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लड़की- भाग 1: एक मां को क्यों सता रहा था बेटी को खोने का डर?

मुंबई स्थित जसलोक अस्पताल के आईसीयू में वीणा बिस्तर पर  निस्पंद पड़ी थी. उसे इस हालत में देख कर उस की मां अहल्या का कलेजा मुंह को आ रहा था. उस के कंठ में रुलाई उमड़ रही थी. उस ने सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे एक दिन ऐसे दुखदायी दृश्य का सामना करना पड़ेगा.

वह वीणा के पास बैठ कर उस के सिर पर हाथ फेरने लगी. ‘मेरी बेटी,’ वह बुदबुदाई, ‘तू एक बार आंखें खोल दे, तू होश में आ जा तो मैं तुझे बता सकूं कि मैं तुझे कितना चाहती हूं, तू मेरे दिल के कितने करीब है. तू मुझे छोड़ कर न जा मेरी लाड़ो. तेरे बिना मेरा संसार सूना हो जाएगा.’

बेटी को खो देने की आशंका से वह परेशान थी. वह व्यग्रता से डाक्टर और नर्सों का आनाजाना ताक रही थी, उन से वीणा की हालत के बारे में जानना चाह रही थी, पर हर कोई उसे किसी तरह का संतोषजनक उत्तर देने में असमर्थ था.

जैसे ही उसे वीणा के बारे में सूचना मिली वह पागलों की तरह बदहवास अस्पताल दौड़ी थी. वीणा को बेसुध देख कर वह चीख पड़ी थी. ‘यह सब कैसे हुआ, क्यों हुआ?’ उस के होंठों पर हजारों सवाल आए थे.

‘‘मैं आप को सारी बात बाद में विस्तार से बताऊंगा,’’ उस के दामाद भास्कर ने कहा था, ‘‘आप को तो पता ही है कि वीणा ड्रग्स की आदी थी. लगता है कि इस बार उस ने ओवरडोज ले ली और बेहोश हो गई. कामवाली बाई की नजर उस पर पड़ी तो उस ने दफ्तर में फोन किया. मैं दौड़ा आया, उसे अस्पताल लाया और आप को खबर कर दी.’’

‘‘हायहाय, वीणा ठीक तो हो जाएगी न?’’ अहल्या ने चिंतित हो कर सवाल किया.

‘‘डाक्टर्स पूरी कोशिश कर रहे हैं,’’  भास्कर ने उम्मीद जताई.

भास्कर से कोई आश्वासन न पा कर अहल्या ने चुप्पी साध ली. और वह कर भी क्या सकती थी? उस ने अपने को इतना लाचार कभी महसूस नहीं किया था. वह जानती थी कि वीणा ड्रग्स लेती थी. ड्रग्स की यह आदत उसे अमेरिका में ही पड़ चुकी थी. मानसिक तनाव के चलते वह कभीकभी गोलियां फांक लेती थी. उस ने ओवरडोज गलती से ली या आत्महत्या करने का प्रयत्न किया था?

उस का मन एकबारगी अतीत में जा पहुंचा. उसे वह दिन याद आया जब वीणा पैदा हुई थी. लड़की के जन्म से घर में किसी प्रकार की हलचल नहीं हुई थी. कोई उत्साहित नहीं हुआ था.

अहल्या व उस का पति सुधाकर ऐसे परिवेश में पलेबढ़े थे जहां लड़कों को प्रश्रय दिया जाता था. लड़कियों की कोई अहमियत नहीं थी. लड़कों के जन्म पर थालियां बजाई जातीं, लड्डू बांटे जाते, खुशियां मनाई जाती थीं. बेटी हुई तो सब के मुंह लटक जाते.

बेटी सिर का बोझ थी. वह घाटे का सौदा थी. एक बड़ी जिम्मेदारी थी. उसे पालपोस कर, बड़ा कर दूसरे को सौंप देना होता था. उस के लिए वर खोज कर, दानदहेज दे कर उस की शादी करने की प्रक्रिया में उस के मांबाप हलकान हो जाते और अकसर आकंठ कर्ज में डूब जाते थे.

अहल्या और सुधाकर भी अपनी संकीर्ण मानसिकता व पिछड़ी विचारधारा को ले कर जी रहे थे. वे समाज के घिसेपिटे नियमों का हूबहू पालन कर रहे थे. वे हद दर्जे के पुरातनपंथी थे, लकीर के फकीर.

देश में बदलाव की बयार आई थी, औरतें अपने हकों के लिए संघर्ष कर रही थीं, स्त्री सशक्तीकरण की मांग कर रही थीं. पर अहल्या और उस के पति को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा था.

अहल्या को याद आया कि बच्ची को देख कर उस की सास ने कहा था, ‘बच्ची जरा दुबलीपतली और मरियल सी है. रंग भी थोड़ा सांवला है, पर कोई बात नहीं.

2-2 बेटों के जन्म के बाद इस परिवार में एक बेटी की कमी थी, सो वह भी पूरी हो गई.’

जब भी अहल्या को उस की सास अपनी बेटी को ममता के वशीभूत हो कर गोद में लेते या उसे प्यार करते देखतीं तो उसे टोके बिना न रहतीं, ‘अरी, लड़कियां पराया धन होती हैं, दूसरे के घर की शोभा. इन से ज्यादा मोह मत बढ़ा. तेरी असली पूंजी तो तेरे बेटे हैं. वही तेरी नैया पार लगाएंगे. तेरे वंश की बेल वही आगे बढ़ाएंगे. तेरे बुढ़ापे का सहारा वही तो बनेंगे.’

सासूमां जबतब हिदायत देती रहतीं, ‘अरी बहू, बेटी को ज्यादा सिर पे मत चढ़ाओ. इस की आदतें न बिगाड़ो. एक दिन इसे पराए घर जाना है. पता नहीं कैसी ससुराल मिलेगी. कैसे लोगों से पाला पड़ेगा. कैसे निभेगी. बेटियों को विनम्र रहना चाहिए. दब कर रहना चाहिए. सहनशील बनना चाहिए. इन्हें अपनी हद में रहना चाहिए.’

देखते ही देखते वीणा बड़ी हो गई. एक दिन अहल्या के पति सुधाकर ने आ कर कहा, ‘वीणा के लिए एक बड़ा अच्छा रिश्ता आया है.’

‘अरे,’ अहल्या अचकचाई, ‘अभी तो वह केवल 18 साल की है.’

‘तो क्या हुआ. शादी की उम्र तो हो गई है उस की, जितनी जल्दी अपने सिर से बोझ उतरे उतना ही अच्छा है. लड़के ने खुद आगे बढ़ कर उस का हाथ मांगा है. लड़का भी ऐसावैसा नहीं है. प्रशासनिक अधिकारी है. ऊंची तनख्वाह पाता है. ठाठ से रहता है हमारी बेटी राज करेगी.’

‘लेकिन उस की पढ़ाई…’

‘ओहो, पढ़ाई का क्या है, उस के पति की मरजी हुई तो बाद में भी प्राइवेट पढ़ सकती है. जरा सोचो, हमारी हैसियत एक आईएएस दामाद पाने की थी क्या? घराना भी अमीर है. यों समझो कि प्रकृति ने छप्पर फाड़ कर धन बरसा दिया हम पर. ‘लेकिन अगर उस के मातापिता ने दहेज के लिए मुंह फाड़ा तो…’

‘तो कह देंगे कि हम आप के द्वारे लड़का मांगने नहीं गए थे. वही हमारी बेटी पर लार टपकाए हुए हैं…’

जब वीणा को पता चला कि उस के ब्याह की बात चल रही है तो वह बहुत रोईधोई. ‘मेरी शादी की इतनी जल्दी क्या है, मां. अभी तो मैं और पढ़ना चाहती हूं. कालेज लाइफ एंजौय करना चाहती हूं. कुछ दिन बेफिक्री से रहना चाहती हूं. फिर थोड़े दिन नौकरी भी करना चाहती हूं.’

पर उस की किसी ने नहीं सुनी. उस का कालेज छुड़ा दिया गया. शादी की जोरशोर से तैयारियां होने लगीं.

वर के मातापिता ने एक अडं़गा लगाया, ‘‘हमारे बेटे के लिए एक से बढ़ कर एक रिश्ते आ रहे हैं. लाखों का दहेज मिल रहा है. माना कि हमारा बेटा आप की बेटी से ब्याह करने पर तुला हुआ है पर इस का यह मतलब तो नहीं कि आप हमें सस्ते में टरका दें. नकद न सही, उस की हैसियत के अनुसार एक कार, फर्नीचर, फ्रिज, एसी वगैरह देना ही होगा.’’

सुधाकर सिर थाम कर बैठ गए. ‘मैं अपनेआप को बेच दूं तो भी इतना सबकुछ जुटा नहीं सकता,’ वे हताश स्वर में बोले.

‘मैं कहती थी न कि वरपक्ष वाले दहेज के लिए मुंह फाड़ेंगे. आखिर, बात दहेज के मुद्दे पर आ कर अटक गई न,’ अहल्या ने उलाहना दिया.

‘आंटीजी, आप लोग फिक्र न करें,’ उन के भावी दामाद उदय ने उन्हें दिलासा दिया, ‘मैं सब संभाल लूंगा. मैं अपने मांबाप को समझा लूंगा. आखिर मैं उन का इकलौता पुत्र हूं वे मेरी बात टाल नहीं सकेंगे.’ पर उस के मातापिता भी अड़ कर बैठे थे. दोनों में तनातनी थी.

आखिर, उदय के मांबाप की ही चली. वे शादी के मंडप से उदय को जबरन उठा कर ले गए और सुधाकर व अहल्या कुछ न कर सके. देखते ही देखते शादी का माहौल मातम में बदल गया. घराती व बराती चुपचाप खिसक लिए. अहल्या और वीणा ने रोरो कर घर में कुहराम मचा दिया.

‘अब इस तरह मातम मनाने से क्या हासिल होगा?’ सुधाकर ने लताड़ा, ‘इतना निराश होने की जरूरत नहीं है. हमारी लायक बेटी के लिए बहुतेरे वर जुट जाएंगे.’

वीणा मन ही मन आहत हुई पर उस ने इस अप्रिय घटना को भूल कर पढ़ाई में अपना मन लगाया. वह पढ़ने में तेज थी. उस ने परीक्षा अच्छे नंबरों से पास की. इधर, उस के मांबाप भी निठल्ले नहीं बैठे थे. वे जीजान से एक अच्छे वर की तलाश कर रहे थे. तभी वीणा ने एक दिन अपनी मां को बताया कि वह अपने एक सहपाठी से प्यार करती है और उसी से शादी करना चाहती है.

जब अहल्या ने यह बात पति को बताई तो उन्होंने नाकभौं सिकोड़ कर कहा, ‘बहुत खूब. यह लड़की कालेज पढ़ने जाती थी या कुछ और ही गुल खिला रही थी? कौन लड़का है, किस जाति का है, कैसा खानदान है कुछ पता तो चले?’

और जब उन्हें पता चला कि प्रवीण दलित है तो उन की भृकुटी तन गई, ‘यह लड़की जो भी काम करेगी वह अनोखा होगा. अपनी बिरादरी में योग्य लड़कों की कमी है क्या? भई, हम से तो जानबूझ कर मक्खी निगली नहीं जाएगी. समाज में क्या मुंह दिखाएंगे? हमें किसी तरह से इस लड़के से पीछा छुड़ाना होगा. तुम वीणा को समझाओ.’

‘मैं उसे समझा कर हार चुकी हूं पर वह जिद पकड़े हुए है. कुछ सुनने को तैयार नहीं है.’

‘पागल है वह, नादान है. हमें कोई तरकीब भिड़ानी होगी.’

सुधाकर ने एक तरीका खोज  निकाला. वे वीणा को एक  ज्योतिषी के पास ले गए.

सावधान! वायु प्रदूषण से हो सकता है गर्भवती महिलाओं को खतरा

दीवाली के बाद से ही दिल्ली-एनसीआर सहित उत्तर भारत के अनेक राज्यों में वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर से ऊपर है. वाहनों का धुआं, पराली जलाए जाने का धुआं, फैक्ट्रियों और मिलों की चिमनियों से निकलने वाला धुआं और निर्माण कार्यों के कारण उड़ने वाली धूल नवम्बर माह में वायुमंडल के कम हुए तापमान और कोहरे के साथ मिलकर हमारे चारों ओर जम सी गयी है. बादल होने के कारण वायुमंडल साफ नहीं हो पा रहा है. लिहाजा इसी गंदी हवा में सांस लेने की मजबूरी उत्तर भारतीयों के सामने बनी हुई है. दिल्ली-एनसीआर में तो इमरजेंसी जैसे हालात हैं. जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर जनता नहीं जानती कि यह जहरीली हवा उनके स्वास्थ्य को किसकदर नुकसान पहुंचा रही है. दमा, कैंसर, थायरौयड, अस्थमा जैसे रोग बढ़ते जा रहे हैं. सबसे ज्यादा खतरे में तो वह नन्हें जीव हैं जो अभी मां की कोख में हैं.

नेशनल इंस्टीट्यूट औफ़ हेल्थ की मानें तो लगातार बढ़ते वायु प्रदूषण की वजह से गर्भवती महिलाओं में समय से पहले प्रसव का खतरा और कम वजन का बच्चा पैदा होने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ गया है. जब गर्भवती महिला वाहनों से निकलने वाले धुएं या कोयले के जलने पर निकलने वाले ब्लैक कार्बन पलूशन को सांस के जरिए शरीर के अंदर लेती है तो उसमें उपस्थित हानिकारक तत्व महिला के फेफड़ों के जरिए गर्भनाल को छेदकर प्लेसेंटा के जरिए गर्भस्थ शिशु तक सीधे पहुंच जाते हैं. शोध में सामने आया है कि प्रदूषित इलाकों की 28 गर्भवती महिलाओं की गर्भनाल में ब्लैक कार्बन पाया गया है. प्रदूषित हवा और हानिकारक तत्व अगर गर्भवती महिला की सांस के जरिए गर्भस्थ शिशु तक पहुंच जाए तो मिसकैरिज, प्रीमच्योर डिलिवरी और जन्म के वक्त बच्चे का वजन बेहद कम जैसी समस्याएं बढ़ने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है. प्लेसेंटा एक ऐसा और्गन है जो प्रेग्नेंसी के दौरान खुद-ब-खुद गर्भाशय से अटैच हो जाता है जो मां के खून के जरिए गर्भनाल के माध्यम से गर्भ में पल रहे शिशु तक औक्सीजन और पोषक तत्वों की सप्लाई करता है.

एक स्टडी के अनुसार गर्भावस्था के दौरान मां का अत्यधिक वायु प्रदूषण के संपर्क में बने रहने से उसकी कोख में पल रहे बच्चे का विकास बाधित हो जाता है. ऐसे में विकृत बच्चे के जन्म लेने की आशंका बढ़ जाती है. इन बच्चों में संवहन प्रणाली और यौन अंगों में विकृति भी पैदा हो सकती है. प्रदूषण की वजह से महिलाएं ‘लो बर्थ वेट’ शिशुओं को जन्म देती हैं. ऐसे शिशुओं का सर्वाइव कर पाना मुश्किल होता है. वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के अनुसार 2500 ग्राम से कम वजन वाले नवजात शिशु ‘लो बर्थ वेट’ श्रेणी में आते हैं. लो बर्थ वेट वाले शिशुओं का भविष्य में स्वास्थ्य भी सही नहीं रहता है. स्टडी में पाया गया कि पूरी दुनिया में पैदा होने वाले शिशुओं में 15 से 20 प्रतिशत बच्चे लो बर्थ वेट से प्रभावित होते हैं. इनमें से ज्यादातर बच्चे उन जगहों पर पैदा होते हैं, जहां वायु और जल प्रदूषण अत्यधिक है.

गौरतलब है कि भ्रूण को गर्भाशय चारों ओर से किसी भी तरह के बाहरी नुकसान से सुरक्षा प्रदान करता है. लेकिन गर्भवती महिलाओं में विषैले रसायनों की मौजूदगी का प्रभाव गर्भाशय के अंदर भी पहुंच सकता है. वायु प्रदूषण का असर शिशु के मस्तिष्क पर पड़ता है. स्टडी के मुताबिक जब मां बनने जा रही कोई महिला इन रसायानों और वायु प्रदूषण तत्वों के संपर्क में आती है तो उसकी कोख में पल रहे शिशु के स्वस्थ मस्तिष्क के विकास में अवरोध पैदा होता है. इसलिए भविष्य में बच्चों के स्वभाव और व्यवहार में असर दिखायी देता है.

जिन गर्भवती महिलाओं को दमे की समस्या है, उनके और उनकी कोख में पल रहे बच्चे के लिए तो वायु प्रदूषण जानलेवा है. गर्भवती द्वारा औक्सीजन की सही मात्रा ग्रहण न कर पाने के कारण गर्भ का विकास प्रभावित होता है. गर्भधारण करने से तीन महीने पहले तक नाइट्रोजन ऑक्साइड के 30 हिस्से प्रति बिलियन ज्यादा संपर्क में आने से, दमा से पीड़ित महिलाओं में यह खतरा 30 प्रतिशत तक बढ़ जाता है. वहीं, बिना दमा वाली महिलाओं में इसके होने की संभावना आठ प्रतिशत होती है. इतने ही समय के लिए कार्बन मोनोऑक्साइड के संपर्क में आने से दमा पीड़ित महिलाओं में समयपूर्व प्रसव का खतरा 12 प्रतिशत अधिक हो जाता है. दमा पीड़ित गर्भवती महिलाओं के लिए आखिरी छह सप्ताह का समय भी काफी गंभीर होता है. अत्यधिक प्रदूषण वाले कणों जैसे एसिड, मेटल और हवा में मौजूद धूल के संपर्क में आना समयपूर्व प्रसव के खतरे को बढ़ा देता है.

वायु प्रदूषण से गर्भवती महिलाओं को थायरौयड की समस्या भी पैदा हो सकती है. गर्भावस्था के पहले तिमाही के दौरान वायु प्रदूषण के संपर्क में आने वाली महिलाओं को थायराइड रोग होने की आशंका रहती है. वायु प्रदूषण स्त्री-हार्मोन (एस्ट्रोजन) को प्रभावित करता है. यहां यह उल्लेखनीय है कि भ्रूण के मस्तिष्क के विकास में भी थायरौयड की अहम भूमिका होती है. मां में थॉयराइड हार्मोन का विघटन भ्रूण के विकास पर वायु प्रदूषण से पड़ने वाले प्रभाव के कारण होता है.

वायु प्रदूषण हमारी श्वसन प्रणाली को बुरी तरह प्रभावित करता है, जिससे सांस लेने में परेशानी होती है. इससे दमा, ब्रौन्काइटिस, फेफड़ों का कैंसर, टीबी और निमोनिया जैसे कई रोगों का खतरा बढ़ जाता है. वायु प्रदूषण से ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचता है और यूवी किरणें धरती पर पहुंच कर स्किन कैंसर, आंखों और रोग प्रतिरोधक क्षमता को क्षति पहुंचा सकती हैं.

गर्भवती महिलाओं को वायु प्रदूषण से बचने के लिए प्रदूषण रहित साधन और मास्क के साथ-साथ कई अन्य उपाय करने चाहिए. वायु प्रदूषण अधिक हो तो सुबह-शाम बाहर टहलने का कार्यक्रम रद्द कर देना चाहिए. गर्भावस्था के दौरान हो सके तो उन जगहों पर शिफ्ट हो जाएं जहां वायु शुद्ध हो. बच्चे के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए महिलाएं एयर फिल्टर मास्क लगाएं. इसके साथ ही आउट डोर एक्टिविटीज को भी कम कर दें. भीड़-भाड़ वाली सड़कों से जितना हो सके कम गुजरें. ऐसी जगह शिफ्ट हो जाएं जहां पर गाड़ियों की आवाजाही कम और पेड़-पौधे ज्यादा से ज्यादा लगे हों. दमा से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को वायु प्रदूषण से बचने के लिए अत्यधिक प्रदूषण के समय घर से बाहर जाने से परहेज करना चाहिए. वहीं, उन्हें घर में भी वायु प्रदूषण को कम करने के उपाय खोजने चाहिए. घर में जितना ज्यादा हो सके हरे-भरे पौधे लगाएं. मार्किट में भी कई तरह के विकल्प मौजूद हैं, जो हवा को साफ करने में मदद करते हैं. घर में ऐसे एयर फिल्टर लगवाएं जिससे आप और आपका होने वाला बच्चा सेफ रहे.

आस्था और खतरा : कैसे हुआ आदिल चाचा की परेशानी का इलाज

आदिल खान परेशान थे. कई बार अब्बा के पास आकर अपना दुखड़ा रो चुके थे. परेशानी थी एक पीपल का पेड़, जो उनके घर के ठीक पीछे अपनी जड़ें गहरी कर उनकी पूरी छत पर अपनी टहनियां फैला चुका था. उनके घर के पीछे की जमीन नगर निगम की थी, जहां कोई निर्माणकार्य नहीं हो सकता था, मगर किसी ने पीपल के तने के चारों ओर चबूतरा बना कर भगवान की मूर्ति स्थापित कर दी थी. यह कई बरस पहले की बात है. तब आदिल चाचा जवान हुआ करते थे और पीपल का पेड़ भी तब बच्चा ही था. मगर बीते चालीस बरसों में आदिल खान की जवानी ढलती गई और पीपल का फैलाव बढ़ता गया. अब तो इसके चारों तरफ कुछ दबंग लोगों ने जमीन कब्जा करके खाने पीने के ढाबे बना लिए हैं. पहले ढाबे ऊपर से खुले हुए थे, मगर धीरे-धीरे उन पर छत भी पड़ गई. पहले टिन की और बाद में पक्की ईटों की.

आदिल चाचा ने तमाम शिकायतें नगर निगम के दफ्तर में दर्ज करवाईं कि भई फुटपाथ खत्म कर दिया इन लोगों ने, इन्हें हटाया जाए, पीपल का दरख्त काटा नहीं जा सकता तो कम से कम छंटवाया जाए ताकि हमारा घर सुरक्षित रहे, मगर आस्था का सवाल छाती तान कर खड़ा हो जाता. नगर निगम के अधिकारी आते, मौका-मुआयना करते मगर कार्रवाई कुछ न होती. वन विभाग को भी आदिल चाचा कई चिट्ठियां भेज चुके थे.

दरअसल बात आस्था की नहीं, पैसे की थी. दबंग ढाबा मालिक सबको पैसा खिला कर मामला दबवा देते थे. आस्था की आड़ में उनका अपना धंधा जो चल रहा था. तमाम लोग आते, पीपल पर जल चढ़ाते और फिर वहीं उनके ढाबे पर बैठ कर चाय-नाश्ता करते. ढाबे के बाहर तक पीपल की छांव में कुर्सियां बिछी रहती थी. पीपल कट जाता तो तेज़ धूप में ग्राहक थोड़ी ना बैठते. इसलिए पीपल बढ़ता जाता और साथ में आदिल चाचा की परेशानी भी.

अब तो पीपल की टहनियों ने आदिल चाचा के घर की छत का एक कोना भी तोड़ना शुरू कर दिया था. छत पर उसकी इतनी घनी छांव थी कि धूप का नामोनिशान न मिलता. इस वजह से बरसात के बाद छत पर सीलन और गंदगी का ढेर लग जाता. पीपल की गाद और पत्तियों ने पूरी छत को ढक लिया था. आखिर बुढ़ापे की मार झेल रहे और थोड़ी से पेंशन पर गुजारा कर रहे आदिल चाचा कहां से पैसा लाते कि मजदूर लगा कर आएदिन छत साफ करवा सकें. धीरे-धीरे सीलन पूरे घर में फैल गई थी. सीलन के चलते दीमक और चीटिंयों ने जगह-जगह अपनी बांबियां बना ली थीं. घर जर्जर होने लगा था. उस छत के नीचे अब आदिल चाचा का परिवार हर पल किसी अनहोनी के डर से सहमा रहता था.

मैं काफी दिन बाद अपने घर आया था. उस दिन आदिल चाचा मेरे पापा के पास बैठे अपना यही दुखड़ा रो रहे थे. अचानक मेरे मन में एक विचार कौंधा. मैंने आदिल चाचा को लिया और चिड़ियाघर के डायरेक्टर संजीव चतुर्वेदी से मिलने चल दिया. दरअसल वह मेरा पुराना क्लासमेट था. संजीव को मैंने सारी परेशानी बताई. यह भी कि अगर पेड़ की छंटाई न हुई तो इनके घर को भारी नुकसान हो सकता है. जान जाने का खतरा है. संजीव ने चाचा के कंधे पर प्यार से हाथ रखा और बोला, ‘परेशान न हों, आपकी परेशानी मैं हल करता हूं.’

उसने तुरंत अपने कुछ अधिकारियों को बुलाया. पूछा, ‘चिड़ियाघर के जितने हाथी हैं, महावतों से कहो कि सबको तैयार करके ले चले.’

मैं समझ नहीं पाया कि संजीव करना क्या चाहता है. आदिल चाचा भी असमंजस की हालत में थे. उन्हें भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. हमें घर जाने को कह कर संजीव हाथियों के जुलूस के साथ चल दिया. जुलूस में लकड़ी काटने वाले भी थे. आदिल चाचा के घर के पिछवाड़े यह जुलूस रुका. सड़क पर कोई दस हाथी एक के पीछे एक खड़े थे.

संजीव ने ढाबा मालिकों से बातचीत की. चंद मिनट बीते होंगे कि हमने पेड़ पर कुछ लकड़हारों को चढ़ कर टहनियां छांटते देखा. एक बड़े से ट्रक में लकड़ियां और पत्तियां जमा करके संजीव कोई चार घंटे में पेड़ छंटवा कर चला गया. घर पर रोशनी छा गई. धूप नजर आने लगी. मैंने संजीव को फोन मिलाया, पूछा, ‘यार, ये क्या जादू किया तुमने?’

संजीव हंस कर बोला, ‘भई, आस्था का मामला था न, मैंने बस इतना कहा कि गणेश जी के परिवार को खाने के लिए पत्तियां और बाड़े के लिए लकड़ियां चाहिएं, कौन मना करता इस बात पर…’ वह कह कर ठठाकर हंस पड़ा. बोला, ‘आगे जब भी पीपल छंटवाना हो, मुझे फोन कर देना.’

चारू असोपो को लोग नहीं दे रहे थें किराए पर घर, सिंगल मदर होना था चैलेंज

मेरे अंगने में फेम एक्ट्रेस चारु असोपा काफी ज्यादा सुर्खियों में बनी रहती हैं बता दें कि चारू असोपो ने हाल ही में एक इंटरव्यू में बताया है कि एक वक्त ऐसा था जब उन्हें घर ढ़ूंढ़ने के लिए काफी ज्यादा मसकत करनी पड़ी थी.

बता दें कि अब वन बीएच के से चारु अब 2 बीएचके में शिफ्ट हो रही हैं, चारु ने बताया है कि यहां तक पहुंचने के लिए मुझे काफी ज्यादा संघर्ष करना पड़ा है.

 

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उसने बताया कि मैं घर की तलाश कर रही थी, यह मेरे लिए काफी ज्यादा हैक्टिक था कि मैं अपने लिए घर कैसे ढूंढी हर दिन बाहर जाकर नए-नए लोगों को फेस करना मेरे लिए मुश्किल भरा था. लोग उसके रिश्ते पर लगातार सवाल कर रहे थें कि तुम्हें मैं अपना घर नहीं दें सकता हूं.

चारू ने बताया कि मैंने एक सिंगल मदर के रूप में काफी ज्यादा चीजों के झेली हूं, मुझे कमरा देने के लिए लोग तैयार नहीं थें. चारू ने बताया कि उसे घर इसलिए बदली हूं क्योंकी मेरी बेटी जियाना काफी ज्यादा तेजी से बड़ी हो रही है.

चारु ने बताया कि यह समय मेरे लिए काफी ज्यादा मुश्किल वाला था कि जब एक छोटे बच्चे को लेकर एक घर से दूसरे घर में शिफ्ट किया जाता है. चारु ने बताया कि एक सिंगल मदर के लिए रिवलिंग कपड़े पहनना काफी ज्यादा मुश्किल भरा चैलेंज होता है.

मैं कुंआरी हूं, मेरी मां कहती हैं कि मैं अच्छा नसीब ले कर पैदा नहीं हुई, क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा?

सवाल

मैं 31 वर्षीय युवती हूं. मेरे घर वाले पढ़ेलिखे होने के बावजूद अंधविश्वासी हैं. उन के अनुसार शादीब्याह में लड़केलड़की की जन्मकुंडली मिलनी निहायत जरूरी है वरना शादी सफल नहीं होती. जन्मकुंडली मिलाने के चक्कर में ही कई अच्छेअच्छे विवाह प्रस्ताव हाथ से निकल गए. मैं इन बातों को नहीं मानती पर बोल भी नहीं सकती. मेरी सभी सहेलियों के विवाह हो गए हैं पर मैं अभी तक कुंआरी हूं. इतना ही नहीं इस के लिए भी मेरी मां मुझे ही दोष देती हैं कि मैं अच्छा नसीब ले कर पैदा नहीं हुई. क्या करूं कुछ समझ में नहीं आ रहा?

जवाब

आज लोग चांद तक जा पहुंचे हैं और हमारे देश में कुछ लोग ऐसे हैं, जो पंडेपुजारियों द्वारा ईजाद किए अंधविश्वासों में फंस कर बेवकूफ बन रहे हैं. आप के घर वालों को समझना चाहिए कि पहले ही आप की उम्र काफी हो गई है. यदि 1-2 साल उन्होंने इन जन्मकुंडलियों के चक्कर में और निकाल दिए तो फिर आप की शादी होना और कठिन हो जाएगा. आप मैच्योर हैं. स्वयं भी किसी मैरिज ब्यूरो या शादी डौट कौम आदि के माध्यम से अपने लिए जीवनसाथी तलाश सकती हैं.

लड़कियों में बढ़ती हड्डी और जोड़ों की बीमारी, कैसे बचें इनसे

युवतियां माहवारी शुरू होने के बाद ही किशोरावस्था में पहुंचती हैं. फिर धीरेधीरे बायोलौजिकल, हार्मोनल और मनोवैज्ञानिक बदलावों से गुजरते हुए वे वयस्क होती हैं. जिंदगी के ये पड़ाव उन के शरीर में कई बदलाव ले कर आते हैं. इन सब से ज्यादा परेशानी उन्हें हड्डियों व जोड़ों की होती हैं, क्योंकि युवतियां अपने शरीर में हो रहे बदलावों के प्रति लापरवाह होती हैं, जिस से उन्हें कई तरह की बीमारियों जैसे औस्टियोपोरोसिस व औस्टियोआर्थ्राइटिस का सामना करना पड़ता है.

फरीदाबाद, हरियाणा के एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंसैस के सीनियर कंसल्टैंट और और्थोपैडिक्स विभाग के प्रमुख डा. मृणाल शर्मा का कहना है कि युवतियों को समस्याओं पर गौर करना चाहिए ताकि वे स्वस्थ जिंदगी जी सकें.

मीनोपौज की मार

आमतौर पर दुनियाभर में महिलाओं को मीनोपौज 45 से 55 वर्ष की उम्र में होता है, लेकिन हाल ही में द इंस्टिट्यूट फौर सोशल ऐंड इकोनौमिक चेंज के सर्वे से पता चला है कि करीब 4 फीसदी भारतीय महिलाओं को मीनोपौज 29 से 34 साल की उम्र में ही हो जाता है, वहीं जीवनशैली मेें बदलाव के चलते 35 से 39 साल के बीच की महिलाओं का आंकड़ा 8 फीसदी है.

एस्ट्रोजन हार्मोन महिलापुरुष दोनों में पाया जाता है और यह हड्डियों को बनाने वाले औस्टियोब्लास्ट कोशिकाओं की गतिविधियों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है. मीनोपौज के दौरान महिलाओं का एस्ट्रोजन स्तर गिर जाता है, जिस से औस्टियोब्लास्ट कोशिकाएं प्रभावित होती हैं. इस से महिलाओं की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं.

शरीर में एस्ट्रोजन की कमी से कैल्शियम सोखने की क्षमता कम हो जाती है और हड्डियों का घनत्व गिरने लगता है. इस से महिलाओं को औस्टियोपोरोसिस और औस्टियोआर्थ्राइटिस जैसी हड्डियों से जुड़ी बीमारियां होने की आशंका बढ़ जाती है.

मोटापा है घातक

न्यूजीलैंड की औकलैंड टैक्निकल यूनिवर्सिटी की रिसर्च के अनुसार, दुनियाभर में करीब 76 फीसदी जनसंख्या मोटापे की शिकार है और सिर्फ 14 फीसदी आबादी का वजन सामान्य है. भौतिक सुखसुविधाओं, खानपान और कसरत न करने से मोटापा दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और इस से घुटनों के जोड़ सब से ज्यादा प्रभावित होते हैं, क्योंकि शरीर का सब से ज्यादा वजन घुटने झेलते हैं. यह दबाव घुटने के जोड़ों के पतन का कारण बनता है. इस से महिलाओं को औस्टियोआर्थ्राइटिस होने का खतरा सब से ज्यादा रहता है.

ज्यादातर समय घर या औफिस मेें बैठे रहने, कसरत या फिजिकल काम न करने, वजन बढ़ने और कैल्शियम की कमी औस्टियोआर्थ्राइटिस के रिस्क को बढ़ा देती है. मोटापे से पीडि़त रोगियों के लिए वजन कम करना काफी उपयोगी है, क्योेंकि इस से गठिया के लक्षण और प्रगति में सुधार के लिए महत्त्वपूर्ण लाभ होता है.

विटामिन डी की कमी

हालांकि भारत में सूरज की रोशनी प्रचुर मात्रा में है, इस के बावजूद कई अध्ययन दर्शाते हैं कि भारत में करीब 80 फीसदी लोग विटामिन डी की कमी से जूझ रहे हैं. दरअसल, विटामिन डी शरीर में कैल्शियम सोखने में मदद करता है. अगर विटामिन डी की कमी होगी तो शरीर के लिए कैल्शियम सोखना संभव नहीं होगा, जिस से हड्डियों में कमजोरी होगी. इस से औस्टियोपोरोसिस यानी हड्डियों के टूटने का खतरा अधिक रहता है. हड्डियों का सीधा असर जोड़ों पर पड़ता है और कमजोर हड्डियां जोड़ों को प्रभावित करती हैं.

यदि किसी युवती का वजन ज्यादा है तो आर्थ्राइटिस का रिस्क कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है. इस से उस के घुटनों में दर्द, अकड़न और सूजन आ जाती है और उस का चलनाफिरना मुश्किल हो जाता है.

कैल्शियम की कमी

हम सभी जानते हैं कि हड्डियों का निर्माण व उन्हें मजबूत रखने में कैल्शियम का खास महत्त्व है, इस के बावजूद महिलाएं कैल्शियमयुक्त आहार जैसे दूध, पनीर, दही, हरी पत्तेदार सब्जियां, मेवे, अंडे, मछली इत्यादि प्रचुर मात्रा में नहीं लेतीं. इस से ढलती उम्र में कैल्शियम की कमी शरीर की हड्डियों को कमजोर कर देती है.

वैसे भी 30 साल की उम्र के बाद शरीर में कैल्शियम की कमी होने लगती है और ऐसे में अगर उम्र से पहले ही मीनोपौज हो जाए तो एस्ट्रोजन का स्तर गिरने से बोन डैंसिटी तेजी से कम होने लगती है, क्योंकि हार्मोन के प्रभाव से शरीर में कैल्शियम सोखने की क्षमता कम हो जाती है. इसलिए कैल्शियम और विटामिन डी युक्त खाना खाएं.

पैराथायरायड

कई बार हड्डियों से जुड़ी बीमारियों का कारण कैल्शियम या विटामिन डी की कमी नहीं होती बल्कि इस का कारण पैराथायरायड हार्मोन होते हैं. पैराथौयरायड ग्रंथियों का उद्देश्य रक्त के भीतर कैल्शियम को नियंत्रित करना है, जिस से हड्डियां मजबूत होती हैं. अगर शरीर में हार्मोन ज्यादा बनने लगे तो कैल्शियम कम होने लगता है, जिस से हड्डियों की बीमारियां होने लगती हैं.

महिलाओं में हड्डियों की क्षति का स्तर औसतन 2-3 फीसदी प्रतिवर्ष होता है जबकि पुरुषों में हार्मोन फेज के बाद हड्डियों की क्षति का स्तर सिर्फ 0.4 फीसदी होता है. इसलिए अगर महिलाओं को औस्टियोपोरोसिस हो जाए तो उस का समय रहते इलाज कराएं.

औस्टियोआर्थ्राइटिस का इलाज

शुरुआती स्टेज में औस्टियोआर्थ्राइटिस का इलाज अकसर पेनकिलर और कसरत से किया जाता है. जबकि पेनकिलर अस्थायी राहत के लिए दी जाती है. कसरत करने से जोड़ों के आसपास की मांसपेशियां मजबूत होती हैं. इस से न सिर्फ जोड़ों से, बल्कि भविष्य में होने वाली अन्य बीमारियों से भी छुटकारा मिलता है.

गंभीर आर्थ्राइटिस में रोगी के लिए चलनाफिरना मुश्किल हो जाता है और तेज दर्द रहता है. इस से मरीज की जिंदगी काफी प्रभावित होती है. ऐसे में क्षतिग्रस्त जोड़ों को बदलना ही आखिरी विकल्प बचता है.

नी रिप्लेसमैंट सर्जरी के दौरान जांघ और पिंडली की हड्डी के जोड़ के बेकार हिस्से को हटा दिया जाता है और उस पर कृत्रिम इंप्लांट लगाया जाता है. इंप्लांट से दर्द में आराम मिलता है और जोड़ों की कार्यक्षमता सुचारु रहती है.

महिलाओं को अपनी हड्डियों व जोड़ों को स्वस्थ रखना चाहिए. हालांकि औस्टियोआर्थ्राइटिस से हुए नुकसान को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता लेकिन विभिन्न निवारक उपायों से इस के स्तर को कम किया जा सकता है.

नियमित कसरत, वजन कम करना, प्रोटीन व कैल्शियमयुक्त आहार लेना, कैफीन से परहेज और चाय व सोडा वाले ड्रिंक कम लेने से जोड़ों को सेहतमंद रखा जा सकता है.

सीक्रेट रिवैंज-भाग 3 : सुंदरी की बलात्कार की क्या कहानी थी?

कई बार गुस्से में वह इतनी हिंसक हो जाती कि किसी पर कुछ भी उठा कर फेंक देती. वह इतनी हिंसक हो गई कि एक दिन गांव वालों को जगप्रसाद से कहना पड़ा, ‘‘जगप्रसाद, या तो सुंदरी को घर में बांध कर रखो या फिर इस को किसी पागलखाने भेज कर इस का इलाज करवाओ. नहीं तो तुम्हारी बेटी किसी दिन किसी का सिर फोड़ देगी, फिर उस का परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहना.’’ जब जगप्रसाद ने सुंदरी को सम झाने की कोशिश की तो वह अपने बाप से ही उल झ बैठी. बापबेटी में तकरार इतनी बढ़ गई कि सुंदरी ने घर छोड़ने का ही इरादा कर लिया. पास के गांव में ही एक ईंटभट्ठा था.

सुंदरी ने सुन रखा था कि वहां पर बहुत सी महिला मजदूर काम करती हैं. उस ने वहीं जाने का निर्णय किया. वहां काम करने वाली महिलाओं को रहने के लिए झोंपड़ी मिलती थी. अपने परिवार के विरुद्ध जा कर सुंदरी उसी भट्ठे पर काम करने लगी. वहीं अन्य महिलाओं की तरह उसे रहने का ठिकाना भी मिल गया. मन ही मन वह उन 4 दरिंदों से बदला लेने की भी सोच रही थी. आखिर उन दरिंदों की वजह से ही तो उस की जिंदगी बरबाद हुई थी. अभी भी वह लाल दुपट्टा सुंदरी के पास था जिस को उन दरिंदों ने उस के मुंह में ठूंस कर उस गंदी घटना को अंजाम दिया था. उस निशानी को वह कैसे भूल सकती थी? ईंटभट्ठे का ठेकेदार रामपाल था जो शराबी और औरतबाज भी था.

ईंट भट्ठे पर काम करने वाली कई औरतों के साथ उस के अवैध संबंध थे. सुरक्षा के लिए उस के पास रिवौल्वर और बंदूक भी थी. जब से सुंदरी भट्ठे पर आई थी, रामपाल की नजर उस पर थी. वह उस की जवान देह को अपनी हवस का निशाना बनाना चाहता था. सुंदरी भी मन ही मन उन चारों दरिंदों से बदला लेने की कोई योजना बना रही थी. उस ने बहुत सोचसम झ कर रामपाल का निशाना बनना स्वीकार कर लिया. रामपाल ने सुंदरी को अपने और निकट लाने के लिए उसे चाय और पानी पिलाने के काम पर लगा दिया. चाय और पानी पीने के बहाने वह सुंदरी को बारबार अपने औफिस में बुलाता रहता था. एक दिन अकेले में रामपाल ने सुंदरी पर अपनी इच्छा का निशाना साधते हुए कहा, ‘‘सुंदरी, तुम बला की खूबसूरत हो.’’ ‘‘अरे साहब, आप भी तो हट्टेकट्टे नौजवान हो,’’ सुंदरी ने मनमोहक मुसकान से जवाब दिया. रामपाल इश्क लड़ाने का माहिर खिलाड़ी था. वह सम झ गया कि शिकार खुद फंसने को तैयार है. तभी सुंदरी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली, ‘‘साहब, सुना है कि आप पक्के निशानची भी हो.’’

‘‘हां सुंदरी, यहां कई बार जंगली जानवर आ जाते हैं तो उन पर निशाना साधना पड़ता है पर तुम यह क्यों पूछ रही हो, क्या तुम्हें भी निशाना लगाना सीखना है?’’ ‘‘अरे साहब, हमारा ऐसा नसीब कहां, जो कोई हमें निशाना लगाना सिखा दे,’’ सुंदरी ने बड़ी अदा से कहा. रामपाल को यह विश्वास नहीं था कि शिकार उस के जाल में इतनी जल्दी फंस जाएगा. उस ने गरम लोहे पर चोट मारते हुए कहा, ‘‘अरे सुंदरी, क्या बात करती हो? तुम्हें बंदूक चलानी और निशाना लगाना हम सिखाएंगे. तुम कल हमारे साथ जंगलों में चलो, वहीं तुम्हें सबकुछ सिखा देंगे.’’ सुंदरी तो ऐसे मौके की तलाश में पहले से ही तैयार बैठी थी. दोनों के उद्देश्य एकदूसरे से पूरे हो रहे थे. अब आएदिन रामपाल सुंदरी को पहाड़ी स्थानों पर ले जाता. वहां दोनों खूब मजे करते. लेकिन सुंदरी अपने उद्देश्य को भूली नहीं थी. वह तो इंतकाम की आग में लगातार जल रही थी. उसी हिसाब से वह खुद को योजनाबद्ध तरीके से तैयार कर रही थी.

अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए जब वह बिलकुल तैयार हो गई तो उस ने अपने लाल दुपट्टे के 4 टुकड़े किए. 1-1 टुकड़ा एकएक दरिंदे के नाम. सुंदरी को पता था कि नकटू का दूध का कारोबार है. वह रोज रात को 10 बजे के आसपास शहर से मोटरसाइकिल से वापस गांव लौटता है. एक रात सुंदरी ने एक किसान के खेत से बाड़ का कंटीला तार चुरा लिया. रात को गांव की सड़क सुनसान रहती थी. वह कंटीले तार को ले कर सड़क किनारे झाडि़यों के बीच बैठ गई. जैसे ही उस ने नकटू की मोटरसाइकिल की आवाज सुनी, वह चौकन्नी हो गई. उस ने कंटीले तार को सड़क के बीच में डाल दिया. तीखे मोड़ के कारण नकटू कंटीले तार को नहीं देख पाया. उस की मोटरसाइकिल कंटीले तार में बुरी तरह से फंस गई. नकटू इतनी जोर से गिरा कि उस की चीख निकल गई. सुंदरी अपने दुपट्टे का एक टुकड़ा वहीं छोड़ अपनी झोंपड़ी पर पहुंच गई. उस के उद्देश्य का एक भाग पूरा हो चुका था. अगले दिन खबर लगी कि नकटू की दुर्घटना में दोनों टांगें टूट गई हैं. उसे एक प्राइवेट अस्पताल में भरती कराया गया है.

डाक्टर ने लाखों का खर्च बताया है और टांगों को काटने की संभावना भी जताई है. यह सुन कर सुंदरी के दिल को बड़ी तसल्ली मिली. नकटू की दुर्घटना को महज एक हादसा माना गया. सुंदरी पर किसी को रत्तीभर भी शक नहीं हुआ. अब सुंदरी के निशाने पर शाकिब था. उसे पता चला कि शाकिब तो कामधंधे की तलाश में दिल्ली गया है. अब क्या किया जाए? सुंदरी ने पता लगाया कि शाकिब के तीनों बच्चे कसबे में पढ़ने जाते हैं और शाम को 4 बजे घर लौटते हैं. दोपहर को शाकिब की अनपढ़ बीवी आफिया घर में अकेली रहती है. सुंदरी ने उसे लूटने की योजना बना ली. इस के लिए सुंदरी ने एक बुरका खरीदा और कुछ नशे की गोलियां. नशे की गोलियों का इस्तेमाल कैसे किया जाता है, यह सब उस ने रामपाल से सीखा था जो लड़कियों को फांस कर उन की चाय या कोल्डड्रिंक में नशे की दवाई मिला कर उन्हें बेहोश कर उन के साथ गंदा काम करता था.

तब एक दिन शाकिब की दूर की रिश्तेदार बन कर सुंदरी बुरके में उस के घर में दाखिल हुई. आफिया घर में अकेली ही थी. वह शाकिब की रिश्तेदार के लिए चाय बना कर ले आई, यह उस का फर्ज था. सुंदरी ने बड़ी होशियारी से आफिया की चाय में नशे की दवा मिला दी. आफिया चाय पीते ही बेहोश हो गई और सुंदरी ने घर में रखे गहने और नकदी पर हाथ साफ कर दिया. वह अपने लाल दुपट्टे का दूसरा टुकड़ा वहीं छोड़ कर रफूचक्कर हो गई. उस के उद्देश्य का दूसरा भाग पूरा हो चुका था. आफिया के होश में आने के बाद गांव वालों को पता चला कि शाकिब की कोई दूर की रिश्तेदार उस के घर को लूट कर ले गई. पुलिस कई दिनों तक शाकिब के रिश्तेदारों के यहां छापेमारी करती रही.

लेकिन उस के हाथ कुछ नहीं लगा. किसी ने यह सोचा तक भी नहीं कि सुंदरी का इस लूट में कोई हाथ हो सकता है. सुंदरी के अंदर बदले की आग बुरी तरह से लगी हुई थी. उसे अब न इज्जत गंवाने का डर था न पुलिस का खौफ. अब उस के निशाने पर कलवा था. वह कलवा के खलिहान का मुआयना कर आई थी. कलवा ने अपनी गेहूं और सरसों की सारी फसल वहां ला कर रख दी थी. वहीं पर उस के 2 बिटौड़े, एक भुस का छोटा बुंगा और कुछ इमारती लकडि़यां भी रखी थीं. इस में आग लगने का मतलब था कि कलवा की आर्थिक रीढ़ टूटना. सुंदरी जानती थी कि खलिहान में आग लगाने का सब से अच्छा तरीका कौन सा है. यह तरीका भी उस ने रामपाल से ही सीखा था. शाम के समय जब सब गांव वाले खेतों और खलिहानों से अपने घर चले गए, तब सुंदरी कलवा के खलिहान की तरफ आई.

उस ने देख लिया कि आसपास कोई नहीं है. तब उस ने कपड़े का एक पुलिंदा बना कर उस में आग सुलगा कर रख दिया. जितनी देर में आग सुलगी, सुंदरी लाल दुपट्टे का तीसरा टुकड़ा खलिहान से कुछ दूरी पर खड़े पेड़ के तने से बांध कर आगे निकल गई. उस ने दूर से देखा, कलवा का खलिहान धूधू कर के जल रहा है. जितनी तेज आग की लपटें कलवा के खलिहान से उठ रही थीं, उतनी ही ठंडक सुंदरी के कलेजे में पड़ती जा रही थी. सारा गांव आग बु झाने पहुंचा, लेकिन खलिहान तो मिनटों में खाक हो गया. इस के साथ ही कलवा की अच्छी फसल से कमाई का अरमान भी खाक हो गया. आग का लगना किसी गांव वाले की लापरवाही मानी गई. लेकिन लाल दुपट्टे के टुकड़े को ले कर अब गांव वालों में हलकीफुलकी खुसरफुसर मजाकिया लहजे में शुरू हो चुकी थी.

इस से पहले कि पुलिस लाल दुपट्टे को ले कर कड़ी से कड़ी मिलाती, सुंदरी ने टिपलू पर निशाना साध दिया. एक शाम जब अंधेरा ढलने लगा था, मखना ग्राम प्रधान के घेर (गौशाला) से रिवौल्वर की ‘धांयधांय…’ की आवाज गूंज उठी. सब ने यही सम झा कि गांव में बदमाश घुस आए हैं. इसलिए किसी की एकदम से सरपंच के घेर में जाने की हिम्मत नहीं हुई. लेकिन जब काफी देर तक घेर में कोई हलचल नहीं हुई तो गांव वालों ने हिम्मत दिखाते हुए लाठीडंडों के साथ मखना के घेर में प्रवेश किया. सब यह देख कर चौंक गए कि एक मूढ़े के पास टिपलू औंधेमुंह पड़ा है और उस के मुंह में लाल दुपट्टे का एक टुकड़ा ठुंसा पड़ा है. अब गांव वालों को सम झते देर न लगी कि यह कारनामा किस का है? सुंदरी को पता था कि टिपलू और मखना आएदिन शाम को यहां बैठ कर शराब पीते हैं. वह रामपाल का रिवौल्वर ले कर आई और जैसे ही मखना शराब की बोतल लेने के लिए घर गया और उस ने टिपलू को अकेला पाया, उस ने 2 फायर उस पर झोंक दिए. निशाना सुंदरी का अचूक था ही, वह वहीं ढेर हो गया.

सुंदरी का इंतकाम पूरा हो चुका था. इसलिए अपनी पहचान उजागर करने के लिए उस ने जानबू झ कर लाल दुपट्टे का कपड़ा टिपलू के मुंह में ठूंस दिया क्योंकि टिपलू ने ही सब से ज्यादा हैवानियत दिखाई थी और उस के मुंह में लाल दुपट्टट्टे को ठूंसने वाला भी टिपलू ही था. जब तक पुलिस सुंदरी तक पहुंचती, वह आफिया से लूटे हुए जेवर और नकदी ले कर रातोंरात गायब हो गई. चूंकि इन सारी घटनाओं को अंजाम सुंदरी ने अकेले दिया था तो सुंदरी का सुराग देने वाला भी कोई नहीं था. रिश्तदारों को तो छोड़ो, उस के अपने घर वालों को भी सुंदरी की कोई जानकारी न थी. उस का तो किसी से कोई संबंध ही न रह गया था. पुलिस ने सालभर तक सुंदरी की खूब खोजबीन की. लेकिन उस का कुछ पता नहीं चला. थकहार कर पुलिस ने उस की फाइल पर ‘गुमशुदा’ लिख कर फाइल बंद कर दी. कोई कहता वह हरिद्वार में संन्यासी बन गई है, कोई कहता कि वह मुंबई में डौन बन गई है, कोई कहता नेपाल भाग गई है.

लेकिन अब गांव में कोई किसी लड़की से बलात्कार तो दूर, किसी लड़की को छेड़ने की हिम्मत भी न करता. ऐसे लोगों को रात में डरावने सपने आते हैं. सुंदरी का इंतकाम आज भी ऐसे लोगों के दिलोदिमाग में छाया हुआ है. इलाके के लोग सुंदरी को ‘असली नायिका’ कहते हैं. आखिर, उसे नायिका क्यों न कहें, उस ने औरत होने के बावजूद अपने अकेले दम पर बलात्कारियों से बदला ले कर उन्हें खाक में मिला दिया और उन्हें कहीं का न छोड़ा

निःसंतान दंपती: क्या है इलाज

यदि कोई व्यक्ति या दंपती नियमित तौर से असुरक्षित यौन संबंध बनाते हुए कम से कम एक साल बच्चे की कोशिश करने के बाद भी बच्चा पैदा करने में नाकाम है, तो उस की यह अवस्था इन्फर्टिलिटी की अवस्था कही जाती है. इन्फर्टिलिटी का शिकार पुरुष और महिला दोनों ही हो सकते हैं. इस की कई वजहें हो सकती हैं.

डब्लूएचओ के मुताबिक, इन्फर्टिलिटी से लाखों लोग प्रभावित हैं और अपने प्रजनन काल में हर 6 लोगों में से एक किसी न किसी समय इन्फर्टिलिटी का शिकार होता है.

महिला और पुरुष की इन्फर्टिलिटी किन वजहों से बढ़ती है

इन्फर्टिलिटी से पूरी दुनिया में बड़ी तादाद में लोग प्रभावित हैं. यह अनेक वजहों से होती है, जिन से महिला और पुरुष की प्रजनन प्रणाली प्रभावित होती है. महिलाओं में इन्फर्टिलिटी ओव्युलेटरी विकृतियों, ट्यूब की समस्याओं (जैसे फैलोपियन ट्यूब में रुकावट), गर्भ को प्रभावित करने वाले कारणों यानी एंडोमेट्रोसियोसिस या यूटेराइन फाईब्रोयड्स) एवं अन्य कारण जैसे औटोइम्यून विकृतियों और हार्मोनल असंतुलनों के कारण हो सकती है.

पुरुषों में इन्फर्टिलिटी शुक्राणुओं की संख्या कम होने, शुक्राणुओं की गतिशीलता कम होने, अनुवांशिक विकृतियों, संक्रमणों, चोट या मैडिकल इलाज के कारण प्रजनन अंगों को हुए नुकसान के कारण हो सकती है.

इस के अलावा जीवनशैली के तत्व जैसे धूम्रपान, मोटापा और अत्यधिक मदिरा के सेवन का प्रजनन क्षमता पर बुरा असर हो सकता है. साथ ही, पर्यावरण में मौजूद प्रदूषक तत्त्वों और विषैले तत्त्वों का भी गेमीट्स (शुक्राणु और अंडों) पर बुरा असर हो सकता है, और उन की संख्या एवं गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है.

इन्फर्टिलिटी का इलाज किया जाना बहुत जरूरी है, क्योंकि बच्चों की इच्छा रखने वाले दंपतियों पर इस का बहुत गहरा प्रभाव पड़ सकता है. इस से व्यक्तियों और दंपतियों के विभिन्न मौलिक मानवाधिकार प्राप्त करने में बाधा आ सकती है, जैसे उन के बच्चों की संख्या, समय और उन के बीच के अंतर का निर्धारण करना, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखना, परिवार स्थापित करने के उन के अधिकार पूरे करना मुश्किल हो सकता है. इस से भावनात्मक पीड़ा उत्पन्न हो सकती है और दंपती सामाजिक रूप से अलगथलग पड़ सकते हैं एवं उन में चिंता और अवसाद पैदा हो सकते हैं. इस के अलावा यह स्वास्थ्य के किसी अन्य संकट का संकेत भी हो सकता है और इसे हल करने से महिला और पुरुषों, दोनों के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है.

लिहाजा, समय पर मैडिकल परामर्श लिया जाना और यदि दंपती या व्यक्ति को इन्फर्टिलिटी की समस्या महसूस हो रही हो तो गर्भधारण की संभावना बढ़ाने के लिए उचित इलाज कराया जाना बहुत जरूरी है.

पुरुषों की इन्फर्टिलिटी का इलाज

इन्फर्टिलिटी के लगभग एकतिहाई मामले पुरुष साथी में फर्टिलिटी की समस्या के कारण होते हैं. शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता और उन के गठन की आकलन करने के लिए प्राथमिक जांच में वीर्य का विश्लेषण किया जाता है. यदि वीर्य में शुक्राणु मौजूद नहीं होते हैं तो इस स्थिति को एजूस्पर्मिया कहा जाता है.

1. टैसा : टैस्टिकुलर स्पर्म एस्पिरेशन (टैसा) एक मिनिमली इन्वेजिव सर्जिकल स्पर्म रिट्रीवल तकनीक है यानी इस में बहुत छोटा चीरा लगा कर शुक्राणुओं की क्षतिपूर्ति की जाती है.

इस विधि का उपयोग आईसीएसआई के तालमेल में किया जाता है और उन पुरुषों के लिए होता है, जिन में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम या जिन्हें एजूस्पर्मिया (वीर्य में शुक्राणु न होना) है.

कुछ परिस्थितियों में निदान की प्रक्रिया में टैसे (टैस्टिकुलर स्पर्म एक्सट्रैक्शन) का परामर्श दिया जा सकता है, जिस की मदद से टैस्टिकुलर टिश्यू में शुक्राणु की मौजूदगी का पता लगाया जाता है.

2. एमटीईएसई : माइक्रोसर्जिकल टैस्टिकुलर स्पर्म एक्सट्रैक्शन को आम भाषा में माइक्रो टैसे या एमटैसे कहा जाता है. यह एक आधुनिक सर्जिकल स्पर्म रिट्रीवल प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में माइक्रोस्कोप की मदद से शुक्राणु सीधे टैस्टिकुलर टिश्यू से निकाला जाता है. अध्ययनों में प्रदर्शित हुआ है कि इस प्रक्रिया द्वारा टैस्टिकल्स को कम से कम नुकसान के साथ शुक्राणु प्राप्त होने की दर सब से ज्यादा होती है.

3. पेसा/टैसा : वीर्य में शुक्राणु की अनुपस्थिति किसी न किसी बाधा के कारण हो सकती है. इस तरह की एजूस्पर्मिया को औब्सट्रक्टिव एजूस्पर्मिया कहा जाता है. यह वैसेक्टोमी और संचारित यौन संक्रमणों के कारण हो सकता है. यदि इस बाधा को सर्जरी द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता है, तो हम एपिडिडाइमिस या टैस्टिस से शुक्राणु निकाल सकते हैं और उसे आईवीएफ आईसीएसआई के लिए उपयोग में ला सकते हैं.

4. वैरिकोसील रिपेयरः वैरिकोसील टैस्टिकल्स में बढ़ी हुई नसें होती हैं, जो पैर में पाई जाने वाली वैरिकोज नसों की तरह ही होती हैं. वैरिकोसील आमतौर से कोई लक्षण प्रकट नहीं करतीं, पर वे शुक्राणुओं के कम उत्पादन और शुक्राणुओं की कम गुणवत्ता का आम कारण होती हैं, क्योंकि वो टेस्टिकल में और उस के आसपास का तापमान बढ़ा देती हैं.

महिलाओं में इन्फर्टिलिटी के लिए इलाज

असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी (एआरटी) : आईवीएफ और इंट्रायूटेराइन इन्सेमिनशन (आईयूआई) जैसी तकनीकें पुरुष साथी या डोनर से प्राप्त किए गए शुक्राणु द्वारा अंडों के निषेचन में मदद कर सकती हैं.

इनवीट्रो फर्टिलाईजेशन (आईवीएफ) में जटिल प्रक्रियाओं की एक श्रृंखला होती है, जो फर्टिलिटी में मदद कर या अनुवांशिक समस्याओं को रोक कर गर्भधारण में मदद करती है.

आईवीएफ के दौरान अंडाशयों से परिपक्व अंडे निकाले जाते हैं और लैब में शुक्राणुओं द्वारा उन का निषेचन कराया जाता है. इस के बाद निषेचित अंडे (भ्रूण) या अंडों (भ्रूणों) को गर्भ में डाल दिया जाता है.

आईवीएफ के एक पूरे चक्र में लगभग 3 हफ्तों का समय लगता है. कभीकभी आईवीएफ की प्रक्रिया को विभिन्न चरणों में बांट कर किया जाता है, जिस से इस में ज्यादा लंबा समय लग सकता है. आईवीएफ असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी का सब से प्रभावशाली रूप है.

यह प्रक्रिया दंपतियों के अपने अंडों और शुक्राणुओं द्वारा की जा सकती है या आईवीएफ में किसी ज्ञात या अज्ञात डोनर के अंडे, शुक्राणु या भ्रूण शामिल हो सकते हैं. कुछ मामलों में एक जैस्टेशनल कैरियर का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिस के गर्भ में भ्रूण को स्थापित किया जाता है.

औव्युलेशन का उत्प्रेरण : क्लोमिफीन सिट्रेट और लैट्रोजोल जैसी दवाएं औव्युलेटर विकृतियों वाली महिलाओं में औव्युलेशन को उत्प्रेरित कर सकती हैं.

सर्जरी : सर्जिकल प्रक्रियाएं प्रजनन अंगों में संरचनागत विकृतियों, जैसे यूटेराइन फायब्रोयड्स और एंडोमेट्रियल पोलिप्स को ठीक कर सकती हैं.

डोनर अंडे : अगर किसी महिला के शरीर में निषेचन योग्य अंडों का उत्पादन नहीं हो पा रहा है, तो फर्टिलाइजेशन के लिए डोनर अंडों का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह किसी अलग तकनीक से नहीं होता. यह आईवीएफ का ही हिस्सा है और पहले बिंदु में बताए अनुसार किसी तीसरे की मदद ले कर किया जाता है.

ऊपर बताए गए इलाजों के अलावा जीवनशैली में कुछ विशेष बदलाव भी प्रजनन क्षमता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं :

– सेहतमंद वजन बना कर रखना : बहुत ज्यादा या कम वजन होने पर फर्टिलिटी प्रभावित हो सकती है, इसलिए वजन को नियंत्रण में रखना जरूरी है.

– धूम्रपान का त्याग : धूम्रपान से महिला और पुरुषों की प्रजनन क्षमता कम हो सकती है, इसलिए धूम्रपान का त्याग करना बहुत जरूरी है.

– टौक्सिंस के ऐक्सपोजर से बचें : पर्यावरण में मौजूद टौक्सिन जैसे कीटनाशकों और कैमिकल्स का ऐक्सपोजर प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डाल सकता है, इसलिए इन चीजों के संपर्क में आने से बचना जरूरी है.

– तनाव का प्रबंधन : तनाव से प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है, इसलिए काउंसलिंग जैसी तकनीकों से तनाव को नियंत्रण में रखें.

(डा. राखी गोयल बिरला फर्टिलिटी एवं आईवीएफ सैंटर की कंसल्टैंट व सैंटर हैड हैं)

मर्दानी क्यों है एक विशिष्ट संज्ञा

कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान की ये पंक्तियां हर भारतवासी के मन में सदैव गुंजायमान रहती हैं, हमारे
अंतर्मन को प्रेरित करती हैं और एक नई ऊर्जा का संचार करती रहती हैं.

ये पंक्तियां कई बार एक प्रश्न भी खड़ा करती हैं कि सुभद्रा कुमारी चौहान ने रानी लक्ष्मीबाई के लिए मर्दानी संज्ञा का उपयोग क्यों किया? क्या मर्दानी कह कर उन के स्त्रीत्व को कमतर आंका गया है? इस की समीक्षा प्रत्येक पाठक अपनी समझ के अनुरूप करता है.

जब मैं ने गहन चिंतन किया तो पाया कि स्त्री होना अपनेआप में प्रकृति का एक अनूठा वरदान है. एक बालिका समयानुसार एक कोमल हृदय स्त्री में परिवर्तित हो जाती है और हमारी सामाजिक व्यवस्था उसे यह अधिकार देती है कि वह अपने मनोभावों को सदैव प्रकट कर सकती है, अपनी चिंता और दुख को आंसुओं के रूप में बाहर निकाल सकती है. वहीं दूसरी ओर एक बालक जब पुरुष के रूप में परिवर्तित होता है, तो शारीरिक बदलाव के साथसाथ उसे मानसिक बदलाव की प्रक्रिया से भी गुजरना पड़ता है. एक बालक को अपने कोमल स्वभाव को बदल कर एक दृढ़निश्चयी व कठोर चट्टान जैसे व्यक्तित्व का स्वामी बनना पड़ता है, सही समय पर निर्णय लेने की क्षमता को अपने भीतर रोपना होता है. साथ ही, उस निर्णय के भविष्य में होने वाले अच्छे या बुरे परिणाम को भी स्वीकार करना पड़ता है.

जब हम रानी लक्ष्मीबाई के बाल्यकाल को देखते हैं, तो पाते हैं कि माता भागीरथी देवी की मृत्यु के पश्चात 4 वर्ष की मनु को उन के पिता मरोपंत तांबे ने बहुत लाड़प्यार से पाला, किंतु स्नेह के साथ उन्होंने मनु को।एक आम नारी से भिन्न व्यक्तित्व देने का प्रयास किया. एक ऐसा व्यक्तित्व, जिस में नारी की कोमलता, गंभीरता, त्याग, समर्पण और प्रेम के साथ साहस, दृढ़निश्चय, निर्भीकता, दूरदर्शिता, कुशल नेतृत्व, कुशल राजनीति कौशल व अप्रतिम योद्धा जैसे गुण भी हों, जो कि एक वीर पुरुष व प्रभावशाली राजा की पहचान माने गए हैं.

अपने पिता के मार्गदर्शन में जहां एक ओर मनु एक चपल बालिका से सौम्य नवयौवना के रूप में विकसित हुईं, एक संस्कारी व आज्ञाकारी पुत्री से एक प्रेममयी व समर्पित पत्नी बनीं, फिर समयचक्र के साथ एक करुणामयी, ममतामयी माता बनीं और उन्होंने आदर्श नारी के सभी रूपों को आत्मसात किया. वहीं दूसरी ओर अपने बालसखा नाना साहिब और तात्या टोपे के साथ उन्होंने एक नवयुवक की भांति हर विधा में अपनेआप को पारंगत किया. शिवाजी के दृष्टिकोण का अनुसरण करते हुए लक्ष्मीबाई ने छोटी सी उम्र में ही युद्ध कौशल में पारंगत एक नारी सेना का गठन किया.

ऐसा कहा जाता है कि हमारे जीवन में होने वाली घटनाएं पूर्वलिखित होती हैं, तो इस बात को भी मानना होगा कि प्रकृति किसी व्यक्ति के लिए वह सब विधा सीखने और समझने का प्रयोजन स्वयं ही कर देती है, जो विधाएं उस व्यक्ति को जीवन में आने वाली घटनाओं का सामना करने के लिए आवश्यक हों.

उदाहरण के तौर पर कह सकते हैं कि क्योंकि यह पूर्वलिखित था कि मनु एक दिन झांसी की रानी बन कर एक शासक के रूप में देश और समाज को एक नई दिशा दिखाएंगी, इसीलिए इस काम को पूरा करने के लिए आवश्यक विधाओं व गुणों को समय रहते आत्मसात कर लेना उन के लिए अति आवश्यक था.

मर्दानी संज्ञा की यदि हम बात करें तो पहले यह समझना होगा कि कैसे एक स्त्री ने एक पुरुष के रूप को
आत्मसात किया होगा? लक्ष्मीबाई जैसी करुणामयी स्त्री ने जब पति की मृत्यु के पश्चात अपने राज्य का दायित्व संभाला होगा, तो एक स्त्री के कोमल हृदय को त्याग एक दृढ़निश्चयी, कर्मठ व साहसी पुरुष के तौर पर अपने को तैयार किया होगा. अपने दत्तक पुत्र के राज्याधिकार को अंगरेजी हुकूमत द्वारा खारिज किए जाने और उन की ‘हड़पो नीति’ के चलते लक्ष्मीबाई को यह आभास हो गया कि करुणामयी मां बन कर वे अपनी प्रजा का पालन तो कर सकती हैं, किंतु अपने राज्य को और अपने पुत्र के अधिकार को वह अंगरेजों से बचा नहीं पाएंगी. तब उन्होंने एक कुशल राजनीतिज्ञ की तरह अंगरेजों से समझौता किया, जिस से उन की प्रजा और राज्य सुखी रहे.

कुछ समय पश्चात रानी लक्ष्मीबाई को अंदेशा हुआ कि अंगरेजी सरकार उन के व उन की प्रजा के हितों की सुरक्षा करने के बजाय कष्ट दे रही है, तब लक्ष्मीबाई ने एक निर्भीक और कर्तव्यपरायण राजा की तरह अपनी प्रजा के हितों की रक्षा के लिए अंगरेजों से युद्ध करने का निर्णय लिया. यह केवल झांसी राज्य की स्वतंत्रता का युद्ध नहीं था, वरन क्रांति की लहर थी, जो स्वदेश के भाव के साथ केवल झांसी ही नहीं, वरन सारे भारतवर्ष के लोगों के लहू में दौड़ने लगी. परदे के पीछे से निकल अंगरेजी हुकूमत का सामना करने के लिए लक्ष्मीबाई ने सेना की कमान संभाली और इतिहास के पन्नों में एक नारी के स्वाभिमान की अद्भुत अमिट शौर्यगाथा लिखी गई.

सेना का नेतृत्व करती झांसी की रानी की छवि का वर्णन मेरे शब्दों में कुछ इस प्रकार होगा :

सख्ती से भींचे हुए अधर, नैनों में दहकता अंगार होगा.
हर नस क्रोध से तनी हुई, और स्वर बुलंद रहा होगा…
हारश्रंगार की जगह, अब कवच आवरण धरा होगा.
साड़ी का लहराता आंचल, पुत्र की ढाल बना होगा…
चमकती तेज तलवारें, कोमल कलाइयों में सधी होंगी.
बादल की टापों में गुम, पायल की खनक हुई होगी…
सरलता और सौम्यता की देवी, शक्ति का रूप धरी होगी.
अपनी मनु का ये रूप देख, मां भारती धन्य हुई होगी…

झांसी की रानी अपने स्वराज के प्रण के साथ ही एक निर्भीक और वीर योद्धा में बदल गईं और पुरुषों व
नारियों की संगठित सेना बना कर रणक्षेत्र में उतर गईं. लक्ष्मीबाई ने नारी के कोमल हृदयभावों को तज
एक वीर पुरुष की भांति अपनी तेज तलवार और रणकौशल से दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए.

अपने अदम्य साहस से एक नई गौरवगाथा लिखने वाली झांसी की रानी के इसी रूप परिवर्तन को यह संज्ञा दी गई. यह सत्य है कि स्त्री अपनेआप में परिपूर्ण है, पर कई बार अपने हितों की रक्षा के लिए अपनी कोमलता को छोड़ कर पुरुष की कठोरता को अपनाना पड़ता है.

इसी पुरुषत्व को मनु के पिता ने उस के व्यक्तित्व में रोपित किया और समय आने पर शिवशक्ति के रूप की तरह स्त्री के शरीर में पुरुष के भाव को भर कर झांसी की रानी ने आजादी का बिगुल बजाया.

वर्ष 1858 में अंगरेजों से लड़ते हुए लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुईं और भारतवर्ष के लिए एक प्रेरणास्त्रोत बनीं.

सुभद्रा कुमारी चौहान ने बहुत ही सुंदर शब्दों में रानी लक्ष्मीबाई को श्रद्धांजलि अर्पित की है और मर्दानी संज्ञा ने इस कविता को और भी प्रभावशाली बना दिया है.

आजादी की अलख जगाने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बलिदान का भारतवर्ष सदैव ऋणी रहेगा और उन्हें नमन कर इन्हीं पंक्तियों को दोहराता रहेगा कि :
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी.

लेखक- अनु सिंह 

पत्नी से पीछा छुड़ाने के लिए: अपराध की एक सजा भी होती है

थाना बनियाठेर के थानाप्रभारी प्रवीण सोलंकी रात भर गश्त कर के सुबह 5 बजे अपने कमरे पर पहुंचे. वह आराम करने  के लिए लेटे ही थे कि मोबाइल की घंटी बज उठी. उन्होंने काल रिसीव की तो फोन करने वाले अज्ञात व्यक्ति ने बताया कि रसूलपुर के पास कैली गांव में मांबेटी की हत्या कर दी गई है.

डबल मर्डर की सूचना से उन की नींद काफूर हो गई. वह अपने मातहतों को ले कर घटनास्थल की ओर रवाना हो गए. यह बात 19 जून, 2018 की है. थानाप्रभारी ने यह जानकारी उच्च अधिकारियों को भी दे दी.

गांव कैली थाने से करीब एक किलोमीटर दूर है, इसलिए प्रवीण सोलंकी करीब 10 मिनट में कैली गांव पहुंच गए. गांव जा कर उन्हें पता चला कि घटना भारत सिंह के घर में घटी है. थानाप्रभारी ने वहां जा कर देखा तो एक कमरे में एक ही चारपाई पर बेटी पूनम और उस के ऊपर उस की मां शांति की लाशें पड़ी थीं. मां के गले में उसी की साड़ी का फंदा कसा हुआ था, साथ ही उस का गला भी कटा हुआ था. चारपाई के पास जमीन पर काफी खून पड़ा था.

शुरुआती जांच में यही लगा कि दोनों को गला घोंट कर मारा गया है और बाद में गला काटा गया है. चारपाई से दूर एक कोने में कुछ टूटी हुई चूडि़यां पड़ी थीं. पूनम के शरीर पर खरोंचों के भी निशान थे, जिस से लग रहा था कि उस ने हत्यारों से अपने बचाव का प्रयास किया था.

कुछ ही देर में घटनास्थल पर कप्तान राधेमोहन भारद्वाज, एडीशनल एसपी पंकज कुमार मिश्र और सीओ ओमकार सिंह यादव भी पहुंच गए. उन्होंने थानाप्रभारी को निर्देश दिए. इस के बाद थानाप्रभारी ने लाशें पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दीं.

कैली गांव उत्तर प्रदेश के जिला संभल की तहसील मुख्यालय से करीब 8 किलोमीटर दूर है. करीब 3 हजार की आबादी वाले इस गांव में चंद्रपाल का परिवार रहता था. उस के 4 बेटे और 2 बेटियां थीं. करीब 30 वर्ष पूर्व चंद्रपाल की दर्दनाक मौत हो गई थी. उस की मौत के पीछे की भी एक अलग कहानी थी.

दरअसल गांव में पेयजल का संकट था. चंद्रपाल के घर के सामने कुएं की खुदाई चल रही थी. चंद्रपाल भी खुदाई कर रहा था. काफी गहराई तक मिट्टी निकाली जा चुकी थी. तभी अचानक ऊपर से मिट्टी की ढांग गिर कई और चंद्रपाल जिंदा ही दफन हो गया.

उस समय इतने संसाधन नहीं थे कि चंद्रपाल को जल्दी निकाला जा सके. फिर भी गांव वालों ने जैसेतैसे उसे बाहर निकाला लेकिन तब तक उस की मौत हो चुकी थी.

इस के बाद गांव वालों ने वह कुआं फिर से मिट्टी से भर दिया. बाद में जब चंद्रपाल के बेटे जवान हुए तो उन्होंने गांव वालों के सहयोग से पिता के मिशन को पूरा किया. कुआं तैयार हो जाने के बाद गांव में पेयजल की समस्या दूर हो गई.

जिस समय चंद्रपाल की मौत हुई थी, उस समय उस के सभी बच्चे छोटे थे यानी शांति भरी जवानी में विधवा हो गई थी. उस के सामने 6 बच्चों के पालनपोषण की समस्या थी. ऐसे में एक रिश्तेदार भारत सिंह ने शांति के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा.

भारत सिंह मुरादाबाद जिले की पुलिस चौकी जरगांव के अंतर्गत आने वाले भूड़ी गांव का निवासी था. उस की पत्नी की मौत भी एक हृदयविदारक घटना में हुई थी. भारत सिंह का विवाह करीब 32 साल पहले गांव नानपुर की मिलक, जिला रामपुर की महेंद्री नाम की युवती से हुआ था.

एक दिन अचानक रात में डाकुओं ने भूड़ी गांव पर धावा बोल दिया. गांव वालों ने भी मोर्चा संभाला. डाकू लगातार फायरिंग कर रहे थे. ग्रामीण फायरिंग का जवाब ईंटपत्थरों से दे रहे थे. लेकिन उन का मुकाबला करने में वे नाकाम रहे. तब अधिकांश लोग जान बचाने के लिए जंगलों की ओर भागने लगे.

भारत सिंह भी अपने भाइयों राधेश्याम व सूरज सिंह के साथ जंगल में भाग गया. भारत सिंह की पत्नी महेंद्री गहरी नींद में सो रही थी. वह घर में अकेली रह गई. उस समय उस की कोख में 6 महीने का बच्चा था. महेंद्री की जब आंख खुली तो खुद को घर में अकेला देख वह घबरा गई.

फायरिंग की आवाज सुन कर वह माजरा समझ गई. बदहवास महेंद्री ने भी जान बचाने की खातिर घर से जंगल की ओर दौड़ लगा दी. भागते वक्त वह ठोकर खा कर गिर गई.

जब डाकू गांव में लूटपाट कर के चले गए, तब गांव के लोग घर वापस आए. रास्ते में लोगों ने महेंद्री को तड़पते हुए देखा. भारत सिंह भी पत्नी के पास पहुंच गया. उस की हालत देख कर उस के होश उड़ गए.

घर वाले महेंद्री को उठा कर घर ले आए. खून बहता देख वे लोग समझ गए कि पेट में पल रहे नवजात को हानि पहुंची है. महेंद्री भी बेहोशी की हालत में थी. आधी रात का समय था. इलाज के लिए शहर में ले जाने का कोई साधन नहीं था.

घरों में लूटपाट होने की वजह से गांव में वैसे ही कोहराम मचा था. कोई भी गाड़ी ले कर जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था. फलस्वरूप सुबह होने से पहले ही महेंद्री की मौत हो गई.

भारत सिंह की शादी हुए केवल 4 साल हुए थे. पत्नी की मौत के बाद वह खोयाखोया सा रहने लगा था. फिर एक रिश्तेदार के सुझाव पर उस ने 6 बच्चों की मां, विधवा शांति देवी के साथ कराव कर लिया. दरअसल हिंदू विवाह संस्कार के अनुसार अग्नि के सात फेरे और कन्यादान एक बार ही किया जाता है. चूंकि शादी के समय शांति सात फेरे ले चुकी थी और उस का कन्यादान भी हो चुका था, इसलिए भारत के साथ वह दूसरी बार अग्नि के फेरे नहीं ले सकती थी, इसलिए उस का कराव करा दिया गया.

इस के बाद भारत सिंह व शांति का दांपत्य जीवन हंसीखुशी से गुजरने लगा. कुछ दिनों बाद ही भारत सिंह अपने हिस्से की डेढ़ बीघा जमीन बेच कर और घर अपने भाइयों को दे कर कैली में आ कर रहने लगा.

वह मेहनतमजदूरी कर के बच्चों का पालनपोषण करने लगा. इस बीच उस के 3 बच्चे और हुए. जैसेजैसे बच्चे बड़े हुए, भारत सिंह ने उन की शादी कर दी. उस ने सब से छोटी बेटी पूनम का विवाह इसी साल 18 फरवरी को अनिल के साथ कर दिया था. अनिल चंदौसी शहर के हनुमानगढ़ी मोहल्ले में रहता था.

पूनम देहाती माहौल में पलीबढ़ी थी जबकि उस की शादी शहर के लड़के से हुई थी. कई महीने तक शहर में रहने के बावजूद  वह खुद को शहरी माहौल में नहीं ढाल पाई. ससुराल वाले उसे लाख समझाते पर वह खुद को बदलने के लिए तैयार नहीं थी.

अनिल विवाह आदि समारोहों में फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी का काम करता था. रात को देर से आना उस की पेशेगत मजबूरी थी. जब वह कहीं बुकिंग पर नहीं जाता, तब भी वह शराब के नशे में देर से घर आता था. पूनम को उस का शराब पीना पसंद नहीं था. वैचारिक मतभेद के साथ दोनों के बीच मनभेद भी बढ़ता चला गया.

अनिल और पूनम के 4 महीने के वैवाहिक जीवन में घरेलू कलह रहने लगी थी. विवाद बढ़ने पर कई बार अनिल ने पूनम की पिटाई भी कर दी थी, जिस से उस के कान में चोट आई थी. ससुराल में पूनम की उपेक्षा बढ़ती जा रही थी. एक बार पूनम को बुखार आया तो अनिल उसे उस के मायके छोड़ आया. मायके वालों ने पूनम का इलाज कराया.

चोट की वजह से उस के कान में दर्द रहने लगा था. मायके वालों ने उस के कान का भी इलाज कराया. पूनम के मायके वाले  उस के दांपत्य जीवन को सुखी बनाए रखने के प्रयास में लगे रहे.

25 मई, 2018 को कैली गांव में किसी की शादी थी. शादी की दावत में पूनम व उस के पति अनिल को भी आमंत्रित किया गया था. अनिल ससुराल से पत्नी को साथ ला कर विवाह समारोह में शामिल हुआ. इस के बाद अनिल अपनी पत्नी पूनम को मायके में छोड़ कर रात में ही अपने गांव चला गया.

ससुराल वालों ने उस से रात में वहीं रुकने का आग्रह करते हुए कहा कि सुबह पूनम को भी साथ ले कर चला जाए. इस पर अनिल ने कहा कि 2-4 दिन बाद आ कर उसे ले आएगा. लेकिन 15 दिन बीत गए और अनिल पूनम को लेने नहीं आया. पूनम उस से मोबाइल पर बात करना चाहती तो वह कोई न कोई बहाना बना कर उस से बात नहीं करता था. वह कहता था कि 2-4 दिन में उसे लेने आ जाएगा. इस तरह वह उसे टालता रहा.

19 जून को पूनम व उस की मां की हत्या से घर में कोहराम मच गया था. पूरा गांव शोक में डूबा था. भारत सिंह का रोरो कर बुरा हाल था. मांबेटी की अर्थी जब एक साथ उठी तो शवयात्रा में शामिल ग्रामीणों की आंखें नम हो गईं.

उधर पुलिस ने अपनी जांच भारत सिंह से शुरू की. भारत ने पुलिस को बताया कि 18 जून की रात अनिल के पिता फूल सिंह का फोन आया था. उन्होंने बताया था कि अनिल पूनम को लेने गांव गया हुआ है. उस समय वह खेतों पर लगी मेंथा की टंकी पर था. वहां वह किसानों का मेंथा औयल निकालता था. इस काम से उसे अच्छीखासी आमदनी हो जाती थी. उस रात वह घर नहीं आ सका था.

पुलिस को अन्य सूत्रों से भी पता चला कि अनिल उस रात गांव में देखा गया था. पुलिस ने अनिल के घर दबिश दी तो वह घर पर ही मौजूद था. पुलिस उसे पूछताछ के लिए थाने ले आई.

जब उस से पूनम और उस की मां की हत्या के बारे में पूछताछ की गई तो वह काफी देर तक पुलिस को गुमराह करता रहा. पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो वह टूट गया और उस ने अपने जुर्म का इकबाल कर लिया. फिर डबल मर्डर की कहानी कुछ इस तरह सामने आई.

अनिल ने बताया कि गंवार संस्कृति की पूनम से वह पीछा छुड़ाना चाहता था. वह उस के दिल से पूरी तरह उतर चुकी थी, इसलिए वह उसे मायके छोड़ गया था. लेकिन उस के घर वाले उसे साथ ले जाने के लिए दबाव बना रहे थे. उधर पूनम भी बारबार उसे आने के लिए फोन करती रहती थी. किसी भी तरह वह उस से पीछा छुड़ाना चाहता था.

18 जून, 2018 की शाम को उस के पास पूनम का फोन आया. तब अनिल ने अपनी ससुराल के लोगों के बारे में जानकारी की. पता चला कि उस के पिता व भाई घर पर नहीं हैं. पिता मेंथा टंकी पर हैं और भाई खेत पर. कुछ अपनी रिश्तेदारियों में गए हुए हैं. घर पर पूनम और उस की मां ही है. उसे ऐसे ही मौके की तलाश थी.

पूनम अपनी मां के साथ गांव की हवेली से दूर अंतिम सिरे पर स्थित घेर कहे जाने वाले मकान में थी. सुनील जानता था कि पूनम के पांचों भाई अपने परिवार के साथ अंदर वाली हवेली में रहते हैं. पूनम की मां धार्मिक प्रवृत्ति की थी. वह ज्यादातर अपने हाथ का ही बना सादा भोजन करती थी. कभीकभी वह बहुओं द्वारा बनाया गया सादा भोजन भी खा लेती थी.

अनिल अपने दोस्त कौशल के साथ बाइक से घेर वाले उस मकान पर पहुंच गया. वह हाइवे से गांव को जाने वाली सड़क से न जा कर मकान के उत्तर में खाली प्लौटों से होता हुआ गया. उस ने बाइक भी कुछ दूर मकान की दीवार से सटा कर खड़ी कर दी थी. वहां से वह योजनानुसार पैदल ही घर पहुंचे, जिस से आसपड़ोस वालों को पता न चल सके कि पूनम के घर कोई आया है.

पूनम अपनी मां शांति के साथ छत पर लेटी हुई थी. अनिल को देख पूनम की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा. मांबेटी ने दोनों का आदरसत्कार किया. चायनाश्ते के बाद अनिल ने अपनी सास व अपने दोस्त को यह कह कर ऊपर छत पर भेज दिया कि पूनम से कुछ बात करनी है. अनिल ने पूनम से कह कर चारपाई बरामदे से उठा कर कमरे में डलवाई. उस समय लाइट भी नहीं थी. पूनम समझ नहीं पा रही थी कि इतनी गरमी में अंदर बैठ कर वह क्या खास बात करेंगे.

अनिल चारपाई पर बैठी पत्नी से औपचारिक बातें करने लगा, तभी अचानक उस ने अपने दोनों हाथों से पूनम का गला पकड़ लिया. पूनम समझ नहीं पाई कि वह क्या कर रहा है. गले पर हाथों का दबाव बढ़ने पर पूनम ने अपने बचाव में हाथपैर चलाने शुरू कर दिए, जिस से उस की चूडि़यां भी टूट गईं और शरीर पर खरोचों के निशान भी पड़ गए.

पति के सामने पूनम का संघर्ष असफल रहा. कुछ ही देर में वह चारपाई पर लुढ़क गई. जब अनिल को यकीन हो गया कि पूनम की सांसें थम गई हैं, तब उस ने अपने दोस्त कौशल को नीचे बुलाया. उस के साथ पूनम की मां शांति भी नीचे आ गई.

शांति जब नीचे आई तो पूनम उसे बरामदे में दिखाई नहीं दी. उस ने अनिल से पूनम के बारे में पूछा. अनिल ने इशारा करते हुए कहा कि वह अंदर कमरे में है. शांति जैसे ही कमरे की तरफ बढ़ी, अनिल ने उसे पीछे से दबोच लिया. दोस्त के सहयोग से उस ने सास को भी जमीन पर गिरा कर पहले उस के मुंह में कपड़ा ठूंसा, जिस से उस की आवाज न निकल सके. फिर कौशल ने पैर जकड़े और अनिल ने उसी की साड़ी से उस का गला घोंट दिया.

शांति को मारने के बाद दोनों ने उसे जमीन से उठा कर पूनम की लाश के ऊपर डाल दिया. अनिल को यह अहसास हुआ कि सास शांति देवी की सांसें अभी थमी नहीं हैं, तब उस ने उस की गरदन चारपाई से नीचे की ओर लटकाई. कौशल ने लटकती गरदन को पकड़ा और अनिल ने सब्जी काटने के चाकू से गरदन रेत दी.

इस के बाद दोनों वहां से निकल गए. इस मकान से आगे केवल 2 मकान और हैं. उस के बाद आबादी नहीं है. उन्होंने वहां आड़ में खड़ी बाइक उठाई और चले गए. सामने व पड़ोस में रहने वाले किसी भी व्यक्ति को इस दोहरे हत्याकांड की भनक तक नहीं लग सकी.

पूनम का एक विकलांग भाई कुंवरपाल 5-6 मकान पहले गली के नुक्कड़ पर स्थित पशुशाला में सोने के लिए आया था. 4 साल की उम्र में उसे पोलियो हो गया था. उस की शादी भी एक विकलांग लड़की से हुई थी. वह बैसाखी के सहारे चलती है.

कुंवरपाल रात 10 बजे सोने के लिए पशुशाला में चला जाता था. करीब 25 सदस्यों का इन का संयुक्त परिवार है. सभी का भोजन एक साथ बनता है. सभी भाइयों एवं उन की बहुओं में गजब का सामंजस्य है. कुंवरपाल को भी घटना की जानकारी नहीं लगी.

अनिल से पूछताछ करने के बाद पुलिस ने उस के और उस के दोस्त कौशल के खिलाफ हत्या का केस दर्ज कर के अनिल को सीजेएम रवि कुमार के समक्ष पेश कर न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया. पुलिस ने दूसरे अभियुक्त कौशल की तलाश में इधरउधर छापे मारे तो उस ने 28 जून, 2018 को अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया.

अनिल ने हत्या का कारण यह भी बताया कि पूनम मानसिक रोगी थी और यह बात उस के घर वालों ने उस से छिपाई थी. जबकि परिजनों का कहना है कि उस के इस आरोप के कारण पूनम का सीटी स्कैन कराया था, जिस में वह पूर्ण स्वस्थ पाई गई.

मामले की जांच थानाप्रभारी प्रवीण सोलंकी कर रहे हैं.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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