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Holi Special:क्या यही प्यार है-भाग 1

जिया जगाधरी शहर की शाह यूटैंसिल्स फैक्ट्री के मालिक अजीत सिंह पांढनु की लाड़ली व बिगड़ैल इकलौती बेटी थी.

इस फैक्ट्री में स्टील की बालटियां बनाई जाती हैं. पूरे उत्तर प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा ही नहीं, देश के दूसरे हिस्सों में भी में शाह फैक्ट्री से ही बालटियां सप्लाई होती थीं. क्यों न हों, लाइफटाइम की गारंटी जो देते हैं स्टील खराब न होने की.

एक दिन में 100 टन रौ मैटीरियल स्टील शीट को बालटियों में प्रेस मशीनों से बालटियों की शेप में बनाया जाता, लगभग 300 वर्कर काम करते थे.

जिया अपने हर जन्मदिन पर फैक्ट्री जाती और सभी वर्कर्स को कभी कंबल, कभी कपड़े, कभी अन्य वस्तु, यानी जिस को भी जिस चीज़ की ज़रूरत होती वह उसे देती, सब को अपने हाथों से खाना परोसती और सब का आशीर्वाद लेती. उस के पास हर वर्कर की जानकारी रहती थी. उसे मालूम रहता कि कोई किस मुसीबत में है या किस का कुछ अच्छा हुआ है.

इतने अच्छे और शालीन स्वभाव के बावजूद एक कमी थी जिया में. वह यह कि ज़िद्दी बहुत थी, ज़िद्द तो मानो खून में शामिल था. जो कह दिया तो कह दिया. उस की हर ज़िद्द पूरी की जाती. 12वीं क्लास पास करते ही मम्मा ने कहा कि चंडीगढ़ के कालेज में एडमिशन दिलवा देते हैं, नज़दीक भी रहेगा, कभी जिया घर पे आ जाया करेगी और कभी हम जिया से मिलने जाया करेंगे.

 

लेकिन नहीं, जिया मैडम को तो मुंबई जाने का शौक चर्राया. वह बोली, “मुंबई के कालेज में एडमिशन लेना है.” साथ में ऐक्टिंग का शौक भी वह वहां पूरा कर लेगी.

मम्मापापा ने मना किया कि ऐक्टिंग की लाइन में नहीं जाना क्योंकि वह लाइन अच्छी नहीं. उन्हें वह लाइन पसंद नहीं थी.

लेकिन जिया कहां सुनने वाली किसी की.

मुंबई जाना है, तो बस जाना है. आखिर पापा ने मुंबई के कालेज में एडमिशन दिलवाया और होस्टल में रहने का इंतजाम कर के घर आ गए. मगर आतेआते जिया को हिदायत दी, “देखो बेटा, मुंबई दिखावे का शहर है, यहां के दिखावे पर मत जाना, संभल कर रहना. ज़माना बहुत ख़राब है. हर कोई अपना ही मतलब निकालना जानता है. और यह फिल्मी दुनिया, एक भ्रमित दुनिया है. इस की चकाचौंध से दूर ही रहना.”

लेकिन जिया के सिर पर तो ऐक्टिंग का भूत सवार था. उसे कहां किसी की बात समझ में आती.

गर्ल्स होस्टल में पहला दिन और रूमपार्टनर, जो 10 दिनों पहले ही आई हुई थी, यहां के बारे में सब जान चुकी है. शाम होते ही वह तैयार होने लगी, तो जिया ने पूछा कि वह कहां जा रही है. तो राशि, रूमपार्टनर, ने बताया, “हर संडे को सब लड़केलड़कियां मिल कर मस्ती करते हैं. हम सब लड़कियां अब बौयज़ होस्टल जाएंगे और वहां सब मस्ती करेंगे.”

जिया ने बड़ी हैरानी से कहा, “लेकिन गर्ल्स बौयज़ होस्टल कैसे जा सकती हैं? वार्डन मैम तो गुस्सा करेंगी?”

“अरे नहीं यार, वह खुद ले कर जाती है सब को. यह मुंबई है मेरी जान. यहां आने वाला हर कोई अपने प्रिज्यूडिस बक्से में बंद कर के मैरीन ड्राइव के समुद्र में फेंक देता है या मुंबई उसे बाहर फेंक देती है. हा, हा, हा.”

लेखक- प्रेम बजाज

Valentine’s Special – कल हमेशा रहेगा : भाग 3

‘‘ऐसी बात नहीं, मैं तुम्हें अपने इतने नजदीक पा कर बेहद खुश हूं…खैर, मेरी बात जाने दो, मुझे यह बताओ, अब मानव कैसा है?’’

‘‘वह ठीक है. उसे एक नेक डोनेटर मिल गया, जिस की बदौलत वह अपनी नन्हीनन्ही आंखों से अब सबकुछ देख सकता है. आज मुझे लगता है जैसे उसे नहीं, मुझे आंखों की रोशनी वापस मिली हो. सच, उस की तकलीफ से परे, मैं कुछ भी साफसाफ नहीं देख पा रही थी. हर पल यही डर लगा रहता था कि यदि उस की आंखों की रोशनी वापस नहीं मिली तो उस के गम में कहीं मम्मी या पापा को कुछ न हो जाए. उस दाता का और डा. साकेत का एहसान हम उम्र भर नहीं भुला सकेंगे.’’

‘‘अच्छा, तुम बताओ, तुम्हारा भांजा प्रदीप किस तरह दुर्घटना का शिकार हुआ? मैं ने सुना था तो बेहद दुख हुआ. कितना हंसमुख और जिंदादिल था वह. उस की गहरी भूरी आंखों में हर पल जिंदगी के प्रति कितना उत्साह छलकता रहता…’’

अभि अपलक उसे देखता रहा. क्या वह कभी उसे बता भी सकेगा कि प्रदीप की ही आंख से उस का भाई इस दुनिया को देख रहा है? वह मरा नहीं, मानव की एक आंख के रूप में उस की जिंदगी के रहने तक जिंदा रहेगा.

वह बोझिल स्वर में वेदश्री को बताने लगा.

‘‘प्रदीप अपने दोस्त के साथ ‘कल हो न हो’ फिल्म देखने जा रहा था. हाई वे पर उन की मोटरसाइकिल फिसल कर बस से टकरा गई. उस का मित्र जो मोटरसाइकिल चला रहा था, वह हेलमेट की वजह से बच गया और प्रदीप ने सिर के पिछले हिस्से में आई चोट की वजह से गिरते ही वहीं उसी पल दम तोड़ दिया.

‘‘कहना अच्छा नहीं लगता, आखिर वह मेरी बहन का बेटा था, फिर भी मैं यही कहूंगा कि जो कुछ भी हुआ ठीक ही हुआ…पोस्टमार्टम के बाद डाक्टर ने रिपोर्ट में दर्शाया था कि अगर वह जिंदा रहता भी तो शायद आजीवन अपाहिज बन कर रह जाता…’’

‘‘इतना सबकुछ हो गया और तुम ने मुझे कुछ भी बताने योग्य नहीं समझा?’’ अभिजीत की बात बीच में काट कर श्री बोली.

‘‘श्री, तुम वैसे भी मानव को ले कर इतनी परेशान रहती थीं, तुम्हें यह सब बता कर मैं तुम्हारा दुख और बढ़ाना नहीं चाहता था.’’

कुछ पलों के लिए दोनों के बीच मौन का साम्राज्य छाया रहा. दिल ही दिल में एकदूसरे के लिए दुआएं लिए दोनों जुदा हुए. अभि से मिल कर वेदश्री घर लौटी तो डा. साकेत को एक अजनबी युगल के साथ पा कर वह आश्चर्य में पड़ गई.

‘‘नमस्ते, डाक्टर साहब,’’ श्री ने साकेत का अभिवादन किया.

प्रत्युत्तर में अभिवादन कर डा. साकेत ने अपने साथ आए युगल का परिचय करवाया.

‘‘श्रीजी, यह मेरे बडे़ भैया आकाश एवं भाभी विश्वा हैं और आप सब से मिलने आए हैं. भाभी, ये श्रीजी हैं.’’

विश्वा भाभी उठ खड़ी हुईं और बोलीं, ‘‘आओ श्री, हमारे पास बैठो,’’ उन्हें भी श्री पहली ही नजर में पसंद आ गई.

‘‘अंकलजी, हम अपने देवर डा. साकेत की ओर से आप की बेटी वेदश्री का हाथ मांगने आए हैं,’’ भाभी ने आने का मकसद स्पष्ट किया.

यह सुन कर श्री को लगा जैसे किसी ने उसे ऊंचे पहाड़ की चोटी से नीचे खाई में धकेल दिया हो. उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ कि जो वह सुन रही है वह सच है या फिर एक अवांछनीय सपना?

भाभी का प्रस्ताव सुनते ही श्री के मातापिता की आंखोंमें एक चमक आ गई. उन्होंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उन की बेटी के लिए इतने बड़े घराने से रिश्ता आएगा.

‘‘क्या हुआ श्री, तुम हमारे प्रस्ताव से खुश नहीं?’’ श्री के चेहरे का उड़ा हुआ रंग देख कर भाभी ने पूछ लिया.

साकेत और आकाश दोनों ही उसे देखने लगे. साकेत का दिल यह सोच कर तेजी से धड़कने लगा कि कहीं श्री ने इस रिश्ते से मना कर दिया तो?

‘‘नहीं, भाभीजी, ऐसी कोई बात नहीं. दरअसल, आप का प्रस्ताव मेरे लिए अप्रत्याशित है. इसीलिए कुछ पलों के लिए मैं उलझन में पड़ गई थी पर अब मैं ठीक हूं,’’ जबरन मुसकराते हुए वेदश्री ने कहा, ‘‘मैं ने तो साकेत को सिर्फ एक डाक्टर के नजरिए से देखा था.’’

‘‘सच तो यह है श्री कि जिस दिन तुम पहली बार मेरे अस्पताल में अपने भाई को ले कर आई थीं उसी दिन तुम्हें देख कर मेरे मन ने मुझ से कहा था कि तुम्हारे योग्य जीवनसाथी की तलाश आज खत्म हो गई. और आज मैं परिवार के सामने अपने मन की बात रख कर तुम्हें अपना जीवनसाथी बनाना चाहता हूं. अब फैसला तुम्हारे ऊपर है.’’

‘‘साकेत, मुझे सोचने के लिए कुछ वक्त दीजिए, प्लीज. मैं ने आप को आज तक उस नजरिए से कभी देखा नहीं न, इसलिए उलझन में हूं कि मुझे क्या फैसला लेना चाहिए…क्या आप मुझे कुछ दिन का वक्त दे सकते हैं?’’ वेदश्री ने उन की ओर देखते हुए दोनों हाथ जोड़ दिए.

‘‘जरूर,’’ आकाश जो अब तक चुप बैठा था, बोल उठा, ‘‘शादी जैसे अहम मुद्दे पर जल्दबाजी में कोई भी फैसला लेना उचित नहीं होगा. तुम इत्मीनान से सोच कर जवाब देना. हम साकेत को भलीभांति जानते हैं. वह तुम पर अपनी मर्जी थोपना कभी भी पसंद नहीं करेगा.’’

‘‘हम भी उम्मीद का दामन कभी नहीं छोडें़गे, क्यों साकेत?’’ भाभी ने साकेत की ओर देखा.

‘‘जी, भाभी,’’ साकेत ने हंसते हुए कहा, ‘‘शतप्रतिशत, आप ने बड़े पते की बात कही है.’’

जलपान के बाद सब ने फिर एकदूसरे का अभिवादन किया और अलग हो गए.

आज की रात वेदश्री के लिए कयामत की रात बन गई थी. साकेत के प्रस्ताव को सुन वह बौखला सी गई थी. ये प्रश्न बारबार उस के मन में कौंधते रहे:

‘क्या मुझे साकेत का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए? यदि मैं ने ऐसा किया तो अभि का क्या होगा? हमारे उन सपनों का क्या होगा जो हम दोनों ने मिल कर संजोए थे? क्या अभि मेरे बिना जी पाएगा और उस से वादाखिलाफी कर क्या मैं जी पाऊंगी? नहीं…नहीं…मैं अपने प्यार का दामन नहीं छोड़ सकती. मैं साकेत से साफ शब्दों में मना कर दूंगी. नए रिश्तों को बनाने के लिए पुराने रिश्तों से मुंह मोड़ लेना कहां की रीति है?’

सोचतेसोचते वेदश्री को साकेत याद आ गया. उस ने खुद को टोका कि श्री तुम

डा. साकेत के बारे में क्यों नहीं सोच रहीं? तुम से प्यार कर के उन्होंने भी तो कोेई गलती नहीं की. कितना चाहते हैं वह तुम्हें? तभी तो एक इतना बड़ा डाक्टर दिल के हाथों मजबूर हो कर तुम्हारे पास चला आया. कितने नेकदिल इनसान हैं. भूल गईं क्या, जो उन्होंने मानव के लिए किया? यदि उन का सहारा न होता तो क्या तुम्हारा मानव दुनिया को दोनों आंखों से फिर से देख पाता? खबरदार श्री, तुम गलती से भी अपने दिमाग में इस गलतफहमी को न पाल बैठना कि साकेत ने तुम्हें पाने के इरादे से मानव के लिए इतना सबकुछ किया. आखिर तुम दुनिया की अंतिम खूबसूरत लड़की तो हो ही नहीं सकतीं न…दिल ने उसे उलाहना दिया.

साकेत के जाने के बाद पापामम्मी से हुई बातचीत का एकएक शब्द उसे याद आने लगा.

मां ने उसे समझाते हुए कहा था, ‘बेटी, ऐसे मौके जीवन में बारबार नहीं आते. समझदार इनसान वही है जो हाथ आए मौके को हाथ से न जाने दे, उस का सही इस्तेमाल करे. बेटी, हो सकता है ऐसा मौका तुम्हारी जिंदगी के दरवाजे पर दोबारा दस्तक न दे…साकेत बहुत ही नेक लड़का है, लाखों में एक है. सुंदर है, नम्र है, सुशील है और सब से अहम बात कि वह तुम्हें दिल से चाहता है.’

पापा ने भी मम्मी के साथ सहमत होते हुए कहा था, ‘बेटी, डा. साकेत ने हमारे बच्चे के लिए जो कुछ भी किया, वह आज के जमाने में शायद ही किसी के लिए कोई करे. यदि उन्होंने हमारी मदद न की होती तो क्या हम मानव का इलाज बिना पैसे के करवा सकते थे?

‘यह बात कभी न भूलना बेटी कि हम ने मानव के इलाज के बारे में मदद के लिए कितने लोगों के सामने अपने स्वाभिमान का गला घोंट कर हाथ फैलाए थे, और हर जगह से हमें सिर्फ निराशा ही हाथ लगी थी. जब अपनों ने हमारा साथ छोड़ दिया तब साकेत ने गैर होते हुए भी हमारा दामन थामा था.’

‘अभिजीत अगर तुम्हारा प्यार है तो मानव तुम्हारा फर्ज है. फर्ज निभाने में जिस ने तुम्हारा साथ दिया वही तुम्हारा जीवनसाथी बनने योग्य है, क्योंकि सदियों से चली आ रही प्यार और फर्ज की जंग में जीत हमेशा फर्ज की ही हुई है,’ दिमाग के किसी कोने से वेदश्री को सुनाई पड़ा.

बदलाव : उर्मिला ने चलाया अपने हुस्न का जादू

गांव से चलते समय उर्मिला को पूरा यकीन था कि कोलकाता जा कर वह अपने पति को ढूंढ़ लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कोलकाता में 3 दिन तक भटकने के बाद भी पति राधेश्याम का पता नहीं चला, तो उर्मिला परेशान हो गई.

हावड़ा रेलवे स्टेशन के नजदीक गंगा के किनारे बैठ कर उर्मिला यह सोच रही थी कि अब उसे क्या करना चाहिए. पास ही उस का 10 साला भाई रतन बैठा हुआ था.

राधेश्याम का पता लगाए बिना उर्मिला किसी भी हाल में गांव नहीं लौटना चाहती थी. उसे वह अपने साथ गांव ले जाना चाहती थी. उर्मिला सहमीसहमी सी इधरउधर देख रही थी. वहां सैकड़ों की तादाद में लोग गंगा में स्नान कर रहे थे. उर्मिला चमचमाती साड़ी पहने हुई थी. पैरों में प्लास्टिक की चप्पलें थीं.

उर्मिला का पहनावा गंवारों जैसा जरूर था, लेकिन उस का तनमन और रूप सुंदर था. उस के गोरे तन पर जवानी की सुर्खी और आंखों में लाज की लाली थी.

हां, उर्मिला की सखीसहेलियों ने उसे यह जरूर बताया था कि वह निहायत खूबसूरत है. उस के अलावा गांव के हमउम्र लड़कों की प्यासी नजरों ने भी उसे एहसास कराया था कि उस की जवानी में बहुत खिंचाव है. सब से भरोसमंद पुष्टि तो सुहागसेज पर हुई थी, जब उस के पति राधेश्याम ने घूंघट उठाते ही कहा था, ‘तुम इतनी सुंदर हो, जैसे मेरी हथेलियों में चौदहवीं का चांद आ गया हो.’

उर्मिला बोली कुछ नहीं थी, सिर्फ शरमा कर रह गई थी. उर्मिला बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के एक गांव की रहने वाली थी. उस ने 19वां साल पार किया ही था कि उस की शादी राधेश्याम से हो गई.

राधेश्याम भी गांव का रहने वाला था. उर्मिला के गांव से 10 किलोमीटर दूर उस का गांव था. उस के पिता गांव में मेहनतमजदूरी कर के परिवार का पालनपोषण करते थे. उर्मिला 7वीं जमात तक पढ़ी थी, जबकि राधेश्याम मैट्रिक फेल था. वह शादी के 2 साल पहले से कोलकाता में एक प्राइवेट कंपनी में चपरासी था.

शादी के लिए राधेश्याम ने 10 दिनों की छुट्टी ली थी, लेकिन उर्मिला के हुस्नोशबाब के मोहपाश में ऐसा बंधा कि 30 दिन तक कोलकाता नहीं गया.

जब घर से राधेश्याम विदा हुआ, तो उर्मिला को भरोसा दिलाया था, ‘जल्दी आऊंगा. अब तुम्हारे बिना काम में मेरा मन नहीं लगेगा.’

उर्मिला झट से बोली थी, ‘ऐसी बात है, तो मुझे भी अपने साथ ले चलिए. आप का दिल बहला दिया करूंगी. नहीं तो वहां आप तड़पेंगे, यहां मैं बेचैन रहूंगी.’

उर्मिला ने राधेश्याम के मन की बात कही थी. लेकिन उस की मजबूरी यह थी कि 4 दोस्तों के साथ वह उर्मिला को रख नहीं सकता था.

सच से सामना कराने के लिए राधेश्याम ने उर्मिला से कहा, ‘तुम 5-6 महीने रुक जाओ. कोई अच्छा सा कमरा ले लूंगा, तो आ कर तुम्हें ले चलूंगा.’

राधेश्याम अंगड़ाइयां लेती उर्मिला की जवानी को सिसकने के लिए छोड़ कर कोलकाता चला गया.

फिर शुरू हो गई उर्मिला की परेशानियां. पति का बिछोह उस के लिए बड़ा दुखदाई था. दिन काटे नहीं कटता था, रात बिताए नहीं बीतती थी.

तिलतिल कर सुलगती जवानी से उर्मिला पर उदासीनता छा गई थी. वह चंद दिन ससुराल में, तो चंद दिन मायके में गुजारती.

साजन बिन सुहागन उर्मिला का मन न ससुराल में लगता, न मायके में. मगर ऐसी हालत में भी उस ने अपने कदमों को कभी बहकने नहीं दिया था.

पति की अमानत को हर हालत में संभालना उर्मिला बखूबी जानती थी, इसलिए ससुराल और मायके के मनचलों की बुरी कोशिशों को वह कभी कामयाब नहीं होने देती थी.

ससुराल में सासससुर के अलावा 2 छोटी ननदें थीं. मायके में मातापिता के अलावा छोटा भाई रतन था. उर्मिला ने जैसेतैसे बिछोह में एक साल काट दिया. मगर उस के बाद वह पति से मिलने के लिए उतावली हो गई.

हुआ यह कि कोलकाता जाने के 6 महीने तक राधेश्याम ने उसे बराबर फोन किया. मगर उस के बाद उस ने फोन करना बंद कर दिया. उस ने रुपए भेजना भी बंद कर दिया.

राधेश्याम को फोन करने पर उस का फोन स्वीच औफ आता था. शायद उस ने फोन नंबर बदल दिया था.

किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर राधेश्याम ने एकदम से परिवार से संबंध क्यों तोड़ दिया?

गांव के लोगों को यह शक था कि राधेश्याम को शायद मनपसंद बीवी नहीं मिली, इसलिए उस ने घर वालों व बीवी से संबंध तोड़ लिया है.

लेकिन उर्मिला यह बात मानने के लिए तैयार नहीं थी. वह तो अपने साजन की नजरों में चौदहवीं का चांद थी. राधेश्याम जिस कंपनी में नौकरी करता था, उस का पता उर्मिला के पास था. राधेश्याम के बाबत कंपनी वालों को रजिस्टर्ड चिट्ठी भेजी गई.

15 दिन बाद कंपनी का जवाब आ गया. चिट्ठी में लिखा था कि राधेश्याम 6 महीने पहले नौकरी छोड़ चुका था.

सभी परेशान हो गए. कोलकाता जा कर राधेश्याम का पता लगाने के सिवा अब और कोई रास्ता नहीं था.

उर्मिला का पिता अपंग था. कहीं आनेजाने में उसे काफी परेशानी होती थी. वह कोलकाता नहीं जा सकता था.

उर्मिला का ससुर हमेशा बीमार रहता था. जबतब खांसी का दौरा आ जाता था, इसलिए वह भी कोलकाता नहीं जा सकता था.

हिम्मत कर के एक दिन उर्मिला ने सास के सामने प्रस्ताव रखा, ‘अगर आप कहें, तो मैं अपने भाई रतन के साथ कोलकाता जा कर उन का पता लगाऊं?’

परिवार के लोगों ने टिकट खरीद कर रतन के साथ उर्मिला को हावड़ा जाने वाली ट्रेन में बिठा दिया.

राधेश्याम जिस कंपनी में काम करता था, सब से पहले उर्मिला वहां गई. वहां के स्टाफ व कंपनी के मैनेजर ने उसे साफ कह दिया कि 6 महीने से राधेश्याम का कोई अतापता नहीं है.

उस के बाद उर्मिला वहां गई, जहां राधेश्याम अपने 4 दोस्तों के साथ एक ही कमरे में रहता था. उस समय 3 ही दोस्त थे. एक गांव गया हुआ था.

तीनों दोस्तों ने उर्मिला का भरपूर स्वागत किया. उन्होंने उसे बताया कि 6 महीने पहले राधेश्याम यह कह कर चला गया था कि उसे एक अच्छी नौकरी और रहने की जगह मिल गई है. मगर सचाई कुछ और थी.

‘कैसी सचाई?’ पूछते हुए उर्मिला का दिल धड़कने लगा.

‘दरअसल, उसे किसी अमीर औरत से प्यार हो गया था. वह उसी के साथ रहने चला गया था,’ 3 दोस्तों में से एक दोस्त ने बताया.

उर्मिला को लगा, जैसे उस के दिल की धड़कन बंद हो जाएगी और वह मर जाएगी. उस के हाथपैर सुन्न हो गए थे, मगर जल्दी ही उस ने अपनेआप को काबू में कर लिया.

उर्मिला ने पूछा, ‘वह औरत कहां रहती है?’

तीनों में से एक ने कहा, ‘यह हम तीनों में से किसी को पता नहीं है. सिर्फ गणपत को पता है. उस औरत के बारे में हम लोगों ने उस से बहुत पूछा था, मगर उस ने बताया नहीं था.

‘उस का कहना था कि उस ने राधेश्याम से वादा किया है कि उस की प्रेमिका के बारे में वह किसी को कुछ नहीं बताएगा.’

‘गणपत कौन…’ उर्मिला ने पूछा.

‘वह हम लोगों के साथ ही रहता है. अभी वह गांव गया हुआ है. वह एक महीने बाद आएगा. आप पूछ कर देखिएगा. शायद, वह आप को बता दे.’

‘मगर, तब तक मैं रहूंगी कहां?’

‘चाहें तो आप इसी कमरे में रह सकती हैं. रात में हम लोग इधरउधर सो लेंगे.’

मगर उर्मिला उन लोगों के साथ रहने को तैयार नहीं हुई. उसे पति की बात याद आ गई थी.गांव से विदा लेते समय राधेश्याम ने उस से कहा था, ‘मैं तुम्हें ले जा कर अपने साथ रख सकता था, मगर दोस्तों पर भरोसा करना ठीक नहीं है.

‘वैसे तो वे बहुत अच्छे हैं. मगर कब उन की नीयत बदल जाए और तुम्हारी इज्जत पर दाग लगा दें, इस की कोई गारंटी नहीं है.’

उर्मिला अपने भाई रतन के साथ बड़ा बाजार की एक धर्मशाला में चली गई.

धर्मशाला में उसे सिर्फ 3 दिन रहने दिया गया. चौथे दिन वहां से उसे जाने के लिए कह दिया गया, तो मजबूर हो कर उसे धर्मशाला छोड़नी पड़ी.

अब उर्मिला अपने भाई रतन के साथ गंगा किनारे बैठी थी कि अचानक उस के पास एक 40 साला शख्स आया.

पहले उस ने उर्मिला को ध्यान से देखा, उस के बाद कहा, ‘‘लगता है कि तुम यहां पर नई हो. कहीं और से आई हो. काफी चिंता में भी हो. कोई परेशानी हो, तो बताओ. मैं मदद करूंगा…’’

दिशाएं और भी हैं : नमिता को कमरे में किसकी आहट आ रही थी

सहारा : क्या मोहित अपने माता-पिता का सहारा बना?

अपने बेटेबहू के घर छोड़ कर अलग हो जाने के बाद मुझे यह एहसास बहुत सता रहा है कि मैं ने आप दोनों के साथ बहुत गलत व्यवहार किया है. अपनी बेटी को समझाने के बजाय मैं उसे भड़का कर हमेशा ससुराल से अलग होने की राय देती रही. अब मुझे अपने किए की सजा मिल गई है, बहनजी…आप मुझे आज माफ कर दोगी तो मेरे मन को कुछ शांति मिलेगी.’ पश्चात्ताप की आग में जल रही मीना ने जिस वक्त आरती से आंसू बहाते हुए क्षमा मांगी थी उस वक्त उमाकांत और महेश भी उस कमरे में ही उपस्थित थे.

जब आरती ने मीना को गले से लगा कर अतीत की सारी शिकायतों व गलतफहमियों को भुलाने की इच्छा जाहिर की तो भावविभोर हो उमाकांत और महेश भी एकदूसरे के गले लग गए थे.

आरती और महेश ने मीना और उमाकांत को अपने घर से 3 दिन बाद ही विदा किया था.

‘तुम ऐसा समझो कि अपनी बेटी की ससुराल में नहीं, बल्कि अपनी सहेली के घर में रह रही हो. तुम से बातें कर के मेरा मन बहुत हलका हुआ है. मुझे न कमर का दर्द सता रहा है न बहूबेटे के गलत व्यवहार से मिले जख्म पीड़ा दे रहे हैं. तुम कुछ ठीक होने के बाद ही अपने घर जाना,’ आरती की अपनेपन से भरी ऐसी इच्छा ने मीना को बेटी की ससुराल में रुकने के लिए मजबूर कर दिया था.

आने वाले दिनों में दोनों दंपतियों के बीच दोस्ती की जड़ें और ज्यादा मजबूत होती गई थीं. पहले एकदूसरे के प्रति नाराजगी, नफरत और शिकायतों में खर्च होने वाली ऊर्जा फिर आपसी प्रेम को बढ़ाती चली गई थी.

‘‘मां, आप के साथ क्यों नहीं आई हैं?’’ अलका के इस सवाल को सुन उमाकांत अतीत की यादों से झटके के साथ उबर आए थे.

‘‘कुछ देर में वे आती ही होंगीं. इसे फ्रिज में रख आ,’’ उमाकांत ने रसमलाई का डिब्बा अलका को पकड़ा दिया.

वे सब लोग जब कुछ देर बाद गरमागरम चाय का लुत्फ उठा रहे थे तब एक बार फिर घंटी की आवाज घर में गूंज गई.

दरवाजा खुलने के बाद अलका और मोहित ने जो दृश्य देखा वह उन के लिए अकल्पनीय था.

मोहित की मां आरती ने अलका की मां मीना का सहारा ले कर ड्राइंगरूम में प्रवेश किया. बहुत ज्यादा थकी सी नजर आने के बावजूद वे दोनों घर आए मेहमानों को देख कर खिल उठी थीं.

मोहित ने तेजी से उठ कर पहले दोनों के पैर छुए और फिर मां की बांह थाम ली. मीना के हाथ खाली हुए तो उन्होंने अपनी बेटी को गले लगा लिया.

अलका उन से अलग हुई तो राहुल अपनी दादी की गोद से उतर कर भागता हुआ नानी की गोद में चढ़ गया. सब के लाड़प्यार का केंद्र बन वह बेहद प्रसन्न और बहुत ज्यादा उत्साह से भरा हुआ नजर आ रहा था.

‘‘इस बार 2 कप चाय मैं बना कर लाता हूं,’’ उमाकांत ने अपना कप उठाया और चाय का घूंट भरने के बाद रसोई की तरफ चल पड़े.

उन की जगह चाय बनाने के लिए अलका रसोई में जाना चाहती थी पर आरती ने उस का हाथ पकड़ कर रोक लिया.

सुहागरात को जब मैं ने पति के साथ सहवास किया तो रक्तस्राव नहीं हुआ, कृपया बताएं ऐसा क्यों हुआ?

सवाल

मैं 22 वर्षीय युवती हूं. 6 महीने पहले ही मेरा विवाह हुआ है. मैं एक बात को ले कर बहुत परेशान हूं. सुहागरात को जब मैं ने पति के साथ सहवास किया तो रक्तस्राव नहीं हुआ. मैं ने आज तक किसी से संबंध बनाना तो दूर दोस्ती तक नहीं की. फिर प्रथम समागम के दौरान रक्तस्राव क्यों नहीं हुआ. भले ही मेरे पति ने इस बात पर गौर नहीं किया पर यह बात मुझे अंदर ही अंदर खाए जा रही है. कृपया बताएं ऐसा क्यों हुआ?

जवाब

सुहागरात को संबंध बनाने के दौरान आप को रक्तस्राव नहीं हुआ इस बात को ले कर आप को परेशान नहीं होना चाहिए. बहुत बार दौड़तेभागते या गिरने आदि से कौमार्य झिल्ली फट जाती है. आप के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ होगा, इसलिए आप बेवजह परेशान न हों और वैवाहिक जीवन का आनंद उठाएं. अभी आप की नईनई शादी हुई है. रोमांस करने के समय में बेकार की बातों को ले कर परेशान न होएं.

Valentine’s Special – कल हमेशा रहेगा : भाग 4

मम्मीपापा के दबाव में आ कर वेदश्री ने डा. साकेत से शादी करने का फैसला ले लिया. वह इस बात से दुखी थी कि अभि को यह बात कैसे समझाएगी. लेकिन बहते हुए आंसुओं को रोक कर उस ने एक निर्णय ले ही लिया कि वह अभि से मिलने आखिरी बार जरूर जाएगी.

वेदश्री की बातें सुनने के बाद अभि तय नहीं कर पा रहा था कि वह किस तरह अपनी प्रतिक्रिया दर्शाए. वह श्री को दिल से चाहता था और अपनी जिंदगी उस के साथ हंसीखुशी बिताने का मनसूबा बना रहा था. उस का सपना आज हकीकत के कठोर धरातल से टकरा कर चकनाचूर हो गया था और वह कुछ भी करने में असमर्थ था.

उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उस की अपनी गरीबी और लाचारी उस की जिंदगी से इस कदर खिलवाड़ करेगी. यदि वह अमीर होता तो क्या मानव के इलाज के लिए अपनी तरफ से योगदान नहीं देता? श्री उस के लिए सबकुछ थी तो उस के परिवार का हर सदस्य भी तो उस का सबकुछ था.

अब समय मुट्ठी से रेत की तरह सरक गया था. समय पर अब उस का कोई नियंत्रण नहीं रहा था. अब तो वह सिर्फ श्री और साकेत के सफल सहजीवन के लिए दुआ ही कर सकता था.

अपना हृदय कड़ा कर और आवाज में संतुलन बना कर अभिजीत बोला, ‘‘श्री, मैं तुम्हारी मजबूरी समझ सकता हूं पर तुम से तो मैं यही कहूंगा कि हमें समझदार प्रेमियों की तरह हंसीखुशी एकदूसरे से अलग होना चाहिए. प्यार कोई ऐसी शै तो है नहीं कि दूरियां पैदा होने पर दम तोड़ दे. प्यार किया है तो उसे निभाने के लिए शादी करना कतई जरूरी नहीं. प्लीज, तुम मेरी चिंता न करना. मैं अपनेआप को संभाल लूंगा पर तुम वचन दो कि आज के बाद मुझे भुला कर सिर्फ साकेत के लिए ही जिओगी.’’

आंखों में आंसू लिए भारी मन से दोनों ने एकदूसरे से विदा ली.

‘‘श्री, आज का दिन यहां खत्म हुआ तो क्या हुआ? याद रखना, कल फिर आएगा और हमेशा आता रहेगा… और हर आने वाला कल तुम्हारी जिंदगी को और कामयाब बनाए, यही मेरी दुआ है.’’

मंगलसूत्र पहनाते समय साकेत की उंगलियों ने ज्यों ही वेदश्री की गरदन को छुआ, उस के सारे शरीर में सिहरन सी भर गई. सप्तपदी की घोषणा के साथसाथ शहनाई का उभरता संगीत हवा में घुल कर वातावरण को और भी मंगलमय बनाता गया. एकएक फेरे की समाप्ति के साथ उसे लगता गया कि वह अपने अभिजीत से एकएक कदम दूर होती जा रही है. आज से अभि उस से इस एक जन्म के लिए ही नहीं, बल्कि आने वाले सात जन्मों के लिए दूर हो गया है. अब उस का आज और कल साकेत के साथ हमेशा के लिए जुड़ गया है.

फेरों के खत्म होते ही मंडप में मौजूद लोगों ने अपनेअपने हाथों के सारे फूल एक ही साथ नवदंपती पर निछावर कर दिए. तब वेदश्री ने अपने दिल में उमड़ते हुए भावनाओं के तूफान को एक दृढ़ निश्चय से दबा दिया और सप्तपदी के एकएक शब्द को, उस से गर्भित हर अर्थ हर सीख को अपने पल्लू में बांध लिया. उस ने मन ही मन संकल्प किया कि वह अपने विवाहित जीवन को आदर्श बनाने का हरसंभव प्रयास करेगी क्योंकि वह इस सच को जानती थी कि औरत की सार्थकता कार्येषु दासी, कर्मेषु मंत्री, भोज्येशु माता और शयनेशु रंभा के 4 सूत्रों के साथ जुड़े हर कर्तव्यबोध में समाई हुई है.

सुहाग सेज पर सिकुड़ी बैठी वेदश्री के पास बैठ कर साकेत ने कोमलता से उस का चेहरा ऊपर की ओर इस तरह उठाया कि साकेत का चेहरा उस की आंखों के बिलकुल सामने था. वह धड़कते हृदय से अपने पति को देखती रही, लेकिन उसे साकेत के चेहरे पर अभि का चेहरा क्यों नजर आ रहा है? उसे लगा जैसे अभि कह रहा हो, ‘श्री, आखिर दिखा दिया न अपना स्त्रीचरित्र. धोखेबाज, मैं तुम्हें कभी क्षमा नहीं करूंगा.’ और घबराहट के मारे वेदश्री ने अपनी पलकें भींच कर बंद कर लीं.

‘‘क्या हुआ, श्री. तुम्हारी तबीयत तो ठीक है न?’’ साकेत उस की हालत देख कर घबरा गया.

‘‘नहींनहीं…बिलकुल ठीक हूं…आप चिंता न करें…पहली बार आज आप ने मुझे इस तरह छुआ न इसलिए पलकें स्वत: शरमा कर झुक गईं,’’ कह कर वह अपनी घबराहट पर काबू पाने का निरर्थक प्रयास करने लगी.

मन में एक निश्चय के साथ श्री ने अपनी आंखें खोल दीं और चेहरा उठा कर साकेत को देखने लगी.

‘‘अब मैं ठीक हूं, साकेत. पर आप से कुछ कहना चाहती हूं…प्लीज, मुझे एक मौका दीजिए. मैं अपने मन और दिल पर एक बोझ महसूस कर रही हूं, जो आप को हकीकत से वाकिफ कराने के बाद ही हलका हो सकता है.’’

‘‘किस बोझ की बात कर रही हो तुम? देखो, तुम अपनेआप को संभालो, और जो कुछ भी कहना चाहती हो, खुल कर कहो. आज से हम नया जीवन शुरू करने जा रहे हैं और ऐसे में यदि तुम किसी भी बात को मन में रख कर दुखी होती रहोगी तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा.’’

‘‘साकेत, मैं ने आप से अपनी जिंदगी से जुड़ा एक गहरा राज छिपा कर रखा है और यह छल नहीं तो और क्या है?’’ फिर वह अभिजीत और अपने रिश्ते से जुड़ी हर बात साकेत को बताती चली गई.

‘‘साकेत, मैं आप को वचन देती हूं कि मैं अपनी ओर से आप को शिकायत का कोई भी मौका नहीं दूंगी,’’ अपनी बात खत्म करने के बाद भी वह रो रही थी.

‘‘गलत बात है श्री, आज का यह विशेष अवसर और उस का हर पल, हमारी जिंदगी में पहली और आखिरी बार आया है. क्या इन अद्भुत पलों का स्वागत आंसुओं से करोगी?’’ साकेत ने प्यार से उस का चेहरा अपने हाथों में ले लिया.

‘‘रही बात तुम्हारे और अभिजीत के प्रेम की तो वह तुम्हारा अतीत था और अतीत की धूल को उड़ा कर अपने वर्तमान को मैला करने में मैं विश्वास नहीं रखता…भूल जाओ सबकुछ…’’

वह रात उन की जिंदगी में अपने साथ ढेर सारा प्यार और खुशियां लिए आई. साकेत ने उसे इतना प्यार दिया कि उस का सारा डर, घबराहट, कमजोर पड़ता हुआ आत्मविश्वास…उस प्यार की बाढ़ में तिनकातिनका बन कर बह गया.

वसंत पंचमी का शुभ मुहूर्त वेदश्री के जीवन में एक कभी न खत्म होने वाली वसंत को साथ ले आया जिस ने उस के जीवन को भी फूलों की तरह रंगीन बना दिया क्योंकि साकेत एक अच्छे पति होने के साथ ही एक आदर्श जीवनसाथी भी साबित हुए.

पहले दिन से ही श्री ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा द्वारा घर के सभी सदस्यों को अपना बना लिया. समय के पंखों पर सवार दिन महीनों में और महीने सालों में तबदील होते गए. 5 साल यों गुजर गए मानो 5 दिन हुए हों. इन 5 सालों में वेदश्री ने जुड़वां बेटियां ऋचा एवं तान्या तथा उस के बाद रोहन को जन्म दिया. ऋचा व तान्या 4 वर्ष की हो चली थीं और रोहन अभी 3 महीने का ही था. साकेत का प्यार, 3 बच्चों का स्नेह और परिवार के प्रति कर्तव्यनिष्ठा, यही उस के जीवन की सार्थकता के प्रतीक थे.

साकेत की दादी दुर्गा मां सुबह जल्दी उठ जातीं. उन के स्नान से ले कर पूजाघर में जाने तक सभी तैयारियों में श्री का सुबह का वक्त कब निकल जाता, पता ही नहीं चलता. उस के बाद मांबाबूजी, साकेत तथा भैयाभाभी बारीबारी उठ कर तैयार होते. फिर अनिकेत और आस्था की बारी आती. सभी के नहाधो कर अपनेअपने कामों में लग जाने के बाद श्री अपना भी काम पूरा कर के दुर्गा मां की सेवा में लग जाती.

अगले भाग में पढ़ें- किस बात की माफी, साकेतजी?’’ अभि कुछ समझ नहीं पाया.

जब दादा-दादी हैं साथ तो फिर चिंता की क्या बात

दादादादी या फिर नानानानी अपने अनुभवों के मद्देनजर छोटे पोतेपोतियों या नातीनातिनों की परवरिश में बेहतर भूमिका निभा सकते हैं बशर्ते उन की संतानें अपनी संतानों की परवरिश में उन से सहयोग लें. आज की व्यस्त जीवनशैली में मातापिता दोनों नौकरी करते हैं. उन्हें अपने बच्चों की देखभाल के लिए कोई न कोई स्थायी अथवा अस्थायी इंतजाम करना ही पड़ता है. इस के लिए हालांकि कई विकल्प मौजूद हैं लेकिन दादादादी और नानानानी से बेहतर विकल्प कोई नहीं हो सकता.

दादा-दादी के साथ का फायदा

यूनिवर्सिटी औफ ईस्टर्न फिनलैंड के अनुसार, जो बच्चे अपने दादादादी के पास रहते हैं, उन में व्यवहार की दिक्कतें कम होती हैं. दादादादी के होने से मातापिता पर बच्चे का भार कम पड़ता है और उन की जिम्मेदारी भी कुछ कम होती है. ऐसी स्थिति में मातापिता मानसिक तौर पर निश्ंिचत रहते हैं कि बच्चा दादादादी या नानानानी संभाल लेंगे. यानी जिन बच्चों के पास उन के दादादादी हैं वहां चिंता कैसी?

फायदा भी नुकसान भी

यूनिवर्सिटी औफ ईस्टर्न फिनलैंड के डा. ऐंटी ओ टैंशकैनन को अपनी पीएचडी के दौरान पता चला कि दादादादी बच्चों की देखभाल के साथसाथ उन्हें इमोशनल सपोर्ट भी देते हैं तो वहीं उन बच्चों का वजन बढ़ने की समस्या भी होती है. कम उम्र में वजन बढ़ने से आगे चल कर बच्चों को परेशानी हो सकती है. बचपन से ही वे अपने दोस्तों में मजाक का पात्र भी बन सकते हैं. इस के साथ ही, दादादादी के साथ बच्चा रहने से नए मेहमान की तैयारी में भी मदद मिलती है. उन की देखभाल की वजह से भी मातापिता दूसरे बच्चे की प्लानिंग जल्द कर लेते हैं. इस से बच्चों में ज्यादा अंतर भी नहीं रहता और अच्छी तरह से परवरिश हो जाया करती है. एक और शोध के मुताबिक, जो बच्चे अपने नानानानी के पास रहते हैं, उन्हें ज्यादा फायदा होता है क्योंकि ऐसे बच्चों में भावनात्मक समस्याएं कम होती हैं.

दादा-दादी हैं भविष्य की नींव

‘द डेली टैलीग्राफ’ में एक खबर प्रकाशित हुई कि दादादादी बच्चों की देखभाल करने, उन के लिए खिलौने बनाने, कई तरह के कौशल दिखाने के साथसाथ मानवीय संबंधों को ले कर गहरी समझ की सीख बच्चों को खेलखेल में दे देते हैं. कई अध्ययनों में बताया भी गया है कि बच्चे के प्रारंभिक विकास में बुजुर्ग का आसपास रहना काफी फायदेमंद साबित होता है. दादादादी या नानानानी मानव सभ्यता के विकास क्रम में बड़ी भूमिका निभाते हैं.

एकल अब एकल नहीं

फ्रांस, नौर्वे, बुलगेरिया, लिथुआनिया, इंगलैंड, स्कौटलैंड और नौदर्न आयरलैंड आदि यूरोपियन देशों में रिसर्च से पता चला कि एकल परिवार में अगर पतिपत्नी कामकाजी हैं तो वे बच्चे को दादादादी या नानानानी के पास छोड़ देते हैं या फिर उन्हें अपने पास बुला लेते हैं. दादादादी और नानानानी बच्चों के लिए अहम हिस्सा होते हैं. चीजें बदली हैं पर अभी भी लालनपालन का तरीका नहीं बदला.

एकल से संयुक्त परिवार की ओर

भले ही एकल परिवार युवाओं की पसंद हों लेकिन हाल ही में हुए शोध ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बच्चों के शुरुआती विकास के लिए परिवार के बड़े बुजुर्गों का सान्निध्य बहुत ही जरूरी है, चौंकाने वाली बात यह है कि यह सर्वेक्षण एक ब्रिटिश संस्थान ने किया है. ब्रिटेन जहां व्यक्तिगत स्वतंत्रता और हितों को अत्यधिक महत्त्व मिलने से संयुक्त परिवारों का औचित्य लगभग खत्म है, वह भी तथ्य को स्वीकारते हैं कि दादादादी बच्चों को केवल लाड़प्यार ही नहीं करते, बल्कि उन के नैतिक और मानसिक विकास को भी बढ़ावा देते हैं.

बच्चा और कैरियर दोनों जरूरी

‘‘हद है, कैसी मां हो तुम, जो नौकरी करने के लिए बच्चे को छोड़ दिया? पति कैसे हैं तुम्हारे, जो छोड़ने दिया बच्चे को? कैसे मांबाप हो तुम? आजकल की नई पीढ़ी से तो कुछ कहना ही बेकार है.’’ ये तीर जैसे चुभते हुए शब्द अंजलि से उस के मैटरनिटी लीव के बाद औफिस जाने के दौरान सहकर्मियों द्वारा कहे गए. अंजलि ने अपने बच्चे की बेहतर परवरिश और उचित देखभाल के लिए बच्चे को क्रैच के बजाय उस के नानानानी के पास छोड़ना ज्यादा सही समझा. अब जब अंजलि औफिस पहुंचती तो उसे ताने मारने के लिए औरतों की लंबी कतार लगी रहती. कोई कहता, ‘कम से कम हम अपने बच्चे का चेहरा तो शाम को देख लिया करते हैं, तुझे तो वह भी नसीब नहीं होता. याद नहीं आती क्या बच्चे की…खर्चा नहीं चल रहा था जो औफिस जौइन करने की जल्दबाजी दिखाई? इन में से कइयों ने अपने बच्चे को क्रैच में रखा या नानी के हवाले किया था. ये ही आज अंजलि पर सवाल उठा रही थीं.

अंजलि का बच्चा अपनी नानी के पास सुरक्षित था और उस की अच्छी परवरिश के साथ उस का बेहतर लालनपालन हो रहा था. अंजलि ने उन की बातों पर रिऐक्ट करना बंद कर दिया और थोड़े दिनों में ही उन औरतों की चुप्पी इस टौपिक से हट चुकी थी. अंजलि के लिए उस का बच्चा और कैरियर दोनों ही जरूरी थे. अंजलि आज के जमाने की लड़की थी. जब उसे लगा कि उस के बच्चे का लालनपालन उस से भी बेहतर तरीके से हो सकेगा, उस ने कैरियर को प्राथमिकता दी क्योंकि उसे उस के पति व घर वालों ने बच्चा संभालने का आश्वासन दिया है. आज अंजलि अपने काम को सही से पूरा कर रही है तो वहीं उस के बच्चे की भी अच्छी परवरिश हो रही है जो न कोई क्रैच कर पाता और न ही कोई फुलटाइम नैनी कर पाती.

हो सकता है आप को भी अंजलि जैसी ही परिस्थिति से गुजरना पड़ा हो या पड़ सकता है तो आप भी बच्चे के लिए उस के दादादादी या नानानानी का चुनाव कर सकते हैं या फिर उन्हें अपने पास बुला सकते हैं. इस से न तो आप का प्यार कम होगा और न ही बच्चा आप को भूलेगा. यह और बात है कि कई लोग बस यह कहते नहीं थकते कि देखना, बच्चा तुम्हें भूल कर उन्हें ही मम्मीपापा कहेगा. बच्चा आप का है, उसे कैसी सीख व परवरिश देनी है, उसे आप से बेहतर या आप के अपनों से बेहतर कोई नहीं जान सकता.

अभिभावकों की सतर्कता

शायद आप इस हकीकत से परिचित होंगे रोमानिया के एक अनाधिकृत किंडरगार्टेन में बच्चों को पीटा जाता था. सुबह के समय जब अभिभावक बच्चों को छोड़ कर चले जाते, तो बच्चों को एक रूम में कैद कर दिया जाता. उस रूम में कैमरा रहता था पर थोड़ी देर में कैमरा बंद हो जाता था. अब आप को बताते हैं दिल दहलाने वाला सच. दरअसल, कैमरा बंद करने के पीछे मकसद था बच्चों को ‘रैडवाइन’ पिला कर उन्हें सुलाने का सुबूत सामने न आने देना, इस के लिए कैमरे बंद कर दिए जाते थे. एक दिन कैमरा गलती से औन रह गया और फुटेज लीक होने पर पेरैंट्स के होश उड़ गए. उन्होंने क्रैच पर मुकदमा दर्ज करा दिया. क्रैच में छोड़ने पर बच्चों के शरीर पर चोट के निशान मिलते हैं और उन्हें भरपेट खाना भी नहीं मिलता. ऐक्टिविटी सीखना तो दूर, बच्चों में हीनभावना घर कर जाती है और बच्चे अंतर्मुखी व शांत हो जाते हैं. रोमानिया का एकमात्र यही किंडरगार्टेन नहीं है जो ऐसा करता है, बल्कि पूरी दुनिया में ऐसी कई नर्सरी हैं जो बच्चों को सुलाने और शांत रखने के लिए शराब, ड्रग्स, कफ सीरप का इस्तेमाल करती हैं. इस से बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर इतना बुरा असर होता है कि वे मानसिक रूप से कमजोर तक हो सकते हैं.

बड़े शहरों में कामकाजी मातापिता के लिए जरूरत के अनुसार बच्चों को औफिस टाइम में क्रैच या नैनी के पास छोड़ना आज लगभग हर देश के शहरों के उच्च व मध्यवर्ग की मजबूरी बन गई है. भारत में भी क्रैच लगभग हर शहर में मिलेंगे. पर बच्चों की सुरक्षा और उन की ग्रोथ के लिए आज यह सोच अभिभावकों के लिए मात्र एक भ्रांति साबित हो रही है. कई मामलों में तो बच्चों की दिमागी हालत ठीक करने के लिए उन का इलाज तक चल रहा है. लेकिन यह भी सच है कि सभी क्रैच ऐसे नहीं होते. बच्चों के विकास में उन का योगदान होता है, इस से इनकार भी नहीं किया जा सकता. इस के लिए नर्सरी या क्रैच संस्थान चुनते वक्त अभिभावकों को बेहद सतर्क रहना चाहिए.

बेहतर परवरिश अपनों की

ईशा और वरुण ने अपनी बेटी होने के बाद गांव से बच्ची की दादी को बुला लिया. दरअसल, ईशा को बच्चे को अपने सामने रखना था और नौकरी भी नहीं छोड़नी थी. इसलिए उस ने यह फैसला लिया. चूंकि उस की सास अकेलीथी तो उन का वहां आना संभव हो पाया. ऐसे में बच्चे की परवरिश तो अच्छी हुई और ईशा को घर में मदद भी मिलने लगी. उपरोक्त 3 उदाहरणों में अलगअलग परिस्थिति अनुसार यह समझाने की कोशिश की है कि दादादादी या नानानानी न सिर्फ बच्चे की बेहतर परवरिश करते हैं, बल्कि उन को भावनात्मक सहारा भी देते हैं, जिस से बच्चों के आज के साथ उन का कल भी बेहतर बनता है.

छुट्टियों के दौरान बच्चे…

गरमी की छुट्टियां होती हैं तो बच्चे ज्यादातर नानी के घर जाना पसंद करते हैं. ऐसे में जब वे घूम कर वापस आते हैं तो सभी चौंकते हुए कहते हैं कि देखो, नानी ने खूब दूधमलाई खिला तगड़ा कर भेजा है. यह बात सच है कि दादी हो या नानी, बच्चे लाड़प्यार के अलावा अपने हाथ के बने खाने पर भी खास ध्यान देती हैं. वे आज भी मैगी, पिज्जा और बर्गर को खिलाना गलत मानती हैं. वहीं, उन की यह आदत कभीकभार बच्चे की खुराक बिगाड़ देती है. जिसे बच्चा छोटा होने की वजह से बोल नहीं पाता या फिर खाना ठूंसता ही जाता है और बाद में उलटी, दस्त या अपच की चपेट में आ जाता है. ऐसे में 9 महीनेसे 3 साल तक का बच्चा दादी के साथ रहने से ओवरवेट भी हो सकता है. दूसरी अहम चीज यह है कि दादी व नानी के घरेलू नुस्खे पहले जमाने में सटीक रहते थे लेकिन आजकल के छुईमुई बच्चों पर वे नुस्खे सटीक नहीं बैठते. इस की एक वजह हमारी प्रतिरोधक क्षमता का कम होना भी है. ऐसे में कभीकभार दादी के साथ रहने से कम उम्र में शारीरिक परेशानियां हो सकती हैं क्योंकि बुजुर्गों को जल्दी इन बातों का पता नहीं चलता.

दूरी से कम नहीं होता लगाव

ऐसा नहीं है कि बच्चों का मातापिता के प्रति या मातापिता का बच्चों के प्रति लगाव कम होता है पर इस रिश्ते में प्रगाढ़ता लाने के लिए पेरैंट्स को बच्चों के लिए समय निकालना ही पड़ेगा. हो सके तो महीने में 2 बार आप अपनी संतान के साथ पूरा वक्त बिताएं. ऐसा कर आप दोनों के रिश्तों में मजबूती आएगी. वहीं, आजकल दादादादी या नानानानी पहले से ही बच्चे को उन के अभिभावकों की तसवीर के माध्यम से बताते रहते हैं कि यह आप की मम्मी हैं और यह पापा. ऐसा रोजाना करने से भी बच्चे के मन से आप निकल नहीं पाएंगे. इन बातों पर गौर कर आप अपने रिश्तों को करीब ला सकते हैं, इस से किसी के भी प्रति लगाव कम नहीं होगा

यशपाल तोमर: हसीनाओं के जरिए गैंग चलाने वाला

उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के थाना रमाला अतर्गत गांव बरवाला निवासी महेंद्र सिंह तोमर एक साधारण किसान था. महेंद्र सिंह तोमर के पास पहले केवल 9 बीघा ही जमीन थी. इस के अलावा उस के पास कुछ भैंसें व गाएं भी थीं. अपने बेटों नरेश, ओमवीर, विपिन, किशनपाल व यशपाल के साथ वह दिन भर खेती करता था तथा शाम को दूध बेचने के लिए शहर का रुख करता था.

महेंद्र के सभी बेटे खेतीबाड़ी व दूध बेचने के काम में उसी के साथ दिनभर काफी मेहनत करते थे, जिस से उन के घर का खर्च ठीक से चल रहा था. यह वर्ष 1980 के आसपास की बात है. इसी बीच महेंद्र को कुछ ऐसा लगा कि उस के सभी बेटे ख्ेतीबाड़ी के काम में दिनरात मेहनत करते रहते हैं जबकि यशपाल खेती की ओर कम ध्यान दे रहा है.

इस के लिए उस ने बेटे यशपाल को काफी समझाया और खेती के काम में अपने अन्य भाइयों की तरह ही जीतोड़ मेहनत करने को कहा था. मगर पिता की इन बातों का यशपाल पर कोई असर नहीं हुआ था. यशपाल अकसर अपने गांव के बड़ेबड़े किसानों के बारे में सोचता रहता था. इस के बाद वह जल्द ही कम मेहनत कर के अमीर बनने के सपने देखने लगा.

कुछ समय बाद यशपाल ने सोचा कि मेहनत कर के तो जल्दी ही अमीर आदमी नहीं बना जा सकता. इस के लिए उसे कोई तिकड़मबाजी करनी पडे़गी, जिस से वह बड़ा किसान व अमीर आदमी बन सके और ऐश की बाकी जिंदगी जी सके. आखिर कब तक वह खेतीबाड़ी व दूध बेचने के धंधे में अपना जीवन खपाएगा.

इस के बाद यशपाल तोमर ने रुपए कमाने के लिए तिकड़म व हेराफेरी करने की ठान ली. सन 2000 की बात है कि हरिद्वार पुलिस ने यशपाल तोमर को उस के साथियों सहित मुठभेड़ के दौरान गिरफ्तार किया और उस के पास से एक कार सहित कुछ अवैध असलहे भी बरामद किए थे.

जमानत पर छूटने के बाद यशपाल तोमर ने उस कार को छुड़ाने की योजना बनाई थी. इस के लिए यशपाल तोमर ने अदालत में मुकेश निवासी रेलवे रोड, रोहतक (हरियाणा) के नाम से एक फरजी व्यक्ति को पेश किया था और कार कोर्ट से रिलीज करा ली थी.

बाद में हरिद्वार पुलिस को यह जानकारी मिली कि उक्त कार सिटी कोतवाली गुरुग्राम क्षेत्र से चोरी हुई थी और कार मालिक संदीप रैना ने इस बाबत वहां मुकदमा दर्ज कराया था.

इस के बाद उत्तराखंड एसटीएफ के एसआई यादवेंद्र बाजवा की ओर से यशपाल तोमर तथा कोर्ट में पेश होने वाले फरजी व्यक्ति के खिलाफ हरिद्वार में मुकदमा दर्ज करा दिया.

फिर पुलिस ने कोर्ट में मुकेश के नाम से पेश हो कर कार रिलीज कराने वाले आरोपी सुरेंद्र कुमार निवासी नानकहेड़ी, दिल्ली को गिरफ्तार कर लिया.

यशपाल तोमर ने शायद हरिद्वार से फरजीवाड़े की यह शुरुआत की थी. इस के बाद से उस ने विवादित जमीनों पर कब्जे करने तथा कुछ लोगों को हनीट्रैप में फंसा कर उन की संपत्तियों पर कब्जा करने का काम भी शुरू कर दिया था. इस के बाद से उस की प्रौपर्टी बढ़ती ही चली गई.

विवादित जमीनों पर कब्जा करने के कारण यशपाल तोमर उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में चर्चाओं में आ गया था तथा कुछ ही सालों में उस ने अकूत संपत्ति का साम्राज्य स्थापित कर लिया.

विवादित जमीनों को हथियाने में था माहिर करोड़ों अरबों रुपए की जमीनों पर कब्जा करने में उस ने खाकी, सुरा व सुंदरी का जम कर इस्तेमाल किया.

लोगों की जमीनें हड़पने के लिए पहले वह उन्हें फरजी मुकदमों में फंसाता था तथा बाद में उन से समझौता करने के नाम पर उन की बेशकीमती जमीनें ले लेता था.

वर्ष 2021 में यशपाल तोमर का नाम नोएडा के चिटहरा गांव की पट्टों की जमीनों पर अवैध कब्जे के मामले में सामने आया था. हुआ यूं था कि क्षेत्र के लेखपाल शीतल प्रसाद द्वारा पहले इस मामले का मुकदमा थाना दादरी में दर्ज कराया गया था.

दादरी में दर्ज मुकदमे के अनुसार चिटहरा की भूमि प्रबंध समिति ने 282 व्यक्तियों को कृषि भूमि के आवंटन का प्रस्ताव 3 जुलाई, 1997 को पास किया था. उस प्रस्ताव को तत्कालीन उपजिलाधिकारी ने 20 अगस्त, 1997 को पास कर दिया था. इन पट्टों के स्वामित्त्व व कब्जे को ले कर आए दिन शिकायतें अधिकारियों को मिलने लगी थीं.

कुछ समय बाद चिटहरा भूमि घोटाले की आंच लखनऊ में मुख्यमंत्री दरबार तक पहुंच गई थी. तब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस मामले की जांच एसआईटी से कराने के आदेश दे दिये थे. एसआईटी ने जब चिटहरा भूमि घोटाले की जांच शुरू की, तो उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड के नौकरशाहों में हड़कंप मच गया था.

इस मामले में कई नौकरशाहों तथा आईपीएस अधिकारियों के रिश्तेदार भी लिप्त मिले थे. इस के बाद उत्तराखंड के डीजीपी अशोक कुमार को हरिद्वार में यशपाल तोमर गिरोह द्वारा पांव पसारने की भनक मिल गई थी. अशोक कुमार ने तत्काल यशपाल तोमर गिरोह पर शिकंजा कसने के निर्देश एसएसपी एसटीएफ अजय सिंह को दिए थे.

आला पुलिस अधिकारियों का आदेश पा कर उत्तराखंड एसटीएफ सक्रिय हो गई थी तथा यशपाल तोमर गिरोह पर पैनी नजर रखने लगी.

एसटीएफ के एसआई यादवेंद्र सिंह बाजवा ने जब यशपाल तोमर की कुंडली खंगाली, तो उन्हें जानकारी मिली कि यशपाल तोमर के खिलाफ थाना कनखल हरिद्वार में कांग्रेसी नेता तोष कुमार जैन के घर में घुस कर हत्या की धमकी देने का मामला भी दर्ज है.

एसटीएफ ने कसा शिकंजा

इस के अलावा हरिद्वार दिल्ली हाईवे पर दिल्ली निवासी 2 भाइयों की विवादित 56 बीघा जमीन में यशपाल तोमर गिरोह का दखल होने की जानकारी एसटीएफ को मिली थी.

एसटीएफ ने इस मामले की और जानकारी की तो पाया कि कुछ समय पहले दिल्ली के प्रौपर्टी डीलर भरत चावला ने 20 बीघा जमीन पर स्वामित्त्व का दावा करते हुए अपने सगे भाई गिरधारी चावला, भतीजे सचिन तथा यशपाल तोमर के खिलाफ हरिद्वार की ज्वालापुर कोतवाली में मुकदमा दर्ज कराया था.

इस के बाद एसटीएफ ने यशपाल तोमर के खिलाफ क्षेत्र की जमीनों पर कब्जों की जांच शुरू कर दी थी. हरिद्वार के थाना कनखल, कोतवाली ज्वालापुर व शहर कोतवाली में 4 अलगअलग मुकदमे तोमर के खिलाफ दर्ज थे.

पुलिस जांच में यह भी पता चला कि यशपाल तोमर पूर्व में कांग्रेसी नेता तोष कुमार जैन व उन की पत्नी मोनिका जैन को फरजी तरीके से गिरफ्तार करवा कर जेल भी भिजवा चुका था.

एसटीएफ ने यशपाल तोमर के खिलाफ शिकंजा कसना शुरू कर दिया. इस का नतीजा यह निकला कि पुलिस ने 12 जनवरी, 2022 को उसे हरियाणा के गुरुग्राम से गिरफ्तार कर लिया.

उस की गिरफ्तारी के वक्त उस के साथ उत्तराखंड का एक नामी नौकरशाह भी था. जिसे बाद में हरियाणा सरकार के एक अधिकारी के हस्तक्षेप के बाद छोड़ दिया

गया था.

इस के बाद एसटीएफ की टीम यशपाल तोमर को ले कर ज्वालापुर कोतवाली आ गई थी, जहां पर कोतवाल महेश जोशी ने यशपाल तोमर से जमीनों के फरजीवाड़े की बाबत गहन पूछताछ की.

153 करोड़ की संपत्ति हुई कुर्क

यशपाल से पूछताछ के बाद उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश में कुछ सियासी हलचल तेज हो गई थी. प्रशासन द्वारा तोमर की कब्जाई हुई प्रौपर्टीज कुर्क करने का काम शुरू कर दिया गया था.

एसटीएफ के एसएसपी अजय सिंह ने मीडिया से बताया कि भूमाफिया यशपाल तोमर की अवैध तरीके से अर्जित की गई उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व दिल्ली की 153 करोड़ रुपए की चलअचल संपत्ति को कुर्क करने की काररवाई शुरू कर दी.

उत्तराखंड के डीजीपी अशोक ने एसटीएफ की इस सफल काररवाई पर एसटीएफ को 50 हजार रुपए का पुरस्कार देने की घोषणा की.

इस के बाद यशपाल तोमर की गांव चिटहरा दादरी नोएडा की 10 भूसंपत्ति 1.37 हेक्टेयर अनुमानित कीमत 63 करोड़ रुपए जो उस के ससुर ज्ञानचंद के नाम से है, कुर्क की गई. दिल्ली लोनी, गाजियाबाद व गांव बरवाला बागपत की 3 भूसंपत्ति 4188.33 वर्गगज व 130 वर्गमीटर कीमत 16 करोड़ रुपए जो पत्नी अंजना तोमर के नाम थी, कुर्क की गई. हरिद्वार में 2.455 हेक्टेयर भूमि कीमत 72 करोड़ रुपए साले अरुण के नाम थी, कुर्क की गई.

गांव रमाला बागपत में 2 भूसंपत्ति 12.477 हेक्टेयर व 148.61 वर्गगज कीमत 98 लाख रुपए भाई नरेश के नाम थी, यह भी कुर्क कर ली.

गांव रमाला बागपत में एक भूसंपत्ति 472.5 वर्गगज कीमत 20 लाख रुपए भाई ओमवीर के नाम थी, यह भी प्रशासन ने कुर्क कर ली. इस के अलावा यशपाल तोमर के चारपहिया वाहनों बुलेट प्रूफ फौर्च्युनर, इनोवा, विंगर समेत 8 वाहन जिन की कीमत सवा करोड़ रुपए, जो तोमर के परिवार वालों के नाम पर थे, कुर्क कर लिए. तोमर परिवार के अन्य सदस्यों के नाम के 5 बैंक खातों को भी पुलिस ने सीज करा दिया.

एसटीएफ उत्तराखंड द्वारा यशपाल तोमर की गिरफ्तारी की सूचना मिलने के बाद एसटीएफ उत्तर प्रदेश व जिला मेरठ की पुलिस भी हरिद्वार पहुंची थी तथा इन पुलिस टीमों ने भी मेरठ व गौतमबुद्ध नगर में तोमर द्वारा किए गए जमीनों के अवैध कब्जों के बारे में तोमर से गहन पूछताछ की थी. पूछताछ के बाद तोमर को हरिद्वार कोर्ट में पेश कर के जेल भेज दिया गया.

उत्तर प्रदेश पुलिस भी हुई सक्रिय

उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर के पुलिस कमिश्नर ने यशपाल तोमर के चिटहरा जमीन घोटाले की जांच के लिए जो एसआईटी का गठन किया है, वह अपर पुलिस कमिश्नर (अपराध) भारती सिंह की देखरेख में कार्य करेगी. क्राइम ब्रांच के 2 इंसपेक्टर इस के सदस्य हैं.

लोगों का मानना है कि उत्तर प्रदेश एसआईटी की इस जांच में यशपाल तोमर के कई मददगार भी बेनकाब हो सकते हैं तथा उन का जेल जाना भी तय माना जा रहा है.

एसटीएफ उत्तराखंड ने यशपाल तोमर को आर्थिक चोट पहुंचाने के लिए उस पर अपना शिकंजा कस दिया है.

जिलाधिकारी हरिद्वार विनय शंकर पांडेय के आदेश पर उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में फैली तोमर की 153 करोड़ रुपए की चलअचल संपत्ति को कुर्क करने के बाद वहां के स्थानीय तहसीलदारों को उस का प्रशासक नियुक्त कर दिया गया है. यशपाल तोमर के खिलाफ इस काररवाई के बाद हरिद्वार की स्थानीय पुलिस भी सक्रिय हो गई.

18 अप्रैल, 2022 को यशपाल तोमर की चलअचल संपत्तियों की कुर्की के बाद ज्वालापुर कोतवाल महेश जोशी ने यशपाल तोमर निवासी गांव बरवाला, थाना रमाला बागपत, धीरज डिगानी निवासी संत बाबा टहलदास चैरिटेबल ट्रस्ट, जिला हनुमानगढ़, राजस्थान, गिरधारी चावला व सचिन चावला निवासीगण निर्माण विहार दिल्ली के खिलाफ गैंगस्टर एक्ट का मुकदमा दर्ज किया था.

साथ देने वाले पुलिस अधिकारी भी नपे

इस के अलावा यशपाल तोमर की शह पर प्रौपर्टी हड़पने के लिए लोगों को हनीट्रैप में फंसाने वाली युवतियों शीतल, किरण व रेशमा की तलाश एसटीएफ उत्तराखंड कर रही है.

ये युवतियां भोलेभाले लोगों को हनीट्रैप में फंसाती थीं. हनीट्रैप में फंसे लोग इन युवतियों के इशारों पर चल कर अपनी प्रौपर्टी यशपाल तोमर को दे बैठे थे तथा जो लोग इन युवतियों के इशारों पर नहीं चले, वे आज भी राजस्थान, उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश की जेलों में बंद हैं.

हनीट्रैप में फंसाने वाली युवतियां मुकदमा दर्ज कराने के बाद भी आज तक किसी से नहीं मिली हैं. शीतल ने उत्तर प्रदेश के अलगअलग थानों में दुष्कर्म के 7 मुकदमे दर्ज कराए थे. रेशमा ने ऋषिकेश में दुष्कर्म का एक मुकदमा तथा किरण ने राजस्थान में दुष्कर्म के 2 अलगअलग थानों में मामले दर्ज कराए थे.

यशपाल तोमर की मदद करने वाले पुलिस वालों पर भी आला पुलिस अधिकारियों ने शिकंजा कस दिया है. मेरठ के एसएसपी ने इंसपेक्टर सुभाष अत्री को सस्पेंड कर दिया है तथा सेवानिवृत्त इंसपेक्टर ऋषिराम कटारिया के खिलाफ भी जांच शुरू हो गई है.

इस के अलावा उत्तराखंड एसटीएफ भी कई पुलिस वालों की कार्यशैली की जांच कर रही है.

ज्वालापुर के कोतवाल महेश जोशी ने जिलाधिकारी हरिद्वार विनय शंकर पांडेय से अनुमति ले कर यशपाल तोमर व उस के 3 साथियों पर गैंगस्टर एक्ट में मुकदमा दर्ज कराया है.

इस के अलावा गैंगस्टर यशपाल तोमर के खिलाफ थाना कनखल व कोतवाली ज्वालापुर में दर्ज मुकदमों में एसटीएफ ने चार्जशीट कोर्ट में दाखिल कर दी है. एसटीएफ द्वारा तोमर के खिलाफ सबूत एकत्र किए जा रहे हैं.

अगस्त, 2021 में हरिद्वार के भूपतवाला निवासी एक व्यापारी ने पुलिस को शिकायत की थी कि उसे अपनी जमीन का सौदा अपने हिसाब से करने के लिए यशपाल तोमर द्वारा धमकाया जा रहा है.

इस के अलावा दिल्ली के एक कारोबारी ने हरिद्वार पुलिस से शिकायत की थी कि उस की हरिद्वार स्थित प्रौपर्टी के बारे में यशपाल तोमर द्वारा धमकी दी जा रही है.

इन दोनों धमकियों के मुकदमे क्रमश: थाना कनखल व कोतवाली ज्वालापुर में दर्ज हुए थे. अब इन दोनों मामलों की विवेचना एसटीएफ के सुपुर्द कर दी गई है.

प्रौपर्टी हथियाने के मामले में उत्तर प्रदेश की मेरठ पुलिस भी यशपाल तोमर के खिलाफ 2 मुकदमे दर्ज कर चुकी है तथा उस की 70 करोड़ रुपए की संपत्ति कुर्क कर चुकी है.

इन दोनों मुकदमों में भी पुलिस तोमर के खिलाफ चार्जशीट कोर्ट में भेज चुकी है. अब सवाल यह उठता है कि उत्तराखंड की धामी सरकार भी क्या उत्तर प्रदेश की योगी सरकार की तरह कोई बड़ा एक्शन लेगी? फिलहाल एसटीएफ की जांच के चलते शासन में कई अधिकारियों की नींद उड़ी हुई है.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

माया अनुपमा में चल रही है लड़ाई, बर्थ डे पर शाह परिवार आएगा नजर.

स्टार प्लस का पॉपुलर शो अनुपमा में इन दिनों लगातार धमाके देखने को मिल रहे हैं. कपाड़िया परिवार में माया के आने के बाद से लगातार सभी घरवाले परेशान चल रहे हैं. अंकुश अनुज का साथ देता है और कहता है कि जितनी जल्दी हो सके हमें माया को इस घर से बाहर करना है.

अनुज अंकुश से कहता है कि अनुपमा वो नहीं है जो कैसे भी छोटी अनु को माया के साथ जाने देगी चाहे कुछ भी हो जाए अनुपमा माया की सच्चाई का पता लगाकर रहेगी. वहीं दूसरी तरफ लीला काव्या से कहती है कि तुम अपने साथ वनराज को भी ले जाओ प्रॉडक्ट का मॉडल बनने के लिए.

 

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वहीं अनुपमा और अनु को सरप्राइज देने के लिए लीली और हंसमुख केक बनवाते नजर आ रहे हैं,दूसरी तरफ घर के कुछ सदस्य माया के बारे में सुराग निकालने की तैयारी में लगे हुए हैं. माया और अनुपमा जब शॉपिंग के लिए जाती हैं तो अनुज भी साथ जाने वाला होता है लेकिन माया कहती है कि अनुज हमारे साथ नहीं जाएगा.

इस दौरान माया अनु को उसके बचपन की तस्वीर दिखाती है ऐसे में अनु उसे कहती है कि अगर वह उसे इतना प्यार करती थी तो उससे मिलने क्यों नहीं आई. इस बात पर माया चुप रहती है.

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