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समाजतोड़ की राजनीति

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कन्याकुमारी से दिल्ली तक हो चुकी सफल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की खिंचाई करने के लिए रविशंकर प्रसाद जैसे मंत्रीपद से फेंके गए भारतीय जनता पार्टी के नेता इस यात्रा पर टुकड़ेटुकड़े गैंग का साथ देने का आरोप लगा रहे हैं. यह बहुत पुरानी कला है जो पौराणिक साहित्य में भरी है कि जिस में अपने विरोधियों को तरहतरह के नाम दे कर बिना सिद्ध किए बदनाम किया जाता है.

भारत के इस टुकड़ेटुकड़े गैंग में हर उस जने को शामिल कर लिया गया है जिस ने भारतीय जनता पार्टी का कहीं विरोध किया. धर्म की राजनीति करने वाली भाजपा ने देश में मंदिरों बनाने के लिए मसजिदों को तोडऩे का अभियान चला रखा है, समाज को बांटने के लिए गौमांस का बहाना ले कर हिंदूमुसलिम सहयोग तोडऩे का अभियान चला रखा है, हिंदू औरतों का मनोबल तोडऩे के लिए उन्हें गुस्सैल पति से तलाक लेने की इच्छा पर अदालतों के चक्कर चलाने का अभियान चला रखा है. यही नहीं, उस ने छोटे व्यापारों की कमर तोडऩे के पहले नोटबंदी लागू की और फिर व्यापारियों पर जीएसटी की जटिलता थोप दी.

भारत में निर्माण हो रहा है तो मंदिरों का, घाटों का, चारधामों का या फिर 4-5 बड़े धन्ना सेठों का जो लाखों का कर्ज ले कर अपने व्यवसाय फैला रहे हैं और मध्यवर्गीय परिवारों के चल रहे व्यापारों की कमर तोड़ कर ताबड़तोड़ उन्हें खरीदे ले रहे हैं. केंद्र की मौजूदा भाजपाई भगवा सरकार की नीतियां अदालतों को तोडऩे में लगी है. इतना ही नहीं, इस सरकार की अग्निवीर योजना ने सेना की पक्की व टिकाऊ नौकरी की इच्छा को तोड़ डाला. सरकार के हाईवे प्रोजैक्टों ने खेतों को तोड़ डाला, शहरों की सडक़ें चौड़ी करने के नाम पर मकानों को तोड़ डाला.

जिस सरकार की निशानी बुलडोजर हो जो सिर्फ तोडऩे का काम करता है, बनाने का नहीं, वह सरकार किसी को टुकड़ेटुकड़े गैंग का नाम कैसे दे सकती है. नीच, पापी, रसातल में जाने वाले, दैत्य, तीखे दांतों वाले जैसे शब्दों के जो प्रयोग पुराणों में ऋषियों की मौजमस्ती में विघ्न डालने वालों के लिए इस्तेमाल किए गए है उन का आज महिमामंडन किया जा रहा है. मीडिया के माध्यम से संविधान के तोडऩे वालों को संविधान का रक्षक बताया जा रहा है. और वे अपने ऊपर रक्षक का दुशाला ओढ़े घूम रहे हैं. जबकि, जो संविधान के हकों को बनाए रखना चाहते हैं उन्हें टुकड़ेटुकड़े गैंग कहा जा रहा है.

देश के फाइबर को कोई तोड़ रहा है तो वे धार्मिक यात्राएं हैं जो हर गांवशहर में हर रोज अब आयोजित की जाने लगी हैं जिन के लिए चंदा जमा किया जाता है, लोगों को घरों से निकाला जाता है और औरतों को थालियां व कलश ले कर नंगेपैरों निकाला जाता है वह भी सब जाति, उपजाति, अपनेअपने इष्ट देवता के नाम पर. धर्मजाति के नाम पर दलितों को ही नहीं बल्कि पिछड़ों, अगड़ों को भी अलगअलग देवीदेवता दिए जा चुके हैं और उन से वहीं पूजा करने को कहा जाता है.

देश में गरीब और अमीर की खाई बढ़ रही है और दोनों के बीच पुल टूट रहे हैं. गरीब सेवाएं दे रहे हैं और गंदी बस्तियों में रहने को मजबूर हैं. अमीर कानूनों, नियमों और टैक्नोलौजी पर कब्जा कर के गरीबों को और ज्यादा तोड़ कर उन को अलगथलग कर के, बांट कर राज कर रहे हैं.

राहुल गांधी देश को जोडऩे की बात कर रहे हैं. कांग्रेस की इस यात्रा से बौखलाई भाजपा राहुल गांधी की खिल्ली उड़ाने की पूरी कोशिश कर रही है पर कहीं भी यह कहने की हिम्मत नहीं कर रही है कि बताओ, देश कहां टूटा है. वह यह सवाल उठाना ही नहीं चाहती क्योंकि फिर सवालों का जो दावानल निकलेगा उसे समझना मुश्किल है. धर्म हमेशा भक्तों से सुनने को कहता है, कुछ पूछने को नहीं; आदेशों का अनुसरण करने को कहता है, क्यों का जवाब नहीं देता. भाजपा और उस की सरकार भी यही करती है. यह सब इसलिए क्योंकि धर्म पर आधारित दुकानदारी, राजनीति, दरअसल, समाज को तोड़ कर ही सफल होती है. और भाजपा इसी विश्वास पर राजनीति करती है.

जानकारी: क्या प्रतिभाएं सनकी होती हैं

दुनियाभर में ऐसी कई महान हस्तियां रही हैं जिन की आदतों को उन की सनक माना गया. पर क्या उन की आदतें सचमुच सनक थीं या उन के पीछे कुछ और ही मामला था? विज्ञान, कला और साहित्य के क्षेत्र में ऐसे अनेक महान लोग हुए हैं और कुछ अभी भी हैं जिन का आचारव्यवहार समाज की सामान्य मान्यताओं से हट कर कुछ विचित्र लगता है. आम बोलचाल की भाषा में इसे सनकीपन कहा जाता है. वैज्ञानिकों, साहित्यकारों, चित्रकारों, कलाकारों, राजनेताओं और खिलाडि़यों के सनकी व्यवहार से संबंधित अनेक रोचक किस्सों से विश्व साहित्य भरा पड़ा है.

अब प्रश्न उठता है कि क्या सचमुच प्रतिभाएं सनकी होती हैं अथवा प्रतिभा के साथ सनक एक नैसर्गिक लक्षण है? जिसे समाज सनक कहता है वह वास्तव में किसी व्यक्ति विशेष का साधारण या खास व्यवहार होता है. यदि हम मकबूल फिदा हुसैन के नंगे पैर रहने के प्रण और राष्ट्रपति डा.एपीजे अब्दुल कलाम के बिखरे बालों को सनक में गिनते हैं तो यह हमारी सतही सोच है. मकबूल फिदा हुसैन ने गरीबी का वह मंजर देखा था जो उन के दिमाग से कभी निकल नहीं पाता था. इसलिए वे हमेशा नंगे पैर रह कर उस पीड़ा को यों कहिए कि उस हकीकत को जीवंत रखना चाहते थे.

महान वैज्ञानिकों और साहित्यकारों ने कभी भी बनठन कर रहने में समय नहीं गंवाया है बल्कि समय के एकएक पल को चिंतन तथा कर्म के रूप में इस्तेमाल किया है. यही कारण है कि बहुत से वैज्ञानिक, शिक्षाविद और दार्शनिक रहनसहन, खानपान और सजावट की तरफ उतना ध्यान नहीं देते जितना कि आम आदमी देता है. बहुधा आप ने सुना होगा कि फलां प्रोफैसर साहब बाजार में पाजामा एवं हवाई चप्पल पहने हुए घूम रहे थे या फलां वैज्ञानिक अमुक विचार गोष्ठी में बिना दाढ़ी बनाए हुए ही मौजूद थे. इस प्रकार की बातें कुछ संकीर्ण विचारधारा वालों के लिए महत्त्वपूर्ण हो सकती हैं लेकिन प्रतिभाओं की नजर में ये अत्यंत गौण हैं. इटली के लियोनार्डो द विंची को सब से अधिक प्रतिभाशाली व्यक्ति माना जाता है. मोनालिसा का चित्र बना कर शोहरत की ऊंचाइयां छूने वाले विंची एक चित्रकार के साथसाथ मूर्तिकार, वास्तुकार, भूगर्भविज्ञानी, संगीतज्ञ आदि भी थे.

उन्होंने इटली के मिलान शहर में एक घोड़े की मूर्ति स्थापित करने का प्रोजैक्ट तैयार किया था किंतु फ्रांसीसी आक्रमण के कारण वे घोड़े की विशाल मूर्ति तैयार न कर सके. जीवन के अंतिम समय में विंची अकसर चौंक कर उठ जाते थे, चीखतेचिल्लाते थे कि मैं असफल व्यक्ति हूं. उन दिनों इस महान प्रतिभा को पागल करार दिया गया था जबकि वास्तविकता यह है कि वह बहुमुखी प्रतिभा राजनीतिक कारणों से मूर्ति प्रोजैक्ट को पूरा नहीं कर पाई थी. ईमानदारी तथा कार्यसमर्पण भाव के कारण ही विंची अपनेआप को असफल कह रहे थे. इसी प्रकार अलबर्ट आइंस्टीन बचपन में अत्यंत गुस्सैल और तुनकमिजाज थे. बड़े होने पर जब वे किसी गंभीर समस्या का हल ढूंढ़ने का प्रयास करते थे तो अपने सिर के बालों को खींचते हुए कमरे में पागलों की तरह चक्कर काटते थे.

अलबर्ट आइंस्टीन खुद अपनी भी बातें खूब करते थे. वे अपने वाक्यों को धीमेधीमे दोहराते रहते थे. यह सनकीपन नहीं था. यह मस्तिष्क को और ज्यादा इस्तेमाल करने में सहायक होता है. इस तरह की आदत आम लोगों में भी पाई जाती है लेकिन वह केवल परिवार तक ही सीमित रहती है जबकि महान व्यक्ति जनचर्चा के केंद्रबिंदु बन जाते हैं. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि सभी व्यक्तियों में सभी प्रकार के गुण एवं अवगुण मौजूद रहते हैं. हां, इन में प्रतिशत एवं मात्रा का अंतर हो सकता है. सच तो यह है कि हम सभी क्रोधी, सनकी एवं भुलक्कड़ हैं. इस में कोई कम है, कोई ज्यादा. अपनेअपने क्षेत्रों में शोहरत प्राप्त प्रतिभाओं में क्रोध तथा भूलने की 2 आदतें आमतौर पर चर्चा का विषय रही हैं. इंसान के स्वभाव में यदि क्रोध का गंभीरता से अवलोकन एवं विश्लेषण करें तो पाते हैं कि अधिकांश प्रतिभाशाली व्यक्ति किसी बिंदु विशेष से चिढ़ कर गुस्सा प्रकट करते हैं.

दिखावा, दूसरों की जीहुजूरी, ढोंग तथा भ्रष्ट आचरण उन के स्वभाव में अकसर नहीं होता है. सो, वे इन निंदनीय साधनों का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति के प्रति खुलेआम गुस्सा प्रकट करते हैं. चूंकि लोकप्रियता के साथसाथ निंदा एवं ईर्ष्या भी चलती है इसलिए प्रतिभाओं को सनकी कहने का फैशन सा चल पड़ा है. जहां तक भूलने का सवाल है तो इस से बहुत से व्यक्ति पीडि़त रहे हैं और आज भी हैं. वास्तव में मस्तिष्क की सूचना संग्रहण क्षमता सीमित है. यदि इंसान अधिक सूचनाएं इस में जमा करता है तो पहले की सूचनाएं बाहर निकल जाती हैं. चूंकि वैज्ञानिक, शिक्षाविद, कलाकार तथा साहित्यकार अपनीअपनी विधा से संबंधित ज्ञान अधिक से अधिक मात्रा में जमा करने का प्रयास करते हैं और किसी एक खास समस्या पर लंबे समय तक सोचते रहते हैं.

बहुत कम प्रतिभाएं ऐसी होती हैं जो किसी व्यक्ति को एक बार ?िड़कने या खरीखोटी सुनाने के बाद उस घटना को याद रखती हैं. जब वह पीडि़त व्यक्ति किसी अन्य अवसर पर उसी प्रतिष्ठित व्यक्ति के सामने पड़ता है तो पाता है कि वह महान विभूति उस के साथ बहुत प्रेम से व्यवहार कर रही है. यह स्वभाव में सनकीपन नहीं, बल्कि स्वाभाविकता है. यह तो हम सभी जानते हैं कि प्रतिभावान लोगों की सोच कुछ अलग तरह की होती है. जब वे किसी विषय पर सोचते हैं तो बेहद गहराई से सोचते हैं. इसलिए उन से पूरी तरह सामाजिक परंपरा के अनुसार व्यवहार की उम्मीद करना व्यर्थ है, क्योंकि जो बात इन व्यक्तियों को तार्किक आधार पर तो ठीक नहीं लगती है उसे वे एकदम नकार देते हैं. ज्यादातर प्रतिभाएं अधिक बोलने के बजाय गंभीर रहती हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि ये प्रेम, रोमांस या ममता का महत्त्व नहीं सम?ाती हैं. उन के लिए पारिवारिक, सामाजिक जीवन काम के सामने दूसरी वरीयता पर रहता है. गंभीरतापूर्वक सोचिए, यदि उन महान विभूतियों ने अपना सिर आविष्कारों में न खपाया होता तो क्या आज का भौतिक जीवन सुखी एवं सपन्न होता? आमतौर पर प्रतिभाएं अपना रास्ता खुद चुनती हैं, सो, इन्हीं में से कुछ के व्यक्तिगत नियम, सिद्धांत एवं विचारधाराएं भी विकसित हो जाती हैं.

स्वाभाविक है यह प्रचलित कला, विज्ञान, लोक व्यवहार और समाज के नियमों से मेल नहीं खाती हैं और इसलिए विचित्र दिखाई पड़ती हैं. एक बार जयपुर में खेल शंकर दुर्लभजी स्मृति व्याख्यानमाला में सिने कलाकार दिलीप कुमार ने उपस्थित श्रोताओं को यह कह कर ?ाक?ार दिया, ‘‘मैं अपनेआप में द्वंद्व कर रहा हूं. परदे पर ?ाठा अभिनय कर मैं सत्य को ढांप रहा हूं. जो हीरोइन मेरी बांहों में दम तोड़ते दिखाई जाती है वह कैमरे के हटते ही कपड़े ?ाड़ कर चल देती है. किसी में मैं मां, मां कह कर जिस के लिए रोता हूं वह मेरी मां नहीं है. ऐसा लगता है कि मैं खुद से तथा सारे समाज से फरेब कर रहा हूं.’’ अब सवाल यह उठता है कि क्या अभिनेता दिलीप कुमार की संवेदनशीलता को आम आदमी सचमुच उसी रूप में सम?ा रहा है जिस रूप में दिलीप कुमार कह रहे हैं या फिर हम इसे प्रतिभा की सनक भर मानते हैं. इस बारे में होम्स ने अलगअलग प्रतिभाओं का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला था कि अधिकांश प्रतिभाएं एक सीमा तक सनकी होती हैं.

शेक्सपियर ने भी इस पर कहा है कि प्रतिभाएं सचमुच पागल नहीं होतीं बल्कि काम के प्रति धुन या लगन उन का व्यवहार विशिष्ट बना देता है जो आम लोगों की नजर में उपहास का विषय बन जाता है. राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो’ यात्रा का आइडिया शुरू में फिल्मों सा क्रेजी लगा होगा पर अब यह तो लगता है कि इस यात्रा ने उन का व्यक्तित्व भी सुधार दिया है और लाखों लोगों को सड़क पर आ कर चलने को आज उकसा दिया है.

लेखक-डा. सुरेंद्र कटारिया

मिलेट्स- मोटे अनाज: सेहत के लिए हैं खास

लेखिका- डा. अर्चना देवी, वैज्ञानिक, पादप प्रजनन, डा. वीके सिंह, वैज्ञानिक, पशुपालन, डा. वीके विमल, वैज्ञानिक उद्यान, प्रो. डीके सिंह, प्रभारी, कृषि विज्ञान केंद्र,कोटवा

भारत सरकार के प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र संघ ने 172 देशों के समर्थन से वर्ष 2023 को ‘अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष’ के रूप में मनाने का निर्णय लिया है. हरित क्रांति के बाद जिस तरीके से गेहूंधान फसल प्रणाली को अपनाने पर जोर दिया गया, उस के परिणामस्वरूप हम सब ने अपना पारंपरिक मोटा अनाज फसलों को छोड़ कर केवल गेहूं और चावल से बने खाद्य पदार्थों के साथ ही प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों को अपने भोजन में प्रमुख रूप से स्थान दिया.

इस के परिणामस्वरूप गेहूंधान जैसी अत्यधिक पानी चाहने वाली फसल लगाने से फसलों की जलमांग बढ़ गई. गेहूंधान (120 से 140 सैंटीमीटर वर्षा की मांग) की तुलना में मोटा अनाज फसलों में (20 से 60 सैंटीमीटर वर्षा की मांग) बहुत ही कम मात्रा में पानी की आवश्यकता होती है. इस के साथ ही गेहूंधान की फसल को उगाने के लिए अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों, की टनाशकों, खरपतवारनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से प्राकृतिक संसाधनों (जल, मिट्टी, वायु) में बहुत ही तेजी से प्रदूषण बढ़ा है.

जब हम मिलेट्स की बात करते हैं, तो सिरिधान्य (माइनर मिलेट्स) फसलों में कंगनी, सावा, कोदो, कुटकी, छोटी कंगनी प्रमुख रूप से धनात्मक (पौजिटिव) धान्य के रूप में आते हैं, जबकि बाजरा, रागी, ज्वार, मक्का, तटस्थ धान्य की श्रेणी में आते हैं. भारत में इन फसलों का उत्पादन अनादिकाल से ही होता आ रहा है. पूरे विश्व में ये फसलें आज 131 देशों में उगाई जाती हैं, जबकि एशिया और अफ्रीका महाद्वीप में परंपरागत रूप से 59 करोड़ लोगों का यह भोजन है. भारत मिलेट्स उत्पादन में एशिया का 80 फीसदी और पूरे विश्व का 20 परसेंट उत्पादन करता है.

मोटे अनाज पौष्टिकता से भरपूर होते हैं. हमारे यहां ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज खाने की परंपरा थी, लेकिन कालांतर में धीरेधीरे वे खत्म हो गईं. गेहूं धान की तुलना में मिलेट्स में विटामिन एवं पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं. मोटे अनाजों में पाए जाने वाले पोषक तत्त्व मिलेट्स में कई प्रकार के विटामिन और मिनरल पाए जाते हैं, जिन में से कुछ पोषक तत्त्वों की सूची इस प्रकार से है : विटामिन बी-3 विटामिन बी-6 कैरोटीन फास्फोरस मैगनीशियम पोटैशियम कैल्शियम लेसिथिन लोहा जस्ता फाइबर वास्तव में अन्य विटामिन की तरह विटामिन बी-3 भी पानी में घुलनशील होता है, इसलिए यह शरीर में संरक्षित नहीं होता है.

इसे भोजन या दवाओं के माध्यम से लिया जाता है. सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि हमारे शरीर को अपना काम अच्छी तरह से करने के लिए विटामिन बी-3 की निश्चित मात्रा की आवश्यकता होती है. मिलेट्स खाने का एक फायदा यह है कि यह विटामिन बी-3 की प्राप्ति का प्राकृतिक स्रोत है, इसलिए इस का कोई साइड इफैक्ट भी नहीं होता है. वजन कम करने के लिए मोटापा कम करने में मोटे अनाज बहुत ही उपयोगी होते हैं. वजन कम करने के लिए उपापचय क्रिया का ठीक होना बहुत ही आवश्यक होता है.

मिलेट्स में उच्च मात्रा में फाइबर होता है. यह मेटाबौलिज्म को सुचारू रुप से काम करने में मदद करता है. मोटे अनाजों से अधिक ऊर्जा मिलती है और भूख भी कम लगती है. जो लोग अपना वजन कम करना चाहते हैं, उन्हें मिलेट्स को अपने भोजन में मुख्य रूप से शामिल करना चाहिए. ठ्ठ देश में मिलेट्स का उत्पादन, खपत, निर्यात बढ़ने का लाभ किसानों को मिलेगा – कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर 22 जनवरी, 2023 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने बैंगलुरू में मिलेट्स एवं जैविक उत्पादों पर आधारित इंटरनैशनल ट्रेड फेयर के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि मिलेट्स की फसलें कम पानी में उगाई जा सकती हैं.

किसानों की आय बढ़ाने में मिलेट्स का भी योगदान होगा. देश में मिलेट्स का उत्पादन व खपत बढ़ने के साथ इस का निर्यात भी बढ़ेगा, जिस का लाभ बड़ी तादाद में किसानों को मिलेगा. उन्होंने मिलेट्स का उत्पादन व उपभोग बढ़ाने के लिए कर्नाटक सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों की सराहना की और इस कार्यक्रम के माध्यम से 201 करोड़ रुपए के एमओयू साइन होने को भी महत्त्वपूर्ण बताया. साथ ही, राज्य के किसानों को प्रोत्साहन राशि प्रदान किए जाने की भी तारीफ की.

चुनौतियां: गुप्ता परिवार से निकलकर उसने अपने सपनों को कैसे पूरा किया?

Satyakatha: दीवानगी की हद से आगे मौत

सौजन्या- सत्यकथा

बीते 10 अक्तूबर की रात की बात है, रतलाम के औद्योगिक क्षेत्र के थाने की थानाप्रभारी डीएसपी (ट्रेनिंग) मणिक मणि कुमावत थाने में बैठी थीं. तभी रतलाम के इंद्रानगर क्षेत्र में रहने वाला बाबूलाल चौधरी थाने पहुंचा. वह काफी घबराया हुआ था. बाबूलाल ने थानाप्रभारी को बताया कि वह इप्का फैक्ट्री में ठेकेदारी का काम करता है. उस के परिवार में उस के अलावा उस की पत्नी, एक बेटा नीलेश और बेटी रेणुका है.

बाबूलाल ने बताया कि उस का बेटा नीलेश बीती रात से घर नहीं लौटा है. बाबूलाल ने अपने साले ईश्वर जाट के 21 वर्षीय बेटे बादल पर शक जताते हुए कहा कि बादल ही नीलेश को साथ ले गया है. थानाप्रभारी मणि कुमावत के पूछने पर बाबूलाल ने दिनभर का घटनाक्रम बता दिया. बाबूलाल के अनुसार उस का बेटा नीलेश रतलाम के आईटीआई से डिप्लोमा कर रहा था. वह सुबह 7 बजे घर से निकलता था और 3 बजे घर लौट आता था. जब वह 4 बजे तक नहीं लौटा तो उस की मां और बहन ने मोबाइल पर उस से संपर्क किया.

लेकिन नीलेश का फोन स्विच्ड औफ था. बादल का फोन भी स्विच्ड औफ था. जब बारबार मिलाने पर फोन बंद मिलता रहा तो मांबेटी को चिंता हुई. वे दोनों नीलेश का पता लगाने के लिए आईटीआई पहुंची. उन्होंने नीलेश के दोस्तों और साथ पढ़ने वालों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि सुबह नीलेश का मौसेरा भाई बादल जाट आया था, वही नीलेश को साथ ले गया.

बाबूलाल ने बताया कि उस के दूसरे साले रमेश जाट का बेटा जितेंद्र रतलाम में रह कर कोचिंग क्लासेज चलाता था. संभावना थी कि नीलेश और बादल जितेंद्र के पास चले गए हों. संगीता और रेणुका ने जितेंद्र से बात की.

उस ने बताया कि बादल सुबह उस के कोचिंग सेंटर आया था और उस के कमरे की चाबी मांग कर ले गया था. उस का कहना था कि वह गांव से अपनी पत्नी को ले कर आया है और कुछ देर उस के साथ गुजारना चाहता है. जितेंद्र ने उसे चाबी दे दी थी.

सवाल यह था कि बादल अगर अपनी पत्नी को ले कर आया था तो नीलेश को बुला कर ले जाने का कोई तुक नहीं था. एक सवाल यह भी था कि जब उस की पत्नी कविता नामली गांव में उस के साथ रहती थी तो बादल को उसे रतलाम ला कर उस के साथ कुछ समय गुजारने की क्या जरूरत थी.

यह जानकारी मिलने के बाद संगीता और रेणुका जितेंद्र के अलकापुरी स्थित घर पहुंचीं. वहां कमरे का दरवाजा खुला मिला, अंदर कोई नहीं था. मांबेटी ने अंदर जा कर देखा तो पता चला कमरे का फर्श पानी से धोया गया था. दीवारों पर खून के छींटे भी नजर आए.

बकौल बाबूलाल शाम को जब वह फैक्ट्री से लौट कर आया तो मांबेटी ने उसे पूरी बात बताई. उस के बाद ही वह रिपोर्ट दर्ज करवाने आया था. थानाप्रभारी कमावत को मामला गंभीर लगा. उन्होंने इस मामले की सूचना रतलाम के एसपी गौरव तिवारी को दी.

उन के निर्देश पर एडिशनल एसपी प्रदीप शर्मा के साथ सीएसपी विवेक सिंह चौहान, एसआई विजय सागरिया, एसआई और अमित शर्मा की टीम जितेंद्र के घर की जांच करने गई. वहां दीवारों पर खून के ताजे निशान पाए गए. पूछताछ के दौरान जितेंद्र ने बताया कि सुबह बादल उस की कोचिंग क्लास में गया था और घर की चाबी मांग कर ले गया था.

लेकिन जब वह शाम को घर आया तो वहां कोई नहीं था. दरवाजे भी खुले हुए थे. सीएसपी चौहान को मामला संदिग्ध लग रहा था.

कमरे की दीवारों पर लगे खून के निशान बता रहे थे कि कमरे में कुछ ऐसा हुआ है जो नहीं होना चाहिए था. पूछताछ में पुलिस इस बात का पता लगा चुकी थी कि उस रोज बादल के साथ उस के ताऊ का बेटा संदीप भी रतलाम आया था.

पुलिस अधीक्षक गौरव तिवारी के निर्देश पर थानाप्रभारी मणिक मणि कुमावत, एसआई विजय सागरिया, प्रमोद राठौर, एसआई अमित शर्मा, भूपेंद्र सिंह सोलंकी आदि की टीम बनाई गई. इस टीम ने बादल व उस के चचेरे भाई संदीप, पिता भूरूलाल जाट की खोजबीन शुरू की.

पुलिस की मेहनत बेकार नहीं गई. रात गहराते ही इस टीम ने बादल और संदीप को छत्री गांव से हिरासत में ले लिया. दोनों के चेहरों का रंग उड़ा देख टीआई कुमावत समझ गए कि नीलेश के साथ कुछ बुरा हो चुका है, इसलिए उन्होंने पूछताछ में सख्ती बरतनी शुरू कर दी.

नतीजा यह निकला कि सख्ती के चलते कुछ ही देर में बादल और संदीप ने नीलेश की हत्या की बात स्वीकार कर ली. उन्होंने बताया कि नीलेश की लाश रतलाम से 140 किलोमीटर दूर मांडू के पास घाटी में फेंकी थी. रात में 2 बजे पुलिस टीम लाश बरामद करने के लिए मांडू रवाना हो गई.

दिन निकलते ही पुलिस ने दोनों आरोपियों की निशानदेही पर मांडू से थेड़ा पहले आलमगीर गेट के पास 40 फुट गहरी खाई में पड़ा लोहे का बक्सा खोज निकाला.

इस बक्से को निकालने में पुलिस को काफी मेहनत करनी पड़ी. बक्से को खोला गया तो उस के अंदर दरी में लिपटी नीलेश की लाश मिल गई. लाश के हाथपैर बंधे हुए थे और उस के गले पर चाकू का गहरा घाव था.

जहां बक्से में लाश मिली थी, उस से थोड़ा पहले एक गहरी घटी में बेसबाल का बल्ला, चाकू और आरोपियों के कपड़े भी मिल गए. आरोपियों ने बताया कि मृतक का मोबाइल उन्होंने रतलाम से मांडू जाते समय कहीं रास्ते में फेंक दिया था.

मोबाइल खोजने के लिए पुलिस की एक टीम लगा दी गई. प्राथमिक काररवाई कर के पुलिस ने पोस्टमार्टम के लिए लाश धार के अस्पताल भेज दी.

पूछताछ के लिए दोनों आरोपियों को एक दिन के रिमांड पर लिया गया. पूछताछ में बादल जाट ने नीलेश की हत्या का जो कारण बताया, उस से कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

नीलेश के पिता बाबूलाल मूलरूप से पचोड गांव के रहने वाले थे. पिछले कई दशकों से वह इप्का कंपनी में ठेका लिया करते थे, इंद्रलोक नगर में उन्होंने अपना घर बना लिया था और परिवार के साथ रहते थे.ठेकेदारी के चलते कंपनी के अधिकारियों से उन की अच्छी जानपहचान थी.

इसलिए बारहवीं के बाद उन्होंने बेटे नीलेश को आईटीआई से टर्नर ग्रेड का कोर्स करने की सलाह दी, ताकि पढ़ाई के बाद अपने संबंधों का लाभ उठा कर उसे आसानी से नौकरी दिला सकें.

नीलेश की एक मौसी बिलपांक थाना क्षेत्र के छत्री गांव में रहती थी. उस का बेटा बादल नीलेश का हमउम्र होने के साथसाथ उस का अच्छा दोस्त भी था. बादल 12वीं करने के बाद बीए कर रहा था. चूंकि उस के पिता की गांव में अच्छीखासीखेतीकिसानी थी, सो उसे नौकरी की चिंता नहीं थी.

बीते साल अप्रैल महीने में घर वालों ने उस की शादी मांडू इलाके के एक गांव में रहने वाली 18 वर्षीय कविता से कर दी थी. कविता केवल नाम की ही कविता नहीं थी, बल्कि उस के स्वभाव में भी कविता सी रचीबसी थी. खूबसूरत तो वह थी ही.

हाल ही में 18 साल पूरे करने वाली कविता का अल्हड़पन अभी गया नहीं था. शादी के समय जिस ने भी कविता को दुलहन के रूप में देखा, तो देखता ही रह गया. बारात में शामिल बड़ेबुजुर्ग जहां दुलहन में लक्ष्मी का रूप देख रहे थे, वहीं युवक रति का. नीलेश तो कविता को देख कर पगला सा गया था.

बहरहाल, बादल की शादी के कुछ दिन बाद नीलेश उसे भूल कर अपनी पढ़ाई में जुट गया. इसी दौरान एक रोज बादल कविता को ले कर रतलाम आया और दिन में आराम करने के लिए जितेंद्र से चाबी ले कर उस के कमरे पर पहुंच गया. उस ने भाभी को साथ ले कर आने की बात नीलेश को बताई.

साथ ही मिलने के लिए उसे जितेंद्र के कमरे पर बुला लिया. नीलेश जितेंद्र के घर पहुंचा तो बंद दरवाजे के पीछे से आ रही चूडि़यां खनकने की आवाज सुन कर चौंका. वह दरवाजे की झिर्री से अंदर झांकने लगा. उस ने कमरे के अंदर का नजारा देखा तो उस का खून गरम होने लगा.

छोटे से गांव से आई कविता देह के खेल में न केवल बादल का साथ दे रही थी, बल्कि उस माहौल में भी पूरी तरह डूबी हुई थी. कविता का यह रूप देख कर नीलेश का दिल और दिमाग दोनों घूम गए. उसे लगने लगा कि कविता अगर उसे मिल जाए तो उस की दुनिया भी रंगबिरंगी हो जाएगी. कुछ देर बाद जब कविता और बादल अलग हुए तो नीलेश ने दरवाजे पर दस्तक दी.

बादल ने दरवाजा खोल कर उसे अंदर बुला लिया. नीलेश जब तक वहां रहा, तब तक चोर निगाहों से कविता को ही निहारता रहा. बातबात में उस ने कविता से उस का वाट्सऐप नंबर ले लिया. इस के बाद उस ने कविता से वादा किया कि वह उसे रोज मैसेज भेजा करेगा.

इस के बाद नीलेश कविता को दिन में कईकई बार मैसेज भेजने लगा. कभीकभी वह फोन भी कर लेता था. कविता स्वभाव से चंचल तो थी ही, कभीकभी वह देवर से हंसीमजाक कर लेती थी. नीलेश तो जैसे भाभी से हंसीमजाक को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानता था. धीरेधीरे वह नीलेश के मजाक का जवाब भी मजाक में देने लगी.

इस से नीलेश को लगा कि कविता उस की ओर आकर्षित है. इसी बात को ध्यान में रख कर कुछ दिन बाद वह उसे वाट्सऐप पर अश्लील चुटकुले और फोटो भी भेजने लगा. पहले तो कविता ने इस का कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन कुछ समय बाद वह भी ऐसे चुटकलों पर प्रतिक्रिया देने लगी. इसे लाइन क्लीयर मान कर नीलेश ने उसे अश्लील वीडियो भेजने शुरू कर दिए. साथ ही वह फोन पर मिलने की बात भी करने लगा.

बताते हैं कि कविता का गांव ज्यादा दूर नहीं था. 1-2 बार वह कविता से मिलने छत्री गांव भी पहुंच गया. लेकिन इस से पहले कि नीलेश की बात बन पाती, इस बात की बादल को खबर लग गई.

उस ने नीलेश से इस तरह की हरकतें बंद करने का कहा, लेकिन नीलेश कविता में ऐसा खो चुका था कि उसे कविता के सिवा कुछ और दिखता ही नहीं था. उस ने बादल की बात पर ध्यान नहीं दिया. वह पहले की तरह ही कविता को वाट्सऐप पर हर तरह के मैसेज, फोटो और वीडियो भेजता रहा.

इस बात को ले कर कई बार बादल और उस के बीच झगड़ा भी हुआ. इस के बावजूद नीलेश के सिर से कविता भाभी की चाहत का भूत नहीं उतरा तो बादल ने उस की हत्या करने की ठान ली.

इस के लिए योजना बना कर वह 10 अक्तूबर को अपने चचेरे भाई संदीप को ले कर रतलाम आया. रतलाम आ कर उस ने मौसेरे भाई जितेंद्र से झूठ बोल कर उस के कमरे की चाबी ले ली. फिर वह आईटीआई पहुंचा, जहां उस ने नीलेश से कविता के रतलाम आने की बात कही और उस से मिलने के लिए जितेंद्र के कमरे पर चलने को कहा.

कविता रतलाम आई है, बादल खुद उसे कविता से मिलवाने के लिए बुलाने आया है. यह सोच कर नीलेश के मन में लड्डू फूटने लगे. वह बिना सोचेसमझे क्लास छोड़ कर बादल के साथ अलकापुरी स्थित जितेंद्र के कमरे पर पहुंच गया.

वहां बादल कविता को मैसेज भेजने की बात को ले कर उस से विवाद करने लगा. नीलेश को भी तैश आ गया. उसे यह पता नहीं था कि बादल योजना बना कर आया है.

कुछ देर बाद बादल और संदीप ने उस के ऊपर बेसबाल के बल्ले से वार कर दिया. नीलश ने विरोध किया तो दोनों ने उस के हाथपैर बांध दिए. फिर दोनों ने उसे जी भर कर मारापीटा. बाद में बादल ने चाकू से उस का गला रेत दिया.

कुछ देर तड़पने के बाद नीलेश मर गया तो दोनों बाजार से बड़ा संदूक खरीद कर लाए और नीलेश की लाश बोरे में भरने के बाद दरी में लपेट कर संदूक में बंद कर दी.

इस के बाद वे फर्श पर गिरा खून साफ करने लगे. इसी दौरान जितेंद्र कोचिंग सेंटर से घर लौटने लगा तो उस ने बादल को फोन किया. इस से दोनों घबरा गए और दीवारों का खून साफ किए बिना मोटरसाइकिल पर नीलेश की लाश ले कर मांडू के लिए रवाना हो गए.

बादल की ससुराल मांडू के पास थी, वहां आतेजाते उस ने गहरी घाटियों को पहले से देख रखा था. रतलाम से 40 किलोमीटर दूर जा कर दोनों ने संदूक में बंद नीलेश की लाश आलमगीर दरवाजे के पास घाटी में फेंक दी.

इस के बाद दोनों अपने घर छत्री पहुंच गए, लेकिन तब तक पुलिस उन्हें पकड़ने के लिए घेरा डाल चुकी थी.

रतलाम के एसपी गौरव तिवारी और एएसपी प्रदीप शर्मा के निर्देशन और सीएसपी विवेक चौहान के नेतृत्व में थानाप्रभारी डीएसपी (प्रशिक्षु) मणिक मणि कुमावत की टीम में शामिल एसआई विजय सागरिया, प्रमोद राठौर अमित शर्मा आदि ने कुछ ही घंटों में दोनों आरोपियों को दबोच कर उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा दिया.

तेजाब : किस्टोफर को खोने का क्या डर था-भाग 3

‘‘और कुछ नहीं?’’

‘‘और क्या?’’

‘‘हमारे बीच जो संबंध बने उसे किस रूप में लेती हो?’’

‘‘वह हमारी शारीरिक जरूरत थी. इस को ले कर मैं गंभीर नहीं हूं. यह एक सामान्य घटना है मेरे लिए.’’

क्रिस्टोफर के कथन से मेरे मन में निराशा के भाव पैदा हो गए. इस के बावजूद मेरे दिल में उस के प्रति प्रेम कम नहीं हुआ. वह भले ही मुझे पैरिस न ले जाए. मैं ने कभी भी इस लोभ में पड़ कर उस से प्रेम नहीं किया. मैं ने सिर्फ क्रिस्टोफर की मासूमियत और निश्छलता से प्रेम किया था. आज के समय में वह मेरे लिए सबकुछ थी. मैं ने उस के लिए सब को भुला दिया. मेरे चित्त में हर वक्त उसी का चेहरा घूमता था. मेरे चित्त में हर वक्त उसी का चेहरा घूमता था.

‘‘यहां हूं बारामदे में,’’ क्रिस्टोफर बोली तो मैं तेजी से चल कर उस के पास आया और बांहों में भर लिया.

‘‘बिस्तर पर नहीं पाया इसलिए घबरा गया था,’’ मैं बोला.

‘‘चिंता मत करो. मैं पैरिस में नहीं, तुम्हारे साथ नैनीताल के एक होटल में हूं. तुम्हारे बिना लौटना क्या आसान होगा?’’ वह हंसी की.

क्रिस्टोफर ने मेरे चेहरे का पढ़ लिया,
‘‘उदास मत हो. वर्तमान में रहना सीखो. अभी तो मैं तुम्हारे सामने हूं डार्लिंग,’’ क्रिस्टोफर ने मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया. मेरे भीतर का भय थम गया. 1 हफ्ते बाद हम दोनों वाराणसी आए. 2 दिन बाद क्रिस्टोफर ने बताया कि उसे पैरिस जाना होगा. 10 दिन बाद लौटगी. सुन कर मेरा दिल बैठ गया. उस के बगैर एक क्षण रहना मुश्किल था मेरे लिए.

क्रिस्टोफर अपना सामान बांध रही थी. इधर मैं उस की जुदाई में उदास हुआ हुआ जा रहा था. ‘क्या पता क्रिस्टोफर नहीं लौटे,’ सोचसोच कर मैं हलकान हुआ जा रहा था. जब नहीं रहा गया तो पूछ बैठा, ‘‘लौट कर आओगी न?’’ कहतेकहते मेरा गला भर आया.

‘‘आऊंगी, जरूर आऊंगी,’’ उस ने जोर दे कर कहा.

वह चली गई. मैं घंटों उस की याद में आंसू बहाता रहा. 10 दिन 10 साल की तरह लगे. न खाने का जी करता न ही सोने का. नींद तो जैसे मुझ से रूठ ही गई थी. ऐसे में स्कैचिंग का प्रश्न ही नहीं उठता. मेरी दुर्दशा मेरे मांबाप को देखी न गई. उन्होंने मुझे समझाने का प्रयास किया.

एक दिन पापा बोले, ‘‘तुम बेकार अपना भविष्य उस के लिए बरबाद कर रहे हो. हमारी और उन की संस्कृतियां भिन्न हैं.’’

‘‘मैं मानव संस्कृति में विश्वास करता हूं. जब उन की बनाई चीजों के उपभोग में संस्कृति आङे नहीं आती तो प्रेम या विवाह में क्या हरज है?’’

‘‘वे खुले विचारों के लोग हैं. शादी या तलाक उन के लिए कोई मायने नहीं रखते.’’

‘‘तलाक तो यहां भी हो रहे हैं. फर्कइतना था कि कल तक जिस पुरुष को देवता मान कर महिलाएं पूजती थीं आज उस पुरुष का तिलिस्म टूट गया. वे जान गईं कि ऐसा कुछ नहीं है,’’ पता नहीं कहा से मैं इतनी बड़ी बात बोल गया.

‘‘हमारे धर्म अलगअलग हैं. कैसे निभाओगे?’’

‘‘धर्म हम दोनों के लिए कोई खास मायने नहीं रखता.”

‘‘फिर भी सोच लो.’’

‘‘सोच लिया है. विचारों में एकरूपता न हो तो समान धर्म के लोगों में भी अलगाव हो जाता है.’’

‘‘कैसे जान लिया कि तुम्हारे और उस के विचार एकजैसे हैं. मात्र चंद महीनों की दोस्ती से किसी को पूरी तरह नहीं जाना जा सकता. हम तुम्हारी शादी करते तो बाकायदा कुंडली मिलवाते. शुभ लगन देख कर शादी करते. कम से कम मन में कोई दुविधा तो नहीं रहती.’’

‘‘पापा, आप आज भी उसी दकियानुसी खयालों से जुड़े हुए हैं. इन सब के बाद भी क्या गारंटी है कि हमारा वैवाहिक जीवन सुखी ही रहेगा? आप ही बताइए क्या आप ने मां को वह आजादी दी जिस की उन्हें दरकार थी? वे हमेशा आप के ही हिसाब से चलीं. मां की असहमति के बाद भी आप वही करते थे जो आप को अच्छा लगता था क्योंकि आप कमाते थे. फिर कुंडली मिलाने का क्या मतलब?’’

‘‘वहां परिवार की अवधारणा का कोई मतलब नहीं. यहां हम परिवार के लिए जीते हैं. तलाक ले कर अपने बच्चों के साथ वह दूसरी शादी कर लेगी तब तुम क्या करोगे? हमारे यहां तो कम से कम महिलाएं हर स्थिति में परिवार को बनाए रखती हैं.’’

‘‘सिर्फ महिलाएं, पुरुष नहीं. परिवार की जरूरत सिर्फ स्त्री को होती है. क्योंकि वही इस के बिना असुरक्षित महसूस करती है. पुरुष तो आज भी कुछ भी करने के लिए स्वतंत्र है. चाहे तो दूसरी औरत रख सकता है. चाहे तो अपनी बीवी को मारपीट कर बेघर कर सकता है. फिर परिवार की अवधारणा का क्या औचित्य? क्या यह पुरुष के बनाए आडंबर नहीं कि स्त्री को परिवार के नाम पर खूंटी से बांध दिया और खुद इधरउधर संबंध बनाते फिरते हैं. कम से कम वहां तो ऐसा नहीं है. जब जो अच्छा लगा उसी के साथ हो लिया. हम भारतीय तो ताउम्र गिल्ट के साथ जीते हैं.’’

 

सई ने दिखाया नो मेकअप लुक, फैंस कर रहे है सादगी की तारीफ

टीवी सीरियल गुम है किसी के प्यार में सीरियल ने कई सारे स्टार्स की जिंदगी बदल दी है इस लिस्ट में सबसे पहला नाम सई यानि आयशा सिंह का आता है, यह सीरियल जबसे कास्ट हुआ तबसे लेकर अब तक टीआरपी लिस्ट में बना हुआ है.

आयशा सिंह आए दिन अपने नए लुक को लेकर सोशल मीडिया पर चर्चा में बनी रहती हैं, आयशा सिंह के अंदर एक नई ट्रांसफॉर्मेंशन देखने को मिला है, आयशा ने नो मेकअप लुक शेयर किया है, उसमें वह काफी खूबसूरत लग रही हैं, आयशा की नो मेकअप लुक और खूबसूरत स्माइल काफी ज्यादा लोगों को पसंद आ रही है.

 

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आयशा कि यह तस्वीर लोगों को खूब पसंद आ रहा है, इस टीवी सीरियल को पूरा 2 साल हो चुका है,इस खास मौके पर पूरी टीम ने शानदार पार्टी की है, जिसमें आयशा ने अपनी ग्लैमर से लोगों का दिल जीत लिया है. वह पार्टी में ब्लैक कलर का सिमरी ड्रेस पहना हुआ है. उन्होंने साइड में पर्स कैरी किया है.

वह ओवरऑल स्टनिंग लग रही है, आयशा सिंह ने अपनी बदलती लाइफस्टाइल से लोगों का दिल जीत लिया है.

अनुपमा संग दोबारा घर बसाने का सपना देखेगा वनराज, जानें क्या होगा आगे

रूपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर सीरियल अनुपमा हमेशा अपनी नई स्टोरी को लेकर चर्चा में बना रहता है और शायद यही वजह है कि हमेशा टीआरपी लिस्ट में आगे भी है अनुपमा.

अनुपमा सीरियल में माया की एंट्री के बाद से सीरियल में नया ड्रामा देखने को मिल रहा है,  अनुपमा शाह परिवार जाती है जहां पर वह तोषु की देखभाल कर रही होती है उसके बाद से वह कपाड़िया परिवार लौटने लगती है लेकिन बा उसे रोकने की कोशिश करती है लेकिन वह रुकती नहीं है.

वहीं दूसरी तरफ माया अनुपमा को घर में ना देखकर मौके पर चौका मारती है, वह अनुज के करीब आने की कोशिश करती है.

 

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जैसे ही अनुपमा घर में आती है उस वक्त छोटी अनु और अनुज के साथ मिलकर माया केक काट रही होती है यह देखकर अनुपमा को काफी बुरा लगता है.

, अनुपमा के वापस आने के बाद से अनुज प्लान करता है छोटी अनु के साथ पिकनिक पर जानें कि. लेकिन उसी वक्त बा का फोन आ जाता है कि तोषु को लेकर चेकअप के लिए डॉक्टर के पास जाना है.

लेकिन बा के फोन के आने के बाद से अनुज गुस्से से लाल हो जाता है, इस मौका को देखते हुए माया अनुज से कहती है कि वह चली जाएगी अगर अनुपमा के पापा टाइम नहीं है तो . वहीं वनराज दूबारा अनुपमा को अपनी जिंदगी में लाने की कोशिश कर रहा है. जिसके लिए नई प्लानिंग करता नजर आ रहा है.

Holi Special: कड़वा फल- भाग 2

11वीं कक्षा में मैं ने साइंस के मैडिकल ग्रुप के विषय लिए. अंगरेजी को छोड़ कर मैं ने बाकी चारों विषयों की ट्यूशन पढ़ने को सब से बढि़या व महंगे कोचिंग संस्थान में प्रवेश लिया. वहां की तगड़ी फीस मम्मीपापा ने माथे पर एक भी शिकन डाले बिना कर्जा ले कर भर दी.

कड़ी मेहनत करने का संकल्प ले कर मैं पढ़ाई में जुट गया. दोस्तों से मिलना और बाहर घूमनाफिरना काफी कम कर दिया. क्लब जाना बंद कर दिया. बाहर घूमने जाने के नाम से मुझे चिढ़ होती.

‘‘मम्मीपापा, मैं जो नियमित रूप से पढ़ने का कार्यक्रम बनाता हूं, वह बाहर जाने के चक्कर में बिगड़ जाता है. आप दोनों मुझे अकेला छोड़ कर जाते हो, तो खाली घर में मुझ से पढ़ाई नहीं होती. मेरी खातिर आप दोनों घर में रहा करो, प्लीज,’’ एक शनिवार की शाम मैं ने उन से अपनी परेशानी भावुक अंदाज में कह दी.

‘‘रवि, पूरे 5 दिन दफ्तर में सिर खपा कर हम दोनों तनावग्रस्त हो जाते हैं. अगर शनिवारइतवार को भीक्लब नहीं गए, तो पागल हो जाएंगे हम. हां, बाकी और जगह जाना हम जरूर कम करेंगे,’’ उन के इस फैसले को सुन कर मैं उदास हो गया.

सुख देने व मनोरंजन करने वाली आदतों को बदलना और छोड़ना आसान नहीं होता. मम्मीपापा ने शुरू में कुछ कोशिश की, पर घूमनेफिरने की आदतें बदलने में दोनों ही नाकाम रहे.

उन्हें घर से बाहर घूमने जाने का कोई न कोई बहाना मिल ही जाता. कभी बोरियत व तनाव दूर करने तो कभी खुशी का मौका होने के कारण वे बाहर निकल ही जाते.

मैं उन के साथ नहीं जाता, पर चिढ़ और कुढ़न के कारण मुझ से पीछे पढ़ाई भी नहीं होती. मन की शिकायतें उसे पढ़ाई में एकाग्र नहीं होने देतीं.

चढ़ाई मुश्किल होती है, ढलान पर लुढ़कना आसान. वे दोनों नहीं बदले, तो मेरा संकल्प कमजोर पड़ता गया. मैं ने भी धीरेधीरे उन के साथ हर जगह आनाजाना शुरू कर दिया.

इस कारण मुझे वक्तबेवक्त मम्मीपापा की डांट व लैक्चर सुनने को मिलते. उन की फटकार से बचने के लिए मैं उन के सामने किताब खोले रहता. वे समझते कि मैं कड़ी मेहनत कर रहा हूं, पर आधे से ज्यादा समय मेरा ध्यान पढ़ने में नहीं होता.

अपनी लापरवाही के परिणामस्वरूप मैं पढ़ाई में पिछड़ने लगा. टैस्टों में नंबर कम आने पर मम्मीपापा से खूब डांट पड़ी.

‘‘अपनी लापरवाही की वजह से कल को अगर तुम डाक्टर नहीं बन पाए, तो हमें दोष मत देना. अपना जीवन संवारने की जिम्मेदारी सिर्फ तुम्हारी है, क्योंकि अब तुम बड़े हो गए हो,’’ मारे गुस्से के मम्मी का चेहरा लाल हो गया था.

यही वह समय था जब अपने मम्मीपापा के प्रति मेरे मन में शिकायत के भाव जनमे.

‘मेरे उज्ज्वल भविष्य की खातिर मम्मीपापा अपने शौक व आदतों को कुछ समय के लिए बदल क्यों नहीं रहे हैं? सुखसुविधाओं की वस्तुएं जुटा देने से ही क्या उन के कर्तव्य पूरे हो जाएंगे? मेरे मनोभावों को समझ मेरे साथ दोस्ताना व प्यार भरा वक्त गुजारने का महत्त्व उन्हें क्यों नहीं समझ आता?’ मन में उठते ऐसे सवालों के कारण मैं रातदिन परेशान रहने लगा.

तब तक क्रैडिट कार्ड का जमाना आ गया. यह सुविधा मम्मीपापा के लिए वरदान साबित हुई. जेब में रुपए न होने पर भी वे मौजमस्ती की जिंदगी जी सकते थे.

उन की दिनचर्या व उन के व्यवहार के कारण मेरे मन में नकारात्मक ऊर्जा पैदा होती. उन से कुछ कहनासुनना बेकार जाता और घर में ख्वाहमख्वाह का तनाव अलग पैदा होता.

मैं सचमुच डाक्टर बनना चाहता था. मैं ने इस नकारात्मक ऊर्जा का उपयोग पढ़नेलिखने के लिए करना आरंभ किया. मम्मीपापा के साथ ढंग से बातें किए हुए कईकई दिन गुजर जाते. मन के रोष व शिकायतों को भुलाने के लिए मैं रात को देर तक पढ़ता. मुझे बहुत थक जाने पर ही नींद आती वरना तो मम्मीपापा के प्रति गलत ढंग के विचार मन में घूमते रह कर सोने न देते.

मेरी 12वीं कक्षा की बोर्ड की परीक्षाओं के दौरान भी मम्मीपापा ने अपने घूमनेफिरने में खास कटौती नहीं की. वे मेरे पास होते भी, तो मुझे उन से खास सहारा या बल नहीं मिलता, क्योंकि मैं ने उन से अपने दिल की बातें कहना छोड़ दिया था.

बोर्ड की परीक्षाओं के बाद मैं ने कंपीटीशन की तैयारी शुरू की. अपनी आंतरिक बेचैनी को भुला कर मैं ने काफी मेहनत की.

बोर्ड की परीक्षा में मुझे 78% अंक प्राप्त हुए, लेकिन किसी भी सरकारी मैडिकल कालेज के लिए हुए कंपीटीशन की मैरिट लिस्ट में मेरा नाम नहीं आया.

मेरी निराशा रात को आंसू बन कर बहती. मम्मीपापा की निराशा कुछ दिनों के लिए उदासी के रूप में और बाद में कलेजा छलनी करने वाले वाक्यों के रूप में प्रकट हुई.

मेरा डाक्टर बनने का सपना अब प्राइवेट मैडिकल कालेज ही पूरा कर सकते थे. उन में प्रवेश पाने को डोनेशन व तगड़ी फीस की जरूरत थी. करीब 15-20 लाख रुपए से कम में डाक्टरी के कोर्स में प्रवेश लेना संभव न था.

हमारे रहनसहन का ऊंचा स्तर देख कर कोई भी यही अंदाजा लगाता कि मेरी उच्च शिक्षा पर 15-20 लाख रुपए खर्च करने की हैसियत मेरे मम्मीपापा जरूर रखते होंगे, पर यह सचाई नहीं थी. तभी मैं ने निराश और दुखी अंदाज में मम्मीपापा के सामने प्राइवेट मैडिकल कालेज में प्रवेश लेने की अपनी इच्छा जाहिर की.

पहले तो उन दोनों ने मेरे नकारापन के लिए मुझे खूब जलीकटी बातें सुनाईं. फिर गुस्सा शांत हो जाने के बाद उन्होंने जरूरत की राशि का इंतजाम करने के बारे में सोचविचार आरंभ किया. इस सिलसिले में पापा पहले अपने बैंक मैनेजर से मिले.

तलाक के बाद- भाग 3

Writer- VInita Rahurikar

उस के सहानुभूतिपूर्ण स्वर और स्पर्श से सुमिता के मन में जमा गुबार आंसुओं के रूप में बहने लगा. कोमल बिना उस से कुछ कहे ही समझ गई कि उसे अब समीर को छोड़ देने का दुख हो रहा है.

‘‘मैं ने तुम्हें पहले ही समझाया था सुमि कि समीर को छोड़ने की गलती मत कर, लेकिन तुम ने अपनी उन शुभचिंतकों की बातों में आ कर मेरी एक भी नहीं सुनी. तब मैं तुम्हें दुश्मन लगती थी. आज छोड़ गईं न तुम्हारी सारी सहेलियां तुम्हें अकेला?’’ कोमल ने कड़वे स्वर में कहा.

‘‘बस करो कोमल, अब मेरे दुखी मन पर और तीर न चलाओ,’’ सुमिता रोते हुए बोली. ‘‘मैं पहले से ही जानती थी कि वे सब बिना पैसे का तमाशा देखने वालों में से हैं. तुम उन्हें खूब पार्टियां देती थीं, घुमातीफिराती थीं, होटलों में लंच देती थीं, इसलिए सब तुम्हारी हां में हां मिलाती थीं. तब उन्हें तुम से दोस्ती रखने में अपना फायदा नजर आता था. लेकिन आज तुम जैसी अकेली औरत से रिश्ता बढ़ाने में उन्हें डर लगता है कि कहीं तुम मौका देख कर उन के पति को न फंसा लो. बस इसीलिए वे सतर्क हो गईं और तुम से दूर रहने में ही उन्हें समझदारी लगी,’’ कोमल का स्वर अब भी कड़वा था.

सुमिता अब भी चुपचाप बैठी आंसू बहा रही थी.

‘‘और तुम्हारे बारे में पुरुषों का नजरिया औरतों से बिलकुल अलग है. पुरुष हर समय तुम से झूठी सहानुभूति जता कर तुम पर डोरे डालने की फिराक में रहते हैं. अकेली औरत के लिए इस समाज में अपनी इज्जत बनाए रखना बहुत मुश्किल है. अब तो हर कोई अकेले में तुम्हारे घर आने का मंसूबा बनाता रहता है,’’ कोमल का स्वर सुमिता की हालत देख कर अब कुछ नम्र हुआ.

‘‘मैं सब समझ रही हूं कोमल. मैं खुद परेशान हो गई हूं औफिस के पुरुष सहकर्मियों और पड़ोसियों के व्यवहार से,’’ सुमिता आंसू पोंछ कर बोली.

‘‘तुम ने समीर से सामंजस्य बिठाने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया. थोड़ा सा भी धीरज नहीं रखा साथ चलने के लिए. अपने अहं पर अड़ी रहीं. समीर को समझाने का जरा सा भी प्रयास नहीं किया. तुम ने पतिपत्नी के रिश्ते को मजाक समझा,’’ कोमल ने कठोर स्वर में कहा.

फिर सुमिता के कंधे पर हाथ रख कर अपने नाम के अनुरूप कोमल स्वर में बोली, ‘‘समीर तुझ से सच्चा प्यार करता है, तभी 4 साल से अकेला है. उस ने दूसरा ब्याह नहीं किया. वह आज भी तेरा इंतजार कर रहा है. कल मैं और केशव उस के घर गए थे. देख कर मेरा तो दिल सच में भर आया सुमि. समीर ने डायनिंग टेबल पर अपने साथ एक थाली तेरे लिए भी लगाई थी.

‘‘वह आज भी अपने परिवार के रूप में बस तेरी ही कल्पना करता है और उसे आज भी तेरा इंतजार ही नहीं, बल्कि तेरे आने का विश्वास भी है. इस से पहले कि वह मजबूर हो कर दूसरी शादी कर ले उस से समझौता कर ले, वरना उम्र भर पछताती रहेगी.

‘‘उस के प्यार को देख छोटीमोटी बातों को नजरअंदाज कर दे. हम यही गलती करते हैं कि प्यार को नजरअंदाज कर के छोटीमोटी गलतियों को पकड़ कर बैठ जाते हैं और अपना रिश्ता, अपना घर तोड़ लेते हैं. पर ये नहीं सोचते कि घर के साथसाथ हम स्वयं भी टूट जाते हैं,’’ एक गहरी सांस ले कर कोमल चुप हो गई और सुमिता की प्रतिक्रिया जानने के लिए उस के चेहरे की ओर देखने लगी.

‘‘समीर मुझे माफ करेगा क्या?’’ सुमिता उस की प्रतिक्रिया जानने के लिए उस के चेहरे की ओर देखने लगी.

‘‘समीर के प्यार पर शक मत कर सुमि. तू सच बता, समीर के साथ गुजारे हुए 3 सालों में तू ज्यादा खुश थी या उस से अलग होने के बाद के 4 सालों में तू ज्यादा खुश रही है?’’ कोमल ने सुमिता से सवाल पूछा जिस का जवाब उस के चेहरे की मायूसी ने ही दे दिया.

‘‘लौट जा सुमि, लौट जा. इस से पहले कि जिंदगी के सारे रास्ते बंद हो जाएं, अपने घर लौट जा. 4 साल के भयावह अकेलेपन की बहुत सजा भुगत चुके तुम दोनों. समीर के मन में तुझे ले कर कोई गिला नहीं है. तू भी अपने मन में कोई पूर्वाग्रह मत रख और आज ही उस के पास चली जा. उस के घर और मन के दरवाजे आज भी तेरे लिए खुले हैं,’’ कोमल ने कहा.

घर आ कर सुमिता कोमल की बातों पर गौर करती रही. सचमुच अपने अहं के कारण नारी शक्ति और स्वावलंबन के नाम पर इस अलगाव का दर्द भुगतने का कोई अर्थ नहीं है.

जीवन की सार्थकता रिश्तों को जोड़ने में है तोड़ने में नहीं, तलाक के बाद उसे यह भलीभांति समझ में आ गया है. स्त्री की इज्जत घर और पति की सुरक्षा देने वाली बांहों के घेरे में ही है. फिर अचानक ही सुमि समीर की बांहों में जाने के लिए मचल उठी.

समीर के घर का दरवाजा खुला हुआ था. समीर रात में अचानक ही उसे देख कर आश्चर्यचकित रह गया. सुमि बिना कुछ बोले उस के सीने से लग गई. समीर ने उसे कस कर अपने बाहुपाश में बांध लिया. दोनों देर तक आंसू बहाते रहे. मनों का मैल और 4 सालों की दूरियां आंसुओं से धुल गईं.

बहुत देर बाद समीर ने सुमि को अलग करते हुए कहा, ‘‘मेरी तो कल छुट्टी है. पर तुम्हें तो औफिस जाना है न. चलो, अब सो जाओ.’’

‘‘मैं ने नौकरी छोड़ दी है समीर,’’ सुमि ने कहा.

‘‘छोड़ दी है? पर क्यों?’’ समीर ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘तुम्हारे ढेर सारे बच्चों की परवरिश करने की खातिर,’’ सुमि ने शर्माते हुए कहा तो समीर हंस पड़ा. फिर दोनों एकदूसरे की बांहों में खोए हुए अपने कमरे की ओर चल पड़े.

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