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कर्नाटक चुनाव : इतिहास का काला अध्याय

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव एक प्रहसन बन गया है . संपूर्ण देश के साथ दुनिया ने देखा कि किस तरह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत एक राज्य कर्नाटक का चुनाव नैतिकता के सिद्धांतों की पहाड़ी से गिरता चला गया. किस तरह देश की सत्ता संभाल रही भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने चुनावी सिद्धांतों को क्षत-विक्षत कर दिया. जब देश का प्रधानमंत्री ही धर्म के नाम पर वोट मांगने लगे तो फिर चुनावी नैतिकता तो तार-तार होनी हीं थी,

सभी ने देखा कि किस तरह कर्नाटक में मात्र सत्ता पाने के लिए राजनीतिक दलों ने खुलेआम सिद्धांतों की बलि चढ़ा दी है . धीरे-धीरे हमारा देश लोकतांत्रिक मूल्यों के राजपथ से हटकर के एक ऐसी पगडंडी पर चलने लगा है जो आने वाले समय में एक अंधेरी गुफा में ले जाएगा और जिसका परिणाम भी देश की आम लोगों को भोगना पड़ेगा. ऐसे में आवश्यकता है देश के हर एक नागरिक को निर्णय लेने की और अपना वोट का महत्व समझने देश की हर एक नागरिक का मत महत्व रखता है और इसीलिए संविधान में हर एक नागरिक को यह अधिकार दिया गया है ताकि हर एक नागरिक यह समझे कि उसका कुछ अधिकार है तो अधिकार है तो दायित्व भी है . ________

नरेंद्र मोदी बनाम प्रियंका गांधी _______

कर्नाटक चुनाव में एक तरफ है स्वयं देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी तो दूसरी तरफ प्रियंका गांधी और राहुल गांधी . हालांकि देश का हर एग्जिट पोल यही कह रहा है कि कांग्रेस बहुमत की ओर है और भाजपा की स्थिति अच्छी नहीं इसके बावजूद नरेंद्र मोदी लगातार कर्नाटक में अपनी उपस्थिति बनाए हुए हैं अकेले दम पर चुनाव को विजय बनाना चाहते हैं इसलिए चुनावी शुचिता को छोड़ कर के उन्होंने जिस तरह हिंदुओं के इष्टदेव बजरंगबली का नाम लेकर के मतदान करने की अपील की है वह अपने आप में आपत्तिजनक है मगर प्रधानमंत्री के आभामंडल में चुनाव आयोग खामोश है. ऐसी स्थिति में अब सारा दारोमदार देश के मतदाताओं के कांधे पर है की वह देश को किस दिशा में ले जाते हैं.
दूसरी तरफ कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बड़े पते की बात कही है ” भ्रष्टाचार, लूट-खसोट, महंगाई और बेरोजगारी कर्नाटक में आज असली ‘आतंकवाद’ है तथा भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में रहने के दौरान लोगों के वास्तविक मुद्दों का हल करने में नाकाम रही.”

दक्षिण कन्नड़ जिले में मूदचिद्री में एक जनसभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा ” प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के नेता चुनाव नजदीक आने पर हमेशा चरमपंथ और राष्ट्रीय सुरक्षा की बात करते हैं. ये आपके (लोगों के) वास्तविक मुद्दों के बारे में बात नहीं करते. मैं भाजपा नेताओं से कहना चाहती हूं कि महंगाई, बेरोजगारी और भाजपा सरकार का 40 फीसद भ्रष्टाचार (कमीशन) असली चरमपंथ है.”

कांग्रेस नेता ने महत्वपूर्ण प्रश्न उठाते हुए कहा कि धर्म, राष्ट्रीय सुरक्षा और आतंकवाद के बारे में बात करते हुए भाजपा नेता यह नहीं देखते कि उनके शासन के तहत कर्नाटक में हजारों किसानों ने आत्महत्या की है.
प्रियंका गांधी ने नरेंद्र दामोदरदास मोदी सरकार की पोल खोलते हुए कहा ” केंद्र सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के चार बैंक सिंडीकेट बैंक, विजया बैंक, कारपोरेशन बैंक और केनरा बैंक का विलय कर बैंकों के राष्ट्रीयकरण के उद्देश्य को नष्ट कर दिया. देश में सभी हवाई अड्डे और नए मंगलोर बंदरगाह सहित समुद्री बंदरगाह धनकुबेरों को बेचे जा रहे हैं, जो केंद्र की भाजपा सरकार के मित्र हैं.”

राहुल गांधी के महत्वपूर्ण सवाल

कर्नाटक में कथित भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री के मौन पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा ” राज्य में 40 फीसद कमीशन’ से ‘दोहरे इंजन सरकार के प्रत्येक इंजन को कितना मिला है. पिछले तीन साल से कर्नाटक में भाजपा की सरकार है और प्रधानमंत्री यहां के भ्रष्टाचार से वाकिफ हैं. आप इसे ‘दोहरे इंजन’ की सरकार कहते हैं. इस बार दोनों इंजन चोरी हो गया है.” उन्होंने प्रधानमंत्री से सवाल किया ” मोदी जी, कृपया कर्नाटक के लोगों को बताएं कि किस इंजन को 40 फीसद कमीशन में से कितना मिला.”

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा ” कर्नाटक में ठेकेदारों के संगठन ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा कि उनसे 40 फीसद कमीशन लिया गया, लेकिन प्रधानमंत्री ने कोई जवाब नहीं दिया.”कुल मिलाकर के कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सबसे ज्यादा दायित्व है कि वह चुनाव को साफ सुथरा निष्पादित करने में भूमिका निभाते मगर कर्नाटक में जैसा चुनावी दंगल हुआ है वह अपने आप में एक काला इतिहास बन गया है.

मैं 45 साल की विवाहित महिला हूं, मुझे यह डर सताता है कि कहीं मुझे ब्रैस्ट कैंसर न हो जाए, मुझे क्या उपाय करने चाहिए?

सवाल

मैं 45 साल की विवाहित महिला हूं. जब 28 साल की थी तो मां को ब्रैस्ट कैंसर हुआ था और ठीक से इलाज न मिल पाने के कारण वे कुछ ही महीनों में चल बसी थीं. तभी से मुझे यह डर सताता है कि कहीं मुझे भी यह रोग तो नहीं हो जाएगा. मैं ने सुना है कि मां को ब्रैस्ट कैंसर होने पर बेटियों में कैंसर होने के चांसेज बढ़ जाते हैं. यदि यह बात सच है तो मुझे ऐसे क्या उपाय करने चाहिए जिन से मैं इस रोग से बच जाऊं? मेरी भरीपूरी गृहस्थी है. डरती हूं कहीं सब कुछ बिखर न जाए.

जवाब

यह बात सच है कि अगर किसी स्त्री की मां, मौसी या बहन को ब्रैस्ट कैंसर हुआ हो, तो उस में यह कैंसर होने का रिस्क थोड़ा बढ़ जाता है. यह रिस्क ब्रैस्ट कैंसर प्रेरक जीन्स से जुड़ा होता है, जिस पर किसी का वश नहीं चलता, चूंकि ये जीन्स हमें उसी समय मिल जाते हैं जब हम मां के पेट में आते हैं.

लेकिन यह जान कर आप को अपना चैन नहीं गवांना चाहिए. खास जानने लायक बात यह है कि ऐसी स्त्रियां जिन के परिवार में पहले मां, मौसी या बहन को ब्रैस्ट कैंसर हुआ होता है, उन में 10 में से 8 को यह कैंसर नहीं होता. अत: रिस्क अधिक होने पर भी इतना गंभीर नहीं कि उस की बाबत चिंता में ही डूबी रहें.

इस रिस्क को घटाने के लिए आप थोड़ी अतिरिक्त सावधानी भी बरत सकती हैं. अच्छा होगा कि आप सैल्फ ब्रैस्ट जांच की सरल घरेलू विधि सीख लें. हर महीने कम से कम 1 बार घर शीशे के सामने खड़े हो कर और लेट कर स्वयं अपनी ब्रैस्ट जांच कर के आप यह पता लगा सकती हैं कि किसी स्तन में कहीं कोई गांठ तो नहीं बन रही. यदि कभी कोई गांठ महसूस हो तो तुरंत उस की डाक्टरी जांच कराएं. इस में जरा सी ढील न बरतें. इस के साथसाथ वार्षिक डाक्टरी जांच कराते रहना भी अच्छा है. कुछ लोग मैमोग्राफी, ब्रैस्ट अल्ट्रासांउड और ब्रैस्ट एमआरआई जांच कराने की भी सलाह देते हैं. कुल निचोड़ यह है कि यदि रोग अंदर शुरू हो, तो उसे बिलकुल आरंभिक अवस्था में ही पकड़ लिया जाए, बढ़ने न दिया जाए.

दूसरा, आप अपने खानपान की बाबत भी सावधान हो सकती हैं. पाश्चात्य देशों में हुए कुछ सामुदायिक अध्ययनों से यह निचोड़ निकाला गया है कि हमारे खानापान और ब्रैस्ट कैंसर के बीच भी कुछ प्रेरक नाता हो सकता है. ऐसी स्त्रियां जिन के शरीर पर अधिक चरबी चढ़ी होती है, जो नित्य अधिक चरबी वाला भोजन करती हैं, उन में ब्रैस्ट कैंसर का रिस्क बढ़ जाता है. अत: जहां तक हो सके देशीविदेशी जंक फूड, मांसाहार, अंडे, घी मक्खन कम खाएं. अपना वजन संतुलित और कोलैस्ट्रौल स्वस्थ सीमा में रखें. यह सावधानी यों भी अच्छे स्वास्थ्य के लिए जरूरी है.

नया रिवाज, मोटे अनाज

पारंपरिक भारतीय अनाजों में स्वास्थ्य का खजाना छिपा है. बीते कुछ सालों में कई ऐसी फसलें खेतों में लगी हैं और फिर ऐसा खाना थाली में लौट आया है, जिन्हें कुछ वक्त पहले तक बिलकुल भुला दिया गया था. भारत में 60 के दशक के पहले तक मोटा अनाज हमारे भोजन का हिस्सा था. तकरीबन 5-6 दशक पहले कुछ फसलें नाममात्र थीं.

उदाहरण के लिए, धान और कोदो की एकसाथ बोई गई फसल को धनकोडाई कहा जाता था. इसी प्रकार गेहूं और जौ के साथ बोई गई फसल को गोजाई कहा जाता था. ये फसलें अपनी परंपरा में इस कदर समाई थीं कि उन दिनों गांव में कुछ लोग गोजाई और कोडाई के नाम से भी मिलते थे. खाद्य क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के लिए और कुपोषण पर काबू पाने के लिए भारत में 60 के दशक में हरित क्रांति हुई और उस के परिणामस्वरूप चावल और गेहूं की अधिक पैदावार वाली किस्मों को उगाया जाना शुरू किया गया और धीरेधीरे हम मोटे अनाज को भूल गए.

वर्ष 1960 और 2015 के बीच, गेहूं का उत्पादन 3 गुना से भी अधिक हो गया और चावल के उत्पादन में 800 फीसदी की वृद्धि हुई, लेकिन इस दौरान मोटे अनाजों का उत्पादन कम ही बना रहा. जिस अनाज को हम 6,500 साल से खा रहे थे, उस से हम ने मुंह मोड़ लिया और आज पूरी दुनिया उसी मोटे अनाज की तरफ वापस लौट रही है और बाजार में इन्हें सुपर फूड का दर्जा दिया गया है. वैश्विक स्तर पर मोटे अनाजों में भारत का स्थान देखें, तो उन के उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी 20 फीसदी के करीब है.

एशिया के लिहाज से यह हिस्सेदारी करीब 80 फीसदी है. इस में बाजरा और ज्वार हमारी मुख्य फसल हैं खासकर बाजरे के उत्पादन में भारत दुनिया में पहले नंबर पर है और उत्तर प्रदेश भारत में पहले नंबर पर है, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष को सफल बनाने में भारत, खासकर उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी बढ़ जाती है. राज्य सरकार भी इस के लिए पूरी तरह से तैयार है. बाजरे को लोकप्रिय बनाने की पूरी योजना पहले ही तैयार की जा चुकी है. मोटे अनाजों को बढ़ावा देने के लिए ही सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य को बढ़ाया गया है.

इस के अलावा उपज की बिक्री के लिए एक टिकाऊ बाजार मुहैया करने के उद्देश्य से सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली को शामिल किया है. अब इस के लिए गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता पर ध्यान दिया जा रहा है. सरकार द्वारा किसानों को बीज किट और निवेश लागत उपलब्ध कराई गई है. इसी अवधि के दौरान मोटे अनाज की 150 से अधिक उन्नत किस्में, जो अधिक उपज देने वाली और रोग प्रतिरोधी हैं, को भी लौंच किया गया है. क्या हैं मोटे अनाज मोटे अनाज की श्रेणी में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, कोदो, सामा और कुटकी जैसे पुरातन पारंपरिक अनाज आते हैं. इन्हें मोटा अनाज 2 कारणों से कहा जाता है. एक तो इन की सतह खुरदरी होती है. दूसरा, इन के उत्पादन में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती. ये अनाज कम पानी और कम उपजाऊ भूमि में भी उगाए जा सकते हैं.

अधिकांश मोटे अनाज कम उर्वरता वाली मिट्टी में उगाए जा सकते हैं. कुछ अम्लीय मिट्टी में, कुछ लवणीय मिट्टी में. बाजरे को रेतीली मिट्टी में भी उगाया जा सकता है, जैसा कि राजस्थान में होता है. मोटे अनाज के भंडारण में कोई विशेष देखभाल नहीं करनी पड़ती. ये अनाज जल्दी खराब भी नहीं होते. 10 से 12 साल बाद भी ये खाने के लायक होते हैं. गरीब का भोजन बता कर भारतीयों द्वारा लगभग छोड़ दिए गए इस पोषक अनाज की महत्ता विश्व स्तर पर साबित होने के बाद अब इस अनाज के सम्मान में वर्ष 2023 को ‘इंटरनेशनल ईयर आफ मिलेट्स’ के रूप में राष्ट्रों ने समर्पित किया है. गौरतलब है कि भारत ने वर्ष 2018 में ही मिलेट ईयर मनाया था.

बहुद्देशीय मोटे अनाज वैसे, चावल के मुकाबले मोटे अनाज 70 फीसदी कम पानी की खपत करते हैं. इस को इस्तेमाल के लिए तैयार करने में 40 फीसदी कम ऊर्जा की जरूरत होती है. पोषक तत्त्वों का पावरहाउस होने के अलावा बाजरा पर्यावरण के लिए अनुकूल भी है. उन्हें कम उर्वरक, पानी की आवश्यकता होती है और वे किसी भी प्रकार की भूमि में विकसित हो सकते हैं. खेत की तैयारी से ले कर जमीन की जुताई से ले कर सिंचाई तक में कम ऊर्जा और डीजल का प्रयोग होता है, जिस से पर्यावरण संरक्षण होता है. इस के अलावा रसायनों, उर्वरकों और कीटनाशकों के जहर से लोगों, जमीन और पानी को काफी हद तक बचाया जाता है. दूसरे अनाज के मुकाबले मोटे अनाज में पोषण के गुण ज्यादा मात्रा में मौजूद हैं.

पर्यावरण में योगदान

* मोटे अनाज अपेक्षाकृत ज्यादा तापमान में फलफूल सकते हैं और सीमित पानी की आपूर्ति में भी इन का उत्पादन होता है. मोटे अनाज बेहद गरम तापमान से ले कर सूखे और खारेपन को भी बरदाश्त कर सकते हैं.

* पानी के हिसाब से देखें, तो मोटे अनाज की वृद्धि के लिए धान के मुकाबले 6 गुना कम पानी की जरूरत होती है. धान के लिए जहां औसत 120-140 सैंटीमीटर बारिश की आवश्यकता होती है, वहीं मोटे अनाज के लिए सिर्फ 20 सैंटीमीटर, कुछ मोटे अनाज को तैयार होने में 45-70 दिन का समय लगता है, जो चावल (120-140 दिन) के मुकाबले आधा है.

* मोटे अनाज के सी4 ग्रुप का होने की वजह से मोटे अनाज ज्यादा मात्रा में कार्बनडाईऔक्साइड को औक्सीजन में बदलते हैं और इस तरह से ये जलवायु परिवर्तन के असर को कम करने में योगदान देते हैं.

* कम से कम पानी की खपत, कम कार्बन फुटप्रिंट वाली वजह से मोटे अनाज की उपज सूखे की स्थिति में भी संभव है. यही वजह है कि ये जलवायु के अनुकूल फसल की श्रेणी में आते हैं. खासतौर पर जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों में, दबाव में कमी के जरीए मोटे अनाज की खेती के सकारात्मक असर का संकेत मिलता है.

खेती के लिए जलवायु

* ज्वार, रागी, बाजरा आदि खरीफ फसलों के रूप में उगाए जाते हैं यानी जून से नवंबर माह के बीच मानसून या शरद ऋतु की फसलें उगाई जाती हैं, क्योंकि उन की नमी और वर्षा की आवश्यकताएं ऐसी होती हैं.

* मोटे अनाज उन क्षेत्रों में अच्छी तरह से उगाया जा सकता है, जहां अन्य फसलें नहीं उगती हैं.

* बाजरे की खेती वर्षा सिंचित परिस्थितियों में की जाती है, जिन्हें बहुत कम या कोई सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, क्योंकि उन्हें अधिक मात्रा में नमी की आवश्यकता नहीं होती है. इस के अलावा मोटे अनाज अन्य फसलों की तुलना में जलवायु के झटकों के प्रति अधिक अनुकूल और सहनशील होते हैं.

* बाजरे की खेती का मौसम तकरीबन 65 दिनों का होता है, जो इसे वर्षा सिंचित और सिंचित दोनों क्षेत्रों में बहुफसली प्रणालियों का हिस्सा बनने की अनुमति देता है. ठ्ठ सेहत के लिए फायदेमंद मोटे अनाज ज्वार, बाजरा और रागी जैसे मोटे अनाज में पौष्टिकता की भरमार होती है. सभी मोटे अनाजों में प्रोटीन, डायटरी फाइबर, मैग्नीशियम, आयरन, कैल्शियम एवं विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो हमारे भोजन को पौष्टिक बनाते हैं.

मोटे अनाज में एंटीऔक्सीडैंट पर्याप्त मात्रा में होता है और ये संभावित स्वास्थ्य फायदों के साथ प्रोबायोटिक्स की क्षमता को बढ़ाने में मदद करते हैं. मोटे अनाज कोलैस्ट्रौल को कम करने में मदद करते हैं, क्योंकि इन में पौलीअनसैचुरेटेड एसिड और ओमेगा-3 एसिड भरपूर मात्रा में होते हैं. ये शरीर की रोग प्रतिरोधक प्रणाली में एक भूमिका अदा करते हैं और बचपन के कुपोषण एवं आयरन की कमी से एनीमिया को रोकने का समाधान हैं.

यही कारण है कि आधुनिक विज्ञान कई शोधों के बाद मोटे अनाज को पोषण का ‘पावरहाउस’ बता रहा है. बाजरा बाजरा को पर्ल मिलेट के नाम से भी जाना जाता है. बाजरे में एंटीऔक्सीडैंट्स घुलनशील और अघुलनशील फाइबर, आयरन और प्रोटीन प्रचुरता में होते हैं. बाजरे का ग्लाईसेमिक इंडैक्स कम होने की वजह से यह डायबिटीज में फायदेमंद है. बाजरा रक्त में ट्राईग्लिसराइड और रक्त शर्करा (ब्लड शुगर) के स्तर को काबू रखता है.

अघुलनशील फाइबर की अधिकता के कारण वजन कम करने में भी सहायक है. कैल्शियम की कमी होने पर भी इस के आटे की रोटियां खाने की सलाह दी जाती है. जौ जौ ऐसा मोटा अनाज है, जिस में फाइबर पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है. इस का सेवन शरीर को ठंडक देता है, इसलिए इसे गरमियों में भी खाया जा सकता है. यह मैग्नीशियम का भी अच्छा स्रोत है. जौ में अन्य अनाजों की तुलना में ज्यादा अलकोहल पाया जाता है. रागी रागी या फिंगर मिलेट में कौंप्लैक्स कार्बोहाइड्रेट पाए जाते हैं.

हाई फाइबर और हाई प्रोटीन से युक्त इसे खून में शर्करा को काबू रखने में फायदेमंद माना जाता है. वजन नियंत्रित करने के साथ यह मानसिक सेहत के लिए भी फायदेमंद है. गर्भवती महिलाओं को खासतौर पर इसे खाने की सलाह दी जाती है. ज्वार इस में फाइबर और एंटीऔक्सीडैंट्स पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं. साथ ही, इस में विटामिन-बी कौंप्लैक्स पाया जाता है. उम्र बढ़ने के साथ शरीर में विटामिन बी की पूर्ति बनाए रखना जरूरी हो जाता है.

ज्वार रक्त में शर्करा व कोलैस्ट्रौल कम रखने में भी सहायक माना जाता है. ज्वार के आटे को गेहूं के आटे के साथ मिला कर भी खाया जा सकता है. मक्का मक्का कई तरह से खाया जाता रहा है. गेहूं, चना के आटे के साथ भी इस के आटे को मिला कर खाते हैं.

इस में फाइबर पर्याप्त होता है. नाश्ते में मक्का को दलिया के रूप में लेने से यह उच्च रक्तचाप और हृदय रोगों की रोकथाम में सहायक है. पेट के अल्सर से ग्रस्त लोगों के लिए भी यह सुपाच्य अनाज है. जई (ओट्स) फाइबर ज्यादा होने के कारण यह बहुत ही सुपाच्य होता है. यही वजह है कि वजन कम करने के इच्छुकों को ओट्स खाने की सलाह दी जाती है.

कब्ज में भी यह फायदेमंद है. बेहतर है कि फल व सब्जियां मिला कर दलिए की तरह खाएं. जई में अन्य पोषक तत्त्वों के साथ फोलिक एसिड भी होता है, जो बच्चों के विकास के लिए उपयोगी है. गर्भवती महिलाओं में इसे खाना शिशु के लिए अच्छा माना जाता है. इस में कैंसररोधी गुण भी पाया जाता है.

लेखक- डा. आरएस सेंगर एवं डा. शालिनी गुप्ता

मैं पुरुष हूं : बलात्कार पीड़िता को त्यागना क्या पौरुषता है?

मिसेज मेहता 20 साल की बेटी आलिया के साथ व्यस्त थीं. वे आज अपनी साड़ियों को अलमारी से बाहर निकाल रही थीं. साड़ियों को एक बार धूप में सुखाने का इरादा था उन का.

““क्या मम्मी, आप ने तो सारा घर ही कबाड़ कर रखा है,”” मिसेज मेहता का 24-वर्षीय बेटा तरुण बोला.

““अरे बेटे, मैं अपनी अलमारी सही कर रही हूं. मेरी इतनी महंगीमहंगी साड़ियां हैं, इन्हें भी तो देखरेख चाहिए.””

““ये इतनी भारी साड़ियां आप लोग कैसे संभाल लेती हो भला?”” तरुण ने कहा.

““यह सब हमारी संस्कृति की निशानी है,” मिसेज मेहता ने इठलाते हुए कहा.

““अब भला साड़ियों से हमारी संस्कृति का क्या लेनादेना मां? एक बदन ढकने के लिए 5 मीटर लंबी साड़ी लपेटने में भला कौन सी संस्कृति साबित होती है?”” तरुण ने चिढ़ते हु

““अब तुम्हारे मुंह कौन लगे. जब तेरी घरवाली आएगी तब बात करूंगी तुझ से,” ”मां ने हंसते हुए कहा.

तरुण बैंक में कैशियर के पद पर काम कर रहा था और अपनी सहकर्मी माधवी से प्यार करता था. दोनों ने साथ जीनेमरने की कसमें भी खा ली थीं. पर माधवी से शादी को ले कर तरूण हमेशा ही शंकालु रहता था क्योंकि माधवी नए जमाने की लड़की थी जो बिंदास अंदाज में जीती थी. उसे मोटरसाइकिल चलाना पसंद था और अपनी आवाज को बुलंद करना भी उसे अच्छी तरह आता था. उस की यही बात तरुण को संशय में डालती थी कि हो सकता है कि माधवी मां की पसंद पर खरी न उतरे.

“आजकल की लड़कियों को देखो, टौप के अंदर से ब्रा की पट्टी दिखाने से उन्हें कोई परहेज नहीं है. हमारे समय में तो मजाल है कि कोई जान भी पाता कि हम ने अंदर क्या पहन रखा है.”

मां की इस तरह की बातें सुन कर तो तरुण का मन और भी फीका हो जाता था.

माधवी के पापा को लास्ट स्टेज का कैंसर था, इसलिए वे माधवी की शादी जल्द से जल्द कर देना चाहते थे. माधवी भी तरुण पर दबाव बना रही थी कि वह भी घर में अपनी शादी की बात चलाए.

माधवी के बारबार कहने पर एक दिन तरुण ने मां को माधवी के बारे में बताया और माधवी का फोटो भी दिखा दिया.

फोटो देख कर तो मां ने कुछ नहीं कहा पर ऐसा लगा कि माधवी जैसी मौडर्न लड़की को वे अपनी बहू नहीं बनाना चाहती हैं.

““मां, वैसे माधवी घरेलू लड़की ही है. हां, उस के नैननक्श जरूर ऐसे हैं जिन से वह मौडर्न और अकड़ू टाइप की लगती है,”” माधवी की तारीफ का समा बांध दिया था तरुण ने.

तरुण के पिता तो बचपन में ही गुजर गए थे. तब से ले कर आज तक मिसेज मेहता अपना जीवन आलिया और तरुण के लिए ही तो गुजार रही हैं.

तरुण की मां उस की हर पसंद व नापसंद का ध्यान रखती थीं. जवान होते बच्चों की भावनाएं बहुत तीव्र होती हैं और अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए वे कोई भी कदम उठाने से पीछे नहीं हटते.

मां ने आलिया से सवालिया नजरों में ही पूछ लिया कि “यह लड़की तेरी भाभी के रूप में कैसी लगेगी?” आलिया ने भी इशारों में ही बता दिया. आलिया के इस खामोश जवाब का मतलब मां अच्छी तरह समझ गई थीं.

आलिया वैसे भी अकसर खामोश ही रहती थी. उस की इस खामोशी को लोग घमंडी की उपमा देते थे.

आलिया की सहज और मूक स्वीकृति पा कर मां ने भी माधवी से तरुण की शादी करने की इच्छा जाहिर की.

तरुण खुशीखुशी 2 दिनों बाद ही माधवी को घर ले आया. माधवी आज पीले रंग के सलवार सूट में थी. उस ने अपने बालों को खुला छोड़ा हुआ था जो बारबार उस के माथे पर गिर जाते थे और जिन्हें बड़ी अदा से सही करती थी वह.

माधवी से मां ने दोचार सवालजवाब किए और उस के घरेलू हालात के बारे में जानकारी हासिल की. माधवी ने उन्हें बताया कि घर में उस के मांबाप और माधवी ही रहते हैं और पापा कैंसर से पीड़ित हैं, इसलिए घर चलाने का जिम्मा भी उसी पर आ पड़ा है.

इसी प्रकार की औपचारिक बातों के बाद माधवी ने मां और आलिया से विदा ली.

माधवी के जाने के बाद तरुण अपनी मां का निर्णय जानने के लिए मचला जा रहा था. मां ने इस सस्पैंस को थोड़ी देर बनाए रखना उचित समझा. लेकिन तरुण की हालत देख कर उन्होंने हंसते हुए इस रिश्ते के लिए हामी भर दी थी.

तरुण ने तुरंत ही माधवी के मोबाइल पर व्हाट्सऐप मैसेज कर दिया कि मां शादी के लिए तैयार हो गई हैं. अब, बस, जल्दी से तारीख तय कर लेते हैं. मैसेज देख कर माधवी भी खुशी से फूले नहीं समा रही थी. उस की शादी से उस के मांबाप के मन से एक बोझ भी हट जाने वाला था.

अगले दिन बैंक से निकलने के बाद तरुण और माधवी कैफे में गए और अपने भविष्य की तमाम योजनाओं पर विचार करने लगे. दोनों की आंखों में रोमांस और रोमांच का सागर लहरा रहा था.

वापसी में शाम ज्यादा हो गई थी और अंधेरा घिर आया था. तरुण ने माधवी को खुद ही उस के घर तक छोड़ने का मन बनाया और अपनी बाइक पर उस को बैठा कर चल दिया.

बैंक से माधवी के घर की ओर जाते हुए एक पुलिया पड़ती थी जहां पर आवागमन कुछ कम हो जाता था. वहां पर पहुंचते ही तरुण की बाइक पंक्चर हो गई.

“शिट मैन…..पंक्चर हो गई. मेकैनिक देखना पड़ेगा.” इधरउधर नजर दौड़ाने लगा था तरुण. ठीक उसी समय वहां पर 3-4 मुस्टंडे कहीं से प्रकट हो गए. वे सब शराब के नशे में थे. तरुण चौकन्ना हो गया था कि तभी उस के सिर के पीछे किसी ने डंडे से वार किया. बेहोश होने लगा था तरुण. इसी बीच, बाकी के 2 मुस्टंडों ने माधवी को पकड़ लिया और सड़क के किनारे खड़ी एक कार में ले जा कर जबरन उस के साथ बारीबारी मुंह काला करने लगे.

तरुण बेहोश था. माधवी उन गुंडों की हवस का शिकार बनती रही और उस के बाद वे गुंडे उन दोनों को उसी अवस्था में सड़क के किनारे छोड़ कर चले गए. जब उसे होश आया, तब तक माधवी का सबकुछ लुट चुका था. आतेजाते लोगों ने उन दोनों पर नजर डाली. कुछ ने उन के वीडियो भी बनाए. पर मदद किसी ने भी नहीं की. उन्हें मदद तब ही मिल पाई जब पुलिस की पैट्रोलिंग जीप वहां से गुजरी.

तमाम सवालात के बाद पुलिस ने माधवी को अस्पताल में भरती कराया और तरुण को प्राथमिक उपचार के बाद घर जाने दिया गया.

तरुण के दिलोदिमाग पर जोरदार झटका लगा था पर 10 दिनों तक घर में रुकने के बाद उस ने पहले की तरह ही अपने काम पर जाना शुरू कर दिया. पर उस ने माधवी की खोजखबर लेना उचित नहीं समझा.

माधवी सदमे में थी. पर घर की जिम्मेदारियां निभाने के लिए वह बैंक भी आने लगी और पहले की तरह ही काम भी संभाल लिया. माधवी ने जिंदगी की पुरानी लय पाने की दिशा में कदम बढ़ाने शुरू कर दिए. पर इस सफर में उसे अब तरुण का साथ नहीं मिल पा रहा था. वह माधवी की तरफ देखता भी नहीं था, बात करना तो बहुत दूर की बात थी.

माधवी के स्त्रीमन ने बहुत जल्दी ताड़ लिया कि तरुण उस के साथ ऐसा रूखा व्यवहार क्यों कर रहा है, पर बेचारी कर क्या सकती थी. वह अब एक बलात्कार पीड़िता थी. चुपचाप अपने को काम में बिजी कर लिया था माधवी ने.

कुछ समय बीता, तो मां ने तरुण से माधवी के बारे में पूछा, ““आजकल तू माधवी की बात नहीं करता. तुम लोगों ने शादी की तारीख फाइनल की या नहीं?””

““कैसी बातें करती हो मां. अब क्या मैं उस के साथ शादी करूंगा? मेरा मतलब है कि उस का बलात्कार हो चुका है. बलात्कार पीड़िता से कहीं कोई शादी भी करता है भला? म….मैं समाज से कुछ अलग तो नहीं? ”

मां के चेहरे पर कई रंग आनेजाने लगे. उन की आंखों में कई सवाल उमड़ आए थे.

“लगता है मेरी परवरिश में ही कुछ कमी रह गई. ”मन ही मन बुदबुदा उठी थी मां. उन की आंखों की कोर नम हो चली थी जिसे उन्होंने तरुण से बड़ी सफाई से छिपा लिया और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गईं.

“बलात्कार किसी के भी साथ हो सकता है मेरे साथ, आलिया के साथ… तो क्या तब भी तरुण उसे ऐसे ही त्याग देगा जैसे उस ने माधवी को छोड़ दिया है? हां, एक पुरुष ही तो है वह, जो हमेशा ही दूध का धुला होता है.”

कई तरह के सवाल मां के जेहन में उमड़ आए और कुछ कसैली यादें उन के मन को खट्टा करने लगीं.

5 साल पहले की ही तो बात है. उन दिनों तरुण ट्रेनिंग करने के लिए शहर से बाहर गया हुआ था. आलिया को अचानक बुखार आ गया था. डाक्टर को दिखा कर दवा तो ले आई थीं मिसेज मेहता पर आज सुबह से फिर बुखार तेज हो गया था. डाक्टर से फोन पर उन्होंने संपर्क किया तो उस ने एक दूसरी टेबलेट का नाम बताते हुए कहा कि यह टेबलेट आसपास के मैडिकल स्टोर से ले कर खिला दीजिए, आराम मिल जाएगा.

वे नुक्कड़ वाले मैडिकल स्टोर पर दवाई लेने ही तो गई थीं कि पीछे से किसी ने आलिया के कमरे का दरवाजा खटकाया था. आलिया ने अनमने मन से दरवाजा खोला, तो सामने बगल में रहने वाले 55 साल के अंकल थे. अंकल को यह पता था कि आलिया घर में अकेली है और इसी का लाभ उस ने उठाया, बुखार में तप रही आलिया का बलात्कार कर दिया. जब वे घर पहुंचीं तो आलिया फर्श पर पड़ी हुई थी. बड़ी मुश्किल से ही अपने ऊपर हुए अत्याचार को कह पाई थी आलिया. उन्होंने उसे सीने से लगा लिया और वे दोनों सुबकते रहे थे. पूरे 3 दिन तक फ्लैट का दरवाजा तक नहीं खुला. बदनामी के डर से पुलिस में भी रिपोर्ट नहीं लिखवाई. तरुण से भी नहीं बताया और आननफानन दूसरा फ्लैट तलाश कर लिया था और बगैर तरुण के आने का इंतजार किए ही फ्लैट बदल भी लिया था.

इस राज को अपने सीने में हमेशा के लिए दफन कर लिया था मिसेज मेहता ने. पर आज, तरुण की बातें सुन कर उन के घाव हरे हो गए थे और दर्द भी उभर आया था. पर वे चुप नहीं रहेंगी. उन्होंने आंसू पोछे और तरूण के सामने जा कर खड़ी हो गईं.

““अगर माधवी का रेप हो गया तो क्या वह जूठी हो गई? क्या वह अब माधवी नहीं रही?” मां तेज सांसें ले रही थीं.

““हां मां, भला मैं अपनेआप को ही किसी की जूठन क्यों खिलाऊं?” लापरवाही दिखा रहा था तरुण.

““पर भला इस में माधवी का क्या दोष है?”

““हो सकता है मां. पर ये सब बातें फिल्मों में ही अच्छी लगती हैं. मैं जानबूझ कर तो मक्खी नहीं निगल सकता न.””

““पर दोष तो उन लोगों का है जो इस घृणित कृत्य के लिए जिम्मेदार हैं, न कि माधवी का.””

मां और तरुण में बहस जारी थी. मां लगातार तरूण को समझाने की कोशिश कर रही थीं. पर तरुण की अपनी ही दलीलें थीं. काफी देर बाद भी जब तरुण टस से मस न हुआ तब मां ने उसे वह राज बताना जरूरी समझ लिया था जो अभी तक छिपाए रखा था.

““और अगर किसी ने तेरी बहन आलिया का बलात्कार किया हो तो क्या तब भी तेरी बातों में ऐसी ही कड़वाहट रहेगी? ”

““क्या मतलब है आप का, मां?”

““मतलब साफ है. आलिया का रेप हमारे फ्लैट के पड़ोस में रहने वाले उस 55 साल के बूढ़े ने किया और तब से आलिया किसी के साथ भी सहज नहीं हो पाती और गुमसुम रहती है. तुम्हें समझ नहीं आता वह इतनी चुप क्यों रहती है? अब क्या इस में आलिया का दोष था? क्या हम आलिया को सिर्फ इस बात के लिए छोड़ दें कि वह किसी पुरुष की वहशी मानसिकता का शिकार हो चुकी है?” ”मां लगातार बोलते जा रही थीं. इस समय वे सिर्फ तरुण की मां नहीं थीं बल्कि उन तमाम औरतों का प्रतिनिधित्व कर रही थीं जो बलात्कार का शिकार होती हैं.

तरुण कोने में खड़ी आलिया की तरफ बढ़ा. आलिया की आंखों से आंसू बह रहे थे. तरुण को आता देख वह झट से कमरे में घुस गई और भड़ाक से दरवाजा बंद कर लिया.

तरुण कभी रोती हुई मां की तरफ देखता, तो कभी आलिया के कमरे के बंद दरवाजे की तरफ. उस के दिमाग में माधवी का चेहरा घूमने लगा था.

अगले दिन शाम को बैंक से तरुण का फोन आया, ““मां मुझे आने में देर हो जाएगी. आज मैं और माधवी मैरिज प्लानर के पास जा रहे हैं अपनी शादी की तैयारी के लिए.

गवाही का सम्मन : जब कालगर्ल के साथ पकड़ा गया एक सांसद

उस शहर का रेलवे स्टेशन जितना छोटा था, शहर भी उसी के मुताबिक छोटा था. अपना बैग संभाले अनुपम रेलवे स्टेशन से बाहर निकला. उस के हाथ में कंप्यूटर से निकला रेलवे टिकट था, मगर उस टिकट को चैक करने के लिए कोई रेलवे मुलाजिम या अफसर गेट पर मौजूद न था.

रेलवे स्टेशन की इमारत काफी पुरानी अंगरेजों के जमाने की थी, मगर मजबूत भी थी. एक खोजी पत्रकार की नजर रखता अनुपम अपनी आंखों से सब नोट कर रहा था.

रेलवे स्टेशन के बाहर इक्कादुक्का रिकशे वाले खड़े थे. एक तांगे वाला तांगे से घोड़ा खोल कर उसे चारा खिला रहा था. अभी सुबह के 11 ही बजे थे.

यह छोटा शहर या बड़ा कसबा एक महानगर से तकरीबन 80 किलोमीटर दूर था. सुबहसवेरे जाने वाली पैसेंजर रेलगाडि़यों से मासिक पास बनवा कर सफर करने वाले मुसाफिर हजारों थे. इन्हीं मुसाफिरों के जरीए चलती थी इन तांगे वालों की रोजीरोटी.

अनुपम एक रिकशे वाले के पास पहुंचा और बोला, ‘‘शहर चलोगे?’’

‘‘कहां बाबूजी?’’ अधेड़ उम्र के उस रिकशा वाले ने पूछा.

अनुपम ने अपनी कमीज की ऊपरी जेब में हाथ डाला और एक मुड़ातुड़ा पुरजा निकाल कर उस पर लिखा पता पढ़ा, ‘‘अग्रवाल धर्मशाला, बड़ा बाजार.’’

रिकशा वाले ने कहा, ‘‘बाबूजी, अग्रवाल धर्मशाला तो कभी की ढह कर बंद हो गई है.’’

‘‘यहां और कोई धर्मशाला या होटल नहीं है?’’

‘‘नहीं साहब, न तो यहां कोई होटल है और न धर्मशाला. हां, एक सरकारी रैस्ट हाउस है. नहर के दूसरी तरफ है. वैसे, आप को यहां क्या काम है?’’

‘‘परसों यहां एक सैमिनार हो रहा है. मैं उस की रिपोर्टिंग के लिए आया हूं. मैं एक बड़े अखबार का संवाददाता हूं,’’ अनुपम ने कहा.

‘‘मगर साहब, सैमिनार तो परसों है. आप 2 दिन पहले यहां क्या करेंगे?’’ रिकशा वाला हैरानी से उस की तरफ देख रहा था.

‘‘मेरा अखबार इस कसबे के बारे में एक फीचर छापना चाहता है. मैं यहां से थोड़ी जानकारी इकट्ठा करना चाहता हूं,’’ अनुपम बोला.

रिकशा वाले की समझ में कुछ आया, कुछ नहीं. वह बोला, ‘‘साहब, आप बैठो. मैं आप को रैस्ट हाउस छोड़ आता हूं.’’ कसबे की सड़कें साफसुथरी थीं. इक्कादुक्का आटोरिकशा भी चलते दिख रहे थे. हर तरह की दुकानें थीं.

रैस्ट हाउस ज्यादा दूर नहीं था. नहर काफी चौड़ी और पक्की थी. 10 रुपए का नोट रिकशा वाले को थमा कर अनुपम उतर गया. रैस्ट हाउस साफसुथरा था.

‘‘कहिए सर?’’ छोटे से रिसैप्शन काउंटर पर बैठे एक सांवले रंग के ज्यादा उम्र के आदमी ने बेपरवाही से पूछा.

‘‘मैं एक अखबार का संवाददाता हूं. परसों यहां एक सैमिनार हो रहा है. उस की रिपोर्टिंग करनी है. मैं यहां ठहरना चाहता हूं.’’

‘‘ठीक है सर,’’ एक बड़ा सा रजिस्टर खोलते हुए उस आदमी ने कहा, फिर रजिस्टर को उस की तरफ सरकाते हुए उस के खानों में सब जानकारी भरने का इशारा किया.

‘‘यहां खानेपीने का क्या इंतजाम है?’’ अनुपम ने पूछा.

‘‘सब इंतजाम है. जैसा खाना आप चाहें, सब मिल जाएगा,’’ उस आदमी की आवाज में न कोई जोश था, न कोई दिलचस्पी.

अनुपम रजिस्टर में जानकारी भर चुका था. इस के बाद रिसैप्शन पर आदमी ने उस को चाबी थमाते हुए एक कमरे की तरफ इशारा किया.

कमरा साफसुथरा था. बिस्तर पर बिछी चादर भी धुली थी, जो एक सरकारी रैस्ट हाउस के लिहाज से हैरानी की बात थी. इस की वजह जो बाद में मालूम हुई, यह थी कि उस रैस्ट हाउस में बड़े सरकारी अफसरों, इलाके के विधायक, लोकसभा सदस्य, सत्तारूढ़ और विपक्ष की पार्टियों के नेताओं का आनाजाना लगा रहता था.

अनुपम खाना खा कर सो गया. दोपहर बाद तैयार हो कर अपना कैमरा संभाले वह पैदल ही कसबे की सैर को निकल पड़ा.

इस तरह की छोटीमोटी जानकारियां अपनी डायरी में दर्ज कर फोटो खींचता शाम ढले अनुपम पैदल ही रैस्ट हाउस लौट आया. खाने से पहले बैरे ने इशारे में उस से पूछा कि क्या शराब चाहिए? उस के मना करने पर बैरे को थोड़ी हैरानी हुई कि अखबार वाला हो कर भी वह शराब नहीं पीता है.

आधी रात को शोर सुन कर अनुपम की नींद खुल गई. वह आंखें मलता हुआ उठा और दरवाजा खोला. साथ वाले कमरे के दरवाजे के बाहर भीड़ जमा थी. कुछ पुलिस वाले भी मौजूद थे.

‘‘ये एमपी साहब देखने में शरीफ हैं, पर हैं असल में पूरे आशिक मिजाज,’’ एक देहाती से दिखने वाले आदमी ने दूसरे को कहा.

उस की बात सुन कर अनुपम चौंक पड़ा. वह पाजामे और बनियान में था. वह लपक कर अंदर गया, कमीज पहनी, अपना मोबाइल फोन और कैमरा उठा लिया. बाहर आ कर वह भी भीड़ का हिस्सा बन कर माजरा देखने लगा.

‘‘लो, फोटोग्राफर भी आ गया,’’ अनुपम को देख कर कोई बोला.

‘‘आधी रात को फोटोग्राफर को भी खबर हो गई,’’ एक पुलिस वाला बोला.

इस पर अनुपम से अब चुप न रहा गया. वह बोला, ‘‘मैं फोटोग्राफर नहीं अखबार वाला हूं. मैं साथ के कमरे में ठहरा हुआ हूं. शोर सुन कर यहां आ गया.’’

‘‘यह तो और भी अच्छा हुआ. अखबार वाला फोटो और खबर भी अखबार में छाप देगा,’’ एक आदमी जोश से बोला.

‘यहां क्या हो गया है?’ अचानक कई लोगों ने एकसाथ सवाल किए.

‘‘इलाके का सांसद एक कालगर्ल के साथ अंदर मौजूद है. बारबार खटखटाने पर भी वह दरवाजा नहीं खोल रहा है.’’ यह सुन कर अनुपम ने कैमरा संभाल लिया.

पुलिस वाले दरवाजा खटखटा रहे थे, पर अंदर से कोई जवाब नहीं मिल रहा था.

‘‘दरवाजा खोल दो, नहीं तो तोड़ देंगे,’’ इस धमकी के बाद अंदर की बत्ती जल उठी. थोड़ी देर बाद दरवाजा खुला. नशे में धुत्त सिर्फ कच्छा पहने एक अधेड़ आदमी ने थरथराती आवाज में कहा, ‘‘कौन हो तुम लोग? जानते नहीं कि मैं इलाके का सांसद हूं. सब को अंदर करवा दूंगा.’’

इस पर बाहर जमा भीड़ गुस्सा हो गई. पुलिस वाले को एक तरफ धकेल कर कुछ लोग आगे बढ़े और उस सांसद को बाहर खींच कर उसे पीटने लगे.

कुछ लोग अंदर जा घुसे. तकरीबन अधनंगी काफी छोटी उम्र की एक लड़की डरीसहमी एक तरफ खड़ी थी. उस को भी बाहर खींच लिया गया. उस की भी पिटाई होने लगी.

‘‘अरे, यह अखबार वाला क्यों चुपचाप खड़ा है? फोटो क्यों नहीं खींचता?’’ कोई चीखा, तो अनुपम चौंक पड़ा. उस के कैमरे की फ्लैश लाइट बारबार चमकने लगी.

पुलिस वाले चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे. मामला एक लोकसभा सदस्य का था और वह भी सत्तारूढ़ दल के सांसद का. बात ऊपर तक जा सकती थी. लिहाजा, पुलिस वाले डंडा फटकारते हुए आगे बढ़ आए.

तब तक वह सांसद काफी पिट चुका था. लड़की की अच्छी धुनाई हुई थी. लोगों का गुस्सा अब ठंडा पड़ गया था.

सांसद को कमरे में ले जाया गया. उन्हें कपड़े पहनाए गए. लड़की भी कपड़े पहनने लगी. अपने कैमरे के साथसाथ अनुपम अपने मोबाइल फोन से भी काफी फोटो खींच चुका था.

सांसद अपनी बड़ी गाड़ी में वहां आए थे. साथ में ड्राइवर के अलावा सिक्योरिटी के लिए बौडीगार्ड भी था. सभी को थाने ले जाया गया. उन पर मुकदमा बनाया गया. भीड़ में से कइयों को गवाह बनाया गया. अनुपम को भी चश्मदीद गवाह बनाया गया.

सांसद को रातभर थाने में बंद रहना पड़ा. वजह यह थी कि एक तो मामला खुल गया था. दूसरे, विपक्षी दलों के छुटभैए नेता चश्मदीद गवाह थे. तीसरे, फौरन मामला दबाने पर जनता भड़क सकती थी.अगले दिन सांसद को अदालत में पेश किया गया. उन के खिलाफ नारेबाजी करने वालों में विपक्षी दलों से ज्यादा उन की अपनी पार्टी के लोग थे.

मजिस्ट्रेट ने सांसद को 15 दिन की न्यायिक हिरासत में जेल भेजा और लड़की को नारी निकेतन भेज दिया. सभी गवाहों के नाम रिकौर्ड में ले लिए गए. उन को ताकीद की गई कि जब भी गवाही का सम्मन मिले, उन को गवाही देने आना होगा.

अनुपम ने अपने अखबार को रात को मोबाइल फोन से फोटो और सारी खबर एसएमएस से कर दी और फोन पर भी बता दिया था.अखबार ने यह खबर प्रमुखता से छापी थी.

सैमिनार में हिस्सा ले कर अनुपम वापस लौट आया. अपने महकमे के इंचार्ज दिनेश को उस ने जोशजोश में सब बताया और कहा कि जल्द ही उसे गवाही का सम्मन आएगा और वह गवाही देने जाएगा.

इस पर दिनेश ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम एक अनाड़ी पत्रकार हो. ऐसे मामले में ज्यादा जोश नहीं दिखाते हैं. तुम्हें कोई सम्मन नहीं आएगा. थोड़े दिनों बाद मामला ठंडा पड़ जाएगा. जनता की याद्दाश्त कमजोर होती है. वह समय बीतने के साथ सब भूल जाती है.’’

‘‘मगर विपक्षी दलों के नेता भी गवाह हैं. क्या वे मामला ठंडा पड़ने देंगे?’’ अनुपम ने पूछा.

‘‘थोड़े समय तक हलचल रहेगी, फिर मामला ठंडा हो जाएगा. सभी दलों के नेता इस तरह की करतूतों में फंसते रहते हैं. एकदूसरे से काम पड़ता रहता है, इसलिए कोई भी मामला गंभीर रूप नहीं लेता,’’ दिनेश ने कहा.

‘‘मगर, मेरे पास फोटो हैं.’’

‘‘तुम इस में एक पार्टी नहीं बने हो. न वादी हो, न प्रतिवादी. जब तक तुम्हें गवाही के लिए न बुलाएं, तुम खुद कुछ नहीं कर सकते.’’

फिर हफ्ते पर हफ्ते बीत गए. महीने बीत गए. गवाही का सम्मन कभी नहीं आया. कसबे के लोगों को भी याद नहीं रहा कि यहां एक सांसद कालगर्ल के साथ पकड़ा गया था. धीरेधीरे अनुपम भी इस कांड को भूल गया.

तलाक न लेने की सजा: आयशा ने जब अलापा तलाक का राग

भोपाल शहर के निशातपुरा इलाके में 4 जनवरी, 2018 को एक अधेड़ उम्र की औरत शबनम आग से बुरी तरह झुलस गई थी. पहले तो यह केस खुदकुशी की कोशिश का लगा. लेकिन निशातपुरा थाने की पुलिस ने जांच की तो जो हकीकत सामने आई सभी चौंक गए. पता चला कि वह 52 साल के सलीम खान की तीसरी पत्नी थी और उसे एक सोचीसमझी साजिश के तहत जलाया गया था.

दरअसल शबनम का पति सलीम खान सिक्योरिटी गार्ड था. 11 बच्चे होने के बाद भी वह चौथी शादी करने की कोशिश कर रहा था. उस का बड़ा बेटा 18 साल का हो चुका था. इस के बावजूद उस ने चौथी शादी थी.

पुलिस को इस मामले की खबर एक दिन बाद यानी 5 जनवरी को लगी तो थाना निशातपुरा के टीआई चैनसिंह रघुवंशी ने एसआई संतराम खन्ना को हमीदिया अस्पताल भेज दिया क्योंकि आग से झुलस जाने के बाद शबनम उसी अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी.

एसआई संतराम खन्ना बिना वक्त गंवाए हमीदिया अस्पताल पहुंच गए. वहां शबनम की हालत चिंताजनक बनी हुई थी. अस्पताल में सलीम खान के परिवार के और लोग भी मौजूद थे. संतराम खन्ना ने जब शबनम और अन्य लोगों से बात की तो इस वारदात के पीछे की जो कहानी सामने आई वह इस प्रकार निकली—

सलीम एक मामूली नौकरीपेशा इंसान था. उस की पहली शादी शहनाज नाम की एक लड़की से हुई थी. लेकिन शादी के कुछ दिनों बाद कुछ ऐसे हालात पैदा हो गए कि बहुत जल्द शहनाज से उस का तलाक हो गया. सलीम एक मामूली आदमी था. जैसेतैसे कर के उस की शादी शहनाज से हुई थी. उस से तलाक के बाद सलीम इस फिक्र में लग गया कि अब उस की दूसरी शादी कैसे होगी.

पर इस मामले में सलीम की किस्मत औरों से काफी जुदा निकली. तभी तो कुछ ही दिनों में उस की दूसरी शादी हो गई. दूसरी बीवी से सलीम के 7 बच्चे हुए. सलीम फकीर बिरादरी से था. उस की बिरादरी के अधिकांश लोग भीख मांगा करते थे. इसलिए परिवार बढ़ने की उसे कोई चिंता नहीं हुई.

उस का खर्च समाज से पूरा हो रहा था. बच्चे जब थोड़े बडे़ हो गए तो वह भीख मांगने लगे. वहीं दूसरी ओर सलीम की पत्नी भी आसपड़ोस के घरों में साफसफाई करने और खाना बनाने का काम करने लगी. कुल मिला कर सारा घर अपने खानेपीने का इंतजाम खुद ही कर लेता था. भीख मांग कर शौक तो पूरे नहीं किए जा सकते. लेकिन उस की जिंदगी बदस्तूर चल रही थी.

इसी बीच सलीम की दूसरी पत्नी भी उसे छोड़ कर चली गई तो सलीम ने 35 वर्षीय शबनम नाम की एक महिला से शादी कर ली. शबनम भी तलाकशुदा थी. उस के पास 2 बच्चे पहले से थे. सलीम से शादी के बाद वह 2 बच्चों की मां और बन गई.

अब उस के परिवार में 11 बच्चे हो गए थे. शबनम समझदार और सुलझी हुई महिला थी. वही अपने और सलीम के सारे बच्चों की परवरिश कर रही थी. बाद में सलीम शांति अपार्टमेंट में गार्ड की नौकरी करने लगा.

11 बच्चे होने के बावजूद सलीम ने शबनम के होते हुए आयशा से चौथी शादी कर ली. लेकिन उस ने यह बात काफी दिनों तक शबनम से छिपाए रखी.

उस ने अपनी चौथी बीवी को अपने घर में न रख कर कुछ दूरी पर भानपुर में एक किराए के मकान में रखा था. वह आयशा को हर महीने खर्च के लिए लगातार पैसे भेजता और वहीं पर उस से मिलने जाता रहता था.

पर आयशा से शादी वाली बात वह शबनम से ज्यादा दिनों तक नहीं छिपा सका. शबनम को जब यह जानकारी मिली तो उसे बहुत गुस्सा आया. शबनम ने सलीम से शिकायत की, ‘‘मैं तुम्हें इतना प्यार करती हूं, बच्चों की देखभाल कर रही हूं. तो ऐसी क्या मजबूरी आ गई जो तुम ने आयशा से शादी कर ली. तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था.’’

‘‘तुम्हें मेरी शादी से कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए. क्योंकि जिस तरह पहले से चलता आ रहा है, ठीक वैसे ही अब भी चलता रहेगा. आयशा भी एक तलाकशुदा औरत है. वो परेशान थी तो मैं ने उसे अपने यहां एक तरह से आश्रय दिया है.’’ सलीम ने सफाई दी.

‘‘शहर में और भी तमाम तलाकशुदा महिलाएं हैं. उन्हें भी आश्रय दे दो. वो भी बेचारी न जाने कहांकहां धक्के खा रही होंगी.’’ शबनम ने कटाक्ष किया.

‘‘तुम तो बेवजह पेरशान हो रही हो. उस के आने पर तुम्हारे प्यार में कमी नहीं आने दूंगा. इसलिए तुम कोई चिंता मत करो.’’ सलीम ने उसे फिर समझाने की कोशिश की. लेकिन इतनी बड़ी बात को शबनम भला कैसे स्वीकार कर सकती थी, लिहाजा वह पति से खूब झगड़ी. कुछ ही दिनों बाद इस बात को ले कर अकसर ही घर पर झगड़ा होने लगा.

आयशा अपने पहले शौहर को तलाक दे कर अपनी मां के साथ एक छोटे से घर में रहती थी. पर अब तो सलीम ने उसे एक किराए का कमरा दिला दिया था. सलीम हर महीने उसे खर्च के पैसे देता रहता था. पर आयशा ने अब एक जिद यह पकड़ रखी थी कि वह शबनम से तलाक दे कर उसे अपने घर पर रखे.

सलीम शबनम को तलाक देने के लिए राजी नहीं था. इसी बात को ले कर दोनों में पहले तो सिर्फ बहस होती. लेकिन जल्दी ही इस मुद्दे के तूल पकड़ते देर न लगी. सलीम के दिए पैसों से मांबेटी का खर्च चलता था.

दिसंबर 2017 में इत्तफाक से सलीम को अपने तय वक्त पर तनख्वाह नहीं मिली तो वह आयशा को समय पर खर्च के लिए पैसे नहीं भेज पाया. जब भी सलीम उसे समय से पैसे नहीं भेज पाता तो आयशा अपनी मां के साथ सलीम के घर आ धमकती थी. इस के लिए मांबेटी शबनम को दोषी मानती थीं. वह दोनों आते ही शबनम पर हावी हो जाती थीं.

आयशा शबनम पर इस बात का दबाव बनाती कि वह सलीम से जल्द तलाक ले कर वहां से चली जाए ताकि वह इस घर में आ कर रह सके. पर शबनम आयशा की बातों को अनसुना कर देती.

दिसंबर के महीने में भी वह दोनों घर आ कर शबनम से झगड़ने लगीं. आयशा की मां वसीमा बी आग बबूला हो गई. होहल्ला सुन कर आसपास के लोग भी अपने घरों से बाहर निकल कर दोनों को समझाने लगे. इतने में किसी ने सलीम को फोन कर के इस की जानकारी दे दी.

सलीम उस समय शांति अपार्टमेंट में अपनी ड्यूटी पर था. वह दूसरे गार्ड को थोड़ी देर में लौट आने की बात बोल कर जल्दी से घर आ गया. उस समय घर पर महाभारत छिड़ी हुई थी. सलीम ने आते ही आयशा को समझाया कि यहां पर मत लड़ो, सब लोग देख रहे हैं. आयशा ने सलीम से गुस्से में कहा, ‘‘सब से पहले तो तुम शबनम को तलाक दो. तभी मैं तुम्हारे साथ रहूंगी.’’

सलीम ने उसे समझाने की पूरी कोशिश की, लेकिन आयशा इसी बात पर अड़ी रही. सलीम के साथ पड़ोस के लोगों के समझाने के बाद आयशा थोड़ी ठंडी पड़ी और झगड़ा खत्म कर लिया. झगड़ा खत्म होने पर सलीम ने राहत की सांस ली.

दोबारा ड्यूटी पर जाने से पहले सलीम ने शबनम और आयशा को समझाया, ‘‘मैं जा रहा हूं, इसलिए अब लड़ना नहीं.’’ कह कर सलीम वहां से चला गया. उसे लगा कि उस के समझाने के बाद दोनों नहीं लड़ेंगी. वह दोनों बीवियों की तरफ से बेफिक्र हो गया.

अभी सलीम अपार्टमेंट में इत्मीनान से खड़ा भी नहीं हुआ था कि एक पड़ोसी का फोन आ गया. अचानक फोन आने से सलीम को शंका हुई कि दोनों के बीच फिर से लड़ाई शुरू हो गई होगी? जैसे ही उधर से रूहकंपा देने वाली आवाज आई, वैसे ही सलीम ने बिना किसी को बताए घर की तरफ दौड़ लगा दी.

जब वह घर पर पहुंचा तो उस के घर के चारों तरफ मजमा सा लगा था. भीड़ देख कर सलीम को पूरा यकीन हो गया था कि कोई बड़ी बात हो गई है. करीब पहुंच कर देखा तो उस की तीसरी बीवी शबनम पूरी तरह आग में जली एक तरफ पड़ी थी और चारों ओर देखने वालों की भीड़ लगी थी, मामले की गंभीरता की गवाही दे रही थी.

जैसेतैसे शबनम को हमीदिया अस्पताल में भरती कराया गया. डाक्टरों ने देखते ही हाथ खडे़ कर लिए. क्योंकि उन्हें मालूम था कि शबनम इस दुनिया में बमुश्किल एकदो दिनों की मेहमान है. सलीम ने डाक्टर के सामने अपनी बीवी को बचाने की गुहार लगाई. वह किसी भी कीमत पर शबनम को खोना नहीं चाहता था. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बावजूद शबनम ने दम तोड़ दिया.

पता चला कि 4 जनवरी, 2018 को जब आयशा अपनी मां के साथ सलीम के पहले घर पर आ धमकी तो उस की बीवी शबनम से बहस होने लगी थी. जिसे बाद में सलीम ने आ कर शांत करा दिया था. उस के बाद हुआ ये कि एक बार फिर से दोनों सौतनों में तलाक को ले कर बहस शुरू हो गई थी.

उस समय शबनम की बेटी चूल्हे पर खाना बना रही थी. बात अचानक से इतनी बढ़ गई कि आयशा और उस की मां ने मिल कर शबनम को धक्का दे कर जमीन पर गिरा दिया, जिस वजह से उस के सिर और हाथ में चोट लग गई.

शबनम इस के लिए बिलकुल भी तैयार  नहीं थी कि वह अपने शौहर को तलाक दे. उस ने आयशा से साफ कह दिया था कि जब मैं ने अभी तक सलीम की पहली बीवी के बच्चों को एक मां की तरह पालापोसा है, तो अब तलाक ले कर कहां जाऊंगी.

इस बात को सुन कर आयशा को तैश आ गया. उस ने कहा कि तुम जहन्नुम में जाओ या कहीं और, मुझे इस से मतलब नहीं है. लेकिन तुम्हें सलीम से तलाक लेना ही पड़ेगा.

उन्होंने जब देखा कि शबनम अपने इरादे पर अटल है तो आयशा झगड़ा करने पर उतारू हो गई. इसी दौरान वसीमा बी ने अपनी बेटी आयशा से कहा कि देखती क्या है इस करमजली के ऊपर केरोसीन डाल कर आग लगा दे.

यह सुन कर आयशा ने पास ही रखा केरोसीन का गैलन उठाया और जमीन पर गिरी पड़ी शबनम पर उस की बेटी के सामने ही डाल कर जलती हुई माचिस की तीली उस की तरफ उछाल दी.

एक छोटी सी चिंगारी शबनम पर पड़ते ही आग का गोला बन गई. गुस्से में आयशा ने इतना बड़ा कदम तो उठा लिया, लेकिन बाद में पुलिस केस होने की बात सोच कर वह डर गई.

आयशा और उस की मां ने सलीम के साथ मिल कर शबनम को हमीदिया अस्पताल में भरती कराया और शबनम से बोलीं कि तुम पुलिस को इस की गवाही मत देना. हम लोग तुम्हारा इलाज करा देंगे. जिस से तुम पहले की तरह ठीक हो जाओगी.

पहले तो शबनम को उन की बातों पर भरोसा हो गया. लेकिन जब अपनी हालात देखी तो उसे अपने मासूम बच्चों की फिक्र सताने लगी. जिस से वह परेशान हो गई. उस ने बाद में एसआई संतराम खन्ना को पूरी सच्चाई बता दी. इस के साथ शबनम ने मजिस्ट्रैट के सामने भी मौत से जद्दोजहद करते हुए पूरी घटना के बारे में जानकारी दे दी.

निशातपुरा पुलिस ने मौके का मुआयना कर के आग लगाने के सबूत इकट्ठे कर लिए. आयशा और उस की मां पर भादंवि की धारा 307 और 34 के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. शबनम की सौतन आयशा जल्दी ही पुलिस के हत्थे चढ़ गई.

उस की शातिर मां वसीमा बी पुलिस को चकमा देने में कामयाब रही. पुलिस ने वसीमा बी की धरपकड़ के लिए उस के घर पर दबिश दी. लेकिन पुलिस टीम को खाली हाथ लौटना पड़ा. वसीमा बी की तलाश में पुलिस ने कई जगह छापेमारी की, लेकिन उस का कहीं पता नहीं चल सका.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंदिर का मालिक पुजारी नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में कहा है कि किसी भी मंदिर का मालिक पुजारी नहीं हो सकता है. वह सिर्फ सेवक या किराएदार के रूप में काम कर सकता है. इस का अर्थ है कि वह मंदिर की जमीन को न किराए पर चढ़ा कर अपनी जेब भारी कर सकता है और न ही जमीन किसी को बेच सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने मंदिरों की मिलीभगत से पुजारियों के नाम हटाने की हिदायत दी है और उन की जगह देवता का नाम डालने का आदेश दिया है. वैसे यह निर्णय डेढ़ साल पहले दिया गया था पर उस का असर अभी दिखा नहीं है.

असल में मंदिर, चर्च, मसजिद और गुरूद्वारे की जमीनों को और दूसरी संपत्तियों को ले कर विवाद चलते रहते हैं. बहुत से पुजारी मंदिर की जमीन को बेच देते हैं और कुछ पैसा मंदिर के अकाउंट में जमा कर के बाकी अपना घर सुधारने के लिए इस्तेमाल करने लगते हैं.

इस पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए. पुराणों में बारबार दक्षिणा की महिमा गाई है. हर आश्रम किसी ऋषि का होता था, आम जनता का नहीं. राजा तक को वहां अतिथि के कण में ही रहने की इजाजत होती थी ऋषिमुनि के अलावा वहां अन्य सब सेवक होते थे. औरतें और लड़कियां भी दान में ली जाती थी. जिन का उपयोग आश्रम के मालिक करते थे. आज यह बात पलटी जाएगी तो अधर्म होगा.

हर धर्म और ङ्क्षहदू धर्म खासतौर पर पैसे पर टिका है. धर्म ने ईश्वर की कल्पना सिर्फ लोगों से पैसा एकत्र करने के लिए की है. राजाओं ने उसे बल दिया और कमजोर बेचारी जनता के पास राजा और कहानी किस्से कहने वालों की बातें मानने के अलावा कोई चारा भी नहीं था.

इस 2019 का मामले में फैसला मध्य प्रदेश सरकार के 1973 के कानून के अंतर्गत 1994 व 200 के आदेशों पर आया जिन में राज्य सरकार ने मंदिरों के पुजारियों के नाम रेवन्यू रिकार्ड से हटा देने के आदेश दिए थे. सुप्रीम कोर्ट ने वेक्त कानूनों की व्यवस्था की है पर इस का मतलब है कि जिस पुजारी के माध्यम से भक्त अपना वर्तमान व भविष्य सुधारने के लिए भगवान की अर्चनापूजा करते हैं, उसे दानदक्षिणा देते हैं वह तो बेचारा खुए एक सेवक है. उसकी संपत्ति भगवान की मूॢत या मंदिर तक नहीं है. वह भगवान जो अपने मंदिर के पुजारी को संरक्षण व सुविधा नहीं दे सकता. भक्तों को कैसे देगा.

मंदिरों के निर्माणों में लगने वाला पैसा एक रैकेट है क्योंकि आमतौर पर भक्त इस दान में एक बार दिए पैसे का हिसाब नहीं मांगा. जब मंदिरों की निरर्थकता पर बहस की जाती है तो जुमले उछाल दिए जाते है कि वे अंदर हजारों को रोजीरोटी देते है, कुछ स्कूलकालेज चलाते हैं, कुछ अस्पताल भी चलाते हैं. पर यह नहीं भूलना चाहिए कि यह सब मंदिरों में चढ़ाए पैसे के बल पर होता है और यह पैसा ब्रेनवाश कर के चढ़वाया जाता है.

जो पुजारी अपने विवादों के लिए कोर्ट की शरण में जाते हैं वे आखिर कैसे भगवान को एक भक्त को अदालत में चल रहे उस के किसी भी मामले में तरफदारी करने की सिफारिश कर सकते हैं. पुजारी अब मालिकों की तरह व्यवहार नहीं करेंगे, यह समझने की भूल न करना, वे नेताओं की तरह अपने को समाज का मालिक मानते रहेंगे.

मैं तो कुछ नहीं खाती : आप कौन सा उपवास रखती हैं

अपना देश उपवासों का देश है. हर माह, हर सप्ताह, हर रोज कोई न कोई त्योहार आते ही रहते हैं. दीपावली, होली जैसे कुछ खास त्योहारों को छोड़ दिया जाए, जिन में मिठाइयां,चटपटे नमकीन पकवानों का छक कर उपयोग किया जाता है तो शेष त्योहारों में महिलाओं द्वारा उपवास रख कर पर्वों की इतिश्री कर दी जाती है.

कुछ उपवास तो निर्जला होते हैं. ये उपवास औरतों के लिए चुनौतीपूर्ण होते हैं. साथ ही सहनशीलता का जीताजागता उदाहरण भी हैं. आम औरतें तो बिना अन्न खाए रह सकती हैं मगर बिना पानी के रहना सच में साहस भरा कदम है. यह उपवास हरेक के बूते का रोग नहीं होता. घर में पानी से भरे मटके हों, फ्रिज में पानी से भरी ठंडी बोतलें हों, गरमी अपना रंग दिखा रही हो, गला प्यास से सूख रहा हो और निर्जला व्रत रखने वाली महिलाएं इन से अपना मुंह मोड़ लें. है न कमाल की बात. ठंडी लस्सी, शरबत, केसरिया दूध की कटोरी को छूना तो दूर वे इस सुगंधित स्वादिष्ठ पेय की ओर देखती तक नहीं हैं. धन्य है आर्य नारी, सच में ऐसी त्यागमयी मूर्ति की चरण वंदना करने को मन करता है.

ऐसा निर्जला उपवास करने वाली औरतों की संख्या उंगलियों पर होती है मगर खापी कर उपवास करने वाली घरेलू औरतें हर घर में मिल जाती हैं जो परिवार के स्वास्थ्य, सुखसमृद्धि के लिए गाहे- बगाहे उपवास करती रहती हैं. उपवास के नाम पर वे अन्न त्याग करने में अपनी जबरदस्त आस्था रखती हैं.
प्रात:काल स्नान कर घोषणा करती हैं कि उन का आज उपवास है. वह अन्न ग्रहण नहीं करेंगी. मगर फलाहार के नाम पर सब चलता है. मौसमी फलों की टोकरियां इस बात का प्रमाण होती हैं कि परिवार की महिलाएं कितनी सात्विक हैं. श्रद्धालु हैं, त्यागी हैं.

ऐसे तीजत्योहार में वे अनाज की ओर देखती तक नहीं हैं. बस, फल के नाम पर कुछ केले खा लिए. पपीता या चीकू की कुछ फांकें डकार लीं. कोई पूछता तो गंभीरता से कहती, ‘‘मैं तो कुछ खाती नहीं बस, थोड़े से भुने काजू ले लिए. कुछ दाने किशमिश, बादाम चबा लिए. विश्वास मानिए, मैं तो कुछ खाती नहीं. खापी कर उपवास किया तो उपवास का मतलब ही क्या रह गया.’’

‘‘आप सच कहती हैं, बहनजी. स्वास्थ्य की दृष्टि से सप्ताह में एक दिन तो अन्न छोड़ ही देना चाहिए. क्या फर्क पड़ता है यदि हम एक दिन अनाज न खाएं?’’ एक ही थैली की चट्टीबट्टी दूसरी महिला ने हां में हां मिलाते हुए कहा.

उपवास वाले दिन परिवार का बजट लड़खड़ा कर औंधेमुंह गिर जाता है. सिंघाड़े की सेव कड़ाही के तेल में तली जाने लगती है. कद्दू की खीर शुद्ध दूध में बनाई जाने लगती है. फलाहारी व्यंजन के नाम पर राजगीरा के बादशाही रोल्स बनने लगते हैं. फलाहार का दिन हो और किचन में सतरंगी चिवड़ा न बने, ऐसा कैसे हो सकता है? फलाहारी पकवान ही तो संभ्रांत महिलाओं को उपवास करने के लिए प्रेरित करते रहते हैं.

नएनए फलाहारी पकवान सुबह से दोपहर तक बनते रहते हैं. घरेलू औरतों के मुंह चलते रहते हैं. पड़ोस में फलाहारी पकवानों की डिश एक्सचेंज होती रहती हैं. एकदूसरे की रेसिपी की जी खोल कर प्रशंसा होती है, ‘‘बड़ा गजब का टेस्ट है. आप ने स्वयं घर पर बनाया है न?’’ एक उपवासव्रता नारी पूछती है.

‘‘नहीं, बहनजी, आजकल तो नएनए व्यंजनों की विधियां पत्रपत्रिकाओं में हर माह प्रकाशित होती रहती हैं. अखबारों के संडे एडीशन तो रंगीन चित्रों के साथ रेसिपीज से पटे रहते हैं. इसी बहाने हम लोग किचन में व्यस्त रहती हैं. आप को बताऊं हर टीवी चैनल वाले दोपहर को किचन टिप्स के नाम पर व्यंजन प्रतियोगिताएं आयोजित करते रहते हैं. ऊपर से पुरस्कारों की भी व्यवस्था रहती है. हम महिलाओं के लिए दोपहर का समय बड़े आराम से व्यंजन बनाने की विधियां देखने में बीत जाता है.

‘‘मैं तो कहती हूं, अच्छा भी है जो ऐसे रोचक व उपयोगी कार्यक्रम हमें व्यस्त रखते हैं, नहीं तो आपस में एकदूसरे की आलोचना कर हम टाइम पास करती रहती थीं. जब से मैं ने व्यंजन संबंधी कार्यक्रम टीवी पर देखने शुरू किए हैं विश्वास मानिए, पड़ोसियों से बिगड़े रिश्ते मधुर होने लगे हैं. मैं भी उपवास के नाम पर अब किचन में नएनए प्रयोग करती रहती हूं ताकि स्वादिष्ठ फलाहारी व्यंजन बनाए जा सकें.’’

विशेष पर्वों पर फलाहारी व्यंजन के कारण बाजार में सिंघाड़े, मूंगफली, राजगिरा, सूखे मेवे, तिल, साबूदाना और आलू जैसी फलाहारी वस्तुओं के भाव आसमान छूने लगते हैं. उपवास की आड़ में तेल की धार घर में बहने लगती है. नए परिधान में चहकती हुई महिलाएं जब उपवास के नाम पर फलाहारी वस्तुएं ग्रहण करती हैं, सच में वे काफी सौम्य लगती हैं. उन का दमकता चेहरा दर्शाता है कि उपवास रहने में सच संतोष व आनंद की अनुभूति होती है. बस, दुख इसी बात का रहता है कि हर नए व्यंजन का निराला स्वाद चटखारे के साथ लेते हुए कहती रहती हैं, ‘‘मैं तो कुछ खाती नहीं.’’

मूंगफली और आलू का सलाद

मूंगफली में प्रोटीन प्रचुर मात्रा में होता है और आलू में कार्बोहाइड्रेट, तो यह सलाद स्वादिष्ट होने के साथ-साथ बहुत पौष्टिक भी है और ऊर्जा भी प्रदान करता है तो आइए बताते है आप कैसे मूंगफली और आलू की सलाद बना सकती हैं.

– खीरे 4 मध्यम

– उबले आलू 4 मध्यम

– ¼ कप भुनी मूंगफली

– हरी मिर्चें 2-4

– सेंधा नमक 1 छोटा चम्मच/ स्वादानुसार

– लालमिर्च पाउडर स्वादानुसार

– शकर 1 छोटा चम्मच

– नींबू का रस 2 बड़ा चम्मच

– कटी हुई हरी धनिया 2 बड़ा चम्मच

बनाने की विधि :

– एक कड़ाही को मध्यम आंच पर गरम करें और इसमें मूंगफली को मध्यम आंच पर लगभग 5 मिनट के   लिए भूनें.

– जब मूंगफली भुन जाएगी तो उनका रंग बदल जाएगा और यह बहुत सुगंधित भी हो जाएगी. अब             मूंगफली को कूटनी में दरदरा कूट लें.

– हल्के से फटककर मूंगफली के छिल्के हटा दें और अब इसे अलग रखें.

–  खीरे का छिल्का हटाकर उसे अच्छे से धो लें और खीरे को लगभग आधा इंच के टुकड़ों में काट लें.

– उबले आलू का छिल्का हटाकर उसे भी लगभग आधा इंच के टुकड़ों में काट लें.

–  हरी मिर्च का डंठल हटाकर और उसे अच्छे से धो लें और हरी मिर्च को बारीक काट लें.

– अब एक कांच के कटोरे में कटे खीरे, उबले आलू, भुनी और कूटी मूंगफली, कटी हरी मिर्च और कटा हरा   धनिया लें.

– एक छोटी कटोरी में नींबू का रस, शकर, सेंधा नमक और लालमिर्च लें व सभी सामग्रियों को अच्छे से   मिलाएं.

– अब नींबू का मिश्रण सलाद के ऊपर डालें और इसे खीरे व आलू में अच्छे से मिलाएं.

– स्वादिष्ट सलाद अब तैयार है परोसने के लिए.

बंजर जमीन- भाग 1 : बंजर होते रिश्तों की जमीनी हकीकत

शाम को जब मैं कोर्ट से लौटा तो जैसे घर में सब मेरा ही इंतजार कर रहे थे. स्कूटर की आवाज सुन कर बिट्टू और नीरू दौड़ कर बाहर आ गए. मैं स्कूटर खड़ा भी नहीं कर पाया था कि बिट्टू लपक कर मेरे पास आ गया और उत्साहित हो कर बताने लगा, ‘‘पापा, आप को मालूम है?’’ मैं ने स्कूटर की डिग्गी से केस फाइल निकालते हुए पूछा, ‘‘क्या, बेटा?’’ ‘‘वह पिंकी के पापा हैं न…’’ ‘‘हां, उन्हें क्या हुआ?’’ ‘‘उन्होंने नई कार खरीदी है. देखिए न उधर, वह खड़ी है. कितना अच्छा कलर है.’’

मैं ने दाहिनी ओर मुड़ कर देखा. बगल वाले फ्लैट के सामने नई चमचमाती कार खड़ी थी. तब तक नीरू भी पास आ गई थी. वह आगे की जानकारी देते हुए बोली, ‘‘पापा, नए मौडल की कार है. पिंकी बता रही थी. बहुत महंगी है.’’ ‘‘अच्छा,’’ मैं ने भी बच्चों की खुशी में शामिल होते हुए आश्चर्य प्रकट किया. बिट्टू और करीब आ गया और मुझ से लिपटते हुए बोला, ‘‘मैं तो पिंकी के साथ कार में बैठा भी था. अंकल हम दोनों को घुमाने ले गए थे. खूब मजा आया. उन्होंने हमें मिठाई भी खिलाई,’’ फिर मचलते हुए बोला, ‘‘पापा, हम लोग भी कार खरीदेंगे न?’’ मैं ने बिट्टू को गोद में उठा लिया और प्यार करते हुए कहा, ‘‘जरूर खरीदेंगे.’’ फिर मैं भीतर चला गया और थोड़ी देर तक बच्चों को प्यार से तसल्ली देता रहा. मेरे आश्वासन पर दोनों खुश हो गए और उछलतेकूदते बाहर खेलने चले गए.

 

कोट उतार कर हैंगर पर लटका दिया, फिर सोफे पर पसरते हुए सविता को आवाज लगाई, ‘‘सविता, एक कप चाय लाना.’’ सविता को भी शायद मेरा ही इंतजार था. बच्चों के साथ बात करते हुए उस ने सुन लिया था, इसीलिए चाय का पानी शायद पहले ही चूल्हे पर चढ़ा चुकी थी. चाय की ट्रे सामने टेबल पर रख कर वह मेरे करीब बैठते हुए बोली, ‘‘आप ने तो बच्चों के मुंह से सुन लिया होगा और बगल वाले फ्लैट के बाहर देखा भी होगा. गौतम भाईसाहब ने नई कार खरीदी है. उन की पत्नी दोपहर में कार खरीदने की खुशी में मिठाई दे गई हैं.’’ फिर मिठाई मेरी ओर सरकाते हुए एक लंबी सांस लेती हुई बोली, ‘‘लीजिए, मुंह मीठा कीजिए, आप के दोस्त ने नई गाड़ी खरीदी है,’’ वाक्य का अंतिम छोर जानबूझ कर लंबा खींचा गया था, ताकि मैं समझ जाऊं कि सूचना के साथसाथ मेरे लिए एक उलाहना भी है.

 

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