यदि कोई व्यक्ति या दंपती नियमित तौर से असुरक्षित यौन संबंध बनाते हुए कम से कम एक साल बच्चे की कोशिश करने के बाद भी बच्चा पैदा करने में नाकाम है, तो उस की यह अवस्था इन्फर्टिलिटी की अवस्था कही जाती है. इन्फर्टिलिटी का शिकार पुरुष और महिला दोनों ही हो सकते हैं. इस की कई वजहें हो सकती हैं.

डब्लूएचओ के मुताबिक, इन्फर्टिलिटी से लाखों लोग प्रभावित हैं और अपने प्रजनन काल में हर 6 लोगों में से एक किसी न किसी समय इन्फर्टिलिटी का शिकार होता है.

महिला और पुरुष की इन्फर्टिलिटी किन वजहों से बढ़ती है

इन्फर्टिलिटी से पूरी दुनिया में बड़ी तादाद में लोग प्रभावित हैं. यह अनेक वजहों से होती है, जिन से महिला और पुरुष की प्रजनन प्रणाली प्रभावित होती है. महिलाओं में इन्फर्टिलिटी ओव्युलेटरी विकृतियों, ट्यूब की समस्याओं (जैसे फैलोपियन ट्यूब में रुकावट), गर्भ को प्रभावित करने वाले कारणों यानी एंडोमेट्रोसियोसिस या यूटेराइन फाईब्रोयड्स) एवं अन्य कारण जैसे औटोइम्यून विकृतियों और हार्मोनल असंतुलनों के कारण हो सकती है.

पुरुषों में इन्फर्टिलिटी शुक्राणुओं की संख्या कम होने, शुक्राणुओं की गतिशीलता कम होने, अनुवांशिक विकृतियों, संक्रमणों, चोट या मैडिकल इलाज के कारण प्रजनन अंगों को हुए नुकसान के कारण हो सकती है.

इस के अलावा जीवनशैली के तत्व जैसे धूम्रपान, मोटापा और अत्यधिक मदिरा के सेवन का प्रजनन क्षमता पर बुरा असर हो सकता है. साथ ही, पर्यावरण में मौजूद प्रदूषक तत्त्वों और विषैले तत्त्वों का भी गेमीट्स (शुक्राणु और अंडों) पर बुरा असर हो सकता है, और उन की संख्या एवं गुणवत्ता में गिरावट हो सकती है.

इन्फर्टिलिटी का इलाज किया जाना बहुत जरूरी है, क्योंकि बच्चों की इच्छा रखने वाले दंपतियों पर इस का बहुत गहरा प्रभाव पड़ सकता है. इस से व्यक्तियों और दंपतियों के विभिन्न मौलिक मानवाधिकार प्राप्त करने में बाधा आ सकती है, जैसे उन के बच्चों की संख्या, समय और उन के बीच के अंतर का निर्धारण करना, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखना, परिवार स्थापित करने के उन के अधिकार पूरे करना मुश्किल हो सकता है. इस से भावनात्मक पीड़ा उत्पन्न हो सकती है और दंपती सामाजिक रूप से अलगथलग पड़ सकते हैं एवं उन में चिंता और अवसाद पैदा हो सकते हैं. इस के अलावा यह स्वास्थ्य के किसी अन्य संकट का संकेत भी हो सकता है और इसे हल करने से महिला और पुरुषों, दोनों के स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है.

लिहाजा, समय पर मैडिकल परामर्श लिया जाना और यदि दंपती या व्यक्ति को इन्फर्टिलिटी की समस्या महसूस हो रही हो तो गर्भधारण की संभावना बढ़ाने के लिए उचित इलाज कराया जाना बहुत जरूरी है.

पुरुषों की इन्फर्टिलिटी का इलाज

इन्फर्टिलिटी के लगभग एकतिहाई मामले पुरुष साथी में फर्टिलिटी की समस्या के कारण होते हैं. शुक्राणुओं की संख्या, गतिशीलता और उन के गठन की आकलन करने के लिए प्राथमिक जांच में वीर्य का विश्लेषण किया जाता है. यदि वीर्य में शुक्राणु मौजूद नहीं होते हैं तो इस स्थिति को एजूस्पर्मिया कहा जाता है.

1. टैसा : टैस्टिकुलर स्पर्म एस्पिरेशन (टैसा) एक मिनिमली इन्वेजिव सर्जिकल स्पर्म रिट्रीवल तकनीक है यानी इस में बहुत छोटा चीरा लगा कर शुक्राणुओं की क्षतिपूर्ति की जाती है.

इस विधि का उपयोग आईसीएसआई के तालमेल में किया जाता है और उन पुरुषों के लिए होता है, जिन में शुक्राणुओं की संख्या बहुत कम या जिन्हें एजूस्पर्मिया (वीर्य में शुक्राणु न होना) है.

कुछ परिस्थितियों में निदान की प्रक्रिया में टैसे (टैस्टिकुलर स्पर्म एक्सट्रैक्शन) का परामर्श दिया जा सकता है, जिस की मदद से टैस्टिकुलर टिश्यू में शुक्राणु की मौजूदगी का पता लगाया जाता है.

2. एमटीईएसई : माइक्रोसर्जिकल टैस्टिकुलर स्पर्म एक्सट्रैक्शन को आम भाषा में माइक्रो टैसे या एमटैसे कहा जाता है. यह एक आधुनिक सर्जिकल स्पर्म रिट्रीवल प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया में माइक्रोस्कोप की मदद से शुक्राणु सीधे टैस्टिकुलर टिश्यू से निकाला जाता है. अध्ययनों में प्रदर्शित हुआ है कि इस प्रक्रिया द्वारा टैस्टिकल्स को कम से कम नुकसान के साथ शुक्राणु प्राप्त होने की दर सब से ज्यादा होती है.

3. पेसा/टैसा : वीर्य में शुक्राणु की अनुपस्थिति किसी न किसी बाधा के कारण हो सकती है. इस तरह की एजूस्पर्मिया को औब्सट्रक्टिव एजूस्पर्मिया कहा जाता है. यह वैसेक्टोमी और संचारित यौन संक्रमणों के कारण हो सकता है. यदि इस बाधा को सर्जरी द्वारा ठीक नहीं किया जा सकता है, तो हम एपिडिडाइमिस या टैस्टिस से शुक्राणु निकाल सकते हैं और उसे आईवीएफ आईसीएसआई के लिए उपयोग में ला सकते हैं.

4. वैरिकोसील रिपेयरः वैरिकोसील टैस्टिकल्स में बढ़ी हुई नसें होती हैं, जो पैर में पाई जाने वाली वैरिकोज नसों की तरह ही होती हैं. वैरिकोसील आमतौर से कोई लक्षण प्रकट नहीं करतीं, पर वे शुक्राणुओं के कम उत्पादन और शुक्राणुओं की कम गुणवत्ता का आम कारण होती हैं, क्योंकि वो टेस्टिकल में और उस के आसपास का तापमान बढ़ा देती हैं.

महिलाओं में इन्फर्टिलिटी के लिए इलाज

असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी (एआरटी) : आईवीएफ और इंट्रायूटेराइन इन्सेमिनशन (आईयूआई) जैसी तकनीकें पुरुष साथी या डोनर से प्राप्त किए गए शुक्राणु द्वारा अंडों के निषेचन में मदद कर सकती हैं.

इनवीट्रो फर्टिलाईजेशन (आईवीएफ) में जटिल प्रक्रियाओं की एक श्रृंखला होती है, जो फर्टिलिटी में मदद कर या अनुवांशिक समस्याओं को रोक कर गर्भधारण में मदद करती है.

आईवीएफ के दौरान अंडाशयों से परिपक्व अंडे निकाले जाते हैं और लैब में शुक्राणुओं द्वारा उन का निषेचन कराया जाता है. इस के बाद निषेचित अंडे (भ्रूण) या अंडों (भ्रूणों) को गर्भ में डाल दिया जाता है.

आईवीएफ के एक पूरे चक्र में लगभग 3 हफ्तों का समय लगता है. कभीकभी आईवीएफ की प्रक्रिया को विभिन्न चरणों में बांट कर किया जाता है, जिस से इस में ज्यादा लंबा समय लग सकता है. आईवीएफ असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टैक्नोलौजी का सब से प्रभावशाली रूप है.

यह प्रक्रिया दंपतियों के अपने अंडों और शुक्राणुओं द्वारा की जा सकती है या आईवीएफ में किसी ज्ञात या अज्ञात डोनर के अंडे, शुक्राणु या भ्रूण शामिल हो सकते हैं. कुछ मामलों में एक जैस्टेशनल कैरियर का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिस के गर्भ में भ्रूण को स्थापित किया जाता है.

औव्युलेशन का उत्प्रेरण : क्लोमिफीन सिट्रेट और लैट्रोजोल जैसी दवाएं औव्युलेटर विकृतियों वाली महिलाओं में औव्युलेशन को उत्प्रेरित कर सकती हैं.

सर्जरी : सर्जिकल प्रक्रियाएं प्रजनन अंगों में संरचनागत विकृतियों, जैसे यूटेराइन फायब्रोयड्स और एंडोमेट्रियल पोलिप्स को ठीक कर सकती हैं.

डोनर अंडे : अगर किसी महिला के शरीर में निषेचन योग्य अंडों का उत्पादन नहीं हो पा रहा है, तो फर्टिलाइजेशन के लिए डोनर अंडों का इस्तेमाल किया जा सकता है. यह किसी अलग तकनीक से नहीं होता. यह आईवीएफ का ही हिस्सा है और पहले बिंदु में बताए अनुसार किसी तीसरे की मदद ले कर किया जाता है.

ऊपर बताए गए इलाजों के अलावा जीवनशैली में कुछ विशेष बदलाव भी प्रजनन क्षमता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं :

– सेहतमंद वजन बना कर रखना : बहुत ज्यादा या कम वजन होने पर फर्टिलिटी प्रभावित हो सकती है, इसलिए वजन को नियंत्रण में रखना जरूरी है.

– धूम्रपान का त्याग : धूम्रपान से महिला और पुरुषों की प्रजनन क्षमता कम हो सकती है, इसलिए धूम्रपान का त्याग करना बहुत जरूरी है.

– टौक्सिंस के ऐक्सपोजर से बचें : पर्यावरण में मौजूद टौक्सिन जैसे कीटनाशकों और कैमिकल्स का ऐक्सपोजर प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डाल सकता है, इसलिए इन चीजों के संपर्क में आने से बचना जरूरी है.

– तनाव का प्रबंधन : तनाव से प्रजनन क्षमता प्रभावित हो सकती है, इसलिए काउंसलिंग जैसी तकनीकों से तनाव को नियंत्रण में रखें.

(डा. राखी गोयल बिरला फर्टिलिटी एवं आईवीएफ सैंटर की कंसल्टैंट व सैंटर हैड हैं)

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