. राहुल यही तो चाहता था.

राहुल के साले जयप्रकाश व रामप्रकाश लखनऊ में नौकरी करते थे. दोनों भाइयों को जब पता चला कि उस के बहनोई ने धोखाधड़ी कर 16 बिस्वा जमीन का अपने नाम बैनामा करा लिया है और बहन ज्योति को भी बहलाफुसला कर उस से संबंध बना लिए हैं तो उन का माथा ठनका.

वे नौकरी छोड़ कर गांव आ गए और खेती किसानी करने लगे. वह घर खेत की रखवाली करने लगे और बहन ज्योति पर भी नजर रखने लगे. इसी बीच जयप्रकाश की मंजू से तथा रामप्रकाश की ज्योति से शादी हो गई.

राहुल को छोड़नी पड़ी ससुराल

जुलाई 2021 में राहुल और उस के सालों जयप्रकाश व रामप्रकाश के बीच जम कर झगड़ा हुआ. इस झगड़े में परिवार वालों ने दोनों भाइयों का साथ दिया. सब ने मिल कर राहुल को जल्द घर छोड़ने की चेतावनी दे दी.

मजबूर हो कर राहुल ने नवंबर 2021 में अंदावा स्थित ससुराल का घर छोड़ दिया और प्रयागराज से 40 किलोमीटर दूर नवाबगंज थानांतर्गत खागलपुर गांव में सुरेश शुक्ला के मकान में किराए पर रहने लगा. सुरेश शुक्ला बीएसएफ में सहायक कमांडेंट थे और प्रयागराज में रहते थे.

परिवार के भरणपोषण के लिए राहुल पशुओं की खरीदफरोख्त का व्यापार करने लगा था. लेकिन इस व्यापार में उसे इतना मुनाफा नहीं होता था कि वह परिवार को ठीक से चला सके. कर्ज ले कर उसे गृहस्थी चलानी पड़ रही थी.

इसी मकान में एक अन्य किराएदार संदीप पाल रहता था. वह नौकरी की तलाश में था और प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुटा था. संदीप मिलनसार था जल्द ही उस की दोस्ती राहुल से हो गई. वह उस की बेटियों को ट्यूशन पढ़ाने लगा तथा उस के परिवार संग खाना खाने लगा. राहुल की पत्नी प्रीति भी उसे अपने बच्चों जैसा सम्मान देती थी.

राहुल का अपने पड़ोसी दद्दू सरोज के साथ भी अच्छा व्यवहार था. दोनों परिवारों के बच्चे एकदूसरे के घर खेलने आते थे. दद््दू सरोज की मंझली बेटी सुमन और राहुल की मंझली बेटी पीहू के बीच गहरी दोस्ती थी. दोनों हमउम्र थी. पीहू सुबह ही उस के घर खेलने पहुंच जाती थी.

राहुल और प्रीति के बीच रिश्ते सामान्य नहीं थे. दोनों के बीच अकसर झगड़ा होता रहता था. झगड़ा कर्जदारी और बहन ज्योति के साथ नाजायज रिश्तों को ले कर होता था.

दरअसल, राहुल लगभग 20 लाख का कर्जदार था. यह कर्जा उस ने पुष्पराज सुनार से लिया था, जो कौशांबी के पश्चिम शरीरा का रहने वाला था.

जिस दिन वह कर्ज का तगादा करने आता और राहुल को डराताधमकाता या जिस दिन राहुल साली ज्योति से बतियाता और उस से हंसीठिठोली करता, उस दिन राहुल का प्रीति से झगड़ा होता और कई दिनों तक बोलचाल बंद रहती.

राहुल घर के कलह से परेशान था. वह अपनी व्यथा संदीप से शेयर करता था. बातोंबातों में राहुल ऐसी बात कह जाता जिसे सुन कर संदीप कांप उठता.

राहुल को अब अपना जीवन नीरस लगने लगा था. क्योंकि ससुराल का आलीशान मकान, जिसे उस ने कर्ज ले कर बनवाया था, वह उस से छिन गया था. जिस जमीन का बैनामा उस ने कराया था, वह भी सालों ने छीन ली थी और साली ज्योति जो उस के जीवन में रस घोलती थी, वह भी दूर हो गई थी. राहुल को लगने लगा कि अब उस के जीने का कोई मकसद नहीं है.

फिर लगा कि यदि उस ने जीवन समाप्त कर लिया तो उस की बेटियों का क्या होगा, उन को कौन संभालेगा. काफी सोचविचार के बाद राहुल ने अपनी हताश जिंदगी का अंत करने के पहले अपने पूरे परिवार को मिटाने का निश्चय किया.

12 अप्रैल, 2022 को राहुल ने अपनी मंझली बेटी 9 वर्षीय पीहू का जन्मदिन धूमधाम से मनाया. जन्मदिन उत्सव में शामिल होने राहुल का बड़ा भाई मुन्ना व भतीजा प्रिंस भी आया. लेकिन उस ने अपने खतरनाक इरादों की भनक किसी को नहीं लगने दी. जन्मदिन पार्टी में किराएदार संदीप पाल भी शामिल हुआ था. लेकिन दूसरे रोज वह किसी काम से प्रतापगढ़ चला गया था.

15 अप्रैल, 2022 की रात 8 बजे राहुल ने पत्नी व बेटियों के साथ खाना खाया. उस के बाद प्रीति कमरे में पड़ी चारपाई पर लेट गई और माही, पीहू और पाहू चौकी पर लेट गईं. कुछ देर बाद वह सो गई.

इधर राहुल की आंखों से नींद कोसों दूर थी. वह देर रात तक चहलकदमी करता रहा. फिर चापड़ ले कर कमरे में पहुंच गया. कमरे में प्रीति व उस की तीनों बेटियां गहरी नींद सो रही थीं.

राहुल ने पहले प्रीति के गले पर चापड़ से प्रहार किया. जिस से उस का गला कट गया और उस की मौत हो गई. उस के बाद राहुल ने बारीबारी से तीनों बेटियों को भी मौत के घाट उतार दिया.

पत्नी व बेटी की हत्या करने के बाद उस ने आलाकत्ल चापड़ घर के सामने प्याज के खेत में छिपा दिया. फिर कमरे में आ कर सुसाइड नोट लिखा, जिस में उस ने साले सलहज सहित 11 नाम लिखे और उन्हें हत्यारोपी बताया. इस के बाद उस ने आंगन में लोहे के जाल में साड़ी बांध कर फंदा बनाया और झूल गया.

पुलिस ने मृतक राहुल के भाई मुन्ना द्वारा दर्ज कराई गई रिपोर्ट के आधार पर 11 नामजद लोगों को हत्या के आरोप में जेल भेज दिया. लेकिन विवेचना में यदि ये लोग निर्दोष पाए गए तो हत्या की धारा हट जाएगी. उस के बाद उन पर आत्महत्या के लिए प्रेरित करने की धारा 309 के तहत ही कोर्ट में मुकदमा चलेगा. बहरहाल, कथा संकलन तक सभी आरोपी नैनी जेल में थे.

-कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

लव ऐट ट्रैफिक सिग्नल – भाग 3 : ट्रैफिक सिग्नल पर मिली लड़की से क्या रिश्ता था?

कनीजा बी एक सांवलीसलोनी एवं सुशील लड़की थीं. उन की नौकरी लगने के बाद जब उन के घर में खुशहाली आने लगी थी तो लोगों का ध्यान उन की ओर जाने लगा था. देखते ही देखते शादी के पैगाम आने लगे थे. मुसीबत यह थी कि इतने पैगाम आने के बावजूद, रिश्ता कहीं तय नहीं हो रहा था. ज्यादातर लड़कों के अभिभावकों को कनीजा बी की नौकरी पर आपत्ति थी.

वे यह भूल जाते थे कि कनीजा बी के घर की खुशहाली का राज उन की नौकरी में ही तो छिपा है. उन की एक खास शर्त यह होती कि शादी के बाद नौकरी छोड़नी पड़ेगी, लेकिन कनीजा बी किसी भी कीमत पर लगीलगाई अपनी सरकारी नौकरी छोड़ना नहीं चाहती थीं.

कनीजा बी पिता की असमय मृत्यु से बहुत बड़ा सबक सीख चुकी थीं. अर्थोपार्जन की समस्या ने उन की मां को कम परेशान नहीं किया था. रूखेसूखे में ही बचपन से जवानी तक के दिन बीते थे. अत: वह नौकरी छोड़ कर किसी किस्म का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती थीं. कनीजा बी का खयाल था कि अगर शादी के बाद उन के पति को कुछ हो गया तो उन की नौकरी एक बहुत बड़े सहारे के रूप में काम आ सकती थी.

वैसे भी पतिपत्नी दोनों के द्वारा अर्थोपार्जन से घर की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो सकती थी, जिंदगी मजे में गुजर सकती थी. देखते ही देखते 4-5 साल का अरसा गुजर गया था और कनीजा बी की शादी की बात कहीं पक्की नहीं हो सकी थी. उन की उम्र भी दिनोदिन बढ़ती जा रही थी. अत: शादी की बात को ले कर मांबेटी परेशान रहने लगी थीं.

एक दिन पड़ोस के ही प्यारे मियां आए थे. वह उसी शहर के दूसरे महल्ले के रशीद का रिश्ता कनीजा बी के लिए लाए थे. उन के साथ एक महिला?भी थीं, जो स्वयं को रशीद की?भाभी बताती थीं. रशीद एक छोटे से निजी प्रतिष्ठान में लेखाकार था और खातेपीते घर का था. कनीजा बी की नौकरी पर उसे कोई आपत्ति नहीं थी.

महल्लेपड़ोस वालों ने कनीजा बी की मां पर दबाव डाला था कि उस रिश्ते को हाथ से न जाने दें क्योंकि रिश्ता अच्छा है. वैसे भी लड़कियों के लिए अच्छे रिश्ते मुश्किल से आते हैं. फिर यह रिश्ता तो प्यारे मियां ले कर आए थे. कनीजा बी की मां ने महल्लेपड़ोस के बुजुर्गों की सलाह मान कर कनीजा बी के लिए रशीद से रिश्ते की हामी?भर दी थी.?

कनीजा बी अपनी शादी की खबर सुन कर मारे खुशी के झूम उठी थीं. वह दिनरात अपने सुखी गृहस्थ जीवन की कल्पना करती रहती थीं. और एक दिन वह घड़ी भी आ गई, जब कनीजा बी की शादी रशीद के साथ हो गई और वह मायके से विदा हो गईं. लेकिन ससुराल पहुंचते ही इस बात ने उन के होश उड़ा दिए कि जो महिला स्वयं को रशीद की भाभी बता रही थी, वह वास्तव में रशीद की पहली बीवी थी.

असलियत सामने आते ही कनीजा बी का सिर चकराने लगा. उन्हें लगा कि उन के साथ बहुत बड़ा धोखा हुआ है और उन्हें फंसाया गया है. प्यारे मियां ने उन के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात किया था. वह मन ही मन तड़प कर रह गईं. लेकिन जल्दी ही रशीद ने कनीजा बी के समक्ष वस्तुस्थिति स्पष्ट कर दी, ‘‘बेगम, दरअसल बात यह थी कि शादी के 7 साल बाद?भी जब हलीमा बी मुझे कोई औलाद नहीं दे सकी तो मैं औलाद के लिए तरसने लगा.

‘हम दोनों पतिपत्नी ने किसकिस डाक्टर से इलाज नहीं कराया, क्याक्या कोशिशें नहीं कीं, लेकिन नतीजा शून्य रहा. आखिर, हलीमा बी मुझ पर जोर देने लगी कि मैं दूसरी शादी कर लूं. औलाद और मेरी खुशी की खातिर उस ने घर में सौत लाना मंजूर कर लिया. बड़ी ही अनिच्छा से मुझे संतान सुख की खातिर दूसरी शादी का निर्णय लेना पड़ा. ‘मैं अपनी तनख्वाह में 2 बीवियों का बोझ उठाने के काबिल नहीं था. अत: दूसरी बीवी का चुनाव करते वक्त मैं इस बात पर जोर दे रहा था कि अगर वह नौकरी वाली हो तो बात बन सकती है. जब हमें, प्यारे मियां के जरिए तुम्हारा पता चला तो बात बनाने के लिए इस सचाई को छिपाना पड़ा कि मैं शादीशुदा हूं.

‘मैं झूठ नहीं बोलता. मैं संतान सुख की प्राप्ति की उत्कट इच्छा में इतना अंधा हो चुका था कि मुझे तुम लोगों से अपने विवाहित होने की सचाई छिपाने में कोई संकोच नहीं हुआ. ‘मैं अब महसूस कर रहा हूं कि यह अच्छा नहीं हुआ. सचाई तुम्हें पहले ही बता देनी चाहिए थी. लेकिन अब जो हो गया, सो हो गया.

‘वैसे देखा जाए तो एक तरह से मैं तुम्हारा गुनाहगार हुआ. बेगम, मेरे इस गुनाह को बख्श दो. मेरी तुम से गुजारिश है.’ कनीजा बी ने बहुत सोचविचार के बाद परिस्थिति से समझौता करना ही उचित समझा था, और वह अपनी गृहस्थी के प्रति समर्पित होती चली गई थीं.

कनीजा बी की शादी के बाद डेढ़ साल का अरसा गुजर गया था, लेकिन उन के भी मां बनने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. उस के विपरीत हलीमा बी में ही मां बनने के लक्षण दिखाई दे रहे थे. डाक्टरी परीक्षण से भी यह बात निश्चित हो गई थी कि हलीमा बी सचमुच मां बनने वाली हैं. हलीमा बी के दिन पूरे होते ही प्रसव पीड़ा शुरू हो गई, लेकिन बच्चा था कि बाहर आने का नाम ही नहीं ले रहा था. आखिर, आपरेशन द्वारा हलीमा बी के बेटे का जन्म हुआ. लेकिन हलीमा बी की हालत नाजुक हो गई. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद वह बच नहीं सकी.

हलीमा बी की अकाल मौत से उस के बेटे गनी के लालनपालन की संपूर्ण जिम्मेदारी कनीजा बी पर आन पड़ी. अपनी कोख से बच्चा जने बगैर ही मातृत्व का बोझ ढोने के लिए कनीजा बी को विवश हो जाना पड़ा. उन्होंने उस जिम्मेदारी से दूर भागना उचित नहीं समझा. आखिर, गनी उन के पति की ही औलाद था.

रशीद इस बात का हमेशा खयाल रखा करता था कि उस के व्यवहार से कनीजा बी को किसी किस्म का दुख या तकलीफ न पहुंचे, वह हमेशा खुश रहें, गनी को मां का प्यार देती रहें और उसे किसी किस्म की कमी महसूस न होने दें. कनीजा बी भी गनी को एक सगे बेटे की तरह चाहने लगीं. वह गनी पर अपना पूरा प्यार उड़ेल देतीं और गनी भी ‘अम्मीअम्मी’ कहता हुआ उन के आंचल से लिपट जाता.

अब गनी 5 साल का हो गया था और स्कूल जाने लगा था. मांबाप बेटे के उज्ज्वल भविष्य को ले कर सपना बुनने लगे थे. इसी बीच एक हादसे ने कनीजा बी को अंदर तक तोड़ कर रख दिया.

वह मकर संक्रांति का दिन था. रशीद अपने चंद हिंदू दोस्तों के विशेष आग्रह पर उन के साथ नदी पर स्नान करने चला गया. लेकिन रशीद तैरतेतैरते एक भंवर की चपेट में आ कर अपनी जान गंवा बैठा. रशीद की असमय मौत से कनीजा बी पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा, लेकिन उन्होंने साहस का दामन नहीं छोड़ा.

उन्होंने अपने मन में एक गांठ बांध ली, ‘अब मुझे अकेले ही जिंदगी का यह रेगिस्तानी सफर तय करना है. अब और किसी पुरुष के संग की कामना न करते हुए मुझे अकेले ही वक्त के थपेड़ों से जूझना है. ‘पहला ही शौहर जिंदगी की नाव पार नहीं लगा सका तो दूसरा क्या पार लगा देगा. नहीं, मैं दूसरे खाविंद के बारे में सोच भी नहीं सकती.

‘फिर रशीद की एक निशानी गनी के रूप में है. इस का क्या होगा? इसे कौन गले लगाएगा? यह यतीम बच्चे की तरह दरदर भटकता फिरेगा. इस का भविष्य अंधकारमय हो जाएगा. मेरे अलावा इस का?भार उठाने वाला भी तो कोई नहीं. ‘इस के नानानानी, मामामामी कोई भी तो दिल खोल कर नहीं कहता कि गनी का बोझ हम उठाएंगे. सब सुख के साथी?हैं.

पशुओं का पौष्टिक चारा ज्वार

डा. ऋषिपाल, डा. राजेंद्र सिंह

हमारे गांवों की 73 फीसदी आबादी पशुपालन से जुड़ी है. जिन किसानों के पास जोत कम है, वे भी चारे की फसलों के बजाय नकदी फसलों की ओर ज्यादा ध्यान देते हैं.

हरा चारा खिलाने से पशुओं में भी काम करने की कूवत बढ़ती है, वहीं दूध देने वाले पशुओं के दूध देने की कूवत बढ़ती है, इसलिए उत्तम चारे का उत्पादन जरूरी?है, क्योंकि चारा पशुओं को मुनासिब प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन और खनिज पदार्थों की भरपाई करते हैं.

हरे चारे का उत्पादन कुल जोत का तकरीबन 4.4 फीसदी जमीन पर ही किया जा रहा?है. 60 के दशक में पशुओं की तादाद बढ़ने के बावजूद भी चारा उत्पादन रकबे में कोई खास फर्क नहीं हुआ है.

अच्छी क्वालिटी का हरा चारा हासिल करने के लिए ये तरीके अपनाए जाने चाहिए :

जमीन : ज्वार की खेती के लिए दोमट, बलुई दोमट और हलकी व औसत दर्जे वाली काली मिट्टी, जिस का पीएच मान 5.5 से 8.5 हो, बढि़या मानी गई है.

यदि मिट्टी ज्यादा अम्लीय या क्षारीय है, तो ऐसी जगहों पर ज्वार की खेती नहीं करनी चाहिए.

खेत और बीज

पलेवा कर के पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें या हैरो से. उस के बाद 1-2 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से कर के पाटा जरूर लगा देना चाहिए.

एकल कटाई यानी एक कटाई वाली किस्मों के लिए 30-40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर और बहुकटान यानी बहुत सी कटाई वाली प्रजातियों के लिए 25-30 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में डालना चाहिए.

उन्नतशील किस्में?

हरे चारे के उत्पादन के लिए ज्वार की ज्यादा पैदावार और अच्छी क्वालिटी लेने के लिए उन्नतशील किस्मों को ही चुनें.

बीजोपचार

बोने से पहले बीजों को 2.5 ग्राम एग्रोसन जीएन थीरम या 2.0 ग्राम कार्बंडाजिम प्रति किलोग्राम के हिसाब से बीज उपचारित करना काफी फायदेमंद रहता है. ऐसा कर के से फसल में बीज और मिट्टी के रोगों को आसानी से कम कर सकते?हैं.

ज्वार को फ्रूट मक्खी से बचाने के लिए इमिडाक्लोप्रिड 1 मिलीलिटर प्रति किलोग्राम के हिसाब से बीज उपचारित करना फायदेमंद रहेगा.

बोने का तरीका

हरे चारे के लिए जायद मौसम में बोआई का सही समय फरवरी से मार्च महीने तक है. ज्यादातर किसान ज्वार को बिखेर कर बोते हैं, पर इस की बोआई हल के पीछे कूंड़ों में और लाइन से लाइन की दूरी 30 सैंटीमीटर पर करना ज्यादा फायदेमंद है.

खाद और उर्वरक?

खाद और उर्वरक की मात्रा का इस्तेमाल जमीन के मुताबिक करना चाहिए. अगर किसान के पास गोबर की सड़ी खाद, खली या कंपोस्ट खाद है, तो बोआई से 15-20 दिन पहले इन का इस्तेमाल खेत में करना चाहिए.

एकल कटान यानी एक कटाई वाली प्रजातियों में 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करें और बची हुई 40-50 किलोग्राम नाइट्रोजन फसल बोने के एक महीने बाद मुनासिब नमी होने पर खड़ी फसल पर इस्तेमाल करना चाहिए.

बहुकटान वाली किस्मों में 60-75 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस बोआई के समय और 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन हर कटाई के बाद प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए.

खरपतवार नियंत्रण?

आमतौर पर बारिश के मौसम में पानी देने की जरूरत नहीं होती. अगर बारिश न हो, तो पहले फसल को हर 8-12 दिन के फासले पर सिंचाई की जरूरत होती?है.

फसल की बोआई के तुरंत बाद खरपतवार को जमने से रोकने के लिए 1.5 किलोग्राम एट्राजिन 50 डब्ल्यूपी या सिमेजिन को 1,000 लिटर पानी में घोल बना कर जमाव से पहले खेत में छिड़कना चाहिए.

ज्वार के कीट व रोग प्रबंधन

मधुमिता रोग : फूल आने से पहले 0.5 फीसदी जीरम का 5 दिन के फासले पर 2 छिड़काव करने से इस रोग से बचाव हो सकता है. बाली पर अगर रोग दिखाई दे रहा हो, तो उसे बाहर निकाल कर जला दें.

दाने पर फफूंद : फूल आते समय या दाना बनते समय अगर बारिश होती है, तो इस रोग का प्रकोप ज्यादा होता है. दाने काले व सफेद गुलाबी रंग के हो जाते हैं. क्वालिटी गिर जाती है, इसलिए अगर फसल में सिट्टे आने के बाद आसमान में बादल छाएं और आबोहवा में नमी ज्यादा हो तो मैंकोजेब 75 फीसदी 2 ग्राम या कार्बंडाजिम दवा 0.5 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 10 दिन के फासले पर 2 छिड़काव करें.

चारकोल राट : इस रोग का प्रकोप रबी ज्वार के सूखे रकबे में छिली मिट्टी में होता है. इस का फैलाव जमीन पर होता है. इस रोग की रोकथाम के लिए नाइट्रोजन खाद का इस्तेमाल कम से कम करना चाहिए और प्रति हेक्टेयर पौधों की तादाद कम रखनी चाहिए. बीज को बोआई के समय थाइरम 4.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपचारित करना चाहिए.

पत्ती पर धब्बे (लीफ स्पौट) : इस की रोकथाम करने के लिए डाईथेन जेड 78 की 0.2 फीसदी का 2 बार 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करने से बचाव हो जाता है.

मुख्य कीट

प्ररोह मक्खी: यह कीट ज्वार का घातक दुश्मन है. फसल की शुरुआती अवस्था में यह कीट बहुत नुकसान पहुंचाता है. जब फसल 30 दिन की होती?है, तब तक कीट से फसल को 80 फीसदी तक नुकसान हो जाता है.

इस कीट की रोकथाम के लिए बीज को इमिडाक्लोप्रिड गोचो 14 मिलीलिटर प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के बोना चाहिए.

बोआई के समय बीज की मात्रा 10 से 12 फीसदी ज्यादा रखनी चाहिए. जरूरी हो तो अंकुरण के 10-12 दिन बाद इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल 5 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर पानी में घोल बना कर छिड़काव करना चाहिए. फसल काटने के बाद खेत में गहरी जुताई करें और फसल के अवशेषों को एकत्रित कर जला दें.

तनाभेदक कीट : इस कीट का हमला फसल लगने के 10-15 दिन से शुरू हो कर उस के पकने तक रहता?है. इस के नियंत्रण के लिए फसल काटने के तुरंत बाद खेत में गहरी जुताई करें और बचे हुए फसल अवशेषों को जला दें.

खेत में बोआई के समय खाद के साथ 10 किलोग्राम की दर से फोरेट 10 जी या कार्बोफ्यूरान दवा अच्छी तरह मिला दें.

बोआई के तकरीबन 15-20 दिन बाद इमिडाक्लोप्रिड 200 एसएल 5 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर या कार्बोरिल 50 फीसदी घुलनशील पाउडर 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 10 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव करना चाहिए.

सिट्टे की मक्खी : यह मक्खी सिट्टे निकलते समय फसल को नुकसान पहुंचाती है. इस की रोकथाम के लिए जब 50 फीसदी सिट्टे निकल आएं, तब प्रोपेनफास 40 ईसी दवा 25 मिलीलिटर प्रति 10 लिटर पानी में घोल बना कर 10 से 15 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव करना चाहिए.

टिड्डा : यह कीट ज्वार की फसल को छोटी अवस्था से ले कर उस के पकने तक नुकसान पहुंचाता है और पत्तियों के किनारों को खा कर धीरेधीरे पूरी पत्तियां खा जाता है. बाद में फसल में मात्र मध्य शिराएं और पतला तना ही रह जाता?है.

इस कीट के नियंत्रण के लिए फसल में कार्बोरिल 50 फीसदी घुलनशील पाउडर 2 ग्राम प्रति लिटर पानी में घोल बना कर 10 से 15 दिन के अंतराल पर 2 छिड़काव करना चाहिए.

पक्षियों से बचाव : ज्वार पक्षियों का मुख्य भोजन है. फसल में जब दाने बनने लगते?हैं, तो सुबहशाम पक्षियों से बचाना बहुत जरूरी है वरना फसल को काफी नुकसान होता है.

कटाई : पशुओं को पौष्टिक चारा खिलाने के लिए फसल की कटाई 5 फीसदी फूल आने पर अथवा 60-70 दिन बाद करनी चाहिए. बहुकटान वाली प्रजातियों की पहली कटाई बोआई के 50-60 दिनों के बाद और बाद की कटाई 30-35 दिन के अंतर पर जमीन की सतह से

6-8 सैंटीमीटर की ऊंचाई पर या 4 अंगुल ऊपर से काटने पर कल्ले अच्छे निकलते हैं.

उपज : प्रजातियों के हरे चारे की उपज 250-450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती?है, जबकि बहुकटान वाली किस्मों की उपज 750-800 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक हो जाती है.

जाएं तो जाएं कहां-भाग 2: क्या कैदी जेल से बाहर आ पाएं?

अनुपम, बिशनलाल, राकेश और चांद मोहम्मद अलगअलग अपराध में एकसाथ जेल में बंद थे. उन्हें रसोईघर में कैदियों के लिए खाना बनाने का काम मिला. इसी बीच अनुपम ने उन तीनों को आपबीती सुनाई कि किस तरह वह जेल में पहुंचा.

बैरक में सन्नाटा छा गया. बाकी तीनों के चेहरों पर भी उदासी थी. रात हो चुकी थी. गार्डों की ड्यूटी बदल चुकी थी.

‘‘और तुम्हारे परिवार की कोई खैरखबर?’’ चांद मोहम्मद ने पूछा.

‘‘नहीं, कुछ पता नहीं. कोई आज तक आया भी नहीं, ‘‘अनुपम की आंखों से आंसू बहने लगे.

सुबह 4 बजे गार्ड ने ताला खोला. वे सभी रसोईघर की ओर चल दिए. दोपहर में फिर ‘टनटनटन’ की आवाज हुई. सब को अपनेअपने बैरक में जाना था.

धीरेधीरे कर के सब बैरक में पहुंचे. गार्ड ने गिनती की. गिनती मिलते ही गार्ड ने ताला लगाया. सब अपना रूखासूखा खा कर एकदूसरे से बातचीत करने लगे. कुछ सो गए.

‘‘मेरी तो सुन ली, अपनी भी कहो,’’ अनुपम ने राकेश से कहा.

‘‘पहले मेरी सुन लो. मेरा मन शायद कहने से हलका हो जाए,’’ बिशनलाल ने कहा.

‘‘अच्छा तुम्हीं कहो,’’ राकेश बोला.

‘‘बड़े मजे और चैन के साथ जिंदगी कट रही थी. हम तेंदूपत्ता और महुआ बेचते थे. महुए की शराब पीते थे. अपने में मस्त रहते?थे. लेकिन न जाने किस की नजर लग गई हमारे जंगलों को.

‘‘माओवादी अपनी अलग सरकार बना रहे थे. जो उन के विरोध में होता, उसे गोली मार दी जाती. फिर पुलिस और माओवादियों के बीच में हम आदिवासी पिसने लगे.

‘‘पुलिस को हम पर शक हो गया था कि आदिवासी माओवादियों का सहारा बनते हैं. माओवादियों को यह शक होता था कि आदिवासी पुलिस की मुखबिरी करते हैं.

‘‘पुलिस के साथ माओवादियों की इस लड़ाई में शिकार होते हैं हम जैसे कमजोर, शांत आदिवासी.

‘‘पहले जंगल महकमे वाले हम आदिवासियों पर जोरजुल्म करते थे, उस के बाद नक्सलवादी आए. फिर अमीर लोग कारोबार करने आए. उन्होंने हम से हमारी जमीनें, हमारे जंगल छीनने शुरू कर दिए. उन की मदद सरकार और पुलिस करने लगी.

‘‘हम चारों तरफ से घिरे हुए?थे. एक ओर नक्सली, दूसरी ओर पुलिस. तीसरी ओर कारोबारी, चौथी ओर से सरकार.

‘‘इसी बीच सलवा जुडूम आ गया. अब हमारे घर जलाए जाने लगे. हमारी औरतों के साथ बलात्कार होने लगे. हमें नक्सली कह कर मुठभेड़ में मारा जाने लगा.

‘‘पुलिस अपने प्रमोशन, मैडल पाने के लिए आदिवासियों को नक्सली बता कर जेलों में भरने लगी. हमारे ही लोग अब हमारे दुश्मन बन चुके थे. हमारा अमनचैन सब लुट चुका था.

‘‘एक दिन एक पुलिस ने मुझ से कहा, ‘हमारे लिए तुम जासूसी करो. नक्सलयों की सूचना दो.’

‘‘मैं ने गुस्से में कहा, ‘और बदले में आप हमारे लोगों को नक्सली बता कर फर्जी मुठभेड़ में मारो. हमारी औरतों की इज्जत लूटो. कारोबारियों से पैसा ले कर हमारे घर जलाओ.’

‘‘मेरी बात से वह पुलिस अफसर भड़क गया. उस ने गुस्से में कहा, ‘नेता मत बनो. तुम अपने बारे में सोचो.’

‘‘‘और नक्सलियों को पता चल गया, तो उन से हमें कौन बचाएगा?’ मेरे कहने पर पुलिस अफसर ने हंसते हुए कहा, ‘मौत तो दोनों तरफ है. तुम चुन लो कि किस तरह की मौत मरना चाहते हो. नक्सली एक झटके में मार देंगे और हम तिलतिल कर मारेंगे.’

‘‘मुझे लगा कि अब बस्तर के ये जंगल हमारे लिए मौत के जाल बन चुके हैं, लेकिन हम जाएं तो जाएं कहां? रात का समय था. उमस थी. झींगुरों की आवाज अचानक तेज हो गई. मैं समझ गया कि कुछ गड़बड़ है.

‘‘फिर हमारी बस्ती पर तेज लाइट पड़ी. पुलिस अफसर की आवाज सुनाई दी. आवाज रात के सन्नाटे में गूंज रही?थी. हमें अपनी बस्ती खाली करने के लिए कहा जा रहा था.

‘‘तभी गोलियों की आवाज सुनाई दी. नक्सलियों ने पुलिस पर हमला बोल दिया था. बचाव में पुलिस वाले भी छिपतेछिपाते नक्सलियों पर हमला करने लगे. लेकिन नक्सलियों की घेराबंदी तगड़ी थी. कई पुलिस वाले मारे गए. कुछ घायल हुए थे. कुछ जान बचा कर अंधेरे का फायदा उठा कर भाग गए.

‘‘इस गोलाबारी में बस्ती के भी कुछ लोग मारे गए. तभी नक्सली कमांडर वीरन की आवाज सुनाई दी, ‘लाल सलाम.’

‘‘नक्सलियों ने भी ऊंची आवाज में कहा, ‘लाल सलाम.’

‘‘बस्ती के लोग अपनेअपने घरों से बाहर आए. नक्सली कमांडर ने कहा, ‘वीरन आ गया है. अब जो तुम्हें परेशान करेगा, वह ऐसे ही कुत्ते की मौत मरेगा.’

‘‘बस्ती वालों के लिए वीरन इस समय तो फरिश्ता था, लेकिन जान बचा कर भागते हुए एक पुलिस अफसर ने वीरन का ‘लाल सलाम’ सुन लिया था.

‘‘दूसरे दिन पुलिस की कई गाडि़यां आ गईं और बस्ती पर हमला बोल

दिया. आदिवासियों को लाठियों, बैल्टों से पीटते हुए पुलिस की गाड़ी में जानवरों की तरह भरा जाने लगा.

‘‘पुलिस अफसर चीख रहा था, ‘सब को गिरफ्तार करो. नक्सलियों को सपोर्ट करते हैं सब. एकएक पुलिस वाले की मौत का बदला लिया जाएगा.’

‘‘जो आवाज उठा रहा था, उसे गोली मारी जा रही थी. दिनदहाड़े औरतों को खींच कर ले जाया जा रहा था. उन के साथ जबरदस्ती की जा रही?थी.

‘‘मैं ने भी भागने की कोशिश की. पुलिस अफसर ने मुझ पर गोली चलाई. गोली मेरे कंधे पर जा लगी. मैं वहीं चीखते हुए गिर गया. उस के बाद मुझे वीरन के दल का नक्सली बता कर जेल भेज दिया गया.

‘‘पता नहीं कितने आदिवासी किसकिस जेल में?थे. औरतों के साथ क्याक्या हुआ? कितने घर जलाए गए. बस्ती अब है भी या नहीं…

‘‘उस पुलिस अफसर को मालूम था कि मैं पढ़ालिखा हूं. पत्रकारों को इंटरव्यू भी दे चुका हूं, इसलिए मुझे खतरनाक नक्सली बता कर दिल्ली भेज दिया गया. सब बरबाद हो गया.’’

बिशनलाल की यह दास्तान सुन कर सब सकते में थे. बिशनलाल की आंखों में आंसू थे.

तभी सीटी की आवाज सुनाई दी. जेल के अंदर जेल गार्ड द्वारा सीटी बजाने का मतलब है खतरा.

सीटी बजने के बाद होने वाले अंजाम को कैदी बखूबी जानते थे. सीटी बजती रही और सारे जेल वाले अपनीअपनी लाठियों के साथ इकट्ठा होते रहे. माहौल में अजीब सा डर भर गया. इमर्जेंसी अलार्म बजाया गया, ताकि वे जेल गार्ड भी अपने कमरों से तुरंत ड्यूटी पर आ सकें, जिन की ड्यूटी इस वक्त नहीं थी.

थोड़ी देर में पूरी जेल छावनी में बदल गई. सारे कैदी दौड़ कर अपने बैरक के अंदर भागे.

जेल सुपरिंटैंडैंट, जेलर, उपजेलर, हवलदार सभी जेल गार्ड बैरक नंबर 2 के सामने खड़े थे. एकएक कैदी को बाहर निकाल कर लाठियोंजूतों से गिरागिरा कर पीटा जा रहा था.

कैदियों की चीखों से आसमान में उड़ते पंछी भी डर गए थे. सब पिट रहे थे और यही कह रहे थे कि ‘साहब, हम ने कुछ नहीं किया’, लेकिन वही गार्ड जो सारे कैदियों के बड़े भाई, दोस्त जैसे रहते थे, इस घड़ी बेरहम बने हुए थे.

यही वह समय होता है, जब जेल प्रशासन को अपनी धाक जमाने का मौका मिलता है. इस समय बड़े से बड़ा खतरनाक कैदी भी पनाह मांगने लगता है. बात बिगड़ने पर बाहर की फोर्स भी आ कर मोरचा संभाल लेती है.

जेल सुपरिंटैंडैंट ने कहा, ‘‘किस ने झगड़ा किया था?’’

बैरक के नंबरदार से पूछा गया. बैरक का नंबरदार, जो खुद दर्द से कराह रहा?था, ने बताया, ‘‘नए कैदी सोमेश से सुजान सिंह ने कहा था कि मुलाकात में अपने घर के लोगों से 10 हजार रुपए मंगवाओ. सोमेश ने जेलर से शिकायत करने की धमकी दी, तो गुस्से में सुजान सिंह और उस के साथियों ने सोमेश पर बुरी तरह से हमला कर दिया और उस के चेहरे पर ब्लेड मारा.’’

जेल सुपरिंटैंडैंट ने गार्डों से कहा, ‘‘सुजान सिंह और उस के साथियों को अभी ले कर आओ.’’

सुजान सिंह और उस के 5 साथी सामने लाए गए और जेल सुपरिंटैंडैंट का इशारा मिलते ही गार्डों ने उन पर बेतहाशा लाठियां बरसाना शुरू कर दिया. ‘हायहाय’ की दर्दनाक चीखें गूंजने लगीं.

‘‘इन पर केस बनाओ,’’ जेल सुपरिंटैंडैंट ने गुस्से से कहा और वापस दफ्तर की ओर चल दिए. उन के पीछेपीछे जेलर, उपजेलर और जेल के मुख्य द्वार पर तैनात संतरी भी चल दिए.

जेल गार्डों ने डर के इस माहौल का खूब फायदा उठाया. वे हर नए और कमजोर, डरे हुए कैदियों को धमका कर उन से पैसों की मांग करते. उन के परिवार द्वारा भेजे गए सामान में से अपने काम का सामान छीन लेते.

वैसे भी मुलाकात के समय मुख्य द्वार पर 2 सिपाहियों की ड्यूटी रहती है. एक रजिस्टर में लिखता, दूसरा मुलाकात करने वाले कैदी पर नजर रखता कि कहीं वह कोई गैरकानूनी सामान तो अंदर नहीं ला रहा है.

लेकिन भ्रष्टाचार यहां भी था. हर मिलने आने वाले से मुलाकात के नाम पर 10 रुपए लिए जाते. सुबह 8 बजे से दोपहर 12 बजे तक ही मिलने का समय होता.

अंदर कैदियों की तादाद 450-500 होती. जिसे 5 मिनट से ज्यादा मिलना हो, उस से ज्यादा पैसे की मांग की जाती. कोई अपनी बीवीबच्चों से कईकई दिनों बाद मिल रहा होता, तो उस की बीवी 10-20 रुपए निकाल कर दे देती.

जेल में कई बार सरकारी अफसर, डाक्टर, इंजीनियर, बड़े कारोबारी भी आ जाते, तब तो मुलाकात में ड्यूटी करने वालों की चांदी होती. ऐसे थोड़े ही जेल में अपराधियों के पास गांजा, पिस्तौल, मोबाइल जैसी चीजें पहुंच जाती थीं.

जो दमदार कैदी होते, उन के साथी बाहर से जेल प्रशासन के लोगों द्वारा अंदर मनचाहा सामान पहुंचाते. बदले में जेल प्रशासन को?भी खुश किया जाता.

मुलाकात के दौरान गेट पर ड्यूटी के लिए जेल के गार्ड, हवलदार बड़ी रकम जेलर व सुपरिंटैंडैंट को पहुंचाते. रसोई में काम करने वाले इन चारों कैदियों की पिटाई नहीं हुई, क्योंकि ये चारों न कभी जेल प्रशासन से उलझे, न किसी गार्ड से कभी ऊंची आवाज में बात की, बल्कि जेल गार्डों की हर सही और गलत बात भी मानी.

जेल में कुछ गार्डों द्वारा नशीली चीजों जैसे गांजा, शराब, अफीम को रसोई से ही बेची जाती. बीड़ी, सिगरेट, तंबाकू तो बिलकुल खुलेआम बेचे जाते. कोई रोक नहीं थी.

आज रविवार था. नियम के मुताबिक कैदियों को पूरी, आटे का हलवा, सब्जी दी गई. चारों अपने बैरक में बैठे कैदियों की पिटाई की चर्चा कर रहे थे.

 

क्या जेल में हुई कैदियों की पिटाई से वहां बगावत हो गई? उन चारों कैदियों का क्या हुआ? पढि़ए अगले भाग में…

तब और अब : रमेश की नियुक्ति क्यों गलत समय पर हुई थी?

पिछले कई दिनों से मैं सुन रहा था कि हमारे नए निदेशक शीघ्र ही आने वाले हैं. उन की नियुक्ति के आदेश जारी हो गए थे. जब उन आदेशों की एक प्रतिलिपि मेरे पास आई और मैं ने नए निदेशक महोदय का नाम पढ़ा तो अनायास मेरे पांव के नीचे की जमीन मुझे धंसती सी लगी थी.

‘श्री रमेश कुमार.’

इस नाम के साथ बड़ी अप्रिय स्मृतियां जुड़ी हुई थीं. पर क्या ये वही सज्जन हैं? मैं सोचता रहा था और यह कामना करता रहा था कि ये वह न हों. पर यदि वही हुए तो…मैं सोचता और सिहर जाता. पर आज सुबह रमेश साहब ने अपने नए पद का भार ग्रहण कर लिया था. वे पूरे कार्यालय का चक्कर लगा कर अंत में मेरे कमरे में आए. मुझे देखा, पलभर को ठिठके और फिर उन की आंखों में परिचय के दीप जगमगा उठे.

‘‘कहिए सुधीर बाबू, कैसे हैं?’’ उन्होंने मुसकरा कर कहा.

‘‘नमस्कार साहब, आइए,’’ मैं ने चकित हो कर कहा. 10 वर्षों के अंतराल में कितना परिवर्तन आ गया था उन में. व्यक्तित्व कैसा निखर गया था. सांवले रंग में सलोनापन आ गया था. बाल रूखे और गरदन तक कलमें. कत्थई चारखाने का नया कोट. आंखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लग गया था. सकपकाहट के कारण मैं बैठा ही रह गया.

‘‘तुम अभी तक सैक्शन औफिसर ही हो?’’ कुछ क्षण मौन रहने के बाद उन्होंने प्रश्न किया. क्या सचमुच उन के इस प्रश्न में सहानुभूति थी अथवा बदला लेने की अव्यक्त, अपरोक्ष चेतावनी, ‘तो तुम अभी तक सैक्शन औफिसर हो, बच्चू, अब मैं आ गया हूं और देखता हूं, तुम कैसे तरक्की करते हो?’

‘‘सुधीर बाबू, तुम अधिकारी के सामने बैठे हो,’’ निदेशक महोदय के साथ आए प्रशासन अधिकारी के चेतावनीभरे स्वर को सुन कर मैं हड़बड़ा कर खड़ा हो गया. मन भी कैसा विचित्र होता है. चाहे परिस्थितियां बदल जाएं पर अवचेतन मन की सारी व्यवस्था यों ही बनी रहती है. एक समय था जब मैं कुरसी पर बैठा रहता था और रमेश साहब याचक की तरह मेरे सामने खड़े रहते थे.

‘‘कोई बात नहीं, सुधीर बाबू, बैठ जाइए,’’ कह कर वे चले गए. जातेजाते वे एक ऐसी दृष्टि मुझ पर डाल गए थे जिस के सौसौ अर्थ निकल सकते थे.

मैं चिंतित, उद्विग्न और उदास सा बैठा रहा. मेरे सामने मेज पर फाइलों का ढेर लगा था. फोन बजता और बंद हो जाता. पर मैं तो जैसे चेतनाशून्य सा बैठा सोच रहा था. मेरी अस्तित्वरक्षा अब असंभव है. रमेश यों छोड़ने वाला नहीं. इंसान सबकुछ भूल सकता है, पर अपमान के घाव पुर कर भी सदैव टीसते रहते हैं.

पर रमेश मेरे साथ क्या करेगा? शायद मेरा तबादला कर दे. मैं इस के लिए तैयार हूं. यहां तक तो ठीक ही है. इस के अलावा वह प्रत्यक्षरूप से मुझे और कोई हानि नहीं पहुंचा सकता था.

रमेश की नियुक्ति बड़े ही गलत समय पर हुई थी, इस वर्ष मेरी तरक्की होने वाली थी. निदेशक महोदय की विशेष गोपनीय रिपोर्ट पर ही मेरी पदोन्नति निर्भर करती थी. क्या उन अप्रिय घटनाओं के बाद भी रमेश मेरे बारे में अच्छी रिपोर्ट देगा? नहीं, यह असंभव है. मेरा मन बुझ गया. दफ्तर का काम करना मेरे लिए असंभव था. सो, मैं ने तबीयत खराब होने का कारण लिख कर, 2 दिनों की छुट्टी के लिए प्रार्थनापत्र निदेशक महोदय के पास पहुंचवा दिया. 2 दिन घर पर आराम कर के मैं अपनी अगली योजना को अंतिम रूप देना चाहता था. यह तो लगभग निश्चित ही था कि रमेश के अधीन इस कार्यालय में काम करना अपने भविष्य और अपनी सेवा को चौपट करना था. उस जैसा सिद्घांतहीन, झूठा और बेईमान व्यक्ति किसी की खुशहाली और पदोन्नति का माध्यम नहीं बन सकता. और फिर मैं? मुझ से तो उसे बदले चुकाने थे.

मुझे अच्छी तरह याद है. जब आईएएस का रिजल्ट आया था और रमेश का नाम उस में देखा तो मुझे खुशी हुई थी, पर साथ ही, मैं थोड़ा भयभीत हो गया था. रमेश ने पार्टी दी थी पर उस ने मुझे निमंत्रित नहीं किया था. मसूरी अकादमी में प्रशिक्षण के लिए जाते वक्त रमेश मेरे पास आया था. और वितृष्णाभरे स्वर में बोला था, ‘सुधीर, मेरी बस एक ही इच्छा है. किसी तरह मैं तुम्हारा अधिकारी बन कर आ जाऊं. फिर देखना, तुम्हारी कैसी रगड़ाई करता हूं. तुम जिंदगीभर याद रखोगे.’

कैसा था वह क्षण. 10 वर्षों बाद आखिर उस की कामना पूरी हो गई. यों, इस में कोई असंभव बात भी नहीं थी. रमेश मेरा अधिकारी बन कर आ गया था. जीवन में परिश्रम, लगन तथा एकजुट हो कर कुछ करना चाहो तो असंभव भी संभव हो सकता है, रमेश इस की जीतीजागती मिसाल था. वर्ष 1960 में रमेश इस संस्थान में क्लर्क बन कर आया था. मैं उस का अधिकारी था तथा वह मेरा अधीनस्थ कर्मचारी. रोजगार कार्यालय के माध्यम से उस की भरती हुई थी. मैं ने एक ही निगाह में भांप लिया कि यह नवयुवक योग्य है, किंतु कामचोर है. वह महत्त्वाकांओं की पूर्ति के लिए कुछ भी कर सकता है. वह स्नातक था और टाइपिंग में दक्ष. फिर भी वह दफ्तर के काम करने से कतराता था. मैं समझ गया कि यह व्यक्ति केवल क्लर्क नहीं बना रहेगा. सो, शुरू से ही मेरे और उस के बीच एक खाई उत्पन्न हो गई.

मैं अनुशासनपसंद कर्मचारी था, जिस ने क्लर्क से सेवा प्रारंभ कर के विभागीय पदोन्नतियों की विभिन्न सीढि़यां पार की थीं. कोई प्रतियोगी परीक्षा नहीं दी थी.पर रमेश अपने भविष्य की सफलताओं के प्रति इतना आश्वस्त था कि उस ने एक दिन भी मेरी अफसरियत को नहीं स्वीकारा था. वह अकसर दफ्तर देर से आता. मैं उसे टोकता तो वह स्पष्टरूप से तो कुछ नहीं कहता, किंतु अपना क्रोध अपरोक्षरूप  से व्यक्त कर देता. काम नहीं करता या फिर गलत टाइप करता, सीट पर बैठा मोटीमोटी किताबें पढ़ता रहता. खाने की छुट्टी आधे घंटे की होती तो वह 2 घंटे के लिए गायब हो जाता. मैं उस से बहुत नाराज था. पर शायद उसे मेरी चिंता नहीं थी. सो, वह मनमानी किए जाता. उस ने मुझे कभी भी गंभीरता से नहीं लिया.

एक दिन मैं ने दफ्तर के बाद रमेश को रोक लिया. सब लोग चले गए. केवल हम दोनों रह गए. मैं ने सोचा था कि मैं उसे एकांत में समझाऊंगा. शायद उस की समझ में आ जाए कि काम कितना अहम होता है. ‘रमेश, आखिर तुम यह सब क्यों करते हो?’ मैं ने स्नेहसिक्त, संयत स्वर में कहा था. ‘क्या करता हूं?’ उस ने उखड़ कर कहा था.

‘तुम दफ्तर देर से आते हो.’

‘आप को पता है, दिल्ली की बस व्यवस्था कितनी गंदी है.’

‘और लोग भी तो हैं जो वक्त से पहुंच जाते हैं.’

‘उस से क्या होता है. अगर मैं देर से आता हूं तो

2 घंटे का काम आधे घंटे में निबटा भी तो देता हूं.’

‘रमेश दफ्तर का अनुशासन भी कुछ होता है. यह कोई तर्क नहीं है. फिर, मैं तुम से सहमत नहीं कि तुम 2 घंटे का काम…’

‘मुझे बहस करने की आदत नहीं,’ कह कर वह अचानक उठा और कमरे से बाहर चला गया. मैं अपमानित सा, तिलमिला कर रह गया. रमेश के व्यवहार में कोई विशेष अंतर नहीं आया. अब वह खुलेआम दफ्तर में मोटीमोटी किताबें पढ़ता रहता था. काम की उसे कोई चिंता नहीं थी.एक दिन मैं ने उसे फिर समझाया, ‘रमेश, तुम दफ्तर के समय में किताबें मत पढ़ा करो.’

‘क्यों?’

‘इसलिए, कि यह गलत है. तुम्हारा काम अधूरा रहता है और अन्य कर्मचारियों पर बुरा असर पड़ता है.’

‘सुधीर बाबू, मैं आप को एक सूचना देना चाहता हूं.’

‘वह क्या?’

‘मैं इस वर्ष आईएएस की परीक्षा दे रहा हूं.’

‘तो क्या तुम्हारी उम्र 24 वर्ष से कम है?’

‘हां, और विभागीय नियमों के अनुसार मैं इस परीक्षा में बैठ सकता हूं.’

‘फिर तुम ने यह नौकरी क्यों की? घर बैठ कर…’

‘आप की दूसरों के व्यक्तिगत जीवन में टांग अड़ाने की बुरी आदत है,’ उस ने कह तो दिया फिर पलभर सोचने के बाद वह बोला, ‘सुधीर बाबू, यों आप ठीक कह रहे हैं. मजा तो तभी है जब एकाग्रचित्त हो यह परीक्षा दी जाए. पर क्या करूं, घर की आर्थिक परिस्थितियों ने मजबूर कर दिया.’

‘पर रमेश, यह बौद्धिक तथा नैतिक बेईमानी है. तुम इस कार्यालय में नौकरी करते हो. तुम्हें वेतन मिलता है. किंतु उस के प्रतिरूप उतना काम नहीं करते. तुम अपने स्वार्थ की सिद्धि में लगे हुए हो.’

‘जितने भी डिपार्टमैंटल खूसट मिलते हैं, सब को भाषण देने की बीमारी होती है.’

मैं ने तिलमिला कर कहा था, ‘रमेश, तुम में बिलकुल तमीज नहीं है.’

‘आप सिखा दीजिए न,’ उस ने मुसकरा कर कहा था.

मेरी क्रोधाग्नि में जैसे घी पड़ गया. ‘मैं तुम्हें निकाल दूंगा.’

‘यही तो आप नहीं कर सकते.’

‘तुम मुझे उकसा रहे हो.’

‘सुधीर बाबू, सरकारी सेवा में यही तो सुरक्षा है. एक बार बस घुस जाओ…’

मैं ने आगे बहस करना उचित नहीं समझा. मैं अपने को संयत और शांत करने का प्रयास कर रहा था कि रमेश ने एक और अप्रत्याशित स्थिति में मुझे डाल दिया.

‘सुधीर बाबू, मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूं.’

‘पूछो.’

‘आखिर तुम अपने काम को इतनी ईमानदारी से क्यों करते हो?’

‘क्या मतलब?’

‘सरकार एक अमूर्त्त चीज है. उस के लिए क्यों जानमारी करते हो, जिस का कोई अस्तित्व नहीं, उस की खातिर मुझ जैसे हाड़मांस के व्यक्ति से टक्कर लेते रहते हो. आखिर क्यों?’

‘रमेश, तुम नमकहराम और नमकहलाल का अंतर समझते हो?’

‘बड़े अडि़यल किस्म के आदमी हैं, आप,’ रमेश ने मुसकरा कर कहा था.

‘तुम जरूरत से ज्यादा मुंहफट हो गए हो, मैं…’ मैं ने अपने वाक्य को अधूरा छोड़ कर उसे पर्याप्त धमकीभरा बना दिया था.

‘मैं…मैं…क्या करते हो? मैं जानता हूं, आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते.’

बस, गाड़ी यों ही चलती रही. रमेश के कार्यकलापों में कोई अंतर नहीं आया. पर मैं ने एक बात नोट की थी कि धीरेधीरे उस का मेरे प्रति व्यवहार पहले की अपेक्षा कहीं अधिक शालीन, संयत और अनुशासित हो चुका था. क्यों? इस का पता मुझे बाद में लगा.

रमेश की परक्षाएं समीप आ गईं. एक दिन वह सुबह ढाई महीने की छुट्टी लेने की अरजी ले कर आया. अरजी को मेरे सामने रख कर, वह मेरी मेज से सट कर खड़ा रहा.

अरजी पर उचटी नजर डाल कर मैं ने कहा, ‘तुम्हें नौकरी करते हुए केवल 8 महीने हुए हैं, 8-10 दिन की छुट्टी बाकी होगी तुम्हारी. यह ढाई महीने की छुट्टी कैसे मिलेगी?’

‘लीव नौट ड्यू दे दीजिए.’

‘यह कैसे मिल सकती है? मैं कैसे प्रमाणपत्र दे सकता हूं कि तुम इसी दफ्तर में काम करते रहोगे और इतनी छुट्टी अर्जित कर लोगे.’

‘सुधीर बाबू, मेरे ऊपर आप की बड़ी कृपा होगी.’

‘आप बिना वेतन के छुट्टी ले सकते हैं.’

‘उस के लिए मुझे आप की अनुमति की जरूरत नहीं. क्या आप अनौपचारिक रूप से यह छुट्टी नहीं दे सकते?’

‘क्या मतलब?’

‘मेरा मतलब साफ है.’

‘रमेश, तुम इस सीमा तक जा कर बेईमानी और सिद्धांतहीनता की बात करोगे, इस की मैं ने कल्पना भी नहीं की थी. यह तो सरासर चोरी है. बिना काम किए, बिना दफ्तर आए तुम वेतन चाहते हो.’

‘सब चलता है, सुधीर बाबू.’

‘तुम आईएएस बन गए तो क्या विनाशलीला करोगे, इस की कल्पना मैं अभी से कर सकता हूं.’

‘मैं आप को देख लूंगा.’

‘‘सुधीर बाबू, आप को साहब याद कर रहे हैं,’’ निदेशक महोदय के चपरासी की आवाज सुन कर मेरी चेतना लौट आई भयावह स्मृतियों का क्रम भंग हो गया.

मैं उठा. मरी हुई चाल से, करीब घिसटता हुआ सा, मैं निदेशक के कमरे की ओर चल पड़ा. आगेआगे चपरासी, पीछेपीछे मैं, एकदम बलि को ले जाने वाले निरीह पशु जैसा. परिस्थितियों का कैसा विचित्र और असंगत षड्यंत्र था.

रमेश की मनोकामना पूरी हो गई थी. वर्ष पूर्व उस ने प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो कर जो कुछ कहा था, उसे पूरा करने का अवसर उसे मिल चुका था. उस जैसा स्वार्थी, महत्त्वाकांक्षी, सिद्धांतहीन और निर्लज्ज व्यक्ति कुछ भी कर सकता है.

चपरासी ने कमरे का दरवाजा खोला. मैं अंदर चला गया. गरदन झुकाए और निर्जीव चाल से मैं उस की चमचमाती, बड़ी मेज के समीप पहुंच गया.

‘‘आइए, सुधीर बाबू.’’

मैं ने गरदन उठाई, देखा, रमेश अपनी कुरसी से उठ खड़ा हुआ है और उस ने अपना दायां हाथ आगे बढ़ा दिया है, मुझ से हाथ मिलाने के लिए.

मैं ने हाथ मिलाया तो मुझे लगा कि यह सब नाटक है. बलि से पूर्व पशु का शृंगार किया जा रहा है.

‘‘सुधीर बाबू, बैठिए न.’’

मैं बैठ गया. सिकुड़ा और सिहरा हुआ सा.

‘‘क्या बात है? आप की तबीयत खराब है?’’

‘‘हां…नहीं…यों,’’ मैं सकपका गया.

‘‘इस अरजी में तो…’’

‘‘यों ही, कुछ अस्वस्थता सी महसूस हो रही थी.’’

‘‘आप कुछ परेशान और घबराए हुए से लग रहे हैं.’’

‘‘हां, नहीं तो…’’

अचानक, कमरे में एक जोर का अट्टहास गूंज गया.

मैं ने अचकचा कर दृष्टि उठाई. रमेश अपनी गुदगुदी घूमने वाली कुरसी में धंसा हुआ हंस रहा था.

‘‘क्या लेंगे, सुधीर बाबू, कौफी या चाय?’’

‘‘कुछ नहीं, धन्यवाद.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ कह कर रमेश ने सहायिका को 2 कौफी अंदर भेजने का आदेश दे दिया.

कुछ देर तक कमरे में आशंकाभरा मौन छाया रहा. फिर अनायास, बिना किसी संदर्भ के, रमेश ने हा, ‘‘10 वर्ष काफी होते हैं.’’

‘‘किसलिए?’

‘‘किसी को भी परिपक्व होने के लिए.’’

‘‘मैं समझा नहीं, आप क्या कहना चाहते हैं.’’

‘‘10-12 वर्षों के बाद इस दफ्तर में आया हू. देखता हूं, आप के अलावा सब नए लोग हैं.’’

‘‘जी.’

‘‘आखिर इतने लंबे अरसे से आप उसी पद पर बने हुए हैं. तरक्की का कोई मौका नहीं मिला.’’

‘‘इस साल तरक्की होने वाली है. आप की रिपोर्ट पर ही सबकुछ निर्भर करेगा, सर,’’ न जाने किस शक्ति से प्रेरित हो, मैं यंत्रवत कह गया.

रमेश सीधा मेरी आंखों में झांक रहा था, मानो कुछ तोल रहा हो. मैं पछता रहा था. मुझे यह सब नहीं कहना चाहिए था. अब तो इस व्यक्ति को यह अवसर मिल गया है कि वह…

तभी चपरासी कौफी के 2 प्याले ले आया.

‘‘लीजिए, कौफी पीजिए.’

मैं ने कौफी का प्याला उठा कर होंठों से लगाया तो महसूस हुआ जैसे मैं मीरा हूं, रमेश राणा और प्याले में काफी नहीं, विष है.

‘‘सुधीर बाबू, आप की तरक्की होगी. दुनिया की कोईर् ताकत एक ईमानदार, परिश्रमी, नमकहलाल, अनुशासनप्रिय कर्मचारी की पदोन्नति को नहीं रोक सकती.’’ मैं अविश्वासपूर्वक रमेश की ओर देख रहा था. विष का प्याला मीठी कौफी में बदलने लगा था.

‘‘मैं आप की ऐसी असाधारण और विलक्षण रिपोर्ट दूंगा कि…’’

‘‘आप सच कह रहे हैं?’’

‘‘सुधीर बाबू, शायद आप बीते दिनों को याद कर के परेशान हो रहे हैं. छोडि़ए, उन बातों को. 10-12 वर्षों में इंसान काफी परिपक्व हो जाता है. तब मैं एक विवेकहीन, त्तरदायित्वहीन, उच्छृंखल नवयुवक, अधीनस्थ कर्मचारी था और अब मैं विवेकशील, उत्तरदायित्वपूर्ण अधिकारी हूं और समझ सकता हूं कि… तब और अब का अंतर?’’ हां, एक सुपरवाइजर के रूप में आप कितने ठीक थे, इस सत्य का उद्घाटन तो उसी दिन हो गया था, जब मैं पहली बार सुपरवाइजर बना था.’’ रमेश ने मेरी छुट्टी की अरजी मेरी ओर सरका दी और बोला, ‘‘अब इस की जरूरत तो नहीं है.’’

मैं ने अरजी फाड़ दी. फिर खड़े हो कर मैं विनम्र स्वर में बोला, ‘‘धन्यवाद, सर, मैं आप का बहुत आभारी हूं. आप महान हैं.’’

और रमेश के होंठों पर विजयी व गर्वभरी मुसकान बिछ गई.

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