प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हजारों करोड़ से बने नए संसद भवन का धार्मिक तामझामों से उद्घाटन तो कर दिया पर उन्होंने जो भवन तैयार किया है वह वैसा ही है जैसा पुराना संसद भवन, जो पूरे देश की एक आवाज था, एक चाहत था, एक लगाव था. नया भवन एक आशा का, एक विश्वास का प्रतिनिधित्व नहीं करता, फिलहाल अभी ऐसा प्रतीत होता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिद कर खुद इस भवन का उद्घाटन कर के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपमानित करने के साथ इस नए भवन का दिल निकाल लिया और इसे एक पार्टी का, एक सोच का, एक कट्टरपंथी का प्रतीक बना डाला है.

पुराना संसद भवन पुराना हो गया है, इसलिए नए की जरूरत थी, यह सच नहीं है. जिस देश में सैकड़ों साल पुराने बने भवन ठाठ से सिर उठाए खड़े हैं, वहां आधुनिक तकनीक से बना गोल संसद भवन खंडहर हो रहा था, यह कोई मानने को तैयार नहीं है. जब वह संसद भवन बन रहा था तब कनाट प्लेस भी बन रहा था और उस के भवन आज भी वैसे ही हैं जबकि वे निजी पैसों से बने थे.

नरेंद्र मोदी ने जिद कर के नया संसद भवन बनवा लिया. पर उन की इस जिद कि उस का उद्घाटन वही करेगा जो संवैधानिक पदों की वरिष्ठता में नंबर 3 पर है यानी वे खुद, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के बाद,  से नारज हो कर 20 विरोधी दलों ने उद्घाटन समारोह का बहिष्कार कर सही किया है. यह एक पार्टी का चुनावी जीत का प्रतीक है. वहीं, जैसे पुराने संसद भवन ने अंगरेजी राज के चलने की गारंटी नहीं दी थी, नया संसद भवन कैसा भी हो, उद्घाटन करने वालों को कोई गारंटी नहीं देता. यह कोई मुगलकालीन भवन नहीं जिसे बनाने वालों की कई पीढिय़ों ने इस्तेमाल किया था.

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