प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका यात्रा पर निकल गए हैं, जहां उन का स्वागत मोदी... मोदी... कर के कुछ इस तरह हो रहा है जैसे मानो कोई आकाश से धरती पर देवपुरुष उतर आया हो. दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह सब अच्छा लगता है क्योंकि वे जहां भी जाते हैं लगभग इसी तरह की पटकथा लिखी जाती है. वहां भारतीयों का हुजूम इकट्ठा हो जाता है और उन के बीच जाते हैं, लोग मोदी...मोदी... करते हैं और देश का गोदी मीडिया उसे कुछ इस तरह दिखाता है मानो यह कोई बहुत बड़ी उपलब्धि है.

सीधी सी बात है, आप सत्ता में हैं आप के पास ताकत है तो कोई भी आप की जयजयकार करेगा. महत्त्व तब है जब आप सत्ता में न हों, आप पैसे खर्च करने की बखत न रखते हों और कोई आप को तब नमस्ते करे, आप की जयजयकार करे. मगर यहां सब कुछ उलटा हो रहा है. यह एक नई परंपरा है.

देश की आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू से ले कर अटल बिहारी वाजपेयी तक की अगर हम बात करें तो किसी भी प्रधानमंत्री ने अपनी जयजयकार इस तरह नहीं करवाई है. नरेंद्र मोदी को अपनी जयजयकार करवाने में आनंद आता है।

देश यह पूछना चाह रहा है कि मणिपुर जल रहा है और केंद्र सरकार का यह दायित्व है कि उसे शांति के रास्ते पर लाए. मगर ऐसा नहीं कर के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में राजकीय अतिथि बनना पसंद किया तो सवाल खड़े हो गए हैं कि आखिर आप प्रधानमंत्री पद का दायित्व किस तरह निभा रहे हैं? क्या आप को मणिपुर की हिंसा से तकलीफ नहीं है?

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