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देश में उम्र से पहले बूढ़े हो रहे हैं लोग

बढ़ती उम्र के साथ लोगों की शारीरिक और मानसिक क्षमता कमजोर होती है. त्वचा, हड्डियां, आंखें, याद्दाश्त सारी चीजें अपनी ढलान पर होती हैं. एक खास उम्र के पड़ाव पर आने के बाद ऐसी दिक्कतें आम हैं, पर बहुत से लोगों में बुढ़ापे के लक्षण सही उम्र से पहले ही दिखने लगते हैं. इसके पीछे प्रमुख कारण है खराब और अनहेल्दी डाइट, लाइफस्टाइल.

देखा जा रहा है कि गलत खानपान और जीवनशैली के कारण देश में लोग सही उम्र से पहले ही बूढ़े हो रहे हैं. आपको ये जानकर हैरानी होगी कि ऐसे लोगों की संख्या बाकी देशों के लोगों की तुलना में भारत में अधिक है. हाल ही में हुई एक स्टडी की माने तो भारत में अपनी खराब दिनचर्या और आदतों के कारण लोग शरीर से जल्दी बूढ़े हो रहे हैं.

हाल ही में प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट की माने तो भारत में जापान और स्वीट्जरलैंड की तुलना में लोगों में बुढ़ापे का लक्षण उम्र से पहले देखा जा रहा है. भारत में 60 साल से कम आयु वाले लोगों को उन समस्याओं से जूझना पड़ रहा है जो जापान में लोगों को 70 या 75 साल की उम्र में होती हैं.

शोध में शामिल एक शोधकर्ता ने इस स्टडी पर अपनी टिप्पड़ी करते हुए कहा कि लंबा जीवन एक इंसान के लिए अच्छा भी हो सकता है लेकिन कई बार यह आपके लिए परेशानी का सबक भी बन जाता है. अगर आप स्वस्थ हैं तो लंबा जीवन आपके लिए वरदान होगा लेकिन अगर आप कई बीमारियों से ग्रसित हैं तो यहीं जीवन आपके लिए दुखदायी बन सकता है.स्टडी में ये भी कहा गया कि जो लोग समय से पहले बूढ़े हो जाते हैं वो अपनी नौकरी जल्दी छोड़ देते हैं और स्वास्थ संबंधित समस्याओं पर उनका खर्च अधिक हो जाता है.

वैसे जानकारी के लिए बता दें, भारत में भले ही लोग जल्दी बूढ़ें हो रहे हो  लेकिन उनकी परिस्थिति दूसरे देशों की तुलना में आज भी बेहतर है. उदाहरण के लिए पापुआ न्यू गिनी में मात्रा 46 साल की उम्र में लोगों में बुढ़ापे के लक्षण देखे जा सकते हैं.

चुनौतियां-भाग 4: गुप्ता परिवार से निकलकर उसने अपने सपनों को कैसे पूरा किया?

इतने में औफिस क्लर्क एक लड़के के साथ चाय ले कर हाजिर हुआ. उस के हाथ में कुछ कागज भी थे. मुझे सैल्यूट किया और कहा, ‘लीजिए मैम, गरमागरम चाय पीजिए.’ उस ने बोलना चालू रखा, ‘मैम, 1 से 2 बजे के बीच लंच है. 5 बजे आप को यहीं कमरे में चाय मिलेगी. 7 से 8 बजे के बीच बार खुलेगा. आप अपनी पसंद की ड्रिंक ले सकेंगी कैश दे कर. रम, वाइन, व्हिस्की सब मिलेंगी. 8 से 9 बजे के बीच डिनर है.’
वह थोड़ी देर के लिए रुका, फिर बोला, ‘सुबह 6 बजे की आप की एयर इंडिया की फ्लाइट है. सुबह 3 बजे आप को चाय दी जाएगी. 4 बजे एयरपोर्ट के लिए स्टेशन वैगन लेने आएगी. ये रहे आप का मूवमैंट और्डर, एयर टिकट, बोर्डिंग पास, रिफ्रैशमैंट के लिए वीआईपी लौंज का 200 रुपए का कूपन. आप रिफ्रैशमैंट में अपनी मरजी का कुछ भी खा सकती हैं.’

किसी रिकौर्ड की तरह वह बोलता चला गया. मैं ने पूछा, ‘मेरे अलावा जाने वाला कोई और अफसर भी है.’
‘मैम, अभी तक तो कोई नहीं है. शाम 6 बजे तक जो भी आएगा, उन का नाम जोड़ दिया जाएगा. उस के बाद वाले अफसर अगले दिन जाएंगे. एयर इंडिया में बिजनैस क्लास में अफसरों के लिए केवल 4 सीटें रिजर्व होती हैं. आमतौर पर रोज 4 अफसर नहीं होते हैं. पोस्टिंग या सालाना छुट्टी जाने, आने वाले, अफसर ही ट्रांजिट कैंप में आते हैं. बाकी सब सीधे फ्लाइट पकड़ कर यूनिटों में चले जाते हैं.’
सैल्यूट कर के वह चला गया. मैं ने मां, बाऊ जी से बात की और अपने सहीसलामत पहुंचने की खबर दी. लंच के लिए अभी आधा घंटा बाकी था. मैं ने बूट उतार दिए और बक्से से चप्पल निकाल कर पहन ली और ऐसे ही पलंग पर लेट गई.

1 बजे खाना खाया और कमरे में आ गई. यूनिफौर्म उतारी, नाइट सूट पहना और दरवाजा बंद कर के लेट गई. पता नहीं कब आंख लग गई. कोई 5 बजे दरवाजा खटका, खोला तो मैस से चाय ले कर एक ब्वाय खड़ा था.‘मैडम, चाय.’मैं चाय की चुस्कियां अभी ले ही रही थी कि जो जवान मेरा सामान ले कर आया था, वही जवान एक सिग्नल कोर की कैप्टन साहिबा का सामान ले कर आया. नेमप्लेट पर संगीता सिंह लिखा था. मैं ने उठ कर उन का अभिवादन किया, हाथ मिलाया और चाय पीने बैठ गई. पीछेपीछे उन की चाय भी आ गई. दूसरी कुरसी पर बैठ कर वह चाय पीने लगी.

‘ मैं कैप्टन संगीता सिंह फ्रौम कोर औफ सिग्नल.’ कैप्टन साहिबा ने अपना परिचय दिया.
‘मैं लै. नीरजा गुप्ता फ्रौम ईएमई कोर,’ मैं ने भी अपना परिचय दिया.
‘लेह या कहीं आगे?’‘लेह की वर्कशौप में. और आप?’ मैं ने पूछा.‘मैं फौरवर्ड एरिया की सिगनल रैजिमैंट में. मैं छुट्टी से लौट कर आई हूं.’सुरक्षा कारणों से दोनों ही अपनी यूनिट और लोकेशन का नाम नहीं ले रही थीं. सेना में आपस में बात करने का यही तरीका था. पता नहीं कौन आसपास हमारी बातें सुन रहा हो. जाना दोनों को लेह ही था.

थोड़ी देर में सुबह वाला क्लर्क आया और कैप्टन संगीता सिंह को सुबह के लिए सारे डाक्यूमैंट दे गया. मेरे लिए अच्छा यह हुआ कि अब मैं कमरे में अकेली नहीं थी.कैप्टन साहिबा ने पूछा, ‘शौर्ट सर्विस कमीशन?’
‘नहीं मैम, स्थाई कमीशन. आईएमए से स्थाई कमीशन का हमारा पहला बैच था. आप मैम?’
‘मैं कंप्यूटर इंजीनियर हूं, शौर्ट सर्विस में आई थी. अब जा कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से स्थाई हुई हूं. आप तो मेंकैनिकल इंजीनियर होंगी, तभी आप ईएमई में गई हैं.’‘जी, शौर्ट सर्विस से स्थाई कमीशन में जाने से कुछ फर्क पड़ता है, मैम?’‘हां, हम 5 साल जूनियर हो जाते हैं. हमारी सीनियौरिटी तब से गिनी जाती है जब से हमें स्थाई कमीशन मिलती है.’

‘यह तो अन्याय है. इस के लिए आप को लड़ना चाहिए.’‘एप्लिकेशन दी है, और अफसरों ने भी दी हैं. देखो, क्या होता है?’अपने बारे में बताया कि वे होशंगाबाद, मध्य प्रदेश से हैं. उन का परिवार बिजनैस में है. मैं भी बिजनैस फैमली से हूं. पंजाब के अमृतसर की रहने वाली हूं. बस, इतनी ही बात हुई.‘चलो, बार खुल गया होगा, चल कर पैग लगाते हैं,’ कैप्टन संगीता ने कहा.‘आप शराब पीती हैं?’‘क्यों, आप नहीं पीतीं?’
‘नहीं, आईएमए में मीट डे के रोज शराब मिलती थी. पर मैं ने कभी नहीं पी थी.’‘अब पी लो. हम औरतों के लिए वाइन आती है. यहां भी मिलती है. हलकाहलका नशा होता है. कई अफसर तो व्हिस्की भी पीती हैं. पर मैं सिर्फ वाइन पीती हूं. पार्टियों में साथ भी दिया जाता है और होश में भी रहा जाता है. हमें मैस में भी साथ देना होता है और होश में भी रहना होता है, समझीं.’
‘जी.’

वह अकेली नहीं है-भाग 3 : मौसमी औऱ कबीर का क्या रिश्ता था?

मौशमी बेहद घबरा गई. उस ने आननफानन अनुराग को शाम को किसी अच्छे डाक्टर के साथ घर आने के लिए कहा. लेकिन उस दिन अनुराग किसी अति अर्जेंट काम के चलते औफिस में व्यस्त था. इस स्थिति में मौशमी ने औफिस के अपने एक जूनियर सहकर्मी कबीर से डाक्टर के साथ घर आने का अनुरोध किया.

कबीर मौशमी के साथ औफिस में बहुत लंबे समय से कार्यरत था. दोनों के मध्य स्वस्थ मैत्री भाव था.

डाक्टर ने प्रीशा को चैक कर के उस के एक घुटने में इंफैक्शन बताया.

उस रात प्रीशा का बुखार 103 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच गया.

“कबीर, क्या करें इस का बुखार तो डाक्टर की दवाई से भी नहीं उतर रहा. अब क्या होगा?”

“घबराइए मत मौशमीजी, चलिए, उस के माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखते हैं.”

प्रीशा तेज बुखार से बेहाल थी. देररात तक उस का बुखार नहीं उतरने की वजह से कबीर मौशमी के घर पर ही रुका. अगली सुबह अपने घर गया.

कबीर एक बेहद सहृदय, निश्च्छल मानसिकता का पुरुष था जिस के मन में महिलाओं के प्रति शिद्दत का सम्मान भाव था.

प्रीशा के घुटनों के इंफैक्शन को ठीक होने में पूरा माह लग गया.

अनुराग और कबीर प्रीशा की परिचर्या में मौशमी को सहयोग देने बारीबारी से उस के घर आते.

प्रीशा की बीमारी का यह दौर भी गुजर गया. बेटी की अस्वस्थता के इस दौर ने मौशमी को अनुराग और कबीर के रूप में 2 सच्चे दोस्त सौगात में दिए.

कबीर और अनुराग के कदमकदम पर उस का साथ देने से मौशमी की जिंदगी बहुत हद तक आसान हो गई.

समय अपनी ही चाल चलता गया. प्रीशा पूरी तरह स्वस्थ हो कर दौड़नेभागने लगी.

प्रीशा के स्वास्थ्य लाभ करते ही मौशमी ने औफिस जाना शुरू कर दिया.

मौशमी एक सीए थी और उसे औडिटिंग के काम के सिलसिले में कभीकभी शहर से बाहर भी जाना पड़ता था.

तो ऐसे मौकों पर वह प्रीशा को अपनी प्रौढ़ा मां की निगरानी में छोड़ कर जाती थी. उन्हीं दिनों मौशमी औडिटिंग के लिए एक सप्ताह के लिए अनुराग और कुछ अन्य सहकर्मियों के साथ जयपुर से बेंगलुरु गई हुई थी, कि तभी एक बार फिर से मौशमी की जिंदगी में बुरे वक्त ने दस्तक दी.

मौशमी की अनुपस्थिति में उस की मां को एक दिन गंभीर स्ट्रोक पड़ा. गनीमत यह रही कि स्ट्रोक के वक़्त प्रीशा मौशमी से वीडियोकौल पर बात कर रही थी.

उस स्ट्रोक की वजह से मां के दाहिने हाथपैरों में लकवा मार गया, उन की बोली चली गई और वे बेहोश हो गईं.

मौशमी ने अगले ही क्षण कबीर को उस की मां के पास घर पहुंच कर उन्हें अस्पताल पहुंचाने के लिए कहा, और स्वयं शाम की फ़्लाइट पकड़ रात तक घर पहुंच गई.

मां आईसीयू में भरती थीं.

आईसीयू में अचेतावस्था में बेहोशी की नींद सोती मां को देख वह बिलख पड़ी. उस की मां उस की लाइफ़लाइन थी. वह स्वयं अपनी मां की इकलौती बेटी थी. उस के पिता की मृत्यु भी उस के बचपन में ही हो गई थी, और मां ने अकेले दम पर उसे जिंदगी के झंझावातों से बचाते हुए अपने कलेजे से लगा कर पाला था.

मां को स्ट्रोक आए पूरा माहभर बीत चला. इतने वक़्त तक मां को बेहोशी की नींद सोते देख वह बेहद परेशान थी.

उस दिन औफिस से लौटते वक्त कबीर मां की जांच के लिए शहर के एक नामी डाक्टर को उस के घर ले कर आया. जब उस ने डाक्टर से पूछा, “डाक्टर इस बेहोशी की नींद से मां कब उठेगी?” तो वे बोले, “कुछ कहा नहीं जा सकता. वे अभी इसी क्षण उठ सकती हैं, और नहीं उठें तो बरसों लग सकते हैं.”

डाक्टर की यह बात सुनकर वह बेहद परेशान हो गई, और डाक्टर के जाते ही फूटफूट कर रोने लगी.

“आप यों हिम्मत हारेंगी तो कैसे चलेगा? हौसला रखिए मौशमीजी. चलिए, चुप हो जाइए. आप को रोते देखे प्रीशा परेशान हो जाएगी. वह पहले से ही मांजी की बीमारी से बेहद डिप्रैस्ड है.”

“कबीर, मुझे कितने इम्तिहान देने होंगे? मां की इस बेहोशी से मैं अपनी हिम्मत हार बैठी हूं. मां के बिना मैं कैसे जिंदा रहूंगी?”

“मौशमीजी, इतनी डिप्रैसिंग बातें मत करिए. देखना, मां बहुत जल्दी एकदम पहले की तरह ठीक हो जाएंगी, बोलने और चलनेफिरने लगेंगी.”

उन दिनों अनुराग औडिटिंग के लिए शहर से बाहर था.

शाम को मां का ब्लडप्रैशर चैक करने पर बहुत कम आया. डाक्टर आए और उन्होंने उन्हें चैक किया और उन के के लिए दवा बताई. मौशमी ने कबीर को फोन कर के उसे दवाई लाने के लिए कहा.

कबीर को दवाई लातेलाते रात के 9 बज गए.

“कबीर, अब तुम घर जाओ, जाह्नवी तुम्हारी राह देख रही होगी.”

“मौशमीजी, मैं घर देर से चला जाऊंगा. जब तक मां का ब्लडप्रैशर नौर्मल नहीं होता, मैं यहीं बैठता हूं मां के पास. आप जाइए, सो जाइए. आप को भी सुबह औफिस जाना है.”

“अरे कबीर, नर्स तो है ही. जाओ, तुम घर चले जाओ. तुम्हारी आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं.”

“नहींनहीं, मां का ब्लडप्रैशर जब तक नौर्मल नहीं होता, मैं यहीं बैठता हूं. आप जाइए. दोतीन घंटों के लिए सो लीजिए. मैं फिर चला जाऊंगा. तब तक मैं यंहीं हूँ.” कबीर का लहज़ा इतना अपनत्वभरा था कि मौशमी कबीर की बात टाल नहीं पाई. परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि उस वक्त कबीर की मौजूदगी बहुत जरूरी थी. डाक्टर भी कह कर गया था कि मां को एक मिनट के लिए भी अकेला न छोड़ा जाए, क्योंकि कुछ भी हो सकता था. वह मां को मात्र नर्स के भरोसे नहीं छोड़ सकती थी. सो, विवश वह अपने बैडरूम में चली गई, और 3 घंटों का अलार्म लगा सो गई.

तीन घंटे बाद अलार्म बजने पर वह हड़बड़ा कर उठी और मां के कमरे में जा कर उस ने उन के बैड के सामने लगे काउच पर अधलेटे नींद के झोंके खाते कबीर को झकझोर कर जगाते हुए कहा, “कबीर, कबीर, चलो घर जाओ. जान्हवी तुम्हारा इंतजार कर रही होगी.”

“ओके, आप सो ली न. बस, मांजी के ब्लडप्रैशर की रीडिंग देख कर जाता हूं.”

मां का ब्लडप्रैशर पहले की तरह कम निकला, जिसे देख कर वह बोला, “मैं जान्हवी को मैसेज कर देता हूं, मैं सुबह घर आऊंगा, और वह उस रात मां के कमरे में काउच पर अधजगा लेटा रहा.”

वह अपने कमरे में जा कर सो गई. अचानक तड़के वह मां की मौत का बुरा सपना देख घोर घबराहट से पसीनापसीना होते हुए जग गई, और लगभग भागते हुए मां के कमरे में पहुंची.

नर्स मां का ब्लडप्रैशर ले रही थी, और कबीर उस के पास ही चिंतित मुखमुद्रा में खड़ा हुआ था.

उस वक़्त सुबह के 5 बजे थे. मां का ब्लडप्रैशर अब बिल्कुल नौर्मल आ गया था. कबीर घर चला गया. छोड़ गया था मौशमी को गमज़दा. मन में रहरह कर, बस, यही खयाल आ रहा था कि ‘काश, मानव जिंदा होता तो उसे क्यों किसी गैरइंसान को अपनी हैल्प के लिए बुलाना पड़ता?’ उस के अंतर्मन में कबीर को ले कर न जाने कैसे अबूझ एहसास उमड़घुमड़ रहे थे, वह स्वयं समझ नहीं पा रही थी. वे क्या थे? आकर्षण? नहीं, नहीं, वह एक शादीशुदा पुरुष है. वह इतनी गिरी हुई नहीं है कि एक शादीशुदा पराए मर्द को ले कर कुछ उलटासीधा सोचे. उस की इतनी प्यारी देव प्रतिमा सी खूबसूरत बीवी है, और दोनों में कितना प्यार है. तो फिर कबीर के लिए उस के मन में क्या एहसासात हैं? शायद कहीं एक सौफ्ट कौर्नर बन रहा था उस के दिल में उस के लिए. आज मां की देखभाल के लिए खुद रातभर जग कर उस ने उसे जबरदस्ती सोने के लिए भेज दिया, इस वजह से उस के मनसमंदर में उस के प्रति कोमल भावों की लहरें उमड़नेघुमड़ने लगीं थीं. उफ, उस का मन यों क्यों रिऐक्ट कर रहा है? शायद उस का ओवर इमैजिनेशन उस से आंखमिचौली खेल रहा है.’

तभी मां शायद नींद में कराहीं और उस के विचारों की शृंखला पर विराम लगा.

करीब 9:30 बजे औफिस जाते वक्त कबीर 5 मिनट के लिए घर आया मां का हाल चाल पूछने.

उस ने मौशमी से पूछा, “ब्लडप्रैशर लिया? कितना था?”

“अभी तो नौर्मल सा ही है. बस, 130 बाई 90.”

“ओह बहुत बढ़िया. चिंता मत करिए, मांजी जल्दी ही एकदम ठीक हो जाएंगी. मैं फिर शाम को आता हूं. बाय, टेक केयर”, वह तनिक मुसकराते हुए उसे विचारमग्न छोड़ कमरे के बाहर चला गया.

उसे एक बार फिर अपने सामने देख अंतर्मन में एक अजानी, अबूझ सी कसक उठी, ‘काश… कबीर हमेशा मेरे इर्दगिर्द रहता. मेरा कुछ हक होता उस पर…’

तभी अपने अनर्गल विचारों के प्रवाह से घबरा कर वह यों ही अपना फोन ले व्हाट्सऐप पर सुबह से आए मैसेज पढ़ने लगी. कबीर का चेहरा मानो उस के जेहन में फ़्रीज़ हो गया था. तभी उसे लगा, जैसे मानव और कबीर के चेहरे आपस में गडमगड्ड हो रहे थे. घबरा कर वह उठ खड़ी हुई, और मां का पानी का जग उठा कर रसोई की ओर चल दी.

तभी उस के लौजिकल सैंस ने उसे चेताया, “मौशमी, तू यह क्या अंटशंट सोच रही है? कबीर एक विवाहित पुरुष है. नहींनहीं, आज जो सोचा सो सोचा. आगे से ऐसा खयाल तक मन में नहीं लाना चाहिए.’ इस सोच से उसे कुछ बेहतर फ़ील हुआ, और वह रसोई में गृह सहायिका को कुछ निर्देश देने लगी.

मां को ठीक हुए पूरे 2 माह होने को आए. अब वे चलफिर लेती थीं और अस्पष्ट स्वरों में बात कर लेती थीं.

प्रीशा भी बड़ी हो रही थी.

उस का औफिस रूटीन फिर से शुरू हो गया था.

प्रीशा को फिर से मां और एक विश्वसनीय सहायिका की निगरानी में छोड़ वह औफिस से शहर के बाहर एकएक सप्ताह के टूर पर कभी अनुराग तो कभी कबीर के साथ जाने लगी. पीछे से कबीर और अनुराग में से जो भी शहर में होता, उसे घर पर नजर रखने के लिए कह कर जाती.

पति की मौत के बाद उस की जिंदगी में जो भावनात्मक शून्य आ गया था, उस से मैत्री की डोर से बंधे ये 2 पुरुष उस की भरपाई बेहतरीन ढंग से कर रहे थे.

कभीकभी तो वह और प्रीशा, अनुराग, कबीर, उस की पत्नी जान्हवी, और उन का इकलौता बेटा ध्रुव भी आउटिंग पर कभी फ़न पार्क, तो कभी किसी बढ़िया रिजोर्ट जाते, और खूब मस्तीधमाल करते.

परिणामस्वरूप उस का जीवन कुल मिला कर सही ट्रैक पर चल रहा था.

पर अनुराग जब भी उस के घर आता, पत्नी को बिना बताए आता. कभी प्रीशा उस से कहती भी, “अंकल, आप भी कबीर अंकल, आंटी और ध्रुव भैया की तरह अन्नू आंटी और रौनक के साथ आया करो.” तो वह अपने चिरपरिचित अंदाज में हो…हो…कर हंसते हुए कहता, “बेटा, तुम्हारी यह अन्नू आंटी तो पूरी थानेदारनी है. अगर मैं ने उसे बता दिया कि मैं प्रीशा और उस की मम्मा के साथ आउटिंग पर जाता हूं, तो सच कह रहा हूं, मेरा इधर आना पक्का बंद हो जाएगा.”

इस पर प्रीशा हंसतेहंसते दोहरी हो जाती और उस के साथसाथ सब खिलखिला पड़ते.

उस दिन रविवार का अवकाश था. रात के 10 बजे थे.

प्रीशा और मां भीतर सो रही थीं. तभी अनुराग घर आया.

“हाय मौशमी, एक फ्रैंड के यहां पार्टी थी, वहीं से आ रहा हूं. यह अन्नू वास्तव में पूरी हिटलर है. दो पैग से ज्यादा पीना अलाउ ही नहीं करती. अरे यार, अब थोड़ा और पीने की इतनी तलब उठ रही है कि क्या बताऊं, सो, यह खरीद कर ले आया. यहां पिऊंगा”, उसे अपने हाथ में थामी बीयर की बोतल दिखाते हुए उस ने देखतेदेखते मौशमी के चेहरे को हौले से सहला दिया.

यह सब इतनी जल्दी हुआ, मौशमी कुछ सोच ही नहीं पाई कि क्या हुआ. जब उसे वस्तुस्थिति का भान हुआ, वह अनुराग पर जोर से चीखी, “मिस्टर अनुराग, यह क्या था? आप ने किस हक से यह बदतमीजी की?”

“बदतमीजी, कैसी बदतमीजी, मौशमी? दिनरात आप के यहां कबीर बैठा रहता है. दिन तो दिन, वह तो अपनी रातें भी यहां काटता है, और मेरे सामने सतीसावित्री बनने का ढोंग कर रही हो.” यह कहते हुए चेहरे पर एक कुत्सित, कुटिल मुसकान लाते हुए उस ने मौशमी के कंधे पर हाथ रखा ही था, कि झटके से पीछे होते हुए वह फिर से उस पर जोर से चिल्लाई, “अनुराग, आप यह क्या कर रहे हैं. मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. इतने दिनों से मैं आप को अपना सच्चा दोस्त और हितैषी मानती रही, लेकिन आज मुझे लग रहा है कि मैं गलत थी. आप प्लीज फौरन यहां से चले जाइए, और फिर कभी यहां मत आइएगा. आज आप होश में नहीं हैं. प्लीज लीव.” आज शायद उसे ज्यादा ही चढ़ गई थी. इसलिए उस ने मौशमी की ओर फिर से अपने कदम बढ़ाए, जिस से उस के गलत इरादे भांप कर वह चीखी, “अनुराग, होश में आइए. अगर आप यहां से नहीं गए तो मैं अन्नू को अभी फोन लगाती हूं.” यह कहते हुए वह तेज़ी से अपने कदम पीछे लेते हुए, वास्तव में उस की पत्नी को फोन लगाने लगी.

मौशमी की यह युक्ति काम आ गई, और अनुराग उस की ओर अतीव गुस्से से देखते हुए शिथिल कदमों से दरवाजे से बाहर निकल गया.

उस के दरवाजे से बाहर जाते ही मौशमी ने चैन की सांस लेते हुए धुकधुक करते हृदय से दरवाजा बंद किया, और मां के पास चली गई.

मां अभी तक नहीं जगी थी. मौशमी अनुराग की इस बेजा हरकत से बेहद डिस्टर्ब्ड थी. वह यह सोच ही रही थी कि इंसानी फितरत कितनी अन्प्रेडिक्टेबल होती है.

तभी कबीर आ गया. “हैप्पीहैप्पी बर्थडे, कबीर. तुम्हें वह हर चीज मिले जो तुम चाहते हो. गौड ब्लेस यू,” मौशमी ने कबीर को पूरे मन से विश किया.

कबीर के बर्थडे का नोटिफिकेशन उस ने अभीअभी फोन पर फेसबुक पर देखा था. उस के कबीर को विश करते ही कबीर ने झुक कर सहज स्नेहभाव भाव से “थैंक्स सो मच दीदी” कहते हुए उस के पैर छू लिए.

“कबीर तुम ने मुझे बहन बुलाया तो कल भाईदूज पर तुम विद फैमिली यानी जान्हवी और ध्रुव के साथ मेरे यहां इन्वाइटेड हो.”

“ओके, श्योर दीदी. जैसा आप कहें. हम सब भाईदूज आप के घर ही मनाएंगे. वैसे भी, मेरी कोई बहन नहीं है.”

मानव की मृत्यु के बाद आज शायद पहली बार उसे लगा, वह अकेली नहीं है. कबीर उस के साथ है, एक भरोसेमंद दोस्त और भाई के रूप में.

मनआंगन से कलुष का अंधकार छंट गया. वह मुसकरा उठी.

अक्लमंदी-भाग 2: नीलिमा मनीष को शादी के लिए परेशान क्यों कर रही थी?

31 जुलाई को सुबह से ही बारिश हो रही थी। शुक्रवार का दिन था। बौस को पहले ही मनीष ने बता दिया था कि वह आज आधे दिन की छुट्टी पर रहेगा। पूरे दिन की छुट्टी मिलना मुश्किल था। काम की अधिकता की वजह से बड़ी कठिनाई से मनीष सही समय पर रवींद्र भवन के लिए औफिस से निकल सका। लेखन की वजह से औफिस में मनीष के कई दुश्मन पैदा हो गए थे। इसलिए वह अपने लेखकीय गतिविधियों के बारे में किसी से कोई चर्चा नहीं करता था।सहकर्मियों को लगता था कि मनीष औफिस में भी लेखन करता है। नहीं तो कोई इंसान बैंक जैसे संस्थान में काम करते हुए नियमित रूप से लेखन कैसे कर सकता है?

हालांकि, मनीष को अपने लेखन को जारी रखने के लिए रोज कई कुरबानियां देनी पड़ती थीं। औफिस से लौटने के बाद 4 घंटों तक और सुबह औफिस जाने से पहले 3 घंटों तक वह नियमित रूप से अध्ययन व लेखन कार्य करता था। रविवार और छुट्टियों के दिन भी वह पढ़नेलिखने में व्यस्त रहता था। दोस्तों और रिश्तेदारों से वह कभीकभार ही मिलता था। न वह किसी के घर जाता था और न ही फोन पर किसी से गुफ्तगू करता था। कई बार छुट्टियों के दौरान भी पैतृक घर या ससुराल में वह ज्यादा समय अपने लैपटौप के साथ गुजारता था। घर में बच्चे, दोस्त, रिश्तेदार सभी उस से नाराज रहते थे।

सुधा मनीष के लैपटौप को अपनी सौतन मानती थी, क्योंकि मनीष का सब से ज्यादा वक्त लैपटौप के साथ गुजरता था। किसी तरह मनीष निर्धारित समय पर रवींद्र भवन पहुंच गया। भारी बारिश होने के बावजूद भी 100 से अधिक छात्रछात्राएं निर्धारित समय से पहले रवींद्र भवन पहुंच चुके थे, जबकि पत्रकारिता विभाग के प्रोफैसर व कर्मचारी दोपहर 1 बजे ही रवींद्र भवन पहुंच गए थे। समय पर कार्यक्रम शुरू हो गया। छात्रछात्राओं के बीच गजब का उत्साह था। जिन की बारी बाद में आने वाली थी वे भाषण की तैयारी में लगे हुए थे। चूंकि इस प्रतियोगिता में प्रोफैसर भी हिस्सा लेने वाले थे, इसलिए वे भी भाषण की तैयारी में पीछे नहीं थे। कहानी का वाचन बिना देखे करना था। निर्णायक को नंबर, प्रतियोगी के आत्मविश्वास, कंटेंट, कहानी का विश्लेषण, तार्किकता, समय का अनुपालन आदि मानकों के आधार पर दी जानी थी। सभी प्रतियोगियों को भाषण के लिए 3 मिनट का समय दिया गया था।

सभी ने एक से बढ़ कर एक प्रस्तुतियां दीं। प्रथम विजेता एक महिला प्रोफैसर थी, जिस का नाम नीलिमा था। लगभग 35 साल की नीलिमा जितनी सुंदर थी, उतनी ही सुंदर प्रस्तुति भी थी उस की। प्रेमचंद की कहानी ‘नशा’ का वाचन किया था उस ने। वह पहली प्रतियोगी थी, जिस ने प्रेमचंद की कहानी ‘नशा’ को कुछ मामलों में अप्रासंगिक बताया था। अन्यथा, प्रेमचंद जैसे बड़े कथाकार की रचनाओं को अप्रासंगिक बताने या कहने की हिम्मत आज भी किसी वक्ता या साहित्यकार को नहीं है।

नीलिमा ने कहा,“प्रेमचंद ने जब ‘नशा’ कहानी लिखी थी, उस समय और आज के परिवेश में जमीनआसमान का अंतर है। प्रेमचंद के जीवनकाल में भारत गुलाम था, हिंदी साहित्य की कोई विकसित परंपरा नहीं थी। हिंदी में छिटपुट लेखन किए जा रहे थे, जिन में उर्दू शब्दों का बाहुल्य था, लेकिन लगभग 100 सालों में हजारोंलाखों नए शब्द हिंदी साहित्य से जुड़ गए हैं। तकनीक के स्तर पर भी बदलाव आया है। कविताओं और कहानियों में बिंब और प्रतीक के प्रतिमान बदल गए हैं, ऐसे में आज के संदर्भ में प्रेमचंद की कहानियों को प्रांसगिक नहीं कहा जा सकता है। आज के युवा इन कारणों से प्रेमचंद की कहानियों के साथ खुद को कनैक्ट नहीं कर पाते हैं। हां, प्रेमचंद की कहानियों में अंतर्निहित सामाजिक संदेश आज भी प्रासंगिक हैं, जैसे, कहानी ‘नशा’ में अमीर और गरीब के बीच में व्याप्त विषमता को रेखांकित किया गया है, जो आज भी प्रासंगिक है। कहानी में यह भी कहा गया है कि मौका मिलने पर शोषित भी शोषक बन जाता है, भी मौजूदा परिवेश में मौजूं है आदि।

पुरस्कार ग्रहण करने के बाद नीलिमा अलग से मनीष से मिलने आई, बोली,“सर, सुना है कि आप ने भी इसी विश्वविधालय से पढ़ाई की है।”

मनीष बोला,“हां नीलिमा…”

फिर बोली,“सर, मैं आप की फैन हूं, आप के लेखों से ज्यादा मुझे आप की गजलें पसंद हैं। मैं ने मुशायरों में भी आप को सुना है, आप की कहानियों को भी मैं नियमित रूप से पढ़ती हूं। आप की रचनाओं में प्रेमचंद की कहानियों की तरह सामाजिक विषमताओं को दूर करने की प्रवृति देखती हूं, जो अन्य रचनाकारों की रचनाओं में देखने को नहीं मिलती हैं।”

कुछ पल चुप रहने के बाद नीलिमा बोली,“सर, आप कहां रहते हैं?”

मनीष ने कहा, “मैं शाहपुरा के सी सैक्टर में रहता हूं.”

“ओह, यह तो बहुत अच्छी बात है, सर। मैं भी वहीं बी सैक्टर में रहती हूं”, नीलिमा ने कहा।

“फिर तो हम दोनों रोज मिल सकते हैं”, मनीष ने हंसते हुए कहा।

नीलिमा भी मुसकराते हुए बोली,“अगर ऐसा होता है तो वह मेरा सौभाग्य होगा।”

नीलिमा, भोपाल की ही रहने वाली थी. शाहपुरा में पलीबङी हुई थी. भोपाल के जोसैफ कौन्वेंट हाईस्कूल से उस ने 12वीं तक की पढाई की थी. फिर उस ने भोपाल के कन्या स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय से स्नातक की पढाई पूरी की थी और फिर पत्रकारिता में स्नातकोत्तर किया. इस के बाद पीएचडी की पढ़ाई पूरी की.

नीलिमा के घर में पत्रकारिता का माहौल था. उस के पिता जयशंकर, एक अखबार में रायपुर संस्करण के संपादक थे. उस का छोटा भाई एक चैनल में सीनियर प्रोड्यूसर था. इसलिए नीलिमा ने भी पत्रकारिता के क्षेत्र में कैरियर बनाना बेहतर समझा. शुरू में वह भी भोपाल के कुछ दैनिकपत्रों में काम की। बाद में एक टीवी चैनल में भी काम किया। मगर कहीं उस का मन नहीं लगा। फिर वहीं एक विश्वविद्यालय में पत्रकारिता की प्रोफैसर बन गई।

 

अपनी पहली डेट को बनाएं मीठी याद

पहली डेट वो पल होता है जिसे हम अपनी वृद्धावस्था में भी याद करें तो होठों पर मुस्कान छोड़ जाए क्योंकि यही वो पल होता है जिस समय हम अपने जीवन में ऐसे खास व्यक्ति से मिलते है जिसके साथ हम सारी ज़िंदगी बिताने के सपने संजोना चाहते हैं.इस मुलाकात का अर्थ सिर्फ यह नहीं है कि आप अपनी पसंद के लड़के या लड़की से पहली बार मिलने जा रहे है बल्कि यह आपके माता पिता या मैट्रिमोनियल साइट से प्रोफाइल पसंद आए हुए व्यक्ति से भी हो सकती है. आजकल जब लड़का लड़की एक दूसरे को पसंद करते हैं तभी अपनी रिलेशनशिप को आगे बढ़ाने की सोचते हैं ऐसे में दोनों के मन में उत्सुकता और उलझन के साथ साथ सवालों की जैसे झरी लगी होती है डेट पर क्या होगा?क्या वो बिलकुल ऐसा होगा या होगी जैसा जीवन साथी मुझे चाहिए ?

क्या उसे मैं पसंद आऊगा या आऊंगी? जैसे सवाल आपके मन में हिडोले ले रहे होते हैं, तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर पहली डेट को आप किस प्रकार बिना गलतियां करे बेहद खास और यादगार बना सकते हैं.

कंफर्ट का रखें ध्यान – पहली डेट पर जा रहे हैं तो दोनों का एक दूसरे के साथ कंफर्ट होना बहुत जरूरी है इसके लिए ऐसी जगह जाएं जहां आप एक दूसरे से आराम से बैठ कर बात कर सकें, या अगर कुछ खा पी रहे हैं तो उनकी इच्छाओं को जानें और उनका सम्मान करें। अच्छे से तैयार होकर जाएं.भड़कीले या ऐसे कपड़े पहन कर ना जाए जिसमें आप कंफर्टेबल महसूस ना करें। औपचारिक न बने , दोस्ताना रवैया रखें जिससे की आप दोनों सहजता पूर्वक बातें कर सकें और एक दूसरे को समझ सके.

घबराहट से बचें- घबराहट और हिचकिचाहट से बचें। आत्मविश्वास बनाए रखे।बहुत ज्यादा या इधर-उधर की बातें न करते हुए खुद को खुली किताब बनने से बचे क्योंकि धोड़े रहस्यमयी लोगों को जानने की उत्सुकता हमेशा लगी रहती है तो कुछ बातें दूसरी डेट के लिए भी छोड़ देनी चाहिए. हड़बड़ाहट के बजाय आराम से अपनी भावनाएं व्यक्त करें और पार्टनर की बातों को ध्यान से सुनें और समझें.

परिवार को दे वैल्यू –यदि आप किसी से रिश्ता बनाने जा रहे हैं तो उसके परिवार के बारे में जानना भी बहुत जरूरी है इससे सामने वाले पर अच्छा इम्प्रेशन भी पड़ता है।रिश्ते-नाते आदि से संंबंधित नकारात्मक बातें करने से बचें। सामने वाले को जताएँ की आप परिवार के वैल्यूज को महत्व देते हैं

दुस्वपन-भाग 3 : आखिर क्यों 30 साल बाद घर छोड़कर जाने लगी संविधा

राजेश की नजरें संविधा के ही चेहरे पर टिकी थीं. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक संविधा एकदम से कैसे बदल गई. संविधा ने डाइनिंग टेबल पर रखे जग से गिलास में पानी लिया और पूरा गिलास खाली कर के आगे बोली, ‘‘दिन में नौकरी करने वाले कपल को अपने बच्चों की बड़ी चिंता रहती है. पर सुमन के डे चाइल्ड केयर सैंटर में अपना बच्चा छोड़ कर वे निश्ंिचत हो जाते हैं, क्योंकि वहां उन की देखभाल के लिए दादादादी जो होते हैं.

‘‘इस के अलावा सुमन की उस कोठी में बच्चों को खेलने के लिए बड़ा सा लौन तो है ही, उन्होंने बच्चों के लिए तरहतरह के आधुनिक खिलौनों की भी व्यवस्था कर रखी है. दिन में बच्चों को दिया जाने वाला खाना भी शुद्ध और पौष्टिक होता है. इसलिए उन के डे चाइल्ड केयर सैंटर में बच्चों की संख्या काफी है. जिस से उन्हें वृद्धाश्रम और अनाथाश्रम चलाने में जरा भी दिक्कत नहीं होती.

‘‘आज सुबह मैं वहीं गई थी. वहां मुझे बहुत अच्छा लगा. इसलिए अब मैं वहीं जा कर सुमन के साथ उन बूढ़ों की और बच्चों की सेवा करना चाहती हूं, उन्हें प्यार देना चाहती हूं, जिन का अपना कोई नहीं है.’’ राजेश संविधा की बातें ध्यान से सुन रहा था. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जो सुन रहा है, वह सब कहने वाली उस की पत्नी संविधा है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि यह सब सच है या कोई दुस्वप्न. उसे गुस्सा आ रहा था कि पूजापाठ, हवनकीर्तन, तीर्थयात्राओं के बाद भी संविधा कैसे ये सारे बंधन तोड़ रही है.द्य

एक समय था जब संविधा को संगीत का शौक था. कंठ भी मधुर था और हलक भी अच्छा था. विवाह के बाद भी वह संगीत का अभ्यास चालू रखना चाहती थी. घर के काम करते हुए वह गीत गुनगुनाती रहती थी. यह एक तरह से उस की आदत सी बन गई थी.

जीवन की मुसकान

यह घटना कुछ माह पहले की है. एक दिन मैं टिक्की खाने के लिए घर के कुछ दूर स्थित कुबेर आश्रम पर गया और टिक्की खा कर टिक्की वाले को पैसे दे कर घर आ गया. फिर रात को जब पापा ने कहा, ‘‘बेटा, शिवम साइकिल अंदर रख आओ’’ तो मैं चकरा सा गया क्योंकि मुझे ध्यान आया कि साइकिल तो मैं कुबेर आश्रम पर ही छोड़ आया था, लेकिन तभी साढ़े 8 बजे वह गरीब ठेले वाला मेरे घर आया और बोला, ‘‘बेटा, मैं ने समझा तुम कुछ लेने दुकान पर गए हो और मैं ने जब देखा कि 2 घंटे हो गए और तुम नहीं आए तो मैं तुम्हारा पता पूछते हुए यह साइकिल लौटाने आया हूं.’’

वह टिक्की वाला अब हमारे घर के पास रोज आता है. उसे पानी और चाय पिलाए बगैर हम उसे नहीं जाने देते.    शिवम चतुर्वेदी (सर्वश्रेष्ठ)

मुझे दिल्ली से कोटा आना था. ठीक समय मैं स्टेशन पहुंचा. प्लेटफौर्म पर आरक्षण चार्ट देख कर अपनी बोगी में घुसा. वह टू टायर बोगी थी जिस में मेरी बर्थ ऊपर वाली थी. चढ़ते समय मैं ने देखा, एक अधेड़ उम्र की महिला अपने बच्चे के साथ नीचे वाली बर्थ पर लेटी थी. थोड़ी देर के बाद मुझे नींद आ गई और गाड़ी कब अपने गंतव्य को चल दी, मुझे पता ही न लगा.

सुबह जैसे ही मेरी आंख खुली, मैं ने चाय वाले को आवाज दी. पैसे देने के लिए मेरा हाथ मेरी जेब पर गया. लेकिन बटुआ नदारद था. मैं घबरा कर नीचे उतरा और फर्श पर चारों तरफ खोजने लगा. उस समय मैं ने उस महिला को देखा, उस के चेहरे पर हलकी सी मुसकान थी. तभी चाय वाले ने कहा, ‘‘बाबूजी चाय.’’

मैं ने चाय वाले से कहा, ‘‘रहने दो.’’ मेरी परेशानी का कारण मात्र बटुए में रखे रुपए ही नहीं थे, बल्कि 2 बैंकों के एटीएम कार्ड्स तथा रेलवे टिकट भी पर्स में रखे थे. उसी समय उस महिला ने मुझे प्यार से अपने पास बिठाया तथा चाय वाले को मुझे चाय देने को कहा. उस के बाद उस ने अपने थैले में से मेरा बटुआ निकाल कर कहा, ‘‘यह पर्स यहीं जमीन पर पड़ा मिला, शायद आप का हो.’’

पर्स देख कर मेरा चेहरा खिल सा गया था. मैं ने नम्रता से कहा, ‘‘आप पर्स में से बतौर इनाम जितने रुपए चाहें, ले लें.’’ उस महिला ने मात्र यही कहा, ‘‘तुम्हें तुम्हारा पर्स मिल गया और मुझे

मेरा इनाम.’’

सिंदूर विच्छेद: भाग 1- अधीरा पर शक करना कितना भारी पड़ा

धूपबत्ती का धुआं गोल आकार में उड़ता ऊपर की ओर जा रहा था. शायद छत तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था. पर इतनी ऊंचाई तक पहुंचने से पहले ही धूपबत्ती के सफेद गोलाकार धुएं के कण सर्पिलाकार होते हुए तितरबितर हो जाते थे.

चंदन धूपबत्ती की खुशबू मनोज के नथुनों में जा रही थी और उस की सांस जैसे रुकी जा रही थी.

सामने अधीरा की मृत शरीर के पास दीपक के साथ एक मोटी सी धूपबत्ती भी जला कर रखी गई थी, पर मनोज चाह कर भी चिरनिंद्रा में लीन अपनी बीवी के मुख को देख नहीं पा रहा था. नजरें झुकी हुई थीं. बस, कभीकभी नजर उठा कर धुंए के गोल छल्लों को देख लेता था.

बीवी अधीरा के संग 30 वर्षों का सफर आज यहां खत्म हुआ पर आज कहां? वह तो 20 वर्ष पहले उस दिन ही खत्म हो गया था जब मनोज ने पहली बार अधीरा के चरित्र पर लांक्षन लगाया था .

‘वह दूधवाला घर पर क्यों आया था अपनी बीवी के साथ?’ गुस्से में अंधा  ही तो हो गया था मनोज.

अधीरा घबराते हुए बोली थी,’क…क… कब? मैं तो कल ही आई हूं अपने मायके से. मुझे क्या पता?’

मनोज गुस्से से बोला,’तेरे पीछे  दूधवाला आया था अपनी बीबी के साथ यहां, उसे यह दिखाने के लिए कि तेरा और उस का कोई अनैतिक संबंध नहीं है.’

अधीरा मानों आसमान से जमीन पर आ गिरी.

‘यह आप क्या कह रहे हैं… मैं और दूधवाले के साथ…? छी…छी… आप ने ऐसा सोचा भी कैसे?’

पर मनोज कहां सुनने को तैयार था. 30 साला अधीरा का मुंह जैसे अपमान से लाल पड़ गया.

मनोज और अधीरा की अरैंज्ड मैरिज हुई थी. मनोज औसत रंगरूप का युवक था और अधीरा गोरी, लंबी पढ़ीलिखी, आत्मविश्वासी, घरेलू और खुशमिजाज युवती थी.

पर मनोज उसे बहुत प्रेम करने के साथसाथ उसे ले कर बहुत पजैसिव था. कोई भी एक नजर अधीरा को देख ले तो उसे कतई बरदाश्त नहीं था.

दूधवाला जब अपनी बीवी के साथ उस की नई कोठी पर आया तो उस दिन सोमवार का था. अधीरा को अचानक अपने दोनों बेटे सजल और सारांश के साथ मायके जाना पड़ गया था. साप्ताहिक अवकाश के चलते मनोज अपने इलेक्ट्रौनिक्स शोरूम की दुकान नहीं गया था और घर पर ही था. बस, शक का कीड़ा उस के मन में कुंडली जमा कर बैठ गया और आज अधीरा को डसने लगा.

अधीरा बोली,’दूधवाला गांव से रोज बाइक से शहर आता है तो अपनी बीवी को ले आया होगा, उस को  सामान दिलाने या डाक्टर को दिखाने. कितने ही काम होते हैं गांव वालों को शहर में.’

पर मनोज कुछ भी सुनने तो तैयार नहीं था.

अधीरा के खिलते चेहरे पे जैसे पतझड़ आ गया. आवेश में चेहरा गुस्से से तमतमा आया पर मां की वह सीख कि गुस्से में पति कुछ भी कहे तो उस समय चुप रह जाना. यह अविश्वास का दीमक गृहस्थी की जड़ों को खोखला कर देता है, याद कर के चुप रह गई.

8 और 10 वर्षीय सजल और सारांश इस सब से बेखबर थे. पर मां की सूनीसूनी, रोती आंखें, मुरझाया चेहरा  बहुत कुछ कहना चाहता था मगर मासूम बच्चे उन्हें पढ़ ही नहीं पाते थे.

एक आम युवती की तरह उस ने बस प्रेमपूर्ण जीवन की ही कामना की थी. जिन लम्हों की तमन्ना उस ने तमाम उम्र की, वह लम्हें मिले तो पर इतने कम मिले कि उन का मिलना, न मिलने के दुख से दोगुना हो उठा.

तेज रोने की आवाज से मनोज जैसे अतीत से निकल कर वर्तमान में लौट आया. अधीरा की दोनों छोटी बहनें अनुभा और सुगंधा भी आ गई थीं और लाल साड़ी में लिपटीलेटी अधीरा को देख कर उन के आसुओं का बांध टूट पड़ा था.

लेखिका- यामिनी नयन गुप्ता

अनुपमा में माया की असलियत आएगी सबके सामने, जानें फिर क्या होगा?

सीरियल अनुपमा इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में बना हुआ है, शो में आए दिन ऐसे -ऐसे मोड़ आ रहे हैं, जिससे शो की टीआरपी लगातार बढ़ती जा रही है.

हालांकि कुछ दर्शकों को इस सीरियल की कहानी पसंद आ रही है तो कुछ को बिल्कुल भी नहीं, वहीं सीरियल में बीते दिनों दिखाया गया है कि अनुपमा और माया मिलकर छोटी अनु के लिए केक तैयार करते हैं. दूसरी तरफ अकुंश माया की सच्चाई का पता कर रहा है.

 

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छोटी अनु के जन्मदिन पर माया और अनुपमा जमकर डांस करती नजर आती है. इसके साथ ही शाह परिवार भी अनु के बर्थ पार्टी में शामिल होकर इसकी रौनक बढ़ाएंगे. वहीं अनुज ने ये ठान लिया है कि वह अनु के बर्थ डे पार्टी के बाद माया का राज खोलेगा.

इसके बाद अनुज पूरे परिवार के सामने बताएगा कि माया कैसी औरत है. कहता है कि ये ऐसी जगहों पर नाचती है जिसके बारे में मैं बता भी नहीं सकता हूं. इसके आगे अंकुश ये कहेगा कि छोटी के बाप का नाम यह इसलिए नहीं बता रही हैं क्योंकि इसे खुद भी नहीं पता है कि छोटी का बाप कौन है.

अंकुश की बातों पर माया भड़क जाएघी और उसके गाल पर तमाचा मारेगी, वह आगे कहेगी की वह गरीबी की वजह से अपनी बेटी को पाल नहीं पाई. इसकी बातों को सुनकर अनुज और अनुपमा इमोशनल हो जाएंगे.

Yrkkh: अभिमन्यु फिर करेगा अक्षरा से अपने प्यार क्या इजहार , फिर क्या होगा जानें?

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार इमोशनल ड्रामा देखने को मिल रहा है, अभिमन्यु और अक्षरा काफी दिनों से एक-दूसरे को लेकर अपनी मन की बात को कहना चाहते हैं लेकि वह कुछ कह नहीं पा रहे हैं.

6 साल बाद अक्षरा से मुलाकात के बाद से अभिमन्यु को अपनी गलती का पछतावा तो हो रहा है लेकिन वह सभी बातों को अक्षरा से बताए कैसे उसे समझ नहीं आ रहा है.वहीं दूसरी तरफ अक्षरा भी अपने गम को भूलाने में डूबी हुई है.

आने वाले एपिसोड में ट्विस्ट आएगा अभिमन्यु सड़क पर भटकता हुआ नजर आएगा, वहीं अक्षरा अभिमन्यु को मांफ करने से साफ इंकार कर देती है, जिस वजह से अभिमन्यु काफी ज्यादा परेशान रहता है, इसी परेशानी के बीच वह उदयपुर पहुंच जाता है.

 

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बीते दिनों देखा गया कि अभिमन्यु को उसका जूनियर रोहन उसे संभालता हुआ नजर आता है, बीते एपिसोड में आपको देखने को मिलेगा कि उसका जूनियर उसे अस्पताल में लेकर आ जाता है और उसका इलाज करता है.

अभिमन्यु को शांत करने के लिए उसे इंजेक्शन लगा देता है कि अभि शांत हो जाए कुछ वक्त आराम कर लें. इसके बाद रोहन इस बात को घर में इंफॉर्म कर देता है. इसके बाद अभिमन्यु धीरे-धीरे ठीक होने लगता है.

सीरियल में आने वाले एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अभिमन्यु एक बार फिर अक्षरा से प्यार का इजहार करेगा. लेकिन अक्षरा का क्या रिएक्शन होगा वह आने वाले एपिसोड में देखने को मिलेगा.

कालगर्ल-भाग 3 : आखिर उस लड़की में क्या था कि मैं उसका दीवाना हो गया?

प्रिया ने आगे कहा, ‘‘शराब के कारण मेरे पापा का लिवर खराब हुआ और वे चल बसे. मेरी मां की मौत भी एक साल के अंदर हो गई. मैं उस समय 10वीं जमात पास कर चुकी थी. छोटी बहन तब छठी जमात में थी. पर मैं ने पढ़ाई के साथसाथ ब्यूटीशियन का भी कोर्स कर लिया था. ‘‘हम एक छोटी चाल में रहते थे. मेरे एक रिश्तेदार ने ही मुझे ब्यूटीपार्लर में नौकरी लगवा दी और शाम को एक घर में, जहां मां काम करती थी, खाना बनाती थी. पर उस पार्लर में मसाज के नाम पर जिस्मफरोशी भी होती थी. मैं भी उस की शिकार हुई और इस दुनिया में मैं ने पहला कदम रखा था,’’ बोलतेबोलते प्रिया की आंखों से आंसू बहने लगे थे.

मैं ने टिशू पेपर से उस के आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘सौरी, मैं ने तुम्हारी दुखती रगों को बेमतलब ही छेड़ दिया.’’

‘‘नहीं, आप ने मुझे कोई दुख नहीं पहुंचाया है. आंसू निकलने से कुछ दिल का दर्द कम हो गया,’’ बोल कर प्रिया ने आंसू पोंछते हुए कहा, ‘‘पर, यह सब मैं अपनी छोटी बहन को सैटल करने के लिए कर रही हूं. वह भी 10वीं जमात पास कर चुकी है और सिलाईकढ़ाई की ट्रेनिंग भी पूरी कर ली है. अभी तो एक बिजली से चलने वाली सिलाई मशीन दे रखी है. घर बैठेबैठे कुछ पैसे वह भी कमा लेती है.

‘‘मैं ने एक लेडीज टेलर की दुकान देखी है, पर सेठ बहुत पगड़ी मांग रहा है. उसी की जुगाड़ में लगी हूं. यह काम हो जाए, तो दोनों बहनें उसी बिजनेस में रहेंगी…’’ फिर एक अंगड़ाई ले कर उस ने कहा, ‘‘मैं आप को बोर कर रही हूं न? आप ने तो मुझे छुआ भी नहीं. आप को मुझ से कुछ चाहिए तो कहें.’’ मैं ने कहा, ‘‘अभी सारी रात पड़ी है, मुझे अभी कोई जल्दी नहीं. जब कोई जरूरत होगी कहूंगा. पर पार्लर से होटल तक तुम कैसे पहुंचीं?’’

‘‘पार्लर वाले ने ही कहा था कि मैं औरों से थोड़ी अच्छी और स्मार्ट हूं, थोड़ी अंगरेजी भी बोल लेती हूं. उसी ने कहा था कि यहां ज्यादा पैसा कमा सकती हो. और पार्लरों में पुलिस की रेड का डर बना रहता है. फिर मैं होटलों में जाने लगी.’’ इस के बाद प्रिया ने ढेर सारी बातें बताईं. होटलों की रंगीन रातों के बारे में कुछ बातें तो मैं ने पहले भी सुनी थीं, पर एक जीतेजागते इनसान, जो खुद ऐसी जिंदगी जी रहा है, के मुंह से सुन कर कुछ अजीब सा लग रहा था. इसी तरह की बातों में ही आधी रात बीत गई, तब प्रिया ने कहा, ‘‘मुझे अब जोरों की नींद आ रही है. आप को कुछ करना हो…’’ प्रिया अभी तक गाउन में ही थी. मैं ने बीच में ही बात काटते हुए कहा, ‘‘तुम दूसरे बैड पर जा कर आराम करो. और हां, बाथरूम में जा कर पहले अपने कपड़े पहन लो. बाकी बातें जब तुम्हारी नींद खुले तब. तुम कल दिन में क्या कर रही हो?’’

‘‘मुझ से कोई गुस्ताखी तो नहीं हुई. सर, आप ने मुझ पर इतना पैसा खर्च किया और…’’

‘‘नहींनहीं, मैं तो तुम से बहुत खुश हूं. अब जाओ अपने कपड़े बदल लो.’’ मैं ने देखा कि जिस लड़की में मेरे सामने बिना कुछ कहे गाउन खोलने में जरा भी संकोच नहीं था, वही अब कपड़े पहनने के लिए शर्मसार हो रही थी. प्रिया ने गाउन के ऊपर चादर में अपने पूरे शरीर को इतनी सावधानी से लपेटा कि उस का शरीर पूरी तरह ढक गया था और वह बाथरूम में कपड़े पहनने चली गई. थोड़ी देर बाद वह कपड़े बदल कर आई और मेरे माथे पर किस कर ‘गुडनाइट’ कह कर अपने बैड पर जा कर सो गई. सुबह जब तक मेरी नींद खुली, प्रिया फ्रैश हो कर सोफे पर बैठी अखबार पढ़ रही थी.

मुझे देखा, तो ‘गुड मौर्निंग’ कह कर बोली, ‘‘सर, आप फ्रैश हो जाएं या पहले चाय लाऊं?’’

‘‘हां, पहले चाय ही बना दो, मुझे बैड टी की आदत है. और क्या तुम शाम 5 बजे तक फ्री हो? तुम्हें इस के लिए मैं ऐक्स्ट्रा पैसे दूंगा.’’

‘‘सर, मुझे आप और ज्यादा शर्मिंदा न करें. मैं फ्री नहीं भी हुई तो भी पहले आप का साथ दूंगी. बस, मैं अपनी बहन को फोन कर के बता देती हूं कि मैं दिन में नहीं आ सकती.’’ प्रिया ने अपनी बहन को फोन किया और मैं बाथरूम में चला गया. जातेजाते प्रिया को बोल दिया कि फोन कर के नाश्ता भी रूम में ही मंगा ले. नाश्ता करने के बाद मैं ने प्रिया से कहा, ‘‘मैं ने ऐलीफैंटा की गुफाएं नहीं देखी हैं. क्या तुम मेरा साथ दोगी?’’

‘‘बेशक दूंगी.’’

थोड़ी देर में हम ऐलीफैंटा में थे. वहां तकरीबन 2 घंटे हम साथ रहे थे. मैं ने उसे अपना कार्ड दिया और कहा, ‘‘तुम मुझ से संपर्क में रहना. मैं जिस एनजीओ से जुड़ा हूं, उस से तुम्हारी मदद के लिए कोशिश करूंगा. यह संस्था तुम जैसी लड़कियों को अपने पैरों पर खड़ा होने में जरूर मदद करेगी. ‘‘मैं तो कोलकाता में हूं, पर हमारी ब्रांच का हैडक्वार्टर यहां पर है. थोड़ा समय लग सकता है, पर कुछ न कुछ अच्छा ही होगा.’’ प्रिया ने भरे गले से कहा, ‘‘मेरे पास आप को धन्यवाद देने के सिवा कुछ नहीं है. इसी दुनिया में रात वाले बूढ़े की तरह दोपाया जानवर भी हैं और आप जैसे दयावान भी.’’ प्रिया ने भी अपना कार्ड मुझे दिया. हम दोनों लौट कर होटल आए. मैं ने रूम में ही दोनों का लंच मंगा लिया. लंच के बाद मैं ने होटल से चैकआउट कर एयरपोर्ट के लिए टैक्सी बुलाई. सामान डिक्की में रखा जा चुका था. जब मैं चलने लगा, तो उस की ओर देख कर बोला, ‘‘प्रिया, मुझे तुम्हें और पैसे देने हैं.’’

मैं पर्स से पैसे निकाल रहा था कि इसी बीच टैक्सी का दूसरा दरवाजा खोल कर वह मुझ से पहले जा बैठी और कहा, ‘‘थोड़ी दूर तक मुझे लिफ्ट नहीं देंगे?’’

‘‘क्यों नहीं. चलो, कहां जाओगी?’’

‘‘एयरपोर्ट.’’

मैं ने चौंक कर पूछा, ‘‘एयरपोर्ट?’’

‘‘क्यों, क्या मैं एयर ट्रैवल नहीं कर सकती? और आगे से आप मुझे मेरे असली नाम से पुकारेंगे. मैं पायल हूं.’’ और कुछ देर बाद हम एयरपोर्ट पर थे. अभी फ्लाइट में कुछ वक्त था. उस से पूछा, ‘‘तुम्हें कहां जाना है?’’

‘‘बस यहीं तक आप को छोड़ने आई हूं,’’ पायल ने मुसकरा कर कहा.

मैं ने उसे और पैसे दिए, तो वह रोतेरोते बोली, ‘‘मैं तो आप के कुछ काम न आ सकी. यह पैसे आप रख लें.’’ ‘‘पायल, तुम ने मुझे बहुत खुशी दी है. सब का भला तो मेरे बस की बात नहीं है. अगर मैं एनजीओ की मदद से तुम्हारे कुछ काम आऊं, तो वह खुशी शानदार होगी. ये पैसे तुम मेरा आशीर्वाद समझ कर रख लो.’’ और मैं एयरपोर्ट के अंदर जाने लगा, तो उस ने झुक कर मेरे पैरों को छुआ. उस की आंखों से आंसू बह रहे थे, जिन की 2 बूंदें मेरे पैरों पर भी गिरीं.

मैं कोलकाता पहुंच कर मुंबई और कोलकाता दोनों जगह के एनजीओ से लगातार पायल के लिए कोशिश करता रहा. बीचबीच में पायल से भी बात होती थी. तकरीबन 6 महीने बाद मुझे पता चला कि एनजीओ से पायल को कुछ पैसे ग्रांट हुए हैं और कुछ उन्होंने बैंक से कम ब्याज पर कर्ज दिलवाया है. एक दिन पायल का फोन आया. वह भर्राई आवाज में बोली, ‘सर, आप के पैर फिर छूने का जी कर रहा है. परसों मेरी दुकान का उद्घाटन है. यह सब आप की वजह से हुआ है. आप आते तो दोनों बहनों को आप के पैर छूने का एक और मौका मिलता.’

‘‘इस बार तो मैं नहीं आ सकता, पर अगली बार जरूर मुंबई आऊंगा, तो सब से पहले तुम दोनों बहनों से मिलूंगा.’’ आज मुझे पायल से बात कर के बेशुमार खुशी का एहसास हो रहा है और मन थोड़ा संतुष्ट लग रहा है.

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