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हार्ट अटैक जान पर भारी

हार्ट अटैक ऐसी गंभीर समस्या है जिस में मरीज तो मरीज, पूरा परिवार भी सकते में आ जाता है. ऐसी स्थिति में सारी चीजें आननफानन होती हैं. इस का फायदा अस्पताल और डाक्टर उठाने से गुरेज नहीं करते. हार्ट अटैक ऐसी समस्या है जिस का नाम सुनते ही कुछ लोग तो एकदम से घबरा जाते हैं.

अकसर यह समस्या सर्दी में इंसान पर ज्यादा अटैक करती है क्योंकि ठंड के कारण खून में गाढ़ापन आ जाना, ठंड की वजह से ज्यादा हैवी डाइट लेना जोकि उम्र के हिसाब से ज्यादा नहीं लेनी चाहिए या कभी ऐसा भी होता है कि पारिवारिक परिस्थितियों के चलते अत्यधिक टैंशन लेने से दिल की धड़कन, जोकि नौर्मल 70-72 प्रति मिनट होती है, का बहुत तेज हो जाना आम होता है. ऐसे ही कुछ कारण होते हैं हार्ट अटैक के.

इसी तरह 4 साल पहले जनवरी की ठंड और उस पर शुगर के पेशेंट मेरे पति सुबह ठीकठाक घर से नाश्ता कर के दुकान गए. लेकिन उन्हें अचानक सीने में दर्द हुआ. बेटा ?ाटपट पास के बीएएमएस डाक्टर के पास ले गया. डाक्टर तकलीफ देखते ही ईसीजी करने लगा और रिपोर्ट देख कर उन्होंने मेरे बेटे से कहा कि अभी तुरंत हार्ट केयर सैंटर ले कर जाओ, जोकि हमारे यमुनानगर शहर में ही था, हालांकि अब वह बंद हो चुका है. उस सैंटर के बंद होने का कारण यह कि डाक्टरी पेशा एक बिजनैस बन चुका है.

उस सैंटर में कमीशन खाने या फुजूल में पेशेंट को डरा कर, ऐसे टैस्ट करवाए जाते हैं जिन की जरूरत भी नहीं. इस के चलते लोगों का भरोसा उठ चुका था. यही वजह रही कि हार्ट सैंटर कामयाब नहीं रहा. डाक्टर ने जब मेरे बेटे से कहा कि देर नहीं करनी चाहिए तो वहीं से ही पेशेंट को हार्ट सैंटर ले जाया गया. जाते ही उन्होंने कहा कि स्टेंट डलेंगे. एक, दो या तीन कितने, यह अभी नहीं बता सकते.

यह हमें टैस्ट के बाद पता चलेगा. हम ने पेशेंट को उन के हवाले कर दिया था और कहा, कुछ भी करो बस, ठीक कर दो. दरअसल वह समय ऐसा होता है कि परिवार वाले पेशेंट की जान हथेली पर ले कर घूमते हैं. वे तो उसे अपनी मुट्ठी में संभाल कर रखना चाहते हैं किसी भी कीमत पर. उन्होंने ट्रीटमैंट शुरू कर दिया. मेरे पति को कुछ हलका सा दर्द कम हुआ. मगर अभी भी वे कह रहे थे कि दर्द हो रहा है, मैं पास ही खड़ी थी. अचानक उन की हार्ट बीट बंद होने लगी. वे छटपटाने लगे. मेरी बहू, जो डाक्टरी लाइन से संबंध रखती है, ने शोर मचा कर डाक्टर को बुलाया.

तब हमें बाहर निकाल कर कुछ ‘शौक’ इत्यादि दिया गया तो लगभग हार्टबीट जो बंद हो गई थी, फिर से चल पड़ी और इमरजैंसी में एंजियोग्राफी कर के 2 स्टेंट डाले गए जिस का खर्चा उस समय सवा 2 लाख रुपए आया. 2 लाख रुपए उसी समय पहले डिपौजिट कराए गए. उस समय हमारे पास कहीं और जाने का औप्शन नहीं था. हालात कुछ ऐसे हो गए थे. दूसरा केस जोकि चंडीगढ़ जीरकपुर का है. पेशेंट यानी कि मेरे भाईसाहब को सीने में दर्द हुआ तो पास के ही डाक्टर को दिखाया गया, जिस ने कहा कि आप इन्हें किसी अस्पताल ले जाएं. उन्हें जीरकपुर के अस्पताल ले जाया गया जोकि कार से उतर कर खुद डाक्टर के चैंबर तक गए. डाक्टर को तकलीफ बताने पर और फिर उन के द्वारा ईसीजी करने के बाद डाक्टर ने कहा कि अभी इसी वक्त स्टेंट डालने होंगे.

जब पेशेंट खुद चल कर अंदर तक जाए तो परिवार को नहीं लगता कि कोई मेजर प्रौब्लम हो सकती है. इसलिए वे वहां से चंडीगढ़ के सैक्टर 47 में आईबीवाई अस्पताल ले गए. ईसीजी की रिपोर्ट देख कर उन्होंने भी कहा कि टैस्ट किए जाएंगे. हो सकता है स्टेंट डालना पड़े, लेकिन हम श्योर नहीं हैं, कुछ टैस्ट होंगे तब ही बता पाएंगे. यह सुन कर पेशेंट के परिवार वालों ने सोचा कि वे पेशेंट को चंडीगढ़ पीजीआई इंस्टिट्यूट ले जाएं. ऐसे इंस्टिट्यूट में डाक्टरों की भी अच्छी टीम होती है और साथ में प्राइवेट न होने की वजह से उन्हें कोई लालच भी नहीं होता.

जब पेशेंट को पीजीआई अस्पताल में लाया गया तो डाक्टरों की टीम ने एडमिट कर के टैस्ट किए, एक हार्ट वेन में 100 फीसदी ब्लौकेज था. एंडोस्कोपी कर के उस में से ब्लड के क्लौट्स निकाले. जिस का लगभग 80-90 हजार रुपए खर्च आया. उस के बाद उन्हें 4 दिनों तक अस्पताल में रख कर खून पतला करने का इकोस्प्रीन गोल्ड 10 या 20 नाम की दवाई दी गई. उस के बाद जो वेन 100 फीसदी ब्लौकेज की वजह से काम करना बंद कर चुकी थी, वह रिवाइव हो गई और तब जो शेष ब्लौकेज बचा था,

उस के लिए एक स्टेंट डाला गया जिस का खर्च सवा लाख रुपए आया. तीसरा केस थोड़ा अलग है, जिसे सुन कर शायद आप भी अवाक रह जाएंगे. यह मामला यमुनानगर का है. 55 साल की एक स्त्री को अचानक बाईं बाजू में दर्द उठा. जब दर्द हद से ज्यादा बढ़ने लगा, उस ने पति और बेटे को फोन कर के कहा कि आते हुए डाक्टर से शाम का अपौइंटमैंट लेते आएं ताकि शाम को डाक्टर को दिखा सकें. लेकिन बेटा नहीं माना और वह उसी समय मां को डाक्टर के पास ले गया. जाते ही डाक्टर ने टैस्ट और ट्रीटमैंट शुरू कर दिया. थोड़ी देर बाद कहा कि इन्हें हार्ट अटैक ही आया है और हमें एंजियोग्राफी करनी होगी जिस से पता चलेगा कि वेन्स में कितनी ब्लौकेज है.

उस से पता चलेगा कि इन्हें कितने स्टेंट पड़ेंगे. यदि एक स्टेंट पड़ा तो लगभग 1 लाख 40 हजार रुपए तक खर्च आएगा और अगर 2 स्टेंट डले तो लगभग 1 लाख 75 हजार या 2 लाख रुपए तक खर्च आ सकता है. इतना खर्च पेशेंट के परिवार के वश में न था. पेशेंट के परिवार ने एकदो से सलाह ली. सब ने अम्बाला या चंडीगढ़ ले जाने को कहा कि वहां इंस्टिट्यूट है और ट्रीटमैंट भी अच्छा होगा और शायद कुछ खर्च भी कम आएगा. उन्हें यह सही लगा और उन्होंने डाक्टर से कहा कि वे अपने पेशेंट को दूसरे शहर इंस्टिट्यूट में ले जाना चाहते हैं. इस पर डाक्टर ने बड़े ही रूड वे में बात की.

जब एंबुलैंस के लिए कहा तो साफ मना कर दिया, बोले, ‘हम नहीं देंगे एंबुलैंस.’ कहने लगे कि ‘हो सकता है आप का पेशेंट वहां तक पहुंच ही न पाए.’ उन का कहने का अर्थ यह था कि अस्पताल से निकलते ही पेशेंट की जान को खतरा है. जबकि उस समय पेशेंट ठीक स्थिति में लग रहा था. सब के कहने पर पेशेंट को दूसरी एम्बुलैंस ले कर अंबाला ले जाया गया और वहां जा कर उन्होंने पूरी रात बिना किसी दवाई के रखा क्योंकि उन्होंने कहा कि आप के पेशेंट को ब्लौकेज अवश्य है मगर ऐसा नहीं कि इमरजैंसी हो. कल सुबह इन की एंजियोग्राफी कर दी जाएगी. अगले दिन एंजियोग्राफी कर के एक स्टेंट डाल दिया गया जिस का कुल खर्च 65 हजार रुपए आया. सोच कर भी ग्लानि आती है कि कोई डाक्टर अपने फायदे के लिए पेशेंट को या उस के परिवार को पेशेंट की जान जाने की ?ाठी बातें कर के इतना डरा सकते हैं. अब आते हैं कि एक्चुअल में स्टेंट की सही कीमत व डाक्टर पेशेंट से कितना ले रहे हैं पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने ‘कोरोनरी स्टेंट’ को आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची 2022 में शामिल किया. स्टेंट आमतौर पर 2 तरह का होता है. एक बियर मैटल होता है, जिस की पहले कीमत 13,000 से 25,000 हजार रुपए थी. अब 7,800 से 10,000 हजार रुपए हो गई है.

दूसरा ड्रग ई ल्यूटिंग जिस की पहले कीमत 23,000 से 1 लाख 10 हजार रुपए तक थी और अब 29,500 से 31,000 रुपए तक हो गई है. एक स्टेंट की कीमत 10 से 33 हजार रुपए तक थी जो घट कर 6 से 22 हजार रुपए रह गई है. स्टेंट लगभग 15 से 20 मिलीमीटर तक लंबा होता है. यह स्टेनलैस स्टील, प्लेटिनम क्रोमियम और कोबाल्ट क्रोमियम जैसी धातु से बनता है. स्टेंट पर पौलिमर की कोटिंग होती है एवं ज्यादातर स्टेंट पर ऐसे ड्रग की कोटिंग होती है जो स्टेंट के बीच में स्टार टिश्यू बनने से रोकती है. स्टार टिश्यू की वजह से ही धमनियों में अवरोध उत्पन्न होता है. ऐसे स्टेंट को ड्रग एल्यूटेटिड स्टेंट कहा जाता है. स्टेंट अधिक समय तक काम कर सके, इस के लिए 95 फीसदी ड्रग एल्यूटेटिड स्टेंट ही लगाया जाता है. बीएचएन के वरिष्ठ हृदय रोगी विशेषज्ञ डाक्टर संतोष गुप्ता का कहना है कि एक स्टेंट की एक्चुअल वैल्यू 8 से 25 हजार रुपए तक होती है लेकिन प्राइवेट अस्पतालों में एक स्टेंट की कीमत एक से सवा लाख रुपए तक वसूली जाती है.

सरकार के स्टेंट की कीमत कम करने के बावजूद 1 से 1.25 या 1.35 लाख रुपए का खर्च आ ही जाता है. जब से रेट कम हुए हैं, अस्पतालों ने पैकेज तय कर दिए हैं. लेकिन पैकेज तय किए जाने के बावजूद मरीजों से अधिक पैसे लिए जाते हैं, जिस में एडमिशन और इन्वैस्टिगेशन चार्ज से ले कर प्रोसीजर और आईसीयू चार्ज बढ़ा दिए जाते हैं, जिस से रेट कम होने पर भी एंजियोग्राफी सस्ती नहीं है. सर्जरी के बाद जरूरी सावधानी साओल हार्ट सैंटर के संस्थापक डा. बिमल छाजेड़ का मानना है कि एंजियोप्लास्टी के बाद पेशेंट्स को उचित उपचार सुनिश्चित करने और कौंप्लीकेशंस को रोकने के लिए सावधानी बरतनी चाहिए.

एंजियोप्लास्टी के बाद सफल रिकवरी के लिए इन सावधानियों का पालन करना आवश्यक है : मरीजों को अपनी दवा के नियमों का पालन करना चाहिए और कम से कम एक सप्ताह तक भारी चीजों को उठाने या जोरदार गतिविधियों को करने से बचना चाहिए. उन्हें धूम्रपान से बचना चाहिए और हृदय-स्वस्थ डाइट का पालन करना चाहिए जो लो सैचुरेटेड और ट्रांस फैट में कम हो व फलों, सब्जियों, होलग्रेन और लीन प्रोटीन में उच्च हो. सैचुरेटेड और ट्रांस फैट के चलते शरीर में कोलैस्ट्रौल जमने लगता है. चूंकि कोलैस्ट्रौल वसा का एक प्रकार है जिसे लाइपोप्रोटीन कहते हैं.

लाइपोप्रोटीन 2 तरह के होते हैं- एक लो डैंसिटी लाइपोप्रोटीन यानी एलडीएल और एक हाई डैंसिटी लाइपोप्रोटीन यानी एचडीएल. शरीर में एचडीएल का बढ़ना अच्छा माना जाता है लेकिन एलडीएल का बढ़ना हमारे शरीर के लिए बहुत खराब माना जाता है. दरअसल एलडीएल ही विलेन या कहें बैड कोलैस्ट्रौल है. एलडीएल ज्यादा होने पर खून धमनियों में जमा होने लगता है जिस से हार्ट की बीमारी का जोखिम बढ़ जाता है. एक सामान्य व्यक्ति में अगर टोटल कोलैस्ट्रौल का स्तर 240 या इस से ज्यादा हो तो यह बेहद खतरनाक माना जाता है.

यदि गुड कोलैस्ट्रौल यानी एचडीएल पुरुषों में 40 से कम हो जाता है और महिलाओं में 50 से कम तो यह बहुत खतरनाक संकेत हो सकता है. डाक्टरों के मुताबिक, टोटल कोलैस्ट्रौल का स्तर अगर 200 से 239 के बीच है तो यह जोखिमपूर्ण संकेत है. वहीं एलडीएल (बैड कोलैस्ट्रौल) का स्तर यदि 100 से 159 के बीच है तो सम?ाना चाहिए कि यह किसी बीमारी के खतरे की घंटी है. मरीजों को अपने डाक्टर के साथ समयसमय पर फौलोअप अपौइंटमैंट लेना चाहिए और सीने में दर्द या सांस की तकलीफ जैसे किसी भी लक्षण का अनुभव होने पर उन्हें तुरंत सूचित करना चाहिए. नियमित व्यायाम, स्वस्थ वजन बनाए रखने और तनाव के स्तर को प्रबंधित करने जैसे जीवनशैली में आवश्यक बदलाव भविष्य में हृदय की समस्याओं के जोखिम को कम कर सकते हैं. स्टेंट को आमतौर पर सुरक्षित और प्रभावी माना जाता है. इस प्रक्रिया से जुड़े कुछ जोखिम भी हैं.

इन में ब्लीडिंग इन्फैक्शन और ब्लड वेसल या उस के आसपास को नुकसान होना शामिल हो सकता है. दुर्लभ मामलों में स्टेंट अलग भी हो सकता है या अन्य जटिलताओं का कारण बन सकता है. स्टेंट भी समय के साथ ब्लौक्ड या बंद हो सकते हैं. खासकर अगर उन का ठीक से रखरखाव न किया जाए. स्टेंट वाले मरीजों को ब्लड क्लौट्स व टिशू के चारों ओर सूजन व निशान के जोखिम को कम करने के लिए दवा लेने की आवश्यकता हो सकती है. आर्टरी और अन्य खोखले अंगों में रुकावटों के उपचार में स्टेंट एक मूल्यवान उपकरण है. ये सहायता प्रदान कर के और प्रभावित क्षेत्र को खुला रखते हुए काम करते हैं जिस से रक्त या अन्य तरल पदार्थ स्वतंत्र रूप से प्रवाहित होते हैं. जबकि प्रक्रिया से जुड़े जोखिम हैं. स्टेंटिंग के लाभ महत्त्वपूर्ण हो सकते हैं, जिन में दिल के दौरे, स्ट्रोक और अन्य गंभीर स्थितियों की रोकथाम शामिल है.

क्या है ईसीजी ईसीजी का पूरा नाम इलैक्ट्रोकार्डियोग्राम है. ईसीजी टैस्ट का उपयोग दिल से संबंधित समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है. इस टैस्ट से दिल की धड़कन की गतिविधियों को रिकौर्ड किया जाता है, यानी पता लगाया जाता है कि हमारा दिल कितनी गति से धड़क रहा है. इस के साथ दिल की मांसपेशियों में किसी प्रकार की सूजन या हार्ट अटैक जैसी गंभीर समस्या का पता लगाया जा सकता है. आमतौर पर ईसीजी टैस्ट तभी करवाया जाता है जब पेशेंट डाक्टर के पास दिल से जुड़ी समस्याओं को ले कर जाता है या डाक्टर को लगता है कि पेशेंट की बीमारी का जुड़ाव कहीं न कहीं दिल से संबंधित है. इस में-

सीने में दर्द.

सांस लेने में परेशानी.

जल्दी थक जाना या कमजोरी महसूस होना.

दिल का असामान्य रूप से धड़कना.

दिल से असामान्य आवाज सुनाई देना.

हार्ट अटैक.

दिल की मांसपेशियों में असामान्य रूप से वृद्धि होना. ईसीजी टैस्ट मशीन में 6 वाल्व होते हैं. ये वाल्व पेशेंट के सीने से चिपकाए जाते हैं. इस के अलावा 2 वाल्व हाथों पर और 2 पैरों पर लगाए जाते हैं. ईसीजी मशीन शुरू होती है तो दिल की गतिविधि रिकौर्ड होती है जो ग्राफ के रूप में दिखाई देती है. जैसेजैसे पेशेंट का दिल पंप करता है वैसेवैसे ग्राफ ऊपरनीचे होता है. जब ईसीजी का टैस्ट पूरा हो जाता है तो उस की रिपोर्ट ग्राफ पर प्रिंट कर दी जाती है.

लेखक- प्रेम बजाज 

मेरे दोनों जुड़वा बच्चों को मोबाइल देखने की आदत हो गई है , बताइए मैं क्या करूं?

सवाल

मेरे 2 जुड़वां बच्चे हैं. 4 साल के हो गए हैं. दोनों को आजकल मोबाइल देखने की लत लग गई है. बच्चों की देखभाल के लिए सुबह से ले कर शाम 6 बजे तक की मेड रखी हुई है क्योंकि वाइफ की पिछले साल कोरोना के कारण डैथ हो गई. मेरी मां बच्चों का ध्यान रखती हैं लेकिन उन की भी अब उम्र हो गई है. बच्चों का ध्यान मोबाइल से हटाने के लिए मैं उन्हें पार्क ले जाता हूं, कार में घुमाने ले जाता हूं. तब तक तो ठीक रहता है लेकिन घर वापस आते ही फिर मोबाइल ले कर बैठ जाते हैं. बताइएक्या करूं?

जवाब

बच्चों को मोबाइल से दूर रखने के लिए बड़ों को खुद भी मोबाइल से दूरी बनानी पड़ेगी. दरअसलबच्चे अच्छी और बुरी सभी आदतें बड़ों से ही सीखते हैं. ऐसे में बच्चों के सामने मोबाइल का कम से कम इस्तेमाल करें और बच्चों को भी इस से दूर रहने की सलाह दें.

यदि बच्चे मोबाइल पर गेम खेलते हैं तो तुरंत उन्हें फटकार लगाने या गुस्सा करने के बजाय पहले मोबाइल को साइड में रख कर बच्चों को प्यार से बैठा कर समझाने की कोशिश करें कि इस से उन की आंखों पर गलत असर पड़ेगा.

बच्चे बाहर से घूम कर आएं तो उन्हें घर में उन की फेवरिट एक्टिविटी में व्यस्त कर दें. बस, पूरी कोशिश करें कि अपनी बात मनवाने के लिए उन्हें मोबाइल नहीं पकड़ाना है. ये तरीके ट्राई कीजिए, कुछ ही दिनों में फर्क नजर आएगा.

खजूर और ड्राईफ्रूट से बनाएं टेस्टी शाही सब्जी, छुहारा फिरनी और सेब की खीर

पौष्टिकता से भरपूर खजूर का सेवन अत्यंत गुणकारी होता है. कई फलों के मुकाबले इस से ज्यादा कैलोरी प्राप्त होती है और खजूर के थोड़े से सेवन से ही पेट भर जाता है. यह फाइबरयुक्त तथा फैट व कोलैस्ट्रौल फ्री होता है. सूख जाने पर इस को छुहारे के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसी तरह बादाम, अखरोट आदि सूखे मेवा भी पौष्टिकता से भरपूर होते हैं और सीमित मात्रा में इन का प्रयोग बच्चे से ले कर बुजुर्ग तक कर सकते हैं.

  1. शाही सब्जी

सामग्री
100 ग्राम मखाने,

2 बड़े चम्मच काजू टुकड़ा,

मक्खन, दही, खसखस और प्याज का पेस्ट,

1/2 कप मटर के दाने,

2 छोटे चम्मच अदरकलहसुन पेस्ट,

4 बड़े चम्मच टमाटर प्यूरी,

8 काजू साबुत,

1 बड़ा चम्मच खरबूजे की मींग,

छोटी इलायची चूर्ण,

1 तेजपत्ता,

1/2 छोटा चम्मच गरम मसाला,

1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर,

2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर,

1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर,

1 छोटा चम्मच देगी मिर्च पाउडर,

नमक स्वादानुसार,

1 बड़ा चम्मच औयल,

कटा हरा धनिया.

विधि
खरबूजे की मींग व काजू को गुनगुने पानी में 15 मिनट भिगोएं, फिर पानी निथार कर दही के साथ पीस लें.

मखानों को कड़ाही में सूखा भूनें. फिर तेल व बटर डाल कर काजू भूनें.

फिर इसी तेल में तेजपत्ता का तड़का डाल कर प्याज, अदरक, लहसुन, काजू, खसखस का पेस्ट व सूखे मसाले भूनें.

काजू, मटर व मखाने डालें व 3 कप गुनगुना पानी. मटर व मखानों के गलने तक व सब्जी के गाढ़ी होने तक पकाएं. धनिया पत्ती से सजा कर सर्व करें.

2. छुहारा फिरनी

सामग्री  
8 छुहारे,

15 बादाम,

750 मिलीलिटर फुलक्रीम दूध,

1 बड़ा चम्मच कौर्नफ्लोर,

2 बड़े चम्मच ब्राउन शुगर,

2 छोटे चम्मच बारीक कतरा पिस्ता,

1 बड़ा चम्मच बादाम के कटे टुकड़े.

विधि
छुहारे व बादाम को 4 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. छुहारे की गुठली निकाल कर व बादाम छील कर दोनों चीजों को हैंडमिक्सर में चर्न करें.

दूध उबालें, उबलते दूध में छुहारा बादाम डालें और 10 मिनट धीमी गैस पर पकाएं.

फिर 1 बड़े चम्मच ठंडे पानी में कौर्नफ्लोर घोल कर उबलते मिश्रण में डालें, लगातार चलाते रहें और चीनी डालें.

मिश्रण को गाढ़ा करें. फिर ठंडा कर के बाउल में डालें और बादाम व पिस्ता से सजा कर सर्व करें.

3. सेब की खीर

सामग्री
8-10 बीजरहित खजूर,

1/2 लिटर दूध,

2 बड़े चम्मच मिल्क पाउडर,

2 छोटे चम्मच कौर्नफ्लोर,

1 बड़ा चम्मच ब्राउन शुगर (ऐच्छिक)

1/2 कप छोटे क्यूब में कटे सेब के टुकड़े.

विधि
खजूर हैंडमिक्सर में चर्न कर लें.

दूध उबालें. उस में मिल्क पाउडर व कौर्नफ्लोर थोड़े से ठंडे दूध में मिक्स कर के डालें. खजूर भी डाल दें और मंद आंच पर लगातार चलाते रहें.

जब खीर गाढ़ी हो जाए तो एक तरफ रख दें.

सेब के टुकड़ों को 3 बड़े चम्मच पानी व चीनी डाल कर धीमी गैस पर गलने तक पकाएं.

इसे गाढ़े दूध में मिला कर फ्रिज में ठंडा करें. बढि़या खीर तैयार है.

Mother’s Day 2023: मां का प्यार- क्या कुसुम को मां का प्यार मिला

3 महीने बाद जब कुसुम घर आई तो उसे देखने पूरा गांव उमड़ पड़ा था. जैसे ही कुसुम के आने की जानकारी संगीता को हुई, वह भी कुसुम के घर जा पहुंची थी.

Mother’s Day 2023- बुरी आदत: क्यों तनुश्री अपने पति को फटकारती थी?

मां के आंचल से हाथ पोंछने की मेरी बचपन की आदत थी. इस आदत को ले कर पिताजी हमेशा टोकते थे लेकिन ऐसा करने पर मां का चेहरा ममता से भर उठता. दिक्कत तो तब होती थी जब नौकरी के लिए परीक्षा देने के लिए बाहर जाता या कभी किसी अन्य काम से खाना खाने के बाद जब नैपकिन मिलता तो मां का पल्लू याद आ जाता. ऐसा लगता कि या तो पेट नहीं भरा या खाना ही ठीक नहीं था.?

कई दिनों के बाद जब बाहर से घर आता तो मां खाना परोसतीं और खाने के बाद नैपकिन मांगता तो मां को लगता कि उन का बेटा बदल गया है. अपनी मां से पहले जैसा प्रेम नहीं करता. मां को लगता कि मुझे बाहर की हवा लग गई है. जब मां देखतीं कि मैं ने खाना खा लिया है तो मेरे पास आ कर खड़ी हो जातीं और अपना पल्लू मेरे हाथ में थमा देतीं. मुझे अच्छा लगता. जब मैं कभीकभार भूल जाता तो मां कहतीं कि बाहर जा कर तुम्हें क्या हो जाता है. अपनी मां का पल्लू भी याद नहीं रहता. मैं तुम्हें कभी बाहर नहीं जाने दूंगी.

मां के पल्लू से मेरा विशेष लगाव, प्रेम, अपनत्व था. यह मेरी दिनचर्या का हिस्सा था. मां के न रहने पर भी मुझे खाने के बाद मां की याद आती थी. कितनी अच्छी और प्यारी थीं मेरी मां. मां ने कभी न सोचा और न ही मैं ने कि मां की साड़ी खराब होती है. यही आदत शादी के बाद भी बनी रही.

शादी के बाद पत्नी ने खाना परोसा. भोजन करने के बाद जैसे ही वह नैपकिन लेने के लिए उठी, मैं ने अपनी आदत के अनुसार उस के पल्लू से हाथ पोंछ लिए. पहले तो पत्नी ने कहा, ‘‘यह क्या है?’’

मैं ने कहा, ‘‘बचपन की आदत.’’

‘‘अब आप बच्चे नहीं रहे,’’ पत्नी ने कुछ झुंझलाते और समझाते हुए कहा, ‘‘आप शादीशुदा हैं. जिस काम के लिए नैपकिन है उस काम के लिए मेरी कीमती साड़ी खराब करने की क्या जरूरत है? फिर यह कोई अच्छी आदत नहीं है. बुरी आदतें कभी भी सुधारी जा सकती हैं.’’

पत्नी के उपदेश से बचने के लिए मैं ने सौरी कहा. पत्नी ने नैपकिन ला कर दिया. मुझे बरबस ही मां याद आ गईं. मेरी आंखें भर आईं. कहां तो मेरी मां ने कभी अपनी महंगी से महंगी साडि़यों की परवा नहीं की. मां की हर साड़ी के छोर पर मेरे हाथमुंह पोंछने के निशान लगे होते. लेकिन जब तक मैं मां के पल्लू से हाथ नहीं पोंछ लेता, मेरा भोजन करना पूर्ण नहीं होता और मां का भोजन करवाना. मेरी मां को भी अलग से लाड़ दिखाने की जरूरत नहीं पड़ी और न मुझे कभी मां की ममता का यशोगान करने की. मेरे और मां के मध्य यह क्रिया हमारे प्रेम को सार्थक कर देती.

ऐसी बहुत सी बातें और आदतें हैं. लेकिन उम्र बढ़ने के साथ बहुत सी चीजें, बातें, क्रियाकलाप छूट जाते हैं. उन्हें हम भूल जाते हैं. लेकिन मां के पल्लू वाली यह बात अब आदत में आ चुकी थी. पत्नी ने जब प्यार से खाना परोसा तो मां ही लगी लेकिन हाथ पोंछने के लिए पत्नी के पल्लू का इस्तेमाल करने पर जब पत्नी ने टोका, समझाया तो समझ में आया कि नहीं, यह पत्नी ही है. पत्नी जो पति की बुरी आदतों को सुधारती है और पति के सुधरने पर गर्व करती है.

मुझे भी लगा कि जिस काम के लिए नैपकिन बना है उस के लिए पत्नी की कीमती साड़ी क्यों खराब करें? मैं ने सबक के रूप में पत्नी की बात याद रखी और भूल से भी गलती न हो जाए, इस हेतु मैं स्वयं ही खाना खाने से पहले नैपकिन अपने पास रखने लगा. तनुश्री संपन्न परिवार से थी. पढ़ीलिखी आधुनिक महिला. वह जानती थी कि परिवार को खुश कैसे रखा जाता है, एक पत्नी का क्या दायित्व होता है. लेकिन कुछ समय से वह नारी मुक्ति संगठन की सदस्य बनने से कुछ आक्रामक स्वभाव की हो गई थी. हर बात में वह यह जरूर देखती कि उस के महिला होने के आत्मसम्मान पर चोट तो नहीं पड़ रही है. उस का किसी भी तरह से शोषण तो नहीं हो रहा है. उस के अधिकारों का हनन तो नहीं हो रहा है. कर्तव्य केवल उस के नहीं हैं, पति के भी हैं, पति जो पुरुष भी है. शादी के 1-2 वर्ष तक तो वह अच्छी पत्नी रही. हर काम दौड़दौड़ कर खुशीखुशी किए. सब से मिलनाजुलना. हंस कर बोलना. सब का ध्यान रखना. लेकिन संगठन की सदस्य बन कर अब वह बातबात में रोकटोक, बहस करने लगी. पतिदेव चुपचुप रहने लगे.

एक बार उस ने देख लिया कि पति उन से छिप कर एक पेटी में से कुछ निकालते हैं. फिर रख कर ताला बंद कर देते हैं और चाबी न जाने कहां छिपा कर रख देते हैं. तनुश्री के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाने लगा. पहले उस ने सोचा कि पति से पूछे. फिर यह सोच कर चुप हो गई कि कहीं पूछने से पति सतर्क न हो जाएं. छिप कर पता लगाना ही उचित होगा. उस ने संगठन की अध्यक्षा को यह बात बताई तो उस ने कहा, ‘‘इन मर्दों का कोई ठिकाना नहीं. हो सकता है कि किसी अन्य स्त्री का कोई चक्कर हो. कहीं उस पेटी में पहली पत्नी…तुम ने पूरी जानकारी ले कर शादी की थी न? ऐसा तो नहीं कि पहली स्त्री से तलाक हो गया हो या न रही हो. तुम से दूसरी शादी…कुछ भी हो सकता है.’’

‘‘नहीं दीदी, मेरे घर वालों ने पूरी छानबीन की थी. वे ऐसा नहीं कर सकते. इतनी बड़ी बात छिप भी कैसे सकती है,’’ तनुश्री ने उदास हो कर कहा. उस के चेहरे पर उदासी की घटाएं छा गईं.

‘‘फिर तो पक्का किसी लड़की के साथ अफेयर होगा,’’ अध्यक्षा ने कहा, ‘‘तुम पता करो. औफिस की कोई महिला है या कालोनी की. एक बार पता चल जाए तो ईंट से ईंट बजा देंगे. तुम चिंता मत करो. संगठन तुम्हारे साथ है. तुम्हें न केवल तलाक दिलवाएंगे बल्कि लंबाचौड़ा हर्जाखर्चा और साथ में उस आदमी को जेल भी भिजवाएंगे. उस के खिलाफ मोरचा निकालेंगे. कहीं मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहेगा.’’

उन के चेहरे से झलक रहा था मानो किसी खूंखार भूखी शेरनी को कोई शिकार मिल गया हो.

‘‘लेकिन दीदी, मेरा घर मेरा पति, मेरा परिवार, मेरा जीवन,’’ तनुश्री ने सबकुछ लुट जाने के भाव से कहा. कहते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए.

‘‘घरपरिवार सब बाद में. पहले स्त्री का अधिकार. महिला मुक्ति ही हमारे जीवन का लक्ष्य है. महिलाओं के खिलाफ पुरुषों के अत्याचार को हम सहन नहीं करेंगे,’’ तनुश्री की उदासी देख कर अध्यक्षा ने उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘पगली, रोती क्यों है. अभी तुम्हारी दीदी जिंदा है. बस, इतना पता कर कि उस पेटी में ऐसा क्या है जो तुम्हारा पति तुम से छिपा रहा है. साबित करने के लिए सुबूत जरूरी है.’’

तनुश्री ने घर का कोनाकोना छान मारा लेकिन उसे पेटी की चाबी कहीं नहीं मिली. उस ने ठान लिया कि दूसरे दिन दोपहर में पति के दफ्तर जाने के बाद वह ताले को तोड़ेगी और इस भेद को जान कर रहेगी. वह बीमारी का बहाना कर के पड़ी रही. पति ने पूछा, ‘‘क्या हुआ? तबीयत खराब है?’’

उस ने गुस्से में कहा, ‘‘क्यों, क्या मैं आराम नहीं कर सकती. यदि मेरा काम करने का मन न हो तो भी मुझे काम करना पड़ेगा. कोई जबरदस्ती है,’’ तनुश्री का गुस्सा देख कर पति चुप हो गए. पति ने उसे अपने हाथ से खाना बना कर दिया. गुस्से में उस ने खाने से मना कर दिया, ‘‘मुझे भूख नहीं है.’’

पति ने इस के बाद कुछ न कहा. तनुश्री सोचने लगी, ‘कितना चालाक आदमी है. सामने कितना शरीफ बनता है. और पीठ पीछे न जाने क्याक्या गुल खिलाता है. उस के दिमाग में विचारों के आंधीतूफान उठते रहे. नींद आंखों से कोसों दूर थी. दिमाग में बस यही चल रहा था कि क्या होगा उस पेटी में.’

पति के दफ्तर जाते ही सब से पहले वह पेटी के पास पहुंची. उस ने पेटी में लगे ताले पर पत्थर से 3-4 प्रहार किए. ताला तो नहीं टूटा, पेटी जरूर जगह से खिसक गई. पेटी के नीचे चाबी देख कर वह चकित रह गई. इतनी चालाकी से छिपाया तभी पूरे घर में तलाशने से भी नहीं मिली. यह आदमी तो बड़ा छिपारुस्तम निकला. उस ने झट से ताला खोला. उस में एक पुरानी सी लेकिन चमकदार साड़ी निकली. कोई आ न जाए, कोई देख न ले. इस कारण उस ने साड़ी को ज्यों का त्यों उठा कर एक थैले में भर लिया. साड़ी न इस्त्री की हुई थी न ही तह कर के रखी हुई थी. अस्तव्यस्त थी.

वह साड़ी ले कर अध्यक्ष महोदया के घर पहुंची. उसे देख कर अध्यक्षा आश्चर्य से बोलीं, ‘‘अचानक कैसे? औफिस में आ जातीं.’’

‘‘दीदी, सुबूत मिल गया है. साड़ी निकली है पेटी में से,’’ तनुश्री ने लगभग रोते हुए कहा.

अध्यक्षा ने हड़बड़ा कर कहा, ‘‘अरे, रोओ मत, यह मेरा घर है. पता नहीं घर के लोग क्या सोचने लगें. तुम एककाम करो. थोड़ी देर बैठो. मैं घर के काम निबटा कर चलती हूं. चाय भी भिजवाती हूं.’’

‘‘मंगला, खाना तैयार है,’’ तभी घर से एक वृद्ध पुरुष की आवाज आई.

‘‘बस 2 मिनट,’’ अध्यक्ष महोदया का उत्तर था.

‘‘मंगला चाय बन गई मेरी,’’ एक वृद्ध स्त्री का स्वर गूंजा.

‘‘अभी लाई मांजी,’’ अध्यक्ष महोदया का स्वर था.

‘‘मंगला मेरा टिफिन तैयार है,’’ एक अधेड़ मर्दाना आवाज आई.

‘‘हां, तैयार कर रही हूं,’’ अध्यक्षा ने कहा.

‘‘कौन आया है, तुम अपने संगठन के झंझट वहीं सुलझाया करो. यह घर है तुम्हारा, औफिस नहीं,’’ अधेड़ की आवाज में कुछ तेजी थी.

‘‘अरे मेरी सहेली है,’’ मंगला अर्थात अध्यक्षा की आवाज उस के कानों में गूंजी.

‘‘क्या दुख है बेचारी को?’’ पति की आवाज व्यंग्यभरी थी.

‘‘चुप रहो, सुन लेगी,’’ अध्यक्षा की आवाज थी. स्त्रियों को पुरुषों के विरुद्ध भड़काने वाली अपने घर में सब को खुश रख रही है. पति, सासससुर सब के आगेपीछे घूम कर हुक्म बजा रही है और… इतने में मंगला तैयार हो कर आ गई.

‘‘चलो निकलते हैं. नहीं तो घर के काम तो खत्म ही नहीं होते,’’ अध्यक्षा ने कहा.

‘‘दीदी, आप तो घर में कुछ और औफिस में कुछ और ही नजर आती हैं,’’ तनुश्री ने कहा.

‘‘अरे बहन, यह मेरा घर है. घर में घर जैसी ही रहूंगी न. घर में मैं बहू हूं, पत्नी हूं, मां हूं. अभी बच्चे नहीं आए स्कूल से. नहीं तो आ भी नहीं पाती, तुम्हारे साथ. हां, कहो, क्या सबूत मिला?’’

‘‘साड़ी,’’ तनुश्री ने धीरे से कहा.

‘‘अब देखो, खैर नहीं तुम्हारे पति की.’’

औफिस पहुंचते ही अध्यक्षा ने कहा, ‘‘दिखाओ.’’

उस ने साड़ी निकाल कर दी. अध्यक्षा ने साड़ी को पूरा फैलाया. उस में से एक कागज गिरा. तनुश्री ने उसे उठाया. अध्यक्षा ने कहा, ‘‘प्रेमपत्र होगा. पढ़ो. यह इतनी गंदी अस्तव्यस्त साड़ी.’’

अध्यक्षा ने साड़ी का गौर से मुआयना किया. उसे सूंघा. साड़ी को बहुत बारीकी से देखा. इस बीच तनुश्री पत्र पढ़ती रही. पत्र पढ़तेपढ़ते उस की आंखों से आंसू बहने लगे.

प्यारी मां,

आप तो रही नहीं. बचपन की एक आदत अभी तक नहीं छूटी आप के कारण. आप ने बताया भी नहीं कि यह गलत आदत है. आप तो कहती थीं कि भोजन परोसते वक्त पत्नी भी मां का रूप होती है. आप की बहू ने तो अपने पल्लू से हाथ पोंछने को बैड मैनर्स करार दे दिया. मैं भोजन के बाद आप की साड़ी से हाथमुंह पोंछता हूं. आदत जाती ही नहीं. लगता ही नहीं कि पेट भर गया. मन तृप्त ही नहीं होता. तनुश्री में तो मां नहीं मिली. वह आधुनिक स्त्री है. वह मेरी इस गंदी आदत के कारण अपनी कीमती साडि़यों का सत्यानाश क्यों करवाएगी. सो, मैं आप की साड़ी से आज भी हाथमुंह साफ करता हूं. मैं जानता हूं कि आप पहले की तरह ममता से भर जाती होंगी. मुझे भी लगता है कि मेरी मां मेरे सामने खड़ी है.

आप का बेटा.

अध्यक्ष महोदया ने तनुश्री को जोरजोर से रोते देखा. पत्र अपने हाथ में ले लिया. पत्र पढ़ कर वे भी सन्नाटे में आ गईं. क्याक्या न कह डाला उन्होंने. क्याक्या न सोच लिया. हां, प्रेमपत्र ही तो था. एक लाड़ले बेटे का दुनिया से विदा ले चुकी अपनी मां के नाम. वे तनुश्री को सीने से लगा कर उस के सिर को सहलाती रहीं. उन्होंने तनुश्री से माफी मांगते हुए कहा, ‘‘तनु, मुझे माफ कर दो. अपने पति की मां बन जाओ और सद्गृहस्थता को सार्थक करो. तुम्हारे पति को पत्नी के साथसाथ मां की भी जरूरत है.’’

आज जब मैं खाना खा कर नैपकिन की तरफ बढ़ा तो नैपकिन वहां नहीं था जहां मैं ने रखा था. मैं ने तनु को आवाज दी तो उस ने अपनी साड़ी का छोर पकड़ाते हुए कहा, ‘‘इस से पोंछ लो.’’

‘‘अरे, लेकिन तुम्हारी महंगी साड़ी खराब…’’

मेरा वाक्य पूरा नहीं हो पाया. तनु ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया और आंखों में आंसू भरते हुए कहा, ‘‘आप की भावनाओं से ज्यादा कीमती नहीं है दुनिया की कोई भी साड़ी. आज से आप का नैपकिन मेरी साड़ी का पल्लू ही होगा. जिस दिन आप ने मेरे पल्लू से हाथमुंह साफ नहीं किया, मैं समझूंगी आप का स्नेह मेरे प्रति कम हो गया है.’’ तनु के चेहरे के भाव देख कर मेरे सामने मां का चेहरा घूम गया.

Mother’s Day 2023- बेटे की चाहत: क्या तनु अपने परिवार को बचा पाई?

देशी घी के लड्डुओं की खुशबू घरआंगन में पसरी हुई थी. तनु एकटक लड्डुओं को देखे जा रही थी. उन्हें उठा कर बाहर फेंक देने का मन हो रहा था.

‘‘मां, लड्डू,’’ मालू, शालू दोनों बहनें मचल उठीं.

‘‘अपने घर भी जब हमारा नन्हा सा भाई आएगा तो लड्डू बंटेंगे, है न मां?’’

बच्चियां पुलक रही थीं. ‘भाई’ शब्द तनु को कहीं गहरे तक बेध गया. कमोबेश सबकुछ तो है उस के पास. छोटा सा घर, प्यार करने वाला सुदर्शन पति, सुंदरप्यारी 2 बेटियां. परंतु नहीं है तो बस एक बेटा. बेटे की चाहत तनु के दिल में गहरे पैठी हुई थी. समय के साथ उस की जड़ें गहरी और मजबूत होती जा रही थीं. काश, एक पुत्र उसे भी होता. बेटे की मां का गौरव उसे भी प्राप्त होता.

प्रत्येक दंपती को संतान की चाहत रहती है पर बेटे की चाहत कुछ ज्यादा ही होती है. तनु भी इस का अपवाद नहीं थी.

‘‘नहीं खाना लड्डू. फेंको,’’ बेटियों के हाथ से लड्डू छीनती अपने ही संकुचित विचारों के दायरे में कैद तनु जोर से चीखी.

बच्चियां सहम गईं. आंखों में आंसू आ गए. बच्चियां अपना अपराध सम झ नहीं पाईं. चुपचाप सिसकती रहीं. रो तो तनु भी रही थी. मालू, शालू तो डांट के कारण रो रही थीं. तनु के रोने का क्या कारण हो सकता है? पड़ोसिन के घर बेटे के जन्म पर ईर्ष्याजनित पीड़ा. स्वयं को पुत्र न होने का दुख और इस संबंध में कुछ कर न पाने की विवशता.

शाम को अतुल दफ्तर से आए तो अति प्रसन्न थे. उन के हाथ में मिठाई का डब्बा था.

‘‘तनु, मैं मामा बन गया और तुम मामी. रैना के बेटा हुआ है. लो, मुंह मीठा करो और पड़ोस में मिठाइयां बांटो,’’ अतुल खुशी से चिल्लाया.

‘‘क्या, बेटा हुआ है?’’ तनु चौंक उठी.

‘‘क्यों, तुम्हें विश्वास नहीं होता? लो, तार पढ़ो,’’ कहते हुए हाथ का पुर्जा पत्नी की ओर बढ़ा दिया.

तनु अनमनी हो उठी.

‘‘हां, सभी के यहां बेटा हो रहा है. दुखिया तो हम ही हैं. बेटे का मुंह देखने के लिए तरस रहे हैं,’’ तनु की ठंडी आवाज सुन अतुल आश्चर्यचकित रह गया.

‘‘ऐसा, क्यों कहती हो? हमारी

मालू, शालू ही हमारे लिए बेटे से कम नहीं हैं. बेटेबेटी में अंतर तुम कब से करने लगीं?’’

‘‘हां, तुम्हें क्या? सुनना तो मुझे पड़ता है,’’ तनु अपना दुखड़ा रोने लगी.

तनु के इस बेमौके फसाद पर अतुल का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया. दफ्तर की थकान अतुल पर हावी होने लगी. खुशी के अवसर पर तनु को यह क्या हो गया? कैसी कुंठा पाले है वह अपने मन में? जो वस्तु अपने हाथ में न हो, उस के लिए सिर धुनने से क्या लाभ? देवीदेवता,  झाड़फूंक और इस तरह के ढोंग, आडंबरों पर अतुल को जरा भी आस्था नहीं. उस का मन कड़वा हो उठा.

बेटे की चाहत में तनु अपनी सुधबुध खो बैठी. बातबात पर पति से ठनने लगी. सदा हंसनेमुसकराने वाला अतुल अब कुछ  झुं झलाया सा रहने लगा.

तनु, जो सुघड़ गृहिणी, ममतामयी जननी और भावुक पत्नी थी, बड़ी उदास रहने लगी. बेवजह बच्चियों को पीट देना, पति से  झगड़ पड़ना, छोटीछोटी बातों पर चिढ़ जाना, राई को पर्वत बना कर रोनाधोना उस की दिनचर्या में शामिल हो गया.

घरगृहस्थी की लहलहाती बगिया तहसनहस होने लगी. हंसताखेलता परिवार एक तनाव में जीने लगा. तनु नीमहकीमों और पाखंडी ओ झाओं के घरों के चक्कर लगाने लगी. तनु का ध्यान घरगृहस्थी से बिलकुल उचट गया. सोचती, ‘बिना बेटे की मां की जिंदगी भी कोई माने रखती है?’

जब भी कोई पूछता, ‘आप की

2 बेटियां ही हैं?’ तो वह उबल पड़ती. पूछने वाले को उलटासीधा सुना देती. अतुल भौचक्का था. इस विकट परिस्थिति में तनु को सामान्य बनाने के लिए वह क्या करे, उस की कुछ सम झ में नहीं आता था. तनु के अवचेतन मन में जो बेटे की चाहत थी, वह अब पल्लवितपुष्पित हो कर बाहर की ओर फैलने लगी थी. किसी के घर पुत्र के जन्म की खबर पा कर तनु उत्तेजित हो उठती. सारे घर में कुहराम मचा देती. इस के विपरीत किसी के घर पुत्री के जन्म की खबर पर एक व्यंग्यात्मक मुसकान उस के होंठों पर छा जाती. शायद उस खबर से उसे संतुष्टि मिलती थी.

अतुल उसे किसी मनोचिकित्सक से मिलाना चाहता था परंतु वह तैयार न होती. उलटे, पति से  झगड़ा करने लगती. बेटे की चाहत ने एक मनोरोग का रूप ले लिया.

पुत्रप्राप्ति की ललक ने तनु को तरहतरह के अंधविश्वासों के चक्कर में डाल दिया. पाखंडियों के कहने पर वह आएदिन उपवास भी करने लगी. उस का स्वास्थ्य चौपट होने लगा. जो पैसा और श्रम घरगृहस्थी में लगना चाहिए था वह  झाड़फूंक करने वालों की भेंट चढ़ने लगा. पुत्ररत्न की प्राप्ति का नुसखा जहां से भी प्राप्त होने की उम्मीद होती, तनु वहां दौड़ पड़ती. लोग उस की इस दीवानगी पर हंसते, पड़ोसिनें पीठ पीछे उस का मजाक उड़ातीं.

तनु को किसी की परवा नहीं थी. उस के जीवन का एकमात्र लक्ष्य था एक बेटे की प्राप्ति. फूल की तरह 2 बेटियों की पूरी जिम्मेदारी तनु पर थी. उसे भुला कर वह बेटा पाने की उम्मीद में तरहतरह के पाखंडों में उल झ गई.

फलस्वरूप बेटियों का स्वास्थ्य गिरने लगा. पढ़ाई में वे पिछड़ने लगीं. पूरा परिवार हीनभावना का शिकार हो उठा. अतुल हैरान हो सोचता, ‘यह कैसी मनोग्रंथि पाल रखी है तनु ने? एक बेटे की चाहत में बेटियों की फौज खड़ी करना कहां की सम झदारी है? इस महंगाई के जमाने में जहां जनसंख्या विस्फोटक स्थिति में पहुंच चुकी है, ज्यादा संतान पैदा करना नैतिकता के विरुद्ध है, दूसरों के मुंह की रोटी छीनने समान है, दूसरों का हक मारना है. छोटा परिवार, सुखी परिवार.’

‘‘हम मालू, शालू की ही उचित परवरिश करें. वे ही बुढ़ापे में हमारी देखभाल करेंगी.’’

‘‘बेटियों के शादीब्याह नहीं करोगे? सिर्फ उन की कमाई खाने का इरादा है?’’ तनु का तीखा उत्तर पा अतुल सम झाने का प्रयत्न करता, ‘‘कमाई तो हम किसी की नहीं खाएंगे. इस बदलते युग में जहां प्रत्येक क्षण जीवनमूल्य परिवर्तित हो रहे हों, किसी का भी आसरा करना अदूरदर्शिता है. रही बेटियों की शादी के बाद की बात, तो समय आने पर उस का भी हल हो जाएगा. वृद्ध होने पर पास की पूंजी काम आएगी और फिर हमतुम एकसाथ रहेंगे ही,’’ और फिर ठहाका लगा कर अतुल वातावरण को सहज करने की कोशिश करता.

क्षणभर के लिए स्मित मुसकान तनु के नाजुक होंठों पर भी छिटकती परंतु अगले ही पल गायब भी हो जाती.

दिन, सप्ताह, महीने बीतने लगे. शहर के दूसरे छोर पर एक पाखंडी महात्मा पधारे थे. जोरशोर से उन का प्रचार हो रहा था. व्यक्तियों की अधूरी मनोकामनाओं को पूरी करने वाले कल्पतरु कहे जा रहे थे वे. उन की शरण में जो भी जाता, मनवांछित फल पा जाता था. भला, ऐसे चमत्कारी महात्मा की खबर तनु के कानों तक कैसे न पहुंचती. तनु की मानसिकता वाले अंधभक्तों के बल पर ही तो पाखंडियों की दुनिया रोशन होती है.

मालू, शालू को स्कूल और अतुल को दफ्तर भेज तनु रिकशे से महात्मा के पास जा रही थी कि रास्ते में अचानक उस की भेंट अपनी स्कूल की एक सहपाठिन से हो गई.

‘‘सरला, तू यहां?’’

‘‘अरे तनु…’’ कह कर दोनों गले मिलीं, ‘‘हां, मेरे पति का तबादला इसी शहर में हुआ है. हम दोनों एक ही दफ्तर में कार्यरत हैं.’’

दोनों पुरानी सहेलियां साथ बिताए कटुमधु प्रसंगों को याद कर पुलकित होने लगीं.

‘‘कहीं जा रही हो क्या?’’ सरला ने पूछा, ‘‘आज मेरी छुट्टी है. यहीं पास ही रहती हूं, चलो न मेरे घर.’’

तनु इनकार न कर सकी. सरला तनु को अपने घर ले गई. तनु भूल गई कि उसे किसी महात्मा के पास जाना है.

घर खूब साफसुथरा, सजासंवरा था. तनु को अपना बिखरा घर याद आया. अंदर कुरसी पर बैठी सरला की मां मटर की फलियां छील रही थीं, ‘‘अरे चाचीजी? आप भी यहीं हैं? नमस्ते,’’ तनु हाथ जोड़े वृद्धा की  झुर्रियों का युवावस्था के रूप में सामंजस्य बैठाने लगी.

खानापीना और बातों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था.

‘‘मां तुम्हारे साथ ही रहती हैं?’’ एकांत पा कर तनु फुसफुसाई, ‘‘तुम्हारे तो 5 भाई थे न?’’

‘‘हां, थे क्या, हैं. 5 भाइयों की मैं अकेली बहन हूं. लेकिन तुम्हें जान कर आश्चर्य होगा कि मां की देखभाल सही ढंग से करने के लिए कोई बेटाबहू तैयार नहीं हुए. मां की बढ़ती उम्र और लाचारी से द्रवित हो मैं उन्हें अपने पास ले आई. उन की जिंदगी के जो 2-4 वर्ष बाकी हैं, कम से कम आराम से तो कटें?’’

‘‘तुम्हारे पति इस का विरोध नहीं करते? मां बेटी के यहां रह लेती हैं?’’ रूढि़वादी मानसिकता वाली तनु की आंखें आश्चर्य से फैल गईं.

‘‘मैं स्वयं कमाती हूं. इसलिए पति क्यों विरोध करेंगे? और मु झे पढ़ालिखा कर इस योग्य मेरी मां ही ने तो बनाया है. तुम्हें शायद पता नहीं कि पिता की मृत्यु के बाद भाइयों ने मेरी पढ़ाई का कितना विरोध किया था. परंतु दूरदर्शी व दृढ़निश्चयी मेरी मां ने कभी भी बेटी होने का अनुचित दंड मु झे नहीं दिया. जहां तक मां का बेटी के घर रहने का सवाल है तो वृद्ध, शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति को क्या चाहिए? उचित देखभाल, सेवा और प्यारभरे दो मीठे बोल. वह चाहे बेटाबहू दें या फिर बेटीदामाद. बदलती दुनिया में जहां बेटाबहू मांबाप को अवांछित बो झ सम झने लगते हैं, बेटी का मृदु स्पर्श, प्यारभरा आश्वासन उन्हें नया जीवन देता है.

‘‘अब देखो न, मेरी 3 बेटियां हैं, तीनों को मैं ने पढ़ाई के अतिरिक्त हर तरह की शिक्षा देने का निश्चय किया है. जब वे स्वयं सक्षम होंगी तभी तो जीवन में आने वाली कठिनाइयों का सहजता से मुकाबला कर सकेंगी. वे किसी की आश्रित न रहेंगी तभी तो किसी का सहारा बन सकती हैं. अब वे दिन लद गए जब बेटियों को बेटों से अयोग्य सम झा जाता था. आंखें खोल कर देखो, दुनिया में कौन सा कार्यक्षेत्र है जो लड़कियों की पहुंच से बाहर है?’’

‘‘पर एक बेटा तो होना ही चािहए,’’ तनु की दलील में पहले वाली तुर्शी नहीं थी.

‘‘होना क्यों नहीं चाहिए पर ऐसा तो नहीं कि पुत्र की चाह में बेटियों की संख्या बढ़ाई जाए और उन्हें तुच्छ सम झा जाए. क्या अपनी किसी संतान को मात्र इसलिए प्रताडि़त व निरुत्साहित किया जाए क्योंकि वह बेटी है. जिस बेटी के अभिभावक बाल्यावस्था में ही उस का मनोबल तोड़ देते हैं वही बेटी वयस्क होने पर अंधविश्वासी, कुंठित, डरपोक और बातबात पर पलायन करने वाली साबित होती है. खैर छोड़ो, तुम सुनाओ, तुम्हारी गृहस्थी कैसी चल रही है? कितने बच्चे हैं तुम्हारे?’’ सरला ने तनु से पूछा.

यही प्रश्न तनु की दुखती रग थी. परंतु इस प्रश्न से आज वह आहत नहीं हुई. बेटे और बेटी का बड़ा ही सहज और स्पष्ट चित्रण सरला ने किया था. तनु की आंखों पर छाई धुंध धीरेधीरे छंटने लगी.

उस के पति भी तो 4 भाई हैं. मगर वृद्ध सासससुर की सेवा करने के लिए कोई दंपती हृदय से तैयार नहीं. पुत्र और पुत्रवधुओं की उदासीनता का ही परिणाम है कि वे आज अपनी बेटी के यहां पड़े हुए हैं. कैसा बेटा? कैसी बेटी? संतान को जैसी शिक्षा देंगे उस की मनोवृत्ति वैसी ही होगी.

अपनी बेटियों की कितनी उपेक्षा कर रही है तनु और अजन्मे बेटे के लिए चिंतित है. किंतु उस बेटे की मां बनने वाली बेटी की ऐसी अवहेलना? उस का सोया कर्तव्य जाग उठा. मृगमरीचिका के पीछे भागने वालों को आखिरकार निराश ही होना पड़ता है. पति व बेटियों के प्रति अपनी उदासीनता याद कर वह सिहर उठी. अब बेटे की चाहत समूल नष्ट हो चुकी थी.

‘‘अरे, 3 बज गए? मेरी भी 2 प्यारीप्यारी बेटियां हैं. स्कूल से आती ही होंगी.’’

इतने दिनों से रुका वात्सल्य बेटियों पर लुटाने के लिए तनु व्यग्र हो उठी. अतुल का मनपसंद नाश्ता भी बनाना है, इसलिए बगैर विदा की औपचारिकता पूरी किए वह घर के लिए दौड़ पड़ी.

तनु की भावनाओं से अनजान सरला अपनी सहेली के उतावलेपन को ठगी सी देखती रही.

Mother’s Day 2023: सिंगल मदर आसान हो सकता है मुश्किल सफर

एक सिंगल मदर के लिए अकेले अपने दम पर बच्चे का पालनपोषण कर उसे काबिल बनाना आसान नहीं है, मगर वह हिम्मत से काम ले तो न केवल अपने मकसद में सफल होती है वरन दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनती है कुछ इस तरह-

काम और बच्चे के साथ रिश्ते भी सहेजिए:  क्या आप भी औफिस के हैप्पी आवर्स, सहेली की बर्थडे पार्टी, बिना तैयारी की डेट जैसे मौकों को बच्चे या टूटे दिल के कारण बैकसीट पर छोड़ देती हैं? इसी तरह कभी डाक्टर की अपौइंटमैंट तो कभी ब्यूटी पार्लर जाना भी टाल जाती हैं? यह सही है कि सिंगल पेरैंट होने के नाते आप का फिजिकली और इमोशनली हमेशा अपने बच्चे के साथ रहना जरूरी है, मगर इस की वजह से समाज से कटना और जरूरतों को टालना उचित नहीं.

कभीकभी अपने मातृत्व के उत्तरदायित्व से मुक्त हो कर थोड़ा वक्त अपने लिए बिताना जरूरी है ताकि आप की ऐनर्जी की बैटरी रिचार्ज होती रहे और बेहतर ढंग से अपना उत्तरदायित्त्व निभा सकें.

अपनी सकारात्मकता बनाए रखें और जिंदगी में आगे बढ़ने के रास्ते खुले रखें. लोगों से मिलेंजुलें, लोगों के बीच सिर उठा कर घूमें. आप को छिपने या अपने लिए दुखी होने की कोई जरूरत नहीं है.

कम्यूनिटीज की सपोर्ट ढूंढें: सिंगल मदर्स अकसर खुद को अकेला, परेशान महसूस करती हैं. उन्हें लगता है कि वे अकेली हैं पर यह सोच उचित नहीं. आप सिंगल मदर्स से जुड़ी कम्यूनिटीज जैसे पेरैंट्स विदाउट पार्टनर्स, सिंगल मौम्स कनैक्ट और्गेनाइजेशन जैसी संस्थाओं की सदस्या बन सकती हैं. दोस्त, पड़ोसी और आप के जैसी सिंगल मदर्स भी आप का सपोर्ट सिस्टम बन सकती हैं. आप औनलाइन भी किसी कम्यूनिटी की मैंबर बन कर सपोर्ट पा सकती हैं.

मदद मांगें: कई दफा सिंगल मदर्स मदद मांगने या मदद की जरूरत स्वीकारने में भी हिचकिचाती हैं. मान लीजिए आप को 2-3 घंटों के लिए किसी जरूरी काम से बाहर जाना है या आप की तबीयत ठीक नहीं है, तो अपने घर के आसपास मदद की तलाश करें. मददगार पड़ोसी, दोस्त या परिजन, कोई भी हो सकता है.

आप स्पष्ट रूप से अपनी जरूरत उसे बताएं और उस की सहायता लें. आप की जिंदगी में ऐसे बहुत से लोग होंगे जो आप की मदद करना चाहते होंगे. आप बिना संकोच उन की मदद लें. कौफी पिलाने या उन के बच्चे के लिए कुछ कर के आप इस का बदला भी चुका सकती हैं. यदि आप परिजनों और दोस्तों को परेशान करना नहीं चाहतीं तो विकल्प के रूप में हमउम्र पड़ोसियों को रख सकती हैं.

32 वर्षीय दिल्ली की वीणा ठाकुर कहती हैं, ‘‘जब मैं और मेरे पति अलग हुए उस वक्त मेरा बेटा 15 माह का था. कई दफा ऐसी स्थितियां आती थीं कि मुझे उसे 1-2 घंटों के लिए छोड़ कर कहीं जाना पड़ता था. उस वक्त मेरे पड़ोस में रहने वाली श्रुति मेरा सहारा बनती थी. उस की 2 साल की बेबी थी. हम दोनों ने तय किया हुआ था कि जब भी उसे या मुझे कहीं जाना होगा हम एकदूसरे के बच्चे को संभाल लेंगे. हमारी यह पार्टनरशिप हमारा समय, पैसा और मन की शांति बनाए रखने में काफी लाभकारी सिद्ध हुई.’’

अपनी प्राथमिकताओं को फिर से ऐडजस्ट करें: बहुत सी सिंगल मदर्स खुद को सुपर वूमन मान बैठती हैं. उन्हें लगता है कि पूरा दिन काम करने और बच्चे का खयाल रखने के साथसाथ उन्हें घर भी बिलकुल साफसुथरा रखना है या हमेशा घर में तैयार भोजन ही सर्व करना है अथवा अपने बच्चे की हर जरूरत की पूर्ति उसी क्षण करनी है. मगर इतना कर पाना मुमकिन नहीं. सिंगल मदर्स को इस संदर्भ में रिएलिस्टिक रहना जरूरी है कि वे 1 दिन में क्याक्या कर सकती हैं और क्या नहीं.

बेहतर होगा कि आप अपनेआप से जरूरत से ज्यादा अपेक्षाएं न रखें. खुद को ब्रेक देना भी सीखें. उदाहरण के लिए इस में कुछ गलत नहीं कि आप डिनर में कभीकभी फास्ट फूड या सीरियल्स सर्व कर दें बशर्ते कि बच्चे की ओवरऔल डाइट हैल्दी हो. इसी तरह जरूरी नहीं कि आप का घर हमेशा साफसुथरा ही रहे.

अपनी सहायता के लिए एक कामवाली बाई जरूर रखें. कुछ कामों को नजरअंदाज भी कर सकती हैं ताकि आप बच्चे के साथ थोड़ा ज्यादा वक्त बिता सकें और पूरी नींद भी ले सकें.

अपराधबोध से मुक्त रहें: आप के सिंगल रहने की वजह चाहे जो भी हो, इसे ले कर मन पर किसी तरह का बोझ न रखें. हो सकता है आप अकसर इस बात को ले कर परेशान रहती हों कि अकेले आप को इतना कुछ संभालना है या अपने ऐक्स के साथ कड़वाहट का सफर आज भी कायम है या आप अपने बच्चे को उस का भाई, बहन नहीं दे सकतीं अथवा यह भावना कि आप का परिवार टूट चुका है और आप अच्छी पत्नी/मां/बहू साबित नहीं हो सकीं.

यह बहुत आसान है कि आप स्वयं को दोषी मानती रहें, मगर इस का नतीजा ठीक नहीं होता. इस तरह की भावनाएं आप का मन भटका जाती हैं और आप वर्तमान पर फोकस नहीं कर पातीं. बेहतर होगा कि आप आज को महत्त्व दें. इस बात पर फोकस रखें कि कैसे बच्चे की बेहतर देखभाल की जाए, कैसे उसे उस के हिस्से का पूरा प्यार और सुरक्षा दी जाए, कैसे उस की जरूरतें पूरी की जाएं और कैसे अपने घर का माहौल खुशगवार बनाए रखा जाए.

जिंदगी का मकसद बनाएं, बेहतर बनें:  जिंदगी सहजता से चलती रहे इस के लिए जरूरी है कि आप समयसमय पर अपने लिए लक्ष्य निर्धारित करें. ये लक्ष्य 1 दिन, 1 सप्ताह, 1 माह, कई साल यानी कितने भी समय के लिए हो सकते हैं. ये आर्थिक, सामाजिक, भावनात्मक या पारिवारिक किसी भी तरह के मसले से जुड़े हो सकते हैं. बस इन्हें समय पर पूरा करने की कोशिश करें और एक बेहतर जिंदगी की तरफ बढ़ती रहें.

आप अपने लौंग टर्म ऐंबीशंस को भी जी सकती हैं जैसे कोई खास डिग्री हासिल करना, वजन घटाना, एक खूबसूरत रिलेशनशिप में इन्वौल्व होना, एक बेहतर सोसाइटी में शिफ्ट होना इत्यादि. मगर इन सब के बीच संतुलन बना कर चलना जरूरी है ताकि आप अपने बच्चे के लिए भी पूरा वक्त निकालती रहें. कभीकभी बच्चे को वैकेशन पर ले जाएं. उस के होमवर्क, प्रोजैक्ट्स कराएं, म्यूजिक सुनें, किताबें पढ़ें, व्यायाम करें, नईनई डिशेज बनाएं वगैरह.

अपने अतीत को खुद पर कभी हावी न होने दें: सिंगल मदर्स के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे अपने मन की शांति और उत्साह सदैव बरकरार रखें और अपने ऐक्स से जुड़ी पुरानी कड़वाहटों का असर वर्तमान पर न पड़ने दें. अपना रुख सकारात्मक रखें और सब भूल कर खुले दिल से बिना किसी पछतावे, दुख या शर्मिंदगी के अपनी नई जिंदगी को स्वीकारें, क्योंकि आप की मानसिक स्थिति का सीधा असर आप के बच्चे पर पड़ेगा.

फुजूलखर्ची से बचें: आप ज्यादा कमाती हों या कम, सिंगल पेरैंट्स के तौर पर खर्चों पर लगाम जरूरी है. आप को अकेले ही सब करना है. बच्चे की सारी जरूरतें पूरी करने के साथसाथ उस का भविष्य भी संवारना है.

अपने खर्चे सीमित करें:  फुजूलखर्ची से बचें. लाइफ इंश्योरैंस, हैल्थकेयर में निवेश करें. आप कितना भी प्लान कर के चलेंगी पैसों की ऐक्सट्रा जरूरत कभी भी पड़ सकती है. कभी भी आप की नौकरी छूट सकती है या कोईर् इमरजैंसी की स्थिति आ सकती है.

बच्चों के लिए विभिन्न योजनाओं में निवेश करती रहें ताकि आगे चल कर आप को दूसरों का मुंह न देखना पड़े.

रोल मौडल्स खोजें: सिंगल मदर्स और उन के बच्चे कुछ भी अचीव कर सकते हैं. इस से जुड़े सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं. आप सिंगल पेरैंट्स की एक लिस्ट बनाएं, जिन से आप को प्रेरणा मिल सके. क्या आप जानती हैं अमेरिका के पूर्व प्रैसिडैंट रह चुके ओबामा को उन की सिंगल मदर और ग्रैंड पेरैंट्स ने पाला है. पूर्व प्रैसिडैंट बिल क्लिंटन भी मुख्यरूप से अपनी मां के द्वारा ही बड़े किए गए थे. दरअसल, परिस्थितियां भले कठिन हों पर दिल में जज्बा कायम हो तो व्यक्ति सफलता का आसमान छू सकता है.

छोटी छोटी खुशियां : भाग 1

सभी अपनेअपने काम में लग गए. प्रताप अपनी सीट पर अकेला रह गया तो विचारों में खो गया. उस के दिमाग में सुधा से कहासुनी से ले कर मैनेजर साहब को खरीखोटी सुनाने तक की एकएक घटना चलचित्र की तरह घूम गई. पैन निकालने के लिए उस ने जेब में हाथ डाला तो पुलिस द्वारा दी गई रसीद भी पैन के साथ बाहर आ गई. रसीद देख कर उस का दिमाग भन्ना उठा. मेज पर रखे पानी के गिलास को खाली कर के वह आहिस्ता से उठा. पैर में दर्द होने के बावजूद वह धीरेधीरे आगे बढ़ा. टैलीफोन मैनेजर साहब की ही मेज पर था. प्रताप उसी ओर बढ़ रहा था. प्रताप के गंभीर चेहरे को देख कर मैनेजर घबराए. उन की हालत देख कर प्रताप के होंठों पर कुटिल मुसकान तैर गई. मैनेजर साहब की ओर देखे बगैर ही वह उन के सामने पड़ी कुरसी पर बैठ गया. टैलीफोन अपनी ओर खींच कर पुलिस की ट्रैफिक शाखा का नंबर मिला दिया. दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘नमस्कारजी, मैं ट्रैफिक शाखा से हैडकौंस्टेबल ईश्वर सिंह बोल रहा हूं.’’

‘‘नमस्कार ईश्वर सिंहजी, आप ब्लूलाइन बसों के खिलाफ मेरी एक शिकायत लिखिए.’’

‘‘आप की जो शिकायत हो, लिख कर भेज दीजिए.’’

‘‘लिख कर भेजूंगा तो तुम्हें अपनी औकात का पता चल जाएगा…’’ प्रताप थोड़ा रोष में बोला, ‘‘फोन किसी जिम्मेदार अधिकारी को दीजिए.’’

‘‘औफिस में इस समय और कोई नहीं है. इंस्पैक्टर साहब और एसीपी साहब राउंड पर हैं.’’

‘‘एसीपी साहब के पास तो मोबाइल फोन होगा, उन का नंबर दो.’’

 

कौंस्टेबल ईश्वर सिंह ने जो नंबर दिया था, उसे मिलाते हुए प्रताप खुन्नस में था. उधर से स्विच औन होते ही वह बोला, ‘‘सर, मैं प्रताप सिंह बोल रहा हूं. मेरी एक शिकायत है.’’

‘‘बोलो.’’

‘‘आप के टै्रफिक के नियम सिर्फ स्कूटर वालों के लिए ही हैं क्या? सड़क पर जिस तरह अंधेरगर्दी के साथ ब्लूलाइन बसें दौड़ रही हैं, आप के स्टाफ वालों को दिखाई नहीं देतीं?’’ प्रताप की आवाज क्रोध में कांप रही थी.

‘‘देखिए साहब, जो पकड़ी जाती हैं, उन के खिलाफ कार्यवाही की जाती है.’’

‘‘क्या कार्यवाही करते हैं आप लोग, वह सब मैं जानता हूं,’’ प्रताप काफी गुस्से में था इसलिए उस के स्वर में थोड़ा तल्खी थी. उसी तल्ख आवाज में वह बोला, ‘‘यहां आश्रम रोड पर आ कर थोड़ी देर खड़े रहिए. ड्राइवर बसें किस तरह बीच सड़क पर खड़ी कर के सवारियां भरते हैं, देख लेंगे. उस व्यस्त सड़क पर भी ओवरटेक करने में उन्हें जरा हिचक नहीं होती. आप के पुलिस वाले खड़े यह सब देखते रहते हैं.’’

Yrkkh: अबीर को पाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटकाएगी अक्षरा

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में इन दिनों लगातार ड्रामा देखने को मिल रहा है, सीरियल में अबीर को लेकर अक्षरा और अभिमन्यु लड़ाई कर रहे हैं. अभिमन्यु की चाची की सास कहती है कि अक्षरा और अभि को अब एक हो जाना  चाहिए अब बहुत ज्यादा देर हो गया है.

वहीं आगे देखने को मिलेगा कि अक्षरा और अभिमन्यु मंदिर के रास्ते में टकरा जाते हैं. लेकिन कोई एक-दूसरे से बात नहीं करते हैं. सीरियल में दिखाया जाएगा कि अबीर का टेस्ट करवाने के लिए अभिमन्यु लेकर जाता है. इस खबर का पता लगते ही सभी घरवाले हैरान हो जाते हैं. हाांकि यहां पर भी मंजरी आकर तमाशा कर देती हैं कि वह कहती है कि टेस्ट पेपर पर साइन दादी भी कर सकती है.

 

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जहां अक्षु और मंजरी के बीच बहस हो जाती है, अक्षरा नहीं चाहती है  कि उसके बेटे का टेस्ट हो, दोनों में जब लड़ाई होती है तो मंजरी के मुंह से निकल जाता है कि मैं कोर्ट तक लेकर तुमलोगों को लेकर जाउंगी, तुम्हें पता नहीं है मैं तुम लोगों की औकात दिखाने के लिए कुछ भी कर सकती हूं.

क्या राघव और परिणिती की हो गई है सगाई, फ्लॉन्ट कि इंगेजमेंट रिंग

परिणिती चोपड़ा और राघव चड्ढ़ा को लेकर इन दिनों लगातार नए-नए अपडेट आ रहे हैं, आए दिन दोनों को एक साथ देखा जा रहा है, हाल ही में परिणिती चोपड़ा को ब्लैक कलर के वन पीस में देखा गया था, जिसमें वह काफी खूबसूरत लग रही थीं. साथ में राघव भी नजर आ रहे थें.

लेकिन इस वायरल हो रही तस्वीर की खास बात यह है कि इसमें परिणिती अपने रिंग फिगर में एक अंगूठी पहनी है जिसे देखकर लोग कयास लगा रहे हैं कि परिणिती का इंग्जेगमेंट हो गया है. इससे पहले भी खबर आई थी कि इंगेजमेंट करीबी रिश्तेदारों के बीच हुआ था.

 

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परिणिती अपने बॉयफ्रेंड के साथ डिनर डेट पर नजर आईं थी, जिसकी तस्वीर कैमरे में कैद कर ली गई है. तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है जिसकी तारीफ लोग खूब कर रहे हैं.

वहीं परिणिती राघव के साथ शर्माई हुई भी नजर आ रही थीं, जिसपर कैमरा पर्सन की निगाहें जाकर अटक गई थी. कुछ वक्त पहले राघव और परिणिती आईपीएल मैच देखने पहुंचे थें, जहां पर दोनों साथ में मस्ती करते नजर आ रहे थें.

आइपीएल में लोग परिणिती को भाभी कहकर पुकारते नजर आएं थें, खैर अभी तक शादी की डेट फाइनल नहीं हुई है.

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