ज्यादा वजन वाले व्यक्तियों में औस्टियोआर्थ्राइटिस होने का खतरा अधिक रहता है, उन के घुटनों के जोड़ लगातार घिसते रहते हैं. शरीर का वजन बढ़ने के साथ कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं. इन में ब्लडप्रैशर, डायबिटीज और कार्डियोवैस्क्युलर संबंधी बीमारियां प्रमुख होती हैं.
लेकिन मोटापे के कारण आप के घुटनों को जो नुकसान पहुंचता है उस बारे में बहुत कम ही चर्चा की जाती है, जबकि यह आप के शरीर का एक महत्त्वपूर्ण जोड़ है जो ताउम्र शरीर का वजन ढोता है तथा शारीरिक गतिविधियों को संभव व आसान बनाता है.
अधिक वजन होने से व्यक्ति में औस्टियोआर्थ्राइटिस के पनपने का खतरा बढ़ जाता है. यह जोड़ों को लगातार कमजोर कर देने वाला ऐसा रोग है जिस के चलते चलनाफिरना भी मुहाल हो जाता है और भयंकर दर्द उभर आता है. जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है, घुटनों सहित रोगी के सभी जोड़ों के कमजोर पड़ते जाने के लक्षण नजर आने लगते हैं.
यदि व्यक्ति का वजन बहुत ही ज्यादा हो जाता है तो जोड़ों की यह दुर्बलता कई गुना बढ़ सकती है. अव्यवस्थित लाइफस्टाइल के कारण बहुत सारे लोगों का वजन बढ़ता जाता है, इस वजह से युवाओं में भी जोड़ों की समस्या और घुटनों का दर्द विकसित होने लगता है.
औस्टियोपोरोसिस जोड़ों को कमजोर कर देने वाला रोग है जिस में मुख्यरूप से कार्टिलेज के क्षतिग्रस्त होने के कारण जोड़ों की स्थिति कमजोर होती जाती है और उस में अकड़न, जाम या दर्द भी उभर सकता है. हड्डी के पास का कार्टिलेज जब घिस जा ता है तो जोड़ की हड्डी अत्यंत भंगुर हो जाती है, इसलिए घुटना प्रत्यारोपित करने की सख्त जरूरत भी उत्पन्न हो सकती है.
वहीं, अत्यधिक वजन वाले व्यक्ति में औस्टियोआर्थ्राइटिस होने की संभावना बढ़ जाती है. हालांकि इस संबंध का सही कारण स्पष्ट नहीं है लेकिन समझा जाता है कि अधिक वजन से उन के घुटनों के जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है और इसलिए उन के जोड़ों के कमजोर होने की दर भी अधिक रहती है.
गतिहीन जीवनशैली
घुटने के जोड़ को मोबाइल जौइंट भी कहा जाता है जो पैर को जांघ से जोड़ता है और व्यक्ति को चलनेफिरने, दौड़ने, पैर मोड़ने तथा बैठने में मदद करता है. घुटने के जोड़ की हड्डी को कार्टिलेज और लिगामैंट (अस्थिबंध) से मजबूती मिलती है. इस से हड्डी सुरक्षित रहती है तथा हड्डियां आपस में घिसने के कारण उस से होने वाली फ्रिक्शन इंजरी से बची रहती हैं. घुटने की सेहत को बनाए रखने के लिए कार्टिलेज और लिगामैंट को क्षतिग्रस्त होने से बचाना महत्त्वपूर्ण है.
घुटने को जब अत्यधिक वजन सहना पड़ जाता है तो कार्टिलेज में घर्षण और नुकसान अधिक होने लगता है. शरीर का वजन अगर एक किलो भी बढ़ता है तो घुटने पर इस का बोझ कई गुना बढ़ जाता है. शरीर का एक किलो वजन घटने पर किए गए एक शोध में पाया गया कि घुटने के जोड़ पर बोझ या दबाव 4 किलो तक घट गया.
घुटनों का दर्द यानी औस्टियोपोरोसिस के कई कारण हो सकते हैं जिन में हड्डियों के अत्यंत पतले होने और कमजोर पड़ने, चोट लगने, बढ़ती उम्र के साथ हड्डियों में घिसाव और औस्टियोआर्थ्राइटिस मुख्य हैं.
वैसे तो जोड़ों के दर्द के ज्यादातर मामले ढलती उम्र के डिसऔर्डर से जुड़े होते हैं लेकिन आजकल युवाओं में औस्टियोआर्थ्राइटिस के बढ़ते मामले इस बात का संकेत हैं कि हमारी युवा पीढ़ी ने जीवन की कुछ महत्त्वपूर्ण गतिविधियों को दरकिनार कर दिया है, जैसे व्यायाम, खेलकूद तथा सही खानपान आदि.
दरअसल, कामकाजी युवा गतिहीन लाइफस्टाइल अपनाने लगे हैं. वे अपने कार्यस्थल पर एक ही मुद्रा में, ज्यादातर गलत मुद्रा में, ही घंटों बैठे रहते हैं और शरीर के जोड़ों को गतिशील बनाए रखने का महत्त्व नहीं समझते. अब टहलना या साइकिल चलाना उन के चलन में नहीं रह गया है तथा कार्यस्थल से घर लौटने के बाद काफी वक्त वे टैलीविजन देखने में गुजारते हैं.
परिणामस्वरूप, देश के शहरी हिस्से में मोटापे की समस्या महामारी की तरह फैल रही है. कार्डियोवैस्क्यूलर बीमारियां तथा डायबिटीज जैसी लाइफस्टाइल से जुड़ी कई बीमारियों का कारण बनने वाली मोटापे की समस्या से बहुत सारे लोगों को जोड़ों संबंधी तकलीफ या कम उम्र में ही औस्टियोआर्थ्राइटिस की बीमारी भी उभर आती है.
दरअसल, शरीर का अत्यधिक वजन घुटनों पर अतिरिक्त दबाव डालता है जो घुटनों के लिए न्यायसंगत नहीं होता. यह ठीक वैसा ही है कि 10 किलो वजन उठाने की क्षमता रखने वाले किसी व्यक्ति पर 20 किलो का वजन लाद दिया जाए. कुछ समय तक तो व्यक्ति इस अतिरिक्त वजन को ढोते रख सकता है और अपनी गतिविधियां जारी रख सकता है लेकिन कुछ समय बाद वह किसी इंजरी या मोच का शिकार हो सकता है या फिर गिर भी सकता है.
जब हम अपने शरीर पर क्षमता से अधिक वजन लाद देते हैं तो यह अत्याचार अन्य रूपों में स्पष्ट दिखने लगता है. सब से पहले घुटनों में दर्द से यह स्पष्ट होता है कि आप अपने घुटनों के साथ उचित बरताव नहीं कर रहे हैं. यदि किसी खास बिंदु से घुटने कमजोर पड़ने लगते हैं तो जौइंट रिप्लेसमैंट ही एकमात्र विकल्प रह जाता है.
(लेखक अपोलो अस्पताल में और्थोपैडिक स्पैशलिस्ट एवं जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन हैं.)