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Father’s Day Special: दूरियां- क्यों हर औलाद को बुरा मानता था सतीश?

‘‘सुरेखा, सुरेखा…’’ किचन में कुकर की सीटी की आवाज के आगे सतीश की आवाज दब गई. जब पत्नी ने पुकार का कोई जवाब नहीं दिया तो अखबार हाथ में उठा कर सतीश खुद अंदर चले आए.

हाथ का अखबार पास पड़ी कुरसी पर पटक कुछ जोर से बोले सतीश, ‘‘क्या हो रहा है? मैं ने कल की खबर तुम्हें सुनाई थी कि पिता के पैसों के लिए बेटे ने उस की हत्या की सुपारी अपने ही एक दोस्त को दे दी. देखा, कलियुगी बच्चों को…बेटाबेटी ने मिल कर अपने बूढ़े मातापिता को मौत के घाट उतार दिया, ताकि उन के पैसों से मौजमस्ती कर सकें. हद है, आज की पीढ़ी का कोई ईमान ही नहीं रहा.’’  सुरेखा ने उन्हें शांत करने की कोशिश की, ‘‘आप इन खबरों को पढ़ कर इतने परेशान क्यों होते हैं? यह भी देखिए कि ये बच्चे किस वर्ग के हैं और कितने पढ़ेलिखे हैं?’’

‘‘क्या कह रही हो तुम? ये बच्चे बाहर से एमबीए आदि पढ़लिख कर आए थे. जरा सोचो सुरेखा, इन की पढ़ाईलिखाई पर मांबाप ने कितना पैसा खर्च किया होगा. आजकल के बच्चे इतने नकारा हैं कि…’’

कहतेकहते हांफने लगे सतीश. सुरेखा पानी का गिलास ले कर उन के पास चली आईं, ‘‘आप रोजरोज इस तरह की खबरें पढ़ कर अपने को क्यों दुखी करते हैं? छोडि़ए न, हम तो अच्छेभले हैं. बस, 2 महीने रह गए हैं आप के रिटायरमैंट को. अपना घर है. पैंशन आती रहेगी. और क्या चाहिए हमें? जितना है वह अपने बच्चों का ही तो है.’’

सतीश पानी का एक घूंट ले कर कुछ रुक कर बोले, ‘‘बच्चों का क्यों? तीनों को पढ़ालिखा दिया. अब जो करना है, उन्हें खुद करना है. मैं एक पैसा किसी पर खर्च नहीं करने वाला.’’

सुरेखा चौंकीं, ‘‘अरे, यह क्या कह   रहे हैं? सिर्फ अमन की ही तो   शादी हुई है. अभी तो आभा की होनी है. आरुष भी आगे पढ़ाई करना चाहता है. फिर…’’

इस ‘फिर’ से बचते हुए सतीश बाहर निकल गए. दरअसल, जब से उन्होंने अपनी ही कालोनी में रहने वाले जगत को सुबहसुबह पार्क में फूटफूट कर रोते देखा तो उन की सोच ही बदल गई. जगत उम्र में उन से 10 साल बड़े थे. एक बेटा धनंजय और एक बेटी छवि. धनंजय को पढ़ालिखा कर इंजीनियर बनाया. रिटायरमैंट में मिले फंड के पैसों से छवि की शादी कर दी. बचाखुचा पत्नी की बीमारी में निकल गया. बेटे की शादी के बाद वे साथ ही रहते थे. महीना भर पहले बेटे ने उन्हें घर से निकाल दिया. जगत की समझ में नहीं आ रहा था कि वे इस उम्र में जाएं तो कहां जाएं. अपनी पूरी कमाई बच्चों पर लगा दी. उन की पढ़ाई और शादी की वजह से अपना घर नहीं बना पाए. पैंशन नहीं, देखरेख करने वाला भी कोई नहीं.

सतीश, जगत का हाल सुन कर हिल गए. धनंजय को बचपन में देखा था उन्होंने. वह ऐसा निकलेगा, क्या कभी सोचा था?  सुरेखा को पता था कि सतीश एक बार जो ठान लेते हैं उस से पलटते नहीं हैं. कल रात ही आरुष ने उन से कहा था, ‘‘पापा, मैं आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जाना चाहता हूं. छात्रवृत्ति के लिए कोशिश तो कर रहा हूं, फिर भी 3 लाख तक का खर्च आ ही जाएगा.

पापा, क्या आप इतने पैसे उधार दे सकेंगे?’’

आरुष ने बिलकुल एक बच्चे की तरह कहा, ‘‘ममा, 2 साल बाद मेरा एमबीए हो जाएगा. इस के बाद मुझे कहीं अच्छी नौकरी मिल जाएगी. मैं पापा के सारे पैसे चुका दूंगा. आप बात कीजिए न उन से,’’ उस समय तो सुरेखा ने हां कह दिया था, पर अपने पति का रुख देख कर उसे शंका हो रही थी कि पता नहीं वे क्या जवाब देंगे.

घर का काम निबटा कर सुरेखा सतीश के कमरे में आईं, तो वे कंप्यूटर के सामने चिंता में बैठे थे. सुरेखा धीरे से उन के पीछे आ खड़ी हुईं. कुछ क्षण रुकने के बाद बोलीं, ‘‘यह क्या चिंता ले कर बैठ गए? बच्चे भी पूछने लगे हैं अब तो. खाना भी सब के साथ नहीं खाते और…’’  सतीश ने पलट कर सुरेखा की तरफ देखा, ‘‘मेरे पास उन से बात करने के लिए कुछ नहीं है. वे अपनी अलग दुनिया में जीते हैं सुरेखा. मैं साथ बैठता हूं तो सब असहज महसूस करते हैं.’’  ‘‘ऐसा नहीं है, सब आप की इज्जत करते हैं. अच्छा, कल बहू मायके जाने को कह रही है, भेज दें?’’

सतीश झल्ला गए, ‘‘तुम ये सब बातें मुझ से क्यों  पूछ रही हो, उन्हें तय करने दो. अमन जिम्मेदार शादीशुदा आदमी  है. उसे अपनी जिंदगी खुद जीनी चाहिए.’’ सुरेखा चुप हो गईं. ऐसे मूड में आरुष के विदेश जाने की बात करतीं भी कैसे?

अगले दिन नाश्ते के समय आरुष ने खुद बात छेड़ दी, ‘‘पापा, मैं ने आप को बताया था न कि एमबीए के लिए मेरा अमेरिका में एक यूनिवर्सिटी में चयन हो गया है. बस, पहले साल मुझे 40 प्रतिशत स्कौलरशिप मिलेगी. मैं सोच रहा था कि अगर आप…’’  सतीश एकदम से भड़क गए, ‘‘सोचना भी मत. तुम्हें इंजीनियर बना दिया, बस, अब इस से आगे मैं कुछ नहीं कर सकता. यही तो दिक्कत है तुम जैसी नई पीढ़ी की, बस अपनी सोचते हो. यह नहीं सोचते कि कल तुम्हारे मातापिता का क्या होगा? हम अपनी बाकी जिंदगी कैसे जिएंगे?’’

आरुष सकपका गया. अमन भी वहीं बैठा था. उस ने जल्दी से कहा, ‘‘पापा, आप ऐसा क्यों कहते हैं? हम लोग हैं न.’’  सतीश के होंठों पर व्यंग्य तिर आया, ‘‘तुम लोग क्या करोगे, यह मुझे अच्छी तरह पता है. मुझे तुम लोगों से कोई उम्मीद नहीं, तुम लोग भी मुझ से कोई उम्मीद मत रखना…’’ प्लेट छोड़ उठ खड़े हुए सतीश. सुरेखा को झटका सा लगा. अपने बच्चों के साथ ऐसा क्यों कर रहे हैं सतीश? आज तक बच्चों की परवरिश में कहीं कोई कमी नहीं रखी, अच्छे स्कूलकालेजों में पढ़ाया. अब अचानक उन के सोचने की दिशा क्यों बदल गई है?

अमन उठ कर सुरेखा के पास चला आया, ‘‘मां, पापा को आजकल क्या हो गया है? आजकल इतने गुस्से में क्यों रहते हैं?’’ अचानक सुरेखा की आंखों से आंसू निकल आए, ‘‘पता नहीं क्याक्या पढ़ते रहते हैं. सोचते हैं कि उन के बच्चे भी उन के साथ…’’

‘‘क्या मां, क्या लगता है उन्हें? हम उन के पैसों के पीछे हैं?’’ अमन ने सीधे पूछ लिया.

सुरेखा की हिचकी बंध गई, ‘‘पता नहीं बेटा, ऐसा ही कुछ भर गया है उन के दिमाग में. मैं तो समझासमझा कर हार गई कि सब घर एक से नहीं होते.’’

अमन ने सुरेखा के हाथ थाम लिए और धीरे से बोला, ‘‘इस में पापा की गलती नहीं है. आजकल रोज इस तरह की खबरें आ रही हैं. पहले भी आती होंगी, पर आजकल मीडिया कुछ ज्यादा ही सक्रिय है. आप जाने दीजिए मां, सब ठीक हो जाएगा. पापा से कह दीजिए कि हमें उन के पैसे नहीं चाहिए. बस, हमें चाहिए कि वे सुकून से रहें.’’

अमन और आरुष अपनेअपने रास्ते पर चले गए. आभा अब तक कालेज से नहीं आई थी. इस साल उस की पढ़ाई भी पूरी हो जाएगी. आभा चाहती थी कि वह नौकरी करे. सुरेखा को लगता था कि समय पर उस की शादी हो जानी चाहिए. पर उन की सुनने वाला घर में कोई नहीं था.  आरुष ने अमन की मदद से बैंक से लोन लिया और महीने भर बाद वह अमेरिका चला गया. आभा को भी कैंपस इंटरव्यू में नौकरी मिल गई. जब उस ने अपनी पहली तनख्वाह सतीश के हाथ में रखी तो वे निर्लिप्त भाव से बोले, ‘‘अपनी कमाई तुम अपने पास रखो, जमा करो. कल तुम्हारे काम आएगी.’’

सुरेखा ने समझ लिया था कि सतीश को समझाना बहुत मुश्किल है, लेकिन उन्हें इस बात का संतोष था कि कम से कम बच्चे समझदार हैं. 6 महीने बाद अमन को भी मुंबई में अच्छी नौकरी मिल गई. अमन अपनी पत्नी के साथ मुंबई चला गया.  सुरेखा को घर का अकेलापन काटने लगा. आभा का काम कुछ ऐसा था कि दफ्तर से लौटने में देर हो जाती. सुरेखा टोकतीं तो आभा कहती, ‘‘मां, आजकल हर प्राइवेट नौकरी में यही हाल है. देर तक काम करना पड़ता है. कोई जल्दी घर जाने की बात नहीं करता तो मैं कैसे आऊं.’’  आभा इतनी व्यस्त रहती कि उसे खानेपीने की सुध ही नहीं रहती. सुरेखा चाहती थीं कि उन की युवा बेटी शादी कर के सुख से रहे. दूसरी लड़कियों की तरह सजेसंवरे, अपनी दुनिया बसाए. एक दिन वह सतीश के सामने फट पड़ीं, ‘‘आप को पता भी है कि आभा कितने साल की हो गई है? उस की शादी की बात आप चलाएंगे या मैं चलाऊं? मैं अपनी बेटी को खुश देखना चाहती हूं.’’

सतीश अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में इतने रमे हुए थे कि बेटी का रिश्ता खोजना उन्हें भारी लग रहा था. पर सुरेखा के कहने पर वे कुछ चौकन्ने हुए. अखबार में देख कर एक सही सा लड़का ढूंढ़ा. आभा को यह बिलकुल पसंद नहीं था कि वह किसी के देखने की खातिर सजेसंवरे. बड़ी मुश्किल से वह लड़के वालों के सामने आने को तैयार हुई. सुरेखा उत्साह से तैयारी में जुट गईं. बेटी की शादी का सपना हर मां अपनी आंखों में संजोए रहती है.  आभा 2-3 बार उस से कह चुकी थी कि मां, अभी रिश्ता हुआ नहीं है. आप को ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं  है. बस, चाय और बिस्कुट रखिए मेज पर.  सुरेखा हंसने लगीं, ‘‘ऐसा कहीं होता है भला? जिस घर में तेरी शादी होनी है उस घर के लोगों की कुछ तो खातिरदारी करनी पड़ेगी.’’

आभा चुप हो गई. सुरेखा ने घर पर ही गुलाबजामुन बनाए, नारियल की बरफी बनाई, नमकीन में समोसे, कटलेट और पनीर मंचूरियन बनाया. साथ ही जलजीरा आदि तो था ही. चुपके से जा कर वे अपने होने वाले दामाद के लिए सोने की चेन भी ले आई थीं. रिश्ता पक्का होने के बाद कुछ तो देना पड़ेगा.

सतीश को जिस बात का अंदेशा था, आखिरकार वही हुआ. प्रमोद चार्टर्ड अकाउंटैंट था और आते ही उस की मां ने बढ़चढ़ कर बताया कि प्रमोद को सीए बनाने में उन्होंने कितने पापड़ बेले हैं.

सतीश ने कुछ देर तक उन का त्याग- मंडित भाषण सुना, फिर पूछ लिया, ‘‘देखिए मैडम, हर मातापिता अपने बच्चे को शिक्षा दिलाने के लिए कुछ न कुछ त्याग तो करते ही हैं. मैं ने भी अपने बच्चों की शिक्षा पर बहुत खर्च किया है. आप कहना क्या चाहती हैं, यह स्पष्ट बताइए.’’

प्रमोद की मां सकपका गईं. बात प्रमोद के मामा ने संभाली, ‘‘आप तो दुनियादार हैं सतीशजी. बेटे की शादी भी कर रखी है. आप को क्या बताना.’’

सतीश गंभीर हो गए, ‘‘अगर बात लेनदेन की कर रहे हैं तो मैं आप से कोई संबंध नहीं रखना चाहूंगा.’’

सतीश की आवाज इतनी तल्ख थी कि किसी की कुछ बोलने की हिम्मत ही नहीं पड़ी. इस के बाद बात बस, औपचारिक बन कर रह गई. उन के जाने के बाद सुरेखा अपने पति पर बरस पड़ीं, ‘‘लगता है, आप अपनी बेटी की शादी करना ही नहीं चाहते. आप का ऐसा रुख रहेगा, तो कौन आप से संबंध रखना चाहेगा भला?’’

सतीश ने अपनी पत्नी की तरफ निगाह डाली और शांत आवाज में कहा, ‘‘मैं ने अपनी बेटी को इसलिए नहीं पढ़ाया कि उस का रिश्ता ऐसे घर में करूं.’’

सुरेखा रोने लगीं, ‘‘आप पैसे के पीछे पागल हो गए हैं. अपनी बेटी की शादी में कौन पैसा खर्च नहीं करता.’’

सुरेखा के रोने का उन पर कोई असर नहीं पड़ा. वे वहां से चले गए. अचानक सुरेखा ने कंधे पर एक कोमल स्पर्श महसूस किया, आभा खड़ी थी. आभा धीरे से बोली, ‘‘मां, रोओ मत. पापा ने सही किया. मुझे खुद दहेज दे कर शादी नहीं करनी. मैं अपने लिए राह खुद बना लूंगी, तुम चिंता मत करो.’’

बेटी का आश्वासन भी सुरेखा को शांत न कर पाया.

6 महीने बाद आभा ने एक दिन सुरेखा से कहा, ‘‘मां, मैं किसी को आप से मिलवाना चाहती हूं.’’

सुरेखा को खटका लगा. पहली बार आभा उस से किसी को मिलवाने को कह रही है. कौन है?

शाम को आभा अपने से उम्र में काफी बड़े एक आदमी को घर ले कर आई, ‘‘मां, मेरे साथ काम करते हैं हरिहरण. बहुत बड़े साइंटिस्ट हैं और हम दोनों…’’

आभा की बात पूरी होने से पहले सुरेखा उसे खींच कर कमरे में ले गईं और बोलीं, ‘‘आभा, उम्र में इतने बड़े आदमी से…ऐसा क्यों कर रही है बेटी? ऊपर से साउथ इंडियन?’’

‘‘मां,’’ आभा ने सुरेखा का हाथ कस कर पकड़ लिया, ‘‘हरी बेहद सुलझे हुए और इंटेलिजैंट व्यक्ति हैं. आजकल नार्थसाउथ में क्या रखा है मां? तुम्हें भी तो इडलीसांभर पसंद है. क्या तुम होटल जा कर रसम और चावल नहीं खातीं? हरि को तो अपनी तरफ का राजमा, अरहर की दाल और आलू के परांठे बहुत पसंद हैं. हम दोनों एकदूसरे को अच्छे से जाननेसमझने लगे हैं. मैं उन के साथ बहुत खुश रहूंगी मां,’’ कहतेकहते आभा की आंखों में पानी भर आया. सुरेखा ने उसे गले से लगा लिया, ‘‘आभा, मेरे लिए तेरी खुशी से बढ़ कर और कुछ नहीं है बेटी. पर एक मां हूं न, क्या करूं, दिल नहीं मानता.’’

आभा की पसंद के बारे में सतीश ने कुछ कहा नहीं. उन्हें हरिहरण अच्छे लगे. आभा ने कोर्ट में जा कर शादी की. सुरेखा कहती रह गईं कि पार्टी होनी चाहिए, पर हरि ने हंस कर कहा, ‘‘मिसेज सतीश, आप पैसा क्यों खर्च करना चाहती हैं? वह भी दूसरों को खिलापिला कर. सेव इट फौर टुमारो.’’

तीनों बच्चे अपनी जिंदगी में रम गए. गाहेबगाहे आते तो कुछ लेने के बजाय बहुत कुछ दे जाते. सतीश अब पहले से कम बोलने लगे. अब उन्हें भी बच्चों की कमी खलने लगी थी.

ऐसे ही चुपचाप एक दिन रात को जो वे सोए तो सुबह उठे ही नहीं. पहला दिल का दौरा इतना तेज था कि उन के प्राण निकल गए. सुरेखा अकेली रह गईं. आभा महीना भर आ कर उन के पास रह गई, पर उस की भी नौकरी थी, जाना तो था ही. अमन भी आरुष का साथ देने अमेरिका पहुंच गया और वहीं जा कर बस गया.

इतने बड़े घर में सुरेखा अब अकेली पड़ गईं, सतीश की पैंशन, उन के कमाए पैसों और अपने गहनों के साथ. रहरह कर उस के मन में टीस उठती कि समय पर अगर बच्चों की मदद कर दी होती तो आज यह पैसा बोझ बन कर उन के दिल को ठेस न पहुंचाता.

अमन से जब भी वे अपने दिल की बात करतीं, वह तुरंत जवाब देता, ‘‘मां, तुम सब छोड़छाड़ कर यहां आ जाओ हमारे पास. सब साथ रहेंगे. मेरी बेटी बड़ी हो रही है. उसे तुम्हारा साथ चाहिए.’’

बहुत सोचसमझ कर सुरेखा ने अपनी जायदाद के 3 हिस्से किए और कागजात साइन करवाने अमन, आभा और आरुष के पास भेज दिए. सप्ताह भर बाद अमन की लंबी चिट्ठी आई. चिट्ठी में लिखा था, ‘‘मां, हमें वहां से कुछ नहीं चाहिए. हम तीनों बच्चों को आप ने बहुत कुछ दिया है. आप अपना पैसा जरूरतमंदों में बांट दीजिए, किसी अनाथालय के नाम कर दीजिए. शायद इस से पापा की आत्मा को भी शांति मिलेगी. और हां, देर मत कीजिए, जल्दी आइए. अब तो कम से कम हम सब को साथ वक्त बिताना चाहिए.’’

सुरेखा फूटफूट कर रोने लगीं. काश, आज यह दिन देखने के लिए सतीश जिंदा होते. जिस पैसे की खातिर सतीश अपने बच्चों से दूर हो गए, वह पैसा आज उन के किसी काम का रहा नहीं.

गरमी में सेहतमंद रहने के लिए फौलो करें ये टिप्स

गरमी आते ही भूख कम और प्यास ज्यादा लगने लगती है. इसलिए जब गरमी आती है तो हमें अपनी सेहत के साथ-साथ खान पान का भी खास ध्यान रखना पड़ता है. इसलिए हम लेकर आये हैं आपके लिए कुछ खास टिप्स जिसे फौलो करने से आपकी सेहत चुस्त-दुरुस्त बनी रहेगी.

1 गरमियों में अगर थोड़ी-थोड़ी देर बाद लगने वाली प्यास से बचना चाहते हैं, तो डिनर से पहले एक प्लेट सलाद जरूर खाएं. इसमें प्याज़, टमाटर, खीरा, गाजर, स्प्राउट्स और बंदगोभी जरूर शामिल करें. इससे आपकी बौडी भी कूल रहेगी और शरीर में जरूरी न्यूट्रिएंट्स भी जाएंगे. सिर्फ यही नहीं, रात के खाने से पहले एक प्लेट सलाद खाने से भी वजन कम करने में हेल्प मिलती है.

2 अगर आप नौनवेज फूड खाते हैं तो अपने खाने में फिश को शामिल करें. फिश में फैटी एसिड्स होता जो आम तौर पर कम फूड आइटम्स में मौजूद होते हैं, जैसे कि- ओमेगा-3 और ओमेगा-6. फिश मीट, रेड मीट और चिकन के मुकाबले शरीर को ज्यादा ठंडक देता है. इसलिए गर्मियों में ये आपकी बौडी के लिए फायदेमंद है.

3 छाछ एक ऐसा फूड आइटम है जो डिहाइड्रेशन को रोकता है. इसे आप दही से घर पर भी बना सकते हैं या फिर बाजार से भी ले सकते हैं. गर्मियों में अनहेल्दी सोडा या कोल्ड ड्रिंक से बचने के लिए छाछ पिएं.

4 इलायची, वैसे तो मुंह की ताजगी बढ़ाती है पर जब बात गरमी की करें तो इलायची में इंस्टेंट कूलिंग प्रौपर्टीज होती हैं, इसलिए गर्मियों में इलायची वाली चाय पीने से शरीर को तुरंत ठंडक मिलती है.

5 अगर आप अपनी सेहत के लिए कौनशियश है, जिम जाते हैं, तो आंवला आपके शरीर की सहनशक्ति बढ़ाता है. इसे खाने से दिल भी स्वस्थ रहता है और गरमियों में ये बौडी को हेल्दी भी रखता है.

तो अगर आपने ये टिप्स फौलो किए तो इस समर आप हेल्दी और फ्रेश जरुर रहेंगे.

परिवार: टोकाटाकी छोड़ो रिश्ते जोड़ो

पुरानी पीढ़ी अकसर अपने नियम अगली पीढ़ी पर थोपने की कोशिश में लगी रहती है जिसे बदलते वक्त के साथ अगली पीढ़ी के लिए स्वीकारना मुश्किल होता है. दोनों के बीच ऐसे में बातबात पर टोकाटाकी का सिलसिला शुरू हो जाता है जो रिश्तों में कड़वाहट घोलता है. पास की सोसाइटी में शोभाजी रहती हैं. भरापूरा परिवार है, पति विनोद, बेटा रवि और बहू तानिया. रवि की शादी बड़ी धूमधाम से हुई थी. तानिया बड़ी हंसमुख लड़की है, यह हमें शादी के समय ही महसूस हो गया था. खूब हंसती, खिलखिलाती तानिया ने सब का मन मोह लिया था.

टू बैडरूम फ्लैट में आराम से तानिया ने नए जीवन की शुरुआत की. शोभाजी हमेशा तानिया की खुलेदिल से तारीफ करतीं, कहतीं, ‘तानिया के आने से घर में बेटी की कमी पूरी हो गई. सबकुछ अच्छा चल रहा था. सालभर बाद विनोदजी गंभीर रूप से बीमार पड़े तो मैं उन्हें देखने गई. पता चला, बेटाबहू विनोदजी को ले कर डाक्टर को दिखाने गए हुए हैं. शोभाजी को हलका बुखार था तो वे नहीं गई थीं. पहले मैं ने उन के उतरे चेहरे को बुखार का असर समP पर उन की बातों से समझा आया कि घर का माहौल तो बिलकुल बदल चुका है. शोभाजी मुझसे काफी बड़ी हैं, मैं उन्हें दीदी कहती हूं. मैं ने पूछ ही लिया, ‘‘क्या हुआ है, आप बहुत परेशान लग रही हैं?’’ एक ठंडी सांस ले कर उन्होंने अपना दिल हलका कर ही लिया, ‘‘तानिया ने मुझे से बात करना बंद कर दिया है, उतनी ही बात करती है जितनी के बिना काम नहीं चलता.’’ मुझे एक ?टोटका सा लगा, ‘‘क्या कह रही हो दीदी, आप दोनों की बौंडिंग तो बहुत अच्छी थी. अचानक क्या हुआ?’’ ‘‘उसे मेरी जरा सी बात भी बरदाश्त नहीं.’’

‘‘जैसे?’’ ‘‘जरा सा टोक क्या दिया, बुरा ही मान मान गई.’’ ‘‘क्या टोक दिया?’’ ‘‘उस का शरीर इतना भारी हो गया है, उस पर मुझे जीन्स अच्छी नहीं लगती पर रवि और उसे पसंद है तो पहनती है, ठीक है पहनो. पर न बिंदी, न मंगलसूत्र, न चूडि़यां पहनती है, न बिछुए. ये सब तो पहना करे, बस नहीं सुनती. ये सब मानने में उसे क्या परेशानी है. तुम ही बताओ, क्या मैं गलत बात कहती हूं?’’ ‘‘हां, दीदी, गलत तो है, यह उस की मरजी ही होनी चाहिए कि उसे क्या पहनना है, वह इतनी सुशिक्षित है, मुंबई जैसे शहर में रहती है, उसे फैशन की समझा तो होगी ही और वैस्टर्न कपड़ों पर ये बिंदी, मंगलसूत्र बहुत अजीब ही लगता है, न इधर के, न उधर के कपड़े लगते हैं. ‘‘भाईसाहब का ध्यान रखती है,

उन्हें ले कर डाक्टर के पास गई हुई है, अपनी जिम्मेदारी समझाती है. आप के घर का मामला है, मुझे कोई राय देनी नहीं चाहिए पर थोड़ी टोकाटाकी कम कर के देखें, उसे एक बहू ही नहीं, एक स्वतंत्र व्यक्तित्व समझा कर देखें, शायद सब ठीक हो जाए.’’ मैं जितनी देर उन के पास बैठी, मैं ने महसूस किया वे जो भी बातें बता रही हैं, वे सब मुझे उन की टोकाटाकी की आदत लगी. तानिया स्पाइसी खाना न खाए, मायके ज्यादा बात न करे, जोरजोर से न हंसे, बहू है, बहू की तरह रहे. 20 साल की राधिका और उस का 16 साल का भाई रौनक अपने नानानानी के आने से बहुत परेशान हो जाते हैं. राधिका बताती है,

‘‘नानानानी बहुत अच्छे लगते हैं पर नानी रोज सुबह 6 बजे उठाने लगती है, हम देर रात तक कोचिंग से आते हैं, नींद पूरी नहीं होती. मम्मी को भी टोकती रहती हैं कि इसे कैसे कपड़े पहनाती हो, इसे किचन के काम समझाने शुरू करो. ये दोनों रात देर से क्यों आते हैं, पता नहीं कितने सवाल, कितनी टोकाटाकी. ‘‘कई बार तो मम्मी भी परेशान हो जाती हैं. दादी के आने पर भी यही हाल होता है. इन सब के आने की खुशी, बस, एक दिन ही टिक पाती है. कोई समझाता ही नहीं कि अब जमाना बदल गया है. हम शाम के 5 बजे घर आ कर नहीं बैठ सकते. इन सब का आना अच्छा लगता है पर टोकाटाकी से परेशान हो जाते हैं.’’ आजकल सचमुच समय बहुत बदल गया है.

वह समय तो कतई नहीं रहा कि कोई भी रिश्ता किसी तरह की, बेवजह की टोकाटाकी चुपचाप सुन ले. पड़ोस की एक आंटी तो घर की शांति का मूलमंत्र यही बताती हैं कि घर में जब बहू आ जाए तो गांधीजी के बंदरों की तरह आंख, कान और मुंह बंद रखने चाहिए, तभी घर में शांति रह सकती है. नीता तो अपनी बैस्ट फ्रैंड सीमा की आदत से ही परेशान है. वह बताती है, ‘‘जब भी सीमा उस के घर आती है, किचन की सैटिंग पर टोकटोक कर दिमाग खराब कर देती है. यह चीज यहां क्यों रखी हुई है, यह वहां होनी चाहिए, किचन में यह डब्बा यहां क्यों रखती है, आदिआदि. मैं उस से मजाक करती हूं कि तू बहुत बुरी सास बनेगी, तेरे घर में तेरी बहू दुखी हो जाएगी अगर तू ने अपनी यह सब टोकने की आदत खत्म न की तो. युवा पीढ़ी अपने हिसाब से, अपने अनुभव, अपने ज्ञान से अपने काम करना चाहती है.

युवा को थोड़ी छूट दी जाए, हां, अगर वे कहीं कुछ गलती कर रहे हैं तो जरूर टोका जाए, समझाया जाए पर यह सोच कर कि उन्हें कुछ नहीं आता, वे कुछ नहीं जानते, उन्हें ज्ञान देना हमारा फर्ज है, सही नहीं है. आज की युवा पीढ़ी अपनी समस्याओं से निबटना खूब जानती है. 27 साल की कुहू को सोलो ट्रिप पर जाना पसंद है. वह अकसर औफिस की छुट्टी ले कर कहीं घूम आती है.

उस के पेरैंट्स को भी इस में कोई परेशानी नहीं. कुहू का कहना है, ‘‘सारे दोस्तों का एक समय पर फ्री होना जल्दी संभव नहीं होता तो अपनेआप ही चली जाती हूं. पापा के औफिस की वजह से मम्मी उन्हें अकेला छोड़ हर समय मेरे साथ नहीं चल पाती हैं. फोन और इंटरनैट की सहूलियत आजकल है ही, मम्मीपापा के टच में रहती ही हूं पर जो भी सुनता है, मम्मी के पीछे पड़ जाता है कि मुझे इतनी छूट क्यों दी हुई है. मम्मी को रास्ते में मिलने पर टोकटोक कर परेशान कर देती हैं ये आंटियां.’’ कुछ रिश्ते बहुत अच्छे, बहुत अपने होते हैं. उन में स्नेह, प्यार सब होता है पर जरा सी टोकाटाकी से मन में दरार आने लगती है. इस से बचना चाहिए. जरूरी है रिश्तों में मिठास बनाए रखना. इस के लिए किसी को टोकते रहने की आदत छोड़नी पड़े तो क्या बुराई है?

अडानी-अंबानी की जगह अब जनता के मुद्दें पर आई कांग्रेस

कर्नाटक चुनाव में जीत के बाद से राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी ने अपनी नीति में बड़े बदलाव किए. इसमें सबसे प्रमुख बात ये रही की जहां अबतक कांग्रेस बीजेपी पर सूट-बूट के साथ 2 मित्रों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए सरकार पर निशाना साधती थी, वहीं अब कांग्रेस आम जनता और दलितों की बात करते नजर आ रही है.

इसकी शुरूआत कांग्रेस ने हिमाचल से की जहां सबसे पहले पार्टी ने पुरानी पेंशन स्कीम की बात करते हुए हिमाचल की जनता के दिल में जगह बनाई और जीत दर्ज की. इसके बाद कर्नाटक में कांग्रेस ने अहिंदा कार्ड खेला और दलित, मुस्लिम और पिछड़ों की बात करते राज्य में अच्छे वोटों से जीत हासिल की.

इससे पहले राहुल गांधी मोदी सरकार पर अडानी-अंबानी का नाम लेकर आक्रामक रहे, लेकिन जमीन पर पार्टी को उसका कोई फायदा मिलता नजर नही आ रहा था. राफेल मामले को लेकर कांग्रेस के आरोपों पर भी जनता पर कोई असर पड़ता नजर नहीं आ रहा था. यही वजह है की कांग्रेस अब पूंजीवाद, अडानी-अंबानी जैसे मुद्दों को छोड़ अब आरक्षण, मुस्लिम उत्पीड़न के साथ दलितों की बात कर रही है.

हाल ही में यूपी कांग्रेस की बैठक में ऐलान किया गया की पार्टी जातीय जनगणना कराने और OBC आरक्षण बढ़ाने की मांग को लेकर आंदोलन करेगी. कांग्रेस का ये ऐलान बेहद चौंकाने वाला था, क्योंकि इससे पहले पार्टी ऐसे मुद्दों पर ज्यादात्तर चुप्पी साधना ही पसंद करती थी. लेकिन अब जातीय जनगणना और ओबीसी की बात कर कांग्रेस अब नए तेवर में नजर आ रही है.

इसका एक और उदाहरण राहुल गांधी के 6 दिवसीय अमेरिका दौरे में देखने को मिल रहा है. जहां राहुल गांधी बीजेपी-RSS पर हमला करते हुए संविधान पर चोट की बात कर रहे है. इसके अलावा राहुल ने अपने पहले दिन की बातचीत में दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों और गरीबों की बात करते हुए कहा.. आज भारत इनके लिए सहीं जगह नहीं रह गई है.

राहुल ने अमेरिका में बातचीत के दौरान कहा की आज भारत में मुस्लिम खुद को असुरक्षित महसूस कर रहा है, क्योंकि उनके साथ सबसे ज्यादा ज्यादती की जा रही है. और मैं गारंटी से कह सकता हूं की मेरे सिख, ईसाई, दलित और आदिवासी भाई भी ऐसा महसूस कर रहे होंगे.

राजनीतिक जानकारों का मानना है की राहुल गांधी और कांग्रेस के ये बयान पार्टी की नई रणनीति का हिस्सा है. क्योंकि अबतक अडानी-अंबानी और अमीरों की सरकार वाली बात पर जनता कांग्रेस के साथ जुड़ नहीं पा रही थी.

लड़कियों पर क्यों हावी फिगर फोबिया

कई वर्षों से सिनेमा, टीवी और मौडलिंग के बढ़ते दबाव की वजह से सौंदर्य के मानदंड तेजी से बदलने लगे हैं. साफ शब्दों में कहा जाए तो आजकल जरूरत से ज्यादा खूबसूरत दिखने की अनर्गल चाहत, ऊपर से फैशन का अनावश्यक दबाव और उस पर खुले बाजार की मार ने यहां बहुतकुछ बदल डाला है.

सौंदर्य की इस मौजूदा परिभाषा से इत्तफाक रखने वाले भी इस सचाई को स्वीकार करने लगे हैं कि फिगर का यह फोबिया कई तरह की मुसीबतों को जन्म देने लगा है.सौंदर्य में नए अवतार जीरो फिगर की चाहत युवतियों के दिलोदिमाग पर इस हद तक हावी है कि वे सौंदर्य ही नहीं, अपने स्वास्थ्य को भी दांव पर लगा रही हैं.

नकल में माहिर होती युवा पीढ़ी को अब इस बात से कोई सरोकार नहीं है कि कल तक प्रीति जिंटा, रानी मुखर्जी और काजोल जैसी गोलमटोल व गदराए यौवन की मल्लिकाएं लोगों की पहली पसंद हुआ करती थीं. आज तो जिसे देखो वही दिशा पाटनी, अनन्या पांडे, आलिया भट्ट और दीपिका पादुकोण जैसी फिगर पाना चाहती हैं.

टीवी, सिनेमा और मौडलिंग की इस भेड़चाल पर टिप्पणी करते हुए मशहूर मौडल और मिस चंडीगढ़ रह चुकीं दिशा शर्मा ने कहा कि करीना कपूर की फिल्म ‘टशन’ जैसी फिगर प्राप्त करने के लिए अब कालेजगोइंग युवतियां ही नहीं, बल्कि नवविवाहिता और कईकई बच्चों की मांएं भी डाइटिंग के साथसाथ जिस प्रकार ऐंटीबायोटिक दवाएं गटक रही हैं, उस ने उन के सामने कई तरह की शारीरिक समस्याएं खड़ी कर दी हैं.

दरअसल, भारत में जीरो फिगर की गपशप पहली बार करीना कपूर ‘टशन’ फिल्म से ले कर आई थीं. इस फिल्म में करीना कपूर ने तोतिया रंग की सैक्सी बिकिनी पहनी थी. उस सीन को समुद्र में फिल्माया गया. इस के बाद से ही बड़े जोरशोर से जीरो फिगर यानी सैक्सी दिखना समझा गया. हाल में दीपिका पादुकोण ने भी फिल्म ‘पठान’ में बिकिनी पहनी. वो तो बवाल भगवा बिकिनी पर मच गया, वरना जिस करीने से दीपिका पादुकोण के फिगर को फिल्माया गया उस ने यंग लड़कियों के दिमाग में जरूर रश्क पैदा किया होगा.

आज भी जितने भी फैशन शो होते हैं वहां जीरो फिगर वाली मौडल ही रहती हैं. हालांकि कई पश्चिमी देशों ने जीरो फिगर वाली मौडल्स की प्रतियोगिताओं और फैशन परेडों के इतर ऐसी मौडल्स के लिए भी प्रतियोगिता आयोजित करनी शुरू की हैं जो चरबीयुक्त हैं. लेकिन इस के बावजूद जीरो फिगर आज युवतियों के सिर चढ़ कर बोल रहा है.

समस्या यह है कि इस से मासिकधर्म में गड़बड़ी, सिर चकराने और पेट में जलन होने की शिकायतें देखी गई हैं लेकिन बाजारवाद ने जीरो फिगर को इस हद तक लोकप्रिय बना दिया है कि तमाम समस्याओं के बावजूद यह ट्रैंड में रहता है.

जीरो फिगर की अवधारणा

सौंदर्य के मानक हर समय और स्थान के अनुरूप कभी स्थाई नहीं होते. जीरो फिगर 32-22-34  के नाम में परिभाषित है.इस में छाती 32 इंच, हिप 34 इंच और कमर की माप 22 इंच है, जो आमतौर पर किसी 8-9 साल की बच्ची का होता है.

इसी साइज को मौडलिंग और सौंदर्य प्रतियोगिता की दुनिया में मुफीद माना जाता है. हलकी और छरहरी काया की प्राप्ति के लिए कम से कम भोजन कर के मौडलिंग के क्षेत्र में जमी लड़कियों की मजबूरी को तो समझा जा सकता हैमगर आजकल इस के लिए लड़कियों का मकसद युवाओं को आकर्षित करना भी है. भले ही इस के लिए उन्हें कोई भी कीमत चुकानी पड़े.

आजकल कमर ही क्यों, चेहरे पर चरबी की जरा सी भी परत जमा न हो, इस के लिए अब कौस्मेटिक सर्जरी के अलावा भी बहुत से विकल्पों का इस्तेमाल किया जा रहा है. चंडीगढ़ स्थित एक जिम की संचालिका सविता प्रदीप कहती हैं,““केवल फिगर की दीवानगी में शरीर को कंकाल बनाना समझदारी की बात नहीं है. यह एक जनून है और हद से गुजर जाने के बाद यही चाहत आगे चल कर मानसिक बीमारी बन जाती है.”

 बेकाबू हो रही है ग्लैमर की स्थिति

ग्लैमरस फिगर वैसे तो हर औरत की चाहत होती हैलेकिन जीरो फिगर की चाहत में युवतियां जिस प्रकार संतुलित आहार तक को नजरअंदाज कर रही हैं,वह अत्यंत घातक है. ब्यूटी थेरैपिस्ट और पेरिस ब्यूटीपार्लर की प्रमुख डाइटीशियन संजना चौधरी का कहना है,““इस से शरीर में पौष्टिक तत्त्वों की कमी से पाचनतंत्र भी कमजोर पड़ जाता है, जिस से इंसान की भूख मर जाती है.

““इस से एनोरौक्सिया की चपेट में आने पर चक्कर आना, बेहोशी के दौरे पड़ने की संभावना भी बढ़ जाती है. साथ ही, इस से गर्भाशय की समस्या और हड्डियों के कमजोर होने का भी खतरा बना रहता है.””

संजना का मानना है कि औरत के शरीर को रोज औसतन 1,500 से 2,500 कैलोरी की जरूरत होती है लेकिन जब यह घट कर 1,200 रह जाती है तो शरीर अंदरूनी हिस्सों और हड्डियों से इस कमी को पूरा करना शुरू कर देता है, जोकि स्वास्थ्य के लिए काफी बुरा संकेत है.

 

समय से पहले बुढ़ापे को आमंत्रण

फिगर को मेंटेन रखने का दबाव मौडलिंग, एंकरिंग और अभिनय से जुड़ी युवतियों पर रहने की बात तो फिर भी समझ में आती हैलेकिन शादी की तारीख नजदीक आते ही विवाह की तैयारियों में जुटी युवतियां भी जीरो फिगर की गिरफ्त में आए बिना नहीं रहतीं.

शादी से ठीक पहले कमर को पतला करने का क्रेज युवतियों के दिलोदिमाग पर इस कदर हावी होता है कि इस के लिए वे 15 से 16 किलोग्राम वजन कम कर लेती हैं. 18 से 25 साल के आयुवर्ग की युवतियों में यह प्रवृत्ति सर्वाधिक देखने को मिलती है.

हाल ही में वेटवाचर पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वे में कहा गया है कि युवतियां भूख मार कर भले ही छरहरे बदन की मल्लिकाएं बन जाएं मगर थोड़े समय बाद उन का रूप प्रौढ़ औरत जैसा दिखाई देने लगता है.वे उम्र से पूर्व ही बड़ी दिखाई देने लगती हैं. सच तो यह है कि भरे गाल और मांसल देह वाली औरत बड़ी उम्र में भी ज्यादा युवा दिखाई देती है.

 

डाइटिंग के साइड इफैक्ट

आमतौर पर महिलाएं पतली होने के लिए डाइटिंग पर फोकस करती हैं. मशहूर महिला रोग एवं गाईनी विशेषज्ञ डा. सुषमा नौहेरिया की राय में वजन कम करने और फिर खुद को संतुलित रखने के लिए जौगिंग, व्यायाम का सहारा लेना डाइटिंग और वजन घटाने वाली दवा लेने से कहीं बेहतर है.

अत्यधिक डाइटिंग से समूचे शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है, मसलन, उपवास की स्थिति से शरीर में पाचक तत्त्वों का संचार कम होने से इंसान की पाचनशक्ति क्षीण हो जाती है, जिस से लिवर और मांसपेशियों पर बुरा असर पड़ता है. कुछ मामलों में हार्मोन असंतुलन की वजह से युवतियों में मासिकधर्म भी अनियमित होता देखा गया है. अत्यधिक व्यायाम या जिम जाने से शरीर में पानी की कमी के साथसाथ चेहरे पर झुर्रियां और आंखों के नीचे काले घेरे भी नजर आने लगते हैं.

टीवी शो ‘महाभारत’ के ‘शकुनी मामा’ की तबीयत हुई खराब, अस्पताल में हुए भर्ती

साल 1988 में दूरदर्शन पर प्रसारित हुआ सीरियल महाभारत इन दिनों काफी ज्यादा सोशल मीडिया पर चर्चा पर बना हुआ है क्योंकि इस सीरियल में शकुनी मामा का किरदार निभा रहे गूफीं पेंटल इन दिनों काफी ज्यादा बीमार है. बता दें कि गूफी पेंटल की हालत इतनी ज्यादा खराब है कि उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया है.

बता दें कि इनकी हेल्थ की जानकारी टीना घई ने सोशल मीडिया पर दिया है, फैंस उनके स्वस्थ होने की कामना कर रहे हैं, एक यूजर ने कमेंट करते हुए लिखा है कि भगवान आपको जल्द स्वस्थ रखें, तो वहीं दूसरे यूजर्स ने लिखा है कि भगवान आपको जल्द अस्पताल से बाहर करें.

 

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बता दें कि गूफी पटेल ने अपने कैरियर की शुरुआत साल 1975 में की थी, जिसके बाद से वह कई सारे फिल्मों में नजर आ चुके हैं. दिललगी, परदेश के अलावा और भी कई सारी फिल्मों में वह अपने किरदार से जलवा बिखेर चुके हैं. जिस वजह से उन्हें याद किया जाता है.

बता दें कि गुफी पेंटल एक जाने माने अभिनेता रह चुके हैं, इनकी रोल को कुछ लोग पसंद करते हैं तो कुछ लोग नापसंद करते हैं. गुफी पेंटल को ज्यादातर निगेटीव रोल में देखा जाता है.

GHKKPM: क्या ऐश्वर्या को अनफॉलो किया आयशा ने!

सीरियल गुम है किसी के प्यार में एक्ट्रेस ऐश्वर्या शर्मा और आयशा सिंह के बीच इन दिनों लड़ाई चल रही है, जिस वजह से दोनों एक दूसरे को ऑनफॉलो कर दिए हैं इंस्टाग्रा पर. अगर सीरियल की बात करें तो इन दिनों सीरियल में काफी ज्यादा बदलाव लग रहा है.

सीरियल में पत्रलेखा का किरदार निभा रही ऐश्वर्या शर्मा इन दिनों टीवी शो खतरों के खिलाड़ी का हिस्सा हैं, जिस वजह से उन्होंने शो को बॉय बॉय बोल दिया है. हाल ही में ऐश्वर्या शर्मा और आयशा सिंह एक दूसरे को सोशल मीडिया पर ऑनफॉलो कर दिया है. जिस वजह से दोनों को लेकर सोशल मीडिया पर बवाल मचा हुआ है.

 

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हाल ही में आयशा सिंह ने ऐश्वर्या को ऑनफॉलो करने को लेकर सोशल मीडिया पर बयान दिया है जो काफी ज्यादा वायरल हो रहा है, जब आयशा से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैं इस बारे में कोई बात नहीं करुंगी मैं इन दिनों अपने शूटिंग पर फोक्स कर रही हूं. अपने काम में काफी ज्यादा व्यस्त हूं. बता दें कि ऐश्वर्या शर्मा  इन दिनों कैपटाउन में हैं रोहित शेट्टी का शो खतरों के खिलाड़ी की शूटिंग में व्यस्त हैं.

आए दिन सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर करती रहती हैं.

त्याग की गाथा- भाग 3: पापा को अनोखा सबक

बेटे की डांट से बुरी तरह सहम गई साधना. पहला मौका था, जो बेटे ने उस को इतने तीखेपन से उत्तर दिया था. पराया नगर, पति से निराशा और तीखे वचन की यह कचोट. उस ने आंख में से कचरा निकालने का अभिनय किया, लेकिन आंसू अपना काम कर ही गए.

दीपू सहमता हुआ बोला, ‘‘मां, पापा को मैसेज नहीं मिला होगा. उन का मोबाइल खराब होगा.’’

चौंक कर देखा रज्जू ने क्रमश: दीपू का सहमापन और मां की आंखों में आंसू तो उस को अपने तीखे कथन पर बहुत ही क्षोभ हुआ, अत: इस बार नम्रता से बोला, ‘‘मां, आप इस कदर परेशान क्यों हैं? पापा स्टेशन नहीं आए तो क्या हुआ, हम टैक्सी कर के सीधे घर चलते हैं.’’

‘‘घर का पता कहां है, रज्जू?” साधना ने भारी मन से कहा. हमें तो उन्होंने हमेशा कहा कि वे टैंपेरेरी मकान में रह रहे हैं, 2-4 दिन में बदल लेंगे.

‘‘घर का पता कालेज से मिल जाएगा, मां,’’ रज्जू ने कहा. ‘‘चलिए, उठिए, हम पहले कालेज चलते हैं.’’

रज्जू को किसी तरह की शंका थी और इसलिए वह कालेज के औफिस में अकेला ही गया. बड़े बाबू भी अकेले ही थे. रज्जू की बात सुन कर वह बोले, ‘‘अच्छा तो आप भी डाक्टर श्रीकृष्ण शर्मा के बारे में ही पूछ रहे हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘उन के नाम कुछ पत्र और भी हैं,’’ बड़े बाबू ने कहा, ‘‘आप उन के रिश्तेदार हैं?’’

रज्जू ने स्वीकृति से सिर हिला दिया.

‘‘बाहर से आए हैं?’’

‘‘जी.’’

‘‘डाक्टर शर्मा से आप की मुलाकात गरमी की छुट्टियों के बाद ही संभव हो सकती है,’’ बड़े बाबू ने गंभीरता से कहा, ‘‘करीब दस दिन…’’

‘‘आप के पास उन के मकान का पता तो होगा ही,’’ बात काट कर बोला रज्जू.

‘‘हां, पता तो है, लेकिन वहां जाने से क्या फायदा, वह तो बाहर गए हैं.’’

‘‘बाहर, कहां?’’ रज्जू ने अधीरता से पूछा.

बड़े बाबू इस बार रहस्य से मुसकराते हुए बोले, ‘‘वह, मेरा मतलब डाक्टर शर्मा, शायद अपनी होने वाली पत्नी के साथ घूमनेफिरने कश्मीर गए हैं.’’

“होने वाली पत्नी. घूमनेफिरने… कश्मीर…”
रज्जू एकदम तकपका गया. उस को लगा, जैसे उस पर लगातार तीन बार वज्रपात हुआ है. प्रहार की मार से हतप्रभ हो कर वह सहमता हुआ बोला, ‘‘मैं पूछ रहा हूं डाक्टर शर्मा के बारे में, जो…जो..’’

‘‘हां, हां, डाक्टर श्रीकृष्ण शर्मा, जो भोपाल से आए हैं,’’ बड़े बाबू ने बात काट कर कहा, ‘‘इस कालेज में एक वही डाक्टर शर्मा हैं.’’

‘‘यह कैसे हो सकता है?’’ रज्जू के मुंह से निकल पड़ा.

अनुभवी बड़े बाबू ने गंभीरता से कहा, ‘‘सबकुछ हो सकता है, बेटे, सबकुछ. समर्थ के लिए कोई बात मुश्किल नहीं, वरना कहां 40-45 के डाक्टर शर्मा और कहां 24-25 की प्रेमा श्रीवास्तव. लेकिन हो गया प्रेम, कौन रोकेगा… दोनों राजी तो क्या करेगा…’’

रज्जू का मन हुआ कि वह तत्काल दौड़ कर बाहर जाए और पति को देवता मानने वाली मां के समक्ष पिता के कृत्य की कथा चीखचीख कर कहे. लेकिन दौड़ना तो दूर, उस के पांव उठ तक नहीं रहे थे. उस ने अपनेआप को बहुत ही जज्ब किया, लेकिन वह समझ सकता था कि उस के पिता ने किस तरह इतने समय अकेले बिस्तरों पर गुजारे हैं. पर इस उम्र में जब बेटे शादी की तैयारी में हो, वे छोटी उम्र वाली लड़की के साथ… ‘नहीं, वे ऐसा नहीं कर सकते…’ वह बुदबुदाया.

आंसू अपने स्वभाव से बाज नहीं आए. उस ने तत्क्षण गंभीरता से सोचा भी कि इस बुरी खबर को सुन कर उस की भावुक ममतामय, कोमल हृदय, मां का क्या हाल होगा? शायद ही वह इस धक्के को बरदाश्त कर सके. नहीं, वह मां को कुछ भी नहीं बताएगा. कुछ भी नहीं. कुछ सोच कर वह बोला, ‘‘श्रीमानजी, यह तो सब चलता ही है. आप तो उन के घर का पता भर दे दीजिए, मैं फिर कभी मुकालात कर लूंगा.’’

बड़े बाबू ने चिट पर पता लिख कर दे दिया.

रज्जू धीरेधीरे चल कर औफिस के बाहर आने लगा, तो उस को महसूस हुआ जैसे उस के पांवों तले की और आसपास दूर तक की जमीन गिलगिली होती जा रही है, जिस में उस का, मां का, भाईबहन का और पापा का समा जाना अवश्यंभावी है.

नहीं… नहीं… नहीं, वह किसी को भी असमय मरने नहीं देगा. नहीं, बल्कि पापा को मां के पास लौटा कर ही दम लेगा, चाहे उस को इस के लिए अपने प्राणों की बाजी ही क्यों न लगानी पड़े.

अनमनी चाल से रज्जू को वापस आता देख मां को थोड़ी चिंता हुई और तभी वह पास आ कर बोली, ‘‘क्या हुआ रज्जू, पापा का पता मिल गया?’’

रज्जू ने हंसते हुए कहा, ‘‘मां, जो होना चाहिए.’’ फिर रज्जू ने हंसते हुए ही कहा, ‘‘हम किसी होटल या धर्मशाला में ठहर जाएंगे. दिल्ली, आगरा देखेंगे और वापस भोपाल लौट जाएंगे.’’

‘‘भैया, टैक्सी वाले, हमें किसी भले होटल तक छोड़ दो.’’

दिल्ली, आगरा दिखा कर रज्जू भाईबहन के साथ मां को भोपाल रवाना कर चुका था और पापा को दलदल में से निकालने के लिए स्वयं बहाना कर के वहीं रुक गया था. खाली समय में उस के पास इधरउधर भटकने और योजनाएं बनाने के अतिरिक्त कुछ भी नहीं था. वह पापा और प्रेमा श्रीवास्तव के लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था. परिस्थितियों को देखते हुए उस ने यह निश्चय भी कर लिया था कि पापा यानी कृष्ण को पाने के लिए अगर उस को भी कीचड़ में पैठना पड़े तो वह इस में किसी भी प्रकार की कोताही नहीं करेगा.

आखिर वह दिन आ ही गया.

हाथ में सूटकेस और सामने रज्जू को खड़ा पा कर, डाक्टर शर्मा हतप्रभ हो गए. प्रेमा श्रीवास्तव झटके से उठ कर एक तरफ खड़ी हो गई. प्रेमा की खूबसूरती देख कर रज्जू को बिजली का सा झटका लगा. प्रेमा भी एकटक रज्जू को घूरे जा रही थी. तभी डाक्टर शर्मा संभल कर बोले, ‘‘अरे, रज्जू, तुम? कब आए?’’

‘‘जी, बस चला ही आ रहा हूं,’’ रज्जू ने सूटकेस रख कर बैठते हुए कहा, ‘‘कई सप्ताहों से आप के मैसेज भी नहीं…’’

‘‘इधर बहुत ही व्यस्त रहे हम. मेरे पैरों की हड्डियां एक टैक्सी दुर्घटना में टूट गईं. हम दोनों कश्मीर जा रहे थे.”

रज्जू हंस कर बोला, ‘‘वह तो दिख ही रहा है.’’

‘‘हूं,’’ डाक्टर शर्मा ने कहा, ‘‘प्रेमा, एक कप चाय तो बना लाओ.’’

एक प्यार पड़ोस में- भाग 3

‘‘ये कायरों जैसी पत्रकारिता क्यों करते हो?’’

‘‘क्या… मतलब…’’

‘‘अरे, कहीं झगड़ा हो रहा है. एक व्यक्ति पिट रहा है और हम बजाय उसे बचाने के उस की रिपोर्टिंग करने बैठ जाते हैं. ’’

‘‘देखो, हमारा जो काम है, हमें वही करना चाहिए. ये फालतू बातें न सोचो और न ही मुझे सोचने पर मजबूर करो,’’ कमिल सुधा के तर्क से सहमत तो था, पर अपना नया सिरदर्द नहीं बढ़ाना चाह रहा था.

‘‘सोचना तो चाहिए… आप केवल पत्रकार ही नहीं हैं, एक कहानीकार भी हैं. कम से कम आप के दिल में तो संवेदना होनी चाहिए,’’ सुधा का स्वर गंभीर था.

‘‘वक्त आएगा तो हम वह भी कर के दिखा देंगे… अब चलो…’’ कमिल बात को ज्यादा आगे नहीं बढ़ाना चाह रहा था. वह जानता था कि सुधा कोमल स्वभाव की है. वह किसी को भी जरा सा दुखी देख कर खुद दुखी हो जाती है. पत्रकारिता के पेशे में दिनभर ऐसे दुखों और दुखियों से मिलते रहना पड़ता है. यदि वह यही सब करने बैठ जाए तो एक समाचार भी न बना पाए. वैसे तो अन्याय के खिलाफ जब भी वह लिखता, उस का लिखा दर्द से ओतप्रोत होता. संपादक भी बोलते,

‘‘वाह कमिल, कितना अच्छा लिखा है. सारा दर्द इस लेख में दिख रहा है.’’

पर, सुधा अभीअभी इस क्षेत्र में आई है. इस वजह से वह चाहती है कि हम सिर्फ लिखें नहीं, उस दर्द की दवा भी बनें.

‘कमिल को घर पर बुलाया गया है, अर्जेंट.’

घर मतलब जबलपुर, जहां उस के मम्मीपापा रहते हैं. वह इस अर्जेंट शब्द पढ़ घबरा गया था. सुधा ने हिम्मत दी थी और उस की तैयारी कर उसे ट्रेन में बिठा दिया था. घर में कमिल के तिलक समारोह की तैयारियां चल रही थीं. मां ने बलाएं लीं और पिताजी उसे देख मुसकरा दिए. दादाजी उसे उंगली पकड़ कर ले गए थे बगीचे की ओर.

‘‘देख कम्मू… तेरा रिश्ता मैं ने तय किया है. अगर तुझे कोई आपत्ति हो, तो अभी बता देना… संकोच नहीं करना.’’

‘‘वैसे तो दादाजी मुझे कोई आपत्ति नहीं है. पर, मैं अभी इस के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं हूं.’’

कमिल के सामने सुधा का चेहरा बारबार आजा रहा था. हालांकि उस के और सुधा के बीच कोई प्यार का रिश्ता नहीं था, पर कुछ तो ऐसा था, जिस की डोर से दोनों एकदूसरे से बंधे थे.

सुधा के पिताजी ने सुधा के लिए एक लड़के को पसंद किया था और उस के ऊपर ही जिम्मेदारी दी थी सुधा को पसंद कराने की.

कमिल के जबलपुर जाने से पहले सुधा ने कमिल से सवाल कर लिया था, ‘‘कमिल, आप जानते हैं कि पतिपत्नी के रिश्ते में एक अहसास होना आवश्यक है. एकदूसरे को समझने का भाव होना जरूरी है. क्या आप को लगता है कि मैं इस अनजान लड़के को पसंद कर उस से शादी कर लूं और फिर जीवनभर रिश्ते को ढोती रहूं?’’

‘‘सदियों से ऐसा होता आ रहा है… ये फालतू बातें न करो और लड़के को पसंद कर लो…’’

‘‘अगर तुम्हारे लिए किसी अनजानी लड़की का रिश्ता आएगा, तो तुम क्या करोगे…?” उस ने प्रश्नवाचक निगाहों से कमिल को घूरा. वह समझ गया था कि सुधा इस रिश्ते से सहमत नहीं है और उस के पिताजी को बता दिया था.

आज कमिल के सामने भी वही दृश्य दोहराया जा रहा था.

‘‘सच बात तो यह है दादाजी कि मैं अभी शादी नहीं करना चाहता.’’

‘‘किसी को पसंद करते हो?’’ दादाजी ने स्पष्ट ही पूछ लिया था. कमिल के पास इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं था.

‘‘दादाजी, मैं वापस जा रहा हूं. अब मम्मी और पापा को संभालने की जिम्मेदारी आप की है,’’ कह कर कमिल बगैर मम्मीपापा से बात किए लौट आया था.

कमिल को यों एक ही दिन में लौटते देख सुधा ने प्रश्न किया था, ‘‘क्यों…? क्या हुआ…? जल्दी लौट आए. मैं तो सोच रही थी कि आप को आने में 2-4 दिन जरूर लगेंगे,’’ पर कमिल ने उस की कोई बात का जवाब नहीं दिया.

सुधा को कमिल गांव नहीं ले जाना चाह रहा था. एक रिपोर्टिंग करनी थी. गांव की नदी में एक मगरमच्छ पहुंच गया था, जो ग्रामीणों को निगल रहा था. गांव छोटा था और गांव वालों के पास पानी के लिए दूसरा संसाधन भी नहीं था. उन्हें नदी से ही पानी भरना

पड़ता और उस में ही निस्तार करना पड़ता. मगरमच्छ अब तक 2 महिलाओं सहित 3 लोगों को अपना ग्रास बना चुका था. कमिल को इस की कवरेज के लिए जाना था. सुधा जबदस्ती साथ हो ली. दोपहर खत्म होने को आई थी. मगरमच्छ नदी के किनारे आराम से बैठा अपने भोजन का इंतजार कर रहा था.

कमिल मगरमच्छ के ये शौट ले चुका था, तभी उस ने मगरमच्छ को एक बच्चे के पीछे भागते देखा.

देखते ही देखते मगरमच्छ ने बच्चे को अपने जबड़े में फंसा लिया. बच्चे की मां के चीत्कार की आवाज से सारा वातावरण गूंज गया.

कमिल की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, तभी उस ने सुधा को मगरमच्छ के करीब जाते देखा.

कमिल उसे आवाज लगाता, इस के पहले ही वह मगरमच्छ के करीब पहुंच चुकी थी. मगरमच्छ बच्चे को छोड़ सुधा की तरफ लपक रहा था.

सारा घटनाक्रम इस तेजी से हो रहा था कि कमिल को समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह सुधा और बच्चे दोनों को बचाना था.

‘‘तुम कायरों की तरह पत्रकारिता करते हो?’’ सुधा के कहे वाक्य कमिल के कानों में गूंज रहे थे. वह तेजी से मगरमच्छ की ओर लपका. मगरमच्छ ने जैसे ही उसे देखा, वह सुधा को छोड़ उस की ओर आगे बढ़ा.

कमिल उस के ज्यादा नजदीक था. उस का जबड़ा खुला और कमिल के पैर उस के जबड़े में फंस गए.

शोर सुन कर ग्रामीण भी आ गए थे. सुधा के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं. वह एक छोटी लाठी से ही मगरमच्छ को मार रही थी. कमिल के पैर उस के जबड़े में और अंदर की ओर धंसते जा रहे थे. ग्रामीणों ने कुल्हाड़ी से प्रहार करना शुरू कर दिया. कुछ देर तक तो वह इन प्रहारों को झेलता रहा. जब वह ज्यादा घायल हो गया, तो उस ने कमिल को छोड़ दिया और स्वयं पानी की ओर भाग गया. कमिल के पैर पूरी तरह घायल हो चुके थे.

अस्पताल में इलाज के दौरान कमिल के पैरों को काटना पड़ा था. वह अपाहिज हो चुका था. मां का रोतेरोते बुरा हाल था.

‘‘काश, तू उस दिन ऐसे नहीं लौटता…’’ मां बोलीं. कमिल मौन था.

सुधा किंकर्तव्यविमूढ़ थी. उस ने दादाजी को बोला था, ‘‘दादाजी, मैं कमिल के बगैर नहीं रह सकती. मैं उस के साथ शादी करूंगी और सारा जीवन उस की देखभाल करूंगी. आप आशीर्वाद दें.’’

दादाजी ने प्रश्नवाचक निगाहों से सुधा के मातापिता को देखा था. उन्होंने सहमति में सिर हिला दिया था.

शादी के बाद भी वे दिन उसी किराए के कमरे में रह रहे थे. सुधा ने कमिल का हाथ पकड़ कर पहली बार बोला था, ‘‘आई लव यू कमिल.’’

कमिल मुसकरा कर रह गया था.

एक्सपर्ट से जाने बीमारियों से दूर रहने के लिए 5 टिप्स

इंसान के लिए सबसे कीमती होता है उसका स्वास्थ्य आज के भागदौड़ भरे युग में खराब जीवनशैली के कारण हम अस्वस्थ रहने लगे हैं। इन सबके कारण हमारे शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं बीमारियों से दूर रहने के लिए हमे अपना ध्यान रखना बहुत ही जरूरी है। क्योंकि इंसान के लिए सबसे कीमती होता है उसका स्वास्थ्य यदि स्वास्थ्य सही हो तो इंसान सब कुछ हासिल कर सकता है। यदि अपने दिन प्रतिदिन के जीवन में हम कुछ बातों का ख्याल रखें तो ऐसे में हम एक स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। तो आइए जाने न्यूट्रीशनिस्ट, डायटीशियन और फिटनेस एक्सपर्ट मनीशा चोपड़ा से अपने शरीर को बीमारियों से दूर रखने के लिए कुछ टिप्स।

टिप्स 1: मौसमी सब्जियां और फलों का सेवन करें
वैसे तो कई सब्जियां और फल पूरे साल मौजूद रहे हैं, लेकिन सिर्फ उन्हीं को खाना जरूरी है जो चल रहे मौसम के लिहाज से उपयुक्त हों। स्वस्थ और ताजा भोजन हासिल करने की कोशिश करें। आप इस मौसम के लिहाज से अनुकूल टमाटर, बेरी, आम, तरबूज, खरबूज, आलू बुखारा, अजवायन, नारंगी आदि जैसे फलों और सब्जियों पर ध्यान दे सकते हैं।

टिप्स 2: पूरे दिन पर्याप्त पानी पीएं
पानी पीना और इस मानसून के सीजन में शरीर में नमी बनाए रखना बेहद जरूरी है। सुनिष्चित करें कि स्वयं को ताजगी महसूस कराने के प्रयास में हर दिन कम से कम 8-10 गिलास पानी पीएं। यदि संभव हो, तो कम ठंडा पानी पीएं, क्योंकि ज्यादा ठंडा पानी पीने से स्वास्थ्य समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

टिप्स 3: नियमित रूप से व्यायाम करें
व्यायाम हमारे शरीर के लिए बेहद ज़रूरी है। हमे अनेक बीमारियों से बचाये रखता है इसलिए अपने शरीर को बीमारियों से दूर करने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना बहुत आवश्यक है।

टिप्स 4: कोल्ड ड्रिंक के बजाय ताजा फलों का जूस पीएं
बहुत से ऐसे लोग हैं जो ज्यादा प्यास का अनुभव महसूस करते हैं और अक्सर अपनी प्यास बुझाने के लिए कोल्ड ड्रिंक पीना पसंद करते हैं। लेकिन ऐसे ठंडे पेय आपके शरीर को फायदे के बजाय नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए, अपनी प्यास बुझाने के प्रयास में कोल्ड ड्रिंक के बजाय ताजा फलों के रस का इस्तेमाल करें। ये कोल्ड ड्रिंक के मुकाबले ज्यादा फायदेमंद हैं और इनसे आपका स्वस्थ और फिट रह सकता है।

टिप्स 5: स्वस्थ शरीर के लिए स्वच्छता बनाए रखें
जैसा कि आप जानते हैं, स्वस्थ शरीर के लिए स्वच्छता जरूरी है। यह सुनिष्चित करें कि क्या आप जो भोजन या पेय पदार्थ ले रहे हैं, वह स्वच्छ और ताजा है। आपका शरीर घर या रेस्तरां में गंदे बर्तनों की वजह से बैक्टीरियल इंफेक्शन का शिकार हो सकता है। इसलिए हमेशा यह सुनिष्चित करें कि खाने से पहले और बाद अपने हाथों को अच्छी तरह से धोएं। इसके अलावा, अपने चेहरे को समय समय पर धोते रहें।

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