कोविड के समय में मजबूरी में शुरू हुई औनलाइन पढ़ाई ने सभी बच्चों के हाथ में मोबाइल फोन दे दिए हैं. यह फोन अब उन के जीवन का अभिन्न अंग बन गया है. बच्चे फोन और लैपटौप पर औनलाइन पढ़ाई से ज्यादा औनलाइन गेम्स खेलना पसंद कर रहे हैं. इन औनलाइन गेम्स का नकारात्मक असर अब पूरी दुनिया के बच्चों और किशोरों में देखने को मिल रहा है.

ऋषभ आज कंप्यूटर इंजीनियरिंग के चौथे सैमेस्टर को कंपलीट कर रहा है. एक साल बाद किसी कंपनी में 12 से 15 लाख रुपए प्रतिवर्ष के पैकेज पर उस की जौइनिंग हो जाएगी. एक निम्नमध्यवर्गीय परिवार के 22 वर्षीय लड़के के लिए यह उत्साह की बात है. लाख से डेढ़ लाख रुपए महीने की आमदनी की कल्पना कर के वह ही नहीं, उस के मातापिता भी उत्साहित हैं. बेटे की पढ़ाई में वे अपनी सारी सेविंग ?ांक चुके हैं. अब बेटे से उन की सारी उम्मीदें बंधी हैं.

5 साल पहले जब ऋषभ एंट्रैंस की तैयारी कर रहा था तब उस का तनाव चरम पर था. मांबाप का बहुत पैसा उस की कोचिंग वगैरह पर खर्च हो रहा था. अपना पेट काटकाट कर वे बेटे के इंजीनियर बनने के सपने को पूरा करने में जुटे थे. ऋषभ को डर था कि अगर वह एंट्रैंस में फेल हो गया तो पिता द्वारा मुश्किल से कमाया जा रहा सारा पैसा बरबाद हो जाएगा.

इस डर में वह तनाव, अवसाद और गुस्से का पुतला बन चुका था. कभीकभी उस की इच्छा होती थी कि वह आत्महत्या कर ले. तनाव की हालत में पढ़ा हुआ कुछ भी ज्यादा देर तक याद नहीं रहता था. तब रात में वह अपने कंप्यूटर पर फीड किए हुए उस गेम को खेलने लगता था जिस में एक कैरेक्टर अपनी बंदूक से अपने तमाम दुश्मनों पर तड़ातड़ गोलियां बरसाता आगे बढ़ता जाता है और मंजिल पर पहुंच जाता है.

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