हलके में न लें इन दिनों मौसमी फीवर चल रहा है, यानी वायरल फीवर. इसे हलके में बिलकुल भी न लें. ऐसे में कुछ सावधानियां बरतने की जरूरत है. बदलते मौसम में अधिकतर लोग वायरल फीवर के शिकार हो जाते हैं. वायरल फीवर को ‘मौसमी बुखार’ कहा जाता है. वायरल फीवर से ठीक होने में 4-5 दिन लग जाते हैं. कई बार यह बुखार 10-12 दिन में भी ठीक नहीं होता है. फीवर की तेजी मरीज की उम्र पर निर्भर करती है और अगर वायरल फीवर किसी फ्लू वायरस की वजह से हुआ है तो इसे ठीक होने में कम से कम 5 दिनों का समय लगता है.
अगर दवा लेने के बावजूद 3 दिनों के अंदर बुखार कम नहीं हो रहा है तो आप तुरंत किसी डाक्टर के पास जाएं. सब से जरूरी यह होता है कि वायरल फीवर को हलके में न लें. जैसे ही बुखार का अनुभव हो, डाक्टर के पास जा कर दवाएं लें. लापरवाही करने में यह बुखार ठीक होने में लंबा समय ले लेता है. बच्चों में अगर यह बुखार 48 घंटे में भी कम नहीं हो रहा है तो तुरंत डाक्टर से चैकअप कराएं. वायरल फीवर रुकरुक कर होता है. कई बार यह नियमित अंतराल में अनुभव होता है. उदाहरण के लिए ज्यादातर लोगों को दोपहर या शाम को एक विशेष समय के दौरान वायरल फीवर का अनुभव होता है. वायरल फीवर होने पर ठंड लगती है. वायरल फीवर के दौरान तेज गरमी और नम तापमान के समय में ठंड का अनुभव होता है.
नाक बहना, बंद नाक, आंखों में लालिमा, निगलने में कठिनाई आदि ये वायरल फीवर के कुछ लक्षण हैं. वायरल फीवर सामान्य फीवर की दवाओं से ठीक नहीं होते. सामान्य फीवर की दवाएं वायरल फीवर को कुछ समय के लिए ही ठीक कर पाती हैं, जैसे ही दवाओं का असर खत्म होता है, वायरल फीवर फिर से हो जाता है. वायरल फीवर सामान्य फीवर से ज्यादा समय तक रहता है. वायरल फीवर वायरल संक्रमण के कारण होता है. इस की मुख्य विशेषता यह होती है कि इस से शरीर का तापमान बढ़ता है. वायरल फीवर का बच्चों और वृद्धों में होना काफी आम है क्योंकि उन की रोग प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है. क्या होता है वायरल फीवर वायरल फीवर आमतौर पर एयरबौर्न यानी हवा में फैलने वाले वायरल इन्फैक्शन के कारण होता है. हालांकि यह वाटरबौर्न यानी पानी में फैलने वाले संक्रमण के कारण भी होता है. वाटरबौर्न इन्फैक्शन की रोकथाम करने के लिए उपाय किए जा सकते हैं लेकिन जिस हवा में हम सांस लेते हैं उस से फैलने वाले इन्फैक्शन की रोकथाम करने के उपाय काफी कम हैं.
वायरल फीवर बहुत ही कम मामले में चिंता का कारण बन पाता है. ज्यादातर मामलों में यह बिना किसी विशेष उपचार के ही ठीक हो जाता है. वायरल फीवर और बैक्टीरियल इन्फैक्शन के बीच के अंतर को स्पष्ट करना इतना आसान नहीं है क्योंकि इन के काफी सारे लक्षण एकसमान होते हैं. इसलिए यदि आप के शरीर का तापमान 102 डिग्री फारेनहाइट से ऊपर हो जाता है या बुखार 48 घंटों तक कम नहीं होता तो डाक्टर से बात करना आवश्यक है. जो लोग इस संक्रमण से पीडि़त होते हैं उन को शरीर में दर्द, त्वचा पर चकत्ते और सिरदर्द की समस्या होती है. वायरल फीवर का इलाज करने के लिए दवाएं उपलब्ध हैं. कुछ मामलों में घरेलू उपचार भी इस स्थिति से निबटने में आप की सहायता करते हैं. जब वायरल फीवर हो जाए बैक्टीरिया के कारण होने वाले वायरल फीवर 3 दिनों के बाद हलका पड़ जाता है. वैसे वायरल फीवर की शुरुआत में ही इस की सही वजह की जांच कर पाना बहुत मुश्किल होता है. डाक्टर्स शुरुआत में गले की जांच, पेशाब में जलन को चैक कर के यह पता लगाने की कोशिश करते हैं कि आप को वायरल किस वजह से हुआ है. आमतौर पर अगर मरीज को बहुत तेज बुखार रहता है तो डाक्टर उस का सब से पहले ब्लड टैस्ट करवाते हैं क्योंकि ब्लड टैस्ट से सही कारण आसानी से पता चल जाता है. अगर बुखार के साथसाथ आप को सिरदर्द, खांसी और गले में इन्फैक्शन भी हो तो इसे अनदेखा न करें बल्कि इस की जांच करवाएं.
यदि फीवर अधिक है तो सिर पर ठंडे पानी की पट्टी रख कर फीवर को नौर्मल करें. खाने में फल, हरी सब्जियां लें. पानी का सेवन करें. साफ और हवादार कमरे में रहें. अपने कपड़े और बिस्तर रोज बदलते रहें. फीवर का एक चार्ट बना लें जिस से डाक्टर को देखने में आसानी रहेगी कि कबकब फीवर रहता है.
वायरल फीवर के सामान्य लक्षण वायरल फीवर के लक्षणों में फीवर का कम या तेज होना, नाक का बहना, खांसी का आना, आंखों में लालिमा और जलन का एहसास होना, मसल्स और जौइंट में दर्द बने रहना, थकान और चक्कर आना, कमजोरी का अनुभव करना, सिरदर्द, टौंसिल्स में दर्द होना, छाती में जकड़न, गले में दर्द, स्किन रैशेस, डायरिया, मतली, उलटी और सामान्य रूप से कमजोरी का अनुभव होना होता है. कमजोरी से बचने के लिए अच्छा भोजन लें. सफाई का ध्यान रखें. आराम जरूर करें. अगर आप आराम नहीं करेंगे तो फीवर लंबे समय तक चल सकता है. फीवर होने पर पैरासिटामौल का उपयोग करें. कोई एंटीबायोटिक्स देने की जरूरत नहीं है.