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चुनौतियां-भाग 1: गुप्ता परिवार से निकलकर उसने अपने सपनों को कैसे पूरा किया?

भारतीय सेना में स्थाई कमीशन प्राप्त करने वाली महिला अफसरों का यह पहला तकनीकी बैच था. सभी मेकैनिकल इंजीनियर थीं. आईएमए, देहरादून में डेढ़ साल की सख्त ट्रेनिग के बाद पासिंग आउट हुई थीं. मैं, लैफ्टिनैंट नीरजा गुप्ता, सैनिक परिवार से नहीं थी. अकसर सभी महिला अफसर सैनिक परिवारों से थीं. मैं केवल गुप्ता परिवार से थी. पंजाब के व्यापारिक परिवार की लड़की यानी मैं ने घर में सब के विरोध करने के बावजूद सेना को अपना कैरियर बनाया था. अलगअलग प्रदेशों से आई लड़कियां अपनेअपने प्रदेश की सुंदरता लिए हुए थीं. एक से बढ़ कर एक लड़िकयों के सुंदर, स्टाइलिश बाल थे.

हम सभी जेंटलमेन कैडट थीं. यूनीफौर्म और किट के अन्य सामान दिलाने के बाद हमें सीधे बारबर शौप ले जाया गया था. सुंदर ढंग से सजी हुई थी बारबर शौप. देख कर सभी का मन खुश हो गया था. सैनिक परिवारों से आई लड़कियां जानती थीं कि अब क्या होने वाला है. उन में से सिख परिवार से आई लड़की सुरिंदर कौर से मैं ने पूछा था, उन के पिता कर्नल थे, ‘यहां हमारे बाल स्टाइलिश किए जाएंगें?’

‘झली, होईं ऐं. यहां सब के मुंडन किए जाएंगे. बाल इतने छोटे किए जाएंगे कि कैप से बाहर दिखाई न दें.’
फिर हमारे बालों की वह रेड़ मारी गई थी कि सभी जिंदगीभर भूल नहीं पाएंगी. इतना ख़याल जरूर रखा गया था कि हमें जीसी लड़कों की तरह गंजा नहीं किया गया था. बाल छोटे तो किए गए थे लेकिन पीछे मशीन नहीं लगाई गई थी. फिर भी बहुत सी लड़कियां तो अपनी शक्ल देख कर रो पड़ी थीं. जो रो रही थीं या नहीं भी रो रही थीं, हमारे साथ आए इंस्ट्रक्टर हरनाम सिहं जी ने हमें तीन लाइन में खड़ा किया और अपनी बुलंद आवाज में कहा था, ‘ जैंटलमेन कैडटस, मेरी बात ध्यान से सुनें.

आप सब रोना, धोना बंद करें. बालों का क्या है, जब मरजी बढ़ा लो. यह तो घर की खेती है. आप सब भारतीय सेना की अधिकारी बनने जा रही हैं. ट्रेनिंग में लंबे बाल बाधा डालते हैं. बाल कैप से बाहर दिखाई नहीं देने चाहिए. अब सभी अपनेअपने कमरों में जाएंगी और नहा कर कल से शुरू होने वाली ट्रेनिंग की तैयारी करेंगी. इस के लिए आप के सहायक आप की मदद करेंगे. बाएं मुड़, तेज चल.’ वे हमें हमारे कमरों तक छोड़ गए थे. एक कमरे में 3 लड़कियों को रखा गया था. फिर इस मनोवैज्ञानिक ढ़ग से ट्रेनिेग चली कि पासिंग आउट होने तक पता ही नहीं चला था.

मेरी पहली पोस्टिंग हाईएल्टीट्यूड की एक वर्कशौप में हुई थी. नियरेस्ट रेलवे स्टेशन चंडीगढ़ था. मुझे चंडीगढ़ के ट्रांजिट कैंप में रिपोर्ट करनी थी. मेरे कमांडिंग अफसर ने यूनिट में स्वागत करते हुए लिखा था कि यूनिट फील्ड में है, फैमिली क्वार्टर नहीं है. वार्षिक छुट्टी नहीं दी जाती है. 20 दिनों की कैजुअल लीव दी जाती है. यह एक रूटीन लैटर था जो हर नई पोस्टिंग पर आने वाले अफसर को लिखा जाता है.
आईएमए से पोस्टिंग आने से पूर्व हम सभी महिला अफसरों के बैच को लैक्चर हौल में इकट्ठा किया गया था. मनोचिकित्सक डा. रागिनी मल्होत्रा हम से बात करेंगी.

 

जी-20 में अवसर

दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का एक क्लब है जी-20. इस में बारीबारी से हरेक देश को अध्यक्षता मिलती है और चूंकि देश 20 ही हैं, सभी की बारी आनी ही है. भारत का नंबर एबीसीडी के क्रम से 3 साल पहले आना था पर उस ने 2021 में इटली से कहा कि वह अध्यक्षता ले ले. उस के बाद 2022 में भी भारत ने अपनी जगह इंडोनेशिया से लेने को कहा.

देश में मौजूदा सरकार की यह सोचीसमझी चाल थी कि जी-20 की सभा के लिए वर्ष 2023 में अमेरिका, इंगलैंड, रूस, चीन, जापान, फ्रांस, जरमनी, कनाडा जैसे देशों के अध्यक्ष ऐन 2024 के पहले भारत में आएं ताकि यहां के मूर्ख लोगों को बहकाया जा सके कि नरेंद्र मोदी की खासीयत देखो, वे जी-20 ग्रुप के अध्यक्ष पद पर भारत को बैठा रहे हैं.

अब भारतीय जनता पार्टी इसे भुनाने में लग गई है और हर शहर में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता इसे महान उपलब्धि बता रहे हैं. जबकि, पिछले शिखर सम्मेलनों में यहां की सत्तारूढ़ पार्टियों ने मेजबानी की, रहनेखाने का प्रबंध किया पर उसे वोटों के लिए नहीं भुनाया.

1999 में शुरू हुई जी-20 की सभा 2008 के बाद हर साल 20 देशों में से एकएक कर के हर देश में की जा रही है. यह 2008 में वाशिंगटन में हुई, फिर लंदन, मास्को, टोरंटो (कनाडा), सियोल (दक्षिणी कोरिया), फ्रांस, चीन, अर्जेंटाइना, सऊदी अरब, ब्राजील आदि में. भारत एक बड़ा देश है, दुनिया की सब से ज्यादा आबादी यहीं है और कुछ देशों में जितने लोग रहते हैं, उतने तो यहां हर साल बढ़ जाते हैं. प्रतिव्यक्ति 2,000 डौलर वाले देश की आर्थिक रैंकिंग गरीबों में है और मोदी के 8 सालों के शासन में ऐसा कुछ नहीं हुआ कि यह रैंकिंग सुधरी हो.

जी-20 की अध्यक्षता एक खेलतमाशा है जैसे 2019 में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को बुलाना तमाशा था. रामलीलाओं, दुर्गा यात्राओं वाले तमाशा पसंद करने वाली देश की जनता को यह तमाशा भी पसंद आएगा ही चाहे उस की जेब कितनी ही ढीली हो.

मैंने उम्र 27 साल है मैं काफी ज्यादा वेट पुट औन कर लिया है, जिस वजह से मुझे खुद पर शर्म आ रही है, क्या करुं?

सवाल

मेरी उम्र 27 साल है और मैं अपनी पढ़ाई कंपलीट कर चुकी हूं. कोई जौब नहीं करती. फूडी हूं. खाने पर कंट्रोल नहीं है. नतीजतन मैं ने काफी वेट पुटऔन कर लिया है. मुझे अपनेआप को देख कर खुद ही शर्म आती है. आत्मविश्वास कम होता जा रहा है. मैं अपने कपड़े खरीदने मार्केट नहीं जाती क्योंकि जब यह सुनने को मिलता है कि आप का साइज अवेलेबल नहीं है तो बहुत शर्म आती है. औनलाइन साइज मिल जाता है तो वही ड्रैस ले लेती हूं जिस में मेरा साइज होता है चाहे वह मुझे पसंद हो या न.

सब सलाह देते हैं कि वजन कम कर लोजिम जाना शुरू कर दो मगर वजन कम करना मेरे लिए मुश्किल हो रहा है. जिम जा कर भी खास फायदा नहीं हो रहा. लेकिन जब अपनी तरह के मोटे लोगों को देखती हूं कि इन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ रहा अपने मोटापे से तो मैं क्यों रातदिन अपने मोटापे को ले कर परेशान रहती हूं. कैसे अपनेआप को ले कर अपना नजरिया बदलूं?

जवाब

आप अकेली नहीं हैं जो बौडी शेमिंग से परेशान हैं. आप मोटी हैं तो मोटापा कम करना स्वयं आप के अपने हाथ में है लेकिन मोटापा कम करने से पहले आप को अपने अंदर की नैगेटिविटी बाहर निकाल कर अपने अंदर के पौजिटिव पौइंट को देखना होगा. आप में और भी तो कई खूबियां होंगीहर व्यक्ति में कुछ गुण जरूर होते हैं.

यह सच है कि पहली बार नजर चेहरे परशरीर की खूबसूरती पर जाती है लेकिन यह आकर्षण ज्यादा देर नहीं ठहरता. व्यक्तित्व की खूबी ही लोगों के मन में टिकती है.

आप को खुद भी अपना नजरिया बदलने की जरूरत है. यदि आप पर कोई तंज कसे तो उसे दिल पर न लें. सामने वाले की बात का हंसते हुए जवाब दें. लोगों की बात पर चिढ़ना छोड़ देंनाराज न हों तो धीरेधीरे सामने वाला व्यक्ति भी चिढ़ाना बंद कर देगा. इस तरह आप मानसिक रूप से मजबूत हो जाएंगी.

वैसेव्यक्ति जब कुछ करने की ठान लेता है तो उसे अंजाम देने में वह अपना जीजान लगा देता है. मोटापा कम करना कोई बड़ी बात नहीं है. आप की उम्र भी ज्यादा नहीं है अभी. एक बार फिर कोशिश कीजिएसफलता जरूर मिलेगी.

छत्तीसगढ़ में हाथी समस्या

जंगलों की अथाह कटाई और अंधाधुंध खदानों में ब्लास्ट से जंगली जानवरों का रहवास खतरे में है. नतीजतन, छतीसगढ़ में हाथी समस्या बढ़ने लगी है जहां भोजनपानी की तलाश में वे घरों और फसलों का नुकसान करने लगे हैं. छत्तीसगढ़ में बेसहारा मवेशियों के लिए गौठान बनाए गए हैं. शहरों में भटकने वाले गायबैल को पकड़ कर गौठानों में ले जाया जाता है. वहां उन्हें पाला जाता है. उन के गोबर से खाद बना कर बेची जाती है.

ग्रामीणों से भी सरकार गोबर खरीदती है. इस से पशुपालकों को रोजगार मिल गया है. जो गोबर मिलता है, उस से स्वसहायता समूह से जुड़ी महिलाएं खाद के साथ ही राखी, पेंट तैयार कर के बेचती हैं. पिछले साल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल गोबर से निर्मित सूटकेस ले कर बजट पेश करने विधानसभा में गए थे. इस की चर्चा पूरे देश में हुई थी. इसी तरह गोबर से बनी राखियां राज्य में तो बिकी ही हैं, उन की इतनी लोकप्रियता बढ़ी कि उन्हें अन्य राज्यों के लोगों ने भी पसंद किया और मंगवाया. बेसहारा मवेशियों के हित में तो काम हो रहा है, लेकिन हाथी संकट में हैं.

हाथियों के रहवास क्षेत्र तक आदमी पहुंच गया है. वहां लोग बस गए, खेती करने लगे. जंगलों की कटाई और पत्थर खदानों में अंधाधुंध ब्लास्ट रुक नहीं रहा है. ऐसे में हाथी कहां जाएं? वे भोजन और पानी की तलाश में गांवों में घुस आते हैं तथा फसलों व घरों को तो नुकसान पहुंचाते ही हैं, लोगों की जान भी ले लेते हैं. कई हाथियों की भी मौत हो चुकी है. खेतों की सुरक्षा के लिए कुछ किसान बाड़ी में बिजली का करंट फैलाए रहते हैं. करंट में फंस जाने के कारण कई हाथियों की मौत हो चुकी है. यह अत्यंत चिंता की बात है. वन विभाग का अमला हाथी समस्या दूर नहीं कर पा रहा है. हालांकि हाथियों को गांवों में आने से रोकने के लिए कई प्रयोग किए गए लेकिन वे सफल नहीं हुए.

हाथी समस्या सरकार के सामने चुनौती बनी हुई है. राज्य के हाथी प्रभावित जिले 1990 के दशक में हाथी मध्य प्रदेश, ?ारखंड और ओडिशा से छत्तीसगढ़ में घुसे. पहले वे सरगुजा जिले में आए. वहां से उन का 4 और जिलों कोरबा, कोरिया, रायगढ़, जशपुर में फैलाव हुआ. अब तो हाथी समस्या से राज्य के 10 जिले प्रभावित हैं. हाथी अब महासमुंद, बलौदाबाजार, गरियाबंद, बलरामपुर और सूरजपुर में भी आ गए हैं. सिर्फ इतना ही नहीं, वे राजधानी रायपुर के कई निकटवर्ती गांवों में पहुंच कर भी उपद्रव मचाते हैं. राज्य का धमतरी जिला भी हाथी पीडि़त होता जा रहा है.

फिलहाल 36 हाथी घूम रहे हैं. ये 2 ?ांडों में हैं. एक ?ांड में 2 दंतैल हैं तो दूसरे में 34 हाथी. इन में 2 दंतैल वाला ?ांड ज्यादा खतरनाक है. इन दंतैलो ने बीते डेढ़ साल में 10 लोगों की जानें ले ली हैं. वैसे तो जंगली हाथी इंसानों से दूरी ही रखते हैं, लेकिन इन 2 दंतैलों को कोई इंसान दिख जाए तो ये उसे छोड़ते नहीं हैं. उस की जान ले कर मानते हैं. धमतरी जिले में ही ये 2 दंतैल 10 लोगों को बेरहमी से मार चुके हैं. ये 2 दंतैल फिलहाल धमतरी फौरेस्ट रेंज के अकला डोंगरी इलाके में घूम रहे हैं.

इन की दहशत के कारण आसपास के गांवों में लोग रतजगा कर रहे हैं और पहरा दे रहे हैं. रात के समय ये हाथी बस्तियों में चले आते हैं. इसलिए जिन के मकान पक्के हैं, वे छत पर ही सो रहे हैं. राज्य में कितने हाथी छत्तीसगढ़ में वर्तमान में 339 जंगली हाथी हैं. इन में से सिर्फ 90 हाथी अभयारण्य क्षेत्र और टाइगर रिजर्व में हैं. 22 साल में मरे 21 हाथी जिले में हाथियों की मौत की बात करें तो वर्ष 2000 से 2022 तक 21 हाथियों की मौत हो चुकी है. इन में 11 नर हाथी, 4 मादा हाथी और 6 शावकों की मौत हुई है. सब से अधिक 9 मौतें बिजली करंट की चपेट में आने से हुई है.

वहीं दलदल, गड्ढे आदि में फंसने से भी मौतें हो चुकी हैं. 5 साल में 263 जानें लेने के साथ सिर्फ 2019 में 750 से अधिक मकान तोड़ चुके हाथियों ने 2,850 से अधिक हैक्टेयर फसल रौंद डाली है. कैसे हो हाथियों से बचाव ऐसा माना जाता है कि हाथियों को तेज रोशनी दिखा कर, पटाखे फोड़ कर, मिर्च पाउडर से युक्त गोबर के कंडे जला कर, मधुमक्खी जैसी तेज भनभनाहट वाली आवाज निकाल कर और ढोल बजा कर भगाया जा सकता है. ये उपाय छत्तीसगढ़ में किए जा रहे हैं. हाथियों को कौलर आईडी भी वनविभाग ने लगाया था, ताकि उन के लोकेशन का पता लग सके.

कई हाथियों के कौलर आईडी गिर गए हैं, दोबारा लगाए जाएंगे. सर्वाधिक नवाचार वर्ष 2016 से 2019 के बीच 3 वर्षों तक चला. परिस्थितियों के अनुरूप रणनीति बदलती चली गई, लेकिन समस्या आज भी वही है जो नवाचार आरंभ होने के पहले दिन थी. हाथियों से जानमाल की सुरक्षा के लिए सरगुजा वनवृत्त में इतने अधिक नवाचार हुए कि वर्तमान अधिकारियों को सबकुछ याद भी नहीं रह गया है. हर एक घटना के बाद एक नए प्रयोग के साथ वन विभाग हाथी प्रभावित क्षेत्र में सामने आया. कुछ दिनों तक रणनीति सफल होती नजर आई.

उस के बाद ऐसी कुछ घटनाएं हुईं जिन से विभाग को अपनी रणनीति बदलनी पड़ी. हाथियों से जानमाल की सुरक्षा को ले कर वर्ष 2019 तक जो कोशिशें हुईं, वे अब नजर नहीं आती हैं. प्रभावित क्षेत्र में मैदानी कर्मचारियों को ही हाथियों से जनधन का नुकसान बचाने के लिए जू?ाते देखा जा सकता है. वनवृत्त और वनमंडल स्तर के अधिकारियों से मिलने वाली वाहवाही भी अब बंद हो चुकी है. हर नवाचार की तोड़ जंगली हाथी भी निकालते रहे हैं. अभी भी हाथी समस्या चिंतनीय बनी हुई है.

मुद्दा: युवा शक्ति को निकम्मा बनाती सरकार

युवा ताकत को सत्ता के लालची भेडि़यों ने साजिशन ऐसे कुचक्रों में फंसा रखा है कि जिन से नेताओं को तो सत्ता का सुख हमेशा मिलता रहे मगर देश के युवाओं को स्थायी काम और पैसा कभी न मिले क्योंकि उसी का लौलीपौप दिखा कर ही सालोंसाल चुनाव जीतना है. भारत दुनिया में सब से ज्यादा युवा आबादी वाला देश है. युवाओं के मामले में चीन भी उस से पीछे है. संयुक्त राष्ट्र संघ के वैश्विक विकास कार्यक्रम यूएनडीपी के आंकड़ों के मुताबिक, दुनिया में 121 करोड़ युवा हैं, जिन में सब से ज्यादा 21 फीसदी भारतीय हैं. भारत अपने 15 से 30 साल की उम्र के लोगों को युवा मानता है जो भारत की आबादी का 27 फीसदी हिस्सा हैं.

मगर इतनी बड़ी युवा आबादी का अधिकांश हिस्सा अशिक्षित, बेरोजगार, भूख और गरीबी का शिकार है. वहीं, पैसे की तंगी और भूख इन युवाओं को अपराध की तरफ धकेल रही है. वैसे तो लोकतंत्र के बारे में कहा जाता है कि इस में सभी को समान अवसर मिलता है पर भारत में व्यावहारिक धरातल पर स्थिति बिलकुल विपरीत है. युवा ताकत को सत्ता के लालची भेडि़यों ने साजिशन ऐसे कुचक्रों में फंसा रखा है कि जिस से नेताओं को तो सत्ता का सुख हमेशा मिलता रहे मगर देश के युवाओं को स्थायी काम और पैसा कभी न मिल सके क्योंकि उसी का लौलीपौप दिखा कर ही एक के बाद एक चुनाव जीतना है. सियासत ने युवाओं को धर्म के आडंबरों में फंसा रखा है. धर्म के नाम पर युवाओं को उकसाया जाता है. उन्हें धर्म के नाम पर डराया जाता है. धर्म के नाम पर उन से धन उगाही होती है.

हर कदम पर धर्म के नाम पर उन की मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा पंडे, मुल्ला, पादरी डकार जाते हैं. आज भारतीय युवा धर्म के ढोल बजा रहे हैं. वे धर्म की पताकाएं फहरा रहे हैं. धर्म के नाम पर वे उन्मादी जुलूस निकाल रहे हैं, नारेबाजी कर रहे हैं और मारकाट मचा रहे हैं. मोदी सरकार संघ के संविधान और एजेंडे से बाहर ?ांक देश के संविधान व असली विकास के मुद्दों पर फोकस ही नहीं करती. उस के पास युवाओं के विकास की न तो नीयत है, न कोई मौडल है और न कोई रोड मैप. युवाओं को शिक्षा और रोजगार देने की जगह उन्हें क्षेत्रवाद, जातिवाद, प्रांतवाद, भाषावाद, अलगाववाद, नक्सलवाद, आतंकवाद, संप्रदायवाद जैसी बातों में उल?ा कर राजनीतिज्ञ सिर्फ अपना उल्लू सीधा करते हैं. सरकार संसद में आंकड़े गिनवाती है कि देशभर में इतने स्कूलकालेज सरकार ने खोल दिए, मगर उन शिक्षा संस्थानों की असलियत क्या है?

स्कूल की चारदीवारी है तो बच्चों के बैठने के लिए बैंच-टेबल नहीं हैं, किताबें नहीं हैं. जहां किताबें हैं वहां टीचर नहीं हैं. जहां टीचर हैं उन की खुद की शिक्षा इतनी अधूरी है कि वे बच्चों को पढ़ाने के काबिल नहीं हैं. गांव, कसबों और पिछड़े इलाकों में शिक्षा के प्रति जागरूकता की इस कदर कमी है कि बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए कहीं मिडडे मील का लालच देना पड़ता है, कहीं मुफ्त राशन बांटा जाता है, कहीं कपड़े और किताबें वितरित की जाती हैं तो कहीं ?ाले लगवाए जाते हैं कि किसी तरह बच्चे स्कूल तक आएं. बावजूद इस के, समाज में शिक्षा के प्रति जागरूकता के अभाव में गरीब बच्चे स्कूल नहीं आते. गरीब मांबाप अपने बच्चों को स्कूल भेजने के बजाय उन से मजदूरी करवाना बेहतर सम?ाते हैं, ताकि चार पैसे घर में आएं और परिवार का पेट पले.

शहरी सरकारी स्कूल के टीचर बच्चों को पढ़ाने के बजाय चुनावी ड्यूटी देने, सरकार के वैक्सीन प्रोग्राम को सफल बनाने, स्वच्छता अभियान चलाने जैसी सरकारी योजनाओं में ज्यादा लगे रहते हैं. देश की राजधानी दिल्ली में नगरनिगम के स्कूलों का यह हाल है कि गर्मी की छुट्टियां समाप्त होने पर नए एडमिशन के लिए अध्यापकों को स्लम और पिछड़े इलाकों में घरघर भेजा जाता है कि वे गरीब मांबाप को सम?ाएं कि वे अपने बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाएं. वे उन्हें मिडडे मील का लालच देते हैं, मुफ्त राशन का लालच देते हैं, कपड़ोंकिताबों का लालच देते हैं. फिर भी अधिकांश लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेजना चाहते हैं.

वे कहते हैं कि सरकारी स्कूल में पढ़ कर हमारा बच्चा कौन सा कलैक्टर बन जाएगा, आखिर करनी तो उसे मजदूरी ही है, सो अभी से कर ले वही ज्यादा अच्छा है. गौरतलब है कि सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश की 21.9 फीसदी आबादी आज भी गरीबीरेखा से नीचे है. खुद सरकार का कहना है कि गांवों में रहने वाला गरीब व्यक्ति हर दिन 26 रुपए और शहर में रहने वाला गरीब व्यक्ति 32 रुपए खर्च नहीं कर पा रहा है. ऐसे में वह अपने बच्चों को पढ़ने भेजे या परिवार का पेट पालने के लिए उस से काम करवाए, यह गंभीर प्रश्न है. ऐसे गरीबों के बच्चे जो शिक्षित नहीं हो पाते हैं वे जीवनभर कम पैसों की मजदूरी ही करते रहते हैं और ठेकेदारों के हाथों शोषित होते हैं. वे नशे की लत का शिकार भी हो जाते हैं और इसी तबके के लोग ही ज्यादातर आपराधिक गतिविधियों में भी लिप्त होते हैं.

ये युवा देश को फायदा देने से अधिक नुकसान पहुंचाते हैं. उच्चवर्ग के लोगों, जिन के पास खूब दौलत है, के बच्चे बड़ेबड़े प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं. यह तबका अपने बच्चों की पढ़ाई और प्राइवेट ट्यूशन पर खूब पैसा खर्च करता है लेकिन उन की पढ़ाई का लक्ष्य विदेशी नौकरियों में जाना और बाद में वहीं सैटल होना होता है. अब तो मध्यवर्ग भी लोन ले कर अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलकालेज में इसी उद्देश्य से पढ़ाने लगा है कि उस के बच्चों के लिए विदेश जाने का रास्ता तैयार हो जाए. ऐसे में विदेश में काम करने और रहने का लक्ष्य ले कर भारतीय संसाधनों का इस्तेमाल कर पढ़ने वाले बच्चों की ऊर्जा, कौशल, ज्ञान और संचित धन का कोई फायदा देश को नहीं होता है. रह जाता है बीच का तबका, जो अपने बच्चों को इसलिए पढ़ाता है ताकि वह किसी सरकारी नौकरी में आ जाए जहां उसे ज्यादा काम न करना पड़े मगर तनख्वाह के साथ कुछ ऊपरी आमदनी भी हो जाए. इस तबके के युवाओं के सपने उन की मूलभूत आवश्यकताओं तक ही सीमित होते हैं. जैसे, एक लिपिक की नौकरी मिल जाए और रोजीरोटी का जुगाड़ हो जाए बाकी थोड़ीबहुत ऊपरी कमाई हो जाए तो सोने पर सुहागा.

यह वर्ग काफी बड़ा है. यह वर्ग दब्बू किस्म का भी है. यह सरकार से भी डरता है और भगवान से भी डरता है. अंधविश्वासों में ग्रस्त यह वर्ग सुबह से शाम तक धार्मिक क्रियाकलापों में लिप्त रहता है. इस वर्ग वालों की सुबह ईशवंदना से शुरू होती है. यह वर्ग लोग ब्राह्मण को अपनी कमाई का एक हिस्सा दान कर पुण्य कमाने का इच्छुक होता है. पंडित-मौलवी के कहने पर ये व्रत-रोजा भी करते हैं और दान-जकात में पैसा बरबाद करते हैं. यही वह वर्ग है जो बड़ी संख्या में तीर्थयात्राएं करता है और यही वर्ग भ्रष्टाचार में भी लिप्त होता है. छोटेछोटे फायदे के लिए यह किसी के भी हाथ बिक जाता है. सियासत इस वर्ग का बखूबी फायदा उठाती है. देश में धार्मिक उन्माद पैदा करना हो, राजनीतिक रैलियों में भीड़ जुटानी हो, तालीथाली बजवानी हो, जुलूस निकलवाने हों तो इस वर्ग के युवाओं को ही इस्तेमाल किया जाता है. इस बीच के वर्ग के युवाओं को महीनेभर की जिंदगी आराम से काटनेभर पैसे का जुगाड़ हो जाए, उस से आगे की सोचने की जरूरत महसूस नहीं होती है. इस वर्ग के युवा 10-15 हजार रुपए महीना कमाने के साथ दिनभर ‘शोना बेबी’ और ‘शोना बाबू’ करने में व्यस्त हैं. वीकैंड में शराब और जुआ पार्टी कर लेते हैं.

कोई रातरातभर पोर्न देखने में व्यस्त है, कोई इंस्टाग्राम और फेसबुक पर सैल्फी पोस्ट करने या अपने धर्म के नेता का महिमामंडन व उस का प्रचार करने में व्यस्त है. कोई ब्रेकअप के बाद 4 घूंट शराब का सहारा लेता दिखता है तो कोई टिकटौक और वीडियो गेम खेल कर समय बरबाद करता नजर आता है. कोई घंटों तक नैटफ्लिक्स पर आने वाले शो और फिल्मों में व्यस्त रहता है तो कोई सिर्फ दुनिया को दिखाने के लिए व्यस्त होने का ढोंग करने में व्यस्त है. उच्चवर्ग और मध्यवर्ग के लोगों में ही कुछ वे युवा हैं जो सरकारी नौकरियों में उच्च पद पर भी आसीन होते हैं मगर यह संख्या देश की युवा आबादी को देखते हुए बहुत मामूली सी है. डाक्टर, इंजीनियर, आईएएस, पीसीएस, वकील और जज बनने वाले युवा निसंदेह अपनी मेहनत के दम पर समाज में अपना नाम और दबदबा कायम करते हैं, मगर देश और समाज के लिए कुछ अच्छा करने की इन की नीयत, काबिलीयत और ऊर्जा पर सरकार हावी रहती है. इन्हें सरकार की इच्छानुसार काम करना पड़ता है.

शुरूशुरू में इन के उच्च आदर्शवादी विचार होते हैं मगर जल्दी ही इन्हें पता चल जाता है कि आदर्श सिर्फ बातों तक ही सीमित रखना है. धरातल पर वही चलेगा जो सरकार चाहेगी. चंद अपवादों को छोड़ दें तो अधिकांश कुछ साल के बाद ही ये सरकार को कमा कर देने लगते हैं और खुद की जेबें भी भरते हैं. देश में भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत करने में ब्यूरोक्रेसी के रोल से दुनिया वाकिफ है. जनकल्याण की तमाम योजनाएं इन की फाइलों में ही बंद रहती हैं. निचले तबके तक न तो ये शिक्षा का सही संदेश पहुंचा पाते हैं, न शिक्षा की समुचित व्यवस्था कर पाते हैं, न युवाओं के लिए कोई ठोस कार्य योजना बनाते हैं और न ही युवाओं को सचमुच रोजगार से जोड़ने का प्रयत्न करते हैं. वे उतना ही करते हैं, जितना सत्ता उन से करने को कहती है और सत्ता अपना नफानुकसान देख कर इन से काम लेती है. अपने नागरिकों को बस उतना ही देती है जितने में वे बंध जाएं और अगले चुनाव में फिर जीत दिलवाएं. सांस लेते रहें, मर न जाएं. सपना देखें पर पूरा न कर पाएं. आज जो युवा हिंदी मीडियम से भी ग्रेजुएट हो गया वह परिवार में पीढि़यों से चले आ रहे किसी हाथ के हुनर वाले काम से नहीं जुड़ना चाहता है.

वह अपने पैतृक पेशे को अपनाने से कतराता है. उसे कुरसीटेबल वाली नौकरी ही भाती है मगर सरकार के पास इतनी नौकरियां कहां हैं? फिर सरकार बेरोजगारी भत्ता बांट कर उन की आवाज दबा देती है. फ्री राशन दे कर उन्हें आलसी और मुफ्तखोर बना देती है. मुफ्तखोरी की व्यवस्था राष्ट्रहित में नहीं है. यह देश की युवाशक्ति को पंगु बना देती है. व्यावहारिक नजरिए से यदि देखा जाए तो देश के अधिकांश घरों में यदि महीने का खर्च हजारदोहजार बढ़ जाए तो परिवार वालों को यह सोचना पड़ता है कि इस बढ़े हुए खर्च की भरपाई कैसे की जाए? कमोबेश सरकारें भी ऐसे ही चलती हैं. मुफ्त में कुछ देने के एवज में यदि खर्च बढ़ेगा तो उस की भरपाई कैसे होगी, इसे एक बहुत बड़ी समस्या के रूप में देखा जाना चाहिए. सिर्फ चुनावी वादे कर के जनता में लोकप्रिय होना आसान है पर उस के बाद क्या होगा, यही सब से विचारणीय प्रश्न है. देश में लोगों को स्थायी रूप से रोजगार मिले, लोगों को क्षणिक लाभ के बजाय स्थायी रूप से लाभ मिले, जिस से देश का भी भला हो. ऐसे उपक्रम अपनाने के बजाय सरकार रेवडि़यां बांट कर युवाओं को खुद से जोड़े रखने की साजिश करती है और फिर इसी युवा ताकत को चुनावी वक्त में अपने हित में भुनाती है. यह देश के लिए खतरनाक है.

पाचनतंत्र की गड़बडि़यां

खराब पाचनतंत्र इंसान में होने वाली कई बीमारियों का कारण बनता है. इस के खराब होने के अधिक कारणों में वे गलतियां होती हैं, इंसान जिन्हें जानेअनजाने करता है. ऐसे में इन गलतियों से बचें. एक अच्छी पाचन प्रणाली के 3 गुण होते हैं- पाचन, अवशोषण, निसन. यानी स्वस्थ पाचन प्रणाली वही है जो भोजन को पचाए, सेहतमंद पदार्थों को स्वस्थ शरीर के लिए इस्तेमाल करे और बेकार व विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर कर दे. इन्हीं चीजों से हमारा शरीर स्वस्थ होता है और रोगों को रोकने की क्षमता मजबूत होती है. हमारे पेट में मौजूद पाचक एंजाइम और एसिड खाए गए भोजन को तोड़ते हैं. जिस से कि पोषक पदार्थ शरीर में अवशोषित हो जाते हैं.

जो भी भोजन हमारे पेट में पूरी तरह नहीं पच पाता, वह शरीर के लिए बेकार होता है. डाक्टरों की सलाह है कि भोजन के अच्छी तरह पचने की शुरुआत हमारे मुंह से होती है. जी हां, जब हम भोजन को अच्छे से चबाते हैं तो वह उतनी ही अच्छी तरह से पचता भी है, क्योंकि इस से भोजन छोटेछोटे टुकड़ों में बंट कर लार में मिल जाता है. लार से सने हुए ये छोटेछोटे टुकड़े पेट में अच्छी तरह से टूट जाते हैं और शरीर को पोषण देने के लिए छोटी आंत में पहुंचते हैं. अगर आप अपने पाचनतंत्र को मजबूत रखना चाहते हैं तो इस के लिए न केवल सही भोजन का चुनाव जरूरी है बल्कि भोजन को अच्छे से चबा कर खाना भी जरूरी है.

अगर ऐसा नहीं होता तो भोजन पेट में ठीक से टूट नहीं पाएगा जिस से उस के पचने की प्रक्रिया बिगड़ जाएगी तो बेहतर यही कि खाना खाने से कम से कम 30 मिनट पहले व 30 मिनट बाद में ही पानी पिएं. मौसमों में पाचन प्रक्रिया प्रभावित होती है पेट के अंदर का शारीरिक ताप जो भोजन पचाने का काम करता है उसे गैस्ट्राइटिस कहते हैं. बरसात के मौसम में पानी और कीचड़ से बचने के लिए लोग अपनेअपने घरों से बाहर निकलने से कतराते हैं, जिस से शारीरिक सक्रियता कम हो जाती है.

इस तरह हमारा पाचनतंत्र नकारात्मक रूप से प्रभावित होता है. इस से बचने के लिए हलके, संतुलित और पोषक भोजन का सेवन करें. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें, बारिश के कारण अगर आप टहलने नहीं जा पा रहे हैं या जिम जाने में परेशान हो रहे हैं तो घर पर ही वर्कआउट करें. कई बार पाचक एंजाइमों की कार्य प्रणाली भी प्रभावित होती है, इस से भी खाना ठीक प्रकार से नहीं पच पाता है. तैलीय मसालेदार भोजन और कैफीन का सेवन जरूरत से ज्यादा होने से अपच की समस्या हो जाती है. नम मौसम में कीड़े और सूक्ष्म जीव अधिक मात्रा में पनपते हैं, इन से होने वाले संक्रमण से भी अपच की समस्या बढ़ जाती है. डायरिया एक खाद्य और जलजनित रोग है.

यह दूषित खाद्य पदार्थों और जल के सेवन से होता है. यह किसी को कभी भी हो सकता है. दस्त लगना इस का सब से प्रमुख लक्षण है. पेट में दर्द और मरोड़ होना, बुखार, मल में खून आना, पेट फूलना जैसे लक्षण भी दिखाईर् देते हैं. फूड पौइजनिंग के कारण भी डायरिया हो जाता है. जब हम ऐसे भोजन का सेवन करते हैं जो बैक्टीरिया, वायरस, दूसरे रोगाणुओं या विषैले तत्त्वों से संक्रमित होता है तो फूड पौइजनिंग होती है. अगर आसपास कीचड़, कचरा और गंदगी फैली है तो इस से यह बढ़ सकता है. पाचनतंत्र को दुरुस्त रखने और बीमारियों से बचने के लिए इन बातों का खास खयाल रखें- द्य संतुलित, पोषक और आसानी से पचने वाले भोजन का सेवन करें. द्य कच्चे खाद्य पदार्थ को नमी बहुत जल्दी पकड़ लेती है, इसलिए वहां बैक्टीरिया आसानी से पनप पाते हैं. यही बेहतर रहेगा कि कच्ची सब्जियां वगैरह न खाएं, सलाद के रूप में भी नहीं.

– ब्रैडपाव आदि खाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि उस में कहीं फफूंद तो नहीं लगी है. साथ ही, ब्रैडपाव के एक ही पैकेट को ज्यादा दिनों तक न इस्तेमाल करें.

– सड़क किनारे लगे ठेले और ढाबों पर खाना न खाएं क्योंकि इस तरह के भोजन से संक्रमण का खतरा अधिक होता है.

-ऐसा खाना खाएं जिस से एसिडिटी कम से कम हो.

-मांस, मछली और मीट अगर ढंग से रखा न गया हो तो उन को खाने से फूड पौइजनिंग की आशंका बढ़ जाती है. अंडा और मशरूम पका कर ही खाएं.

-पेट खराब हो तो तले हुए भोजन को खाने से दूर रखना ही बेहतर है क्योंकि इस से पाचन क्षमता कम होती है. कम मसाले और कम तेल वाला भोजन पाचन समस्याओं से बचाता है. –

-अधिक नमक वाले खाद्य पदार्थ, जैसे अचार, सौस आदि न खाएं या कम खाएं क्योंकि ये शरीर में पानी को रोकते हैं और इस से पेट फूलता है. द्य फलों और सब्जियों के जूस का भी कम मात्रा में सेवन करें, फल खाएं.

-ओवरईटिंग से हमेशा बचें और तभी खाएं जब आप को तेज भूख महसूस हो.

– ठंडे और कच्चे भोजन के बजाय गरम भोजन, जैसे सूप, अच्छी तरह से पका हुआ खाना खाएं.

नायिका-भाग 3: जाटपुर की सुंदरी की क्या कहानी थी?

मन ही मन वह उन 4 दरिंदों से बदला लेने की भी सोच रही थी. आखिर उन दरिंदों की वजह से ही तो उस की जिंदगी बरबाद हुई थी. अभी भी वह लाल दुपट्टा सुंदरी के पास था जिस को उन दरिंदों ने उस के मुंह में ठूंस कर उस गंदी घटना को अंजाम दिया था. उस निशानी को वह कैसे भूल सकती थी?

ईंटभट्ठे का ठेकेदार रामपाल था जो शराबी और औरतबाज भी था. ईंट भट्ठे पर काम करने वाली कई औरतों के साथ उस के अवैध संबंध थे. सुरक्षा के लिए उस के पास रिवाल्वर और बंदूक भी थी. जब से सुंदरी भट्ठे पर आई थी, रामपाल की नजर उस पर थी. वह उस की जवान देह को अपनी हवस का निशाना बनाना चाहता था. सुंदरी भी मन ही मन उन चारों दरिंदों से बदला लेने की कोई योजना बना रही थी. उस ने बहुत सोचसमझ कर रामपाल का निशाना बनना स्वीकार कर लिया.

रामपाल ने सुंदरी को अपने और निकट लाने के लिए उसे चाय और पानी पिलाने के काम पर लगा दिया. चाय और पानी पीने के बहाने वह सुंदरी को बारबार अपने औफिस में बुलाता रहता था. एक दिन अकेले में रामपाल ने सुंदरी पर अपनी इच्छा का निशाना साधते हुए कहा, ” सुंदरी, तुम बला की खूबसूरत हो.”

“अरे साहब, आप भी तो हट्टेकट्टे नौजवान हो,” सुंदरी ने मनमोहक मुसकान से जवाब दिया.

रामपाल इश्क लड़ाने का माहिर खिलाड़ी था. वह समझ गया कि शिकार खुद फंसने को तैयार है. तभी सुंदरी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, “साहब, सुना है कि आप पक्के निशानची भी हो.”

“हां सुंदरी, यहां कई बार जंगली जानवर आ जाते हैं तो उन पर निशाना साधना पड़ता है. पर तुम यह क्यों पूछ रही हो, क्या तुम्हें भी निशाना लगाना सीखना है?”

“अरे साहब, हमारा ऐसा नसीब कहां, जो कोई हमें निशाना लगाना सिखा दे,” सुंदरी ने बड़ी अदा से कहा.

रामपाल को यह विश्वास नहीं था कि शिकार उस के जाल में इतनी जल्दी फंस जाएगा. उस ने गरम लोहे पर चोट मारते हुए कहा, “अरे सुंदरी, क्या बात करती हो? तुम्हें बंदूक चलानी और निशाना लगाना हम सिखाएंगे. तुम कल हमारे साथ जंगलों में चलो, वहीं तुम्हें सबकुछ सिखा देंगे.”

सुंदरी तो ऐसे मौके की तलाश में पहले से ही तैयार बैठी थी. दोनों के उद्देश्य एकदूसरे से पूरे हो रहे थे. अब आएदिन रामपाल सुंदरी को पहाड़ी स्थानों पर ले जाता. वहां दोनों खूब मजे करते. लेकिन सुंदरी अपने उद्देश्य को भूली नहीं थी. वह तो इंतकाम की आग में लगातार जल रही थी. उसी हिसाब से वह खुद को योजनाबद्ध तरीके से तैयार कर रही थी. अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए जब वह बिलकुल तैयार हो गई तो उस ने अपने लाल दुपट्टे के 4 टुकड़े किए. 1-1 टुकड़ा एकएक दरिंदे के नाम.

सुंदरी को पता था कि नकटू का दूध का कारोबार है. वह रोज रात को 10 बजे के आसपास शहर से मोटर साइकिल से वापस गांव लौटता है. एक रात सुंदरी ने एक किसान के खेत से बाड़ का कंटीला तार चुरा लिया.
रात को गांव की सड़क सुनसान रहती थी. वह कंटीले तार को ले कर सड़क किनारे झाड़ियों के बीच बैठ गई. जैसे ही उस ने नकटू की मोटरसाइकिल की आवाज सुनी, वह चौकन्नी हो गई. उस ने कंटीले तार को सड़क के बीच में डाल दिया. तीखे मोड़ के कारण नकटू कंटीले तार को नहीं देख पाया. उस की मोटरसाइकिल कंटीले तार में बुरी तरह से फंस गई. नकटू इतनी जोर से गिरा कि उस की चीख निकल गई. सुंदरी अपने दुपट्टे का एक टुकड़ा वहीं छोड़ अपनी झोपड़ी पर पहुंच गई. उस के उद्देश्य का एक भाग पूरा हो चुका था.

अगले दिन खबर लगी कि नकटू की दुर्घटना में दोनों टांगें टूट गई हैं. उसे एक प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया गया है। डाक्टर ने लाखों का खर्च बताया है और टांगों को काटने की संभावना भी जताई है. यह सुन कर सुंदरी के दिल को बड़ी तसल्ली मिली. नकटू की दुर्घटना को महज एक हादसा माना गया. सुंदरी पर किसी को रत्तीभर भी शक नहीं हूआ.

अब सुंदरी के निशाने पर शाकिब था. उसे पता चला कि शाकिब तो काम धंधेकी तलाश में दिल्ली गया है. अब क्या किया जाए? सुंदरी ने पता लगाया कि शाकिब के तीनों बच्चे कस्बे में पढ़ने जाते हैं और शाम को 4 बजे घर लौटते हैं. दोपहर को शाकिब की अनपढ़ बीवी आफिया घर में अकेली रहती है. सुंदरी ने उसे लूटने की योजना बना ली.

इस के लिए सुंदरी ने एक बुरका खरीदा और कुछ नशे की गोलियां. नशे की गोलियों का इस्तेमाल कैसे किया जाता है, यह सब उस ने रामपाल से सीखा था जो लड़कियों को फांस कर उन की चाय या कोल्डड्रिंक में नशे की दवाई मिला कर उन्हें बेहोश कर उन के साथ गंदा काम करता था.

तब एक दिन शाकिब की दूर की रिश्तेदार बन कर सुंदरी बुरके में उस के घर में दाखिल हुई. आफिया घर में अकेली ही थी. वह शाकिब की रिश्तेदार के लिए चाय बना कर ले आई, यह उस का फर्ज था. सुंदरी ने बड़ी होशियारी से आफिया की चाय में नशे की दवा मिला दी. आफिया चाय पीते ही बेहोश हो गई और सुंदरी ने घर में रखे गहने और नकदी पर हाथ साफ कर दिया. वह अपने लाल दुपट्टे का दूसरा टुकड़ा वहीं छोड़ कर रफूचक्कर हो गई. उस के उद्देश्य का दूसरा भाग पूरा हो चुका था.

आफिया के होश में आने के बाद गांव वालों को पता चला कि शाकिब की कोई दूर की रिश्तेदार उस के घर को लूट कर ले गई. पुलिस कई दिनों तक शाकिब के रिश्तेदारों के यहां छापेमारी करती रही. लेकिन उस के हाथ कुछ नहीं लगा. किसी ने यह सोचा तक भी नहीं कि सुंदरी का इस लूट में कोई हाथ हो सकता है.

सुंदरी के अंदर बदले की आग बुरी तरह से लगी हुई थी. उसे अब न इज्जत गंवाने का डर था न पुलिस का खौफ. अब उस के निशाने पर कलवा था.

वह कलवा के खलिहान का मुआयना कर आई थी. कलवा ने अपनी गेहूं और सरसों की सारी फसल वहां ला कर रख दी थी. वहीं पर उस के 2 बिटौड़े, एक भुस का छोटा बुंगा और कुछ इमारती लकड़ियां भी रखी थीं. इस में आग लगने का मतलब था कि कलवा की आर्थिक रीढ़ टूटना. सुंदरी जानती थी कि खलिहान में आग लगाने का सब से अच्छा तरीका कौन सा है. यह तरीका भी उस ने रामपाल से ही सीखा था.

शाम के समय जब सब गांव वाले खेतों और खलिहानों से अपने घर चले गए, तब सुंदरी कलवा के खलिहान की तरफ आई. उस ने देख लिया कि आसपास कोई नहीं है. तब उस ने कपङे का एक पुलिंदा बना कर उस में आग सुलगा कर रख दिया। जितनी देर में आग सुलगी, सुंदरी लाल दुपट्टे का तीसरा टुकड़ा खलिहान से कुछ दूरी पर खड़े पेड़ के तने से बांध कर आगे निकल गई. उस ने दूर से देखा, कलवा का खलिहान धूधू कर के जल रहा है. जितनी तेज आग की लपटें कलवा के खलिहान से उठ रही थी, उतनी ही ठंडक सुंदरी के कलेजे में पड़ती जा रही थी.

सारा गांव आग बुझाने पहुंचा, लेकिन खलिहान तो मिनटों में खाक हो गया. इस के साथ ही कलवा की अच्छी फसल से कमाई का अरमान भी खाक हो गया.

आग का लगना किसी गांव वाले की लापरवाही मानी गई. लेकिन लाल दुपट्टे के टुकड़े को ले कर अब गांव वालों में हलकीफुलकी खुसरपुसर मजाकिया लहजे में शुरू हो चुकी थी। इस से पहले कि पुलिस लाल दुपट्टे को ले कर कड़ी से कड़ी मिलाती, सुंदरी ने टिपलू पर निशाना साध दिया.

एक शाम जब अंधेरा ढलने लगा था, मखना ग्राम प्रधान के घेर (गौशाला) से रिवाल्वर की ‘धांयधांय…’ की आवाज गूंज उठी. सब ने यही समझा कि गांव में बदमाश घुस आए हैं. इसलिए किसी की एकदम से सरपंच के घेर में जाने की हिम्मत नहीं हुई। लेकिन जब काफी देर तक घेर में कोई हलचल नहीं हुई तो गांव वालों ने हिम्मत दिखाते हुए लाठीडंडों और के साथ मखना के घेर में प्रवेश किया. सब यह देख कर चौंक गए कि एक मूढ़े के पास टिपलू औंधे मुंह पड़ा है और उस के मुंह में लाल दुपट्टे का एक टुकड़ा ठूंसा पड़ा है.

अब गांव वालों को समझते देर न लगी कि यह कारनामा किस का है? सुंदरी को पता था कि टिपलू और मखना आएदिन शाम को यहां बैठ कर शराब पीते हैं. वह रामपाल का रिवाल्वर ले कर आई और जैसे ही मखना शराब की बोतल लेने के लिए घर गया और उस ने टिपलू को अकेला पाया, उस ने 2 फायर उस पर झोंक दिए. निशाना सुंदरी का अचूक था ही, वह वहीं ढेर हो गया. सुंदरी का इंतकाम पूरा हो चुका था. इसलिए अपनी पहचान उजागर करने के लिए उस ने जानबूझकर लाल दुपट्टे का कपड़ा टिपलू के मुंह में ठूंस दिया क्योंकि टिपलू ने ही सब से ज्यादा हैवानियत दिखाई थी और उस के मुंह में लाल दुपट्टे को ठूंसने वाला भी टिपलू ही था.

जब तक पुलिस सुंदरी तक पहुंचती, वह आफिया से लूटे हुए जेवर और नकदी ले कर रातोंरात गायब हो गई. चूंकि इन सारी घटनाओं को अंजाम सुंदरी ने अकेले दिया था तो सुंदरी का सुराग देने वाला भी कोई नहीं था. रिश्तदारों को तो छोड़ो, उस के अपने घर वालों को भी सुंदरी की कोई जानकारी न थी. उस का तो किसी से कोई संबंध ही न रह गया था.

पुलिस ने सालभर तक सुंदरी की खूब खोजबीन की. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. थकहार कर पुलिस ने उस की फाइल पर ‘गुमशुदा’ लिख कर फाइल बंद कर दी.

कोई कहता वह हरिद्वार में सन्यासी बन गई है, कोई कहता कि वह मुंबई में डौन बन गई है, कोई कहता नेपाल भाग गई है।

लेकिन अब गांव में कोई किसी लड़की से बलात्कार तो दूर, किसी लड़की को छेड़ने की हिम्मत भी नहीं करता. ऐसे लोगों को रात में डरावने सपने आते हैं. सुंदरी का इंतकाम आज भी ऐसे लोगों के दिलोदिमाग में छाया हुआ है. इलाके के लोग सुंदरी को ‘असली नायिका’ कहते हैं। आखिर उसे नायिका क्यों न कहें. उस ने औरत होने के बावजूद अपने अकेले दम पर बलात्कारियों से बदला ले कर उन्हें खाक में मिला दिया और उन्हें कहीं का न छोड़ा.

जनसंख्या में संख्या

आम धारणा है कि हिंदू समाज 4 वर्गों में बराबर बंटा है. लोगों को ‘ज्ञानी’ बारबार यही समझाते हैं कि गीता और पुराणों में वर्णित ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों बराबर हैं और ब्राह्मणों का यदि सत्ता और शिक्षा में बोलबाला है तो वह उन की योग्यता व संख्या के अनुरूप है, ज्यादा नहीं. आम ऊंची जाति वाला, जिस ने न गीता कभी पढ़ी न पुराणों को कभी देखा और जिस का धार्मिक ज्ञान केवल प्रवचनों से होता है, इसे सत्य मान लेता है.

भारतीय समाज असल में 3,000 से ज्यादा जातियों और उपजातियों में बंटा है. 1931 तक जनगणना में जाति पूछी जाती थी पर 1951 में हुई जनगणना में केवल अछूतों की संख्या, 1932 के गांधी-अंबेडकर पैक्ट के अनुसार लिखे गए संविधान के कारण, पूछी गई.

1931 के आंकड़ों से अनुमान लगाया जाता रहा है कि पिछड़े यानी शूद्रों की संख्या 50 से 60 प्रतिशत है. अछूत यानी दलित या शैड्यूल्ड कास्ट और मुसलमानों को हटा दें तो ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य मुश्किल से 10 प्रतिशत बैठेंगे, इसीलिए सत्ताएं व संवादों पर हावी ऊंची जातियों के लोग इस सवाल को पिछले 70-75 साल से दबाए बैठे हैं.

बिहार में अब जाति जनगणना किए जाने का फैसला नीतीश कुमार की सरकार ने किया है पर यह पूरी तरह सफल होगी, इस में संदेह है क्योंकि इस काम में उन्हीं 5 लाख सरकारी कर्मचारियों को लगाया जाएगा जो इस समय ऊंची जातियों के हैं या अपने को अब ऊंची जाति का समझने लगे हैं.

हमारे समाज में ऊंचनीच की भावना देशप्रेम से भी बड़ी है. इसलिए गरीबों और विज्ञान व तकनीक में पीछे रह गए लोगों के समूह की गिनती करने में हमारे सरकारी कर्मचारी हर तरह से अड़ंगा लगाएंगे चाहे यह देशहित में हो. प्रश्नावली तैयार करने, घरों का सर्वे करने, मुसलिमों व ईसाईयों की गिनती करने में भारी हेरफेर की जाएगी.

अब तक जो भी आयोग बैठे हैं उन्होंने अनुमानित संख्या ही बताई है क्योंकि उन्हें कभी पूरे साधन नहीं दिए गए. बिहार कोई अपवाद होगा, इस में संदेह है. नीतीश कुमार चाहे पिछड़ी जाति के हों, वे भी उसे चुनावी मुद्दा मान कर चल रहे हैं ताकि अगले विधानसभा चुनावों में उन्हें लाभ मिल सके. अगर इस जनगणना का विरोध अदालतों में ले जाया गया तो मामला मामला टल सकता है. हां, चुनावों में लाभ मिल सकता है.

वैसे जो आज स्थिति है, उस में साफ है कि देश की प्रगति सरकारी नौकरियों के बल पर नहीं हो सकती. जाति चाहे जो भी हो, नौकरियां तो तभी मिलेंगी जब हर जाति के लोग तकनीकी कौशल सीखें. अब युग वैज्ञानिक सोच का है, पौराणिक सोच का नहीं. नीतीश कुमार का फैसला मानवीय हो पर उस से पौराणिक सोच ही और मजबूत होगी. यही सिद्ध होगा कि देश जातियों में बंटा है और जातियां पुराणों की देन हैं, जन्म से तय होती हैं और जन्म पिछले जन्मों के कर्मों के फल को इस जन्म में भुगतने के लिए होता है.

पक्का है कि इस सर्वे में झूठ बोला जाएगा और उसी झूठ को और तोड़मरोड़ कर लिखा जाएगा. यह निरर्थक कदम है क्योंकि यहां के पीड़ित, दबाएकुचले गए लोग अपने संवैधानिक, कानूनी व मानवीय हकों के लिए खुद ही लडऩे को तैयार नहीं हैं. सर्वे रिपोर्ट कभीकभार आई भी तो कागजों में दबी रह जाएगी या अदालतों की फाइल में बंद हो जाएगी.

YRKKH: 6 साल बाद अक्षरा पहुंचेगी गोयनका हाउस, वेलकम देखकर अभिनव होगा इमोशनल

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है सालों से लोगों के दिलों पर राज कर रहा है, इस सीरियल में आएं दिन नए-नए ट्विस्ट आते रहते हैं, हाल ही में सीरियल में दिखाया गया था कि अक्षरा बहुत हिम्मत करके गोयनका हाउस जाने की तैयारी करती है.

वहीं अक्षरा को उदयपुर जाने की खबर मंजरी को मिल गई है, जिस वजह से वह काफी ज्यादा परेशान हो जाती है, यह बात मंजरी से आरोही और अभिमन्यु के पता चल जाती है, जिस वजह से घर में नया ड्रामा देखने को मिलता है.

वहीं मंजरी अभिमन्यु को बताएगी कि अक्षरा मिमि के बर्थ डे के लिए उदयपुर आ रही है, तो अभिमन्यु काफी ज्यादा परेशान हो जाता है, इसके बाद वह गार्डन एऱिया में जाकर अक्षरा से कहता है कि उसके आने से मैं खुद कि जिंदगी को इफेक्ट नहीं होने दूंगी. यह सबकुछ मंजरी देख रही होती है.

वहीं आगे सीरियल में दिखाया जाएगा कि अक्षरा कि आने कि खुशी में गोयनका हाउस को खूबसूरत तरीके से सजाया गया है, सभी घर वाले अक्षु के आने के इंतजार में राह ताक रहे हैं, इस दौरान थोड़ा इमोशनल सीन भी देखने को मिलता है कि सभी परिवार वाले अक्षरा को सालों बाद देखकर उदास और खुश दोनों होते हैं. वहीं अभिनव अक्षरा के लिए ये सब देखकर खुशी से झूम उठता है.

GHKKPM: विराट के घर जाएगी सवि तो बीच रास्ते में जगपात बनेगा कांटा

सीरियल गुम है किसी के प्यार में आए दिन कुछ न कुछ नया ट्विस्ट देखने को मिलते रहता है, शायद यहीं वजह है कि यह सीरियल पिछले लंबे समय से फैंस के दिलों  पर राज करने में वक्त नहीं लगा. इस सीरियल की कहानी से अलग है.

पिछले सीरियल में देखने को मिला था कि भवानी काकू सई के जाकर सवि से मिलती है और उसकी जन्म की सारी कहानी बता देती है. सवि सई को बोलती है कि उसे पता चल गया है कि वह विराट की असली बेटी है, जिसके बाद से सई पूछती है कि आप ये बताओं कि कैसे पता चला तो वह कहती है तो वह कहती है कि मैं नहीं बताउंगी.

 

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सई जाकर जगपात को कहती है कि तुमने क्यों बताया है वह कहता है कि मैंने नहीं बताया है तो सई गुस्से में उसे थप्पड़ मार देती है. भवानी काकू घर आती हैं और वह घबराई हुईं नजर आती हैं, वह सवि को सच बता नहीं पाई होती है.

इस दौरान वह विनू से कहती है कि सवि से पूछ लो होली पर कुछ करना है या नहीं,इस दौरान वह दोनों विनू को फोन पर विनू से बात करते हैं, वहीं सवि चव्हा हाउस जाने की बात करती नजर आती है. और वह सारा सच जानने की कोशिश करती है. आगे एपिसोड में यह देखने को मिलेगा कि सई परेशान होगी कि सवि को सारा सच कैसे पता चल गया.

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