दुनिया की 20 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का एक क्लब है जी-20. इस में बारीबारी से हरेक देश को अध्यक्षता मिलती है और चूंकि देश 20 ही हैं, सभी की बारी आनी ही है. भारत का नंबर एबीसीडी के क्रम से 3 साल पहले आना था पर उस ने 2021 में इटली से कहा कि वह अध्यक्षता ले ले. उस के बाद 2022 में भी भारत ने अपनी जगह इंडोनेशिया से लेने को कहा.

देश में मौजूदा सरकार की यह सोचीसमझी चाल थी कि जी-20 की सभा के लिए वर्ष 2023 में अमेरिका, इंगलैंड, रूस, चीन, जापान, फ्रांस, जरमनी, कनाडा जैसे देशों के अध्यक्ष ऐन 2024 के पहले भारत में आएं ताकि यहां के मूर्ख लोगों को बहकाया जा सके कि नरेंद्र मोदी की खासीयत देखो, वे जी-20 ग्रुप के अध्यक्ष पद पर भारत को बैठा रहे हैं.

अब भारतीय जनता पार्टी इसे भुनाने में लग गई है और हर शहर में भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता इसे महान उपलब्धि बता रहे हैं. जबकि, पिछले शिखर सम्मेलनों में यहां की सत्तारूढ़ पार्टियों ने मेजबानी की, रहनेखाने का प्रबंध किया पर उसे वोटों के लिए नहीं भुनाया.

1999 में शुरू हुई जी-20 की सभा 2008 के बाद हर साल 20 देशों में से एकएक कर के हर देश में की जा रही है. यह 2008 में वाशिंगटन में हुई, फिर लंदन, मास्को, टोरंटो (कनाडा), सियोल (दक्षिणी कोरिया), फ्रांस, चीन, अर्जेंटाइना, सऊदी अरब, ब्राजील आदि में. भारत एक बड़ा देश है, दुनिया की सब से ज्यादा आबादी यहीं है और कुछ देशों में जितने लोग रहते हैं, उतने तो यहां हर साल बढ़ जाते हैं. प्रतिव्यक्ति 2,000 डौलर वाले देश की आर्थिक रैंकिंग गरीबों में है और मोदी के 8 सालों के शासन में ऐसा कुछ नहीं हुआ कि यह रैंकिंग सुधरी हो.

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