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नजरिया : निखिल की मां अपनी बहू से क्या चाहती थी?

दूरियां : बाप बेटे के रिश्ते में दरार क्यों आ रही थी?

 ‘‘नेहा बेटा, जरा ड्राइंगरूम की सेंटर टेबल पर रखी मैगजीन देना. पढ़ूंगा तो थोड़ा टाइम पास हो जाएगा,’’ उमाशंकर ने अपने कमरे से आवाज लगाई.

आरामकुरसी पर वह लगभग लेटे ही हुए थे और खुद उठ कर बाहर जाने का उन का मन नहीं हुआ. पता नहीं, क्यों आज इतनी उदासी हावी है…खालीपन तो पत्नी के जाने के बाद से उन के अंदर समा चुका है, पर कट गई थी जिंदगी बच्चों को पालते हुए.

शांता की तसवीर की ओर उन्होंने देखा… बाहर ड्रांगरूम में नहीं लगाई थी उन्होंने वह तसवीर, उसे अपने पास रखना चाहते थे, वैसे ही जैसे इस कमरे में वह उन के साथ रहा करती थी, जाने से पहले.

नेहा तो उन की एक आवाज पर बचपन से ही दौड़दौड़ कर काम करने की आदी है. शांता के गुजर जाने के बाद वह उस पर ही पूरी तरह से निर्भर हो गए थे. बेटा तो शुरू से ही उन से दूर रहा था. पहले पढ़ाई के कारण होस्टल में और फिर बाद में नौकरी के कारण दूसरे शहर में.

एक सहज रिश्ता या कहें कंफर्ट लेवल उस के साथ बन नहीं पाया था. हालांकि वह जब भी आता था, पापा की हर चीज का खयाल रखता था, जरूरत की चीजें जुटा कर जाता था ताकि पापा और नेहा को कोई परेशानी न हो.

बेटे ने जब भी उन के पास आना चाहा, न जाने क्यों वह एक कदम पीछे हट जाते थे- एक अबूझ सी दीवार खींच दी थी उन्होंने. किसी शिकायत या नाराजगी की वजह से ऐसा नहीं था, और कारण वह खुद भी समझ नहीं पाए थे और न ही बेटा.

शांता की मौत की वजह वह नहीं था, फिर भी उन्हें लगता था कि अगर वह उन छुट्टियों में घर आ जाता तो शांता कुछ दिन और जी लेती. होस्टल में फुटबाल खेलते हुए उस के पांव में फ्रैक्चर हो गया था और उस के लिए यात्रा करना असंभव सा था…छोटा ही तो था, छठी क्लास में. घर से दूर था, इसलिए चोट लगने पर घबरा गया था. बारबार उसे बुखार आ रहा था और अकेले भेजना संभव नहीं था, और उमाशंकर शांता को ऐसी हालत में नन्ही नेहा के भरोसे उसे लेने भी नहीं जा सकते थे.

 

यह मलाल भी उन्हें हमेशा सताता रहा कि काश, वह चले जाते तो मां जातेजाते अपने बेटे को देख तो लेती. वह 2 साल से कैंसर जूझ रही थी, तभी तो तरुण को होस्टल भेजने का निर्णय लिया गया था. यही तय हुआ था कि 2 साल बाद जब नेहा 5वीं जमात में आ जाएगी, उसे भी होस्टल भेज देंगे.

आखिरी दिनों में नेहा को सीने से चिपकाए शांता तरुण को ही याद करती रही थीं.

तरुण ने भी बड़े होने के बाद नेहा से कहा था, “पापा मुझे लेने आ जाते या किसी को भेज देते तो मैं मां से मिल तो लेता.”

नेहा जो समय से पहले ही बड़ी हो गई थी, इस प्रकरण से हमेशा बचने की ही कोशिश करती थी. बेकार में दुख को और क्यों बढ़ाया जाए, किस की गलती थी, किस ने क्या नहीं किया… इसी पर अगर अटके रहोगे तो आगे कैसे बढ़ोगे. मां को तो जाना ही था…दोष देने और खुद को दोषी मानना फिजूल है. तभी से वह उन दोनों के बीच की कड़ी बन गई थी…चाहे, अनचाहे.

पापा को ले कर हालांकि तरुण ने कभी भी विरोधात्मक रवैया नहीं रखा था और न ही नेहा को ले कर कोई द्वेष था मन में. भाईबहन में खूब प्यार था और एक सहज रिश्ता भी. रूठनामनाना, लड़ाईझगड़ा और अपनी बातें शेयर करना…जैसा कि आम भाईबहन के बीच होता है. लेकिन पापा और भाई की यही कोशिश रहती कि उस के द्वारा एकदूसरे तक बात पहुंच जाए.

यह कहना गलत न होगा कि नेहा पापा और भाई के बीच एक सेतु का काम करती थी. उस के माध्यम से अपनीअपनी बात एकदूसरे तक पहुंचाना उन दोनों को ही आसान लगता था. कभीकभी नेहा को लगता था कि उस की वजह से ही पितापुत्र दो किनारों पर छिटके रहे, वह ऐसी नदी बन गई, जिस की लहरें दोनों किनारों पर जा कर बहाव को यहांवहां धकेलती रहती हैं. लेकिन दोनों किनारों के बहाव को चाह कर भी आपस में एक कर पाने में असमर्थ रही है.

बचपन की बात अलग है, तब उसे उन दोनों के बीच माध्यम बनने में बहुत आनंद आता था, लगता था कि वह बहुत समझदार है. मां भी बहुत हंसा करती थी कि देखो छुटकी को बड़ा बनने में कितना आनंद आता है. अरे, अभी से क्यों इन पचड़ों में पड़ती है, बड़े होने पर तो जिम्मेदारियों के भारीभारी बोझ उठाने ही पड़ते हैं, वह अकसर कहती. लेकिन उसे तो पापा और भाई दोनों पर रोब झाड़ने में बहुत मजा आता था.

पर, अब जिंदगी और रिश्तों के मर्म को समझने के बाद उसे एहसास हो चुका था कि उस का माध्यम बने रहना कितना गलत है. दूरियां तभी खत्म होंगी, जब वह बीच में नहीं होगी. पर उस के बिना जीने की कल्पना दोनों ही नहीं करना चाहते थे. नदी बस निर्विघ्न बहती रहे तो रिश्ता रीतेगा नहीं, सूखेगा नहीं.

आवाज लगाने के बाद उमाशंकर को अपनी भूल का एहसास हुआ. नेहा तो अब है ही नहीं यहां.

‘‘ये लीजिए पापाजी,’’ अनुभा ने जैसे ही उन की आवाज सुनी, मैगजीन ले कर तुरंत उन के कमरे में उपस्थित हो गई.

‘‘पापाजी, और कुछ चाहिए…?’’ उस ने बहुत ही शालीनता से पूछा.

‘‘नहीं. कुछ चाहिए होगा तो खुद ले लूंगा. भूल गया था पलभर को कि नेहा नहीं है,’’ तिरस्कार, कटुता, क्रोध मिश्रित तीक्ष्ण स्वर और चेहरे पर फैली कठोरता… इस तरह की प्रतिक्रिया और व्यवहार की अनुभा को आदत हो गई है अब. पापा उस से सीधे मुंह बात नहीं करते… कोई बात नहीं, पर वह अपना फर्ज निभाने में कभी पीछे नहीं हटती.

अनुभा समझती है कि नेहा की कमी उन्हें खलती है, इसलिए बहुत खिन्न रहने लगे हैं. आखिर बरसों से नेहा पर निर्भर रहे हैं, वह उन की हर आदत से परिचित है, जानती है कि उन्हें कब क्या चाहिए.

रिटायर होने के बाद से तो वे छोटीछोटी बातों पर ज्यादा ही उखड़ने लगे हैं. शुरुआत में अनुभा को बुरा लगता था, पर अब नहीं.

शादी हुए डेढ़ साल ही हुए हैं, और एक साल से नेहा यहां नहीं है. पता नहीं, क्यों दूसरे शहर की नौकरी को उस ने प्राथमिकता दी, जबकि यहां भी औफर थे उस के पास नौकरी के. कुछकुछ तो वह इस की वजह समझती थी, नेहा कोई भी फैसला बिना सोचेसमझे नहीं करती थी.

अनुभा ने तब मन ही मन उसे सराहा भी था, पर उस के जाने की बात वह सहम भी गई थी. कैसे संभालेगी वह घर को…पितापुत्र के बीच पसरे ठंडेपन को… कितने कम शब्दों में संवाद होता है, बाप रे, वह तो अपने पापा से इतनी बातें करती थी कि सब उसे चैटरबौक्स कहते हैं. उस का भाई भी तो पापा से ही चिपका रहता है और मां दिखावटी गुस्सा करती हैं कि मां से तो तुम दोनों को कोई लगाव ही नहीं है… पर भीतर ही भीतर बहुत खुशी महसूस करती है.

बच्चों का पिता से लगाव होना ज्यादा जरूरी है, क्योंकि मां से प्यार और आत्मीयता का संबंध सहज और स्वाभाविक ही होता है, उस के लिए प्रयत्न नहीं करने पड़ते.

उस पर ठहरी वह एक विजातीय लड़की. बेटे ने लवमैरिज की, यह बात भी पापा को बहुत खटकती है, अनुभा जानती है.

वह तो नेहा ने स्थिति को संभाल लिया था, वरना तरुण उसे ले कर अलग हो जाने पर आमादा हो गया था. दोनों के बीच सेतु बन रिश्तों पर किसी तरह पैबंद लगा दिया था.

अनुभा भी शादी के बाद नेहा पर बिलकुल निर्भर थी. ननदभाभी से ज्यादा उन के बीच दोस्त का रिश्ता अधिक था. जब उस ने तरुण से शादी करने का फैसला लिया था तो मां के मन में आशंकाएं थीं, ‘इतने समय से नेहा ही घर संभालती आ रही है. पूरा राज है उस का. कहीं वह तुम्हें तुम्हारे अधिकारों से वंचित न कर दे. तरुण भी तो उस की कोई बात नहीं टालता है, जबकि है उस से छोटी. कहीं सास बनने की कोशिश न करे, संभल कर रहना और अपने अधिकार न छोड़ना. कुंआरी ननद वैसे भी जी का जंजाल होती है.’

अनुभा को न तो अपने अधिकार पाने के लिए लड़ना पड़ा और न ही उसे लगा कि नेहा निरंकुश शासन करना चाहती है.

हनीमून से जब वे लौट कर आए थे और सहमे कदमों से जब अनुभा ने रसोई में कदम रखा था तो घर की चाबियों का गुच्छा उसे थमाते हुए नेहा ने कहा था, ‘‘भाभी संभालो अपना घर. बहुत निभा लीं मैं ने जिम्मेदारियां. थोड़ा मैं भी जी लूं.

“अरुण को, पापा को जैसे चाहे संभालो, पर मुझे मुक्ति दे दो. आप की सहायता करने को हमेशा तत्पर रहूंगी. ऐसे टिप्स भी दूंगी, जिन से आप इन 2 मिसाइलों से निबट भी लेंगी. बचपन से बड़े पैतरे अपनाने पड़े हैं तो सब दिमाग में रजिस्टर्ड हो चुके हैं. सब आप को दे दूंगी, ताकि मेरा दिमाग खाली हो और उस में कुछ नई और फ्रेश चीजें भरें,’’ मुसकराते हुए जिस अंदाज से नेहा ने कहा था, उस से अनुभा को जहां हंसी आ गई थी, वहीं सारा भय भी दूर हो गया था. नाहक ही कुंआरी ननदों को बदनाम किया जाता है… उन से अच्छी सहेली और कौन हो सकती है ससुराल में.

उस के बाद नेहा ने जैसे एक बैक सीट ले ली थी और अनुभा ने मोरचा संभाल लिया था.

पापा को अनुभा को दिल से स्वीकारने और बेटी जैसा सम्मान व स्नेह मिलने के लिए नेहा को यही सही लगा था कि वह एक दूरी बना ले. इस से नेहा पर पापा की निर्भरता कम होगी, साथ ही अनुभा को वह समझ पाएंगे और तरुण को भी. सेतु नहीं होगा तो खुद ही संवाद स्थापित करना होगा उन दोनों को.

‘‘भाभी, आप उन दोनों के बीच सेतु बनने की गलती मत करना. आप को बहुतकुछ नजरअंदाज करना होगा. बेशक इन लोगों को लगे कि आप उन की उपेक्षा कर रही हैं,’’ नेहा ने कहा था तो अनुभा ने उस का माथा चूम लिया था.

2-3 साल ही तो छोटी है उस से, पर एक ठोस संबल उसे भी चाहिए होता ही होगा.

‘‘लाओ, तुम्हारे बालों में तेल लगा देती हूं,’’ अनुभा ने कहा था, तो नेहा झट से अपने लंबे बालों को खोल कर फर्श पर बैठ गई थी.

‘‘कोई पैम्पर करे तो कितना अच्छा लगता है,’’ तब अनुभा ने उसे अपनी गोदी में लिटा लिया था.

‘‘भाभी, लगता है मानो मां की गोद में लेटी हूं. तरस गई थी इस लाड़ के लिए. लोगों को लगता है कि घर की सत्ता मेरे हाथ में है, इसलिए मैं खुशनसीब हूं, किसी की हिम्मत नहीं कि रोकेटोके, पर उन्हें कौन समझाए कि रोकनाटोकना, प्रतिबंध लगाना या डांट सुनना कितना अच्छा लगता है, तब यह नहीं लगता कि हम किसी जिम्मेदारी के नीचे दबे हैं.’’

दूरियां कभीकभी कितनी अच्छी हो सकती हैं, अनुभा को एहसास हो रहा था. नेहा के जाने के बाद उसे बहुत दिक्कतें आईं.

पितापुत्र के बीच अकसर छाया रहने वाला मौन और बातबात पर पापा का उसे अपमानित करना, उस की गलतियां निकालना और विजातीय होने के कारण उस की सही बात को भी गलत ठहराना.

अनुभा ने भी ठान लिया था कि वह कभी पापा की बात को नहीं काटेगी, अपमान का घूंट पीना उस के लिए कोई आसान नहीं था, पर तरुण और नेहा के सहयोग से उस ने धैर्य की कुछ घुट्टी यहां पी ली थी और कुछ वह अपने साथ सहनशीलता को एक तरह से दहेज में ही ले कर आई थी.

मां ने यह पाठ बचपन से पढ़ाया था, क्योंकि वह इतना तो जानती थी कि चाहे आप कितना ही क्यों न पढ़लिख जाएं, कितने ही पुरुषों से आगे क्यों न निकल जाएं, सहनशीलता की आवश्यकता हर मोड़ पर पड़ती है गृहस्थी चलाने के लिए. शायद इसे वह परंपरा ही मानती थी.

वह चुपचाप पापा के सारे काम करती, समय पर उन को खाना देती, दवा देती और सुबहशाम सैर करने के लिए जिद कर के भेजती.

वह कुछ अलग नहीं कर रही थी, ऐसा तो वह अपने मायके में भी करती थी. केवल रिश्ते का नाम यहां अलग था, पर रिश्ता तो वही था, पिता का.
उस से गलतियां होती थीं, स्वाभाविक ही है, तो क्या हुआ, नेहा कहती, ‘‘ज्यादा मत सोचो भाभी, बहुत गड़बड़ हुई तो मैं अपनी जिम्मेदारी से भागूंगी नहीं.

“यह मत सोचना कि मैं ने अपनी आजादी पाने के लिए यह कदम उठाया… मैं तो केवल आप को उस घर में आप का अधिकार दिलाना चाहती हूं.

“पापा को थोड़ा सक्रिय भी होना पड़ेगा, वरना जंग लग जाएगी उन के शरीर में और फिर मन में. असहाय और अकेले होने की भावना से खुद को ही आहत करते रहेंगे और दूसरे पर निर्भर हो जाएंगे हर काम के लिए. उन्हें मन की उदासी से निकल कर पहले खुद के लिए और फिर दूसरों के लिए जीना सीखना होगा.

“अपने को दोषी मान कर और आत्मप्रताड़ना और स्वयं पर दया करते रहना, उन का स्वभाव सा बन गया है. हम केवल मदद कर सकते हैं, पर निकलना उन्हें खुद ही होगा…फिर चाहे उन्हें कुछ झटके ही क्यों न देने पड़ें.

“आसान नहीं है. पर भाभी, अब तो मुझे भी वह फोन पर बहुतकुछ सुना देते हैं. मजा आता है, कम से मुझे पैडस्टल से तो उतार रहे हैं.

“अब थोड़ी कम थकान महसूस करती हूं. पर, आप को थकाने के लिए सौरी. चलो भैया से थकान उतरवा लेना,’’ हंसी थी वह जोर से, तो अनुभा के चेहरे पर लाली छा गई थी.

जब रोज एक ही स्थिति से गुजरना पड़े तो वह आदत बन जाती है और फिर खलती नहीं है. उमाशंकर के साथ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था. देख रहे थे कि बेटाबहू उन का कितना ध्यान रखते हैं. बेटे के साथ संवाद बढ़ गया था, क्योंकि अनुभा ने सेतु बनने से साफ मना कर दिया था. फिर नाराजगी करें तो भी किस बात पर, कब तक बेवजह नुक्स निकालते रहेंगे.

जब वह पार्क में सैर करने जाते हैं तो देखतेसुनते तो हैं कि बूढ़े मांबाप के साथ कितना बुरा व्यवहार करते हैं बेटाबहू… कुछ तो खाने के लिए तरसते रहते हैं. न समय पर खाना मिलता है, न दवा. और पैसे के लिए भी हाथ फैलाते रहो. महानगरीय जीवन की त्रासदी से अवगत हैं वह… भाग्यशाली हैं कि उन की दशा सुखद है. पेंशन का पैसा बैंक में ही पड़ा रहता है. जब जो चाहे खरीद लेते हैं, खर्च कर लेते हैं. तरुण तो एक बार कहने पर ही सारी चीजें जुटा देता है.

नेहा नहीं है तब भी जिंदगी मजे से कट रही है उन की. जब इनसान आत्ममंथन करने लगता है तो दिमाग में लगे जाले साफ होने लगते हैं.

पितापुत्र के बीच खिंची दीवार धीरेधीरे ही सही दरकने लगी थी. बहू बेटी नहीं बन सकती, यह मानने वाले उमाशंकर उसे  बहू का दर्जा देने लगे थे, उस के विजातीय होने के बावजूद.

नेहा ने जो दूरियां बनाई थीं, वे अनुभा को, तरुण को उन के पास ला रही थीं.

‘‘नेहा…’’ उमाशंकर ने जैसे ही आवाज लगाई तो उसे गले में ही रोक लिया. कमरे के भीतर ही सिमट गया नेहा का नाम.

‘‘अनुभा, मैं आज शाम को खिचड़ी ही खाऊंगा, साथ में सूप बना देना, अगर दिक्कत न हो तो…’’ रसोई के दरवाजे पर खड़े उमाशंकर ने धीमे स्वर में कहा. झिझक थी उन के स्वर में. समझती है अनुभा, वक्त लगेगा दूरियां खत्म होने में. एकएक कदम की दूरी ही बेशक तय हो, पर शुरुआत तो हो गई है.

वह इंतजार करेगी, जब पापा उसे बहू नहीं बेटी समझेंगे.

नेहा भी तो कब से उस दिन का इंतजार कर रही है. वह जानबूझ कर आती नहीं है मिलने भी कि कहीं पापा उसे देख फिर अनुभा के प्रति कठोर न हो जाएं.

‘‘बहुत ग्लानि होती है कई बार भाभी, मेरी वजह से आप को इतना सब झेलना पड़ रहा है,’’ कल जब अनुभा से बात हुई थी, तो नेहा ने कहा था.

‘‘गिल्टफीलिंग से बाहर निकलो, नेहा. सब ठीक हो जाएगा. आ जाओ थोड़े दिनों के लिए. तरुण भी मिस कर रहे हैं तुम्हें.’’

अनुभा ने सोचा कल ही नेहा को फोन कर के कहेगी कि उसे आ जाना चाहिए मिलने, बेटी है वह घर की. अनुभा को अधिकार दिलाने के चक्कर में अपना हक और अपने हिस्से के प्यार को क्यों छोड़ रही है वह…वह तो कितना तड़प रही है सब से मिलने के लिए. फोन पर चाहे जितनी बात कर लो, पर आमनेसामने बैठ कर बात करने का मजा ही कुछ और होता है. सारी भावनाएं चेहरे पर दिखती हैं तब.

‘‘अरे पापा बिलकुल बन जाएगा, मैं भी आज खिचड़ी ही खाऊंगा और साथ में सूप… वाह मजा आ जाएगा,’’ तरुण उन के साथ आ कर खड़ा हो गया था. दोनों साथसाथ खड़े थे. अपनेपन की एक सोंधी खुशबू खिचड़ी के लिए बनाए तड़के के साथ उठी और अनुभा को लगा जैसे आज देहरी पार कर उस ने सचमुच अपने घर में प्रवेश किया

ओरल हाइजीन : स्वस्थ गर्भावस्था के लिए जरूरी

गर्भावस्था के कारण महिलाओं के शरीर में हारमोन से जुड़े कई बदलाव आते हैं. इन में से कुछ बदलाव के कारण उन्हें मसूड़ों की बीमारी होने का जोखिम बढ़ जाता है. गर्भावस्था के दौरान शरीर में प्रोजेस्टेरौन का स्तर बढ़ जाता है, जिस से प्लाक में मौजूद बैक्टीरिया के प्रति गतिविधि तेज हो जाती है और इस से मसूड़ों की बीमारी यानी सूजन (जिंजिवाइटिस) की समस्या हो सकती है. प्लाक वह परत होती है, जो दांतों पर जम जाती है. आमतौर पर अच्छी ओरल केयर वाली गर्भवती महिलाओं में भी प्रोजेस्टेरौन का स्तर बढ़ने के कारण यह समस्या हो सकती है, इसलिए अगर कोई महिला गर्भधारण करने की योजना बना रही है, तो बेहतर होगा कि वह डैंटल चैकअप करा ले और अगर जरूरत हो तो दांतों की समस्या का इलाज भी करा ले. यह गर्भधारण से पूर्व होने वाले चैकअप में शामिल होना चाहिए.

मसूड़ों की बीमारी जिंजिवाइटिस दांतों के आसपास मौजूद कोमल कोशिकाओं का एक संक्रमण होता है. इस में दर्द नहीं होता और यही वजह है कि इस पर ध्यान नहीं जाता और इसलिए इस का इलाज भी नहीं हो पाता है. इस के चेतावनी संकेतों में मसूड़ों का लाल या उन से खून निकलना, सूजन आना या कमजोर होना आदि शामिल है. ऐसे मसूड़े जिन की दांतों पर पकड़ ढीली हो गई हो या फिर वे दांतों से अलग हो रहे हों, इस बीमारी के संभावित संकेत हैं. मुंह में खराब स्वाद का रहना, सांस की बदबू या फिर स्थाई दांतों की पकड़ में बदलाव आना भी मसूड़ों में बीमारी होने का संकेत है.

अगर गर्भवती महिला के दांतों की बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो इस से काफी गंभीर नतीजे निकल सकते हैं. कभीकभी मसूड़ों के किनारों और दांतों के बीच सूजन भी दिखाई देती है. यह सूजन नुकसानरहित होती है. लेकिन इस से भी खून निकलने लगता है. यह अकसर लाल शहतूत के आकार की होती है, जिसे गम ऐप्युलिस कहते हैं. इस सूजन को प्रैगनैंसी ट्यूमर भी कहते हैं, लेकिन इस की प्रवृत्ति कैंसर की नहीं होती है. यह गम ऐप्युलिस डिलिवरी के बाद अपनेआप गायब हो जाते हैं. लेकिन उस के बाद भी दिखाई दे, तो उसे डैंटल सर्जन लोकल ऐनेस्थीसिया दे कर निकाल सकता है.

अगर गर्भवती महिलाएं इन समस्याओं का उपचार न कराएं तो ये बहुत गंभीर रूप भी ले सकती हैं. मसूड़ों की समस्या और अचानक गर्भपात, समयपूर्व प्रसव, प्रीऐक्लंप्सिया और गैस्टेशनल डायबिटीज के बीच कुछ संबंध हो सकता है. कई शोधकर्ता इन विषयों पर काफी समय से शोध कर रहे हैं. इन शोधों के नतीजे कुछ भी हों, लेकिन इन से एक बात तो यह साफ है कि गर्भधारण की योजना बनाने से पहले यह तय करना बेहतर है कि आप के मुंह में किसी भी प्रकार का संक्रमण न रहे. अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो प्रैगनैंसी जिंवाइटिस होने के कारण दांत को सपोर्ट करने वाली हड्डी को नुकसान भी पहुंच सकता है.

मसूड़ों की बीमारी बढ़ कर दांतों से सटी हड्डियों और दांतों को कसने वाली सस्पैंसरी ऐपेरेटस में भी पहुंच कर पेरियोडोंटल बीमारी की वजह बन सकती है. पेरियोडोंटल बीमारी से ऐसी गंभीर बीमारी हो सकती है, जिस में वांछित नतीजे हासिल करने के लिए डैंटल सर्जन की जरूरत होती है. पेरियोडोंटल बीमारी के लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन यह लंबे समय में होने वाली बीमारी है और इस की वजह से दांत पसीजने लगते हैं और मसूड़ों पर जोर पड़ता है. दिन में मसूड़ों में लगा सफेद या पीला डिस्चार्ज दिखाई देता है, जिस से मुंह से बदबू आती है और स्वाद खराब रहता है. पेरियोडोंटल बीमारी से पीडि़त जच्चा शिशु के मुंह का चुंबन लेते समय ये कीटाणु उस के मुंह तक पहुंचा सकती है, जो उस के लिए नुकसानदेह हो सकता है.

जर्नल औफ नैचुरल साइंस, बायोलौजी ऐंड मैडिसिन के अनुसार, मसूड़ों में जलन पैदा करने वाले बैक्टीरिया रक्तप्रवाह के साथ गर्भ में पल रहे भू्रण तक पहुंच सकते हैं. मसूड़ों की बीमारी से ऐसे ऐंडोटौक्सिंस उत्पन्न हो सकते हैं, जो साइटोकाइंस और प्रोस्टाग्लैंडिंस का उत्पादन बढ़ा देते हैं. पेरियोडोंटाइटिस (लंबे समय तक रहने वाली मसूड़ों की बीमारी) से पीडि़त गर्भवती महिला में समयपूर्व प्रसव होने की आशंका 4 से 7 गुना अधिक रहती है. मसूड़ों से जुड़ी समस्या को अकसर महिलाएं गंभीरता से नहीं लेती हैं, विशेषतौर पर तब जब उस में दर्द न हो रहा हो. लेकिन जब मसूड़ों की समस्या के कारण समयपूर्व प्रसव होता है या सामान्य से कम वजन के शिशु का जन्म होता है, तब इस के नतीजे भी गंभीर होते हैं.

बैक्टीरिया संक्रमण से निकले इस जानलेवा हानिकारक तत्त्व या जहर के कारण नवजात शिशु का वजन सामान्य से कम रह सकता है.

यूएस नैशनल लाइबे्ररी औफ मैडिसिन, नैशनल इंस्टिट्यूट्स औफ हैल्थ जैसे विश्वसनीय सैंटरों द्वारा प्रकाशित किए गए शोध में सामने आया है कि समयपूर्व प्रसव और कम वजन वाले बच्चों के 1 महीना भी जीवित न रहने की आशंका 40 गुना अधिक होती है. 1 महीने तक जीवित रहने वाले ऐसे बच्चों में न्यूरोडैवलपमैंटल गड़बड़ी, स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं और जन्मजात विकार का जोखिम काफी ज्यादा होता है, बल्कि समयपूर्व प्रसव होना ही लंबी अवधि की सभी न्यूरोलौजिकल परिस्थितियों में से करीब आधे से ज्यादा मामलों की वजह है.

समयपूर्व प्रसव के बाद जन्मे शिशुओं में फेफड़ों की जन्मजात बीमारी, आंतडि़यों में जख्म, कार्डियोवैस्क्युलर विकार, कमजोर शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता और श्रव्य व दृश्य समस्याएं होती हैं. व्यावहारिकता के लिहाज से कम संभावनाओं के साथ जन्म लेने वाले शिशुओं में मृत्यु दर बहुत अधिक होती है. उन में जटिलताओं की दर भी काफी ज्यादा होती है.

मसूड़ों की बीमारी से ऐसे ऐंडोटौक्सिंस उत्पन्न हो सकते हैं, जो साइटोकाइंस और प्रोस्टाग्लैंडिंस का उत्पादन बढ़ा देते हैं. गर्भवती महिलाओं में साइटोकाइंस के उच्च स्तर से गर्भाशय की झिल्ली फट सकती है और इस तरह समयपूर्व प्रसव हो सकता है. (साइटोकाइंस ऐसे नियामकीय प्रोटीन होते हैं, जो कोशिकाओं के बीच संदेशवाहक के तौर पर काम करते हैं) बैक्टीरिया संक्रमण से निकले इस जानलेवा तत्त्व या जहर के कारण नवजात का वजन सामान्य से कम रह सकता है. बैक्टिरियल संक्रमण से निकलने वाले इस जानलेवा जहर के कारण सामान्य से कम वजन वाले शिशु जन्म ले सकते हैं. समयपूर्व प्रसव और नवजात शिशु का वजन सामान्य से कम रहने के करीब 30 से 50 फीसदी मामलों की वजह ऐसे संक्रमण होते हैं. मसूड़ों की समस्या भी उन संक्रमणों में से एक है, जिन के कारण ऐसे नतीजे आते हैं.

फिर भी अच्छी खबर यह है कि मसूड़ों की बीमारियों का आसानी से इलाज संभव है और इन की रोकथाम भी आसानी से की जा सकती है. इन का इलाज कराना बहुत आसान है. अत: अगर आप गर्भधारण की योजना बना रही हैं, तो सब से पहले अपने डैंटिस्ट के पास जाएं और जांच कराएं कि आप को दांतों से संबंधित कोई समस्या तो नहीं है. अगर है तो उस का तुरंत इलाज करवाएं.

गर्भावस्था के दौरान क्या करें

– जैसे ही आप गर्भधारण करें, तुरंत डैंटिस्ट से मसूड़ों का चैकअप कराएं.

– कम से कम दिन में 2 बार ब्रश करें. 1 बार फ्लास करें और गर्भावस्था में जिंजिवाइटिस से बचने के लिए ऐंटीमाइक्रोबियल सौल्यूशन से कुल्ला करें.

– ज्यादा मीठे खाद्य या पेयपदार्थों से परहेज करें. ऐसे खाद्यपदार्थों को तरजीह दें, जो प्रोटीन, कैल्सियम, फासफोरस और विटामिन ए, सी, डी के साथसाथ फौलिक ऐसिड के भी अच्छे स्रोत हों.

– गर्भावस्था के दौरान नियमित चैकअप और स्केलिंग व क्लीनिंग से डैंटिस्ट को आप के मसूड़ों के स्वास्थ्य पर नजर रखने में मदद मिलेगी और किसी भी आने वाली समस्या का इलाज समय पर हो सकेगा.

– गर्भावस्था के दौरान अगर मसूड़ों में किसी भी समस्या का संकेत मिलता है, तो तुरंत डैंटिस्ट से मिलें.

– शिशु को जन्म देने के बाद भी डैंटिस्ट से जरूर मिलें विशेषतौर पर पहले तीन महीनों तक. शिशु के 12 महीने के होते ही उसे डैंटिस्ट के पास जरूर ले कर जाएं.

बारबार उबकाई और उलटी आने की समस्या से जूझ रही गर्भवती महिलाओं को दांतों की सतह को नुकसान से बचाने के लिए सलाह :

– कमकम मात्रा में संपूर्ण आहार लें. दिन भर के दौरान कम मात्रा में ऐसा भोजन खाएं, जो प्रोटीन से भरपूर हो जैसे पनीर.

– उलटी करने के बाद अच्छे टूथपेस्ट या 1 चम्मच बेकिंग सोडा (सोडियम बाईकार्बोनेट) को 1 कप पानी में मिलाएं या फिर फ्लोराइड युक्त कोई भी माउथवाश से कुल्ला करें. इस से दांतों की सतह पर मिनरल लौटाने में मदद मिलती है.

– उलटी करने के तुरंत बाद ब्रश न करें, क्योंकि मुंह के ऐसिड से दांतों की सतह काफी कमजोर हो जाती है और तुरंत ब्रश करने से इन्हें और नुकसान पहुंच सकता है.

– एक कोमल टूथब्रश और फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट से दिन में 2 बार ब्रश करें, इस से दांत मजबूत होंगे.

जिंजिवाइटिस मसूड़ों की बीमारी का शुरुआती चरण होता है और इसे पेशेवर स्कैलिंग व क्यूरेटेज से हटाया जा सकता है. डीप स्कैलिंग और क्यूरेटेज में प्लाक और टार्टर को मसूड़ों की ऊपरी और निचली सतह से हटा कर दांतों की पौलिशिंग की जाती है. मसूड़ों की समस्या का इलाज करने के लिए रूट प्लानिंग भी की जा सकती है, जिस के बाद दांतों की पौलिशिंग होती है. रूट प्लानिंग के दौरान दांतों की सतह पर मौजूद खुरदरे धब्बों को समान किया जाता है, जिस से मसूड़ों को चिपकने के लिए साफ सतह मिलती है. फ्लैप सर्जरी और म्यूको जिंजिवल सर्जरी जैसी सर्जिकल प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर मसूड़ों की ज्यादा गंभीर बीमारियों को दूर किया जा सकता है. हड्डियों को और नुकसान से बचाने के लिए बोन ग्राफ्टिंग भी की जा सकती है, जिस से दांत को टूटने और ऐक्सफौलिएशन से बचाया जा सकता है.

घर पर इस तरह बनाएं तवा पनीर बर्गर, जानें रेसिपी

बर्गर बच्चों के साथ-साथ बड़े लोगों को भी पसंद आता है. ऐसे में अगर आपोक स्नैक टाइम में बर्गर मिल जाए तो बस क्या आपका दिन बन जाए.

सामग्री−

बर्गर बन

प्याज

टमाटर

पनीर

लहसुन

चीज

रेड चिली सॉस

शेज़वान सॉस

टोमेटो कैचप

कुकिंग ऑयल

बटर

नमक

-तवा पनीर बर्गर बनाने के लिए आपको सबसे पहले बर्गर की फिलिंग तैयार करनी होगी.इसके लिए आप सबसे पहले एक प्याज और टमाटर को बारीक काट लें.

-इसके बाद पनीर को भी बेहद छोटे टुकड़ों में काट लें.अब आप एक तवा या पैन लें.इसमें ऑयल में लहसुन और प्याज डालकर फ्राई करें.

-अब इसमें टमाटर डालकर पकाएं.अब इसमें एक बड़ा चम्मच टोमेटो कैचप, शेजवान सॉस और रेड चिली सॉस डालकर मिक्स करें.अब इसमें पनीर के टुकड़े व नमक डालकर एक साथ मिक्स करें.

-अब इसमें थोड़ा चीज़ डालें.आप चीज अपनी पसंद का कोई भी डाल सकते हैं.चीज़ डालने के बाद करीबन दस−पंद्रह सेकंड तक पकाएं और फिर गैस बंद कर दें और मिश्रण को बाउल में निकाल लें.

-अब तवे पर थोड़ा मक्खन डालें और बर्गर के बन को काटकर उसे सेंके.ध्यान रखें कि इसे बहुत अधिक नहीं सेंकना है. इसके बाद आप बन के ऊपर तैयार मिश्रण डालें.

-फिर आप इसके ऊपर मेयोनीज डालकर फैलाएं.इसके बाद इसके ऊपर टमाटर और प्याज की स्लाइस लगाएं.आखिरी में इसके ऊपर चीज़ की स्लाइस लगाएं और फिर बन के दूसरे हिस्से से कवर कर लें.

-इसके बाद आप तवे पर थोड़ा बटर डालकर एक बार फिर से बन को टोस्ट करें.इससे चीज़ मेल्ट हो जाएगा.दोनों तरफ से बर्गर को सेंकें.

-बस आपका लजीज़दार तवा पनीर बर्गर बनकर तैयार है.यह बर्गर हर किसी को बेहद पसंद आएगा.

नन्हें-मुन्नों के कपड़ों का रखरखाव करने का ये है आसान तरीका

माता पिता जब अपनी नन्ही सी जान को अस्पताल से घर ला रहे होते हैं तो उन की खुशियों की कोई सीमा नहीं होती. बच्चे के आने से पहले ही खूबसूरत रंगबिरंगे क्यूट कपड़ों से घर भरा होता है. मगर इन की खरीदारी और धुलाई करते वक्त कुछ बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है, क्योंकि कपड़ों के साथ जुड़ी होती है बच्चे की सेहत और सुरक्षा.

कपड़े खरीदते समय सावधानियां

फैब्रिक: बच्चे के लिए हमेशा मुलायम और आरामदायक कपड़े खरीदें, जिन्हें धोना आसान हो. फैब्रिक ऐसा हो जिस से बच्चे की त्वचा को कोई नुकसान न पहुंचे. बच्चों के लिए कौटन के कपड़े सब से अच्छे रहते हैं. लेकिन ध्यान रहे कि कौटन के कपड़े धुलने के बाद थोड़े सिकुड़ जाते हैं.

साइज: बच्चों के कपड़े 3 माह के अंतराल के आते हैं. ये 0-3 माह, 3-6 माह, 6-9 माह और 9-12 माह के होते हैं. बच्चों को ओवर साइज कपड़े न पहनाएं. ऐसे कपड़े गरदन और सिर पर चढ़ सकते हैं, जिस से दम घुटने का खतरा हो सकता है.

सुरक्षा: बीएल कपूर सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल के कंसल्टैंट न्यूनेटोलौजी, डा. कुमार अंकुर कहते हैं कि छोटे बच्चों के लिए हमेशा सिंपल कपड़े खरीदने चाहिए. फैंसी और डैकोरेटिव कपड़े खरीदने से बचें. ऐसे कपड़े खरीदें जिन में बटन, रिबन और डोरियां न हों. बच्चे बटन निगल सकते हैं, जिस से उन का गला चोक हो सकता है. ऐसे कपड़े भी न खरीदें जिन में खींचने वाली डोरियां हों. वे किसी चीज में फंस कर खिंच सकती हैं और बच्चे का गला घुट सकता है.

आराम: ऐसे कपड़े खरीदें जो आसानी से खुल जाएं ताकि कपड़े चेंज कराते वक्त दिक्कत न हो. सामने से खुलने वाले और ढीली आस्तीन के कपड़े अच्छे रहते हैं. ऐसे फैब्रिक के कपड़े लें जो स्ट्रैच हो जाएं ताकि उन्हें पहनाना और उतारना आसान हो, ऐसे कपड़े न खरीदें जिन में जिप लगी हो.

कपड़े धोने के टिप्स

डा. कुमार अंकुर कहते हैं कि बच्चों की त्वचा संवेदनशील होती है, इसलिए सामान्य डिटर्जैंट का इस्तेमाल न करें. रंगीन और खुशबू वाले डिटर्जैंट तो बिलकुल भी न लगाएं. बेहतर होगा ऊनी कपड़े धोने वाले माइल्ड डिटर्जैंट का इस्तेमाल करें. छोटे बच्चों के कपड़ों को पानी से अच्छी तरह खंगालें ताकि डिटर्जैंट पूरी तरह निकल जाए. अगर बच्चे की त्वचा अधिक संवेदनशील है तो विशेषरूप से छोटे बच्चों के कपड़ों के लिए मिलने वाले डिटर्जैंट का ही इस्तेमाल करें.

बच्चों के कपड़े छोटे और मुलायम होते हैं, इसलिए उन्हें वाशिंग मशीन के बजाय हाथ से धोएं तो ज्यादा अच्छा रहता है. अगर आप मशीन में धो रही हैं तो ड्रायर में न सुखाएं. खुले स्थान पर ताजी हवा और सूर्य की रोशनी में सुखाएं. अगर आप फैब्रिक सौफ्टनर का इस्तेमाल करना चाहती हैं तो बेबी स्पैसिफिक सौफ्टनर का प्रयोग करें.

कपड़े धोने के अन्य टिप्स

आइए, जानते हैं कि बच्चों के कपड़ों की साफसफाई किस तरह करें कि उन्हें त्वचा या अन्य किसी तरह का रोग न हो:

  1. कपड़े पर लगे लेबल को ध्यान से पढ़ें. बच्चे के डौलिकेट बेबी क्लोथ्स पर लिखे निर्देशों के हिसाब से चलें.
  2. ज्यादातर कपड़े ज्यादा तापमान से खराब हो जाते हैं. इसलिए कपड़े धोते समय ज्यादा गरम पानी का इस्तेमाल न करें. कुनकुने या ठंडे पानी से ही धोएं.
  3. बच्चों के कपड़ों को रंग, फैब्रिक और दागदब्बों के आधार पर 2-3 हिस्सों में बांट लें. एक तरह के कपड़ों को एकसाथ धोएं. इस से धोने में सुविधा होगी और कपड़े भी सुरक्षित रहेंगे.
  4. बच्चे के कपड़ों में यदि दागधब्बे लग गए हैं तो उन पर बेबी फ्रैंडली माइल्ड डिटर्जैंट लगा कर हलके से रगड़ें, इस से दाग हलके हो जाएंगे. बाद में सामान्य तरीके से धो लें.
  5. पहले धो लें. इस से कपड़े बनाते वक्त काम में लिए गए रसायन शिशु को हानि नहीं पहुंचा पाएंगे. यही नहीं, कपड़ों पर यदि किसी तरह की गंदगी या धूलमिट्टी लगी होगी तो वह भी धुल जाएगी. सिर्फ कपड़े ही नहीं, ब्लैंकेट, चादर, बिस्तर आदि जो शिशु की त्वचा के सीधे संपर्क में आते हैं, प्रयोग से पहले धो लें. ऐसा न करने पर संभव है कि बच्चे की कोमल त्वचा पर खुजली या रैशेज की समस्या पैदा हो जाए.
  6. बच्चे के कपड़ों को कीटाणुओं से मुक्त रखने के लिए कुछ महिलाएं उन्हें ऐंटीसैप्टिक सौल्यूशन में भिगोती हैं. यह उचित नहीं. इस से बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है.
  7. कपड़ों को फर्श पर रख कर रगड़ने के बजाय हाथ या रबड़ शीट अथवा मशीन के ढक्कन पर रख कर साफ करें.
  8.  बच्चों के कपड़ों को घर के दूसरे सदस्यों के कपड़ों से अलग धोएं. अकसर बड़ों के कपड़ों में गंदगी ज्यादा होती है. सभी कपड़े साथ धोने पर उन के कीटाणु बच्चों के कपड़ों में आ सकते हैं.
  9. कपड़े सूख जाएं तो उन्हें प्रैस कर लें ताकि रहेसहे कीटाणु भी मर जाएं.
  10. कपड़ों को तह लगा कर कवर में या कौटन के कपड़े में लपेट कर रखें.

शरीफा-भाग 2 : आखिर ऐसा क्या हुआ कि अब वह पछता रही थी?

“बेटी, वह जमाना और था,” किंतु मां की हर समझाइश को उन की इस बुद्धिमान बेटी ने सिरे से खारिज कर दिया. एजुकेटेड, फौरवर्ड और बोल्ड होने का चश्मा जो लगा रखा था आंखों पर.

मां ने रोधो कर चुप्पी साध ली, मगर पिताजी… उन्होंने तो उसे जहर खाने तक की धमकी दे दी. यह वही पिताजी थे, जिन के बगैर निकिता को एक पल भी चैन नहीं था, जिन की उंगली थामे उस ने चलना सीखा था. यह वही पिताजी थे, जिन्होंने उसे हमेशा भाई के बराबरी के दर्जे पर रखा, उस की जायजनाजायज हर जरूरत को मां से पंगा ले कर पूरा किया. मगर, आज उन्हीं पिताजी को इस फजल के लिए…

ओह, कितनी अंधी हो गई थी वह इस नामुराद के मोह में कि अपने जन्मदाता के जीवन को भी दांव पर लगा दिया. नहीं मानी जिद्दी जो थी, शायद उस की वजह से वह घर पिता की छत्रछाया खो देता, मगर भला हो उस भाई का, जिस ने गुस्से में आ कर कहा, “पिताजी, मरे तो वह मरे, आप क्यों मरेंगे. जाती है तो जाने दो अपनी बला से, उस की अपनी जिंदगी है. बस, अपनी जिंदगी से हमारे परिवार का नाम और पहचान सबकुछ पोंछ कर जाए यहां से. हमें उस से अब कोई मतलब नहीं रखना.”

और निकिता तोड़ आई वह सारे रिश्ते, जिस की छांव में कभी यह नन्हा सा पौधा परवान चढ़ा था.

बाथरूम में मुंह धोते हुए निकिता ने आईने में अपना चेहरा देखा. अपनी ही शक्ल से नफरत होने लगी थी उसे.

निकिता लौटी तो लैपटौप को जमीन पर गिरा पाया, टूटे हुए लैपटौप को उठा कर टेबल पर यों रखा, मानो अपनी जिंदगी के टूटे हुए अरमानों को फिर एक बार जोड़ कर रख रही हो. उसे और भी कोफ्त हुई जब उस ने देखा कि उस का लैपटौप तोड़ कर फजल के चेहरे पर तनिक भी पश्चाताप का भाव नहीं है, उलटे वह मुसकराते हुए कांटे से शरीफी के एकएक अंश को बड़े इतमीनान से निकाल कर मुंह में रखता, शैतानों की तरह उसे मुंह में घुमाता और फू… कर के बीज को वहीं थूक देता.

“जानवर हो तुम… जानवर, इनसानों सा कोई गुण नहीं तुम में. मैं ही बेवकूफ थी, जो सब के मना करने पर भी अंधी हो गई और चली आई तुम्हारे संग. अपनी बेवकूफी पर बहुत गुस्सा आ रहा है मुझे, किस हैवान के धोखे में आ गई मैं…” गुस्से में निकिता कहे जा रही थी कि अचानक फजल कुरसी से खड़ा हुआ जैसे शैतान लंबी नींद से जागा हो और निकिता के सामने आ खड़ा हुआ.

“हैवान… हैवान हूं न… तो साली हैवान होना क्या होता है, मैं दिखता हूं तुझे,” कहते हुए फजल ने चटाचट निकिता के गाल पर तमाचे मारना शुरू कर दिया.

तैयार नहीं थी निकिता इस बात के लिए कभी मांबाप ने उस पर हाथ नहीं उठाया, फूलों की तरह सहेज कर रखा था उन्होंने अपनी बेटी को. आज किस दुर्दशा में है उन की बेटी. अगर पापा देखते तो आज निश्चय ही इस अफसोस में मर जाते.

आखिर फजल ठहरा हट्टाकट्टा गबरू जवान, उस के हाथों की ताकत निकिता के गाल सह न पाए, उसे दिन में ही तारे नजर आने लगे, आंखों के सामने अंधेरा छा गया, सारा घर घूमता नजर आ रहा था. धम्म से बैठ गई कुरसी पर निकिता.

अब तो फजल आएदिन इस तरह की मारपीट करता रहता. उस की हिंसा का तो यह आलम था कि वह उन व्यक्तिगत पलों में भी रोमांटिक होने के बजाय हिंसक पशु ही होता, जिस प्यार का सपना ले कर निकिता अपना मासूम लड़कपन वाला आंगन छोड़ कर आई थी कि फजल की बांहों में खो कर खुशीखुशी अपना अतीत भुला देगी और सुनहरे भविष्य के सपने देखेगी, सारे सपने कतराकतरा हर दिन टूट रहे थे और टूट रही थी निकिता. जिस प्यार की बस्ती को छोड़ कर जिस के साथ अपना गुलशन सजाने आई थी, वह निर्दयी निकला और बिखर गया उस के सपनों का आशियाना… किसी से कह भी नहीं पा रही थी अपनी पीड़ा, आखिर यह उस का फैसला था.

भाई ने तो उसी दिन अपने सारे नाते खत्म कर दिए थे. कहने को कोई अपना न था, मित्रों के सामने वह अपने इस फैसले की धज्जियां नहीं उड़ना चाहती थी, इसलिए बस मुसकान चिपकाए रहती होंठों पर.

अपनी हरकतों को अंजाम दे फजल तो भड़ाक से दरवाजा खोल कर बाहर निकल गया और रह गई निकिता अकेली अपने टूटे सपनों के साथ, बिखरते भविष्य की किरचें समेटने को विवश काफी देर तक फूटफूट कर रोती रही. कोई नहीं था पास, जो उस के आंसू पोंछ सके, उस के कंधे पर हाथ धर कह सके, मैं हूं न, पछतावे की आग में जल रही थी वह, आखिर यह अकेलापन उस ने अपनी दुर्बुद्धि के चलते स्वयं चुना है. मांबाप हमेशा बच्चों का भला ही चाहते हैं. बच्चे हैं जो चार अक्षर क्या पढ़ लेते हैं, अपने भविष्य के नियंता खुद बन बैठते हैं और उन की परवरिश में खोई रातों की नींद, उन्हें मंजिल तक ले जाने में बहाए पसीने को मांबाप के फर्ज का नाम दे कर अपनी मनचाही राह पर निकल पड़ते हैं. फिर चाहे वह राह उन्हें खाई की ओर ही क्यों न ले जाए.

 

अथ से इति तक -भाग 2 : सिनेमाघर के सामने प्रांजली को देखकर मां रुक क्यों गई?

टिकट खरीदने के लिए लंबी कतार लगी थी. शुभ्रा लपक कर वहां खड़ी हो गई और शांता कुछ दूर खड़ी हो कर उस की प्रतीक्षा करने लगी. रंगबिरंगे कपड़े पहने युवकयुवतियों और स्त्रीपुरुषों को शांता बड़े ध्यान से देख रही थी. ऐसे अवसरों पर ही तो नए फैशन, परिधानों आदि का जायजा लिया जा सकता है. फिल्म का शो खत्म हुआ. शांता भीड़ से बचने के लिए एक ओर हटी ही थी कि तभी भीड़ में जाते एक जोड़े को देख कर मानो उसे सांप सूंघ गया. क्या 2 व्यक्तियों की शक्ल, आकार, चालढाल इतनी अधिक मेल खा सकती है? युवती बिलकुल उस की बेटी प्रांजलि जैसी लग रही थी. ‘कहीं यह प्रांजलि ही तो नहीं?’ एक क्षण को यह विचार मस्तिष्क में कौंधा, पर दूसरे ही क्षण उस ने उसे झटक दिया.

प्रांजलि भला इस समय यहां क्या कर रही होगी? वह तो कालेज में होगी. वह युवती कुछ दूर चली गई थी और अपने पुरुष मित्र की किसी बात पर खिलखिला कर हंस रही थी. शांता कुछ देर के लिए उसे घूर कर देखती रही, ‘नहीं, उस की निगाहें इतना धोखा नहीं खा सकतीं, क्या वह अपनी बेटी को नहीं पहचान सकती?’ पर तभी उसे खयाल आया कि प्रांजलि आज स्कर्टब्लाउज पहन कर गई थी और यह युवती तो नीले रंग के चूड़ीदार पाजामेकुरते में थी. शांता ने राहत की सांस ली, पर दूसरे ही क्षण उसे याद आया कि ऐसा ही चूड़ीदार पाजामाकुरता प्रांजलि के पास भी है. संशय दूर करने के लिए उस ने उस युवती को पुकारने के लिए मुंह खोला ही था कि शुभ्रा के वहां होने के एहसास ने उस के मुंह पर मानो ताला जड़ दिया.

शुभ्रा लाख उस की सहेली थी पर अपनी बेटी के संबंध में शांता किसी तरह का खतरा नहीं उठा सकती थी. प्रांजलि के संबंध में कोई ऐसीवैसी बात शुभ्रा को पता चले और फिर यह आम चर्चा का विषय बन जाए, यह वह कभी सहन नहीं कर सकती थी. अत: वह चुपचाप खड़ी रह गई. ‘‘क्या बात है शांता, तबीयत खराब है क्या?’’ तभी शुभ्रा टिकट ले कर आ गई. ‘‘पता नहीं शुभ्रा, कुछ अजीब सा लग रहा है. चक्कर आ रहा है. लगता है, अब मैं अधिक समय खड़ी नहीं रह सकूंगी,’’ शांता किसी प्रकार बोली. सचमुच उस का गला सूख रहा था तथा नेत्रों के सम्मुख अंधेरा छा रहा था. ‘‘गरमी भी तो कैसी पड़ रही है…चल, कुछ ठंडा पीते हैं…’’ कहती शुभ्रा उसे शीतल पेय की दुकान की ओर खींच ले गई.

शीतल पेय पी कर शांता को कुछ राहत अवश्य मिली किंतु मन अब भी ठिकाने पर नहीं था. कुछ देर पहले के हंसीठहाके उदासी में बदल गए थे. फिल्म देखते हुए भी उस की निगाह में प्रांजलि ही घूम रही थी. किसी प्रकार फिल्म समाप्त हुई तो उस ने राहत की सांस ली. अब उसे घर पहुंचने की जल्दी थी लेकिन शुभ्रा तो बाहर ही खाने का निश्चय कर के आई थी. पर शांता की दशा देख कर शुभ्रा ने भी अपना विचार बदल दिया और दोनों सहेलियां घर पहुंच गईं. शांता घर पहुंची तो देखा, प्रांजलि अभी घर नहीं लौटी थी. उस की घबराहट की तो कोई सीमा ही नहीं थी.

सोचने लगी, ‘लगभग 3 घंटे पहले प्रांजलि को देखा था, न जाने किस आवारा के साथ घूम रही थी? लगता है, यह लड़की तो हमें कहीं का न छोड़ेगी,’ सोचते हुए शांता तो रोने को हो आई. जब और कुछ न सूझा तो शांता पति का फोन नंबर मिलाने लगी, लेकिन तभी द्वार की घंटी बज उठी. वह लपक कर द्वार तक पहुंची. घबराहट से उस का हृदय तेजी से धड़क रहा था. दरवाजा खोला तो सामने खड़ी प्रांजलि को देख कर उस की जान में जान आई, पर इस बात पर तो वह हैरान रह गई कि प्रांजलि तो वही स्कर्टब्लाउज पहने थी जो वह सुबह पहन कर गई थी. फिर वह नीले चूड़ीदार पाजामेकुरते वाली लड़की? क्या यह संभव नहीं कि उस ने प्रांजलि जैसी शक्लसूरत की किसी अन्य लड़की को देखा हो.

‘‘क्या बात है, मां? इस तरह रास्ता रोक कर क्यों खड़ी हो? मुझे अंदर तो आने दो.’’ ‘‘अंदर? हांहां, आओ, तुम्हारा ही तो घर है,’’ शांता वहां से हटते हुए बोली, पर प्रांजलि के अंदर आते ही उस ने शीघ्रता से बेटी के कंधे पर लटकता बैग उतारा और सारा सामान उलट दिया. नीला चूड़ीदार पाजामाकुरता बैग से बाहर पड़ा शांता को मुंह चिढ़ा रहा था. प्रांजलि भी मां के इस व्यवहार पर स्तब्ध खड़ी थी. ‘‘इस तरह छिपा कर ये कपड़े ले जाने की क्या आवश्यकता थी?’’ शांता का स्वर आवश्यकता से अधिक तीखा था. ‘‘मैं क्यों छिपा कर ले जाने लगी?’’ प्रांजलि अब तक संभल चुकी थी, ‘‘पहले से ही रखा होगा.’’ ‘‘तुम अब भी झूठ बोले जा रही हो, प्रांजलि. कालेज छोड़ कर किस के साथ फिल्म देख रही थीं,

‘संगीत’ में? वह तो शुभ्रा मेरे साथ थी और मैं नहीं चाहती थी कि उस के सामने कोई तमाशा खड़ा हो, नहीं तो यह प्रश्न मैं तुम से वहीं करती,’’ शांता गुस्से से चीखी. ‘‘वहीं पूछ लेना था, मां. शुभ्रा चाची तो बिलकुल घर जैसी हैं. फिर एक दिन तो सब को पता चलना ही है.’’ ‘‘अपनी मां से इस तरह बेशर्मी से बातें करते तुम्हें शर्म नहीं आती?’’ ‘‘मैं ने ऐसा क्या किया है, मां? सुबोध और मैं एकदूसरे को प्यार करते हैं और विवाह करना चाहते हैं…साथसाथ फिल्म देखने चले गए तो क्या हो गया?’’ ‘‘शर्म नहीं आती, ऐसा कहते? तुम क्या समझती हो कि तुम मनमानी करती रहोगी और हम चुपचाप देखते रहेंगे? आज से तुम्हारा घर से निकलना बंद…बंद करो यह कालेज जाना भी, बहुत हो गई पढ़ाई,’’ शांता ने मानो अपना आज्ञापत्र जारी कर दिया. प्रांजलि पैर पटकती अपने कमरे में चली गई और स्तंभित शांता वहीं बैठ कर फूटफूट कर रो पड़ी.

शांता के पति राजेश्वर ने जब घर में प्रवेश किया तब घर का वातावरण अत्यंत बोझिल था. प्रांजलि अपने कमरे में मुंह फुलाए बैठी थी और शांता बदहवास सी अपने कमरे में. ‘‘क्या बात है? सब कुशल तो है? फिल्म अच्छी नहीं लगी क्या?’’ वे शांता की अस्तव्यस्त दशा देख कर बोले. ‘‘यह मुझ से क्या पूछते हो, पूछो अपनी लाड़ली बेटी से. मैं तो केवल शुभ्रा का साथ देने के लिए ही सिनेमाघर में बैठी रही, नहीं तो इतना होश किसे था कि फिल्म अच्छी है या बुरी,’’ शांता का स्वर भर्रा गया. ‘‘बात क्या है, शांता? तुम तो बहुत परेशान लग रही हो.’’ फिर तो शांता ने अथ से इति तक पूरी बात बता दी और यह ऐलान भी कर दिया कि अब प्रांजलि का घर से बाहर निकलना बंद और कालेज जाने की भी उसे कोई आवश्यकता नहीं.

 

छोटी छोटी खुशियां : भाग 2

‘‘देखिए प्रतापजी, डिपार्टमैंट अपनी तरह से काम करता है.’’

‘‘कुछ नहीं करता, साहब, आप का पूरा का पूरा डिपार्टमैंट बेकार है. आप के पुलिसकर्मी घूस लेने में लगे रहते हैं. बस वालों से हफ्ता लेते हैं, ऐसे में उन के खिलाफ कैसे कार्यवाही करेंगे?’’

‘‘माइंड योर लैंग्वेज. आप अपनी शिकायत लिख कर भेज दीजिए. दैट्स आल,’’ दूसरी ओर से फोन काट दिया गया.

‘लिखित शिकायत करूंगा…जरूर करूंगा?’ बड़बड़ाता हुआ प्रताप अपनी सीट पर आ कर बैठ गया. पैन उठाया और जिस तरह तोप में गोला भरा जाता है, उसी तरह ठूंसठूंस कर पूरे पेज में एकएक बात लिखी. होंठ भींचे वह लिखता रहा. उस का आक्रोश अक्षर के रूप में कागज पर उतरता रहा. शिकायत का पत्र पूरा हुआ तो उस ने संतोष की सांस ली. पूरे कागज पर एक नजर डाल कर उसे मोड़ा और डायरी में रख लिया. डायरी हाथ में ले कर वह उठ खड़ा हुआ. घुटने में अभी भी दर्द हो रहा था. मगर उस की परवा किए बगैर वह बैंक से बाहर आया. बैंक के सामने ही पीसीओ में फैक्स की सुविधा भी थी. वह सीधे पीसीओ पर पहुंचा. सामने बैठे पीसीओ के मालिक लालबाबू के हाथ में कागज और एक चिट पकड़ाते हुए कहा, ‘‘चिट में लिखे नंबरों पर इसे फैक्स करना है.’’

लालबाबू उन सभी नंबरों के बगल में लिखे नामों को देख कर प्रताप को ताकने लगा. मुख्यमंत्री, राज्यपाल, गृहमंत्री से ले कर पुलिस कमिश्नर तक के नंबर थे वे. उस चिट में शहर के प्रमुख अखबारों के भी फैक्स नंबर थे. अपनी ओर एकटक देख रहे लालबाबू से उस ने कहा, ‘‘सभी नंबरों पर इसे फैक्स कर दीजिए.’’

‘‘जी,’’ उस ने प्रताप द्वारा दिए कागज को फैक्स मशीन में इंसर्ट किया. फिर एकएक नंबर डायल करता रहा. फैक्स मशीन में कागज एक तरफ से घुस कर, दूसरी ओर से निकलने लगा. प्रताप खड़ा इस प्रक्रिया को ध्यान से देख रहा था. सारे फैक्स ठीक से हो गए हैं, इस के कन्फर्मेशन की रिपोर्ट की कौपी लालबाबू ने प्रताप के हाथ में पकड़ाने के साथ ही बिल भी थमा दिया. पैसे दे कर सभी कन्फर्मेशन रिपोर्ट्स प्रताप ने डायरी में संभाल कर रखी और पीसीओ से बाहर निकल आया. अब प्रताप के दिमाग की तनी नसें थोड़ी ढीली हुईं. जिस से उस ने स्वयं को काफी हलका महसूस किया. कितने दिनों से वह इस काम के बारे में सोच रहा था. आखिर आज पूरा हो ही गया.

 

फैक्स सभी को मिल ही गया होगा. अब मजा आएगा. फैक्स जैसे ही मिलेगा, मुख्यमंत्री गृहमंत्री से कहेंगे. उन्हें भी फैक्स की कौपी मिल गई होगी. राज्यपाल के यहां से भी सूचना आएगी. सब की नाराजगी पुलिस कमिश्नर को झेलनी पड़ेगी. फिर वे एसीपी ट्रैफिक को गरम करेंगे. उस के बाद नंबर आएगा कौंस्टेबलों का. एसीपी एकएक कौंस्टेबल का तेल निकालेगा. बैंक में आ कर वह अपनी सीट पर बैठ गया. अब उसे बड़े भाई की याद आ गई. पिछली रात वे पैसे के लिए उस से किस तरह गिड़गिड़ा रहे थे. उसी क्षण उस की आंखों के सामने सुधा का तमतमाया चेहरा नाच गया. मन ही मन उसे एक साथ 4-5 गालियां दे कर वह कुरसी से उठ खड़ा हुआ. बैंक के कर्मचारियों की के्रडिट सोसायटी बहुत ही व्यवस्थित ढंग से चल रही थी. सोसायटी के सैके्रटरी नरेंद्र नीचे के फ्लोर पर बैठते थे. वह लिफ्ट से नीचे उतरा. नरेंद्र अपनी केबिन में बैठे थे. उन की मेज के सामने पड़ी कुरसी खींच कर वह बैठ गया. लोन के लिए फौर्म ले कर उस ने भरा और नरेंद्र की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘नरेंद्र साहब, बड़े भाई थोड़े गरीब हैं. उन्हें मकान की मरम्मत करानी है. यदि मरम्मत नहीं हुई तो बरसात में दिक्कत हो सकती है. इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि मेरी अर्जी पर विशेष ध्यान दीजिएगा.’’

 

लाइव कॉन्सर्ट के दौरान घायल हुए अरिजीत सिंह, जानें पूरा मामला

सिंगर अरिजीत सिंह को लेकर एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि अरिजीत सिंह को लाइव कॉन्सर्ट के दौरान परेशान किया गया है, दरअसल, महाराष्ट्र में एक लाइव कॉन्सर्ट था जहां पर अरिजीत का हाथ तेजी से खींच दिया गया.

जिसके बाद उन्हें चोट आ गई है, बता दें कि यह वीडियो इंटरनेट पर तेजी से वायरल हो रहा है, अरिजीत सिंह के इस क्लिप पर जमकर रिएक्ट किया जा रहा है. बता दें कि एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें वह अपने फैंस से बात करते नजर आ रहे हैं.

वीडियो में अरिजीत सिंह कह रहे हैं कि तुम मुझे खींच रहे हो , प्लीज स्टेज पर आ जाओ, वह कहती है कि मैं स्ट्रग्ल कर रही हूं, उन्होंने कहा की तुम ऐसे खींच रहे हो कि मेरे हाथ कांप रहे हैं. जिसके बाद से अरिजीत सिंह के हाथ में चोट लग गया.

इन सबके दौरान भी अरिजीत सिंह ने अपना आपा नहीं खोया, उसने बहुत आराम से सभी चीजों को शांत कराया है. बता दें कि इससे पहले अरिजीत सिंह ने अपना जन्मदिन खूब धूमधाम से अपने परिवार के साथ मनाया था, जिसकी तस्वीर देखकर लोग उनकी खूब तारीफ कर रहे थें.

अनुज को भूल जिंदगी में आगे बढ़ेगी अनुपमा, देखें वीडियो

स्टार प्लस का पसंदीदा शो अनुपमा में लगातार नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. इन दिनों अनुपमा ने अपना मन बना लिया है कि वह अनुज को भूलकर अपने जीवन में आगे बढ़ेगी, वहीं अब अनुज फिर से अनुपमा की जिंदगी में आना चाहता है.

बता दें अनुज और अनुपमा को माया एक नहीं होने दे रही है, वहीं दूसरी तरफ वनराज भी अनुपमा को पाने की हर कोशिश करता नजर आ रहा है. जब कांता में अनुपमा से अनुज के बारे में पूछती है तो वह कहती है कि अनुज मुझे मिले ही थें बिछड़ने के लिए, अनुज को भूलना मेरे लिए नामुमकिन है लेकिन फिर भी मुझे अब उसे भूलना पड़ेगा.

 

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मां जवाब सुनकर परेशान हो जाती है, दूसरी तरफ काव्या वनराज पर आरोपी लगाएगी की तुमने मुझे कभी नहीं समझा है, न मुझे और न मेरे सपनों को. वनराज से बहस करने के बाद काव्या घर को छोड़कर जाने लगती है, उसने फैसला लिया है कि मैं चली जाऊं यही मेरे लिए बेहतर होगा. और वनराज को कहती है कि एक दिन ऐसा आएगा कि तुम बिल्कुल अकेले पड़ जाओगे और तु्म्हें कोई नहीं पूछेगा.

काव्या के इस बात को सुनकर सभी लोग हैरान हो जाते हैं कि आखिरकर काव्या ऐसा क्यों बोल रही है.

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