रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह वैसे तो हिंदू धर्म के ध्वजवाहकों में नहीं गिने जाते और भारतीय जनता पार्टी उन का उपयोग धार्मिक भावनाओं को उकसाने में नहीं करती पर फिर भी उन का काम यह तो रहता ही है कि वे समयसमय पर हिंदू ग्रंथों, देवताओं, रीतिरिवाजों का सार्वजनिक प्रदर्शन करते रहें. 3 दिसंबर, 2022 को उन्होंने विदेशी गोरे समर्थकों के इस्कौन मंदिर में बोलते हुए कहा, ‘हमें सैल्फ हैल्प पुस्तकों की जरूरत पश्चिमी देशों की तरह नहीं है क्योंकि हमारी व्यक्तिगत समस्याएं तो गीता पढऩे से ही दूर की जा सकती हैं.’

उस गीता के उपदेश का हवाला दिया गया जो चचेरे भाइयों के बीच युद्ध क्षेत्र में दिया गया जब एक भाई अपने दादा, गुरु, चचेरे भाइयों, मामा, दोस्तों से जमीन के लिए युद्ध करने से हिचकिचा रहा था. इस गीता के उपदेश को उन्होंने शांतिप्रिय बताया जबकि हमारा ज्ञात इतिहास हिंसक युद्धों से भरा है. जब आपस में लड़ते तो जो जीतता वह धर्म की जीत बताता, वहीं, जब मुट्ठीभर विदेशियों से हार जाते तो कहते कि यह प्रभु की लीला है.

यही नहीं, इंगलैंड के भारतीय मूल के प्रधानमंत्री ने ग्रेट ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ गीता पर हाथ रख कर ली जैसे भारत की अदालतों में होता है, फिल्मों में बहुत बार दिखाया जाता है. इस गीता के संदेश को ऐसे भी परखने की जरूरत है कि क्या यह ग्रंथ आधुनिक भारत के लिए एक उपयुक्त मानसिकता दे सकती है? क्या यह वैज्ञानिक व तार्किक सोच के साथ चल सकती है? क्या तुच्छ नाम के लिए गीता के श्लोक इधरउधर से उठा कर इस्तेमाल करें और गीता की मूलभूत दिशा को भुला कर देशवासी उसे अपने जीवन का महामंत्र बना सकते हैं जिसे लागू करने के लिए उसी तरह लड़ामरा जाए जैसे बाइबिल या कुरान को ले कर सदियों लड़ा गया? यह जरूरी इसलिए है कि अक्तूबर 2022 में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि गीता में है कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जिहाद सिखाया और गीता का ज्ञान ही देश को जिहादी बनाएगा.

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