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डिप्रेशन से कैसे करें डील ?

WHO के अनुसार, अवसादग्रस्तता विकार (जिसे डिप्रेशन भी कहा जाता है) एक सामान्य मानसिक विकार है। इसमें उदास मनोदशा या लंबे समय तक गतिविधियों में आनंद या रुचि की हानि शामिल है।
डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है। जो लोग दुर्व्यवहार, गंभीर नुकसान या अन्य तनावपूर्ण घटनाओं से गुज़रे हैं उनमें अवसाद विकसित होने की संभावना अधिक होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अवसाद होने की संभावना अधिक होती है।

डिप्रेशन के कुछ लक्षण, जिनमें शामिल हो सकते हैं:

– कमज़ोर एकाग्रता
– कम आत्मसम्मान की भावनाएँ
– भविष्य के प्रति निराशा
– मरने या आत्महत्या के बारे में विचार
– नींद में खलल
– भूख या वजन में परिवर्तन
– बहुत अधिक थकान या ऊर्जा की कमी महसूस होना।

डिप्रेशन या अवसाद से कुछ इस तरह लड़ा जा सकता है:

  • किसी थेरेपिस्ट से बात करें-

एक चिकित्सक के साथ काम करना अक्सर डिप्रेशन को सफलतापूर्वक प्रबंधित करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। मनोचिकित्सा लोगों को उनकी जीवनशैली को संभव तरीकों से समायोजित करने, उनके तनाव को कम करने और तनाव से निपटने में मदद करने पर ध्यान केंद्रित करती है। जिन मुद्दों को आप मिलकर संबोधित कर सकते हैं उनमें ये हैं कि अपने आत्म-सम्मान को कैसे सुधारें, नकारात्मक से सकारात्मक सोच की ओर कैसे जाएं और तनाव प्रबंधन का अभ्यास कैसे करें।

  • लेखन में स्वयं को अभिव्यक्त करें –

जर्नल में लिखना एक बेहतरीन थेरेपी है और यह अवसाद को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। आप अपने लेखन में अपने विचारों, भावनाओं और चिंताओं के बारे में खुलकर बात करके तनाव से राहत पा सकते हैं। अपनी निजी पत्रिका में पूरी तरह ईमानदार रहें। अवसाद से जुड़ी अपनी भावनाओं और चुनौतियों को लिखने से दबी हुई भावनाएं दूर हो सकती हैं। आप यह देखकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि हर दिन बस कुछ मिनटों के लिए कागज पर कलम रखने के बाद आप कितना बेहतर महसूस करते हैं।

  • अपनी आत्म-छवि को बढ़ावा दें –

स्ट्रेस और डिप्रेशन से ग्रस्त लोग अक्सर कम आत्मसम्मान का अनुभव करते हैं, इसलिए अपने बारे में बेहतर महसूस करने के तरीके ढूंढना उपचार का एक महत्वपूर्ण पहलू है। अपने विचारों को अपने सर्वोत्तम गुणों पर केंद्रित करके सकारात्मक सोच का अभ्यास करें। आप जीवनशैली में बदलाव भी कर सकते हैं जो आपके आत्म-सम्मान में सुधार कर सकता है, जैसे स्वस्थ आहार खाना, नियमित व्यायाम करना और उन दोस्तों के साथ समय बिताना जो आपको अच्छा महसूस कराते हैं।

  • शामिल रहें –

यदि आप अवसाद का अनुभव कर रहे हैं, तो आपको ऐसा महसूस हो सकता है कि आप कम आत्मसम्मान या रुचि की कमी के कारण सामाजिक रूप से अलग हो जाना चाहते हैं और अपने तक ही सीमित रहना चाहते हैं। लेकिन याद रखें कि सामाजिक जीवन महत्वपूर्ण है। अपने दोस्तों के साथ जुड़े रहने के लिए खुद को प्रेरित करें। सामाजिक संपर्क आपको गहरे डिप्रेशन में जाने से और अकेले होने से बचाने में मदद कर सकता हैं। फ़िल्म देखने जाएँ, सैर करें, या बस किसी करीबी दोस्त से मिलें या बाहर डिनर करने चले जाएं, इससे आपका उत्साह बढ़ेगा और आप बेहतर महसूस करेंगे।

  • दूसरों पर निर्भर रहना –

जब अवसाद आपको उदास कर देता है तो परिवार और दोस्त आपको अपने बारे में बेहतर महसूस करने में मदद कर सकते हैं। जब आपको प्रियजनों की आवश्यकता हो तो स्वयं को उन पर निर्भर रहने दें। वे आपको अपनी उपचार योजना का पालन करने, व्यायाम करने, स्वस्थ आहार खाने और आम तौर पर अपना ख्याल रखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। आप अन्य लोगों से बात करने के अवसर के लिए अवसादग्रस्त लोगों के लिए एक सहायता समूह में भी शामिल हो सकते हैं जो समझते हैं कि आप किस दौर से गुजर रहे हैं।

  • भोजन और मनोदशा का संबंध बनाएं –

कुछ अध्ययनों से पता चला है कि ओमेगा-3 का उच्च दैनिक सेवन, जो आपको सैल्मन जैसी मछली से या मछली के तेल की खुराक के माध्यम से मिल सकता है, मूड में सुधार कर सकता है। आहार के तत्वों और अच्छे पोषण और डिप्रेशन के बीच कई संबंध हैं। स्वस्थ आहार खाने से आप स्वस्थ, फिट और आकर्षक महसूस कर सकते हैं, जिससे आपका मूड लाइट होगा और साथ ही आत्म-सम्मान में सुधार भी होता है, जबकि अस्वस्थ महसूस करने से डिप्रेशन बढ़ सकता है और नकारात्मक आत्म-धारणा हो सकती है।

  • व्यायाम करें –

व्यायाम शारीरिक लाभ प्रदान करता है जो स्ट्रेस, एंजाइटी या डिप्रेशन से गुजर रहे लोगों की मदद कर सकता है। शारीरिक गतिविधि तनाव से राहत दिलाती है और आपको अच्छा महसूस करा सकती है। साथ ही, एक आकर्षक और चुनौतीपूर्ण कसरत को पूरा करने से आपको जो संतुष्टि मिलती है, वह आपके आत्म-सम्मान को बढ़ा सकती है क्योंकि आप मजबूत और शारीरिक रूप से अधिक फिट हो जाते हैं। जब आप नियमित व्यायाम से अवसाद से लड़ते हैं, तो आप भावनात्मक और शारीरिक रूप दोनो से ही बेहतर महसूस करेंगे।

  • शराब को कहें ना –

जब आप अवसाद से जूझ रहे हों तो शराब कोई समाधान नहीं है, लेकिन कई लोग प्रोब्लम से दूर भागने के लिए शराब का सहारा लेते हैं। हालाँकि, शराब पीने से अवसाद के लक्षण और भी बदतर हो सकते हैं, और इसको नियंत्रित करने के लिए आप जो दवाएँ ले रहे हैं, उन पर शराब का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है। अवसाद को प्रबंधित करने के लिए एक स्वस्थ जीवन शैली की आवश्यकता होती है, और नशीली दवाओं और शराब से बचना एक स्वस्थ जीवन शैली की कुंजी है।

महाराष्ट्र: अजित पवार – राजनीति के औरंगजेब

महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक का जो खेल देश ने देखा है वह एक तरह से पिछले साल शिव सेना में हुए राजनीतिक खेले का सिर्फ दोहराव भर है. इस के साथ ही भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह सवालिया निशान लग गया है कि विपक्ष को खत्म करने के लिए वे हरहथकंडा अपनाने के लिए तैयार हैं, क्योंकि केंद्र की सत्ता के आशीर्वाद के बगैर अजित पवार उपमुख्यमंत्री नहीं बन सकते थे.

सब से हैरानी की बात तो यह है कि देश के लोकतंत्र में निर्वाचन आयोग, देश का सुप्रीम कोर्ट और देश की जनता यह सब नाटक देखते हुए चुप है. सच तो यह है कि महाराष्ट्र में शरद पवार के खिलाफ अजित पवार अगर भाजपा और शिव सेना की सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लिए बगैर बगावत करते और कहते कि चाचाजी, अब आप रिटायर हो जाएं और हमें प्रदेश की सेवा करने का आशीर्वाद दें तो इसे मर्दानगी कहा जा सकता था. मगर जिस तरह दिल्ली में बैठ कर के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह राजनीति के खेल खिला रहे हैं, उस से न तो भाजपा और खुद इन नेताओं की साफ इमेज बन रही है और न ही इन ‘खिलौनों’ की जो किसी की डोर से बंधे राजनीति के मैदान में डांस कर रहे हैं.

दरअसल, अजित पवार ने जोकुछ महाराष्ट्र में किया है और जिस भाषा में वे बयान दे रहे हैं, उन्हें आज राजनीति का औरंगजेब कहा जाए तो बड़ी बात नहीं होनी चाहिए, जिन्होंने सत्ता के लिए यही सब तो किया था. इतिहास जानने वाले आप को बता सकते हैं कि किस तरह औरंगजेब ने सत्ता पाने के लिए अपने बुजुर्ग पिता शाहजहां को जेल में बंद करवा दिया था. इस के बाद औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को देशद्रोह के आरोप में सूली पर चढ़ा दिया. दूसरे भाई मुराद को भी जहर दे कर मरवा दिया. उस ने परिवार के कई लोगों की हत्या कर के राजगद्दी हासिल की. आज राजनीति में यह सब मुमकिन नहीं है, मगर उस का एक छोटा सा रूप यदाकदा दिखाई देता है, जो यह बताता है कि हम इनसानों का स्वभाव इतनी जल्दी नहीं बदलता और ‘सत्ता’ के लिए कोई भी कुछ भी कर सकता है.

आज महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार अपने चाचा शरद पवार की तुलना में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के ज्यादा विधायकों का समर्थन होने से संख्या के इस खेल में उन से आगे नजर आ रहे हैं. दोनों गुटों ने अपना शक्ति प्रदर्शन करने के लिए अलगअलग बैठकें की हैं.

अजित पवार गुट द्वारा बुलाई गई बैठक में राकांपा के 53 में से 32 विधायक शामिल हुए, जबकि राकांपा प्रमुख द्वारा आयोजित बैठक में 18 विधायक उपस्थित थे. इस तरह साफ है कि जो पटकथा केंद्र में बैठे भाजपा के बड़े नेता लिख रहे हैं, उस के मुताबिक आने वाले समय में शरद पवार को यह दिन भी देखने पड़ सकते हैं, जिस की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.

दरअसल, अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने निर्वाचन आयोग को सूचित किया है कि उन्हें पार्टी का ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’ चुना गया है. अजित पवार ने बिना किसी गुरेज के कहा कि वे मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं ने 5 बार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की है. यह एक कीर्तिमान है, लेकिन गाड़ी यहीं ठहर गई है, आगे नहीं बढ़ रही. मुझे तहेदिल से ऐसा लगता है कि मुझे राज्य का प्रमुख (मुख्यमंत्री) बनना चाहिए. मेरे पास कुछ चीजें हैं, जिन्हें मैं कार्यान्वित करना चाहता हूं और उस के लिए प्रमुख (मुख्यमंत्री) बनना जरूरी है.’

इस तरह अजित पवार ने बिना किसी झिझक के दिखा दिया है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए सत्ता के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं.

दरअसल, यह आज की भारतीय राजनीति का वह चेहरा है, जो हर कहीं मुफीद बैठता है. आज राजनीति में चरित्र, निष्ठा, ईमानदारी ढूंढ़े नहीं मिलते हैं.

मुख्यमंत्री पद की अपनी इच्छा नहीं छिपाने वाले अजित पवार 63 साल की टिप्पणी निश्चित तौर पर वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को भी परेशान करने वाली हो सकती है.

शिंदे की शिवसेनाभाजपा गठबंधन सरकार ने पिछले हफ्ते ही एक साल पूरा किया है, जिस में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस भी उपमुख्यमंत्री हैं. अब आने वाले समय में भाजपा अपना खेल दिखाएगी और मुमकिन है कि चुनाव आतेआते भाजपा का चेहरा मुख्यमंत्री हो और एकनाथ शिंदे हाशिए पर.

विनविन सिचुएशन : सोमेश घर परिवार से क्यों परेशान रहने लगा था?

‘‘विनविनसिचुएशन वह होती है जिस में सभी पक्ष फायदे में रहें. जैसे हम ने किसी सामान को बनाने में क्व50 लगाए और उसे क्व80 में बेच दिया, तो यह हमारे लिए फायदे का सौदा हुआ. लेकिन अगर वही सामान कोई व्यक्ति पहले क्व90 में खरीदता था और अब हमारी कंपनी उसे क्व80 में दे रही है, तो यह उस का भी फायदा हुआ यानी दोनों पक्षों का फायदा हुआ. इसे कहते हैं विनविन सिचुएशन,’’ सोमेश कंपनी के नए स्टाफ को समझा रहा था.

12 साल हो गए सोमेश को इस कंपनी में काम करते हुए. अब नए लोगों को ट्रेनिंग देने का काम वही संभालता था. 12 सालों में पद, कमाई के साथसाथ परिवार भी बढ़ गया था उस का. हाल ही में वह दूसरी बार बाप बनने के गौरव से गर्वित हुआ था, लेकिन खुशी से ज्यादा एक नई जिम्मेदारी बढ़ने का एहसास हुआ था उसे. सालोंसाल वही जिंदगी जीतेजीते उकता गया था वह. उस की पत्नी रूमी बच्चों में ही उलझी रहती थी.

लंच टाइम में सोमेश जब खाना खाने बैठा, तो टिफिन खोलते ही उस ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘‘लगता है आज फिर भाभीजी ने टिंडों की सब्जी बनाई है,’’ नमनजी के मजाक में कहे ये शब्द उसे तीर की तरह चुभ गए, क्योंकि सचमुच रूमी ने टिंडों की ही सब्जी दी थी टिफिन में.

कुछ खीजता हुआ सोमेश यों ही कैंटीन के काउंटर की ओर बढ़ गया.

‘‘सर, आप अपना टिफिन खुला ही भूल आए मेज पर,’’ एक खनकती हुई आवाज पर उस ने मुड़ कर देखा. कंपनी में नई आई हुई लड़की रम्या उस का टिफिन उठा कर उस के पास ले आई थी. यों कंपनी में और भी लड़कियां थीं, लेकिन सोमेश उन सब पर थोड़ा रोब बना कर ही रखता था. इतने बेबाक तरीके से कोई लड़की उस से कभी बात नहीं करती थी.

‘‘सर, यह लीजिए मैं इसी टेबल पर आप का टिफिन रख देती हूं.’’

‘‘सर, आप अगर बुरा न मानें तो मैं भी इधर ही खाना खा लूं? उस बड़ी वाली मेज पर तो जगह ही नहीं है.’’सोमेश ने बड़ी टेबल की ओर नजर दौड़ाई. सचमुच नए लोगों के आ जाने से बड़ी टेबल पर खाली जगह नहीं बची थी. उस ने सहमति में सिर हिलाया.

टिफिन रखते हुए रम्या के मुंह से निकल गया, ‘‘वाह, मेरी पसंदीदा टिंडों की सब्जी,’’

और फिर सोमेश की ओर देख कर कुछ ठिठक गई और चुपचाप अपना टिफिन खोल कर खाना खाने लगी.

बरबस ही सोमेश की नजर भी रम्या के टिफिन में रखे आलू के परांठों पर पड़ गई. रम्या बेमन से आलू के परांठे खा रही थी और सोमेश भी किसी तरह सूखी रोटियां अचार के साथ निगल रहा था.

‘‘सर, आप सब्जी नहीं खा रहे?’’ आखिरकार रम्या बोल ही पड़ी.

‘‘मुझे टिंडे पसंद नहीं, सोमेश ने बेरुखी से कहा तो रम्या ने उस की ओर आश्चर्य से देखा.’’

रम्या की निगाहों से साफ जाहिर था कि उस की पसंदीदा सब्जी की बुराई सुन कर उसे अच्छा नहीं लगा.

‘‘खाना फेंकना नहीं चाहिए सर,’’ रम्या ने किसी दार्शनिक की तरह कहा तो सोमेश को हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, तो तुम ही खा लो यह टिंडों की सब्जी.’’

‘‘सच में ले लूं सर?’’ रम्या को जैसे मनचाही मुराद मिल गई.

‘‘हांहां, ले लो और तुम क्या मुझे आलू का परांठा दोगी?’’ रम्या की बेफिक्री से सोमेश भी थोड़ा बेतकल्लुफ हो गया था.

‘‘अरे बिलकुल सर, मैं तो बोर हो गई हूं आलू के परांठे खाखा कर. सुबह जल्दी में ये आसानी से बन जाते हैं. सब्जी बनाने के चक्कर में देर होने लगती है.’’

‘‘तुम खुद ही खाना बनाती हो क्या?’’

‘‘जी सर, अकेली रहती हूं तो खुद ही बनाना पड़ेगा न.’’

‘‘तुम अकेली रहती हो?’’

‘‘जी सर, मां को इलाज के लिए मामाजी के पास छोड़ा हुआ है.’’

सोमेश रम्या से अनेक सवाल पूछना चाहता था, लेकिन तभी कैंटीन में लगी बड़ी सी घड़ी की ओर उस का ध्यान गया. लंच टाइम खत्म होने वाला था. लंच के बाद उस की मैनेजर के साथ मीटिंग थी. उस ने अपना टिफिन रम्या की ओर खिसका दिया. बदले में रम्या ने भी 4 परांठों का डब्बा उस की ओर बढ़ा दिया.

लंच के बाद मीटिंग में मैनेजर ने उस से नए स्टाफ की जानकारी ली और पूछा कि इन में से किस नए मैंबर को तुम अपनी टीम में शामिल करना चाहते हो. चूंकि सभी नए लोगों की योग्यता एक सी ही थी और किसी को भी काम करने का पुराना अनुभव नहीं था, इसलिए उसे किसी के भी अपनी टीम में जुड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

‘‘जैसा आप ठीक समझें सर,’’ सोमेश ने औपचारिक अंदाज में कहा.

‘‘तो फिर मैं रम्या को तुम्हारी टीम में दे रहा हूं, क्योंकि नमनजी ने दीपक को लिया है, जो उन का कोई दूर का रिश्तेदार लगता है. और देवेंद्र का स्वभाव तो तुम जानते ही हो कि उस के साथ कोई लड़की काम करना ही नहीं चाहती,’’ मैनेजर साहब ने जैसे पहले से ही सोच रखा था.

‘‘ठीक है सर,’’ सोमेश ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

अगले दिन से रम्या सोमेश की टीम से जुड़ गई. थोड़ा और बेतकल्लुफ होते हुए अब रम्या उस के टिफिन से मांग कर खाना खाने लग गई.

‘‘आज शाम को जल्दी आ जाना, छोटे बेटे को टीका लगवाने जाना है,’’ औफिस के लिए निकलते हुए सोमेश को पीछे से रूमी की आवाज सुनाई दी. आज्ञाकारी पति की तरह सिर हिलाते हुए सोमेश ने गाड़ी स्टार्ट की.

शाम को औफिस से निकलते समय बारिश हो रही थी. सोमेश जल्दी से पार्किंग में खड़ी गाड़ी की ओर बढ़ा, लेकिन कुछ बूंदें उस पर पड़ ही गईं. गाड़ी में बैठ कर वह थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर सामने एक दुकान के पास बारिश से बचने की कोशिश में किनारे खड़ी रम्या पर पड़ी.

इंसानियत के नाते उस ने गाड़ी उधर रोक दी और अंदर बैठे हुए ही रम्या को आवाज लगाई, ‘‘गाड़ी में आ जाओ वरना भीग जाओगी. अकेली रहती हो, बीमार हो गई तो देखभाल कौन करेगा?’’

बारिश से बचतीबचाती रम्या आ कर उस की गाड़ी में उस की बगल में बैठ गई. उस के सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘ओह तुम तो काफी भीग गई हो,’’ सोमेश ने संवेदना दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा घर कहां है?’’

‘‘पास ही है सर, पैदल ही आ जाती हूं. आज बारिश हो रही थी वरना आप को कष्ट नहीं देती.’’

बातों ही बातों में दोनों ने एकदूसरे को अपने परिवार के बारे में बता डाला. सोमेश

को यह जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पिता के होते हुए भी अपनी बीमार मां की देखभाल का जिम्मा रम्या के ऊपर है.

‘‘क्या तुम्हारे पिताजी साथ में नहीं रहते?’’ सोमेश को रम्या के प्रति गहरी संवेदना हो आई.

‘‘नहीं सर, पिताजी मां के पूर्व सहपाठी उमेश अंकल को उन का प्रेमी मान कर उन पर शक करते हैं.’’

‘‘अच्छा, अगर रिश्तों में इतनी कड़वाहट है, तो वे तलाक क्यों नहीं ले लेतीं? कम से कम उन्हें अपने खर्च के लिए कुछ पैसे तो मिलेंगे.’’

‘‘वही तो सर, मां की इसी दकियानूसी बात पर तो मुझे गुस्सा आता है. पति साथ न दे तब भी वे उन्हें परमेश्वर ही मानेंगी.’’

बातोंबातों में वे रम्या के घर से आगे निकल गए. इसी बीच रूमी का फोन आ गया, ‘‘सुनो, बाहर बारिश हो रही है, ऐसे में बच्चे को बाहर ले कर जाना ठीक नहीं. हम कल चलेंगे उसे टीका लगवाने’’ जल्दीजल्दी बात पूरी कर रूमी ने फोन काट दिया.

‘‘सर, आप को वापस मोड़ना पड़ेगा, मेरा घर पीछे रह गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, कह कर सोमेश ने गाड़ी मोड़ ली. वैसे भी अब घर जल्दी जा कर करना ही क्या था.’’

तभी रम्या को जोर की छींक आई.

‘‘बारिश में बहुत भीग गई हो, लगता है तुम्हें जुकाम हो गया है,’’ सोमेश को रम्या की चिंता होेने लगी.

रम्या का घर आ गया था. उस ने शिष्टाचारवश कहा, ‘‘सर, 1 कप चाय पी

कर जाइए.’’

ऐसी बारिश में सोमेश को भी चाय की तलब हो आई थी. अत: रम्या के पीछे उस के छोटे से कमरे वाले घर में चला गया.

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर रम्या सामने लगे दरवाजों में एक के अंदर चली गई. कुछ देर तक वापस नहीं आई तो सोमेश खुद ही उधर जाने लगा. कुछ आगे जाने पर उसे दरवाजे की दरार में से रम्या नजर आई. अचानक ही रम्या की निगाहें भी उस से टकरा गईं. उस ने जल्दी से दरवाजा बंद किया, लेकिन कपड़े बदलती रम्या की एक झलक सोमेश को मिल चुकी थी.

‘‘माफ कीजिएगा सर, दरवाजे की चिटकनी खराब है… अकेली रहती हूं, इसलिए सही करवाने का समय ही नहीं मिलता.’’

फिर नजरें झुकाए हुए ही वह चाय बना

कर ले आई. चाय का कप लेते हुए एक बार फिर सोमेश की निगाहें रम्या से चार हो गईं. इस बार रम्या ने नजरें नहीं झुकाईं, बल्कि खुद को आवेश के पलों में बहक जाने दिया.

अरसे का तरसा सोमेश रम्या का खुला निमंत्रण पा कर पागल ही हो बैठा.

कुछ पलों को वह यह भी भूल गया कि वह शादीशुदा है और उस के 2 बच्चे भी हैं.

जब तक वह कुछ सोचसमझ पाता, तीर कमान से निकल चुका था. वह खुद से नजरें नहीं मिला पा रहा था. रम्या ने उसे संयत किया. ‘‘इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है सर, यह तो शरीर की स्वाभाविक जरूरत है. मेरा पहले भी एक बौयफ्रैंड था… आज का अनुभव मेरे लिए कोई नया नहीं है. आप कहें तो मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगी.’’

रम्या की बात सुन कर सोमेश ने किसी तरह खुद को संभाला और बिना कुछ कहे अपने घर का रास्ता लिया.अब सोमेश हर पल बेचैन रहने लगा.

रम्या की उपस्थिति में उस की यह बेचैनी और भी बढ़ जाती जबकि रम्या बिलकुल सामान्य रहती. वह रम्या के सान्निध्य के बहाने ढूंढ़ता रहता.

घर छोड़ने के बहाने वह कई बार रम्या के घर गया. रम्या बड़ी सहजता से उस की ख्वाहिश पूरी करती रही. बदले में सोमेश भी उसे कंपनी में तरक्की पर तरक्की देता रहा और देता भी क्यों नहीं? रम्या पूरी तरह से  विनविन सिचुएशन का मतलब जो समझ चुकी थी.

मुझे पड़ोस की विधवा चाची से प्यार हो गया है, अब मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 18 साल का हूं और 5 सालों से हस्तमैथुन कर रहा हूं. अब मैं पड़ोस की 36 साला विधवा चाची के साथ सोना चाहता हूं. मैं उन के अंदरूनी कपड़े चुरा कर उन में हस्तमैथुन करता हूं. मुझे सही सलाह दें?

जवाब

आप हस्तमैथुन या हमबिस्तरी के चक्कर में पड़ने के बजाय अपनी पढ़ाई व कैरियर पर ध्यान दें. दोगुनी उम्र की चाची के चक्कर में आप तबाह हो सकते हैं. एक बार कुछ बन गए, तो जिंदगी में सोने के बहुत मौके मिलेंगे. बेहतर होगा कि सिर्फ खेलकूद व पढ़ाई वगैरह में ही ध्यान दें.

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उत्तर प्रदेश के जिला औरैया का एक कस्बा है अजीतमल. यहीं का रहने वाला धर्मेंद्र वन विभाग में चौकीदार की नौकरी करता था. उस की शादी मैनपुरी की रहने वाली सुनीता से हुई थी. दोनों ही खुश थे. उन की घरगृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी. इसी दौरान सुनीता 2 बच्चों की मां बन गई. इस के बाद तो घर की खुशियों में और इजाफा हो गया. लेकिन ये खुशियां ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकीं.

सुनीता बीमार हो गई और बीमारी के चलते एक दिन उस की मौत हो गई. पत्नी की मौत के बाद धर्मेंद्र जब नौकरी पर जाता, घर पर बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहता था. इस परेशानी को देखते हुए कुछ समय बाद वह अपने दोनों बच्चों को उन की ननिहाल में छोड़ आया और खुद रहने के लिए अपने मामा मुकेश के यहां चला गया.

मुकेश जिला मैनपुरी के गांव फैजपुर गढि़या में रहता था. वह एक फैक्ट्री में काम करता था. उस की शादी रीना से हुई थी, जिस से एक बेटा भी था. चूंकि धर्मेंद्र मुकेश का सगा भांजा था, इसलिए मुकेश ने उसे अपने घर के सदस्य की तरह रखा.

पत्नी की मौत के बाद धर्मेंद्र एकदम खोयाखोया सा रहता था. मामा के यहां रह कर वह एकाकी जीवन काट रहा था. धीरेधीरे माया ने उस की पीड़ा को समझा और वह उस का मन लगाने की कोशिश करने लगा.

धीरेधीरे वह घुलमिल कर रहने लगा तो उस की बोरियत दूर हो गई. साथ ही वह पत्नी की मौत का गम भी भूल गया. मामाभांजे दोनों अपनेअपने काम से लौट कर आते तो साथ मिल कर इधरउधर की खूब बातें करते थे.

दोनों की आपस में खूब बनती थी. धर्मेंद्र अपनी तनख्वाह से घर खर्च के कुछ पैसे अपनी मामी को दे देता था, जिस से घर का खर्च ठीक से चलने लगा. इसी बीच रीना एक और बेटे की मां बन गई, जिस का नाम प्रियांशु रखा गया.

28 साल की मामी रीना से धर्मेंद्र की खूब पटती थी. मामीभांजे के बीच हंसीठिठोली भी होती थी. धर्मेंद्र को मामी की सुंदरता और अल्हड़पन बहुत भाता था. कभीकभी वह उसे एकटक प्यारभरी नजरों से देखा करता था. अपनी ओर टकटकी लगाए देखते समय जब कभी रीना की नजरें उस से टकरा जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे. धर्मेंद्र रीना के पति मुकेश से ज्यादा सुंदर और अच्छी कदकाठी का था. इस से रीना का झुकाव धर्मेंद्र के प्रति बढ़ता गया.

धर्मेंद्र रीना को दिल ही दिल चाहने लगा.  चूंकि वे मामीभांजा थे, इसलिए दोनों के साथसाथ रहने पर मुकेश को कोई शक नहीं होता था. मुकेश सीधेसरल स्वभाव का था, पत्नी और भांजे के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस की मुकेश को कोई जानकारी नहीं थी. समय का चक्र घूमता रहा, धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आते गए.

एक दिन धर्मेंद्र ने जब मजाकमजाक में मामी को बांहों में भर लिया तो रीना ने विरोध नहीं किया, बल्कि उस ने दोनों हाथों से धर्मेंद्र को जकड़ लिया. धर्मेंद्र ने इस मूक आमंत्रण का फायदा उठाते हुए उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद अपनी मर्यादाओं को लांघते हुए दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

धर्मेंद्र चूंकि वहीं रहता था, इसलिए कुछ दिनों तक तो दोनों का खेल इसी तरह से चलता रहा. मुकेश को पता तक नहीं चला कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. एक दिन मुकेश अचानक घर आया तो उस ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. लेकिन मौके की नजाकत को भांपते हुए रीना और धर्मेंद्र ने उस से माफी मांग ली.

मुकेश ने रहम करते हुए दोनों से कुछ नहीं कहा और उन्हें माफ कर दिया. इस के कुछ दिनों तक तो रीना और धर्मेंद्र ठीक रहे, लेकिन मौका मिलने पर वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे. मामा के सीधेपन की वजह से धर्मेंद्र की हिम्मत बढ़ गई थी. अब धर्मेंद्र अपनी मामी रीना से शादी करने के ख्वाब देखने लगा.

एक दिन उस ने अपने मन की बात रीना से कही. चूंकि रीना भी उसे प्यार करती थी, इसलिए 2 बच्चों की मां होने के बावजूद वह भांजे से शादी करने के लिए तैयार हो गई. किसी तरह शादी वाली बात मुकेश को पता चली तो वह परेशान हो गया.

उस ने इस का विरोध किया. लेकिन जब रीना नहीं मानी तो उस ने रीना की पिटाई कर दी. रीना के सिर पर तो इश्क का जुनून सवार था, ऐसे में वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थी. लेकिन मुकेश के लिए यह बड़ी बदनामी वाली बात थी.

थकहार कर मुकेश ने गांव में पंचायत बैठाई. रीना ने पंचायत में भी स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह पति मुकेश को छोड़ सकती है लेकिन धर्मेंद्र को नहीं छोड़ेगी. वह उस से शादी जरूर करेगी. रीना की जिद के आगे मुकेश व उस के घर वालों को झुकना पड़ा.

घर वालों की इस रजामंदी के बाद पंचायत में तय हुआ कि रीना मुकेश और धर्मेंद्र दोनों की पत्नी के रूप में रहेगी. इस के बाद रीना और धर्मेंद्र ने कोर्टमैरिज कर ली. शादी करने के बाद भी रीना मुकेश के घर में ही रहती रही. यह बात लगभग 7 साल पहले की है.

इस के बाद रीना अपने पहले पति मुकेश और भांजे से दूसरा पति बने धर्मेंद्र के साथ दोनों की पत्नी बन कर रहने लगी. समय धीरेधीरे बीतने लगा. रीना दोनों पतियों के दिलों पर राज करती थी. वह चाहती थी कि उन दोनों से वह ज्यादा कमाई कराए. क्योंकि नौकरी से तो बस बंधीबधाई तनख्वाह मिलती थी, जिस से रीना संतुष्ट नहीं थी.

एक दिन धर्मेंद्र, मुकेश व रीना ने बैठ कर तय किया कि क्यों न यहां के बजाय शिकोहाबाद जा कर कोई दूसरा धंधा शुरू किया जाए. शिकोहाबाद में कबाड़ का व्यवसाय काफी बड़े पैमाने पर होता है, इसलिए उन्होंने वहां जा कर कबाड़ का काम करने का फैसला लिया. करीब ढाई साल पहले मुकेश और धर्मेंद्र गांव से जिला फिरोजाबाद के शहर शिकोहाबाद चले गए. उन्होंने लक्ष्मीनगर मोहल्ले में प्रमोद कुमार का मकान किराए पर ले लिया.

फिर वे पत्नी रीना व बच्चों को भी शिकोहाबाद ले आए. यहां रह कर मुकेश और धर्मेंद्र मिल कर कबाड़ का कारोबार करने लगे. इसी दौरान रीना एक और बेटे की मां बन गई. धर्मेंद्र भले ही रीना का पति बन गया था, लेकिन वह अपने बच्चों से उसे भैया ही कहलवाती थी.

रीना दोनों पतियों के साथ सामंजस्य बना कर रह रही थी. दोनों ही उस से खुश थे. कहते हैं, समय बहुत बलवान होता है, उस के आगे किसी की नहीं चलती.

इस परिवार में भी यही हुआ. जब दोनों का काम अच्छा चलने लगा, आमदनी बढ़ी तो धर्मेंद्र शराब पीने लगा. रीना इस का विरोध करती तो धर्मेंद्र उसे डांट देता. कभीकभी वह उस पर हाथ भी उठा देता था.

रीना अब उस से डरीडरी सी रहने लगी. शराब की लत जब बढ़ गई तो धर्मेंद्र ने काम पर जाना भी बंद कर दिया. वह दिन भर घर पर रह कर शराब पीता रहता. लड़झगड़ कर वह रीना से पैसे ले लेता था. जब रीना पैसे नहीं देती तो वह घर में रखे पैसे चुरा लेता था. एक दिन तो वह रीना की सोने की झुमकी और चांदी की पायल तक चुरा कर ले गया. इस पर रीना और मुकेश ने उसे घर से निकाल दिया.

2 महीने धर्मेंद्र इधरउधर भटकता रहा. बाद में वह रीना के पास ही लौट आया. उस ने मुकेश और रीना से शराब न पीने तथा ढंग से चलने का वादा किया. इस पर रीना ने उस पर दया दिखाते हुए उसे फिर से घर में रख लिया.

मकान मालिक प्रमोद कुमार और वहां रहने वाले अन्य किराएदारों ने रीना से धर्मेंद्र को फिर से साथ रखने को मना किया, क्योंकि वह आए दिन घर में झगड़ता रहता था. इस पर रीना ने कहा कि वह अकेला कहां धक्के खाएगा.

थोड़े दिन सब कुछ ठीक रहा, लेकिन धर्मेंद्र को शराब की जो लत लग गई थी, उस के चलते वह फिर से शराब पीने लगा. रीना ने धर्मेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने अपनी आदतों में कोई सुधार नहीं किया. इस से घर में आए दिन लड़ाई होने लगी.

10 अगस्त, 2018 की रात करीब साढ़े 8 बजे की बात है. मुकेश के कमरे से अचानक शोरशराबे की आवाज आने लगी. बच्चे चिल्ला रहे थे, ‘मम्मी मर गईं, मम्मी मर गईं.’

शोर सुन कर प्रमोद के मकान के नीचे के हिस्से में रह रहे मकान मालिक प्रमोद कुमार व उन के परिवार के लोगों को लगा कि शायद खाना बनाते समय कमरे में आग वगैरह लग गई है. इसलिए वे पानी की बाल्टी ले कर ऊपर पहुंचे.

ऊपर पहुंच कर उन्होंने जो नजारा देखा, उसे देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. रीना कमरे की देहरी पर मरी पड़ी थी, उस के सिर व चेहरे से खून बह कर कमरे में फैल गया. पता चला कि रीना के दूसरे पति धर्मेंद्र ने ही रीना की हत्या की थी.

हत्या करने के बाद जब धर्मेंद्र भागने को था, तभी अन्य किराएदारों ने उसे पकड़ लिया था. वह उसे वहीं दबोचे खड़े रहे. प्रमोद ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम, सीओ संजय रेड्डी मय पुलिस टीम के कुछ ही देर में वहां पहुंच गए. लोगों ने पकड़े गए हत्यारोपी धर्मेंद्र को पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

मृतका के बड़े बेटे सनी ने बताया कि हम लोग अंदर टीवी देख रहे थे. मम्मी ने पापा से खाना खाने के लिए कहा. इतने में भैया (धर्मेंद्र) ने अंदर ले जा कर कुल्हाड़ी से मम्मी को मार डाला. उस ने बताया कि दोपहरी में भैया ने कहा था कि लाओ कुल्हाड़ी पर धार लगा लें. लकडि़यां काट कर लाएंगे.

पुलिस ने जब धर्मेंद्र से पूछताछ की तो पता चला कि घटना के समय रीना कमरे के बाहर चूल्हे पर रोटी बना रही थी और उस के तीनों बच्चे खाना खा कर कमरे में टीवी देख रहे थे. कमरे में ही मुकेश चारपाई पर लेटा हुआ था.

रात को अचानक धर्मेंद्र नशे में सीढि़यां चढ़ कर ऊपर आया. रीना धर्मेंद्र से कुछ नहीं बोली, उस ने अपने बेटे बेटे सनी को आवाज देते हुए कहा, ‘‘पापा से कह दे, खाना खा लें.’’

रीना द्वारा धर्मेंद्र से खाना खाने के लिए न कहने से धर्मेंद्र बौखला गया. उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने रीना के साथ गालीगलौज करते हुए कहा कि हम से खाना खाने के लिए नहीं पूछा. अभी खबर लेता हूं तेरी. कह कर वह गुस्से में कमरे में घुसा जहां बच्चों के साथ मुकेश मौजूद था.

उस ने कमरे में रखी कुल्हाड़ी उठाई और चूल्हे पर रोटी बना रही रीना के बाल पकड़ कर उसे कमरे की देहरी पर ले जा कर लिटा दिया. फिर उस के सिर व चेहरे पर कई प्रहार कर उस की नृशंस हत्या कर दी. कमरे में चारों ओर खून फैल गया. अपनी आंखों के सामने मां को मारते देख बच्चे चिल्लाए, ‘‘मम्मी मर गई, मम्मी मर गई.’’

शोर सुन कर अन्य किराएदार वहां आ गए. धर्मेंद्र के हाथ में खून सनी कुल्हाड़ी देख कर वे सारा माजरा समझ गए. किसी तरह किराएदारों ने धर्मेंद्र को दबोच लिया, जिसे बाद में उन्होंने पुलिस के हवाले कर दिया.

पुलिस ने मुकेश की तहरीर पर धर्मेंद्र के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के अगले दिन उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अपनी भावनाओं पर अंकुश न लगा पाने वाली रीना रिश्तों की मर्यादा को लांघ गई थी. वह धर्मेंद्र के प्यार में इस कदर डूबी कि उसे अपने पति, बच्चों व समाज तक की परवाह नहीं रही. उस ने अपने भांजे से अवैध संबंध बनाने के बाद उस से कोर्टमैरिज तक कर ली. इस की कीमत उसे अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

   —कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित

कोलेस्ट्रॉल का सफाया करने के लिए पिएं ये चाय, जानें बनाने का तरीका

Arjuna Bark Tea Benefits : अस्वस्थ खान-पान, खराब लाइफस्टाइल या फिर जेनेटिक कारणों से लोगों में हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या तेजी से बढ़ रही हैं. बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक को ये अपना शिकार बना रही है. नसों में जमे कोलेस्ट्रॉल की वजह से दिल से जुड़ी बीमारियां, हार्ट अटैक और स्ट्रोक आने का खतरा भी बढ़ जाता है. इसी वजह से हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या को साइलेंट किलर नाम से भी जाना जाता हैं.

हालांकि, शरीर से कोलेस्ट्रॉल का सफाया करने के लिए अर्जुन की छाल काफी फायदेमंद होती हैं. खासतौर पर इसकी चाय पीने से नसों में जमा गंदा कोलेस्ट्रॉल कम होता है.

अर्जुन की छाल की चाय पीने के फायदे

दरअसल अर्जुन की छाल (Arjuna Bark Tea) में फ्लेवोनॉयड, फेनोलिक एसिड, ग्लाइकोसाइड और ट्राइटरपेनॉइड जैसे एंटीऑक्सीडेंट की भरपूर मात्रा होती है. जो शरीर में गुड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को बढ़ाते है और खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करते है. इसका अलावा अर्जुन की छाल पीनी से दिल से संबंधित बीमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है. वहीं इससे ब्लड सर्कुलेशन भी इंप्रूव होता है, जिससे हाई ब्लड प्रेशर की समस्या कम होती है. आपको बता दें कि आयुर्वेद में भी अर्जुन की छाल के चमत्कारी फायदों के बारे में बताया गया है.

अर्जुन की छाल की चाय बनाने का तरीका

अर्जुन की छाल (Arjuna Bark Tea) की चाय बनाने के लिए सबसे पहले एक बर्तन में एक गिलास दूध लें, जिसमें अर्जुन की छाल डालें या फिर अर्जुन की छाल का एक चम्मच पाउडर. फिर दूध को तब तक उबालें जब तक वह गाढ़ा होकर करीब उसका आधा न हो जाएं. इसके बाद उसे छान लें और उसे गुनगुना ही पिएं. अगर आपको ये ज्यादा कड़वी लग रही है तो आप इसमें मिठास लाने के लिए एक चम्मच शहद भी डाल सकते हैं. आपको बताते चलें कि, नियमित रूप से इस चाय को पीने से कुछ ही समय में आपकी हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या कम हो जाएगी.

माया की मौत के लिए Anupamaa पर लगेगा इल्जाम ! बरखा भरेंगी डिंपल के कान

Anupamaa Spolier alert : रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ शो में आए दिन नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं. वहीं अब सीरियल में माया का पत्ता काट दिया गया है. बीते एपिसोड में दिखाया गया कि माया अपनी सभी गलतियों के लिए अनुपमा से माफी मांगती है और अनुपमा की जान बचाने के लिए खुद ट्रक के सामने आ जाती है, जिसमें उसकी मौत हो जाती है. अपने सामने माया को दम तोड़ते देख अनुपमा और अनुज के पैरों तले जमीन खिसक जाती है.

बरखा लगाएगी अनुपमा-अनुज पर इल्जाम

आगामी एपिसोड (Anupamaa Spolier alert) में दिखाया जाएगा कि, माया की मौत के लिए बरखा अनुज और अनुपमा पर शक करेगी. वह अंकुश से कहती है, ‘अनुज और अनुपमा के होते हुए माया का एक्सीडेंट कैसे हो सकता है?’ हालांकि अंकुश बरखा की बात से सहमत नहीं होता और वो तुरंत उसका मुंह बंद करा देता है, लेकिन बरखा यहां तक ही नहीं रुकेगी. वो डिंपल को ये बात बताने की कोशिश करेगी.

अनुज को याद आएगी अपने माता-पिता की 

वहीं माया की मौत से अनुपमा (Anupamaa Spolier alert) पूरी तरह से टूट जाएगी. वह अनुज से कहती है, ‘अगर मैं ध्यान से सड़क पार करती तो आज ये नौबत ही नहीं आती. माया की मौत मेरी वजह से हुई है.’ दूसरी ओर माया की मौत से अनुज को अपने माता-पिता की मौत याद आ जाएगी, जिसके बाद दोनों एक दूसरे को समझाने की कोशिश करेंगे.

Hrithik Roshan जल्द ही करेंगे ‘गर्लफ्रेंड’ सबा आजाद संग शादी!

Hrithik Roshan & Saba Azad Wedding News : बॉलीवुड एक्टर ऋतिक रोशन (Hrithik Roshan) लंबे समय से सिंगर सबा आजाद (Saba Azad) को डेट कर रहे हैं. आए दिन दोनों एक साथ स्पाट भी किए जाते हैं. इसके अलावा सोशल मीडिया पर भी दोनों एक-दूसरे के साथ फोटो डालते ही रहते हैं. हालांकि न तो ऋतिक और न ही सबा ने कभी अपने रिश्ते पर कोई बात की है, लेकिन अब खबर आ रही है कि ऋतिक और सबा ने शादी करने का फैसला कर लिया है और दोनों जल्द ही सात फेरे लेने वाले हैं.

ऋतिक और सबा बंधेंगे शादी के बंधन में!

बता दें कि, ऋतिक रोशन (Hrithik Roshan) और सबा आजाद अक्सर मीडिया के कैमरे के सामने रोमांटिक अंदाज में पोज देने से चुकते नहीं है. वहीं सबा ऋतिक की फैमिली के साथ भी कई बार देखी गई है. इसी वजह से दोनों की शादी की खबरें आती रहती हैं, लेकिन अब कहा जा रहा है कि दोनों ने शादी करने का फैसला कर लिया है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ऋतिक रोशन और सबा आजाद (Saba Azad) एक साथ काफी खुश हैं और वह अपने रिश्ते को एक कदम आगे लेकर जाना चाहते हैं. हालांकि, शादी की डेट को लेकर अभी कोई जानकारी सामने नहीं आई है.

2014 में ऋतिक ने दिया था सुजैन को तलाक

आपको बताते चलें कि, साल 2000 में ऋतिक रोशन (Hrithik Roshan) ने सुजैन खान संग शादी की थी, लेकिन वर्ष 2014 में दोनों ने तलाक ले लिया था, जिसके बाद इन दोनों के रास्ते अलग हो गए. हालांकि, ऋतिक और सुजैन के दो बेटे ऋहान और ऋदान भी हैं.

प्यार में उजाड़ी गृहस्थी

मुंबई से सटे जिला थाणे की तहसील अंबरनाथ के गांव नेवाली आकृति चाल में रहने वाले कुछ लोग सुबह काम के लिए निकले तो गांव से कुछ दूरी पर घनी झाडिय़ों के बीच उन्हें प्लास्टिक का एक सुंदर और बड़ा सा कैरीबैग पड़ा दिखाई दिया. तेज बारिश होने के बावजूद उस पर खून के धब्बे दिखाईं दे रहे थे. इसलिए लोगों को यही लगा कि इस में किसी की लाश भरी है.

मामला गंभीर था, इसलिए थोड़ी ही देर में वहां भीड़ लग गई. किसी ने इस बात की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को दे दी. वह इलाका थाना हिल लाईन के अंतर्गत आता था, इसलिए पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना थाना हिल लाईन पुलिस को दे दी.

सूचना मिलने के बाद ड्यूटी पर तैनात असिस्टैंट इंसपेक्टर पढ़ार ने काररवाई करते हुए सच्चाई का पता लगाने के लिए नेवाली गांव स्थित पुलिस चौकी पर तैनात सबइंसपेक्टर दंगड़ू शिवराम अहिरे और पुलिस कांस्टेबल शेषराव वाघ को घटनास्थल पर भेज दिया.

सबइंसपेक्टर दगड़ू शिवराम अहिरे और कांस्टेबल शेषराव वाघ गांव नेवाली पहुंचे तो गांव से कुछ दूरी पर उन्हें भीड़ लगी दिखाई दी. उन्हें समझते देर नहीं लगी कि लाश वहीं पर पड़ी है.

उन्होंने वहां जा कर सब से पहले तो उस कैरीबैग को झाडिय़ों से बाहर निकलवाया. गांव वालों की मौजूदगी में जब उसे खोला गया तो उस में प्लास्टिक की मोटी थैली में एक युवक की लाश को तोड़मरोड़ कर भरा गया था.

लाश बाहर निकाली गई. मृतक 27-28 साल का युवक था. किसी तेज धार वाले चाकू से उस का गला काट कर हत्या की गई थी. सांवले रंग का वह युवक शरीर से ठीकठाक था. इस का मतलब हत्या में एक से अधिक लोग शामिल रहे होंगे.

दगड़ू शिवराम अहिरे और शेषराव वाघ ने इस बात की जानकारी सीनियर इंसपेक्टर मोहन बाघमारे को दी तो वह तुरंत इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर, असिस्टैंट इंसपेक्टर मनोज ङ्क्षसह चौहान, महिला सबइंसपेक्टर वी.एस. शेलार, कांस्टेबल के.बी. जाधव, दिनेश कुभारे, जी.एस. मोरे और महिला कांस्टेबल पेड़वाजे को ले कर घटनास्थल के लिए रवाना हो गए.  उन के पहुंचने तक प्रैस फोटोग्राफर, डाग स्क्वायड, ङ्क्षफगरङ्क्षप्रट ब्यूरो की टीम के अलावा एडीशनल पुलिस कमिश्नर बसंत जाधव और असिस्टैंट पुलिस कमिश्नर डी. जगताप वहां पहुंच चुके थे.

डाग स्क्वायड, प्रैस फोटोग्राफर और ङ्क्षफगर ङ्क्षप्रट ब्यूरो का काम खत्म हो गया तो घटनास्थल और लाश का निरीक्षण किया गया. इस के बाद लाश की शिनाख्त की बात आई तो भीड़ में मौजूद कुछ लोगों ने मृतक की शिनाख्त कर दी.

मृतक का नाम संजय हजारे थे. वह अपनी पत्नी अनुभा, एक बच्ची और दोस्त दीपांकर पात्रा के साथ कुछ दिनों पहले ही वहां रहने आया था.

मृतक की शिनाख्त होते ही मोहन बाघमारे ने एक सिपाही भेज कर मृतक की पत्नी अनुभा को घटनास्थल पर बुलवा लिया. अनुभा पति की लाश देखते ही फूटफूट कर रोने लगी. पुलिस ने उसे समझाबुझा कर शांत कराया और वहां की सारी औपचारिक काररवाई पूरी कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए जिला मध्यवर्ती अस्पताल भिजवा दिया.

इस के बाद पुलिस थाने लौट आई थी. थाने लौट कर मोहन बाघमारे ने अपने स्टाफ के साथ सलाहमशविरा कर के हत्या के इस मामले की जांच इंसपेक्टर जितेंद्र आगरकर को सौंप दी.

जितेंद्र आगरकर ने सहयोगियों के साथ जांच शुरू की तो उन्हें मृतक संजय हजारे की पत्नी अनुभा और साथ रहने वाले उस के दोस्त दीपांकर पात्रा पर शक हुआ. क्योंकि घटनास्थल पर जब अनुभा रो रही थी तो उन्होंने महसूस किया था कि पति की मौत पर कोई पत्नी जिस तरह रोती है, वैसा दर्द अनुभा के रोने में नहीं था. वह दिखावे के लिए रो रही थी. इसलिए उन्होंने जांच की शुरुआत अनुभा और दीपांकर से शुरू की.

उन्होंने दोनों को थाने बुला कर पूछताछ शुरू कर दी. पुलिस ने जब अनुभा से पूछा कि यह सब कैसे हुआ तो नजरें चुराते हुए उस ने कहा कि कल रात उन का अंडे खाने का मन हुआ तो वह अंडे लेने निकले. लेकिन वह गए तो लौट कर नहीं आए. मुझे लगा कि बारिश तेज हो रही है, इसलिए वह कहीं रुक गए होंगे. रात 12 बजे तक मैं ने उन का इंतजार किया. उतनी रात तक भी वह नहीं आए तो मैं बेटी के साथ सो गई.

दीपांकर पात्रा के बारे में पूछा गया तो उस ने उसे अपना मुंहबोला भाई बताया. उस से भी पूछताछ की गई. उस ने अनभिज्ञता जाहिर करते हुए खुद को निर्दोष बताया.

अनुभा का बयान जितेंद्र आगरकर के गले नहीं उतर रहा था. जिस औरत का पति रात को घर न आए, भला वह निश्चिंत हो कर कैसे सो सकती है? इस के अलावा दीपांकर ने पूछताछ में जो बयान दिया था, वह अनुभा के बयान से एकदम अलग था.

अनुभा ने उसे मुंहबोला भाई बताया था, जबकि दीपांकर ने खुद को उस का दूर का रिश्तेदार बताया. इसी वजह से अनुभा शक के घेरे में आ गई थी. पुलिस को लग रहा था कि किसी न किसी रूप में अनुभा पति की हत्या में शामिल है.

लेकिन पुलिस के पास उस के खिलाफ कोई ठोस सबूत न होने की वजह से पुलिस उस पर सीधा आरोप नहीं लगा पा रही थी.

पुलिस सबूत जुटाने के लिए वहां पहुंची, जहां संजय अनुभा के साथ पहले रहता था. क्योंकि शिनाख्त के दौरान लोगों ने बताया था कि मृतक यहां कुछ दिनों पहले ही रहने आया था.

अनुभा और दीपांकर ने पूछताछ में बताया था कि यहां आने से पहले वे अंधेरी (पूर्व) के गौतमनगर में रहते थे.

जितेंद्र आगरकर ने अपने सहयोगियों को गौतमनगर भेज कर संजय और उस की पत्नी के बारे में पता किया तो वहां से पता चला कि संजय और उस की पत्नी अनुभा के बीच अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था. झगड़े की वजह थी अनुभा के संजीव शिनारौय के साथ के अवैध संबंध.

संजीव पहले उन के साथ ही रहता था. बाद में उसे अलग कर दिया गया था. इस के बावजूद अनुभा उस से मिलती रहती थी.

जांच टीम के लिए यह जानकारी महत्त्वपूर्ण थी. पुलिस ने तुरंत संजीव को हिरासत में ले लिया. थाने ला कर जब उस से पूछताछ की गई तो हर अभियुक्त की तरह उस ने भी पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस को पूरा विश्वास था कि हत्या इसी ने की है, इसलिए पुलिस ने उस से सच उगलवा ही लिया.

इस के बाद अनुभा को भी गिरफ्तार कर लिया गया. पूछताछ में अनुभा और संजीव ने संजय की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस तरह थी.

संजय हजारे पश्चिम बंगाल के जिला 24 परगना के वीरभूम का रहने वाला था. चूंकि उस के यहां सोनेचांदी के गहने बनाने और उन पर नक्काशी करने का काम होता आया था, इसलिए थोड़ीबहुत पढ़ाई कर के वह भी यही काम करने लगा था.

गांव में उस की एक छोटी सी दुकान थी, जिस से इतनी आमदनी नहीं होती थी कि परिवार का गुजरबसर आराम से होता.

मुंबई मेहनती और महत्त्वाकांक्षी युवकों के सपनों की नगरी है. संजय भी घर वालों से इजाजत ले कर सन 2005 में मुंबई आ गया था.

मुंबई में उस के गांव के कई लडक़े पहले से ही रहते थे, इसलिए मुंबई में संजय को किसी तरह की परेशानी नहीं हुई. वह उन्हीं के साथ रह कर सोनेचांदी के गहने बनाने और उन पर नक्काशी का काम करने लगा.

कुछ दिनों तक इधरउधर काम करने के बाद बोरीवली की एक बड़ी फर्म में उसे काम मिल गया. यहां उसे ठीकठाक पैसे मिलने लगे. ठीकठाक कमाई होने लगी तो पैसे इकट्ठा कर के उस ने अंधेरी (पूर्व) के गौतमनगर में एक मकान खरीद लिया.

वह अकेला ही रहता था, इसलिए दीपांकर और संजीव को भी उस ने अपने साथ रख लिया. संजीव उसी के गांव का रहने वाला था, जबकि दीपांकर पात्रा दूसरे गांव का रहने वाला था, बाद में दीपांकर ने ही उस की शादी अपनी दूर की रिश्तेदार अनुभा से करा दी. वह उस का रिश्तेदार हो गया. यह सन 2001 की बात है.

चूंकि संजय के पास अपना मकान था, इसलिए शादी के बाद वह पत्नी अनुभा को मुंबई ले आया. उस के मकान में 2 कमरे थे. इसलिए अनुभा के आने के बाद भी उस के दोनों दोस्त भी उसी के साथ रहते रहे. साल भर बाद अनुभा ने एक बेटी को जन्म दिया. सभी उस बच्ची को खूब प्यार करते थे. उन के लिए वह खिलौने की तरह थी, इसलिए वे उसे खूब खेलाया करते थे.

कहा जाता है कि आदमी की नीयत कब बदल जाए, कहा नहीं जा सकता है. ऐसा ही संजीव के साथ हुआ. इस की नीयत अनुभा पर बिगडऩे लगी. उस की नीयत खराब हुई तो वह उस के नजदीक जाने की कोशिश करने लगा.

देखने में भले ही सब कुछ पहले की तरह ठीकठाक लग रहा था, लेकिन ऐसा था नहीं. अब अनुभा को देखते ही संजीव का मन मचल उठता था. उसे संजय से ईष्र्या होने लगी थी.

जल्दी ही अनुभा को भी संजीव के दिल की बात का आभास हो गया. संजीव उस के ज्यादा से ज्यादा नजदीक आने की कोशिश में लगा था. सभी सुबह काम पर जाते तो शाम को ही आते. सब साथसाथ खाना खाते हंसीमजाक करते और फिर सो जाते.

2 कमरे के उस मकान में एक कमरे में संजय अपनी पत्नी के साथ सोता था तो दूसरे कमरे में दीपांकर और संजीव. संजीव संजय और अनुभा की बातें तथा हंसीठिठोली सुनता तो उस के सीने पर सांप लोटने लगता. उसे संजय से जलन होने लगती. वह सोचता कि काश संजय की जगह अनुभा उस की बांहों में होती.

आखिर संजीव का यह सपना पूरा हो ही गया. अनुभा गर्भवती हुई थी तो संजय से ज्यादा संजीव उस का खयाल रखता था. जब कभी संजय काम अधिक होने की वजह से देर में आता तो संजीव समय पर घर आ कर घर के कामों में अनुभा की मदद ही नहीं करता, बल्कि उस के खानेपीने का भी ध्यान रखता.

उस की इस सेवा का अनुभा पर खासा असर पड़ा और न चाहते हुए भी वह उस की ओर ङ्क्षखचती चली गई. बेटी पैदा होने के बाद कुछ ऐसा संयोग बना कि दोनों के बीच की मर्यादा की दीवार ही ढह गई.

पहली बार मर्यादा की दीवार टूटी थी तो दोनों को अपने किए पर पछतावा हुआ था. लेकिन जो नहीं होना चाहिए था, वह हो चुका था. भले ही उन्हें अपने किए पर पछतावा हुआ था, लेकिन उन के कदम यहीं रुके नहीं. आगे भी अनुभा और संजीव को जब भी मौका मिला, वे संजय के साथ विश्वासघात करने से नहीं चूके.

अनुभा और संजीव जो भी करते थे, पूरे चौकस हो कर करते थे, लेकिन उन के ये संबंध ज्यादा दिनों तक छिपे नहीं रह सके. संजय को पत्नी और संजीव के संबंधों के बारे में पता चल ही गया. काम पर तो तीनों साथसाथ जाते थे, लेकिन कोई न कोई बहाना कर के संजीव बीच में आ जाता था. अनुभा के साथ मौजमस्ती कर के वह फिर काम पर पहुंच जाता.

ऐसे में पड़ोसियों को शक हुआ तो उन्होंने यह बात संजय को बताई. संजय को उन की बात पर विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि उसे अपने दोस्तों और पत्नी पर पूरा भरोसा था.

अनुभा और संजीव संजय के इसी विश्वास का फायदा 3 सालों तक उठाते रहे. आखिर एक दिन जब उस ने अपनी आंखों से दोनों को एकदूसरे की बांहों में देख लिया तो उसे अनुभा और संजीव की इस बेवफाई से गहरा आघात लगा.

उस ने संजीव को खूब खरीखोटी सुनाई और उसी समय घर से निकाल दिया. पत्नी को भी उस ने खूब धिक्कारा. संजीव ने संजय का घर भले छोड़ दिया, लेकिन अनुभा को नहीं छोड़ा. अनुभा से अपने संबंध रखे रहा.

मौका मिलते ही वह अनुभा के पास आ जाता और इच्छा पूरी कर के चला जाता. इस में अनुभा भी उस की मदद करती थी. इस बात को ले कर संजय और अनुभा के बीच अकसर लड़ाईझगड़ा होता रहता था. बात बढ़ जाती तो संजय अनुभा की पिटाई भी कर देता था. लेकिन मारनेपीटने और समझाने का अनुभा पर कोई असर नहीं हुआ. तब संजय ने अनुभा को संजीव से अलग करने का दूसरा उपाय सोचा.

परिचितों की मदद से उस ने अपना गौतमनगर वाला मकान बेच दिया और अंबरनाथ तहसील के नेवाली गांव की आकृति चाल में एक अच्छा सा मकान खरीद लिया. 12 नवंबर, 2015 को पूजापाठ करा कर वह पत्नी अनुभा, बेटी और दीपांकर के साथ उस में रहने आ गया.

नेवाली आने के बाद संजय को लगा कि अब संजीव अनुभा की ङ्क्षजदगी से निकल जाएगा. अनुभा भी धीरेधीरे उसे भूल जाएगी. यह सोच कर संजय अपने काम में व्यस्त हो गया. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. न तो संजीव अनुभा को भूल पाया और न अनुभा ही उसे दिल से निकाल पाई.

अनुभा से अलग हुए संजीव को 10 दिन भी नहीं हुए थे कि वह उस के लिए तड़प उठा. यही हाल अनुभा का भी था. दीपावली का त्योहार नजदीक था, इसलिए काम ज्यादा था. संजय को रात में भी काम करना पड़ता था. इस बात की जानकारी संजीव को थी ही, इसलिए जब संजय रात को काम के लिए कंपनी में रुक जाता तो संजीव उस के घर पहुंच जाता.

एक रात तबीयत खराब होने पर संजय अचानक घर पहुंचा तो वहां संजीव को देख कर दंग रह गया. संजय को देख कर संजीव और अनुभा के जहां होश उड़ गए, वहीं संजय का चेहरा क्रोध से लाल हो उठा. उस के गुस्से को देख कर संजीव तो भाग गया, लेकिन अनुभा कहां जाती. संजय ने सारा गुस्सा उसी पर उतार दिया. उस ने उस दिन उस की जम कर पिटाई की. पत्नी को मारपीट कर वह घर से बाहर निकल गया.

संजय के घर से बाहर जाने के बाद कुछ देर तक तो अनुभा रोती रही, उस के बाद उसे अपने और संजीव के बीच रोड़ा बनने वाले संजय से इस तरह नफरत हुई कि उस ने तुरंत एक खतरनाक फैसला ले लिया.

उस ने उसी समय संजीव को फोन कर के कहा, “संजीव, अब बहुत हो चुका. संजय को अपने रास्ते से हटाना ही होगा. हमारे संबंधों को ले कर जब देखो तब वह मुझे मारता रहता है. शहर से ले कर गांव तक मुझे बदनाम भी कर दिया है. मेरा जीना हराम हो गया है. उस ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा है. लोग मुझ पर थूक रहे हैं. इसलिए मैं चाहती हूं इस किस्से को ही खत्म कर दिए जाए.”

अनुभा की बात सुन कर संजीव का दिमाग घूम गया. उस ने अनुभा को धीरज बंधाते हुए कहा, “ठीक है, मैं उस की व्यवस्था कर दूंगा.”

“तुम कल साढ़े 8 बजे आ जाना. मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी.” अनुभा ने कहा और फोन काट दिया.

23 नवंबर, 2015 को संजीव ने बाजार जा कर एक तेज धार वाला चाकू खरीदा और ठीक समय पर संजय के घर पहुंच गया. संजय उस समय तक घर नहीं आया था. अनुभा ने उसे पीछे वाले कमरे में छिपा दिया और संजय के आने का इंतजार करने लगी. उस समय दीपांकर घर पर नहीं था. वह अपने एक दोस्त के यहां गया था.

रात 10 बजे के करीब संजय घर आया तो अनुभा मुंह फुलाए बैठी थी. संजय ने उस से खाना मांगा तो खाना देने के बजाय वह उस से उलझ पड़ी और उसे कस कर पकड़ लिया. इस के बाद अंदर छिपा बैठा संजीव एकदम से बाहर आया और साथ लाए चाकू से उस के गले पर हमला कर दिया.

चाकू लगने से संजय चीखा और जमीन पर गिर पड़ा. दोनों ने उसे तब तक दबोचे रखा, जब तक वह मर नहीं गया. संजय मर गया तो वे उस की लाश को ठिकाने लगाने की तैयारी करने लगे.

संयोग से उसी समय मौसम खराब हो गया और तेज बारिश होने लगी. बरसात की वजह से बस्ती के लोग अपनेअपने घरों में बंद हो गए तो उन्हें लाश को ठिकाने लगाने का अच्छा मौका मिल गया.

दोनों ने लाश को एक प्लास्टिक की मोटी थैली में लपेट कर कैरीबैग में भरा और रात करीब 2 बजे उसी बारिश में ले जा कर बस्ती से लगभग 2 सौ मीटर की दूरी पर स्थित घनी झाडिय़ों में फेंक दिया.

पूछताछ के बाद जितेंद्र आगरकर ने हत्या के इस मामले को अपराध संख्या 346/2015 पर दर्ज करा कर अनुभा और संजीव को अदालत में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखे जाने तक दोनों जेल में बंद थे

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

गीता का ज्ञान/अज्ञान

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वैसे तो हिंदू धर्म के ध्वजवाहकों में नहीं गिने जाते और भारतीय जनता पार्टी उन का उपयोग धार्मिक भावनाओं को उकसाने में नहीं करती पर फिर भी उन का काम यह तो रहता ही है कि वे समयसमय पर हिंदू ग्रंथों, देवताओं, रीतिरिवाजों का सार्वजनिक प्रदर्शन करते रहें. 3 दिसंबर, 2022 को उन्होंने विदेशी गोरे समर्थकों के इस्कौन मंदिर में बोलते हुए कहा, ‘हमें सैल्फ हैल्प पुस्तकों की जरूरत पश्चिमी देशों की तरह नहीं है क्योंकि हमारी व्यक्तिगत समस्याएं तो गीता पढऩे से ही दूर की जा सकती हैं.’

उस गीता के उपदेश का हवाला दिया गया जो चचेरे भाइयों के बीच युद्ध क्षेत्र में दिया गया जब एक भाई अपने दादा, गुरु, चचेरे भाइयों, मामा, दोस्तों से जमीन के लिए युद्ध करने से हिचकिचा रहा था. इस गीता के उपदेश को उन्होंने शांतिप्रिय बताया जबकि हमारा ज्ञात इतिहास हिंसक युद्धों से भरा है. जब आपस में लड़ते तो जो जीतता वह धर्म की जीत बताता, वहीं, जब मुट्ठीभर विदेशियों से हार जाते तो कहते कि यह प्रभु की लीला है.

यही नहीं, इंगलैंड के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ने ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ गीता पर हाथ रख कर ली जैसे भारत की अदालतों में होता है, फिल्मों में बहुत बार दिखाया जाता है. इस गीता के संदेश को ऐसे भी परखने की जरूरत है कि क्या यह ग्रंथ आधुनिक भारत के लिए एक उपयुक्त मानसिकता दे सकती है? क्या यह वैज्ञानिक व तार्किक सोच के साथ चल सकती है? क्या तुच्छ नाम के लिए गीता के श्लोक इधरउधर से उठा कर इस्तेमाल करें और गीता की मूलभूत दिशा को भुला कर देशवासी उसे अपने जीवन का महामंत्र बना सकते हैं जिसे लागू करने के लिए उसी तरह लड़ामरा जाए जैसे बाइबिल या कुरान को ले कर सदियों लड़ा गया? यह जरूरी इसलिए है कि अक्तूबर 2022 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि गीता में है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जिहाद सिखाया और गीता का ज्ञान ही देश को जिहादी बनाएगा.

रहिमन धागा प्रेम का

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