Download App

तब और अब : रमेश की नियुक्ति क्यों गलत समय पर हुई थी?

पिछले कई दिनों से मैं सुन रहा था कि हमारे नए निदेशक शीघ्र ही आने वाले हैं. उन की नियुक्ति के आदेश जारी हो गए थे. जब उन आदेशों की एक प्रतिलिपि मेरे पास आई और मैं ने नए निदेशक महोदय का नाम पढ़ा तो अनायास मेरे पांव के नीचे की जमीन मुझे धंसती सी लगी थी.

‘श्री रमेश कुमार.’

इस नाम के साथ बड़ी अप्रिय स्मृतियां जुड़ी हुई थीं. पर क्या ये वही सज्जन हैं? मैं सोचता रहा था और यह कामना करता रहा था कि ये वह न हों. पर यदि वही हुए तो…मैं सोचता और सिहर जाता. पर आज सुबह रमेश साहब ने अपने नए पद का भार ग्रहण कर लिया था. वे पूरे कार्यालय का चक्कर लगा कर अंत में मेरे कमरे में आए. मुझे देखा, पलभर को ठिठके और फिर उन की आंखों में परिचय के दीप जगमगा उठे.

‘‘कहिए सुधीर बाबू, कैसे हैं?’’ उन्होंने मुसकरा कर कहा.

‘‘नमस्कार साहब, आइए,’’ मैं ने चकित हो कर कहा. 10 वर्षों के अंतराल में कितना परिवर्तन आ गया था उन में. व्यक्तित्व कैसा निखर गया था. सांवले रंग में सलोनापन आ गया था. बाल रूखे और गरदन तक कलमें. कत्थई चारखाने का नया कोट. आंखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लग गया था. सकपकाहट के कारण मैं बैठा ही रह गया.

‘‘तुम अभी तक सैक्शन औफिसर ही हो?’’ कुछ क्षण मौन रहने के बाद उन्होंने प्रश्न किया. क्या सचमुच उन के इस प्रश्न में सहानुभूति थी अथवा बदला लेने की अव्यक्त, अपरोक्ष चेतावनी, ‘तो तुम अभी तक सैक्शन औफिसर हो, बच्चू, अब मैं आ गया हूं और देखता हूं, तुम कैसे तरक्की करते हो?’

‘‘सुधीर बाबू, तुम अधिकारी के सामने बैठे हो,’’ निदेशक महोदय के साथ आए प्रशासन अधिकारी के चेतावनीभरे स्वर को सुन कर मैं हड़बड़ा कर खड़ा हो गया. मन भी कैसा विचित्र होता है. चाहे परिस्थितियां बदल जाएं पर अवचेतन मन की सारी व्यवस्था यों ही बनी रहती है. एक समय था जब मैं कुरसी पर बैठा रहता था और रमेश साहब याचक की तरह मेरे सामने खड़े रहते थे.

‘‘कोई बात नहीं, सुधीर बाबू, बैठ जाइए,’’ कह कर वे चले गए. जातेजाते वे एक ऐसी दृष्टि मुझ पर डाल गए थे जिस के सौसौ अर्थ निकल सकते थे.

मैं चिंतित, उद्विग्न और उदास सा बैठा रहा. मेरे सामने मेज पर फाइलों का ढेर लगा था. फोन बजता और बंद हो जाता. पर मैं तो जैसे चेतनाशून्य सा बैठा सोच रहा था. मेरी अस्तित्वरक्षा अब असंभव है. रमेश यों छोड़ने वाला नहीं. इंसान सबकुछ भूल सकता है, पर अपमान के घाव पुर कर भी सदैव टीसते रहते हैं.

पर रमेश मेरे साथ क्या करेगा? शायद मेरा तबादला कर दे. मैं इस के लिए तैयार हूं. यहां तक तो ठीक ही है. इस के अलावा वह प्रत्यक्षरूप से मुझे और कोई हानि नहीं पहुंचा सकता था.

रमेश की नियुक्ति बड़े ही गलत समय पर हुई थी, इस वर्ष मेरी तरक्की होने वाली थी. निदेशक महोदय की विशेष गोपनीय रिपोर्ट पर ही मेरी पदोन्नति निर्भर करती थी. क्या उन अप्रिय घटनाओं के बाद भी रमेश मेरे बारे में अच्छी रिपोर्ट देगा? नहीं, यह असंभव है. मेरा मन बुझ गया. दफ्तर का काम करना मेरे लिए असंभव था. सो, मैं ने तबीयत खराब होने का कारण लिख कर, 2 दिनों की छुट्टी के लिए प्रार्थनापत्र निदेशक महोदय के पास पहुंचवा दिया. 2 दिन घर पर आराम कर के मैं अपनी अगली योजना को अंतिम रूप देना चाहता था. यह तो लगभग निश्चित ही था कि रमेश के अधीन इस कार्यालय में काम करना अपने भविष्य और अपनी सेवा को चौपट करना था. उस जैसा सिद्घांतहीन, झूठा और बेईमान व्यक्ति किसी की खुशहाली और पदोन्नति का माध्यम नहीं बन सकता. और फिर मैं? मुझ से तो उसे बदले चुकाने थे.

मुझे अच्छी तरह याद है. जब आईएएस का रिजल्ट आया था और रमेश का नाम उस में देखा तो मुझे खुशी हुई थी, पर साथ ही, मैं थोड़ा भयभीत हो गया था. रमेश ने पार्टी दी थी पर उस ने मुझे निमंत्रित नहीं किया था. मसूरी अकादमी में प्रशिक्षण के लिए जाते वक्त रमेश मेरे पास आया था. और वितृष्णाभरे स्वर में बोला था, ‘सुधीर, मेरी बस एक ही इच्छा है. किसी तरह मैं तुम्हारा अधिकारी बन कर आ जाऊं. फिर देखना, तुम्हारी कैसी रगड़ाई करता हूं. तुम जिंदगीभर याद रखोगे.’

कैसा था वह क्षण. 10 वर्षों बाद आखिर उस की कामना पूरी हो गई. यों, इस में कोई असंभव बात भी नहीं थी. रमेश मेरा अधिकारी बन कर आ गया था. जीवन में परिश्रम, लगन तथा एकजुट हो कर कुछ करना चाहो तो असंभव भी संभव हो सकता है, रमेश इस की जीतीजागती मिसाल था. वर्ष 1960 में रमेश इस संस्थान में क्लर्क बन कर आया था. मैं उस का अधिकारी था तथा वह मेरा अधीनस्थ कर्मचारी. रोजगार कार्यालय के माध्यम से उस की भरती हुई थी. मैं ने एक ही निगाह में भांप लिया कि यह नवयुवक योग्य है, किंतु कामचोर है. वह महत्त्वाकांओं की पूर्ति के लिए कुछ भी कर सकता है. वह स्नातक था और टाइपिंग में दक्ष. फिर भी वह दफ्तर के काम करने से कतराता था. मैं समझ गया कि यह व्यक्ति केवल क्लर्क नहीं बना रहेगा. सो, शुरू से ही मेरे और उस के बीच एक खाई उत्पन्न हो गई.

मैं अनुशासनपसंद कर्मचारी था, जिस ने क्लर्क से सेवा प्रारंभ कर के विभागीय पदोन्नतियों की विभिन्न सीढि़यां पार की थीं. कोई प्रतियोगी परीक्षा नहीं दी थी.पर रमेश अपने भविष्य की सफलताओं के प्रति इतना आश्वस्त था कि उस ने एक दिन भी मेरी अफसरियत को नहीं स्वीकारा था. वह अकसर दफ्तर देर से आता. मैं उसे टोकता तो वह स्पष्टरूप से तो कुछ नहीं कहता, किंतु अपना क्रोध अपरोक्षरूप  से व्यक्त कर देता. काम नहीं करता या फिर गलत टाइप करता, सीट पर बैठा मोटीमोटी किताबें पढ़ता रहता. खाने की छुट्टी आधे घंटे की होती तो वह 2 घंटे के लिए गायब हो जाता. मैं उस से बहुत नाराज था. पर शायद उसे मेरी चिंता नहीं थी. सो, वह मनमानी किए जाता. उस ने मुझे कभी भी गंभीरता से नहीं लिया.

एक दिन मैं ने दफ्तर के बाद रमेश को रोक लिया. सब लोग चले गए. केवल हम दोनों रह गए. मैं ने सोचा था कि मैं उसे एकांत में समझाऊंगा. शायद उस की समझ में आ जाए कि काम कितना अहम होता है. ‘रमेश, आखिर तुम यह सब क्यों करते हो?’ मैं ने स्नेहसिक्त, संयत स्वर में कहा था. ‘क्या करता हूं?’ उस ने उखड़ कर कहा था.

‘तुम दफ्तर देर से आते हो.’

‘आप को पता है, दिल्ली की बस व्यवस्था कितनी गंदी है.’

‘और लोग भी तो हैं जो वक्त से पहुंच जाते हैं.’

‘उस से क्या होता है. अगर मैं देर से आता हूं तो

2 घंटे का काम आधे घंटे में निबटा भी तो देता हूं.’

‘रमेश दफ्तर का अनुशासन भी कुछ होता है. यह कोई तर्क नहीं है. फिर, मैं तुम से सहमत नहीं कि तुम 2 घंटे का काम…’

‘मुझे बहस करने की आदत नहीं,’ कह कर वह अचानक उठा और कमरे से बाहर चला गया. मैं अपमानित सा, तिलमिला कर रह गया. रमेश के व्यवहार में कोई विशेष अंतर नहीं आया. अब वह खुलेआम दफ्तर में मोटीमोटी किताबें पढ़ता रहता था. काम की उसे कोई चिंता नहीं थी.एक दिन मैं ने उसे फिर समझाया, ‘रमेश, तुम दफ्तर के समय में किताबें मत पढ़ा करो.’

‘क्यों?’

‘इसलिए, कि यह गलत है. तुम्हारा काम अधूरा रहता है और अन्य कर्मचारियों पर बुरा असर पड़ता है.’

‘सुधीर बाबू, मैं आप को एक सूचना देना चाहता हूं.’

‘वह क्या?’

‘मैं इस वर्ष आईएएस की परीक्षा दे रहा हूं.’

‘तो क्या तुम्हारी उम्र 24 वर्ष से कम है?’

‘हां, और विभागीय नियमों के अनुसार मैं इस परीक्षा में बैठ सकता हूं.’

‘फिर तुम ने यह नौकरी क्यों की? घर बैठ कर…’

‘आप की दूसरों के व्यक्तिगत जीवन में टांग अड़ाने की बुरी आदत है,’ उस ने कह तो दिया फिर पलभर सोचने के बाद वह बोला, ‘सुधीर बाबू, यों आप ठीक कह रहे हैं. मजा तो तभी है जब एकाग्रचित्त हो यह परीक्षा दी जाए. पर क्या करूं, घर की आर्थिक परिस्थितियों ने मजबूर कर दिया.’

‘पर रमेश, यह बौद्धिक तथा नैतिक बेईमानी है. तुम इस कार्यालय में नौकरी करते हो. तुम्हें वेतन मिलता है. किंतु उस के प्रतिरूप उतना काम नहीं करते. तुम अपने स्वार्थ की सिद्धि में लगे हुए हो.’

‘जितने भी डिपार्टमैंटल खूसट मिलते हैं, सब को भाषण देने की बीमारी होती है.’

मैं ने तिलमिला कर कहा था, ‘रमेश, तुम में बिलकुल तमीज नहीं है.’

‘आप सिखा दीजिए न,’ उस ने मुसकरा कर कहा था.

मेरी क्रोधाग्नि में जैसे घी पड़ गया. ‘मैं तुम्हें निकाल दूंगा.’

‘यही तो आप नहीं कर सकते.’

‘तुम मुझे उकसा रहे हो.’

‘सुधीर बाबू, सरकारी सेवा में यही तो सुरक्षा है. एक बार बस घुस जाओ…’

मैं ने आगे बहस करना उचित नहीं समझा. मैं अपने को संयत और शांत करने का प्रयास कर रहा था कि रमेश ने एक और अप्रत्याशित स्थिति में मुझे डाल दिया.

‘सुधीर बाबू, मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूं.’

‘पूछो.’

‘आखिर तुम अपने काम को इतनी ईमानदारी से क्यों करते हो?’

‘क्या मतलब?’

‘सरकार एक अमूर्त्त चीज है. उस के लिए क्यों जानमारी करते हो, जिस का कोई अस्तित्व नहीं, उस की खातिर मुझ जैसे हाड़मांस के व्यक्ति से टक्कर लेते रहते हो. आखिर क्यों?’

‘रमेश, तुम नमकहराम और नमकहलाल का अंतर समझते हो?’

‘बड़े अडि़यल किस्म के आदमी हैं, आप,’ रमेश ने मुसकरा कर कहा था.

‘तुम जरूरत से ज्यादा मुंहफट हो गए हो, मैं…’ मैं ने अपने वाक्य को अधूरा छोड़ कर उसे पर्याप्त धमकीभरा बना दिया था.

‘मैं…मैं…क्या करते हो? मैं जानता हूं, आप मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते.’

बस, गाड़ी यों ही चलती रही. रमेश के कार्यकलापों में कोई अंतर नहीं आया. पर मैं ने एक बात नोट की थी कि धीरेधीरे उस का मेरे प्रति व्यवहार पहले की अपेक्षा कहीं अधिक शालीन, संयत और अनुशासित हो चुका था. क्यों? इस का पता मुझे बाद में लगा.

रमेश की परक्षाएं समीप आ गईं. एक दिन वह सुबह ढाई महीने की छुट्टी लेने की अरजी ले कर आया. अरजी को मेरे सामने रख कर, वह मेरी मेज से सट कर खड़ा रहा.

अरजी पर उचटी नजर डाल कर मैं ने कहा, ‘तुम्हें नौकरी करते हुए केवल 8 महीने हुए हैं, 8-10 दिन की छुट्टी बाकी होगी तुम्हारी. यह ढाई महीने की छुट्टी कैसे मिलेगी?’

‘लीव नौट ड्यू दे दीजिए.’

‘यह कैसे मिल सकती है? मैं कैसे प्रमाणपत्र दे सकता हूं कि तुम इसी दफ्तर में काम करते रहोगे और इतनी छुट्टी अर्जित कर लोगे.’

‘सुधीर बाबू, मेरे ऊपर आप की बड़ी कृपा होगी.’

‘आप बिना वेतन के छुट्टी ले सकते हैं.’

‘उस के लिए मुझे आप की अनुमति की जरूरत नहीं. क्या आप अनौपचारिक रूप से यह छुट्टी नहीं दे सकते?’

‘क्या मतलब?’

‘मेरा मतलब साफ है.’

‘रमेश, तुम इस सीमा तक जा कर बेईमानी और सिद्धांतहीनता की बात करोगे, इस की मैं ने कल्पना भी नहीं की थी. यह तो सरासर चोरी है. बिना काम किए, बिना दफ्तर आए तुम वेतन चाहते हो.’

‘सब चलता है, सुधीर बाबू.’

‘तुम आईएएस बन गए तो क्या विनाशलीला करोगे, इस की कल्पना मैं अभी से कर सकता हूं.’

‘मैं आप को देख लूंगा.’

‘‘सुधीर बाबू, आप को साहब याद कर रहे हैं,’’ निदेशक महोदय के चपरासी की आवाज सुन कर मेरी चेतना लौट आई भयावह स्मृतियों का क्रम भंग हो गया.

मैं उठा. मरी हुई चाल से, करीब घिसटता हुआ सा, मैं निदेशक के कमरे की ओर चल पड़ा. आगेआगे चपरासी, पीछेपीछे मैं, एकदम बलि को ले जाने वाले निरीह पशु जैसा. परिस्थितियों का कैसा विचित्र और असंगत षड्यंत्र था.

रमेश की मनोकामना पूरी हो गई थी. वर्ष पूर्व उस ने प्रतिशोध की भावना से प्रेरित हो कर जो कुछ कहा था, उसे पूरा करने का अवसर उसे मिल चुका था. उस जैसा स्वार्थी, महत्त्वाकांक्षी, सिद्धांतहीन और निर्लज्ज व्यक्ति कुछ भी कर सकता है.

चपरासी ने कमरे का दरवाजा खोला. मैं अंदर चला गया. गरदन झुकाए और निर्जीव चाल से मैं उस की चमचमाती, बड़ी मेज के समीप पहुंच गया.

‘‘आइए, सुधीर बाबू.’’

मैं ने गरदन उठाई, देखा, रमेश अपनी कुरसी से उठ खड़ा हुआ है और उस ने अपना दायां हाथ आगे बढ़ा दिया है, मुझ से हाथ मिलाने के लिए.

मैं ने हाथ मिलाया तो मुझे लगा कि यह सब नाटक है. बलि से पूर्व पशु का शृंगार किया जा रहा है.

‘‘सुधीर बाबू, बैठिए न.’’

मैं बैठ गया. सिकुड़ा और सिहरा हुआ सा.

‘‘क्या बात है? आप की तबीयत खराब है?’’

‘‘हां…नहीं…यों,’’ मैं सकपका गया.

‘‘इस अरजी में तो…’’

‘‘यों ही, कुछ अस्वस्थता सी महसूस हो रही थी.’’

‘‘आप कुछ परेशान और घबराए हुए से लग रहे हैं.’’

‘‘हां, नहीं तो…’’

अचानक, कमरे में एक जोर का अट्टहास गूंज गया.

मैं ने अचकचा कर दृष्टि उठाई. रमेश अपनी गुदगुदी घूमने वाली कुरसी में धंसा हुआ हंस रहा था.

‘‘क्या लेंगे, सुधीर बाबू, कौफी या चाय?’’

‘‘कुछ नहीं, धन्यवाद.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ कह कर रमेश ने सहायिका को 2 कौफी अंदर भेजने का आदेश दे दिया.

कुछ देर तक कमरे में आशंकाभरा मौन छाया रहा. फिर अनायास, बिना किसी संदर्भ के, रमेश ने हा, ‘‘10 वर्ष काफी होते हैं.’’

‘‘किसलिए?’

‘‘किसी को भी परिपक्व होने के लिए.’’

‘‘मैं समझा नहीं, आप क्या कहना चाहते हैं.’’

‘‘10-12 वर्षों के बाद इस दफ्तर में आया हू. देखता हूं, आप के अलावा सब नए लोग हैं.’’

‘‘जी.’

‘‘आखिर इतने लंबे अरसे से आप उसी पद पर बने हुए हैं. तरक्की का कोई मौका नहीं मिला.’’

‘‘इस साल तरक्की होने वाली है. आप की रिपोर्ट पर ही सबकुछ निर्भर करेगा, सर,’’ न जाने किस शक्ति से प्रेरित हो, मैं यंत्रवत कह गया.

रमेश सीधा मेरी आंखों में झांक रहा था, मानो कुछ तोल रहा हो. मैं पछता रहा था. मुझे यह सब नहीं कहना चाहिए था. अब तो इस व्यक्ति को यह अवसर मिल गया है कि वह…

तभी चपरासी कौफी के 2 प्याले ले आया.

‘‘लीजिए, कौफी पीजिए.’

मैं ने कौफी का प्याला उठा कर होंठों से लगाया तो महसूस हुआ जैसे मैं मीरा हूं, रमेश राणा और प्याले में काफी नहीं, विष है.

‘‘सुधीर बाबू, आप की तरक्की होगी. दुनिया की कोईर् ताकत एक ईमानदार, परिश्रमी, नमकहलाल, अनुशासनप्रिय कर्मचारी की पदोन्नति को नहीं रोक सकती.’’ मैं अविश्वासपूर्वक रमेश की ओर देख रहा था. विष का प्याला मीठी कौफी में बदलने लगा था.

‘‘मैं आप की ऐसी असाधारण और विलक्षण रिपोर्ट दूंगा कि…’’

‘‘आप सच कह रहे हैं?’’

‘‘सुधीर बाबू, शायद आप बीते दिनों को याद कर के परेशान हो रहे हैं. छोडि़ए, उन बातों को. 10-12 वर्षों में इंसान काफी परिपक्व हो जाता है. तब मैं एक विवेकहीन, त्तरदायित्वहीन, उच्छृंखल नवयुवक, अधीनस्थ कर्मचारी था और अब मैं विवेकशील, उत्तरदायित्वपूर्ण अधिकारी हूं और समझ सकता हूं कि… तब और अब का अंतर?’’ हां, एक सुपरवाइजर के रूप में आप कितने ठीक थे, इस सत्य का उद्घाटन तो उसी दिन हो गया था, जब मैं पहली बार सुपरवाइजर बना था.’’ रमेश ने मेरी छुट्टी की अरजी मेरी ओर सरका दी और बोला, ‘‘अब इस की जरूरत तो नहीं है.’’

मैं ने अरजी फाड़ दी. फिर खड़े हो कर मैं विनम्र स्वर में बोला, ‘‘धन्यवाद, सर, मैं आप का बहुत आभारी हूं. आप महान हैं.’’

और रमेश के होंठों पर विजयी व गर्वभरी मुसकान बिछ गई.

दुनिया पूरी-जिंदगी में एक ऐसा मोड़ आया जहां सबकुछ रुक गया.

मेरी पत्नी का देहांत हुए 5 वर्ष बीत गए थे. ऐसे दुख ख़त्म तो कभी नहीं होते, पर मन पर विवशता व उदासीनता की एक परत सी जम गई थी. इस से दुख हलका लगने लगा था. जीवन और परिवार की लगभग सभी जिम्मेदारियां पूरी हो चुकी थीं. नौकरी से सेवानिवृत्ति, बच्चों की नौकरियां और विवाह भी.

ज़िंदगी एक मोड़ पर आ कर रुक गई थी. दोबारा घर बसाना मुझे बचकाना खयाल लगता था. चुकी उमंगों के बीज भला किसी उठती उमंग में क्यों बोए जाएं.  अगर सामने भी चुकी उमंग ही हो, तो दो ठूंठ पास आ कर भी क्या करें. मुझे याद आता था कि एक बार पत्नी और अपनी ख़ुद की नौकरी में अलगअलग पोस्टिंग होने पर जाने के लिए अनिच्छुक पत्नी को समझाते हुए मैं ने यह वचन दे डाला था कि मैं जीवन में कभी किसी दूसरी औरत से शरीर के किसी रिश्ते के बारे में होश रहने तक सोचूंगा भी नहीं.

पत्नी का निधन इस तरह अकस्मात दिल का दौरा पड़ने से हुआ कि दोबारा कभी अपने वचन से मुक्ति की बात ही न आ सकी. उस के जाने के बाद यह वचन मेरे लिए पत्थर की लकीर बन गया. मैं तनमन से दुनियाभर की स्त्रियों से हमेशा के लिए दूर हो गया.

कुछ साल बीते, शरीर में एक अजीब सा ठहराव आ गया. एक जड़ता ने घर कर लिया. किताबों में पढ़ा कि इंसान के लिए किसी दूसरे इंसान का जिस्म केवल ज़रूरत ही नहीं, बल्कि एक औषधि है. हर बदन में एक प्यास बसती है जिस का सावन कहीं और रहता है. एकदूसरे को छूना, किसी से लिपटना जीवन की एक अनिवार्य शर्त है, मौत को पास आने से रोकने के लिए एक इम्युनिटी है. यह घर्षण एक जीव वैज्ञानिकता है. और तब, मुझे लगा कि मैं हर कहीं, हर किसी को छूने की कोशिश करता हूं.

मुझे महसूस होता कि किसी समय पति के जीवित न रहने पर किसी स्त्री को उस के साथ ही सती होने के लिए विवश करना या उस का पति के साथ ही जल मरना कैसा व क्या रहा होगा. वह पितृसत्तात्मक समाज था, इसलिए मरने की शर्त केवल स्त्री के लिए थी, पुरुष तुरंत दोबारा विवाह कर लेते थे. मैं अपने वचन के चलते इस से उबरना चाहता था.

जल्दी ही मुझे लगने लगा कि महिलाओं से दूर रहते हुए भी मुझे किसी इंसान से बात करते हुए उसे छू लेना, जरा सी पहचान पर उसे गले लगा लेना, घूमते हुए हाथ पकड़ लेना, बैठते हुए आत्मीयता से उस से सट जाना बहुत जीवनभरा है. मेरे शरीर में इस से स्पंदन आ जाता. जीने की इच्छा बलवती होती. बदन में एक लय आ जाती. अच्छी तरह रहने का मन होता. मैं न जाने क्याक्या सोचने लगा. क्या मैं किसी मंदिर में खड़ा हो कर संकेत रूप में ही पत्थर के ईश्वर को साक्षी मान कर अपना वचन तोड़ दूं? नहीं. यदि मेरी पत्नी जीवित होती तो मैं शायद ऐसा करने का साहस भी जुटा लेता पर अब उस के जाने के बाद नहीं. यह अपराध है.

मैं पुरुष शरीर का ही सान्निध्य और साहचर्य पाने में भलाभला सा महसूस करने लगा. अब मैं इस दिशा में सोचता. इस में किसी तरह की अंतरंगता मुझे भाती. लेकिन मेरे मन के स्वाभाविक तर्क़ मुझे रोकते. अपने हमउम्र लोगों का साथ मुझे खीझभरा लगता. वे हमेशा ऐसी बातें करते कि मेरी आमदनी कितनी है, मेरी जायदाद की कीमत कितनी है, मेरे पास भविष्यनिधि के स्रोत क्या हैं, मेरे मकान या ज़मीन का बाज़ार मूल्य कितना है. इन सवालों से उकता कर मैं उन से दूरी बना लेता.

मेरा ध्यान बच्चों की ओर जाता. लेकिन उन से किसी किस्म की आत्मीयता पनपने से पहले मैं सोचता कि ये इन के जिंदगी बनाने, कैरियर बनाने के दिन हैं, इन का ध्यान भविष्य बनाने पर ही रहे और यह सोचता हुआ मैं उन से पर्याप्त दूरी रखता. लेकिन जल्दी ही मैं ने देखा कि 18 से ले कर 25 साल तक की उम्र के लोगों में मेरी दिलचस्पी रहती है. यह वर्ग मुझे एक विवश, असहाय सा वर्ग नज़र आता. इस की विवशता मुझे कई कारणों से आकर्षित करती. यह उम्र ऐसी थी कि मातापिता से अपने ख़र्च के पैसे मांगना भाता नहीं और अपनी आमदनी का कोई जरिया होता नहीं. यह उम्र ऐसी थी कि किसी साथी की ज़रूरत महसूस होती थी और शादी की बात घर में इसलिए नहीं चलती थी कि अभी कोई नौकरी नहीं.

मैं शाम के समय खाना खाने के बाद सड़क पर अकेला ही टहल कर घर लौट रहा था कि गेट के पास मैं ने एक लड़के को खड़े देखा. लड़का एक पेड़ के नीचे अपनी बाइक खड़ी कर के उसी के सहारे खड़ा था. लड़के की उम्र लगभग 21-22 वर्ष रही होगी और वह बारबार घड़ी देखता, शायद किसी के इंतज़ार में था. मैं दरवाज़े से भीतर दाख़िल होने ही लगा था कि हलकी बूंदाबांदी शुरू हो गई. पेड़ के नीचे खड़े होने पर भी बारिश से पूरी सुरक्षा नहीं थी, लड़का कुछ भीगने लगा.

मैं ने इंसानियत के नाते उस से कहा, ‘भीग क्यों रहे हो, भीतर आ जाओ.’

लड़का झट से मेरे पीछेपीछे चला आया. कमरे का ताला खोल कर मैं ने भीतर की लाइट जलाई, तो लड़के ने कुछ संकोच से पूछा, ‘अकेले रहते हैं अंकल?’  ‘हां,’ कह कर मैं ने लड़के को सोफे पर बैठने का इशारा किया.

वह कुछ सहज हो कर उत्साहित हुआ, फिर बोला, ‘मैं सामने वाली बिल्डिंग में एक आंटी को डांस सिखाने आता हूं.’

‘अच्छा,’ मुझे उस की बात दिलचस्प लगी.

‘उन्होंने मुझे 7 बजे का समय दिया हुआ है, पर कभी समय पर घर नहीं आ पातीं,’ वह कुछ मायूसी से बोला.

‘क्या तुम किसी डांस स्कूल में नौकरी करते हो? मैं ने पूछा.

‘नहीं अंकल, मैं तो कालेज में पढ़ता हूं, पर जहां से मैं ने ख़ुद डांस सीखा था, उन्हीं कोच सर ने मुझे यह ट्यूशन दिलवाई है. मेरा थोड़ा ख़र्च निकल जाता है. डांस स्कूल का समय दिन का है, तब ये आंटी आ नहीं पातीं,’ वह बोला.

‘वो आंटी क्या जौब करती हैं, जो रोज़ देर से घर आती हैं? फ़िर उन्होंने तुम्हें यह समय दिया ही क्यों?’ मैं ने सहज ही कहा.

‘जौब नहीं करतीं, हाउसवाइफ हैं. देर तो उन्हें वैसे ही हो जाती है. कभी शौपिंग में, तो कभी सोशल विजिट्स में,’ लड़का बोला.

मैं ने देखा कि लड़का पर्याप्त संजीदा और शिक्षित था, स्मार्ट भी.

लड़का उस दिन तो थोड़ी देर बाद चला गया, किंतु अब वह कभीकभी मेरे पास आने लगा. जब भी वह फुरसत में होता, चला आता. एकदूसरे के बारे में काफ़ीकुछ जान लेने के बाद हमारे बीच काफ़ी बातें होतीं.

वह मुझ से कहता, ‘अंकल, पहले 15-16 साल की उम्र में लोगों की शादी हो जाती थी, और अब देखिए, 30 साल तक के लड़केलड़कियां कुंआरे घूम रहे हैं. क्या आप को नहीं लगता कि इस उम्र तक शरीर को दूसरे किसी शरीर की चाहत तो रहती ही होगी? क्या शरीर यह बात समझता है कि अभी हमारे मालिक की नौकरी नहीं लगी है तो मुझे दबसिकुड़ कर रहना है, सूखे ठूंठ की तरह.’

मैं उस की बात अच्छी तरह समझ गया क्योंकि यह वही बात थी जो मेरे मन में भी आती ही थी.

‘क्या यह हमारा अपराध है? वह कहता.

मैं उस की बात से सहमत होते हुए भी उसे समझाने लगता, ‘लेकिन शादी के विकल्प भी तो हैं?’

लड़का अब एकाएक थोड़ा खुल गया, बोला, ‘अंकल, कौन सा विकल्प ऐसा है जिसे समाज गलत या अपराध नहीं मानता, बताइए कोई एक? शरीर में मल, मूत्र, लार, कफ बनते हैं तो निकाल कर फेंकने ही पड़ते हैं.’

बात करतेकरते हम दोनों और नज़दीक आ जाते.

मैं अपने अकेलेपन से त्रस्त तो था ही, एक दिन बैठेबैठे मेरे मन में आया कि क्यों न मैं भी डांस सीख लूं? ठीक है कि अब इस उम्र में मुझे कोई कैरियर नहीं बनाना, कहीं प्रस्तुति नहीं देनी, पर अपने मन की ख़ुशी और तन की व्यस्तता का एक उपाय तो यह है ही.

दोचार दिन बीते होंगे कि लड़के को डांस का एक ट्यूशन और मिल गया. यह ट्यूशन मेरा ही था. अब वह सप्ताह में 2 दिन मुझे भी डांस सिखाने लगा. फ़िर रोज़ दरवाज़ा बंद कर के तेज़ संगीत की आवाज़ में मैं लगभग एक घंटे तक अकेले ही उस के सिखाए स्टैप्स दोहराता. एक ही कालोनी में पासपास 2 स्टूडैंट्स होने का यह लाभ उसे भी हुआ कि उस का समय अब इंतजार में खराब नहीं होता था. उस की आमदनी भी दोगनी हो गई. दोनों में से जिस के घर की लाइट्स उसे जली दिखाई देती थीं, वहां वह पहले चला जाता था. इस उम्र के मेरे जैसे नए विद्यार्थी के साथ उसे बहुत मज़ा आता. दोनों झूम कर नाचते. नाचतेनाचते दोनों इतना थक कर चूर हो जाते कि… और सारी थकान उतर जाती.

डांस के बाद थक कर हम दोनों गुरुशिष्य निढाल हो जाते और 10-15 मिनट तक दोनों एकदूसरे से लिपटे पड़े रहते.

एक दिन इसी अवस्था में पड़े हुए देख कर उस ने मेरी ओर अचरज से देखा और बोला, ‘क्या ढूंढ रहे हैं अंकल? लगता है जैसे आप का कुछ खो गया है?’ कहता हुआ वह चेहरे पर कोई रहस्यमय मुसकान ले कर उठ गया. कुछ देर में वह वापस चला गया.

कभीकभी वह कहा करता था कि डांस की क्लास खत्म होते ही हमारा गुरुचेले का रिश्ता खत्म हुआ. आप बड़े हैं, थक गए होंगे, लाइए आप के पांव दबा दूं? मैं कहता कि तुम भी तो दिनभर की मेहनत के बाद थक जाते होगे, लाओ तुम्हारी क़मर को कुछ आराम दूं.

पहले तो लड़के को इस बात पर घोर आश्चर्य हुआ था कि मैं अब इस उम्र में डांस सीखूंगा लेकिन जल्दी ही उस ने समझ लिया कि बुढ़ापे में आदमी मजबूर सा हो जाता है. उसे कोई नचाने वाला हो, तो कितना भी नाच ले.

एक दिन एक चमत्कार हुआ. मैं बैठा ही था कि दरवाजे की घंटी बजी. दरवाजा खोला तो सामने एक महिला खड़ी थी. एकाएक मैं उसे पहचाना तो नहीं किंतु ऐसा लगा जैसे शायद ये वही हैं जो मेरे डांसटीचर से डांस सीखती हैं. मैं ने अकसर सड़क पर आतेजाते उन्हें देखा ज़रूर था.

अभिवादन के बाद मैं ने उन्हें बैठाया. वे इधरउधर देखते हुए कुछ संकोच से बोलीं, ‘अभी अभिनव का फ़ोन आया था, वही कोरियोग्राफर सर.’

‘ओह, अच्छा, मुझे पता नहीं था कि उन का नाम अभिनव है,’ मैं ने कहा.

‘जी उन्होंने कहा है कि आज उन्हें कुछ देर हो जाएगी, तो…’

‘क्या वो नहीं आएंगे?’ मुझे लगा कि महिला कुछ झिझक रही हैं.

‘नहीं, नहीं, वे देर से आएंगे पर उन्होंने कहा कि मैं तब तक कुछ ऐसे वो स्टैप्स आप को सिखा दूं जो वो मुझे सिखा चुके हैं, क्योंकि वास्तव में वो 2 लोगों के युगल डांस के स्टैप्स हैं, इसलिए अकेलेअकेले समझ में भी नहीं आते,’ उन्होंने कुछ संकोच से कहा.

यह मेरे लिए सुखद आश्चर्य था. कुछ मिनट बाद मैं और वो अपरिचित महिला एक तेज़ धुन पर एकसाथ डांस कर रहे थे. मैं जल्दी ही उन के बताए स्टैप्स सीख गया था और अब हम दोनों ही सुविधाजनक ढंग से साथ में नाच रहे थे.

मुझे महिला की अगवानी की हड़बड़ी में शायद यह भी ध्यान नहीं रहा था कि मैं ने दरवाजा बंद नहीं किया है. हम नाचतेनाचते मनोयोग से घूम कर पलटे तो देखा कि अभिनव, हमारा डांस टीचर, सामने खड़ा ताली बजा रहा था.

‘वाह, वाह, ऐक्सीलैंट,’ उस ने कहा तो हम दोनों अचकचा कर रुक गए.

हम तीनों ने एकसाथ चाय पी, जिसे वो महिला ही मेरी रसोई में जा कर बना कर लाई थीं.

अभिनव ने मुझे बताया कि डांस मन की ख़ुशी का प्रदर्शन भी है, आप दोनों इतने नज़दीक रहते हुए भी एकदूसरे से मिले नहीं, जबकि दोनों को ही डांस का शौक़ है. अब से मैं आप को सिखाऊंगा अलगअलग, पर दिन में एक बार किसी भी समय आप लोग एकसाथ प्रैक्टिस किया करेंगे.

मानो, अब से हमारी ज़िंदगी ही बदल गई. अब हम समाज से शिकायतें नहीं करते थे, कि अकेले समय ही नहीं कटता. हम अब ऐसे मित्र बन गए थे कि दिन में एक बार आधे घंटे के लिए मिलते थे, पर उस आधे घंटे की प्रतीक्षा कई घंटों तक रहती. ऐसा लगता था कि तनमन में बने बांध में अब ठहरा पानी हमें तंग नहीं करता था. वह बह कर न जाने कहां ओझल हो जाता था.

मुझे बरसों पहले मुंबई के एक मुशायरे में सुनी पंक्तियां अकसर याद आ जाती थीं- ‘दूर सागर के तल में, बूंदभर प्यास छिपी है, सभी की नज़र बचा कर, वहीं जाता है पानी…’

अब कभीकभी रात को सोने से पहले मैं सोचता था कि अगर रात को सपने में मेरी पत्नी आई और उस ने यह पूछा कि आप के साथ दोपहर को कौन होता है? तो मैं उसे बता दूंगा कि उस से मेरा कोई लेनादेना नहीं है, वह तो मेरी क्लासफैलो है.  हम साथ में एक ही टीचर से पढ़ते हैं और होमवर्क में एकदूसरे की मदद करते हैं.

 

विंटर स्पेशल : सर्दियों में स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है मखाना

क्या आप जानते हैं सर्दियों में सब से अच्छा स्नैक्स मखाने हैं. जी हां सर्दी में शरीर को बीमारियों से बचाए रखने में मखाने बहुत फायदेमंद है. वैसे तो सारे सूखे मेवे गुणों से भरपूर होते हैं लेकिन मखाने पौष्टिक तत्त्वों में बादाम और अखरोट से भी उत्तम है. इस में प्रौटीन, एंटीऔक्सीडैंट, विटामिन, फाइबर कैल्शियम, मिनरल्स, न्यूट्रिशियंस और फास्फोरस जैसे तत्त्व पाए जाते हैं. यह तत्त्व शरीर के पोषण के लिए बहुत जरूरी है.

मखाने कमल के बीजों की लाही है. इसे आर्गेनिक हर्बल भी कहते हैं क्योंकि यह बिना किसी रासायनिक खाद या कीटनाशक के उपयोग के उगाया जाता है. इस में बहुत सारे औषधीए गुण हैं.

मखाने के फायदे

  • मखाने में ग्लाइसैमिक इंडैक्स की मात्रा कम होती है इसलिए यह मधुमेह के रोगी के लिए एक उत्तम नाश्ता है. यह उन के लिए पौष्टिक तो है ही, साथ में यह उन के रक्त शर्करा स्तर को भी नियंत्रण में रखते हैं.
  • मखाने में कम सोडियम होता है लेकिन पोटोशियम और मैग्नीशियम इस में अच्छी मात्रा में पाया जाता है इसलिए जो उच्च रक्तचाप, तनाव से पीडि़त है उन के लिए मखाने का सेवन करना काफी लाभदायक होता है.
  • मखाने में कैलोरी, वसा और सोडियम कम होते हैं इसलिए इसे किसी भी वक्त खाया जा सकता है. यही नहीं, इसे खाने से पेट भी जल्दी भरता है जिस से भूख कम लगती है.
  • इस में कैल्शियम पाया जाता है जो हड्डियों और दांत के लिए फायदेमंद है.
  • मखाने में एस्ट्रिजेट होता है जो किडनी की बीमारी से बचाता है.
  • जो लोग अपना वजन कम करना चाहते हैं उन के लिए मखाने किसी वरदान से कम नहीं है. इन में वसा नहीं होता, साथ ही इसे खाने से पेट भी भर जाता है तो भूख भी कम लगती है.

मखाने में मौजूद फ्लेवोनोइड्स एंटी औक्सीडैंट होता है. यह मुक्त कणों से लड़ता है और उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को धीमा करता है. यह आप के स्वास्थ्य में सुधार करता है. मखाने त्वचा को पोषित कर झुर्रियों से छुटकारा दिलाते हैं. मखाने खाने से उम्र बढ़ने के संकेत जैसे झुर्रियां और बालों का सफेद होना जैसे लक्षण कम होते हैं तो अपनी त्वचा की देखभाल के लिए आज से ही मखाने खाना शुरू कर दें.

मखाने में प्रौटीन काफी अधिक मात्रा में मौजूद होता है. जो लोग अपने दैनिक आहार में प्रौटीन का सेवन अच्छे से नहीं कर पाते हैं उन के लिए मखानों का उपयोग करना लाभदायक हो सकता है.

मखाने खाने से दिल और किडनी की बीमारियों से बचा जा सकता है. यह किडनी को मजबूत बनाने और शरीर में खून का प्रवाह ठीक तरह से चलाने में मददगार है.

मखाने में जो प्रौटीन, कार्बोहाइड्रेड, फैट, मिनरल और फौस्फोरस आदि पौष्टिक तत्त्व होते हैं वे कामोत्तेजना को बढ़ाने का काम करते हैं. साथ ही शुक्राणुओं की क्वालिटी को बेहतर बनाने के साथसाथ उस की संख्या को भी बढ़ाने में सहायता करते हैं.

खाएं मखाने कुछ इस तरह

  • मखाने को दूध में उबाल कर किशमिश, बादाम डाल कर खाएं.
  • मखाने को पनीर की सब्जी में डालें. इस के पोषक तत्त्व और स्वाद और भी बढ़ जाते हैं.
  • देसी घी में मखाने डाल कर रोस्ट कर लें. थोड़ा नमक मिला कर चाय के साथ खाएं.
  • सूप के साथ मखाने फ्राई कर के खाएं.
  • नारियल, मूंगफली, सरसों के बीच के साथ मखाने मिला कर चटनी बनाएं.
  • मखाने से कई तरह के व्यंजन भी बनाए जाते हैं. जैसे मखाने की खीर, मखाना नमकीन, क्रीमी मखाने और मशरूम, मखाना मंचीज, मखाना चिक्की, मखाने पनीर की सब्जी, पालक मखाना, मटर मखाना, सोया मखाना आदि कई चीजे बनाई जा सकती हैं.

मखाने के इतने लाभ जान कर आज से ही नियमित तौर पर सही तरीके से अपनी डाइट में शामिल करें.

फेसबुक फ्रैंडशिप-भाग 3 : जब सच्चाई से वास्ता पड़ता है तो ये होता है

लड़के की खुशी का ठिकाना न रहा. यही तो चाहता था वह. कमैंट्स, शेयर, लाइक और इतनी सारी बातें, इतना घुमावफिराव इसलिए ही तो था. लड़के ने फौरन जवाब दिया, ‘‘लव यू टू.’’

रात में दोनों की एसएमएस से थोड़ीबहुत बातचीत होती थी, लेकिन इस बार बात थोड़ी ज्यादा हुई. लड़की ने एसएमएस किया, ‘‘तुम्हारी फैंटेसी क्या है?’’

‘‘फैंटेसी मतलब?’’

‘‘किस का चेहरा याद कर के अपनी कल्पना में उस के साथ सैक्स…’’

लड़के को उम्मीद नहीं थी कि लड़की अपनी तरफ से सैक्स की बातें शुरू करेगी, लेकिन उसे मजा आ रहा था. कुछ देर वह चुप रहा. फिर उस ने उत्तर दिया, ‘‘श्रद्धा कपूर और तुम.’’

लड़की की तरफ से उत्तर आया, ‘‘शाहरुख.’’

फिर एक एसएमएस आया, ‘‘आज तुम मेरे साथ करो.’’ लड़की शायद भूल गई थी उस ने जो चेहरा फेसबुक पर लगाया है वह उस का नहीं है. एसएमएस में लड़की ने आगे लिखा था, ‘‘और मैं तुम्हारे साथ.’’

‘‘हां, ठीक है,’’ लड़के का एसएमएस पर जवाब था.

‘‘ठीक है क्या? शुरू करो, इतनी रात को तो तुम बिस्तर पर अपने कमरे में ही होंगे न.’’

‘‘हां, और तुम?’’

‘‘ऐसे मैसेज बंद कमरे से ही किए जाते हैं. ये सब करते हुए हम अपने मोबाइल चालू रख कर अपने एहसास आवाज के जरिए एकदूसरे तक पहुंचाएंगे.’’

‘‘ठीक है,’’ लड़के ने कहा. फिर उस ने अपने अंडरवियर के अंदर हाथ डाला. उधर से लड़की की आवाजें आनी शुरू हुईं. बेहद मादक सिसकारियां. फिर धीरेधीरे लड़के के कानों में ऐसी आवाजें आने लगीं मानो बहुत तेज आंधी चल रही हो. आंधियों का शोर बढ़ता गया.

लड़के की आवाजें भी लड़की के कानों में पहुंच रही थीं, ‘‘तुम कितनी सुंदर हो. जब से तुम्हें देखा है तभी से प्यार हो गया. मैं ने तुम्हें बताया नहीं. अब श्रद्धा के साथ नहीं, तुम्हारे साथ सैक्स करता हूं इमेजिन कर के. काश, किसी दिन सचमुच तुम्हारे साथ सैक्स करने का मौका मिले.’’

लड़की की आंधीतूफान की रफ्तार बढ़ती गई, ‘‘जल्दी ही मिलेंगे फिर जो करना हो, कर लेना.’’

थोड़ी देर में दोनों शांत हो गए. लेकिन अब लड़का सैक्स की मांग और मिलने की बात करने लगा. जिस के लिए लड़की ने कहा, ‘‘मैं तैयार हूं. तुम दिल्ली आ सकते हो. हम पहले मिल लेते हैं वहीं से किसी होटल चलेंगे.’’

लड़के ने कहा, ‘‘मुझे घर वालों से झूठ बोलना पड़ेगा और पैसों का इंतजाम भी करना पड़ेगा. हां, संबंध बनने के बाद शादी के लिए तुरंत मत कहना. मैं अभी कालेज कर रहा हूं. प्राइवेट जौब में पैसा कम मिलेगा. और आसानी से मिलता भी नहीं है काम, लेकिन मेरी कोशिश रहेगी कि…’’

लड़की ने बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम आ जाओ. पैसों की चिंता मत करो. मेरे पास अच्छी सरकारी नौकरी है. शादी कर भी ली तो तुम्हें कोई आर्थिक समस्या नहीं होगी.’’

‘‘मैं कोशिश करता हूं.’’ और लड़के ने कोशिश की. घर में झूठ बोला और अपनी मां से इंटरव्यू देने जाने के नाम पर रुपए ले कर दिल्ली चला गया. पिताजी घर पर होते तो कहते दिखाओ इंटरव्यू लैटर. लौटने पर पूछेंगे तो कह दूंगा कि गिर गया कहीं या हो सकता है कि लौटने पर सीधे शादी की ही खबर दें. लड़का दिल्ली पहुंचा 6 घंटे का सफर कर के.

घर पर तो जा नहीं सकते. घर का पता भी नहीं लिखा रहता है फेसबुक पर. सिर्फ शहर का नाम रहता है. यह पहले ही तय हो गया था कि दिल्ली पहुंच कर लड़का फोन करेगा. और लड़के ने फोन कर के पूछा, ‘‘कहां मिलेगी?’’

‘‘कहां हो तुम अभी?’’

‘‘स्टेशन के पास एक बहुत बड़ा कौफी हाउस है.’’

‘‘मैं वहीं पहुंच रही हूं.’’

लड़के के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. उस के सामने लड़की का सुंदर चेहरा घूमने लगा. लड़के ने मन ही मन कहा, ‘‘कदकाठी अच्छी हो तो सोने पर सुहागा.’’

लड़का कौफीहाउस में काफी देर  इंतजार करता रहा. तभी उसे सामने आती एक मोटी सी औरत दिखी जिस का पेट काफी बाहर लटक रहा था. हद से ज्यादा मोटी, काली, दांत बाहर निकले हुए थे. मेकअप की गंध उसे दूर से आने लगी थी. ऐसा लगता था कि जैसे कोई मटका लुढ़कता हुआ आ रहा हो. वह औरत उसी की तरफ बढ़ रही थी. अचानक लड़के का दिल धड़कने लगा इस बार घबराहट से, भय से उसे  कुछ शंका सी होने लगी. वह भागने की फिराक में था लेकिन तब तक वह भारीभरकम काया उस के पास पहुंच गई.

‘‘हैलो.’’

‘‘आप कौन?’’ लड़के ने अपनी सांस रोकते हुए कहा.

‘‘तुम्हारी फेसबुक…’’

‘‘लेकिन तुम तो वह नहीं हो. उस पर तो किसी और की फोटो थी और मैं उसी की प्रतीक्षा में था,’’ लड़के ने हिम्मत कर के कह दिया. हालांकि वह समझ गया था कि वह बुरी तरह फंस चुका है.

‘‘मैं वही हूं. बस, वह चेहरा भर नहीं है. मैं वही हूं जिससे इतने दिनों से मोबाइल पर तुम्हारी बात होती रही. प्यार का इजहार और मिलने की बातें होती रहीं. तुम नंबर लगाओ जो तुम्हें दिया था. मेरा ही नंबर है. अभी साफ हो जाएगा. कहो तो फेसबुक खोल कर दिखाऊं?’’

‘‘कितनी उम्र है तुम्हारी?’’ लड़के ने गुस्से से कहा. लड़के ने उस के बालों की तरफ देखा. जिन में भरपूर मेहंदी लगी होने के बाद भी कई सफेद बाल स्पष्ट नजर आ रहे थे.

‘‘प्यार में उम्र कोई माने नहीं रखती, मैं ने यह पूछा था तो तुम ने हां कहा था.’’

‘‘फिर भी कितनी उम्र है तुम्हारी?’’

‘‘40 साल,’’ सामने बैठी औरत ने कुछ कम कर के ही बताया.

‘‘और मेरी 20 साल,’’ लड़के ने कहा.

‘‘मुझे मालूम है,’’ महिला ने कहा.

‘‘आप ने सबकुछ झूठ लिखा अपनी फेसबुक पर. उम्र भी गलत. चेहरा भी गलत?’’

‘‘प्यार में चेहरे, उम्र का क्या लेनादेना?’’

‘‘क्यों नहीं लेनादेना?’’ लड़के ने अब सच कहा. अधेड़ उम्र की सामने बैठी बेडौल स्त्री कुछ उदास सी हो गई.

‘‘अभी तक शादी क्यों नहीं की?’’

‘‘की तो थी, लेकिन तलाक हो गया. एक बेटा है, वह होस्टल में पढ़ता है.’’

‘‘क्या?’’ लड़के ने कहा, ‘‘आप मेरी उम्र देखिए? इस उम्र में लड़के सुरक्षित भविष्य नहीं, सुंदर, जवान लड़की देखते हैं. उम्र थोड़ीबहुत भले ज्यादा हो लेकिन बाकी चीजें तो अनुकूल होनी चाहिए. मैं ने जब अपनी फैंटेसी में श्रद्धा कपूर बताया, तभी तुम्हें समझ जाना चाहिए था.’’

‘‘तुम सपनों की दुनिया से बाहर निकलो और हकीकत का सामना करो? मेरे साथ तुम्हें कोई आर्थिक समस्या नहीं होगी. पैसों से ही जीवन चलता है और तुम मुझे यहां तक ला कर छोड़ नहीं सकते.’’ लड़के को उस अधेड़ स्त्री की बातों में लोभ के साथ कुछ धमकी भी नजर आई.

‘‘मैं अभी आई, जाना नहीं.’’ अपने भारीभरकम शरीर के साथ स्त्री उठी और लेडीज टौयलेट की तरफ बढ़ गई. लड़के की दृष्टि उस के पृष्ठभाग पर पड़ी. काफी उठा और बेढंगे तरीके से फैला हुआ था. लड़का इमेजिन करने लगा जैसा कि फैंटेसी करता था वह रात में.

लटकती, बड़ीबड़ी छातियों और लंबे उदर के बीच में वह फंस सा गया था और निकलने की कोशिश में छटपटाने लगा. कहां उस की वह सुंदर सपनीली दुनिया और कहां यह अधेड़ स्त्री. उस के होंठों की तरफ बढ़ा जहां बाहर निकले बड़बड़े दांतों को देख कर उसे उबकाई सी आने लगी. अपने सुंदर 20 वर्ष के बेटे को देख कर मां अकसर कहती थी, मेरा चांद सा बेटा. अपने कृष्णकन्हैया के लिए कोई सुंदर सी कन्या लाऊंगी, आसमान की परी. इस अधेड़ स्त्री को मां बहू के रूप में देखे तो बेहोश ही हो जाए?

लड़के को लगा फिर एक आंधी चल रही है और अधेड़ स्त्री के शरीर में वह धंसता जा रहा है. अधेड़ के शरीर पर लटकता हुआ मांस का पहाड़ थरथर्राते हुए उसे निगलने का प्रयास कर रहा है. उसे कुछ कसैलाविषैला सा लगने लगा. इस से पहले कि वह अधेड़ अपने भारीभरकम शरीर के साथ टौयलेट से बाहर आती, लड़का उठा और तेजी से बाहर निकल गया. उस की विशालता की विकरालता से वह भाग जाना चाहता था. उसे डर नहीं था किसी बात का, बस, वह अब और बरदाश्त नहीं कर सकता था.

बाहर निकल कर वह स्टेशन की तरफ तेज कदमों से गया. उस के शहर जाने वाली ट्रेन निकलने को थी. वह बिना टिकट लिए तेजी से उस में सवार हो गया. सब से पहले उस ने इंटरनैट की दुनिया से अपनेआप को अलग किया. अपनी फेसबुक को दफन किया. अपना मेल अकाउंट डिलीट किया. अपने मोबाइल की सिम निकाल कर तोड़ दी. जिस से वह उस खूबसूरत लड़की से बातें किया करता था जो असल में थी ही नहीं. झूठफरेब की आभासी दुनिया से उस ने खुद को मुक्त किया. अब उसे घर पहुंचने की जल्दी थी, बहुत जल्दी. वह उन सब के पास पहुंचना चाहता था, उन सब से मिलना चाहता था, जिन से वह दूर होता गया था अपनी सोशल साइट, अपनी फेसबुक और ऐसी ही कई साइट्स के चलते.

वह उस स्त्री के बारे में बिलकुल नहीं सोचना चाहता था. उसे नहीं पता था कि लेडीज टौयलेट से निकल कर उस ने क्या सोचा होगा. क्या किया होगा? बिलकुल नहीं. लेकिन सुंदर लड़की बनी अधेड़ स्त्री तो जानती होगी कि जिस के साथ वह प्रेम की पींगे बढ़ा रही है, वह 20 वर्ष का नौजवान है और आमनासामना होते ही सारी बात खत्म हो जाएगी.

सोचा तो होगा उस ने. सोचा होता तो शायद वह बाद में स्थिति स्पष्ट कर देती या महज उस के लिए यह एक एडवैंचर था या मजाक था. कही ऐसा तो नहीं कि उस ने अपनी किसी सहेली से शर्त लगाई हो कि देखो, इस स्थिति में भी जवान लड़के मुझ पर मरते हैं. यह भी हो सकता है कि उसे लड़के की बेरोजगारी और अपनी सरकारी नौकरी के चलते कोई गलतफहमी हो गई हो. कहीं ऐसा तो नहीं कि वह केवल शारीरिक सुख के लिए जुड़ रही हो, कुछ रातों के लिए.

हां, इधर लडके को याद आया कि उस ने तो शादी की बात की ही नहीं थी. वह तो केवल होटल में मिलने की बात कर रही थी. शादी की बात तो मैं ने शुरू की थी. कहीं ऐसा तो नहीं कि अधेड़ स्त्री अपने अकेलेपन से निबटने के लिए भावुक हो कर बह निकली हो. अगर ऐसा है, तब भी मेरे लिए संभव नहीं था. बात एक रात की भी होती तब भी मेरे शरीर में कोई हलचल न होती उस के साथ.

उसे सोचना चाहिए था. मिलने से पहले सबकुछ स्पष्ट करना चाहिए था. वह तो अपने ही शहर में थी, मैं ने ही बेवकूफों की तरह फेसबुक पर दिल दे बैठा और घर से झूठ बोल कर निकल पड़ा. गलती मेरी भी है. कहीं ऐसा तो नहीं…सोचतेसोचते लड़का जब किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा तो फिर उस के दिमाग में अचानक यह खयाल आया कि पिताजी के पूछने पर वह क्या बहाना बनाएगा और वह बहाने के विभिन्न पहलुओं पर विचार करने लगा.

अनुपमा में बा को झेलना हो रहा है मुश्किल, सोशल मीडिया पर फैंस ने सुनाई खरी-खोटी

सीरियल अनुपमा इन दिनों लगातार चर्चा में बना हुआ है, रोज इस सीरियल में नए-ए ड्रामें देखने को मिलते रहते हैं, बा इन दिनों हर किसी की पर्सनल लाइफ में घूसने की कोशिश कर रही हैं, बीते दिनों अनुज और अनुपमा को खरी-खोटी सुना रही थीं.

लेकिन वह बीते एपिसोड में समर और डिंपी के पीछे पड़ी हुईं हैं, अनुपमा में समर और डिंपी नजदीक आ रहे हैं, जिससे बा को सबसे ज्यादा दिक्कत आ रही है, समर डिंपी से अपने प्यार का इजहार कर चुका है लेकिन वह अपने पॉस्ट कि वजह से आगे नहीं बढ़ पा रहा है.

वहीं बीते एपिसोड में बा ने डिपी को खरीखोटी सुनाई है,जिसके बाद से लगातार बा को लेकर सोशल मीडिया पर कमेंट आ रहे हैं, बीते एपिसोड में दिखाया गया था कि शाह परिवार और अनुज कपाड़िया एक ही इवेंट में संक्राति मना रहे हैं.

इसी दौरान समर डिंपी के लिए हर्ट शेप वाला पतंग लेकर आता है जो कि बा देख लेती है और उसे खरीखोटी सुनाने लगती है, बा कहती है कि हमारे घर में इस जैसी लड़की को एंट्री नहीं मिलेगी. जिसके बाद अनुज और अनुपमा में बहस हो जाती है.

जिसके बाद से लगातार सोशल मीडिया यूजर्स बा को सुना रहे हैं,

एक -दूजे के हुए अथिया और केएल राहुल, तस्वीरें हो रही है वायरल

सुनील शेट्टी की बेटी अथिया शेट्टी और केएल राहुल की शादी की पहली तस्वीर सामने आ चुकी है, अथिया ने अपने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड केएल राहुल के साथ शादी के बंधन में बंधी हैं. अथिया और राहुल एक दूसरे को लंबे टाइम से पसंद कर रहे थें.

कई बार अथिया और राहुल को एक साथ देखा गया था, 4 साल तक एक दूसरे को जानने के बाद दोनों पति पत्नी के रूप में बंध गए हैं. अथिया शादी के जोड़े में काफी खूबसूरत लग रही हैं, दोनों कपल पर फैंस भी खूब प्यार लुटा रहे हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by Athiya Shetty (@athiyashetty)

खंडाला स्थित फार्म हाउस में दोनों ने सात फेरे लिए हैं, फेरे के बाद से अथिया के हाथ चूमते नजर आएं केएल राहुल. जिसके बाद से दोनों ने अपने करीबी रिश्तेदारों का आशीर्वाद लिया.

बता दें कि केएल राहुल और आथिया शेट्टी सूरज कि किरणों के बीच पति -पत्नी बने हैं, जिसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है. वहीं शादी में सुनील शेट्टी के करीबी दोस्त और रिश्तेदार मौजूद थें, जिसमें कृष्णा श्रॉफ को भी तैयार होकर पहुंचते हुए देखा गया. इस दौरान सुनील शेट्टी अपने बेटे अहान शेट्टी के साथ पोज देते नजर आ रहे थें.

इनके अलावा अंशूला कपूर और अर्जून कपूर को भी वैन्यू पर पहुंचते देखा गया . इसके साथ ही फैंस लगातार सोशल मीडिया पर भी अथिया और केएल राहुल को शादी की बधाई दे रहे हैं.

व्रत-भाग 2: क्या अंधविश्वास में उलझी वर्षा को अनिल निकाल पाया?

एक दिन रात के 11 बजे होंगे, अनिल के मन में तरंग उठी. वह उठ कर वर्षा के पलंग के पास जा कर बैठ गया. उस का बैठना था कि वर्षा की आंख खुल गई और वह झट से उठ कर बैठ गई. अनिल ने उसे मनाने की बहुत कोशिश की, किंतु उस ने उसे हाथ तक न लगाने दिया. कहने लगी, ‘‘देखो जी, मैं ने सवा महीने के लिए आप से अलग रहने का व्रत लिया है, अभी 10 दिन बाकी हैं.’’ और फिर उस ने अनिल से अपने कमरे में जा कर सो जाने को कहा. उस के दिल को बहुत गहरी चोट लगी और वह चुपचाप अपने कमरे में आ गया. उसे वर्षा पर बहुत गुस्सा आ रहा था. वह अपनी भूल पर पश्चात्ताप कर रहा था कि मैं ने वर्षा जैसी धर्मांध से क्यों शादी की? मेरा प्यार करने को दिल चाहता है तो मैं कहांजाऊं? उस के दिल में तो यह अरमान ही रहा कि कभी उस की पत्नी उसे प्यार करने के लिए उत्साहित करे, कभी मुसकरा कर उस का स्वागत करे. वर्षा ने हमेशा ही उस का तिरस्कार किया है. उस ने कई तरीकों से उसे समझाने की चेष्टा की, किंतु वर्षा ने अपना नियम न छोड़ा.

एक दिन वर्षा ने साईं बाबा का व्रत रखा हुआ था. उस दिन अनिल की छुट्टी थी और वह घर पर ही था. उस दिन वर्षा न अन्न ग्रहण करती थी और न किसी खट्टी चीज को हाथ ही लगाती थी. कोई 3 बजे के करीब वर्षा का सिर चकराने लगा और दिल घबराने लगा. अनिल ने उसे फल लेने को कहा, किंतु उस का व्रत तो व्रत ही होता था. व्रत वाले दिन वह कोई भी चीज ग्रहण नहीं करती थी और उस के कथनानुसार, वह पक्का व्रत रखती थी.

वर्षा को शौचालय जाना था. जाते समय उसे जोर से चक्कर आया और वहीं गिर गई. अनिल ने किसी चीज के गिरने की आवाज सुनी तो दौड़ा. उस ने देखा कि वर्षा जमीन पर गिरी पड़ी है. उस के सिर पर चोट लग गई थी और सिर से खून बह रहा था. उस ने उसे अपनी बांहों में उठाया और पलंग पर लिटा दिया. उसे हिलायाडुलाया, किंतु उसे जरा भी होश न था. उस ने शीघ्रता से थोड़े से पानी में ग्लूकोस घोल कर चम्मच से उस के मुंह में डाला. 4-5 चम्मच ग्लूकोस उस के गले से नीचे उतरा तो वर्षा ने आंखें खोल दीं. जैसे ही उसे यह ज्ञात हुआ कि उस के मुंह में ग्लूकोस डाला गया है, वह रोने लगी और अनिल को कोसने लगी कि उस ने उस का व्रत खंडित कर दिया है और उसे पाप लगेगा.

‘‘पाप लगता है तो लगे, मैं तुम्हें भूखी नहीं मरने दूंगा,’’ अनिल ने कहा.

‘‘व्रत रख कर भूखी मर जाऊंगी तो मोक्ष प्राप्त होगा. जन्ममरण के बंधन से मुक्त हो जाऊंगी,’’ वर्षा ने श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा.

‘‘तुम्हें चक्कर क्यों आया, यह भी जानती हो? तुम्हारे पेट में कुछ नहीं था, इसीलिए चक्कर आया था.’’

‘‘मुझे ग्लूकोस पिला कर तुम ने मेरा व्रत तोड़ दिया है, अब संतोषी मां के 10 व्रत और रखने पड़ेंगे.’’

‘‘मैं पूछता हूं कि ये साईं बाबा पहले कहां थे? पहले तो हम ने इस देवता का कभी नाम भी नहीं सुना था. ये अचानक कहां से आ गए? और फिर इन के भक्तों का भी पता नहीं चलता. आंखें मूंद कर भेड़चाल चलने लग जाते हैं अंधविश्वासी कहीं के,’’ अनिल ने तर्क दे कर कहा. उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वर्षा कैसे भूखी रह लेती है. हफ्ते में 7 दिन होते हैं और इतने ही वह व्रत रख लेती है. मंगल को व्रत, शुक्रवार को व्रत. इस बीच सोमवती अमावस्या, पूर्णमासी, एकादशी, द्वादशी, करवाचौथ, महालक्ष्मी…सभी तो व्रत रख लेती है वह. व्रत…व्रत…व्रत…हर रोज व्रत. वह बहुत दुखी हो चुका था वर्षा के व्रतों से.

साल में 2 बार नवरात्रे आते. उन दिनों में अनिल की शामत आ जाती. घर में खेती कर दी जाती और सब्जीतरकारी में प्याज का इस्तेमाल बंद हो जाता, जिस से अनिल को तरकारी में जरा भी स्वाद नहीं आता था. वहीं, जरा सी ही कोई प्यार की बात की तो उसे कोप से डराया जाता. उसे खेती से दूरदूर रहने का आदेश दिया जाता. चाहे कितनी भी सर्दी हो, उन दिनों वर्षा अवश्य ही तड़के सुबह स्नान करती और अनिल को भी नहाने के लिए मजबूर कर देती. एक तो वर्षा का शरीर पहले ही कमजोर था, उस पर ठंडे पानी से स्नान. कई बार उसे जुकाम हुआ, सर्दी लग कर बुखार भी हुआ, किंतु उस ने नहाना न छोड़ा.

कई बार अनिल ने वर्षा से गंभीर हो कर व्रत रखने के लाभ पूछे. वह यही जवाब देती, ‘इस से पुण्य होता है, देवीदेवता खुश होते हैं.’ क्या पुण्य होता है, यह वह कभी न बता पाती. हां, लक्ष्मी के व्रत रखने से धन की प्राप्ति होती है, यह अवश्य बता दिया करती थी. किंतु दफ्तर के मासिक वेतन के अतिरिक्त अनिल को कभी और कहीं से धन की प्राप्ति नहीं हुई थी.

एक बार उस ने वर्षा से पूछा, ‘‘तुम पूर्णमासी का जो व्रत रखती हो और सत्यनारायण की कथा सुनती हो, इस में है क्या? इस में सत्यनारायण की कथा नाम की तो कोई चीज ही नहीं है. सिवा इस के कि अमुक ने सत्यनारायण का प्रसाद नहीं लिया तो उसे अमुक कष्ट हुआ. इस के अतिरिक्त इस कथा में कुछ भी नहीं लिखा है?’’

‘‘यही तो कथा है. अगर तुम भी पूर्णमासी का व्रत रख कर सत्यनारायण की कथा सुनो तो तुम्हारी तरक्की हो सकती है, धनदौलत में वृद्धि हो सकती है,’’ वर्षा ने समझाते हुए कहा.

‘‘मुझे इस की जरूरत नहीं है. तरक्की बारी आने पर ही होती है. जब बारी आएगी तो हो जाएगी. इस से पहले कभी नहीं हो सकती चाहे तुम कितने ही व्रत रखो. और तुम देवीदेवताओं के जो व्रत रखती आ रही हो, उन का चमत्कार मैं ने तो आज तक नहीं देखा,’’ अनिल ने टिप्पणी की.

‘‘कैसा चमत्कार देखना चाहते हो?’’

‘‘ऐसा चमत्कार कि असंभव संभव हो जाए, जैसे कि तुम्हारी लौटरी निकल आए, मुझे कहीं से बनाबनाया मकान मिल जाए, मेरी अचानक तरक्की हो जाए.’’?

‘‘ऐसे चमत्कार नहीं होते.’’

‘‘तो फिर व्रत रखरख कर अपने शरीर को कष्ट देने से क्या लाभ? जो मिलना होगा, वह अवश्य मिलेगा. जो नहीं मिलना, वह नहीं मिलेगा.’’

‘‘तुम फिर नास्तिकों वाली बातें करने लगे?’’

‘‘मेरा तो यही कहना है कि व्रतों में कुछ नहीं रखा है, श्राद्धों में कुछ नहीं धरा है. इंसान को अच्छे काम करने चाहिए, उन का फल हमेशा अच्छा होता है.’’

‘‘मैं भी इस से सहमत हूं.’’

‘‘तो फिर व्रत…’’ अभी अनिल की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि वर्षा बीच में ही बोल पड़ी, ‘‘अच्छा, अब तुम मुझे व्रत रखने के लिए रोक मत देना. मेरी हर देवीदेवता में श्रद्धा है और उन पर पूरी आस्था है. मेरी आस्था तुड़वाने की कोशिश मत करना.’’ इतना कह कर वह गुस्से में उठ कर चली गई.

उस दिन करवाचौथ का व्रत था. हर ब्याहता स्त्री पति की लंबी उम्र के लिए यह व्रत रखती है. इस व्रत में तड़के 4 बजे खाना खाया जाता है. सारा दिन पानी तक ग्रहण करने की मनाही होती है. यह व्रत कड़ा व्रत माना जाता है. रात को जब चांद निकलता है, तब औरतें चांद को देख कर अर्ध्य देती हैं और फिर अन्नजल ग्रहण करती हैं. वर्षा ने सुबह उठ कर स्नान किया, फिर सरगी खाई. अनिल को भी उठाया. उस ने भी थोड़ाबहुत खाया और फिर दोनों सो गए. सुबह व्रत आरंभ हो चुका था. चूंकि अनिल ने सुबह कुछ खा लिया था, इसलिए खाने की इच्छा नहीं थी. वर्षा तो पूजा करने बैठ गई, अनिल ने स्वयं ही एक कप चाय बनाई और पी कर दफ्तर चला गया.

 

ननद भाभी : एक रिश्ता हंसी-ठिठोली का

अकसर देखा जाता है कि ननद के हावी होने के कारण भाभी पर बहुत अत्याचार होते हैं. ननद चाहे मायके में रहती हो या ससुराल में, वह भाभी के विरुद्ध अपनी मां के कान भरती है. भाई को भी भड़काती रहती है. इस का कारण यह है कि बहन, भाई पर अपना पूर्ण अधिकार समझती है और अपने गर्व, अहं को ऊपर रखना चाहती है. यदि भाई अदूरदर्शी हो तो बहन की बातों में आ जाता है और फिर उस की पत्नी अत्याचार का शिकार होती रहती है.

क्या कभी ननदभाभी के इन विवादों के पीछे का कारण सोचा है? यदि आप कारण टटोलेंगे तो आप को जवाब मिलेगा ‘मैं का भाव.’ यह भाव जब तक आप में रहेगा तब तक आप किसी के भी साथ अपने रिश्तों की गाड़ी को लंबी दूरी तक नहीं चला पाएंगे.

हाल ही की एक घटना है, जिस में लखनऊ निवासी एक परिवार में भाभी और ननद की छोटीमोटी बात पर अकसर बहस हो जाती थी. ननद से जब यह बरदाश्त नहीं हुआ तो उस ने अपनी भाभी के साथ हुई बहस को ले कर साजिश रच डाली.

अचानक उस के भाई को एक अनजान नंबर से फोन आने लगे. पूछने पर उस ने बताया कि वह उस की पत्नी का प्रेमी बोल रहा है. बात यहां तक बढ़ गई कि शादी के 4 महीने बाद ही तलाक की नौबत आ गई. 2 महीने से विवाहिता अपने मायके में है. विवाहिता ने महिला हैल्प लाइन से मदद मांगी. जांच शुरू होते ही ननद की रची साजिश का परदाफाश हो गया.

वजहें छोटी विवाद बड़े: ननद और भाभी के झगड़े की कई सामान्य वजहें होती हैं जैसे शादी से पहले तो घर की हर चीज पर ननद का अधिकार होता है, परंतु शादी के बाद हालात बदल जाते हैं. अब ननद घर की मेहमान बन जाती है और भाभी घर की मालकिन. ऐसे में हर छोटीबड़ी बात पर ननद का हस्तक्षेप घर की बहू से बरदाश्त नहीं होता. बस, यहीं से शुरुआत होती है इस रिश्ते में कड़वाहट की.

यह एक सार्वभौमिक सत्य है कि हमें कभी न कभी अधिकारों का हस्तांतरण करना ही पड़ता है. हम हमेशा मालिक बन कर बैठे रहेंगे तो हम कभी किसी का प्यार व विश्वास हासिल नहीं कर पाएंगे. हमारी थोड़ी सी विनम्रता व अधिकारों का विभाजन हमारे रिश्तों को मधुर बना सकता है.

प्राथमिकताएं बदलती हैं: बहन होने के नाते आप को यह बात समझनी होगी कि विवाह के बाद भाई की जिम्मेदारियां और प्राथमिकताएं भी बदल जाती हैं. खुद को भावनात्मक रूप से दूसरों पर आश्रित न करें, बल्कि उन दोनों का रिश्ता मजबूत करने में मदद करें. ननद और भाभी को यह समझना चाहिए कि किसी भी व्यक्ति के लिए पत्नी और बहन दोनों जरूरी हैं. इसलिए उस पर दोनों में से किसी एक का चुनाव करने के लिए दबाव न डालें.

प्रभुत्व: यह सच है कि नए घर में हर भाभी चाहती है कि उस की स्वतंत्रता हो और उसे अपनी मरजी से काम करने दिया जाए, जबकि ननद को लगता है कि जब पहले भी उस की बातें मानी जाती थीं तो भाई की शादी के बाद भी वैसा ही हो. जब इस घर में हमेशा उसी की सुनी जाती थी तो अब भी उसी की सुनी जाए. लेकिन दोनों को समझना होगा कि वक्त के साथ परिस्थितियों में भी बदलाव आता है.

हमउम्र होना: भाभी और ननद दोनों की उम्र अकसर समान होती है. दोनों को समझना चाहिए कि उन की वजह से उन के भाई या पति को परेशानी न हो. एक उम्र होने के कारण दोनों के बीच अकसर लड़ाई होती रहती है. ननदभाभी के रिश्ते को दोस्ती में बदलने की कोशिश करें. मतभेद के दौरान दोनों शांत रहें. कोशिश करें कि विवाद बढ़ने से पहले ही सुलझ जाए.

रिश्तों को जोड़ने से पूर्व हमें उन के दूरगामी परिणामों के बारे में भी सोचना चाहिए, क्योंकि हमें इन की राह पर लंबी दूरी तक चलना होता है. रिश्ते बना कर तोड़ने की चीज नहीं होते हैं. ये तो ताउम्र निभाने के लिए होते हैं. जब जीवन भर इन्हें निभाना है तो क्यों न प्यार के अमृत से बैर का जहर दूर किया जाए और ननदभाभी के रिश्ते को 2 बहनों का रिश्ता बनाया जाए?

दुस्वपन-भाग 1 : आखिर क्यों 30 साल बाद घर छोड़कर जाने लगी संविधा

लगभग 30 वर्षों से साथ रहने वाली संविधा एक दिन अचानक पति का साथ और घर छोड़ने को तैयार हो गई. आखिर क्यों कर रही थी वह ऐसा?

संविधा ने घर में प्रवेश किया तो उस का दिल तेजी से धड़क रहा था. वह काफी तेजतेज चली थी,  इसलिए उस की सांसें भी काफी तेज चल रही थीं. दम फूल रहा था उस का. राजेश के घर आने का समय हो गया था, पर संयोग से वह अभी आया नहीं था. अच्छा ही हुआ, जो अभी नहीं आया था. शायद कहीं जाम में फंस गया होगा. घर पहुंच कर वह सीधे बाथरूम में गई. हाथपैर और मुंह धो कर बैडरूम में जा कर जल्दी से कपड़े बदले.

राजेश के आने का समय हो गया था, इसलिए रसोई में जा कर गैस धीमी कर के चाय का पानी चढ़ा दिया. चाय बनने में अभी समय था,  इसलिए वह बालकनी में आ कर खड़ी हो गई.

सामने सड़क पर भाग रही कारों और बसों के बीच से लोग सड़क पार कर रहे थे. बरसाती बादलों से घिरी शाम ने आकाश को चमकीले रंगों से सजा दिया था.

सामने गुलमोहर के पेड़ से एक चिडि़या उड़ी और ऊंचाई पर उड़ रहे पंछियों की कतार में शामिल हो गई. पंछियों के पंख थे, इसलिए वे असीम और अनंत आकाश में विचरण कर सकते थे.

वह सोचने लगी कि उन में मादाएं भी होंगी. उस के मन में एक सवाल उठा और उसी के साथ उस के चेहरे पर मुसकान नाच उठी, ‘अरे पागल, ये तो पक्षी हैं, इन में नर और मादा क्या? वह तो मानव है,  वह भी औरत.

सभी जीवों में श्रेष्ठ मानव प्रजाति है. सोचनेविचारने के लिए बुद्धि है. सुखदुख, स्नेह, माया, ममता और क्रोध का अनुभव करने के लिए उस के पास दिल है. कोमल और संवेदनशील हृदय है, मजबूत कमनीय काया है. पर कैसी विडंबना है कि बराबर की होने के बावजूद उस की मानव देह नारी की है. इसलिए, उस पर तमाम बंधन हैं.

संविधा के मन के पंछी के पंख पैदा होते ही काट दिए गए थे, जिस से वह इच्छानुसार ऊंचाई पर न उड़ सके. उस की बुद्धि को इस तरह गड़ा गया था कि वह स्वतंत्र रूप से सोच न सके. उस के मन को इस तरह कुचल दिया गया था कि वह सदैव दूसरों के अधीन रहे, दूसरों के वश में रहे. इसी में उस की भलाई थी. यही उस का धर्म और कर्तव्य था. इसी में उस का सुख भी था और सुरक्षा भी.

शादी हुए 30 साल बीत चुके थे. लगभग आधी उम्र बीत चुकी थी उस की. इस के बावजूद अभी भी उस का दिल धड़कता था, मन में डर था. देखा जाए तो वह अभी भी एक तरह से हिरनी की तरह घबराई रहती थी. राजेश औफिस से घर आ गया होगा तो…? तो गुस्से से लालपीला चेहरा देखना होगा, कटाक्षभरे शब्द सुनने पड़ेंगे.

‘मैं घर आऊं तो मेरी पत्नी को घर में हाजिर होना चाहिए’, ‘इतने सालों में तुम्हें यह भी पता नहीं चला’, ‘तुम्हारा ऐसा कौन सा जरूरी काम था, जो तुम समय पर घर नहीं आ सकीं?’ जैसे वाक्य संविधा पहले से सुनती आई थी.

वह कहीं बाहर गई हो, किसी सहेली या रिश्तेदार के यहां गई हो, घर के किसी काम से गई हो, अगर उसे आने में थोड़ी देर हो गई तो क्या बिगड़ गया? राजेश को जस का तस सुनाने का मन होता. शब्द भी होंठों पर आते, पर उस का मिजाज और क्रोध से लालपीला चेहरा देख कर वे शब्द संविधा के गले में अटक कर रह जाते. जब तक हो सकता था, वह घर में ही रहती थी.

एक समय था जब संविधा को संगीत का शौक था. कंठ भी मधुर था और हलक भी अच्छा था. विवाह के बाद भी वह संगीत का अभ्यास चालू रखना चाहती थी. घर के काम करते हुए वह गीत गुनगुनाती रहती थी. यह एक तरह से उस की आदत सी बन गई थी. पर जल्दी ही उसे अपनी इस आदत को सुधारना पड़ा, क्योंकि यह उस की सास को अच्छा नहीं लगता था.

सासुमां ने कहा था, ‘अच्छे घर की बहूबेटियों को यह शोभा नहीं देता.’

बस, तब से शौक धरा का धरा रह गया. फिर तो एकएक कर के 3 बच्चों की परवरिश करने तथा एक बड़े परिवार में घरपरिवार के तमाम कामों को निबटाने में दिन बीतने लगे. कितनी बरसातें और बसंत ऋतुएं आईं और गईं, संविधा की जिंदगी घर में ही बीतने लगी.

‘संविधा तुम्हें यह करना है, तुम्हें यह नहीं करना है’, ‘आज शादी में चलना है, तैयार हो जाओ’, ‘तुम्हारे पिताजी की तबीयत खराब है, 3-4 दिन के लिए मायके जा कर उन्हें देख आओ. 5वें दिन वापस आ जाना, इस से ज्यादा रुकने की जरूरत नहीं है’ जैसे वाक्य वह हमेशा सुनती आई है.

घर में कोई मेहमान आया हो या कोई तीजत्योहार या कोई भी मौका हो, उसे क्या बनाना है, यह कह दिया जाता. क्या करना है, कोई यह उस से कहता और बिना कुछ सोचेविचारे वह हर काम करती रहती.

ससुराल वाले उस का बखान करते. सासससुर कहते, ‘बहू बड़ी मेहनती है, घर इसी से चलता है.’

पति राजेश को भी उस का शांत, आज्ञाकारी, लड़ाईझगड़ा न करने वाला स्वभाव अनुकूल लगता था. पति खुशीखुशी तीजत्योहार पर उस के लिए कोई न कोई उपहार खरीद लाता, पर इस में भी उस की पसंद न पूछी जाती. संविधा का संसार इसी तरह सालों से चला आ रहा था.

किसी से सवाल करने या किसी की बात का जवाब देने की उस की आदत नहीं थी. राजेश के गुस्से से वह बहुत डरती थी. उसे नाराज करने की वह हिम्मत नहीं कर पाती थी.

बच्चे अब बड़े हो गए थे. पर अभी भी उस के मन की, इच्छा की, विचारों की, पसंदनापसंद की घर में कोई कीमत नहीं थी. इसलिए इधर वह जब रोजाना शाम को पार्क में, पड़ोस में, सहेलियों के यहां और महिलाओं के समूह की बैठकों में जाने लगी तो राजेश को ही नहीं, बेटी और बहुओं को भी हैरानी हुई.

विंटर स्पेशल :एक, दो नहीं गुड़ खाने से होते हैं ये 25 फायदे, जानें यहां

आमतौर पर मिठास के लिए लोग चीनी यानी शक्कर की ओर भागते हैं. कोई भी मिठाई या मीठी चीज बनाने के लिए ज्यादातर शक्कर को ही तरजीह दी जाती है. मगर वैज्ञानिकों व डाक्टरों के मुताबिक चीनी सेहत के लिए ज्यादा मुनासिब नहीं होती. इसीलिए खानपान के विशेषज्ञ मिठास के लिए हमेशा गुड़ के इस्तेमाल पर जोर देते हैं.

इस मामले में गांवों में रहने वाले लोग ज्यादा समझदार होते हैं, वे ज्यादातर मीठी चीजें बनाने के लिए गुड़ का ही इस्तेमाल करते हैं. गांव के लोग तो चाय भी चीनी की बजाय गुड़ से बनाना पसंद करते हैं.

इस हकीकत से इनकार नहीं किया जा सकता कि गुड़ बेहद गुणकारी होता है. अपनी गरम तासीर और सोंधे मीठे जायके के लिए जाना जाने वाला गुड़ आयरन से भरपूर होता है.

बुंदेलखंड जैसे इलाकों में गुड़ को गोलगोल बड़े लड्डुओं के आकार में बना कर बेचा जाता है, तो तमाम इलाकों में इसे 10 और 5 किलोग्राम के बड़ेबड़े आकारों में ढाल कर मार्केट में पेश किया जाता है. साधारण चौकोर बट्टियों या गोल भेलियों के आकार में भी गुड़ बाजार में मौजूद रहता है. आजकल तो तमाम बड़ी कंपनियां हाईजीनिक तरीके से (यानी बगैर हाथ के इस्तेमाल के) मशीनों के जरीए पैक कर के गुड़ पेश कर रही हैं. हाईजीन यानी सफाई का खास खयाल रखने वालों के लिए यह महंगा गुड़ अच्छा रहता है.

बहरहाल, कुछ कत्थई और पीला सा नजर आने वाला गुड़ किसी भी आकार और प्रकार में मिले, मगर होता है गुणों से भरपूर. सेहत के लिहाज से इस के फायदे बेशुमार हैं. आइए डालते हैं एक नजर गुड़ के खास फायदों पर:

* गुड़ का सब से ज्यादा इस्तेमाल सर्दीजुकाम की तकलीफ होने पर किया जाता है. इस की गरम तासीर सर्दीजुकाम में बहुत राहत पहुंचाती है. इसे पानी में डालने के बाद अच्छी तरह खौला कर पीने पर यह दवा जैसा असर करता है. गुड़ का पानी पीना अच्छा न लगे तो गुड़ की चाय अदरक डाल कर बनाएं. यह जायकेदार चाय सर्दीजुकाम में बहुत राहत पहुंचाती है गुड़ की चाय में दूध हमेशा चाय आंच से उतारने के कुछ देर बाद डालना चाहिए. ऐसा करने से दूध फटता नहीं है.

* गुड़ का रोजाना इस्तेमाल करने वालों का हाजमा हमेशा दुरुस्त रहता है. दरअसल गुड़ शरीर में मौजूद पाचन संबंधी एंजाइमों की क्रियाशीलता बढ़ा देता है. यह आंतों को सही तरीके से काम करने में मदद पहुंचाता है. जब आतें सही तरीके से काम करती हैं, तो कब्ज की तकलीफ नहीं होती है, यानी पेट कायदे से साफ हो जाता है.

* गुड़ के रोजाना इस्तेमाल से शरीर में खून की कमी की शिकायत नहीं होती है, क्योंकि इस में भरपूर मात्रा में आयरन मौजूद होता है. इस के नियमित इस्तेमाल से खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा भी सही बनी रहती है, जो कि अच्छी सेहत के लिए बहुत जरूरी है.

* शरीर के जोड़ों में दर्द व तकलीफ होने पर गुड़ को गिलास भर दूध या अदरक के साथ खाने से बहुत आराम मिलता है.

* गुड़ के भरपूर इस्तेमाल से बदन की तमाम हड्डियां मजबूत होती हैं, नतीजतन आर्थराइटिस की शिकायत भी नहीं होती. इस के अलावा हड्डियों संबंधी तमाम छोटीमोटी तकलीफों से नजात मिल जाती है.

* गुड़ खून बढ़ाता ही नहीं, बल्कि खून साफ भी करता है. इस के रोजाना इस्तेमाल से खून साफ होता रहता है. खून साफ रहने से सेहत भी सही बनी रहती है.

* यह महज खून की सफाई ही नहीं करता, बल्कि अहम अंग लीवर कीभी सफाई करता है. गुड़ खाने से शरीर में मौजूद हानिकारक आक्सिंस बाहर निकल जाते हैं और लीवर की सफाई हो जाती है. लीवर शरीर का अहम अंग होता है और अच्छी सेहत के लिए इस का सहीसलामत रहना जरूरी है. गुड़ को लीवर का रक्षक कह सकते हैं.

* गुड़ में अच्छीखासी मात्रा में एंटीआक्सीडेंट्स व मिनरल पाए जाते हैं, जो अच्छी सेहत के लिए जरूरी होते हैं. इस में पाए जाने वाले सेलेनियम व जिंक जैसे मिनरल स्वस्थ शरीर के लिए बहुत जरूरी होते हैं.

* मोटे और वजनी लोगों के लिए भी गुड़ कारगर साबित होता है. ज्यादा वजन वालों को गुड़ का नियमित इस्तेमाल करना चाहिए. यह शरीर में पानी की मात्रा सही कर के वजन को काबू में रखता है.

* वैज्ञानिकों के मुताबिक गुड़ खाने से इनसान का मिजाज अच्छा हो जाता है, नतीजतन वह मन लगा कर कोई भी काम करता है.

* गुड़ खाने वालों को सिरदर्द जैसी तकलीफों से नजात मिल जाती है. माइग्रेन की तकलीफ में भी गुड़ कारगर किरदार निभाता है और राहत पहुंचाता है.

* रोजाना गुड़ खाने वालों की याददास्त बेहतर होती है और भूलने की शिकायत कम हो जाती है. इस के इस्तेमाल से दिमाग लंबे अरसे तक चौकस बना रहता है.

* गुड़ एक उम्दा काम्पलेक्स कार्बोहाइड्रेट होता है. इस के इस्तेमाल से शरीर लंबे अरसे के लिए मजबूत बना रहता है. यह शरीर को धीरेधीरे ऊर्जा पहुंचाता है. इस के इस्तेमाल से शुगर का लेवल जल्दी से नहीं बढ़ता है.

* गुड़ के इस्तेमाल से सांस से जुड़ी तकलीफें भी दूर होती हैं. अस्थमा या ब्रोनकाइटिस जैसी सांस संबंधी दिक्कतें गुड़ खाने वालों को कम होती हैं.

* गुड़ में तिल मिला कर बनाए गए लड्डू खाने से सांस संबंधी दिक्कतें नहीं होती हैं. बगैर लड्डू बनाए गुड़ व तिल खाने से भी फायदा होता है.

* मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द और क्रैंप्स जैसी तकलीफों में भी गुड़ खाने से आराम मिलता है. गुड़ खाने से इनसान का मूड भी अच्छा हो जाता है.

* अगर गला बैठ जाए और आवाज ढंग से न निकले, तो पके हुए चावलों के साथ गुड़ मिला कर खाने से बहुत फायदा होता है और गला बहुत जल्दी ठीक हो जाता है. कुछ ही देर में आवाज ठीक से निकलने लगती है.

* गुड़ खाने से टाक्सिन दूर होते हैं, नतीजतन त्वचा खिल जाती है. इस के इस्तेमाल से कीलमुहासों से भी नजात मिल जाती है. गुड़ का इस्तेमाल एक्ने की दिक्कत भी दूर करता है.

* बच्चा होने के बाद औरत के पेट की सफाई व पोषण के लिहाज से भी गुड़ बेहद कारगर व फायदेमंद रहता है. इसीलिए डिलीवरी के बाद महिलाओं को गुड़ के सिठौरे (मेवे वाले खास लड्डू) वगैरह बना कर काफी समय तक खिलाए जाते हैं.

* रोजाना खाना खाने के बाद मिठाई के तौर पर थोड़ा सा गुड़ खाना स्वाद, सेहत व हाजमे के लिहाज से काफी कारगर होता है.

* गुड़ में तिल व मूंगफली मिला कर बनाए गए लड्डू या चिक्की (पट्टी) स्वाद व स्वास्थ्य के लिए उम्दा होते हैं.

* गुड़ व लाई (मुरमुरा) मिला कर बनाए गए लड्डू या पट्टी भी हलके नाश्ते के लिहाज से बेहतर होते हैं.

* गुड़ मिला कर बनाए गए बाजरे के पुए (तिल भी मिला सकते हैं) और गुड़, देशी घी व बाजरे की रोटी से बनाया गया मलीदा भी सेहत व स्वाद के लिहाज से लाजवाब होते हैं.

यानी कुल मिला कर गुड़ हमारे स्वाद व सेहत की कसौटी पर खरा सोना साबित होता\ है, लिहाजा इस का भरपूर इस्तेमाल करना चाहिए. अलबत्ता शुगर के मरीज इसे अपने डाक्टर से पूछ कर ही इस्तेमाल करें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें