दीपेश का बारबार यह जताना कि जितना वह कमाती है उतना तो वह अपने ड्राइवर को तनख्वाह देता है, इतने पैसे वाले घर में शादी कर के कहीं न कहीं वह अपनेआप को इन सब से कमतर समझने लगी थी. उस के कानों में दीपेश की बातें गूंजतीं कि जितनी उस की एक महीने की सैलरी है, उस से ज्यादा तो उस के घर के नौकर और ड्राइवर तनख्वाह पाते हैं. उस की अल्टो गाड़ी की यहां कोई पूछ नहीं थी क्योंकि यहां तो लाखों-करोड़ों रुपयों की गाड़ियों की लाइन लगी थी.
शादी के पहले दीप्ति खुद अपनी अल्टो ड्राइव कर औफिस जाती थी. लेकिन यहां तो एक आवाज में ड्राइवर नजरें नीचे किए हाजिर हो जाता था. तीजत्योहार पर जब उस के मायके से तोहफे आते तो, यह कह कर उस तोहफे को एकतरफ रख दिया जाता कि बाद में देख लेंगे. लेकिन पता था दीप्ति को कि उस के मायके से आए तोहफों को घर के नौकरों में बांट दिया जाएगा.
पति दीपेश चाहता था कि दीप्ति अपना जौब छोड़ दे. उस का कहना था कि उसे जौब करने की जरूरत ही क्या है, अब? कौन सा उस के न कमाने से घर में भुखमरी छा जाएगी. लेकिन दीप्ति का कहना था कि उस ने इसलिए इतनी पढ़ाई नहीं की कि घर संभाले और सब का ध्यान रखे. इसी बात पर आएदिन दोनों के बीच लड़ाइयां होने लगी थीं.
सास से जब वह इस बात की शिकायत करती तो सास भी उसे ही समझाती हुई कहतीं कि दीपेश सही ही कह रहा है. इतने बड़े अधिकारी की बीवी और इतने बड़े नेता की बहू, कोई छोटीमोटी नौकरी करे शोभा देता है क्या? और घर में कौन सी पैसों की कमी है जो उस का नौकरी करना जरूरी है. छोड़ दे न, आराम से ज़िंदगी जी. जब दीप्ति ने यह बात अपने मां, भाई से बताई तो उन्होंने भी उसे यही सलाह दी कि सही तो कह रहे हैं वे लोग. यहां कोई भी उसे नहीं समझ पा रहा था.
“हां, माना कि मुझे बहुत पैसे वाला पति और ससुराल चाहिए था. कहा था मैं ने एक रोज तुम से कि कितना अच्छा होता अगर मेरा पति कमाता और मैं मजे करती. लेकिन इस का यह मतलब नहीं था कि मैं अपनी जौब छोड़ कर घर में बैठ जाऊंगी. नहीं कनक, मैं यों अपनी आजादी को घर की चारदीवारी में कैद नहीं कर सकती, समझ न तू,” अपनी दोस्त का हाथ पकड़ कर दीप्ति सिसक पड़ी कि उस की सोच कितनी गलत थी और आज उसे आयुषी का दर्द समझ में आ रहा है.
“मैं तो कहती हूं, तू दीपेश को समझा कि तू यह जौब पैसे के लिए नहीं कर रही है. जरूर समझेगा वह तुम्हारी बात,” कनक ने उसे समझाया.
लेकिन दीप्ति कहने लगी, “नहीं, तू नहीं समझ रही है, कनक. मेरा जौब करना उन्हें अपनी इज्जत और रुतबे पर गाली नजर आता है कि इतने बड़े घर की बहू एक छोटी सी कंपनी में नौकरी करेगी, क्या कहेंगे लोग. तो क्या लोगों के लिए मैं अपनी आजादी को कैद कर दूं, चूल्हे में झोंक दूं अपनी सारी डिग्रियां, बोल?”
दीप्ति की सास अब उस पर मां बनने का दबाव डालने लगी थी. लेकिन वह उसे कैसे समझाए कि जब पति पत्नी के बीच कोई रिश्ता ही नहीं बन रहा है, तो मां बनने का सवाल कहां पैदा होता है. हनीमून से लौटने के बाद शायद ही दोनों के बीच शारीरिक संबंध बना होगा. और अब तो वह भी नहीं.
एक रोज दीपेश के औफिस के बैग में उसे कुछ ऐसा मिला कि वह दंग रह गई. “बर्थ कंट्रोल पिल, दीपेश के बैग में? लेकिन यह दवाई तो मैं नहीं खाती, फिर किस के लिए है यह?’ दीप्ति का माथा घूम गया. तभी दीपेश का फोन घनघना उठा. वह बाथरूम में था, इसलिए दीप्ति ने उस का फोन उठा लिया और अभी वह हैलो, बोलती ही कि सामने से किसी महिला का स्वर सुन कर वह चौंक गई.
“हैलो, दिपु, मैं निलिशा. सुनो, लगता है बर्थ कंट्रोल पिल तुम्हारे ही बैग में रह गई, शायद. प्लीज लेते आना, वरना आज रात तुम्हें भूखे ही सोना पड़ेगा,” बोल कर वह महिला जिस तरह से हंसी, दीप्ति को सारा माजरा समझ में आ गया. अपना फोन दीप्ति के हाथ में देख कर दीपेश ने झट से उस के हाथ से फोन छीन लिया और झिड़क कर बोला कि उस की हिम्मत भी कैसे हुई उस का फोन उठाने की.
“मुझे कोई शौक नहीं है तुम्हारा फोन उठाने की. लेकिन एक बात सचसच बताओ, तुम्हारे बैग में यह बर्थ कंट्रोल पिल क्या कर रही है?” दीप्ति की बात पर दीपेश का चेहरा स्याह हो गया. “और यह निलिशा कौन है? क्या चल रहा है तुम दोनों के बीच, बताओगे मुझे?”
“क्यों बताऊं? होती कौन हो तुम मेरी पर्सनल लाइफ में दखल देने वाली? मैं ने कहा था न तुम से, मुझ से ज्यादा सवालजवाब मत किया करो, अपने काम से काम रखा करो. तो क्यों नहीं समझतीं तुम यह बात?”
“पर्सनल लाइफ! तो क्या मेरा तुम्हारी ज़िंदगी पर कोई अधिकार नहीं है?” दीप्ति ने तमतमाते हुए कहा.
“ज्यादा गरमाने की जरूरत नहीं, समझीं. और वैसे भी, तुम्हें ज़िंदगी में जो कुछ चाहिए था, मिल गया न? तो चुप रहो,” शर्ट का बटन लगाते हुए दीपेश बोला.
लेकिन आज दीप्ति को अपने सावल का जवाब चाहिए था और वह ले कर रहेगी, सोच लिया उस ने. क्योंकि, इस से पहले भी उसे कई ऐसे सुबूत मिले थे दीपेश के खिलाफ, पर उसे लगा था कि सब उस की खुशियों से जलते हैं, इसलिए उसे भड़काने की कोशिश कर रहे हैं. पर वे सब सही थे. उस के औफिस के ही एक दोस्त ने दीप्ति को बताया था कि दीपेश का अपने ही औफिस की एक महिला के साथ सालों से नाजायज संबंध हैं. उस महिला का अपने पति के स्थान पर जौब मिला है और इस के लिए दीपेश ने ही भागदौड़ की थी. यह बात उस की पहली पत्नी भी जानती थी, इसलिए दोनों के बीच झगड़े होते रहते थे. वह तो उसे पुलिस में ले जाने की भी धमकी देती थी. दीपेश के मांबाप को भी पता है दोनों के नाजायज संबंध के बारे में. इसलिए उन्होंने दीपेश को उस से शादी करने से रोक दिया ताकि राजनीति में उन की छवि न खराब न हो.
“ठीक है, तो सुनो, मैं निलिशा से प्यार करता हूं और उस से ही शादी करना चाहता था. लेकिन मेरे परिवार वाले ऐसा नहीं चाहते थे क्योंकि वह दूसरे धर्म से है. अगर मैं उस से शादी कर लेता तो मेरे पापा की रजीनीति में छवि खराब हो जाती. इस बार वे एमएलए के लिए खड़े हो रहे हैं. उन्हें जनता का पूरा सपोर्ट चाहिए. इसलिए तुम अपना मुंह बंद ही रखना, वरना मुझ से बुरा कोई न होगा,” दीप्ति को धमकाते हुए दीपेश बोला, “मेरी पहली पत्नी को भी मेरे बारे में सबकुछ पता चल गया था, इसलिए…”
“इसलिए तुम ने उस का ऐक्सिडैंट करवा दिया ताकि तुम्हारा राज राज रहे?” उस की बात को बीच में ही काटती हुई दीप्ति चिल्ला पड़ी.
“ज्यादा चिल्लाओ मत, समझीं,” दीपेश भी उसी रफ्तार से गरजा, “तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारी सुंदरता पर रीझ कर मैं ने तुम से शादी की. या तुम्हारी वह दो पैसे की नौकरी से मेरा पेट पलता, इसलिए मैं ने शादी के लिए हामी भरी? नहीं, बल्कि, समाज को दिखाने के लिए मुझे तुम से शादी करनी पड़ी.”
दीपेश की बात पर उसे भरोसा नहीं हुआ और जब वह यही बात अपनी सास को बताने गई तो उन के कमरे के बाहर ही दीप्ति के पांव ठिठक कर रुक गए. ससुर कह रहे थे कि कैसे भी कर के दीप्ति का नौकरी करना बंद करवाना पड़ेगा, क्योंकि इस से उन की राजनीति पर गलत प्रभाव पड़ सकता है. उस पर सास बोली कि बस, कैसे भी कर के दीप्ति मां बन जाए, फिर खुदबखुद उस के पांवों में बेड़ियां लग जाएंगी और उस के सिर से नौकरी का भूत उतर जाएगा. लेकिन यह बात दीपेश को कैसे समझाएं. वह उस निलिशा के फेर में ऐसा पड़ा है कि कुछ सुनता ही नहीं है. कहता है, बहू चाहिए थी न आप को? अब बच्चे की जिद मत करो मुझ से.
“ओहो, तो इन लोगों को भी पता है अपने बेटे के बारे में?” दीप्ति का तो माथा ही घूम गया कि की कहां फंस गई वह. ऐशोआराम की ज़िंदगी जीने के लालच में वह सोने के पिंजरे में बंद हो कर रह जाएगी, नहीं सोचा था उस ने. रिजाइन लैटर तो नहीं दिया दीप्ति ने लेकिन इन लोगों के दबाव में आ कर कह दिया कि उस ने जौब छोड़ दी. लेकिन अब उस का इस महल जैसे घर में दम घुटने सा लगा था. छटपटा रही थी वह इस सोने के पिंजरे से बाहर निकलने के लिए. लेकिन कैसे, यह समझ नहीं आ रहा था उसे. मां, भाई भी उस का साथ नहीं दे रहे थे कि क्यों अच्छीख़ासी चल रही अपनी ज़िंदगी को वह तबाह करना चाहती है? यह सब बात जब उस ने कनक को बताई तो वह सिर थाम कर बैठ गई कि इतनी पढ़ीलिखी, स्मार्ट दीप्ति कैसे इन धोखेबाजों के चंगुल में फंस गई!
“अब मैं क्या करूं, कनक, समझ में नहीं आ रहा है मुझे. दीपेश है कि उस का किसी और औरत से संबंध है. वह मेरी तरफ देखता भी नहीं है. और मेरी सास चाहती है कि मैं उसे रिझाऊं. दीपेश के कदमों में बिच्छ जाऊं ताकि उन्हें अपने घर के लिए एक वारिस मिल सके. क्या मेरी अपनी कोई इज्जत नहीं है? क्या इतनी गईगुजरी हूं मैं, बोल?” अपने सिर पर हाथ मारती हुई दीप्ति सिसक पड़ी, फिर बोली, “नहीं पता था मुझे कि मेरी अच्छीख़ासी ज़िंदगी ‘हेल’ हो जाएगी. मुझे तो लगा था दीपेश बहुत ही सुलझा हुआ इंसान है, वह मुझे बहुत प्यार देगा और उस के साथ मेरी ज़िंदगी आराम से गुजर जाएगी. लेकिन मैं गलत थी, कनक. मैं गलत थी. शादी से पहले उस ने मेरी हर बात पर हां कहा था. लेकिन सिर्फ अपने मतलब के लिए. राजनीति में अच्छी छवि बनाए रखने के लिए उन लोगों ने मुझे मोहरा बनाया. वे चाहते हैं शो पीस में रखी गुड़िया की तरह मैं, बस, मौन रहूं.”
“चाहते हैं जैसा वे लोग कहें, मैं वही करूं. लेकिन मैं मोम की गुड़िया नहीं हूं कि जैसे चाहे, मोड़ दें और मैं उफ़्फ़ भी न करूं. नहीं चाहिए मुझे पैसा, ऐशोआराम, नौकरचाकर और करोड़ों की गाडियां. मुझे मेरी पहली वाली ज़िंदगी वापस चाहिए, कनक. प्लीज, कुछ कर,” कनक के कंधे पर सिर रख दीप्ति फूटफूट कर रोने लगी.
“रोने से कुछ नहीं होगा, समझीं. अगर तुझे लगता है, तू दीपेश के साथ खुश नहीं है तो तलाक क्यों नहीं ले लेती उस से?” कनक बोली.
“वही तो, वह मुझे तलाक भी नहीं देना चाहता और अगर वह देना भी चाहे तो उस के परिवार वाले उसे ऐसा करने नहीं देंगे. जानती है क्यों, क्योंकि चुनाव जो सिर पर हैं.”
उस की इस बात पर कनक कुछ देर चुप रही, फिर बोली, “तो यही तो समय है. अभी वे लोग अपनी इज्जत बचाने के लिए कुछ भी करेंगे. नहीं समझीं? अरे, तेरे ससुर एमएलए के चुनाव के लिए खड़े हो रहे हैं न? तो तू कह कि अगर दीपेश ने तुम्हें तलाक नहीं दिया तो तुम उन की सारी काली करतूतें जनता के सामने खोल कर रख दोगी. उन के किसी भी झूठे आश्वासन में फिर मत आना. उन की धमकी से भी मत डरना. अपनी बात पर अडिग रहना. वैसे, तू कहे तो एक अच्छे वकील का नंबर दे सकती हूं तुम्हें. उन से बात कर ले.”
कनक की बातों से दीप्ति को बहुत बल मिला और हिम्मत भी कि वह उन से नहीं डरेगी, अब.
दीप्ति ने जब दीपेश और उस के परिवार के सामने अपनी बात रखी और कहा कि वे लोग अगर उसे एक खरोंच भी पहुंचाने की कोशिश करेंगे, तो उन के लिए अच्छा नहीं होगा. उन की भलाई इसी में हैं कि दीपेश उसे तलाक दे दे. वकील के सामने तय हुआ कि दीपेश दीप्ति को तलाक दे देगा, लेकिन चुनाव के बाद.
दीप्ति अब उस सोने के पिंजरे से आजाद हो चुकी थी. वह पहले की तरह अपनी ज़िंदगी में वापस आ चुकी थी. औफिस से निकलते हुए जब उस की नजर जिगर से टकराई तो उस ने अपनी नजर दूसरी तरह फेर ली. “जिगर, क्या मैं तुम्हारे बाइक के पीछे बैठ सकती हूं, घर छोड़ दोगे मुझे?” यह बोल कर दीप्ति मुसकराई.
जिगर ने आशाभरी नजरों से उसे देखा और फिर बाइक स्टार्ट कर मुसकरा पड़ा.