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मैं मां हूं इस की -भाग 1 : बिनब्याही श्लोका की जद्दोजहद

कालेज से आते ही श्लोका बाथरूम में घुस गई. जब उस ने देखा टैस्ट किट 2 रैड लाइनें दिखा रही है, तो उस के होश उड़ गए.

‘नो, नो, ये गलत है. म… मैं प्रेग्नेंट कैसे हो सकती हूं? जरूर यह किट ही गलत बता रही है,’ वह खुद में ही बड़बड़ाई और आंखें गड़ा कर उस पर लिखी जानकारी को गौर से पढ़ने लगी, जिस में लिखा था कि 99 फीसदी यह किट सही बताती है, इसलिए कंफर्म करने के लिए उस ने दोबारा चैक किया, लेकिन फिर वही 2 रैड लाइनें.

‘ओह, अब मैं क्या करूं?’ अपने दिल पर हाथ रख कर श्लोका रो पड़ी. उसे तो लगा था कि पीरियड में कुछ दिनों की देरी होना आम बात है. पहले भी कई बार ऐसा हो चुका था उस के साथ. लेकिन, उस ने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि इस बार लेट पीरियड का मतलब वह प्रेग्नेंट भी हो सकती है.

हालांकि, कुछ दिनों से श्लोका को महसूस तो हो ही रहा था कि उस का वजन बढ़ रहा है. लेकिन उसे लगा कि यह केवल उस का भ्रम है. लेकिन जब उस दिन मजाक में ही उस की दोस्त वीनी ने उस से कहा, ‘जरा कम खाया करो मैडम, मोटी हो रही हो,’ तब उसे एहसास हुआ कि उस का वजन सचमुच में बढ़ रहा है.

अपने शरीर में और भी कई तरह के बदलाव होते देख जब श्लोका ने इंटरनैट पर सर्च किया, तो शंका के निवारण के लिए वह कालेज से आते समय मैडिकल स्टोर से प्रेग्नेंसी किट खरीद लाई थी. लेकिन उस का शक बिलकुल सही निकला. वह सच में प्रेग्नेंट थी.

‘ओह, इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई मुझ से?’ अपना सिर थामे श्लोका वहीं धम्म से टायलेट सीट पर बैठ गई और सोचने लगी कि अगर यह बात घर में किसी को मालूम पड़ गई तो अनर्थ हो जाएगा.

सच तो यही है कि हमारे समाज में आज भी एक बिनब्याही लड़की का मां बनना अभी भी सामान्य बात नहीं है. सब से पहले तो उस के करैक्टर पर उंगली उठाई जाती है और फिर जी भर कर उसे कोसा जाता है.

समाज ने शादी नाम की संस्था को इस तरह गढ़ा है कि एक स्त्री बिना शादी के बंधन में बंधे मां नहीं बन सकती है. अगर बन गई तो यह घोर पाप है.

“अरे श्लोका, तबीयत तो ठीक है तेरी? इतनी देर से बाथरूम में क्या कर रही है?” बाहर से जब उस की मां अंजू ने दरवाजा खटखटाया, तो वह हड़बड़ा कर उठ खड़ी हुई.

‘नहींनहीं, मां को नहीं पता चलना चाहिए कि मैं… प्रेग्नेंट हूं. अगर उन्हें पता चल गया तो, तो… वे मेरी जान ही ले लेंगी,’ किट को अपनी मुट्ठी में दबाते हुए श्लोका के मुंह से किसी तरह से आवाज निकली, “मां, मैं क… कपड़े बदल रही हूं. आती हूं न… आप जाओ.”

‘ये लड़की भी न. एक तो कालेज से इतनी लेट आई है और आते ही बाथरूम में पता नहीं क्या कर रही है इतनी देर से,’ भुनभुनाते हुए अंजू वहां से चली तो गईं, लेकिन अब श्लोका को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस का तो दिमाग ही जैसे ठप पड़ गया.

बंजर जमीन- भाग 2 : बंजर होते रिश्तों की जमीनी हकीकत

मैंने मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और अनमने से मुंह में डाल लिया. सविता चाय का कप मेरी ओर बढ़ाते हुए बोली, ‘‘आप को पता है, कालोनी में हमारे अलावा बाकी सब के पास कार है,’’ ‘‘यानी कि हमीं लोग बेकार हैं?’’ मैं ने हंसने की कोशिश की. ‘‘छोडि़ए भी, यह मजाक की बात नहीं है. आप ने कभी भी मेरी बात को गंभीरता से लिया है?’’ ‘‘क्यों नहीं लिया, मैं भी तो कोशिश कर रहा हूं कि कार जल्दी ही खरीद ली जाए, मगर…’’ ‘‘बसबस, रहने दीजिए, आप तो बस, कोशिश ही करते रहेंगे, कालोनी में सब के यहां कार आ चुकी है.’’ ‘‘जरूर आ चुकी है, मगर तुम जानती हो, वे सब व्यापारी या सरकारी अफसर हैं, लेकिन मैं तो एक साधारण सा वकील हूं. फिर भी…’’ ‘‘छोटे देवरजी कौन से व्यापारी हैं?

साधारण से डाक्टर ही तो हैं, फिर भी देवरानी को कार में घूमते हुए 2 साल हो गए और आप हैं कि…’’ ‘‘अरे, क्या बात करती हो…जीतू, मेरा छोटा भाई, एक काबिल सर्जन है. 10 सालों में उस ने कितना नाम कमा लिया है.’’ ‘‘छोड़ो भी, आप को भी तो वकालत करते 15 साल हो गए हैं, मगर अभी तक लेदे कर एक फ्लैट ही तो खरीद पाए हैं.’’ ‘‘ऐसा न कहो. सबकुछ तो है अपने पास. टीवी, फ्रिज, एसी, कूलर, स्कूटर, वाश्ंिग मशीन, गहने, कपड़े…’’ ‘‘ठीक है, ठीक है. ये चीजें तो सब के यहां होती हैं. जरा सोचिए, आप कार में कोर्ट जाएंगे तो लोगों पर रोब पड़ेगा और बच्चे भी काफी खुश होंगे.’’ ‘‘हूं, तुम ठीक कहती हो,’’ मैं ने सहमति में सिर हिलाया. फिर अलमारी के लौकर से बैंक की पासबुक निकाल लाया, ‘‘सविता, बैंक खाते में 1 लाख रुपए हैं, चाहें तो पुरानी गाड़ी खरीद सकते हैं.’’ ‘‘नहीं प्रेम, पुरानी गाड़ी नहीं लेंगे. गाड़ी तो नई ही होनी चाहिए.’’ ‘‘ठीक है. फिर तो और रुपयों की व्यवस्था करनी होगी.’’

मैं सोच में डूब गया. पत्नी भी कुछ देर तक सोचती रही. फिर जैसे अचानक कुछ याद आ गया हो, मेरे करीब आते हुए बोली, ‘‘आप के नाम से तो गांव में कुछ जमीन भी है न?’’ ‘‘हां, 5-6 एकड़ के करीब है तो सही, मगर बाबूजी के नाम से है. अगर कहूं तो वे उसे कल ही मेरे नाम कर देंगे.’’ ‘‘जमीन कितने की होगी?’’ ‘‘पता नहीं, वहां जा कर ही मालूम होगा.’’ सविता खुश हो गई, ‘‘फिर क्या सोचना, बेच दीजिए इस जमीन को.’’ ‘‘सो तो ठीक है, मगर इतने सालों बाद गांव जा कर यह सब करना क्या उचित होगा? जगदीश भैया क्या सोचेंगे?’’ ‘‘सोचेंगे क्या, हम उन की जमीन थोड़े ही ले रहे हैं. अपने हिस्से की जमीन बेचेंगे. वैसे भी बेकार ही तो पड़ी है.’’ समस्या का हल निकल चुका था. बस, थोड़े दिनों के लिए गांव जा कर यह सब निबटा देना था.

 

प्यारा सा सोलो ट्रिप : भाग 1

आजादी का अपना अलग ही नशा होता है. यदि न होता तो क्या स्वतंत्रता के लिए इतने सिर कुरबान होते? अनुभा ने अब तक केवल सुना ही सुना था. लेकिन यह भी सच है कि सुने हुए को साकार करने के लिए भी बहुत हिम्मत की जरूरत होती है और लगता है कि अनुभा ने वह हिम्मत जुटाने की सोच ही ली है.
दरअसल 25 वर्ष की अनुभा एक बैंक में क्लर्क है और अपने घर से मीलों दूर नौकरी करती है. उस की रंगत भले ही सांवली है पर नैननक्श बड़े ही तीखे. कद
5 फुट, 3 इंच. देह कसावदार, उस पर खुले बालों में देख कर कोई भी उस का दीवाना हो जाए. औफिस में कई लोग उस पर लट्टू हैं पर वह दबंग किस्म की है तो सामने से कुछ कहने में हिचकते हैं. लेकिन उस के पास भी कोमल दिल है.

अनुभा के परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी है, इसलिए उसे घर पर रुपएपैसे की मदद भेजने की जरूरत नहीं पड़ती. अनुभा एक पीजी में रहती है, इसलिए रहनेखाने का खर्चा भी बहुत अधिक नहीं होता तो फिर अनुभा अपनी कमाई का आखिर करे तो क्या करे?अनुभा को यदि कोई व्यसन नहीं है तो कोई विशेष महंगा शौक भी नहीं है. लेकिन पर्यटन उस की कमजोरी है. उस ने अपने जैसे घुमक्कड़ों का एक समूह बना रखा है, जिस में 4 दोस्त हैं. चारों ही एक से बढ़ कर एक घुमंतू.

3-4 महीने बीततेबीतते उन के पांवों में खुजली चलने लगती और फिर एक शाम यारों की महफिल जुटती. आपसी सहमति से मौसम के अनुकूल स्थान पर मुहर लगती और टैक्सी वाले को फोन कर के बुक कर लिया जाता. सप्ताहभर के भ्रमण के बाद यह चौकड़ी रिचार्ज हो जाती और फिर से अपनेअपने काम में जुट जाती.

पिछले ट्रिप पर दोस्तों में कुछ खटपट हो गई, इसलिए अगला पर्यटन थोड़ा लंबा खिंच गया. लेकिन कहते हैं कि लत बहुत बुरी लत होती है. बाकी का तो पता नहीं, लेकिन अनुभा को जरूर पर्यटन की लत लग चुकी थी और अब वह बेचैन हो रही थी घर से बाहर निकलने के लिए. दोस्तों के बीच तो दूरी आ चुकी थी, जिस के पटने के फिलहाल कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे तो क्या किया जाए?

एक दिन अनुभा सोशल मीडिया खंगाल रही थी कि अचानक एक ट्रैवलौग पर निगाह पड़ी. ब्लौगर ने अपनी सोलो ट्रैवलिंग के अनुभव वहां सा झा किए थे, जिन्हें पढ़ कर अनुभा ने सोचा कि क्यों न इस बार सोलो ट्रिप ट्राई किया जाए. लेकिन सोचना अलग बात है और सोच को पूरा करना दूसरी बात. अनजानी दुनिया को अकेले महसूस करना कोई हंसीठट्ठा है क्या?

 

छोटी छोटी खुशियां : भाग 3

‘‘नरेंद्र साहब ने अत्यंत मधुर स्वर में कहा, ‘‘इस महीने खास दबाव नहीं है, इसलिए आप का काम आराम से हो जाएगा. आप को 80 हजार रुपए चाहिए न?’’

प्रताप ने स्वीकृति में सिर हिलाया. नरेंद्र साहब ने फौर्म में लगी रसीद फाड़ कर प्रताप की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘अपने भाईसाहब से कहना कि वे

सारी व्यवस्था करें. 3 तारीख को पैसा मिल जाएगा.’’

‘‘थैंक्स,’’ प्रताप ने सैक्रेटरी साहब का हाथ थाम कर कहा, ‘‘थैंक्यू वैरी मच.’’

नरेंद्र द्वारा दी गई रसीद जेब में रख कर प्रताप खड़ा हुआ. उस की एक बहुत बड़ी टैंशन खत्म हो गई थी. पैसा पा कर बेचारा बड़ा भाई खुश हो जाएगा. यदि भैया हर महीने आ कर अपनी किस्त दे जाएंगे तो कोई परेशानी नहीं होगी. सुधा को इस बात का पता ही नहीं चलेगा. सुधा की याद आते ही उस की मुट्ठियां भिंच गईं.

उस की विचारयात्रा आगे बढ़ी. यदि उसे पता चल भी जाएगा तो क्या कर लेगी? ज्यादा से ज्यादा झगड़ा करेगी. जब तक कान सहन करेंगे, सहता रहूंगा. उस के बाद अपने हाथों का उपयोग करूंगा. एक बार उलटा जवाब मिल जाएगा तो उस का दिमाग अपनेआप ही ठिकाने पर आ जाएगा.

सुधा के विचारों से मुक्त होना प्रताप के लिए आसान नहीं था. फिर भी उस ने औफिस की फाइलों में मन लगाने का प्रयास किया. बैंक की बिल्ंिडग के गेट के पास जो मैकेनिक था, प्रताप ने स्कूटर की चाबी दे कर उसे लाने के लिए भेज दिया था. साथ ही, यह भी कह दिया था कि शाम तक वह स्कूटर बना कर तैयार कर देगा.

शाम को प्रताप बैंक से निकला तो मैकेनिक ने स्कूटर बना कर तैयार कर दिया था. वह स्कूटर स्टार्ट कर ही रहा था कि उस के कंधे पर किसी ने हाथ रखा. उस ने पलट कर देखा, दीपेश बैग टांगे खड़ा था. उस के साथ आकाश और दीपक भी थे. दीपेश ने कहा, ‘‘यार, मैं तुझ से मिलने तेरे बैंक आया हूं और तू घर भागने की तैयारी कर रहा है? लगता है, भाभी से बहुत डरता है?’’

‘‘यार, सुबहसुबह ऐक्सिडैंट हो गया था, जिस में यह देखो घुटना छिल गया है,’’ प्रताप ने पैर उठा कर फटे पैंट के नीचे घुटना दिखाते हुए कहा, ‘‘परंतु अब जब तुम तीनों मिल गए हो तो

सारी तकलीफ दूर हो गई है. हम

चारों अंतिम बार कब मिले थे? मेरे खयाल से साल, डेढ़ साल तो हो ही गए होंगे?’’

‘‘नहीं, भाई, पूरे 2 साल हो गए हैं,’’ दीपक ने कहा, ‘‘यहीं मिले थे. फिर सामने वाले होटल में सब ने रात का डिनर किया था. अरे हां यार प्रताप, वह तेरा साथी पान सिंह नहीं दिखाई दे रहा है.’’

‘‘दिखाई कहां से देगा, आजकल कभी उस की सब्जी नहीं पकती तो कभी बेचारे को बासी रोटी मिलती है.’’

‘‘क्या मतलब? तेरी मजाक करने

की आदत अभी भी नहीं गई,’’ आकाश ने कहा.

‘‘सच कह रहा हं. जानते हो, एक दिन मैं बिग बाजार गया. एक किलोग्राम जीरा और कुछ सामान खरीदा. वहां मुझे एक कूपन मिला, जिस से मेरा समान फ्री हो गया. जब से इस बात का पता पान सिंह की बीवी को चला है, वह रोज सुबह उसे लंच में बासी रोटी बांध देती है.’’

‘‘चल, बहुत हो गया. अब उस का ज्यादा मजाक मत उड़ा,’’ दीपेश ने टोका.

दीपेश तो उस के साथ ही देहरादून में बोर्डिंग में रहता था. आकाश और दीपक भी उस के क्लास में साथ ही थे. पान सिंह उस के गांव का ही रहने वाला था, जिस की अनुपस्थिति में वह उस का मजाक उड़ा रहा था. कालेज लाइफ में पांचों की मित्रता सगे भाइयों जैसी थी. 2 साल बाद चारों इकट्ठा हुए थे. फिर चारों बैठ कर बातें करने लगे. बातें करते रात के 9 बज गए. तब दीपेश ने कहा, ‘‘यार, अब तो भूख लगी है, खाने के लिए कुछ करो.’’

‘‘सामने अभी हाल ही एक नया रैस्टोरैंट खुला है, वहां वाजिब दाम में बढि़या खाना मिलता है,’’ प्रताप ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ कहा.

वह अपने तीनों मित्रों के साथ रैस्टोरैंट की ओर बढ़ रहा था, तब भी उस के दिमाग में विचार चल रहे थे. हर बुधवार को मूंग की दाल बनाने का भूत सुधा के दिमाग से निकालना ही पड़ेगा. आने वाले बुधवार को वह मूंग की दाल खाने से साफ मना कर देगा और यहां आसपास तमाम होटल हैं, जा कर खा लेगा. उस ने पक्का निर्णय कर लिया कि कुछ भी हो, इस बार बुधवार को वह मूंग की दाल बिलकुल नहीं खाएगा.

चारों रैस्टोरैंट में जा कर एक मेज पर बैठ गए. इधरउधर निगाहें डाल कर आकाश ने कहा, ‘‘यार प्रताप, रैस्टोरैंट तो अच्छा है. आज की पार्टी मेरी ओर से. पिछले महीने पुत्ररत्न प्राप्त हुआ है, उसी की खुशी में.’’

फिर तो सभी ने उसे बधाई दी. पुरानी यादों को ताजा करते हुए हंसतेखिलखिलाते उन्होंने खाना खाया. खाना अच्छा था. खाना खाने के बाद उठते हुए प्रताप

ने कहा, ‘‘आज तुम लोग मिले, बहुत अच्छा लगा. रोजाना तो बैंक से सीधे घर.’’

‘‘औफिस से सीधे घर, यही लगभग सभी पुरुषों की कहानी होती है,’’ दीपक ने कहा, ‘‘कालेज लाइफ के भी क्या मजे थे, यार.’’

‘‘अब वे दिन कहानी बन गए हैं. जरा भी देर हो जाती है तो पत्नी हिसाब मांगने लगती है,’’ दीपेश बोला.

खापी कर डकार लेते हुए चारों रैस्टोरैंट से बाहर निकले. प्रताप के तीनों मित्र विदा हो गए तो उस ने भी अपना स्कूटर स्टार्ट किया. 10 बजने में मात्र 20 मिनट बाकी थे. घर पहुंचतेपहुंचते साढ़े 10 तो बज ही जाएंगे. सुधा लालपीली हो रही होगी. दरवाजे पर ही कुरसी डाले बैठी होगी. वर्षों बाद आज पुराने दोस्त मिले थे, उन के साथ भी तो बैठना जरूरी था. स्कूटर की गति के साथसाथ उस के विचारों की गति भी बढ़ती जा रही थी. देर होने पर सुधा अवश्य बवाल करेगी. वह लड़ने को भी तैयार होगी. इस बात का उसे पूरा आभास था. वह होंठों ही होंठों में मुसकराते हुए बड़बड़ाया, ‘मुझे पता है वह झगड़ा करेगी. लेकिन यदि आज उस ने झगड़ा किया तो मैं उस का वह हश्र करूंगा जिस की उस ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.’

प्रताप घर पहुंचा. उस के घर में घुसते ही सुधा ने जलती नजरों से पहले प्रताप की ओर, फिर घड़ी की ओर देखा. उस के बाद कर्कश स्वर में बोली, ‘‘अब तक कहां थे? किस के साथ घूम रहे थे?’’

‘‘तुम्हारी बहन के साथ घूम रहा था,’’ दांत भींच कर प्रताप ने कहा.

प्रताप ऐसा जवाब देगा, सुधा को उम्मीद नहीं थी. उस ने आंखें फाड़ कर प्रताप की ओर देखा. फिर आगे बढ़ कर प्रताप की आंखों में आंखें डाल कर चीखते हुए बोली, ‘‘क्या कहा तुम ने?’’

‘‘जो तुम ने सुना,’’ प्रताप ने दृढ़ता और आत्मविश्वास के साथ कहा.

‘‘बेशर्म, कुछ लाजशर्म है या नहीं?’’ सुधा ने प्रताप का कौलर पकड़ कर झकझोरते हुए कहा, ‘‘नीच कहीं के, इस तरह की बात कहते शर्म नहीं आती?’’

‘‘पहले तुम अपने बारे में सोचो,’’ प्रताप ने सुधा से कौलर छुड़ाते हुए शांति से कहा, ‘‘घर से बाहर निकलने पर रास्ते में बीस तरह की परेशानियां आती हैं. पति को घर आने से जरा सी देर हो जाए तो शांति से पूछना चाहिए. वह जो कहे उसे सुनना चाहिए. ऐसा करने के बजाय तुम रणचंडी बन जाती हो. मेरी समझ में यह नहीं आता कि हमेशा तुम उलटा ही क्यों सोचती हो?’’

‘‘तुम्हारे उपदेश मुझे नहीं सुनने,’’ सुधा की आंखों से आग बरस रही थी. वह तेज स्वर में बोली, ‘‘तुम ने जो कहा है वह मैं मम्मीपापा को फोन कर के बताऊंगी.’’

‘‘तुम्हें जिस से भी कहना हो, कह देना,’’ प्रताप ने कंधे उचका कर कहा, ‘‘साथ ही तुम ने जो पूछा है वह भी बता देना. और हां, देर क्यों हुई, यह जरूर बता देना,’’ कह कर प्रताप ने अपना दाहिना पैर आगे बढ़ाया. घुटने पर फटी पैंट और खून के दाग स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. उस ने पैंट उठा कर घुटने पर बंधी पट्टी दिखाते हुए कहा, ‘‘लहूलुहान हो कर भी घर पहुंचो, तब भी तुम्हारे दिमाग में उलटीसीधी बातें ही आती हैं.’’

प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा चुप रह गई. वह गरदन झुका कर कुछ सोचने लगी तो उंगली से इशारा कर के प्रताप थोड़ा ऊंचे स्वर में बोला, ‘‘तुम्हारे पास बुद्धि है. कभी उस का भी उपयोग कर लिया करो. हमेशा तुम्हारा व्यवहार एक जैसा ही रहता है. आदमी के साथ कभी भी, कुछ भी हो सकता है.’’

प्रताप के पैर में लगी चोट देख कर सुधा सहम सी गई थी. एक तो प्रताप को चोट लग गई थी. फिर 4 साल में पहली बार प्रताप ने इस तरह सुधा को जवाब दिया था. वह आश्चर्य से आंखें फाड़े प्रताप को ही ताक रही थी. प्रताप ने उसे हिकारतभरी नजरों से देखा. आज वह अपने मन की भड़ास निकाल रहा था, ‘‘तुम अपने व्यवहार को सुधारो, स्वभाव को बदलो और इंसान की तरह रहना सीखो. नहीं सीखा तो फिर मैं सिखा दूंगा.’’

सुधा आंखें फैलाए, होंठ भींचे प्रताप की बातें सुनती रही. प्रताप का आज जो मन हो रहा था, बके जा रहा था. सुधा से सहन नहीं हुआ तो वह मारे गुस्से के पैर पटकते हुए रसोई में चली गई.

प्रताप ने बैडरूम में जा कर कपड़े बदले और लेट गया.

सवेरे उठ कर वह बहुत खुश था. शरीर की थकान एक ही रात में उतर गई थी. फटाफट फ्रैश हो कर वह अखबार ले कर पढ़ने बैठ गया. एक जागरूक नागरिक ने टै्रफिक पुलिस को नींद से जगाया, हैडिंग के साथ उस का समाचार छपा था. उस के द्वारा फैक्स किए गए पत्र का मुख्य अंश भी छपा था. वह खुशी से झूम उठा. होंठों को गोल कर के सीटी बजाते हुए बाथरूम में घुसा.

सुधा आश्चर्य से प्रताप की प्रत्येक अदा को ध्यान से देख रही थी. प्रताप खाने के लिए बैठा तो सुधा उस की बगल में आ कर खड़ी हो गई. पिछली रात प्रताप ने उस के साथ जो व्यवहार किया था उस की नाखुशी अभी भी उस के चेहरे पर साफ झलक रही थी. वह भी कोई कच्ची मिट्टी की नहीं बनी थी. क्रैडिट सोसायटी से रुपए ले कर बड़े भाई को देने वाली बात अभी भी उस के दिमाग में घूम रही थी. प्रताप के चेहरे पर नजरें जमा कर आहिस्ता से बोली, ‘‘भैया को फोन कर दिया था न?’’ सुधा ने यह बात आज जिस तरह कही थी, उस में कल जैसी उग्रता नहीं थी. सुधा को शांति से बात करते देख प्रताप को आश्चर्य हुआ था.

मुंह में निवाला डाल कर प्रताप ने सिर हिला दिया. सुधा का चेहरा खिल उठा था. सुधा के चेहरे पर एक निगाह डाल कर प्रताप मन ही मन बड़बड़ाया, ‘उन्हें तो मैं इस तरह पैसा दूंगा कि तुझे पता ही नहीं चलेगा.’

 

जूते पहन कर प्रताप ने स्कूटर की  चाबी ली और दरवाजा बंद कर  के बाहर आ गया. सीढि़यों से उतर कर स्कूटर के पास पहुंचा तो देखा तंबाकू और गुटखे के पाउच स्कूटर पर पड़े थे. सब्जी का कुछ कचरा स्कूटर की सीट पर तो कुछ फुटरैस्ट पर पड़ा था. यह देख कर प्रताप की सांस तेज हो गई. उस ने ऊपर की ओर देखा. संयोग से तीसरी मंजिल पर रहने वाले दंपती बालकनी में खड़े थे. प्रताप ने चीख कर कहा, ‘‘अरे ओ जंगलियो,’’ प्रताप इतने जोर से चीखा था कि अगलबगल फ्लैटों में रहने वाले लोग बाहर आ गए थे. सभी की आंखों में आश्चर्य था. मारे गुस्से के प्रताप कांप रहा था.

प्रताप ने अपने दाहिने हाथ की उंगलियां बालकनी की ओर उठा कर कहा, ‘‘मैं तुम से ही कह रहा हूं. कोई कुछ कहता नहीं है तो इस का मतलब यह तो नहीं हुआ कि गंदगी करने का ठेका तुम्हें मिल गया है. नीचे भी आदमी रहते हैं, जानवर नहीं. इस तरह कचरा फेंकने में आप लोगों को शर्म भी नहीं आती?’’

प्रताप जिस तरह चीखचीख कर अपनी बात कह रहा था, उस से सभी पड़ोसी स्तब्ध रह गए थे. दरवाजे पर खड़ी सुधा की आंखों में भी आश्चर्य था. प्रताप दांत पीस कर बोला, ‘‘सुन लो, आज के बाद यदि कचरा नीचे आया तो सारा कचरा समेट कर मैं तुम्हारे घर में फेंक दूंगा.’’

सभी की नजरें तीसरी मंजिल की बालकनी पर खड़े दंपती पर जम गई थीं. जबकि पतिपत्नी नीचे खड़े प्रताप को एकटक ताक रहे थे. प्रताप ने जो कहा था, उस का असर झांक रहे लोगों पर क्या पड़ा, यह देखने के लिए प्रताप ने चारों ओर नजरें दौड़ाईं. सभी लोग तीसरी मंजिल पर खड़े पतिपत्नी को हिकारत भरी निगाह से देख रहे थे. फिर उस ने विजेता की तरह गर्व के साथ स्कूटर में किक मारी. स्कूटर स्टार्ट हुआ तो सवार हो कर सड़क पर आ गया. आज सड़क पर बसें कायदे से खड़ी थीं. ट्रैफिक पुलिस भी चौराहे पर मुस्तैदी से खड़ा था. इस का मतलब उस की कार्यवाही का असर हुआ था. परंतु यह सब कितने दिन चलने वाला था.

उस ने बैंक में जैसे ही प्रवेश किया, सामने बैठे मैनेजर साहब ने पूछा, ‘‘भई प्रताप, तुम्हारा पैर कैसा है?’’

‘‘ठीक है, बैटर दैन यस्टरडे,’’ खुश होते हुए प्रताप ने कहा. उस ने अपनी सीट की ओर बढ़ते हुए सोचा, बेटा लाइन पर आ गया. सिधाई का जमाना नहीं रहा. एक बार आंखें लाल कर दो, सभी लाइन पर आ जाते हैं. उस दिन उस ने बैंक में काफी हलकापन महसूस किया. मैनेजर साहब का चमचा दिनेश 2 बार उस की मेज पर आ कर हालचाल पूछ गया था. उस ने चाय भी पिलाई थी. शाम को बैंक से घर जाते हुए वह काफी खुश था. स्कूटर खड़ा करते हुए उस ने देखा, आज पूरा मैदान साफ था. वह स्कूटर खड़ा कर रहा था, तभी सामने वाले फ्लैट में रहने वाले सुधीर ने उस के पास आ कर शाबाशी देते हुए कहा, ‘‘सुबह आप ने बहुत अच्छा किया. ऐसे लोगों के साथ ऐसा ही करना चाहिए. यदि आदमी होंगे तो अब ऐसा कुछ नहीं करेंगे.’’

 

सुधीरजी के जाने के बाद प्रताप अपने घर पहुंचा. सुधा बैठी टीवी पर फिल्म देख रही थी. वातावरण में निस्तब्धता थी. प्रताप ने कपड़े उतार कर पलंग पर फेंके और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया.

नहा कर बाहर निकला तो दोनों होंठों को गोलगोल कर के वह कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा था. लेकिन कमरे में आते ही उस का गुनगुनाना बंद हो गया. सुधा पर नजर पड़ते ही वह सहम उठा. क्रैडिट सोसायटी में लोन के लिए उस ने जो फौर्म भरा था उस की रसीद लिए सुधा खड़ी थी. 80 हजार रुपए के कर्ज के लिए उस ने अर्जी दी है, यह जान कर वह गुस्से से कांप रही थी. आंखें आग उगल रही थीं. नाक फूलपचक रही थी. वह पूरी ताकत से चीख कर बोली, ‘‘यह क्या है? मैं ने तुम्हें मना किया था, फिर भी तुम नहीं माने. राजा हरिश्चंद्र बन कर घर लुटाने पर तुल गए हो?’’

 

प्रताप चुपचाप खड़ा था. अपनी बातों का कोई जवाब न पा कर सुधा चिढ़ गई. वह पहले से भी ज्यादा तेज आवाज में चीखी, ‘‘मैं ने जो कहा, तुम ने सुना नहीं. मैं जो पूछ रही हूं, उस का जवाब दो. उन भिखारियों को पैसा क्यों दे रहे हो?’’

‘‘क्या कहा तुम ने?’’ प्रताप ने आगे बढ़ कर कहा.

‘‘मैं ने मना किया था, फिर भी तुम अपने भिखमंगे भाई को 80 हजार रुपए दे रहे हो?’’

‘‘तड़ाक…’’ बिजली की गति से एक तमाचा सुधा के गाल पर पड़ा. 4 साल में पहली बार ऐसा किया था प्रताप ने. उस का तमाचा इतना जोरदार था कि सुधा गिर पड़ी थी. प्रताप चीखा, ‘‘मेरे बड़े भाई को भिखमंगा कहते तुझे शर्म नहीं आती.’’

सुधा उठ कर बैठ गई. आंखें फाड़े वह प्रताप को एकटक ताक रही थी. फिर ने स्वयं को संभाला और बलखाती नागिन की तरह उठ खड़ी हुई. साड़ी का पल्लू खिसक गया था, बाल बिखर गए थे. आंखों के साथ चेहरा भी लाल हो गया था. दांत भींच कर वह प्रताप की ओर बढ़ी, ‘‘मवाली, हलकट… एक तो चोरीछिपे अपने घर वालों को पैसा देता है. दूसरे, जब मैं पूछती हूं तो मेरे ऊपर हाथ उठाता है,’’ सुधा ने प्रताप को मारने के लिए हाथ उठाते हुए कहा, ‘‘मुझ पर हाथ उठाने का मजा मैं अभी तुम्हें चखाए देती हूं.’’

प्रताप ने उस का हाथ बीच में ही थाम लिया और इस तरह ऐंठ दिया कि मारे दर्द के वह बिलबिला उठी. उस की आंखों में आंसू आ गए. प्रताप ने शब्दों को चबाते हुए कहा, ‘‘सुन, वह मेरा सगा भाई है. आज के बाद फिर कभी भिखारी कहा तो हड्डियां तोड़ कर रख दूंगा.’’

प्रताप ने सुधा के साथ ऐसा पहली बार किया था. उस के इस व्यवहार से सुधा एकदम से सहम उठी. प्रताप ने कहा, ‘‘ये 4 साल मैं ने किस तरह बिताए हैं, यह मैं ही जानता हूं. हर पल अपमान की आग में झुलसता रहा. तुम ने मुझे कुत्ते की तरह रखा. मेरी जिंदगी बरबाद कर दी तुम ने,’’ इतना कहतेकहते प्रताप की आवाज थोड़ी धीमी पड़ गई, ‘‘तुम्हारा बाप पैसे वाला है तो इस का मतलब यह नहीं कि मैं तुम्हारी गुलामी करूंगा. मेरी भलमनसाहत का फायदा उठा कर, तुम ने मेरे साथ क्या नहीं किया. मेरे मांबाप मेरे साथ कुछ दिन रहने के लिए आए थे, तुम ने उन्हें भगा दिया. मेरे किसी भी नातेरिश्तेदार से तुम ने कभी प्रेम से नहीं बात की. मेरी किसी भी बात में तुम्हें कोई रुचि नहीं है.’’

दो पल रुक कर उस ने आगे कहा, ‘‘तुम कान खोल कर सुन लो, तुम्हारी दादागीरी मैं ने बहुत सहन कर ली है. अब तुम्हारे दिन लद गए. आज के बाद जो करना होगा, मैं करूंगा और तुम सहोगी.’’

सुधा एकटक प्रताप को ही देख रही थी. उस की दुबलीपतली काया क्रोध और क्षोभ से कांप रही थी. सारी देह पसीने से भीग गई थी. आंखों से झरझर आंसू बह रहे थे. प्रताप ने जैसे ही उस का हाथ ढीला किया, सुधा ने पलट कर प्रताप के चेहरे पर थूका, ‘‘आक थू…’’

प्रताप ने झटके से मुंह फेर लिया. इस का फायदा उठा कर सुधा ने झटके से अपना हाथ छुड़ा लिया. हाथ छूटते ही वह रसोई की ओर जाते हुए बोली, ‘‘नीच हरामी, मैं तुझे किसी भी हालत में नहीं छोड़ूंगी.’’

तभी हाथ बढ़ा कर प्रताप ने सुधा के खुले बाल पकड़ कर अपनी ओर इस तरह जोर से खींचे कि मारे दर्द के वह तड़प उठी. उस के मुंह से एक भयानक चीख निकली. फिर दांत भींच कर प्रताप ने 2 तमाचे सुधा के गाल पर जड़ दिए.

सुधा जोरजोर से रोते हुए दोनों हाथ जोड़ कर माफी मांगने लगी. सुधा के गोरेगोरे गालों पर प्रताप की उंगलियों के लाललाल निशान स्पष्ट झलक रहे थे. सुधा की आंखों में आंखें डाल कर प्रताप ने कहा, ‘‘अब ठीक से रहना. मेरे खयाल से अब तुम ऐसा कोई काम नहीं करोगी कि मुझे तुम्हारे साथ ऐसा व्यवहार करना पड़े.’’

सुधा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुका कर रो रही थी. प्रताप सुधा को छोड़ कर वहीं पड़े पलंग पर बैठ गया. सुधा ने प्रताप की ओर देखा. फिर दोनों हाथ जोड़ कर बोली, ‘‘आज क्या हो गया है तुम्हें?’’

प्रताप ने कोई जवाब नहीं दिया. सुधा उठी और धीरेधीरे चलती हुई कमरे से बाहर निकल गई. प्रताप ने तौलिया खींच कर पसीना पोंछा. उस ने सोचा, अब सब ठीक हो जाएगा. लेकिन सुधा इतनी जल्दी कहां हार मानने वाली थी. वह कमरे से सीधे रसोई में पहुंची. रसोई में रखा मोटा डंडा निकाला और दोनों हाथों से मजबूती से थामे वह प्रताप की ओर बढ़ी. फिर उस ने जिस तरह से प्रताप पर हमला किया, उस की प्रताप ने कभी कल्पना नहीं की थी. उस ने हाथों में थामे डंडे से पूरी ताकत के साथ प्रताप के सिर पर प्रहार कर दिया. एक ही वार में प्रताप बैड पर लेट गया. उस का सिर फट गया था. खून निकल कर बैड पर बिछी चादर को भिगोने लगा था. उस की आंखें बंद होने लगी थीं. थोड़ी ही देर में वह बेहोश हो गया था.

आईसीयू में भरती प्रताप की चारपाई के पास उस रात कोई नहीं था. अगले दिन खबर पा कर गांव से मांबाप आए तो बड़े भाई और भाभी उन के साथ अस्पताल आ गए थे. रोरो कर चारों की आंखें सूज गई थीं. दीवार का सहारा लिए बैठी सुधा अभी भी सिसक रही थी. थोड़ी दूर पर खड़े सुधा के पापा न्यूरोसर्जन से गंभीरतापूर्वक बातचीत कर रहे थे. उस दुख की घड़ी में सभी की नजरें उन्हीं पर जमी थीं. उन लोगों के लिए दिक्कत की बात यह हो गई थी कि डाक्टरों ने प्रताप के घायल होने की सूचना पुलिस को दे दी थी. डाक्टरों का कहना था कि प्रताप के सिर पर किसी भारी चीज से किसी ने प्रहार किया है. जबकि सुधा के पापा ने डाक्टरों को बताया था कि स्कूटर से गिरने की वजह से प्रताप के सिर और पैर में चोट लगी थी. उस पर डाक्टरों का तर्क था कि पैर की चोट में तो पट्टी बंधी थी जबकि सिर की चोट ताजी थी. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप का बयान लेने 2 बार अस्पताल आ चुका था. परंतु प्रताप के बेहोश होने की वजह से वह बयान नहीं ले सका था. तब उस ने कहा था कि जब इन्हें होश आ जाए, उसे तुरंत सूचना दी जाए. इन का बयान लेना बहुत जरूरी है.

 

सुधा के पापा नहीं चाहते थे कि इस मामले में पुलिस आए. क्योंकि यदि होश में आने पर बयान देते समय प्रताप ने असलियत बता दी तो सुधा फंस जाएगी. इसी विषय पर वे न्यूरोसर्जन से बातें कर रहे थे. परंतु न्यूरोसर्जन ने साफ कह दिया था कि अब उन के हाथ में कुछ नहीं है.

4 दिनों बाद प्रताप को होश आया. जैसे ही नर्स ने बाहर आ कर यह बात बताई. मांबाप और भाईभाभी उसे एक नजर देखने के लिए बेचैन हो उठे. सुधा भी उठ कर आईसीयू के गेट पर जा खड़ी हुई थी. डाक्टर ने प्रताप के होश में आने की सूचना पुलिस इंस्पैक्टर को भी दे दी थी. इसलिए थोड़ी ही देर में इंस्पैक्टर आ गया. इंस्पैक्टर के आने पर ही सब को आईसीयू में प्रवेश करने दिया गया. ऐसा शायद पुलिस इंस्पैक्टर के इंस्ट्रक्शन के अनुसार किया गया था. पुलिस इंस्पैक्टर प्रताप की चारपाई के पास पड़े स्टूल पर बैठ गया. प्रताप के मांबाप और भाईभाभी उस के पैरों की ओर खड़े एकटक उसी को ताक रहे थे. सुधा अपने पापा के साथ पुलिस इंस्पैक्टर के पीछे खड़ी थी.

पुलिस इंस्पैक्टर ने प्रताप को गौर से देखा. फिर पूछा, ‘‘आप को किस ने मारा, जिस से आप का सिर फट गया?’’

प्रताप ने सुधा की ओर देखा. सुधा उसे ही ताक रही थी. इसलिए प्रताप से उस की नजरें मिल गईं. प्रताप से नजरें मिलते ही उस की आंखों से झरझर आंसू झरने लगे. प्रताप को लगा शायद उसे अपने किए पर पश्चात्ताप है. प्रताप ने सुधा पर से नजरें हटा कर एक बार सब की ओर देखा. फिर इंस्पैक्टर की ओर देख कर बोला, ‘‘मुझे कोई क्यों मारेगा? कल की दुर्घटना में मेरे पैर में चोट लग गई थी. जिस की वजह से मैं ठीक से चल नहीं

पा रहा था. रात सीढ़ी उतरते समय पैर लड़खड़ा गया, जिस से मैं सीढि़यों पर सिर के बल गिर पड़ा. फिर क्या हुआ, मुझे कुछ पता नहीं.’’

प्रताप का इतना कहना था कि सुधा फफकफफक कर रो पड़ी. इंस्पैक्टर उठा और सब पर एक नजर डाल कर बाहर निकल गया. अब उस के वहां रुकने का कोई सवाल ही नहीं था.

इंस्पैक्टर के जाते ही सुधा आगे बढ़ी और प्रताप का हाथ थाम कर बोली, ‘‘मैं ने आप को कितना परेशान किया, यहां तक कि आप को इस स्थिति में पहुंचा दिया, फिर भी आप ने मुझे बचाने के लिए झूठ बोला.’’

दूसरे हाथ से सुधा का हाथ दबाते हुए प्रताप बोला, ‘‘यह पतिपत्नी का झगड़ा था. पतिपत्नी के झगड़े में किसी तीसरे की कोई जरूरत नहीं होती. तुम ने जो किया, आखिर उस में मेरी भी तो कुछ गलती थी.’’

‘‘लेकिन अब ऐसा कभी नहीं होगा,’’ कह कर सुधा ने प्रताप के दोनों हाथ अपने हाथों में भींच लिए. इस बीच बाकी लोग बाहर चले गए थे.

पत्थर- भाग 1 : अंतरिक्षीय अध्ययन केंद्र में क्या देखा था भाग्यजननी ने

भारतीय अंतरिक्ष केंद्र और भारतीय खगोलशात्र अध्ययन केंद्र की साझेदारी में बना अंतरिक्षीय खतरे अध्ययन केंद्र का मुख्य उद्देश्य उन खतरों के बारे में जानकारी रखना था, जो अंतरिक्ष की ओर से दैनिक आधार पर पैदा हो रहे थे. इन में उल्का पिंड थे, जिन में से ज्यादातर धरती के ऊपर के वायुमंडल में नष्ट हो जाते थे और कोई ख़तरा नहीं पैदा करते थे. लेकिन कुछेक ऐसे भी थे, जो धरती के भीतर आ जाते थे, जिन से खतरा बना रहता था. लेकिन फिर भी ये उतने बड़े नहीं होते थे कि पूरे शहर की आबादी पर असर करें. अगर कुछ जानमाल का नुकसान हुआ तो भी महज इक्कादुक्का व्यक्तियों पर ही सीमित रहता था.

अगर संपूर्ण भारत देश पर खतरा बन आए या मानव जाति ही खतरे में पड़ जाए, तो आपातकालीन स्थिति बन जाने की संभावना थी. अंतरिक्षीय खतरे अध्ययन केंद्र को संक्षिप्त में ‘अखअ’ का नाम दे दिया गया था.

भाग्यजननी हमेशा की तरह अपने कंप्यूटर पर सोमंप का विश्लेषण कर रही थी. ‘अखअ’ में उस की यही जिम्मेदारी थी. सौमंप यानी सौरमंडल के पत्थर. रोज धरती पर प्रहार करने वाले पत्थर, जो सौरमंडल में ही कहीं से भी आते थे. ज्यादातर ये पत्थर मंगल और बृहस्पति ग्रहों के बीच में से आते थे. अधिकांश तो पृथ्वी से बहुत दूर से निकल जाते थे, लेकिन कुछ सौमंप धरती के लिए खतरे थे. ऐसे सौमंपों का प्रक्षेप पथ उन्हें सूर्य के चारों ओर ले कर जाता था, जिस के बाद वे फिर वापस अपने गंतव्य स्थान की ओर रुख कर लेते थे. जहां से भी उन की उत्पत्ति होती थी, सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की वजह से वे सूर्य की ओर आकर्षित हो कर बढ़े चले आते थे. अगर उन के रास्ते में पृथ्वी आ गई, तो फिर समस्या उत्पन्न हो जाने के आसार थे. जब तक उन का प्रक्षेपवक्र उन्हें धरती से दूर रखता था, तब तक सब सही था.

शायद रात के 11 बज चुके थे. इस वजह से या फिर आज के उबाऊ सैमिनार की वजह से भाग्यजननी अपनी आंखें मींचे उबासी लेते हुए जैसे महज कंप्यूटर स्क्रीन पर ताक रही हो. अगले कुछ पलों में उसे एहसास होने लगा कि कंप्यूटर स्क्रीन पर मौजूद असंख्य बिंदुओं में से एक बिंदु लाल हो चुका था और जैसेजैसे वह आगे बढ़ रहा था, अपने पीछे लाल रंग के पदचिह्न छोड़ते जा रहा था. सफेद बिंदुओं के बीच लाल लकीर अभी तो महज चंद मिलीमीटर ही थी, लेकिन ये चंद मिलीमीटर काफी थे भाग्यजननी को बिजली का झटका देने के लिए. जितने भी सफेद बिंदु थे, वे वह सौमंप थे, जिन से पृथ्वी को कोई खतरा नहीं था.

भारतीय खगोलशात्र अध्ययन केंद्र से भाग्यजननी ने ऐसे सौमंपों पर पीएचडी की थी, जो आने वाले दशक में पृथ्वी के लिए खतरा बन सकते थे. पीएचडी के बाद 2 साल तक यूरोप में सौमंपों पर पोस्ट डाक्टरल रिसर्च कर हिंदुस्तान लौटी, जहां उसे अपनी डाक्टरल थीसिस के बल पर ‘अखअ’ में वैज्ञानिक के तौर पर नियुक्ति मिली.

लाइफस्टाइल- भाग 1 : एक दिशाहीन लड़की की कहानी

खुशी से दिशा के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे. इधरउधर चहक रही थी. झूमझूम कर सहेलियों से बात कर रही थी. दरअसल, मानस से उस की मंगनी जो होने वाली थी. समारोह शहर के नामजद होटल में था. रात के 9 बज गए थे. उस के सारे मेहमान आ चुके थे. सहेलियां भी आ चुकी थीं. पर मानस और उस के घर वाले अब तक नहीं आए थे. देर होते देख उस के पापा घबरा गए. दिशा को मानस से पूछने के लिए कहा तो उस ने झट से उसे फोन लगाया. मानस ने बताया कि ट्रैफिक में फंस गया है. 20-25 मिनट में पहुंच जाएगा.

दिशा ने राहत की सांस ली. न जाने क्यों मानस के आने में देर होते देख लगने लगा था कि कहीं उसे कोई नई जानकारी तो नहीं मिल गई है. पर ऐसी बात नहीं थी, वह आ रहा था.

अचानक उस के मोबाइल की घंटी बज उठी. “हेलो…” कहा तो परिमल की आवाज आई, ‘‘2 दिन पहले ही जेल से रिहा हुआ हूं. पता किया तो मालूम हुआ कि आज तुम्हारी मंगनी है.”

उधर सहेलियां उसे ढूंढ़ रही थीं. एक ने पूछ लिया, ‘‘कहां चली गई थीं? पापा पूछ रहे थे.’’

स्थिति संभालते हुए उस ने बाथरूम जाने का बहाना बना दिया. पापा को भी बता दिया. फिर राहत की सांस लेते हुए सोफे पर बैठ गई. उसे विश्वास था कि परिमल अब कभी परेशान नहीं करेगा और मानस के साथ जिंदगी आराम से गुजर जाएगी.

परिमल से दिशा की पहली मुलाकात कालेज में उस समय हुई थी जब वह बीटेक कर रही थी. परिमल भी उसी कालेज से बीटेक कर रहा था. उस की पर्सनैलिटी पर मुग्ध हुए बिना न रह सकी थी वह. लंबेचौड़े कदकाठी का गोरा, स्मार्ट और हैंडसम था परिमल.

मन ही मन उस ने ठान लिया कि एक न एक दिन उसे पा कर रहेगी, चाहे कालेज की कितनी भी लड़कियां उस के पीछे पड़ी हों. दरअसल, उसे पता चला था कि कई लड़कियां उस पर अपनी जान न्यौछावर करना चाहती हैं पर उस ने किसी का भी प्रेम निवेदन अब तक स्वीकार नहीं किया था. प्यारमोहब्बत के चक्कर में वह अपनी पढ़ाई खराब नहीं करना चाहता था. शुरू से ही पढ़ाई में मेधावी था, आगे भी रहना चाहता था.

एक ही कालेज में पढ़ने के कारण पढ़ाईलिखाई संबंधी बात उस से दिशा कर ही लेती थी. कई बार कैंटीन में उस के साथ चाय भी पी चुकी थी.
एक दिन कैंटीन में परिमल के साथ चाय पीती हुई बोली, ‘‘इन दिनों बहुत परेशान हूं. मेरी मदद करोगे. बहुत आभारी रहूंगी.’’

‘‘परेशानी क्या है?’’ परिमल ने पूछा.

‘‘कहते हुए शर्म आ रही है पर समाधान तुम्हें करना है इसलिए परेशानी तो बतानी पड़ेगी. बात यह है कि 4-5 दिनों से रातों में तुम मेरे सपनों में आते हो और सारी रात जगाते रहते हो.

‘‘दिन में भी मेरे दिलदिमाग में तुम ही रहते हो. शायद इसे ही प्यार कहते हैं. सच कहती हूं परिमल, तुम मेरा प्यार स्वीकार नहीं करोगे तो जिंदा लाश बन कर रह जाऊंगी.’’

परिमल ने तुरंत जवाब नहीं दिया. कुछ सोचा. फिर कहा, ‘‘यह तो पता नहीं कि तुम मुझे कितना चाहती हो पर यह सच है कि तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो.

‘‘तुम्हारा प्यार पाना चाहता हूं मगर डर से कदम आगे नहीं बढ़ा पा रहा हूं कि हमारा मिलन संभव नहीं है. तुम अमीर घराने की हो. तुम्हारे पापा अवकाशप्राप्त जज हैं. भाई पुलिस में उच्च औफिसर हैं. धनदौलत की कमी नहीं है.’’

‘‘मैं गरीब परिवार से हूं. पापा मामूली शिक्षक हैं. उन पर 2 जवान बेटी की शादी का बोझ भी है. पुश्तैनी मकान के सिवा हमारे पास संपत्ति नाम की कोई चीज नहीं है.

‘‘यह भी सच है कि तुम अप्सरा से भी अधिक सुंदर हो. कोर्ई भी अमीर युवक तुम से शादी कर अपनेआप को धन्य महसूस करेगा. ऐसे में तुम्हारे घर वाले तुम्हारा हाथ मेरे हाथ में क्यों देंगे?’’

दिशा तुरंत बोली, ‘‘इतनी सी बात के लिए डर रहे हो? मुझ पर भरोसा रखो. हर हाल में हमारा मिलन होगा. हमें एक होने से दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती. तुम सिर्फ मेरा प्यार स्वीकार करो. बाकी सबकुछ मेरे ऊपर छोड़ दो.’’

 

जिगोलो बनने के चक्कर में हो गया अपहरण

सोहेल हाशमी रोजाना की तरह 8 अक्तूबर, 2016 को भी अपने घर आए अखबार को पढ़ रहा था. अखबार पढ़ते पढ़ते उस की नजर एक पेज पर छपे विज्ञापन पर पड़ी. उस विज्ञापन को पढ़ कर सोहेल चौंका. लिखा था मेल एस्कौर्ट बन कर रोजाना 25 हजार रुपए कमाएं. सोहेल जानता था कि जिस तरह कालगर्ल्स होती हैं, उसी तरह का काम मेल एस्कौर्ट का होता है. विज्ञापन में जो आमदनी दी गई थी, वह उसे आकर्षित कर रही थी.

28 वर्षीय सोहेल ने उस विज्ञापन को कई बार पढ़ा. उस समय वह आर्थिक परेशानी से जूझ रहा था. अपने परिवार के साथ वह दिल्ली के शाहदरा की बिहारी कालोनी स्थित जिस 2 कमरों के मकान में रहता था, उस का किराया भी वह कई महीनों से नहीं दे पाया था. उस के दिमाग में आया कि अगर वह मेल एस्कौर्ट का काम शुरू कर दे तो उसे अलग अलग महिलाओं के साथ मौजमस्ती करने को तो मिलेगा ही, साथ ही मोटी कमाई भी होगी, इसलिए वह मानसिक रूप से यह काम करने के लिए तैयार हो गया.

विज्ञापन में जो फोन नंबर दिया गया था, सोहेल ने उस नंबर पर फोन किया. उस नंबर पर घंटी तो गई, पर किसी ने फोन नहीं उठाया. उस ने यह कोशिश कई बार की, पर किसी ने भी उस की काल रिसीव नहीं की तो वह निराश हो गया. बड़ी उम्मीद के साथ सोहेल ने फोन किया था. फोन रिसीव न होने से वह मन ही मन विज्ञापन देने वाले को कोसने लगा.

अगले दिन सोहेल घर के किसी काम में व्यस्त था, तभी उस के मोबाइल की घंटी बजी. स्क्रीन पर आए नंबर को देख कर उस की आंखों में चमक आ गई. वह नंबर वही था, जिस पर उस ने एक दिन पहले फोन किया था. सोहेल ने झट से काल रिसीव कर के बात की. फोन करने वाले ने उसे मेल एस्कौर्ट अर्थात जिगोलो का मतलब समझाया तो सोहेल ने कह दिया कि वह यह काम करने को तैयार हैं.

इस के बाद फोन करने वाले ने कहा, ‘‘एक अंतरराष्ट्रीय प्रोजैक्ट के सिलसिले में विदेशी आए हैं. आप को उन के साथ जाना है. लेकिन इस से पहले इंटरव्यू देना होगा. अगर आप इंटरव्यू में पास हो गए तो समझो ऐश और कैश दोनों मिलेंगे.’’

सोहेल सिर्फ यह देख रहा था कि जिगोलो बनने से क्या क्या फायदे हैं, इसलिए वह खुश हो कर बोला, ‘‘मैं इंटरव्यू के लिए तैयार हूं, मुझे कहां आना होगा?’’

‘‘आप कल उत्तर प्रदेश के कस्बा गजरौला पहुंच जाओ. वहां पहुंच कर फोन कर देना. हमारा आदमी औफिस तक ले आएगा.’’ फोन करने वाले ने कहा.

‘‘ठीक है, मैं कल गजरौला पहुंच जाऊंगा.’’ सोहेल ने खुश हो कर कहा.

अगले दिन सोहेल इंटरव्यू देने के लिए तैयार हुआ और शाहदरा से बस द्वारा आनंद विहार पहुंच गया. वहां से उस ने गजरौला जाने वाली बस पकड़ी और ढाई घंटे में गजरौला पहुंच गया. उस ने उस नंबर पर फोन कर के अपने गजरौला पहुंचने की खबर दे दी.

कुछ देर बाद सोहेल के पास 2 मोटरसाइकिल सवार पहुंचे. उन्होंने उस का बड़ी गर्मजोशी से स्वागत किया. साथ ही खुद को एक ऐसी कंपनी का कर्मचारी बताया, जिस में विदेशी काम करते थे. दोनों युवक सोहेल को मोटरसाइकिल पर बिठा कर सूरज ढलने तक इधरउधर गांव में घुमाते रहे, अंधेरा होने पर वे उसे जंगल में ले गए.

सोहेल ने जंगल में जाने के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि उन का औफिस एक खेत में इसलिए बनाया गया है, ताकि आसपास के गांवों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारियां मिल सकें. कुछ देर में वे उसे खेत में बने एक ट्यूबवैल के कमरे पर ले कर पहुंचे. लेकिन वहां औफिस जैसा कुछ नहीं था.

इस से पहले कि सोहेल उन दोनों से कुछ पूछता, उन्होंने उसे कमरे में धकेल कर उस की पिटाई शुरू कर दी. उन्होंने उस की कनपटी पर पिस्तौल रख कर धमकी दी कि अगर उस ने भागने की कोशिश की तो उसे गोरी मार दी जाएगी.

सोहेल समझ गया कि वह गलत लोगों के बीच फंस गया है. उन के चंगुल से निकलना उसे मुश्किल लग रहा था. थोड़ी देर में 3 युवक और आ गए. उन के हाथों में तलवारें थीं. उन्हें देख कर सोहेल डर से कांपते हुए जान की भीख मांगने लगा. तभी एक युवक ने उस के गले पर तलवार रख कर उस का मोबाइल फोन छीन लिया.

इस के बाद वे उस की मां का नंबर पूछ कर चले गए. जो 2 युवक कमरे में बचे थे, वे सोहेल को रात भर तरहतरह से प्रताडि़त करते रहे. अगले दिन उन लोगों ने सोहेल की मां को फोन कर के 12 लाख रुपए की फिरौती मांगी. घर वालों को जब पता चला कि सोहेल का अपरहण हो चुका है तो वे घबरा गए. 12 लाख रुपए की फिरौती देना उन के वश की बात नहीं थी, इसलिए उन्होंने थाना शाहदरा की पुलिस को इस की सूचना दे दी. पुलिस ने वह फोन नंबर नोट कर लिया, जिस से फिरौती के लिए फोन आया था. पुलिस ने सोहेल के घर वालों से कह दिया कि वे अपहर्त्ताओं से संपर्क बनाए रखें.

थानाप्रभारी ने यह सूचना ईस्ट दिल्ली के डीसीपी ऋषिपाल को दी तो उन्होंने एक पुलिस टीम बना कर शीघ्रता से जरूरी काररवाई करने के निर्देश दिए. एसआई विजय बालियान के नेतृत्व में गठित टीम मोबाइल फोन की लोकेशन के आधार पर गजरौला पहुंच गई. अंतत: टेक्निकल सर्विलांस की मदद से दिल्ली पुलिस की टीम ने खेतों के बीच बने ट्यूबवैल के एक कमरे से सोहेल को अपहर्त्ताओं के चंगुल से सकुशल बरामद कर लिया. दोनों अपहर्त्ता भी पकड़े गए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने उन के 3 अन्य साथियों को भी गिरफ्तार कर लिया.

जिगोलो बनने के चक्कर में सोहेल को क्या क्या यातनाएं झेलनी पड़ीं, उन्हें याद कर के वह सिहर उठता है. उस ने तौबा कर ली है कि पैसे कमाने के लिए वह इस तरह का कोई हथकंडा नहीं अपनाएगा.

मेरा बॉयफ्रेंड मुझसे शादी करना नहीं चाहता है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 19 साल की हूं और एक 23 साल के लड़के को बहुत पसंद करती हूं. हमारे बीच जिस्मानी रिश्ता भी बन चुका है. पर अब वह लड़का मुझ से कन्नी काट रहा है. वह दूसरी जाति का होने का बहाना बना कर बोल रहा है कि हमारी शादी नहीं हो सकती. मैं एक बार अपना पेट भी गिरवा चुकी हूं. अब मुझे बहुत डर लग रहा है. मैं क्या करूं?

जवाब

जब अपना कुंआरा जिस्म अपने प्रेमी को सौंप कर मजे लूट रही थीं, तब आप को डर नहीं लगा था, अब क्यों लग रहा है? इसीलिए न कि वह लड़का आप के पेट गिराने का राजदार है और सरासर आप को धोखा दे रहा है. जाति का बहाना आप से कन्नी काटने के लिए ही है. हमबिस्तरी के दौरान यह खयाल क्यों नहीं आया था?  खैर, जो गुजर चुका उसे बुरा हादसा समझ कर भूल जाइए. आप भी उस लड़के से कन्नी काटिए और नए सिरे से जिंदगी शुरू करिए. अभी खास कुछ नहीं बिगड़ा है. पेट गिराने का जिक्र कभी किसी से न करें और पढ़ाईलिखाई में मन लगाएं.

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz

सब्जेक्ट में लिखें- सरिता व्यक्तिगत समस्याएं/ personal problem 

खतरनाक भी हो सकता है सलाद, जानें क्यों

आधुनिक परिवेश में उच्चवर्ग में ही नहीं, मध्यवर्ग के परिवारों में भी प्रतिदिन सलाद खाने की परंपरा बन गई है. कई स्त्रीपुरुषों को सलाद के बिना खाना हजम नहीं होता. हालांकि बच्चे सलाद खाने से आनाकानी करते हैं पर सलाद को चटपटे ढंग से बच्चों के सामने परोसने से वे उसे खुशीखुशी खा लेते हैं. डाक्टर भी सभी छोटेबड़ों को सलाद खाने का परामर्श देते हैं. मोटे स्त्रीपुरुषों के लिए सलाद बहुत लाभदायक बताया जाता है. सलाद खाने से न सिर्फ अनाज व घी, तेल से बने खाद्य पदार्थ कम मात्रा में खाए जाते हैं बल्कि घी, तेल के खाद्य पदार्थों से बच भी सकते हैं.

सलाद खाने से विटामिन और खनिज तत्त्व प्राकृतिक रूप में शरीर को मिलते हैं. विटामिन व खनिज तत्त्व सब्जियों में भी प्राकृतिक रूप में मौजूद रहते हैं लेकिन सब्जियों को आग पर पकाने के चलते उन के विटामिन व खनिज तत्त्व नष्ट हो जाते हैं. चुकंदर में 100 ग्राम में 0.8 ग्राम प्रतिशत खनिज तत्त्व होते हैं. इसे पकाने पर खनिज तत्त्व नष्ट हो जाते हैं. 100 ग्राम प्याज में 0.6 ग्राम प्रतिशत खनिज तत्त्व होते हैं. सलाद में प्याज खाने से पूरे खनिज तत्त्व शरीर को मिलते हैं, लेकिन पकाने से नष्ट हो जाते हैं.

सब्जियों को पकाने से कैल्शियम, फास्फोरस, फाइबर, विटामिन बी और सी सब नष्ट हो जाते हैं. अधिकांश घरों में मूली, टमाटर, ककड़ी, खीरा, प्याज और चुकंदर के साथ नीबू का रस डाल कर सलाद बनाया जाता है. सभी सब्जियां विटामिन और खनिज तत्त्वों से भरपूर होती हैं. सलाद के रूप में 100 ग्राम टमाटर खाने से 20 कैलोरी ऊर्जा मिलती है. टमाटर खाने से कैल्शियम भी पर्याप्त मात्रा में मिलता है. गर्भावस्था में टमाटर का सलाद खाने से स्त्रियों में आयरन की कमी पूरी होती है. टमाटर में पोटैशियम और मैग्नीशियम भी मिलते हैं.

स्वच्छता जरूरी

टमाटर की तरह मूली, गाजर, खीरा, प्याज और चुकंदर आदि सभी विटामिन और खनिज तत्त्वों से भरपूर होते हैं. सलाद में इन सब्जियों का सेवन करने से शरीर को भरपूर लाभ मिलना चाहिए, लेकिन लापरवाही से सलाद बना कर खाने से स्वास्थ्य को लाभ की अपेक्षा नुकसान होता है. सलाद खाने से नुकसान की कल्पना कोई शिक्षित स्त्रीपुरुष स्वप्न में भी नहीं कर सकता. लेकिन यह बात अब प्रमाणित हो चुकी है कि स्वच्छता का पूरा ध्यान नहीं रखने से सलाद लाभदायक बनने के बजाय हानिकारक बन जाता है. सभी जानते हैं कि सब्जियां खेतों में उगाई जाती हैं. सब्जियों को उगाने के लिए तरहतरह की रासायनिक खादों का इस्तेमाल किया जाता है. यही नहीं, सब्जियों को खेतों के कीड़ेमकोड़ों से बचाने के लिए कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है. कुछ लोग गंदे नालों के किनारे सब्जियां उगा कर, उन सब्जियों के पौधों को गंदे जल से सींचते हैं. ऐसी स्थिति में सब्जियां दूषित हो जाती हैं.

ऐसी सब्जियों का सलाद खाने से हानि होती है. सब्जियों को कीड़ेमकोड़ों से सुरक्षित रखने के लिए खेतों में कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है. जब सलाद बनाने से पहले उन सब्जियों को स्वच्छ जल से साफ नहीं किया जाता है तो कितने कीटनाशक रसायन सलाद के साथ शरीर में पहुंच कर विषैला प्रभाव डालते हैं. आजकल सब्जियों को जल्दी पकाने के लिए और उन का वजन बढ़ाने के लिए विभिन्न रसायनों के इंजैक्शन लगाते हैं. टमाटर, गाजर, चुकंदर आदि पर विषैले रंग लगा कर उन्हें रंगीन बनाते हैं. स्वच्छ जल से नहीं धोने पर सब्जियों पर लगे रंग शरीर में पहुंच कर विषैला प्रभाव डालते हैं.

अभी हाल में दिल्ली के एक वैज्ञानिक की कद्दू का रस पीने से मृत्यु हो गई थी. सब्जियां भी विषैले इंजैक्शनों से विषैली बनाई जा रही हैं. जब ऐसी सब्जियों को सलाद के रूप में सेवन किया जाएगा तो आप परिणाम की कल्पना कर सकते हैं. सब्जियों को जल से अच्छी तरह धोए बिना सलाद बनाने से अनेक रोगों के जीवाणु उन के साथ शरीर में पहुंच जाते हैं. छोटे बच्चे को टमाटर, खीरे का सलाद खिलाने पर उन के साथ मिल कर आंत्रकृमि (हुक वर्म) भी उन के शरीर में पहुंच कर वर्षों तक रक्त चूस कर उन्हें रक्ताल्पता (एनीमिया) का शिकार बनाते रहते हैं.

बना सकता है बीमार

वैज्ञानिकों ने परीक्षणों से ज्ञात किया है कि आंत्रकृमि बच्चों के स्वास्थ्य को भारी हानि पहुंचाने के साथ उन में बौनेपन की विकृति को उत्पन्न करते हैं. आंत्रकृमि स्मरणशक्ति को भी हानि पहुंचाते हैं. आंत्रकृमि हृदय तक पहुंच कर हृदय रोग को भी जन्म देते हैं. चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार, सलाद बनाने से पहले सब्जियों को अच्छी तरह नहीं साफ किया जाए तो न्यूरोसिस्टोकौंसिस नामक मस्तिष्क संबंधी रोग होने की आशंका बढ़ जाती है. न्यूरोसिस्टोकौंसिस रोग के कारण रोगी को मिर्गी जैसे दौरे पड़ने लगते हैं, मिर्गी के रोगियों पर परीक्षण करने से पता चला 36 प्रतिशत रोगी सब्जियों को साफ कर के नहीं खाने के कारण न्यूरोसिस्टो कौंसिस रोग यानी मिर्गी का शिकार बने थे.

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि टमाटर, खीरा, चुकंदर आदि सब्जियां ऊपर से देखने पर कितनी ही खूबसूरत दिखाई दें, शिजेला, ई.कोलई, बोटऊलाइनम, सेलेमोनेला व फ्लोस्ट्रीडियम आदि जीवाणु उन में लगे रहते हैं जो सलाद के साथ शरीर में पहुंच कर तरहतरह के रोगों को उत्पन्न करते हैं. छोटे बच्चों व प्रौढ़ व्यक्तियों के शरीर में पहुंच कर बहुत हानि पहुंचाते हैं. नतीजतन, उन में रोगप्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती है

माली: क्या अरुंधती को मिला मां बनने का सुख

अरुंधती कभी मां नहीं बन सकती थी और यह बात वह भलीभांति जानती भी थी. अपनी बंजर कोख उसे भीतर से कचोट रही थी और वह कुछ नहीं कर पा रही थी. लेकिन श्यामली के आने के बाद सब बदल गया, कैसे? ‘‘औ… औ… औ…’’ अरुंधती की आंख खुली तो किसी के ओकने की आवाज सुन कर एकाएक विचार मस्तिष्क में कौंधा, ‘क्या श्यामली को उलटियां हो रही हैं.’ तत्काल ही बिस्तर छोड़ वह बाहर की ओर लपकी. बाहर जा कर देखा तो श्यामली पौधों को पानी दे रही थी. ‘‘क्यों रे श्यामली, अभी तू उलटी कर रही थी?’’ श्यामली चौंक कर, ‘‘जी मैडमजी.’’ अरुंधती श्यामली के कुछ और पास आ कर मुसकराई और भौंहें उठा कर शरारती अंदाज में बोली, ‘‘क्या बात है श्यामली, कोई खुशखबरी है क्या?’’ श्यामली कुछ न बोली. दोनों हाथों से मुंह छिपा कर ऐसे खड़ी हो गई मानो शर्म के मारे अभी जमीन में गड़ जाएगी.

अरुंधती को बात सम झते देर न लगी, ‘‘श्यामली, यह तो बहुत ही खुशी की बात है. अब तू सुन, आज से तू कोई भारी काम नहीं करेगी और अपने खानपान पर पूरा ध्यान देगी. और सुन, रमिया कहां है, सो रहा है क्या? बुला उस को. मैं आज उस की खबर लेती हूं. अब सारे काम वही करेगा, तू सिर्फ आराम करेगी, सम झी?’’ अरुंधती के चेहरे पर खुशी, चिंता और उतावलेपन का मिलाजुला भाव था. श्यामली शरमा कर वहां से दौड़ गई. अरुंधती ने हाथ को ऐसे उठाया मानो कह रही हो ‘आराम से, थोड़ा हौलेहौले चल श्यामली, जरा संभल कर.’ शादी के 12 साल बीत चुके थे. अरुंधती की ममता तृषित थी. उस की बगिया में कोई फूल नहीं खिल सका. रहरह कर अतृप्त मातृत्व सूनी कोख में टीस मारता था. सभी कोशिशें कर लीं,

सभी अच्छे से अच्छे डाक्टर, बड़ेबड़े पंडितवैद्य, तांत्रिक और ओ झा से संपर्क किया लेकिन प्रकृति उस की गोद में संतान डालना भूल गई थी. अरुंधती को पौधों से बहुत ही प्यार था. वह पौधों की देखभाल ऐसे करती थी मानो वे उस के अपने बच्चे हों या फिर कह सकते हैं कि, जो ममता, जो वात्सल्य उस में उबलउबल कर बाहर छलकता था वही स्नेह वह इन पौधों पर छिड़क कर अपनी ममता की प्यास शांत करती थी. रमिया उस के यहां माली का काम करता था, बहुत छुटपन से वह अरुंधती के पास था. अरुंधती को उस से बहुत लगाव था. उस ने रमिया के रहने के लिए घर के पीछे एक छोटा सा क्वार्टर बनवा दिया था. रमिया अरुंधती का बहुत ध्यान रखता था और खासकर उस की बगिया का. उसे मालूम था कि इन पौधों में मैडमजी की जान बसती है. सो, वह उन की देखभाल में कोई कसर न छोड़ता था.

पिछले साल ही रमिया गांव से गौना करवा कर श्यामली को ले आया था. श्यामली थी तो सांवली पर उस के नैननक्श गजब के आकर्षक थे. वह बहुत ही कम बोलती थी, अधिकतर बातों का जवाब बस सिर हिला कर देती थी. काम में बहुत ही होशियार थी. सो, अरुंधती के घर के कामों में भी अब श्यामली हाथ बंटा देती थी. खाली समय में श्यामली अरुंधती से लिखना और पढ़ना भी सीखती थी. अरुंधती के स्नेह और अपनेपन की वजह से श्यामली जल्द ही उस से बहुत ही घुलमिल गई और धीरेधीरे दोनों बहुत करीब आ गईं, अपनी हर बात एकदूसरे से बांटने लगीं. तभी आज अचानक श्यामली की उलटियों की आवाज ने अरुंधती को चौंका दिया. श्यामली मां बनने वाली है, इस विचार से ही अरुंधती इतनी रोमांचित हो उठी कि उस के रोमरोम में सिहरन हो उठी मानो उस की स्वयं की कोख में से कोई नन्ही कोंपल प्रस्फुटित होने वाली है. ‘‘शेखर,’’ अरुंधती अपने पति से बोली. ‘‘हां अरु, कहो क्या बात है?’’ शेखर ने पूछा. ‘‘वो अपनी श्यामली है न, वो मां बनने वाली है.’’ ‘‘अरे वाह, यह तो बहुत ही खुशी की बात है,’’ शेखर अरुंधती की ओर देखते हुए बोला. ‘‘हां, बहुत ही खुशी की बात है. कितने वर्षों बाद हमारे आंगन में किलकारियां गूंजेंगी.

नन्हेमुन्हे बहुत ही कोमल रुई जैसे मुलायम प्यारेप्यारे छोटे से बच्चे को गोद में ले कर छाती से चिपकाने का अवसर आया है शेखर, है न? मैं ठीक कह रही हूं न?’’ अरुंधती शेखर से बोल रही थी और शेखर जैसे किसी सोच में पड़ा अरुंधती के इस उतावलेपन का आकलन कर रहा था. शेखर चिंतित था यह सोच कर कि अरुंधती की ममता उसे किस ओर ले जा रही है. इतना उतावलापन, इतना उस बच्चे के बारे में सोचना कहीं अरुंधती के लिए घातक सिद्ध न हो. पर अरुंधती तो बस बोले जा रही थी, ‘‘मैं ने तो श्यामली से कह दिया है कि वह कोई काम न करे, सिर्फ आराम करे और अच्छीअच्छी चीजें खाए. खूब जूस पिए. और हां, दूध बिना भूले दोनों समय पीना बहुत जरूरी है. आखिर पेट में एक नन्ही सी जान पल रही है.’’ वह बोलती जा रही थी और शेखर उस में वात्सल्य का बीज फूटते हुए साफसाफ देख रहा था. अरुंधती का अधिकतर समय अब श्यामली की तीमारदारी में ही निकलता था.

उस को समय से खाना खिलाना, जूस पिलाना, जबरदस्ती दूध पिलाना, समयसमय पर डाक्टर से चैकअप करवाना सब अरुंधती खुद करती थी. रमिया और श्यामली तो जैसे मैडमजी के युगोंयुगों के लिए आभारी हो गए थे. कौन किस के लिए इतना करता है, वह भी घर के एक मामूली से नौकर के लिए. उन्हें तो सम झ ही नहीं आता था कि वे मैडमजी के इन एहसानों का बदला कैसे चुकाएंगे. सौ जन्मों में भी इतने प्यार, विश्वास और अपनेपन का मूल्य नहीं चुकाया जा सकता. आखिर वह समय भी आ गया जिस की सब को प्रतीक्षा थी. श्यामली ने एक फूल से नन्हे पुत्र को जन्म दिया. सब से पहले अरुंधती ने उस को गोद में लिया. उस की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे. बच्चे को उस ने अपनी छाती से चिपका रखा था. उसे महसूस हो रहा था कि उस की छाती से दूध की सहस्त्रों धाराएं फूट पड़ी हैं. ‘

‘लाइए मैडम, बच्चे को उस की मां को दें ताकि वह बच्चे को स्तनपान करवा सके,’’ अचानक नर्स की आवाज से अरुंधती की तंद्रा भंग हुई. ‘‘हां, हां,’’ कह कर अरुंधती ने बच्चे को श्यामली की बगल में लिटा दिया और जैसे किसी स्वप्न से जागने के एहसास ने उस को हिला कर रख दिया. वह बहुत ही भारी मन से लड़खड़ाती हुई कमरे से बाहर निकल आई. शेखर बाहर ही खड़ा था. उसे जिस बात का अंदेशा था वही घटित हुआ. शेखर ने अरुंधती को कमर से पकड़ कर गाड़ी में बैठाया और घर ले आया. अरुंधती शून्य में थी, कुछ बोली नहीं. शेखर ने भी कोई बात नहीं छेड़ी क्योंकि वह भलीभांति जानता था कि इस समय अरुंधती के मन में क्या चल रहा है. 3 दिन गुजर गए. अरुंधती ने स्वयं को संभाल लिया था. वह रोज श्यामली से मिलने अस्पताल जाती. कुछ देर बच्चे के साथ खेलती, प्यार करती और घर आ जाती. कल श्यामली अस्पताल से घर आने वाली थी. अरुंधती ने स्वयं रमिया के यहां सारी व्यवस्थाएं करवाईं ताकि श्यामली और बच्चे को कोई परेशानी न हो. ‘‘उआं…उआं…’’ आवाज कानों में पड़ते ही अरुंधती की नींद खुली. ‘अरे, यह क्या, श्यामली घर आ गई?’ अरुंधती बिस्तर से लगभग भागती हुई उठी और तीर की गति से बाहर निकली. लपक कर रमिया के घर की तरफ दौड़ी. ‘

अरे यहां तो ताला पड़ा है. फिर श्यामली कहां… कहीं घर में तो नहीं वह…’ अपने दरवाजे की ओर लपकी लेकिन उसे फिर बाहर से ही बच्चे के रोने की आवाज सुनाई दी. वह बाहर निकल कर बेचैनी से इधरउधर नजरें दौड़ाने लगी. तभी उसे बगिया में कुछ हरकत सी महसूस हुई. वह तुरंत उस ओर दौड़ी, जा कर देखा तो वहां फूलों के बीच श्यामली का बच्चा लेटा हुआ था. ऐसा लग रहा था मानो अभीअभी एक नन्हा सा नयानया फूल खिला है. अरुंधती ने उस को देखते ही गोद में उठा लिया और बोली, ‘ये रमिया और श्यामली क्या पागल हो गए हैं जो इस नन्ही सी जान को यों जमीन पर लिटा दिया. वह पलट कर आवाज देने ही वाली थी कि बच्चे के हाथ में एक कागज का टुकड़ा देख कर रुक गई और उस कागज के पुर्जे को पढ़ने लगी.’ ‘‘मैडम जी, ‘‘यह आप की बगिया का फूल है, हम तो माली थे. हम ने बीज लगाया था. परंतु इस बीज को प्यार और ममता से सींचा ‘‘आप ने. अब इस फूल पर सिर्फ और सिर्फ आप का अधिकार है. ‘‘आप की, श्यामली.’’ अरुंधती कांप रही थी. उस की आंखें अविरल बह रही थीं. बच्चे को छाती से कस कर चिपटा कर मानो वह पूरे वेग से चिल्लाई, ‘‘शेखर, देखो, मैं बंजर नहीं हूं. यह देखो, फूल खिला है, मेरी बगिया का फूल, श्यामली का फूल.’’

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