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हिंसक होते शिक्षक, बेहद चिंतनीय

स्कूलों में शिक्षकों द्वारा छात्रों को मारनापीटना कानूनन अपराध है, फिर भी ऐसी घटनाएं सामने हैं जहां शिक्षक इसे ‘गुरु अधिकार’ सम?ा छात्रों की बेरहमी से पिटाई करते हैं. जरूरी है कि ऐसे हिंसक शिक्षकों से निबटा जाए. ‘टीचर ने मु?ो कैंची से मारा, मेरे बाल खींचे, फिर मु?ो स्कूल की पहली मंजिल से फेंक दिया. मैं ने कुछ भी गलत नहीं किया था.’ बीती 17 दिसंबर को दिल्ली के हिंदूराव अस्पताल में इलाज के लिए भरती इस पीडि़ता के पहले टीचर गीता देशवाल कई मासूमों के साथ इसी तरह की हिंसा कर चुकी थी. लेकिन उस के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.

वाकेआ दिल्ली के सदर बाजार के मौडल बस्ती स्थित प्राइमरी स्कूल का है जहां पढ़ रहे कई बच्चों के पेरैंट्स ने बताया कि उक्त टीचर आएदिन बच्चों की बेरहमी से मारकुटाई करती रहती है लेकिन उस के खिलाफ कई शिकायतों के बाद भी कोई ऐक्शन नहीं लिया गया. चूंकि इस बार एक मासूम की जान पर बन आई थी, इसलिए मध्य दिल्ली की डीसीपी श्वेता चौहान भागीभागी स्कूल पहुंची और उक्त शिक्षिका के खिलाफ मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू करने की रस्म निभा दी. स्कूल सरकारी है जिस में अधिकतर गरीबगुरबों और छोटी जाति वालों के बच्चे पढ़ते हैं. यह सोचना फुजूल की बात है कि इस क्रूर और हैवान शिक्षिका का कुछ बिगड़ेगा जिसे तगड़ी पगार इन एकलव्यों को अर्जुन बनने से रोकने के एवज में दी जाती है. इस के बाद भी लाखदोलाख में एकाध बच्चा अपनी प्रतिभा व मेहनत के दम पर पढ़लिख कर कुछ बन जाए तो आसमान सिर पर उठा लिया जाता है कि देखो, रिकशे वाले का बच्चा बड़ा अफसर बन गया जिस का सीधा सा मतलब यह है कि पढ़ाईलिखाई और गुणवत्ता के मामले में सरकारी स्कूल उन्नीस नहीं हैं, वे महंगे और भव्य प्राइवेट स्कूलों को टक्कर देते हैं.

खोट हमारे सिस्टम और नजरिए में है जो सरकारी स्कूलों और उन के माहौल को बदनाम किया जाता है. ऐसी ही एक और नेकनामी का एक मामला हिमाचल प्रदेश के ऊना से आया था, जहां प्रिंसिपल साहब ने बीती 1 दिसंबर को 2 छात्रों की बेरहमी से पिटाई की थी जिन में से एक को तो मरणासन्न हालत में अस्पताल में भरती कराना पड़ा था. मामला इतना भर था कि स्कूल के बाथरूम के नल तोड़ने का शक प्रिंसिपल को इन छात्रों पर था, लिहाजा, महज शक की बिना पर उन्होंने छात्रों की हड्डीपसली तोड़ दी. इस हादसे के 12 दिन पहले राजस्थान के टोंक जिले के एक सरकारी स्कूल में एक शिक्षक ने एक मासूम की इतनी बेरहमी से पिटाई की थी कि उस की रीढ़ की हड्डी ही टूट गई थी.

इस बच्चे का गुनाह इतना भर था कि वह लंच के दौरान साथियों से बात कर रहा था. अनुशासनप्रिय मास्साब को उस की यह हरकत इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने उसे जमीन पर पटक कर उस की पीठ पर लात रख दी, दृश्य ठीक वैसा ही था जैसे तसवीरों और ?ांकियों में देवी राक्षसों का वध करती नजर आती है. हिंसा के मंदिर शिक्षकों की आएदिन की हिंसा का पुराण बहुत लंबाचौड़ा है जिस में 2-4 नए अध्याय रोज जुड़ते हैं. शिक्षा के मंदिर कहे जाने वाले स्कूल किस तरह हिंसा के मंदिरों में तबदील होते जा रहे हैं, इस की एक और बानगी बीती 16 दिसंबर को ही वाराणसी से देखने में आई थी. वहां के चोलापुर ब्लौक के जरियारी गांव के सरकारी स्कूल में एक अध्यापक ने तीसरी क्लास के एक बच्चे की डंडे से तबीयत से धुनाई कर डाली. बच्चा रहम की गुहार लगाता रहा.

लेकिन उस हैवान को तरस न आया. यह बच्चा स्कूल देर से पहुंचा था, इस पर अध्यापक ने आव देखा न ताव और डंडे से बच्चे को मारना शुरू कर दिया जिस का वीडियो किसी दूसरे टीचर ने बना कर वायरल कर दिया. ये मामले चंद उदाहरण हैं. इन्हें ‘अपवाद’ या ‘ऐसा तो कभीकभार होता रहता है’ कह कर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. देशभर में 15 नवंबर से ले कर 15 दिसंबर 2020 तक ऐसे लगभग 50 मामले उजागर हुए थे जिन में हिंसा के मंदिरों के इन पुजारियों ने जम कर बच्चों की पूजा की थी. छोटेमोटे मामलों का तो अतापता ही नहीं चलता जिन में बच्चों को चोट नहीं आती. कुछ प्राइवेट स्कूल भी इस में शामिल थे. सोचना लाजिमी है कि आखिर शिक्षक क्यों हिंसक हो रहे हैं और ऐसे शिक्षकों से कैसे निबटा जा सकता है. बच्चों की सुरक्षा और उन्हें हिंसा से रोकने के लिए तमाम कानून वजूद में हैं (आईपीसी के सैक्शन 83 में 7 से 12 साल के बच्चों को शारीरिक सजा देने की मनाही है,

न केवल स्कूलों, बल्कि घरों में भी बच्चों के प्रति हिंसा रोकने के लिए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2020 में प्रावधान हैं.) लेकिन दोषियों को सजा होगी, ऐसा लगता नहीं. एकदो मामलों में मुमकिन है सजा हो भी जाए पर अधिकतर, खासतौर से सरकारी स्कूलों के मामले रफादफा हो जाते हैं क्योंकि वहां टीचर्स की पहुंच ऊपर तक होती है. उन्हें खासी सैलरी मिलती है और अहम बात इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों के अभिभावक आर्थिक व सामाजिक सहित तमाम मोरचों पर कमजोर होते हैं, इसलिए सम?ाता करने के अलावा उन के पास कोई रास्ता नहीं रह जाता. ये हैं वजहें सरकारी स्कूलों में बच्चों के प्रति हिंसा बेहद चिंतनीय और संवेदनशील मसला है जिस पर हैरत की बात, बातबात पर डिबेट कर हल्ला मचाने वाले न्यूज चैनल्स की चुप्पी है. दीगर मीडिया भी कुछ न बोलने में ही बेहतरी सम?ाता है. पिटने वाले और हिंसा का शिकार होने वाले अधिकांश बच्चे समाज के उस तबके के होते हैं जिन्हें सदियों से शिक्षा से महरूम रखा गया है.

पिटना और प्रताडि़त होना इस वर्ग की नियति रही है. अलावा इस के, बच्चे सौफ्ट टारगेट और कमजोर होते हैं जो विरोध नहीं कर पाते, इसलिए भी इन की कुटाई करना आसान होता है. यह सहूलियत धर्मग्रंथों और वर्णव्यवस्था से भी मास्टरों को प्रोत्साहन की शक्ल में मिली हुई है जिन्हें श्रुति और स्मृति की बिना पर यह ज्ञान प्राप्त है कि प्रताड़ना से ही बच्चों की जिंदगी बनती है और जो हम इन्हें दे रहे हैं वह अनमोल है. तीसरी अहम वजह शिक्षकों की कुंठाएं और पारिवारिक ?ां?ाटें हैं. इस प्रतिनिधि ने भोपाल के कोई 20 शिक्षकशिक्षिकाओं से इस संबंध में बातचीत की तो उन्होंने जाहिर है नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हां, वे अकसर घर का गुस्सा स्कूल में बच्चों पर उतारते हैं क्योंकि इस पर किसी विरोध की गुंजाइश न के बराबर होती है और वे इसे अधिकार की तरह इस्तेमाल करते हैं.

यानी, कमजोर पर गुस्सा उतारने की मनोवैज्ञानिक थ्योरी हिंसा के इन मामलों पर बिना किसी सैंसर के लागू होती है. भारत में कभी शिक्षा गुरुकुलों में ही दी जाती थी जहां गुरुओं का दबदबा और रुतबा किसी सुबूत का मुहताज नहीं था. पढ़ाई या ज्ञान हासिल करने के एवज में छात्रों को गुरु की गुलामी करना पड़ती थी. वे गुरु के घर का सारा कामकाज करते थे, जंगल से लकडि़यां बीन कर लाते थे, गाय का दूध निकालते थे और यहां तक कि गुरु के हाथपैर भी दबाते थे. गुरु को भगवान का दरजा मिला हुआ था. कमोबेश कलियुगी गुरुओं की मानसिकता आज भी सनातनी है कि शिष्यों को सिखाने के नाम पर प्रताडि़त करना उन का हक है. तब के अभिभावक भी नादान थे जो गुरुओं से कहते थे कि बच्चे की चमड़ी आप की है, हड्डी हमारी है. सनातनी है मानसिकता सोशल मीडिया पर आएदिन धर्म, संस्कृति और संस्कारों के नाम पर वर्तमान शिक्षा प्रणाली को कोसते गुरुकुलों की अहमियत का गुणगान होता रहता है जिस से कट्टर हिंदुत्व और मजबूत होता है.

इस बात का स्कूलों में होने वाली हिंसा से कनैक्शन नहीं है, ऐसा न कहने की कोई वजह नहीं. महाभारत काल में आचार्य द्रोणाचार्य द्वारा भील समुदाय के होनहार निशानेबाज एकलव्य का अंगूठा काटे जाने का प्रसंग इस की बेहतर मिसाल है. द्रोण, दरअसल नहीं चाहता था कि पांडव कुल के उस के चहेते शिष्य अर्जुन के मुकाबले कोई दूसरा धनुर्धारी हो, इसलिए उस ने गुरुदक्षिणा में एकलव्य से उस का अंगूठा ही मांग लिया था और हैरत की बात यह है कि उस ने एकलव्य को धनुष विद्या सिखाई ही नहीं थी क्योंकि तब आज की तरह शूद्रों को पढ़ने का अधिकार ही नहीं था. छात्रों के प्रति हिंसा का ऐसा नायाब एक और उदाहरण महाभारत काल में ही देखने को मिलता है जिस में कर्ण को उस के गुरु परशुराम ने युद्ध के मैदान में युद्ध कौशल भूलने का श्राप दे दिया था क्योंकि कर्ण पांडव होते हुए भी सूत पुत्र था और परशुराम केवल ऊंची जाति वालों को ही शिष्य बनाते थे.

कर्ण ने उन से अपनी जाति छिपाई थी जिस का खमियाजा उसे अपने ही भाई अर्जुन के हाथों मर कर भुगतना पड़ा था. यह हिंसा नहीं तो और क्या था? यह मनुवादी गुरुशिष्य परंपरा आज भी सामाजिक चिंतन को अपनी लपेट में लिए हुए है जिस की गूंज ‘गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु देवो महेश्वरा…’ मंत्र की शक्ल में हर साल 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के दिन देखनेसुनने में आती है. इस लिहाज से तो दिल्ली की गीता देशवाल कतई गुनाहगार नहीं, बल्कि पूजनीय है क्योंकि उस के जैसे तमाम प्रभुतुल्य गुरुओं को यह हक है कि वे छात्र या शिष्य को बिना किसी लिहाज के मारेपीटें. इस छूट के हकदार वे सभी शिक्षक हैं जो छात्रों के प्रति हिंसा करते हैं. बात अकेले भारत की ही नहीं है, बल्कि पूरी दुनिया में धर्मगुरुओं का बोलबाला और दबदबा था.

10वीं शताब्दी पूर्व इब्राहीमी धर्मों के मुताबिक, यहूदियों के एक राजा और धर्मगुरु सुलेमान अपनी संहिता में शारीरिक सजा की वकालत कर गया तो बाद में इस से छात्रों की शामत आ गई. पेशे से वकील और मशहूर दार्शनिक इंग्लैंड के जेरेमी बेन्थम ने सुलेमान संहिता का समर्थन करते फरमान जारी कर दिया कि शारीरिक दंड का मकसद प्रतिशोधात्मक नहीं, बल्कि सुधारात्मक है. बेन्थम की इस थ्योरी को इसलिए भी बिना किसी लागलपेट के कानून जैसा मान लिया गया कि उन्होंने 1763 में महज 15 साल की उम्र में औक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से स्नातक डिग्री ले कर अपनी प्रतिभा के ?ांडे गाड़ दिए थे. यही भारत में ब्राह्मणवाद के पालकपोषक आचार्य चाणक्य और चार्वाक जैसे गुरुओं ने किया और कहा कि किशोरावस्था में बालक से प्रताड़ना से ही पेश आना चाहिए. इन और ऐसे सिद्धांतों के न तब कोई माने थे, न आज हैं जो शिक्षकों को बेलगाम होने की छूट देते हुए थे.

एक वक्त में हाल तो यह था कि काबिल गुरु या शिक्षक उसी को माना जाता था जो छात्रों को कड़ी से कड़ी सजा देता था, चाहे पढ़ाईलिखाई में वह शिक्षक भले ही जीरो हो. सदियों और सालों बाद भी सामाजिक व मानसिक स्तर पर खास कुछ नहीं बदला है सिवा इस के कि गुरुकुलों की जगह सरकारी और प्राइवेट स्कूलों ने ले ली है और शिक्षकों को दक्षिणा की जगह मोटी पगार मिलने लगी है. सार यह कि शिक्षक आदिकाल से हिंसक थे और आज भी हैं और इन से निबटना तब भी चुनौती थी और आज भी है जो मासूम और अबोध बच्चों पर अपनी भड़ास निकालते हैं. ऐसे निबटें हिंसा बच्चों के दिलोदिमाग पर कितना बुरा असर डालती है, यह हिंसा करने वाले शिक्षकों से बेहतर कोई सम?ा भी नहीं सकता क्योंकि इन्हें बीएड की पढ़ाई के दौरान खासतौर से चाइल्ड साइकोलौजी पढ़ाई जाती है. मोटेतौर पर हर कोई सम?ाता है कि बच्चा सहमासहमा सा रहता है, बोलने में हकलाने लगता है, आत्मविश्वास खो बैठता है, गुमसुम रहता है, डिप्रैशन में चला जाता है और इस के बाद भी सजा और हिंसा जारी रहे तो स्कूल ही छोड़ देता है.

तब कहा यह जाता है कि यह तो है ही डफर, अब शहर जा कर मेहनतमजदूरी करेगा, डिलीवरी बौय बन जाएगा या फिर लिफ्टमैन या सिक्योरटी गार्ड की नौकरी करेगा. पहले ऐसे बच्चों को ताना दिया जाता था कि पढ़ेगालिखेगा नहीं तो ढोर चराएगा. ऐसे ड्रौपआउट छात्रों की तादाद इतनी तेजी से बढ़ रही है कि कई राज्यों के सरकारी स्कूलों में नाममात्र के छात्र बचे हैं और वे भी सिर्फ मध्याह्न भोजन के लालच में स्कूल जाते हैं. आंकड़ों के अनुसार, शैक्षणिक वर्ष 2021-22 में प्राथमिक स्तर (कक्षा 1 से 5) में ड्रौपआउट दर 1.5 प्रतिशत हो गई है, जो 2020-21 में 0.8 प्रतिशत थी. उच्च प्राथमिक स्तर (कक्षा 6-8) में ड्रौपआउट दर वर्ष 2020-21 के 1.9 प्रतिशत की तुलना में 2021-22 में 3 प्रतिशत हो गई है. यह डेटा यूडीआईएसई प्लस 2021-22 रिपोर्ट द्वारा सामने आया. रिपोर्ट में कहा गया, उच्च प्राथमिक स्तर पर ड्रौपआउट दर 3 वर्षों में सब से अधिक है. 2019-20 की रिपोर्ट बताती है कि ड्रौपआउट दर 2.6 प्रतिशत थी, जो 2020-21 में घट कर 1.9 प्रतिशत हो गई और फिर 2021-22 में फिर से 3 प्रतिशत हो गई. तीनों वर्षों में, इस स्तर पर लड़कियों की ड्रौपआउट दर लड़कों की तुलना में अधिक रही है. रिपोर्ट में कहा गया कि भारत ने पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 19.63 लाख नए छात्र जोड़े, जिस में सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूल शामिल थे. 2020-21 में छात्रों की संख्या 25.38 करोड़ से बढ़ कर 25.57 करोड़ हो गई पर ड्रौपआउट रेट चिंताजनक बना हुआ है. अब गुरुजी भी प्रसन्न रहते हैं कि इन छात्रों को पढ़ाने की जहमत नहीं उठानी पड़ रही, इसलिए सप्ताह में एकदो बार वे मुंह दिखाने के लिए स्कूल का चक्कर काट आते हैं.

कई स्कूलों में तो टीचर्स ने दिन बांध रखे हैं कि 2 दिन तू जा, 2 दिन मैं जाऊंगा और 2 दिन वह आएगा. कभी स्कूल का औचक निरीक्षण होगा भी तो अपने माथुर या फलां साहब मैनेज कर लेंगे. 50 हजार महीने के मिलते हैं, उन में से साल में एकदो बार 5 हजार देना भी पड़े तो सौदा घाटे का नहीं, यह तो सहूलियत है. जाहिर है जो टीचर पढ़ाने के नाम पर अलाली काटेंगे, वे बच्चे को डराए रखने, उसे सजा भी देंगे जिस से कोई कहीं शिकायत न करे. शहरों और उन से सटे स्कूलों में लोग जागरूक रहते हैं, वहां जरूर स्कूल नियमित लगते हैं लेकिन हिंसा भी खूब होती है. बच्चा कुछ पूछता है या सवालजवाब करता है तो शिक्षकों को उस में तौहीन लगती है. लिहाजा, वे ऐसे बच्चों को टारगेट कर उन्हें परेशान ही करते रहते हैं.

इस अभिजात्य किस्म की हिंसा में बच्चे का जो नुकसान होता है, उस का खमियाजा वह जिंदगीभर भुगतता है. छोटा बच्चा स्कूल से मार खा कर आए तो तुरंत स्कूल जा कर हल्ला मचाएं कि मास्टरों को बच्चों को मारनेपीटने का कोई हक नहीं. यह जुर्म है और इस के खिलाफ कार्रवाई न हुई तो हम हाहाकार मचाएंगे. दिल्ली के मामले में अगर वक्त पर टीचर के खिलाफ पेरैंट्स ऐक्शन लेते तो उस के हौसले इतने बुलंद न हो पाते कि एक मासूम को खिड़की से ही फेंक दे. पेरैंट्स को याद यह भी रखना चाहिए कि गुरु कोई महात्मा या भगवान नहीं होता, वह वैतनिक सरकारी नौकर है जिस की अपनी सीमाएं हैं जिन में से एक यह भी है कि उसे बच्चे को किसी भी लैवल पर अपमानित या प्रताडि़त करने का अधिकार नहीं. विदिशा के एक रिटायर्ड शिक्षक का कहना है कि सरकारी स्कूलों में कभी कोई पेरैंट्स हिंसक शिक्षकों की शिकायत करने ऊपर नहीं जाते जबकि मामला उन के बच्चों के भविष्य का होता है. उलट इस के, अगर बड़े प्राइवेट स्कूलों में बच्चे को खरोंच भी आती है तो पेरैंट्स उसे स्कूल से निकलवा कर ही दम लेते हैं और धौंस भी देते हैं कि यह कारोबार है और हम ग्राहक तगड़ी फीस अदा करते हैं. यह दम और जागरूकता सभी पेरैंट्स को खुद में पैदा करनी पड़ेगी, नहीं तो कुछ बदलने की उम्मीद कोई न रखें.

कम पानी में कद्दूवर्गीय सब्जियों के लिए लो टनल तकनीक

तकनीक से खेती करने में किसानों को उत्पादन दोगुना मिलता है. इस से पानी का उपयोग 50 फीसदी तक कम हो जाता है. इस के साथ ही समय से पहले फसल आने के कारण किसानों को उपज के अच्छे भाव मिलते हैं. लो टनल या रो कवर्स संरक्षित खेती में अच्छा उत्पादन लेने की एक तकनीक है.

अपेक्षाकृत बहुत कम लागत में फसल तैयार हो जाती है और थोड़े समय (3-4 महीने) में इस से मुनाफा कमा सकते हैं. इस से खेतों मे धोरेनुमा क्यारियां बना कर उन पर विशेष तरह से सुरंग का आकार देते हुए प्लास्टिक को लगाया जाता है. इस में प्लास्टिक की 200 माइक्रोन फिल्म लगानी उचित है. इस तकनीक से हम एक तरह की पौलीटनल यानी एक लोहे का सरिया, बांस की डंडियों की सहायता से सुरंग का निर्माण करते हैं. इस की ऊंचाई 1-1.5 फुट तक रखते हैं और लंबाई खेत के आकार के आधार पर रखते हैं. इस में सुरंग के दोनों सिरों को बंद कर देते हैं, जिस में समयसमय पर इस प्लास्टिक को ऊंचा कर के अपनी फसल में निराईगुड़ाई, खाद मिलाना आदि क्रियाएं करते हैं. इस सुरंगनुमा भाग में ड्रिप सिस्टम लगा कर उसे ट्यूबवैल से जोड़ दिया जाता है.

इस में करेला, लौकी, खरबूजा, तरबूज, ककड़ी, खीरा, धारीदार तोरई, चप्पनकद्दू, टिंडा, कद्दू की फसल लेने के लिए समय से पूर्व सर्दी के मौसम में ही बोआई कर दी जाती है. लो टनल बोआई इन फसलों को सर्दी से बचाने का काम करती है. इस के साथ ही साथ भीतर का वातावरण फसल के अनुकूल बना रहता है. ड्रिप सिस्टम से इस में सिंचाई की जाती है, जिस से पौधों को आवश्यकतानुसार पूरा पानी मिलता है. इस के साथ ही भाप के रूप में उड़ने वाले पानी को प्लास्टिक वायुमंडल में नहीं जाने देती, जिस के कारण टनल में भी नमी बनी रहती है. सर्दी के मौसम में लो टनल फसलें समय से पूर्व ही उपज देने लगती हैं. इस प्रकार बेमौसमी सब्जी से किसानों को दोगुनी आय मिलती है. उत्पादन तकनीक यह तकनीक राजस्थान के गरम शुष्क क्षेत्रों में कद्दूवर्गीय सब्जियों की अगेती खेती के लिए उपयोगी है.

जहां सर्दी के मौसम में रात का तापमान बहुत अधिक गिर जाता है, वहीं लो टनल तकनीक से फसल निम्न तापमान वाली से सुरक्षित रहती है. इस में जनवरी में बीजों की बोआई ड्रिपयुक्त नाली (ट्रेंच) में करते हैं. इस को प्लास्टिक की चादर से ढक देते हैं, जिस से कद्दूवर्गीय सब्जियों को उस के सामान्य समय से पहले उगाना संभव है. इस से सामान्य दशाओं की तुलना में फसल 30-40 दिन पहले ही तैयार हो जाती है. दिसंबर के अंत में खेत में फसल के अनुसार 2-2.5 मीटर की दूरी पर 45 सैंटीमीटर चौड़ी और 45 से 60 सैंटीमीटर गहरी नालियां पूर्व से पश्चिम दिशा में बनाते हैं. इन नालियों में सड़ी गोबर की खाद और रासायनिक उर्वरकों की बोई जाने वाली फसल के लिए संतुलित मात्रा मिला देनी चाहिए.

पानी में घुलनशील नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश व सूक्ष्म तत्त्वों के मिश्रण को ड्रिप द्वारा सिंचाई के साथ भी फसल में दे सकते हैं. नाइट्रोजन की अधिक मात्रा देने से बचना चाहिए, अन्यथा पौधों की वानस्पतिक बढ़वार अधिक होगी. इस के परिणामस्वरूप फलत कम होगी. सिंचाई के लिए 4 लिटर प्रति घंटा पानी के डिस्चार्ज वाली 12-16 मिलीमीटर आकार वाली ड्रिप पाइप (लेटरल), जिन पर 60 सैंटीमीटर की दूरी पर ड्रिपर लगे हों, नालियों में बिछा देनी चाहिए. बोआई करने से पूर्व बीजों का अंकुरण करवाना आवश्यक है. जनवरी में कम तापमान के कारण इन का अंकुरण देर से होता है.

अंकुरण के लिए बीजों को पानी में भिगोया जाना चाहिए. पानी में भिगोने की अवधि बीज के छिलके की मोटाई पर निर्भर करती है. 3-4 घंटे खरबूजा एवं खीरा, 6 से 8 घंटे लौकी एवं तोरई, 10 से 12 घंटे टिंडा, तरबूज, खरबूजा भिगोने के बाद बीज को केपटौन 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचारित करना चाहिए. इस के बाद बोरों में लपेट कर गरम स्थान जैसे बिना सड़ी हुई गोबर की खाद में 2-3 दिन तक दबाने से बीजों की बोआई तैयार नालियों में जनवरी के पहले हफ्ते में कर देनी चाहिए. एक ड्रिपर के पास कम से कम 2 बीजों की बोआई करते हैं.

प्लास्टिक से ढकने से नालियों के अंदर का तापमान सामान्य से 8 से 10 डिगरी सैल्सियस अधिक बना रहता है. इस से बीजों का अंकुरण जल्दी हो जाता है और पौधों का विकास भी सुचारु रूप से होता है. फरवरी के दूसरे हफ्ते में मौसम का तापमान बढ़ जाता है, तो प्लास्टिक को हटा कर खरपतवार को निकाल देना चाहिए. प्लास्टिक की टनल को कभी भी एकदम से नहीं हटाना चाहिए. ऐसा करने से पौधों को धक्का लगता है और वे मुरझा जाते हैं, जिस से उन की वानस्पतिक बढ़वार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. प्लास्टिक को शाम के समय तापमान कम होने पर हटाना चाहए और अगले दिन सुबह पौधों को फिर से प्लास्टिक से ढक देना चाहिए. यह प्रक्रिया 2 से 3 दिन तक करने से पौधों में कठोरीकरण आ जाता है और वे मौसम के अनुकूल ढल जाते हैं. पौधों की वानस्पतिक बढ़वार के दौरान पंक्तियों के सापेक्ष सरकंडा लगा देते हैं, जिस से प्रतिकूल या तेज हवाओं से पौधों को बचाया जा सके.

इस प्रकार की तकनीक से बोई गई फसल सामान्य दशा में 40 से 50 दिन पहले ही तैयार हो जाती है, जिसे बाजार में अच्छा भाव मिलता है. इस से प्रति हेक्टेयर 1 से 1.5 लाख रुपए तक आमदनी प्राप्त की जा सकती है. उन्नत किस्में लौकी : पूसा संतुष्टि, पूसा समृद्धि, पूसा संदेश, काशी गंगा, काशी बहार, पूसा बहार, पूसा नवीन, पूसा हाइब्रिड-3, एनडीवीएच-4. करेला : पूसा दोमौसमी, पूसा विशेष, पूसा हाइब्रिड-2, काशी उर्वशी, अर्का हरित. खीरा : पूसा उदय, पूसा बरखा, पीसीयूसीएच 1. कद्दू : पूसा विश्वास, पूसा विकास, आस्ट्रेलियन ग्रीन, काशी हरित, पूसा हाइब्रिड-1, पूसा अलंकार हाइब्रिड. खरबूजा : पूसा मधुरस, पूसा शरबती, हरा मधु, दुर्गापुरा मधु, पंजाब सुनहरी. तरबूज : शुगर बेबी, अर्कामानिक, थार मानक. टिंडा : पंजाब टिंडा, अर्का टिंडा. चप्पनकद्दू : आस्ट्रेलियन ग्रीन, पेटीपेन, अर्ली यैलो, प्रोलिफिक, पूसा अलंकार. धारीधार तोरई : पूसा नसदार, सतपुतिया,

पूसा नूतन. तोरई : पूसा स्नेहा, पूसा सुप्रिया, पूसा चिकनी, काशी दिव्या. कद्दूवर्गीय फसलों के प्रमुख कीट एवं रोग रौड पंपकिन बीटल : इस कीट के शिशु व वयस्क दोनों ही फसल को नुकसान पहुंचाते हैं. वयस्क कीट पौधों की पत्तियों में टेढ़ेमेढ़े छेद करते हैं, जबकि शिशु पौधों की जड़ों में भूमिगत तने व भूमि से सटे फलों और पत्तियों को नुकसान पहुंचाते हैं. रोकथाम : कार्बोरिल 50 डब्ल्यूपी 2 ग्राम प्रति लिटर या एमामैक्टिन बेंजोएट 5 एसजी की 1 ग्राम मात्रा प्रति 2 लिटर या इंडोक्स्कार्ब 14.5 एससी की 1 मिलीलिटर प्रति 2 लिटर का घोल बना कर छिड़काव करें. फल मक्खी रोकथाम : मेलाथियो 0.02 फीसदी 200 मिलीग्राम प्रति लिटर का घोल बना कर छिड़काव करें. मृदु रोमिल आसिता : इस की वजह से पत्तियों के ऊपरी भाग पर पीले धब्बे और निचले भाग पर बैगनी रंग के धब्बे दिखाई देते हैं. रोकथाम : डाईथेन जेड 78 के 0.2 से 0.3 (2 से 3 ग्राम प्रति लिटर) का घोल बना कर छिड़काव करें. चूर्णिल आसिता : यह एक कवकजनित रोग है. इस से ग्रस्त पौधों पर सफेद चूर्णिल धब्बे दिखाई देते हैं.

अधिक प्रकोप की दशा में पत्तियां गिर जाती हैं और पौधा मुरझा जाता है. रोकथाम : रोगग्रस्त पत्तियों को काट कर पौधों से अलग कर देना चाहिए. इस रोग के लक्षण दिखने पर 0.1 फीसदी कार्बंडाजिम या 0.05 फीसदी हेक्साकोनेजोल का 15 से 20 दिनों के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिए. मोजेक रोग : यह विषाणुजनित रोग है, जो एफिड या माहू के माध्यम से फैलता है. इस रोग से प्रभावित पत्तियों की लंबाई व चौड़ाई कम रह जाती है और फलों का रंग व आकार भी प्रभावित होता है. रोकथाम : * रोगरोधी किस्मों का चुनाव करें. * पौधों में रोग के लक्षण दिखाई देते ही उखाड़ कर जला देना चाहिए. * इस रोग के माध्यम से माहू कीट के नियंत्रण के लिए 1.5 मिलीलिटर मेटासिस्टौक्स प्रति लिटर पानी के घोल का 10 से 15 दिनों के अंतराल पर 2 से 3 बार छिड़काव करना चाहिए.

मेरे पापा कि डेथ हो गई थी ,बचपन में लेकिन जब मुझे पता चला कि मेरी मम्मी का बॉयफ्रेंड है, तो मेरे पैरों चले जमीन खिसक गई?

सवाल 

मेरा कालेज का लास्ट ईयर है. कालेज में ही जौब प्लेसमैंट हो गया है और कालेज कंप्लीट होने के बाद मेरी जौब लग जाएगी. मैं बहुत खुश हूं क्योंकि मैं अपने बलबूते पर कुछ कर पाऊंगी.

मेरे पापा की डैथ मेरे बचपन में ही हो गई थी. मम्मी ने मुझेबहुत प्यार से पाला हैमेरा हर तरह से ध्यान रखा है. मैं ने अपने अलावा मम्मी को किसी और के लिए ध्यान करते कभी देखा ही नहीं. लेकिन कुछ दिनों पहले मम्मी मार्केट जाते वक्त अपना मोबाइल घर भूल गईं और मैं घर पर थी. मोबाइल बजा तो मैं ने कौल रिसीव कर ली. दूसरी तरफ से एक आदमी की आवाज आई जो मुझेमम्मी सम?ा कर जो कुछ बोलासुन कर मेरे पैरोंतले जमीन खिसक गई.

उस दिन से मैं बहुत अपसैट हूं. मम्मी का बौयफ्रैंड हो सकता हैमैं सपने में भी सोच नहीं सकती थी. मैं अपने पापा के सिवा किसी और को मम्मी के साथ कैसे देख सकती हूं. मैं मम्मी को अपना आइडियल मानती हूं लेकिन अब सब धोखा सा लग रहा है. बहुत बैचेन हूंक्या करूं?

जवाब

ये कैसी बातें कर रही हैं आपवह भी अपनी मां के लिएजिस ने अपनी पूरी उम्र सिर्फ और सिर्फ आप को बड़ा होनेकाबिल बनाने के लिए लगा दीउस की दुनिया सिर्फ आप के इर्दगिर्द घूमती रही और जिसे आप भी अपना आइडियल मानती हैं.

एक दिन आप को पता चलता है कि मम्मी का ब्रौयफ्रैंड है तो वे एकदम आप की नजरों से गिर गईं. ऐसा क्या गुनाह कर दिया मम्मी ने बौयफ्रैंड बना कर.

मम्मी ने तो आप को पता भी नहीं चलने दिया कि उन का कोई ब्रौयफ्रैंड है. यानी कि उन्होंने आप की केयर मेंप्यार में कोई कमी आने नहीं दी. अगर उस दिन आप मोबाइल की कौल न रिसीव करतीं तो शायद आप को कभी पता भी न चलता कि मम्मी का कोई बौयफ्रैंड भी है.

मुझेयह बताइए कि मां इंसान नहीं होती. क्या उस की अपनी कोई फीलिंग्स नहीं होती. आप के पिता का देहांत बहुत जल्दी हो गया. आप की मम्मी अपने बारे में सोच सकती थीं लेकिन उन के लिए आप प्रायोरटी थीं. मम्मी ने आप को एहसास नहीं होने दिया कि उन की जिंदगी में क्या चल रहा है या उन्हें भी किसी के साथ की जरूरत है या वे भी चाहती हैं कि कोई उन के साथ खड़ा हो. नहीं नक्योंकि वे आप को हर तरह से खुश रखना चाहती थीं.

अगर वे अपनी निजी जिंदगी में खुशी के कुछ पल अपने ब्रौयफ्रैंड के साथ बिता लेती हैं तो आप को इस में इतना गलत क्या लग रहा हैआप अपने दिमाग में कुछ ज्यादा ही खयाली पुलाव पका रही हैं. मम्मी आप के साथ हैं और आप के साथ ही रहेंगी. बल्किहैरानी तो इस बात की हो रही है कि एक बेटी हो कर आप अपनी मां की फीलिंग्स को नहीं सम?ा रही हैं. क्या आप ने सोचा है कि शादी होने के बाद जब आप अपनी ससुराल चली जाएंगीतब मम्मी का क्या होगा?

आप को तो खुश होना चाहिए कि मम्मी का कोई बौयफ्रैंड है जिस से वे अपने खालीपन को भरने की कोशिश कर रही हैं. सब को किसी न किसी का साथ चाहिए. आप को आगे आ कर वक्त रहते मम्मी को सपोर्ट करना चाहिए. फिलहाल इस बारे में मम्मी से कोई बात न करें और अपने मन से भी बेकार की बातें निकाल दें. जैसा चल रहा हैचलने दें. आगे सब वक्त पर छोड़ दें. खुश रहें और मम्मी को अपना भरपूर प्यार दें.

 

गुस्सैल औरत से कैसे निबटें

बाहरी गतिविधियों में शामिल होने से पुरुषों को यह फायदा मिलता है कि वे अपने मूड को शिफ्ट कर लेते हैं पर भारत में अधिकतर महिलाएं घरों में बंद जिंदगी जीती हैं, अधिकतर परेशानियां वे किसी से शेयर नहीं कर पातीं जिस के चलते उन में गुस्सा व तनाव पैदा होने लगता है. ऐसी स्थिति से कैसे निबटें जब औरत का स्वभाव गुस्सैल हो जाए. नेहा जब से नितिन से शादी कर के उस के घर आई थी, उस ने अपनी सास को ज्यादातर उखड़े हुए मूड में ही देखा.

उस की सास कामिनी सभी के कामों में दखलंदाजी करती थी और हर चीज में मीनमेख निकालती थी. 25 वर्षीय नेहा, उस का 28 वर्षीय पति नितिन, उस की ननद, ससुरजी, देवर सभी कामिनी के व्यवहार से परेशान रहते थे. वह छोटीछोटी बात पर चीखनेचिल्लाने लगती थी, तेज आवाज में लड़ने लगती थी. नेहा तो उस का व्यवहार देख कर उस से डरीडरी रहने लगी. सास से कुछ पूछनेबताने के लिए उसे बड़ी हिम्मत जुटानी पड़ती थी, पता नहीं किस बात पर बखेड़ा खड़ा कर दे.

घर के लोग ही नहीं, बल्कि पड़ोसी भी कामिनी के उग्र स्वभाव से डरते थे और कोई उस को अपने घर नहीं बुलाना चाहता था. नेहा एक उच्चशिक्षित संस्कारी परिवार से आई थी. अपने परिवार में उस ने कभी किसी औरत का तो क्या, किसी पुरुष का भी ऐसा रौद्र रूप नहीं देखा था. सभी बहुत सुल?ो हुए लोग थे. कोई किसी से तेज आवाज में बात नहीं करता था और सब के मन में एकदूसरे के प्रति प्यार और इज्जत थी. लेकिन ससुराल का वातावरण बिलकुल विपरीत था. एक औरत की वजह से पूरा घर जंग का मैदान बना रहता था. मध्यम और मीठी आवाज में बात करने वाली नेहा को जल्दी ही अपनी ससुराल जंगलियों की खोह नजर आने लगी. उस ने काफी कोशिश की कि किसी तरह अपनी सास के दिल में अपने लिए प्रेम पैदा कर सके. औफिस से लौटते वक्त अकसर वह कोई न कोई छोटामोटा गिफ्ट या उस की पसंद की खाने की कोई चीज ले आती थी.

मार्केट जाती तो उस को तैयार कर के अपने साथ ले जाती और उस की पसंद की चीजें खरीदती ताकि वह खुश रहे. खाली वक्त में उस से बातें करती या उस की किसी रैसिपी की तारीफ कर के उसे सिखाने के लिए कहती. मगर नेहा की इन तमाम कोशिशों का प्रभाव, बस, थोड़े समय के लिए रहता था. दोएक दिन बाद कामिनी का व्यवहार फिर गुस्सैल हो जाता था. सालभर सास के तीखे बोल सहने के बाद एक दिन तंग आ कर नेहा ने सारी बातें अपने बड़े भाई अंकुर को फोन पर कह डालीं. अंकुर डाक्टर थे, छूटते ही बोले, ‘‘आंटी का ब्लडप्रैशर चैक करवाओ. मु?ो तो हाइपरटैंशन का मामला लग रहा है.

यह हालत उस के हार्ट और ब्रेन के लिए ठीक नहीं है. खाने में घी, नमक और मसाले की मात्रा कम कर दो.’’ नेहा ने अपने पति नितिन से बात की. अपने भाई अंकुर से भी पति की बात करवाई. अंकुर ने कहा, ‘‘इस से पहले कि बहुत देर हो जाए, अपनी मम्मी का चैकअप करवा लो. नितिन को बात सम?ा में आ गई पर अब सब से बड़ी प्रौब्लम यह थी कि मम्मी को डाक्टर के पास क्या कह कर ले जाया जाए? अगर वह मां से कहता कि चलो बीपी चैक करवा लो तो वह न सिर्फ मना कर देती बल्कि डांट लगा कर कहती- तुम लोगों ने मु?ो पागल सम?ा रखा है? मैं तुम लोगों को बीमार नजर आती हूं? ऐसे में नेहा ने एक रास्ता निकाला.

नेहा ने अपने चैकअप का बहाना बनाया और दूसरे दिन बहाने से सास को ले कर डाक्टर के पास पहुंच गई. नितिन ने पहले ही डाक्टर को सारी स्थिति और मां का व्यवहार सम?ा दिया था. डाक्टर ने पहले नेहा का बीपी चैक किया और फिर बोला, ‘‘आइए माताजी, आप भी चैक करवा लीजिए.’’ डाक्टर ने बैंड नेहा के हाथ से उतार कर उस की सास के हाथ पर बांध दिया. कामिनी का बीपी 200/120 निकला. डाक्टर ने हैरानी से कहा, ‘‘यह तो बहुत ज्यादा है.

आप का बीपी क्या हमेशा इतना ज्यादा रहता है?’’ कामिनी देवी बोलीं, ‘‘पता नहीं, कभी चैक नहीं कराया.’’ डाक्टर ने पूछा, ‘‘सिरदर्द रहता है? बेचैनी रहती है? चिड़चिड़ाहट होती है? गुस्सा आता है?’’ नेहा की सास ने हर सवाल का जवाब ‘हां’ में दिया तो डाक्टर ने उन्हें सम?ाया, ‘‘आप को ब्लडप्रैशर की बहुत गंभीर शिकायत है. अगर आप ने इस को कंट्रोल नहीं किया तो आगे जा कर आप को हार्टअटैक या ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है. कुछ दवाएं दे रहा हूं. इन को नियमित खाइए. भोजन में नमक बहुत कम और कुछ दिनों के लिए तलाभुना खाना बिलकुल बंद कर दीजिए. हो सके तो उबला हुआ खाना खाइए.’’ डाक्टर की बातें सुन कर नेहा की सास डर गई. उस दिन के बाद उन्होंने अपना खानपान बदल दिया.

नियमित दवाएं, सादा खाना और डाक्टर के परामर्श से सुबह की सैर आरंभ कर दी. नेहा ने इस सब में उस की मदद की. एक महीने के अंदर ही कामिनी के व्यवहार में काफी परिवर्तन आ गया. अब वह सब के ऊपर ?ाल्लाती नहीं थी. डांटफटकार, लड़ाई?ागड़ा बहुत कम हो गया बल्कि अब तो वह सब के साथ बैठ कर टीवी भी देखती और हंसीठिठोली भी कर लेती थी. सालों से जो परिवार यह सम?ाता था कि इस गुस्सैल औरत से तो बात करना ही बेकार है, यह अपनी आदत नहीं बदल सकती, किसी की भावनाएं नहीं सम?ा सकती, हर बात पर काट खाने को दौड़ती हैं, वह परिवार अब सम?ा रहा था कि कामिनी वास्तव में बीमारी की जकड़ में थी जो अंदर ही अंदर उस को खाए जा रही थी. गुस्सा आना इंसानी स्वभाव का हिस्सा है. हम में से हर किसी को कभी न कभी, किसी न किसी बात पर गुस्सा आता ही है पर वह क्षणिक होता है. लेकिन जब गुस्सा स्वभाव ही बन जाए तो सचेत हो जाना चाहिए.

ऐसा व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी की चपेट में हो सकता है. कुछ लोगों के संस्कार अच्छे नहीं होते या वे बचपन में अपने मातापिता को ?ागड़ते देख बड़े होते हैं तो उन के स्वभाव में भी गुस्सा अपना स्थान बना लेता है. कई बार हम जो लक्ष्य जीवन में ले कर चलते हैं उन को प्राप्त नहीं कर पाते तो हमें खुद पर गुस्सा आता है और फ्रस्ट्रेशन बढ़ने पर हम अपना गुस्सा दूसरों पर निकालने लगते हैं. ऐसा गुस्सा रिश्तों में दरार डालता है. पतिपत्नी के बीच खटास पैदा कर देता है. बच्चों से दूरियां बढ़ा देता है. दोस्तों से ताल्लुकात खत्म कर देता है. साल 2022 में बीबीसी ने दुनियाभर में बढ़ रही गुस्सैल प्रवृत्ति पर एक विश्लेषण किया, जिस में उस ने पाया कि 2012 से पुरुषों की तुलना में अधिक महिलाएं उदासी और चिंता महसूस कर रही हैं, हालांकि दोनों में यह चिंता ऊपर की ओर बढ़ रही है.

2012 में महिलापुरुषों में समान स्तरों पर क्रोध और तनाव था पर 9 साल बाद महिलाएं अधिक गुस्सैल हो गई हैं जिस का अंतर अब 6 प्रतिशत का हो चला है. इस सर्वे में हर साल 150 से अधिक देशों के 1,20,000 से अधिक लोगों को औब्जर्व किया गया. गुस्से से निबटना एक चुनौती है, विशेषकर जब वह वैवाहिक जीवन में दरार उत्पन्न करने की वजह बन रहा हो. हमारे समाज में आमतौर पर पति ज्यादा समय घर के बाहर रहते हैं. औफिस के काम में और लोगों से मेलमुलाकात से वे खुद को हलकाफुलका तनावमुक्त रखते हैं मगर पत्नियां अकसर घर की चारदीवारी में बंद रहती हैं. उन के पास अपनी बातें शेयर करने के लिए कोई नहीं होता. घर के कामों और दूसरों की सेवा करतेकरते वे परेशान व तनावग्रस्त हो जाती हैं. लिहाजा, उन का स्वभाव उग्र हो जाता है और फिर अपनी खी?ा वे घर के सदस्यों पर निकालने लगती हैं और इस का सब से पहला शिकार पति बनता है.

पत्नी अगर गुस्सैल है तो भी उस के साथ निभाना तो पड़ता है. इस के लिए जरूरी है कि कुछ खास बातों का खयाल रखा जाए, ताकि उस के साथ निभाना आसान हो जाए और आप के रिश्तों में कटुता भी न आए. जानें कि गुस्सा क्यों है पतिपत्नी का एकदूसरे के स्वभाव को जानना बेहद जरूरी है. पत्नी हर बात पर तो क्रोधित नहीं होती है. जाहिर है बिना वजह कोई नहीं भड़कता है. उन बातों और स्थितियों पर गौर करें और उन का आकलन करें जिन से आप की पत्नी को गुस्सा आता है. अगर उन्हें सम?ा लिया जाए और ऐसी स्थिति उत्पन्न होने से बचा जा सके तो पत्नी के गुस्से से सामना करने से बचा जा सकता है. व्यवहार को चैक करते रहें हो सकता है आप की कुछ ऐसी आदतें और व्यवहार हों जो उसे नापसंद हों. आप के लिए उन आदतों व व्यवहार को बदलना बेशक मुमकिन न हो पर पत्नी के सामने वे काम या बात न करें जिन से उस के अंदर खी?ा पैदा होती हो. गलती मानें गलतियां सब से होती हैं.

आप से भी हुई. मगर आप मानते नहीं तो यह बात उस के गुस्से का कारण हो सकती है. पत्नी चाह रही है कि आप अपनी गलती मान लें तो इस में बुराई ही क्या है? इस तरह उसे भी अच्छा लगेगा और आप को भी उस के क्रोध से जल्दी छुटकारा मिल जाएगा. जब भी गलती हो तो अपने ईगो को एक तरफ रख दें. बात तुरंत संभल जाएगी. उस की बात सुनें कई बार औरतें इस बात से नाराज रहती हैं कि कोई उन की बात सुनने को तैयार नहीं है. इस दुनिया में अनेक महिलाएं इसी वजह से डिप्रैशन में रहती हैं कि उन्हें सुननेसम?ाने वाला कोई नहीं है. जब वह क्रोधित हो तो उस की बात अवश्य सुनें. उस की स्थिति व मानसिक अवस्था को सम?ा कर ही उस के साथ व्यवहार करें. सप्ताह में एक दिन कुछ घंटे सिर्फ उसे दें. उस को घर के कामों से कुछ आराम दें. कहीं घुमाने ले जाएं. सिर्फ सैक्स के लिए ही उस के पास न आएं बल्कि कभीकभी सिर्फ साथ बैठ कर हलकीफुलकी प्यारमोहब्बत की बात करें. उस की ज्यादा सुनें, अपनी कम सुनाएं. शांत होने का समय दें जब आप को लगे कि आप की पत्नी को गुस्सा आ रहा है तो कोई प्रतिक्रिया या उसे चुप कराने की कोशिश करने के बजाय उसे शांत होने का वक्त दें.

बीच में बोलने या उसे बुराभला कहने से बात और बढ़ेगी. हो सकता है आप उस की बात न सुनते हों, इसलिए उसे अधिक गुस्सा आता हो. वह जो भी कहना चाहती है, अगर आप उसे वह कहने का मौका दें, उस की बातों को ध्यान से सुनें, उस की राय को महत्त्व दें तो हो सकता है उसे क्रोध का सहारा न लेना पड़े. उसे स्पेस दें ताकि उसे अपनी गलतियों का एहसास हो और हो सकता है, वह आप से आ कर सौरी भी कह दे. धैर्य बनाए रखें अपनी गुस्सैल पत्नी के साथ निभाने के लिए आप को धैर्य बनाए रखना होगा. आप को कई बार इस बात की हैरानी भी होगी कि आखिर इतनी छोटी सी बात पर पत्नी को गुस्सा क्यों आया या वह इस तरह से रिऐक्ट क्यों कर रही है? लेकिन ऐसे में उसे रोकने या टोकने का मतलब होगा उस के गुस्से को और बढ़ाना. बेहतर यही होगा कि अपना धैर्य न खोएं. हो सके तो उस के सामने से हट जाएं, दूसरे कमरे में चले जाएं. इस से कम से कम आप की सहनशीलता तो आप का साथ नहीं छोड़ेगी. अगर वह बेहद गुस्से में हो तो अच्छा यही होगा कि आप घर से बाहर चले जाएं.

जब तक आप वापस लौटेंगे, वह शांत हो चुकी होगी. उस के साथ वाक पर जाएं जो महिलाएं नौकरीपेशा हैं तो कई बार औफिस के तनावपूर्ण हालात का लगातार सामना करने से गुस्सा उन के दिमाग पर हावी हो जाता है और वे घर में अपना गुस्सा निकालने लगती हैं. अगर आप की नौकरीपेशा पत्नी को औफिस के किसी व्यक्ति पर गुस्सा आ रहा है तो आप दोनों वाक पर जाएं. उस से पूरी बात सुनें, सम?ों और उसे उस परेशानी से निकलने की सही सलाह दें. आमतौर पर पत्नी को यह बात अच्छी लगती है कि उस का पति उसे सपोर्ट कर रहा है. अगर आप की पत्नी किसी मुद्दे पर गलत भी हो तो गुस्से के वक्त उस की आंखें खोलने का या बहस करने का प्रयास न करें, बल्कि सही वक्त का इंतजार करें.

अगर उसे लगता है कि उस का पति उसे सपोर्ट कर रहा है तो उसे बहुत तसल्ली होगी और उस के हार्मोन भी संतुलित होंगे, जिस से उसे अपने क्रोध पर नियंत्रण पाने में मदद मिलेगी. हो सकता है उसे अपनी गलती का भी एहसास हो जाए और वह औफिस में नरम पड़ जाए. इमोशनली स्ट्रौंग बनें इस के लिए आप का भावनात्मक रूप से मजबूत होना आवश्यक है. अगर आप ऐसा कर पाते हैं तो उसे एहसास दिला सकते हैं कि उस का क्रोधित होना सिवा ऊर्जा को जाया करने के और कुछ नहीं है. लेकिन अगर वह आप को भी गुस्सा दिलाने में कामयाब हो जाती है तो इस का सीधा सा अर्थ है कि उस का आप के इमोशंस पर कंट्रोल है

चुनौती-भाग 1: क्यों अपनी ही मां से जलती थी शिल्पा

पिछले 3-4 महीनों से अपनी 16 साल की बेटी शिल्पा को समझना मेरे लिए बहुत कठिन हो गया है. जो हरकतें मुझे किलसाती हैं, उन्हें करने में शिल्पा को न जाने क्या आनंद आने लगा है.
आज भी मेरी इच्छा के विरुद्ध वह अपने पिता के साथ एक महंगी नई ड्रेस खरीदने बाजार चली गई.

मैं ने अपने पति राजीव को समझाने का प्रयास किया था, “अभी पीछे दीवाली पर ही तो हम ने शिल्पा को 2 नई ड्रेस दिलवाई थीं. जिस चीज की उसे जरूरत नहीं उस पर अनापशनाप पैसा खर्च करना कहां की समझदारी है.’’

राजीव के कुछ कहने से पहले शिल्पा खीझ कर बोली, ‘‘मम्मी, आप को समझदारी की बातें तब ही क्यों याद आती हैं, जब मैं अपनी खुशी के लिए कुछ करना चाहती हूं. आप ने रेणु दीदी की शादी के लिए जो नई साड़ी ली है, वह भी फुजूलखर्ची है क्या?’’

‘‘वह साड़ी मैं ने नहीं खरीदी है, वह तो तुम्हारे पापा ने मुझे उपहार में दी है.’’

‘‘तब समझ लीजिए कि पापा आज नई ड्रेस भी मुझे उपहार में दिलवा रहे हैं. नए कपड़े पहनने का जितना शौक आप को है, उतना ही मुझे भी है,’’ कह कर वह पैर पटकती अपने कमरे में जा घुसी थी.

उस के स्वभाव में यह तुनकमिजाजी, गुस्सा और चिड़चिड़ापन पिछले कुछ महीनों में ही आया है. उस से पहले वह मुझ से मीठा बोलती थी और मुझे पूरी इज्जत देती थी.

शिल्पा पढ़ाई में होशियार और देखने में आकर्षक है. 5 फुट, 6 इंच का लंबा कद उस के व्यक्तित्व को और ज्यादा प्रभावशाली बना देता है.

‘जितनी सुंदर मां, उतनी सुंदर बेटी,’ अपने परिचितों के मुंह से हम मांबेटी की प्रशंसा करने वाला यह वाक्य मैं अनेक बार सुन चुकी हूं.

मैं अपने मुंह मियांमिट्ठू नहीं बनना चाहती, पर यह सच है कि अपने व्यक्तित्व को आकर्षक व प्रभावशाली बनाए रखने के लिए मैं सदा प्रयत्नशील रही हूं. 38 साल की होने के बावजूद मैं 30 से ज्यादा की नहीं दिखती. खूब हंसनेहंसाने की अपनी आदत के कारण मैं किसी भी पार्टी समारोह में जान डाल सकती हूं. सजनेसंवरने की कला के लगभग हर पहलू की मुझे अच्छी जानकारी है. मैं लाखों में एक हूं, ऐसा कह कर लोग मेरी तारीफ करते हैं.

मेरी बेटी करोड़ों में एक दिखे, इस की इच्छुक मैं सदा रही हूं. उस के व्यक्तित्व के बहुआयामी विकास के लिए अपना सारा ज्ञान उसे दे देने की लालसा हमेशा से मेरे अंदर बहुत बलवती रही है. पहले शिल्पा मेरे अनुभवों के निचोड़ को बड़े ध्यान से सुनती थी, लेकिन अब वह तनीतनी सी और उखड़ी हुई सी रहती है. उस की खामोशी में नाराजगी और शब्दों में बेअदबी साफ झलकती है. उस में आए इस खराब परिवर्तन का कारण मैं नहीं जानती.

वह अपना व्यवहार सुधारे, इस बात को मैं उसे हर तरह से समझा कर हार चुकी हूं. हम मांबेटी के बीच दूरी बढ़ती जा रही है, इस का मुझे अफसोस है और यह मेरी चिंता का कारण भी बन गया है.

राजीव मुझे कई बार समझा चुके हैं, ‘‘मीना, तुम शिल्पा से ज्यादा उलझा न करो. वह जो करती है उसे करने दो. हमारी बेटी बिगड़ी हुई नहीं है. उस के स्वभाव में आया चिड़चिड़ापन वक्त के साथ अपनेआप चला जाएगा…’’ लेकिन शिल्पा में आए परिवर्तन को देख कर मेरा सिर भन्नाया ही रहता है.

शिल्पा अपने लिए जो नीला सूट बाजार से ले कर आर्ई, वह वाकई बहुत खूबसूरत था. उस ने उसे अपने ऊपर तरहतरह से लगा कर मुझे दिखाया. उसे बेहद खुश देख कर मैं ने खुद को बजट की चिंता से उबारा और दिल से उस के खूबसूरत सूट की तारीफ करने लगी.

‘‘मम्मी, रेणु दीदी की शादी में तुम भी पापा की दी हुई नीली साड़ी पहनोगी न…” शिल्पा के होंठों पर उभरी मुसकराहट न जाने क्यों मुझे कुछ अजीब सी लग रही थी.

‘‘हां, नीले रंग में सजी हम मांबेटी बैंक्विट हाल में यकीनन सभी की निगाहों का केंद्र बन जाएंगी,’’ मैं ने हंस कर जवाब दिया.

 

छोटी सी ये दुनिया-भाग 2: अनुभा के साथ सोलो ट्रीप पर क्या हुआ?

सामने आने वाला मौसम सर्दियों का था. अनुभा ने जैसलमेर जाने का मन बनाया. सुना है कि यहां दिसंबर के आखिरी सप्ताह में देशी और विदेशी पर्यटकों की बहुत भीड़ होती है, इसलिए अनुभा ने जैसलमेर घूमने के लिए मध्य दिसंबर को चुना.

अनुभा ने नैट पर सर्च किया. दिल्ली से जैसलमेर के लिए सीधी फ्लाइट उपलब्ध थी. पर्यटन स्थल होने के कारण यहां होटलों की अच्छीखासी तादाद थी. अनुभा ने इस के लिए भी गूगल की मदद ली और एक चारसितारा रिसौर्ट में 4 दिन और 3 रात का पैकेज बुक करवा लिया, जिस में एक रात रेतीले टीलों पर आलीशान टैंट में बिताना भी शामिल था. लोकल साइट सीन और आसपास भ्रमण आदि के लिए गाड़ी और एक अनुभवी गाइड भी इसी पैकेज में शामिल था.

अनुभा जैसलमेर ट्रिप को ले कर बहुत उत्साहित थी. उस के उत्साह का सब से बड़ा कारण तो इस ट्रिप का सोलो होना ही था. वह पहली बार ऐसी किसी ट्रिप पर जाने वाली थी, जिस की सारी व्यवस्था उस ने स्वयं की थी और यह जो आजादी वाला फील था, वह भी इस के उत्साह का दूसरा बड़ा कारण था.

सिर मुंड़ाते ही ओले पड़ने वाली कहावत अनुभा ने आजतक केवल सुनी ही थी, पर आज देख भी लिया. कोहरे के कारण अनुभा की फ्लाइट 4 घंटे लेट हो गई, जिस के कारण उस का मूड थोड़ा सा अपसैट हो गया, क्योंकि फ्लाइट लेट होने का सीधासीधा असर आगे के कार्यक्रम पर पड़ने वाला था.

खैर, जो हमारे हाथ में नहीं, उसे कोस कर अपना मन भी क्यों खराब करना. अनुभा जैसलमेर पहुंची, तो एयरपोर्ट पर उस की गाड़ी उस का इंतजार कर रही थी. बताए गए गाड़ी नंबर को तलाश करती वह पार्किंग की तरफ जा रही थी.

“एक्सक्यूज मी,” एक पुरुष स्वर सुन कर अनुभा ने पीछे मुड़ कर देखा. यह लगभग 25 साल का एक युवा था, जो उसे ही पुकार रहा था. घुटनों से फटी जींस और बेपरवाह सी पहनी हुई गरम हुडी… कानों में छोटीछोटी बालियां और आधुनिक स्टाइल से बने हुए बाल… कपड़े और जूते ब्रांडेड नहीं थे. पीठ पर लदा काले रंग का लैपटाप बैग, कानों में ठूंसे हुए ईयर फोन और आंखों पर चढ़ा रंगीन चश्मा उसे पर्यटक साबित कर रहे थे.

“क्या आप मुझे सिटी तक लिफ्ट दे सकती हैं? यहां साधन मिलना बहुत मुश्किल है. मिलेगा भी तो बहुत महंगा,” पुरुष ने अनुरोध किया.

अनुभा ने एक पल सोचा, फिर पूछा “लोकल हो?”

“नहीं, ट्रैवलर हूं, घूमने आया हूं,” युवक ने स्पष्ट कहा. पता नहीं क्या था इस युवक की बातों में कि अनुभा ने सहमति में गरदन हिला कर उसे अपने साथ आने का इशारा कर दिया. युवक उस के पीछेपीछे चलने लगा.

टैक्सी अपनी रफ्तार से शहर की तरफ भाग रही थी. युवक ने अपने गले में लपेटा हुआ मफलर ढीला किया और कार का शीशा नीचे कर दिया. ठंडी हवा का झोंका अनुभा के शरीर को सिहरा गया. उस ने अपने सिर पर पहनी हुडी को कानों पर कस लिया. टैक्सी में गाना बज रहा था, “केसरिया बालम, आवो नी पधारो म्हारे देस…” यह मांड गायन है, जिसे अल्लाह जिलाई बाई ने अपनी लरजती हुई आवाज में बड़े मन से गाया है. इस लोकगीत ने गायिका को विश्वभर में एक पहचान दी है या शायद गायिका ने इस गीत को… जो भी हो, अनुभा आंख मूंदे इस की गहराई में उतरती चली गई.

“आप कहां ठहरी हैं?” युवक ने पूछा. अचानक आए इस व्यवधान ने अनुभा को वर्तमान में ला दिया.

“होटल रौयल इन में. क्यों…?” अनुभा ने पूछा.

“यों ही. काफी महंगा रिसौर्ट है. नैट पर देखा था मैं ने,” युवक ने खिड़की से बाहर दूर तक फैले रेगिस्तान को अपनी आंखों में समेटने का प्रयास करते हुए कहा, “दरअसल, मैं पहली बार सोलो ट्रिप पर निकली हूं, इसलिए सेफ जर्नी चाहती थी, ताकि मेरा पहला अनुभव खराब ना हो,” कहते हुए अनुभा मुसकराई थी.

युवक ने उस की तरफ पलट कर देखा. वह भी मुसकरा दिया.

“इसे सोलो ट्रिप नहीं, बल्कि प्लैन्ड ट्रिप कहते हैं मैडम. सोलो ट्रिप तो बिलकुल आवारगी वाली होती है, जिस में अगले पल क्या होने वाला है, उस का कोई अंदाजा नहीं होता. जहां मरजी रुके, जो मिला वह खाया और जो साधन मिला, उसी में चल दिए. जैसे मैं कर रहा हूं,” युवक ने ठहाका लगाया. अनुभा को लगा मानो वह उस का मजाक उड़ा रहा है. वह चिढ़ गई.

“तो फिर फ्लाइट से क्यों आए? बैलगाड़ी से आते,” अनुभा ने कहा. उस के स्वर की तल्खी से युवक भी समझ गया कि उसे बुरा लगा है.

“ट्रिप तो अब यहां से शुरू हुई है. यहां तक तो पहुंचना ही था ना. टाइम बचाने के लिए मैं ने फ्लाइट ली है, वरना मैं तो ट्रेन से आता, वह भी जनरल डब्बे में बैठ कर,” युवक के अंदाज से अनुभा को लगा कि या तो यह बहुत अनुभवी पर्यटक है या फिर उस पर प्रभाव जमाने का प्रयास कर रहा है.

सत्यकथा: प्रेमिका की हत्या कर सुहागरात की तैयारी

कई युवकों की फितरत होती है कि पहले वे किसी लड़की को प्यार के जाल में फांसते हैं फिर उस के साथ हसरतें पूरी कर उस से किनारा कर लेते हैं. पप्पू राव भी उन्हीं में से एक था.

‘‘रानी, यह दूरदूर की मुलाकात में मजा नहीं आता, चल कहीं बाहर चलते हैं’’ पप्पू राव ने अपनी आवाज में शहद घोल कर फोन पर प्रेमिका रानी से कहा.

‘‘रोज ही तो मिलती हूं तुझ से, दूर कहां हूं,’’ रानी ने भी उतनी ही मोहब्बत से पप्पू से सवाल कर डाला.

‘‘नहीं, अभी तू मुझ से बहुत दूर है. अगर तू सचमुच मुझ से प्यार करती है तो मेरे से बाहर मिल. मैं तुझे बहुत सारा प्यार करना चाहता हूं. बहुत सारी बातें करना चाहता हूं.’’ पप्पू बेसब्री से बोला.

अपने प्रेमी की इतनी रोमांटिक बातें सुन कर रानी फोन पर शरमा गई. कुछ पल तो मुंह से बोल ही नहीं फूटे. पप्पू ने सोचा कि शायद वह नाराज हो गई. वह बेचैनी से बोला, ‘‘क्या तू मुझ से प्यार नहीं करती रानी? तुझे मुझ पर भरोसा

नहीं है?’’

‘‘बहुत प्यार करती हूं पप्पू, पूरा भरोसा है तुझ पर. बता, कहां आना है?’’

पप्पू राव के चेहरे पर विजयी मुसकान तैर उठी. वह रानी को अपने जाल में फंसाने में कामयाब हो गया. उस की मेहनत सफल हो गई. रानी उस के साथ बाहर जाने को तैयार हो गई. अब वह अपनी सारी हसरतें पूरी करेगा.

दूसरे दिन पप्पू अपनी प्रेमिका रानी को मोटरसाइकिल पर बिठा कर शहर की तरफ उड़ा जा रहा था. शहर पहुंच कर उस ने एक सस्ते से होटल में कमरा लिया और दोनों दिन भर के लिए उस में बंद हो गए.

शुरू में रानी ने पप्पू को रोकने की बड़ी कोशिशें कीं, मगर जब पप्पू ने शादी का वादा किया और साथ जीनेमरने की कसमें खाईं तो रानी का सारा ऐतराज समर्पण में बदल गया.

होटल के कमरे में दोनों के बीच की सारी दूरियां मिट गईं. वे दो जिस्म एक जान हो गए. ऐसा एक बार नहीं, कई बार हुआ. महीनों तक हुआ.

बीते एक साल में पप्पू रानी को ले कर गांव के आसपास के कई शहरों में गया. बगहा से ले कर गोरखपुर तक. वहां कई होटलों में अपनी रातें गुलजार कीं. वह रानी को शादी के सपने दिखाता और हसरतें पूरी करता.

रानी शादी की कल्पनाओं में डूबी पप्पू के हाथों तब तक लुटती रही, जब तक उसे यह सूचना नहीं मिली कि पप्पू की शादी तो कहीं और तय हो गई है.

पप्पू मैट्रिक फेल मगर चलतापुरजा था. वैसे तो फिलहाल घर पर रह कर खेतीबाड़ी देख रहा था, मगर पाइप फिटर के काम के लिए वह ठेके पर कई बार विदेश जा चुका था.

बाहर की दुनिया उस ने खूब देखी थी, जेब में पैसा भी था, इसलिए लड़कियों के साथ धोखाधड़ी और अय्याशी उस की फितरत बन गई थी.

उधर रानी 8वीं पास गरीब परिवार की लड़की थी. रानी के घर की माली हालत अच्छी नहीं थी. उस के पिता बीमार रहते थे. घर में खाने वाले ज्यादा थे और कमाई कम. रानी के 6 भाई और एक बहन थी. इसलिए रानी आगे नहीं पढ़ पाई और स्कूल छोड़ कर घरगृहस्थी और खेती के काम में मां का हाथ बंटाने लगी.

उस के परिवार को जब उस के और पप्पू के रिश्ते के बारे में पता चला तो पहले तो मांबाप ने जातपांत, ऊंचनीच समझाई, मगर रानी को पप्पू पर इतना विश्वास था कि उस के आगे सभी हार मान गए.

इधर काफी दिनों से पप्पू रानी से नहीं मिला. वह उस का फोन भी इग्नोर कर रहा था. वाट्सऐप मैसेज का जवाब भी नहीं दे रहा था. तब रानी के दिमाग में शक पैदा हुआ.

उस ने पता लगवाया तो मालूम हुआ कि पप्पू की शादी दूसरे गांव में तय हो गई है, जहां से उसे मोटा दहेज मिल रहा है. इतना पता चलते ही रानी के तो पैरों तले से जैसे जमीन खिसक गई.

रानी पप्पू के हाथों अपना सब कुछ लुटा बैठी थी. बस उस के इसी वादे पर कि वह उस से शादी करेगा. दुलहन बना कर अपने घर ले जाएगा. मगर यह क्या, वह तो किसी और लड़की को अपनी दुलहन बनाने की फिराक में था.

रानी इतना बड़ा धोखा कैसे बरदाश्त कर सकती थी. उस ने पप्पू की बेवफाई की कहानी रोरो कर अपने घर वालों से बयां कर डाली.

रानी और पप्पू की प्रेम लीला घर वालों से छिपी तो थी नहीं, मगर जब पप्पू की करतूत उन को पता चली तो पहले तो मांबाप ने रानी को ही खूब बुराभला कहा. मगर बाद में बेटी के गम में वे भी शरीक हो गए.

रानी हार मानने वाली नहीं थी. कहते हैं कि प्यार में धोखा खाने वाली औरत चोट खाई नागिन की तरह बन जाती है. रानी का भी हाल कुछ ऐसा ही था. वह फुंफकारते हुए सीधे पप्पू के घर पर धमक पड़ी. वहां 13 फरवरी, 2022 को पप्पू की सगाई हो चुकी थी. अब उसे शादी कर के दुलहन लाने और उस के साथ सुहागरात मनाने का इंतजार था. उस का पूरा घर नातेरिश्तेदारों से भरा हुआ था. दूरदूर से रिश्तेदार आए हुए थे.

उन सब के बीच पहुंच कर रानी ने हंगामा खड़ा कर दिया. वह दनदनाती हुई घर में दाखिल हुई और एक कमरे में कब्जा कर के बैठ गई. पीछे उस के घर वाले भी थे. इस के बाद वहां पर खूब हाईवोल्टेज ड्रामा चला. दोनों पक्षों में जम कर कहासुनी हुई.

रानी ने साफ कह दिया कि पप्पू राव की बीवी सिर्फ और सिर्फ वह है. और पप्पू की शादी सिर्फ और सिर्फ उस से ही होगी. वह अब इस घर को छोड़ कर नहीं जाएगी. रानी के घर वालों ने भी उस का सपोर्ट किया. वह रानी को पप्पू के घर छोड़ कर चले गए, मगर उस से फोन पर लगातार संपर्क में रहे.

यह 15 फरवरी, 2022 की बात है. पप्पू के घर में घुसने से पहले रानी ने महिला थाने में जा कर पप्पू और उस के घरवालों के खिलाफ रिपोर्ट भी करवाई थी. पुलिस ने उसे काररवाई का आश्वासन भी दिया था.

मामला प्यार में धोखाधड़ी का था. शादी का सपना दिखा कर एक लड़की की इज्जत लूटी गई थी. रानी को उम्मीद थी कि पप्पू के घर में उस के होने से उस की शादी टूट जाएगी, मगर ऐसा हुआ नहीं. पप्पू के घर वाले 16 फरवरी को बारात ले जाने की तैयारियों में जुटे रहे. रानी के रोनेधोने का उन पर कोई असर नहीं हुआ.

बिहार के बगहा जिले में में भैरोगंज थाना क्षेत्र  के सिरिसिया गांव में अपने बेवफा प्रेमी के घर में धरने पर बैठी रानी का फोन 16 फरवरी को रात 10 बजे अचानक बंद हो गया. उस के भाई ने बड़ी कोशिश की, मगर रानी से कोई संपर्क नहीं हो पाया.

घर वाले भागेभागे पप्पू के घर पहुंचे. मगर रानी वहां भी नहीं थी. जिस कमरे में वह धरना दे रही थी, उस कमरे के दरवाजे पर ताला लटका हुआ था. पप्पू के घर वाले ठीक से जवाब नहीं दे रहे थे. कोई कह रहा था, ‘वो चली गई. कहां गई यह हमें क्या पता.’

रानी के घर वाले पूरे गांव में उसे ढूंढते रहे. मगर उस का कुछ अतापता नहीं चला. घर वालों को उस की हत्या का शक हुआ तो उन्होंने फिर भैरोसिंह थाने में जा कर गुहार लगाई. पुलिसकर्मी तब भी उन्हें आश्वासन देते रहे कि हम काररवाई करेंगे.

कोई काररवाई न होते देख रानी के घर वालों ने बगहा के एसडीपीओ कैलाश प्रसाद से गुहार लगाई. मामला जब एसडीपीओ के कान में पड़ा तो उन्होंने भैरोगंज थाने के प्रभारी लालबाबू प्रसाद से जवाब तलब किया.

लालबाबू प्रसाद ने कहा कि मुझे घटना की कोई सूचना नहीं है. लालबाबू ने बड़े ठंडे लहजे में कहा कि 15 फरवरी को उन्हें सूचना मिली थी कि प्रेम प्रसंग को ले कर युवती द्वारा विवाद किया जा रहा है. इस मामले की जांच चल रही है.

एसडीपीओ कैलाश प्रसाद ने डांट पिलाई तो थानाप्रभारी एक्शन में आए और रानी के गायब होने के 3 दिन बाद टीम बना कर पप्पू के घर पर दबिश दी गई, जहां पप्पू शादी कर के दुलहनिया घर ले आया था और बस सुहागरात मनाने की तैयारी में था.

पुलिस पप्पू को गिरफ्तार कर के थाने ले आई. उस के साथ उस की मां और चचेरे भाई को भी गिरफ्तार किया गया. पहले तो तीनों जवाब देने में आनाकानी करते रहे, मगर जब हवालात में तीनों से सख्ती की गई तो उन की जुबान खुल गई.

आरोपियों ने बताया कि रानी को वे जबरन एक बोलेरो गाड़ी में बिठा कर सुदूर वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के चिउटहां के जंगल में ले गए थे, जहां गला घोट कर उस की हत्या करने के बाद उस के शव को एक जगह गड्ढा खोद कर उन्होंने दफना दिया है.

पप्पू की निशानदेही पर पुलिस उस स्थान पर पहुंची, जहां रानी की लाश गाड़े जाने की बात आरोपियों ने कही थी. पुलिस ने उस जगह की खुदाई करवाई तो कुछ ही देर में तेज बदबू के साथ रानी का शव दिख गया.

गड्ढे के अंदर और शव के चारों ओर काफी मात्रा में नमक डाला गया था ताकि शव जल्दी गल जाए. इस से यह पता चला कि रानी की हत्या से पहले पूरी प्लानिंग की गई थी.

जंगल में जगह तलाशना, वहां गहरा गड्ढा खोदना, नमक की बोरियां ला कर उस में डालना आदि बताता है कि पूरे कांड को कई लोगों की मदद से अंजाम दिया गया होगा.

पूछताछ में पता चला कि रानी की हत्या में पप्पू के परिवार के उदय प्रताप राव, सुशील राव, बलदेव राव के अलावा कुछ और लोग शामिल थे. मगर पुलिस सिर्फ 3 लोगों को ही गिरफ्तार कर सकी थी.

पुलिस ने वह बोलेरो गाड़ी भी जब्त कर ली, जिसे रानी को जंगल ले जाने में इस्तेमाल किया गया था. गांव वालों ने बताया कि शादी के झांसे में ले कर पप्पू ने इस से पहले भी3 लड़कियों के साथ संबंध बनाए थे. जिस में से एक मामले में शिकायत भी हुई थी.

मगर उस की फितरत नहीं बदली और उस ने रानी के साथ फिर वही हरकत की. लेकिन रानी ने जब हंगामा किया और उस के घर में घुस कर बैठ गई तो वह गुस्से से भर गया. अगले दिन उस की शादी भी होनी थी. इसलिए रानी से मुक्ति पाने के लिए उस ने हमेशा के लिए उसे सुला दिया.

इस पूरे मामले में पुलिस की हीलाहवाली और महिला थाने में रिपोर्ट दर्ज होने के बाद तुरंत कोई काररवाई न होने से पीडि़त लड़की की हत्या हो गई.

अगर महिला थाने में केस दर्ज होने के तुरंत बाद पुलिस ने काररवाई की होती और आरोपियों को थाने बुला कर पूछताछ शुरू कर दी गई होती तो पप्पू और उस के घर वालों का हौसला इतना न बढ़ता कि लड़की को कार में डाल कर जंगल ले जाएं और मार कर दफना दें. जबकि रानी के घर वाले और पूरा गांव जानता था कि रानी पप्पू के घर में है.

पूरा गांव वहां हुए तमाशे का साक्षी था, बावजूद इस के गांवदेहातों में पुलिस की निष्क्रियता इतनी ज्यादा है कि किसी के मन में कानून को ले कर कोई डर नहीं है.

ऊंची जाति के लड़के नीची जाति की लड़कियों का शारीरिक शोषण करते हैं, उन्हें बरगलाते हैं, भगा ले जाते हैं और कुछ दिन के मनोरंजन के बाद छोड़ देते हैं.

अधिकांश मामलों में तो शिकायत ही दर्ज नहीं होती. मगर जब कोई लड़की हिम्मत कर के शिकायत दर्ज करवाती भी है तो पुलिस की उदासीनता के चलते उस का अंजाम यही होता है जो रानी का हुआ.

आरोपियों से पूछताछ के बाद पुलिस ने उन्हें न्यायालय में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

Women’s Day Special: टूटे कांच की चमक

उस बिल्डिंग में वह हमारा पहला दिन था. थकान की वजह से सब का बुरा हाल था. हम लोग व्यवस्थित होने की कोशिश में थे कि घंटी बजी. दरवाजा खोल कर देखा तो सामने एक महिला खड़ी थीं.

अपना परिचय देते हुए वह बोलीं, ‘‘मेरा नाम नीलिमा है. आप के सामने वाले फ्लैट में रहती हूं्. आप नएनए आए हैं, यदि किसी चीज की जरूरत हो तो बेहिचक कहिएगा.

मैं ने नीचे से ऊपर तक उन्हें देखा. माथे पर लगी गोल बड़ी सी बिंदी, साड़ी का सीधा पल्ला, लंबा कद, भरा बदन उन के संभ्रांत होने का परिचय दे रहा था.

कुछ ही देर बाद उन की बाई आई और चाय की केतली के साथ नाश्ते की ट्रे भी रख गई. सचमुच उस समय मुझे बेहद राहत सी महसूस हुई थी.

‘‘आज रात का डिनर आप लोग हमारे साथ कीजिए.’’

मेरे मना करने पर भी नीलिमाजी आग्रहपूर्वक बोलीं, ‘‘देखिए, आप के लिए मैं कुछ विशेष तो बना नहीं रही हूं, जो दालरोटी हम खाते हैं वही आप को भी खिलाएंगे.’’

रात्रि भोज पर नीलिमाजी ने कई तरह के स्वादिष्ठ पकवानों से मेज सजा दी. राजमा, चावल, दहीबड़े, आलू, गोभी और न जाने क्याक्या.

‘‘तो इस भोजन को आप दालरोटी कहती हैं?’’ मैं ने मजाकिया स्वर में नीलिमा से पूछा तो वह हंस दी थीं.

जवाब उन के पति प्रो. रमाकांतजी ने दिया, ‘‘आप के बहाने आज मुझे भी अच्छा भोजन मिला वरना सच में, दालरोटी से ही गुजारा करना पड़ता है.’’

लौटते समय नीलिमाजी ने 2 फोल्ंिडग चारपाई और गद्दे भी भिजवा दिए. हम दोनों पतिपत्नी इस के लिए उन्हें मना ही करते रहे पर उन्होंने हमारी एक न चलने दी.

अगली सुबह, रवि दफ्तर जाते समय सोनल को भी साथ ले गए. स्कूल में दाखिले के साथ, नए गैस कनेक्शन, राशन कार्ड जैसे कई छोटेछोटे काम थे, जो वह एकसाथ निबटाना चाह रहे थे. ब्रीफकेस ले कर रवि जैसे ही बाहर निकले नीलिमाजी से भेंट हो गई. उन के हाथ में एक परची थी. रवि को हाथ में देते हुए बोलीं, ‘‘भाई साहब, कल रात मैं आप को अपना टेलीफोन नंबर देना भूल गई थी. जब तक आप को फोन कनेक्शन मिले, आप मेरा फोन इस्तेमाल कर सकते हैं.’’

नीलिमाजी ने 2 दिन में काम वाली बाई और अखबार वाले का इंतजाम भी कर दिया. जब घर सेट हो गया तब भी नीलिमा को जब भी समय मिलता आ कर बैठ जातीं. सड़क के आरपार के समाचारों का आदानप्रदान करते उन्हें देख मैं ने सहजता से अनुमान लगा लिया था कि उन्होंने महिलाओं से अच्छाखासा संपर्क बना रखा है.

उस समय मैं सामान का कार्टन खोल रही थी कि अचानक उंगली में पेचकस लगने से मेरे मुंह से चीख निकल गई तो नीलिमाजी मेरे पास सरक आई थीं. उंगली से खून निकलता देख कर वह अपने घर से कुछ दवाइयां और पट्टी ले आईं और मेरी चोट पर बांधते हुए बोलीं, ‘‘जो काम पुरुषों का है वह तुम क्यों करती हो. यह सोनल क्या करता रहता है पूरा दिन?’’

नीलिमा दीदी का तेज स्वर सुन कर सोनल कांप उठा. बेचारा, वैसे ही मेरी चोट को देख कर घबरा रहा था. जब तक मैं कुछ कहती, उन्होंने लगभग डांटते हुए सोनल को समझाया, ‘‘मां का हाथ बंटाया करो. ये कहां की अक्लमंदी है कि बच्चे आराम फरमाते रहें और मां काम करती रहे.’’

सोनल अपने आंसू दबाता हुआ घर के अंदर चला गया. मैं अपने बेटे की उदासी कैसे सहती. अत: बोली, ‘‘दीदी, सोनल मेरी बहुत मदद करता है पर आजकल इंटरव्यू की तैयारी में व्यस्त है.’’

‘‘इंटरव्यू, कैसा इंटरव्यू?’’

‘‘दरअसल, इसे दूसरे स्कूलों में ही दाखिला मिल रहा है. लेकिन हम चाहते हैं कि इसे ‘माउंट मेरी’ स्कूल में ही दाखिला मिले.’’

‘‘क्यों? माउंट मेरी स्कूल में कोई खास बात है क्या?’’ नीलिमा ने भौंहें उचका कर पूछा तो मुझे अच्छा नहीं लगा था. अपने घर किसी पड़ोसी का हस्तक्षेप उस समय मुझे बुरी तरह खल गया था.

बात को स्पष्ट करने के लिए मैं ने कहा, ‘‘यह स्कूल इस समय नंबर वन पर है. यहां आई.आई.टी. और मेडिकल की कोचिंग भी छात्रों को मिलती है.’’

‘‘अजी, स्कूल के नाम से कुछ नहीं होता,’’ नीलिमा बोलीं, ‘‘पढ़ने वाले बच्चे कहीं भी पढ़ लेते हैं.’’

‘‘यह तो है फिर भी स्कूल पर काफी कुछ निर्भर करता है. कुशाग्र बुद्धि वाले बच्चों को अच्छी प्रतिस्पर्धा मिले तो वे सफलता के सोपान चढ़ते चले जाते हैं.’’

‘‘लेकिन इतना याद रखना सविता, इन्हीं स्कूलों के बच्चे ड्रग एडिक्ट भी होते हैं. कुछ तो असामाजिक गतिविधियों में भी भाग लेते देखे गए हैं,’’ इतना कहतेकहते नीलिमा हांफने लगी थीं.

खैर, जैसेतैसे मैं ने उन्हें विदा किया.

नीलिमा की जरूरत से ज्यादा आवाजाही और मेरे घरेलू मामले में दखलंदाजी अब मुझे खलने लगी थी. कई बार सुना था कि पड़ोसिनें दूसरे के घर में घुस कर पहले तो दोस्ती करती हैं, बातें कुरेदकुरेद कर पूछती हैं फिर उन्हें झगड़े में तबदील करते देर नहीं लगती.

एक दिन मैं और पड़ोसिन ममता एक साथ कमरे में बैठे थे. तभी नीलिमा आ गईं और बोलीं, ‘‘यह तुम्हारा पंखा बहुत आवाज करता है, कैसे सो पाती हो?’’

यह कह कर वह अपने घर गईं और टेबल फैन उठा कर ले आईं.

‘‘कल ही मिस्तरी को बुलवा कर पंखा ठीक करवा लो. तब तक इस टेबल फैन से काम चला लेना.’’

पड़ोसिन ममता के सामने उन की यह बेवजह की घुसपैठ मुझे अच्छी नहीं लगी थी. रवि दफ्तर के काम में बेहद व्यस्त थे इसलिए इन छोटेछोटे कामों के लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे. सोनल भी ‘माउंट मेरी स्कूल’ के पाठ्यक्रम के  साथ खुद को स्थापित करने में कुछ परेशानियों का सामना कर रहा था, मिस्तरी कहां से बुलाता? मैं भी इस ओर विशेष ध्यान नहीं दे पाई थी. मैं ने उन्हें धन्यवाद दिया और एक प्याली चाय बना कर ले आई.

चाय की चुस्कियों के बीच उन्होंने टटोलती सी नजर चारों ओर फेंक कर पूछा, ‘‘सोनल कहां है?’’

‘‘स्कूल में ही रुक गया है. कालिज की लाइब्रेरी में बैठ कर पढे़गा. आ जाएगा 4 बजे तक .’’

नीलिमा के चेहरे पर चिंता की आड़ीतिरछी रेखाएं उभर आईं. कभी घड़ी की तरफ  देखतीं तो कभी मेरी तरफ. लगभग सवा 4 बजे सोनल लौटा और किताबें अपने कमरे में रख कर बाथरूम में घुस गया. मैं ने तब तक दूध गरम कर के मेज पर रख दिया था.

नए कपड़ों में सोनल को देख कर नीलिमाजी ने मुझ से प्रश्न किया, ‘‘सोनल कहीं जा रहा है?’’

‘‘हां, इस के एक दोस्त का आज जन्मदिन है, उसी पार्टी में जा रहा है.’’

सोनल घर से बाहर निकला तो बुरा सा मुंह बना कर बोलीं, ‘‘सविता, जमाना बड़ा खराब है. लड़का कहां जाता है, क्या करता है, इस की संगत कैसी है आदि बातों का ध्यान रखा करो. अपना बच्चा चाहे बुरा न हो लेकिन दूसरे तो बिगाड़ने में देर नहीं करते.’’

नीलिमा की आएदिन की टीका- टिप्पणी के कारण सोनल अब उन से चिढ़ने लगा था. उन के आते ही उठ कर चला जाता. मुझे भी उन की जरूरत से ज्यादा घुसपैठ अच्छी नहीं लगती थी, किंतु उन के सहृदयी, स्नेही स्वभाव के कारण विवश हो जाती थी.

धीरेधीरे, मैं ने अपने घर का दरवाजा बंद रखना शुरू कर दिया. घर के  अंदर घंटी बंद करने का स्विच और लगवा लिया. अब जब भी दरवाजे पर घंटी बजती मैं ‘आईहोल’ में से झांकती. अगर नीलिमा होतीं तो मैं घंटी को कुछ देर के लिए अनसुनी कर देती और यह समझ कर कि घर के अंदर कोई नहीं है, वह लौट जातीं.

काफी राहत सी महसूस होने लगी थी मुझे. कई आधेअधूरे काम निबट गए. कुछ लिखनेपढ़ने का समय भी मिलने लगा. सोनल भी अब खुश रहता था. पढ़ने के बाद जो भी थोड़ाबहुत समय मिलता वह मेरे पास बैठ कर बिताता. शाम को जब रवि दफ्तर से लौटते, हम नीचे जा कर बैठ जाते. कुछ नए लोगों से जानपहचान बढ़ी, कुछ नए मित्र भी बने.

उन्हीं दिनों मैट्रो में एक नई फिल्म लगी थी. हम दोनों पतिपत्नी पिक्चर गए थे, बरसों बाद.

अचानक, रवि के मोबाइल की घंटी बजी. नीलिमाजी थीं. बदहवास, परेशान सी बोलीं, ‘‘भाई साहब, आप जहां भी हैं जल्दी घर आ जाइए. आप के घर का ताला तोड़ कर चोरी करने का प्रयास किया गया है.’’

धक्क से रह गया दिल. पिक्चर आधे में ही छोड़ कर दौड़तीभागती मैं घर की सीढि़यां चढ़ गई थी. रवि गाड़ी पार्क कर रहे थे. दरवाजे पर ही रमाकांतजी मिल गए. बोले, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं है, भाभीजी. हम ने चोर को पकड़ कर अपने घर में बंद कर रखा है. पुलिस के आते ही उस लड़के को हम उन के हवाले कर देंगे.’’

मैं ने बदहवासी में दरवाजा खोला. अलमारी खुली हुई थी. कैमरा, वाकमैन, घड़ी के साथ और भी कई छोटीछोटी चीजें थैले में डाल दी गई थीं. लाकर को भी चोर ने हथौड़े से तोड़ने का प्रयास किया था पर सफल नहीं हो पाया था. एक दिन पहले ही रवि के एक मित्र की शादी में पहनने के लिए मैं बैंक से सारे गहने निकलवा कर लाई थी. कुछ नगदी भी घर में पड़ी थी. अगर नीलिमा ने समय पर बचाव न किया होता तो आज अनर्थ ही हो जाता.

मैंऔर रवि कुछ क्षण बाद जब नीलिमा के घर पहुंचे तो वह उस चोर लड़के को बुरी तरह मार रही थीं. रमाकांतजी ने पत्नी के चंगुल से उस लड़के को छुड़ाया, फिर बोले, ‘‘जान से ही मार डालोगी क्या इसे?’’ तब नीलिमा गुस्से में बोली थीं, ‘‘कम्बख्त, पैदा होते ही मर क्यों नहीं गया.’’

कुछ ही देर में पुलिस आ गई और उस लड़के को पकड़ कर अपने साथ ले गई. हम सब के चेहरे पर राहत के भाव उभर आए थे.

इस के बाद ही पसीने से लथपथ नीलिमा के सीने में तेज दर्द उठा तो सब उन्हें सिटी अस्पताल ले गए. डाक्टरों ने बताया कि हार्ट अटैक है. 3 दिन और 2 रातों के  बाद उन्हें होश आया. जिस दिन उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज होना था हम पतिपत्नी सुबह ही अस्पताल पहुंच गए थे. डाक्टरों ने हमें समझाया कि इन्हें हर प्रकार के टेंशन से दूर रहना होगा. जरा सा रक्तचाप बढ़ा तो दोबारा हार्टअटैक पड़ सकता है.

रमाकांतजी कुरसी पर बैठे एकटक पत्नी को देखे जा रहे थे. अचानक उन का गला भर आया. वे कांपते स्वर में बोले, ‘‘जिस के दिल में, ज्ंिदगी भर का नासूर पल रहा हो वह भला टेंशन से कैसे दूर रह सकता है. सविताजी, जिस लड़के ने आप के घर का ताला तोड़ कर चोरी करने का प्रयास किया वह हमारा बेटा था.’’

विश्वास नहीं हुआ था अपने कानों पर. लोगों को शिक्षित करने वाले रमाकांतजी और पूरे महल्ले की हितैषी नीलिमा का बेटा चोर, जो खुद के स्नेह से सब को स्ंिचित करती रहती थीं उन का अपना बेटा अपराधी?

रमाकांतजी ने बताया, ‘‘दरअसल, नीलिमा ने आप लोगों को कार में बिल्ंिडग से बाहर जाते हुए देख लिया था. कोई आधा घंटा भी नहीं बीता होगा, जब दूध ले कर लौट रही थीं कि आप के घर का ताला नदारद था और दरवाजा अंदर से बंद था. पहले नीलिमा ने सोचा कि शायद आप लोग लौट आए हैं लेकिन जब खटखट का स्वर सुनाई दिया तो उन्हें शक हुआ. धीरे से उन्होंने दरवाजा बाहर से बंद किया और चौकीदार को बुला लाई. थोड़ी देर में चौकीदार की सहायता से चोर को अपने घर में बंद कर दिया और फोन कर पुलिस को सूचित भी कर दिया.’’

हतप्रभ से हम पतिपत्नी एकदूसरे का चेहरा देखते तो कभी रमाकांतजी के चेहरे पर उतरतेचढ़ते हावभावों को पढ़ने का प्रयास करते.

‘‘शहर के सब से अच्छे स्कूल ‘माउंट मेरी कानवेंट’ में हम ने अपने बेटे का दाखिला करवाया था,’’ टूटतेबिखरते स्वर में रमाकांत बताने लगे, ‘‘इकलौती संतान से हमें भी ढेरों उम्मीदें थीं. यही सोचते थे कि हमारा बेटा भी होनहार निकलेगा. पर वह बुरी संगत में फंस गया. हम दोनों पतिपत्नी समझते थे कि वह स्कूल गया है पर वह स्कूल नहीं, अपने दोस्तों के पास जाता था. स्कूल से शिकायतें आईं तो डांटफटकार शुरू की, मारपीट का सिलसिला चला पर सब बेकार गया. उसे तो चरस की ऐसी लत लगी कि पहले अपने घर से पैसे चुराता, फिर पड़ोसियों के घरों में चोरी करने लगा. लोग हम से शिकायतें करने लगे तो हम ने स्पष्ट शब्दों में सब से कह दिया कि ऐसी नालायक औलाद से हमारा कोई संबंध नहीं है.’’

सहसा मुझे याद आया वह दिन जब निर्मला ने स्कूल के मुद्दे को छेड़ कर मुझ से कितनी बहस की थी. मेरे सोनल में शायद वह अपने बेटे की छवि देखती होंगी. तभी तो समयअसमय आ कर सलाहमशविरा दे जाती थीं. यह सोचते ही मेरी आंखों की कोर से टपटप आंसू टपक पड़े.

निर्मला की तांकनेझांकने की आदत से मैं कितना परेशान रहती थी. यही सोचती थी कि इन का अपने घर में मन नहीं लगता पर आज असलियत जान कर पता चला कि जब अपना ही खून अपने अस्तित्व को नकारते हुए बगावत का झंडा खड़ा कर बीच बाजार में इज्जत नीलाम कर दे तो कैसा महसूस होता होगा अभिभावकों को?

सच, व्यक्तित्व तो दर्पण की तरह होता है. जहां तक नजर देख पाती है उतना ही सत्य हम पहचानते हैं, शीशे के पीछे पारे की पालिश तक कौन देख सकता है? काश, नीलिमा की प्रतिछवि को पार कर कांच की चमक के पीछे दरकती गर्द की चुभन को मैं ने पहचाना होता पर अब भी देर नहीं हुई थी. वह मेरे लिए पड़ोसिन ही नहीं, आदरणीय बहन भी बन गई थीं.

लेखक- पुष्पा भाटिया

छोटी सी ये दुनिया-भाग 3: अनुभा के साथ सोलो ट्रीप पर क्या हुआ?

अनुभा ने उस की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. तभी खिड़की से बाहर उसे एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया.

कुछ महिलाओं का झुंड एक खेजड़ी के पेड़ के नीचे खड़ा बतिया रहा था. टखने तक ऊंचे गहरे नीले रंग का घाघरा और केसरिया मिश्रित लाल रंग, जिसे राजस्थान में ‘कसुम्मल रंग’ कहा जाता है की ओढ़नी ओढ़े एक नवोढ़ा इन महिलाओं के बीच लंबा सा घूंघट काढ़े लजाई सी खड़ी थी.

लगभग सभी महिलाओं ने चांदी की मोटीमोटी छड़ अपने पांवों में पहन रखी थी और उन के हाथ कलाई से ले कर कंधे तक सफेद सीप की चूड़ियों से लदे थे. नाक में बड़ी सी नथनी झूल रही थी. अनुभा ने फोटो लेने के लिए ड्राइवर से गाड़ी रोकने का आग्रह किया.

अनुभा ने पास जा कर उन महिलाओं का हेयर स्टाइल देखा. उन्होंने बालों को कस कर बांध कर उन्हें एक जाली से इस तरह कवर किया हुआ था कि कोई न चाहे तो बाल महीनों तक बिखरें नहीं.

अनुभा इस नए स्टाइल को देख कर मुसकरा दी और मोबाइल निकाल कर इस दृश्य को कैद करने लगी. कुछ तसवीरें लेने के बाद उस ने अपना मोबाइल उस युवक की तरफ बढ़ा कर अपनी फोटो लेने का आग्रह किया.

“ये राजस्थान है मैडम.. यहां न जाने ऐसे कितने दृश्य आप को देखने को मिलेंगे,” युवक ने फोटो लेतेलेते उसे टोका. अनुभा को अच्छा तो नहीं लगा, लेकिन वह चुप ही रही. गाड़ी अब शहर में प्रवेश कर रही थी.

“मुझे यहां अफसर कालोनी में छोड़ देना,” कहते हुए युवक ने ड्राइवर को रास्ता बताया. फिर अनुभा की तरफ देखने लगा.

“यह यहां की प्राइम लोकेशन है. सभी दर्शनीय स्थल इस के आसपास ही हैं. चलिए, मुलाकात होती है फिर कहीं किसी जगह,” कहते हुए युवक ने अपना हाथ अनुभा की तरफ बढ़ाया. अनुभा ने भी शिष्टाचार के नाते उस से हाथ मिलाया और हलके से मुसकरा दी.

“मुझे विहान कहते हैं,” युवक अपना नाम बताते हुए आगे बढ़ गया. अनुभा की गाड़ी रिसौर्ट की तरफ मुड़ गई.

रिसौर्ट में अनुभा का स्वागत राजस्थानी परंपरा के अनुसार तिलक लगा कर और साफा पहना कर किया है. वैलकम ड्रिंक में उसे छाछ परोसी गई, जिस में भुना हुआ जीरा और सेंधा नमक मिला हुआ था. रिसौर्ट बहुत शानदार बना हुआ था. कमरे भी सुविधाजनक थे. अनुभा ने चैकइन किया और चूंकि दोपहर हो चली थी, इसलिए वह पहले डाइनिंग हाल में चली गई. यहां सभी मेहमानों के लिए बुफे लगा था, जिस में पारंपरिक और आधुनिक सभी तरह का भोजन शामिल था.

अनुभा ने जम कर दालबाटी, चूरमा खाया. देशी घी में तर बाटियां और केसरपिस्ता डला हुआ चूरमा… उस पर लहसुन के तड़के वाली दाल… आहा, पेट भर गया, लेकिन उस का मन नहीं भरा.

इतना खाने के बाद भला सुस्ती आने से कौन रोक सकता है. वैसे भी दोपहर ढलने ही वाली थी, ऐसे में जैसलमेर घूमने जाने का कोई मतलब नहीं रह जाता, क्योंकि सर्दियों में दिन भी तो जल्दी छिप जाता है.

अनुभा सो कर उठी तो शाम के 5 बज रहे थे. उस ने कमरे में ही कौफी मंगवाई और खिड़की में से ढलते हुए सूरज को देखने लगी. कौफी पीने के बाद अनुभा ने एक शाल अपने इर्दगिर्द लपेटा और अकेली ही बाहर निकल गई.

“शौपिंग करने के लिए कहां जाना चाहिए?” अनुभा ने रिसौर्ट के चौकीदार से जानकारी ली.

“हुकुम, आप माणक चौक चले जाओ. आप के मतलब का सब मिल जावेगा वहां,” चौकीदार ने उसे सलाह दी. उस का ‘हुकुम’ कहना अनुभा को भीतर तक सम्मान का अनुभव करा गया.

माणक चौक सचमुच बहुत खूबसूरत बाजार था. कठपुतली और पत्थर से बने कलात्मक गहनों के साथसाथ हस्तकला से निर्मित बहुत सा सामान यहां बिक्री के लिए सजा हुआ था. अनुभा देखतीपरखती और कीमत पूछती हुई चली जा रही थी कि अचानक विहान को वहां देख कर चौंक गई. वह भी उसे देख कर मुसकरा रहा था.

“छोटी सी यह दुनिया, पहचाने रास्ते हैं… मैं ने कहा था ना फिर मिलेंगे,” कहता हुआ विहान उस के करीब आ गया.

“आज तो लेट हो गई थी, इसलिए कल यहां घूमेंगे. अभी थोड़ा समय था तो सोचा कि कुछ शौपिंग हो जाए,” अनुभा ने कहा.

“शौपिंग करनी है तो आओ मेरे साथ. पंसारी बाजार में आप को सबकुछ मिलेगा. सस्ता भी और बहुत अच्छा भी. यहां इसे ग्रामीण हाट भी कहते हैं,” विहान ने कहा और अनुभा का हाथ पकड़ कर चल दिया.

अनुभा उस का साहस देख कर हैरान थी. कैसे अधिकार से उस ने एक अजनबी लड़की का हाथ थाम लिया. लेकिन वह विरोध भी कहां कर पाई थी.

पंसारी बाजार जैसा विहान ने बताया वैसा ही था. यह एक स्ट्रीट मार्केट था, जहां गांव के लोग अपना सामान बेचने आते हैं.

अनुभा ने अपने लिए बंधेज का दुपट्टा और मोजड़ी खरीदी. 2 जोड़ी औक्सीडाइज्ड झुमके और दरवाजे पर बांधने वाली एक बंदनवार भी.

“संभाल कर पहनना, मोजड़ी पहनने से छाले हो जाते हैं,” कहते हुए विहान हंसा. इस पर अनुभा भी हंस दी. रात होने लगी थी, अनुभा वापस रिसौर्ट लौट गई.

सुबह 10 बजे उस की गाड़ी तैयार थी लोकल साइट सीन के लिए. सब से पहले उन्होंने जैसलमेर का मशहूर सोनार किला देखा. यह शायद एकमात्र ऐसा किला है, जिस के भीतर आज भी लोग रहते हैं. उस के बाद पटवों की हवेली और जैन मंदिर देखा. अंत में गढ़ीसर झील में बोटिंग कर के शाम तक वापस होटल आ गई. नजरें विहान को तलाश कर रही थीं, लेकिन वह कहीं दिखाई नहीं दिया.

यह उस की यात्रा का तीसरा दिन था. सुबह नाश्ते के बाद आज उन्हें तनोट माता के मंदिर में जाना था. अनुभा यहां जाने के लिए विशेष उत्साहित थी, क्योंकि उस ने सुना था कि किसी समय भारतपाकिस्तान के युद्ध में पाकिस्तानी सेना द्वारा फेंका गया कोई भी गोला, जो इस मंदिर परिसर में गिरा था, वह फटा नहीं था. बताया जाता है कि आज भी वे गोले यहां सुरक्षित रखे हुए हैं. इस पैकेज में सीमा सुरक्षा बल के कैंप से उसे पाकिस्तान की सीमा भी दिखाया जाना शामिल था. आज की रात सम के धोरों पर रंगारंग कार्यक्रम, कैमल सफारी और कई अन्य तरह की रोमांचक गतिविधियां होने वाली थीं.

दिन बहुत अच्छा निकला. सबकुछ तय कार्यक्रम के अनुसार ही हो रहा था. शाम को जब वह टैंट वाली जगह पहुंची तो 4 बज रहे थे. यहांवहां लंबी कतारों में लगे हुए दिखने में लगभग एकजैसे सैकड़ों टैंट देख कर अनुभा चकित रह गई. उस ने एक रौयल टैंट में चैकइन किया.

टैंट की व्यवस्था सचमुच बहुत अच्छी थी. जंगल में मंगल जैसी. उस ने अपने टैंट में ही कौफी और स्नैक्स मंगवा लिए. बेसन के पकौड़े खा कर वह अपनी दिनभर की थकान भूल गई. गरम पानी से नहा कर अब अनुभा सुबह सी फ्रेश हो गई. कपड़े बदल कर बाहर आई.

“हुकुम, आप कैमल सफारी करोगे ना?” टैंट के मैनेजर ने पूछा. अनुभा ने हां भर दी. कुछ ही देर में एक सजाधजा ऊंट वहां हाजिर था. सीढ़ी लगा कर अनुभा को ऊंट की पीठ पर बनी एक चौकी पर बिठाया गया. डर तो बहुत लगा, लेकिन ऊंट की पीठ के साथ ऊपरनीचे होने का भी एक जुदा सा अनुभव रहा.

जैसेजैसे रात हो रही थी, वैसेवैसे प्रांगण में चहलपहल बढ़ने लगी थी. अनुभा अकेली ही रेत के टीलों में टहलने निकल गई.

ये पूनम की रात थी. आसमान से झांकता चांद रेत को और भी अधिक ठंडी और सुनहरी बना रहा था. आसपास के टीलों पर लोग मजे कर रहे थे. कोई टायर पर बैठ कर ऊपर से नीचे फिसल रहा था तो कोई खुली जीप में डैजर्ट सफारी कर रहा था. अनुभा हाथ में कोल्ड ड्रिंक की बोतल लिए कोलाहल से दूर एक शांत से टीले की चोटी की तरफ बढ़ने लगी. टखनों तक पांव मिट्टी में गड़े जा रहे थे. बैलेंस बनाने के प्रयास में कभी उस की हथेलियां रेत में धंस रही थी, तो कभी वह गिर भी पड़ती.

टीले की चोटी पर पहुंच कर अनुभा ने अपना दुपट्टा रेत पर बिछाया और उस पर लेट गई. आसपास अब कोई शोर नहीं था. उस की आंखें मुंदने लगी. अचानक उस ने करवट बदली तो पाया कि पास में कोई और भी लेटा है. आंख खोली तो आश्चर्य से फैल गई.

“विहान, इट्स यू…?” अनुभा ने कहा.

“यस, इट्स मी. कहा था ना मैं ने? छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं…” विहान ने शरारत से कहा.

“अच्छा, एक बार अपनी आंखें बंद करो,” विहान ने कहा.

“क्यों…?” अनुभा ने पूछा.

“तुम करो तो सही,” कहते हुए विहान ने जबरदस्ती उस की आंखों पर अपनी हथेली रख दी. विहान ने अपना हाथ अनुभा की कमर में डाला और झटका दिया. दोनों एकदूसरे से लिपटे हुए टीले से नीचे आने लगे.

अनुभा कुछ कहना चाहती थी, लेकिन मुंह खोलते ही रेत मुंह में जाने का डर उसे सबकुछ यथावत चलते रहने के लिए मजबूर कर रहा था. कुछ ही पलों में ये फिसलन थम गई और वे दोनों टीले की तलहटी में आ कर ठहर गए.

जिस स्थिति में वे नीचे आए, अनुभा के होंठ विहान के गालों को छू रहे थे. विहान ने अपना चेहरा जरा सा घुमाया और उस के होंठ अनुभा के होंठों को छूने लगे.

अनुभा अचकचा कर उठ खड़ी हुई. चलने लगी तो रेत में धंस कर फिर से विहान की बगल में ही गिर पड़ी. विहान ने उस का हाथ थाम लिया और टीले पर चढ़ने लगे. दोनों ही चुप थे.

अचानक अनुभा को शरारत सूझी और उस ने विहान को धक्का दे दिया. एकदूसरे पर गिरतेपड़ते दोनों फिर से टीले की तलहटी में जा कर रुके. स्थिति अब भी लगभग पिछली बार जैसी ही थी. फर्क सिर्फ इतना सा था कि इस बार विहान नीचे था और अनुभा उस के ऊपर.

अनुभा ने अपनी आंखें बंद की और विहान के होंठों पर अपने होंठ रख दिए. विहान को लगा मानो उस ने गरम कौफी का घूंट भर लिया हो. होंठों के साथ बहुतकुछ सुलग उठा. दूध में उबाल आया और कौफी का मग ढेर सारे झाग से भर गया. धीरेधीरे उफान कम हुआ और कौफी ठंडी हो गई. शेष झाग को पैंदे में छोड़ कर दोनों उठ खड़े हुए. दो विपरीत लहरें आपस में टकराईं… अपने आयाम के चरम पर पहुंची और फिर मद्धम हो कर अपनेअपने साहिल को लौट गईं.

रात के रंगारंग कार्यक्रम के लिए अनुभा रिसौर्ट के मुख्य प्रांगण में चली गई, जहां राजस्थानी लोकनृत्यों और गीतों का कार्यक्रम शुरू हो चुका था. पहले तो अनुभा को कुछ विशेष आनंद नहीं आया, लेकिन यह माहौल भी भांग के नशे की तरह था, जो धीरेधीरे चढ़ता है. सारंगी जैसे वाद्य पर लोक कलाकार ‘लंगा और पार्टी’ देशी गीतों की धुन बजाने लगे. उन की कानों तक लंबी मूंछें अनुभा को विशेष आकर्षित कर रही थी. 2 अपेक्षाकृत कम उम्र के कलाकारों ने खड़ताल बजाते हुए ‘जद देखूं बना री लालपीली अंखियां, मैं नहीं डरूं सा…’ झूमझूम कर गाना शुरू किया.

कुछ ही देर में वो समां बांधा कि सब को अपने साथ झूमने के लिए मजबूर कर दिया. उस के बाद कालबेलिया नृत्य शुरू हुआ तो बस पूछो ही मत. अनुभा सबकुछ भूल कर उन कलाकारों के घाघरे के घेर के साथ घूमने लगी. उन के हाथों पर लटकती लूम अनुभा की आंखों को स्थिर नहीं रहने दे रही थी और अंत में जब सभी पर्यटक उन के साथ थिरकने लगे, तो अनुभा भी नाच उठी.

देर रात कार्यक्रम खत्म होने के बाद जब वह टैंट में आई, तो विहान का खयाल भी उस के साथ था. वह विहान से बात करना चाहती थी, लेकिन नहीं जानती थी कि वो कहां और किस टैंट में रुका है. सैकड़ों की तादाद में टैंट लगे हैं यहां. कैसे उसे तलाश करे. फोन नंबर भी तो नहीं लिया था उस ने विहान का.

अनुभा सोने की तैयारी करने लगी, लेकिन जिन आंखों में कोई बस जाए, उन में फिर नींद कहां? किसी तरह सुबह हुई और अनुभा फिर वहीं उसी टीले की तरफ निकल गई, जहां कल रात एक दास्तान लिखी गई थी.

ठंड से सिकुड़ा सूरज धीरेधीरे बाहर निकलने का मानस बना रहा था. टीलों की ऊपरी सतह हलकी गरम होने लगी थी. अनुभा को लगा मानो सूरज का रक्तिम तेज ठंडी बालू को जादू की झप्पी दे कर ठंड सहने की हिम्मत देने की कोशिश कर रहा है. विहान की झप्पी को याद कर के उस के गाल भी रक्तिम होने लगे.

अनुभा ने चारों तरफ देखा. हर तरफ टीले ही टीले… धोरे ही धोरे… सब के सब एकजैसे मानो एकदूसरे का क्लोन हों. वह कल रात वाले अपने टीले को पहचान ही नहीं पाई. यहां तक कि किसी भी टीले पर कोई पदचिह्न अब शेष नहीं था. रात को चली हवा ने सब टीलों को फिर से एकसार कर दिया. नए पदचिह्न बनाने के लिए. जैसे किसी ने ब्लैक बोर्ड को साफ कर के नया पाठ लिखने के लिए तैयार कर दिया हो. शायद प्रकृति उसे जिंदगी की कोई बड़ी सीख देना चाह रही थी.

अनुभा ने अपने मन की पगडंडी से इस मुलाकात के तमाम पदचिह्न मिटा दिए और इसे एक मील के पत्थर के रूप में दिल में संजो लिया.

आज दोपहर उस की फ्लाइट थी. गाड़ी उसे यहां से सीधे ही एयरपोर्ट ड्राप करने वाली थी. वह अपना सामान पैक करने लगी. साथ ही साथ मुसकराती हुई गुनगुना भी रही थी, “छोटी सी ये दुनिया, पहचाने रास्ते हैं… तुम कभी तो मिलोगे… कहीं तो मिलोगे…

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