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पौराणिक बखान से राजकाज नहीं चलते

कनार्टक में विधानसभा चुनावों में वोटों को कटने से बचाने के साथ व पार्टीजनों की एकता के बल पर कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को भारी शिकस्त दी है. अरविंद केजरीवालपंजाब व दिल्ली में, ममता बनर्जीबंगाल में, कम्यूनिस्टों ने केरल में व नवीन पटनायक ओडिशा में नरेंद्र मोदी को शिकस्त देते रहे हैं. असल में नरेंद्र मोदी का गुणगान जितना होता रहा, उस में ढोल पीटना ज्यादा रहा है और ढोलनुमा इसी सर्कस के बल पर जमा हुई भीड़ के बलबूते भाजपा एकछत्र राज्य कर पा रही थी.

नरेंद्र मोदी की भाषाकला और भाजपा सरकार की विरोधियों को कुचलने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों को इस्तेमाल करने ने एक माहौल पैदा कर दिया था कि मोदी का कोई पर्याय नहीं है. इस पर ऊपर से भगवा लपेटा लगाया गया है जिस में मंदिर, पूजापाठ, धर्म, आयुर्वेद, वस्तु, प्रवचनों, शादियों आदि के व्यापार से जुड़े लोग शामिल हैं जिन्हें पाखंड और भेदभाव में ही अपना वर्तमान व भविष्य दिखता है.

कर्नाटक में 224 में से 137 सीटें जीत कर सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी को 65 पर धकेल कर कांग्रेस ने साबित कर दिया है जरूरत है सही नेताओं की और दृढ नीतियों की. 2004 को दोहराया जा सकता है.

नरेंद्र मोदी की केंद्र की सरकार हो या उन की पार्टी की राज्य सरकारें, अपना ज्यादा समय, शक्ति और बहुत पैसा पूजापाठ के कार्यक्रमों में लगाती हैं. देश उन्नति कर रहा है तो इसलिए कि पहले मुगलों ने और बाद में अंगरेजों ने दक्षिण एशिया को इस बड़े भूभाग को एककर के एक बड़ा देश बना दिया जहां राज कानून का चलता था, शास्त्रों का नहीं. कांग्रेस के राज में 30-40 साल संविधान के आदर व सम्मान से बीते पर वह पाखंड की ताकतों से लडऩे में कमजोर रहने लगी.

शिवाजी नेतार्किक शासन के बल पर बड़ा साम्राज्य बना दिया था पर बाद में पेशवाओं ने पूजापाठी राज थोपा और मराठा साम्राज्य ज्यादा साल नहीं चल पाया. अंगरेजों ने उस राज से पैदा हुई भयंकर लूटपाट, अराजकता व फूट का पूरा लाभ उठाया. उन्होंने कुछेक राजाओं को दूसरे से भिड़ा कर और कुछ अपनी नई तोपों, बंदूकों की तकनीक व अनुशासित सेना के बल पर कुछ हजार गौरे यूरोपी होते हुए भी पूरे देश पर कब्जा कर लिया. वे 1947 गए तो इसलिए कि भारत से आर्थिक लाभ मिलना बंद हो गया था.

अब कर्नाटक में वोटों को बंटने से बचाने के साथ और कांग्रेस में राहुल गांधी व प्रियंका गांधी की जोड़ी की दमदार एंट्री ने भगवा दल के हौसले पस्त कर दिए जो सिर्फ मोदी की छवि पर निर्भर है, अपने राजकाज पर नहीं. केंद्र व राज्य सरकार ने पुलिस व जांच एजेंसियों का अंत तक इस्तेमाल किया पर जैसे पश्चिम बंगाल में व पंजाब में उन की नहीं चली, कर्नाटक में भी नहीं चली.

कर्नाटक में भाजपा की हार के पीछे उस की वोटों की घटत उतनी नहीं है जितनी कांग्रेस का भाजपाविरोधी सारे वोटों को बटोर लेना है.

देश की आम जनता आज भी सामान्य पूजापाठी होते हुए भी धर्म के नाम पर रातदिन सिर फोड़ने,अपने पसंदीदा नेता का ढोल बजाते रहने में रुचि नहीं रखती है. वह अपना काम बिना रुकावट के करते रहना चाहती है. उसे जितना मरजी चाहे लूट लो लेकिन परेशान न करो. वह गरीबी व गुरबत में रहने को तैयार है पर हर कोने पर लाठियां लिए दूसरे धर्म या जाति वालों का सिर फोड़ने को तैयार नहीं. कांग्रेस ने शायद ऐसे वादे हमेशा किए और तभी 1947 से 1977 फिर 1980 से 1991, 1991 से 1996 और आखिर में 2004 से 2014 तक राज किया.

भाजपा इस हार से सबक लेगी, ऐसा लगता नहीं. पौराणिक कहानियां बताती हैं कि इस पुण्यभूमि पर हर दैविक राजा पीढ़ीदरपीढ़ी अदैविक राजाओं को नष्ट करने में लगा रहा चाहे राजा महाबलि का समय हो या रावण का. जिन के राज में लोग सोने के महलों में रहते थे और दैविक राजाओं के यहां सिर्फ राज,हवन और दान होता था. भाजपा का पौराणिक बखानकितना कायम रहेगा यह अगले चुनाव बताएंगे.

Yrkkh : अबीर के लिए एक होगें अक्षरा और अभिमन्यु, गले लगकर रोएंगे

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में वो समय आ गया है जिसका इंतजार फैंस को लंबे समय से था, कहानी इन दिनों अक्षरा और अबीर के आसपास रुक गई है, सीरियल में अबीर की तबीयत बिगड़ गई है, जिस वजह से अक्षरा और अबीर काफी ज्यादा परेशान हैं.

वहीं सीरियल में मजेदार ट्विस्ट तब आता है जब अभिमन्यु और अक्षरा बीमार अबीर को देखकर एक -दूसरे से गले लगकर रोने लगते हैं, तबीयत बिगड़ने की वजह से अबीर का ऑपरेशन होता है. अबीर की हालत देखकर दोनो घबरा जाते हैं.

 

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अभिमन्यु अपने बेटे को देखकर परेशान हो जाएगा और यह बात आरोही को काफी ज्यादा परेशान करेगी की अक्षरा और अभिममन्यु अब एक दूसरे से और भी ज्यादा क्लोज हो रहे हैं. आरोही ऑपरेशन थिएटर में जाकर कहेगी कि तुम्हारा बेटा मर रहा है और उसे तुम्हारी जरुरत है. यह सुनते ही अभिमन्यु को होश आ जाता है और अपने बेटे पर ध्यान देने लगता है.

आगे सीरियल में दिखाया जाएगा कि अभि अबीर की सर्जरी करने में सफल होगा और अबीर ठीक हो जाएगा. अभिमन्यु यह बताते हुए खुशी से रोने लगता है. इसी दौरान अभि अक्षु के पीछे आ जाता है. उससे गले लगकर रोने लगता है.

फिल्म RRR के एक्टर Ray Stevenson का 58 साल के उम्र में निधन

साउथ फिल्म इंडस्ट्री से एक बुरी खबर आ रही है, फिल्म RRR के विलेन का डेथ हो गया है, एक्टर रे स्टीवेन्सन के अचानक डेथ से सभी उनके चाहने वालों का डेथ हो गया है, 58 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया है.

आरआरआर के डायरेक्टर राजामौली ने ट्विट करके दुख प्रकट किया है, राजामौली ने लिखा कि बेहद दुखद भरोसा करना मुश्किल है. वह सेट पर काफी ज्यादा उर्जा लेकर काम करते थें. उनके साथ काम करने का एक अच्छा अनुभव रहा है. भगवान उनकी आत्मा को शांति दें.

बता दें कि स्टीवेन्सन ने गवर्नर स्कॉट बक्सटन का किरदार निभाया था, जिसमें लोगों को इनका किरदार काफी ज्यादा पसंद आया था, बता दें कि इसके अलावा भी वह कई सारी फिल्मों में नजर आ चुके हैं जिसमें इनके किरदार को पसंद किया गया है.

इसके अलावा इन्होंने 90 के दशक में टीवी में काम किया है, सीरियल में जिसमें इनके किरदार को पसंद किया गया था. बता दें कि एक्टर सिर्फ 8 साल की उम्र में अपने परिवार के साथ इंग्लैंड चले गए थें, जहां जाने के बाद से उनका रुझान एक्टिंग में बढ़ गया था.

जब जान पर आ बने

इंसान के जीवन में कई बार ऐसी ‘आपात स्थितियां’ आ जाती हैं जब तुरंत चिकित्सा सुविधा मिल जाए तो निसंदेह व्यक्ति का जीवन बच जाए और ठीक इस के विपरीत यदि पर्याप्त चिकित्सा सुविधा का अभाव हो तो जान के लाले पड़ सकते हैं. स्थिति तब और वीभत्स हो जाती है जब बीमार व्यक्ति के घर से अस्पताल बहुत दूरी पर होता है व आसपास भी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं होती.

इस प्रकार के मौकों की अहमियत को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि व्यक्ति को कुछ ऐसी चिकित्सकीय बातों का ज्ञान हो जिन से इस विषम परिस्थिति से उबर कर जीवन बच सके.

आज की मैडिकल विज्ञान एवं टैक्नोलौजी के युग में ‘आपात स्थितियों’ को जानें.

यदि घर में आधीरात के वक्त सीने व पेट के मिलन स्थल पर तीव्र जलन और असहनीय दर्द हो.

रोगी के पेट में ‘घाव’ पेष्टिक अल्सर हो सकता है या पेट की मुलायम दीवारें जगहजगह से नष्ट हो सकती हैं. गैस्ट्राइटिस रोगी को ठंडा दूध पीने को दें तथा तीनचार बिस्कुट या डबलरोटी खाने को दें. यदि घर में ‘एंटी एसिड औषधि’ हो तो वह भी दें. इसे फर्स्ट एड बौक्स में रखें. ठंडे पानी से काम चलाया जा सकता है.

यह बीमारी विशेष रूप से इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि इस वक्त शरीर की जो रक्षक प्रतिक्रियाएं है वो लगभग क्षीण या सुस्त रहती हैं. इस रोग में ‘मानसिक तनाव’ से जितना अधिक बचेंगे,उतना ही अधिक फायदा होगा.

डायबीटीज के रोगी को अचानक कंपकंपी व पसीना आने लगे

यह, दरअसल, अधिक ‘इंसुलिन’ या मधुमेह की अन्य दवाएं खाने का साइड इफैक्ट है जिससे रक्त में शक्कर का स्तर गिरता है. इस समय रोगी को मीठी चीजें, जैसे टौफी, चौकलेट, फलों के रस दिए जाने चाहिए ताकि रक्त में शक्कर का स्तर बढ़े. भूल कर भी ऐसे वक्त इंसुलिनन दें. यह स्थिति ‘हाइपोग्लाइसीमिया’ कहलाती है.

जान लें, सामान्य तथा रक्त में शक्कर का स्तर 80 से 100 मि.ग्रा. प्रति सौ सीसी होता है. जब यह स्तर 70 या 50 से नीचे आ जाए तो ये लक्षण उभर कर सामने आते हैं तथा ऐसे में नर्व सैल सर्वप्रथम प्रभावित होती है जिस की वजह से रोगी तनावग्रस्त, बेहद चिड़चिड़ा, जल्द थकान, पसीना व हाथपैरों में कंपन जैसे लक्षणों से दोचार होता है. इस में रोगी ऊलजलूल बातें भी कर सकता है तथा अधिकतर रोगी बेहोश भी हा जाते हैं.

दम घुटाघुटा महसूस हो या सांस में इतनी तकलीफ हो मानो दम निकल जाएगा

इस वक्त आपात इलाज कृत्रिम श्वसन से संभव होता है. इस के लिए मरीज का सिर थोड़ा पीछे की ओर झुकाएं व जबड़ा ऊपर की ओर उठाएं. अपने अंगूठे व तर्जनी से रोगी की नाक बंद कर दें. उस के बाद रोगी के मुंह से अपना मुंह सटा कर अपनी सांसें तेजतेज फुला कर उसे दें. ऐसी क्रिया एक मिनट में 12 से 15 बार की जानी चाहिए जब तक कि रोगी की छाती फूलने न लगे. यदि एक बार में उचित रिजल्ट न मिले तो ऐसा करने वाले को हरगिज निराश न हो कर दोगुने उत्साह से फिर से दोहराना चाहिए यानी कि कोशिश जारी रखनी चाहिए.

जब स्थिति सामान्य हो तो निकट के अस्पताल की शरण ले कर जो भी रोग हो उस का निदान अवश्य करवाना चाहिए.कृत्रिम श्वसन उस वक्त अत्यधिक आवश्यक समझा गया है जब सांस धीमी हो गई हो मगर दिल बराबर धड़क रहा हो.

पानी की कमी (डिहाइड्रेशन)

उलटी, दस्त, जबान सूख जाए, टांगों में भयंकर कमजोरी व पीड़ा, हलका बुखार व आंखें अंदर धंसी प्रतीत होना.ऐसे में रोगी को ओढ़ा कर लिटा दीजिए. उसे खूब पानी, नमक व शक्कर का घोल, जिसे इलैक्ट्राल घोल कहते हैं, दीजिए. पर्याप्त मात्रा में ये चीजें शरीर में पहुंचते ही सभी लक्षण अपनेआप ही गायब हो जाएंगे.

यदि इलैक्ट्राल घोलघर में न हो तो एक गिलास में साफ पानी लें तथा उस में एक चम्मच नमक व एक चम्मच चीनी डाल लें तथा जायके के लिए नीबू भी निचोड़ लें, लीजिए आवश्यक घोल तैयार है. आधे से एक घंटे के अंतराल पर ऐसा घोल रोगी को बराबर पिलाते रहें. घर में बनाए गए इस तरह के घोल को रिहाइड्रेशन घोल कहते हैं.

इस तरह के लक्षण तब उत्पन्न होते हैं जब गरमी का मौसम अपने पूर्ण यौवन पर होता है, यानी, मई से जुलाई तक.मगर भरी सर्दी में भी इस की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

कुत्ते के काटने पर

आवश्यक बात यह है कि यह जाना जाए कि कुत्ता पागल है या नहीं. इस के लिए उस की कई दिनों तक निगरानी रखना जरूरी है. एक कुत्ते को जब तक पागल ही समझना चाहिए जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि अमुक कुत्ता पागल नहीं है.

कुत्ते ने कहां काटा है, वहां घाव को साफ पानी से धो कर एटीलाइज स्ट्रिप इस स्थान पर रखी जानी चाहिए तथा जहां कुत्ते ने काटा है उस स्थान पर लार साफ करने हेतु उसे साबुन से भी धोया जा सकता है.

सीने का दर्द

चलते या दौड़ते वक्त सीने में तेज दर्द से छटपटाने लगें, तो यह दर्द तीव्र असहनीय होता है तथा सीने के अतिरिक्त कंधों, बांहों व हाथों की उंगलियों तक फैल रहा है, एवं एकएक सांस के लिए उसे इतना संघर्ष करना पड़ रहा हो जिस से उस का बदन पसीने से लथपथ हो गया हो तो यह दिल का दौरा है. फौरन एम्बुलैंस बुलाएं या जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचने की कोशिश करें.

मरीज को जहां हवा सब से अच्छी हो वहां लिटाएं क्योंकि इस में प्राणवायु का बड़ा महत्त्व है. शरीर पर कपड़ों का बंधन सख्त हो तो उसे ढ़ीला कर दें. आर्टीफिशियल ब्रीथिंग की आवश्यकता हो तो वह भी दी जानी चाहिए. छाती पर तेज पंपकरें मगर फिर भी जल्द अस्पताल की शरण लेने में ही लाभ है. दिल के पुराने रोगी अपने पास नाइट्रोग्लिसरीन औषधि हमेशा रखते हैं, फौरन एक गोली जबान के नीचे रखें.

ठंड से कांपता या अकड़ा हुआ घर पहुंचे

मरीज की सांस व नब्ज का निरीक्षण करें. आवश्यकता हो तो ‘कृत्रिम श्वसन’ पहुंचाएं. गीले, नम कपड़े उतार कर उसे गरम पानी के टब में बैठाएं. मगर पानी बहुत ज्यादा गरम न हो. चाय, कौफी जैसे गरम पेय पदार्थ दे कर शरीर का तापमान बढ़ाने का हरचंद प्रयास किया जाना चाहिए.

वाहन दुर्घटना

अचानक सामने से किसी अन्य वाहन से टक्कर के कारण कोई बुरी तरह घायल हो गया हो तो ऐसे में मदद पहुंचाने वाले को कई बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. सर्वप्रथम दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की ‘ब्रीथिंग’ का ध्यान दें. उस के मुंह में रेत, गंदगी या अन्य कोई वस्तु फंस गई हो तो उसे हटाएं, यानी किसी भौतिक अवरोध से सांस न रुकी हो.

उस के सीने का निरीक्षण करें कि चोट से वहां कोई रिसता हुआ घाव न हो क्योंकि इस की वजह से भी सांस में रुकावट आ सकती है. यदि ऐसा है तो कपड़े या समाचारपत्र के कागज को ही मोड़ कर जोर से उस स्थान पर रख दें ताकि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति नाकमुंह से अच्छी तरह से सांस ले सके. यदि फिर भी सांसों में अवरोध हो तो आर्टीफिशियल ब्रीथिंग देकर सांस क्रिया को सामान्य/यथावत किया जाना चाहिए.

फिर ध्यान दीजिए रक्तस्राव की ओर. रक्तस्राव जारी हो तो व्यर्थ समय न गंवाए बल्कि उसे जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाएं. कोई गहरा जख्म हो व वहां से रक्तस्राव हो तो उसे बंद करना अत्यंत आवश्यक है. साधारण तथा वहां कस कर दबाव डालने से रक्तस्राव बंद हो सकता है. उस जगह व हृदय के बीच कस कर गोल या बेल्टनुमा पट्टी बांध दें.

दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के मुंह व नाक में कोई अवरोध न हो, इस बात को फिर एक बार देख लें क्योंकि एक या दो उलटी भी साधारणतया ऐसे में हो सकती हैं. यदि मुंह में अवरोध हुआ तो उलटी के सभी पदार्थों को बाहर निकलने में कठिनाई हो सकती है जिस से रोगी का दम अंदर ही अंदर घुट सकता है. व्यक्ति के चेहरे को एक तरफ कर दें ताकि उलटियों के पदार्थ चेहरे से दूर गिर सकें.

व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने में संभव हो तो अन्य तीनचार व्यक्ति की मदद और ले लें क्योंकि अधिक हिलानेडुलाने से उस वक्त हो सकता है स्नायुतंत्र पर बुरा असर पड़े या पूरी मेरुरज्जू (स्पाइनल कोर्ड) क्षतिग्रस्त हो जाए. एक व्यक्ति का दायित्व तो महज इतना ही होना चाहिए कि वह व्यक्ति के सिर व गरदन को थामे रहे ताकि वह हिलडुल न सके.

यात्रा प्रवास की तकलीफ

यात्रा के दौरान जी मिचला कर लगातार उलटियां हो रही हों. दरअसल, यह आम शिकायत है व चिकित्सा जगत में इसे मोशन सिकनैस के नाम से ख्याति प्राप्त है. ऐसे में परेशान व्यक्ति को शुद्ध वायु ग्रहण करनी चाहिए, यानी, जिन लोगों को ऐसी शिकायत है उन्हें रेल या बसों में हमेशा खिड़की के पास बैठना चाहिए ताकि बराबर शुद्ध वायु उपलब्ध हो सके.

दृष्टि बारबार इधरउधर न घुमाएं, ठीक सामने किसी स्थान पर दृष्टि केंद्रित रखें.

इस बात का विशेष खयाल रखें कि पेट को ठूसठूस कर भोजन से भरकर यात्रा प्रवास पर निकलना इस किस्म की तकलीफों को निमंत्रण देता है.सो, यात्रा से 2 घंटे पूर्व ही हलका भोजन लें तो उचित होगा.

यदि आप इस तरह की शिकायत के पुराने रोगी हैं तो यात्रा से पहले चिकित्सक से परामर्श उचित रहेगा.

पेट पत्थर की तरह सख्त हो गया हो व भयंकर दर्द से छटपटा रहा होतो-

कब्ज कई रोगों का मूल कारण है तो कईयों के लिए निमंत्रणपत्र है. रोगी की नाड़ी (नब्ज) व श्वसन का बराबर ध्यान रखें. ‘एनिमा’ देकर फौरन पेट साफ किया जाना चाहिए. यदि रोगी का पूर्व में पेट का कोई औपरेशन हुआ हो तो एनिमा भी चिकित्सक की देखरेख में दिया जाना चाहिए. चिकित्सक से परामर्श कर कब्ज का निवारण करें.

सैक्स में कुछ और नयापन देना चाहती हूं, पति औफिशियल टूर के लिए बाहर जाते रहते हैं, इस बार स्पैशल प्लान करना चाहती हूं?

सवाल

मैं पति को सैक्स में कुछ और नयापन देना चाहती हूं. पति औफिशियल टूर के लिए बाहर जाते रहते हैं. इस बार जब वे वापस घर आएं तो मैं उन के लिए स्पैशल प्लान करना चाहती हूं. खासकरमेरा साथ पा कर उन्हें बहुत स्पैशल फील हो और जब भी टूर पर जाएं तो घर आने के लिए बेताब रहें तो इस के लिए क्या करूं?

जवाब

पति पत्नी में प्यार के साथसाथ सैक्स की कंटीन्यूटी बनी रहे तो रिश्ता मजबूत बना रहता है. आप सम झदार वाइफ हैं जो पति को सैक्सुअली सैटिस्फाइड रखना चाहती हैं ताकि घर से बाहर टूर पर रहते हुए भी पति घर आने के लिए बेताब रहें. आप सैक्स में नयापन लाना चाहती हैं तो कई चीजें आप की मदद कर सकती हैं.

आप सैक्स से पहले वार्मअप के लिए समय ले सकती हैं. यह पति को अधिक आसानी से उत्तेजित कर सकता है और उन के लिए सैक्स अधिक संतुष्टिजनक बना सकता है. पति की फैंटेसी के बारे में जानने की कोशिश करें और उन्हें उस नए और रोमांटिक तरीके से संतुष्ट करने की कोशिश करें. घर में बैडरूम के अलावा किसी और जगह सैक्स कर के कुछ नयापन लाया जा सकता है. पति के साथ नई सैक्स पोजीशन आजमा सकती हैं. यह अनुभव नया और मजेदार हो सकता है.

सैक्स टौयज उपयोग कर के सैक्स लाइफ में नए रंग ला सकती हैं. पति के साथ सैक्स संबंधित वीडियो देख कर नए और मजेदार तरीके आजमा सकती हैं. पति के साथ सैक्स संबंधित गेम्स खेल कर सैक्स एक्साइटमैंट बढ़ा सकती हैं. आप शारीरिक रूप से सैक्सी रह कर भी अपने पति को हर वक्त खुश रख सकती हैं. इस के लिए आप अपने स्वस्थ खानपान और ऐक्सरसाइज पर ध्यान दीजिए.

धोखे की नाव पर मौत का सफर

गंगाराम अपनी मां दुलारीबाई से किसी भटियारिन की तरह हाथ नचाता हुआ गुस्से से बोला, ‘‘मैंने तुम्हें कितनी बार बोला है कि मुझे निकासी के लिए रास्ता दो. मुझे लंबा चक्कर काट कर घर तक पहुंचना पड़ता है. उस समय तो और परेशानी बढ़ जाती है जब खेतों से फसल बैलगाड़ी में लाद कर लाते हैं.

‘‘आखिर मेरी बात तुम कब समझोगी. हर साल इसी बात का रोना होता है. सवा महीने बाकी हैं, फसल तैयार हो चुकी है. मुझे निकासी के लिए रास्ता चाहिए. और उस 2 एकड़ खेत में से हिस्सा भी चाहिए. मैं भी परिवार वाला हूं.’’

‘‘अच्छा…अभी तो मांबाप को पूछता नहीं है और जिस दिन जमीन से हिस्सा मिल गया, मांबाप मानने से भी इनकार कर देगा. गंगाराम, मैं ने दुनिया देखी है. बंटवारा हुआ नहीं कि मांबाप के हाथ में कटोरा थमा दोगे. बुढ़ौती में भीख मांगनी पड़ जाएगी.

दोनों मांबेटे में इसी तरह काफी देर तक झगड़ा चलता रहा. उसी समय गंगाराम के पिता बालाराम खेत से घर लौटे. दुलारी ने बेटे की शिकायत अपने पति से की, ‘‘लो, संभालो अपने बेटे को, जो जी में आता है बोलता ही चला जाता है.’’

गंगाराम अपने पिता से बोला, ‘‘बाबूजी, मां को समझाओ और संभालो नहीं तो किसी दिन मेरा मूड खराब हो गया तो इसे गंडासे से काट कर नदी में…’’

बालाराम ने बीच में हस्तक्षेप किया, ‘‘बहुत बोल चुका,’’ उन्होंने अपनी पत्नी दुलारी का पक्ष लिया, ‘‘अब अगर तू अपनी मां को एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

इस झगड़े के बीच गंगाराम की पत्नी निर्मला पति का हाथ पकड़ कर बाहर लाने लगी. गंगाराम ने निर्मला का हाथ झटक दिया, ‘‘आज मैं बुड्ढे बुढि़या को छोड़ूंगा नहीं.’’

कहता हुआ गंगाराम अपने पिता बालाराम से जा भिड़ा. बापबेटे को एकदूसरे से हाथपाई करते देख गांव के लोग जमा हो गए.

गांव वालों ने बापबेटे को बड़ी मुश्किल से एकदूसरे से अलग किया. गंगाराम लोगों की बांहों में जकड़ा हुआ कसमसा रहा था. साथ ही गुस्से से चीखता रहा.

दोनों एकदूसरे के कट्टर विरोधी हो गए. कोढ़ में खाज यह हुआ कि इसी बीच निर्मला बीमार रहने लगी. इस के लिए निर्मला अपनी सास दुलारीबाई को जिम्मेदार ठहराने लगी. वह सास पर यह आरोप लगाती कि उस ने उस के ऊपर कोई टोनाटोटका करा दिया है.

गंगाराम ने कई ओझागुनिया को पत्नी को दिखाया. मर्ज यह था कि निर्मला के सिर में दर्द बना रहता था और शाम को बुखार चढ़ने लगता था.

झाड़फूंक से कोई सुधार न हुआ तो वह डाक्टर के पास गया. टेस्ट करवाने पर पता चला कि निर्मला को टायफायड है. एलोपैथी दवा भी चली और झाड़फूंक भी. पता नहीं किस ने असर दिखाया, निर्मला धीरेधीरे ठीक होने लगी.

गंगाराम और उस की पत्नी निर्मला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की सास दुलारीबाई किसी तांत्रिक ओझा से मिल कर उन्हें बरबाद करने पर तुली है.

इस बात पर गंगाराम की सोच भी निर्मला की सोच से अलग नहीं थी. निर्मला जब पूरी तरह से ठीक हो गई और उस के शरीर में जान आ गई तब वह अपनी सास पर इलजाम लगाने लगी.

एक बार फिर दोनों पक्षों में तकरार और झिकझिक होने लगी. वह एकदूसरे के लिए गलत भावनाएं रखने लगे. फिर वही समय आया, नवंबर दिसंबर का. फसल तैयार हो कर खेत से कोठरी में जाने को तैयार थी.

मुद्दा फिर वही उठा कि बैलगाड़ी में रखे अनाज को दूसरे रास्ते से लाना होगा. बालाराम और दुलारी किसी भी तरह से इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि निकासी के लिए बाड़ी से जगह दी जाए. हर साल फसल तैयार होने के बाद यही सवाल खड़ा हो जाया करता था.

कई सालों से यह निकासी का मसला न तो सुलझ रहा था और न ही दूरदूर तक कोई समाधान ही दिखाई दे रहा था.

आज भी इसी विवाद को ले कर गंगाराम और निर्मला दोनों का मन खिन्न था. खाना खाने के बाद दोनों पतिपत्नी टीवी देखने लगे.

टीवी पर वह क्राइम स्टोरी पर आधारित सीरियल देख रहे थे. उस सीरियल की कहानी उन की जिंदगी से जुड़ी जैसी थी. दोनों ने बड़े ध्यान से खामोशी के साथ वह सीरियल देखा. सीरियल खत्म होने के बाद दोनों ने उस पर चर्चा की.

गंगाराम और उस की पत्नी को इस बात की चिंता हो रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि मांबाप पूरी जमीन छोटे भाई रोहित के नाम कर जाएं. वैसे भी छोटा होने के नाते वह मांबाप का चहेता था.

इस सोच ने निर्मला और गंगाराम को परेशान कर डाला. जब इंसान को कोई चीज मिलने की संभावना दिखाई न देती है, तब वह उसे किसी दूसरे ही तरीके से हासिल करने की कोशिश में लग जाता है. इन दोनों ने भी एक योजना बना ली.

गंगाराम और निर्मला ने एक योजना के तहत अपने व्यवहार में थोड़ाबहुत बदलाव किया. अपने पिता बालाराम और मां दुलारीबाई से सहजता से पेश आने लगे. बालाराम और दुलारी को आश्चर्य हुआ कि हमेशा कड़वे बोल बोलने वालों की जुबान में शहद कैसे घुल गया.

इस के बाद उन दोनों ने विचारविमर्श किया कि अपनी योजना में किसे शामिल किया जाए, जिस से उन की योजना सफल हो जाए. नजर और दिमाग के घोड़े दौड़ाने के बाद गंगाराम ने धुधवा गांव के ही नरेश सोनकर, योगेश सोनकर और कोपेडीह निवासी रोहित सोनकर से जिक्र किया.

पैसों के लालच में तीनों ही उन की योजना में शामिल हो गए. तीनों ने योजना बना कर वारदात को अंजाम देने के लिए 21 दिसंबर, 2020 का दिन तय किया.

योजना के अनुसार, चारों लोग खेत पर पहुंच गए. वहां बालाराम और उस का छोटा बेटा रोहित तड़के में खेतों पर पानी लगा रहे थे. उन्होंने उन दोनों को दबोच लिया और सीमेंट की बनी पानी की हौदी में डुबो कर दोनों को मार दिया.

अगला निशाना अब दुलारीबाई और उस की बहू कीर्तिनबाई रही. चारों दबेपांव वहां पहुंचे, जहां वे सब्जियों का गट्ठर तैयार करने में व्यस्त थीं. शिकारी की तरह दबेपांव वे उन के करीब पहुंचे और कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ वार कर उन दोनों की जिंदगी भी खत्म कर दी.

इतना सब कुछ करने के बाद उन लोगों ने चैन की सांस ली. यहां यह बताते चलें कि निर्मला उन चारों को ऐसा करते हुए दरवाजे की ओट से देख रही थी. काम को अंजाम देने के बाद गंगाराम ने तीनों साथियों को वहां से रवाना कर दिया.

निर्मला और गंगाराम दोनों ने मिल कर कुल्हाड़ी को बाड़ी में ही दबा दिया. सुबह के 5 बजतेबजते पूरे खुरमुड़ा गांव में इस दहला देने वाली हत्या की चर्चा होने लगी.

अम्लेश्वर थाने में संजू सोनकर निवासी खुरमुड़ा की रिपोर्ट पर अमलेश्वर थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने इस नृशंस हत्याकांड की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

जांचपड़ताल के लिए फोरैंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. आईजी विवेकानंद सिन्हा के सुपरविजन में जांच होती रही. पुलिस को किसी तरह का कोई सूत्र नहीं मिल रहा था जिस से जांच आगे बढ़ती.

डौग स्क्वायड टीम घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. मृतकों के शव के समीप ले जा कर कुत्ते को छोड़ दिया गया. खोजी कुत्ता गोलगोल चक्कर लगाता हुआ मृतकों को सूंघ कर खेत की ओर कुछ दूर तक गया.

मौके की जांच से इतना तो स्पष्ट था कि हत्यारे 2-3 से कम नहीं थे. खेत में रासायनिक छिड़काव कर दिया गया था, जिस के कारण खोजी कुत्ते को सही दिशा नहीं मिल पा रही थी.

बहरहाल, पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जब पुलिस को किसी तरह का सूत्र नहीं मिला तो पुलिस ने गंगाराम के साढ़ू नरेश सोनकर को विश्वास में ले कर मुखबिरी का जिम्मा सौंपा.

नरेश मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने पुलिस को मुखबिरी करने के बहाने उलझाए रखा. जांच के लिए आईजी विवेकानंद सिन्हा ने कुछ बिंदु तय किए.

उन बिंदुओं को आधार बना कर पुलिस जांच में जुटी रही. इस सामूहिक हत्याकांड को हुए 3 महीने बीत चुके थे. लेकिन अपराधियों का कोई अतापता नहीं था.

थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने अपने एक मुखबिर को नरेश के पीछे लगा दिया. नरेश की एक्टिविटी पुलिस को शुरू से ही संदेहास्पद लगी थी.

फोरैंसिक विशेषज्ञों की टीम के सहयोग से भौतिक साक्ष्य जुटाया गया. टीम ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी साक्ष्य को आधार बना कर बारीकी से पूछताछ कर जानकारी इकट्ठी की.

पुलिस ने संदेहियों को हिरासत में ले कर सघन पूछताछ की. इस घटना का मास्टरमाइंड बालाराम का अपना सगा बड़ा बेटा गंगाराम निकला.

गंगाराम की स्वीकारोक्ति के बाद योगेश सोनकर, नरेश सोनकर, रोहित सोनकर उर्फ रोहित मौसा को गिरफ्तार कर लिया गया. सभी को घटनास्थल पर ले जा सीन रीक्रिएशन कराया गया.

आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी पुलिस ने बालाराम की बाड़ी से बरामद कर ली.

घटना के वक्त पहने गए कपड़ों को इन चारों ने ठिकाने लगा दिया था. 18 मार्च, 2021 को आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिस में निर्मला भी शामिल थी. इन चारों आरोपियों का नारको टेस्ट भी कराया गया.

आईजी विवेकानंद सिन्हा ने अमलेश्वर थाना स्टाफ की पीठ थपथपाई. पुलिस ने सभी आरोपियों गंगाराम, उस की पत्नी निर्मला, योगेश सोनकर, नरेश सोनकर और रोहित सोनकर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

न आप कैदी, न ससुराल जेल

लव मैरिज हो या अरेंज्ड, हर लड़की के मन में ससुराल को ले कर थोड़ाबहुत भय जरूर होता है. कई बार तो यह भय चिंता का रूप धारण कर लेता है. मगर समस्या तब आती है जब लड़की के मन में ससुराल वालों की नकारात्मक छवि बनने लगती है. इस स्थिति में बिना किसी आधार के लड़की भावी ससुराल वालों में खामियां ढूंढ़ने लगती है. मैरिज काउंसलर डा. वीरजी शर्मा कहते हैं, ‘‘लड़कियों में ससुराल को ले कर भय एक स्वाभाविक प्रकिया है. मगर कई बार डर इतना अधिक बढ़ जाता है कि लड़की खुद को मनगढंत स्थिति में सोच कर यह तय करने लगती है कि ससुराल वाले इस स्थिति में उस के साथ क्या सुलूक कर सकते हैं. अधिकतर लड़कियां नकारात्मक ही सोचती हैं. इस की 2 वजहें हो सकती हैं. पहली यह कि लड़की ससुराल के सभी सदस्यों के स्वभाव से भलीभांति परिचित हो और दूसरी यह कि वह अपने भावी ससुराल वालों के बारे में कुछ भी न जानती हो.’’

दोनों ही स्थितियों में विभिन्न प्रकार की चिंताएं उसे घेर लेती हैं. ऐसी ही कुछ चिंताओं से निबटने के तरीके पेश हैं:

खुद को व्यक्त न कर पाने का डर

जाहिर है, ससुराल में जगह और लोग दोनों ही लड़की के लिए अनजान होते हैं. ऐसे में हर लड़की को ससुराल के किसी भी सदस्य से अपनी ख्वाहिश, तकलीफ और भावना को व्यक्त करने में संकोच होता है. उदाहरण के तौर पर, एक नईनवेली दुलहन की मुंहदिखाई की रस्म की बात की जा सकती है. इस रस्म की कुछ खामियां भी हैं और कुछ लाभ भी. लाभ यह है कि घर की नई सदस्या बन चुकी दुलहन को सभी नए रिश्तेदारों से मिलने का मौका मिलता है, वहीं खामी यह है कि थकीथकाई दुलहन लोगों की भीड़ में खुद को असहज महसूस करती है. अब इस स्थिति में लड़की किस से अपनी तकलीफ बयां करे

इस रस्म के अलावा भी कई ऐसे मौके आते हैं जब लड़की अपनी मन की बात को ससुराल वालों के आगे व्यक्त नहीं कर पाती और मायूसी के साथ उन की हां में हां मिला देती है. डा. वीरजी इस बाबत कहते हैं, ‘‘शादी के शुरुआती दिनों में यह दिक्कत हर लड़की को आती है, मगर यह स्थाई नहीं होती. पहली बात की अपनी बात को व्यक्त करना अपराध नहीं है. यदि स्वस्थ तरीके से अपनी बात रखी जाए तो लोग उसे तवज्जो देते हैं. ससुराल वालों के आगे धीरेधीरे खुलने का प्रयास लड़की को खुद करना पड़ता है. इस में उस की कोई सहायता नहीं कर सकता. अब अपनी बात कहे बगैर ही यह मान लिया जाए कि कोई भी इसे नहीं मानेगा, यह बेवकूफी है.’’

आजादी छिन जाने का भय

शादी से पूर्व हर लड़की के मन में यह खयाल जरूर आता है कि क्या शादी के बाद भी मायके जैसी आजादी मिल सकेगी  डा. वीरजी कहते हैं, ‘‘शादी नए रिश्तों का बंधन है, बंदिशों का नहीं. नए रिश्तों की नई डिमांड्स होती हैं और उन्हें पूरा करना जरूरी भी है, क्योंकि नए रिश्तों की डोर एकदूसरे को समझने और एकदूसरे की ख्वाहिशों को पूरा करने पर मजबूत होती है. यह जिम्मेदारी केवल लड़कियों पर ही नहीं होती वरन ससुराल वाले भी नई दुलहन की पसंदनापसंद का खयाल रखते हैं. इसलिए खुद को ससुराल में कैदी न समझें.’’

कई बार लड़कियों को इस बात का डर सताता है कि ससुराल में पसंद के कपड़े, खाना, घूमनाफिरना सब पर पाबंदी लगा दी जाएगी. यहां तक कि कुछ करने से पहले सासससुर की अनुमति लेने पड़ेगी. तो बड़ों की अनुमति लेने में हरज क्या है  मायके में भी तो लड़कियां अपने मातापिता से कुछ करने से पूर्व उन का परामर्श लेती हैं और फिर बात सिर्फ लड़कियों की नहीं, बल्कि ज्यादा तजरबे और कम तजरबे की है. जाहिर है सासससुर को बहू से अधिक तजरबा होता है. अपने तजरबे के तहत यदि वे किसी काम को करने से या न करने की बात कहते भी हैं, तो इस में भलाई खुद की है. फिर इस बात का भी ध्यान रखें कि अपने फैसलों में जब बहू ससुराल वालों को शामिल करेगी, तो वे भी हर काम में उस की राय को अहमियत देंगे.

हर घर के कुछ नियम ते हैं उन्हें बंदिशें कहना गलत होगा. नियमों का पालन करने से जीवनशैली अनुशासित होती है. यह नियम घर के हर सदस्य के लिए एक से होते हैं. इसलिए इन्हें व्यक्तिगत तौर पर न लें. इसी तरह ससुराल को जेल समझ कर हर वक्त कैद से छूटने की बात न सोचें, क्योंकि यह सोच कभी भी ससुराल में अपनी जगह बना पाने में बहू को कामयाब नहीं होने देगी.

परिवार वालों के दखल की चिंता

‘4 बरतनों का आपस में टकराना’ कहावत गृहस्थ जीवन पर एकदम सटीक बैठती है. परिवार 1 व्यक्ति से नहीं बनता, बल्कि बहुत सारे सदस्य मिल कर एक परिवार बनाते हैं. जिस घर में 4-5 लोग होते हैं, वहां आपसी सलाह से ही हर काम किया जाता है. इसे दखल समझने की भूल न करें. हो सकता है कि कभी आप की सलाह के विपरीत कुछ फैसले लिए जाएं, मगर उस में घर के बाकी सदस्यों की सहमति होगी. इसे परिवार के सदस्यों की दखलंदाजी नहीं कहा जाएगा. जब लड़कियां मायके में होती हैं, तो मातापिता की रोकटोक उन्हें दखल नहीं लगती, क्योंकि उन से भावनात्मक रिश्ता होता. ससुराल वालों से भावनात्मक जुड़ाव में समय लगता है. इसलिए उन की हर बात दखल ही लगती है.

मगर कई बार सच में ससुराल में कुछ लोग नई बहू पर अपनी धाक जमाने के लिए उस के हर काम में अपना दखल देने से पीछे नहीं हटते. ऐसे लोगों से शुरू से ही थोड़ी दूरी बना कर चलना चाहिए. यदि बात सासससुर की है, तो अपने और उन के बीच एक सीमा रेखा खींच लें. उन की जो बातें आसानी से मानी जा सकती हैं उन्हें जरूर मान लें, मगर जो स्वीकार करने योग्य न हों उन्हें सम्मान के साथ स्वीकारने से इनकार कर दें.

अनचाही जिम्मेदारियों को निभाने का बोझ

नए रिश्तों के साथ नई जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ती हैं, इस बात को स्वीकार कर लें. मगर कुछ रिश्तों को दिल से स्वीकार कर पाने में थोड़ी मुश्किलें भी आती हैं. ऐसे में उन रिश्तों से जुड़ी जिम्मेदारियों को निभाना बोझ लगता है खासतौर पर ननद और जेठानी के साथ खट्टेमीठे रिश्ते की कई कहानियों से लड़कियां पहले ही अवगत होती हैं. रहीसही कसर टीवी धारावाहिकों में सासबहू के झगड़े और घरेलू लड़ाई दिखा पूरी हो जाती है खासतौर पर लड़कियों के दिमाग में ननद, जेठानी और सास की छवि वैंप जैसी बन जाती है.

मगर वास्तव में इन रिश्तों को निभाना उतना जटिल भी नहीं होता. जाहिर है, अपने पति से जुड़ी जिम्मेदारियों को पूरा करने का जो उत्साह लड़कियों में होता है वह ससुराल के अन्य सदस्यों के लिए नहीं होता. मगर नकारात्मक सोच अच्छे को भी बुरा बना सकती है. ननद, जेठानी और सास ससुराल में नई बहू के लिए सब से अधिक मददगार साबित हो सकती हैं. ये रिश्ते नोकझोंक वाले जरूर हैं, मगर इन की गैरमौजूदगी में गृहस्थ जीवन फीका है.

जीवनशैली बदल जाने का खौफ

जीवन के हर पड़ाव पर एक नए बदलाव का सामना करना पड़ता है. शादी के बाद महिला और पुरुष दोनों के ही जीवन में बहुत सारे बदलाव आते हैं. मगर लड़कियों को शादी से पूर्व इस का अधिक खौफ होता है. इस की सब से बड़ी वजह पिता का घर छोड़ पति के घर जाना होती है. सभी घर के नियमकायदे अलग होते हैं, रहनसहन का तरीका भी अलग होता है. इन सब के बीच खुद को समयोजित कर पाना हर लड़की के लिए थोड़ा मुश्किल होता है, मगर नामुमकिन नहीं.घर में एक दूसरे माहौल से आई नई बहू से तालमेल बैठा पाना ससुराल वालों के लिए भी आसान नहीं होता. अपने घर के वातावरण में बहू को ढालना ससुराल वालों के लिए भी एक चुनौती होती है. मगर दोनों ही पक्ष आपसी समझ से कदम आगे बढ़ाएं तो ये बदलाव अच्छे लगने लगते हैं.

इसी तरह ससुराल और ससुराल वालों से जुड़ी बहुत सी बातें होती हैं, जो विवाह से पूर्व लड़कियों को मन ही मन नकारात्मक सोचने पर मजबूर कर देती हैं. मगर इस सोच के साथ नए रिश्तों की शुरुआत हमेशा बुरे परिणाम ही दिखाती है. इसलिए सकारात्मक सोचें. इस से विपरीत हालात में मसलों को सुलझाने का रास्ता मिलेगा और ससुराल के हर सदस्य के साथ सही तालमेल बैठाना आसान हो जाएगा.

लड़की- भाग 2 : क्यों डर रही थी वो बेटी को खो देने से?

सुधाकर पहले ही ज्योतिषी से मिल चुके थे और उस की मुट्ठी गरम कर दी थी. ‘महाराज, कन्या एक गलत सोहबत में पड़ गई है और उस से शादी करने का हठ कर रही है. कुछ ऐसा कीजिए कि उस का मन उस लड़के की ओर से फिर जाए.

‘आप चिंता न करें यजमान,’ ज्योतिषाचार्य ने कहा.

ज्योतिषी ने वीणा की जन्मपत्री देख कर बताया कि उस का विदेश जाना अवश्यंभावी है. ‘तुम्हारी कुंडली अति उत्तम है. तुम पढ़लिख कर अच्छा नाम कमाओगी. रही तुम्हारी शादी की बात, सो, कुंडली के अनुसार तुम मांगलिक हो और यह तुम्हारे भावी पति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. तुम्हारी शादी एक मांगलिक लड़के से ही होनी चाहिए वरना जोड़ी फलेगीफूलेगी नहीं. एक  बात और, तुम्हारे ग्रह बताते हैं कि तुम्हारी एक शादी ऐनवक्त पर टूट गई थी?’

‘जी, हां.’

‘भविष्य में इस तरह की बाधा को टालने के लिए एक अनुष्ठान कराना होगा, ग्रहशांति करानी होगी, तभी कुछ बात बनेगी.’ ज्योतिषी ने अपनी गोलमोल बातों से वीणा के मन में ऐसी दुविधा पैदा कर दी कि वह भारी असमंजस में पड़ गई. वह अपनी शादी के बारे में कोई निर्णय न ले सकी.

शीघ्र ही उसे अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी से वजीफे के साथ वहां दाखिला मिल गया. उसे अमेरिका के लिए रवाना कर के उस के मातापिता ने सुकून की सांस ली.

‘अब सब ठीक हो जाएगा,’ सुधाकर ने कहा, ‘लड़की का पढ़ाई में मन लगेगा और उस की प्रवीण से भी दूरी बन जाएगी. बाद की बाद में देखी जाएगी.’

इत्तफाक से वीणा के दोनों भाई भी अपनेअपने परिवार समेत अमेरिका जा बसे थे और वहीं के हो कर रह गए थे. उन का अपने मातापिता के साथ नाममात्र का संपर्क रह गया था. शुरूशुरू में वे हर हफ्ते फोन कर के मांबाप की खोजखबर लेते रहते थे, लेकिन धीरेधीरे उन का फोन आना कम होता गया. वे दोनों अपने कामकाज और घरसंसार में इतने व्यस्त हो गए कि महीनों बीत जाते, उन का फोन न आता. मांबाप ने उन से जो आस लगाई थी वह धूलधूसरित होती जा रही थी.

समय बीतता रहा. वीणा ने पढ़ाई पूरी कर अमेरिका में ही नौकरी कर ली थी. पूरे 8 वर्षों बाद वह भारत लौट कर आई. उस में भारी परिवर्तन हो गया था. उस का बदन भर गया था. आंखों पर चश्मा लग गया था. बालों में दोचार रुपहले तार झांकने लगे थे. उसे देख कर सुधाकर व अहल्या धक से रह गए. पर कुछ बोल न सके.

‘अब तुम्हारा क्या करने का इरादा है, बेटी?’ उन्होंने पूछा.

‘मेरा नौकरी कर के जी भर गया है. मैं अब शादी करना चाहती हूं. यदि मेरे लायक कोई लड़का है तो आप लोग बात चलाइए,’ उस ने कहा.

अहल्या और सुधाकर फिर से वर खोजने के काम में लग गए. पर अब स्थिति बदल चुकी थी. वीणा अब उतनी आकर्षक नहीं थी. समय ने उस पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी थी. उस ने समय से पहले ही प्रौढ़ता का जामा ओढ़ लिया था. वह अब नटखट, चुलबुली नहीं, धीरगंभीर हो गई थी.

उस के मातापिता जहां भी बात चलाते, उन्हें मायूसी ही हासिल होती थी. तभी एक दिन एक मित्र ने उन्हें भास्कर के बारे में बताया, ‘है तो वह विधुर. उस की पहली पत्नी की अचानक असमय मृत्यु हो गई. भास्कर नाम है उस का. वह इंजीनियर है. अच्छा कमाता है. खातेपीते घर का है.’

मांबाप ने वीणा पर दबाव डाल कर उसे शादी के लिए मना लिया. नवविवाहिता वीणा की सुप्त भावनाएं जाग उठीं. उस के दिल में हिलोरें उठने लगीं. वह दिवास्वप्नों में खो गई. वह अपने हिस्से की खुशियां बटोरने के लिए लालायित हो गई.

लेकिन भास्कर से उस का जरा भी तालमेल नहीं बैठा. उन में शुरू से ही पटती नहीं थी. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर था. भास्कर बहुत ही मितभाषी लेकिन हमेशा गुमसुम रहता. अपने में सीमित रहता.

वीणा ने बहुत कोशिश की कि उन में नजदीकियां बढ़ें पर यह इकतरफा प्रयास था. भास्कर का हृदय मानो एक दुर्भेध्य किला था. वह उस के मन की थाह न पा सकी थी. उसे समझ पाना मुश्किल था. पति और पत्नी में जो अंतरंगता व आत्मीयता होनी चाहिए, वह उन दोनों में नहीं थी. दोनों में दैहिक संबंध भी नाममात्र का था. दोनों एक ही घर में रहते पर अजनबियों की तरह. दोनों अपनीअपनी दुनिया में मस्त रहते, अपनीअपनी राह चलते.

दिनोंदिन वीणा और उस के बीच खाई बढ़ती गई. कभीकभी वीणा भविष्य के बारे में सोच कर चिंतित हो उठती. इस शुष्क स्वभाव वाले मनुष्य के साथ सारी जिंदगी कैसे कटेगी. इस ऊबभरे जीवन से वह कैसे नजात पाएगी, यह सोच निरंतर उस के मन को मथते रहती.

एक दिन वह अपने मातापिता के पास जा पहुंची. ‘मांपिताजी, मुझे इस आदमी से छुटकारा चाहिए,’ उस ने दोटूक कहा. अहल्या और सुधाकर स्तंभित रह गए, ‘यह क्या कह रही है तू? अचानक यह कैसा फैसला ले लिया तू ने? आखिर भास्कर में क्या बुराई है. अच्छे चालचलन का है. अच्छा कमाताधमाता है. तुझ से अच्छी तरह पेश आता है. कोई दहेजवहेज का लफड़ा तो नहीं है न?’

‘नहीं. सौ बात की एक बात है, मेरी उन से नहीं पटती. हमारे विचार नहीं मिलते. मैं अब एक दिन भी उन के साथ नहीं बिताना चाहती. हमारा अलग हो जाना ही बेहतर है.’

‘पागल न बन, बेटी. जराजरा सी बातों के लिए क्या शादी के बंधन को तोड़ना उचित है? बेटी शादी में समझौता करना पड़ता है. तालमेल बिठाना पड़ता है. अपने अहं को त्यागना पड़ता है.’

‘वह सब मैं जानती हूं. मैं ने अपनी तरफ से पूरा प्रयत्न कर के देख लिया पर हमेशा नाकाम रही. बस, मैं ने फैसला कर लिया है. आप लोगों को बताना जरूरी समझा, सो बता दिया.’

‘जल्दबाजी में कोई निर्णय न ले, वीणा. मैं तो सोचती हूं कि एक बच्चा हो जाएगा तो तेरी मुश्किलें दूर हो जाएंगी,’ मां अहल्या ने कहा.

वीणा विद्रूपता से हंसी. ‘जहां परस्पर चाहत और आकर्षण न हो, जहां मन न मिले वहां एक बच्चा कैसे पतिपत्नी के बीच की कड़ी बन सकता है? वह कैसे उन दोनों को एकदूसरे के करीब ला सकता है?’

अहल्या और सुधाकर गहरी सोच में पड़ गए. ‘इस लड़की ने तो एक भारी समस्या खड़ी कर दी,’ अहल्या बोली, ‘जरा सोचो, इतनी कोशिश से तो लड़की को पार लगाया. अब यह पति को छोड़छाड़ कर वापस घर आ बैठी, तो हम इसे सारा जीवन कैसे संभाल पाएंगे? हमारी भी तो उम्र हो रही है. इस लड़की ने तो बैठेबिठाए एक मुसीबत खड़ी कर दी.’

‘उसे किसी तरह समझाबुझा कर ऐसा पागलपन करने से रोको. हमारे परिवार में कभी किसी का तलाक नहीं हुआ. यह हमारे लिए डूब मरने की बात होगी. शादीब्याह कोई हंसीखेल है क्या. और फिर इसे यह भी तो सोचना चाहिए कि इस उम्र में एक तलाकशुदा लड़की की दोबारा शादी कैसे हो पाएगी. लड़के क्या सड़कों पर पड़े मिलते हैं? और इस में कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जो इसे कोई मांग कर ले जाएगा,’ सुधाकर बोले.

‘देखो, मैं कोशिश कर के देखती हूं. पर मुझे नहीं लगता कि वीणा मानेगी. वह बड़ी जिद्दी होती जा रही है,’ अहल्या ने कहा.

‘‘तभी तो भुगत रही है. हमारा बस चलता तो इस की शादी कभी की हो गई होती. हमारे बेटों ने हमारी पसंद की लड़कियों से शादी की और अपनेअपने घर में खुश हैं, पर इस लड़की के ढंग ही निराले हैं. पहले प्रेमविवाह का खुमार सिर पर सवार हुआ, फिर विदेश जा कर पढ़ने का शौक चर्राया. खैर छोड़ो, जो होना है सो हो कर रहेगा.’’ बूढ़े दंपती ने बेटी को समझाबुझा कर वापस उस के घर भेज दिया.

एक दिन अचानक हृदयगति रुक जाने से सुधाकर की मौत हो गई. दोनों बेटे विदेश से आए और औपचारिक दुख प्रकट कर वापस चले गए. वे मां को साथ ले जाना चाहते थे पर अहल्या इस के लिए तैयार नहीं हुई.

अहल्या किसी तरह अकेली अपने दिन काट रही थी कि सहसा बेटी के हादसे के बारे में सुन कर उस के हाथों के तोते उड़ गए. वह अपना सिर धुनने लगी. इस लड़की को यह क्या सूझी? अरे, शादी से खुश नहीं थी तो पति को तलाक दे देती और अकेले चैन से रहती. भला अपनी जान देने की क्या जरूरत थी? अब देखो, जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है. अपनी मां को इस बुढ़ापे में ऐसा गम दे दिया.

प्रिया अहूजा ने तारक मेहता शो पर वापसी को लेकर दिया ये बड़ा बयान

सीरियल तारक मेहता से रीटा रिपोर्टर काफी लंबे समय से गायब है, जिसे लेकर एक फैंस ने उनसे सवाल किया है कि आप काफी लंबे समय से शो से क्यों गायब है तो उन्होंने जवाब देते हुए बहुत कुछ कहा है.

उनसे सवाल किया गया है कि आप काफी लंबे समय से गायब क्यों है और आपके सेट पर गलत तरह से बर्ताव किया जाता है उसे लेकर आप क्या कहेंगी. जिसपर रीटा रिपोर्टर ने जवाब दिया है. रीटा ने जवाब देते हुए कहा है कि असित कुमार मोदी और जतिन भाई मेरे छोटे भाई जैसे हैं.

प्रिया ने आगे कहा कि जब मालवा ने शो छोड़ा तो आसित भाई को मैसेज किया, कई बार ये पूछने के लिए कि मेरा ट्रैक क्या है , आगे उसने बताया कि असित मोदी ने शो छोड़ने वाले व्यक्ति को कई बार फोन किया है कि आगे क्या करना है,

रीटा ने बताया कि मैंने सोहिल को फोन करके बताया कि असित जी ने मुझे ट्रैक करने की कोशिश किया है, हालांकि मैं अभी उन्हें कोई रिप्लाई नहीं दी हूं.

साथ ही प्रिया ने जेनिफर मिस्त्री की भी तारीफ की की वह सेट पर सबका ध्यान रखती थीं, कैसे वह सबके लिए खड़ी रहती थीं.

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