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कंगन- भाग 1: जब सालों बाद बेटे के सामने खुला वसुधा का राज

लेखिका- गीतिका सक्सेना

‘‘अरे,यह कमरे का क्या हाल बना रखा है रुचिता?’’ कमरे के फर्श पर फैले सामान को देख कर वसुधा ने पूछा.‘‘मां, राघव ने जो हीरे का कंगन दिया था शादी की वर्षगांठ पर नहीं मिल रहा. सारा सामान निकाल कर देख लिया, पता नहीं कहां है. मैं बहुत परेशान हो रही हूं कहीं खो तो नहीं गया. यहीं अलमारी में रखा रहता था… बाकी सब चीजें हैं बस वही नहीं है. राघव को बहुत बुरा लगेगा और नुकसान हो जाएगा सो अलग,’’ रुचिता ने परेशानी भरे स्वर में कहा.

‘‘जाएगा कहां घर में ही होगा तुम ज्यादा परेशान न हो, कहीं रख कर भूल गई होगी, मिल जाएगा,’’ वसुधा ने रुचिता की परेशानी कम करने को बात टाल दी. लेकिन वह भी सोच में पड़ गई कि रुचिता के कमरे में कभी कोई बाहर वाला नहीं जाता, कोरोना की वजह से आजकल सफाईवाली भी नहीं आ रही और रुचिता इतनी लापरवाह भी नहीं कि इतनी कीमती चीज कहीं भी रख दे. फिर कंगन जा कहां सकता है.

यों तो वसुधा और रुचिता दोनों सासबहू थीं, लेकिन आपस में बंधन बिलकुल मांबेटी जैसा था. वसुधा के एक ही बेटा था, राघव, जो आईआईटी से बीटैक कर के अब एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में सीईओ था. जब राघव 5 साल का था तभी उस के मातापिता का तलाक हो गया था, क्योंकि उस के पिता के अपने ही कार्यालय की एक महिला से संबंध थे. वसुधा ने तब से अकेले ही राघव की परवरिश की थी. उस ने राघव को कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ाया. राघव पढ़ाई में होशियार था सो उस का चयन आईआईटी में हो गया. वहीं कैंपस प्लेसमैंट भी हो गया और अब 15 साल बाद वह सीईओ बन गया था. इसी बीच वसुधा ने उस के लिए रुचिता को पसंद कर 2 साल पहले दोनों की शादी करवा दी थी. उस ने सोचा अब एक बेटी की कमी पूरी हो जाएगी. रुचिता भी वसुधा को मां की तरह मानती थी. दोनों को देख कर लोग अकसर उन्हें मांबेटी सम झते थे.

शाम को जब राघव अपने दफ्तर से लौटा तो रुचिता ने उस से पूछा कि कहीं उस ने वह कंगन कहीं रख तो नहीं दिया. लेकिन राघव ने भी कहा कि उसे कंगन के बारे में कुछ नहीं पता. अब तो रुचिता की सब्र का बांध टूट गया और वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसे इस तरह रोता हुआ देख कर राघव ने उसे गले लगा कर कहा, ‘‘अरे क्यों परेशान हो रही हो मिल जाएगा और नहीं मिला तो कोई बात नहीं तुम पर ऐसे कई कंगन कुरबान. चलो रोना बंद करो और अपने हाथ की बढि़या चाय पिलाओ.’’

रुचिता मुंह धो कर चाय बना तो लाई, लेकिन उस का मन ठीक नहीं था. राघव ने उसे बताया कि उस के औफिस के कुछ साथी अगले दिन रात के खाने पर आने वाले हैं. उस ने कहा, ‘‘तुम मां के साथ मिल कर सारी तैयारी कर लेना. रोज तुम्हारे हाथ के बने टिफिन की तारीफ करते हैं सो मैं ने उन्हें घर पर बुला लिया. तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं होगी?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ रुचिता ने कहा? ‘‘तुम्हारे लिए क्या मैं इतना भी नहीं कर सकती.’’

रुचिता को वैसे भी खाना बनाने का बहुत शौक था और राघव को खाने का. वह रोज नईनई रैसिपी बना कर राघव को खिलाती, वह भी उस के खाने की खूब तारीफ करता.

अगले दिन रुचिता ने सारा घर साफ किया और बढि़या सजावट कर के रसोई में जुट गई. वह जानती थी क्योंकि राघव के दफ्तर के साथ आ रहे थे सो यह उस के मानसम्मान का प्रश्न था. उस ने शाम तक बढि़या स्नैक्स, सूप, मेन कोर्स के लिए दाल मखनी, कड़ाही पनीर, स्टफ्ड टमाटर और दही भिंडी और मीठे में फ्रूट क्रीम बनाई और फिर वह खुद तैयार होने चली गई, आखिर उसे भी तो सीईओ की पत्नी जैसा लगना था.

अभी वह कपड़ों की अलमारी खोल कर सोच ही रही थी कि क्या पहने तभी वसुधा ने आ कर कहा, ‘‘सूट या साड़ी मत पहन लेना कोई राघव की पसंद की ड्रैस निकाल कर पहन लो उसे अच्छा लगेगा.’’

रुचिता खुश हो गई और फिर जल्दीजल्दी तैयार होने लगी. थोड़ी ही देर में राघव के साथ उस की मित्र कनिका और उस के 4 दोस्त आ गए. रुचिता ने सभी का स्वागत किया और सब को बैठा कर सूप और स्नैक्स लेने रसोई में चली गई. इसी बीच वसुधा एक बार सब से मिल कर अपने कमरे में चली गई.

राघव मां को बुलाने गया तो वसुधा ने कहा, ‘‘तुम बच्चे मौज करो मैं यहीं आराम करूंगी. मेरा खाना यहीं भिजवा देना.’’

घर की साजसज्जा देख कर और रुचिता के हाथ का खाना खा कर सब उस की खूब तारीफ कर रहे थे.

राघव भी खुशी से फूला नहीं समा रहा था कि तभी रुचिता की निगाह कनिका के कंगन पर गई अब उस के पैरों तले की जैसे जमीन खिसक गई. वह पहचान गई कि यह वही कंगन है जिसे वह ढूंढ़ रही थी. लेकिन यह कनिका के पास कैसे? तभी उस के दिमाग ने कहा राघव के अलावा कौन दे सकता है पर फिर उस के दिल ने कहा नहीं राघव मु झे धोखा नहीं दे सकता. एक बार फिर उस के दिमाग ने कहा तुम बेवकूफ हो, सुबूत तुम्हारे सामने है और तुम नकारा रही हो. फिर भी रुचिता ने सोचा कि बिना पूरी छानबीन के वह राघव से इस बारे में कोई बात नहीं करेगी. उसे गुस्सा तो बहुत आ रहा था, उस का मन कर रहा था कि इसी समय घर छोड़ कर चली जाए, लेकिन उस ने खुद को संभाला और कनिका के साथ बैठ कर उस से बातें करने लगी. उस ने उस से कई बातें पूछीं जिन से उसे पता चला कि वह एक गरीब घर की महत्त्वाकांक्षी लड़की है. अब वह कनिका को कुछकुछ सम झ रही थी.

सूप जो स्वाद भी दें और सेहत भी

सर्दियों के मौसम में गर्मागर्म सूप का सेवन शरीर को गर्मी तो प्रदान करता है. चूंकि सूप को बिना तले भुने और कम से कम मिर्च मसाले से सब्जियों के द्वारा बनाया जाता है इसलिए इसमें पौष्टिक तत्वों की भरमार होती है. सूप का सेवन वजन घटाने में कारगर तो होता ही है साथ ही यह पाचन तंत्र को मजबूत करके शरीर में खून की कमी को दूर भी करता है. आज हम आपको ऐसे ही कुछ सूप बनाना बता रहे हैं जिन्हें आप घर में उपलब्ध सामग्री से बड़ी आसानी से बना सकते हैं तो आइये देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

सूप बनाने की समाग्री
-पेरी पेरी स्वीट कार्न सूप
कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
ताजे स्वीट कॉर्न के दाने 1 कप
मक्खन 1 टी स्पून
काली मिर्च पाउडर 1/4 टी स्पून
काला नमक 1/4 टी स्पून
पेरी पेरी मसाला 1/2 टीस्पून
बारीक कटे पनीर के टुकड़े 1/2 कप
कार्नफ्लोर 1/4 टी स्पून
बारीक कटा हरा धनिया 1 टीस्पून

विधि-

कार्न के दानों को मिक्सी में दरदरा पीस लें. एक पैन में मक्खन गरम करके कार्न के दाने, पनीर के टुकड़े और पेरी पेरी मसाला डालकर अच्छी तरह चलाएं. 2 कप पानी डालकर नमक और काली मिर्च डाल दें. उबाल आने तक पकाएं. अब एक टेबल स्पून पानी में कार्नफ्लोर घोलकर उबलते सूप में डालकर अच्छी तरह चलाएं. गरमागरम सूप को उबले कार्न के दाने और बारीक कटे हरे धनिया से सजाकर सर्व करें.

दूसरे तरीके से सूप बनाएं

समाग्री

-क्रीमी ग्रीन वेजी सूप
कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाईप वेज
सामग्री
बारीक कटा पालक 1/2 कप
नीबू का रस 1 टेबल स्पून
बारीक कटा हरा धनिया 1/4 कप
बारीक कटा पोदीना 1 टीस्पून
कटा लहसुन 1 टी स्पून
कटी हरी मिर्च 4
कटा प्याज 1 टी स्पून
बारीक कटा पत्तागोभी 1/4 कप
मक्खन 1 टेबल स्पून
कॉर्नफ्लोर 1 टीस्पून
ताज़ी क्रीम 1 टेबलस्पून
नमक स्वादानुसार

विधि-

गरम मक्खन में प्याज, हरी मिर्च, लहसुन, पालक और धनिया को सॉते करके पत्तागोभी और पोदीना को भी डाल दें, नमक डालकर हल्का सा नम होने तक पकाएं. कार्नफ्लोर और नीबू के रस को आधे कप पानी में घोलकर सब्जियों में मिलाएं. मध्यम आंच पर 3-4 उबाल लेकर गैस बंद कर दें. ताजी क्रीम और से गार्निशिंग करके सर्व करें.

तीसरे तरीके से सूप बनाएं
-मशरूम चुकन्दर सूप
कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाईप वेज
सामग्री
ताजे मशरूम 6
मक्खन 2 टीस्पून
चुकन्दर 1 छोटे आकार का
हरा धनिया 1 टेबलस्पून
क्रीम 2 टेबलस्पून
नीबू का रस 1 टी स्पून
कार्नफ्लोर 2 टेबलस्पून
नमक 1/4 टी स्पून
ताजी कुटी लाल मिर्च 1/4 टी स्पून
अदरक, लहसुन पेस्ट 1/2 टी स्पून।

विधि-

मशरूम को साफ सूती कपड़े से अच्छी तरह पोंछ लें. थोड़ा सा डंठल काटकर मोटे मोटे टुकड़ों में काट लें. चुकन्दर को भी छीलकर छोटे टुकड़ों में काट लें. अब एक पैन में 1 टेबलस्पून मक्खन गरम करके उसमें अदरक को भूनकर कटे मशरूम, चुकन्दर, नमक, और काली मिर्च डालकर अच्छी तरह मिलाएं. धीमी आंच पर मशरूम और चुकन्दर के नरम होने तक पकाएं. मशरूम चुकन्दर के कुछ टुकड़े पैन में छोड़कर शेष को मिक्सी में दरदरा पीस लें. कार्नफ्लोर को 2 टेबलस्पून पानी में घोल लें. अब पिसे मशरूम और कार्नफ्लोर को उसी पैन में डालकर अच्छी तरह चलाएं. एक उबाल आने पर क्रीम और नीबू का रस मिलाएं. हरा धनिया डालकर गर्मागर्म सूप सर्व करें.

भगवन, तेरी कृपा बरसती रहे

भविष्यफल : क्या मुग्धा भविष्यफल के जाल से बच पाई?

GHKKPM: मेकर्स पर भड़के यूजर्स ने लिखी पाखी के खिलाफ ये बात

सीरियल गुम है किसी के प्यार में ने अपने दर्शकों का खूब दिल जीता है लेकिन अपने ट्विस्ट औऱ टर्न की वजह से कई बार दर्शकों के बीच में निशाने पर आ जाता है, विराट और पत्रलेखा अक्सर अपनी हरकतों की वजह से चर्चा में बने रहते हैं.

एक बार फिर से विराट और पत्रलेखी की वजह से मेकर्स की वाट लगती नजर आ रही है, मेकर्स विराट और पत्रलेखा के हरकतों को अब बिल्कुल भी पसंद नहीं करते हैं, गुम है किसी के प्यार में दिखाया जाएगा कि पत्रलेखा विनू को लेकर लंदन के लिए निकल जाएगी, इसके साथ ही वह विनू को झूठी कहानी सुनाकर सई के खालिफ करने की कोशिश करेगी.

वहीं दूसरी तरफ सई पत्रलेखा को भगाने का इल्जाम सई के ऊपर मर देगी. विराट उसपर ज्वालामुखी की तरह भड़केगा, विराट बातों बातों में यह कहेगा कि वह सई को बहुत प्यार करता है, इस सीरियल में मेकर्स ने विराट और सई की हरकतों को देखते हुए मेकर्स ने एकबार फिर मोर्चा खोल दिया है.

उन्होंने लिखा है कि पाखी को बेचारी बताना बंद कर दो, उसके किरदार अजीब से लग रहे हैं.वह मानसिक तौर पर बीमार है, उसे कबतक शो में रखोगे. अब फैंस को इंतजार है कि मेकर्स आगे क्या एक्शन लेते नजर आएंगे.

माया का सच जानते ही मुंह मोड़ेगी छोटी अनु, अनुपमा और अनुज करेंगे ये सवाल

रूपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर शो अनुपमा इ दिनों लगातार चर्चा में बना हुआ है. साल 2023 के शुरुआत से ही चर्चा में बना हुआ है, आएं दिन इस सीरियल में ट्विस्ट और टर्न देखने को मिलते रहते हैं. शो की कहानी छोटी अनु और माया पर आकर अटक गई है.

कहानी में छोटी अनु की सगी मां माया आकर अपनी बेटी को वापस लेने की जिद्द कर रही है. वहीं छोटी अनु भी माया से मिलने की जिद्द करती है लेकिन अनुपमा नाराज होकर उसे डांट देती है. जिससे अनु नाराज होकर चली जाती है सामने कार में माया आकर उसे लेने ही वाली होती है कि अनुपमा उसे बचा लेती है.  कहानी में ट्विस्ट और टर्न यहीं खत्म नहीं होते हैं,

 

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अनुपमा और छोटी अनु माया को घऱ लेकर आते हैं, ऐसे में माया कहती है कि अगर देवकी अपना कान्हां मांगने आती तो क्या यशोदा उसे अपने घर बुलाती. घर आने के बाद छोटी अनु को वह बताती है कि वहीं उसकी मां है सालों पहले उसे आश्रम में छोड़ा था. लेकिन वह दूर रहकर भी उसकी पूरी खबर रखती थी.

जैसे ही छोटी अनु सच जानेंगी वह माया से मुंह मोड़ लेगी, वह कहेगी कि जानवर भी अपने बच्चे का ध्यान रखते हैं लेकिन मैं तो जिंदा थी, आपने मुझे कैसे छोड़ दिया. मुझसे मिलने मम्मी पाप नहीं आते तो मैं तो आश्रम में ही रहती. आने वाले अगले एपिसोड में आगे कि कहानी की पता चलेगा.

 

 

खतरनाक हैं औनलाइन गेम्स

कोविड के समय में मजबूरी में शुरू हुई औनलाइन पढ़ाई ने सभी बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन दे दिए हैं. यह फोन अब उन के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. बच्चे फोन और लैपटौप पर औनलाइन पढ़ाई से ज्यादा औनलाइन गेम्स खेलना पसंद कर रहे हैं. इन औनलाइन गेम्स का नकारात्मक असर अब पूरी दुनिया के बच्चों और किशोरों में देखने को मिल रहा है.

ऋषभ आज कंप्यूटर इंजीनियरिंग के चौथे सैमेस्टर को कंपलीट कर रहा है. एक साल बाद किसी कंपनी में 12 से 15 लाख रुपए प्रतिवर्ष के पैकेज पर उस की जौइनिंग हो जाएगी. एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार के 22 वर्षीय लड़के के लिए यह उत्साह की बात है. लाख से डेढ़ लाख रुपए महीने की आमदनी की कल्पना कर के वह ही नहीं, उस के मातापिता भी उत्साहित हैं. बेटे की पढ़ाई में वे अपनी सारी सेविंग ?ांक चुके हैं. अब बेटे से उन की सारी उम्मीदें बंधी हैं.

5 साल पहले जब ऋषभ एंट्रैंस की तैयारी कर रहा था तब उस का तनाव चरम पर था. मांबाप का बहुत पैसा उस की कोचिंग वगैरह पर खर्च हो रहा था. अपना पेट काटकाट कर वे बेटे के इंजीनियर बनने के सपने को पूरा करने में जुटे थे. ऋषभ को डर था कि अगर वह एंट्रैंस में फेल हो गया तो पिता द्वारा मुश्किल से कमाया जा रहा सारा पैसा बरबाद हो जाएगा.

इस डर में वह तनाव, अवसाद और गुस्से का पुतला बन चुका था. कभीकभी उस की इच्छा होती थी कि वह आत्महत्या कर ले. तनाव की हालत में पढ़ा हुआ कुछ भी ज्यादा देर तक याद नहीं रहता था. तब रात में वह अपने कंप्यूटर पर फीड किए हुए उस गेम को खेलने लगता था जिस में एक कैरेक्टर अपनी बंदूक से अपने तमाम दुश्मनों पर तड़ातड़ गोलियां बरसाता आगे बढ़ता जाता है और मंजिल पर पहुंच जाता है.

इस खेल में कई बार हीरो कैरेक्टर को भी दुश्मन की गोली लग जाती थी और वह ढेर हो जाता था. जब ऐसा होता तो ऋषभ का तनाव और बढ़ जाता था. वह गेम को फिर से स्टार्ट करता और फिर से तड़ातड़ गोलियां बरसाता, मंजिल तक पहुंचने की कोशिश करता था. इस गेम में बारबार जीतने से उस का तनाव काफी हद तक कम हो जाता था और वह फिर पढ़ाई में जुट जाता था.

साफ है मोबाइल फोन पर औनलाइन गेम या कंप्यूटर पर खेले जाने वाले गेम बच्चों के मस्तिष्क पर सीधा असर डालते हैं. यह असर सकारात्मक भी हो सकता है और नकारात्मक भी. ऋषभ के केस में कंप्यूटर गेम का सकारात्मक असर देखने को मिला, मगर 8 जून को लखनऊ के पीजीआई इलाके की यमुनापुरम कालोनी में एक 16 वर्षीय बच्चे ने जिस तरह रात के 2 बजे अपने फौजी पिता की लाइसैंसी पिस्टल से अपनी सोती हुई मां के सिर में तड़ातड़ गोलियां उतार दीं, उस घटना ने पुलिस को भी ?ाक?ार कर रख दिया.

यह बच्चा अपने मोबाइल फोन पर अकसर पबजी गेम खेलता था और उस की मां साधना सिंह अकसर उसे इस बात के लिए डांटती थी. गुस्से में आ कर उस ने मां की हत्या कर दी. यह हैरतअंगेज और बहुत भयभीत करने वाली घटना है और यह कोई अकेला मामला नहीं है. दुनियाभर से ऐसी घटनाओं की खबरें आएदिन आती रहती हैं. अमेरिका में युवा कहीं स्कूलों में घुस कर गोलियां चला रहे हैं तो कहीं किसी मौल में निर्दोष लोगों को गोलियों से भून रहे हैं. इन घटनाओं की तह में जाएं तो इन की जड़ें औनलाइन गेम्स में दबी मिलेंगीं.

कोविड के समय में मजबूरी में शुरू हुई औनलाइन पढ़ाई ने सभी बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन दे दिए हैं. बीते

2 सालों से बच्चे घरों में कैद हैं. इन सालों में वे अपने दोस्तों से नहीं मिले, प्लेग्राउंड में जा कर अन्य बच्चों के साथ नहीं खेल सके, रिश्तेदारों के यहां भी आनाजाना बंद था. बच्चों का बस एक ही साथी रह गया था उन का मोबाइल फोन, जिस पर वे पढ़ाई भी कर रहे थे और मनोरंजन के लिए भी उसी पर आधारित थे. यह फोन अब उन के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है.

बच्चे फोन और लैपटौप पर औनलाइन पढ़ाई से ज्यादा औनलाइन गेम्स खेलना पसंद कर रहे हैं. कार्टून फिल्म्स, इंटरनैट सर्च आदि में बच्चों का टाइम पास हो रहा था. औनलाइन गेम तो सभी बच्चे खेल रहे थे लेकिन इन औनलाइन गेम्स की लत बच्चों को इतनी बुरी तरह लग जाएगी कि न खेलने की बात कहने पर वे अपने पेरैंट्स की हत्या करने पर उतारू हो जाएं, ऐसा तो किसी ने नहीं सोचा था. यह खेल बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति को बढ़ा रहा है. जिद्दी हो जाना, मनमाना व्यवहार करना, बड़ों की बातों को इग्नोर करना, गेम में रमे रह कर पढ़ाई को दरकिनार करना, पोर्न देखना, हिंसक फिल्में देखना, गालीगलौच सीखना आदि सब गलत चीजें बीते इन सालों में बच्चों के व्यवहार में देखने को मिल रही हैं. हिंसक होने के साथसाथ बच्चे औनलाइन ठगी का शिकार भी हो रहे हैं.

दरअसल औनलाइन गेम्स खेलने की लत बच्चों में इतनी बढ़ चुकी है कि वे अपने कंप्यूटर या मोबाइल में बिना सोचेसम?ो कोई भी औनलाइन गेम डाउनलोड कर लेते हैं. कुछ ऐसे गेम्स होते हैं जिन में लैवल अपग्रेड के नाम पर पैसों की मांग की जाती है. जिस कारण कई बच्चे गेम खेलने के लिए बिना अपने मातापिता से पूछे ही उन के क्रैडिटडैबिट कार्ड या यूपीआई से पैसों का ट्रांजैक्शन कर देते हैं. ऐसे केस अब आएदिन देखने को मिल रहे हैं. इस के चलते साइबर क्राइम के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं.

मामले अनेक हैं

सऔनलाइन गेम में ठगी का एक मामला हाल ही में कानपुर में सामने आया, जहां 14 साल के बच्चे ने मोबाइल पर गेम खेलने की लत में अपने पिता के अकाउंट से 5 लाख रुपए ट्रांसफर कर दिए. जब इस की जानकारी परिवार वालों को हुई तो उन के होश उड़ गए. बच्चे के पिता ने फौरन पुलिस में शिकायत की, जिस के बाद क्राइम ब्रांच ने केस को रजिस्टर कर जांच शुरू की.

स ऐसा ही एक केस छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में भी हुआ, वहां के 12 साल के बच्चे ने औनलाइन गेम में हथियारों को खरीदने के लालच में आ कर अपनी मां के अकाउंट से 3.2 लाख रुपए का औनलाइन पेमैंट कर दिया. यह हरकत उस ने अपने औनलाइन गेम का लैवल बढ़ाने के लिए की थी.

मोबाइल फोन ने आम लोगों की जिंदगी आसान की है तो कुछ मानो में यह एक खतरा भी साबित हो रहा है. कुछ सकारात्मक तो कुछ नकारात्मक प्रभाव लोगों पर पड़ा है. यह नकारात्मक प्रभाव हर उम्र के लोगों पर देखने को मिल रहा है, चाहे वह बच्चा हो, युवा हो या फिर बुजुर्ग. यह एक तरह से अलार्मिंग स्थिति बनती जा रही है.

स दिल्ली के करोल बाग इलाके के निवासी 75 वर्षीय विजेंदर गुप्ता को यूट्यूब देखने का शौक अब एक बीमारी बन चुका है. सुबह दोदो घंटे वे बाथरूम में पौट पर बैठे यूट्यूब देखते रहते हैं. खाना खाते वक्त भी उन का यूट्यूब में ही सारा ध्यान होता है. सब खा कर उठ जाते हैं जबकि वे घंटों धीरेधीरे खाते हुए यूट्यूब में खोए रहते हैं. इस लत की वजह से अब वे न तो अपने कमरे से बाहर निकलना चाहते हैं और न ही किसी रिश्तेदार या दोस्त से मिलना चाहते हैं. यहां तक कि अपने पोतेपोती का आसपास रहना भी उन्हें नागवार गुजरता है और वे उन्हें बुरी तरह लताड़ कर कमरे से बाहर कर देते हैं. उन की इस लत से उन की पत्नी का बीपी बढ़ा रहता है और बेटाबहू भी तनाव में रहते हैं.

स 5 जून को आजमगढ़ के महुला बगीचा गांव में रहने वाला 8 साल का बच्चा धर्मवीर घर के पास बकरी चरा रहा था और मोबाइल फोन पर लूडो खेल रहा था. उस के पिता जितेंद्र ने उसे लूडो खेलते देखा तो उस को बुरी तरह पीट दिया और कमरे में ले जा कर बंद कर दिया. रात में बच्चे की मौत हो गई. जितेंद्र ने अपनी पत्नी बबीता को धमकाया कि वह इस बारे में किसी को न बताए और फिर अपने भाई उपेंद्र की मदद से उस ने बच्चे के शव को चुपचाप घाघरा नदी के किनारे दफना दिया. बच्चे की मां से नहीं रहा गया, उस ने अपने मायके में यह बात खोल दी. इस के बाद हत्यारे पिता को गिरफ्तार किया गया.

स 22 मई को गुजरात के खेड़ा में छोटे भाई ने मोबाइल फोन नहीं दिया तो गुस्से में बड़े भाई ने उसे पीटपीट कर मार डाला और उस के शव को कुएं में फेंक दिया. बड़े भाई की उम्र 17 साल और छोटे भाई की उम्र मात्र 11 साल थी. दोनों बारीबारी से मोबाइल फोन पर गेम खेलते थे. लेकिन उस दिन छोटे ने अपने बड़े भाई को फोन देने से मना किया तो बड़े भाई का गुस्सा इतना बेकाबू हो गया कि उस ने छोटे की जान ही ले ली.

ये सभी घटनाएं यह बताने के लिए काफी हैं कि घरघर में ज्वालामुखी आकार ले रहे हैं, जो कभी भी फूट सकते हैं और पूरे परिवार को तबाह कर सकते हैं.

हाथ में फोन आ जाने से इंटरनैट पर बच्चे बहुतकुछ देख रहे हैं. बहुतकुछ ऐसा भी है जो उन्हें इस नाजुक उम्र में नहीं देखना चाहिए. मातापिता हर समय उन पर नजर नहीं रख सकते. घर में बंद बच्चों की ऊर्जा, गुस्सा, इच्छाएं, सपने, प्रेम आदि को बांटने वाला कोई भी नहीं है. बस, वे हैं और उन का मोबाइल फोन है. औनलाइन गेम्स के लती हो चुके बच्चे इस कदर कुंठित और उग्र हो रहे हैं, इस को समय रहते सम?ाने की जरूरत है और जल्दी से जल्दी बच्चों को उन की स्वाभाविक गतिविधियों में वापस

लाए जाने की आवश्यकता है क्योंकि औनलाइन गेम्स बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा बनते जा रहे हैं.

ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऔर्डर

यूट्यूब, इंटरनैट, औनलाइन गेम्स का लती होना, उस से दूर होने पर खुद पर काबू न रख पाना यह एक तरह की बीमारी है जिसे ओब्सेसिव कंपल्सिव डिसऔर्डर (ओसीडी) कहते हैं. इस में मरीज को जिस चीज से जुड़ाव हो जाता है उस से वह खुद को अलग नहीं कर पाता. यदि ऐसे रोगियों को मोबाइल गेम खेलना पसंद आ जाता है तो उन्हें उसी में आनंद मिलता है. उन्हें मोबाइल गेम का नशा हो जाता है. बाकी सब चीजें, यहां तक की परिजनों की मौजूदगी तक, उन के लिए असहनीय हो जाती है. ऐसे मरीज किसी से नहीं मिलते. वे किसी से कोई बात सा?ा नहीं करते. वे अपने में ही गुम हो जाते हैं और आगे चल कर कई अन्य प्रकार के मानसिक रोग व डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं.

बच्चों को सामान्य जीवन में वापस लाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में औनलाइन गेम्स के खतरों को ले कर एक ट्वीट किया है. उस में उन्होंने लिखा कि जितने भी डिजिटल या औनलाइन गेम्स मार्केट में मौजूद हैं उन में से ज्यादातर का कौन्सैप्ट भारतीय नहीं है. औनलाइन गेम्स के ज्यादातर कौन्सैप्ट या तो वायलैंस को बढ़ाते हैं या मैंटल स्ट्रैस का कारण बनते हैं.

बहुत जरूरी है कि अब बच्चों को उन के स्वाभाविक क्रियाकलापों में वापस लाया जाए. वे दोस्तों से मिलेंजुलें. रिश्तेदारों के घर जाएं. खेल के मैदानों में उन की वापसी हो और स्कूलों में अन्य बच्चों के साथ बैठ कर वे पढ़ाई करें. मातापिता के लिए यह समय बहुत नाजुक है. बीते 2 वर्षों से बच्चे जिस तरह के वातावरण में रह रहे थे उस से उन्हें बाहर निकालने में थोड़ी कठिनाई अवश्य होगी लेकिन अपने बच्चों के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य के लिए हमें यह करना ही होगा.

पेरैंट्स निगाह रखें कि उन का बच्चा मोबाइल फोन पर पढ़ाई कर रहा है या गेम खेल रहा है. वे इस बात के लिए चौकन्ने रहें कि बच्चा अगर गेम का लती हो गया है तो किसी तरह प्रेमपूर्वक उस का ध्यान दूसरी तरफ लगाएं. वे मोबाइल फोन को ले कर बच्चों को पीटें नहीं, बल्कि उन्हें सम?ाएं कि यह लत बीमारी बन सकती है.

धीरेधीरे कर के उन्हें मोबाइल से अलग करें. इस के लिए स्कूलों को और शिक्षकों को भी भरपूर प्रयास करने होंगे ताकि हम अपने बच्चों को एक सामान्य जीवन में वापस ला सकें. बच्चे इस देश का भविष्य हैं. उन का कुंठित और गुस्सैल होना किसी भी तरह से देशहित में नहीं है.

पबजी गेम भारत में अब भी कैसे उपलब्ध : एनसीपीसीआर

8 जून की घटना, जिस में पबजी गेम के लती 16 वर्षीय किशोर ने अपने पिता की लाइसैंसी पिस्टल से रात के 2 बजे अपनी सोती हुई मां की हत्या कर दी, के बाद राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय से यह स्पष्टीकरण मांगा है कि भारत में प्रतिबंधित होने के बावजूद पबजी गेम नाबालिगों द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए कैसे उपलब्ध है?

गौरतलब है कि वर्ष 2020 में सरकार ने लोकप्रिय ऐप पबजी और अन्य को राष्ट्र की संप्रभुता, अखंडता और सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए प्रतिबंधित कर दिया था. एनसीपीसीआर ने मंत्रालय के सचिव को पत्र लिख कर कहा कि इस घटना के मद्देनजर यह आयोग की सम?ा से परे है कि कैसे एक प्रतिबंधित खेल, जिसे सरकार द्वारा ब्लौक कर दिया गया है, अभी भी नाबालिगों के उपयोग के लिए उपलब्ध है. इसलिए आयोग आप के कार्यालय से ऐसे प्रतिबंधित ऐप की इंटरनैट पर उपलब्धता के कारणों को सूचित करने का अनुरोध करता है.

सिर्फ गेम नहीं, मोबाइल में कई चीजें बिगाड़ रहीं आप के बच्चे को

आजकल बच्चे पढ़ाई से ज्यादा समय मोबाइल पर बिताने लगे हैं. मोबाइल की दुनिया से कनैक्ट होते ही 40 प्रतिशत बच्चे अच्छी चीजों को सीखने के लिए ध्यान लगाते हैं जबकि 60 प्रतिशत बच्चे स्मार्टफोन के जरिए गलत चीजों की तरफ बढ़ने लगते हैं. हिंसा से भरी फिल्में और पोर्न उन्हें जल्दी अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं. अगर आप को ऐसा लगता है कि आप के बच्चे मोबाइल गेम की वजह से गलत संगत में जा रहे हैं तो तुरंत सचेत हो जाइए और बच्चे को प्यार से सम?ाबु?ा कर उस से अलग करिए.

मोबाइल की दुनिया में ऐसी कई चीजें मौजूद हैं जो बच्चों का भविष्य खराब करने की वजह बनती जा रही हैं. मोबाइल की लत आप के बच्चों पर इस तरह असर कर रही है कि वे सिर्फ मानसिक रूप से बीमार नहीं, बल्कि शारीरिक बीमारी की चपेट में भी आ सकते हैं. ऐसे में आप को उन का खास ध्यान रखना होगा. उन्हें डांट से नहीं, प्यार से सम?ाने की जरूरत है. रोज मोबाइल की स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताना बच्चों की आंखों के लिए भी खतरनाक है. ऐसे में उन्हें प्यार से सम?ाएं कि इस का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल उन्हें नुकसान पहुंचा सकता है.

आउटडोर गेम्स के लिए करें प्रेरित

इनडोर गेम्स की जगह बच्चों को ऐसे आउटडोर गेम्स के लिए प्रेरित करें जो उन की सेहत के लिए बेहतर हों. इस के अलावा घर का माहौल ऐसा बनाने की कोशिश करें कि बच्चे अकेले न पड़ें. अकेलापन पा कर बच्चे मोबाइल में गेम खेलने लगते हैं या गलत गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं.

सोशल मीडिया से रखें दूर

बच्चे मोबाइल पर मूवी देख रहे हों या फिर गेम खेल रहे हों, उन्हें हिंसक दृश्यों से दूर रखें. वे कैसी मूवी देख रहे हैं, इस पर भी आप की नजर होनी चाहिए. उन्हें सम?ाएं कि इस का उन के मन और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पडे़गा. साथ ही, सोशल मीडिया की उकसाऊ बातों से भी बच्चों को दूर रखें.

हिंसक कंटैंट वाले कार्टून शो

‘चलो कार्टून लगा दे रहे हैं, खाना खा लो… अच्छा रो नहीं, यह लो कार्टून देखो और मु?ो काम करने दो…’ अगर आप भी कुछ इसी तरह अपने बच्चों को मनाने, खाना खिलाने या शरारतों से रोकने के लिए कार्टून शोज का सहारा लेते हैं तो अब सावधान हो जाइए क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर आने वाले ज्यादातर कार्टून शो हिंसात्मक कंटैंट से भरे हुए हैं. गालियां, गोलियां, मारपीट वाले कंटैंट से भरे ये कार्टून शो बच्चों के नाजुक मन पर गलत प्रभाव छोड़ते हैं.

बच्चे हमेशा जो देखते हैं उस की नकल करते हैं. गोलीबंदूक वाले शो देख कर वे उद्वेलित होते हैं और उन्हें भी उसी प्रकार की गतिविधियां करने का मन करता है. तमाम कार्टून शो शाब्दिक हिंसा, अपशब्द, धमकी, मारनेपीटने, आंखें तरेरने, क्रोध, मारने का इशारा करने, अनादर करने, बेईमानी, ?ाठ बोलने और गालियों आदि से भरे होते हैं.

जिस तेजी से मोबाइल फोन, गैजेट्स और कार्टून कैरेक्टर ने बच्चों की जिंदगी में पैठ बना ली है, उस पर लगातार निगरानी जरूरी है. इस के लिए जरूरी है कि बच्चों के सामने जो परोसा जा रहा है उसे हम समयसमय पर फिल्टर करते रहें. कार्टून का गहरा प्रभाव पड़ता है. बच्चों के व्यवहार में आने वाले परिवर्तनों के लिए कार्टून बहुत हद तक जिम्मेदार हैं. ऐसे में कोशिश करें कि हमेशा सकारात्मक कंटैंट ही उन के सामने हो.

बैन के बावजूद आसानी से सर्च कर लेते हैं पोर्न साइट

बता दें कि काफी समय पहले सरकार ने देश में इंटरनैट सेवा उपलब्ध करवाने वाले सर्विस प्रोवाइडर्स से कहा था कि वे 827 पोर्न वैबसाइट्स को ब्लौक कर दें. यह आदेश तब आया था जब उत्तराखंड के एक स्कूल में हुए रेप के बाद आरोपी ने खुलासा किया था कि उस ने रेप से पहले पोर्न साइट देखी थी. मामले की गंभीरता को देखते हुए उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि पोर्न साइट्स को बंद किया जाए.

सुप्रीम कोर्ट में पहले से इसे ले कर अर्जी है कि पोर्न साइट्स बंद की जाएं लेकिन अभी तक ये पूरी तरह से बंद नहीं की गई हैं. सरकार ने सिर्फ चाइल्ड पोर्नोग्राफी वाली साइट्स को बंद करने का आदेश जारी किया है. बावजूद इस के इंटरनैट पर मौजूद अन्य साधनों के जरिए कई लोग आसानी से ये साइटें सर्च कर लेते हैं जिन में सब से ज्यादा किशोरावस्था के लोग शामिल हैं.

ओटीटी प्लेटफौर्म्स भी बरबादी का कारण

अगर आप ओटीटी प्लेटफौर्म्स पर वैब सीरीज देखने के शौकीन हैं तो कृपया अपने बच्चों को उस से दूर रखें. वैब सीरीज में दिखाए गए अश्लील दृश्य और गालीगलौच भरे डायलौग भी आप के बच्चों पर बुरा असर डाल रहे हैं. वैब सीरीज के अधिकतर डायलौग युवाओं को सुनने में काफी अच्छे लगते हैं क्योंकि उन में सब से ज्यादा गालियों का इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन उसे याद कर बच्चे अपनी भाषा में भी शामिल कर लेते हैं. यह कुछ और नहीं बल्कि बच्चों की बरबादी का कारण बनता जा रहा है       –नसीम अंसारी द्य

गलत काम के लिए करते हैं एक खास ऐप का इस्तेमाल

एक सर्वे के मुताबिक कहा जाता है कि युवा गलत कामों के लिए एक खास ऐप का काफी इस्तेमाल कर रहे हैं. यह ऐप प्ले स्टोर में आसानी से उपलब्ध हो जाता है. बताया जाता है कि पूरे भारत में अब तक इस ऐप का इस्तेमाल एक बिलियन से ज्यादा लोग कर रहे हैं. इस ऐप में पोर्न साइट, पाइरेटेड मूवी, हाई ग्राफ के गेम आसानी से मिल जाते हैं.

इस के साथ ही इस ऐप में अब मैसेज के जरिए सट्टा लगाना भी शुरू हो गया है. बता दें कि कभी यह ऐप व्हाट्सऐप की तरह एक मैसेंजर के तौर पर यूज किया जाता था, लेकिन अब यह सिर्फ गलत कामों का प्लेटफौर्म बन गया है.

एक औरत का भ्रष्ट हो जाना

भारतीय समाज में धर्म, संस्कार, समाज, परिवार, रिश्तेनातों की अनगिनत बाधाओं को लांघ कर बाहर आने और अपने वजूद को साबित करने में औरत को सदियों का लंबा वक्त लगा है. शिक्षा पाने के लिए, नौकरी पाने के लिए, अपनी पसंद का जीवनसाथी पाने के लिए, पैतृक संपत्ति में अपना अधिकार पाने के लिए, इच्छानुरूप अपना घर बनाने के लिए, देश या विदेश यात्रा के लिए वह आज भी अनगिनत पाबंदियों व मुश्किलों से बुरी तरह जूझ रही है.

एक कुंठित, रूढ़िवादी, अशिक्षित, हिंसक, तर्कविहीन, धार्मिक अंधकार में घिरे समाज से लड़ कर भारतीय औरत ने समाज में अपनी जो जगह हासिल की है और अनेकानेक महिलाएं अपनी मेहनत से जो जगहें हासिल कर रही हैं उस की जितनी तारीफ की जाए कम है. संघर्ष की आग में पलपल तप कर कुंदन हुई औरत मान, मर्यादा, ममत्व की प्रतिमूर्ति होती है. उस के साथ भ्रष्ट या भ्रष्टाचार शब्द मेल नहीं खाते. मगर ये शब्द आज औरत के साथ जुड़ने लगे हैं. यह संख्या अभी कम है, लेकिन सफेद भेड़ों के बीच अगर काली भेड़ों की संख्या में इजाफा हुआ तो सदियों से जारी औरत के संघर्ष, हौसले, रुतबे, शोहरत और छवि सब पर पानी फिर जाएगा.

एक औरत का भ्रष्ट होना परिवार, समाज और देश सब के विनाश का कारण बन सकता है. वहीं उस का उदाहरण उस के पीछे आने वाली पीढ़ियों के रास्ते मुश्किल कर सकता है या रोक सकता है.

मध्य प्रदेश के नीमच में वंशिका गुप्ता अपने पहले ही अटेम्प्ट में सिविल जज बन गई हैं. वंशिका के पिता अरविंद गुप्ता नीमच जिला कोर्ट के एक जज के ड्राइवर हैं. बेटी की पढ़ाई की लगन को देखते हुए उन्होंने उसे खूब पढ़ाया. 25 साल की वंशिका ने समाज में अपनी एक जगह बनानी चाही और वह उस में सफल हुईं.

पूरे मध्य प्रदेश में उन की सातवीं रैंक आई है. यह एक निम्नवर्गीय परिवार की बेटी की बड़ी कामयाबी है. वंशिका की मां एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं. मां की प्रेरणा पा कर वंशिका ने पढ़ाई जारी रखी. उन्होंने जयपुर के एक कालेज से लौ की डिग्री पाई और उस के बाद मध्य प्रदेश में इंदौर के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में सिविल जज वर्ग-2 भरती परीक्षा की तैयारी की और पहले ही प्रयास में सफलता हासिल कर ली. अब आगे वे अपर जिला न्यायाधीश की परीक्षा भी देना चाहती हैं. साथ ही, पढ़ाई में कानून की मास्टर डिग्री और पीएचडी भी करने का इरादा है.

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की अदालतों में खाली 252 पदों के लिए लिखित परीक्षा मार्च में आयोजित की गई थी, जिस में देशभर के 350 अभ्यर्थियों ने भाग लिया था. उस में नीमच की वंशिता गुप्ता के अलावा शहर के एक किताब बेचने वाले हौकर जितेंद्र एरन की बेटी दुर्गा एरन ने भी सिविल जज वर्ग-2 परीक्षा पास की है.

संघर्ष की भट्टी में इंदौर की बेटी अंकिता नागर भी तप कर निकली हैं. अंकिता नागर भी सिविल जज बन गई हैं. अंकिता को तीसरी कोशिश में यह सफलता हाथ लगी है. अंकिता की सफलता पर उन के पूरे परिवार को गर्व है. एलएलबी की पढ़ाई के दौरान ही वे सिविल जज की तैयारी में जुट गई थीं. मातापिता की आर्थिक स्थिति उन की पढ़ाई में बाधक नहीं बनी. वे इंदौर में अपने मातापिता के साथ सड़क के किनारे सब्जी का ठेला लगाती थीं. सब्जी बेचने से वक्त मिलते ही वे पढ़ाई में लग जाती थीं. सिविल जज में चयन होने के बाद भी लोगों ने अंकिता को अपने ठेले पर सब्जी बेचते देखा है.

अंकिता नागर का परिवार सब्जी के ठेले से हुई कमाई पर ही पलता है. ठेले पर अकसर मां के साथ अंकिता बैठती हैं. पिता बाहर से सामान लाने में लगे रहते हैं. मां के पास घर और दुकान दोनों की जिम्मेदारी है. पढ़ाई से फुरसत मिलते ही अंकिता उन की मदद के लिए पहुंच जाती हैं.

अंकिता ने अपने सपने को पूरा करने के लिए कठिन संघर्ष किया है. यहां तक कि अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने शादी तक नहीं की. उन के बड़े भाई और छोटी बहन की शादी हो चुकी है. अंकिता कहती हैं, ““अब मैं निष्पक्ष और निडर हो कर आम जनता की मदद करूंगी और उन्हें न्याय दिलाऊंगी.””

अंकिता कई बार असफल हुईं लेकिन अपने लक्ष्य से कभी नहीं डिगीं. मजबूत आत्मविश्वास ने उन्हें सफल बनाया है. अंकिता के पिता अशोक कुमार नागर कहते हैं, ““मेरी बेटी एक मिसाल है क्योंकि उस ने जीवन में कड़े संघर्ष के बावजूद हिम्मत नहीं हारी.””

इतने संघर्ष के बाद न्याय की कुरसी पर बैठने वाली औरत की कलम देश की गरीब और उत्पीड़न की शिकार जनता के हक में फैसले लिखेगी, यही उम्मीद सब को है. मगर हाल के दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिन्होंने औरत के औरा को धूमिल किया है.

भ्रष्टाचार में लिप्त ऊंची कुरसियों पर बैठी कई महिलाएं समाचारपत्रों और चैनलों की नकारात्मक सुर्खियां बनी हुई हैं. उन में जो नाम सब से ज्यादा चर्चा में है वह है पूजा सिंघल का. झारखंड में आईएएस अफसर रहीं पूजा सिंघल को मनरेगा में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया जा चुका है.

प्रवर्तन निदेशालय ने बीते कई दिनों उन से, उन के पति और सीए से लंबी पूछताछ की. भ्रष्ट अधिकारी पूजा सिंघल के कई ठिकानों से करीब 22 करोड़ रुपया नकद बरामद हुआ है. वर्ष 2000 में महज 21 साल की उम्र में आईएएस बन कर लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने वाली पूजा सिंघल झारखंड में उद्योग और खनन सचिव थीं.

पूर्व की सभी सरकारों के साथ भी पूजा सिंघल के अच्छे संबंध रहे हैं. बीजेपी की रघुबर दास सरकार में वे कृषि विभाग की सचिव थीं. वर्तमान हेमंत सरकार ने भी उन्हें अच्छे पदों पर पोस्ट किया और खदान, उद्योग और जेएसएमडीसी के अध्यक्ष जैसे अहम विभागों की जिम्मेदारी सौंपी.

मगर पूजा सिंघल पर आरोप है कि कुछ साल बेहद ईमानदारी से काम करतेकरते अचानक वे भ्रष्टाचार में लिप्त हो गईं और आगे के सालों में आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी रहीं. काम कोई भी हो, उन का 30 प्रतिशत फिक्स रहता था. प्रवर्तन निदेशालय ने पूजा सिंघल की अर्जित अवैध कमाई को खंगालने के लिए झारखंड, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में उन के 25 ठिकानों पर एकसाथ छापेमारी की.

अवैध कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा उन के चार्टर्ड अकाउंटैंट सुमन कुमार सिंह के पास से भी बरामद हुआ है. रांची में उन के पति अभिषेक झा के अस्पताल पर भी छापेमारी हुई है. तमाम जगहों से कई अहम कागजात एजेंसी को मिले हैं. करीब 150 करोड़ रुपए के निवेश के कागजात बरामद हुए हैं. कई महानगरों में संपत्ति का पता चला है और कई आलीशान फ्लैट्स में निवेश के सुबूत मिले हैं.

पूजा सिंघल एक ऐसा नाम है जो कुछ दिनों पहले तक संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वालों के लिए नजीर माना जाता था. हर स्टूडैंट की ख्वाहिश होती थी कि वह पूजा सिंघल की तरह कम उम्र में ही आईएएस बन जाए. पूजा सिंघल को एक मल्टीटैलेंटेड यानी बहुप्रतिभाशाली नौकरशाह के रूप में जाना गया. मगर अब उन के पास अवैध संपत्ति की इतनी बड़ी बरामदगी के बाद सारे मिथक टूट चुके हैं. आदर्श मानने वालों के मन में सवाल है कि आखिर वे भ्रष्ट क्यों हुईं?

पूजा जैसे और भी कई उदाहरण हाल के दिनों में सामने आए हैं. ये नाम संघर्ष करती लड़कियों की प्रेरणा थे, आज काली कमाई की कालिख से उन के चेहरे रंगे हुए हैं.

ऋतु माहेश्‍वरी और निधि केसरवानी, इन 2 महिला आईएएस अधिकारियों के नाम भी आजकल सुर्खियों में हैं. एक नोएडा अथौरिटी की सीईओ हैं जिन पर अवमानना मामले में गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. दूसरी पर गाजियाबाद का डीएम रहते हुए मेरठ एक्सप्रेस-वे और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के जमीन अधिग्रहण में जबरदस्त भ्रष्टाचार करने का आरोप है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने गाजियाबाद की जिलाधिकारी रहीं निधि केसरवानी को निलंबित करने की सिफारिश की है. वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवमानना के एक मामले में नोएडा की मुख्य कार्यपालक अधिकारी ऋतु माहेश्‍वरी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया है. कोर्ट ने नोएडा के सीजेएम को आदेश के पालन की जिम्मेदारी सौंपी है.

निधि केसरवानी

गाजियाबाद की तत्कालीन डीएम निधि केसरवानी इस समय प्रतिनियुक्ति पर स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान में डिप्टी डायरैक्टर के पद पर तैनात हैं. 2004 बैच की आईएएस निधि केसरवानी जिले में 20 जुलाई, 2016 से 28 अप्रैल, 2017 तक डीएम के पद पर तैनात थीं. वे मणिपुर कैडर की हैं. इन पर आरोप है कि दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे के लिए भूमि अधिग्रहण में मुआवजे के भुगतान में 20 करोड़ रुपए से अधिक का भ्रष्टाचार हुआ है.

ऋतु माहेश्वरी

नोएडा सीईओ ऋ‍तु माहेश्वरी पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा हारने के बावजूद नोएडा विकास प्राधिकरण ने अदालती आदेशों का पालन नहीं किया. इस के खिलाफ किसान की ओर से अवमानना याचिका दायर की गई थी. इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऋतु माहेश्वरी को खुद अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया था. मगर ऋ‍तु माहेश्वरी अदालत के सामने हाजिर नहीं हुईं. कोर्ट ने ऋतु महेश्वरी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया.

बी चंद्रकला

उत्तर प्रदेश कैडर की 2008 बैच की आईएएस अफसर बी चंद्रकला सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हैं. वे निरीक्षण के दौरान अधिकारियों को लताड़ लगा कर सुर्खियों में आई थीं. लगा था एक बेहद निष्ठावान, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार अफसर प्रदेश को मिली है. एक वक्त तो उन्‍हें ‘लेडी सिंघम’ कहा जाता था. फिर वे अवैध खनन से होने वाली कमाई में ऐसी डूबीं कि उन की सारी उपलब्धियों पर स्याही फिर गई.

नौकरी की शुरुआत में उन्होंने अपनी संपत्ति शून्य दिखाई थी लेकिन एक साल बाद ही संपत्ति में 10 लाख रुपए की बढ़ोतरी का रिटर्न उन्होंने भरा, जो महज एक साल बाद वर्ष 2013-14 में बढ़ कर एक करोड़ हो गई. यह संपत्ति तीव्र गति से बढ़ती चली गई. फिर बी चंद्रकला ने तेलंगाना में कई बड़ी संपत्तियां खरीदीं. सीबीआई ने 2019 में उन के यहां छापा मारा था.

उत्तर प्रदेश में चंद्रकला को पहली बार हमीरपुर जिले में जिलाधिकारी के पद पर तैनाती दी गई थी. चंद्रकला ने जुलाई 2012 के बाद हमीरपुर जिले में 50 मोरंग के खनन के पट्टे किए थे, जबकि, ई-टैंडर के जरिए मोरंग के पट्टों पर स्वीकृति देने का प्रावधान था. आईएएस चन्द्रकला ने सारे प्रावधानों को दरकिनार करते हुए 50 मोरंग के खनन पट्टे को मंजूरी दे दी थी. इस के एवज में निश्चित ही बहुत बड़ी धनराशि उन के हिस्से में आई होगी. हमीरपुर में तैनाती के बाद से ही खनन को ले कर उन की संदिग्ध भूमिका की चर्चा होने लगी.

तेलंगाना के एक आदिवासी परिवार में जन्मी चंद्रकला ने आईएएस बनने के लिए काफी संघर्ष किया था. 10वीं की परीक्षा में उन का प्रदर्शन खराब रहा जिस के कारण उन्हें कला से स्नातक करनी पड़ी. स्नातक के दूसरे वर्ष में उन का विवाह कर दिया गया. मगर उन्होंने संघर्ष नहीं छोड़ा और शादी के बाद आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग की तैयारी करनी शुरू कर दी.

चंद्रकला ने एससी/एसटी श्रेणी में शीर्ष स्थान हासिल किया. परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें सहकारी समितियों के उपनिबंधक के रूप में नियुक्ति मिली. आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग में सफलता प्राप्त करने के बाद चंद्रकला ने सिविल सेवा की परीक्षा देने का निर्णय किया. पहले 3 प्रयास निष्फल रहे मगर चौथे प्रयास में उन्होंने मुख्य परीक्षा को उत्तीर्ण करते हुए 409 रैंक हासिल की. वे वर्ष 2008 बैच के यूपी कैडर की आईएएस अधिकारी बनीं. जिस के चलते उन्हें मथुरा, बुलंदशहर इत्यादि के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के रूप में नियुक्त किया गया.

बी चंद्रकला हमेशा से अपनी मां के काफी करीब रहीं. उन की मां बी लक्ष्मी अशिक्षित होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को समझती थीं. उन्होंने बहुत मेहनत से अपने सभी बच्चों को एक अच्छा रास्ता दिखाया. इसी रास्ते पर चल कर बी चंद्रकला एक उच्चाधिकारी बनीं. मगर भ्रष्टाचार ने उन के और उन की मां के संघर्षों व ईमानदारी पर कालिख पोत दी.

बी चंद्रकला आगे की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन सकती थीं मगर वे एक गलत उदाहरण बन कर रह गईं. सोशल मीडिया पर लाखों फौलोअर्स, मातहत अफसरों को लताड़ते वीडियो, सख्त और ईमानदार अफसर की पिछले 10 वर्षों के दौरान हासिल की गई छवि एकाएक धूमिल हो गई.

अब तक ऐसा कहा जाता था कि अगर शासनप्रशासन में ज्यादा महिलाएं होंगी तो काम करने का माहौल बेहतर हो जाता है. भारत में ऐसा हुआ भी. 1993 के कानून के तहत ग्राम पंचायत चुनावों में एकतिहाई हिस्सेदारी महिलाओं को दी गई. तब विश्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में कहा गया कि इस के बाद से भारत के गांवों की बेहतरी हुई है और वहां ज्यादा साफ पानी, साफसफाई, स्कूल और दूसरी संस्थाएं बन पाईं.

वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है कि जिन गांवों की कमान महिलाओं के हाथ में है वहां भ्रष्टाचार नगण्य है. लेकिन बीते 2 दशकों में जिस तरह प्रशासनिक ओहदों पर बैठी औरतों का भ्रष्ट होना रफ़्तार पकड़ रहा है, वह न सिर्फ देश और समाज के लिए खतरनाक है बल्कि अपने वजूद के लिए सदियों से लड़ती आधी आबादी के लिए भी खतरे की घंटी है.

मैंने यौन संबंध बनाएं हैं लेकिन अब मुझे देर से पीरियड्स हो रहे हैं, बताएं क्या करूं?

सवाल

मैं 26 साल की हूं. मैं 5 फुट 3 इंच हूं और मेरा वजन 70 किलोग्राम है. 5 माह पहले मुझे मासिकस्राव नहीं हुआ था. लेकिन अगले महीने हुआ. उस के 10 दिन बाद मैं ने सुरक्षित यौन संबंध स्थापित किया. उस महीने मुझे समय से मासिकस्राव हुआ. लेकिन अब मुझे देर से मासिकस्राव हो रहा है. इस का क्या कारण हो सकता है? बताएं, क्या करूं?

जवाब

अनियमित या देरी से मासिकस्राव होने के कई कारण हैं. अगर आप यौनसक्रिय हैं, तो पहली बात यह कि आप को गर्भावस्था के बारे में निश्चित करना चाहिए. इस के अलावा पेल्विक अल्ट्रासाउंड की भी जांच होनी चाहिए ताकि अंडाशन में सिस्ट या पौलिसिस्टिक ओवरीज की जांच हो सके. अधिक वजन का भी मासिकस्राव पर प्रभाव पड़ता है. आप की लंबाई के हिसाब से आप का वजन 60 किलोग्राम होना चाहिए. आप को अपने आहार नियंत्रण एवं जीवनशैली में परिवर्तन के जरीए वजन पर नियंत्रण करना चाहिए, जिस से आप के मासिकस्राव को भी नियमित होने में मदद मिलेगी.

मध्य आयु में आकर्षक व्यक्तित्व

जब उम्र ढलान पर होती है और सिर में चांदी के बाल अनायास नजर आने लगते हैं तब लगता है वक्त बहुत आगे निकला जा रहा है, सुबह का सूरज ढल रहा है और खिड़की से शाम का ढलता सूरज कहीं दूर क्षितिज में नजर आ रहा है. आप आयु का ढलता पड़ाव महसूस करने लगती हैं. लेकिन परेशान होेने वाली कोई बात नहीं है. जहां यह सच है कि बीता वक्त नहीं लौटता वहां यह भी कहना तर्कसंगत होगा कि जिंदगी के बीते वर्षों को लौटा कर लाया जा सकता है. यदि आप यह दृढ़ निश्चय कर लें कि आप को अपनी बढ़ती आयु को स्वयं पर हावी नहीं होने देना है, बल्कि अपनी आयु से काफी वर्ष कम का लगना है, तो आप की बढ़ती उम्र भी एक बार ठिठक जाएगी.

यकीनन आप अपनी बढ़ती उम्र के 6-7 वर्ष कम करने में सफल हो सकती हैं. तो चलिए, हम आप को बताते हैं कैसे?

सब से पहले तो शुरुआत करते हैं चेहरे से. आप के चेहरे में पहले से कुछ अंतर आया है तो आप को घरेलू इलाज के साथसाथ ब्यूटीपार्लर से फेशियल करवाने के बारे में सोच लेना चाहिए. आजकल अमूमन सभी महिलाएं फेशियल, आईब्रोज, ब्लीचिंग आदि करवाती हैं, इन से फर्क भी पड़ता है. यदि आप ये सब नहीं करवाती हैं तो आप को करवाना चाहिए. ब्यूटी ट्रीटमैंट से आप समझ लेंगी कि चेहरे व शरीर का अंतर बहुत ज्यादा हो गया है. चेहरे के कसाव के लिए आप को थर्मोहर्ब फेशियल सूट करेगा. आईब्रोज भी वैसी स्टाइलिश ही बनवाएं, जो आप के चेहरे को सूट करें.

घरेलू उपचार

पार्लर जाने का समय न मिल पाता हो तो घर में अंडे के सफेद भाग को अच्छी तरह से बीट कर के चेहरे पर लगाने से त्वचा में कसाव भी आएगा और चेहरा भी चमक उठेगा.पके केले को बीट कर के चेहरे पर कुछ देर लगाने से भी त्वचा में कसाव आ जाता  है. उम्र को ठिठकाना है तो स्वयं को पैंपर तो करना ही होगा. आप के चेहरे पर कमनीयता आए, उस के लिए प्रयास कीजिए. अपने मेकअप को भी थोड़ा बदला हुआ आयाम दीजिए. आंखों के ऊपर हलका सा आईशैडो और आईलाइनर एक यंग लुक देता है. आईशैडो समय व अपनी ड्रैस के हिसाब से तय करें. पलकों पर लगा मस्कारा ड्रीमी लुक देगा. आंखों का मेकअप अपनी आंखों के हिसाब से करें.

इस के अलावा हाथों और पैरों पर मैनीक्योर, पैडीक्योर करवाना न भूलें. हाथों पर उभरी नसें, जो बढ़ती आयु की ओर इशारा करती हैं, लगातार मैनीक्योर से दब सी जाती हैं और हाथों को एक यंग लुक मिलता है. अपने नाखूनों को भी आप को फैशन व हाथ की बनावट के हिसाब से रखना चाहिए. यदि नेलपौलिश ज्यादा पसंद न हो तो फ्रैंच मैनीक्योर लगा सकती हैं, इस में नाखूनों को एक विशेष अंदाज में तराशा व फाइल किया जाता है. बड़े नाखून पर सफेद नेल इनैमल व बाकी नाखूनों पर बहुत हलका ट्रांसपेरैंट लाइट पिंक कलर अच्छा रहता है. नेलपौलिश का यह स्टाइल बहुत अच्छा लगता है.

बालों का स्टाइल

बालों का स्टाइल भी आप को एक युवा लुक देगा. चलिए, इस बार अपने बालों को कटा ही डालिए. अपने चेहरे पर सूट करता हुआ स्टाइल करवा लें. कहते हैं न बाल कटाइए, उम्र घटाइए. आप स्वयं अनुभव करेंगी कि आप का लुक युवा हो गया है पर बालों की कटिंग ग्रेसफुल होनी चाहिए. आप को तय करना है कि अपने बालों को वेवी रखें यानी हलके कर्ल वाले या बिलकुल प्लेन. यह आप की सूझबूझ पर निर्भर करेगा.

यदि आप बाल नहीं कटवाना चाहती हैं तो विभिन्न प्रकार की पौनीटेल भी बना सकती हैं. हां, जूड़े को फिलहाल बैक सीट ही दे दें, क्योंकि इस से आयु थोड़ी बड़ी ही लगती है. जो भी स्टाइल बनाएं, आत्मविश्वास के साथ बनाएं.

इस के अतिरिक्त यह भी ध्यान रखें कि आप को उम्र के अनुसार ड्रैस भी पहननी है. उम्र का एहसास कम करने के लिए कुछ बदली हुई ड्रैसेस पहनी जा सकती हैं. यदि आप केवल साड़ी तक ही सीमित हैं तो क्यों न सलवारसूट और चूड़ीदार पायजामाकुरता पहनें. साड़ी ग्रेसफुल तो होती है पर हम तो यहां आप के गैटअप का बदलाव कर रहे हैं. तो चलिए, अन्य ड्रैसेस की ओर भी रुझान कर लें.

गैटअप में बदलाव

कुछ सुप्रसिद्ध फैशन डिजाइनर्स से जब इस बारे में बात की तो उन्होंने समझाया कि कोई भी ड्रैस किसी भी उम्र में पहनी जा सकती है. उन्होेंने इस बात को भी माना कि विभिन्न प्रकार की ड्रैसेस से शर्तिया आयु कम लगती है. हैरानी तो तब हुई जब एक फैशन डिजाइनर, जो उस समय कैपरी और कुरती में थीं, उन्होंने अपनी आयु बताई तो एकबारगी लगा कि दरअसल जो वे हैं, दिख नहीं रहीं. उन का गैटअप, बात करने का आत्मविश्वास उन्हें अपनी आयु से बहुत कम दिखा रहा था. उन की आयु जान कर लगा कि आज हमारा यह प्रण कि आप की आयु कुछ वर्ष कम करें, एकदम सटीक है. आप का तमाम गैटअप आप को कम उम्र का बना ही देगा.

आप चाहें और आप का मूड हो तो जींसटौप भी पहन सकती हैं. यह आप के ऊपर निर्भर है, पर जो भी पहनें वह हास्यास्पद न लगे.

बौडी मसाज

इस के साथ ही अपने शरीर की मसाज भी करवाती रहें. इस से चुस्तीफुरती बरकरार रहेगी और हलकेफुलके दर्दों से भी नजात मिलेगी. उम्र घटाने की इस शृंखला में आप को अपनेआप को शारीरिक रूप से स्वस्थ भी रखना है. अपने डाक्टर की सलाहानुसार विटामिंस व कैलशियम नियमित लेती रहें, इस से आप को ताकत भी मिलेगी व कैलशियम की कमी भी न रहेगी.

डाक्टरी देखभाल

इस आयु तक पहुंचतेपहुंचते जोड़ों का दर्द भी शुरू हो जाता है तो आप को डाक्टर को दिखाते रहना चाहिए. यदि समस्या है तो दवाएं भी लेनी चाहिए.

आंखों की जांच भी बहुत जरूरी होती है. प्रौढावस्था तक आतेआते आंखें कमजोर तो हो ही जाती हैं, कई बार मोतियाबिंद भी हो सकता है. यदि आंखों पर चश्मा लगाना हो तो फ्रेम का चुनाव ऐसा कीजिए जो आप के व्यक्तित्व को और भी उभारे. चाहे तो कांटैक्ट लैंस का प्रयोग भी कर सकती हैं. आजकल कई प्रकार के कास्मैटिक कांटैक्ट लैंस भी उपलब्ध हैं, डाक्टर के परामर्श से इन का प्रयोग आप को आकर्षक बना देगा.

अगर चेहरे पर कोई विकार है तो प्लास्टिक सर्जरी का सहारा भी लिया जा सकता है. पर कोशिश यह कीजिए कि मेकअप से ही चेहरे को संवारें. कुछ महिलाएं अपनी त्वचा के कसाव के लिए प्लास्टिक सर्जरी करवा लेती हैं. यह ग्लैमर से जुड़े लोगों के लिए शायद ठीक हो पर आमतौर पर इस की जरूरत नहीं होती.

अपने दांतों पर भी गौर फरमाना जरूरी है. उजले दांतों से आप की मुसकराहट और भी अच्छी बन पड़ेगी.

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