मौशमी बेहद घबरा गई. उस ने आननफानन अनुराग को शाम को किसी अच्छे डाक्टर के साथ घर आने के लिए कहा. लेकिन उस दिन अनुराग किसी अति अर्जेंट काम के चलते औफिस में व्यस्त था. इस स्थिति में मौशमी ने औफिस के अपने एक जूनियर सहकर्मी कबीर से डाक्टर के साथ घर आने का अनुरोध किया.
कबीर मौशमी के साथ औफिस में बहुत लंबे समय से कार्यरत था. दोनों के मध्य स्वस्थ मैत्री भाव था.
डाक्टर ने प्रीशा को चैक कर के उस के एक घुटने में इंफैक्शन बताया.
उस रात प्रीशा का बुखार 103 डिग्री फारेनहाइट तक पहुंच गया.
“कबीर, क्या करें इस का बुखार तो डाक्टर की दवाई से भी नहीं उतर रहा. अब क्या होगा?”
“घबराइए मत मौशमीजी, चलिए, उस के माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखते हैं.”
प्रीशा तेज बुखार से बेहाल थी. देररात तक उस का बुखार नहीं उतरने की वजह से कबीर मौशमी के घर पर ही रुका. अगली सुबह अपने घर गया.
कबीर एक बेहद सहृदय, निश्च्छल मानसिकता का पुरुष था जिस के मन में महिलाओं के प्रति शिद्दत का सम्मान भाव था.
प्रीशा के घुटनों के इंफैक्शन को ठीक होने में पूरा माह लग गया.
अनुराग और कबीर प्रीशा की परिचर्या में मौशमी को सहयोग देने बारीबारी से उस के घर आते.
प्रीशा की बीमारी का यह दौर भी गुजर गया. बेटी की अस्वस्थता के इस दौर ने मौशमी को अनुराग और कबीर के रूप में 2 सच्चे दोस्त सौगात में दिए.
कबीर और अनुराग के कदमकदम पर उस का साथ देने से मौशमी की जिंदगी बहुत हद तक आसान हो गई.
समय अपनी ही चाल चलता गया. प्रीशा पूरी तरह स्वस्थ हो कर दौड़नेभागने लगी.
प्रीशा के स्वास्थ्य लाभ करते ही मौशमी ने औफिस जाना शुरू कर दिया.
मौशमी एक सीए थी और उसे औडिटिंग के काम के सिलसिले में कभीकभी शहर से बाहर भी जाना पड़ता था.
तो ऐसे मौकों पर वह प्रीशा को अपनी प्रौढ़ा मां की निगरानी में छोड़ कर जाती थी. उन्हीं दिनों मौशमी औडिटिंग के लिए एक सप्ताह के लिए अनुराग और कुछ अन्य सहकर्मियों के साथ जयपुर से बेंगलुरु गई हुई थी, कि तभी एक बार फिर से मौशमी की जिंदगी में बुरे वक्त ने दस्तक दी.
मौशमी की अनुपस्थिति में उस की मां को एक दिन गंभीर स्ट्रोक पड़ा. गनीमत यह रही कि स्ट्रोक के वक़्त प्रीशा मौशमी से वीडियोकौल पर बात कर रही थी.
उस स्ट्रोक की वजह से मां के दाहिने हाथपैरों में लकवा मार गया, उन की बोली चली गई और वे बेहोश हो गईं.
मौशमी ने अगले ही क्षण कबीर को उस की मां के पास घर पहुंच कर उन्हें अस्पताल पहुंचाने के लिए कहा, और स्वयं शाम की फ़्लाइट पकड़ रात तक घर पहुंच गई.
मां आईसीयू में भरती थीं.
आईसीयू में अचेतावस्था में बेहोशी की नींद सोती मां को देख वह बिलख पड़ी. उस की मां उस की लाइफ़लाइन थी. वह स्वयं अपनी मां की इकलौती बेटी थी. उस के पिता की मृत्यु भी उस के बचपन में ही हो गई थी, और मां ने अकेले दम पर उसे जिंदगी के झंझावातों से बचाते हुए अपने कलेजे से लगा कर पाला था.
मां को स्ट्रोक आए पूरा माहभर बीत चला. इतने वक़्त तक मां को बेहोशी की नींद सोते देख वह बेहद परेशान थी.
उस दिन औफिस से लौटते वक्त कबीर मां की जांच के लिए शहर के एक नामी डाक्टर को उस के घर ले कर आया. जब उस ने डाक्टर से पूछा, “डाक्टर इस बेहोशी की नींद से मां कब उठेगी?” तो वे बोले, “कुछ कहा नहीं जा सकता. वे अभी इसी क्षण उठ सकती हैं, और नहीं उठें तो बरसों लग सकते हैं.”
डाक्टर की यह बात सुनकर वह बेहद परेशान हो गई, और डाक्टर के जाते ही फूटफूट कर रोने लगी.
“आप यों हिम्मत हारेंगी तो कैसे चलेगा? हौसला रखिए मौशमीजी. चलिए, चुप हो जाइए. आप को रोते देखे प्रीशा परेशान हो जाएगी. वह पहले से ही मांजी की बीमारी से बेहद डिप्रैस्ड है.”
“कबीर, मुझे कितने इम्तिहान देने होंगे? मां की इस बेहोशी से मैं अपनी हिम्मत हार बैठी हूं. मां के बिना मैं कैसे जिंदा रहूंगी?”
“मौशमीजी, इतनी डिप्रैसिंग बातें मत करिए. देखना, मां बहुत जल्दी एकदम पहले की तरह ठीक हो जाएंगी, बोलने और चलनेफिरने लगेंगी.”
उन दिनों अनुराग औडिटिंग के लिए शहर से बाहर था.
शाम को मां का ब्लडप्रैशर चैक करने पर बहुत कम आया. डाक्टर आए और उन्होंने उन्हें चैक किया और उन के के लिए दवा बताई. मौशमी ने कबीर को फोन कर के उसे दवाई लाने के लिए कहा.
कबीर को दवाई लातेलाते रात के 9 बज गए.
“कबीर, अब तुम घर जाओ, जाह्नवी तुम्हारी राह देख रही होगी.”
“मौशमीजी, मैं घर देर से चला जाऊंगा. जब तक मां का ब्लडप्रैशर नौर्मल नहीं होता, मैं यहीं बैठता हूं मां के पास. आप जाइए, सो जाइए. आप को भी सुबह औफिस जाना है.”
“अरे कबीर, नर्स तो है ही. जाओ, तुम घर चले जाओ. तुम्हारी आंखें नींद से बोझिल हो रही हैं.”
“नहींनहीं, मां का ब्लडप्रैशर जब तक नौर्मल नहीं होता, मैं यहीं बैठता हूं. आप जाइए. दोतीन घंटों के लिए सो लीजिए. मैं फिर चला जाऊंगा. तब तक मैं यंहीं हूँ.” कबीर का लहज़ा इतना अपनत्वभरा था कि मौशमी कबीर की बात टाल नहीं पाई. परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि उस वक्त कबीर की मौजूदगी बहुत जरूरी थी. डाक्टर भी कह कर गया था कि मां को एक मिनट के लिए भी अकेला न छोड़ा जाए, क्योंकि कुछ भी हो सकता था. वह मां को मात्र नर्स के भरोसे नहीं छोड़ सकती थी. सो, विवश वह अपने बैडरूम में चली गई, और 3 घंटों का अलार्म लगा सो गई.
तीन घंटे बाद अलार्म बजने पर वह हड़बड़ा कर उठी और मां के कमरे में जा कर उस ने उन के बैड के सामने लगे काउच पर अधलेटे नींद के झोंके खाते कबीर को झकझोर कर जगाते हुए कहा, “कबीर, कबीर, चलो घर जाओ. जान्हवी तुम्हारा इंतजार कर रही होगी.”
“ओके, आप सो ली न. बस, मांजी के ब्लडप्रैशर की रीडिंग देख कर जाता हूं.”
मां का ब्लडप्रैशर पहले की तरह कम निकला, जिसे देख कर वह बोला, “मैं जान्हवी को मैसेज कर देता हूं, मैं सुबह घर आऊंगा, और वह उस रात मां के कमरे में काउच पर अधजगा लेटा रहा.”
वह अपने कमरे में जा कर सो गई. अचानक तड़के वह मां की मौत का बुरा सपना देख घोर घबराहट से पसीनापसीना होते हुए जग गई, और लगभग भागते हुए मां के कमरे में पहुंची.
नर्स मां का ब्लडप्रैशर ले रही थी, और कबीर उस के पास ही चिंतित मुखमुद्रा में खड़ा हुआ था.
उस वक़्त सुबह के 5 बजे थे. मां का ब्लडप्रैशर अब बिल्कुल नौर्मल आ गया था. कबीर घर चला गया. छोड़ गया था मौशमी को गमज़दा. मन में रहरह कर, बस, यही खयाल आ रहा था कि ‘काश, मानव जिंदा होता तो उसे क्यों किसी गैरइंसान को अपनी हैल्प के लिए बुलाना पड़ता?’ उस के अंतर्मन में कबीर को ले कर न जाने कैसे अबूझ एहसास उमड़घुमड़ रहे थे, वह स्वयं समझ नहीं पा रही थी. वे क्या थे? आकर्षण? नहीं, नहीं, वह एक शादीशुदा पुरुष है. वह इतनी गिरी हुई नहीं है कि एक शादीशुदा पराए मर्द को ले कर कुछ उलटासीधा सोचे. उस की इतनी प्यारी देव प्रतिमा सी खूबसूरत बीवी है, और दोनों में कितना प्यार है. तो फिर कबीर के लिए उस के मन में क्या एहसासात हैं? शायद कहीं एक सौफ्ट कौर्नर बन रहा था उस के दिल में उस के लिए. आज मां की देखभाल के लिए खुद रातभर जग कर उस ने उसे जबरदस्ती सोने के लिए भेज दिया, इस वजह से उस के मनसमंदर में उस के प्रति कोमल भावों की लहरें उमड़नेघुमड़ने लगीं थीं. उफ, उस का मन यों क्यों रिऐक्ट कर रहा है? शायद उस का ओवर इमैजिनेशन उस से आंखमिचौली खेल रहा है.’
तभी मां शायद नींद में कराहीं और उस के विचारों की शृंखला पर विराम लगा.
करीब 9:30 बजे औफिस जाते वक्त कबीर 5 मिनट के लिए घर आया मां का हाल चाल पूछने.
उस ने मौशमी से पूछा, “ब्लडप्रैशर लिया? कितना था?”
“अभी तो नौर्मल सा ही है. बस, 130 बाई 90.”
“ओह बहुत बढ़िया. चिंता मत करिए, मांजी जल्दी ही एकदम ठीक हो जाएंगी. मैं फिर शाम को आता हूं. बाय, टेक केयर”, वह तनिक मुसकराते हुए उसे विचारमग्न छोड़ कमरे के बाहर चला गया.
उसे एक बार फिर अपने सामने देख अंतर्मन में एक अजानी, अबूझ सी कसक उठी, ‘काश… कबीर हमेशा मेरे इर्दगिर्द रहता. मेरा कुछ हक होता उस पर…’
तभी अपने अनर्गल विचारों के प्रवाह से घबरा कर वह यों ही अपना फोन ले व्हाट्सऐप पर सुबह से आए मैसेज पढ़ने लगी. कबीर का चेहरा मानो उस के जेहन में फ़्रीज़ हो गया था. तभी उसे लगा, जैसे मानव और कबीर के चेहरे आपस में गडमगड्ड हो रहे थे. घबरा कर वह उठ खड़ी हुई, और मां का पानी का जग उठा कर रसोई की ओर चल दी.
तभी उस के लौजिकल सैंस ने उसे चेताया, “मौशमी, तू यह क्या अंटशंट सोच रही है? कबीर एक विवाहित पुरुष है. नहींनहीं, आज जो सोचा सो सोचा. आगे से ऐसा खयाल तक मन में नहीं लाना चाहिए.’ इस सोच से उसे कुछ बेहतर फ़ील हुआ, और वह रसोई में गृह सहायिका को कुछ निर्देश देने लगी.
मां को ठीक हुए पूरे 2 माह होने को आए. अब वे चलफिर लेती थीं और अस्पष्ट स्वरों में बात कर लेती थीं.
प्रीशा भी बड़ी हो रही थी.
उस का औफिस रूटीन फिर से शुरू हो गया था.
प्रीशा को फिर से मां और एक विश्वसनीय सहायिका की निगरानी में छोड़ वह औफिस से शहर के बाहर एकएक सप्ताह के टूर पर कभी अनुराग तो कभी कबीर के साथ जाने लगी. पीछे से कबीर और अनुराग में से जो भी शहर में होता, उसे घर पर नजर रखने के लिए कह कर जाती.
पति की मौत के बाद उस की जिंदगी में जो भावनात्मक शून्य आ गया था, उस से मैत्री की डोर से बंधे ये 2 पुरुष उस की भरपाई बेहतरीन ढंग से कर रहे थे.
कभीकभी तो वह और प्रीशा, अनुराग, कबीर, उस की पत्नी जान्हवी, और उन का इकलौता बेटा ध्रुव भी आउटिंग पर कभी फ़न पार्क, तो कभी किसी बढ़िया रिजोर्ट जाते, और खूब मस्तीधमाल करते.
परिणामस्वरूप उस का जीवन कुल मिला कर सही ट्रैक पर चल रहा था.
पर अनुराग जब भी उस के घर आता, पत्नी को बिना बताए आता. कभी प्रीशा उस से कहती भी, “अंकल, आप भी कबीर अंकल, आंटी और ध्रुव भैया की तरह अन्नू आंटी और रौनक के साथ आया करो.” तो वह अपने चिरपरिचित अंदाज में हो…हो…कर हंसते हुए कहता, “बेटा, तुम्हारी यह अन्नू आंटी तो पूरी थानेदारनी है. अगर मैं ने उसे बता दिया कि मैं प्रीशा और उस की मम्मा के साथ आउटिंग पर जाता हूं, तो सच कह रहा हूं, मेरा इधर आना पक्का बंद हो जाएगा.”
इस पर प्रीशा हंसतेहंसते दोहरी हो जाती और उस के साथसाथ सब खिलखिला पड़ते.
उस दिन रविवार का अवकाश था. रात के 10 बजे थे.
प्रीशा और मां भीतर सो रही थीं. तभी अनुराग घर आया.
“हाय मौशमी, एक फ्रैंड के यहां पार्टी थी, वहीं से आ रहा हूं. यह अन्नू वास्तव में पूरी हिटलर है. दो पैग से ज्यादा पीना अलाउ ही नहीं करती. अरे यार, अब थोड़ा और पीने की इतनी तलब उठ रही है कि क्या बताऊं, सो, यह खरीद कर ले आया. यहां पिऊंगा”, उसे अपने हाथ में थामी बीयर की बोतल दिखाते हुए उस ने देखतेदेखते मौशमी के चेहरे को हौले से सहला दिया.
यह सब इतनी जल्दी हुआ, मौशमी कुछ सोच ही नहीं पाई कि क्या हुआ. जब उसे वस्तुस्थिति का भान हुआ, वह अनुराग पर जोर से चीखी, “मिस्टर अनुराग, यह क्या था? आप ने किस हक से यह बदतमीजी की?”
“बदतमीजी, कैसी बदतमीजी, मौशमी? दिनरात आप के यहां कबीर बैठा रहता है. दिन तो दिन, वह तो अपनी रातें भी यहां काटता है, और मेरे सामने सतीसावित्री बनने का ढोंग कर रही हो.” यह कहते हुए चेहरे पर एक कुत्सित, कुटिल मुसकान लाते हुए उस ने मौशमी के कंधे पर हाथ रखा ही था, कि झटके से पीछे होते हुए वह फिर से उस पर जोर से चिल्लाई, “अनुराग, आप यह क्या कर रहे हैं. मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. इतने दिनों से मैं आप को अपना सच्चा दोस्त और हितैषी मानती रही, लेकिन आज मुझे लग रहा है कि मैं गलत थी. आप प्लीज फौरन यहां से चले जाइए, और फिर कभी यहां मत आइएगा. आज आप होश में नहीं हैं. प्लीज लीव.” आज शायद उसे ज्यादा ही चढ़ गई थी. इसलिए उस ने मौशमी की ओर फिर से अपने कदम बढ़ाए, जिस से उस के गलत इरादे भांप कर वह चीखी, “अनुराग, होश में आइए. अगर आप यहां से नहीं गए तो मैं अन्नू को अभी फोन लगाती हूं.” यह कहते हुए वह तेज़ी से अपने कदम पीछे लेते हुए, वास्तव में उस की पत्नी को फोन लगाने लगी.
मौशमी की यह युक्ति काम आ गई, और अनुराग उस की ओर अतीव गुस्से से देखते हुए शिथिल कदमों से दरवाजे से बाहर निकल गया.
उस के दरवाजे से बाहर जाते ही मौशमी ने चैन की सांस लेते हुए धुकधुक करते हृदय से दरवाजा बंद किया, और मां के पास चली गई.
मां अभी तक नहीं जगी थी. मौशमी अनुराग की इस बेजा हरकत से बेहद डिस्टर्ब्ड थी. वह यह सोच ही रही थी कि इंसानी फितरत कितनी अन्प्रेडिक्टेबल होती है.
तभी कबीर आ गया. “हैप्पीहैप्पी बर्थडे, कबीर. तुम्हें वह हर चीज मिले जो तुम चाहते हो. गौड ब्लेस यू,” मौशमी ने कबीर को पूरे मन से विश किया.
कबीर के बर्थडे का नोटिफिकेशन उस ने अभीअभी फोन पर फेसबुक पर देखा था. उस के कबीर को विश करते ही कबीर ने झुक कर सहज स्नेहभाव भाव से “थैंक्स सो मच दीदी” कहते हुए उस के पैर छू लिए.
“कबीर तुम ने मुझे बहन बुलाया तो कल भाईदूज पर तुम विद फैमिली यानी जान्हवी और ध्रुव के साथ मेरे यहां इन्वाइटेड हो.”
“ओके, श्योर दीदी. जैसा आप कहें. हम सब भाईदूज आप के घर ही मनाएंगे. वैसे भी, मेरी कोई बहन नहीं है.”
मानव की मृत्यु के बाद आज शायद पहली बार उसे लगा, वह अकेली नहीं है. कबीर उस के साथ है, एक भरोसेमंद दोस्त और भाई के रूप में.
मनआंगन से कलुष का अंधकार छंट गया. वह मुसकरा उठी.