भारतीय समाज में धर्म, संस्कार, समाज, परिवार, रिश्तेनातों की अनगिनत बाधाओं को लांघ कर बाहर आने और अपने वजूद को साबित करने में औरत को सदियों का लंबा वक्त लगा है. शिक्षा पाने के लिए, नौकरी पाने के लिए, अपनी पसंद का जीवनसाथी पाने के लिए, पैतृक संपत्ति में अपना अधिकार पाने के लिए, इच्छानुरूप अपना घर बनाने के लिए, देश या विदेश यात्रा के लिए वह आज भी अनगिनत पाबंदियों व मुश्किलों से बुरी तरह जूझ रही है.
एक कुंठित, रूढ़िवादी, अशिक्षित, हिंसक, तर्कविहीन, धार्मिक अंधकार में घिरे समाज से लड़ कर भारतीय औरत ने समाज में अपनी जो जगह हासिल की है और अनेकानेक महिलाएं अपनी मेहनत से जो जगहें हासिल कर रही हैं उस की जितनी तारीफ की जाए कम है. संघर्ष की आग में पलपल तप कर कुंदन हुई औरत मान, मर्यादा, ममत्व की प्रतिमूर्ति होती है. उस के साथ भ्रष्ट या भ्रष्टाचार शब्द मेल नहीं खाते. मगर ये शब्द आज औरत के साथ जुड़ने लगे हैं. यह संख्या अभी कम है, लेकिन सफेद भेड़ों के बीच अगर काली भेड़ों की संख्या में इजाफा हुआ तो सदियों से जारी औरत के संघर्ष, हौसले, रुतबे, शोहरत और छवि सब पर पानी फिर जाएगा.
एक औरत का भ्रष्ट होना परिवार, समाज और देश सब के विनाश का कारण बन सकता है. वहीं उस का उदाहरण उस के पीछे आने वाली पीढ़ियों के रास्ते मुश्किल कर सकता है या रोक सकता है.
मध्य प्रदेश के नीमच में वंशिका गुप्ता अपने पहले ही अटेम्प्ट में सिविल जज बन गई हैं. वंशिका के पिता अरविंद गुप्ता नीमच जिला कोर्ट के एक जज के ड्राइवर हैं. बेटी की पढ़ाई की लगन को देखते हुए उन्होंने उसे खूब पढ़ाया. 25 साल की वंशिका ने समाज में अपनी एक जगह बनानी चाही और वह उस में सफल हुईं.
पूरे मध्य प्रदेश में उन की सातवीं रैंक आई है. यह एक निम्नवर्गीय परिवार की बेटी की बड़ी कामयाबी है. वंशिका की मां एक सरकारी स्कूल में टीचर हैं. मां की प्रेरणा पा कर वंशिका ने पढ़ाई जारी रखी. उन्होंने जयपुर के एक कालेज से लौ की डिग्री पाई और उस के बाद मध्य प्रदेश में इंदौर के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट में सिविल जज वर्ग-2 भरती परीक्षा की तैयारी की और पहले ही प्रयास में सफलता हासिल कर ली. अब आगे वे अपर जिला न्यायाधीश की परीक्षा भी देना चाहती हैं. साथ ही, पढ़ाई में कानून की मास्टर डिग्री और पीएचडी भी करने का इरादा है.
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश की अदालतों में खाली 252 पदों के लिए लिखित परीक्षा मार्च में आयोजित की गई थी, जिस में देशभर के 350 अभ्यर्थियों ने भाग लिया था. उस में नीमच की वंशिता गुप्ता के अलावा शहर के एक किताब बेचने वाले हौकर जितेंद्र एरन की बेटी दुर्गा एरन ने भी सिविल जज वर्ग-2 परीक्षा पास की है.
संघर्ष की भट्टी में इंदौर की बेटी अंकिता नागर भी तप कर निकली हैं. अंकिता नागर भी सिविल जज बन गई हैं. अंकिता को तीसरी कोशिश में यह सफलता हाथ लगी है. अंकिता की सफलता पर उन के पूरे परिवार को गर्व है. एलएलबी की पढ़ाई के दौरान ही वे सिविल जज की तैयारी में जुट गई थीं. मातापिता की आर्थिक स्थिति उन की पढ़ाई में बाधक नहीं बनी. वे इंदौर में अपने मातापिता के साथ सड़क के किनारे सब्जी का ठेला लगाती थीं. सब्जी बेचने से वक्त मिलते ही वे पढ़ाई में लग जाती थीं. सिविल जज में चयन होने के बाद भी लोगों ने अंकिता को अपने ठेले पर सब्जी बेचते देखा है.
अंकिता नागर का परिवार सब्जी के ठेले से हुई कमाई पर ही पलता है. ठेले पर अकसर मां के साथ अंकिता बैठती हैं. पिता बाहर से सामान लाने में लगे रहते हैं. मां के पास घर और दुकान दोनों की जिम्मेदारी है. पढ़ाई से फुरसत मिलते ही अंकिता उन की मदद के लिए पहुंच जाती हैं.
अंकिता ने अपने सपने को पूरा करने के लिए कठिन संघर्ष किया है. यहां तक कि अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने शादी तक नहीं की. उन के बड़े भाई और छोटी बहन की शादी हो चुकी है. अंकिता कहती हैं, ““अब मैं निष्पक्ष और निडर हो कर आम जनता की मदद करूंगी और उन्हें न्याय दिलाऊंगी.””
अंकिता कई बार असफल हुईं लेकिन अपने लक्ष्य से कभी नहीं डिगीं. मजबूत आत्मविश्वास ने उन्हें सफल बनाया है. अंकिता के पिता अशोक कुमार नागर कहते हैं, ““मेरी बेटी एक मिसाल है क्योंकि उस ने जीवन में कड़े संघर्ष के बावजूद हिम्मत नहीं हारी.””
इतने संघर्ष के बाद न्याय की कुरसी पर बैठने वाली औरत की कलम देश की गरीब और उत्पीड़न की शिकार जनता के हक में फैसले लिखेगी, यही उम्मीद सब को है. मगर हाल के दिनों में कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं जिन्होंने औरत के औरा को धूमिल किया है.
भ्रष्टाचार में लिप्त ऊंची कुरसियों पर बैठी कई महिलाएं समाचारपत्रों और चैनलों की नकारात्मक सुर्खियां बनी हुई हैं. उन में जो नाम सब से ज्यादा चर्चा में है वह है पूजा सिंघल का. झारखंड में आईएएस अफसर रहीं पूजा सिंघल को मनरेगा में हुए भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार किया जा चुका है.
प्रवर्तन निदेशालय ने बीते कई दिनों उन से, उन के पति और सीए से लंबी पूछताछ की. भ्रष्ट अधिकारी पूजा सिंघल के कई ठिकानों से करीब 22 करोड़ रुपया नकद बरामद हुआ है. वर्ष 2000 में महज 21 साल की उम्र में आईएएस बन कर लिम्का बुक औफ रिकौर्ड्स में अपना नाम दर्ज कराने वाली पूजा सिंघल झारखंड में उद्योग और खनन सचिव थीं.
पूर्व की सभी सरकारों के साथ भी पूजा सिंघल के अच्छे संबंध रहे हैं. बीजेपी की रघुबर दास सरकार में वे कृषि विभाग की सचिव थीं. वर्तमान हेमंत सरकार ने भी उन्हें अच्छे पदों पर पोस्ट किया और खदान, उद्योग और जेएसएमडीसी के अध्यक्ष जैसे अहम विभागों की जिम्मेदारी सौंपी.
मगर पूजा सिंघल पर आरोप है कि कुछ साल बेहद ईमानदारी से काम करतेकरते अचानक वे भ्रष्टाचार में लिप्त हो गईं और आगे के सालों में आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी रहीं. काम कोई भी हो, उन का 30 प्रतिशत फिक्स रहता था. प्रवर्तन निदेशालय ने पूजा सिंघल की अर्जित अवैध कमाई को खंगालने के लिए झारखंड, बिहार, हरियाणा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र में उन के 25 ठिकानों पर एकसाथ छापेमारी की.
अवैध कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा उन के चार्टर्ड अकाउंटैंट सुमन कुमार सिंह के पास से भी बरामद हुआ है. रांची में उन के पति अभिषेक झा के अस्पताल पर भी छापेमारी हुई है. तमाम जगहों से कई अहम कागजात एजेंसी को मिले हैं. करीब 150 करोड़ रुपए के निवेश के कागजात बरामद हुए हैं. कई महानगरों में संपत्ति का पता चला है और कई आलीशान फ्लैट्स में निवेश के सुबूत मिले हैं.
पूजा सिंघल एक ऐसा नाम है जो कुछ दिनों पहले तक संघ लोक सेवा आयोग की तैयारी करने वालों के लिए नजीर माना जाता था. हर स्टूडैंट की ख्वाहिश होती थी कि वह पूजा सिंघल की तरह कम उम्र में ही आईएएस बन जाए. पूजा सिंघल को एक मल्टीटैलेंटेड यानी बहुप्रतिभाशाली नौकरशाह के रूप में जाना गया. मगर अब उन के पास अवैध संपत्ति की इतनी बड़ी बरामदगी के बाद सारे मिथक टूट चुके हैं. आदर्श मानने वालों के मन में सवाल है कि आखिर वे भ्रष्ट क्यों हुईं?
पूजा जैसे और भी कई उदाहरण हाल के दिनों में सामने आए हैं. ये नाम संघर्ष करती लड़कियों की प्रेरणा थे, आज काली कमाई की कालिख से उन के चेहरे रंगे हुए हैं.
ऋतु माहेश्वरी और निधि केसरवानी, इन 2 महिला आईएएस अधिकारियों के नाम भी आजकल सुर्खियों में हैं. एक नोएडा अथौरिटी की सीईओ हैं जिन पर अवमानना मामले में गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. दूसरी पर गाजियाबाद का डीएम रहते हुए मेरठ एक्सप्रेस-वे और ईस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेस-वे के जमीन अधिग्रहण में जबरदस्त भ्रष्टाचार करने का आरोप है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने गाजियाबाद की जिलाधिकारी रहीं निधि केसरवानी को निलंबित करने की सिफारिश की है. वहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अवमानना के एक मामले में नोएडा की मुख्य कार्यपालक अधिकारी ऋतु माहेश्वरी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किया है. कोर्ट ने नोएडा के सीजेएम को आदेश के पालन की जिम्मेदारी सौंपी है.
निधि केसरवानी
गाजियाबाद की तत्कालीन डीएम निधि केसरवानी इस समय प्रतिनियुक्ति पर स्वास्थ्य मंत्रालय के राष्ट्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संस्थान में डिप्टी डायरैक्टर के पद पर तैनात हैं. 2004 बैच की आईएएस निधि केसरवानी जिले में 20 जुलाई, 2016 से 28 अप्रैल, 2017 तक डीएम के पद पर तैनात थीं. वे मणिपुर कैडर की हैं. इन पर आरोप है कि दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे के लिए भूमि अधिग्रहण में मुआवजे के भुगतान में 20 करोड़ रुपए से अधिक का भ्रष्टाचार हुआ है.
ऋतु माहेश्वरी
नोएडा सीईओ ऋतु माहेश्वरी पर गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है. भूमि अधिग्रहण से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट में मुकदमा हारने के बावजूद नोएडा विकास प्राधिकरण ने अदालती आदेशों का पालन नहीं किया. इस के खिलाफ किसान की ओर से अवमानना याचिका दायर की गई थी. इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऋतु माहेश्वरी को खुद अदालत में हाजिर होने का आदेश दिया था. मगर ऋतु माहेश्वरी अदालत के सामने हाजिर नहीं हुईं. कोर्ट ने ऋतु महेश्वरी के खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी कर दिया.
बी चंद्रकला
उत्तर प्रदेश कैडर की 2008 बैच की आईएएस अफसर बी चंद्रकला सोशल मीडिया पर बेहद लोकप्रिय हैं. वे निरीक्षण के दौरान अधिकारियों को लताड़ लगा कर सुर्खियों में आई थीं. लगा था एक बेहद निष्ठावान, कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार अफसर प्रदेश को मिली है. एक वक्त तो उन्हें ‘लेडी सिंघम’ कहा जाता था. फिर वे अवैध खनन से होने वाली कमाई में ऐसी डूबीं कि उन की सारी उपलब्धियों पर स्याही फिर गई.
नौकरी की शुरुआत में उन्होंने अपनी संपत्ति शून्य दिखाई थी लेकिन एक साल बाद ही संपत्ति में 10 लाख रुपए की बढ़ोतरी का रिटर्न उन्होंने भरा, जो महज एक साल बाद वर्ष 2013-14 में बढ़ कर एक करोड़ हो गई. यह संपत्ति तीव्र गति से बढ़ती चली गई. फिर बी चंद्रकला ने तेलंगाना में कई बड़ी संपत्तियां खरीदीं. सीबीआई ने 2019 में उन के यहां छापा मारा था.
उत्तर प्रदेश में चंद्रकला को पहली बार हमीरपुर जिले में जिलाधिकारी के पद पर तैनाती दी गई थी. चंद्रकला ने जुलाई 2012 के बाद हमीरपुर जिले में 50 मोरंग के खनन के पट्टे किए थे, जबकि, ई-टैंडर के जरिए मोरंग के पट्टों पर स्वीकृति देने का प्रावधान था. आईएएस चन्द्रकला ने सारे प्रावधानों को दरकिनार करते हुए 50 मोरंग के खनन पट्टे को मंजूरी दे दी थी. इस के एवज में निश्चित ही बहुत बड़ी धनराशि उन के हिस्से में आई होगी. हमीरपुर में तैनाती के बाद से ही खनन को ले कर उन की संदिग्ध भूमिका की चर्चा होने लगी.
तेलंगाना के एक आदिवासी परिवार में जन्मी चंद्रकला ने आईएएस बनने के लिए काफी संघर्ष किया था. 10वीं की परीक्षा में उन का प्रदर्शन खराब रहा जिस के कारण उन्हें कला से स्नातक करनी पड़ी. स्नातक के दूसरे वर्ष में उन का विवाह कर दिया गया. मगर उन्होंने संघर्ष नहीं छोड़ा और शादी के बाद आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग की तैयारी करनी शुरू कर दी.
चंद्रकला ने एससी/एसटी श्रेणी में शीर्ष स्थान हासिल किया. परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें सहकारी समितियों के उपनिबंधक के रूप में नियुक्ति मिली. आंध्र प्रदेश लोक सेवा आयोग में सफलता प्राप्त करने के बाद चंद्रकला ने सिविल सेवा की परीक्षा देने का निर्णय किया. पहले 3 प्रयास निष्फल रहे मगर चौथे प्रयास में उन्होंने मुख्य परीक्षा को उत्तीर्ण करते हुए 409 रैंक हासिल की. वे वर्ष 2008 बैच के यूपी कैडर की आईएएस अधिकारी बनीं. जिस के चलते उन्हें मथुरा, बुलंदशहर इत्यादि के जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) के रूप में नियुक्त किया गया.
बी चंद्रकला हमेशा से अपनी मां के काफी करीब रहीं. उन की मां बी लक्ष्मी अशिक्षित होने के कारण शिक्षा के महत्त्व को समझती थीं. उन्होंने बहुत मेहनत से अपने सभी बच्चों को एक अच्छा रास्ता दिखाया. इसी रास्ते पर चल कर बी चंद्रकला एक उच्चाधिकारी बनीं. मगर भ्रष्टाचार ने उन के और उन की मां के संघर्षों व ईमानदारी पर कालिख पोत दी.
बी चंद्रकला आगे की पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन सकती थीं मगर वे एक गलत उदाहरण बन कर रह गईं. सोशल मीडिया पर लाखों फौलोअर्स, मातहत अफसरों को लताड़ते वीडियो, सख्त और ईमानदार अफसर की पिछले 10 वर्षों के दौरान हासिल की गई छवि एकाएक धूमिल हो गई.
अब तक ऐसा कहा जाता था कि अगर शासनप्रशासन में ज्यादा महिलाएं होंगी तो काम करने का माहौल बेहतर हो जाता है. भारत में ऐसा हुआ भी. 1993 के कानून के तहत ग्राम पंचायत चुनावों में एकतिहाई हिस्सेदारी महिलाओं को दी गई. तब विश्व बैंक की सालाना रिपोर्ट में कहा गया कि इस के बाद से भारत के गांवों की बेहतरी हुई है और वहां ज्यादा साफ पानी, साफसफाई, स्कूल और दूसरी संस्थाएं बन पाईं.
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट कहती है कि जिन गांवों की कमान महिलाओं के हाथ में है वहां भ्रष्टाचार नगण्य है. लेकिन बीते 2 दशकों में जिस तरह प्रशासनिक ओहदों पर बैठी औरतों का भ्रष्ट होना रफ़्तार पकड़ रहा है, वह न सिर्फ देश और समाज के लिए खतरनाक है बल्कि अपने वजूद के लिए सदियों से लड़ती आधी आबादी के लिए भी खतरे की घंटी है.