जो भक्ति के नशे में आज भी यह सोच रहे हैं कि देश का लोकतंत्र खतरे में नहीं है, उन को समझना चाहिए कि लोकतंत्र केवल सरकार के बंधनों से आजादी नहीं, पूरी व्यवस्था के पंजों के नुकीले नाखूनों और दांतों से मुक्ति की सोच का नाम है. लोकतंत्र में एक भावना होती है कि हर नागरिक निडर हो कर अपना काम कर सके जब तक कि वह किसी और के काम के बीच में बाधा नहीं बनता.
लोकतंत्र की परिभाषा आसान नहीं है पर अगर लगे कि आप को सामाजिक या सरकारी कानूनों, नियमों, उपनियमों की वजह से मुंह और हाथपैर बांध कर रखने पड़ रहे हैं और वह करना पड़ रहा है तो समझ लें कि लोकतंत्र एक चट्टान नहीं जिस पर बैठ कर आप सुरक्षित समझें, एक दलदल है जिस में आधे फंसे हैं.
आज सरकारी शिकंजा तो आप को गले में जंजीरों पर जंजीरों डाल ही रहा है, सामाजिक और धार्मिक फंदे भी आप को एक लाइन में कैदियों की तरह मुंह बंद कर के चलने को बाध्य कर रहे हैं.
आज आप वह सुन रहे हैं जो सरकार सुनाना चाहती है, टीवी पर वह देख रहे हैं जो सरकार दिखाना चाह रही है, वह सोच रहे हैं जो सरकार, समाज या धर्म सोचने को मजबूर कर रहा है. आज आम आदमी 200-300 साल पहले चला गया है जब न सोच की आजादी थी न कुछ करने की. जन्म से मृत्यु तक हर जना रीतिरिवाजों या सरकारी फरमानों से बंधा रहता था. उस के पास पढऩे को कुछ नहीं था और जो सुनता था वह धर्म की देन होता था. उस के जीवन का हर हिस्सा बंधा हुआ था.
आज इंटरनैट एक और जंजीर सा हो गया है. पहले लगा था कि यह लोकतंत्र को हर आदमी के हाथ में एक मौका देगा कि वह अपनी अलग सोच को सामने रख सके, अपनी सोच वालों से मिल सके, व्यापार, सरकार या धर्म के चुंगल के सामने खड़ा हो सके लेकिन पता चला कि इंटरनैट पर व्यापारियों, धर्म और सरकारों ने इस तरह कब्जा कर लिया है कि मुफ्त जानकारी के नाम पर मुफ्त में व्यवस्था प्रेम की शराब पिलाई जा रही है और आप को भ्रामक्ता के नशे में रख कर आप से मनचाहे पैसे व वोट वसूले जा रहे हैं.
इंटरनैट की चाबी कुछ लोगों के हाथ में सिमट कर रह गई है. सरकारों ने उस पर कब्जा कर लिया है. पलक झपकते ही आप को दुनियाभर की जानकारी देने के नाम पर आप को फेक न्यूज दी जा रही है. सरकारी, व्यवसायों, धर्मों ने अपनी बात को छिपाने के हजार तरीके ढूंढ़ लिए हैं. आज आम आदमी इतना कमजोर हो गया है कि वह जरा भी हट कर नहीं बोल सकता. उस का फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम अकाउंट छिन सकता है, उस का फोन और कंप्यूटर हैक किया जा सकता है, उस पर गलत जानकारी की वर्षा की जा सकती है, उसे जनता में बदनाम किया जा सकता है. और अगर फिर भी बात न बने, तो उस पर झूठे आरोप लगा कर जेलों में सड़ाया जा सकता है.
लोकतंत्र की दुर्दशा का कारण ही है कि दुनियाभर में लोग कंज्यूमर बन गए है जिन्हें अनावश्यक सामान, मनोरंजन, पूजापाठ बेचा जा सकता है. लोग अब हर बात में आसान रास्ता अपनाने लगे हैं. मुश्किल कामों पर सरकारों ने सेना व पुलिस के जरिए एकाधिकार जमा लिया है. बचपन से ही आरामतलबी का नशा करा दिया जाता है ताकि लोकतंत्र की रक्षा की कोई सोचे भी न. कुछ नया या अलग सोचने व बोलने का अधिकार अब बेहद सतही रह गया है. न तो लोगों की इस के इस्तेमाल की इच्छा बनती है, न उन में क्षमता ही बची है. छोटामोटा रोना या कभीकभार वोट दे कर लोकतंत्र की मूर्ति के आगे हाथ जोडऩा न तो लोकतंत्र की रक्षा करेगा और न ही इस से लोकतंत्र की सुरक्षा की ठोस जमीन ही तैयार होगी.