उत्तर प्रदेश के जिला बागपत के थाना रमाला अतर्गत गांव बरवाला निवासी महेंद्र सिंह तोमर एक साधारण किसान था. महेंद्र सिंह तोमर के पास पहले केवल 9 बीघा ही जमीन थी. इस के अलावा उस के पास कुछ भैंसें व गाएं भी थीं. अपने बेटों नरेश, ओमवीर, विपिन, किशनपाल व यशपाल के साथ वह दिन भर खेती करता था तथा शाम को दूध बेचने के लिए शहर का रुख करता था.

महेंद्र के सभी बेटे खेतीबाड़ी व दूध बेचने के काम में उसी के साथ दिनभर काफी मेहनत करते थे, जिस से उन के घर का खर्च ठीक से चल रहा था. यह वर्ष 1980 के आसपास की बात है. इसी बीच महेंद्र को कुछ ऐसा लगा कि उस के सभी बेटे ख्ेतीबाड़ी के काम में दिनरात मेहनत करते रहते हैं जबकि यशपाल खेती की ओर कम ध्यान दे रहा है.

इस के लिए उस ने बेटे यशपाल को काफी समझाया और खेती के काम में अपने अन्य भाइयों की तरह ही जीतोड़ मेहनत करने को कहा था. मगर पिता की इन बातों का यशपाल पर कोई असर नहीं हुआ था. यशपाल अकसर अपने गांव के बड़ेबड़े किसानों के बारे में सोचता रहता था. इस के बाद वह जल्द ही कम मेहनत कर के अमीर बनने के सपने देखने लगा.

कुछ समय बाद यशपाल ने सोचा कि मेहनत कर के तो जल्दी ही अमीर आदमी नहीं बना जा सकता. इस के लिए उसे कोई तिकड़मबाजी करनी पडे़गी, जिस से वह बड़ा किसान व अमीर आदमी बन सके और ऐश की बाकी जिंदगी जी सके. आखिर कब तक वह खेतीबाड़ी व दूध बेचने के धंधे में अपना जीवन खपाएगा.

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