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शहनाज गिल ने यू मनाया अपना बर्थ डे, जानें उनसे जुड़ी कुछ खास बात

कहते हैं किसी की किस्मत में अगर आगे बढ़ना लिखा हो तो वह बढ़ ही जाता है, कुछ ऐसा ही हुआ है शहनाज गिल के साथ भी . एक छोटे से गांव की रहने वाली शहनाज गिल ने हमेशा से सपने बड़े देखे थें,

इन दिनों सबकी दिल की धड़कन बन चुकी शहनाज गिल पंजाबी म्यूजिक से अपने कैरियर की शुरुआत की थी, शहनाज गिल का आज पूरा देश फैन बन चुका है. वह अपने चुलबुले अंदाज से लेकर अपनी खूबसूरती तक से लोगों के दिलों पर राज करती हैं.

 

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आज शहनाज गिल अपना जन्मदिन मना रही हैं, तो आइए जानते हैं कि शहनाज ने कैसे किया था अपने सफर कि शुरुआत. छोटी उम्र से ही वह एक्टिंग कि दुनिया में कदम रख दी थीं, जिसके बाद उन्हें पंजाबी म्यूजिक में काम करने का मौका मिलने लगा था. म्यूजिक एलबम में काम करने के बाद से शहनाज को लोग पंजाब की कैटरीना कहकर बुलाने लगे थें.

शहनाज ने पंजाब के लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है, उसके बाद शहनाज को बिग बॉस 13 में काम करने का मौका मिला था, जहां शहनाज को सिद्धार्थ शुक्ला जैसा प्यारा दोस्त मिला था, शहनाज अपने दोस्त के साथ काफी खुश थी, उसे हमसफर भी बनाना चाहती थी, लेकिन  एक झटकें में उसकी पूरी जिंदगी बदल गई.

Bigg Boss 16 : फराह खान ने लाइव शो में टीना दत्ता की लगाई जमकर क्लास

बिग बॉस 16 अपने आखिरी पड़ाव पर है और वह जल्द ही अपना विनर घोषित करने वाला है, लेकिन हर दिन नए-नए टॉस्क को लेकर कंटेस्टेंट के बीच जमकर लड़ाई होती नजर आ रही है. वहीं इस हफ्ते सलमान खान के बदले फराह खान शो को होस्ट करती नजर आई.

फराह टीना औऱ प्रियंका की जमकर क्लास लगाती नजर क्योंकि उन्होंने शालीन भनोट का खूब मजाक बनाया था. वहीं जब फराह टीना की फटकार लगानी शुरू कर दी तो टीना बीच में बोलना शुरू कर दी जिससे नाराज होकर फराह वापस चली जाती हैं.

 

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फराह कहती हैं कि आप लोगों को टीना से सिखना चाहिए कि कैसे किसी को यूज करो और फिर टीशू पेपर की तरह फेंक दें. टीना का दांत टूटना इतना सीरियस हो गया कि इनको घर से बाहर जाना है और शालीन वहां पर नाइटमेयर की तरह तड़प रहा है.

आगे फराह कहती हैं कि जो प्रियंका  सच्चाई कर रही है वह अब बबल क्यों बन रही है. अब तो प्रियंका में भी एटिट्यूड देखने को मिल रहा है, जिसमें टीना बीच में बोलना बंद नहीं करती हैं जिसके बाद से फराह कहती हैं कि बीच में बोलना ठीक नहीं है टीना ऐसे में वह शो को छोड़कर चली जाती हैं.

फराह आखिरी में कहती है कि तुम सुन रही हो या मैं जाऊं. इतना एटीट्यूड अच्छा नहीं है, जिसके बाद से वह चली जाती है.

लंबी बीमारी: मन पर पड़ता बुरा असर

गंभीर बीमारी से मानसिक तनाव या स्ट्रैस का पैदा होना स्वाभाविक है. यह तनाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर हमेशा नकारात्मक प्रभाव डालता है और गंभीर बीमारियां तनाव के कारण और ज्यादा गंभीर हो जाती हैं. यही नहीं, तनाव के कारण मौजूदा बीमारी के साथ दूसरी बीमारियां भी पैदा हो जाती हैं.

लंबी और गंभीर बीमारियां निश्चित तौर पर मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं. कैंसर, कोरोनरी हार्ट डिजीज, डायबिटीज, मिर्गी, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, स्ट्रोक, अल्जाइमर रोग, एड्स, पार्किंसन डिजीज, सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस, रूमेटाइड आर्थ्राइटिस आदि ऐसी बीमारियां हैं जो एक बार हो जाएं तो आजीवन साथ बनी रहती हैं.

पूरे जीवन इन का इलाज चलता है और पीडि़त व्यक्ति को दवाओं, टैस्ट के अतिरिक्त अन्य कई मैडिकल ट्रीटमैंट्स से गुजरना पड़ता है. जो बेहद कष्टकारी होता है. इन बीमारियों के चलते मानसिक तनाव के साथसाथ बड़ी आर्थिक दिक्कतें भी पैदा हो जाती हैं. लंबी और गंभीर बीमारी अकेले नहीं आती, बल्कि अपने साथ और बीमारियों को ले कर आती है जिन में सब से पहला है अवसाद यानी डिप्रैशन.

सुशील 30 साल का तंदुरुस्त हंसताखेलता नौजवान बीते 2 सालों में जैसे 50 साल का बुजुर्ग नजर आने लगा है. वजह है कैंसर. सुशील को मुंह और गले का कैंसर है. 2 साल में उस की

3 बार सर्जरी हो चुकी है. मुंह और गले का अधिकांश कैंसरग्रस्त हिस्सा काट कर हटाया जा चुका है. 3 सिटिंग्स कीमोथेरैपी हो चुकी है. कैंसर का पता चलने के बाद से ही सुशील मानसिक रूप से परेशान रहने लगा. हर वक्त चिंता और तनाव में घिर गया. उस का इलाज कैसे होगा, कितना पैसा लग जाएगा, हर औपरेशन से पहले सोचता कि पता नहीं बचूंगा या नहीं, मेरे बाद मेरे बीवीबच्चों को कौन संभालेगा, बूढ़े मांबाप को कौन देखेगा.

3 सर्जरियों और कीमोथेरैपी के बाद सुशील का शरीर जर्जर हो गया है. सिर के बाल कीमो की वजह से उड़ गए जो अब वापस तो आए हैं मगर बहुत कम संख्या में. चेहरे और गरदन के हिस्से से मांस निकाल दिए जाने के कारण शरीर एक ओर को ?ाक गया है. मुंह में एक तरफ का जबड़ा हटा दिया गया है, इस वजह से अब वह कोई सख्त चीज नहीं खा पाता है. जबान की स्वाद ग्रंथियां कीमोथेरैपी की वजह से खत्म हो गई हैं, इसलिए उसे अब खाने के स्वाद का भी पता नहीं चलता है. इन सभी कारणों से उस का खानापीना कम हो गया है. सिर्फ लिक्विड या सैमी लिक्विड खाने से शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है. जिस के चलते एक हृष्टपुष्ट व्यक्ति से जर्जर काया में परिवर्तित हो चुके सुशील को हर वक्त तनाव घेरे रहता है. वह सोचता रहता है कि पता नहीं कितनी जिंदगी बची है.

इस चिंता ने सुशील को अवसादग्रस्त कर दिया है. तनाव का असर उस के लिवर और किडनी पर भी पड़ा है. वह कैंसर ट्रीटमैंट के साथ लिवर और किडनी से संबंधित दवाएं भी खा रहा है. उस के चेहरे से हंसी गायब हो चुकी है. शायद ही किसी ने उसे मुसकराते हुए देखा हो. उसे हर समय पैसों की चिंता लगी रहती है. बीमारी की हालत में उस के फैक्ट्री वालों ने उस की कुछ मदद की. मालिक ने उसे काम से नहीं निकाला पर अब वह मुश्किल से तीनचार घंटे ही काम कर पाता है.

कमजोरी की वजह से वह मशीन पर ज्यादा देर बैठ नहीं पाता. उस की पत्नी उस से ज्यादा परेशान रहती है. ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं है तो किसी दफ्तर में काम नहीं कर सकती. उस ने कुछ घरों का खाना बनाने का काम ले लिया है जिस से बहुत कम आमदनी होती है. सुशील की दवा पर काफी पैसा खर्च हो जाता है. ऐसे में 2 बच्चों और बूढ़े मातापिता का पेट भरना दोनों के लिए मुश्किल होता जा रहा है. रिश्तेदारों से जो कर्ज लिया है, परिवार उस का सूद भी नहीं चुका पाता है. तनाव और असमंजस की जिंदगी ने सुशील को ही नहीं, बल्कि उस की पत्नी को भी मानसिक रोगी बना दिया है.

देविका चौधरी 65 वर्षीया हैं. उन को बीते 20 सालों से मधुमेह है. जवानी के दिनों में देविका बहुत ऊर्जावान महिला थीं. मगर मधुमेह ने उन के शरीर को जकड़ा तो उन की सारी ऊर्जा खत्म हो गई. मधुमेह अकेला नहीं आया, बल्कि अपने साथ हाई ब्लडप्रैशर भी लाया. पहले वे बीपी और शुगर की दवाएं लेती रहीं मगर अब मधुमेह को कंट्रोल करने के लिए डाक्टर ने रैगुलर इंसुलिन के इंजैक्शन लेने की सलाह दी है.

मधुमेह के प्रभाव से उन का लिवर भी क्षतिग्रस्त हो गया है. देविका चौधरी का सिर्फ 25 फीसदी लिवर ही काम करता है. लिहाजा, खाना ठीक से नहीं पचता और एसिडिटी व जलन की शिकायत पूरे समय बनी रहती है. साथ ही, आर्थ्राइटिस की शिकायत हो गई है. घुटनों में दर्द रहता है.

शरीर की नसों में तनाव के कारण चलनेफिरने में तकलीफ होती है. आज देविका चौधरी खाने से ज्यादा दवाएं खाती हैं. इतनी दवाइयां देख कर उन्हें घबराहट होती है. अपनी हालत पर कभीकभी वे फूटफूट कर रोने लगती हैं. यह उन के डिप्रैशन को जाहिर करता है. किसी लंबी बीमारी के साथ रहना शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से चुनौतीपूर्ण होता है, इसलिए पुरानी बीमारियों और डिप्रैशन का एकसाथ होना आश्चर्यजनक नहीं है.

बीमारी से तंग आ कर खुदकुशी की सोच

11 जुलाई, 2022 को सोनभद्र की दलित बस्ती में 45 वर्षीय मुकेश भारती ने फांसी लगा कर आत्महत्या कर ली. मुकेश टीबी का मरीज था और लंबे समय से दवाएं खा रहा था. टीबी की बीमारी के चलते वह अपने परिवार के सदस्यों से दूरी रखता था. अलग कमरे में रहता था और उस के बरतनखाना सब अलग था. परिवार वालों को यह आभास तक नहीं हुआ कि इस अकेलेपन, बीमारी और दवाओं के मकड़जाल में मुकेश कब इतना डिप्रैशन में चला गया कि उस ने खुदकुशी करने का फैसला कर लिया.

10 फरवरी, 2022 की घटना है जब आजमगढ़ में पवई थाना क्षेत्र के सुमहाडीह गांव का रहने वाला 35 वर्षीय रमेश कुमार शर्मा ने अपनी लंबी बीमारी के चलते जहर खा कर आत्महत्या कर ली. रमेश के पौकेट से पुलिस ने सुसाइड नोट बरामद किया. उस में युवक ने लिखा है, ‘‘मैं कई बीमारियों से ग्रसित रहने के कारण तंग आ कर जहर खा कर आत्महत्या कर रहा हूं. इस में परिजनों का कोई दोष नहीं है. मैं अपनी पत्नी रानी और बेटे अंशुमन से बहुत प्यार करता हूं. आत्महत्या करते हुए मुझे बहुत दुख हो रहा है.’’

4 साल पहले मधेपुरा के शाह मोहम्मद तनवीर अहमद ने भी सिर में गोली मार कर खुद को खत्म कर लिया. अपने सुसाइड नोट में उस ने एसपी को लिखा, ‘‘मैं शाह मोहम्मद तनवीर अहमद, मधेपुरा की अजहर कालोनी, वार्ड नंबर 12 का निवासी हूं. मेरा कैंसर का औपरेशन 2005 में हुआ था. उस के बाद मैं हमेशा बीमार रहता हूं. औपरेशन के कारण मु?ो बहुत सारी और भी बीमारियां हो गई हैं. थायराइड, शुगर, कोलैस्ट्रौल इत्यादि. दिनभर दवा खाता रहता हूं. दवा खातेखाते थक चुका हूं. अब मु?ो और जीने की इच्छा नहीं है. दिनभर बेचैनी और दिल घबराता रहता है. मेरे पास आत्महत्या के सिवा कोई रास्ता नहीं है. मेरी मौत का दूसरा कोई जिम्मेदार नहीं होगा.’’

ये घटनाएं बताती हैं कि जीवनपर्यंत चलने वाली बीमारियां व्यक्ति को कितनी मानसिक वेदना और तनाव से भर देती हैं. खानेपीने की स्वतंत्रता छिन जाने से, दवाओं के मकड़जाल में फंस कर आदमी इतना अवसादग्रस्त हो जाता है कि उस की जीने तक की इच्छा खत्म हो जाती है.

बीमारी के चलते उत्पन्न मानसिक तनाव या स्ट्रैस हर किसी के लिए अलग होता है. एक व्यक्ति को जिस वजह से तनाव होता है, जरूरी नहीं कि दूसरे को भी वैसा ही तनाव हो. लेकिन तनाव मनुष्य के स्वास्थ्य पर हमेशा नकारात्मक प्रभाव डालता है और गंभीर बीमारियां तनाव के कारण और ज्यादा गंभीर हो जाती हैं. यही नहीं, तनाव के कारण एक बीमारी के साथ अन्य दूसरी बीमारियां भी पैदा हो जाती हैं.

दीर्घकालिक बीमारी से पीडि़त ज्यादातर लोग डिप्रैशन से पीडि़त होते हैं. मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं बीमारी को बढ़ा कर जान को खतरे में डाल सकती हैं. एक अध्ययन में पाया गया है कि जो लोग एक क्रौनिक शारीरिक बीमारी और मानसिक बीमारी दोनों से पीडि़त होते हैं उन में पिछली या अन्य बीमारी से पीडि़त लोगों की तुलना में दोनों बीमारियों के अधिक गंभीर लक्षण होते हैं. पुरानी बीमारी के साथ रहना शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से चुनौतीपूर्ण होता है, इसलिए पुरानी बीमारियों और डिप्रैशन के बीच अन्य गंभीर बीमारियों का होना यानी कोमोरबिडिटी की शुरुआत हो जाना आश्चर्यजनक नहीं है.

कोमोरबिडिटी

एक या अधिक बीमारियों का एकसाथ होना कोमोरबिडिटी कहलाता है. भारत सरकार ने 20 बीमारियों को कोमोरबिडिटी की लिस्ट में रखा है. कोमोरबिडिटी से मतलब है कि एक ऐसा व्यक्ति जो एक ही समय पर एक से अधिक गंभीर बीमारी का शिकार हो. अगर किसी व्यक्ति को डायबिटीज और हाइपरटैंशन जैसी 2 गंभीर बीमारियां एक ही समय पर हैं तो उसे कोमोरबिडिटी माना जाएगा.

कोमोरबिडिटी में सिर्फ गंभीर बीमारियों को ही गिना जाता है. इस में ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, कैंसर, अस्थमा, फेफड़ों की बीमारी, हार्ट संबंधी रोग और पेट के गंभीर रोग हो सकते हैं. जो लोग कोमोरबिडिटी के शिकार होते हैं उन की इम्युनिटी कमजोर होती है जिस के चलते वे जल्दी वायरस या मौसमी बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को अपनी सेहत का खास खयाल रखना पड़ता है और नियमित समय पर टैस्ट और चैकअप के लिए डाक्टर्स के पास जाना पड़ता है. जाहिर है इस में पैसा भी खूब खर्च होता है.

क्रौनिक या लाइफलिमिटिंग यानी लाइलाज बीमारी के लक्षण होने के बाद परेशान होना सामान्य है. ऐसे में जिंदगी की नई सीमाएं तय होने लगती हैं. खानेपीने पर प्रतिबंध शुरू हो जाता है. इच्छित चीजों से दूर होना पड़ता है. शारीरिक रूप से क्या काम करें, क्या न करें इस का निर्धारण करना पड़ता है जो निश्चित रूप से मानसिक तकलीफ देता है और आप अपने इलाज या भविष्य के बारे में सोच कर घबराहट महसूस कर सकते हैं.

वर्तमान में, अमेरिका में 10 में से 6 लोग किसी दीर्घकालिक या क्रौनिक बीमारी से पीडि़त हैं और नैशनल इंस्टिट्यूट औफ मैंटल हैल्थ के अनुसार जो लोग इन बीमारियों से पीडि़त हैं उन के लिए मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है.

क्या करें

यदि आप की मानसिक सेहत आप की बीमारी की वजह से प्रभावित हो रही है तो मदद लेना महत्त्वपूर्ण हो जाता है. अपने मानसिक स्वास्थ्य का इलाज करने से आप के दैनिक जीवन में सुधार हो सकता है और आप को शारीरिक बीमारी का सामना करने में मदद मिल सकती है.

डरें नहीं

जब आप को पता चले कि आप किसी ऐसी बीमारी के शिकार हो गए हैं जो अब जीवनपर्यंत साथ चलेगी तो इस से डरें नहीं, बल्कि इसे एक चुनौती की तरह लें. यह एक कटु सत्य है कि जीवन एक न एक दिन समाप्त होना ही है तो जितने दिन भी जीवन है उसे पूरी गर्मजोशी से जिएं. आप की बीमारी के लिए डाक्टर आप को दवा देंगे, हो सकता है आप की बीमारी ठीक हो जाए, न ठीक हो सके तो दवाओं से वह नियंत्रण में रहेगी. लेकिन अगर आप डर गए और आप ने तनाव को बढ़ने दिया तो एक बीमारी के साथ कई अन्य बीमारियां आप को जकड़ लेंगी. इस से आप को दी जाने वाली दवाओं और इंजैक्शन की संख्या में बढ़ोतरी हो जाएगी. साथ ही खानेपीने की कई चीजों पर प्रतिबंध लग जाएगा.

जीवन में परिवर्तन लाएं

बीमारी का पता लगने से पहले जिस तरह की दिनचर्या चल रही थी, उसे थोड़ा बदल दें. सुबह की शुरुआत फ्रैश हवा में टहलने से करें. लंबी सांसें फेफड़ों में

भरें और छोड़ें, इस से पूरे शरीर की कोशिकाओं में औक्सीजन पहुंचेगी. अच्छे विचारों को ग्रहण करें. कौमेडी फिल्में देखें. हिंसा, तनाव और रोनेधोने वाली पारिवारिक फिल्मों से किनारा कर लें. उन दोस्तों से मिलें जो खुशदिल हों और आप को भी खुश रखते हों.

उन लोगों से दूर हो जाएं जो सिर्फ नकारात्मक बातें करते हैं या आप की बीमारी पर अफसोस जाहिर करते रहते हैं या अपनी बीमारियों या अभावों का रोना रोते रहते हों. घर वालों के साथ हर वक्त अपनी बीमारी की चर्चा न करें. अपनी बीमारी का न खुद तनाव लें और न घर वालों को दें. स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही छोड़ कर डाक्टर की सलाह के अनुसार समय से दवा और खाना खाएं. अगर नशीली चीजों का सेवन करते हों तो वह तुरंत त्याग दें. कौफी या चाय भी कम से कम पिएं.

हैल्दी खाएं

फास्ट फूड, जैसे बर्गर, पिज्जा आदि से खुद को दूर करें. बाजार के बने पकवान, जैसे मिठाइयां, नमकीन, छोलेभठूरे का भी त्याग करें. कोल्ड ड्रिंक और शराब के सेवन से भी दूर रहें. बीमारी के बावजूद अगर आप स्वस्थ और ऊर्जावान रहना चाहते हैं तो घर पर बना सादा खाना ही सर्वोत्तम है. हरी सब्जियां, सलाद, दाल, दूध आदि का सेवन करें. हलका सुपाच्य भोजन ही शरीर को तंदुरुस्त रखता है. चटोरी जबान के बहकावे में आ कर अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ न करें.

ऐक्सरसाइज करें

गंभीर बीमारी के इलाज के साथसाथ हलकी ऐक्सरसाइज और सुबहशाम का टहलना आप को महसूस ही नहीं होने देगा कि आप बीमार हैं. आप का शरीर जितना ऐक्टिव रहेगा, बीमारी का महसूस होना उतना ही कम होगा. इस से दवाओं की मात्रा भी कम की जा सकती है. लेकिन अगर बीमारी से डर कर आप ने बिस्तर पकड़ लिया तो आप का शरीर कई गंभीर बीमारियों का घर बन जाएगा और दवाओं की मात्रा बढ़ती चली जाएगी.

डाक्टर से परामर्श लें

शुगर, हार्ट डिजीज, बीपी आदि के मरीज समयसमय पर डाक्टर से अपना चैकअप जरूर करवाते रहें. समय पर सभी टैस्ट करवाएं. सही खानपान, ऐक्सरसाइज, आशावादिता, नियमित दवा के सेवन से कई बार डाक्टर दवाओं की मात्रा काफी कम कर देते हैं. सूर्यभान सिंह को जब हार्ट अटैक पड़ा था तब डाक्टर ने बंद धमनी को खोलने के लिए एक स्टंट डाला था. एक अन्य धमनिका को उन्होंने दवाओं द्वारा खोला.

शुरू के एक साल तक सूर्यभान सिंह ने काफी दवाइयां खाईं मगर स्वस्थ खानपान और सकारात्मक जीवनचर्या के चलते उन की दवाओं की मात्रा अब आधी से भी कम हो गई है. इसी तरह शुगर के जो मरीज अपनी दिनचर्या को ठीक रखते हैं, देखा गया है कि उन के इंसुलिन लेने की मात्रा में डाक्टर कमी कर देते हैं या जो लोग दवा ले रहे हैं उस की मात्रा भी कम कर दी जाती है.

घूमने जाएं

गंभीर बीमारी हो जाने का यह मतलब नहीं है कि आप घर में बंद हो जाएं और बीमारी का मातम मनाते रहें. खुश रहें और परिवार के साथ हर पल को एंजौय करें. छुट्टियों में बीवीबच्चों के साथ घूमने जाएं, दोस्तों के साथ पिकनिक मनाएं, हिल स्टेशन की सैर करें, शौपिंग करें, लौंग ड्राइव पर जाएं, फिल्म देखें, पार्टी करें. ये सब चीजें जीवन में उत्साह का संचार करती हैं.

अपने पसंदीदा काम करें

घरपरिवार, बच्चों की देखभाल और भागदौड़भरी जिंदगी में कई बार हमारे पसंदीदा काम या हौबीज बहुत पीछे छूट जाते हैं. उन्हें फिर से शुरू करें. आप उन में जो खुशी पाएंगे वह आप की बीमारी को कंट्रोल करने में बहुत मददगार होगी.

लखनऊ के रहने वाले 55 वर्षीय संजय गुप्ता को जब फेफड़ों की बीमारी हुई तो वे बड़े हताश हो गए. जरा सा चलने पर या काम करने पर उन की सांस धौंकनी की तरह चलने लगती थी. लिहाजा उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले ली और घर में बंद हो गए. घर के लोग भी उन की उदासी देख कर उदास रहने लगे.

एक दिन उन की बचपन की एक सहेली उन का हालचाल लेने आई तो उस ने गोदाम में रखा उन का हारमोनियम निकलवाया. ?ाड़पोंछ कर उन के सामने रख दिया और बोली, ‘‘लगाओ सुर.’’

संजय उदास स्वर में बोले, ‘‘फेफड़े की बीमारी है, अब क्या सुर लगेगा.’’

मगर सहेली के इसरार करने पर उन्होंने अपने पसंदीदा गाने की कुछ पंक्तियां सुनाईं. सहेली ने भी गाने में साथ दिया. एक वक्त था जब संजय अपने कालेज में एक अच्छे सिंगर के रूप में जाने जाते थे. फिर समय के साथ गाना छूट गया. उस दिन सहेली द्वारा पुरानी यादें ताजा हुईं. संजय को भी बहुत अच्छा लगा. उन की पत्नी के चेहरे पर भी काफी समय बाद मुसकान आई.

रिश्तेदारों से मिलेंजुलें

गंभीर बीमारी होने का यह मतलब नहीं है कि आप दुनिया से कट जाएं. ऐसा करने पर आप बिलकुल अकेले हो जाएंगे और हर वक्त अपनी बीमारी व परेशानी के बारे में ही सोचते रहेंगे. इस से सिर्फ तनाव बढ़ेगा जो अन्य बीमारियों को न्योता देगा. सही खानपान, वर्जिश और दवा के साथसाथ अपनी मानसिक सेहत के लिए दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलतेजुलते रहें. हंसीठट्ठा करें. उन के दुखसुख में भागीदार बनें.

अकेले न रहें

गंभीर बीमारी से पीडि़त कभी भी अकेले न रहें. इस के लिए बीमार व्यक्ति के परिवार वालों को भी ध्यान रखना होगा. बीमार को अकेला छोड़ने का मतलब है उस को बीमारी की तरफ और तेजी से धक्का देना. इसलिए सब साथ में रहें और अपने मन की बात शेयर करें.

सकारात्मक रहें

मृत्यु पर किसी का वश नहीं है. वह आज भी आ सकती है और सालों बाद भी. इसलिए बीमार होने पर भी यह कतई न सोचें कि बस, अब तो मौत का इंतजार ही बाकी रह गया है. जितना भी जीवन आप के पास है उसे पूरी सकारात्मकता से जिएं. पौजिटिव रहने से आप बीमारी को मात भी दे सकते हैं या उस के बढ़ने की दर को कम कर सकते हैं. ऐसे कितने ही कैंसर पेशेंट हैं जिन्होंने सही खानपान, वर्जिश और सकारात्मक जीवनशैली से कैंसर जैसी बीमारी को भी मात दे दी और आज वे बिलकुल स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

नजरिया-भाग 3 : निखिल की मां अपनी बहू से क्या चाहती थी?

‘‘मां, यह मेरा फैसला है और मैं इसे हरगिज नहीं बदलूंगा,’’ निखिल बोला.

अब तो निखिल की मां आशी को रोज ताने मारतीं. निखिल का भी जीना हराम कर दिया था. निखिल ने मां को समझाने की बहुत कोशिश की कि वह आशी को ताने न दें. वह गर्भवती है, इस बात का ध्यान रखें.

आशी तो अपने मातापिता के घर भी नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि वे भी तो यही चाहते थे कि बस आशी को एक बेटा हो जाए.

निखिल मां को समझाता, ‘‘मां, ये सब समाज के लोगों के बनाए नियम हैं कि बेटा वंश बढ़ाता है, बेटियां नहीं. इन के चलते ही लोग बेटियों की कोख में ही हत्या कर देते हैं. मां यह घोर अपराध है… तुम्हारी और दीदी की बातों में आ कर मैं यह अपराध करने जा रहा था, किंतु अब ऐसा नहीं होगा.’’

निखिल की बातें सुन कर एक बार को तो उस की मां को झटका सा लगा, पर पोते की चाह मन से निकलने का नाम ही नहीं ले रही थी.

अगले दिन जब निखिल दफ्तर गया तो उस की मां आशी को कोसने लगीं, ‘‘मेरा बेटा कल तक मेरी सारी बातें मानता था… अब तुम ने न जाने क्या पट्टी पढ़ा दी कि मेरी सुनता ही नहीं.’’

अब घर में ये कलह बढ़ती ही जा रही थी. आज आशी और निखिल दोनों ही मां से परेशान हो कर मेरे घर आए. मैं ने जब उन की सारी बातें सुन लीं तो कहा, ‘‘एक समस्या सुलझती नहीं की दूसरी आ जाती है. पर समाधान तो हर समस्या का होता है.’’

अब मां का क्या करें? रोज घर में क्लेश होगा तो आशी के होने वाले बच्चे पर भी तो उस का बुरा प्रभाव पड़ेगा,’’ निखिल बोला.

मैं ने उन के जाने के बाद अपनी मां से आशी व निखिल की मजबूरी बताते हुए कहा, ‘‘मां, क्या आप आशी की डिलिवरी नहीं करवा सकतीं? बच्चा होने तक आशी तुम्हारे पास रह ले तो ठीक रहेगा.’’

मां कहने लगीं, ‘‘बेटी, इस से तो नेक कोई काम हो ही नहीं सकता. यह तो सब से बड़ा मानवता का काम है. मेरे लिए तो जैसे तुम वैसे ही आशी, पर क्या उस के पति मानेंगे?’’

‘‘पूछती हूं मां,’’ कह मैं ने फोन काट दिया.

अब मैं ने निखिल के सामने सारी स्थिति रख दी कि वह आशी को मेरी मां के घर छोड़ दे.

मेरी बात सुन कर निखिल को हिचकिचाहट हुई.

तब मैं ने कहा, ‘‘निखिल आप भी तो मेरे पति जब यहां नहीं होते हैं तो हर संभव मदद करते हैं. क्या मुझे मेरा फर्ज निभाने का मौका नहीं देंगे?’’

मेरी बात सुन कर निखिल मुसकरा दिया, बोला, ‘‘जैसा आप ठीक समझें.’’

‘‘और आशी जब तुम स्वस्थ हो जाओ तो तुम भी मेरी कोई मदद कर देना,’’ मैं ने कहा. यदि हम एकदूसरे के सुखदुख में काम न आएं तो सहेली का रिश्ता कैसा?

मेरी बात सुन आशी ने भी मुसकरा कर हामी भर दी. फिर क्या था. निखिल आशी की जरूरत का सारा सामान पैक कर आशी को मेरी मां के पास छोड़ आ गया.

वक्त बीता. 9 माह पूरे हुए. आशी ने एक सुंदर बेटी को जन्म दिया, जिस की शक्ल हूबहू आशी की सास व पति से मिलती थी.

उस के पति निखिल ने जब अपनी बेटी को देखा तो फूला न समाया. वह आशी को अपने घर चलने को कहने लगा, लेकिन मेरी मां ने कहा कि बेटी थोड़ी बड़ी हो जाए तब ले जाना ताकि आशी स्वयं भी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सके.

इधर आशी की मां निखिल से रोज पूछतीं, ‘‘निखिल बेटा, आशी को क्या हुआ बेटा या बेटी?’’

‘‘मां, बेटी हुई है पर जाने दो मां तुम्हें तो पोता चाहिए था न.’’

मां जब पूछतीं कि किस जैसी है बेटी तेरे जैसी या आशी जैसी. तो वह कहता कि मां क्या फर्क पड़ता है, है तो लड़की ही न.

अब आशी की सास से रहा नहीं जा

रहा था. अत: एक दिन बोलीं, ‘‘आशी को कब लाएगा?’’

‘‘मां अभी बच्ची छोटी है. थोड़ी बड़ी हो जाने दो फिर लाऊंगा. यहां 3 बच्चों को अकेली कैसे पालेगी?’’

यह सुन आशी की सास कहने लगीं, ‘‘और कितना सताएगा निखिल… क्या तेरी बच्ची पर हमारा कोई हक नहीं? माना कि मैं पोता चाहती थी पर यह बच्ची भी तो हमारी ही है. हम इसे फेंक तो न देंगे? अब तू मुझे आशी और मेरी पोती से कब मिलवाएगा यह बता?’’

निखिल ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘अगले संडे को मां.’’

अगले रविवार ही निखिल अपनी मां को मेरी मां के घर ले गया. निखिल की मां आशी की बच्ची को देखने को बहुत उत्सुक थीं. उसे देखते ही लगीं शक्ल मिलाने. बोलीं, ‘‘अरे, इस की नाक तो बिलकुल आशी जैसी है और चेहरा निखिल तुम्हारे जैसा… रंग तो देखो कितना निखरा हुआ है,’’ वे अपनी पोती की नाजुक उंगलियों को छू कर देख रही थीं और उस के चेहरे को निहारे जा रही थीं.

तभी आशी ने कहा, ‘‘मां, अभी तो यह सोई है, जागेगी तब देखिएगा आंखें बिलकुल आप के जैसी हैं नीलीनीली… आप की पोती बिलकुल आप पर गई है मां.’’

यह सुन आशी की सास खुश हो उठीं और फिर मेरी मां को धन्यवाद देते हुए बोलीं, ‘‘आप ने बहुत नेक काम किया है बहनजी, जो आशी की इतनी संभाल की… मैं किन शब्दों में आप का शुक्रिया अदा करूं… अब आप इजाजत दें तो मैं आशी को अपने साथ ले जाऊं.’’

‘‘आप ही की बेटी है बेशक ले जाएं… बस इस का सामान समेट देती हूं.’’

‘‘अरे, आप परेशान न हों. सामान तो निखिल समेट लेगा और अगले रविवार को वह आशी को ले जाएगा. अभी जल्दबाजी न करें. तब तक मैं आशी के स्वागत की तैयारियां भी कर लेती हूं.’’

अगले रविवार को निखिल आशी व उस की बेटी को ले कर अपने घर आ गया. उस की मां ने घर को ऐसे सजाया था मानो दीवाली हो. आशी का कमरा खूब सारे खिलौनों से सजा था. आशी की सास उस की बेटी के लिए ढेर सारे कपड़े लाई थीं.

जब आशी घर पहुंची तो निखिल की मां दरवाजे पर खड़ी थीं. उन्होंने झट से अपनी पोती को गोद में ले कर कहा, ‘‘आशी, मुझे माफ कर दो. मैं अज्ञान थी या यों कहो कि पोते की चाह में अंधी हो गई थी और सोचनेसमझने की क्षमता खत्म हो गई थी. लेकिन बहू तुम बहुत समझदार हो. तुम ने मेरी आंखें खोल दीं… मुझे व हमारे पूरे घर को एक घोर अपराध करने से बचा लिया. अब सारा घर खुशियों से भर गया है. फिर वे अपनी बेटी व अन्य रिश्तेदारों को समझाने लगीं कि कन्या भू्रण हत्या अपराध है… उन्हें भी बेटेबेटी में फर्क नहीं करना चाहिए. बेटियां भी वंश बढ़ा सकती हैं, जमीनजायदाद संभाल सकती हैं. जरूरत है तो सिर्फ हमें अपना नजरिया बदलने की.’’

अभिमन्यु के सामने अक्षरा को आएगा पैनिक अटैक, क्या फिर एक हो पाएंगे दोनो?

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में काफी ज्यादा हिट ड्रामा देखने को मिल रहा है, इस सीरियल  में प्रणाली राठौर और हर्षद चोपड़ा की एक्टिंग दर्शकों का दिल जीत लिया है, दोनों सीरियल में अक्षरा औऱ अभिमन्यु के किरदार में नजर आ रहे हैं.

बीते एपिसोड ममें आपने देखा था कि अक्षरा औऱ अभिमन्यु एक शादी समारोह में मिलते हैं और दोनों अंजान कि तरह रहते हैं तो वहीं दूसरी तरफ अभिनव सबका ध्यान भटकाने में लगा हुआ है,आगे दिखाया जाएगा कि अक्षरा को पैनिक अटैक की बीमारी है और इसका इलाज अभिमन्यु के पास होता है.

 

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अपकमिंग एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अक्षरा को पैनिक अटैक आता है और वह अक्षरा को गाना गाने के लिए कहता है लेकिन वह नहीं मानती है और वह पानी लेने के लिए जाती है, तब तक वहां पर अबीर पहुंच जाता है और वह अपनी मां को एक धुन सुनाता है, जिससे अक्षरा कि हालत सुधरती है, यह देख अभिमन्यु भी थोड़ा शांत हो जाता है.

इस सीरियल में अभिनव अपने दिल की बात काफी समय से अक्षरा को बताने कि कोशिश करता है, और आने वाले एपिसोड में वह सफल हो जाएगा, इस कहानी में आगे देखने को मिलेगा कि शादी समारोह में सभी अक्षरा औऱ अभिनव से उसकी लव स्टोरी के बारे में पूछेंगे.

अनुज और अनुपमा को रोते देख फैंस हुए परेशान, जिंदगी में आय़ा नया तूफान

सीरियल अनुपमा इन दिनों दर्शकों के दिलों पर राज कर रहा है, आए दिन सीरियल में कुछ ऐसा हो रहा है जिसे देखकर दर्शक भी हैरान है कि आगे क्या होने वाला है, इन दिनों शो की पूरी कहानी अनु और माया के इर्द गिर्द घूम रही है.

 

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माया का कहना है कि छोटी अनु उसकी अपनी बेटी है और वह अपनी बेटी को वापस लेकर ही दम लेगी,माया की इस बात ने अनुज और अनुपमा की परेशानी बढ़ाकर रख दिया है, यहां तक कि उनका कपाड़िया हाउस में भी रहना मुश्किल हो गया है.

इस सीरियल में दिखाया जा रहा है कि अनुज और अनुपमा अपनी बेटी छोटी अनु को लेकर परेशान रहते हैं कि न जानें कब माया आकर हमसे अपनी हमारी बेटी को छीन ले जाए. इसके साथ ही अनुपमा सपना भी देखती है कि उसकी बेटी को कोई किडनैप कर ले गया. वह तुरंत घबराकर उठ जाती है.

बवाल तब ही खड़ा हो गया था, जब माया ने छोटी अनु को बता दिया था कि वह उसकी असली मां हैं. इस सीरियल में अनुपमा की बढ़ती परेशानी को देखकर दर्शक भी परेशान हैं कि आखिर उसे हुआ क्या है.एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है कि छोटी अनु उसकी बेटी है इस बात में कोई दिक्कत नहीं है. वहीं दूसरे यूजर ने लिखा है कि मैं अनुपमा को ऐसे नहीं देख सकती.

जीत नामुमकिन नहीं -भाग 2 : जो सोचा वो किया

एक नर्स होने के नाते यह सब देखना मेरे लिए कोई नई बात नहीं थी. मगर, सुंदर के लिए मैं ने ऐसा जीवन कभी नहीं चाहा था, इसलिए दिल में रहरह कर एक टीस उभर रही थी. अगर सुंदर को कुछ हो गया तो…?

“नहींनहीं, मैं अपने सुंदर को कुछ नहीं होने दूंगी,” मैं ने अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया और एक हफ्ते की छुट्टी ले ली. एक हफ्ते में मैं ने सब से पहले सुंदर का हुलिया बदला और उसे योग और प्राणायाम करने की आदत डाली.

ना जाने क्यों सुंदर मेरी हर बात बिना किसी विरोध के मान लेता था. यही बात उस के इलाज में भी सकारात्मकता ला रही थी और वह जल्दी ही सामान्य हो रहा था. मुझे बस एक डर था कि डाक्टर ने कहा था कि उस के पैरों को काटना पड़ेगा. मगर उस से पहले उस का स्वस्थ होना और मधुमेह का नियंत्रित होना बेहद जरूरी था. डिमेंशिया के इलाज के लिए भी मैं ने एक मनोचिकित्सक से संपर्क कर रखा था. जिस दिन पहली काउंसलिंग हुई थी, उस दिन वह बेहद घबराया हुआ था. मनोचिकित्सक ने भी मुझे आश्वासन दिया कि वह पूरी तरह से ठीक हो जाएगा. एक दिन जब मैं किचन में काम कर रही थी, तभी मुझे सुंदर की आवाज सुनाई दी.

” नीता…” अपना नाम सुंदर के मुंह से सुन कर मुझे आश्चर्यमिश्रित खुशी का एहसास हुआ.

“तुम्हें सब याद आ गया सुंदर…” मैं ने उस का चेहरा दोनों हाथों से पकड़ कर झकझोरते हुए कहा.

“हां नीता, मैं तो तुम्हें कुछ दिन पहले ही पहचान गया था, मगर मेरी बीमारी और मेरा कमजोर आत्मविश्वास मेरा साथ नहीं दे रहा था.”

“ओह… सुंदर, तुम सोच भी नहीं सकते कि आज मुझे कितनी ज्यादा खुशी हो रही है. लेकिन, तुम मुझे यह बताओ कि तुम्हारी यह हालत हुई कैसे? इतने लापरवाह तो तुम कभी नहीं थे कि खुद का भी खयाल नहीं रख पाओ.”

“यह सब मेरी अति महत्वाकांक्षा और लालच का परिणाम है नीता… किसी की कोई गलती नहीं है. मैं ने जो बोया वही काट रहा हूं,” कहते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए.

“खुद पर काबू रखो सुंदर…. समय हमेशा एकजैसा नहीं रहता. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा,” मैं ने उसे समझाते हुए कहा, क्योंकि मैं जानती थी कि अभी वह इतना भी ठीक नहीं हुआ है कि कोई मानसिक तनाव झेल सके. इसलिए मैं ने उसे ले जा कर बिस्तर पर लिटा दिया और उस के हाथपैर सहलाने लगी.

थोड़ी देर शांत रहने के बाद उस ने अपनी रौ में बोलना शुरू कर दिया.

“मैं ने अपने ही कालेज में पढ़ने वाली सुनैना से शादी कर ली थी, क्योंकि मैं जानता था कि सुनैना एक बिजनेसमैन की इकलौती बेटी है और उस के पिता घरजमाई की चाहत रखते हैं. मैं अपने मातापिता की सारी आशाओं पर पानी फेरते हुए सुनैना के घर जा कर रहने लगा और अब उस के पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा.

“मेरे मातापिता इस गम को ना सह सके और 2 साल के अंदर ही दोनों चल बसे. अपने व्यवसाय को और आगे बढ़ाने के लिए सुनैना के परिवार के संग मैं भी मुंबई शिफ्ट हो गया. हमारा व्यवसाय मुंबई में खूब फलफूल रहा था, मगर सुनैना ने मुझे कभी भी अपना पति नहीं समझा. वह मुझे हमेशा अपना गुलाम समझती रही. पूरा व्यवसाय संभालने के बावजूद भी उस की कंपनी में मेरी हैसियत एक नौकर के जैसी थी. हमारी एक बेटी भी हुई, जो उस सुनैना का ही प्रतिरूप है.

“सुनैना के पिताजी ने भी मरने से पहले अपनी सारी जायदाद सुनैना के नाम पर ही लिख दी थी. उस के बाद तो वह और भी ज्यादा उच्छश्रृंखल हो गई. वह नौकरों तक के सामने भी मुझे जलील करने से बाज नहीं आती थी. मेरी किसी भी जरूरत के लिए वह मुझे पैसे देने से पहले हजार सवाल करती और ताने देती वो अलग.

“धीरेधीरे मैं अवसाद का शिकार होने लगा. डाक्टर ने मुझे उच्च रक्तचाप और मधुमेह टाइप 2 का मरीज बताया. लेकिन सुनैना ने मुझे अपना इलाज करवाने के लिए पर्याप्त पैसे भी नहीं दिए, इसलिए मैं सरकारी अस्पताल में अपना इलाज करवाने लगा.

“मैं ने उड़तीउड़ती खबर तो यह भी सुनी थी कि सुनैना का अपने किसी दोस्त के साथ अवैध संबंध भी है. जब मेरे पैरों में गैंग्रीन की शिकायत हो गई, तब तो सुनैना ने हद कर दी. उस ने मुझे आउटहाउस में भेज दिया. वह मुझे अपनी बेटी से भी नहीं मिलने दे रही थी. वह बारबार मुझे चले जाने को कहती. मेरा औफिस जाना भी बंद करवा दिया था उस ने.

“अब अपने कमरे में सारा दिन बंद रहतेरहते मैं मानसिक रोगी हो गया था. फिर एक दिन मैं ने फैसला किया कि अपने शहर गोरखपुर जाऊंगा. वैसे भी मैं ने अपना घर नहीं बेचा था और इसीलिए मैं थोड़े पैसे मांगने सुनैना के पास गया, मगर वहां का नजारा देखसुन कर तो मुझे गहरा आघात लगा.

अपने कमरे में वह आपत्तिजनक हालत में अपने दोस्त सुधीर के साथ उस की बांहों में बैठी उस को मुझे अपने रास्ते से हटाने का प्लान समझा रही थी.

फिर मैं जल्दी से अपने कमरे में आया और एक बैग में कुछ कपड़े और जरूरी सामान रख लिया. छोटे से एक बैग में सारे रिपोर्ट रख लिए, ताकि गोरखपुर जा कर अपना इलाज करवा सकूं. मेरे पास पैसे बिलकुल भी नहीं थे, तभी मेरी नजर उंगली में पड़ी अपनी शादी की अंगूठी पर गई. मैं ने उसे बेच दिया और स्टेशन जा कर टिकट खरीदा,” इतना कह कर सुंदर चुप हो गया.

 

कामवाली, वाइफ और हसबैंड : श्रीमती को खुश करने के चक्कर में…

हालांकि घर के लगभग सारे काम मेरे विवाह के अगले हफ्ते बाद से मेरे करकमलों द्वारा संपन्न होने शुरू हो गए थे. विवाह के बाद तब मैं ने श्रीमती को प्रसन्न करने के लिए ये काम इसलिए शुरू किए थे, ताकि उसे पता चल जाए कि मैं भी घर के काम करने का हुनर रखता हूं. पर, मुझे क्या पता था कि तब मेरे ये काम उस का मन रखने के लिए किए गए थे, वे एक दिन मेरे ही काम बन जाएंगे.

आज मेरी दशा या दिशा यह है कि मैं घर के सारे काम कर के ही औफिस जाता हूं और औफिस से समय से आधा घंटा पहले निकल कर सीधा घर पहुंचते ही घर के कामों में लीन हो जाता हूं.
मुझे औफिस जाने में देर हो जाए तो हो जाए, मेरे महीनों के औफिस के काम पेंडिंग पड़े रहें तो पड़े रहें, पर मेरी श्रीमती को घर के किसी काम की पेंडेंसी कतई पसंद नहीं. उस की नेचर है कि घर का जो काम जिस समय होना चाहिए उसी समय हो.

विवाह से पूर्व सुखी वैवाहिक जीवन के आंखें खोले सपने लेते कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी मेरे ये हाथ घर के काम करने में इतने दक्ष हो जाएंगे कि सोएसोए भी घर के कामों में व्यस्त रहा करेंगे.

विवाह से पूर्व यह भी सपने में नहीं सोचा था कि मेरे हाथ अपने ही हाथों की बनी चाय मुझे पिला, अपने ही हाथों की गरमागरम चपातियां मुझे खिला मयूर हो नाचा करेंगे.

सच कहूं तो अब अपने हाथों के जायके से मुझे इतना प्यार हो गया है कि दूसरों की बीवियों के हाथों की आधी रोटी खा कर मेरा पेट भारी हो जाता है. पेट में ऐसी अपच हो जाती है कि कई दिनों तक पेट साफ करने की दवाई खानी पड़ती है.

असल में विवाह के बाद मैं घर में काम करने वाली नहीं रखना चाहता था. सच्ची को जो श्रीमती को मुझ पर शक हो गया तो…? शादी से पहले मर्दों पर कोई शक करे तो करता रहे, पर विवाह के बाद सफल वैवाहिक जीवन के लिए किसी भी मर्द को अपने चरित्र पर शक की कतई सूई नहीं घूमने देनी चाहिए.

पर, जल्दी ही श्रीमती के कोमल मन को जब अड़ोसपड़ोस के घरों में काम करने वाली आतीजाती दिखती तो उस में हीनता जन्म लेने लगी. आदर्श पति होने के नाते मैं नहीं चाहता था कि मेरी श्रीमती के मन में और तो सब जन्म लें तो लें, पर हीनता कतई जन्म ले. सो, उस की हीनता का इलाज करने के लिए मैं ने कामवाली रख ली.

विवाह के बाद आदर्श से आदर्श पति की बीमारी का इलाज तो कहीं भी, किसी भी सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में संभव नहीं, पर श्रीमती हर हाल में स्वस्थ रहनी चाहिए. आज भी उसे स्वस्थ रखने के लिए मैं धंवंतरि तक के पास जा सकता हूं. श्रीमती स्वस्थ तो बीमार पति भी फुली मस्त.
हर ब्राइटी के पति सफल पति होने के लिए बहुतकुछ बेकार का भी दिल पर पत्थर रख लेते हैं, सो मैं ने भी सफल दिवंगत पतियों के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए श्रीमती का मन रखने के लिए कामवाली रख ली. चंद ही दिनों में वह कामवाली श्रीमती को तो मुझ से भी प्रिय हो ही गई, पर मेरा कचराअधकचरा दिल भी कहीं न कहीं उस में बसने लगा. श्रीमती उस के आने से पहले ही उस के आने के इंतजार में पलकें बिछाए रहती तो मैं भी उस के आने से पहले ही उस के लिए चाय बना कर तैयार रखता. बेचारी पिछले घर की मालकिन के पास उस की पड़ोसन की गुप्त बातें बता कर आएगी तो पता नहीं कितनी थकी होगी? बहुत से घरों की मालकिनें इन दिनों घर में काम करने वालियों को घर के काम करने के लिए कम अपनी पड़ोसनों की खुफिया जानकारियों के लिए अधिक रखती हैं. घरों में काम करने वालियां पड़ोसनों की खबरें जितनी विश्वसनीयता से अपनी हर मालकिन को कमर मटकामटका कर सुनाती हैं, उतने विश्वसनीय खुफिया एजेंट भी नहीं होते. हो सकता है, मेरी श्रीमती इसलिए भी उस का बेसब्री से इंतजार करती हो. इस मामले में मैं डेड श्योर तो नहीं, पर बहुतकुछ श्योर जरूर हूं. और तब जिस दिन कामवाली न आती, तो श्रीमती का पारा बाहर माइनस 20 तापमान होने के बाद भी सातवें आसमान पर होता.

सच कहूं तो कामवाली घर के कामों में कहने को ही मेरा हाथ बंटाती है. उसे अभी मेरी तो नहीं, पर मेरी श्रीमती की कमजोरी का पता चल गया है. वैसे भी जितने समय पर वह आती है, उतने में तो मैं घर के लगभग नब्बे प्रतिशत काम तो कर चुका होता हूं. पर मुझे उस का आना फिर भी अच्छा नहीं, बहुत अच्छा लगता है. चलो, इस बहाने टीवी पर पसरे बाबा के आगे आठ पहर चौबीस घंटे उलटेसीधे योग की मुद्राएं करती श्रीमती के सूजे थोबड़े के सिवाय कोई दूसरी सूरत तो दिख जाती है, वरना देखते रहो औफिस जाते और औफिस से आते एक ही स्लिम फिट होता थुलथुला थोबड़ा.

कोई अपना -भाग 2: मधु ने शालीनी से मुंह क्यों मोड़ा

एक दिन मधु ऊन लाई और जिद करने लगी कि मैं उस के बेटे का स्वेटर बुन दूं. काफी मेहनत के बाद मैं ने रंगबिरंगा स्वेटर बुना था. उसे देख कर मधु बहुत खुश हुई थी, ‘भाभी, बहुत सफाई है आप के हाथ में. अब एक स्वेटर अपने देवर का भी बुन देना. ये कह रहे थे, इतना अच्छा स्वेटर तो उन्होंने आज तक नहीं देखा.’

‘मुझे समय नहीं मिलेगा,’ मैं ने टालना चाहा तो वह झट बोल पड़ी, ‘अपना भाई कहेगा तो क्या उसे भी इसी तरह इनकार कर देंगी?’

मधु के स्वर का अपनापन मुझे भीतर तक पुलकित कर गया था. वह आगे बोली, ‘माना कि हम में खून का रिश्ता नहीं है, फिर भी आप को अपनों से कम तो नहीं जाना. मुझे ऊन से एलर्जी है, तभी तो आप से कह रही हूं.’

आखिर मुझे उस की बात माननी पड़ी. लेकिन मेरे पति ने मुझे डांट दिया था, ‘यह क्या समाजसेवा का काम शुरू कर दिया है? उसे ऊन से एलर्जी है तो पैसे दे कर कहीं से भी बनवा लें. तुम अपनी जान क्यों जला रही हो?’

‘वे लोग हम से कितना प्यार करते हैं, और कुछ बना दिया तो क्या हुआ.’ मेरे पति खीझ कर चुप रह गए थे. हमारा आनाजाना लगा रहता और हर बार वे लोग ढेर सारा प्यार जताते. धीरेधीरे उन का आना कम होने लगा.

2 महीनों की छुट्टियों में हम अपने घर गए थे. जब वापस आए, तब भी वे हम से मिलने नहीं आए.

एक दिन मैं ने पति से कहा, ‘मधु नहीं आई हम से मिलने, वे लोग कहीं बाहर गए हुए हैं?’

‘पता नहीं,’ पति ने लापरवाही से उत्तर दिया.

‘क्या, केशव भाईसाहब आप से नहीं मिले?’

‘कल उस का भाई बैंक में आया था.’

‘तो आप ने उन का हालचाल नहीं पूछा क्या?’

‘नहीं. इतना समय नहीं होता, जो हर आनेजाने वाले के परिवार का हालचाल पूछता रहूं.’

‘कैसी रूखी बातें कर रहे हैं.’

किसी तरह पति मुझे टाल कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो गए और मैं यही सोचने लगी कि आखिर मधु आई क्यों नहीं? 15-20 दिनों बाद बच्चों के स्कूल में ‘पेरैंट्स मीटिंग’ थी. मधु का घर रास्ते में ही पड़ता था. अत: सो, वापसी पर मैं उस के घर चली गई.

 

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