भूकंप के आएदिन आ रहे  झटके खतरे की चेतावनी हैं. इस से बचने के लिए सू झबू झ से काम लेना होगा और खुद को सुरक्षित रखना होगा.

हालिया महीनों में आ रहे भूकंप के  झटकों से दिल्ली एनसीआर, गुजरात, जम्मूकश्मीर, लद्दाख, पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण भारत में एक चिंता उभर कर सामने आई है. इस के अलावा आसपास के अन्य देशों में भी भूकंप के  झटके आए हैं.

उल्लेखनीय है कि हमारी धरती टैक्टोनिक प्लेटों पर टिकी है. जब ये प्लेटें आपस में टकराती हैं तो हमें भूकंप का एहसास होता है. 2 टैक्टोनिक प्लेटों के बीच में दरार की रेखाएं या फौल्टलाइंस होती  हैं. अकसर इन फौल्टलाइंस के एडजस्टमैंट के कारण भूकंप आते हैं. इन फौल्टलाइंस में जब दरार बढ़ती है या 2 प्लेटें आपस में जोर से टकराती हैं तब जोर से भूकंप आता है.

यदि आप नया घर या फ्लैट खरीद रहे हों तो पता कर लें कि वह एरिया किस भूकंपीय जोन में है. क्या वह घर या फ्लैट भूकंप से सुरक्षित है? क्या वहां मिट्टियों की टैस्ंिटग की जा चुकी है? क्या घर या फ्लैट बनाते समय वहां किसी स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सलाह ली जा चुकी है? क्या इंजीनियर के सु झावों से रैट्रोफिटिंग द्वारा घर या फ्लैट भूकंपरोधी बनाया गया है?

भूकंप से बचने के लिए

सब से कम खतरे वाला भूकंपीय जोन एक होता है और सब से अधिक खतरे वाला भूकंपीय जोन 5 होता है. जैसे ही आप को भूकंप का  झटका महसूस हो आप सब से पहले घर की बिजली का मेनस्विच औफ कर दें. इस के तुरंत बाद घर से बाहर किसी सुरक्षित जगह में चले जाएं.

घर में घरेलू सामान, जैसे कपड़ों की अलमारी, किताबों की अलमारी, आईना आदि को दीवारों से संतुलन बना कर रखना चाहिए. ऐसा नहीं कि हलके  झटके में ही अलमारी आदि गिर जाए और भागने का रास्ता जाम हो जाए.

पानी की बोतल, टौर्च, बैट्री से चलने वाला रेडियो, मोबाइल, सूखे भोज्य पदार्थ, रोजमर्रा की दवाइयां आदि वस्तुओं को हमेशा आसानी से मिलने वाली जगह पर ही रखें.

घर से नहीं भाग पाने की स्थिति में मजबूत चौकी, पलंग के नीचे, दरवाजों के बीचोंबीच या कोने में खड़े हों या बैठ जाएं. मकान गिरने की स्थिति में यही एक जगह जान बचाने के लिए उचित जगह होती है.

यदि आप किसी प्रेक्षागृह या सभागार यानी औडिटोरियम में फंसे हों तो अंदर ही रुकें. दोनों हाथों से सिर को ढक लें ठीक वैसे ही जैसे आप अपने सिर पर हैलमेट लगाते हैं और भूमि कंपन शांत होने पर कतारबद्ध तरीके से बाहर निकलें.

यदि ऊंची इमारत में फंसे हों तो लिफ्ट का प्रयोग बिलकुल न करें. क्षतिग्रस्त मकान के साइड में प्रवेश न करें, न ही रहें क्योंकि भूकंप के तुरंत बाद भी दूसरे  झटके आ सकते हैं.

घबराहट में इधरउधर न भागें. घर में हों या कैंटीन में, खाना पकाने वाली गैस, बिजली से चलने वाले उपकरणों आदि का प्रयोग न करें.

भूकंप रुक भी जाए तब भी कुछ समय तक माचिस, मोमबत्ती, लालटेन, दीया आदि न जलाएं.

यदि आप घर से बाहर हों या गाड़ी चला रहे हों तो सड़क के किनारे रोक दें. याद रखें गाड़ी किसी खंभे, विज्ञापन होर्डिंग, पेड़ आदि के नीचे खड़ी न करें.

सरकार की ओर से जारी आपदा प्रबंधन विभाग, अग्निशमन सेवा, पुलिस प्रशासन आदि की सूचना पर ध्यान दें और उस का पालन करें. किसी गलत अफवाह पर ध्यान न दें और न ही फैलाएं.

बच्चे, महिलाओं, बुजुर्गों औरलाचार की मदद करें. एक कुशल आपदामित्र बनें. भूकंप की आहट सुनें

ध्यान रखें कि हमारे देश में भूकंप की भविष्यवाणी करने का कोई सक्षम तंत्र उपलब्ध नहीं है. चीन, जापान और अमेरिका के पास टैक्टोनिक प्लेटों की गति पर नजर रखने का तंत्र है. यह काफी खर्चीला तंत्र है. इस स्थिति में मुख्य सवाल है, कैसे सम झें कि भूकंप आने ही वाला है.

चीटियों में सिक्स्थ सैंस पाया जाता है. इस कारण वह अपने केमोरिसेप्टर की मदद से गैसों का पता लगा लेती हैं. वहीं, चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों को आंकने में मैग्नेटोरिसेप्टर उन की मदद करता है. इन चीटियों को साधारण सम झने की गलती नहीं करनी चाहिए.

शोधकर्ताओं ने बताया है कि रेडवुड प्रजाति की चीटियां अपना घर या बाम्बी धरती के अंदर पाई जाने वाली टैक्टोनिक प्लेटों की सक्रिय दरारों या फौल्टलाइंस पर बनाती हैं. इन प्लेटों में जरा सी भी हलचल हुई नहीं कि चीटियां अपनी बाम्बी से बाहर निकलने लगती हैं. प्लेटों में हलचल होना और प्लेटों को आपस में टकरा कर कंपन उत्पन्न होने में कुछ वक्त लगता है और उस कंपन के भूतल तक पहुंचने में भी कुछ वक्त लगता है.

इस के पहले ही चीटियां अपने बाम्बी से बाहर निकलने लगती हैं. अगर आप को इस तरह की प्रजाति की चीटियां अपनी बाम्बी से बाहर निकलती नजर आएं तो आप सतर्क हो जाएं और सम झें कि कोई भूकंप आ सकता है. याद रहे कि हर बार ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि हलकी हलचल से चीटियां अपनी बाम्बी  से बाहर निकल तो आती हैं लेकिन वह  हलचल इतनी तेज नहीं होती कि उस का कंपन धरती के अधिकेंद्र तक पहुंच पाए.

बता दें कि अधिकेंद्र वह जगह होती है जहां धरती पर सब से पहले भूकंप की तरंगें पहुंचती हैं और वही जगह सब से अधिक प्रभावित भी होती है. अध्ययन में पाया गया है कि आम दिनों में चीटियां दोपहर के वक्त सारे काम निबटा कर रात को वापस बाम्बियों में चली जाती हैं, लेकिन भूकंप के दिन उन का व्यवहार कुछ बदला हुआ नजर आता है. बाम्बियों के बाहर उन्हें अपने शिकारी प्राणियों की चपेट में आने का खतरा होता है. इस के बावजूद, वे सारी रात बाम्बी के बाहर ही व्यतीत करती हैं.

शायद चीटियां धरती के अंदर से निकलने वाली और पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में आने वाले परिवर्तनों को भांप चुकी होती हैं. चीटियों की इस हरकत पर हम नजर रख कर आने वाली भूकंप की आपदा का अनुमान लगा सकते हैं और साथ ही, भूकंप से होने वाले जानमाल का नुकसान कम भी कर सकते हैं. पर यह काम वैज्ञानिक ही कर सकते हैं, आम लोगों को तो उन की चेतावनी का इंतजार करना होगा.

 लेखक- कृष्ण कुमार

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