जानेमाने उद्योगपति गौतम अडानी की संपत्ति का आंकलन करना आम जनता के लिए बहुत मुश्किल है क्योंकि यह संख्या इतनी बड़ी है कि आम भारतीय जो 2 डौलर यानी 160 रुपए प्रतिदिन में जीता है, इस रकम का अंदाजा ही नहीं लगा सकता. अडानी एंपायर की बैलेंस शीटें देश के कई राज्यों के वार्षिक लेखेजोखों से बड़ी हैं. अभी तो यही समझिए कि अमेरिका की एक शार्ट सैलिंग इन्वैस्ट कंपनी ने अपने शोध में जैसे ही बताया कि अडानी की संपत्ति सिर्फ भ्रम है, वह अकाउंट बुक्स की हेराफेरी पर टिकी है, दुनियाभर की इन्वैस्टमैंट कंपनियों ने अडानी के शेयरों और बौंडों से हाथ खींचना शुरू कर दिया.

अडानी ग्रुप में पैसा लगाने वालों में से बहुतों को इस बात का एहसास था कि अडानी ग्रुप में कहीं कुछ गलत है पर वे फिर भी मुनाफा कमा रहे थे, इसलिए लगातार निवेश कर रहे थे, पैसे लगा रहे थे. भारत सरकार अकसर नए कौन्ट्रैक्ट अडानी ग्रुप को मनमाने दामों पर भेंट कर रही थी. अडानी के हवाई जहाजों में ही 2014 में नरेंद्र मोदी ने देशभर में प्रचार किया था. निवेशकों को यह भरोसा भी था कि जैसे नरेंद्र मोदी ने बाबरी मसजिद को राममंदिर में बदल डाला, संसद भवन को अपनी मरजी का बनवा लिया, वैसे ही वे गौतम अडानी की कंपनियों में किए गए निवेश को नुकसान नहीं पहुंचने देंगे.

यह बिलकुल अजीब है कि आखिर में अडानी ग्रुप में निवेशकों का भरोसा फिर आ जाए और पता चले कि रिपोर्ट किसी खुन्नस में लिखी गई है. इस बारे में इतना समझना काफी है कि आमतौर पर इन्वैस्टमैंट कंपनियां किसी ऐसी रिपोर्ट पर इतनी जल्दी अपना निवेश नहीं बटोरतीं. अमेरिका की एक शोध एजेंसी हिंडनबर्ग की रिसर्च रिपोर्ट में अवश्य कुछ ऐसा है जिसे वे ज्यादा समझ सकते हैं जिन का अडानी की कंपनियों में निवेश है.

हिंडनबर्ग भी बिना कारण भारत के प्रधानमंत्री के निकट के उद्योगपति के खिलाफ रिपोर्ट यों ही प्रकाशित नहीं करेगी. अब तक विकीलीक्स, पनाया पेपर्स जैसी रिपोर्टों को गलत नहीं साबित किया जा सका है जबकि उन रिपोर्टों में कितने ही देशों के बहुत ही अमीर व प्रभावशाली लोग शामिल थे.

हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने जिन बातों का खुलासा किया है उन का अंदेशा बहुतों को बहुत समय से था पर अर्थजगत तो होता ही लौटरी जैसा है और कोई भी नहीं चाहता कि जो कागजी ढांचा झूठ और फरेब पर बना है, वह टूटे क्योंकि उस में बहुतों को फायदा है, सरकारों को चलाने वालों को भी.

फिर भी यह साबित करता है कि हर अमीर ने न तो केवल सूझबूझ से पैसा कमाया है, न ही कोई नई चीज जनता को दे कर. बहुत से अमीरों का पैसा हेराफेरी का होता है. उस का अंतिम और अगला शिकार वह आम आदमी होता है जो, गौतम अडानी या मुकेश अंबानी को तो छोडि़ए, नगरनिगम के पार्षद और पंचायत अध्यक्ष की पोल भी नहीं खोल सकता है. वह तो सबकुछ भगवान की मरजी ही मानता है. इसीलिए तो धर्म की दुकानें रातदिन चमकती हैं.

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