हैरानी नही होनी चाहिए अगर दस पंद्रह दिन बाद गाँव के साप्ताहिक हाट बाजारों से लेकर शहरों के फुटपाथों और बड़े भव्य माल्स तक में 3 इंच से लेकर 3 फुट तक के सेंगोल सौ से लेकर हजार रु तक में बिकते नजर आएं . मिथ्या स्टार्ट अप में पैसा खंगाल रहे युवाओं के लिए यह वाकई सुनहरी मौका है कि वे कहीं से मशीनें और सांचे जुगाड़ कर सेंगोल का धंधा शुरू कर दें . मुफ्त के इस आइडिये से लाखों करोड़ों बनाने की गारंटी बिना किसी रिस्क के कोई भी ले सकता है . बाजार के मुताबिक प्लास्टिक और रबर से लेकर धातुओं तक के सेंगोल लांच किये जा सकते हैं .
लेकिन शर्त यह है कि ये सेंगोल हुबहू वही होने चाहिए जो संसद में स्थापित किया जाने बाला है . चार दिन पहले तक मुट्ठी भर लोग भी इसके बारे में नही जानते थे . अब मुट्ठी भर ही बचे होंगे जो सेंगोल के बारे में न जानते हों हालाँकि.जानने बाले भी इसके बारे में अभी तक इतना ही जान और समझ पाए हैं कि यह कोई उच्च कोटि का नया चमत्कारी रक्षक यंत्र है जिसे नई संसद में किसी खास मकसद से ही स्थापित किया जा रहा है . चोल और मोर्य सहित गुप्त व प्रगट वंशों के बारे में जानने इतिहास में झाँकने की न तो आम लोगों को जरूरत है न इतना वक्त है और न ही इसकी अब कोई तुक है .
सोचा सिर्फ इतना जा रहा है कि चूँकि सरकार इसे संसद में स्थापित कर रही है इसलिए जरुर इसमें कोई चमत्कार होगा ठीक वैसे ही जैसे काले मटकों में होना माना जाता है . देश में नए बने और निर्माणाधीन मकानों के आंगन और छतों में काला मटका झूलता अगर न मिले तो मकान मालिक के धर्म , ज्ञान और मानसिकता पर तरस खाया जा सकता है जो यह नही जानता कि लाखों करोड़ों के मकान को यह 40 – 50 रु का अदना सा काला मटका कैसे बुरी नजर से बचाता है .मकान का बीमा हो न हो लेकिन काला मटका जरुर होना चाहिए .
कहले बाले विज्ञानं की थ्योरी की बखिया उधेड़ते बताते हैं कि काले मटके से नकारात्मक उर्जा नही आती और घर के लोग सुख चैन से रहते हैं . यह दीगर बात है कि लोग अपनों से ही ज्यादा दुखी रहते हैं . काला मटका बेचारा लटका लटका तमाशा देखते अपनी रिहाई यानी फूटने का इंतजार करता रहता है .
लेकिन सेंगोल की बात कुछ हटकर है जिसके बारे में यह प्रचार किया जा रहा है कि यह एक तरह का राज दंड है जिसे आजादी के साथ अंग्रेज पहले प्रधानमन्त्री पंडित जवाहर लाल नेहरु को सौंप गए थे . अब अंग्रेजों को यह किसने सौंपा था यह किसी को नही मालूम . उधर कांग्रेसी हल्ला मचाकर कह रहे हैं कि इस बात के तो कोई लिखित या मौखिक प्रमाण ही नही हैं कि सेंगोंल ब्रिटिश सरकार ने नेहरु जी को सौंपा था जिसे कथित तौर पर उन्होंने म्यूजियम में पटकवा दिया था .
गुजरे कल के इन अर्धसत्यों के कोई माने नही हैं ठीक वैसे ही जैसे आज सेंगोल को बतौर टोटका संसद में ले जाने के नही हैं . चूँकि मोदी शाह ऐसा कर रहे हैं इसलिए इसके माने गोदी मीडिया गढ़ने की कोशिश कर रहा है जिस पर भी तरस ही आता है . यूनान , मिस्र और अफ्रीकियों से लेकर प्रिंस चार्ल्स तक का हवाला दिया जा रहा है . जिससे भगवा गेंग की अन्धविश्वासी मानसिकता घूँघट में ही रहे .जिस चोल वंश का जोर शोर से हवाला दिया जा रहा है वह खुद को हिन्दू नही मानता . इतिहास की जानकारी रखने बाले बेहतर जानते हैं कि चोल वंश के वक्त में हिन्दू शब्द और धर्म दोनों अस्तित्व में नही थे .
इस विवाद और साजिश को समझने मणिरत्नम की 2022 में प्रदर्शित फिल्म पोंनियन्न सेल्वन -1 से आसानी से समझा जा सकता है जिसे देखने के बाद मशहूर तमिल डायरेक्टर वेत्रिमारन ने कहा था कि फिल्म में चोल राजराजा चोजलन को हिन्दू के रूप में पेश किया गया लेकिन असल में वे हिन्दू नही थे भाजपा हमारी पहचान चुराने की कोशिश कर रही है . वह लगातार हमारे पहचान चिन्हों को हमसे छीन रही है . भगवान वेल्लुवर का भगवाकरण हो या राजा चोल को हिन्दू बताना ये लगातार हो रहा है प्रतिभावान अभिनेता और नेता कमलहासन ने भी कहा था कि राजराजा के दौर में हिन्दू धर्म जैसी कोई चीज नही थी कर्नाटक विधानसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद भाजपा को समझना चाहिए कि वह लाख सर पटक ले दक्षिण भारत उसका हिंदुत्व या हिन्दू राष्ट्र नही स्वीकारेगा . .
लेकिन बात में वजन नहीं आया तो इस विवाद से बचते होनहार मीडिया बाले महाभारत के शांति पर्व में भी सेंगोल को खोज लाये कि कृष्ण ने अर्जुन से यह कहा था , वह कहा था कि दंड यानी सजा ही धर्म है . यही राज दंड है . बहुत जल्द सेंगोल का वैज्ञानिक महत्व भी मार्किट में आ सकता है जो ठीक वैसा ही होगा जो शिवलिंग और जनेऊ बगैरह का बताया गाया जाता है .
यह कहने की जुर्रत कोई नही कर पा रहा कि यह सरकार ही टोटकेबाजों की है जिसकी एक अंतर्राष्ट्रीय मिसाल 8 अक्तूबर 2019 को दुनिया भर ने देखी थी तब रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने फ़्रांस जाकर राफेल विमानों के नीचे नीबू रखकर उस पर स्वस्तिक और ॐ का चिन्ह रंगोली से अंकित कर दिया था . सारी दुनिया के वैज्ञानिक हैरान रह गए थे कि यह क्या बला है . ये वैज्ञानिक अगर भारत के बाजार घूम लें तो उन्हें ॐ और नीबू मिर्ची के टोटके की पहुँच का पता चल जायेगा और वे विज्ञानं भूल जायेंगे.
यह भी उन्हे समझ आ जायेगा कि इस टोटके का दैनिक बाजार ही करोड़ों रु का है . इससे कोई 75 लाख लोगों के पेट पलते हैं . भारत में 4 व्हीलर पेट्रोल , सड़कों और ड्राइवरों के नही बल्कि ॐ और नीबू मिर्ची की माला के भरोसे चलते हैं .
लगभग इतने ही पण्डे पुजारियों के भी पूजा – पाठ , यज्ञ – हवन , तंत्र – मंत्र और ज्योतिष आदि से पेट और घर भरते हैं . जिस देश में संसद प्रवेश भी बिना वैदिक पूजा पाठ के होना मुमकिन न हो वहां गृह प्रवेश भला कैसे बिना पण्डे पुजारियों के आशीर्वाद के हो सकता है . हमारा देश मान्यताओं , रूढ़ियों और परम्पराओं का देश है जिसमें बच्चों की किताबों तक पर स्वस्तिक बनाया जाता है .नवजातों को वेक्सीन लगवा दिए ठीक नही तो काला टीका तो जिंदाबाद है ही .
बिरले ही घर मिलेंगे जिनके ड्राइंग रूम और पूजा घरों में श्री यंत्र सहित चाइनीज कछुए , मेंढक , लटकती घंटी और लाफिंग बुद्धा बगैरह की मूर्तियाँ न हों . ये और इन जैसे सैकड़ों टोटके शुभ लाभ बाले माने जाते हैं तो बेचारे सेंगोल को कोसना एक फिजूल की बात है . इसका तो बड़े पैमाने पर स्वागत किया जाना चाहिए की टोटकों और टोटकेबाजों की भारत भूमि पर नए आयटम का हार्दिक स्वागत है .
सेंगोल सत्ता हस्तांतरण का प्रतीक है जैसी बहानेबाजी से कोई फायदा नही क्योंकि यह तो 75 साल पहले ही हो चुकी थी अब दौबारा हो रही हो तो और बात है . हाँ 2014 में भी जो हुआ था वह एक तरह का ट्रांसफर आफ पावर अगर माना जा रहा है तो कांग्रेसियों और कुछ विपक्षी दलों को विदेशी घोषित किया जाना चाहिए लेकिन घोषित तौर पर क्योंकि अघोषित रूप से तो वे विदेशी , अधर्मी ,नास्तिक , वामपंथी और नक्सली कहे ही जाते हैं . यही मौजूदा सरकार का लोक कल्याण और निष्पक्ष न्याय है .