वह जमाना गया, जिस में बेटे श्रवण कुमार की तरह पूरी पगार मांबाप के हाथों या पांवों में रख देते थे और फिर अपने जेबखर्च के लिए मांबाप का मुंह ताकते थे यानी उन्हें अपनी कमाई अपनी मरजी से खर्च करने का हक नहीं था.

परिवार सीमित होने लगे तो बच्चों के अधिकार बढ़तेबढ़ते इतने हो गए हैं कि उन्हें पूरी तरह आर्थिक स्वतंत्रता कुछ अघोषित शर्तों पर ही सही मगर मिल गई है. इन एकल परिवारों में पत्नी का रोल और दखल आमदनी और खर्च दोनों में बढ़ा है, साथ ही उस की पूछपरख भी बढ़ी है.

भोपाल के जयंत एक संपन्न जैन परिवार से हैं और पुणे की एक सौफ्टवेयर कंपनी में 18 लाख सालाना सैलरी पर काम कर रहे हैं. जयंत की शादी जलगांव की श्वेता से तय हुई तो शादी के भारीभरकम खर्च लगभग 20 लाख में से उन्होंने 10 लाख अपनी बचत से दिए. श्वेता खुद भी नौकरीपेशा है. जयंत से कुछ कम सैलरी पर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती है.

शादी तय होने से पहले दोनों मिले तो ट्यूनिंग अच्छी बैठी. उन के शौक और आदतें दोनों मैच कर चुके थे. दोनों ने 4 दिन साथ एकदूसरे को समझने की गरज से गुजारे और फिर अपनी सहमति परिवार को दे दी. जयंत श्वेता के सादगी भरे सौंदर्य पर रीझा तो श्वेता अपने भावी पति के सरल स्वभाव और काबिलीयत से प्रभावित हुई. इन 4 दिनों का घूमनेफिरने और होटलिंग का खर्च पुरुष होने के नाते स्वाभाविक रूप से जयंत ने उठाया. दोनों ने एकदूसरे की सैलरी के बारे में कोई बात नहीं की.

अकेले सैलरी ही नहीं, बल्कि इन्होंने भविष्य की कोई आर्थिक योजना भी तैयार नहीं की और न ही एकदूसरे की खर्च करने की आदतों को समझा. घर वालों से मिली जानकारी के आधार पर दोनों ने एकदूसरे के बारे में अंदाजा भर लगाया कि अच्छी पगार है, इसलिए सेविंग अकाउंट में पैसा भी खासा होगा.

झिझक क्यों

शादी के बाद हनीमून मनाने दोनों ने पूर्वोत्तर राज्यों का रुख किया. हनीमून को यादगार बनाने के लिए दिल खोल कर खर्च किया. प्यार में डूबे इस नवदंपती ने फिर यह गलती दोहराई कि एकदूसरे की खर्च करने की आदतों के अलावा बचत और भविष्य की कोई बात नहीं की. हनीमून के दौरान अधिकांश बड़े खर्च जयंत ने किए और फिर दोनों पूना वापस आ गए जहां जयंत किराए के फ्लैट में रहता था. श्वेता ने भी अपनी ट्रांसफर पूना करवा ली, वहां उस की कंपनी की ब्रांच थी.

10 लाख शादी में देने के बाद और करीब 4 लाख हनीमून पर खर्च करने के बाद जयंत के पास पैसे कम बचे थे. महंगे होटलों का बिल उस ने अपने क्रैडिट कार्ड से अदा किया था.

खुद को आधुनिक कहने और समझने वाले ये दोनों उस पूर्वाग्रही भारतीय मानसिकता के शिकार थे, जिस में पैसों की बाबत खुल कर बात नहीं की जाती. हो यह रहा था कि अभी भी परंपरागत भारतीय पति की तरह घर खर्च जयंत ही कर रहा था. श्वेता बस अपने खर्चे उठा रही थी. उस का ध्यान इस तरफ गया ही नहीं कि जयंत काफी पैसे खर्च कर चुका है. शादी के खर्चे में अपनी भागीदारी की बात जयंत उसे यह सोच कर बता चुका था कि बात समझ कर वह खुद मदद की पहल करेगी, लेकिन यह अंदाजा महज अंदाज ही रहा.

क्रैडिट कार्ड के भारीभरकम बिलों और 40 हजार के किराए वाले लक्जरी फ्लैट का किराया जब भारी पड़ने लगा तो जयंत परेशान हो उठा. घर से पैसे मंगाता तो फजीहत होती. लिहाजा, हार मान कर उस ने श्वेता को तंगी की बात बताई तो वह हैरान तो हुई, लेकिन समझदारी दिखाते हुए अपने खाते से पैसे निकाल कर जयंत को दे दिए.

इस मोड़ पर आ कर शादी के 5 महीने बाद दोनों का ध्यान अपनीअपनी गलतियों पर गया और फिर उन्होंने न केवल पैसों पर खुल कर बात की, बल्कि भविष्य की योजनाओं का भी खाका खींच डाला कि अब आगे क्या करना है.

श्वेता ने जयंत से कहा भी कि पहले बता देते तो लगभग डेढ़ लाख रुपए बच जाते. दरअसल, हुआ यह था कि श्वेता यह समझती रही कि जयंत के पास पर्याप्त पैसे होंगे तभी तो वह खुले हाथ से खर्च कर रहा है. उधर शादी और हनीमून को यादगार बनाने के उत्साह में डूबा जयंत यह मान बैठा था कि श्वेता समझ रही होगी कि वह एक तरह से संयुक्त रूप से खर्च कर रहा है जबकि ऐसा कुछ था नहीं.

अब इन दोनों की माली रेलगाड़ी पटरी पर है और दोनों ने तय किया है कि अगले 3 साल तक जितना हो सकेगा पैसा बचाएंगे. दोनों तमाम नए कपल्स की तरह बच्चा भी प्लान कर रहे हैं कि उस का घर और दुनिया में आना कब ठीक होगा.

बाहर रह कर अपनी गृहस्थी की गाड़ी चला रहे बेटेबेटियों की जिंदगी में मांबाप अब कोई दखल नहीं देते. यह एक अच्छी बात है, लेकिन बात जब पैसों की आती है तो उन का चिंतित होना स्वाभाविक है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बहू के चुनाव में कोई चूक हो गई हो. उलट लड़की के मांबाप भी यह सोच सकते हैं कि कहीं गलत दामाद तो पल्ले नहीं पड़ गया.

ऐसे बनाएं आर्थिक साझेदारी

खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए बेहद जरूरी है कि पतिपत्नी के बीच आमदनी को ले कर पारदर्शिता हो, इसलिए शादी तय होते ही या शादी के तुरंत बाद जीवनसाथी से इस मसले पर खुल कर बात लेना काफी कारगर साबित होता है.

नवदंपतियों को चाहिए कि वे अपनी फाइनैंशियल प्लानिंग जल्दी कर लें और इस के लिए जरूरी है:

– एकदूसरे से अपनी आमदनी व बचत छिपाएं नहीं, बल्कि उसे साझा करें.

– अगर शादी के पहले कोई बड़ा कर्ज ले रखा है तो उसे भावी जीवनसाथी को बता दें.

– एकदूसरे से छिपा कर उधारी का लेनदेन और अपने रिश्तेदारों की मदद न करें.

– शादी के बाद शुरुआती दौर में अपने जीवनसाथी की आमदनी और खर्च के मामलों पर आंख मूंद कर भरोसा न करें और उस की आदतों को समझें.

– क्रैडिट कार्ड के बजाय डैबिट कार्ड का इस्तेमाल करें.

– कम वेतन वाला खुद को हीन और ज्यादा वेतन वाला खुद को श्रेष्ठ या बुद्धिमान समझते हुए खुद को दूसरे पर थोपे नहीं.

– निजी कंपनियों की नौकरी भले ही अच्छी सैलरी वाली होती है, लेकिन उस के कभी भी जाने या किसी वजह से छोड़ने का जोखिम बना रहता है, इसलिए यह मान कर न चलें कि आज जो आमदनी है वह हमेशा बनी रहेगी. अत: दोनों बचत की आदत डालें.

– बचत के लिए कहां निवेश करें इस में मतभेद हों, तो उन्हें किसी अच्छे वित्तीय सलाहकार की मदद से दूर करें. आमतौर पर पत्नियां ज्वैलरी में तो पति म्यूचुअल फंड वगैरह में नियमित निवेश को प्राथमिकता देता है. पैसा ऐसी जगह लगाएं जहां से रिटर्न ज्यादा से ज्यादा मिलने की संभावना हो.

– घर खर्च में किस की कितनी हिस्सेदारी होगी यह तय करना कोई हरज या शर्म की बात नहीं. इस के लिए जरूरी है कि एकदूसरे के पैसे को अपना समझा जाए.

याद रखें पतिपत्नी का रिश्ता बेहद संवेदनशील होता है और बात जब पैसों की आती है, तो एकदूसरे से कुछ भी छिपाना या चोरीछिपे खर्च अथवा बचत करना और भी घातक साबित होता है. वैचारिक मतभेद एक दफा वक्त रहते सुलझ जाते हैं, लेकिन आर्थिक अविश्वास आ जाए तो वह आसानी से दूर नहीं होता.

बचत में रखें प्रतिस्पर्धा

यह कहावत गलत नहीं है कि बचाया गया पैसा ही असली आमदनी है, इसलिए नियमित बचत की आदत डालें. इस के लिए एक दिलचस्प तरीका यह अपना सकते हैं कि पतिपत्नी दोनों अपनी आमदनी से ज्यादा से ज्यादा बचत करने की प्रतिस्पर्धा करें.

जाहिर है ऐसा करेंगे तो दोनों अपनी व्यक्तिगत फुजूलखर्ची से छुटकारा पाने की और कोशिश करेंगे. होटलिंग, पैट्रोल, इलैक्ट्रौनिक्स आइटम, मोबाइल आदि पर खर्च करने पर लगाम लगाएं यानी इन पर जरूरत के मुताबिक ही खर्च करें. छोटी बचत लगातार की जाए तो वह देखते ही देखते बड़ी हो जाती है.

बचत प्रतिस्पर्धा के लिए 1 साल की मियाद तय करें कि कौन कितना पैसा बचा सकता है. अगर ईमानदारी से बचत करेंगे तो जान कर हैरान रह जाएंगे कि आप ने साल भर में एक बड़ा अमाउंट इकट्ठा कर लिया है, जिसे किसी बड़े काम या निवेश में लगाया जा सकता है.

यह भी याद रखें कि आजकल पैसा कमाने से दुष्कर काम पैसा बचाना हो चला है, इस के लिए अपने मातापिता का जीवन याद करें कि वे कैसेकैसे बचत करते थे. कुछ पैसा बचत खाते में डाला हो और कुछ निवेश भी किया हो, तो तय है दांपत्य की गाड़ी सरपट दौड़ेगी और दोनों के बीच कोई अविश्वास और मनमुटाव नहीं रहेगा.

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