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Bigg Boss 16: घर में हो रहा है हल्दी गेम, अर्चना ने मचाया बवाल

टीवी के विवादित शो बिग बॉस 16 में इन दिनों लड़ाई शुरू हो गई है. इस शो के ग्रैंड फिनाले में चंद दिन ही बचे हुए हैं. ऐसे में फिनाले में पहुंचने के लिए सभी ने जोड़ तोड़ शुरू कर दिया है.  लेकिन इससे पहले कंटेस्टेंट को एक टॉस्क दिया गया है. जिससे वह प्राइज मनी को डबल कर सकते हैं.

इस टॉस्क को करते दौरान प्रियंका चहल चौधरी और शालीन भनोट परेशान हुए थें,अब  अर्चना गौतम की बैंड बजने वाली है. बिग बॉस 16 के अपकमिंग एपिसोड का प्रोमो बाहर आ गया है. जिसमें अर्चना गौतम का भौकाल देखने को मिल रहा है.

अभी घरवालों के पास 21 लाख रुपय प्राइज मनी के तौर पर है अब यह 50 लाख रूपय अपने टॉस्क को पूरा करके करना है.  एपिसोड में दिखाया जा रहा है कि अर्चना शिव , निमृत औऱ बाकी सदस्य को परेशान करने के लिए समान उठाते हुए दिख रही है.

वह अर्चना शालीन, स्टेन के साथ मिलकर हल्दी फेंकती हैं फिर बाकी सब मिलकर इनके मुंह पर हल्दी फेंकते नजर आते हैं. सभी अपनी- अपनी मंडली के सदस्य के साथ मिलकर हल्दी लगाते नजर आते हैं.

बिग बॉस का यह टॉर्चर यहीं नहीं खत्म होता है इसके बाद वह प्रियंका और शालीन के मुंह पर हल्दी लगाती नजर आ रही हैं. इसी दौरान निमृत की आंखो में मिर्ची लग जाती है और वह रोने लगती है.

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हाउसिंग सोसाइटी में अविवाहित बैचलर्स पर रोक क्यों

कोई संवैधानिक नियम यह नहीं कहता कि हाउसिंग सोसाइटी में बैचलर्स को किराए पर मकान नहीं दिया जा सकता, फिर सोसाइटी में ऐसे उपनियम बना कर क्यों अविवाहितों को मकान किराए पर नहीं दिया जाता? कई मकान मालिकों का कुंआरे या अकेले रह रहे लोगों को घर किराए पर देने का अनुभव अच्छा होता है. साथ ही, कुंआरे लोगों को किराए पर फ्लैट लेना मालिक के लिए अधिक फायदेमंद होता है क्योंकि वे आपस में खर्चों को विभाजित कर के अधिक भुगतान करने को तैयार होते हैं.

लेकिन शहरों में हाउसिंग सोसाइटी अकसर यह नियम बनाती है कि कोई भी मकान मालिक किसी अविवाहित पुरुष या महिला को रूम नहीं देगा. सोसाइटी वालों को शायद बैचलर्स का बुरा अनुभव है. लड़कियों या लड़कों को लाना, शराब पीना, देररात पार्टी करना या सुरक्षा गार्डों से बहस करना, अपराधी होने का अंदेशा होने आदि बहानों से घर किराए पर देने से रोकते हैं. फ्लैट मालिकों की भी आमतौर पर यह धारणा होती है कि अगर कोई परिवार फ्लैट में रहता है तो वह फ्लैट की बेहतर देखभाल करेगा. इस के अलावा, समाज और पड़ोसियों से कोई शिकायत नहीं होगी.

नतीजतन कई पढ़ेलिखे और अच्छी पार्श्व भूमि के लोग भी जब शहर में शिक्षा या रोजगार के लिए आते हैं तो उन के साथ दुर्व्यवहार और अपमान का बरताव किया जाता है तो सवाल यह उठता है कि अगर समाज की पुलिसगीरी करने वाले लोग यदि उन्हें कई पूर्वाग्रहों के आधार पर रहने नहीं देंगे तो ये लोग कहां जाएंगे? मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद, पुणे, ठाणे और चेन्नई जैसे शहरों में आने वाले नौकरी के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए छात्रावासों की संख्या बहुत कम है और पर्याप्त नहीं है. क्या यह नियम कानूनी रूप से बाध्यकारी हैं? नहीं. पुलिस सत्यापन और सभी कानूनी दस्तावेज होने पर उन्हें जाति, धर्म, पंथ या लिंग के आधार पर फ्लैट किराए पर लेने से कोई नहीं रोक सकता. सोसाइटी के सदस्यों को नैतिक पुलिसिंग का कोई अधिकार नहीं है.

कुछ चुनिंदा लोगों के व्यवहार को मानक मान कर मानदंड नहीं बनाए जा सकते. कानून के सरल शब्दों में, घर का स्वामित्व सोसाइटी के पास नहीं, बल्कि फ्लैट मालिक के पास होता है. इसलिए घर किसे किराए पर वह दे, इस में सोसाइटी अड़ंगा नहीं डाल सकती. यह फ्लैट मालिक का विवेक है जिस के तहत वह कानून द्वारा निर्धारित उचित नियमों और शर्तों के अधीन अपने फ्लैट को किसी को भी किराए पर देने का अधिकार रखता है. बस, इतना ही जरूरी है कि वह अपने फ्लैट को वाणिज्यिक या अवैध गतिविधियों के लिए किराए पर न दे.

सोसाइटी के प्रत्येक सदस्य को अपनी इच्छा से अपना मकान किराए पर देने का अधिकार है और सोसाइटी बैचलर्स या सिंगल लोगों को प्रतिबंधित नहीं कर सकती है. नए मौडल उपनियमों से ‘लीव और लाइसैंस’ के आधार पर फ्लैट देने के लिए सोसाइटी की पूर्व अनुमति लेने की शर्त को हटा दिया गया है. केवल यह कि सदस्यों को विधिवत पंजीकृत किराएदारी समझौते की एक प्रति और निकटतम पुलिस स्टेशन में जमा किए गए किराएदारों के विवरण की एक प्रति प्रस्तुत कर के किराए पर लिए जाने वाले फ्लैट के बारे में सोसाइटी को सूचित करना आवश्यक है.

सोसाइटी गैर अधिभोग शुल्क ले सकती है लेकिन सोसाइटी मनमानी नहीं कर सकती. हाउसिंग एसोसिएशन अपने नियम खुद बना सकते हैं. विस्तृत दिशानिर्देश या उपनियम हैं जो प्रत्येक हाउसिंग सोसाइटी पंजीकृत होने पर अपनाती है. ये नियम और विनियम आवास संगठन के दिनप्रतिदिन के संचालन को नियंत्रित करते हैं और इस के सुचारु संचालन के लिए महत्त्वपूर्ण हैं. व्यक्तिगत समाजों को अपने उपनियमों के आधार पर किराएदारों को मना करने का कानूनी अधिकार है. कई मामलों में इस तरह के उपनियमों को इसे प्राप्त करने के लिए एक विशेष तरीके से व्याख्या की जाती है. हालांकि उन्हें ऐसा करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है. मकान मालिक केवल किराएदारी समझौते और उस के नियमों व शर्तों से बाध्य है.

उस किराए के समझौते के किसी भी खंड या किसी नियम के उल्लंघन के मामले में केवल उस स्थिति में सोसाइटी को फ्लैट खाली करने के लिए कहने का अधिकार है. अन्यथा किसी को भी अपना घर किसी को किराए पर देने में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है. घर किराए पर देने में सोसाइटी अड़ंगा लगाए तो… महाराष्ट्र सहकारी समिति अधिनियम में सोसाइटी के परिसर के भीतर निषिद्ध और प्रतिबंधित क्षेत्रों के लिए कोई प्रावधान नहीं है. यदि सोसाइटी नियमों और विनियमों का उल्लंघन करती है और फ्लैट मालिक के साथ दादागीरी कर रही हो तो सोसाइटी के पंजीकरण को रद्द करने के लिए सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को शिकायत आवेदन भेजा जा सकता है. वह कानूनी कार्रवाई भी कर सकता है और एक दीवानी मामला दर्ज कर के समाज को बैचलर्स को बेदखल करने से रोकने वाली निषेधाज्ञा प्राप्त कर सकता है. सोसाइटी के वरिष्ठ पदाधिकारी को समझौता दिखा कर बेदखली के लिए न्यायालय का आदेश प्रस्तुत करने के लिए कहा जा सकता है.

मामला दर्ज करने से पहले सोसाइटी को एक नोटिस दिया जा सकता है कि ‘क्यों उस के अवैध कृत्यों के खिलाफ उचित कानूनी कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए और कानून का पालन करते हुए कहीं भी शांति से रहने के मौलिक और संवैधानिक अधिकार के उल्लंघन के लिए उचित मुआवजे का दावा किया जाए.’ अधिक शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना, लड़ाई, तनाव, गालीगलौज, पिटाई की स्थिति में स्थानीय पुलिस में लिखित शिकायत दर्ज कराई जा सकती है और अदालत से इस तरह के अवैध निष्कासन के खिलाफ निषेधाज्ञा प्राप्त की जा सकती है. सोसाइटी उपनियम बड़े हैं या संवैधानिक अधिकार उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत सोसाइटी को सेवा प्रदाता के रूप में वर्गीकृत किया गया है जिसे उपभोक्ता न्यायालयों के कई निर्णयों द्वारा प्रचलित किया गया है.

समाज की एकमात्र जिम्मेदारी अपने सदस्यों को सामान्य सेवाएं और सुविधाएं प्रदान करना है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में कानून के समक्ष समानता का प्रावधान है. इस धारा के तहत धर्म, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इन में से किसी के आधार पर भेदभाव निषिद्ध है. भारत के संविधान के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिक और गैरनागरिक को प्रतिबंधित और प्रतिबंधित क्षेत्रों को छोड़ कर भारत में कहीं भी रहने (निवासी) का मौलिक अधिकार प्रदान किया गया है. पूरे भारत में किसी भी अपार्टमैंट अधिनियम में सोसाइटी परिसर के भीतर निषिद्ध और प्रतिबंधित क्षेत्रों के लिए कोई प्रावधान नहीं है. इस के अलावा, भले ही बैचलर किराएदार हो उसे भी किराएदार के रूप में उस के अधिकारों से सोसाइटी प्रतिबंधित नहीं कर सकती.

समाज के उपनियमों या बायलौज को चुनौती समरमल केजरीवाल बनाम विश्व सहकारी आवास सोसाइटी के मामले में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी पसंद के किराएदार को बनाए रखने के मालिक के अधिकार को बरकरार रखा. इसी तरह सेंट एंथोनी कोऔपरेटिव के मामले में बौम्बे हाईकोर्ट ने समाज के खिलाफ फैसला सुनाया और संशोधित उपनियमों को खारिज कर दिया जिस के द्वारा समाज ने एक विशेष धर्म के व्यक्तियों की सदस्यता को प्रतिबंधित करने की मांग की थी. किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले किसी भी नियम को अदालत में चुनौती दी जा सकती है. हाउसिंग सोसाइटी के नियमों को कानून का दर्जा नहीं है. प्रत्येक भारतीय नागरिक को देश में कहीं भी रहने का अधिकार है और किसी को भी धर्म, वैवाहिक स्थिति, जाति, लिंग, भोजन की आदतों या वैवाहिक स्थिति के आधार पर भेदभाव करने की अनुमति नहीं है.

ऐसे मामले हैं जहां किराएदारों ने कई मामले दायर किए, लड़े और जीते. ये नियम समाज द्वारा बनाए गए हैं जो कानून नहीं हैं, इसलिए यदि किसी व्यक्ति को लगता है कि एक नागरिक के रूप में उस के अधिकारों का उल्लंघन किया गया है तो उसे चुनौती दी जा सकती है. यह जरूरी है कि लोग किसी भी प्रकार के उत्पीड़न का अनुभव करने पर कानूनी सहारा लें. इस तरह के छोटेछोटे कदम देश में कानून के शासन को मजबूत करने और सभी के लिए आवास के लक्ष्य को हासिल करने में काफी मददगार साबित होंगे.

गायत्री की खूनी जिद: कैसे बलि का बकरा बन गया संजीव

उत्तर प्रदेश के जिला फिरोजाबाद में एक कस्बा है एटा इस कस्बे में थाना भी है. एटा कस्बे से कुछ दूर एक गांव है  नगलाचूड़. सोनेलाल अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. सोनेलाल के 3 बेटे थे गोपाल, कुलदीप और संजीव. इन के अलावा 2 बेटियां भी थीं. सोनेलाल के पास खेती की जमीन थी, जिस से उस के घरपरिवार का गुजारा बडे़ आराम से हो जाता था. सोनेलाल के बड़े बेटे गोपाल और एक बेटी की शादी हो चुकी थी.

शादी के बाद गोपाल अपने परिवार के साथ काम के लिए पंजाब गया था. वहां से वह कभीकभी ही घर आता था. सोनेलाल की एक बेटी और बेटा कुलदीप अपनी पढ़ाई कर रहे थे. जबकि संदीप अपने पिता के साथ खेती के कामों में हाथ बंटाता था. घर की व्यवस्था सोनेलाल की पत्नी सरला के जिम्मे थी. सरला चाहती थी कि संजीव का भी घर बस जाए इसलिए वह 24 साल के संजीव के लिए कोई लड़की देखने लगी.

इसी सिलसिले में रिजौर निवासी छबिराम नाम के एक रिश्तेदार ने रिजौर के ही रामबाबू शाक्य की बेटी गायत्री के बारे में बताया. छबिराम की मार्फत सोनेलाल ने रामबाबू से बात की.

उन्हें रामबाबू की बेटी गायत्री अपने बेटे संजीव के लिए सही लगी. दोनों ओर से चली बातचीत के बाद संजीव और गायत्री का रिश्ता तय कर के जल्द ही दोनों की शादी कर दी गई. यह लगभग डेढ़ साल पहले की बात है.

खूबसूरत गायत्री से शादी कर के संजीव ही नहीं बल्कि उस के घर वाले भी बहुत खुश थे. लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि आगे चल कर यही खूबसूरत दुलहन कितनी बड़ी मुसीबत बनने वाली है.

शादी के बाद गायत्री की शिकायत

गायत्री ससुराल आ तो गई थी पर उस के तेवर किसी की समझ में नहीं आ रहे थे. संजीव की मां सरला ने सोचा था कि बहू घर आ जाएगी तो सब कुछ ठीक हो जाएगा. घर की जिम्मेदारी बहू के हवाले कर के वह आराम करेगी, क्योंकि बड़ी बहू शादी के कुछ दिनों बाद ही गोपाल के साथ पंजाब चली गई थी. पर सरला का यह सपना अधूरा रहा. क्योंकि गायत्री पूरे दिन अपने कमरे में बैठी टीवी देखती रहती थी.

टीवी से फुरसत मिल जाती तो वह मोबाइल पर लग जाती. वह काफीकाफी देर तक किसी से बातें करती रहती थी. कुछ दिन तक तो सरला ने गायत्री से कुछ नहीं कहा. लेकिन जब पगफेरे के लिए उस का भाई टीटू उसे लेने आया तो सरला ने टीटू से कहा, ‘‘अपनी बहन को समझाओ. वह ससुराल में रहने का सलीका सीखे. यह इस घर की बहू है, इसे यहां बहू की तरह ही रहना होगा.’’

बहन की शिकायत सुन कर टीटू के माथे पर शिकन आ गई. उस ने घूर कर गायत्री की तरफ देखा लेकिन उस से कहा कुछ नहीं. टीटू के पिता बीमार रहते थे, इसलिए वह ही सब्जी की दुकान चलाता था. भाई के साथ गायत्री अपने मायके आ गई. घर पहुंचते ही टीटू ने अपनी मां रामश्री से कहा, ‘‘संभालो अपनी लाडली को, यह हमें जीने नहीं देगी.’’

गायत्री अपने कमरे में चली गई. इस के बाद रामश्री और टीटू देर तक बातें करते रहे. रामबाबू कुछ देर बाद घर आया तो उसे भी पता चल गया कि गायत्री के ससुराल वाले उस से खुश नहीं हैं. वह गुस्से में बोला, ‘‘हम ने तो सोचा था कि गायत्री शादी के बाद सुधर जाएगी, पर लगता है ये लड़की उन लोगों को भी नहीं जीने देगी.’’

दरअसल शादी के पहले से ही रामबाबू के घर में तनाव था. इस की वजह यह थी कि गायत्री संजीव से शादी करने से इनकार कर रही थी. पर घर वालों के सामने उस की एक नहीं चली. रामबाबू और रामश्री इस बात को ले कर बहुत चिंतित थे कि कहीं गायत्री की वजह से वह लोग किसी नई परेशानी में न पड़ जाएं.
रिजौर में ही रामबाबू के घर से कुछ दूरी पर किशनलाल का घर था. उस के बेटे रंजीत ने भी अपने घर वालों को परेशान कर रखा था. यूं तो किशनलाल के 4 बेटे थे, जिन में से 3 पढ़ेलिखे थे पर छोटे बेटे रंजीत का पढ़ाई में मन नहीं लगता था. वह सारे दिन गांव में अपने दोस्तों के साथ गपशप करता रहता था. वह अपने पिता के खेती के काम में भी हाथ नहीं बंटाता था.

रंजीत की जिंदगी में आई गायत्री

एक दिन अचानक रंजीत की नजर गायत्री से टकराई और वह उस की ओर खिंचता चला गया. वह उस से बात करने के लिए मौके की तलाश में था. एक दिन मोबाइल की दुकान पर उसे मौका मिल गया, जहां गायत्री अपना मोबाइल रीचार्ज कराने आई थी. उस से बात की शुरुआत करने का कोई बहाना चाहिए था. लिहाजा उस ने गायत्री से कहा, ‘‘गायत्री, देखें तुम्हारा मोबाइल किस कंपनी का है.’’

गायत्री ने उस के हाथ में मोबाइल दे दिया. रंजीत हाथ में मोबाइल ले कर देखते हुए बोला, ‘‘यह मोबाइल तो तुम्हारी तरह ही स्मार्ट है.’’

गायत्री ने उसे घूर कर देखा फिर खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘तुम भी काफी स्मार्ट लगते हो.’’
सुन कर रंजीत की हिम्मत और बढ़ गई. गायत्री वहां से चलने लगी तो रंजीत ने कहा, ‘‘अगर आप बुरा न मानो तो मैं बाइक से तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ दूंगा.’’

गायत्री मुसकराई और उस की बाइक पर बैठ गई. रंजीत बहुत खुश हुआ. पहली बार किसी लड़की ने उस की दोस्ती कबूल की थी.

‘‘रंजीत वैसे तुम आजकल क्या कर रहे हो.’’ गायत्री ने पूछा.

‘‘इंटरमीडिएट पास कर के घर पर ही मौज कर रहा हूं. वैसे भी तुम्हें तो पता ही है कि घर में किसी चीज की कमी तो है नहीं. जब जिम्मेदारी आ जाएगी, देखा जाएगा’’ रंजीत बोला, ‘‘गायत्री, क्या तुम अपना मोबाइल नंबर दे सकती हो?’’

‘‘हांहां क्यों नहीं, तुम मुझे अपना मोबाइल नंबर बताओ, मैं मिस्ड काल कर देती हूं.’’ गायत्री बिना किसी झिझक के बोली. बाइक चलातेचलाते रंजीत ने उसे अपना मोबाइल नंबर बता दिया. गायत्री ने तुरंत उस के नंबर पर मिस्ड काल दे दी. गायत्री ने अपने घर से कुछ पहले ही मोटरसाइकिल रुकवा ली और बाइक से उतर कर पैदल अपने घर चली गई ताकि कोई घर वाला उसे बाइक पर बैठे न देख ले. उसे उतार कर रंजीत भी मुसकराता हुआ अपने घर चला गया.

अगले दिन रंजीत ने अपने मोबाइल पर किसी अनजान नंबर की घंटी सुनी. जैसे ही उस ने हैलो कहा तो दूसरी तरफ से लड़की की आवाज सुनाई दी. वह बोला, ‘‘कौन, किस से बात करनी है.’’
‘‘ओह हम ने तो सोचा था कि तुम काफी स्मार्ट हो, पर तुम तो जीरो निकले मि. स्मार्ट.’’ कहते हुए लड़की हंसने लगी.

रंजीत समझ गया कि वह गायत्री है. रंजीत मन ही मन बहुत खुश हुआ. वह सफाई देते हुए वह बोला, ‘‘सौरी गायत्री, मैं समझा किसी और का फोन है. अब मैं तुम्हारा फोन नंबर मोबाइल में सेव कर लूंगा.’’
‘‘हां, समझदार दिखते हो. सुनो, आज मुझे 2 घंटे के बाद एटा जाना है. तुम मोड़ पर मिलो.’’ गायत्री ने कहा.
रंजीत निर्धारित समय से पहले ही वहां पहुंच गया. उस के कुछ देर बाद गायत्री भी आ गई. उस दिन से रंजीत और गायत्री के बीच नजदीकियां बढ़ने लगीं. दोनों ही लोगों की नजरों से छिप कर मिलने लगे. लेकिन लाख छिपाने पर भी ऐसी बातें छिप नहीं पातीं. गांव के किसी आदमी ने गायत्री को रंजीत की बाइक पर बैठे देखा तो उस ने रामबाबू को यह बात बता दी.

घर वालों की परेशानी बढ़ाई गायत्री ने

रामबाबू परेशान हो गया. घर आ कर उस ने गायत्री से पूछताछ की तो उस ने इस बात से इनकार कर दिया. रामबाबू ने सोचा कि शायद पड़ोसी को कोई गलतफहमी हो गई होगी.

लेकिन अब गायत्री सतर्क हो गई थी. उस का और रंजीत का प्यार परवान चढ़ने लगा था. अपनी मुलाकातों के दौरान प्रेमी युगल भविष्य के सपने बुनने लगा था. हालांकि दोनों की जाति एक थी पर रंजीत न तो कोई कामधंधा करता था और न ही उस की छवि अच्छी थी. गायत्री अच्छी तरह जानती थी कि घर वाले उस के इस रिश्ते को स्वीकार नहीं करेंगे.

दूसरी ओर दोनों के इश्क की खबरें लोगों तक पहुंचने लगी थीं. लोग दोनों के बारे में खुसुरफुसुर करने लगे. कई लोगों ने रामबाबू से शिकायत की कि उसे अपनी बेटी पर कंट्रोल करना चाहिए. लोगों की बातें सुन कर वह परेशान हो गया था. जबकि गायत्री यही कहती कि लोगों को तो बातें बनाने की आदत होती है. फालतू में उसे बदनाम कर रहे हैं.

लेकिन एक दिन गायत्री और रंजीत ने रात को मिलने का फैसला किया. गायत्री के घर के सभी लोग सो चुके थे. देर रात को रंजीत उस के यहां पहुंच गया. गायत्री बाहरी गेट खोल कर उसे अंदर ले आई, पर वह दिन उन की मुलाकात के लिए ठीक नहीं रहा.

उस रात गायत्री के भाई टीटू की तबीयत ठीक नहीं थी. वह टौयलेट जाने को उठा तो देखा, मेन गेट की कुंडी खुली हुई है. उसे कुछ शक हुआ तो उस ने गायत्री के कमरे में झांक कर देखा, गायत्री वहां नहीं थी. वह टौयलेट जाने के बजाए तेजी से गेट खोल कर बाहर आया. तभी कोई व्यक्ति छत से कूद कर भाग गया. टीटू भाग कर अंदर आया तो देखा, गायत्री कमरे में थी.

‘‘तू कहां गई थी?’’ टीटू ने उस से पूछा.

‘‘मैं तो यहीं थी भैया, क्यों क्या हुआ आप कुछ परेशान से दिख रहे हैं?’’ गायत्री ने कहा.

टीटू की समझ में नहीं आ रहा था कि सच क्या है. कुछ देर पहले गायत्री कमरे में नहीं थी. किसी के छत से कूदने की आवाज भी उस ने सुनी थी, पर देखा किसी को नहीं था. क्या उसे भ्रम हुआ था. पर बाहरी दरवाजे की कुंडी भी खुली हुई थी. उस की समझ में कुछ नहीं आ रहा था. वह वहां से चुपचाप चला गया.

गुपचुप खेला जाने लगा खेल

गायत्री ने राहत की सांस ली. वह जानती थी कि अगर भाई ने रंजीत को देख लिया होता तो उस की खैर नहीं थी. अगले दिन उस ने रंजीत को फोन पर सारी बात बताई और सतर्क रहने को कह दिया. इधर टीटू को लगने लगा था कि कुछ तो है जो वह देख नहीं पा रहा, जबकि लोग देख रहे हैं. बहन पर उस का शक पक्का होने लगा था.

अब वह गायत्री पर गहरी नहर रखने लगा. गायत्री भी मन ही मन डर गई थी. इधर टीटू ने एक दिन मां से कहा कि वह बहन को ले कर काफी चिंतित है. अगर कोई ऊंचनीच हो गई तो कहीं के नहीं रहेंगे. लेकिन मां ने कहा, ऐसी कोई बात नहीं है, गायत्री ऐसी लड़की नहीं है.

एक दिन टीटू ने खुद गायत्री को रंजीत के साथ देख लिया. वह उस के साथ बाइक पर थी. टीटू जब घर आया तो उस ने देखा गायत्री घर पर ही थी. उस ने उस से पूछा कि अभी कुछ देर पहले वह कहां थी.
गायत्री ने कहा मैं तो अपनी सहेली के घर गई थी. टीटू को लगा कि वह झूठ बोल रही है. लिहाजा उस ने उस की पिटाई कर दी और कहा, ‘‘आइंदा अगर मैं ने तुझे किसी के साथ देखा तो जान से मार दूंगा.’’

मां को भी लगने लगा कि गायत्री कुछ तो गड़बड़ कर रही है. जब देखो तब बाहर भागने की कोशिश करती है. इसलिए मां ने भी उस से कहा, ‘‘आज से तेरा घर से बाहर जाना बंद, अब घर का काम सीख, वरना ससुराल जा कर हमारी बेइज्जती कराएगी.’’

‘‘मैं क्या कोई कैदी हूं मां, जो मुझे बांध कर रखोगी. आखिर मैं ने किया क्या है.’’ गायत्री ने कहा तो टीटू ने उसे कस कर तमाचा जड़ दिया, ‘‘तू क्या समझती है, हम अंधे हैं.’’

गायत्री रोती हुई कमरे में चली गई और उस ने मौका देख कर रंजीत को सारी बात बता दी. उस ने कहा कि जल्दी कुछ सोचो, वरना ये लोग हमें अलग कर देंगे.

अगले दिन टीटू ने रंजीत को रास्ते में रोक कर कहा, ‘‘तू गायत्री का पीछा करना छोड़ दे वरना बुरा होगा.’’ रंजीत ने टीटू को समझाने की कोशिश की कि उसे शायद कोई गलतफहमी हुई है.

गायत्री और रंजीत की हकीकत आई सामने

इधर रंजीत ने प्रेमिका से मिलने का एक उपाय खोज लिया. उस ने कैमिस्ट से नींद की गोलियां खरीद कर गायत्री को देते हुए कहा कि वह रात के खाने में कुछ गोलियां मिला दिया करे. फिर दोनों बेखौफ हो कर मिला करेंगे. गायत्री ने अब रात का खाना बनाने की जिम्मेदारी ले ली. इस के बाद वह जब अपने प्रेमी से मिलने का प्रोग्राम बना लेती तो खाने में नींद की गोलियां मिला देती. पूरा परिवार गोलियों के असर से गहरी नींद में सो जाता लेकिन सुबह जब वे लोग उठते तो सब का सिर भारी होता.

एक दिन गायत्री की मां रामश्री की रात को नींद खुल गई. उस दिन मां ने गायत्री और रंजीत को रंगे हाथों पकड़ लिया. इस पर घर वालों ने गायत्री की पिटाई कर दी. इस के बाद गायत्री के लिए रिश्ते की तलाश होने लगी. आखिर उन्होंने गायत्री की शादी संजीव से कर के राहत की सांस ली. हालांकि गायत्री ने इस शादी का विरोध किया था लेकिन घर वालों ने उस की एक नहीं सुनी थी.

बेटी की शादी के बाद सब निश्चिंत थे, लेकिन शादी के बाद भी गायत्री के नाजायज संबंध रंजीत से बने रहे. एक दिन रंजीत उस की ससुराल भी पहुंच गया. गायत्री ने उसे अपना दूर का रिश्तेदार बताया. ससुराल वालों ने भी मान लिया, लेकिन बाद में दूर के इस रिश्तेदार का कुछ ज्यादा ही आनाजाना होने लगा तो ससुराल वालों ने आपत्ति जताई.

गायत्री नहीं चाहती थी कि यह बात मायके वालों तक जाए. अत: उस ने अब अपना पुराना फारमूला अपनाया. वह ससुरालियों को भी रात के खाने में नींद की गोलियां देने लगी. इस तरह वह ससुराल में भी बेखौफ इश्क लड़ाती रही. गायत्री यह जानती थी कि ऐसा हमेशा नहीं चल सकता.

अब संजीव को भी उस पर शक होने लगा था. उस ने साफ शब्दों में कहा कि अगर अब कभी उस ने रंजीत को घर में देखा तो बुरा होगा. गायत्री पर ससुराल में भी लगाम लगनी शुरू हो गई तो वह परेशान हो उठी. उसे अपना पति ही दुश्मन लगने लगा.

एक दिन गायत्री ने तय किया कि संजीव से छुटकारा पाने के बाद ही वह प्रेमी से बेखौफ मिल सकती है. इस बारे में उसे रंजीत से बात की. दोनों ने तय किया कि संजीव को ठिकाने लगा कर वे कहीं दूर जा कर दुनिया बसा लेंगे.

गायत्री को शादी के डेढ़ साल बाद भी बच्चा नहीं हुआ था. गायत्री ने एक दिन अपनी सास से कहा कि एटा में एक अच्छा डाक्टर है. उस के इलाज से कई औरतों को बच्चा हुआ है. गायत्री ने सास से अपना इलाज उसी डाक्टर से कराने की बात कही. सास ने सोचा, अगर बच्चा हो गया तो गायत्री का मन भी घर में रमने लगेगा. अत: उस ने एटा के डाक्टर से इलाज कराने की इजाजत दे दी. गायत्री को कोई इलाज वगैरह नहीं कराना था, बल्कि यह उस का पति को ठिकाने लगाने का एक षड्यंत्र था.

लिखी जाने लगी हत्या की पटकथा

अब गायत्री का खुराफाती दिमाग काम करने लगा. उस ने पति के नाम मौत का वारंट जारी कर दिया और इस के लिए 13 मई, 2018 का दिन भी तय कर दिया. मौत की इस दस्तक से पूरा परिवार बेखबर था. पूरे घटनाक्रम की कहानी मोबाइल पर तय हो गई थी.

अपने इस काम में रंजीत ने रिजौर के ही रहने वाले अपने दोस्त राजेश उर्फ पप्पू को भी मिला लिया.

13 मई को गायत्री अपने पति संजीव के साथ बाइक नंबर यूपी 83एएल 6985 से एटा के लिए निकली. उस ने प्रेमी रंजीत को अपने एटा जाने की सूचना दे दी. रंजीत अपने दोस्त राजेश के साथ रिजौर से एटा पहुंच गया. इस के बाद न तो बहू और न ही बेटा घर वापस लौटे.

शाम तक जब दोनों घर नहीं लौटे तो पूरा परिवार चिंतित हो गया. उन्होंने एका थाने के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को सूचना दे दी और अपने सभी रिश्तेदारों से भी फोन द्वारा पूछा. उन्होंने गायत्री के घर वालों को भी बता दिया था.

दोनों का फोन भी स्विच्ड औफ था. रोरो कर घर वालों का बुरा हाल था. इधर मायके वाले परेशान थे कि कहीं गायत्री ने ही तो कुछ नहीं कर डाला. गायत्री और संजीव के गुम होने की सूचना अन्य थानों को भी दे दी गई थी.

18 मई, 2018 को रिजौर के चौकीदार रमेश को किसी ने बताया कि कुरीना दौलतपुर मोड़ के पास जैन फार्महाउस के खेत में एक युवक की लाश पड़ी हुई है. चौकीदार ने तुरंत इस की सूचना रिजौर के थानाप्रभारी जितेंद्र सिंह भदौरिया को दी. थानाप्रभारी तुरंत मौके पर पहुंचे.

उन्हें वहां एक युवक की लाश मिली, जिस की गला रेत कर हत्या की गई थी. मौके पर काफी भीड़ इकट्ठा हो गई थी लेकिन शव को कोई नहीं पहचान पाया. कुछ दूरी पर पुलिस को एक मोबाइल फोन मिला जिस में मिले नंबर पर काल की गई तो पता चला कि मोबाइल रंजीत नाम के व्यक्ति का है. लेकिन उस के परिवार वालों ने जब लाश देखी तो कहा कि वह उन का बेटा नहीं है.

रंजीत और गायत्री की हकीकत आई सामने

जब लाश रंजीत की नहीं थी तो उस का मोबाइल वहां क्यों मिला. यह बात कोई नहीं समझ पा रहा था. इसी बीच सोशल मीडिया पर लाश का फोटो वायरल हो गया तो सोनेलाल ने एका थाने से संपर्क किया. पता चला कि जैन फार्महाउस रिजौर में मिलने वाली लाश उन के बेटे संजीव की है. संजीव के घर वाले समझ गए कि जरूर इस हत्या में गायत्री का हाथ है. उन्होंने रिजौर थानाप्रभारी को सारी बात बता दी.
गायत्री का भाई और पिता भी रिजौर आ गए. उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि गायत्री ऐसा कर सकती है. मौके पर संजीव की बाइक भी बरामद हो गई थी, लेकिन गायत्री का कोई अतापता नहीं था.

रिजौर थानाप्रभारी ने मुखबिरों का जाल फैला दिया. पुलिस को गायत्री और रंजीत के प्रेम संबंधों का भी पता चल चुका था. रंजीत भी घर से गायब था. अत: अब पुलिस उन दोनों की तलाश में लग गई. अगले दिन संजीव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई. जिसे देख कर पुलिस चौंक गई. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि युवक ने नशे का सेवन किया था. पूछताछ करने पर पता चला कि संजीव तो नशा करता ही नहीं था.

इसी बीच 18 मई, 2018 को मुखबिर की सूचना पर पुलिस ने प्रेमी युगल को बख्शीपुर तिराहे से गिरफ्तार कर लिया. दोनों किसी वाहन का इंतजार कर रहे थे. थाने ला कर गायत्री और रंजीत से पूछताछ की गई. गायत्री ने बताया कि वह तो रंजीत से प्यार करती थी. उसे जबरन प्रेमी से दूर कर के संजीव के गले बांध दिया गया. इसलिए उस ने उस से छुटकारा पाने का निश्चय कर किया. उस ने बताया कि उस ने रंजीत से पूर्व में शादी कर ली थी लेकिन पुलिस को वह शादी की कोई साक्ष्य नहीं दे पाई.

रंजीत ने भी अपना गुनाह कबूल करते हुए कहा कि पिछले 2-3 सालों से वह और गायत्री एकदूसरे से प्यार करते थे और शादी भी करना चाहते थे लेकिन गायत्री के घर वाले इस के लिए राजी नहीं हुए. गायत्री की शादी के बाद भी वे दोनों अलग नहीं रह पाए और आखिर संजीव को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया.

गायत्री के प्यार की भेंट चढ़ा संजीव

उस दिन जब गायत्री अपने पति के साथ एटा पहुंची तो रास्ते में उस ने बाइक रुकवाई. मौका पा कर वह बोतल में भरे पानी में नींद की गोलियां मिला चुकी थीं. वही पानी उस ने पति संजीव को पीने को दिया. जिस जगह पर बैठ कर उस ने पानी पिया था कुछ ही देर में वह वहीं पर बेहोश हो गया.

तभी रंजीत अपने दोस्त के साथ वहां पहुंच गया. राजेश ने संजीव की बाइक संभाली और वह और गायत्री बेहोश हो चुके संजीव को आटो में डाल कर कुरीला गांव के पास दौलतपुर मोड़ पर ले आए. आटो वाले को पैसे दे कर उन्होंने वापस भेज दिया.

तभी राजेश भी वहां आ गया, फिर वे लोग संजीव को जैन फार्म हाउस के खेतों में ले आए. जहां गायत्री ने खुद चाकू से अपने पति का गला रेत दिया. इस के बाद राजेश अपने घर चला गया और वह दोनों एटा घूमते रहे. दोनों दिल्ली भाग जाना चाहते थे पर पैसों का इंतजाम करना था, इस से पहले कि वे एटा छोड़ पाते पुलिस के हत्थे चढ़ गए.

गायत्री के मायके वालों को जब पता चला कि उन की बेटी ने खुद अपना सुहाग मिटा डाला है तो वे हैरान रह गए. उन्होंने कहा कि अब गायत्री से उन का कोई संबंध नहीं है. उसे उस की करनी की सजा मिलनी ही चाहिए.

संजीव के घर वाले दुखी हैं, उन्होंने तो सोचा तक नहीं था कि वह अपने सीधेसादे बेटे को खो देंगे. पुलिस ने भादंवि की धारा 302, 120बी के अंतर्गत तीनों को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक उन की जमानत नहीं हुई थी.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

स्वरूपिनी: निहारिका चेन्नई से कौन सी खूबसूरत याद लेकर आईं?

निहारिका अपने भाई के साथ चेन्नई गई तो उसे अपनी बचपन की दोस्त स्वरूपिनी मिली. अपनी दोस्ती की याद में जिस टौय कार को इन दोनों ने इतने साल संजो कर रखा था उस का राज वर्षों बाद खुला. क्या था वह राज? मैं यानी निहारिका दिल्ली में रहती हूं और यहां एक कंपनी में काम करती हूं. 2 साल ही हुए हैं मु?ो नौकरी मिले हुए. पहले के एक साल कोरोना के चलते मैं वर्क फ्रौम होम कर रही थी.

अब एक साल से मु?ो रोजाना औफिस आना पड़ता है. यों तो मु?ो अपना काम बहुत पसंद है पर आजकल इस में मेरा मन नहीं लग रहा. आज भी बड़े बेमन से औफिस आई और अपनी सीट पर बैठ गई. मन तो लग नहीं रहा था, बस, ऐसे ही थोड़ाबहुत काम कर के लंचटाइम तक का वक्त गुजारा. लंच होते ही मैं खुश हो गई कि चलो आधा दिन तो निकल गया, तभी मेरे भैया का फोन आ गया. वे नोएडा में रहते हैं. वे मेरे सगे भाई नहीं हैं. मेरी मौसी के बेटे हैं पर प्यार मु?ा से सगी बहन से भी ज्यादा करते थे. मैं ने फोन उठाया और बातें करतेकरते पूरा लंच ब्रेक ही खत्म होने को आया. फोन रखते हुए भैया ने पूछा, ‘‘सुन छोटी, मैं अगले हफ्ते चेन्नई जा रहा हूं.

वहां कुछ काम है. तू अगर इतनी बोर हो रही है तो चल मेरे साथ. काम खत्म होने के बाद मैं तु?ो चेन्नई घुमा दूंगा. वैसे भी अगले हफ्ते वीकैंड के साथ फ्राइडे का भी औफ है. पहले दिल्ली आ कर तु?ो ले लूंगा, फिर साथ में चलेंगे. फ्राइडे मौर्निंग जाएंगे, सनडे इवनिंग तु?ो घर पर छोड़ दूंगा.’’ ‘‘भैया, चलना तो मैं भी चाहती हूं पर मम्मीपापा पता नहीं मानेंगे या नहीं. यहीं आसपास की बात होती तो कोई बात नहीं. चेन्नई थोड़ी दूर है और आप तो जानते ही हैं कि वे मेरी कितनी ज्यादा चिंता करते हैं.’’ ‘‘उन से तो मैं ने पहले ही बात कर ली है, छोटी. वे मान गए हैं,’’ भैया ने कहा. ‘‘थैंक्यू सो मच, भैया तो फिर अगले हफ्ते चलते हैं.’’ उस रात को जब मैं अपने घर की बालकनी में खड़ी थी, तब ही उस का ध्यान आया.

वह भी तो चेन्नई से ही थी मेरी सब से अच्छी दोस्त पर एक दिन बस इस चीज को मु?ो पकड़ा कर यों अचानक ही चली गई. कितनी याद आती है आज भी, जब उस के बारे में सोचती हूं. तभी तो आज तक इसे अपने बैग से लगाए घूम रही हूं. आज चेन्नई के बारे में बात होते ही उस से जुड़ी सारी यादें ताजा हो गईं. जब वहां जाऊंगी तो उस की कितनी याद आएगी. यह सब सोचते हुए और उस चीज को पकड़े हुए कब बालकनी के सोफे पर सो गई, पता ही न चला. अगले हफ्ते बुधवार को ही भैया आ गए और शुक्रवार की सुबह हम चेन्नई के लिए रवाना हो गए. करीब 12 बजे हम चेन्नई पहुंच गए. एयरपोर्ट पर ही भैया के नाम की नेमप्लेट लिए एक शख्स खड़ा था. वह हमें एक बहुत ही सुंदर से रिसौर्ट में ले गया. रिसोर्ट आते वक्त मैं ने समंदर और बीच देखे थे. मैं ने तभी भैया से कहा था कि यहां हम जरूर आएंगे.

रिसोर्ट में आते ही भैया के औफिस से फोन आया और मु?ो वहां छोड़ कर वे अपने काम पर चले गए. मैं ने उस के बाद रिसोर्ट घूमा और शाम तक वहां पास में ही एक बुक कैफे में बुक्स पढ़ती रही. तभी भैया का फोन आया कि उन का काम खत्म हो गया है और वे मेरा रिसोर्ट के गेट पर इंतजार कर रहे हैं. मैं थोड़ी देर में ही वहां पहुंच गई और हम उस बीच पर जाने के लिए निकल पड़े, जो सुबह यहां आते समय देखा था. उस बीच के पास ही बहुत सुंदर मेला भी लगा हुआ था. मैं वहां से कुछ सामान ले रही थी, तभी पीछे से एक आवाज आई, ‘‘रानी… रानी, सुनो. वहीं रहो, मैं आ रही हूं.’’ यह सुन कर मैं हैरान हो गई कि मु?ो कौन इस नाम से बुला रहा है. यह नाम तो मेरा कोई भी नहीं जानता और दादी के अलावा तो कोई भी इस नाम से मु?ो बुलाता भी नहीं है. यह नाम तो भैया को भी शायद ही पता होगा.

मैं अभी सोच ही रही थी कि वही आवाज फिर पीछे से आई. मैं ने पीछे की ओर मुड़ कर देखा तो एक थोड़ी हैल्दी सी लड़की मेरी तरफ जल्दीजल्दी चलती हुई आ रही है और मु?ो रुकने को कह रही है. जैसे ही वह मेरे पास आई तो मैं ने पूछा कि आप कौन हैं? ‘‘मु?ो पहचान नहीं पाई हो क्या तुम?’’ मैं ने कहा, ‘‘नहीं.’’ ‘‘देखो, तुम्हारे बैग पर जो चीज लगी है, वैसी ही मेरे पास भी है.’’ यह देख कर तो मु?ो विश्वास ही नहीं हुआ, क्योंकि वह कोई आम चीज तो है नहीं कि सब के पास हो या किसी भी दुकान पर आसानी से मिल जाए. यह तो केवल 2 ही हैं. एक, उस के पास और एक मेरे पास.

अभी मैं सोच ही रही थी कि उस ने पूछा, ‘‘क्या सोच रही हो?’’ ‘‘कुछ नहीं,’’ और कहा, ‘‘स्वरूपिनी, तुम इतने सालों बाद…’’ ‘‘हां, मैं तुम्हारी दोस्त स्वरूपिनी. अब पहचान गई न मु?ो. विश्वास ही नहीं हो रहा कि तुम इतने सालों बाद कैसे? और तुम ने मु?ो पहचान कैसे लिया?’’ ‘‘बस, इस चीज के ही कारण. मैं ने तुम्हें भीड़ में भी पहचान लिया. मैं बहुत बार दिल्ली में वहां पर गई थी, जहां हम पहले रहते थे. पर पता चला कि तुम भी कहीं और चली गई हो.’’ ‘‘हां, तुम्हारे वहां से अचानक जाने के बाद मेरे मम्मीपापा ने भी कहीं और घर ले लिया था.’’ तभी स्वरूपिनी बोली, ‘‘याद है तुम्हें कि हम बचपन में साथ में कितना खेलते थे?’’ ‘‘हां, पर तुम्हारे पापा ने अचानक ट्रांसफर ले लिया था, क्योंकि तुम्हारे दादा की तबीयत ठीक नहीं रहती थी और तुम्हें वहां उन के पास जाना पड़ा था.’’

‘‘हां, इस वजह से अप्पा ने अपना ट्रांसफर हमारे होमटाउन चेन्नई में लिया था. ‘‘देखो, उस के बाद आज मिलना हुआ है,’’ तभी स्वरूपिनी ने पूछा, ‘‘वैसे, तुम बताओ रानी कि तुम यहां चेन्नई में क्या कर रही हो?’’ तभी मैं ने उसे भैया से मिलवाया. ‘‘इन के साथ इन के काम के लिए और थोड़ा घूमने के लिए आई थी.’’ स्वरूपिनी ने तभी वक्त देखा और कहा कि, ‘‘देख रानी, मु?ो अभी जाना होगा. कल ऐसा कर तू घर आ जा. पूरा दिन वहां आराम से बात करेंगे.’’ मैं ने कहा, ‘‘नहीं, तुम ही रिसोर्ट आ जाना. मु?ो यहां की भाषा नहीं आती तो तुम्हारे घर आने में दिक्कत होगी और भैया को भी अपने काम से जाना है. इसलिए तुम रिसोर्ट आ जाना.’’ उसे मैं ने रिसोर्ट का पता दिया और कहा कि चलो, कल मिलते हैं. मु?ो तो अभी भी यह यकीन नहीं हो रहा था कि मु?ो अपनी सब से अच्छी दोस्त से वापस मिलना हो पाया है. अगले दिन वक्त से पहले ही स्वरूपिनी रिसोर्ट पहुंच गई. आते ही उस ने सब से पहले मेरी अपने अम्माअप्पा से वीडियोकौल पर बात करवाई. फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया. पिछले 15 वर्षों की बातें सब आज एकदूसरे को बता रहे थे. बातों ही बातों में स्वरूपिनी ने पूछा कि इतने सालों में तुम ने मु?ो फोन क्यों नहीं किया? मैं ने कहा कि तुम्हारा नंबर ही कहां था. उस सुबह जब मैं स्कूलबस का इंतजार कर रही थी, मेरे पास तुम भागीभागी आई थीं.

मु?ो यह टौय कार थमा कर और इतना ही कह कर चली गई कि तुम्हारे अप्पा ने तुम्हारे शहर चेन्नई में ही ट्रांसफर ले लिया है और तुम्हें अभी जाना पड़ रहा है. ‘‘हां रानी, उस से एक रात पहले दादा की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी. तभी अप्पा ने अचानक चेन्नई ट्रांसफर होने का फैसला किया. हम जरूरत का सामान ले कर अगली सुबह चेन्नई के लिए निकल पड़े.’’ ‘‘अच्छा रानी, तुम ने इतने वर्षों में मु?ो एक फोन भी नहीं किया. याद नहीं किया क्या मु?ो?’’ ‘‘मैं ने कहा न कि तुम्हारा नंबर नहीं था मेरे पास.’’ ‘‘क्या बात कर रही हो, रानी? नंबर तो मैं तुम्हें दे कर गई थी.’’ ‘‘तुम मु?ो बस यह टौय कार पकड़ा कर गई थीं.’’ ‘‘हां तो इसी में तो था न मेरा नंबर.’’ ‘‘इस छोटी सी टौय कार में?’’ ‘‘हां बाबा, इस में. तुम ने इसे खोल कर कभी देखा नहीं क्या?’’ ‘‘क्या यह खुलती भी है?’’ ‘‘हां, तुम्हें याद होगा, जब मेरे अप्पा ने नई गाड़ी ली थी, तब उस शोरूम के मालिक ने उस गाड़ी की जैसी मु?ो 2 टौय कारें भी दी थीं. यह लाल वाली मैं ने तुम्हें दी थी और हरी वाली मेरे पास है. यह देखो.’’

‘‘हां, यह तो मु?ो पता है पर यह खुलती है, यह मु?ो पता नहीं है.’’ ‘‘हां, इसलिए तो इस में अपना नंबर मैं ने एक परची में लिख कर रख दिया था और तुम्हें इस को पकड़ा कर चली गई थी. सोचा कि तुम्हें जैसे ही मेरा नंबर मिल जाएगा, तुम मु?ो फोन कर लोगी, रानी.’’ ‘‘मु?ो तो इतने वर्षों में पता ही नहीं चला कि यह टौय कार खुलती भी है.’’ ‘‘लाओ, अपनी गाड़ी मु?ो दो. मैं खोल कर दिखाती हूं.’’ स्वरूपिनी ने जैसे ही उसे खोला. उस में से एक छोटी सी परची निकली, जिस पर उस ने अपना नंबर लिख रखा था. उस ने कहा कि यह वही नंबर है, जो उस ने कल रात मु?ो दिया था. ‘‘पता है रानी, तुम्हारे फोन का मैं ने कितना इंतजार किया, इसलिए आज तक अपना नंबर मैं ने नहीं बदला.’’ ‘‘मु?ो माफ करना स्वरूपिनी, मु?ो नहीं पता था कि इस गाड़ी में ही तुम्हारा नंबर है. पता है, तुम्हारे जाने के बाद तो कोई दोस्त भी नहीं बना पाई. पता होता कि तुम्हारा नंबर इस में ही है तो इतने वर्ष तुम्हारा इंतजार करने के बजाय तुम्हें रोज फोन कर के घंटों बात करती.’’ ‘‘छोड़ो रानी, जो होना था हो गया. अब हम कभी भी एकदूसरे से दूर नहीं जाएंगे. अब हम कहीं भी रहें पर एकदूसरे के संपर्क में रहेंगे.’’

‘‘मेरा तो वैसे भी अपने पति के काम के सिलसिले में दिल्ली आनाजाना लगा ही रहता है. हम तब मिल भी लिया करेंगे.’’ मैं स्वरूपिनी की ये सब बातें सुन कर रोने लग गई तो वह कहने लगी कि चलो, अब जो हो गया उसे छोड़ दो. अब तो हम मिल ही गए न. फिर हम यों ही और काफी देर तक बातें करते रहे. आज इस बात को 3 वर्ष हो गए हैं. अब मैं और स्वरूपिनी रोज ही बात करते हैं. अब जब भी वह दिल्ली आती है, मु?ा से मिले बिना नहीं जाती. सच में मेरी चेन्नई की यह यात्रा तो बहुत ही यादगार रही. इस ने मु?ो मेरी वर्षों पुरानी दोस्त से जो मिला दिया और मु?ो अब यह भी तो सम?ा आ गया था कि क्यों उस सुबह वह मु?ो टौय कार दे कर गई थी. मैं आज भी भैया को धन्यवाद बोलती हूं कि वे मु?ो अपने साथ चेन्नई ले गए, वरना मैं तो शायद कभी भी अपनी दोस्त से दोबारा मिल ही न पाती.

बोनसाई-भाग 1: सुमित्रा अपनी बात को रखते हुए क्या कहीं थी?

दरवाजा खोलते ही एक संभ्रात सी महिला को सामने खड़ा देख मैं अचकचा गई. समझ नहीं पा रही थी बिना उस का मंतव्य जाने कैसे उस का सत्कार करूं. तभी पीछे से एक अर्दलीनुमा आदमी हाथों में गमला थामे आगे आया तो मेरी सोच के घोड़े की लगाम अपनेआप ही कस गई.

‘आप…मिसेज गुप्ता?’

‘ठीक पहचाना आप ने. इधर रख दो गमला. हां, अब जाओ, नीचे इंतजार करो.’ मिसेज गुप्ता ने नौकर को आदेश दे कर रवाना कर दिया तो मुझे अपने कर्तव्य का भान हुआ. मैं उन्हें ससम्मान अंदर ले आई. वे मेरी छोटी किंतु कलात्मक ढंग से सजी बैठक का मुआयना करने में व्यस्त हो गईं तो मैं भी अवसर का लाभ उठा चायनाश्ता तैयार कर लाई.

‘आप की कलात्मक अभिरुचि ने मुझे सम्मोहित कर दिया है,’ मिसेज गुप्ता कुछ ज्यादा ही प्रभावित नजर आ रही थीं.

‘अरे कहां, अब तो मुझ से ज्यादाकुछ हो ही नहीं पाता. ये सब तो बेटियों ने बनाया और सजाया है. मैं तो समझ लीजिए अपनी हर तरह की विरासत उन्हें सौंप कर सेवानिवृत्त हो गई हूं.’

दो महिलाओं में बातों का सिलसिला चल निकला तो फिर लंचटाइम हो जाने तक चलता ही रहा. तब तक हम दोनों एकदूसरे के घरपरिवार, पसंदनापसंद आदि के बारे में पर्याप्त जानकारी जुटा चुकी थीं. मैं ने उन से लंच के लिए रुकने का आग्रह किया पर वे पर्स संभालती बाहर निकल आईं. बाहर रखे गमले को देख उन्हें फिर कुछ याद आ गया. ‘मैं तो इस बोनसाई को धन्यवाद कहूंगी जिस की वजह से मुझे आप जैसी प्यारी सहेली मिलीं.’

‘अरे, आप तो मुझे शर्मिंदा कर रही हैं. दरअसल, पेड़पौधों से मेरा कुछ ज्यादा ही लगाव है. और वह बोनसाई तो मुझे सब से ज्यादा प्रिय था. इसीलिए उस के टूट जाने से मैं इतना आहत हो गई थी और अनजाने ही वह सबकुछ बोल बैठी थी.’ मैं वाकई शर्मिंदा थी.

‘एक बार तो सारी बात जान-सुन कर मुझे भी बुरा लगा था. लेकिन इस पौधे की सारसंभाल कर मुझे वाकई आप की भावनाओं का एहसास हुआ है क्योंकि महीनों इस की सारसंभाल कर मैं खुद इस से एक जुड़ाव महसूस करने लगी थी. आज आप की अमानत आप को सुपुर्द कर मैं अद्भुत आत्मतुष्टि अनुभव कर रही हूं.’

‘आती रहिएगा.’

‘बिलकुल. और जब भी गाड़ी भेजूं, आप को आना होगा.’

मिसेज गुप्ता चली गईं तो मैं ने उन के लाए बोनसाई को प्यार से सहलाया. आंखों के सम्मुख कुछ महीनों पहले का घटनाक्रम साकार हो उठा. नीचे खेलते बच्चों की बौल के एक ही आघात से मेरा सब से प्यारा गमला चकनाचूर हो गया तो मैं खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाई थी. ‘मुझे ऐसा का ऐसा गमला और उस में अपना इतना ही बड़ा किया हुआ बोनसाई चाहिए.’ मैं ने नीचे सहमे खड़े हुए बच्चों को फटकार लगाई तो बच्चों के बीच खड़े एक सज्जन सीढ़ियां फलांगते ऊपर आ गए थे.

‘आप का गुनाहगार मैं हूं. किसी काम के सिलसिले में इधर आया था. बच्चों को खेलते देखा तो खुद को रोक नहीं पाया. बैटिंग करने लगा. सौरी, मुझ से आप का गमला टूट गया. मैं आप से वादा करता हूं कि ऐसा ही बोनसाई, इतना ही बड़ा कर के, आप को ला कर दूंगा.’ मिसेज गुप्ता के सुपुत्र राहुल से वह मेरा पहला परिचय था.

मैं कुछ बोल नहीं पाई थी. बस, अवाक सी उन्हें लौटते देखती रही थी. तब कहां सोचा था कि एक दिन गमला इस तरह सचमुच वापस मिलेगा और वह भी एक इतनी प्यारी सहेली के साथ.

शाम को बच्चियां घर लौटीं तो मैं ने उन्हें पूरा वाकेआ सुनाया. वे सुन कर खुश ही हुईं, ‘चलो जो हुआ, अच्छा ही हुआ. इसी बहाने आप को एक अच्छी सहेली तो मिल गई. वरना, आप ने तो अपनेआप को सब से काट कर ही रख लिया है.’

मैं क्या कहती. मैं ने खुद को सब से काट लिया है या सभी ने हमें ही बहिष्कृत सा कर दिया है.

 

चुनौतियां-भाग 3: गुप्ता परिवार से निकलकर उसने अपने सपनों को कैसे पूरा किया?

20 दिन कैसे बीत गए, पता ही नहीं चला. चंडीगढ़ के लिए जब मैं प्लेन में बैठी तो आईएमए में सिखाई गई एकएक बात याद आने लगी. साम, दाम, दंड, भेद का प्रयोग करते हुए हमें अपनी लड़ाई खुद लड़नी है. भारतीय सेना बहुत अनुशासनप्रिय है. आप अफसर हैं. आप को ‘लीड फ्रौम द फ्रंट’ से काम करना है. आप को उन के वैलफेयर और अपने काम से प्रभावित करना है. आप को ध्यान रखना है कि आप के अंडर काम करने वाले जवान, जूनियर अफसर ठीक से काम करते हैं या नहीं.

उन को समय पर छुट्टी मिली है या नहीं. वे ठीक से रह रहे हैं या नहीं. उन को ठीक से खाना मिलता है या नहीं. या उन के व्यक्तिगत जीवन की समस्याएं जो उन के काम पर प्रभाव डाल रही हों, हल करनी हैं. यह सब हमारी डयूटी में आएगा.इतने में मोबाइल की घंटी बजी. प्लेन में बैठते ही मैं ने मोबाइल फ्लाइट मोड पर कर लिया था, ‘ हैलो.’‘मैम, जयहिंद. मैं चंडीगड़ से रीयर इंचार्ज सूबेदार राम सिंह बोल रहा हूं.’
‘जयहिंद, हां साहब, कहिए.’ किसी जूनियर अफसर से बात करने का यही तरीका था. उन को साहब कर के बुलाने की परंपरा है. चाहे हम जवानों और जूनियर अफसरों से सैल्यूट लेने का हक रखती हों.

‘मेरा मोबाइल नंबर आप के पास आ गया है, मैम. जैसे ही आप चंडीगढ़ में लैंड करें, कृपया मोबाइल करें. मैं आप को एयरपोर्ट पर लेने आ जाऊंगा.’‘ ठीक है, साहब.’‘ जयहिंद, मैम.’‘ जयहिंद.’
चंडीगड़ पहुंचने में हमें एक घंटा लगा. लैंड करते ही मैं ने सूबेदार को फोन किया. वे मुझे लगेज मिलने वाली जगह पर मिलेंगे. मैं ने उन को बता दिया था कि एक बक्सा और बैडहोल्डाल है.लगेज वाली जगह पर एक जवान और सूबेदार ट्रौली पर मेरा सामान ले कर खड़े थे. दोनों ने मुझे सैल्यूट किया. आधे घंटे बाद मुझे चंडीगढ़ ट्रांजिट कैंप छोड़ दिया गया. उन्होंने मुझे वे सारी चीजें दे दीं जो लेह में लैंड करते ही पहननी थीं. पहन कर ही उतरना था.

कैंप के अफसर मैस के औफिस में मैं ने अपना मूवमैंट और्डर दिया. वहां बैठे क्लर्क ने मेरा अभिवादन किया. एक जवान को बुलाया और मेरा सामान रूम नंबर 2 में रखने को कहा. मुझे बोला, ‘आप इस समय अकेली महिला अफसर हैं. मैं अभी थोड़ी देर में सारा शैडयूल ले कर हाजिर होता हूं. जयहिंद, मैम.’
जयहिंद का जवाब दे कर मैं कमरा नंबर 2 में चली आई. कमरा सुंदर और आधुनिक था. 2 अफसरों के ठहरने के लिए बनाया गया था. 2 पलंग, ड्रैसिंग टेबल, पलगों पर मच्छरदानी लगाने के लिए लोहे की रौड का सेट लगा हुआ था. बाशरूम भी आधुनिक और पूरी सुविधाओं से लैस था. केवल साबुन, शैंपू खुद का प्रयोग करना था.

 

वह अकेली नहीं है-भाग 2 : मौसमी औऱ कबीर का क्या रिश्ता था?

घबराहट से मौशमी के हाथों से मोबाइल छूट गया. ‘अब किसे बुलाऊं?’ तभी कुछ सोच कर उस ने अपने घर के पास रहने वाले अपने औफिस के हमउम्र सहकर्मी अनुराग को फोन लगाया और उसे सबकुछ बताया.

अनुराग मिनटों में उस के घर पहुंच गया और उस ने रोतीकराहती प्रीशा को गाड़ी में लिटा कर ड्राइव करते हुए एक बढ़िया अस्पताल की ओर गाड़ी मोड़ दी.

मौशमी घबराहट से धुकधुक करते दिल से दर्द से बेहाल रोती हुई बेटी को चुप कराने में लगी थी.

अस्पताल पहुंचते ही एमर्जेंसी वार्ड में डाक्टरों की टीम प्रीशा को चैक करने लगी. कुछ ही देर में एक सीनियर डाक्टर ने आ कर अनुराग और मौशमी से कहा, “आप की बिटिया के दोनों पैरों के घुटनों में मल्टिपल फ्रैक्चर हैं. उन का मेजर औपरेशन अभी करना पड़ेगा. आप वेटिंग लाउंज में वेट करिए. टैंशन मत लीजिए. सबकुछ अच्छा होगा.”

मौशमी औपेरेशन थिएटर के सामने वेटिंग लाउंज में पड़े एक रिक्लाइनर पर लेट गई. मन में खयालों का बवंडर चल रहा था.

‘प्रीशा का औपरेशन सफल हो जाए तो मैं अनाथालय के 2 बच्चों की पूरी पढ़ाईलिखाई स्पौंसर कर दूंगी. बस, वह अपने पैरों पर ठीकठाक खड़ी हो जाए.

‘उफ़, अगर औपरेशन के बाद उस के पांवों में लचक रह गई तो?

‘वह कभी चल ही नहीं पाई तो?

‘वह व्हीलचेयर पर हमेशा के लिए आ गई तो…’

मौशमी के जेहन में यों अनगिनत दुश्चिंताओं का लावा खदबदा रहा था और उस की आंखों से आंसू झर रहे थे.

उसे यों आंसू बहाते देख अनुराग उस के निकट आया और उस के कंधे थाम उस के आंसू पोंछ उस से बोला, “चिंता मत करो मौशमी. प्रीशा बहुत जल्दी ठीक हो जाएगी. आजकल ऐसे औपरेशन आम हैं. उस का औपरेशन करने वाले डाक्टर शहर के नामी डाक्टर हैं. प्रीशा सुरक्षित हाथों में है.”

अनुराग की ये बातें सुन मौशमी के आंसुओं का बांध टूट गया और वह अनुराग के कंधे से लग कर फूटफूट कर बिलख पड़ी.

प्रीशा के गिरने के बाद से ही वह मन ही मन घुट रही थी. बड़े भाई और देवर के घर आने के लिए साफसाफ मना कर देने पर वह बेहद बेबस महसूस कर रही थी. उस के शहर में बड़े भाई और देवर को छोड़ कर उस के परिचय के दायरे में कोई भी तो ऐसा नहीं था जो इस आड़े वक़्त में उस की ओर मदद का हाथ बढ़ा सकता. पति की मृत्यु के वक़्त इन दोनों के साथ संबंधों में कुछ कारणोंवश खटास आ गई थी, जिस की वजह से आज उन दोनों ने उस के बुरे वक़्त में उस का साथ नहीं दिया था. यह बात उसे रहरह कर खाए जा रही थी. साथ ही, इकलौती बेटी के ऊपर आई यह विपदा उसे शिद्दत से चिंतित कर रही थी, तभी उस ने अपने मोबाइल पर नज़र डाली. औपरेशन चलते हुए 3 घंटे बीत चुके थे. वह तेज चाल से वेटिंग लाउंज से निकल कर औपरेशन थिएटर के सामने पहुंच गई. औपरेशन थिएटर के बाहर लाल बत्ती अभी तक जल रही थी.

तभी वह भक्क से बुझ गई और कुछ ही देर में डाक्टरों की टीम बाहर आ गई.

“निश्चिंत हो जाइए मैडम, औपरेशन कामयाब रहा.”

“ओह डाक्टर, थैंक यू सो वेरी मच डाक्टर,” मौशमी ने दोनों हाथ जोड़ कर कृतज्ञतापूर्वक डाक्टर को शुक्रिया अदा किया.

अगले दिन भाई और देवर दोनों महज़ खानापूर्ति के लिए आधेआधे घंटे के लिए अस्पताल आए.

औपरेशन की पूरी रात और अगले दिन और रात अनुराग अपनी बीवी से शहर से बाहर जाने का बहाना बना कर उस के साथ पूरे दिन और रात रहा.

अस्पताल में लगभग एक सप्ताह के स्टे के दौरान अनुराग ने मौशमी को भरपूर मानसिक संबल दिया. इतना कि उस एक हफ्ते में वे दोनों खासे अच्छे मित्र बन गए.

वह अभी सालभर पहले ही मौशमी के सहकर्मी के रूप में डेपुटेशन पर उस के औफिस आया था.

अनुराग एक बेहद जिम्मेदार और समझदार, लेकिन तनिक स्वच्छंद प्रकृति का इंसान था. उसे शादी के बाद भी महिलाओं से गंभीर फ्लर्टिंग करने से गुरेज़ न था. अमूमन स्वच्छंद प्रकृति की महिलाएं उस की अतिआकर्षक, वाकपटु शख्सियत से आकर्षित हो उस के सामने बिछबिछ जातीं, लेकिन अनुराग ऐसी महिलाओं को तनिक भी भाव न देता. वह इस खेल का माना हुआ खिलाड़ी था. कोई महिला जितनी ज्यादा उस की इस किस्म की मंशा का प्रतिरोध करती, इस खेल में उसे उतना ही ज्यादा मजा आता.

जब से करीब वर्षभर पहले अनुराग डेपुटेशन पर उस के औफिस में आया था, वह पहले दिन से मन ही मन विधवा मौशमी के प्रति शिद्दत से आकर्षित था. उस को शुरू से ही वह भूरी आंखों और तीखे नयननक्श वाली कोमलांगी बहुत अच्छी लगी थी.

मौशमी दृढ़ चरित्र की, यथार्थवादी, मानसिक और भावनात्मक रूप से स्थिर महिला के तौर पर अपने औफिस में लोकप्रिय थी, जो पति की मृत्यु के बाद इश्कबाज, ओछी मानसिकता वाले पुरुषों के प्रति एक्स्ट्रा सजग हो गई थी. वह किसी को अपने ऊपर हाथ तक न रखने देती. पति की एक दुर्घटना में मृत्यु हो जाने के बाद वह उस की यादों के सहारे अपनी बेटी के साथ पूरी जिंदगी काटने का मानस बना चुकी थी.

अनुराग ने उस के स्वभाव की इस प्रवृत्ति को बहुत पहले भांप लिया था और इसलिए वह मौशमी से सुरक्षित फ़ासला बनाए रखता. मौशमी का सान्निध्य उसे बेहद भला लगता.

प्रीशा के अस्पताल प्रवास के बहाने उसे मौशमी को निकट से जानने का मौका मिला.

जैसेजैसे उसे मौशमी के साथ समय बिताने का मौका मिला था, वह उस से नज़दीकी बढ़ाना चाह रहा था, और इसी चाहत के चलते वह उस के निकट आता गया.

प्रीशा का अस्पताल प्रवास खत्म हुआ. उसे अस्पताल से घर आए दूसरा ही दिन था, कि उसे दोपहर बाद बहुत तेज बुखार आ गया.

माया की सच्चाई आएगी सबके सामने, जानें फिर क्या होगा ?

अनुपमा सीरियल में दिखाया जा रहा है कि इन दिनों सीरियल की पूरी कहानी छोटी अनु और माया पर आकर रूक गई है. जिसमें दिखाया जा रहा है कि माया अब तो कपाड़िया हाउस में रह रही है. छोटी अनु को पाने के लिए घिनौनी चाल चल रही है.

बीते दिन दिखाया गया कि माया कपाड़िया हाउस पहुंच जाती है और अनुपमा कहती है कि अगर तुमने 15 दिन में छोटी अनु का दिल नहीं जीता तो तुम्हें वापस कपाड़िया हाउस से बाहर जाना होगा, जिसपर माया राजी हो जाती है.

 

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ऐसे में बरखा और अंकुश अनुज को समझाते है कि कई बार घी ही नहीं सच भी टेढ़ी अंगुली से निकालना पड़ता है. ऐसे में अनुज माया का सच बाहर निकालवाने के लिए उनकी मदद लेता है.बरखा किसी तरह से माया के पति के बारे में जानने की कोशिश करती है.

लेकिन माया उसे कुछ भी बताने से साफ मना कर देती है, दूसरी तरफ अंकुश माया के बारे में ऐसी सच्चाई ढूंढकर लाता है जिसे जानकर सबलोग हैरान हो जाते हैं.

आने वाले एपिसोड में दिखाया जाएगा कि अंकुश माया की सच्चाई अनुज को बताएगा और वह दोनों इस बात को जानकर काफी ज्यादा हैरान हो जाएंगे कि ऐसा भी होता है क्या.  इतना ही नहीं सभी अनुपमा को भी कहते हैं कि माया से उसका सच निकलवाने की कोशिश करें.

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