यह भारत ही है, जहां किसी दूल्हे की बारात पर लोग पत्थर बरसाते हैं. अगर यह यह खबर मीडिया में चली तो भारत की छवि जंगल में रहने वाले उस समुदाय, समाज जैसी दिखाई देगी जो सभ्यता से कोसों दूर है. मगर हम जानते हैं कि भारत को आजाद हुए लंबा समय बीत गया है और हमारे यहां एक संविधान है, लोकतंत्र है. मगर इन सब के बावजूद एक दलित दूल्हे की बारात पर दबंगों द्वारा पत्थरों की बारिश करना कई सवाल खड़े करता है जिस का जवाब फिर हमें ढूंढ़ना ही होगा.

क्या आप आजादी के अमृत महोत्सव के समयकाल में यह सोच सकते हैं कि देश में किसी गांव में दलित दूल्हे की बारात पर सिर्फ इसलिए पत्थरों की बारिश हो जाए कि वह दलित है? उसे मानसम्मान और अभिमान के साथ जीने का कोई अधिकार नहीं है?

एक कानून एक संविधान

यह सारा देश और दुनिया जानती है कि देश में एक संविधान है, नियमकायदे हैं, पुलिस है, शासनप्रशासन है मगर इन के बावजूद दलित समाज अपने अधिकारों के लिए आज भी सरकार की तरफ क्यों देख रहा है?

कल्पना कीजिए कि देश में लोकतंत्र नहीं होता तो क्या हालात होते. एक दलित की बारात को जिले का पुलिस अधीक्षक और पुलिस की पूरा दस्ता सुरक्षा देता है. मगर इन सब के बावजूद दबंग बाज नहीं आते और पत्थर चलाने लगते हैं. इस का सीधा सा मतलब यह है कि कानून को हम नहीं मानते और आज भी उस पुरानी विचारधारा को ढो रहे हैं जिस में दलित सिर ऊंचा कर के चलने का अधिकार नहीं रखता। इस का सीधा सा मतलब यह है कि उच्चवर्ग के कुछ लोगों में अभी भी सीनाजोरी खत्म नहीं हुई है। ऐसे में आवश्यकता है कि कानून के सहीसही पालन कराने और जागरूकता की. ‌‌ ‌

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...