सवाल
मैं 21 वर्षीय युवक हूं और एक युवती से प्यार करता हूं. वह युवती बहुत शक्की किस्म की है. एक दिन उस ने मेरे व्हाट्सऐप पर मेरी एक कलीग का मैसेज देख लिया. तभी से वह मुझ पर शक करती है. कहती है मेरा उस से भी अफेयर है. कभी उस से न मिल पाऊं तो कहेगी उसी के साथ गए होंगे. मेरी क्या जरूरत है. इन बातों से अच्छाभला रोमांस का मूड भी खराब हो जाता है. मैं क्या करूं?
जवाब
देखिए, शक का कोई इलाज नहीं होता. आप की प्रेमिका आप पर शक करती है साथ ही न मिल पाने पर कहती है कि उस से मिलने गए होंगे, तो कहीं न कहीं वह आप को मिस करती है. इसी वजह से उस के मन में ये बातें आती हैं. आप अपनी प्रेमिका को ज्यादा समय दें, उस की हर शंका को उस का प्यार समझें और समझाएं कि तुम्हारे सिवा दुनिया में कौन है जिसे आप चाहेंगे. प्यार के दो बोल ही ऐसा शक दूर कर सकते हैं.
अपने व्हाट्सऐप से जुड़ी उस कलीग से भी उसे मिलवाइए औैर बताइए कि यह है आप की महबूबा. जब वह उस से मिल कर समझ जाएगी कि इन का रिश्ता सिर्फ कलीग तक ही है, औफिस के काम से संबद्ध है, तो यकीन मानिए आप पर अपना प्यार उढेलने में वह वक्त न लगाएगी. आखिर आप की प्रेमिका अपना प्यार बंटते हुए नहीं न देख सकती. सो उस की भावना समझ शक दूर कीजिए. समस्या अपनेआप हल हो जाएगी.
इधरउधर देख कर मालविका ने पार्टी में आए अन्य लोगों का जायजा लेने का यत्न किया था पर कोई परिचित चेहरा नजर नहीं आया था.
‘‘अरे मौली, तुम यहां?’’ तभी पीछे से किसी का परिचित स्वर सुन कर उस ने पलट कर देखा तो सामने नमन खड़ा मुसकरा रहा था.
‘‘यही प्रश्न मैं तुम से भी कर सकती हूं. तुम यहां क्या कर रहे हो?’’ मालविका मुसकरा दी थी.
‘‘बोर हो रहा हूं और क्या. सच कहूं तो इस तरह की पार्टियों में मेरी कोई रुचि नहीं है,’’ नमन ने उत्तर दिया था.
‘‘ऐसा है तो पार्टी में आए ही क्यों हो?’’
‘‘आया नहीं हूं, लाया गया हूं. सेठ रणबीर मेरे चाचाजी हैं. उन का निमंत्रण मिलने के बाद पार्टी में न आने से बड़ा अपराध कोई नहीं हो सकता,’’ नमन मुसकराया था.
‘‘वही हाल मेरा भी है. पर छोड़ो यह सब, बताओ, जीवन कैसा चल रहा है?’’
‘‘कुछ विशेष नहीं है बताने को. तुम्हारी ही तरह बैंक में अफसर हूं. पूरा दिन यों ही बीत जाता है. सप्ताहांत में थोड़ाबहुत रंगमंच पर अभिनय कर लेता हूं. हम कुछ मित्रों ने मिल कर नाट्य क्लब बना लिया है.’’
‘‘यह तो शुभ समाचार है कि तुम कालेज के दिनों के कार्यकलापों के लिए अब भी समय निकाल लेते हो. कभी हमें भी बुलाओ अपने नाटक दिखाने के लिए.’’
‘‘क्यों नहीं, हमारा एक नाटक शीघ्र ही मंचित होने वाला है. आमंत्रण मिले तो आना अवश्य. आजकल मेरे अधिकतर मित्र फिल्म या डिस्को में रुचि लेते हैं, नाटकों से वे दूर ही भागते हैं, पर तुम उन सब से अलग हो.’’
तभी नमन का कोई परिचित उसे पकड़ कर ले गया था और उतनी ही तेजी से हाथ में बीयर का गिलास थामे रोमी उस की ओर आया था.
‘‘कौन था वह?’’ रोमी ने तीखे स्वर में प्रश्न किया था.
‘‘किस की बात कर रहे हो तुम?’’
‘‘वही जिस से बहुत घुलमिल कर बात कर रही थीं तुम.’’
‘‘अच्छा वह, वह नमन है. कालेज में मेरा सहपाठी था और अब मेरी ही तरह बैंक की एक अन्य शाखा में कार्यरत है. मेरा अच्छा मित्र है,’’ मालविका ने उत्तर दिया था.
‘‘तुम से कितनी बार कहा है कि इन टुटपुंजियों को मुंह मत लगाया करो. तुम अब केवल एक मध्यवर्गीय परिवार की युवती नहीं बल्कि मेरे जैसे जानेमाने उद्योगपति की महिलामित्र हो. मैं नहीं चाहता कि तुम अब अपने पुराने मित्रों से कोई भी संबंध रखो,’’ रोमी गुर्राया था. उस का तीखा स्वर सुन कर मालविका स्तब्ध रह गई थी.
वह चित्रलिखित सी पार्टी में भाग लेती रही थी पर मन ही मन सहमी हुई थी. यह सच था कि वह एक मध्यवर्गीय परिवार से संबंधित थी. जबकि रोमी एक जानेमाने उद्योगपति परिवार से था. मर्सिडीज, बीएमडब्लू जैसी गाडि़यों में घूमने वाले और पांचसितारा होटलों में उसे ले जाने वाले रोमी से मालविका बेहद प्रभावित थी. और कोई उस की नजरों में ठहरता ही नहीं था.
मौली उर्फ मालविका का परिवार बहुत अमीर न होने पर भी खासा प्रतिष्ठित था. पिता जानेमाने चिकित्सक थे पर पैसा कमाने को उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बनाया. अपनी संतान में भी उन्होंने वैसे ही संस्कार डालने का यत्न किया था पर मौली रोमी की चकाचौंधपूर्ण जिंदगी से कुछ इस तरह प्रभावित थी कि किसी के समझानेबुझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था.
पार्टी समाप्त हुई तो रोमी पूर्णतया सुरूर में था.
‘‘कैसी रही पार्टी?’’ उस ने कार को मुख्य सड़क पर मोड़ते हुए पूछा था.
‘‘बेहद उबाऊ और बकवास पार्टी थी. मेरा तो दम घुट रहा था वहां,’’ मौली बोली थी.
‘‘मैं जानता था तुम यही कहोगी. कभी गई हो ऐसी शानदार पार्टियों में? मैं तो यह सोच कर तुम्हें ऐसी पार्टियों में ले जाता हूं कि तुम सभ्य समाज के कुछ तौरतरीके सीख लोगी. पर तुम तो हर जगह अपने पुराने मित्र ढूंढ़ निकालती हो. कभी अपनी तुलना की है ऊंची सोसाइटी की अन्य युवतियों से? माना, कुदरत ने सौंदर्य दिया है पर ढंग से सजनासंवरना तो सीखना ही पड़ता है. अपनी पोशाक पर कभी दृष्टि डाली है तुम ने? महेंद्र बाबू की बेटी सुहानी पूछ बैठी कि तुम किस डिजाइनर की बनी पोशाक पहने हुए हो तो मैं तो शर्म से पानीपानी हो गया,’’ रोमी धाराप्रवाह बोले जा रहा था.
‘‘बस या और कुछ?’’ रोमी के चुप होते ही मौली चीखी थी, ‘‘तुम और तुम्हारा पांचसितारा कल्चर, मेरा दम घुटता है वहां. भूल मेरी थी जो मैं तुम्हारे साथ पार्टी में चली आई. मुझे नहीं चाहिए यह चमकदमक और तुम्हारे साथ इन बड़ी गाडि़यों में घूमना.’’
‘‘ठीक कहा तुम ने, तुम्हारी औकात ही नहीं है ऊंचे लोगों के बीच उठनेबैठने की या मेरे साथ महंगी कारों में घूमने की. चलो उतरो, इसी समय,’’ रोमी ने झटके से कार रोक दी थी.
मौली को काटो तो खून नहीं. उस के घर से 15 किलोमीटर दूर, निर्जन सड़क और रात के 12 बजे का समय, कहां जाएगी वह.
‘‘क्या कह रहे हो? मैं आधी रात को अकेली कहां जाऊंगी? मुझे मेरे घर तक छोड़ दो. मैं तुम्हारा उपकार कभी नहीं भूलूंगी,’’ मौली बिलख उठी थी.
‘‘ये भावुकता की बातें रहने दो. मैं तुम मिडिल क्लास लोगों को भली प्रकार पहचानता हूं. अपनी गरज के लिए गिड़गिड़ाने लगते हो, रोनेपीटने लगते हो. काम निकल जाने पर अपने आदर्शों की बड़ीबड़ी बातें करते हो. दफा हो जाओ मेरी आंखों के सामने से,’’ रोमी ने घुड़क दिया था.
हार कर डरीसहमी सी मालविका कार से उतर गई थी. उसे आशा थी कि उस के उतरने के बाद रोमी का दिल पसीज जाएगा और वह उसे फिर कार में बैठने को कहेगा. पर ऐसा नहीं हुआ. उस के उतरते ही रोमी की कार फर्राटे भरते उस की आंखों से ओझल हो गई थी.
मौली ने अपना पर्स खोल कर देखा. टैक्सी का बिल चुकाने लायक पैसे थे पर टैक्सी मिले तब न. उस की आंखें डबडबा आईं. घर में तो सब यही सोच रहे होंगे कि वह रोमी के साथ है. वे बेचारे क्या जानें कि वह आधी रात को दूर तक नागिन की तरह फैली सीधीसपाट सड़क पर अपने ही आंसुओं को पीती पैदल चली आ रही होगी.
मौली कुछ दूर ही चली होगी कि उस के पास एक कार आ कर रुकी, जिस में 5 मनचले युवक सवार थे. शराब के नशे में धुत वे तरहतरह की आवाजें निकाल रहे थे. मौली को अकेले चलते देख कर उन्होंने अभद्र इशारे करते हुए उस से कार में बैठने का आग्रह किया. उस ने पहले तो उन की बात अनसुनी कर दी पर जब वे उस के साथ कार चलाते हुए उलटीसीधी हरकतें करने लगे तो वह फट पड़ी.
‘‘मेरा घर पास ही है. मैं ने एक बार कह दिया कि मुझे सहायता नहीं चाहिए तो क्या सुनाई नहीं पड़ता,’’ मौली दम लगा कर चीखी थी. पर कार में से
2 युवक डरावने अंदाज में उस की ओर बढ़े थे. वह सहायता के लिए चीखी तो दूसरी दिशा से आती एक कार उस के पास आ कर रुकी थी.
‘‘क्या हो रहा है यह?’’ कारचालक ने प्रश्न किया था.
‘‘देखिए न, मैं शरीफ लड़की हूं, ये गुंडे मुझे तंग कर रहे हैं,’’ मौली बोली थी.
‘‘शरीफ…हुंह, शरीफ लड़कियां आधी रात को यों सड़कों पर नहीं घूमतीं,’’ कारचालक हिकारत से बोला था, ‘‘और तुम लोग जाते हो यहां से या बुलाऊं पुलिस को?’’ उस ने युवकों को धमकाया तो वे भाग खड़े हुए.
‘‘कृपया मुझे मेरे घर तक छोड़ दीजिए,’’ मौली ने कारचालक से विनती की थी.
‘‘क्षमा कीजिए, महोदया. मेरी बहन नर्सिंगहोम में है. मैं उसे देखने जा रहा हूं. वैसे भी मैं न तो अनजान लोगों को लिफ्ट देता हूं न उन से लिफ्ट लेता हूं,’’ कार- चालक भी उसे अकेला छोड़ कर चला गया था.
अब उस ने अपना फोन निकाला था. अब तक वह डर रही थी कि किसी को उस के इस अपमान का पता चल गया तो कितनी बदनामी होगी पर अब नहीं. पापा भी नाराज होंगे पर इस समय सहीसलामत घर पहुंचना अत्यंत आवश्यक था. उस ने फोन किया तो मां ने फोन उठाया था.
‘‘मौली, कहां हो तुम? 1 बजने जा रहा है. मेरा चिंता के मारे बुरा हाल है. पार्टी क्या अभी तक चल रही है?’’ उस की मां नीता देवी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी थी. पर जब मौली ने वस्तुस्थिति से अवगत कराया तो उन के पांवों तले से जमीन खिसक गई थी.
‘‘किसे भेजूं इस समय? तुम्हारे पापा तो 2 घंटे पहले ही नींद की गोलियां ले कर सो चुके हैं. किस पड़ोसी को जगाऊं, इस समय. तुम जहां हो, वहीं आड़ में छिप कर खड़ी हो जाओ. सड़क पर अकेले चलना खतरे से खाली नहीं है. मैं अश्विन को जगाती हूं. वह न नहीं करेगा,’’ नीता देवी बोली थीं.
‘‘अश्विन? रहने दो मां. उस के पास तो कार भी नहीं है. मैं पुलिस को फोन करूंगी.’’
‘‘भूल कर भी ऐसी गलती मत करना. मैं अश्विन से पूछूंगी. यदि कार चला सकता है तो हमारी कार ले जाएगा, नहीं तो अपने स्कूटर पर आ जाएगा. यह समय नखरे दिखाने का नहीं है,’’ नीता देवी ने डपट दिया था.
अश्विन की बात सुनते ही मौली को झुरझुरी हो आई. वह मौली के घर में ही किराएदार था और किसी कालेज में व्याख्याता था. आजकल अखिल भारतीय प्रतियोगिता की तैयारी में जुटा था. नीता देवी से उस की खूब पटती थी. पर मौली ने उसे कभी महत्त्व नहीं दिया. प्रारंभ में उस ने मौली से बातचीत करने का प्रयत्न किया था पर उस की बेरुखी देख कर उस ने भी उस से किनारा कर लिया था. इस समय आधी रात को उस से मदद मांगना मौली को अजीब सा लग रहा था. वह आने के लिए तैयार भी होगा या नहीं, कौन जाने.
मौली खंभे की आड़ में खड़ी यह सब सोच ही रही थी कि नीता देवी का फोन आया था.
‘‘अश्विन को कार चलानी नहीं आती. वह अपने स्कूटर पर ही आ रहा है. शास्त्री रोड पर वह अपना हौर्न बजाते हुए आएगा तभी तुम सड़क पर आना,’’ नीता देवी ने आदेश दिया था.
लगभग 15 मिनट में हौर्न बजाता हुआ अश्विन उस के पास आ पहुंचा था, पर मौली को लगा मानो सदियां बीत गई हों. वह चुपचाप पिछली सीट पर बैठ गई थी.
घर पहुंची तो मां से गले मिल कर देर तक रोती रही थी मालविका. मां ने ही अश्विन की भूरिभूरि प्रशंसा करते हुए धन्यवाद दिया था. उस के मुंह से तो बोल ही नहीं फूटे थे.
इस के 2 दिन बाद ही रोमी का फोन आया था. देर तक क्षमायाचना करता रहा था. नशे में उस से बड़ी भूल हो गई. मालविका जो सजा दे उसे मंजूर है.
मौली ने उस की किसी बात का उत्तर नहीं दिया. सबकुछ चुपचाप सुनती रही थी. दोचार बार के फोन वार्त्तालाप के बाद रोमी घर आया. आज फिर वह मालविका को किसी विशेष आयोजन में ले जाने आया था.
उस के पिता के मित्र प्रसिद्ध फिल्म निर्माता नलिन बाबू की नई फिल्म का मुहूर्त था और रोमी सोचता था कि ऐसे ग्लैमरस आयोजन के लिए मौली न नहीं कह पाएगी.
नीता देवी ने तो सुनते ही डपट दिया था, ‘‘उस का साहस कैसे हुआ यहां आने का? उस दिन जो कुछ हुआ उस के बाद तुम उस के साथ जाने की बात सोच भी कैसे सकती हो.’’
‘‘जाने दो, मां. उस दिन रोमी नशे में था. बारबार थोड़े ही ऐसा करेगा. मैं तैयार हो कर आती हूं,’’ मालविका उठ कर अंदर गई थी.
कुछ ही क्षणों में बाहर से शोर उभरा था. किसी की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ पर मालविका के घर के सामने खड़ी रोमी की मर्सिडीज कार धूधू कर जल उठी थी.
आसपास के घरों के लोग घबरा गए थे. कुछ ही क्षणों में अग्निशामक दस्ता आ पहुंचा था. लोगों ने आग बुझाने के लिए पानी डालने का प्रयत्न भी किया था.
कैसे लगी यह आग? जितने मुंह उतनी बातें. कोई भी किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रहा था. हैरानपरेशान रोमी अधजली कार ले कर जा चुका था. तभी नीता देवी की नजर मालविका पर पड़ी थी. उस के चेहरे पर अजीब संतुष्टि का भाव था. उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं. मानो, बिना कहे ही सब समझ गई हों.
हलके में न लें इन दिनों मौसमी फीवर चल रहा है, यानी वायरल फीवर. इसे हलके में बिलकुल भी न लें. ऐसे में कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है. बदलते मौसम में अधिकतर लोग वायरल फीवर के शिकार हो जाते हैं. वायरल फीवर को ‘मौसमी बुखार’ कहा जाता है. वायरल फीवर से ठीक होने में 4-5 दिन लग जाते हैं. कई बार यह बुखार 10-12 दिन में भी ठीक नहीं होता है. फीवर की तेजी मरीज की उम्र पर निर्भर करती है और अगर वायरल फीवर किसी फ्लू वायरस की वजह से हुआ है तो इसे ठीक होने में कम से कम 5 दिनों का समय लगता है.
अगर दवा लेने के बावजूद 3 दिनों के अंदर बुखार कम नहीं हो रहा है तो आप तुरंत किसी डाक्टर के पास जाएं. सब से जरूरी यह होता है कि वायरल फीवर को हलके में न लें. जैसे ही बुखार का अनुभव हो, डाक्टर के पास जा कर दवाएं लें. लापरवाही करने में यह बुखार ठीक होने में लंबा समय ले लेता है. बच्चों में अगर यह बुखार 48 घंटे में भी कम नहीं हो रहा है तो तुरंत डाक्टर से चैकअप कराएं. वायरल फीवर रुकरुक कर होता है. कई बार यह नियमित अंतराल में अनुभव होता है. उदाहरण के लिए ज्यादातर लोगों को दोपहर या शाम को एक विशेष समय के दौरान वायरल फीवर का अनुभव होता है. वायरल फीवर होने पर ठंड लगती है. वायरल फीवर के दौरान तेज गरमी और नम तापमान के समय में ठंड का अनुभव होता है.
नाक बहना, बंद नाक, आंखों में लालिमा, निगलने में कठिनाई आदि ये वायरल फीवर के कुछ लक्षण हैं. वायरल फीवर सामान्य फीवर की दवाओं से ठीक नहीं होते. सामान्य फीवर की दवाएं वायरल फीवर को कुछ समय के लिए ही ठीक कर पाती हैं, जैसे ही दवाओं का असर खत्म होता है, वायरल फीवर फिर से हो जाता है. वायरल फीवर सामान्य फीवर से ज्यादा समय तक रहता है. वायरल फीवर वायरल संक्रमण के कारण होता है. इस की मुख्य विशेषता यह होती है कि इस से शरीर का तापमान बढ़ता है. वायरल फीवर का बच्चों और वृद्धों में होना काफी आम है क्योंकि उन की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है. क्या होता है वायरल फीवर वायरल फीवर आमतौर पर एयरबौर्न यानी हवा में फैलने वाले वायरल इन्फैक्शन के कारण होता है. हालांकि यह वाटरबौर्न यानी पानी में फैलने वाले संक्रमण के कारण भी होता है. वाटरबौर्न इन्फैक्शन की रोकथाम करने के लिए उपाय किए जा सकते हैं लेकिन जिस हवा में हम सांस लेते हैं उस से फैलने वाले इन्फैक्शन की रोकथाम करने के उपाय काफी कम हैं.
वायरल फीवर बहुत ही कम मामले में चिंता का कारण बन पाता है. ज्यादातर मामलों में यह बिना किसी विशेष उपचार के ही ठीक हो जाता है. वायरल फीवर और बैक्टीरियल इन्फैक्शन के बीच के अंतर को स्पष्ट करना इतना आसान नहीं है क्योंकि इन के काफी सारे लक्षण एकसमान होते हैं. इसलिए यदि आप के शरीर का तापमान 102 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर हो जाता है या बुखार 48 घंटों तक कम नहीं होता तो डाक्टर से बात करना आवश्यक है. जो लोग इस संक्रमण से पीडि़त होते हैं उन को शरीर में दर्द, त्वचा पर चकत्ते और सिरदर्द की समस्या होती है. वायरल फीवर का इलाज करने के लिए दवाएं उपलब्ध हैं. कुछ मामलों में घरेलू उपचार भी इस स्थिति से निबटने में आप की सहायता करते हैं. जब वायरल फीवर हो जाए बैक्टीरिया के कारण होने वाले वायरल फीवर 3 दिनों के बाद हलका पड़ जाता है. वैसे वायरल फीवर की शुरुआत में ही इस की सही वजह की जांच कर पाना बहुत मुश्किल होता है. डाक्टर्स शुरुआत में गले की जांच, पेशाब में जलन को चैक कर के यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आप को वायरल किस वजह से हुआ है. आमतौर पर अगर मरीज को बहुत तेज बुखार रहता है तो डाक्टर उस का सब से पहले ब्लड टैस्ट करवाते हैं क्योंकि ब्लड टैस्ट से सही कारण आसानी से पता चल जाता है. अगर बुखार के साथसाथ आप को सिरदर्द, खांसी और गले में इन्फैक्शन भी हो तो इसे अनदेखा न करें बल्कि इस की जांच करवाएं.
यदि फीवर अधिक है तो सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रख कर फीवर को नौर्मल करें. खाने में फल, हरी सब्जियां लें. पानी का सेवन करें. साफ और हवादार कमरे में रहें. अपने कपड़े और बिस्तर रोज बदलते रहें. फीवर का एक चार्ट बना लें जिस से डाक्टर को देखने में आसानी रहेगी कि कबकब फीवर रहता है.
वायरल फीवर के सामान्य लक्षण वायरल फीवर के लक्षणों में फीवर का कम या तेज होना, नाक का बहना, खांसी का आना, आंखों में लालिमा और जलन का एहसास होना, मसल्स और जौइंट में दर्द बने रहना, थकान और चक्कर आना, कमजोरी का अनुभव करना, सिरदर्द, टौंसिल्स में दर्द होना, छाती में जकड़न, गले में दर्द, स्किन रैशेस, डायरिया, मतली, उलटी और सामान्य रूप से कमजोरी का अनुभव होना होता है. कमजोरी से बचने के लिए अच्छा भोजन लें. सफाई का ध्यान रखें. आराम जरूर करें. अगर आप आराम नहीं करेंगे तो फीवर लंबे समय तक चल सकता है. फीवर होने पर पैरासिटामौल का उपयोग करें. कोई एंटीबायोटिक्स देने की जरूरत नहीं है.
सही और अच्छा खान पान हमें शारारिक व मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है। लेकिन हमारी बेतरतीब दिनचर्या और खानपान की खराब आदतों के कारण कई बार हमें सीने में जलन ,सांस लेने में तकलीफ , खट्टी डकार ,पेट में जलन व दर्द ,या कब्ज की शिकायत रहने लगती है।जिसका अर्थ है कि हम पेट की समस्या से पीड़ित हैं। इस लिहाज़ से जरूरी है कि समय रहते हमें ब्लांड डाइट को अपना लेना चाहिए जिससे कि हम खुद को बीमार होने से बचा सके.जानिए क्या है ब्लांड डाइट और क्या हैं इसके फायदे।
ब्लांड डाइट क्या है.
ब्लांड डाइट के बारे में सभी लोग नहीं जानते हैं लेकिन इसे अपनाने से हम खुद का कई बीमारियों से बचाव कर सकते हैं. साथ ही यदि किसी बीमारी से ग्रस्त हैं तो उस बीमारी में ब्लांड डाइट को अपनाने से हम जल्द ही स्वस्थ हो सकते हैं. डाइटीशियन डॉ प्रियंका शर्मा के अनुसार ब्लांड डाइट हर किसी के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होती है लेकिन गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिस्ट्रेस जैसी समस्या से छुटकारा दिलाने में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.जो लोग उल्टी ,अल्सर , मितली ,एसिड रिफ्लक्स और डायरिया जैसी बिमारियों से पीड़ित हैं या अक्सर इनकी शिकायत रहती है तो उनके लिए ब्लांड डाइट रामबाण बेहद फायदेमंद है. यह सॉफ्ट और अच्छी तरह से कम तेल और मसाले में पका कर तैयार की जाती है साथ ही इसमें फाइबर की मात्रा काफी कम होती है। इसे चावल और उबली हुई सब्जियों से बनाकर तैयार कर सकते हैं.
ब्लांड डाइट से जुड़े खाद्य पदार्थ
अपनी डाइट में हरी एवं ताजी सब्जियां को शामिल करें ,डेयरी प्रोडक्ट का सेवन करें लेकिन डायरिया की समस्या से परेशान हैं तो ऐसी स्थिति में दूध का सेवन ना करें,पेय पर्दार्थों में ग्रीन टी , ब्लैक टी ,हर्बल टी ,फलों के जूस नारियल पानी है फायदेमंद , सेब ,केले का सेवन कर सकते हैं। ,अनाज विकल्पों में नियमित एवं संतुलित मात्रा में चावल लें. ग्रील, बेक एवं स्टीम की हुई मछली व अंडे भी खा सकते हैं.
इन चीज़ो से परहेज़ है जरूरी
गैस बनाने वाली सब्जियां जैसे सूखे मटर , प्याज , कॉर्न, गोभी , खीरा एवं शिमला मिर्च ,फैट रहित डेयरी प्रोडक्ट ,तेल-मसाले एवं अचार ,साबुत अनाज, नट्स एवं सीड्स ,चाय , कॉफी , सिट्रस फ्रूट एवं एल्कोहॉल
यदि आप किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो कुछ समय के लिए ब्लांड डाइट को अपनाएं , लेकिन यदि आराम न लगे तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लें.
दीपा और संदीप क्लासमेट हैं. दोनों की दोस्ती कई सालों से है. टीनऐजर दीपा शांत स्वभाव की है, इसलिए किसी से अधिक बात नहीं करती. क्लास में कुछ छूट जाने पर वह संदीप से ही नोट कर लेती है.
एक दिन दीपा की सहेली चहकती हुई दीपा के पास आ कर बोली कि वह कल डेटिंग पर गई थी. खूब मजा आया. बहुत सारी बातें कीं और एकदूसरे के बारे में विस्तार से जान कर व क्लास के बच्चे उन दोनों के बारे में क्याक्या कहते हैं, सुन कर खूब मजा आया और आगे भी डेट पर जाने की प्लानिंग है.
दीपा कुछ सुनना नहीं चाह रही थी. दरअसल उस ने डेटिंग के बारे में सुन तो रखा था पर कभी जाने के बारे में नहीं सोचा, क्योंकि उस के पेरैंट्स उस के आनेजाने को ले कर बहुत औब्जर्व करते हैं और वह उन की अकेली संतान है. लेकिन उस की सहेली की डेट पर हुए अच्छे अनुभव को बेमन से ही सही, सुन कर दीपा को लगा कि शायद उस से कुछ छूट रहा है, जो ये लड़कियां कर रही हैं पर वह नहीं.
इस बात को उस ने संदीप से शेयर किया. संदीप, दीपा की बात सम?ा रहा था, लेकिन दीपा का खुल कर उस से कुछ न कह पाने को देख कर वह मन ही मन मुसकरा उठा और एक दिन वह उसे भी डेट पर ले जाएगा, ऐसा सोच कर घर चला गया.
संदीप का यह व्यवहार दीपा को अच्छा नहीं लगा था. लेकिन दीपा कह भी नहीं पा रही थी कि उस को डेट पर जाना है क्योंकि उसे भी अपनी सहेली की तरह एक्सपीरियंस करना है.
क्या है डेटिंग
असल में डेट पर जाने में गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड बन जाना नहीं है. यह एक साधारण परिचय की तरह होता है जिस में पहली बार किसी से अकेले मिलते हैं, जहां आसपास कोई जानने वाला नहीं होता.
यही वजह है कि टीनऐजर्स अपनी पहली डेट को ले कर बहुत ही उत्साहित रहते हैं और वे इसे एक बहुत बड़ी अचीवमैंट सम?ाते हैं. हालांकि यह सही है कि पहली बार डेट पर जाने वाले टीनऐजर्स थोड़े घबराए हुए रहते हैं, लेकिन वे इस की तैयारी करते हैं ताकि वे अपने फ्रैंड्स को इंप्रैस कर सकें.
मनोरंजन का साधन है डेटिंग
मुंबई जैसे शहर में तो स्कूल जाने वाले टीनऐजर्स का डेटिंग पर जाना, उन की पढ़ाई के साथसाथ एक मनोरंजन का विकल्प माना जाता है. यहां हर जगह छोटेछोटे रैस्तरां हैं, जहां चाय, कौफी और सौफ्ट ड्रिंक बहुत ही कम पैसे में मिलते हैं.
कई बार ये टीनऐजर्स अपनी पौकेटमनी से बन मस्का और चाय ले कर इन रैस्तरां में बैठ जाते हैं और घंटों बातचीत करने के बाद अपनेअपने घर चले जाते हैं. इस के अलावा कई बार समुद्र के किनारे ऐसे टीनऐजर्स घंटों बैठ कर गपशप करते हैं.
ये बच्चे अधिकतर स्कूल से निकल कर लाइब्रेरी या किसी दोस्त का नाम बता कर पेरैंट्स को मना लेते हैं. पहली बार डेट पर जाने वाले टीनऐजर्स अधिकतर शौपिंग करते हैं, जिस में नई ड्रैस पहनना, नया बैग लेना, नए शूज और सैंडल लेना आदि होता है.
जरूरत से ज्यादा तैयारियां करने के बाद भी पहली डेट अगर असरदार नहीं हो पाती तो वे मायूस हो जाते हैं.
फीलगुड फैक्टर
कुछ लड़कियां और लड़के कइयों को डेट करते हैं और इस से वे अच्छा फील करते हैं, क्योंकि इस से दूसरों पर पीयर प्रैशर बनता है, ताकि वे भी डेट पर जाएं. इसे ध्यान में रखते हुए कई डेटिंग कंपनीज ने ऐप तैयार किए हैं. इन में ऐप के सहारे दोनों को अच्छे पार्टनर देने की कोशिश की जाती है.
लौकडाउन और कोविड की वजह से आज बच्चों की डेटिंग बढ़ी है पर असरदार नहीं. दरअसल, स्कूल बंद हैं, वर्चुअल डेट हो रही है जहां पर टीनऐजर्स बात कर सकते हैं पर मिल नहीं सकते. डेटिंग पर अवश्य जाएं, पर कुछ बातों का ध्यान रखें ताकि आप की पहली डेट यादगार बन जाए.
कुछ चीजों को अवौयड करना भी जानें पहली डेट पर अपने साथी को शारीरिक स्पर्श न करें और न ही इन विषयों पर अधिक बात करें. इस से वह व्यक्ति असहज महसूस कर सकता है.
इस के अलावा किसी प्रकार के नशे से बचें, ताकि जोश में आप होश न खो बैठें. लौकडाउन के बाद से अधिकतर बच्चे ‘ड्राई डेटिंग’ पर विश्वास करने लगे हैं, ताकि उन के रिश्ते में किसी प्रकार खटास न आए.
जो भक्ति के नशे में आज भी यह सोच रहे हैं कि देश का लोकतंत्र खतरे में नहीं है, उन को समझना चाहिए कि लोकतंत्र केवल सरकार के बंधनों से आजादी नहीं, पूरी व्यवस्था के पंजों के नुकीले नाखूनों और दांतों से मुक्ति की सोच का नाम है. लोकतंत्र में एक भावना होती है कि हर नागरिक निडर हो कर अपना काम कर सके जब तक कि वह किसी और के काम के बीच में बाधा नहीं बनता.
लोकतंत्र की परिभाषा आसान नहीं है पर अगर लगे कि आप को सामाजिक या सरकारी कानूनों, नियमों, उपनियमों की वजह से मुंह और हाथपैर बांध कर रखने पड़ रहे हैं और वह करना पड़ रहा है तो समझ लें कि लोकतंत्र एक चट्टान नहीं जिस पर बैठ कर आप सुरक्षित समझें, एक दलदल है जिस में आधे फंसे हैं.
आज सरकारी शिकंजा तो आप को गले में जंजीरों पर जंजीरों डाल ही रहा है, सामाजिक और धार्मिक फंदे भी आप को एक लाइन में कैदियों की तरह मुंह बंद कर के चलने को बाध्य कर रहे हैं.
आज आप वह सुन रहे हैं जो सरकार सुनाना चाहती है, टीवी पर वह देख रहे हैं जो सरकार दिखाना चाह रही है, वह सोच रहे हैं जो सरकार, समाज या धर्म सोचने को मजबूर कर रहा है. आज आम आदमी 200-300 साल पहले चला गया है जब न सोच की आजादी थी न कुछ करने की. जन्म से मृत्यु तक हर जना रीतिरिवाजों या सरकारी फरमानों से बंधा रहता था. उस के पास पढऩे को कुछ नहीं था और जो सुनता था वह धर्म की देन होता था. उस के जीवन का हर हिस्सा बंधा हुआ था.
आज इंटरनैट एक और जंजीर सा हो गया है. पहले लगा था कि यह लोकतंत्र को हर आदमी के हाथ में एक मौका देगा कि वह अपनी अलग सोच को सामने रख सके, अपनी सोच वालों से मिल सके, व्यापार, सरकार या धर्म के चुंगल के सामने खड़ा हो सके लेकिन पता चला कि इंटरनैट पर व्यापारियों, धर्म और सरकारों ने इस तरह कब्जा कर लिया है कि मुफ्त जानकारी के नाम पर मुफ्त में व्यवस्था प्रेम की शराब पिलाई जा रही है और आप को भ्रामक्ता के नशे में रख कर आप से मनचाहे पैसे व वोट वसूले जा रहे हैं.
इंटरनैट की चाबी कुछ लोगों के हाथ में सिमट कर रह गई है. सरकारों ने उस पर कब्जा कर लिया है. पलक झपकते ही आप को दुनियाभर की जानकारी देने के नाम पर आप को फेक न्यूज दी जा रही है. सरकारी, व्यवसायों, धर्मों ने अपनी बात को छिपाने के हजार तरीके ढूंढ़ लिए हैं. आज आम आदमी इतना कमजोर हो गया है कि वह जरा भी हट कर नहीं बोल सकता. उस का फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम अकाउंट छिन सकता है, उस का फोन और कंप्यूटर हैक किया जा सकता है, उस पर गलत जानकारी की वर्षा की जा सकती है, उसे जनता में बदनाम किया जा सकता है. और अगर फिर भी बात न बने, तो उस पर झूठे आरोप लगा कर जेलों में सड़ाया जा सकता है.
लोकतंत्र की दुर्दशा का कारण ही है कि दुनियाभर में लोग कंज्यूमर बन गए है जिन्हें अनावश्यक सामान, मनोरंजन, पूजापाठ बेचा जा सकता है. लोग अब हर बात में आसान रास्ता अपनाने लगे हैं. मुश्किल कामों पर सरकारों ने सेना व पुलिस के जरिए एकाधिकार जमा लिया है. बचपन से ही आरामतलबी का नशा करा दिया जाता है ताकि लोकतंत्र की रक्षा की कोई सोचे भी न. कुछ नया या अलग सोचने व बोलने का अधिकार अब बेहद सतही रह गया है. न तो लोगों की इस के इस्तेमाल की इच्छा बनती है, न उन में क्षमता ही बची है. छोटामोटा रोना या कभीकभार वोट दे कर लोकतंत्र की मूर्ति के आगे हाथ जोडऩा न तो लोकतंत्र की रक्षा करेगा और न ही इस से लोकतंत्र की सुरक्षा की ठोस जमीन ही तैयार होगी.
पांखुडी अवस्थी और गौतम रोड़े टीवी के क्यूटेस कपल में से एक हैं, इन दिनों कपल की जिंदगी में खुशियां हैं, दरअसल जल्द ही दोनों दो से तीन होने वाले हैं, यानि पांखुड़ी मां बनने वाली हैं.
इस खबर की जानकारी कपल ने अपने इंस्टाग्राम के जरिए दिया है. जिसे देखते ही फैंस उन्हें बधाइयां दे रहे हैं. इन दिनों वह अपनी प्रेग्नेंसी पीरिड को एंयॉय कर रहे हैं. इस बात का खुलासा एक्ट्रेस ने अपने सोशल मीडिया के जरिए दिया है.
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फैंस उन्हें लगातार बधाई दे रहे हैं.बता दें कि पांखुडी ने एक एनीमिटेड वीडियो शेयर किया है, जिसे देखते ही फैंस में खुशी की लहर दौड़ गई है. एक्ट्रेस ने लिखा है कि हमारा परिवार बढ़ रहा है. बता दें कि पांखुडी की डिलीवरी इसी साल 2023 में होगी. एक्ट्रेस ने कहा है कि हमें आपकी प्यार और शुभकानाएं की जरुरत है.
एक्ट्रेस सरगुन मेहता ने लिखा है कि बधाई हो, गौहर खान ने लिखा है बहुत बहुत बधाई हो, भगवान परिवार को आशीर्वाद देें.बता दें कि पांखुडी और गौतम सूर्यपुत्र गौतम के सेट पर मिले थें, जहां से इनकी दोस्ती हो गई थी फिर दोनों एक दूसरे के साथ जीने का वादा किया.
सीरियल अनुपमा इन दिनों लगातार सुर्खियों में बना हुआ है, शो ने इस सप्ताह भी टीआरपी लिस्ट में अपनी जगह आगे बना ली हैं. जहां एक तरफ अनुपा और अनुज एक दूसरे से अलग हो गए हैं , वहीं वनराज और माया अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे हैं.
वहीं पूरे कपाड़ियां मेंशन में बरखा ने अपना कब्जा जमा लिया है, बता दें कि बीते एपिसोड में देखने को मिला था कि नौकरी मिलते ही वनराज सातवें आसमान पर पहुंच जाता है, वहीं बरखा अनुपमा की सारी चीजें कपाड़िया मेंशन से बाहर फेंकवा देती है.
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दिखाया जाता है कि अनुपमा अपने नई जिंदगी की शुरुआत करने की कोशिश करती है, ट्विस्ट यहीं खत्म नहीं होता है, आगे देखने को मिलेगा की अनुपमा के बाहर आते ही उसे अपने पड़ोसियों से ताना सुनने को मिलेगा.
पड़ोसन ताना मारती है कि जैसी अनुपमा खुद है वैसे ही अपने बच्चों को भी बना रखा है , तभी ये लोग घर नहीं बसा पा रहे हैं. जिसके बाद से अनुपमा करारा जवाब देती है इन लोगों को. अनुपमा कहती है कि उसकी शादी वनराज से उसकी वजह से नहीं टूटी है. रही बात अनुज की तो अनुज ने उसे छोड़ा है. जिसे सुनकर पड़ोसी हैरान रह जाती है.