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शिक्षा विशेष: पेरैंट्स पर बढ़ता होस्टल फीस का खर्च

अच्छी शिक्षा मिले तो मातापिता बच्चों को दूर भेजने में संकोच नहीं कर रहे लेकिन ऐसा करने से उन पर पढ़ाई के खर्च के अतिरिक्त होस्टल फीस व रहनेखाने के खर्चों का बोझ भी पड़ता है जो उन पर डबल मार से कम नहीं. देशभर में पढ़ाई के मकसद से छात्र एक शहर से दूसरे शहर जाते हैं. इस में से बड़ी तादाद छोटे शहरों से निकल महानगरों की तरफ जाती है, जहां पढ़ाई के बड़ेबड़े हब बने हुए हैं. वहां जा कर छात्रों के पेरैंट्स को बच्चों के कोर्स के लिए भारीभरकम फीस तो चुकानी पड़ती ही है, साथ ही, उन के रहनेखाने के लिए बंदोबस्त भी करना पड़ता है जो उन पर डबल मार से कम नहीं.

22 वर्षीय नितेश दिल्ली के बलजीत नगर इलाके में रहता है. नितेश इस इलाके से निकले उन गिनेचुने लड़कों में से है जो पढ़ाई के लिए नोएडा स्थित शारदा जैसी महंगी यूनिवर्सिटी तक पहुंचा है. दरअसल मजदूर आबादी वाला यह इलाका कच्ची कालोनियों से घिरा हुआ है. यह पूरा इलाका पहाड़ पर बसा है, इसे दिल्ली की पहाड़ी भी कहा जाता है. यहां पास में काली घाटी रोड है जो जेएनयू के पीएसआर रौक की ऊंचाई के लगभग बराबर है. नितेश के परिवार की आर्थिक स्थिति यहां बाकियों के मुकाबले ठीकठाक है तो बेटे की ख्वाहिश को वे मना न कर सके. मगर यह स्थिति इतनी भी मजबूत नहीं कि बेटे को बीबीए कराने के लिए 10 लाख रुपए जैसी बड़ी रकम वे दे पाते.

उन्होंने अपने रिश्तेदारों से थोड़ाबहुत उधार लिया. लेकिन इतना ही काफी नहीं, 10 लाख रुपए के शैक्षणिक खर्च के इतर परिवार वालों के सामने बच्चे के होस्टल, कपड़ालत्ता, घूमनाफिरना आदि खर्चे भी मुंहबाए खड़े हो गए. नितेश बताता है कि वह अपने इलाके में संपन्न परिवारों में जरूर आता है पर स्थिति इतनी भी मजबूत नहीं कि उस के परिवार वाले इतने बड़े खर्चे उठा पाएं. वह कहता है, ‘‘हमारे जैसे परिवार के लिए एक इंसिडैंट ही काफी है अर्श से फर्श तक आने के लिए और अगर मैं अपनी पढ़ाई से कुछ अच्छा नहीं कर पाया तो कहीं यह वह इंसिडैंट न बन जाए, क्योंकि पापा ने अपनी सेविंग का एक बड़ा हिस्सा मेरी पढ़ाई में लगा दिया है.’’

2017 में नितेश ने शारदा यूनिवर्सिटी से ‘बीबीए इन बिजनैस इंटैलिजैंस एंड डाटा एनालिटिक्स’ में दाखिला लिया था. तब इस की फीस तकरीबन एक साल की 1,72,000 रुपए थी, जो कोर्स बढ़ने के साथ 5 प्रतिशत की दर से बढ़ती रही. इस के अलावा नितेश ने बताया कि वहां पढ़ते हुए उस ने वहीं कैंपस में होस्टल लिया जिस का सालाना खर्चा 85 हजार से 1 लाख रुपए का था. सरिता पत्रिका ने शारदा यूनिवर्सिटी की औफिशियल वैबसाइट खंगाली. जिस में 3 साल के बीए पौलिटिकल साइंस ग्रेजुएशन कोर्स की फीस तकरीबन साढ़े 3 लाख रुपए थी. हैरानी यह कि जितनी इस कोर्स की फीस थी, लगभग उतना ही खर्चा एक छात्र को वहां होस्टल के लिए उठाना पड़ता है. वहां सरोजिनी, विवेकानंद, मंडेला और वर्धमान नाम से 4 होस्टल हैं,

जिन में से 2 लड़कियों के व 2 लड़कों के हैं. ये होस्टल एसी और नौनएसी कैटेगरी में बंटे हुए हैं. वैबसाइट के अनुसार, 3 सीटर एसी रूम का एक छात्र को 1,61,000 रुपए प्रतिवर्ष देना पड़ता है, 2 सीटर बिना अटैच्ड टौयलेट के 1,91,000 रुपए पड़ता है, जबकि अटैच्ड टौयलेट के 1,91,000 रुपए पड़ता है. वहीं अगर नौन एसी में जाते हैं तो 3 सीटर का 1,08,000 रुपए, 2 सीटर अटैच्ड टौयलेट के साथ 1,28,000 रुपए और सिंगल सीटर रूम का 1,23,000 रुपए पड़ता है.

इस में सब से ज्यादा लड़कियों के मंडेला होस्टल की फीस है जो 2,20,000 रुपए तक जाती है, जिस के बारे में सोचना तक एक आम परिवार के वश का नहीं. नितेश कहता है, ‘‘जब मैं शारदा यूनिवर्सिटी में था तो शुरू के 1 महीने मैट्रो और लोकल ट्रांसपोर्ट से ट्रैवल किया, लेकिन इस में मेरा 3 घंटे जाने के और 3 घंटे आने के खर्च हो जाते थे. मैं ने तय किया कि होस्टल में रहूंगा. होस्टल में मैस की फैसिलिटी जुड़ी हुई थी. लेकिन वहां का खाना इतना उबाऊ होता था कि कुछ ही दिन में मैं ऊब गया. अगर आप होस्टल में रह रहे हैं तो यह मान कर चलिए कि जितना खर्चा आप दे रहे हैं उस में 3-4 हजार रुपए तो ऊपर का खर्चा करना पड़ेगा.’’

सरिता पत्रिका ने शारदा के अलावा ग्रेटर नोएडा की अन्य यूनिवर्सिटी में फोन पर बात कर वहां के कोर्स फीस और होस्टल चार्जेज के बारे में जानकारी ली. भारत की टौप प्राइवेट यूनिवर्सिटीज में से एक एमिटी यूनिवर्सिटी में बीए जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन की फीस एक साल की 1,55,500 रुपए है, जैसेजैसे कोर्स बढ़ता है उस अनुसार 5 प्रतिशत फीस भी बढ़ती है. होस्टल की बात की जाए तो वहां एक साल की नौन एसी रूम की फीस 85,000 रुपए है जिस में 3-4 स्टूडैंट्स अड़े रहते हैं. कहने को कौमन लौंड्री है लेकिन लौंड्री तभी काम करती है जब जेब में अतिरिक्त खर्चा देने की कैपेसिटी आप की हो. इस के अलावा, मैस का अलग खर्चा है, जिस में 6-7 हजार रुपए महीने का लग जाता है. ज्यादातर स्टूडैंट्स यहां मैस से खाने की जगह बाहर से ही खाना पसंद करते हैं.

इसी प्रकार 1,50,000 रुपए एसी रूम का चार्ज वसूला जाता है. प्राइवेट होस्टल खर्च को ले कर नितेश कहता है, ‘‘शैक्षणिक फीस भरने के लिए आदमी तैयार हो जाता है जोकि जायज है हालांकि बहुत ज्यादा होती है, लेकिन इस के अलावा दूसरे खर्च जो झेले नहीं जाते वे रहने व खाने के हैं जो एक्स्ट्रा और फालतू खर्च होने का एहसास कराते हैं.’’ नितेश की बात सही भी है. एनसीआर के 286 एकड़ रूरलअर्बन इलाके में फैली शिव नादर यूनिवर्सिटी अपने कोर्स बीएससी रिसर्च फाइनैंस एंड इकोनौमिक्स के लिए छात्रों से 4 लाख रुपए फीस के तौर पर प्रतिवर्ष वसूलती है. इस के अलावा वहां होस्टल मैंडेटरी है. यानी आप चाहो या न चाहो, होस्टल लेना ही पड़ेगा जिस की फीस तकरीबन 1 लाख 70 हजार रुपए पड़ जाती है.

अगर इसी की तुलना सरकारी होस्टलों से की जाए तो देशभर में जहां केंद्र सरकार की यूनिवर्सिटीज हैं वहां होस्टल के खर्च प्राइवेट होस्टल के मुकाबले काफी कम हैं. बात अगर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की हो जो एनआईआरएफ की रैंकिंग में तीसरे नंबर पर है तो उस की होस्टल फीस महीने की सिर्फ 3,000 रुपए है. जिस में मैस का खर्चा 2,700 रुपए महीना है. हैदराबाद विश्वविद्यालय में 1,850 रुपए होस्टल फीस और मैस चार्ज 1,800 रुपए के लगभग है. इसी तरह प्रख्यात जेएनयू में होस्टल चार्ज 7,800 रुपए और मैस चार्ज 2,500 रुपए है. हालांकि धीरेधीरे सरकार प्रायोजित होस्टल के खर्चे भी बढ़ने लगे हैं. बीते बीएचयू आंदोलन और जेएनयू आंदोलन हमारे सामने हैं. बात सिर्फ हायर एजुकेशन की नहीं है. आजकल कंपीटिशन इतना बढ़ गया है कि स्कूली शिक्षा के लिए बड़ेबड़े कोचिंग सैंटर खुल गए हैं.

कुछ इलाके, जैसे कोटा, मुखर्जी नगर, लक्ष्मी नगर, पुणे, देहरादून तो कोचिंग हब के नाम से जाने जाते हैं जहां छात्र 12वीं के बाद क्या करेंगे, उस के लिए तैयारी स्कूल के समय से ही शुरू कर देते हैं. गौरतलब है कि भारत में हर साल डेढ़ करोड़ के लगभग छात्र 12वीं बोर्ड का एग्जाम देते हैं. इन में से लाखों की संख्या में छात्र हैं जो एक शहर से दूसरे शहर पढ़ाई के लिए जाते हैं. ये छात्र प्राइवेट यूनिवर्सिटी के लिए किसी चांदी से कम नहीं जिन से हर तरह से पैसा झटका जाता है. पेरैंट्स में भी बच्चे के कैरियर को ले कर इन्सिक्यौरिटी जन्म लेने लगी है जिस के चलते वे स्कूल के समय से ही स्कूल के बाद की तैयारी शुरू करवाने लगे हैं. इस में चाहे कितना ही अतिरिक्त खर्च उन्हें उठाना पड़े, वे कर्जा ले कर उठाने को तैयार हो जाते हैं. इसी चीज को जानने के लिए इस प्रतिनिधि ने कोटा के बड़े कोचिंग सैंटरों से बात कर जानकारी ली. कोचिंग संचालकों, प्राइवेट होस्टल संचालकों व स्टूडैंट्स से बात की तो पता चला कि कैसे भारीभरकम फीस और रहनेखाने के चलते छात्रों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है. नाम न बताने की शर्त पर कोटा में नीट की तैयारी कर रहे एक छात्र ने बताया कि कोचिंग फीस निकालने के बाद एक स्टूडैंट के हर माह करीब 15 हजार रुपए खर्च हो जाते हैं.

होस्टल की फीस औसतन 10 हजार रुपए होती है, जिस में अमूमन मैस का खर्च भी शामिल होता है. हालांकि कई जगह होस्टल के साथ मैस का खर्चा नहीं जुड़ा होता. इस के अलावा फोन, स्टेशनरी और कपड़ों का खर्चा होता है. इसी सिलसिले में कोटा के बड़े कोचिंग सैंटरों में से एक एलेन कोचिंग सैंटर से बात की. एलेन कोचिंग सैंटर बताता है कि उस के यहां नीट की तैयारी के लिए सालभर में 1,33,000 रुपए फीस ली जाती है. हालांकि सैंटर यह भी बताता है कि उस ने ‘एलेन स्कौलरशिप’ की व्यवस्था की है जिस में 90 प्रतिशत तक फीस माफ हो जाती है पर अंदर खाते यह हर कोई जानता है कि यह इक्कादुक्का छात्रों के लिए होती है जिस का मकसद 1-2 को फ्री में पढ़ा कर वाहवाही लूटना और छात्रों के पेरैंट्स को आकर्षित करना होता है. एलेन कहता है कि वह यह फीस 2 किस्तों में लेता है. पहली 86 हजार रुपए और दूसरी 46 हजार रुपए. इस में स्टडी मैटीरियल, यूनिफौर्म, वैन वगैरह के खर्च शामिल हैं.

इस के साथ वह अपने कैंपस में बने होस्टल के खर्चों का ब्योरा देता है. एलेन के मुताबिक, होस्टल का खर्चा प्रति छात्र 10-15 हजार रुपए लिया जाता है, इस में मैस का खर्चा अलग से पे करना पड़ता है. ऐसे ही जेईई की तैयारी की फीस को ले कर ‘ब्रिलियंट ट्यूटोरियल’ कानपुर से बात हुई तो वहां रिसैप्शन पर बैठे ए के श्रीवास्तव ने बताया कि जेईई के लिए उन का कोचिंग सैंटर 1,70,000 रुपए 11वीं क्लास के स्टूडैंट से फीस के तौर पर लेता है. वहीं होस्टल के लिए 8-15 हजार रुपए तक खर्चा बैठ जाता है. होस्टल के बारे में और जानकारी देने के लिए कहा तो ए के श्रीवास्तव ने बड़ी ईमानदारी से अपने कोचिंग सैंटर को कंपनी बताया. उन्होंने कहा, ‘‘हर किसी का लिविंग स्टैंडर्ड अलग होता है. आप लौंड्री के लिए जाओगे तो उस का अलग खर्चा अलग, मैस के लिए अलग, एसी और नौन एसी का अलगअलग. अब यह स्टूडैंट और उस के पेरैंट्स को देखना है कि वे कैसी सुविधा लेना चाहते हैं.’’ कोटा में 3,300 के आसपास होस्टल हैं. पीजी की बात की जाए तो डेढ़ लाख से ज्यादा सिंगल रूम हैं.

हर साल वहां करीब 50,000 स्टूडैंट्स पढ़ाई करने आते हैं और इतने ही यहां पहले से रह रहे होते हैं. ऐसे में कोटा में होस्टल में पढ़ाना मातापिता की प्रायोरिटी बन जाती है क्योंकि बच्चों की सेफ्टी पेरैंट्स जरूरी सम झते हैं. बहुत से होस्टल स्वतंत्र हैं, यानी किसी कोचिंग सैंटर से जुड़े नहीं हैं और बहुत से होस्टलों का संबंध सीधा कोचिंग सैंटर से होता है. यानी होस्टल के संचालकों और कोचिंग सैंटर के बीच कोई एग्रीमैंट रहता है. लेकिन एक तरफ जहां पेरैंट्स को कोर्स की फीस तनाव में डाल देती है तो दूसरी तरफ होस्टल की फीस डबल मार देती है. ऊपर से हर साल कोटा में होस्टल और पीजी का किराया बढ़ना चिंता का विषय है. कोटा में पढ़ रहे सूर्यकुमार का कहना था कि बहुत बार बीच कोर्स में होस्टल का किराया बढ़ा दिया जाता है.

ऐसा इसलिए कि कोचिंग सैंटर, प्रशासन और होस्टल संचालकों का आपस में कोई समन्वय नहीं है.’’ हालांकि ऐसा नहीं है कि होस्टल की फीस बढ़ने का कोई नयानया मसला हो. हर साल वहां की फीस बढ़ाई जाती है. वहां की होस्टल एसोसिएशन से जब पिछले साल होस्टल में फीस बढ़ने के संबंध में सवाल किए गए थे तो उन्होंने जवाब में कहा था कि महंगाई भी बढ़ी है तो फीस भी बढ़ेगी. यह हर साल बढ़ता है. बीते साल कोविड-19 के थे जिस ने उन पर असर डाला. पढ़ाई का खर्च छात्रों और उन के पेरैंट्स पर लादा जा रहा है. इस बो झ को लादने में सरकार भी पीछे नहीं है.

पिछले साल जीएसटी काउंसिल की अहम बैठक हुई थी. उस बैठक में एक हजार रुपए प्रतिदिन की एकोमोडेशन सर्विस को भी 12 प्रतिशत जीएसटी के दायरे में लाने का फैसला लिया गया था, जिसे 18 जुलाई से लागू कर दिया गया. जीएसटी की नई दरों के हिसाब से यूनिवर्सिटी, इंस्टीट्यूट और कालेजों के होस्टलों को भी जीएसटी के दायरे में लिया गया. पेरैंट्स के लिए यह बड़ी मुश्किल वाली स्थिति है कि एक तरफ बेहतर पढ़ाई के लिए उन्हें बच्चों को अपने से दूर भेजना पड़ रहा है, दूसरी तरफ, कोर्स के लिए महंगी फीस भरनी पड़ती है और सोने पर सुहागा यह कि दूरदराज यूनिवर्सिटीज और कोचिंग सैंटरों में भेजने से (प्राइवेट-सरकारी) बच्चों के रहनेखाने के अलावा कई अतिरिक्त खर्चे बढ़ते जा रहे हैं.

तो बच्चा बनेगा वैल बिहेव्ड

रीटा अपने 5 साल के बच्चे के साथ अपनी सहेली के घर गई. वहां पर बच्चे ने प्लेट में रखी सारी चीजें उठा कर अपनी जेब में रख लीं और फिर रीटा की सहेली की 4 साल की बेटी को धक्का दे दिया. रीटा के समझाने पर वह उस से भी ऊंची आवाज में बात करने लगा. बच्चे के इस व्यवहार से रीटा को बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई.

जब आप अपने छोटे बच्चे को ले कर किसी के घर जाती हैं तो वह वहां किस तरह का व्यवहार करेगा, यह समझ पाना मुश्किल होता है. कई बार वह घर में अच्छा व्यवहार करता है लेकिन बाहर जाने पर अजीब सा व्यवहार करने लगता है. इसे वह अपने परिवार से ही सीखता है. आप घर में जिस तरह से किसी से बात करती हैं, बच्चा उसे ही फौलो करता है. कई बार वह ध्यान आकर्षित करने के लिए भी उलटीसीधी हरकतें करता है.

पेरैंटिंग का अर्थ अपने बच्चे की हर जायजनाजायज मांग को पूरा करना नहीं, बल्कि अपनी सही बात को बच्चे के नजरिए का ध्यान रखते हुए उसे उसी तरीके से सिखाना है जैसे वह चाहता है. आप अपने बच्चे को अच्छीबुरी बातों की जानकारी तो देती हैं लेकिन उसे अपने से छोटों और बड़ों से संयमित व्यवहार कैसे करना है जैसी बुनियादी बातों की सीख देना भूल जाती हैं. इस वजह से वह कब किस से कैसा व्यवहार करना है जैसी बातें वह नहीं सीख पाता.

कुछ छोटीछोड़ी बातों का ध्यान रख कर आप अपने बच्चे को संयमित व्यवहार करना सिखा सकती हैं.

खुद को बदलें

अपने बच्चे को वैल बिहेव्ड बनाने के लिए आप को खुद को भी बदलना होगा. आप अपने परिवार के साथ जैसा व्यवहार करती हैं, आप का बच्चा भी वैसा ही व्यवहार करना सीखेगा. आप चाहती हैं कि आप का लाड़ला अपने बड़ों की इज्जत करे, उन से ऊंची आवाज में बात न करे तो इस के लिए आप को परिवार की इज्जत करनी होगी. अपने सासससुर और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ मैत्रीपूर्ण और सम्मानपूर्ण व्यवहार करना होगा. यकीन मानिए अगर आप ऐसा करेंगी और फिर अपने बच्चे से कहेंगी कि वह अपने बड़ों से अच्छी तरह से बात करे या फिर झूठ न बोले, तो वह वैसा ही करेगा.

बच्चे को समझाने के लिए आप को खुद में बदलाव लाना होगा, क्योंकि बच्चे की समझ इतनी विकसित नहीं होती है कि वह आप के कहे को समझ कर उसे व्यवहार में लाए. आप अपने बच्चे के सामने किसी से झूठ बोल रही हैं और उस से यह अपेक्षा कर रही हैं कि वह झूठ न बोले, तो ऐसा संभव नहीं है.

अपने बनाए नियम पर कायम रहें

आप ने अपने बच्चे के लिए कुछ नियम बना रखे होंगे. मसलन, आप उसे सप्ताह में 2 बार चौकलेट देंगी या फिर वह दिन में 2 घंटों के लिए ही अपना मनपसंद कार्टून शो देख सकता है आदि. अगर आप चाहती हैं कि आप का बच्चा अपने जीवन में नियमों का पालन करे तो इस के लिए आप को भी अपने बनाए रूल्स को फौलो करना होगा.

ऐसा नहीं है कि जब आप का मूड हो या फिर आप किसी काम में बिजी हों, तो नियमों में ढील दे दें जैसाकि आप घर या औफिस का जरूरी काम कर रही हैं और आप का बच्चा आप को डिस्टर्ब कर रहा है तो आप ने उस समय भी उस के लिए टीवी चला दिया जो उस के टीवी देखने का समय नहीं है. इस तरह की बातों से बच्चा कन्फ्यूज्ड होता है. जो रूल्स बना रही हैं, उन पर अडिग रहें. अगर आप संयुक्त परिवार में रहती हैं तो भी परिवार के सदस्यों से इस बाबत बात कर लें कि वे आप के बच्चे को नियमों का पालन करने में मदद करें.

मारनेपीटने से करें तोबा

आप की आदत अपने बच्चे को बिना बात के पीटने की है, तो अपनी इस आदत पर तुरंत विराम लगा दें, क्योंकि आप मारपीट कर बच्चे को कुछ सिखाने के बजाय उस से अपने संबंधों को खराब ही कर रही हैं. अगर आप को उस की किसी बात पर गुस्सा आ रहा है तो उसे मारने के बजाय प्यार से समझाएं कि वह जो कह रहा है वह गलत है.

इस के अलावा उसे डांटते समय गालीगलौज न करें. अगर आप उस से गालीगलौज करती हैं तो इन बातों से बच्चे के मन में व्रिदोह की भावना पनपती है. छोटा हो या बड़ा, हर किसी को इज्जत की जरूरत होती है. आप चाहती हैं कि आप का बच्चा आप की और परिवार के दूसरे सदस्यों की इज्जत करे तो आप भी उसे पूरा सम्मान दें.

गलत मांगों को न करें पूरा

अपने बच्चे को प्यार करना अच्छी बात है लेकिन इस का अर्थ यह नहीं कि आप उस की जिद को भी पूरा करें. कभीकभार जब आप मार्केट जाती हैं या फिर कोई घर में आ जाता है तो उस समय बच्चा फालतू की जिद करने लगता है. वह बेकार में गुस्सा दिखाने लगता है. अगर आप उस की बात को पूरा करेंगी तो उस में अपनी बात को पूरा कराने के लिए जिद करने की आदत विकसित होगी जो कि उस के संयमित विकास के लिए ठीक नहीं है. सो, उस की जिद को इग्नोर करें. एकदो बार ऐसा करने से उसे समझ आ जाएगा कि जिद कर के सारी मांगों को पूरा नहीं कराया जा सकता है.

ढेर सारा प्यारदुलार और खूब सारी बातें

बच्चे की सही परवरिश के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उस से खूब सारी बातें करें. जब वह स्कूल से आता है तो उस ने स्कूल में क्या किया, उसे स्कूल में कोई दिक्कत तो नहीं है या फिर उसे क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं जैसी बातें करें. इस से आप के बच्चे में आप के साथ अपनी बातें शेयर करने की हिम्मत आएगी.

बच्चा गलत व्यवहार सिर्फ आप का अटेंशन पाने के लिए करता है. इस से बचने के लिए जब भी वह कुछ अच्छा करता है, उस की तारीफ करें. उसे खूब सारा प्यार करें और गले लगाएं. इस से बच्चे के मन में सुरक्षित होने का एहसास आएगा और वह अच्छा व्यवहार करना सीखेगा.

इन बातों का भी रखें ध्यान

बच्चे को वैल बिहेव्ड बनाने के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप उस के सम्मान का ध्यान रखें. अगर उस से कोई गलती हो गई है, तो इस के लिए उसे सामने डांटने के बजाय अकेले में समझाने की कोशिश करें.

आप जिस तरह का व्यवहार अपने बच्चे से चाहती हैं, उस के साथ वैसा ही व्यवहार करें. अगर यह कहा जाए कि बच्चा बहुत बड़ा कौपीकैट होता है, तो गलत नहीं होगा. अगर आप चाहती हैं कि आप के बच्चे में पढ़ने की आदत विकसित हो, तो इस के लिए आप को खुद भी पढ़ना होगा.

अपने बच्चे में किसी काम के लिए आभार जताने और गलती को महसूस करने के लिए उसे थैंक्यू और सौरी जैसे छोटेछोटे शब्दों का महत्त्व बताएं. इस के लिए अगर उस ने आप का छोटा सा भी काम किया है तो आप उसे थैंक्यू कहना न भूलें और गलती होने पर उसे सौरी बोलने से न हिचकें. आप के द्वारा किए गए ये छोटेछोटे प्रयास आप के लाड़ले को वैल बिहेव्ड बनाने में मददगार साबित होंगे.

सैक्स एजुकेशन

बच्चे के सही विकास के लिए यह बेहद जरूरी है कि आप के बच्चे के साथ ऐसा कुछ न हो, जिस की वजह से उस का बचपन अनायास खत्म हो जाए. हर जगह होने वाले चाइल्ड एब्यूज को देखते हुए यह बेहद जरूरी है कि आप अपने बच्चे को समयसमय पर सैक्स एजुकेशन से संबंधित जानकारी देती रहें.

उसे यह बताएं कि अगर कोई उस के प्राइवेट पार्ट को छूने की कोशिश करता हो, तो वह इस बारे में आप से बताए. बच्चा आप से अपने मन की बातें बांट सके, इस के लिए उसे सहज बनाना जरूरी है, ताकि कोई उस के साथ किसी किस्म का दुराचार न कर सके.

लेखिका- राजलक्ष्मी त्रिपाठी

Summer Special: गरमी के मौसम में खाएं ये 6 टेस्टी सलाद

खाने के लिए सलाद एक तैयार डिश है जिस में हरी सब्जियों, पत्तेदार सब्जियों, दाल, अनाज, अंकुरित चीजों, फलों और इच्छानुसार मेवा आदि को मिलाया जाता है. यह तैयार भोजन को बैलेंस करने में सहायता करता है. इस का सेवन किसी भी समय किया जा सकता है. फिर?भी खाने से पहले इस का सेवन एपिटाइजर की तरह काम करता है. खाने के साथ इस का सेवन भोजन के जायके को बढ़ाता है. खाने के बाद इस का सेवन खाने को पेट में सैट करने का काम करता है. इस का सेवन डेजर्ट के रूप में भी किया जाता है. इस में मौजूद रेशा हमारे खाने की पौष्टिकता को बढ़ा देता है. इसलिए सलाद का सेवन अवश्य करना चाहिए.

  1. काला चना सलाद

सामग्री

2 कप उबले काले चने, 1/2 छोटा चम्मच राई, चुटकीभर हींग पाउडर, 2 छोटे चम्मच वैजीटेबल औयल, 8-10 करी पत्ता, 1 छोटा चम्मच नीबू का रस, 1/4 कप कद्दूकस किया ताजा नारियल, 1 कप कटा टमाटर, 1/2 कप छोटेछोटे टुकड़ों में कटा खीरा, नमक, चाट मसाला स्वादानुसार.

विधि 

तेल गरम कर के हींग, राई व करी पत्ते का तड़का लगा कर उस में उबले चने डालें. 2 मिनट उलटेंपलटें व नमक, चाट मसाला और नीबू का रस मिलाएं. सलाद थोड़ा ठंडा हो जाए तो उस में बाकी बची सामग्रियां मिला कर सर्व करें.

2. पत्तागोभी सलाद

सामग्री

1/4-1/4 कप बारीक कतरी हरी पत्तागोभी, लाल पत्तागोभी, हरे या काले अंगूर, 2 बड़े चम्मच कद्दूकस की हुई गाजर, सजावट के लिए चैरी व टमाटर. ड्रैसिंग की सामग्री :  2 बड़े चम्मच फ्रैश हंग कर्ड, 1/2 छोटा चम्मच पिसी चीनी, 1/4 छोटा चम्मच मस्टर्ड पाउडर और 2 छोटे चम्मच दूध, नमक स्वादानुसार.

विधि  

सभी सामग्रियां मिलाएं और फ्रिज में ठंडा करें. ड्रैसिंग भी ठंडी करें. सलाद में मिक्स कर के सर्व करें.

3. कैरट माल्टा सलाद

सामग्री

3/4 कप मोटी कद्दूकस की हुई गाजर, 1/2 कप माल्टा की फांकें छिली हुई, 1/2 कप हंग कर्ड, 2 बड़े चम्मच माल्टा जूस, 1/4 कप बारीक कटे बीजरहित खजूर, नमक और काली मिर्च चूर्ण स्वादानुसार और अनार के दाने सजावट के लिए.

विधि   

हंग कर्ड में माल्टा जूस और नमक मिला कर फेंटें. सभी चीजों को मिक्स करें और उस पर हैंग कर्ड डालें. काली मिर्च चूर्ण बुरकें और अनार के दानों से सजाएं व ठंडाठंडा सर्व करें.

4. फ्रूट सलाद

सामग्री

1 सेब छिलकासहित क्यूब में कटा, 2 बड़े चम्मच अनार के दाने, 6 नग माल्टा की छिली व बीजरहित फांकें, 1/4 कप बारीक कटा पालक और 1/4 कप स्प्राउटेड मेथीदाना, नमक स्वादानुसार.

ड्रैसिंग की सामग्री : 1/2 कप पपीता क्यूब में कटा, 3 बड़े चम्मच हैंग कर्ड, 1/4 छोटा  चम्मच सफेद मिर्च चूर्ण.

विधि 

ड्रैसिंग की सामग्री मिला कर ब्लैंडर में एकसार करें. सलाद की सभी सामग्रियों को मिला कर फ्रिज में ठंडा करें. सर्व करते समय ड्रैसिंग मिला कर सर्व करें.

5. हनी सलाद

सामग्री

1 कप जौ का दलिया, 1-1 बड़ा चम्मच बारीक कटी लाल शिमला मिर्च, पीली शिमला मिर्च, क्यूब में कटा 1 टमाटर, 1/2-1/2 कप पार्सले बारीक कटा, हरा प्याज और कुछ माल्टा या संतरे की फांकें.

ड्रैसिंग की सामग्री : 1 बड़ा चम्मच शहद, 1 छोटा चम्मच नीबू का रस, 2 छोटे चम्मच औलिव औयल, 1 छोटा चम्मच चीनी और नमक स्वादानुसार.

विधि

ड्रैसिंग की सामग्री मिला कर ब्लैंडर में एकसार करें. सलाद की सभी सामग्रियों को मिलाएं व ठंडाठंडा सर्व करें.

6. सलाद विद पास्ता

सामग्री

1-1 कप उबला पास्ता, पालक, क्यूब में कटी गाजर, 1/2 कप अंकुरित मूंग, क्यूब में कटा पनीर, ब्लांच क्यूब में कटा बेबीकौर्न, 1 बड़ा चम्मच हरा प्याज, कुछ ग्रीन औलिव्स, 1 कप सलाद पत्ता.

ड्रैसिंग की सामग्री : 2 बड़े चम्मच हैंग कर्ड, 1 छोटा चम्मच मिल्क पाउडर, 1 बड़ा चम्मच बारीक कटी सेलरी, नमक और ताजा कुटी काली मिर्च स्वादानुसार.

विधि  

सलाद की सामग्री मिलाएं और उस में ड्रैसिंग की सामग्री डाल कर अच्छी तरह मिक्स करें. अब तैयार एनर्जेटिक सलाद को सर्व करें.

चुनौती-भाग 3: मीना और शिल्पी में किस बात को लेकर बहस हुई थी?

शिल्पा ने मेरा परिचय उन्हें दिया, तो उन्होंने मुझे फौरन हाथ जोड़ कर नमस्ते की. मैं ने उन के नाम पूछे, फिर उन की पोशाकों की प्रशंसा करने के बाद बातचीत की डोर फिर से शिल्पा को थमा दी.

उन चारों किशोरियों के पास गपशप करने को ढेर सारा मसाला मौजूद था. पार्टी में किस स्त्री ने क्या खास पहना हुआ है, उन के बीच इस पर पहले चर्चा हुई. फिर जूही चावला की नई फिल्म पर टिप्पणियां सुनने को मिलीं मुझे. जब वे स्कूल की बातें करने लगीं तो कुछ ज्यादा समझ में न आने के बावजूद मैं मुसकराती हुई उन की मीठी आवाजों का आनंद लेती रही थी.

‘‘मैं पूड़ी ले कर आती हूं,’’ मैं ने जब ऐसा कहा, तो उन को मेरी मौजूदगी का एहसास हुआ और उन के बातचीत में रुकावट पैदा हुई.

शिल्पा की सहेलियों को मुसकराता हुआ छोड़ मैं खाने की मेज की तरफ बढ़ गई.

‘‘शिल्पा, तेरी मम्मी कितनी सीधीसादी हैं,’’ पीछे से उभरी कविता नाम की लड़की की आवाज मेरे कानों तक भी पहुंची, ‘‘स्कूल में तेरी बातें सुन कर तो हमें लगता था कि ये बहुत आधुनिक और फैशनेबल होंगी, पर ये तो बिलकुल ‘सिंपल’ हैं.’’

‘‘बोलती भी कितना कम हैं तेरी मम्मी, शिल्पा,’’ वंदना की आवाज भी मुझे साफ सुनाई पड़ी, ‘‘कितना फर्क है तुम मांबेटी में. सुंदरता तुझे उन से मिली लगती है, पर ‘स्मार्टनेस’ पापा से मिली है क्या तुझे?’’

शिल्पा ने जवाब में क्या कहा, मैं सुन नहीं पाई, क्योंकि मेरी एक परिचित महिला मुझ से बातें करने लगी थीं. फिर 2 औरतें और हमारे पास आ खड़ी हुईं. उन्हीं के साथ मैं ने बाकी का खाना खाया, स्वीट डिश ली और कौफी भी पी.

लौटने से कुछ देर पहले ही शिल्पा मेरे पास आ कर खड़ी हो गई थी. कई लोगों से विदा लेते हुए मेरी आंखें भीड़ में राजीव को तलाश रही थीं.

विदा लेने का उत्तरदायित्व शिल्पा बेहद आत्मविश्वास से निभा रही थी. मैं ने नोट किया कि अधिकतर लोगों ने शिल्पा की फिर भूरिभूरि प्रशंसा की और उसे हमारे साथ घर आने का निमंत्रण भी दिया.

फिर लौटते हुए रास्ते में शिल्पा मेरी तरफ ज्यादा ध्यान न दे कर अपने पापा से ही बतियाती रही. मैं उस की खुशी में खुश थी, पर मुझे यह भी लग रहा था कि मुझे चुनौती देने के बाद अब निर्विवाद रूप से विजय हासिल कर के मेरी बेटी मुझे अनदेखा कर रही थी.

घर पहुंच कर जब मैं कपड़े बदल रही थी, तब शिल्पा मेरे पास आई और मेरे बिलकुल पास आ कर, मेरे गले में बांहें डाल कर कुछ उदास स्वर में बोली, ‘‘मम्मी, मालूम है आज मेरी स्कूल की सहेलियां आप के बारे में क्या कह रही थीं…?’’

‘‘क्या कह रही थीं…?’’ उस के द्वारा इस सवाल को उठाए जाने का मकसद न समझ पाने के कारण मैं ने उलझन भरे लहजे में उस से पूछा.

‘‘वे आप को सीधीसादी और चुपचाप रहने वाली औरत समझ रही थीं.’’

‘‘यह तो कोई बड़ी बात नहीं. मैं तो डर ही गई थी, यह सोच कर कि तेरी सहेलियां तुझ से न जाने मेरी क्या बुराई कर रही थीं,” और मैं ने प्यार से उस के गाल थपथपा दिए.

‘‘लेकिन आप ‘सिंपल’ और चुपचाप रहने वाली स्त्री हो ही नहीं,’’ उस ने जोर दे कर अपनी बात कही, ‘‘मैं जानता चाहती हूं कि आप जानबूझ कर पूरी पार्टी में खामोश और गुमसुम सी क्यों बनी रहीं.’’

‘‘तुझे गलतफहमी हुई है. सच तो यह है कि आज मैं पार्टी से तुझ से भी ज्यादा प्रसन्न अवस्था में लौटी हूं,’’ मैं ने अपने मन की सच्ची बात उसे बता दी.

मेरी आंखों में कुछ देर झांकने के बाद मेरी किशोर बेटी ने एकाएक भावुक स्वर में कहा, ‘‘मुझे लगता है कि मुझ से ज्यादा खुश हो कर पार्टी से लौटने वाली बात आप ठीक कह रही हैं, मम्मी. मैं यह भी समझ गई हूं कि मेरी खुशियों की खातिर आप ने आज शाम अपने व्यक्तित्व की बलि चढ़ा दी.’’

‘‘नहींनहीं, शिल्पा, यह गलत कह रही है तू,’’ मैं ने परेशान स्वर में उस की बात का विरोध किया.

‘‘नहीं, मम्मी, सच यही है जो मैं ने कहा है. मेरे रंगरूप की चमक बढ़ाने को आज आप सादगी से तैयार हुई. मेरे व्यक्तित्व का सिक्का जमाने को आप गुमसुम बनी रहीं. आप को ऐसा नहीं करना चाहिए था,’’ शिल्पा की आंखों में एकाएक आंसू छलक आए थे.

‘‘पगली, सारी शाम इतना खुश रहने के बाद अब ऐसी उलटीसीधी बातें सोच कर क्यों मूड खराब कर रही है,’’ बोलते हुए मेरा गला भी अनायास भर आया था.

‘‘मम्मी, मुझे माफ कर दो,’’ शिल्पा का स्वर भीगा हुआ था.

‘‘किसलिए?’’ मैं जोर से चौंकी.

‘‘आप से बेहतर दिखने की चुनौती देना मेरी बदतमीजी व बददिमागी का सुबूत था. मैं भविष्य में अपना व्यवहार सुधारूंगी और आप भी दूसरों के सामने मेरा सिर ऊंचा उठाने को आगे कभी अपने व्यक्त्वि को नष्ट नहीं करेंगी. यह वादा आप को मुझ से करना होगा, मम्मी,’’ शिल्पा ने भावुक लहजे में मुझ से कहा.

मैं ने उस के माथे का चुंबन ले कर उसे अपने कलेजे से लगा लिया. इस क्षण हम दोनों एकदूसरे के बहुत करीब आ गए थे. मेरी आंखों से बहते आंसू मेरी आंतरिक खुशी का इजहार कर रहे थे. उस की समझदारी देख कर मेरा दिल खुशी से नाच उठा था.

विदेश की धरती से – ऊंचे राहुल और बौने नरेंद्र!

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और एक बड़े चेहरे राहुल गांधी नरेंद्र दामोदरदास मोदी और उसकी सरकार पर जिस तरह सवाल उठा रहे हैं और नरेंद्र मोदी सरकार जिस तरह मुंह छुपा रही है उससे साफ हो जाता है कि राहुल गांधी के प्रश्नों के जवाब नरेंद्र मोदी के पास नहीं है. और यही राजनीति का सबसे बड़ा सच है जिसके बलबूते कांग्रेस आज देश और दुनिया में मजबूती के साथ खड़ी है .और आवाम आशा भरी निगाहों से देख रही है. दरअसल , यही से नरेंद्र मोदी धीरे-धीरे नीचे उतर रहे हैं और आने वाले समय में उनकी सरकार का जाना तय हो चुका है. ‌‌ कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जब विदेश की धरती से यह बोला- भारतीय लोकतांत्रिक ढांचों पर ‘बर्बर हमले हो रहे हैं और देश के लिए एक वैकल्पिक नजरिये के इर्दगिर्द एकजुट होने के लिए विपक्षी दलों में बातचीत चल रही है. तो मानो राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी की नब्ज पर हाथ रखा दिया. उन्होंने जो कहा है इस प्रकार है- बीबीसी के खिलाफ हालिया आयकर सर्वेक्षण कार्रवाई ‘देश भर में आवाज के दमन’ का एक उदाहरण था.

देश को खामोश करने के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रयासों के खिलाफ आवाज उठाने की अभिव्यक्ति के तौर पर राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की. लंदन में इंडियन 4 जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन (आइजेए) द्वारा आयोजित कार्यक्रम ‘इंडिया इनसाइट्स’ में गांधी ने बताया कि यात्रा इसलिए जरूरी हो गई क्योंकि हमारे लोकतांत्रिक ढांचे पर बर्बर हमले हो रहे हैं.

राहुल गांधी ने कहा – मीडिया, संस्थागत ढांचे, न्यायपालिका, संसद सभी पर हमले हो रहे हैं और हमें सामान्य माध्यम से लोगों के मुद्दे रखने में बहुत मुश्किल हो रही थी. उन्होंने कहा कि बीबीसी को इस बारे में अभी पता चला है, लेकिन भारत में यह सिलसिला पिछले नौ साल से लगातार चल रहा है.
राहुल गांधी ने कहा – सरकार की पैरवी करने वाले पत्रकारों को पुरस्कृत किया जाता है.जो लोग प्रधानमंत्री या भाजपा सरकार पर सवाल उठाते हैं, उन पर हमला किया जाता है.

अगर बीबीसी सरकार के खिलाफ लिखना बंद कर दे तो सब कुछ सामान्य हो जाएगा. सारे मामले गायब हो जाएंगे.राहुल गांधी ने खेद व्यक्त किया कि अमेरिका और यूरोप सहित दुनिया के लोकतांत्रिक हिस्से यह संज्ञान लेने में विफल रहे हैं कि लोकतंत्र का एक बड़ा हिस्सा नष्ट कर दिया गया है. भाजपा चाहती है कि भारत खामोश रहे. वे चाहते हैं कि यह शांत हो, क्योंकि वे चाहते हैं कि जो भारत का है उसे ले सकें और अपने करीबी दोस्तों को दे सकें.

यही विचार हैं, लोगों का ध्यान भटकाना और फिर भारत की संपत्ति को तीन, चार, पांच लोगों को सौंप देना. राहुल गांधी ने इस तरह मोदी की सारी नीतियों को दुनिया के सामने रख दिया है और जिस साहस के साथ उन्होंने सच को कहा है वह उनके कद को ऊंचा कर देता है मोदी उनकी सरकार को कटघरे में खड़ा कर देता है जहां से नरेंद्र मोदी को जवाब देना होगा अन्यथा लोकसभा के 24 के समर में देश की जनता जवाब देगी.

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नासमझी और देश भक्ति का दिखावा
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राहुल गांधी के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में उठाए गए प्रश्नों से जिस तरह नरेंद्र दामोदरदास मोदी सरकार घिर गई है उससे उसके मस्तिष्क पर सर्द मौसम में भी पसीना स्पष्ट दिखाई दे रहा है. और बौखलाहट सारा देश देख रहा है. ऐसे में कांग्रेस ने कहा कैंब्रिज विश्वविद्यालय में व्याख्यान देने के दौरान राहुल की ओर से की गई टिप्पणियों में निहित गूढ़ बातों को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) नहीं समझ सकी है .कांग्रेस ने कहा कि राहुल ने उत्पादन व्यवस्था को गति प्रदान करने के लिए सरकार नियंत्रित चीन की कार्पोरेशन प्रणाली और भारत जैसे लोकतांत्रिक राष्ट्रों की तत्काल जरूरत के बीच के अहम अंतर को परिभाषित किया था.

भाजपा ने राहुल पर आरोप लगाया राहुल गांधी ने
विदेशी सरजमीं पर चीन की तारीफ करके भारत की छवि को धूमिल किया. विश्वविद्यालय में गांधी की टिप्पणी का एक वीडियो टैग करते हुए कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि राहुल गांधी ने अपने कैंब्रिज व्याख्यान में चीन की सरकार नियंत्रित कार्पोरेशन प्रणाली और उत्पादन प्रणालियों को दुरुस्त करने के लिए भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों की तात्कालिक आवश्यकता के बीच के अहम अंतर को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया. लेकिन इसकी गूढ़ बातों को भाजपा नहीं समझ सकी है .

दूसरी तरफ राहुल गांधी जब चीन की प्रशंसा करते हैं तो नरेंद्र मोदी को अच्छा नहीं लगता और फिर बीच में देशभक्ति आ जाती है, इससे पता चलता है कि विपक्ष कुछ भी कहता है करता है तो भाजपा की यह मानसिकता है कि देशभक्ति को सामने ले आओ, जैसे सबसे बड़े देश भक्त यही लोग हैं! अगर यह लोग ना होते तो भारत देश आजाद ही नहीं हो पाता.

देश के चुनाव आयुक्त : अदृश्य चंगुल से मुक्त

देश के उच्चतम न्यायालय में लोकतंत्र को लेकर के 2 मार्च का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण रूप से रेखांकित हो गया है जब यह तय हो गया कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति अब प्रधानमंत्री विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के द्वारा की जाएगी इससे यह संदेश चला गया है कि अब आने वाले समय में चुनाव आयोग में निष्पक्ष तरीके से नियुक्तियां होंगी क्योंकि चुनाव आयोग देश का एक ऐसा महत्वपूर्ण संवैधानिक संस्था है जिस पर देश का भविष्य टिका हुआ है देश का लोकतंत्र स्थिर होगा. जैसा कि लंबे समय से यह सवाल उठ रहे थे देश में मुख्य चुनाव आयुक्त के साथ दो सहायक चुनाव आयुक्त भी हुआ करते हैं मगर इनकी नियुक्ति पर एक ऐसा ग्रहण लगा हुआ था जिस पर बारंबार प्रश्न उठते थे और याचिकाएं प्रस्तुत होती रही अंततः 2 मार्च को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया वह अत्यंत महत्वपूर्ण है.
आपको बताते चलें कि अभी तक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति किस तरह होती थी-
अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी केे शब्दों में- चुनाव आयोग में आयुक्तों की नियुक्ति के लिए सचिव स्तर के सेवानिवृत्त अधिकारियों की सूची तैयार होती है. इन नामों का एक पैनल बनता है जिसे प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति पास भेजा जाता है. इस पैनल में प्रधानमंत्री किसी एक नाम की सिफारिश करते हैं. इसके बाद राष्ट्रपति की मंजूरी ली जाती है.

अब इस तरह होगी नियुक्ति
उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद अब-” एक समिति बनेगी. इस समिति में प्रधानमंत्री, नेता प्रतिपक्ष और प्रधान न्यायाधीश होंगे. ये समिति चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए नामों की सिफारिश करेगी. ये सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेजी जाएगी और उनकी मंजूरी मिलने के बाद नियुक्ति की जाएगी.”
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कार्यपालिका के चंगुल से मुक्त
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जैसा कि सभी या नहीं जानते होंगे कि पी वी नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री के कार्यकाल में जब टी एन शेषन मुख्य चुनाव आयुक्त हुआ करते थे को उनके पर काटने के लिए पीवी नरसिम्हा राव ने रातो रात दो और सहायक चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति की थी. इस तरह लगभग तीन दशक से निर्वाचन आयोग में कार्यपालिका का दखल बढ़ गया और एक तरह से प्रधानमंत्री की मंशा अनुरूप निर्वाचन आयोग में नियुक्तियां होती और काम काज चल रहा था.

उच्चतम न्यायालय ने 2 मार्च को मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति को कार्यपालिका के हस्तक्षेप से बचाने के उद्देश्य से ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा – ” नियुक्तियां प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और भारत के प्रधान न्यायाधीश की समिति की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी.”

न्यायमूर्ति केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने अपने सर्वसम्मत फैसले में कहा कि यह नियम तब तक कायम रहेगा जब तक संसद इस मुद्दे पर कोई कानून नहीं बना लेती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा – यह चयन प्रक्रिया सीबीआई निदेशक की तर्ज पर होनी चाहिए उच्चतम न्यायालय ने कहा अगर लोकसभा में कोई नेता प्रतिपक्ष नहीं है, तो सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता को निर्वाचन आयुक्तों और मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति संबंधी समिति में शामिल किया जाएगा. पीठ ने मुख्य चुनाव आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कालेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाया पीठ में न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस, न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार भी शामिल हैं.

दरअसल 2 मार्च को जो घटनाक्रम गठित हुआ वह कुछ इस प्रकार है-
न्यायमूर्ति जोसेफ की ओर से लिखे गए फैसले से न्यायमूर्ति रस्तोगी ने सहमति जताई, लेकिन उन्होंने अपने तर्क के साथ एक अलग फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र में निस्संदेह निष्पक्ष चुनाव होना चाहिए और इसकी शुचिता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी निर्वाचन आयोग की है. न्यायालय ने कहा कि लोकतंत्र में चुनाव की शुचिता को बनाए रखा जाना चाहिए, अन्यथा इसके भयावह परिणाम होंगे.

इस तरह उच्चतम न्यायालय ने आगाह करते हुए अपना फैसला सुनाया है जो कि एक तरह से निर्वाचन आयोग को निष्पक्ष बनाने का ऐतिहासिक कदम माना जाएगा.
वस्तुत: मुख्य चुनाव आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कालेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है.

निर्वाचन आयोग निष्पक्ष और कानूनी तरीके से काम करने के कर्तव्य से बंधा होता है और शक्तियों के मामले में कमजोर पड़ने वाले व्यक्ति को निर्वाचन आयुक्त नियुक्त नहीं किया जा सकता. निर्वाचन आयोग की सहायता करने के लिए अधिकारी हो सकते हैं, लेकिन महत्त्वपूर्ण फैसले पदों पर बैठे लोगों को लेने होते हैं और मुख्य निर्वाचन आयुक्त तथा निर्वाचन आयुक्तों की जिम्मेदारी होती है.

संविधान पीठ ने कहा – अगर निर्वाचन आयोग प्रक्रिया में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष भूमिका सुनिश्चित नहीं करता तो इससे कानून का शासन चरमरा सकता है, जो
कि लोकतंत्र का आधार है. पीठ ने निर्वाचन आयोग के सदस्यों की नियुक्ति से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 324 का उल्लेख करते हुए कहा कि संसद ने इस संबंध में संविधान की आवश्यकता के अनुसार कोई कानून पारित नहीं किया है.

अनुच्छेद 324 (2) के अनुसार, निर्वाचन आयोग में मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्त होते हैं.उनकी नियुक्तियां संसद द्वारा इस संबंध में बनाए गए किसी भी कानून के प्रावधानों के अधीन राष्ट्रपति द्वारा की जाएंगी. पीठ ने पिछले साल 24 नवंबर को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. उच्चतम न्यायालय के इस फैसले के बाद राजनीतिक विश्लेषकों का यह मानना है कि देश की राजनीति में एक नई करवट का आगाज हो जाएगा और चुनाव आयोग में निष्पक्ष नियुक्तियां होंगी.यही नहीं निर्वाचन भी निष्पक्ष होते चले जाएंगे जिसका असर आने वाले समय में दिखाई देगा.

YRKKH : अभिमन्यु और अभिनव में अक्षरा को पाने को लेकर होगी लड़ाई, किसकी होगी जीत?

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों खूब सारे ड्रामें देखने को मिल रहे हैं, बता दें कि सीरियल में कुछ दिनों पहले अभिमन्यु और आरोही के रिश्ते की बात चल रही थी, जिसकी खबर मिलते ही  अक्षरा को बड़ा झटका लगा था.

लेकिन सीरियल में नया ट्विस्ट आया है अभिमन्यु को इस बात का एहसास हो गया है कि अब वह अक्षरा के बिना नहीं रह सकता है. इसी वजह से वह उससे मिलने गोयनका हाउस तक पहुंच गया है, अक्षरा के सामने अभिमन्यु खड़ा हो जाएगा और कहेगा कि प्लीज मुझे मांफ कर दो.

 

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बीते एपिसोड में आपने देखा था कि अभिनव और अभिमन्यु में आपस में बहस हो जाती है. वहीं अभिमन्यु साफ शब्दों में कहता  है कि तुम मेरे और अक्षु के बीच में आए हो. मेरा दिल जानता है कि मेरी अक्षु मुझसे कितना प्यार करती है. यह बात सुनकर अभिनव भड़क जाता है. अभिनव कहता है कि अगर सच में ऐसा है तो मैं आपके और अक्षरा जी के बीच से हट जाउंगा.

जब अभिनव अक्षरा के पास जाएगा तो वह वापस कसौली लौटने के बारे में बात करेगी, जिसके बाद वह आखिरी बार गोयनका हाउस जाकर सबसे मिलेगी. जब अक्षरा एयर पोर्ट के लिए निकलती है तो उसे रास्ते में एक मंदिर मिल जाता है और वह मंदिर में दर्शन करने चली जाती है. जिसके बाद सभी लोग मंदिर से दर्शन करके निकल जाएगें और वह अकेली रह जाएगी.

खिलौना: क्यों रीना अपने ही घर में अनजान थी?

लेखिका- रितु वर्मा

पलक बहुत ही खोईखोई सी घर के एक कोने में बैठी थी. न जाने क्यों उसे यह घर बहुत अजनबी सा लगता था. बिजनौर में सबकुछ कितना अपनाअपना सा था. सबकुछ जानापहचाना, कितने मस्त दिन थे वे… पासपड़ोस में घंटों खेलती थी और बड़ी मम्मी कितने प्यार से पकवान बनाती थीं. स्कूल में हमेशा प्रथम आती थी वह. वादविवाद प्रतियोगिता हो या गायन, पलक हमेशा ही अव्वल आती.

रविवार का दिन तो जैसे एक त्यौहार होता था। पासपड़ोस के अंकलआंटी आते थे और फिर घर की छत पर मूंगफली और रेवड़ी की बैठक होती थी. बड़े पापा, मम्मी अपने बचपन के किस्से सुनाते थे. पलक घंटों अपनी सहेलियों के साथ बैठ कर उन पलों में सारा बचपन जी लेती थी.

पूरा दिन 24 घंटों में ही बंटा हुआ था। यहां की तरह नही था कि कुछ पलों में ही खत्म हो जाता है।

तभी ऋषभ भैया अंदर आए और बोले,”पलक, तुम यहां क्यों एक कोने में बैठी रहती हो? क्या प्रौब्लम है।”

ऋषभ भैया अनवरत बोले जा रहे थे,”यह दिल्ली है, बिजनौर नहीं। यह क्या अजीब किस्म की जींस और ढीली कुरती पहन रखी हैं…पता है कल मेरे दोस्त तुम्हें देख कर कितना हंस रहे थे।”

पलक को समझ नहीं आ रहा था, जो कपड़े बिजनौर में मौडर्न कहलाते थे वे यहां पर बेकार कहलाते हैं. पलक सोच रही थी कि बड़ी मम्मी, पापा ने तो उसे दिल्ली में पढ़ने के लिए भेजा था पर यहां के स्कूल में तो लगता है पढ़ाई के अलावा सारे काम होते हैं. सब लोग धड़ाधड़ इंग्लिश बोलते हैं, कैसीकैसी गालियां देते हैं कि उस के कान लाल हो जाते हैं।

वैसे इंग्लिश तो पलक की भी अच्छी थी पर न जाने क्यों दिल्ली में उसे बहुत झिझक होती है.

आज ऋषभ भैया और मम्मीपापा पलक को मौल ले कर गए थे, शौपिंग कराने के लिए। इतना बड़ा मौल पलक ने इस से पहले कभी नहीं देखा था.

जब पलक छोटी थी तो बारबार उस के दिमाग मे यही बात आती थी कि वह नानानानी के साथ क्यों रहती है?

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पेरैंटटीचर मीटिंग में वह अपने नानानानी को ले कर नहीं जाना चाहती थी, क्योंकि सब की मम्मी इतनी सुंदर, जवान और नएनए स्टाइल के कपड़े पहनती हैं और उस की नानी खिचड़ी बाल और उलटीसीधी साड़ी पहन कर जाती थी.

एक बार उस ने अपनी नानी से पूछ ही लिया,”मैं अपने मम्मीपापा के साथ क्यों नही रहती हूँ?”

नानी हंसते हुए बोली थीं,”क्योंकि कुदरत ने तुम्हें अपने नानानानी के जीवन मे रंग भरने भेजा है.”

पलक को कुछ समझ नहीं आता था पर यह दुविधा उस के बालमन में हमेशा रहती थी. बस इस के अलावा उस की जिंदगी में सब कुछ परफैक्ट था.

जब कभी कभी पलक की मम्मी रीना दिल्ली से अपने बेटे ऋषभ के साथ आती थी तो पलक को बहुत बुरा लगता था. उन दिनों पलक की नानी कितनी अजनबी हो जाती थीं. सारा दिन वह रीना के चारों तरफ घूमती थीं. ऋषभ भैया उसे कितनी हेयदृष्टि से देखते थे.

पलक जब 11 साल की हुई तो उस के जन्मदिन पर उस की मम्मी ने उसे पूरी कहानी बताई कि पलक की बेहतर देखभाल के लिए ही वह नानानानी के पास रहती है और जल्द ही पलक को वे लोग दिल्ली ले जाएंगे.

कितनी खुश हुई थी पलक यह सुन कर कि जल्द ही वह अपने मम्मीपापा के साथ चली जाएगी.

उस बार जब छुट्टियों में रीना बिजनौर आई हुई थी तो पलक रीना को कर अपने स्कूल पेरैंटटीचर मीटिंग में ले कर गई. दोस्तों को उस ने बहुत शान से अपनी मम्मी से मिलवाया था.

रीना बहुत खुश हो कर पलक के साथ उस के स्कूल गई थी, क्योंकि अब वह अपनी बेटी को उस के बेहतर भविष्य के लिए दिल्ली ले कर जाना चाहती थी.

पलक का स्कूल देख कर रीना को धक्का लगा था, क्योंकि पलक का स्कूल छोटा और पुरानी तकनीक पर आधारित था.

आते ही रीना अपनी मां से बोली,”मम्मी, अब पलक को दिल्ली ले कर जाना ही होगा। इस छोटे शहर में पलक का ठीक से विकास नहीं हो पाएगा। इस के स्कूल में कुछ भी ठीक नही है।”

पलक की नानी रुआंसी हो कर बोलीं,”रीना, तुम भी तो इसी स्कूल में पढ़ी थीं और बेटा तुम तो पलक को इस दुनिया मे लाना ही नहीं चाहती थी। वह तो जब मैं ने सारी जिम्मेदारी उठाने की बात की थी तब तुम उसे जन्म देने के लिए तैयार हुई थी।”

रीना बेहद महत्त्वाकांक्षी युवती थी. जब उस का बेटा ऋषभ 3 वर्ष का ही हुआ था तब पलक के आने की आहट रीना को मिली थी। ऋषभ की जिम्मेदारी, नौकरी और घर की भागदौड़ में रीना थक कर चूर हो जाती थी. ऐसे में एक नई जिम्मेदारी के लिए वह तैयार नहीं थी. वैसे भी उन्हें बस एक ही बच्चा चाहिए था, ऐसे में पलक के लिए उन की जिंदगी में कोई जगह नहीं थी.

दिल्ली में आसानी से गर्भपात नहीं हो सकता था इसलिए रीना बिजनौर गर्भपात कराने आयी थी. पर रीना के मम्मीपापा अपने अकेलेपन से ऊब चुके थे. बेटा विदेश में बस गया था. रीना को भी घरपरिवार और नौकरी के कारण यहां आने की फुरसत नहीं थी. इसलिए रीना के मम्मीपापा, जानकीजी और कृष्णकांतजी को ऐसा लगा जैसे यह कुदरत की इच्छा हो और यह बच्चा उन के पास आना चाह रहा हो…

कितनी मुश्किल से जानकी ने रीना को मनाया था। पूरे समय वे रीना के साथ बनी रही थीं ताकि उसे किसी बात की तकलीफ न हो.

पलक के जन्म के 2 माह बाद जानकी पलक को ले कर बिजनौर आ गई थी. रीना किसी
भी कीमत पर पलक की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहती थी, इसलिए उस ने पलक को अपना दूध भी नहीं पिलाया था.

मां का दूध न मिलने के कारण पहले 2 साल तक पलक बेहद बीमार रही. जानकी और कृष्णकांतजी का एक पैर घर और दूसरा हौस्पिटल में रहता.

पासपड़ोस वाले कहते भी,”आराम के वक्त इस उम्र में यह क्या झंझाल मोल ले लिया है…” पर जानकी की जिंदगी को एक मकसद मिल गया था. उन की दुनियाभर की बीमारियां एकाएक गायब हो गई थीं.

सारा दिन कैसे बीत जाता था जानकी को पता भी नहीं लगता था। पलक के साथ जानकी ने बहुत मेहनत की थी. 4 वर्ष की होतेहोते पलक एकदम जापानी गुड़िया सी लगने लगी थी.

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अब जब भी छुट्टियों में रीना घर जाती तो पलक की बालसुलभ हरकतें और उस का भोलापन देख कर उस की सोई हुई ममता जाग उठती थी. पर रीना किस मुंह से अपनी मां से यह कहती, क्योंकि वह तो पलक को इस दुनिया में लाना ही नहीं चाहती थी और न उस की कोई जिम्मेदारी उठाना चाहती थी। इसलिए कितनेकितने दिनों तक वह अपने मम्मीपापा के पास बिजनौर फोन भी नहीं करती थी.

धीरेधीरे समय बीतता गया और ऋषभ भी अब किशोरवस्था में पहुंच गया था. ऋषभ अब अपनी ही दुनिया में व्यस्त रहता.

जब रीना ने अपने पति पराग से इस बात का जिक्र किया तो उस ने भी रीना को झिड़क दिया,”तुम कितनी खुदगर्ज हो रीना, अब पलक बड़ी हो गई है और ऋषभ की तरफ से तुम फ्री हो तो तुम्हें पलक याद आने लगी है और तुम्हें यह एहसास होने लगा है कि तुम पलक की मम्मी हो?

“याद है तुम्हें जब वह 7 महीने की थी और बेहद बीमार थी, तुम्हारी मम्मी ने तुम से आने के लिए कहा था पर तुम औफिस के काम का हवाला दे अमेरिका चली गई थी.

“हर वर्ष जब हम छुट्टियों में घूमने जाते थे तो मैं कितना कहता था कि पलक को भी साथ ले लेते हैं पर तुम हमेशा कतराती थीं क्योंकि तुम 2 बच्चों की जिम्मेदारी एकसाथ नहीं उठा सकती थीं…”

रीना चुपचाप बैठी रही और पलक को अपने घर लाने के लिए मंथन करती रही.

समय बीतता गया और रीना हर संभव कोशिश करती रही अपनी मम्मी को यह जताने की कि उन का पालनपोषण करने का तरीका पुराना है.

वह यह जताना चाहती थी कि पलक की बेहतर परवरिश के लिए उसे दिल्ली भेज देना चाहिए.

आज रीना को पलक के स्कूल जाने से यह मौका मिल भी गया. पलक 12 वर्ष की हो चुकी थी। रीना अपनी बेटी को अपने जैसा ही स्मार्ट बनाना चाहती थी. जब रीना की मम्मी ने अपनी बेटी की बात को अनसुना कर दिया तो रीना ने अपने पापा से बात की कि पलक की आगे की पढ़ाई के लिए उसे दिल्ली भेज देना चाहिए।

कृष्णकांतजी एक व्यवहारिक किस्म के इंसान थे। दिल से न चाहते हुए भी कृष्णकांतजी को पलक की भविष्य की खातिर रीना की बात माननी पड़ी.

पलक को जब पता चला कि वह अपने मम्मीपापा के साथ दिल्ली जा रही है तो वह बेहद खुश थी. पर जब सारा सामान पैक हो गया तो पलक एकाएक रोने लगी कि वह किसी भी कीमत पर नानानानी को छोड़ कर नहीं जाना चाहती…

उधर जानकीजी का घोंसला एक बार फिर से खाली हो गया था पर इस बार पंछी के उड़ने का दर्द अधिक
था. कृष्णकांतजी जितना जानकीजी को समझाते,”वह रीना की ही बेटी है और तुम्हे खुश होना चाहिए कि हमारी पलक बड़े और अच्छे स्कूल में पढ़ेगी पर जानकीजी को तो जैसे उस की दुनिया ही वीरान लगने लगी थी।

जानकीजी को पूरा विश्वास था कि पलक उन के बिना रह नहीं पाएगी. बेटी ने एक बार भी नहीं कहा था, इसलिए उन्हें खुद तो दिल्ली जाने की हिम्मत नही हुई थी पर पति कृष्णकांतजी की चिरौरी कर के घर के पुराने नौकर मातादीन को ढेर सारी मिठाईयों के साथ दिल्ली भेज दिया.

नई दुनिया, नए लोग और चमकदमक सभी को अच्छी लगती हैं और पलक तो फिर भी बच्ची ही थी. वह इस टीमटाम में अपने पुराने घर और साथियों को भूल गई थी. मातादीन को देख कर एक पल के लिए पलक की आंखों
में चमक तो आई पर नए रिश्तों के बीच फिर वह चमक भी धीमी पड़ गई थी.

मातादीन पलक को खुश देख कर उसे आशीष दे कर अगले दिन विदा हो गया था. मातादीन को विदा करते हुये रीना का स्वर कसैला हो उठा और
बोली,”काका, मम्मी को बोलिएगा, पलक की चिंता छोड़ दे, वह मेरी बेटी है, मैं अपनेआप संभाल लूँगी।”

दिल्ली आ कर मातादीन ने कहा,”बीबीजी, चिंता छोड़ दीजिए। पलक बिटिया नई दुनिया में रचबस गयी हैं।”

पर जानकीजी खुश होने के बजाए दुखी हो गई थीं और फिर से उन का शरीर बीमारियों का अड्डा बन गया था.

उधर 1 माह बीत गया था और पलक के ऊपर से चमकदमक की खुमारी उतर गई थी. अब पलक चाह कर भी अपनेआप को दिल्ली की भागतीदौड़ती जिंदगी में ठीक से ढाल नहीं पा रही थी.

स्कूल का माहौल उस के पुराने स्कूल से बिलकुल अलग था. घर आ कर पलक किस से अपने मन की बात कहे, उसे समझ ही नहीं आता था.

पलक बहुत कोशिश करती थी अपनेआप को ढालने की पर असफल ही रहती. नानानानी का जब भी बिजनौर से फोन आता तो पलक हर बार यही ही बोलती कि उसे दिल्ली में बहुत मजा आ रहा है. पलक
अपने नानानानी को परेशान नहीं करना चाहती थी.

पलक के मम्मीपापा सुबह निकल कर रात को ही आते थे. ऋषभ भैया अपने दोस्तों और दुनिया में व्यस्त रहते। पासपड़ोस न के बराबर था. यहां के बच्चे उसे बेहद अलग लगते थे।

जब पलक ने अपनी मम्मी से इस बारे में बात की तो 12 साल की बच्ची का अकेलपन दूर करने के लिए उस की मम्मी ने उसे समय देने के बजाए विभन्न प्रकार की हौबीज क्लासेज में डाल दिया।

पहले ही पलक स्कूल में ही ऐडजस्ट नहीं कर पा रही थी और अब गिटार क्लास, डांस क्लास, अबेकस क्लास
पलक को हौबी क्लासेज के बजाए स्ट्रैस क्लासेज लगती थी.

पलक की नन्हीं सी जान इतनी अधिक भागदौड़ और तनाव को झेल नहीं पाई थी. उस के हौंसले पस्त हो गए थे.

वार्षिक परीक्षाफल आ गया था और पलक 2 विषयो में फेल हो गई थी.

परीक्षाफल देखते ही रीना पलक पर आगबबूला हो उठी,”बेवकूफ लड़की, कितना कुछ कर रही हूं मैं तुम्हारे लिए… दिल्ली के सलीके सिखाने के लिए कितनी हौबी क्लासेज पर पैसे खर्च हो गए पर तुम तो रहोगी वही छोटे शहर की सिलबिल।”

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पराग रीना को समझाने की कोशिश भी करता कि पलक और ऋषभ को एक तराज़ू पर ना तौले. पलक को थोड़ा समय दे, वह जैसे रहना चाहती है उसे रहने दे.

इतने तनाव का यह असर हुआ कि पलक को बहुत तेज बुखार हो गया था. पराग रात भर पलक के माथे पर गीली पट्टियां बदलता रहा था. रीना यह कह कर जल्दी सो गई कि अगले दिन औफिस में उस की जरूरी मीटिंग है.

रात भर बुखार में पलक तड़पती रही. अपनी बेटी को तड़पता देख कर पराग ने निर्णय ले लिया था.
पराग ने जानकीजी को फोन कर दिया और वे जल्दी ही शाम पलक के पास पहुंच गईं.

पराग ने खुद यह महसूस किया कि जानकीजी के आते ही पलक का बुझा हुआ चेहरा चमक उठा था.
जब रात को रीना औफिस से लौटी तो जानकीजी को देख कर वह सकपका गई.

रात में खाने की मेज पर बहुत दिनों बाद पलक ने मन से खाया और बोली,”नानी, यहां पर किसी को ढंग से खाना बनाना नहीं आता।”

रीना कट कर रह गई और बोली,”मम्मी, आप ने पलक की आदत खराब कर रखी है, हैल्थी फूड उसे पसंद ही नही हैं।”

जानकीजी कुछ न बोलीं बस पलक को दुलारती रहीं। 2 दिनों के अंदर ही पलक स्वस्थ हो कर चिड़िया की तरह चहकने लगी.

एक हफ्ते बाद जब जानकीजी अपना सामान बांधने लगीं तो पलक भी अपना बैग पैक करने लगी.

जानकीजी बोलीं,”पलक, तुम कहां जा रही हो?”

पलक बोली,”नानी, मैं आप के बिना नहीं रह सकती हूं, मुझे यहां नहीं पढ़ना।”

रीना चिल्लाने लगी,”मम्मी इसलिए मैं नहीं चाहती थी आप यहां आओ…

“आप ने उसे बिगाड़ दिया है, बिलकुल भी प्रतिस्पर्धा नही है पलक में, बिलकुल छुईमुई खिलौना बना कर छोड़ दिया है। मेरी बेटी इस दुनिया में कभी कुछ कर भी पाएगी या नहीं…”

जानकीजी इस से पहले कुछ बोलतीं कि तभी पराग बोल उठा,”खिलौना पलक को मम्मीजी ने बनाया है या तुम ने?”

“जब तुम्हारा मन था तुम पलक को बिजनौर छोड़ देती हो और जब मन करता है तब तुम सब की अनदेखी कर के पलक को दिल्ली ले कर आ जाती हो, बिना यह जाने कि इस में पलक की मरजी है या नहीं…”

रीना ने हलका सा विरोध किया और बोली,”मां हूं मैं उस की…”

पराग बोला,”हां तुम उस की मां हो और वह तुम्हारी बेटी है मगर कोई चाबी वाला खिलौना नहीं।”

रीना पराग पर कटाक्ष करते हुए बोली,”लगता है तुम बेटी की जिम्मेदारी नहीं उठाना चाहते हो, इसलिये यह सब बोल रहे हो।”

पराग रीना की बात सुन कर तिलमिला उठा क्योंकि उस में लेशमात्र भी सचाई नहीं थी।

इस से पहले पराग कुछ कहता, पलक ने धीरे से कहा,”मम्मी, मेरी खुशी मेरे अपने घर मे है, जो बिजनौर में है. यह भागदौड़, यह कंपीटिशन मेरे लिए नहीं हैं।”

इस से पहले कि रीना कुछ बोलती, जानकीजी बोलीं,”रीना, जो जहां का पौधा है वह वहीं पर पनपता है।”

रीना ने आगे कुछ नहीं कहा और चुपचाप अपने कमरे में चली गई. जाने से पहले पराग ने पलक को गले लगाते हुए कहा,”पलक जब भी तुम्हारा मन करे बिना एक पल सोचे चली आना और बेटा तुम्हारे 2 घर हैं एक बिजनौर में और दूसरा दिल्ली में।

“बेटा, कामयाबी कभी भी किसी जगह की मुहताज नहीं होती।”

पलक और जानकीजी को जाते हुए देख कर पराग सोच रहा था कि शायद खिलौने की चाबी अब खिलौने के पास ही है.

अब पराग अपनी बेटी की भविष्य को ले कर निश्चिंत हो गया था.

अकल्पित-भाग 2 : सोनम के दादा जी क्या किया था?

वह आभा से ही ज्यादा प्यार करती थी. सोनम के इस प्यार का एक और भी कारण था. सोनम बचपन से ही पोलियो की शिकार थी. एक पैर में पोलियो का वह स्पैशल बूट पहनी हुई सोनम को जब पहली बार मैं ने देखा था, तब मेरे दिल में उस के लिए एक खास हमदर्दी पैदा हो गई थी. और फिर मैं कुछ ज्यादा ही भावुक हो कर उस से घुलनेमिलने आने लगी थी. हरदम उसे मदद करने की कोशिश करती रहती थी.

लेकिन आभा को मेरी वह हमदर्दी और भावुकता पसंद नहीं थी. और उसी से जब भी मैं सोनम को कुछ मदद करना चाहती, तभी आभा मुझे रोकती और मेरी भावुकता पर मानो लगाम लगाते हुए ही कहती, ‘‘डोंट हैल्प हर मच. शी विल लूज हर कौंफिडैंस…’’

और फिर सोनम से हंसखेल कर बतियाते हुए उसे मुझ से दूर ले जाती. आभा और मुझ में यही फर्क था. आभा सोनम जैसे बच्चों को मानसिक हिम्मत और ताकद दे कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना चाहती और मैं… मैं शायद ऐसे बच्चों को अपने भावुकता में लिपटा कर… खूब प्यार से उन्हें गले लगाना चाहती. दोनों का प्यार खरा और सच्चा था, मगर आभा का प्यार उन बच्चों का जीवन संवारने के लिए अधिक महत्वपूर्ण था.

आभा के साथ रह कर यह बात मैं समझने तो लगी थी, मगर लाख कोशिश कर के भी मैं आभा जैसी बन नहीं सकती थी. आखिर स्वभाव भी तो कोर्ई चीज होती है.

साथसाथ काम करने की वजह से आभा और मुझ से प्यार बेहद बढ़ता गया था और हम दोनों की दोस्ती ऊंची पक्की हो गई थी कि स्कूल की कोईकोई टीचर हमारी दोस्ती से अब जराजरा जलने भी लगी थी. लेकिन हम दोनों की दोस्ती में उस से कोई फर्क नहीं आता. हम दोनों अपनी दोस्ती को निभाते हुए भी क्लास के सभी बच्चों को खूब हंसतेखेलते पढ़ाते थे. बाल मानस शास्त्र के अनुसार ही बच्चों को पढ़ाई का बोझ ना लगे, इस का पूरा ध्यान रखते हुए ही हम बच्चों को पढ़ाते थे. उसी से बच्चों के मांबाप भी हम दोनों से काफी प्रभावित रहते और अपने बच्चों के मामले में कोर्ई भी समस्या हो, हमारे पास आ कर खुल कर बताते. हमारी राय उन के लिए शायद काफी महत्त्व रखती थी.

एक दिन ऐसे ही अपनी नीति और बहुत ही नाजुक सी समस्या ले कर सोनम की मां भी क्लास में आई थी.

उस दिन स्कूल पहुंच कर… रजिस्टर पर साइनवाइन कर मैं क्लास में पहुंची ही थी कि क्लास में लगभग घुसते हुए ही वह मेरे पास आई थी और कुछ हड़बड़ाते हुए बोली थी, ‘‘मैं सौनम वर्मा की मां हूं. आप… आप शोभा मैम ही हैं न.’’

‘‘नहीं… नहीं… मैं चिकलेट मैम…’’

“वो मैम आज छुट्टी पर हैं…”

‘‘ओहो… तो आप वही हैं, जिन्हें ये बच्चे ‘चिकलेट मैम’ कहते हैं.”

‘‘हां…हां… बच्चों को मेरा नाम शायद समझ नहीं आता. इसी से वे मुझे चिकलेट मैम कहते हैं. कोई बात नहीं… आखिर बच्चे ही हैं… कहिए… कुछ काम था क्या…’’

“आज सोनम नहीं आई आप के साथ…”

‘‘नहींनहीं… दरअसल, आज मैं एक बहुत ही पर्सनल बात आप से कहने आई हूं… जो कि सोनम के लिए बहुत ही जरूरी है…

“उस के बात करने का ढंग… और बोलने का लहजा ऐसा था कि मैं अकिंचन अवाक सी हो कर रह गई थी. लेकिन फिर भी बोली थी, ‘‘कहिए न… क्या बात है…’’

‘‘जी… आप से एक रिक्वैस्ट करनी थी कि स्कूल की छुट्टी होने के बाद सोनम को सिर्फ मेरे या मेरे पति के साथ ही घर वापस भेजिएगा. और कोई आता है… तो प्लीज, उन के साथ मत भेजिए…’’

‘‘और कोई… मतलब… उस के दादाजी ही आते हैं कभीकभी… और वह शुरू से आते रहते हैं… उन्हें कैसे मना कर सकते हैं…’’

‘‘प्लीज, प्लीज मैडमजी, मेरी बात सुन लीजिए. एक तो वह अब हमारे साथ रहते नहीं हैं… क्योंकि हम अब अलग रहते हैं… और… और कैसे कहूं… उन की आदत जरा ठीक नहीं है… बच्ची के साथ बड़ी बदतमीजी करते रहते हैं… समझ रही हैं न आप…’’

‘‘ओहो… अच्छाअच्छा… अब बात समझ आ रही है… डोंट वरी… अब आप चिंता मत कीजिए… अब सोनम सिर्फ आप के साथ या फिर उस के पिताजी के साथ घर वापस जाएगी…’’

‘‘थैंक यू मैमजी… बस यही कहना था. बस बच्ची पर थोड़ा ध्यान रखिएगा. अब चलती हूं. घर पर बड़े काम बाकी हैं… आप को थोड़ी तकलीफ दे रही हूं… इसलिए सौरी…”

जैसे आई थी वैसे ही किसी तूफान की तरह ही चली गई थी. लेकिन, मैं फिर जाने कितनी देर तक मन ही मन सोनम के बारे में ही सोचती रही थी.

 

नाटू नाटू गाने पर ठुमके लगाती नजर आईं राखी सावंत, ट्रोलर्स ने पूछा ये सवाल

भारतीय सिनेमा ने एक बार फिर से विदेश की धरती पर धूम मचा दिया है, सुपर स्टार रामचरण और जूनियर एनटीआर के गाने नाटू नाटू को 95 वें ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित किया गया है, इस सॉन्ग को बेस्ट ऑरिजनल सॉन्ग से सम्मानित किया गया है.

इसी बीच बॉलीवुड क्वीन राखी सावंत का इस गाने पर डांस करते हुए वीडियो सामने आया है, जिसमें राखी सावंत खूब मजे में इस गाने पर ठुमका लगाते हुए नजर आ रही हैं. आरआरआर के गाने नाटू नाटू पर राखी सावंत एक शख्स को स्टेप सिखाती नजर आ रही हैं.

 

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बता दें कि यह वीडियो जमकर इंटरनेट पर वायरल हो रहा है, राखी सावंत ने इस वीडियो को कुछ लोग खूब पसंद कर रहे हैं तो वहीं कुछ लोग कमेंट करते हुए भी नजर आ रहे हैं.

एक ट्रोलर्स ने राखी के वीडियो को ट्रोल करते हुए कहा है कि रहने दो इससे मत करवाओ नहीं होगा. तो दूसरे ने लिखा है कि बस भी करो यार कितना करोगी. तो वहीं दूसरे ने लिखा कि रहने दो आपसे नहीं होगा. बता दें रामचरण और जूनियर एनटीआर दोनों ने ट्वीट किया है.

जूनियर एनटीआर ने लिखा है कि हमने कर दिखाया है पूरी टीम को हमारी तरफ से ढ़ेर सारी बधाई, वहीं राम चरण ने लिखा है कि हम जीत गए हैं, पूरे भारतीय सिनेमा की तरफ से आप सभी को बधाई.

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