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Mother’s Day 2023- उमंग: पत्नी बनने से पहले ही मैं मां बन गई

‘मां‘ कितना प्यारा, कितना मीठा है यह शब्द. शायद विश्वभर में सब शब्दकोषों में सब से मीठा. कौन स्त्री नहीं चाहती मां बनना. मैं भी चाहती थी. जितनी ब्याही सहेलियां थीं, सब मुझे मां बनने के सुख बयान करती रहतीं – ”प्रसव पीड़ा का भी अपना आनंद है. सहोगी तो समझोगी.

मन रोमाचिंत हो उठा, जब कान में भनक पड़ी कि मौसी एक रिश्ता ले कर आई हैं. पर बात वहां नहीं बनी, और कही भी नहीं. बहुत वर देखे, पर किस्मत में विवाह नहीं था शायद.

मैं इतना तो नहीं, जितना मेरे मांबाप मायूस थे. उन की तलाश नाकाम होती नजर आने लगी. हताश हो गए थे वे. तीनतीन बेटियां. तीनों ही ब्याहनेलायक और एक दिन अचानक जैसे रिश्ता सीधा स्वर्ग से ही आया हो. सुंदर, लंबा, अच्छे खानदान का. शादी सीधीसादी व बिना दानदहेज. लंगड़ा क्या चाहे दो बैसाखियां. मांबाप ने झट हां कर दी.

और मैं मां बन गई. पत्नी बनने से पहले. रिश्ता एक विधुर से आया था. 2 बच्चों के पिता थे. 3 साल पहले एक दुर्घटना में उन की पत्नी का स्वर्गवास हुआ था.

एक बार तो चाहा कि मना कर दूं, पर मांबाप की मूक प्रार्थना, और बहनों का विवाह मेरे कारण न हो, मैं गवारा न कर सकी और एक बलि के बकरे की तरह बैठ गई विवाह मंड़प पर.

विवाह के दिन खूब छेड़छाड़ हुई. कोई मुबारक दे रहा था अमीर घर की, तो कोई अनुभवी पति की, तो कोई बनेबनाए परिवार की. मैं बन गई एक अमीर राजन श्रीवास्तव की पत्नी.

ऐसा देख कई लोगों को रश्क भी हुआ. बढ़ती उम्र में भी मुझे इतना अच्छा घरवर मिल गया. सौतेले बच्चे हैं तो क्या…? पति तो ज्यादा उम्र के नहीं. पैंतालिस साल के आसपास.

ससुराल आई. 2 महीने आंख झपकते ही बीत गए. मैं भूल गई थी कि मेरे पति सिर्फ पति ही नहीं एक पिता भी थे.

एकदम स्वर्ग से धरातल पर आई उस दिन जब राजन ने कहा, “तुम कहो, तो सोनम और सोनाली को अब बुला लें. स्कूल भी खुलने वाले हैं. कब तक रहेंगे मां के पास?”

”सोनम, सोनाली?“ मैं ने हैरान हो कर पूछा.

“हां सोनम, सोनाली, हमारे बच्चे,” हंस कर राजन ने जवाब दिया. वे फिर आगे समझाते हुए बोले, ”उन्हें मां ले गई थीं अपने पास कि हमें कुछ समय मिल जाए एकदूसरे को जानने के लिए.“

मन तो हुआ कह दूं कि कुछ और समय क्यों नहीं, पर कह न सकी. हां में सिर हिला दिया.

3 दिन बाद ही दरवाजे की दस्तक ने बता दिया कि बच्चे लौट आए थे अपनी दादी के साथ.

मैं ने यथावत पैर छुए सास के, पर न जाने किस अनजाने डर से मैं ने बच्चों की तरफ देखा भी नहीं. मैं चुपचाप यंत्रवत रसोईघर में चाय बनाने चली गई. और उस दिन के बाद मैं ने यह ही रवैया अपना लिया. काम से काम, कोई खास बात नहीं.

सास ने शुरूशुरू में मुझ से बात करने की कोशिश की कि मैं उन से घुलमिल जाऊं, पर मैं ने उस की अवहेलना की. सहेलियों ने पहले से ही सतर्क कर दिया था कि उन के झांसे में न आऊं-पति वश में है तो सब अपने काबू में. बस तनमन से मैं ने राजन की सेवा की.

कई बार मुझे राजन के चेहरे से लगा कि वह ज्यादा खुश नहीं थे. पर मुंह से मुझे कुछ नहीं जताया. कभीकभी मेरा मन आशंकित हो जाता था कि कहीं वह मेरी तुलना अपनी पहली पत्नी से तो नहीं करते. और उस तोल में पाते हो मेरा पलड़ा बहुत हलका.

राजेश की खामोशी मुझे बहुत डराती थी. जितना वे खामोश होते गए, मैं उतनी ही मस्त. मैं खुश थी. जिंदगी में पहली बार मैं ने अपनेआप को इतना आजाद पाया. कोई मुझे पूछने वाला नहीं था कि मैं ने कहां खर्च किया, कितना किया, कहां गई और कहां से आई.

सास ने अपना ध्यान बच्चों पर केंद्रित रखा था. मुझे तो कभीकभी रसोई में जा कर देखना पड़ता था कि नौकर ठीक से काम कर रहे हैं कि नहीं, बच्चों को मैं ने कभी कुछ नहीं पूछा. उन का दायित्व उन की दादी पर था. अगर उन को अहंकार है तो मैं भी कम नहीं. वो अगर मुझ से दूर रहना चाहते हैं तो यह दूरी ही सही. मुझ से नाखुश हैं तो मेरी बला से. नहीं चाहते थे तो अपने पिता से कह देते कि न करो दूसरी शादी. कौन से वह दूधपीते बच्चे थे. सोनाली 11 वर्ष की थी और यौन अवस्था की दहलीज पर थी, वहीं सोनम भी 9वें वर्ष में चल रहा था.

शादी मेरी राजन से हुई थी. कोई नौकरानी बन कर तो मैं आई नहीं थी कि बच्चों के कपड़ेखाने की फिक्र करती. मुझे क्या मतलब उन दोनों से. बड़ा समझते हैं अपनेआप को. ऐसी अकड़ कि एक बार भी मुझ से कुछ न कहा. कई बार मैं ने उन्हें अपने पिता से हंसतेबोलते देखा, पर जैसे ही मुझे देखते तीनों चुप हो जाते. मैं काम का बहाना बना कर उलटे पांव लौट जाती. सच अब मालूम हुआ था मुहावरे ‘कबाब में हड्डी‘ का अर्थ. कितनी निरर्थक सी बन गई थी मेरी जिंदगी. बहुत चाहते हुए भी मैं अपनी बात मां से नहीं कह सकी. मेरी शादी की देर थी कि छोटी बहनों के भी रिश्ते हो गए. होते भी क्यों नहीं. बड़ी लड़की इतने अच्छे घर में गई है, कुछ न कुछ तो बात होगी इस परिवार की बेटियों में.

राजन के कारण मेरी ही नहीं, मेरे मांबाप की प्रतिष्ठा भी स्थापित हो गई थी. वे तो राजन को देवता मानते थे. उस के बारे में कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे.

वैसे, मुझे कुछ खास शिकायत भी नहीं थी. बच्चे मुझे कभी तंग नहीं करते थे. कभी भी मुझे मौका नहीं दिया डांटने का. मैं ही मौके ढूंढती रहती थी अपने अस्तित्व का आभास कराने के लिए.

कभीकभी शाम को घूमने जाने लगते तो राजन मेरी तरफ ऐसे देखते जैसे कह रहे हों, “इन्हें भी साथ ले चलें.”

मैं ही जानबूझ कर अनजान सी बन जाती. पराए बच्चों के साथ क्या मजा इंडिया गेट पर आइसक्रीम खाने का. उन का मूक निवेदन मूक ही रह गया.

दिन हफ्तों में और महीने साल में बदल गए. सबकुछ मुझे उबाने लगा. दम घुटने लगा था मेरा ऐसे दमघोंटू वातावरण में.

मैं अपना ज्यादा से ज्यादा समय बाजार में व्यतीत करने लगी. ‘किटी पार्टियां‘ भी मुझे आकर्षित करती थीं. सभी मेरे रवैए को सराहते थे.

राजन मुझे कभी भी कुछ नहीं कहते और खुले दिल से पैसे देते. देरसवेर घर आने पर भी कभी शिकायत नहीं की.

कभीकभी सास ने दबी आवाज में बच्चों की ओर मुझे ध्यान देने को कहा, पर मैं ने उस को भी अनसुना कर दिया.

एक दिन मैं घर से निकलने लगी तो फोन की घंटी बज गई. फोन राजन का था. शाम को पार्टी में जाना था. काफी बड़ेबड़े लोगों ने आना था पार्टी में. वह पार्टी राजन के व्यापार से संबंधित थी. काफी महत्वपूर्ण था कि वे सब खुश हो जाएं. तैयार रहने का वादा कर मैं घर से निकल गई. ब्यूटीपार्लर में भीड़ होने के कारण लौटने में देर हो गई.

घर आ कर जल्दीजल्दी साड़ी चुनी और नौकर को तह हटाने के लिए प्रेस कर रखने को कह मैं नहाने चली गई. बाहर आई तो नौकर खाली हाथ खड़ा था.

”साड़ी कहां है,“ मैं ने चिड़चिड़ा कर पूछा.

“जी…जी…. वह….” हकलाया नौकर. वह आगे न बोला.

”कहता क्यों नहीं… कहीं जला तो नही दी,“ मैं ने गुस्से में तिलमिलाते हुए पूछा, “जा, जल्दी ला कर दिखा” आगे आदेश दिया.

तभी दरवाजे पर दस्तक हुई और मैं ने झल्लाहट में पूछा ”कौन है?“

”मैं हूं बहू,” सास ने नम्र आवाज में जवाब दिया. नौकर मेरा ध्यान बंटा देख वहां से सटक लिया.

”आ जाए,“ एक कटु जवाब दिया मैं ने. वे आईं और धीमी आवाज में बोलीं, “बहू, क्या कोई और साड़ी नहीं पहन सकती?”

”क्यों उस में क्या बुराई है?“ मैं ने चिढ़ कर पूछा.

“नहीं, बुराई तो कुछ भी नहीं, फिर भी… फिर भी…”

“फिर भी, अरे, यह भी कोई तर्क हुआ.“

“नहीं, मैं कह रही थी…“

”अब जल्दी करें मांजी, आप को पता है कि राजन आते होंगे और उन्हें इंतजार करना अच्छा नहीं लगता. जल्दी कर रामू,“ मैं ने उसी वाक्य में नौकर को भी आवाज दी.वह साड़ी ले आया, पर कभी मुझे तो कभी सास को देखने लगा.

“अब जा, मुझे तैयार होना है,” कह कर मैं ने उसे वहां से दफा किया.

सास के सामने शर्म किए बिना मैं ने गाउन उतारा और साड़ी बांधने लगी. पल्लू ठीक करते हुए मैं ने सास से फिर पूछा, ”क्या कह रही थीं आप?“

“वो… वो… साड़ी…नहीं, हां…वो शीला…” उन्होंने अटकअटक कर कुछ कहना चाहा.

‘शीला?‘ शीला तो राजन की पहली पत्नी का नाम था. सो, यह बात है. वे नहीं चाहतीं कि मैं शीला की मनपसंद रंग की साड़ी पहनूं. एक बार तो मन में आया कि उन की बात मान लूं, पर एक तो देर हो रही थी, दूसरा, मन में खटका हुआ कि कहीं यह उन की चाल तो नहीं.

शायद, वह मुझे सजा दिलवाना चाहती हैं उन के पोतेपोती को नजरअंदाज करने के लिए. मुझे साड़ी बदलने में देर लगेगी और राजन आएंगे और बिगड़ेंगे. मियांबीवी की लड़ाई का तमाशा देखेगी यह.

जी नहीं, मैं भी इतनी कच्ची गोलियां नहीं खेली. खूब जानती हूं इन सासों को. कोई भी नहीं चाहती कि उन का बेटा पत्नी से खुश रहे और उस के काबू में हो जाए. वह तो चाहती ही हैं कि मनमुटाव रहे. बेटा इसी तरह अपना बना रहता है.

मुझे रुकते न देख वो वापस मुड़ीं. अच्छा किया मैं ने, जो उन का कहना नहीं माना, क्योंकि उसी पल नीचे कार के रुकने की आवाज आई. राजन आ गए थे. मुझे तैयार देख कितने प्रसन्न होंगे. मैं मंदमंद मुसकाई और शीशे के आगे खड़ी बालों को आखिरी बार संवारने लगी. राजन आए और बोले, ”तो तैयार हो…“

उन के शब्द अधूरे ही रह गए और वह भौचक्के से मुझे देखते रहे. उन के चेहरे पर एक रंग आता तो दूसरा जाता.

यह देख मैं भी हैरान थी. किसी अनजाने अंदेशे से कांप गई. मैं ने हकला कर पूछा, “क्यों…? क्या हुआ…?”

कुछ जवाब दिए बिना वे उलटे पांव मुड़ गए और दरवाजा खोल कर तेजी से बाहर चले गए. तेज रफ्तार से गाड़ी चलाने की आवाज आई. मैं जड़वत वहीं खड़ी रही. सास ने शायद दरवाजा बंद होने और कार की आवाज सुन ली थी.

अपने कमरे से निकल कर वो मेरे पास आईं. एक खौफनाक सन्नाटा था पूरे घर में. मैं निःस्तब्ध वहीं खड़ी थी. सास ने सिर पर हाथ फेरा. पता नहीं उन की ममता थी या मेरी अपनी निर्बलता, मैं उन के गले लग रोने लगी.

वो प्यार से मेरे सिर पर, पीठ पर हाथ फेरने लगीं. बहुत देर तक हम यों ही खड़े रहे. जैसेतैसे मेरा रोना कम हुआ, तो मैं ने पूछा, ”साड़ी… साड़ी…?“

आगे कुछ न कह सकी मैं. उन्होंने जो बात बताई तो मैं स्तब्ध रह गई. कैसी बेवकूफ हूं मैं. अपने अहम से मैं ने अपने ही घर में आग लगाई. क्यों न करा विश्वास मैं ने, किसी अपने पर, उस से ज्यादा खुद अपने पर?

जिस दिन दुर्घटना हुई थी, शीला ने उस से बहुत ही मिलतीजुलती साड़ी पहनी थी. अनजाने में ही सही, मैं ने उस भयानक याद को जीतीजागती तसवीर बना दिया था. मेरे पश्चाताप के आंसू एक सैलाब बन कर आए और बहा कर ले गए अपने साथ मेरे मन के वहम.

बहुत बातें कीं हम सासबहू ने उस दिन. इंतजार जो करना था हम दोनों ने, और, कितने फासले तय करने थे. दीवार तोड़नी थी, जो मैं ने खड़ी करी थी, हम सब के दरम्यान.

बहुत रात गए राजन आए.

कार की आवाज सुन कर सास उठ बैठीं और मुझे सात्वंना व आश्वासन दे कर राजन के आने से पहले ही कमरे से चली गईं.

राजन अंदर आए. मैं ने धीरे से उन की तरफ देखा. राजन के चेहरे पर कोई भाव नहीं थे. मैं ने धीरे से झुक कर कहा, “मुझे माफ कर दो.”

राजन ने मुझे सहलाते हुए कहा, ”शायद कमी मेरे में, मेरे प्यार में थी. मैं तुम्हें तुम्हारा दर्जा नहीं दे सका.

“आप सब ने तो मुझे सब दे दिया. पर, खरा उतरने के डर ने मुझे ही एक अभिमन्यु बना दिया, जो अपने ही बनाए चक्रव्यूह से नहीं निकल पाया.”

अपनी गलतियों का विश्लेषण करतेकरते रात बीत गई. हम एकदूसरे के बहुत करीब आ गए. शारीरिक दृष्टि से हम पूर्ण थे, पर अब मानसिक दूरियां भी कम होती दिखाई दे रही थीं.

अगला सूरज हमारी जिंदगी में एक नया सवेरा ले कर आया. सुबह जब बच्चों ने मुझे उन का नाश्ता बनाते व स्कूल का टिफिन तैयार करते देखा तो हैरान रह गए.

मैं ने मंदमंद मुसकराते हुए कहा, ”अपनी नई मां को माफ कर सकोगे?“

बच्चे मुंह से तो कुछ न बोले, बस मुझ से आ कर लिपट गए.

यह देख मेरी आखें भर आईं. कितना कुछ खो जाता. मैं अपूर्ण रह जाती. वंचित रह जाती मां होने के आभास से, अगर कुछ दिन और घिरी रहती अपनी ही कुठाओं में.

एक साल बीतने को है. मैं तीसरी बार मां बनने वाली हूं. सोनम और सोनाली बहुत खुश हैं नए मेहमान का सुन कर और राजन के साथ मिल कर मेरा बहुत खयाल करते हैं.

सासू मां कुछ महीने पहले आश्वस्त हो गई थीं कि उन के पोतेपोती सौतेली मां के हाथों सताए नहीं जाएंगे. वह वापस जाना चाहती थीं अपने घर, पर बहुत मुश्किल से हम ने उन्हें रोके रखा. तब तक डाक्टर ने मेरी खबर की पुष्टि कर दी. तीसरे पोते या पोती का मुंह देखने की लालसा व मेरा खयाल रखने के लिए वो रुक गईं.

मैं यह तो नहीं कहूंगी कि हमारी लड़ाई नहीं होती. होती है, पर हर दूसरे आम घरों की तरह. सोनम रूठ जाता है टीवी ज्यादा देखे जाने पर मना करने पर, सोनाली कोपभवन में चली जाती है, जब उसे सहेली के घर देर रात तक नहीं रहने दिया जाता.

बस, ऐसा ही है हमारा परिवार. और अब मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं ‘मां‘ सब से मीठा शब्द है, जब वह मोहक बच्चों के मुख से निकलता है.

Mother’s Day 2023- मेरे अपने: कैसा जीवन जी रही थी मां

मां अपनी जगह पर थोड़ा सा हिलीं, विवेक मां की तरफ झुका, ‘‘मां, कुछ चाहिए क्या?’’ लेकिन मां फिर सो गईं. मां कुछ दिन पहले गिर गई थीं और उन की रीढ़ की हड्डी में चोट लग गई थी. डाक्टर ने उन्हें 3 हफ्तों का बैडरैस्ट बताया था और कुछ सावधानियों के साथ फिजियोथैरेपी कराने के लिए भी कहा था. इस उम्र में गिर जाना आम समस्या है. विवेक चुपचाप मां का चेहरा देखने लगा. झुर्रियों से भरा चेहरा क्या हमेशा से ऐसा ही था? क्या यह जर्जर शरीर ही हमेशा से मां की पहचान था? नहीं, वह भी समय था जब मां चकरघिन्नी की तरह पूरे घर में डोलती थीं. पूरे घर की व्यवस्था और सब की देखभाल करती थीं. मां की पीढ़ी ने अपने बड़ों की सेवा की और अपने बच्चों की देखभाल बड़े प्यार व फुरसत से की. लेकिन उस की खुद की पीढ़ी के पास न बड़ों के लिए समय है और न अपने बच्चों के लिए.

विवेक ने लंबी सांस भरी. अपने कर्तव्यों की याद कभीकभी आती है पर जिम्मेदारियों के बोझ तले दब जाती है. वह मुंबई में रहता है अपने परिवार के साथ और मां कानपुर में. कानपुर में उस के पापा का बनाया हुआ अच्छा बड़ा घर है, जिस में ऊपर के हिस्से में किराएदार रहते हैं और गैराज में एक परिवार रहता है जो मां की देखभाल करता है. यों मां के लिए कोई कमी नहीं है लेकिन इस उम्र में जब अपने बच्चों की जरूरत होती है तो उस के बच्चों के पास फुरसत नहीं है.

दीदी अमेरिका में हैं. 3-4 साल में एक बार ही आ पाती हैं. कुछ दिन अपनी ससुराल और कुछ दिन मां के पास रह कर चली जाती हैं. वह तो भारत में रह कर भी ऐसा ही करता है. उस का आना सालभर में एक ही बार होता है. उन थोड़े से दिनों में उसे सावी के मम्मीपापा के पास पुणे भी जाना पड़ता है. सावी भी नौकरी करती है. विवेक के खुद के बच्चे जब काफी छोटे थे, तो मां उस के पास काफी रही थीं. उन्होंने बहुत मदद की बच्चों के लालनपालन में उन की. तब मां की उम्र कम थी. वे घर में बच्चों के साथ अकेले भी रह लेती थीं. उन के बच्चे बड़े हुए तो मां का आना कम हो गया. उन के बेटा और बेटी 12वीं करने के बाद एक साल के अंतर में मैडिकल और इंजीनियरिंग में प्रवेश ले कर बाहर पढ़ने चले गए. अब मुंबई में वे दोनों अकेले ही रह गए थे. अब जब मां को उन की जरूरत थी तो वे मां का साथ नहीं दे पा रहे हैं.

कानपुर में उन का लंबे समय तक रहना हो नहीं पाता है और मुंबई में मां को अकेले फ्लैट में छोड़ना मुश्किल होता है. वे दोनों सुबह निकलते हैं और रात गए घर आते हैं. मां को इस उम्र में फ्लैट में अकेले छोड़ें कैसे और मां भी रहना नहीं चाहतीं. कानपुर में गैराज में रहने वाला परिवार है, किराएदार हैं, पासपड़ोस है. मां का फिर भी वहां मन लग जाता है. लेकिन विवेक को अपराधबोध सालता है. क्या करे वह, उस के संस्कार ऐसे थे कि वह मां की सेवा करना चाहता था पर परिस्थितियां ऐसी थीं कि वह कर नहीं पाता था.

उस की उम्र इस समय 50 साल थी और मां की 73 साल. 10 साल बाद वह रिटायर होगा और सावी उस के भी 3 साल बाद. तब तक मां पता नहीं रहेंगी भी या नहीं. अचानक विवेक सिहर गया, ‘क्या मां सचमुच ऐसे ही चली जाएंगी दुनिया से…बिना अपने बच्चों का साथ पाए. जिंदगीभर उन्होंने सिर्फ जिम्मेदारियां ही तो पूरी की हैं. दिया ही दिया है बस. पाने का तो मौका ही नहीं आया उन की जिंदगी में. पिता तो मां के सामने चले गए. इसलिए अकेलापन उन्होंने नहीं भुगता.’

लेकिन मां, वे तो भरापूरा परिवार होते हुए भी अकेलेपन का दर्द झेल रही हैं. कैसे रहती होंगी अकेली? गैराज में रहने वाला परिवार भी साल में एक बार तो अपने गांव जाता ही है. तो कुछ दिन मां को अकेले रहना पड़ता है. वैसे भी घर के अंदर तो वे अकेले ही रहती हैं.

विवेक अपनी ही सोच में डूबा हुआ था. तभी आसमानी बिजली जोर से कड़की और घर की बिजली चली गई. इनवर्टर शायद खराब पड़ा होगा. मां यह सब कैसे अकेले मैनेज करेगी? वह मोबाइल की टौर्च जला कर मोमबत्ती ढूंढ़ने लगा. बिजली भी कड़कती होगी. बिजली भी जाती होगी, कभी मां की तबीयत भी खराब होती होगी, डर लगता होगा, घबराहट होती होगी, कैसे रहती होगी मां. विवेक के मन से मां की परेशानियां नहीं हट पा रही थीं. तन से कमजोर इंसान मन से भी कमजोर हो जाता है. वह साल में एक ही बार आ पाता है. कौन ले जाता होगा मां को डाक्टर के पास? दूर रह कर उस ने मां की इन छोटीछोटी परेशानियों के बारे में कभी नहीं सोचा.

मोमबत्ती नहीं मिली. उस ने खिड़की से सोबती को आवाज दी. सोबती अंधेरे में रास्ता टटोलती हुई अंदर आ गई. तभी मां की क्षीण सी आवाज सुनाई दी. वह तेजी से बैडरूम की तरफ दौड़ा. मां के हाथ में मोमबत्ती और माचिस थी. मोमबत्ती और माचिस उन की साइड टेबल की दराज में थी. मां ने हाथ बढ़ा कर दोनों चीजें निकाल लीं. उसे सुखद आश्चर्य हुआ. इस उम्र में जीवन जीने का तरीका मां ने किस तरह ढूंढ़ रखा था. उस ने मां से मोमबत्ती और माचिस ले कर मोमबत्ती जला दी. मां ने मोमबत्ती का स्टैंड भी अपने साइड में रखा हुआ था.

‘‘मां, मैं तो कुछ ढूंढ़ भी नहीं पाया और आप ने बिस्तर पर लेटेलेटे सब ढूंढ़ लिया,’’ वह तनिक मुसकराते हुए बोला. मां के पीड़ायुक्त चेहरे पर भी क्षीण सी मुसकराहट छा गई, ‘‘हां बेटा, अकेले रहने के कारण कई तरह की व्यवस्था रखनी पड़ती है, मेरी साइड टेबल की दराज खोल कर देख.’’

विवेक ने दराज खोली तो उस में विक्स से ले कर, दर्दनिवारक दवा व टौर्च आदि सबकुछ था. बुखार से ले कर, पेटदर्द व चक्कर आने तक की दवाएं उपलब्ध थीं. खुशी हुई सारी व्यवस्था देख कर. वह हंस पड़ा, ‘‘मां, आप ने तो छोटीमोटी कैमिस्ट शौप खोली हुई है घर में. इतनी व्यवस्था तो मुंबई में हमारे घर में नहीं रहती. जरूरत पड़ने पर बाजार दौड़ना पड़ता है.’’

‘‘सब करोगे बेटा, जिस दिन उम्र के इस पड़ाव से गुजरोगे, उस दिन सब तरह की व्यवस्था करोगे, जरूरत इंसान को सब सिखा देती है.’’ मां के चेहरे पर अनायास गहन उदासी छा गई.

मां के दिल का अंधेरा उस के दिल को भी दूर तक अंधेरा कर गया. वह सोच में पड़ गया, ‘एक दिन इस पड़ाव से हमें भी गुजरना ही है, कोई भी हो सकता है, हम दोनों में से मैं या सावी…’

‘‘हां मां, आप ने तो हमेशा ही हमारा मार्गदर्शन किया है. बहुत सीख दे जाते हैं मातापिता,’’ एकाएक विवेक का स्वर संजीदा हो गया, ‘‘मां मुझे अच्छा नहीं लगता आप यहां पर अकेले रहती हैं. क्या यहां कोई लड़की नहीं मिल सकती जो मुंबई में फ्लैट में आप के साथ रह ले तो दिनभर आप अकेले नहीं रहेंगी और हम साथ में रह पाएंगे. आप यहां अकेले रहती हैं, मुझे अच्छा नहीं लगता.’’

 

मां ने प्यार से उस के चेहरे की तरफ देखा, ‘‘नहीं रे, तू दिल में कोई अपराधबोध मत रखा कर. मैं क्या तेरे चेहरे को नहीं पढ़ पाती हूं? मुझे अपने बच्चों पर पूरा विश्वास है. कर न पाना और करना ही न चाहना, दोनों बातें अलग हैं. अपने बच्चों के प्यार पर ही तो विश्वास है जिस से मैं यहां पर अकेले भी रह पाती हूं. जिस दिन बिस्तर से ही नहीं उठ पाऊंगी, उस दिन तुम्हें ही तो करना है. कहां मिलेगी लड़की और कौन भेजेगा उसे इतनी दूर मुंबई. फिर

2 बैडरूम का छोटा सा फ्लैट…अभी तो यहीं ठीक हूं.’’

‘‘पर मां, अकेले में देखो, गिर गई… ऐसे ही चिंता रहती है आप की.’’

‘‘दुघर्टना तो कहीं भी हो सकती है. बेटा, फिर तू आ तो गया मेरी तकलीफ में.’’

‘‘पर मां, 3 दिन आ पाया न. आप ठीक हो जाओ तो अब मेरे साथ चलो. कुछ न कुछ इंतजाम हो जाएगा. मेरा मन हमेशा यहीं लगा रहता है.’’

‘‘अच्छाअच्छा, अभी तू कुछ दिन रह तो सही. मुश्किल से तो आ पाया है. परेशान मत हो, इस बारे में बाद में बात करेंगे.’’

मां ने बात टाल दी और आंखें मूंद लीं. उन के चेहरे पर अभी तकलीफ के भाव थे. विवेक ने भी इस समय उन्हें ज्यादा छेड़ना उचित नहीं समझा. तभी बिजली आ गई. वह लौबी में आ कर टीवी देखने लगा. सोबती ने खाना बनाया तो उस ने मां को अपने हाथ से खिलाया. सोबती बगल में खड़ी रही.

‘‘सालभर का प्यार एकसाथ देना चाहता है पगले. तू चला जाएगा तो कौन खिलाएगा,’’ मां हंस कर बोली, ‘‘जा सोबती, भैया का खाना यहीं ले आ. मांबेटा साथ में खाएंगे.’’ मांबेटा दोनों ने साथ में खाना खाया. खाना खा कर विवेक मां की बगल में ही सो गया.

सुबह चिडि़यों की चहचहाहट से नींद खुल गई. उस ने पलट कर मां की तरफ देखा. मां उठी हुई थीं, लेटी हुई चुपचाप धीमी आवाज में मधुर संगीत का आनंद ले रही थीं.

‘‘मां ये गीत किस ने लगाए हैं?’’ वह बिस्तर से उठते हुए बोला. मां ने चौंक कर उस की तरफ देखा, ‘‘उठ गया तू. सोबती ने लगाए हैं बेटा. सुबह जब वह अंदर आती है तो मेरे मोबाइल पर गीत लगा देती है. आ जा, चाय पी ले, सोबती रख गई केतली में, अपनी भी डाल ले और मेरी भी.’’

उस ने उठ कर चाय कपों में डाली. मांबेटा दोनों चाय पीने लगे. सोबती ने खिड़की पर से परदे सरका दिए थे. बाहर मां की बनाई छोटी सी क्यारी में राई, पालक से ले कर सबकुछ उग रहा था. कंकरीट के जंगल में रहने वाले विवेक के लिए यह बहुत ही खुशनुमा पल था चाय पीते हुए बाहर की हरियाली देखना.

विवेक की नजरों का पीछा करते हुए मां बोलीं, ‘‘माली करता है ये सब. तेरे पापा को किचन गार्डन का बहुत शौक था, इसलिए अभी तक देखभाल करवाती हूं.’’

‘‘हां मां, बहुत अच्छा किया आप ने. आज तो मेरा मन भी अपने हाथों से हरा धनिया और राई तोड़ने का हो रहा है,’’ एकाएक वह चपल मन से पीछे का दरवाजा खोल कर बाहर चला गया. थोड़ी राई और धनिया तोड़ लाया. पैर मिट्टी से सन गए थे. बाहर नल से धो कर गीले पैर के साथ कमरे में आ गया. मां ने देखा तो बोलीं, ‘‘तेरी बचपन की आदत नहीं गई न. गीले पैरों से पूरा घर गंदा करता था. पैरों की तरफ गद्दे के नीचे पुराने कपड़े के टुकड़े रखे हैं, पोंछ ले.’’ उस ने नीचे की तरफ से गद्दा पलटा, वहां पर कपड़े के कई साफसुथरे टुकड़े रखे थे. मां की सारी दुनिया उन के आसपास बसी थी.

सुबह के नित्यकर्म से निबट कर वह आया. इधर, सोबती ने मां को स्पंज कर के, कपड़े बदल कर तैयार कर दिया. नाश्ता भी विवेक ने मां की बगल में बैठ कर किया. हर संभव प्रयत्न कर वह मां को अपने हाथ से दवा और खाना वगैरा खिला रहा था. तभी घर के बाहर कुछ चहलपहल हुई. 5-7 औरतें अंदर आ गईं. उन में कुछ मां की उम्र की, कुछ बड़ी व कुछ छोटी भी थीं. वे सीधे मां के बैडरूम की तरफ चली गईं. पलभर में ही जैसे पूरा घर बातों की चहचहाहट से भर गया. मां की हंसी की आवाज भी आ रही थी. सोबती ने उन्हें चाय बना कर पिलाई.

‘‘कौन हैं सोबती, ये सब?’’ विवेक ने सोबती से पूछा.

‘‘अम्माजी की पड़ोसी हैं और सहेलियां भी,’’ वह मुसकरा कर बोली, ‘‘उस दिन अस्पताल ये ही ले कर गई थीं अम्माजी को.’’ थोड़ी देर में मां की सहेलियां चली गईं. वह मां के कमरे में चला गया. मां के चेहरे पर स्निग्ध मुसकान थी. पीड़ा की रेखाएं गायब थीं.

‘‘मां, आप तो अपनी सहेलियों के साथ बहुत खुश थीं, खूब हंस रही थीं उन के साथ,’’ उस ने मां को छेड़ा.

‘‘हां बेटा, तू आया है न, तो आजकल वे नहीं आ रही हैं वरना रोज ही आ रही थीं. कोई न कोई मेरी देखभाल करती थी जब से चोट लगी है.’’ उसे लगा, मां को उस की खास जरूरत नहीं है. उन की दुनिया में बहुतकुछ है उन की खुशी और संतुष्टि के लिए. वह मां के करीब बैठ गया. उन का हाथ अपने हाथ में ले कर सहलाने लगा.

‘‘मां, आप के बच्चों के अलावा यहां सबकुछ है आप के पास,’’ वह सुखद आश्चर्य से बोला.

‘‘वही तो सब से बड़ी कमी है बेटा, तुम लोगों की बहुत याद आती है.’’

‘‘फिर हमारे पास क्यों नहीं चल कर रहतीं. कभी मेरे पास रहो, कभी दीदी के पास चली जाओ. मन लगा रहेगा आप का.’’

‘‘हूं,’’ मां गंभीरता से मुसकरा गईं, ‘‘इस सब को छोड़ कर भी तो नहीं रह सकती न बेटा. सोबती की बेटी है जिस की मैं पढ़ाई का खर्चा उठाती हूं. 12वीं कर रही है वह. मेरा हर काम करने को तैयार रहती है. सोबती का पति मेरा सारा बैंक का काम कर देता है. कार भी ड्राइव कर लेता है, इसीलिए तो कार रखी हुई है वरना तो कब की बेच देती. तुम लोग आते हो तो तुम्हें भी सुविधा हो जाती है.’’

‘‘पर मां, आप हमारे पास रहेंगी तो इस सब की जरूरत ही नहीं रहेगी. सोबती की बेटी की मदद तो आप वहां से भी कर सकती हैं.’’

‘‘लेकिन यह तो सोचो न बेटा, कि तुम्हारे आने के लिए भी तो एक घर है. कहां जाओगे और कौन इंतजार करेगा तुम्हारा. मेरे बच्चे जब आते हैं तो मेरे लिए वे सब से खुशी के दिन होते हैं और तुम्हें भी खुशी होती है कि मां के पास जा रहे हैं. जिस दिन इस जिंदगी के लायक नहीं रहूंगी, इतनी अशक्त हो जाऊंगी, उस दिन तुम्हीं करोगे. तुम्हीं संभालोगे मुझे. लेकिन अभी तो मुझे सार्थक जीवन जीने दो बेटा. जब तक हो सकेगा हाशिए पर नहीं आना चाहती मैं,’’ मां का स्वर आर्द्र हो गया. वह अपलक मां का चेहरा देखने लगा. वह आत्मनिर्भरता और आत्मगौरव से चमक रहा था. उसे संतोष हुआ और उस ने समझ लिया कि वह मां को जितना दयनीय और मजबूर समझ रहा था, वैसा कुछ भी नहीं है. मां की जिंदगी में व्यवधान पैदा करना गलत होगा. मां खुश हैं, उन को अपना जीवन सार्थक लग रहा है.

‘‘क्या हुआ बेटा?’’ उसे सोच में डूबा देख कर मां ने उसे हिलाया.

‘‘कुछ नहीं मां, सोच रहा था आप से तो बहुतकुछ सीखना बाकी है अभी. हमेशा ही सीखा है आप से. आप तो दूसरे बुजुर्गों के लिए भी उदाहरण हैं.’’

‘‘नहीं बेटा, ऐसा कुछ नहीं है. बस, मुझे मालूम है कि मेरे बच्चों का प्यार मेरे साथ है, वे मेरी चिंता करते हैं और जब मुझे जरूरत होगी तो वे मेरे पास होंगे. बस, यही मानसिक मजबूती मुझे हमेशा खुश और संतुष्ट रहने की प्रेरणा देती है.’’

‘‘तेरी छुट्टियां कब तक हैं? काम का नुकसान हो रहा होगा तेरा?’’

‘‘नहीं मां, कोई दिक्कत नहीं है. आप ठीक हो जाओ तो मैं चला जाऊंगा. फिर सावी आ जाएगी कुछ दिनों के लिए,’’ उस ने प्यार से मां का सिर सहलाया. मांबेटे दोनों ने एकदूसरे को पूर्ण संतुष्टि से निहारा. बच्चे शरीर से भले ही उन से दूर थे पर दिल से उन के पास थे.

इस की क्या जरूरत है: अमित अपने परिवार और दोस्तों से क्यों कट रहा था?

पर्यटन: कब, क्यों, कैसे और कहां

घूमनाफिरना कोई रौकेट साइंस नहीं है कि ज्यादा गुणाभाग किया जाए. जब चार यार कहें कि निकल चलें कहीं तो बैग पैक करें और निकल जाएं उस अनजाने सफर पर जो ले जाए आप को उस रोमांच से भरी दुनिया में जहां पहाड़, नदी, समुद्र, जंगल, रेगिस्तान, पगडंडियां, सुदूर गांवकसबे, बड़े शहर बांहें पसारे आप का इंतजार कर रहे हैं. इस के लिए आप के खर्चे और हौसले में कोई कमी नहीं होनी चाहिए फिर ठहरिए महंगे रिजौर्ट में या सस्ते होमस्टे में. जाइए दोस्तों के साथ या अपने पार्टनर के साथ.

कभी दोस्त, परिवार या पार्टनर न भी साथ हों तो सोलो ट्रिप के औप्शन को चूज करें और जिंदगी की आपाधापी में से कुछ समय निकाल कर चल दें नई जगहों को एक्सप्लोर करने. दिमाग में बस, मकसद बना कर चलिए कि घूमने का जो मौका मिला है उस में खूब मौजमस्ती करनी है. हर वह चीज करनी है जो जगह और माहौल के हिसाब से बढि़या हो, आखिर मन और चाहता भी क्या है.

असल में यही तो पर्यटन है जिस में युवा और दूसरे यह देखते व महसूस करते हैं कि दुनिया कितनी रंगबिरंगी, खूबसूरत और हसीन है. शहरों की भीड़भाड़, थकान और उकताऊ जिंदगी में फ्रैशनैस लाने के लिए इस से बढि़या और कुछ नहीं कि बैग उठा कर चल दो उन जगहों के लिए जहां सुकून मिले, जहां भगदड़ न हो, जहां सिर्फ आप खुद के होने को महसूस कर सको. आजकल स्मार्टफोन दुनियाजहान की सारी जानकारियां दे देता है. बस, एक क्लिक से आप ट्रांसपोर्ट, होटल, फूड की सुविधा ले सकते हैं. बस, सर्च यह करना है कि डैस्टिनेशन पर जा कर क्या देखना है और मिस नहीं करना है.

कहीं घूमने निकल जाना आप के अनुभव को दो का चार करता है. जकड़न से आजाद कराता है, बाकी घरगृहस्थी, नौकरी, पत्नीबच्चे, तमाम जिम्मेदारियां तो जिंदगीभर के अनुबंध हैं. ये तो रहेंगे ही, लेकिन इन अनुबंधों के इतर भी अपनी जिंदगी है उसे जीना नहीं भूलना चाहिए फिर चाहे वक्त चुरा कर ही सही, बस निकल चलें.

सीने में जलन और अस्पताल का चलन

जरूरी नहीं कि सीने की हर जलन हार्ट से संबंधित समस्या हो, लेकिन कहते हैं न कि एक प्रतिशत चांस भी अगर हार्ट का बन रहा है तो डाक्टरी परामर्श लेना जरूरी हो जाता है. पर क्या हो जब यह परामर्श लेने गए हों और डाक्टर व अस्पताल इसे समस्या से अधिक पैसे ऐंठने का मौका सम झ लें. सीने में जलन हो रही है, सीने में भारीपन हो रहा है तो इस का सीधासीधा संबंध हृदय से होता है. हालांकि कई बार इस का कारण एसिडिटी होता है. एसिडिटी की समस्या ज्यादा होने से सीने में भारीपन और सीने में दर्द होता है. सावधानी भी जरूरी है. ज्यादा तेज मसाले का भोजन कोलैस्ट्रौल को बढ़ाने का एक कारण होता है.

उस के कारण भी हृदय में भारीपन होता है. यदि आप को जानकारी है तो ठीक, अगर जानकारी नहीं है तो इस की गंभीरता को जानें. निलेश को कुछ दिनों से चलने में और सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. हृदय में भारीपन की समस्या के कारण तुरंत मैट्रोपोलिस से ब्लड के सभी टैस्ट करवाए. वैसे भी आजकल डाक्टर कोई भी इलाज शुरू करने से पहले सभी प्रकार से जांच करवाते हैं. अपनी रिपोर्ट ले कर हम डाक्टर के पास गए तो उन्होंने हमारी बाहर से कराई हुई ब्लड टैस्ट रिपोर्ट को सिरे से नकार दिया और अस्पताल में फिर सारे ब्लड टैस्ट करवाए.

मैं ने उन से कहा कि हम ने अभी ही सारे टैस्ट करवाएं हैं तो अस्पताल वालों का जवाब था कि हमारे यहां से टैस्ट एकदम परफैक्ट होते हैं. हार्ट की प्रौब्लम है, कोई रिस्क नहीं ले सकते. हमारे यहां सभी पैकेज हैं. आप को इस में फायदा होगा और आप के सारे टैस्ट हो जाएंगे जो भी डाक्टर ने कहे हैं. मरता क्या न करता, तुरंत सारे टैस्ट करवाए और उस के बाद सिम्प्टम्स को देखते हुए टीएमटी टैस्ट, सीटी, एंजियोग्राफी, ट्रेडमिल टैस्ट किए गए. ट्रेडमिल टैस्ट में डाक्टरों को अंदेशा हुआ कि हार्ट में ब्लौकेज है, ब्लौकेज मुख्य आर्टरी में है जिस से हार्ट अटैक की पूरी संभावना है. सीटी एंजियोग्राफी में 90 फीसदी ब्लौकेज आया. जो काफी चिंताजनक था. रिपोर्ट देख कर हमारी जान ही निकल गई.

खानपान और हैल्थ का ध्यान रखने के बाद भी यह स्थिति कैसे हो गई. जो भी था, हमें स्थिति का सामना करना जरूरी था. जब इसे क्रौस चैक करने के लिए दूसरे अस्पताल में एंजियोग्राफी करवाई तो उस में 60 फीसदी ब्लौकेज आया. चूंकि ब्लौकेज हार्ट की मुख्य धमनियों में था, इसीलिए उस का उपाय करना जरूरी था. हम ने रिपोर्ट को चैक करने के लिए अन्य डाक्टरों से भी संपर्क किया. सभी ने एंजियोप्लास्टी की सलाह दी. एंजियोप्लास्टी एक ऐसी सर्जिकल प्रक्रिया है जिस में दिल की मांसपेशियों तक ब्लड सप्लाई करने वाली रक्त वाहिकाओं को खोला जाता है. मैडिकल भाषा में इन रक्तवाहिकाओं को कोरोनरी आर्टरीज कहते हैं. डाक्टर अकसर दिल का दौरा या स्ट्रोक जैसी समस्याओं के बाद एंजियोप्लास्टी का सहारा लेते हैं. जितने बड़े अस्पताल उतने बड़े खर्चे. एक मध्यवर्गीय परिवार को पैसा जमा करने में बहुत मुश्किलें आती हैं क्योंकि इतना पैसा घर में नहीं होता है.

यह सत्य है कि आजकल डाक्टर मरीज का गला काटने को तैयार रहते हैं. उन्हें मरीजों से कोई लेनादेना नहीं है. उन की फीस का खर्चा निकलना बहुत जरूरी है. डाक्टर ने कहा कि हमें निर्णय बहुत जल्दी लेना चाहिए क्योंकि अगर पेशेंट पैनिक हो जाता है तो हम कुछ नहीं कह सकते हैं, हार्ट अटैक आने की पूर्ण संभावना है. उस के बाद सर्जरी करना बहुत रिस्की हो जाएगा. हम ने जब डाक्टर को अपनी कंडीशन बताई कि इतनी बड़ी रकम हम एकसाथ कैसे निकालेंगे तो उन्होंने कहा, ‘‘कोई बात नहीं, आप जा कर अस्पताल के कैशियर से मिल लीजिए, वह आप को आसानी से सब चीजें सम झा देगा. आप अपना निर्णय लीजिए और एडमिट हो जाएं. मैं कह दूंगा आप पैसे बाद में जमा कर सकते हैं.

कुछ रकम आप को एडमिट होने से पहले ही जमा करनी पड़ेगी, कम से कम 60,000 रुपए.’’ वे अपनी बात कहते जा रहे थे. उन्होंने कहा, ‘‘वैसे आप चाहें तो सरकारी अस्पताल में भी अपना इलाज करवा सकते हैं. दोनों की सामग्री में कोई फर्क नहीं रहेगा पर मैं फिर भी गारंटी लेता हूं कि प्राइवेट हौस्पिटल में हर चीज बहुत अच्छी उपयोग में ली जाती है. वैसे आप की मैडिकल पौलिसी होगी. आप को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, सारा पैसा वे ही जमा करते हैं.’’ हम ने उन से कहा कि हमारी कोई मैडिकल पौलिसी नहीं है तो वे मायूस हो गए. शायद कमाई का एक जरिया है क्योंकि मैडिकल पौलिसी होने के बाद अस्पताल वाले अनापशनाप बिल बनाते हैं.

जब कैशियर से बात हुई तो उन्होंने जो पैकेज बताया उसे देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि उन का पैकेज होटल के टूर ट्रैवल की तरह था. जिस तरह ट्रैवल और दूर वालों के पैकेज होते हैं उसी तरह अस्पताल में सर्जरी के पैकेज थे. मरीज अपने बजट के अनुसार तय कर सकता है कि वह किस पैकेज में अपनी सर्जरी करवाना पसंद करेगा. हालांकि सर्जरी में उपयोग होने वाली सामग्री, मरीज का भोजन, सबकुछ वही था, सिर्फ लग्जरी सुविधाएं पैकेज के अनुसार थीं. पहले 1,00,000 रुपए जमा करने पड़ेंगे, वह भी कैश या औनलाइन ट्रांजैक्शन. हम चैक नहीं लेते हैं. एंजियोग्राफी करते समय जैसी स्थिति रहेगी, तुरंत निर्णय लिया जाएगा और उसी के अनुसार एंजियोप्लास्टी और ओपन हार्ट सर्जरी दोनों के लिए हम तैयार रहेंगे. उन की बुकलेट में डिपौजिट चार्जेस, डाक्टर की फीस, औपरेशन थिएटर के चार्जेस आदि सभी का ब्योरा लिखा हुआ था.

अब यह हमें तय करना था कि हम किस प्रकार की सर्विस चाहते हैं. अस्पताल की सर्विस ठीक उसी प्रकार की थी जैसे किसी हाई क्लास होटल की होती है. आप अपने अनुसार अपना रूम तय कर सकते हैं. अलगअलग रूम का चार्ज 15000-20,000 से ले कर 25,000 तक प्रतिदिन था. उन में एक डीलक्स रूम था, जिस में आप को पेशेंट के साथ रुकने के लिए पूरी सुविधाएं मौजूद थीं. अटेंडैंट एयर कंडीशनर बैडरूम, सोफा, बैड, टैलीविजन, कपड़े, माइक्रोवेव से ले कर सबकुछ उपलब्ध था. इसी प्रकार अन्य रूम थे जिन में सुविधाएं कम थीं. कुछ स्पैशल फ्लोर पर थे. औक्सीजन पाइप वगैरह सब उपलब्ध था और बाथरूम अटैच थे. बिना बाथरूम वाले रूम का चार्ज थोड़ा कम था. उस में आप को जनरल बाथरूम का उपयोग करना था. जनरल वार्ड में आप को सिर्फ पेशेंट को रुकने की सुविधा और साथ में रहने वाले के लिए सिर्फ एक चेयर उपलब्ध थी.

उस का चार्ज 2500-3000 रुपए तक था. यह टौप 10 का अस्पताल तो नहीं था लेकिन टौप 20 के अंदर था. इस से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जो टौप के अस्पताल होंगे उन के रूम का खर्चा कितना हो सकता है. जब हम अस्पताल गए तो हमें पैकेज की लिस्ट दी गई- द्य एंजियोग्राफी 1,10,000-81,000-60,000-50,000-40,000.

-एंजियोप्लास्टी 4,95,000-4,30,000-3,40,000- 2,60,000-2,25,000-1,90,000. द्य एंजियोग्राफी एंजियोप्लास्टी 5,85,000-5,00,000-3,90,000-2,85,000-2,55,000-1,90,000. मरीजों के लिए यह आसान है कि पैकेज का चुनाव करें और अपने बजट अनुसार अपना रूम बुक करें. हम ने अपने बजट के अनुसार रूम का पैकेज लिया लेकिन एंजियोप्लास्टी के बाद जो बिल बना वह हमें पूरी तरह हिलाने के लिए पर्याप्त था. हम ने डाक्टर से पहले ही कह दिया था कि हम एंजियोप्लास्टी व सर्जरी के पक्ष में नहीं हैं. आप हमें सोचने का मौका दीजिए.

ब्लौकेज 60 फीसदी होगा तो हम एंजियोप्लास्टी नहीं चाहते हैं. एक बहुत बड़ा कारण यह था कि कुछ दिनों पहले ही हमारे एक परिचित को सीने में काफी जलन हो रही थी, जैसे एसिडिटी के समय होती है. उन्हें पास के एक अस्पताल में दिखाया गया, जहां डाक्टरों ने बड़े हौस्पिटल में जाने की सलाह दी. उन से कहा गया कि हार्टअटैक है. लेकिन परिवार से जानकारी ली तो ज्ञात हुआ कि सीने में कोई दर्द नहीं हो रहा था. हम जिस अस्पताल में गए वहां डाक्टर ने चैकअप कराया और तुरंत ही उन की एंजियोप्लास्टी की गई. उन्हें 3 दिन आईसीयू में रखा गया.

उस के बाद उन्हें 3 दिन बाहर रूम में रखा गया. हकीकत क्या थी, यह तो पता नहीं क्योंकि जब मैं ने अपने हसबैंड को दिखाया था तब डाक्टर ने कहा था कि यदि अटैक आता है तो कोई सर्जरी नहीं होती है. फिर उस की सर्जरी 2 घंटे के भीतर कैसे की गई, यह प्रश्न यक्ष प्रश्न बन कर रह गया और मेरे परिचित के करीब 10 लाख से ज्यादा रुपए अस्पताल में लगे. हमारे अस्पताल का खर्च सब मिला कर करीब 4,00,000 होना चाहिए था लेकिन बिल बनने के बाद हकीकत सामने आई तो पैरोंतले जमीन खिसक गई. 6,00,000 का बिल तैयार हुआ. जिस में मरीज को 3 दिन ही अस्पताल में रखा गया.

दवाई वगैरह सब हम ले कर आते रहे. काफी मानसिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. मैं बहुत तनाव से गुजरी हूं. यदि सर्जरी होती है तो आर्थिक स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो सकती है पर यदि हमारे अपने को कुछ हो जाता है तो हम सड़क पर आ जाएंगे. बिल चैक करने के लिए मैं काउंटर पर चली गई. वहां जब मैं ने अन्य लोगों को देखा तो ज्ञात हुआ जिस की मैडिकल पौलिसी होती है, उस से अनापशनाप पैसा वसूल किया जाता है. आजकल डाक्टरों के लिए सर्जरी करना पैसा उगाहने का साधन बन गया है.

मरीजों की हालत से उन्हें लेनादेना कम ही होता है. बहुत कम डाक्टर ऐसे हैं जो आज भी ईमानदारी से कार्य करते हैं. कुछ लोगों की बातें ज्ञात हुईं कि जिन की मैडिकल पौलिसी थी उन्हें सिर्फ 60,000 रुपए जमा करने थे. शेष पौलिसी वाले भर देंगे. एक मध्यवर्गीय सिर्फ कमा कर अपना पेट पाल सकता है. ऐसी पौलिसी में पैसा जमा करना, जहां से कोई रिफंड नहीं है, उस की नजर में बेवकूफी होती है. जिन की पौलिसी नहीं है वे सब से ज्यादा दिक्कतों का सामना करते हैं.

किसी तरह अंदर से अपना बिल निकलवाया, जो भी था वह हमें भरना ही था. बिल में सर्जरी के पहले की जाने वाली शरीर की शेविंग किट, डिस्टिल वाटर से ले कर मरीज को उपयोग में दिए जाने वाले सामान दवाइयां, एडमिशन चार्ज, टोटल दिन, सर्जन चार्जेस, असिस्टैंट चार्ज, मास्क, ग्लब्स, डाक्टर गाउन, कूल गाउन, सरचार्जेस, सर्जरी में उपयोग होने वाली सभी सामग्रियों, दवाइयां, एनएसथीसिया चार्ज, औपरेशन थिएटर चार्ज, डा. विजिटिंग चार्जेस, जूनियर डा. विजिटिंग चार्ज, ब्लड टैस्ट किट, आई वी किट, वनप्लस टैस्ट किट, डिस्पोजेबल सिरिंज, स्टेराइल वाटर, रामसन कनैक्टर, औक्सीजन जैसे अनगिनत चार्ज जोड़े गए. उन में से कई सामग्रियों का उपयोग सिर्फ पहले दिन ही हुआ था.

औक्सीजन व अन्य कई सर्जिकल चीजों व दवाइयों की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि मरीज को 3 दिन तक बनाए रखा, इसीलिए सभी चीजों के चार्ज तीनगुणा कर जोड़ दिए. इसे देख कर मैं बहुत आश्चर्य में पड़ गई. हम ने पैसा जमा किया और उस के बाद तोबा कर ली कि आगे से ऐसे अस्पतालों में जाने से बचें. सर्जरी के बाद हमें जो भी प्रिसक्रिप्शन मिलता था, हमें अस्पताल के ही मैडिकल शौप से दवाई लेनी पड़ती थी. तब यह नहीं बताया गया था कि इस के भी चार्जेस लगेंगे. मैडिकल शौप वाले हम से उस समय पैसे नहीं लेते थे, सिर्फ हमें दवा व रूम नंबर का बिल देते थे.

बाद में ये सारे बिल डिस्चार्ज के समय जोड़े गए. जो दवा सामग्री उपयोग में नहीं आई, उसे भी अस्पताल वालों ने रख लिया. पेशेंट के साथ जो भी रुकता है उन की मानसिक हालत ऐसी नहीं होती है कि वे इन छोटीछोटी चीजों पर ध्यान दें. कमोबेश जिस का फायदा अस्पताल वाले उठाते हैं. शेविंग करने व?ाला भी इसी तरह पैसे कमाता है कि एक ही ब्लेड यूज करे और उस के बाद अस्पताल वालों से कह कर ज्यादा चार्जेस लगाए कि उस ने तो 5-5 ब्लेड रोज यूज किए हैं.

इतना लंबा आदमी है, कितने बाल है, कितना सामान लग गया. हालांकि हकीकत कुछ और थी. जब अस्पताल वाले इतना लूटते हैं तो ये छोटे लोग उस में से अगर लेते हैं तो इस में उन की कोई गलती नहीं है. अस्पताल के अपने नियमकायदे होते हैं. कोई कुछ नहीं कर सकता. खैर, किसी तरह तो हम ने बिल जमा कर दिया. एक बीमारी पूरे घर को हिला देती है. अस्पताल और डाक्टर कसाई बन कर मरीज का गला काटने के लिए तैयार बैठे हैं. यदि किसी के पास पैसा नहीं हो तो वह तो अपनी जिंदगी को ही दांव पर लगा देगा? यह दुखद बात है कि इंसानियत आज खत्म हो गई है.

ऐसे में यदि इंसान परेशान हो कर जाए तो कहां जाए. जब मैं बीमार हूं और मु झे समस्या हुई तब मैं सरकारी अस्पताल में गई. लेकिन सरकारी अस्पतालों के भी यही हाल हैं. मेरे सारे टैस्ट किए गए क्योंकि मु झे बुखार आ रहा था तो उन्होंने तुरंत इंजैक्शन दे दिए. एंटीबायोटिक, टैस्ट, हृदय में तकलीफ हो रही थी तो एंजियोग्राफी भी कर दी. उस एंजियोग्राफी की डाई से इतनी ज्यादा तकलीफ हुई कि मेरी हालत ही बिगड़ गई. आखिर मशीनों में इतनी गड़बड़ी क्यों होती है, लोग इतना अंदाजा क्यों नहीं लगाते हैं? जब मेरा ट्रेडमिल टैस्ट हुआ, मैं अच्छे से चल रही थी.

उस के बाद जो डाक्टरों ने कहा कि नहीं, कुछ समस्या है, एंजियोग्राफी करनी ही पड़ेगी तो उस से हालत इतनी खराब हो गई कि मैं बेसुध हो गई. मेरे कई बार बोलने पर कि मु झे ज्यादा पावर की दवाइयां सूट नहीं होती हैं, इस के बावजूद वे मु झे इंजैक्ट के द्वारा दी गईं. उन्होंने सारे एक्सपैरिमैंट मु झ पर कर लिए. उन का कहना था कि कितनी बीमारियां होती हैं. सब चीज का टैस्ट नहीं होता है. आखिर किसी न किसी की दवा से तो फर्क पड़ जाएगा. हम ने जो मानसिक और शारीरिक कष्ट झेला वह इतना आसान नहीं था और उस से उबरने के लिए काफी लंबा वक्त लगा और जो मैडिसिन के साइड इफैक्ट होते हैं वे लंबे समय तक शरीर को कष्ट देते हैं.

क्या इस तरह इलाज किया जाता है? आखिर हम किस पर भरोसा करें? संवेदना शून्य हो गई है. आजकल तो छोटीछोटी सी बीमारियों में टैस्ट किए जाते हैं तो बड़ी बीमारी में परिवार की आर्थिक और मानसिक दोनों स्थितियां खराब हो जाती हैं. बड़ेबड़े शहरों में अस्पतालों में डाक्टर इस तरह का व्यवहार करते हैं. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर मरीज कैसे भरोसा करे, किस पर भरोसा करे? बेहतर है अपने हृदय को संभालें, अपने खानपान पर ध्यान दें और गला काटने वाले सिस्टम से बचें. द्य इलाज कराते समय मरीज क्या ध्यान रखें निजी अस्पतालों में अकसर इलाज के नाम पर लूट की खबरें देखने को मिल जाती हैं.

कई बार तो पेशेंट का परिवार टैस्ट के नाम पर, गैरजरूरी हौस्पिटल स्टे के नाम पर लुट रहा होता है और उसे इस बारे में पता भी होता है, फिर भी वह कुछ नहीं कर पाता. ऐसे में सवाल उठता है कि जब ऐसी सिचुएशन आए तो क्या करना चाहिए? बीबीसी में छपी रिपोर्ट में कंज्यूमर राइट एक्टिविस्ट और लेखिका पुष्पा गिरिमाजी के मुताबिक, स्वास्थ्य सेवा के उपभोक्ता होने के नाते हम देश के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (1986) कानून के तहत अपने अधिकार की लड़ाई लड़ सकते हैं. हालांकि हमारे देश में पेशेंट राइट नाम का कोई कानून नहीं है, फिर भी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम भी हमारे अधिकारों की सुरक्षा करने के लिए काफी है.’ मरीज के परिजन के पास दूसरा सब से बड़ा हथियार होता है सूचना का अधिकार.

हालांकि यह कानून भाजपा सरकार में कमजोर हुआ है उस के बावजूद इस कानून के तहत सब से पहले हमें डाक्टर और अस्पताल से यह जानने का अधिकार होता है कि मरीज पर किस तरह का उपचार चल रहा है, अस्पताल की जांच में क्या निकल कर सामने आया है, हर टैस्ट की क्या कीमत है, मरीज को जो दवाइयां दी जा रही हैं उन का असर कब और कितना हो रहा है. अगर मरीज ये सब पूछने की स्थिति में नहीं है तो अस्पताल में साथ रह रहे परिजन इस की जानकारी अस्पताल प्रशासन से मांग सकते हैं और इस जानकारी को हासिल करना सब का अधिकार है. इतना ही नहीं, इस से डाक्टर की योग्यता और डिग्रियों के बारे में जानकारी हासिल की जा सकती है.

यह जानकारी अस्पताल प्रशासन से भी मांगी जा सकती है. क्लिनिकल इस्टैब्लिशमैंट एक्ट 2010 के तहत हर अस्पताल, क्लिनिक या फिर नर्सिंग होम को रजिस्टर करना अनिवार्य होता है. साथ ही, एक गाइडलाइन के तहत हर बीमारी के इलाज और टैस्ट की प्रक्रिया निर्धारित है. ऐसा न करने पर इस एक्ट में जुर्माने का प्रावधान भी है. हालांकि, पुष्पा गिरिमाजी के मुताबिक, सभी राज्यों ने अभी तक इसे लागू नहीं किया है. इस में अस्पताल और क्लिनिक संस्थाओं का सरकार पर दबाव सम झा जा सकता है.

अकसर देखा जाता है कि अस्पताल या क्लिनिक पेशेंट पर दबाव डालते हैं कि वे दवाइयां उन की बताई जगह से ही खरीदें. ऐसा कर वे अपना मुनाफा बनाते हैं. एमआरटीपी एक्ट 1969 के कई प्रावधानों के तहत कोई भी अस्पताल ‘वहीं’ से दवाई खरीदने का दबाव पेशेंट पर नहीं बना सकता. प्रोफैशनल कंडक्ट एंड एथिक्स एक्ट 2002 कहता है, इमरजैंसी में पेशेंट को इलाज की जरूरत है तो कोई डाक्टर इस के लिए मना नहीं कर सकता जब तक वह फर्स्ट एड दे कर मरीज की स्थिति खतरे से बाहर न कर ले.

जाने कब, कौन-सी ग्रीन टी है ज्यादा फायदेमंद

हमारे दिन की शरुवात चाय की चुस्की के साथ होती है और चाय का सबसे सेहतमंद रूप है ग्रीनटी। आजकल हर कोई स्वस्थ रहने के लिए ग्रीन टी पीना पसंद करता है क्योंकि यह हमारी अच्छी सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसी लिए इसकी लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है ग्रीन टी न हमें शारीरिक रूप से स्वस्थ रखती है बल्कि हमारी सुंदरता को भी बढ़ाती है । ग्रीन-टी में एंटीऑक्सीडेंट, फ्लेवेनॉल, कैटेकिन और कई पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं। इसके कई फायदे हैं।शरीर में मेटाबॉलिक दर का बढ़ना और वजन नियंत्रित रखने के लिए ग्रीन-टी बहुत प्रभावशाली मानी जाती है इसमें ईजीसीजी (EGCG) मौजूद होता है, जिसे एपीगैलोकैटेकिन-3-गैलेट के नाम से भी जाना जाता है.
ध्यान रखें ये बातें
खाना खाने से कम से कम एक घंटे पहले पिए ।
खाली पेट पीने से बचें।
दिन में दो बार से ज्यादा सेवन न करें व प्रेग्नेंट महिला दिन में एक ही बार इसका सेवन करें ।
यदि आप किसी दवाई का सेवन कर रहे है तो ग्रीन टी साथ में न ले
दूध या चीनी का प्रयोग न करें।
रात में ग्रीन टी पीने से अनिंद्रा की समस्या हो सकती है।

वेसे तो बाजार मे कई प्रकार की ग्रीन टी पहले से ही मिलती है लेकिन कुछ ग्रीन टी ऐसी भी हैं जिनके फायदों के बारे मे लोग कम जानते हैं तो आज हम आपको कुछ ऐसी ग्रीन टी के बारे मे बता रहे हैं जो हमें बेहतरीन स्वाद के साथ साथ कई बीमारियों से तो बचाती भी हैं ।
ग्रीन टी के प्रकार

ग्युकुरो ग्रीन टी-मुख्य रूप से जापान मे उगाई जाने वाली य़ह ग्रीन टी ब्लड ग्लूकोज़ को नियंत्रित कर दिल की बिमारियों और डायबिटीज के खतरे को कम करती है।इसमें पॉलीफिनॉल होता है जो कि कैंसर को रोकने में मददगार है।लेकिन गर्भावस्था के दौरान इसे नहीं पीना चाहिए क्योंकि इसमें कैफीन होता है

जैस्मीन ग्रीन टी- इसमें कैलोरीज नहीं होती हैं और पोषक तत्व भरपूर होते हैं।इसमे ईजीसीजी मिश्रण होता है जो कैंसर की रोकथाम करता है व टाइप 2 डायबिटीज के मरीजों के लिए भी फायदेमंद होती है ।

मोरक्को मिंट ग्रीन टी-यह दर्द दूर करने व सीने की जलन में औषधि की भांति काम करती है इसे पोदीने की पत्तियों के साथ भिगोकर बनाया जाता है। यह विटामिन से भरपूर होती है

सेन्चा ग्रीन टी-इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स की अधिकता होती है जिससे यह कोशिकाओं और ऊतकों को फ्री रेडिकल डैमेज से बचाती है

ड्रैगन वेल ग्रीन टी-यह ग्रीन टी चीन की प्रसिद्ध टी मानी जाती है यह पाचन क्षमता की समस्या, फैट बर्न, बुखार व अन्य बैक्टीरियल और वायरल इन्फेक्शंस को कम करने में मदद करती है।

मातचा ग्रीन टी
मातचा ग्रीन टी पाउडर के रूप मे मिलती है इसे पीने से हमें विटामिन सी मिलता है जो हमें दिल की बीमारी से दूर रखता है।

कुकीचा ग्रीन टी-इस चाय में विटामिन और मिनरल्स की अधिकता होती है व कैफीन की मात्रा कम इसका सेवन सोने से पहले भी किया जा सकता है इसमें 1 गिलास दूध से ज्यादा कैल्शियम होता है।यह चाय के पौधे के तने और टहनी से बनाई जाती है| यह एसिडिटी, चिंता, अनिद्रा जेसी समस्याओं में लाभकारी होती है

माचा ग्रीन टी-इसमें क्लोरोफिल की अधिकता होती है जो कि नशे की लत से छुटकारा दिलाती है। इस ग्रीन टी के पाउडर में इलायची मिलाने से आंत के कीड़े दूर होते हैं।

हौजीचा ग्रीन टी-इसमें कैफीन कम होता है। आप सोने से पहले इसे पी सकते हैं इससे आपको नींद अच्छी आएगी।

बांचा ग्रीन टी -इसमें कैटेचिन्स जैसे पॉलीफेनोल्स की अधिकता होती है। यह आपकी मानसिक अलर्टनेस को बढाती है । यह कैविटीज जैसे ओरल इन्फेक्शंस को दूर करती है।

मैं मां हूं इस की -भाग 2 : बिनब्याही श्लोका की जद्दोजेहद

‘विनी से बात करती हूं, लेकिन उस से क्या कहूंगी कि मैं प्रेग्नेंट हूं. नहीं, मुझे निखिल से बात करनी होगी. लेकिन वह… तो अपने किसी रिश्तेदार के यहां शादी में गया हुआ है. हां, फोन करती हूं उसे,’ पर निखिल का फोन बिजी आ रहा था.

श्लोका को अभी भी विश्वास नहीं हो रहा था कि वह प्रेग्नेंट है. लेकिन सामने पड़ी टैस्ट किट को झुठलाया भी तो नहीं जा सकता था न.

उस ने फिर कई बार निखिल को फोन लगाया, लेकिन उस का फोन बिजी ही आ रहा था. इसलिए उस ने उसे व्हाट्सएप पर मैसेज भेजा, ‘यू काल मी राइट नाऊ‘ और तुरंत ही उस का फोन आ गया.

निखिल बोला, “क्या हुआ?”

श्लोका बोली कि उसे उस से एक जरूरी बात करनी है, तो क्या वह उस से मिलने आ सकता है थोड़ी देर के लिए?

“अरे, थोड़ी देर के लिए क्यों… तुम कहो तो पूरे दिन, पूरी रात या उम्रभर तुम्हारी बांहों में गुजार सकता हूं मेरी जान,” एक जोरदार ठहाके के साथ निखिल बोला.

“प्लीज निखिल, अभी मजाक का वक्त नहीं है,” उस ने झिड़का, “मैं एक बहुत बड़ी परेशानी में फंस गई हूं. मुझे तुम्हारी मदद चाहिए.”

श्लोका की बात पर निखिल बोला कि जो भी परेशानी है, वह उसे फोन पर भी बता सकती है. लेकिन वह कहने लगी कि वह यह बात उसे फोन पर नहीं बता सकती, इसलिए कल वह उसे कालेज के पास जो कौफी शौप है, वहां आ कर मिले.

अंजू जब श्लोका को खाने के लिए बुलाने आई, तो उस ने यह कह कर खाना खाने से मना कर दिया कि अभी उसे भूख नहीं है, बाद में खा लेगी. न तो श्लोका को सोते बन रहा था और न जागते. सोच कर ही बेचैन हुई जा रही थी कि अगर उस के मांपापा को उस की प्रेग्नेंसी के बारे में भनक भी लग गई, तो घर में तूफान आ जाएगा. लेकिन उस से गलती कहां हो गई, यह बात उसे समझ ही नहीं आ रहा थी? क्योंकि उस ने तो हमेशा सावधानी बरती और जिस में निखिल ने भी उस का पूरा साथ दिया. फिर वह प्रेग्नेंट कैसे हो गई?

‘हां, शायद उस,’ श्लोका ने अपने दिमाग पर जोर डाला, तो उसे याद आया, 31 दिसंबर के दिन वह अपने मांपापा से झूठ बोल कर, कि वह अपनी एक सहेली के घर पार्टी में जा रही है और जल्द ही वापस आ जाएगी, निखिल के घर चली गई थी.

निखिल के जोर देने पर उस ने एक के बाद 2 और 2 के बाद पता नहीं और कितने पैग लगा लिए थे कि फिर उसे कुछ होश ही नहीं रहा. निखिल भी कहां होश में था. दोनों देर रात तक एकदूसरे में खोए रहे थे और जिस का नतीजा आज उस के सामने है.

निखिल और श्लोका एकदूसरे से प्यार करते हैं और दोनों 2 सालों से रिलेशनशिप में हैं. मगर यह बात श्लोका ने अब तक अपने परिवार वालों से इसलिए छिपा रखी, क्योंकि उस के मांपापा बड़े सख्त मिजाज के इनसान हैं. अगर उन्हें श्लोका की प्रेममुहब्बत की भनक भी लग गई न, तो वे इस की पढ़ाई छुड़वा कर घर बिठा देंगे और जितनी जल्दी हो सके, किसी से भी इस की शादी करवा देंगे.

हमारे भारतीय समाज में अमूमन लड़कियों से ‘वन मैन वुमन’ होने की उम्मीद की जाती है. मांबाप की सोच कि जिस से उन की बेटी की शादी हो वही उस का क्रश, दोस्त या प्रेमी बने. महिलाओं के किसी अन्य तरह के रिश्ते या पुरुष दोस्त को आसानी से हमारा समाज स्वीकार नहीं कर पाता है.

 

Father’s Day 2023: मेरे पापा सिर्फ आप हैं- भाग 1

आशीष बेतरह उदास था. मां की तस्वीर के आगे चुपचाप सिर झुकाए बैठा था. बार-बार आंखें आंसुओं से छलछला उठती थीं. बाइस साल के इकलौते बेटे को डॉक्टर बनाने का सपना पाले मां ने अचानक ही आंखें मूंद ली थीं. उनके जाने का किसी को यकीन ही नहीं हो रहा था. न आशीष को, न उसके पापा संजीव को और न ही परिवार के अन्य सदस्यों को. आज मां की तेरहवीं थी. बैठक के कमरे में सोफे हटा कर जमीन पर गद्दे डाल सफेद चांदनी बिछा दी गयी थी. सामने एक छोटी मेज पर मां फोटो में मुस्कुरा रही थी. पापा बार-बार उसके आसपास अगरबत्तियां लगा रहे थे. दरअसल इस बहाने से वो अपने आंसुओं को दूसरों की नजरों से छिपा रहे थे. अभी कल तक तो भली-चंगी थी. कभी ब्लडप्रेशर तक चेक कराने की जरूरत नहीं पड़ी, और अचानक ही ऐसा कार्डिएक अटैक पड़ा कि डॉक्टर तक बुलाने की फुर्सत नहीं दी उसने. खड़े-खड़े अचानक ही संजीव की बाहों में झूल गयी. संजीव चीखते रह गये, ‘रागिनी, रागिनी… आंखें खोलो… क्या हुआ… आंखें खोलो रागिनी…’ मगर रागिनी होती तब तो आंखें खोलती… वह तो एक झटके में अनन्त यात्रा के लिए प्रस्थान कर चुकी थी. पापा की चीखें सुन कर आशीष अपने कमरे से बदहवास सा भागा आया… पापा मां को तब तक जमीन पर लिटा चुके थे. आशीष ने भी मां को झकझोरा, मगर मां जा चुकी थी. जिसने भी सुना आश्चर्यचकित रह गया. कितनी भली महिला थी. हर वक्त हंसती-मुस्कुराती रहती थी. कभी किसी ने रागिनी को ऊंची आवाज में बात करते नहीं सुना था. मधुर वाणी, शालीन व्यवहार वाली रागिनी हरेक की मदद के लिए हर वक्त तैयार रहती थी. घर को तो उसने स्वर्ग बना कर रखा था. पति संजीव और बेटे आशीष पर उसका स्नेह हर वक्त बरसता था. दोनों ही उसके प्रेम की डोर में बंधे जीवन-आनन्द में डूबे थे कि अचानक ही यह डोर टूट गयी.

बैठक में काफी लोग जमा थे. सभी के चेहरों पर उदासी थी. बड़े-बूढ़े बारी-बारी से आकर आशीष के सिर पर हाथ फेर कर उसे सांत्वना देने की कोशिश कर रहे थे. अचानक एक हाथ आशीष के सिर पर काफी देर तक रुका रहा. आशीष ने सिर उठा कर पास खड़े सज्जन का चेहरा देखा तो एकटक देखता ही रह गया. वो हू-ब-हू उसकी ही तरह दिख रहे थे, बल्कि यूं कहें कि आशीष हू-ब-हू उनकी तरह था… जैसे उनकी कार्बन कॉपी. बैठक में बाकी लोग भी आश्चर्यचकित से इस आगन्तुक को देख रहे थे. इससे पहले तो इन्हें कभी इस घर में नहीं देखा गया. कौन थे ये? और आशीष से इनका चेहरा और कदकाठी इसकदर कैसे मिलती है, बिल्कुल जैसे उसके बड़े भाई हों. आशीष का चेहरा-मोहरा न तो उसकी मां से मिलता था और न ही उसके पापा संजीव की कोई झलक उसमें थी, मगर इस आगन्तुक से वह इतना ज्यादा रिजेम्बल कैसे कर रहा है? हरेक की आंखों में यही सवाल था. आशीष और संजीव की आंखों में भी कि – आप कौन हैं?

आगन्तुक ने आगे बढ़कर रागिनी की फोटो पर फूल चढ़ाये और हाथ जोड़कर वहीं संजीव के निकट ही बैठ गया. उसने धीरे से संजीव के कानों के पास मुंह ले जाकर कुछ कहा. फिर दोनों के बीच खामोशी पसर गयी. काफी देर तक वह आगन्तुक वहीं संजीव के पास ही बैठा रहा. बीच में धीरे-धीरे दो-चार बातें भी कीं. करीब आधे घंटे बाद वह उठे और संजीव व आशीष से विदा लेकर चले गये. गमगीन माहौल था, लिहाजा लोगों ने उस वक्त आगन्तुक के विषय में कोई सवाल नहीं किया, मगर लोगों के बीच फुसफुसाहट जरूर होती रही. शाम तक सभी लोग जा चुके थे. बैठक खाली हो गयी थी. बस संजीव और आशीष ही रागिनी की तस्वीर के साथ रह गये थे. तभी आशीष ने चुप्पी तोड़ते हुए पूछा, ‘पापा, वो अंकल कौन थे, जो बिल्कुल मेरी तरह दिख रहे थे?’

संजीव ने गहरी नजरों से आशीष के चेहरे की ओर देखा और बोले, ‘वो… वो तुम्हारी मम्मी के कॉलेज टाइम के दोस्त हैं. अभय… अभय नाम है उनका. मैं भी आज पहली बार ही मिला हूं उनसे… वो कल फिर आएंगे.’

GHKKPM: विराट के घर में आग लगाकर गई पाखी, विनायक करेगा पापा से नफरत

सीरियल गुम है किसी के प्यार में बवाल खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा है आए दिन कुछ न कुछ नया ड्रामा देखने को मिल रहा है. हालांकि इस ड्रामे ने दर्शकों के सिर में दर्द बनाकर रख दिया है.

जहां एक तरफ सई औऱ सत्या ने शादी कर ली है तो वहीं पत्रलेखा ने भी घर छोड़ दिया है, जिसका पूरा इल्जाम सई के ऊपर आ रहा है, भवानी और विराट लगातार सई को दोषी मान रहे हैं. सीरियल में भवानी और अंबा का आमना सामना होता है. अबा को देखते भवानी जमकर खरी-खोटी सुनाती नजर आती है. वह सत्या के बाप का नाम भी पूछती है.

आगे देखने को मिलेगा कि विनायक को पत्रलेखा कि चिट्ठी मिल जाती है और वह परेशान होने लगता है कि उसके साथ ऐसा हुआ है. विनायक अपने बाप से नफरत करने लगता है, हालांकि विराट को सच का पता लगते ही वह पत्रलेखा को खोजने निकल जाता है.

वह खूब पता लगाने की कोशिश करता तो है लेकिन उसके पास कोई सबूत नहीं है जिससे वह पाखी का पता लगा पाए. वहीं दूसरी तरफ अंबा को रोता देख सई उसकी मदद करने की कोशिश करती है.

कार्तिक आर्यन की मां ने कैंसर को हराया तो बेटे ने लिखा इमोशनल पोस्ट

बॉलीवुड एक्टर कार्तिक आर्यन अपनी बेहतरीन एक्टिंग के लिए जाने जाते हैं, वह सोशल मीडिया पर भी काफी ज्यादा एक्टिव रहते हैं, कार्तिक आए दिन अपने से जुड़े अपडेट शेयर करते रहते हैं.हाल ही में कार्तिक ने अपनी मां माला तिवारी के बारे में अपडेट दिया है.

बता दें कि कार्तिक आर्यन की मां ने हाल ही कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी को मात दिया है, कार्तिक ने बताया कि मां कि तबीयत काफी समय से खराब चल रही थी, मां के इस बीमारी के बारे में जबसे पता चला था पूरा परिवार परेशान हो गया था. लंबे समय तक कैंसर का इलाज कराने के बाद मां अब बीमारी से उबर चुकी हैं.

 

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5 साल पहले कार्तिक की मां को ब्रेस्ट कैंसर हुआ था, कार्तिक ने अपनी मां के साथ फोटो शेयर करते हुए लिखा है कि कुछ समय पहले इसी महीने में बि सी हमारे घर में चुपके से घुस गया और परिवार को अस्त व्यस्त करके रख दिया था. हम सब हताश निराश और बेबस भी थें. लेकिन हमने हार नहीं मानी और इस बीमारी से जीत लिए.

कार्तिक आर्यन के इस पोस्ट पर फैंस और सेलिब्रिटी लगातार पोस्ट करके उनके हिम्मत को बढ़ा रहे हैं. अगर कार्तिक की वर्क फ्रंट की बात करें तो वह कई सारे नए प्रोजेक्ट पर काम कर रहे हैं.

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