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मुझे एक लड़के से प्यार है, एक बार हम दोनों ने सेक्स कर लिया, अब वह युवक मुझ से कटता है,क्या करूं?

 सवाल

मैं 22 वर्षीय पीजी में रहने वाली युवती हूं. मौर्निंग में कालेज जाती हूं और ईवनिंग में एक पिज्जा हट पर काम करती हूं. मुझे अपनी कक्षा के एक छात्र से प्यार हो गया है.

एक बार मैं उस के  घर उस से मिलने गई तब वह घर में अकेला था. उस ने मुझे आलिंगनबद्ध कर लिया. मैं भी भावना में बह गई और सबकुछ हो गया. अब वह युवक मुझ से कटता है, जबकि मेरा मन उसे पाने को करता है. क्या करूं?

जवाब

आप अकेली दूसरे शहर में पीजी में रहती हैं और पार्टटाइम जौब कर अपनी पढ़ाई का खर्च उठाती हैं, लेकिन प्रेम आप के सारे सपनों पर पानी फेर रहा है. तिस पर आप ने खुद को उसे समर्पित कर गलती की है, पर अब कोशिश करें कि वह आप से पहले की तरह मिले. नहीं तो उस से रिलेशन न रखें और जिंदगी की कड़वी भूल समझ कर उन लमहों को भूल जाएं.

ब्रेकअप के बाद नई शुरुआत करें. खुद को काम में व्यस्त रखें व अपने कैरियर के बारे में सोचें. अगर उसे आप से प्यार हुआ तो वह अवश्य आप से मिलेगा अन्यथा एकतरफा प्यार कर आप भी खुश नहीं रह पाएंगी.

40 के बाद ऐसे करें अपनी खूबसूरती की देखभाल

मौसी, चाची, मामी, बूआ, भाभी, दीदी या फिर पड़ोस की आंटी के भड़कीले मेकअप को देख कर अकसर बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम वाली कहावत याद आ जाती है. मौसी के होंठों पर लाल गहरी लिपस्टिक देख बरबस हंसी छूट जाती है. थुलथुल शरीर वाली मामी जब पेंसिल हील वाली सैंडल पहन गिरतेसंभलते चलती हैं, कैसा दिलचस्प नजारा होता है. सांवली और मोटी चाची जब किसी समारोह में पीली गोटेदार साड़ी पहन कर पहुंचती हैं तो सरसों के खेत में भैंस की कल्पना को सच साबित कर जाती हैं. अपने कई महिला रिश्तेदारों का पहनावा और मेकअप देख खुद को शर्म आने लगती है, ऐसा गाहेबगाहे होता ही रहता है.

दरअसल, बढ़ती या ढलती उम्र का एहसास छिपाने के लिए वह चटकदार कपड़े पहनती हैं और भड़कीला मेकअप करती हैं. फैशन डिजाइनर अमित कुमार कहते हैं कि उम्र के साथ पहनावा बदलना जरूरी है. 40-45 साल की उम्र के बाद औरतें अपने शरीर और हेल्थ को ले कर लापरवाह हो जाती हैं. बेडौल शरीर पर किसी भी तरह का पहनावा अच्छा नहीं लगता है. दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में ज्यादातर औरतें थुलथुली हो जाती हैं और उस पर जींसटौप पहन लेती हैं. अब उन को कौन समझाए कि उम्र और शरीर की बनावट के हिसाब से ही पहनावा बदलना चाहिए.

उम्र के चौथे दशक के बाद महिलाओं को देखभाल की अधिक जरूरत होती है. शरीर को फिट और चुस्तदुरुस्त रख कर खुद को स्मार्ट बनाए रख सकती हैं. पटना यूनिवर्सिटी की 48 वर्षीय प्रो. रेखा बताती हैं कि बढ़ती उम्र के साथ महिलाओं को खुद के स्वास्थ्य की देखभाल तो करनी ही चाहिए साथ ही सुंदर दिखने के बजाय चुस्तदुरुस्त दिखने की कोशिश करनी चाहिए. योग, व्यायाम, खानपान पर नियंत्रण और खुद की देखभाल के जरिए शरीर को फिट बनाए रखा जा सकता है. 40 के बाद इस तरह का मेकअप करें जिस से कि व्यक्तित्व निखरे, न कि लोग चुड़ैल, भूतनी कह कर हंसी उड़ाएं.

ब्यूटीशियन प्रभा नंदन की सलाह है कि ज्यादा सुंदर दिखने के चक्कर में न चटकीलाभड़कीला मेकअप करें और न ही लालपीले चमकदार कपड़े पहनें. अपने स्किन टोन के अनुसार ही मेकअप करें और कपड़ों का चुनाव करें. सही मेकअप और पहनावे से व्यक्तित्व के साथ विश्वास भी बढ़ता है. लोगों की नजरों में छाने के लिए चटकीले और भड़कीले मेकअप तथा पहनावे से ही प्रौढ़ औरतें हंसीमजाक का पात्र बन जाती हैं. बढ़ती आयु के साथ ही स्किन का कसाव कम हो जाता है. आंखों के पास काले धब्बे हो जाते हैं. चेहरे पर झाइयां और झुर्रियां बढ़ जाती हैं, बाल सफेद हो जाते हैं, बाल झड़ने लगते हैं. नियमित रूप से फेशियल, बाडी मसाज, मेनिक्योर, पेडिक्योर आदि सौंदर्य उपचारों द्वारा इन समस्याओं से बचा तो नहीं जा सकता, कम जरूर किया जा सकता है.

खाने में दूध, दही, पनीर, हरी सब्जियां, सलाद, नीबू और तिल को जरूर शामिल करें. सब से ज्यादा जरूरी है कि पानी भरपूर पीएं. ज्यादातर महिलाएं पानी नहीं पीती हैं, जो कई बीमारियों और समस्याओं की जड़ है. डा. बिमल कारक कहते हैं कि दिनभर में कम से कम 2 लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए. सुबह टहल कर या व्यायाम से शरीर को चुस्तदुरुस्त रखें. महिलाओं के लिए सब से बड़ी समस्या यह है कि वे समूचे परिवार का खयाल तो पूरी तन्मयता से करेंगी लेकिन खुद को ले कर लापरवाह रहती हैं. न समय पर नाश्ता, न खाना, न नहानाधोना. ऐसे में योग, व्यायाम या टहलने की बात ही बेमानी हो जाती है. योग विशेषज्ञ एच एन झा कहते हैं कि महिलाओं को यह सोचनासमझना चाहिए कि जब वे स्वस्थ रहेंगी तभी अपने परिवार की भी बेहतर तरीके से देखभाल कर सकेंगी. रोज 15-20 मिनट व्यायाम करने के लिए समय तो निकालना ही चाहिए.

स्वस्थ रह कर ही कोई महिला हर तरह से फिट और हिट रह सकती है. जब शरीर चुस्त रहेगा तो वह भी खुश रहेंगी, परिवार खुश रहेगा. स्मार्ट शरीर पर उम्र के हिसाब से रायल पहनावे के साथ वे पार्टीसमारोह में जानदार, शानदार और रौबदार दिख सकती हैं. इसलिए प्रौढ़ महिलाओं को चाहिए कि वे उम्र के अनुसार मेकअप और पहनावे को अपनाकर ही  स्मार्ट श्रीमती कहला सकती हैं.

40 के बाद फॉलों करें ये टिप्स

– हलके रंग के कपड़े पहनें.

– शरीर की बनावट के हिसाब से कपड़े पहनें.

– नियमित रूप से व्यायाम करें.

– पेट, कमर, सीना, गर्दन की एक्सर- साइज जरूर करें.

– खानपान समय पर लें और पौष्टिक भोजन लें.

– स्किन के कलर के अनुसार मेकअप करें पर हलका करें.

– सोने से पहले स्किन को क्लींजर से साफ करें.

– पूरी नींद लें.

– किसी भी बीमारी को टालें नहीं, तुरंत इलाज कराएं.

मैं अपने गांव के ही एक लड़के से 3 सालों से प्यार करती हूं, बताएं घर वालों को कैसे समझाऊं?

सवाल

मैं 17 वर्षीय छात्रा हूं. अभी इंटर में हूं. मैं अपने गांव के ही एक लड़के से 3 सालों से प्यार करती हूं.  पढ़ाई पूरी होने के बाद हम दोनों शादी करना चाहते हैं. लड़के के घर वालों को कोई ऐतराज नहीं है पर मेरे पापा इस रिश्ते के लिए राजी नहीं हैं. उस लड़के का घर हमारे घर के बहुत नजदीक (2-3 घर छोड़ कर) है. गांव में इस प्रकार पासपड़ोस के बच्चों में बहनभाई का सा रिश्ता माना जाता है. प्यारमुहब्बत का रिश्ता बनाने से बड़ी बदनामी होती है, इसलिए घर वाले न केवल मना कर रहे हैं वरन मेरे लिए रिश्ता भी देख रहे हैं. जल्द ही मेरी शादी कर देना चाहते हैं. मैं किसी और से शादी नहीं करना चाहती और अभी आगे पढ़ना चाहती हूं. बताएं घर वालों को कैसे समझाऊं?

जवाब

आप 13-14 वर्ष की उम्र से प्यार करने की बात कर रही हैं, जो प्यार नहीं महज यौनाकर्षण है. इस उम्र में विपरीत सैक्स के प्रति इस प्रकार का आकर्षण होना स्वाभाविक है. अभी भी आप मात्र 17 वर्ष की हैं, इसलिए इस उम्र में व्यक्ति इतना मैच्योर नहीं होता कि जिंदगी के अहम फैसले ले सके. आप अपना ध्यान फिलहाल पढ़ाई में लगाएं और शादी के बारे में घर वालों को सोचने दें. वे आप के मातापिता हैं. अत: आप का भला ही चाहेंगे.

अनुज और अनुपमा को दूर करने का हर प्रयास करेगी बरखा

अनुपमा सीरियल में इन दिनों लगातार इमोशनल ड्रामा चल रहा है, जिसे देखकर फैंस का भी दिल टूट गया है, फैंस भी चाहते हैं कि जल्द से जल्द अनुज और अनुपमा एक हो जाए लेकिन बरखा बिल्कुल ये नहीं चाहती है.

सीरियल में इन दिनों माया और बरखा अनुपमा की विलेन बनी हुई हैं, ये दोनों नहीं चाहती हैं कि अनुज दूबार कभी अनुपमा की जिंदगी में वापस आए, हालांकि कुदरत को कुछ और ही मंजूर है वह चाहता है कि अनज और अनुपमा एक बार फिर एक हो जाएं.

 

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बता दें कि आगे कि सीरियल में दिखाया जाएगा कि अंकुश अनुज को समझाने की कोशिश करता है कि वह वापस  आ जाए और अनुपमा के साथ खुशी-खुशी अपनी जिंदगी बिताए , हालांकि बरखा कैबिन में अनुज के अकेले नहीं छोड़ती है, वह भी साथ में जाती है मिलने के लिए लेकिन जैसे ही अंकुश को मौका मिलता है वह अनुपमा को समझाने की कोशिश करता है.

इस बीच बरखा को अकुंश की बात समझ आ जाती है और वह कहती है कि वह दोनों एक दूसरे से दूर ही ठीक है, वह अंकुश और अनुज को समझाने की कोशिश करती है. वह इसी बीच कहती है कि तुमने अनुपमा को बहुत कुछ कहा है वह अपनी जिंदगी में खुश है, वह मूव ऑन कर चुकी है.

Yrkkh: बेटे को पाने के लिए हद पार करेगा अभिमन्यु,आरोही का टूटेगा सपना

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में ढ़ेर सारे ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं,  जबसे अभिमन्यु को सच्चाई का पता चला है वह परेशान हो गया है, वह हर वक्त अबीर के बारे में सोचने में लगा हुआ है, वह चाहता है कि अबीर दूबारा उसकी जिंदगी में वापस आ जाए.

वहीं दूसरी तरफ अक्षरा अबीर के इलाज के लिए उसे अमेरिका लेकर जाना चाहती है, लेकिन वहीं अभिमन्यु मन बना लिया है कि वह अबीर को अमेरिका नहीं जाने देगा. जिसके बाद से परिवार में सभी लोग परेशान हैं कि कैसे अक्षरा को रोका जाए.

आने वाले एपिसोड में देखने को मिलेगा कि अभिमन्यु गोयनका हाउस जाता है और कहता है कि अबीर अमेरिका जाने से पहले वापस आ जाएगा, इस बात को सुनकर सभी हैरान हो जाते हैं कि कैसे यह संभव है.

वहीं अबीर अभिनव से बिना मिले चला जाता है, जिस वजह से अभिनव काफी परेशान नजर आता है, गोयनका हाउस में आरोही और अभिम्यु की शादी की तैयारी चल रही होती है, आरोही कहती है कि मुझे सिंपल शादी करना है, मुझे ज्यादा धमाके वाली शादी नहीं करनी है.

आरोही कि बात सुनकर मंजरी खुश हो जाती है, अभिमन्यु अपने अंदाज में सुबह आरती करता है और मन ही मन अपने बेटे को वापस पाने के लिए प्रार्थना करता है. क्या अबीर वापस आएगा जानने के लिए आपको नेकस्ट एपिसोड को देखना होगा.

स्किन को बनाना है ग्लोइंग तो करें इन हर्ब्स का प्रयोग

खूबसूरत बेदाग त्वचा की इच्छा हर किसी लड़की को होती है। पार्लर में हज़ारों रुपए खर्च करने के बाद भी कभी कभी साइड इफ़ेक्ट की समस्या भी झेलनी पड़ जाती है क्योंकि केमिकल युक्त प्रोडक्ट कई बार त्वचा को सूट नहीं करते . लेकिन क्या आप जानती हैं कि हमारी प्रकृति ने हमें कुछ ऐसी हर्ब्स दी हैं जो हमें प्राकृतिक रूप से सौंदर्य देती हैं और हमारी स्किन को बिना किसी साइड इफ़ेक्ट के ग्लोइंग और खूबसूरत बना देती हैं तो चलिए जानते है ऐसी ही कुछ हर्ब्स के बारे में.

तुलसी -सनातन धर्म में तुलसी को पूजन्य माना गया है.इसे दवाइयों में भी इस्तेमाल किया जाता है. तुलसी के इस्तेमाल से त्वचा को एक्ने, ब्लैकेड,डार्क स्पॉट और पिंपल फ्री बनाया जा सकता है साथ ही तुलसी में एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल और एंटीसेप्टिक प्रॉपर्टी होने के कारण यह हमें विभिन्न प्रकार के संक्रमण से बचाती भी है.
प्रयोग विधि :1 चम्मच तुलसी पाउडर को दूध में मिक्स कर पेस्ट बना लें फिर इसे चहरे पर लगाएं और 10 मिनट बाद साफ पानी से चेहरा धो लें । ऐसा करने से त्वचा खिली व चमकदार नज़र आएगी ।इसके आलावा तुलसी के पाउडर को आप अन्य प्रकार के घर पर बने फेस पैक में मिलाकर भी प्रयोग कर सकती हैं.
दालचीनी: दालचीनी स्किन के क्लोज्ड पोर्स को खोलने के साथ साथ पिंपल, एक्ने, ब्लैकहेड जैसी समस्याओं में बहुत फायदेमंद होता है।यह एंटीसेप्टिक औषधि के साथ साथ एंटी इन्फ्लेमेटरी, एंटीऑक्सीडेंट, एंटीफंगल, और एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टी से भरपूर होता है. इसके नियमित प्रयोग से कोलेजन प्रोडक्शन में बढ़ोतरी होती है जिस वजह से यह एंटी एजिंग का भी काम करती है.
प्रयोग विधि : १ चम्मच दालचीनी को शहद/ केला या दही में से किसी एक में मिलाकर आप स्क्रब या फेस पैक की तरह इस्तेमाल कर सकती हैं. साथ ही मार्किट में दालचीनी का तेल मिलता है जिससे त्वचा को मसाज देने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ता है और स्किन इलास्टिसिटी बेहतर होती है.
लैवेंडर : स्किन ड्राइनेस, पिंपल, एक्ने, डार्क स्पॉट और त्वचा पर हुई सूजन को कम करने में लैवेंडर फायदेमंद होता है क्योंकि इसमें एंटीसेप्टिक, एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटीफंगल प्रॉपर्टीज होती है.
प्रयोग विधि :लैवेंडर के सूखे या ताजे फूल को फेसियल क्रीम, टोनर, फेशियल स्टीम के लिए इस्तेमाल करें . लैवेंडर ऑयल में नारियल का तेल और कैरियर ऑयल की कुछ बूंदों को मिलाकर लगाने से पिंपल खत्म हो जाते हैं. यह नेचुरल टोनर का भी काम करता है। वहीं टी ट्री ऑयल के साथ लैवेंडर ऑयल मिक्स करके लगाने से इसमें मौजूद एंटी-फंगल गुण सूजन कम करने का कार्य करता है.

मैं हाउसवाइफ हूं, मेरी बेटी 5वीं क्लास में पढ़ती है , लेकिन मैं उसकी सुरक्षा को लेकर परेशान रहती हूं , बताएं मैं क्या करूं?

सवाल 

मैं हाउसवाइफ हूं, मेरी बच्ची 5वीं क्लास में पढ़ती है, मैं उस का पूरा ध्यान रखती हूं लेकिन पता नहीं क्यों उस की सुरक्षा को ले कर मैं चिंतित रहती हूं, उसे कहीं भी अकेला भेजनेजैसे फ्रैंड की बर्थडे पार्टीपिकनिकट्यूशन क्लास तक में मुझे डर लगा रहता है जब तक कि वह वापस नहीं आ जाती, मैं यह बात अपने पति से भी कहती हूं तो वे कहते हैं कि मैं कुछ ज्यादा ही पजैसिव हूं उसे ले कर, मुझे क्या करना चाहिए कि मेरी यह चिंता कुछ कम हो?

जवाब

आप की चिंता वैसे तो जायज है. आजकल का माहौल ही कुछ ऐसा है कि बच्ची को कहीं भी अकेला छोड़ते डर तो लगता ही है लेकिन इस डर के कारण हम उन्हें बक्से या ताले में बंद तो नहीं रख सकते.

जमाने के साथ चलना तो उसे सिखाना ही पड़ेगा और इस के लिए उसे अकेला छोड़ना भी पड़ेगा. लेकिन आप अपनी बच्ची को पूरी तरह से हिदायत दें कि चाहे कोई भी हो वह किसी की गोद में न बैठे. जब भी बच्ची अपने मित्रों के साथ बाहर जाए तो किसी तरीके से यह पता लगाएं कि किस तरह के गेम्स वह खेलती है. आप मेरा आशय सम?ा गई होंगी.

बच्ची को कभी भी एकल व्यक्ति के घर अकेले न जाने दें. कार्टून की सीरीज को पहले खुद देखिए. इन दिनों इन में से बहुत सी सीरीज में पोर्नोग्राफिक चीजें होती हैं. उस को यौनशिक्षा अवश्य दें अन्यथा कई बार बच्चे गलत जगह से कुछ भी अधकचरी जानकारी हासिल कर लेते हैं.

दोषी कौन था?-भाग 3 : बूआ पता नहीं क्यों चुपचुप सी लग रही थीं

उसी दिन हम ने और जरूरी सामान खरीदा और टूटीफूटी गृहस्थी की शुरुआत की. कहां पागल थी गीता? पलपल मेरे घर को सजातीसंवारती, मेरे सुखदुख का खयाल रखती. मुझे तो यह किसी भी कोण से पागल न लगी थी. हां, शरीर अवश्य एक नहीं हो पाए थे, मगर उस के लिए मुझे जरा भी अफसोस नहीं था. वह मुझे अपना समझती थी और मेरे सामीप्य में उसे सुख मिलता था, यही बहुत था. मैं सब को यह दिखा देना चाहता था कि उन्होंने गीता को कितना गलत समझा था. विशेषरूप से उस के पूर्व पति को जिस ने मात्र चंद पलों के शारीरिक सुख के अभाव में हर सुख को ताक पर रख दिया था. गीता मुझे अपने बचपन के खट्टेमीठे अनुभव सुनाती तो मैं बूआ पर खीझ उठता. मामामामी के पास अनाथों की तरह पलतेपलते उस ने क्याक्या नहीं सहा था. सुनातेसुनाते वह कई बार रो भी पड़ती. ऐसे में उसे बांहों में भर कर धीरज बंधाता. ‘‘मेरे पिता ने कभी मुड़ कर मेरी तरफ नहीं देखा. मां के जाते ही मैं अनाथ हो गई. अगर मैं मर गई तो क्या आप मेरे बच्चों को अनाथ कर देंगे? गौतम, क्या आप भी ऐसा करेंगे?’’

एकाएक उस के प्रश्न पर मैं अवाक् रह गया. रुंधे स्वर में उस ने फिर से पूछा, ‘‘क्या आप भी ऐसा ही करेंगे?’’ ‘‘ऐसा मत सोचो, गीता. मैं तुम से प्यार करता हूं, तुम्हारा अनिष्ट कभी नहीं चाहूंगा.’’ ‘‘मैं भी अपने पिता से बहुत प्यार करती हूं, उन का अनिष्ट नहीं चाहती थी, इसलिए कभी उन के पास नहीं आई. मां मुझे पसंद नहीं करतीं. मेरी वजह से उन की गृहस्थी में दरार न पड़े, ऐसा ही सोच सदा अपनी इच्छा मारती रही. लेकिन जब भी आप मेरी तरफ हाथ बढ़ाते हैं तो मेरी इच्छा एकाएक जी सी उठती है.’’ ‘‘मैं तुम्हारी इच्छा का सम्मान करता हूं, गीता. मुझे तुम से कोई शिकायत नहीं है,’’ उस के गाल थपक कर मैं हंस पड़ा. मैं स्वयं हैरान था कि कैसे एक ही रिश्ते में बंधे हुए 2-2 नातों को निभा रहा हूं. मेरे सामीप्य में उस की हर

अतृप्त इच्छा शांत हो रही थी. कभी खिलौने के लिए होशोहवास खो बैठने वाली गीता अब मेरे लिए पागल रहने लगी थी. एक शाम उस ने पूछा, ‘‘आप भी कहीं मेरे पिता की तरह मुझ से आंखें तो नहीं फेर लेंगे? मुझ से मन तो नहीं भर जाएगा?’’ मैं हतप्रभ रह गया. गीता आगे बोली, ‘‘मैं आप की हर स्वाभाविक इच्छा को मार रही हूं. कैसे निभ पाएगा हमारा साथ? अपने पिता के सिवा मुझे कुछ भी नहीं सूझता. आप भी, आप भी पिता जैसे लगते हैं. मैं कुछ और सोचना चाहती हूं, मगर कैसे सोचूं?’’ स्नेह से पास बिठा मैं ने उसे चूमा तो मुझे उस का माथा कुछ गरम लगा, ‘‘तबीयत ठीक नहीं है क्या? मैं अभी दवा ले कर आता हूं.’’

‘‘आप मेरे पास रहिए,’’ गीता ने मेरा हाथ कस कर पकड़ लिया. उस ने मुझे जाने नहीं दिया. काफी देर तक पास बैठा उस का सिर सहलाता रहा. हमारी शादी को लगभग 4 महीने हो गए थे. इस अंतराल में मैं ने यह महसूस कर लिया था कि गीता मेरे जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुकी है. एक दिन उस ने कहा, ‘‘कहीं मैं सचमुच तो पागल नहीं हूं? शायद यही सच हो.’’ ‘‘नहीं, तुम पागल नहीं हो, मैं कहता हूं न,’’ मैं ने दुलार कर उसे शांत कर दिया और उसी रात एक निश्चय ले लिया. दूसरी सुबह फूफाजी को गीता की बीमारी का झूठा तार दे दिया. सोचा, शायद बेटी का मोह उन्हें खींच लाए. तार देने के बाद मैं 2-3 दिन उन का इंतजार करता रहा. रहरह कर रोना आ जाता कि बेचारी गीता का ऐसा अनादर… तीसरे दिन मैं ने एक और तार दे दिया. उस का भी इंतजार किया, मगर कोई भी न आया. इसी तरह एक सप्ताह बीत गया. एक रात मैं बेहद बेचैन रहा. बारबार करवटें बदलता रहा, रहरह कर हर आहट पर उठ बैठता कि शायद मेरी गीता का हालचाल पूछने कोई आ रहा हो.

मैं सोचने लगा कि वे पिता हैं, पुरुष हैं, इतने मजबूर तो नहीं कि बेटी से चाह कर भी न मिल पाएं. आखिर क्यों वे इतने कठोर हो गए? उन दिनों मेरी हालत विचित्र सी हो गई थी. सुबह उठते ही मैं घर से निकल गया. मन में आ रहा था एक बार मुंबई जाऊं और फूफाजी को घसीट कर ले आऊं. स्टेशन पर गया, टिकट खरीदा. गाड़ी में बैठ गया, मगर पहले ही स्टेशन पर उतर गया. सोचा, क्यों जाऊं उन के पास? भटकभटक कर जब थक गया तो घर लौट आया.

‘‘कहां चले गए थे आप, सुबह से भूखेप्यासे?’’ गीता का घबराया स्वर कानों में पड़ा तो जैसे होश आया. मैं चुप ही रहा. नहाधो कर नाश्ता किया. गीता के अपमान पर बहुत गुस्सा आ रहा था. रात को मैं ने गीता को पास बुलाया, पर वह नीचे जमीन पर ही लेटी रही. तब स्वयं ही उठ कर नीचे चला आया और स्नेह से सहला दिया, ‘‘क्यों गीतू, मुझ से नाराज हो?’’ वह न जाने कब से रो रही थी. मैं अवाक् रह गया और उसे अपनी गोद में खींच लिया. ‘‘किसी ने कुछ कह दिया, गीता? क्या हुआ, रो क्यों रही हो?’’ अनायास ही उस के हाथों को पकड़ा तो कागज का एक मुड़ातुड़ा टुकड़ा मेरे हाथ में आ गया. उस के पिता को भेजे गए तार की वह रसीद थी.

‘‘आप ने पिताजी को तार क्यों भेजा? क्या मुझे वापस भेजना…?’’

‘‘नहीं गीता, पागल हो गई हो क्या?’’ एक झटके से उसे बांहों में भींच लिया. उस के भीगे चेहरे पर स्नेह चुंबन जड़ते हुए मुश्किल से मैं बोल पाया, ‘‘तुम्हें वापस भेज दूंगा, तुम ने यह कैसे सोच लिया?’’ फिर मैं उसे अपने पास बिस्तर पर ले आया और जबरदस्ती उस का चेहरा सामने किया, ‘‘तुम्हारे लिए सब को छोड़ दिया है गीता, भला तुम्हें…’’

‘‘तो आप ने उन्हें तार क्यों भेजा?’’ उस के मासूम प्रश्न का मैं ने उत्तर दे दिया. सब साफसाफ बताया तो वह तड़प उठी, क्योंकि उस की बीमारी की बात सुन कर भी पिता के सब्र का प्याला छलका नहीं था. मेरी छाती में समाई वह देर तक सुबकती रही. अपने प्रति अनायास झलक आए अविश्वास ने उस रात अनजाने ही मेरे शरीर की ऊष्मा को भड़का दिया था. मैं उसे कितना चाहता हूं, यह विश्वास दिलाने का प्रयत्न करने लगा. मैं ने उसे यह एहसास भी दिलाना चाहा कि वह मेरे ही शरीर का एक अभिन्न अंग है. अपने अनछुए, अनकहे भाव रोमरोम से फूटते प्रतीत होने लगे. उन्हीं क्षणों में मेरे सीने में समाईसमाई वह मेरे अस्तित्व में भी कब समा गई, पता ही न चला. वे चंद क्षण आए और हमें पतिपत्नी बना कर चले गए. गीता मुझे एकदम नईनई सी लगने लगी थी. उस रात हम दोनों ने पहली बार महसूस किया कि शारीरिक सुख क्या होता है. यह मेरी विजय ही तो थी कि गीता अपनी कुंठाओं से मुक्त हो कर अभिसारिका बन गई थी. उस के मन की डगर से होता हुआ मैं उस के तन तक जा पहुंचा था.

फिर एक दिन मुझे पता चला कि मैं पिता बनने जा रहा हूं. मैं ने कहा, ‘‘मुझे प्यारी सी तुम्हारी जैसी बेटी चाहिए गीता, मैं उस से बहुत प्यार करूंगा.’’ लेकिन मेरा हर्ष और उत्साह एकाएक ठंडा पड़ गया, जब शून्य में निहारते हुए वह बोली, ‘‘प्यारव्यार सब धरा रह जाएगा. मैं मर गई तो आप भी उस से ऐसे ही आंखें फेर लेंगे, जैसे पिताजी ने मुझ से.’’

‘‘नहीं गीता, ऐसा नहीं सोचते.’’

बिन मां की बेटियां: भाग 3

राइटर- डा. कुसुम रानी नैथानी

रजत अपनी बेटी की शादी में मेहमानों की तरह आया था. शलाका की ससुराल यहां से दूर रुद्रपुर में थी. अमरनाथजी ने उन्हें  शलाका की परिस्थिति पहले ही बता दी थी कि मायके के नाम पर उस का केवल ननिहाल ही था. साथ में अपने अनुभव की बात भी कह दी, “हमारी शलाका पढ़ने में बहुत होशियार है. हो सके तो इसे नौकरी करने की छूट दे देना. इन दोनों बहनों ने अपने जीवन में बहुत कष्ट उठाए हैं.”

“आप चिंता न करें बाबूजी. मैं इस का पूरा खयाल रखूंगा.”

उन्होंने अपनी बात रखी  और शादी के चार साल बाद एक बच्चा हो जाने के बाद उस की भी वहीं रुद्रपुर में

अच्छी जगह नौकरी लग गई. वह अपने पति श्रेय  और परिवार के साथ बहुत खुश थी.

मौसी के साथ रहते हुए उन की निगरानी में इशिता भी बहुत अच्छा प्रदर्शन कर रही थी. उस ने भी एमएससी करने के बाद नौकरी के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया. उस ने कई कंपीटीशन दिए और

उस का एक जगह चयन भी हो गया.

ट्रेनिंग के दौरान इशिता की मुलाकात अशरफ से हुई और उस ने उसे अपना जीवनसाथी बनाने का मन बना लिया.

इशिता ने जब यह बात नानानानी के सामने रखी तो थोड़ी देर के लिए वे परेशान हो गए.

 

इशिता के तर्क और इच्छा के आगे उन्होंने अपनी नाराजगी खत्म कर दी. अमरनाथजी बोले, “अगर तुम्हारी यही इच्छा है तो हम तुम्हें रोकेंगे नहीं. अच्छा रहेगा कि तुम कोर्ट मैरिज कर लो.”

“ठीक है नानाजी. हमें कोई आपत्ति नहीं है.”

“लेकिन, मुझे आपत्ति है,” रमा बोली.

उसके मुंह से ये बात सुन कर सब को बड़ा अजीब  लगा. वह आगे बोली, “शादी के बाद इशिता इस घर में नहीं रह सकती. इसे अलग घर का प्रबंध करना होगा. तभी तुम खुश रह

सकती हो.

“आप निश्चिंत रहें नानी. मैं आप के कहने का मतलब समझ गई हूं. हम ने उस का भी प्रबंध कर लिया है.

“अशरफ ने एक घर पहले से किराए पर ले लिया है. शादी के बाद हम वहीं शिफ्ट हो जाएंगे. आप के ऊपर कोई आंच नहीं आएगी. मैं अपना ट्रांसफर भी दूसरे शहर करवा लूंगी, जहां अशरफ रहते हैं.”

उस की बात सुन कर नानी को बड़ा संतोष हुआ. उन के झुर्री भरे चेहरे पर मुसकान फैल गई और उन्होंने उसे

गले से लगा लिया. वे बोली,

“मुझे तुझ से यही उम्मीद थी.”

“नानी, मैं आप की परेशानी समझती हूं. जिंदगीभर आप ने हमारा बोझ उठाया है. आप और कितना बोझ

उठाएंगी.”

“बात इतनी ही नहीं है बेटी. मैं एक और प्रांजलि नहीं बनने देना चाहती, जिस ने कभी अपनी गृहस्थी की

परवाह नहीं की. मुझे विवेक के बूढ़े मांबाप पर हमेशा तरस आता था, जो कभी आर्यन के पास रहने के

लिए सोच भी न सके. प्रांजलि ने महज अपने स्वार्थ के लिए पूरी जिंदगी मायके में गुजार दी. नौकरी की आड़ में वह जिम्मेदारी से भागती रही. उस ने अपने पति के घर को कभी भी अपना घर नहीं समझा.”

“मैं आप की भावनाओं की कद्र करती हूं नानी. अभी तो मेरे लिए यह नई शुरुआत है.”

“तू ने बिल्कुल सही निर्णय लिया है इशिता,” इतना कह कर नानी ने उस के सिर पर प्यार से हाथ फेरा.

उन की आंखों से आंसू झड़ रहे थे. पता नहीं, ये आंसू त्रिशाला को याद कर के बह रहे थे या फिर उस की इतनी

समझदार इशिता के द्वारा लिए गए निर्णय की वजह से थे.

इशिता शादी के बाद अपने ससुराल में बहुत खुश थी. रमा के सिर से भी मानो बहुत बड़ा बोझ उतर गया

था. पता नहीं, उन के चले जाने के बाद ननिहाल में कोई उन्हें पूछता भी कि नहीं, यह बात भी उसे कई

समय से परेशान कर रही थी. बिन मां की बेटियां इशिता और शलाका को अपनेअपने घर में व्यवस्थित देख कर रमा की खुशी का ठिकाना न था.

Nonveg: कहीं महंगा न पड़ जाए नौनवेज खाने का शौक

पिछले हफ्ते रमेश अपने परिवार के साथ एक पार्टी में गए थे. वहां उन्होंने खाने का खूब आनंद तो उठाया पर बाद में पेटदर्द, दस्त, उल्टियों से उन की हालत खस्ता हो गई. घर के अन्य मांसाहारी सदस्यों का भी यही हाल था. रमेश की पत्नी मंजूषा की एक ही समय में सब की देखभाल करतेकरते हालत खस्ता हो गई थी. वे भी अस्वस्थ दिखने लगी थीं. पार्टी में आए कुछ और लोगों का भी यही हाल था. पता चला कि चिकन और मीट में बैक्टीरिया होने की वजह से लोगों की ऐसी दुर्दशा हुई है.

यह जरूरी नहीं है कि पार्टी के भोजन से ऐसा होता है, घर में असावधानीपूर्वक पकाए गए मांसाहार भोजन से भी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है. बाहर के बने भोजन पर आप का वश नहीं है, पर घर में पकाए गए भोजन में सावधानी बरत आप स्वयं व परिवार की रक्षा कर सकते हैं. मांसाहार भोजन पकाने में कुछ बातों का ध्यान रखना अति आवश्यक है, वरना जब भी उस में बैक्टीरिया उत्पन्न होगा, उसे खाने के बाद व्यक्ति को कई शारीरिक समस्याओं को झेलना पड़ सकता है.

होटल या पार्टी वगैरह में आप कुछ नहीं कर सकते पर घर छोड़ कर और भी ऐसे स्थान हैं, जैसे पिकनिक स्थल, काम पर खाना ले जाना, यात्रा के दौरान का भोजन आदि, जहां आप मांसाहार साथ ले जाते वक्त सावधानी से काम ले सकते हैं. और परेशानी से बच सकते हैं. नए आविष्कारी तथ्यों द्वारा मांसाहार भोजन को पकाने व उस से पहले उस की ड्रैसिंग, संरक्षित करने की धारणाओं में भी पहले की अपेक्षा बहुत अंतर आ रहा है.  पहले माना जाता था कि मीट को पकाने से पहले पानी से उसे अच्छी तरह धो लेना चाहिए.

आज के विज्ञान के अनुसार यह सर्वथा गलत है. कारण यह है कि ऐसा करने से आप ‘फूड पौएजनिंग’ का खतरा घटाने की अपेक्षा बढ़ा रहे हैं. कैसे? वह इस तरह कि मीट की सतह के ऊपर के बैक्टीरिया को आप केवल उस खाद्यपदार्थ के लिए उपयुक्त, सही अनुपात वाले तापमान पर पकाने से ही मार सकते हैं. धोने से बैक्टीरिया नहीं मरता, बल्कि उसे धोने से बैक्टीरिया आसपास रखे भोजन पर अपना साम्राज्य फैला सकता है. इसलिए धोने से फायदा तो होगा नहीं, ऊपर से उस की जगह नुकसान होने की संभावना ज्यादा होगी.

पकाएं सावधानी से

किसी भी किस्म के मांस को पकाने से थोड़ा सा ही पहले या उसी समय फ्रिज से बाहर निकालना चाहिए, उसे कमरे के तापमान में ज्यादा देर नहीं रखना चाहिए जिस से बैक्टीरिया पैदा होने की संभावना न हो या कम से कम हो. अगर ‘फ्रोजन मीट’ पका रहे हैं तो उसे फ्रीजर से निकाल कर फ्रिज में रख कर सामान्य अवस्था में लाएं. यदि बहुत जल्दी है तो उसे ठंडे पानी में डाल कर रखें, पर पानी को हर आधे घंटे में बदलते रहें. रही बात मीट को ‘मैरिनेट’ यानी दही, मसालों, नींबू, तेल, लहसुनअदरक के पेस्ट के साथ लपेट कर रखना चाहते हैं तो उसे फ्रिज में ही रखें, बाहर नहीं. साथ ही, मैरिनेट से बचे जूस को

यदि आप तरी या ‘ग्रेवी’ की तरह प्रयोग में लाना चाहते हैं तो कम से कम 1 मिनट पकाने के बाद ही प्रयोग में लाएं, वरना नहीं. यदि पिकनिक आदि के लिए आधा पका मीट ले जा कर वहां पकाना चाहते हैं तो ऐसा करना भी खतरे से खाली न होगा. यदि ‘प्री कुक’ करना जरूरी है तो अच्छी तरह प्री कुक कर के, उसे खूब अच्छी तरह ठंडा करने के बाद ही आइस बौक्स में पैक करें.

तापमान का रखें ध्यान

यदि पिकनिक वाला दिन गरम या चमकते सूरज वाला दिन है, जैसा कि आमतौर पर पिकनिक वाला दिन होना चाहिए, तो खाने वाले सामान के आइस बौक्स आदि को यात्रा के समय कार की डिक्की में न रखें, बल्कि उसे कार की पिछली सीट पर रखें, कार में एअरकंडीशनर होने की वजह से वह वहां ज्यादा ठीक रहेगा. एअरकंडीशन नहीं है तो भी कार की पिछली सीट, खिड़कियां खुली होने की वजह से ज्यादा उचित रहेगी, डिक्की बंद होने की वजह से वहां बहुत गरमी होगी.

पिकनिक स्थल पर पहुंच कर आइस बौक्स को धूप में न रख कर पेड़ की छाया में रखें. यदि यह संभव न हो तो कम से कम मोटी चादर से ढक दें. आइस बौक्स से उतनी ही खाद्यसामग्री निकालें जितनी आप को उस समय आवश्यकता है, बाकी उसी के अंदर रहने दें. भरा हुआ आइस बौक्स अपने तापमान को ज्यादा देर तक बनाए रख सकता है, यदि सुविधा हो तो उस में और बर्फ भर दें.

यदि आप अपने घर के गार्डन में ‘बारबेक्यू’ कर रहे हैं और वातावरण का तापमान 32 डिगरी सैल्सियस या 90 डिगरी फैरनहाइट है तो 1 घंटे से ज्यादा भोजन सामग्री बाहर न रखें. यदि तापमान कम है तो 2 घंटे तक भी रख सकते हैं. ज्यादा समय तक भोजन बाहर रहने से कई बार भोजन देखने और खाने में ठीक लग सकता है पर उस में नुकसानदेह बैक्टीरिया के होने की संभावना बहुत अधिक होती है, उसे खाने की अपेक्षा फेंक देना बेहतर है.

इस तरह इन सामान्य, सावधानियों से ‘फूड पौएजनिंग’ की समस्याओं से बचा जा सकता है. पेटदर्द, दस्त, उल्टी आदि विकृतियों से बच कर मनपसंद भोजन का आनंद लिया जा सकता है और सेहत को बेहतर रखा जा सकता है

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