Hindi Romantic Story: आदिल खान परेशान थे. कई बार अब्बा के पास आकर अपना दुखड़ा रो चुके थे. परेशानी थी एक पीपल का पेड़, जो उनके घर के ठीक पीछे अपनी जड़ें गहरी कर उनकी पूरी छत पर अपनी टहनियां फैला चुका था. उनके घर के पीछे की जमीन नगर निगम की थी, जहां कोई निर्माणकार्य नहीं हो सकता था, मगर किसी ने पीपल के तने के चारों ओर चबूतरा बना कर भगवान की मूर्ति स्थापित कर दी थी. यह कई बरस पहले की बात है. तब आदिल चाचा जवान हुआ करते थे और पीपल का पेड़ भी तब बच्चा ही था. मगर बीते चालीस बरसों में आदिल खान की जवानी ढलती गई और पीपल का फैलाव बढ़ता गया. अब तो इसके चारों तरफ कुछ दबंग लोगों ने जमीन कब्जा करके खाने पीने के ढाबे बना लिए हैं. पहले ढाबे ऊपर से खुले हुए थे, मगर धीरे-धीरे उन पर छत भी पड़ गई. पहले टिन की और बाद में पक्की ईटों की.
आदिल चाचा ने तमाम शिकायतें नगर निगम के दफ्तर में दर्ज करवाईं कि भई फुटपाथ खत्म कर दिया इन लोगों ने, इन्हें हटाया जाए, पीपल का दरख्त काटा नहीं जा सकता तो कम से कम छंटवाया जाए ताकि हमारा घर सुरक्षित रहे, मगर आस्था का सवाल छाती तान कर खड़ा हो जाता. नगर निगम के अधिकारी आते, मौका-मुआयना करते मगर कार्रवाई कुछ न होती. वन विभाग को भी आदिल चाचा कई चिट्ठियां भेज चुके थे.
दरअसल बात आस्था की नहीं, पैसे की थी. दबंग ढाबा मालिक सबको पैसा खिला कर मामला दबवा देते थे. आस्था की आड़ में उनका अपना धंधा जो चल रहा था. तमाम लोग आते, पीपल पर जल चढ़ाते और फिर वहीं उनके ढाबे पर बैठ कर चाय-नाश्ता करते. ढाबे के बाहर तक पीपल की छांव में कुर्सियां बिछी रहती थी. पीपल कट जाता तो तेज़ धूप में ग्राहक थोड़ी ना बैठते. इसलिए पीपल बढ़ता जाता और साथ में आदिल चाचा की परेशानी भी.
अब तो पीपल की टहनियों ने आदिल चाचा के घर की छत का एक कोना भी तोड़ना शुरू कर दिया था. छत पर उसकी इतनी घनी छांव थी कि धूप का नामोनिशान न मिलता. इस वजह से बरसात के बाद छत पर सीलन और गंदगी का ढेर लग जाता. पीपल की गाद और पत्तियों ने पूरी छत को ढक लिया था. आखिर बुढ़ापे की मार झेल रहे और थोड़ी से पेंशन पर गुजारा कर रहे आदिल चाचा कहां से पैसा लाते कि मजदूर लगा कर आएदिन छत साफ करवा सकें. धीरे-धीरे सीलन पूरे घर में फैल गई थी. सीलन के चलते दीमक और चीटिंयों ने जगह-जगह अपनी बांबियां बना ली थीं. घर जर्जर होने लगा था. उस छत के नीचे अब आदिल चाचा का परिवार हर पल किसी अनहोनी के डर से सहमा रहता था.
मैं काफी दिन बाद अपने घर आया था. उस दिन आदिल चाचा मेरे पापा के पास बैठे अपना यही दुखड़ा रो रहे थे. अचानक मेरे मन में एक विचार कौंधा. मैंने आदिल चाचा को लिया और चिड़ियाघर के डायरेक्टर संजीव चतुर्वेदी से मिलने चल दिया. दरअसल वह मेरा पुराना क्लासमेट था. संजीव को मैंने सारी परेशानी बताई. यह भी कि अगर पेड़ की छंटाई न हुई तो इनके घर को भारी नुकसान हो सकता है. जान जाने का खतरा है. संजीव ने चाचा के कंधे पर प्यार से हाथ रखा और बोला, ‘परेशान न हों, आपकी परेशानी मैं हल करता हूं.’
उसने तुरंत अपने कुछ अधिकारियों को बुलाया. पूछा, ‘चिड़ियाघर के जितने हाथी हैं, महावतों से कहो कि सबको तैयार करके ले चले.’
मैं समझ नहीं पाया कि संजीव करना क्या चाहता है. आदिल चाचा भी असमंजस की हालत में थे. उन्हें भी कुछ समझ में नहीं आ रहा था. हमें घर जाने को कह कर संजीव हाथियों के जुलूस के साथ चल दिया. जुलूस में लकड़ी काटने वाले भी थे. आदिल चाचा के घर के पिछवाड़े यह जुलूस रुका. सड़क पर कोई दस हाथी एक के पीछे एक खड़े थे.
संजीव ने ढाबा मालिकों से बातचीत की. चंद मिनट बीते होंगे कि हमने पेड़ पर कुछ लकड़हारों को चढ़ कर टहनियां छांटते देखा. एक बड़े से ट्रक में लकड़ियां और पत्तियां जमा करके संजीव कोई चार घंटे में पेड़ छंटवा कर चला गया. घर पर रोशनी छा गई. धूप नजर आने लगी. मैंने संजीव को फोन मिलाया, पूछा, ‘यार, ये क्या जादू किया तुमने?’
संजीव हंस कर बोला, ‘भई, आस्था का मामला था न, मैंने बस इतना कहा कि गणेश जी के परिवार को खाने के लिए पत्तियां और बाड़े के लिए लकड़ियां चाहिएं, कौन मना करता इस बात पर…’ वह कह कर ठठाकर हंस पड़ा. बोला, ‘आगे जब भी पीपल छंटवाना हो, मुझे फोन कर देना.’ Hindi Romantic Story.





