‘‘नरेंद्र साहब ने अत्यंत मधुर स्वर में कहा, ‘‘इस महीने खास दबाव नहीं है, इसलिए आप का काम आराम से हो जाएगा. आप को 80 हजार रुपए चाहिए न?’’
प्रताप ने स्वीकृति में सिर हिलाया. नरेंद्र साहब ने फौर्म में लगी रसीद फाड़ कर प्रताप की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अपने भाईसाहब से कहना कि वे
सारी व्यवस्था करें. 3 तारीख को पैसा मिल जाएगा.’’
‘‘थैंक्स,’’ प्रताप ने सैक्रेटरी साहब का हाथ थाम कर कहा, ‘‘थैंक्यू वैरी मच.’’
नरेंद्र द्वारा दी गई रसीद जेब में रख कर प्रताप खड़ा हुआ. उस की एक बहुत बड़ी टैंशन खत्म हो गई थी. पैसा पा कर बेचारा बड़ा भाई खुश हो जाएगा. यदि भैया हर महीने आ कर अपनी किस्त दे जाएंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी. सुधा को इस बात का पता ही नहीं चलेगा. सुधा की याद आते ही उस की मुट्ठियां भिंच गईं.
उस की विचारयात्रा आगे बढ़ी. यदि उसे पता चल भी जाएगा तो क्या कर लेगी? ज्यादा से ज्यादा झगड़ा करेगी. जब तक कान सहन करेंगे, सहता रहूंगा. उस के बाद अपने हाथों का उपयोग करूंगा. एक बार उलटा जवाब मिल जाएगा तो उस का दिमाग अपनेआप ही ठिकाने पर आ जाएगा.
सुधा के विचारों से मुक्त होना प्रताप के लिए आसान नहीं था. फिर भी उस ने औफिस की फाइलों में मन लगाने का प्रयास किया. बैंक की बिल्ंिडग के गेट के पास जो मैकेनिक था, प्रताप ने स्कूटर की चाबी दे कर उसे लाने के लिए भेज दिया था. साथ ही, यह भी कह दिया था कि शाम तक वह स्कूटर बना कर तैयार कर देगा.
शाम को प्रताप बैंक से निकला तो मैकेनिक ने स्कूटर बना कर तैयार कर दिया था. वह स्कूटर स्टार्ट कर ही रहा था कि उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. उस ने पलट कर देखा, दीपेश बैग टांगे खड़ा था. उस के साथ आकाश और दीपक भी थे. दीपेश ने कहा, ‘‘यार, मैं तुझ से मिलने तेरे बैंक आया हूं और तू घर भागने की तैयारी कर रहा है? लगता है, भाभी से बहुत डरता है?’’
‘‘यार, सुबहसुबह ऐक्सिडैंट हो गया था, जिस में यह देखो घुटना छिल गया है,’’ प्रताप ने पैर उठा कर फटे पैंट के नीचे घुटना दिखाते हुए कहा, ‘‘परंतु अब जब तुम तीनों मिल गए हो तो
सारी तकलीफ दूर हो गई है. हम
चारों अंतिम बार कब मिले थे? मेरे खयाल से साल, डेढ़ साल तो हो ही गए होंगे?’’
‘‘नहीं, भाई, पूरे 2 साल हो गए हैं,’’ दीपक ने कहा, ‘‘यहीं मिले थे. फिर सामने वाले होटल में सब ने रात का डिनर किया था. अरे हां यार प्रताप, वह तेरा साथी पान सिंह नहीं दिखाई दे रहा है.’’
‘‘दिखाई कहां से देगा, आजकल कभी उस की सब्जी नहीं पकती तो कभी बेचारे को बासी रोटी मिलती है.’’
‘‘क्या मतलब? तेरी मजाक करने
की आदत अभी भी नहीं गई,’’ आकाश ने कहा.
‘‘सच कह रहा हं. जानते हो, एक दिन मैं बिग बाजार गया. एक किलोग्राम जीरा और कुछ सामान खरीदा. वहां मुझे एक कूपन मिला, जिस से मेरा समान फ्री हो गया. जब से इस बात का पता पान सिंह की बीवी को चला है, वह रोज सुबह उसे लंच में बासी रोटी बांध देती है.’’
‘‘चल, बहुत हो गया. अब उस का ज्यादा मजाक मत उड़ा,’’ दीपेश ने टोका.
दीपेश तो उस के साथ ही देहरादून में बोर्डिंग में रहता था. आकाश और दीपक भी उस के क्लास में साथ ही थे. पान सिंह उस के गांव का ही रहने वाला था, जिस की अनुपस्थिति में वह उस का मजाक उड़ा रहा था. कालेज लाइफ में पांचों की मित्रता सगे भाइयों जैसी थी. 2 साल बाद चारों इकट्ठा हुए थे. फिर चारों बैठ कर बातें करने लगे. बातें करते रात के 9 बज गए. तब दीपेश ने कहा, ‘‘यार, अब तो भूख लगी है, खाने के लिए कुछ करो.’’
‘‘सामने अभी हाल ही एक नया रैस्टोरैंट खुला है, वहां वाजिब दाम में बढि़या खाना मिलता है,’’ प्रताप ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा.
वह अपने तीनों मित्रों के साथ रैस्टोरैंट की ओर बढ़ रहा था, तब भी उस के दिमाग में विचार चल रहे थे. हर बुधवार को मूंग की दाल बनाने का भूत सुधा के दिमाग से निकालना ही पड़ेगा. आने वाले बुधवार को वह मूंग की दाल खाने से साफ मना कर देगा और यहां आसपास तमाम होटल हैं, जा कर खा लेगा. उस ने पक्का निर्णय कर लिया कि कुछ भी हो, इस बार बुधवार को वह मूंग की दाल बिलकुल नहीं खाएगा.
चारों रैस्टोरैंट में जा कर एक मेज पर बैठ गए. इधरउधर निगाहें डाल कर आकाश ने कहा, ‘‘यार प्रताप, रैस्टोरैंट तो अच्छा है. आज की पार्टी मेरी ओर से. पिछले महीने पुत्ररत्न प्राप्त हुआ है, उसी की खुशी में.’’
फिर तो सभी ने उसे बधाई दी. पुरानी यादों को ताजा करते हुए हंसतेखिलखिलाते उन्होंने खाना खाया. खाना अच्छा था. खाना खाने के बाद उठते हुए प्रताप
ने कहा, ‘‘आज तुम लोग मिले, बहुत अच्छा लगा. रोजाना तो बैंक से सीधे घर.’’
‘‘औफिस से सीधे घर, यही लगभग सभी पुरुषों की कहानी होती है,’’ दीपक ने कहा, ‘‘कालेज लाइफ के भी क्या मजे थे, यार.’’
‘‘अब वे दिन कहानी बन गए हैं. जरा भी देर हो जाती है तो पत्नी हिसाब मांगने लगती है,’’ दीपेश बोला.
खापी कर डकार लेते हुए चारों रैस्टोरैंट से बाहर निकले. प्रताप के तीनों मित्र विदा हो गए तो उस ने भी अपना स्कूटर स्टार्ट किया. 10 बजने में मात्र 20 मिनट बाकी थे. घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 तो बज ही जाएंगे. सुधा लालपीली हो रही होगी. दरवाजे पर ही कुरसी डाले बैठी होगी. वर्षों बाद आज पुराने दोस्त मिले थे, उन के साथ भी तो बैठना जरूरी था. स्कूटर की गति के साथसाथ उस के विचारों की गति भी बढ़ती जा रही थी. देर होने पर सुधा अवश्य बवाल करेगी. वह लड़ने को भी तैयार होगी. इस बात का उसे पूरा आभास था. वह होंठों ही होंठों में मुसकराते हुए बड़बड़ाया, ‘मुझे पता है वह झगड़ा करेगी. लेकिन यदि आज उस ने झगड़ा किया तो मैं उस का वह हश्र करूंगा जिस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.’
प्रताप घर पहुंचा. उस के घर में घुसते ही सुधा ने जलती नजरों से पहले प्रताप की ओर, फिर घड़ी की ओर देखा. उस के बाद कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अब तक कहां थे? किस के साथ घूम रहे थे?’’
‘‘तुम्हारी बहन के साथ घूम रहा था,’’ दांत भींच कर प्रताप ने कहा.
प्रताप ऐसा जवाब देगा, सुधा को उम्मीद नहीं थी. उस ने आंखें फाड़ कर प्रताप की ओर देखा. फिर आगे बढ़ कर प्रताप की आंखों में आंखें डाल कर चीखते हुए बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने?’’
‘‘जो तुम ने सुना,’’ प्रताप ने दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ कहा.
‘‘बेशर्म, कुछ लाजशर्म है या नहीं?’’ सुधा ने प्रताप का कौलर पकड़ कर झकझोरते हुए कहा, ‘‘नीच कहीं के, इस तरह की बात कहते शर्म नहीं आती?’’
‘‘पहले तुम अपने बारे में सोचो,’’ प्रताप ने सुधा से कौलर छुड़ाते हुए शांति से कहा, ‘‘घर से बाहर निकलने पर रास्ते में बीस तरह की परेशानियां आती हैं. पति को घर आने से जरा सी देर हो जाए तो शांति से पूछना चाहिए. वह जो कहे उसे सुनना चाहिए. ऐसा करने के बजाय तुम रणचंडी बन जाती हो. मेरी समझ में यह नहीं आता कि हमेशा तुम उलटा ही क्यों सोचती हो?’’
‘‘तुम्हारे उपदेश मुझे नहीं सुनने,’’ सुधा की आंखों से आग बरस रही थी. वह तेज स्वर में बोली, ‘‘तुम ने जो कहा है वह मैं मम्मीपापा को फोन कर के बताऊंगी.’’
‘‘तुम्हें जिस से भी कहना हो, कह देना,’’ प्रताप ने कंधे उचका कर कहा, ‘‘साथ ही तुम ने जो पूछा है वह भी बता देना. और हां, देर क्यों हुई, यह जरूर बता देना,’’ कह कर प्रताप ने अपना दाहिना पैर आगे बढ़ाया. घुटने पर फटी पैंट और खून के दाग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. उस ने पैंट उठा कर घुटने पर बंधी पट्टी दिखाते हुए कहा, ‘‘लहूलुहान हो कर भी घर पहुंचो, तब भी तुम्हारे दिमाग में उलटीसीधी बातें ही आती हैं.’’
प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा चुप रह गई. वह गरदन झुका कर कुछ सोचने लगी तो उंगली से इशारा कर के प्रताप थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारे पास बुद्धि है. कभी उस का भी उपयोग कर लिया करो. हमेशा तुम्हारा व्यवहार एक जैसा ही रहता है. आदमी के साथ कभी भी, कुछ भी हो सकता है.’’
प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा सहम सी गई थी. एक तो प्रताप को चोट लग गई थी. फिर 4 साल में पहली बार प्रताप ने इस तरह सुधा को जवाब दिया था. वह आश्चर्य से आंखें फाड़े प्रताप को ही ताक रही थी. प्रताप ने उसे हिकारतभरी नजरों से देखा. आज वह अपने मन की भड़ास निकाल रहा था, ‘‘तुम अपने व्यवहार को सुधारो, स्वभाव को बदलो और इंसान की तरह रहना सीखो. नहीं सीखा तो फिर मैं सिखा दूंगा.’’
सुधा आंखें फैलाए, होंठ भींचे प्रताप की बातें सुनती रही. प्रताप का आज जो मन हो रहा था, बके जा रहा था. सुधा से सहन नहीं हुआ तो वह मारे गुस्से के पैर पटकते हुए रसोई में चली गई.
प्रताप ने बैडरूम में जा कर कपड़े बदले और लेट गया.
सवेरे उठ कर वह बहुत खुश था. शरीर की थकान एक ही रात में उतर गई थी. फटाफट फ्रैश हो कर वह अखबार ले कर पढ़ने बैठ गया. एक जागरूक नागरिक ने टै्रफिक पुलिस को नींद से जगाया, हैडिंग के साथ उस का समाचार छपा था. उस के द्वारा फैक्स किए गए पत्र का मुख्य अंश भी छपा था. वह खुशी से झूम उठा. होंठों को गोल कर के सीटी बजाते हुए बाथरूम में घुसा.
सुधा आश्चर्य से प्रताप की प्रत्येक अदा को ध्यान से देख रही थी. प्रताप खाने के लिए बैठा तो सुधा उस की बगल में आ कर खड़ी हो गई. पिछली रात प्रताप ने उस के साथ जो व्यवहार किया था उस की नाखुशी अभी भी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. वह भी कोई कच्ची मिट्टी की नहीं बनी थी. क्रैडिट सोसायटी से रुपए ले कर बड़े भाई को देने वाली बात अभी भी उस के दिमाग में घूम रही थी. प्रताप के चेहरे पर नजरें जमा कर आहिस्ता से बोली, ‘‘भैया को फोन कर दिया था न?’’ सुधा ने यह बात आज जिस तरह कही थी, उस में कल जैसी उग्रता नहीं थी. सुधा को शांति से बात करते देख प्रताप को आश्चर्य हुआ था.
मुंह में निवाला डाल कर प्रताप ने सिर हिला दिया. सुधा का चेहरा खिल उठा था. सुधा के चेहरे पर एक निगाह डाल कर प्रताप मन ही मन बड़बड़ाया, ‘उन्हें तो मैं इस तरह पैसा दूंगा कि तुझे पता ही नहीं चलेगा.’
जूते पहन कर प्रताप ने स्कूटर की चाबी ली और दरवाजा बंद कर के बाहर आ गया. सीढि़यों से उतर कर स्कूटर के पास पहुंचा तो देखा तंबाकू और गुटखे के पाउच स्कूटर पर पड़े थे. सब्जी का कुछ कचरा स्कूटर की सीट पर तो कुछ फुटरैस्ट पर पड़ा था. यह देख कर प्रताप की सांस तेज हो गई. उस ने ऊपर की ओर देखा. संयोग से तीसरी मंजिल पर रहने वाले दंपती बालकनी में खड़े थे. प्रताप ने चीख कर कहा, ‘‘अरे ओ जंगलियो,’’ प्रताप इतने जोर से चीखा था कि अगलबगल फ्लैटों में रहने वाले लोग बाहर आ गए थे. सभी की आंखों में आश्चर्य था. मारे गुस्से के प्रताप कांप रहा था.
प्रताप ने अपने दाहिने हाथ की उंगलियां बालकनी की ओर उठा कर कहा, ‘‘मैं तुम से ही कह रहा हूं. कोई कुछ कहता नहीं है तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि गंदगी करने का ठेका तुम्हें मिल गया है. नीचे भी आदमी रहते हैं, जानवर नहीं. इस तरह कचरा फेंकने में आप लोगों को शर्म भी नहीं आती?’’
प्रताप जिस तरह चीखचीख कर अपनी बात कह रहा था, उस से सभी पड़ोसी स्तब्ध रह गए थे. दरवाजे पर खड़ी सुधा की आंखों में भी आश्चर्य था. प्रताप दांत पीस कर बोला, ‘‘सुन लो, आज के बाद यदि कचरा नीचे आया तो सारा कचरा समेट कर मैं तुम्हारे घर में फेंक दूंगा.’’
सभी की नजरें तीसरी मंजिल की बालकनी पर खड़े दंपती पर जम गई थीं. जबकि पतिपत्नी नीचे खड़े प्रताप को एकटक ताक रहे थे. प्रताप ने जो कहा था, उस का असर झांक रहे लोगों पर क्या पड़ा, यह देखने के लिए प्रताप ने चारों ओर नजरें दौड़ाईं. सभी लोग तीसरी मंजिल पर खड़े पतिपत्नी को हिकारत भरी निगाह से देख रहे थे. फिर उस ने विजेता की तरह गर्व के साथ स्कूटर में किक मारी. स्कूटर स्टार्ट हुआ तो सवार हो कर सड़क पर आ गया. आज सड़क पर बसें कायदे से खड़ी थीं. ट्रैफिक पुलिस भी चौराहे पर मुस्तैदी से खड़ा था. इस का मतलब उस की कार्यवाही का असर हुआ था. परंतु यह सब कितने दिन चलने वाला था.
उस ने बैंक में जैसे ही प्रवेश किया, सामने बैठे मैनेजर साहब ने पूछा, ‘‘भई प्रताप, तुम्हारा पैर कैसा है?’’
‘‘ठीक है, बैटर दैन यस्टरडे,’’ खुश होते हुए प्रताप ने कहा. उस ने अपनी सीट की ओर बढ़ते हुए सोचा, बेटा लाइन पर आ गया. सिधाई का जमाना नहीं रहा. एक बार आंखें लाल कर दो, सभी लाइन पर आ जाते हैं. उस दिन उस ने बैंक में काफी हलकापन महसूस किया. मैनेजर साहब का चमचा दिनेश 2 बार उस की मेज पर आ कर हालचाल पूछ गया था. उस ने चाय भी पिलाई थी. शाम को बैंक से घर जाते हुए वह काफी खुश था. स्कूटर खड़ा करते हुए उस ने देखा, आज पूरा मैदान साफ था. वह स्कूटर खड़ा कर रहा था, तभी सामने वाले फ्लैट में रहने वाले सुधीर ने उस के पास आ कर शाबाशी देते हुए कहा, ‘‘सुबह आप ने बहुत अच्छा किया. ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही करना चाहिए. यदि आदमी होंगे तो अब ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’
सुधीरजी के जाने के बाद प्रताप अपने घर पहुंचा. सुधा बैठी टीवी पर फिल्म देख रही थी. वातावरण में निस्तब्धता थी. प्रताप ने कपड़े उतार कर पलंग पर फेंके और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.
नहा कर बाहर निकला तो दोनों होंठों को गोलगोल कर के वह कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा था. लेकिन कमरे में आते ही उस का गुनगुनाना बंद हो गया. सुधा पर नजर पड़ते ही वह सहम उठा. क्रैडिट सोसायटी में लोन के लिए उस ने जो फौर्म भरा था उस की रसीद लिए सुधा खड़ी थी. 80 हजार रुपए के कर्ज के लिए उस ने अर्जी दी है, यह जान कर वह गुस्से से कांप रही थी. आंखें आग उगल रही थीं. नाक फूलपचक रही थी. वह पूरी ताकत से चीख कर बोली, ‘‘यह क्या है? मैं ने तुम्हें मना किया था, फिर भी तुम नहीं माने. राजा हरिश्चंद्र बन कर घर लुटाने पर तुल गए हो?’’
प्रताप चुपचाप खड़ा था. अपनी बातों का कोई जवाब न पा कर सुधा चिढ़ गई. वह पहले से भी ज्यादा तेज आवाज में चीखी, ‘‘मैं ने जो कहा, तुम ने सुना नहीं. मैं जो पूछ रही हूं, उस का जवाब दो. उन भिखारियों को पैसा क्यों दे रहे हो?’’
‘‘क्या कहा तुम ने?’’ प्रताप ने आगे बढ़ कर कहा.
‘‘मैं ने मना किया था, फिर भी तुम अपने भिखमंगे भाई को 80 हजार रुपए दे रहे हो?’’
‘‘तड़ाक…’’ बिजली की गति से एक तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा. 4 साल में पहली बार ऐसा किया था प्रताप ने. उस का तमाचा इतना जोरदार था कि सुधा गिर पड़ी थी. प्रताप चीखा, ‘‘मेरे बड़े भाई को भिखमंगा कहते तुझे शर्म नहीं आती.’’
सुधा उठ कर बैठ गई. आंखें फाड़े वह प्रताप को एकटक ताक रही थी. फिर ने स्वयं को संभाला और बलखाती नागिन की तरह उठ खड़ी हुई. साड़ी का पल्लू खिसक गया था, बाल बिखर गए थे. आंखों के साथ चेहरा भी लाल हो गया था. दांत भींच कर वह प्रताप की ओर बढ़ी, ‘‘मवाली, हलकट… एक तो चोरीछिपे अपने घर वालों को पैसा देता है. दूसरे, जब मैं पूछती हूं तो मेरे ऊपर हाथ उठाता है,’’ सुधा ने प्रताप को मारने के लिए हाथ उठाते हुए कहा, ‘‘मुझ पर हाथ उठाने का मजा मैं अभी तुम्हें चखाए देती हूं.’’
प्रताप ने उस का हाथ बीच में ही थाम लिया और इस तरह ऐंठ दिया कि मारे दर्द के वह बिलबिला उठी. उस की आंखों में आंसू आ गए. प्रताप ने शब्दों को चबाते हुए कहा, ‘‘सुन, वह मेरा सगा भाई है. आज के बाद फिर कभी भिखारी कहा तो हड्डियां तोड़ कर रख दूंगा.’’
प्रताप ने सुधा के साथ ऐसा पहली बार किया था. उस के इस व्यवहार से सुधा एकदम से सहम उठी. प्रताप ने कहा, ‘‘ये 4 साल मैं ने किस तरह बिताए हैं, यह मैं ही जानता हूं. हर पल अपमान की आग में झुलसता रहा. तुम ने मुझे कुत्ते की तरह रखा. मेरी जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने,’’ इतना कहतेकहते प्रताप की आवाज थोड़ी धीमी पड़ गई, ‘‘तुम्हारा बाप पैसे वाला है तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी गुलामी करूंगा. मेरी भलमनसाहत का फायदा उठा कर, तुम ने मेरे साथ क्या नहीं किया. मेरे मांबाप मेरे साथ कुछ दिन रहने के लिए आए थे, तुम ने उन्हें भगा दिया. मेरे किसी भी नातेरिश्तेदार से तुम ने कभी प्रेम से नहीं बात की. मेरी किसी भी बात में तुम्हें कोई रुचि नहीं है.’’
दो पल रुक कर उस ने आगे कहा, ‘‘तुम कान खोल कर सुन लो, तुम्हारी दादागीरी मैं ने बहुत सहन कर ली है. अब तुम्हारे दिन लद गए. आज के बाद जो करना होगा, मैं करूंगा और तुम सहोगी.’’
सुधा एकटक प्रताप को ही देख रही थी. उस की दुबलीपतली काया क्रोध और क्षोभ से कांप रही थी. सारी देह पसीने से भीग गई थी. आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. प्रताप ने जैसे ही उस का हाथ ढीला किया, सुधा ने पलट कर प्रताप के चेहरे पर थूका, ‘‘आक थू…’’
प्रताप ने झटके से मुंह फेर लिया. इस का फायदा उठा कर सुधा ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया. हाथ छूटते ही वह रसोई की ओर जाते हुए बोली, ‘‘नीच हरामी, मैं तुझे किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगी.’’
तभी हाथ बढ़ा कर प्रताप ने सुधा के खुले बाल पकड़ कर अपनी ओर इस तरह जोर से खींचे कि मारे दर्द के वह तड़प उठी. उस के मुंह से एक भयानक चीख निकली. फिर दांत भींच कर प्रताप ने 2 तमाचे सुधा के गाल पर जड़ दिए.
सुधा जोरजोर से रोते हुए दोनों हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगी. सुधा के गोरेगोरे गालों पर प्रताप की उंगलियों के लाललाल निशान स्पष्ट झलक रहे थे. सुधा की आंखों में आंखें डाल कर प्रताप ने कहा, ‘‘अब ठीक से रहना. मेरे खयाल से अब तुम ऐसा कोई काम नहीं करोगी कि मुझे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करना पड़े.’’
सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुका कर रो रही थी. प्रताप सुधा को छोड़ कर वहीं पड़े पलंग पर बैठ गया. सुधा ने प्रताप की ओर देखा. फिर दोनों हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आज क्या हो गया है तुम्हें?’’
प्रताप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुधा उठी और धीरेधीरे चलती हुई कमरे से बाहर निकल गई. प्रताप ने तौलिया खींच कर पसीना पोंछा. उस ने सोचा, अब सब ठीक हो जाएगा. लेकिन सुधा इतनी जल्दी कहां हार मानने वाली थी. वह कमरे से सीधे रसोई में पहुंची. रसोई में रखा मोटा डंडा निकाला और दोनों हाथों से मजबूती से थामे वह प्रताप की ओर बढ़ी. फिर उस ने जिस तरह से प्रताप पर हमला किया, उस की प्रताप ने कभी कल्पना नहीं की थी. उस ने हाथों में थामे डंडे से पूरी ताकत के साथ प्रताप के सिर पर प्रहार कर दिया. एक ही वार में प्रताप बैड पर लेट गया. उस का सिर फट गया था. खून निकल कर बैड पर बिछी चादर को भिगोने लगा था. उस की आंखें बंद होने लगी थीं. थोड़ी ही देर में वह बेहोश हो गया था.
आईसीयू में भरती प्रताप की चारपाई के पास उस रात कोई नहीं था. अगले दिन खबर पा कर गांव से मांबाप आए तो बड़े भाई और भाभी उन के साथ अस्पताल आ गए थे. रोरो कर चारों की आंखें सूज गई थीं. दीवार का सहारा लिए बैठी सुधा अभी भी सिसक रही थी. थोड़ी दूर पर खड़े सुधा के पापा न्यूरोसर्जन से गंभीरतापूर्वक बातचीत कर रहे थे. उस दुख की घड़ी में सभी की नजरें उन्हीं पर जमी थीं. उन लोगों के लिए दिक्कत की बात यह हो गई थी कि डाक्टरों ने प्रताप के घायल होने की सूचना पुलिस को दे दी थी. डाक्टरों का कहना था कि प्रताप के सिर पर किसी भारी चीज से किसी ने प्रहार किया है. जबकि सुधा के पापा ने डाक्टरों को बताया था कि स्कूटर से गिरने की वजह से प्रताप के सिर और पैर में चोट लगी थी. उस पर डाक्टरों का तर्क था कि पैर की चोट में तो पट्टी बंधी थी जबकि सिर की चोट ताजी थी. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप का बयान लेने 2 बार अस्पताल आ चुका था. परंतु प्रताप के बेहोश होने की वजह से वह बयान नहीं ले सका था. तब उस ने कहा था कि जब इन्हें होश आ जाए, उसे तुरंत सूचना दी जाए. इन का बयान लेना बहुत जरूरी है.
सुधा के पापा नहीं चाहते थे कि इस मामले में पुलिस आए. क्योंकि यदि होश में आने पर बयान देते समय प्रताप ने असलियत बता दी तो सुधा फंस जाएगी. इसी विषय पर वे न्यूरोसर्जन से बातें कर रहे थे. परंतु न्यूरोसर्जन ने साफ कह दिया था कि अब उन के हाथ में कुछ नहीं है.
4 दिनों बाद प्रताप को होश आया. जैसे ही नर्स ने बाहर आ कर यह बात बताई. मांबाप और भाईभाभी उसे एक नजर देखने के लिए बेचैन हो उठे. सुधा भी उठ कर आईसीयू के गेट पर जा खड़ी हुई थी. डाक्टर ने प्रताप के होश में आने की सूचना पुलिस इंस्पैक्टर को भी दे दी थी. इसलिए थोड़ी ही देर में इंस्पैक्टर आ गया. इंस्पैक्टर के आने पर ही सब को आईसीयू में प्रवेश करने दिया गया. ऐसा शायद पुलिस इंस्पैक्टर के इंस्ट्रक्शन के अनुसार किया गया था. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप की चारपाई के पास पड़े स्टूल पर बैठ गया. प्रताप के मांबाप और भाईभाभी उस के पैरों की ओर खड़े एकटक उसी को ताक रहे थे. सुधा अपने पापा के साथ पुलिस इंस्पैक्टर के पीछे खड़ी थी.
पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रताप को गौर से देखा. फिर पूछा, ‘‘आप को किस ने मारा, जिस से आप का सिर फट गया?’’
प्रताप ने सुधा की ओर देखा. सुधा उसे ही ताक रही थी. इसलिए प्रताप से उस की नजरें मिल गईं. प्रताप से नजरें मिलते ही उस की आंखों से झरझर आंसू झरने लगे. प्रताप को लगा शायद उसे अपने किए पर पश्चात्ताप है. प्रताप ने सुधा पर से नजरें हटा कर एक बार सब की ओर देखा. फिर इंस्पैक्टर की ओर देख कर बोला, ‘‘मुझे कोई क्यों मारेगा? कल की दुर्घटना में मेरे पैर में चोट लग गई थी. जिस की वजह से मैं ठीक से चल नहीं
पा रहा था. रात सीढ़ी उतरते समय पैर लड़खड़ा गया, जिस से मैं सीढि़यों पर सिर के बल गिर पड़ा. फिर क्या हुआ, मुझे कुछ पता नहीं.’’
प्रताप का इतना कहना था कि सुधा फफकफफक कर रो पड़ी. इंस्पैक्टर उठा और सब पर एक नजर डाल कर बाहर निकल गया. अब उस के वहां रुकने का कोई सवाल ही नहीं था.
इंस्पैक्टर के जाते ही सुधा आगे बढ़ी और प्रताप का हाथ थाम कर बोली, ‘‘मैं ने आप को कितना परेशान किया, यहां तक कि आप को इस स्थिति में पहुंचा दिया, फिर भी आप ने मुझे बचाने के लिए झूठ बोला.’’
दूसरे हाथ से सुधा का हाथ दबाते हुए प्रताप बोला, ‘‘यह पतिपत्नी का झगड़ा था. पतिपत्नी के झगड़े में किसी तीसरे की कोई जरूरत नहीं होती. तुम ने जो किया, आखिर उस में मेरी भी तो कुछ गलती थी.’’
‘‘लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा,’’ कह कर सुधा ने प्रताप के दोनों हाथ अपने हाथों में भींच लिए. इस बीच बाकी लोग बाहर चले गए थे.