यह कहना सही होगा कि नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार के 9 वर्ष पूरे होने पर देश का जनमानस सवाल पूछ रहा है कि आखिर इन 9 वर्षों में हमें क्या मिला? जवाब सिर्फ इतना है कि नरेंद्र मोदी के राजकाज के इन 9 वर्षों में देश की जनता को सिर्फ और सिर्फ त्रासदी और दर्द के सिवा कुछ भी नहीं मिला है. आने वाले समय में इतिहास के पन्नों पर नरेंद्र दामोदरदास मोदी की सरकार और स्वयं नरेंद्र मोदी के कामकाज को जब लिखा जाएगा, तो वह बड़ा ही दर्दनाक होगा.

दरअसल, नरेंद्र मोदी ने जिस तरह देश की जनता को गुजरात मौडल और बड़ीबड़ी बातें करकर के अपने पक्ष में वोट देने के लिए रिझाया और बाद में अपने हिंदुत्व की ढपली राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के संरक्षण में बजाने लगे, यही नहीं, उन्होंने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के झूठ बोलने के रिकौर्ड की कुछकुछ बराबरी करने का भी प्रयास किया है, यह सब इतिहास से छिपाया नहीं जा सकेगा.

आज सत्ता के आसन पर बैठ कर नरेंद्र मोदी सरकार चाहे जितने भी झूठ बोल ले, मगर इतिहास के नीर, क्षीर, विवेक के सामने नरेंद्र मोदी बौने बन जाएंगे, यह कहा जा सकता है.

अगर हम खुली आंखों से देखें, तो नरेंद्र दामोदरदास मोदी का एकएक कदम देश के संवैधानिक ढांचे और जनजन के विरुद्ध ही दिखाई देता है. इस में सब से बड़ा मामला है कोरोना काल का.

कोरोना काल के समय नरेंद्र दामोदरदास मोदी के कार्य व्यवहार को अगर हम ध्यान से देखें तो पाते हैं कि वह किसी भी तरह से लोकतांत्रिक देश के एक चुने हुए प्रधानमंत्री के कामकाज की नीयत से मेल नहीं खाता. उन्होंने देश की जनता को कोरोना का टीका बेचने का प्रयास किया, जो न्यायालय में दरकिनार हो गया. कोरोना से मृत लोगों को मुआवजा देने के नाम पर भी सरकार ने कन्नी काट ली और न्यायालय के आदेश पर आखिरकार सिर्फ 50,000 की राशि देने को तैयार हुए.

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