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Kartik Aryan ने जुहू में खरीदा नया घर, कीमत जानकर उड़ जाएंगे होश

Kartik Aryan New House : बॉलीवुड एक्टर कार्तिक आर्यन ने अपने अभिनय से लाखों लोगों को अपना दीवाना बना रखा है. उनकी हर एक फिल्म को दर्शकों का खूब प्यार मिलता है. इस समय वह फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ को लेकर सुर्खियों में बने हुए हैं, जिसे लोगों का अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है. हालांकि अब अपनी फिल्म के सक्सेस होते ही उन्होंने (Kartik Aryan New House) मुंबई में एक नया घर खरीद लिया है, जिसकी कीमत करोड़ों में बताई जा रही है.

जानें कितने करोड़ का है एक्टर का नया आशियाना

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan New House) ने जुहू के पॉश इलाके में एक लग्जरी अपार्टमेंट खरीदा है. इस प्रॉपर्टी की बाजार में वैल्यू कम से कम 7.49 करोड़ रुपये है, लेकिन अभिनेता ने ये घर 17 करोड़ 50 लाख रुपये प्रीमियम पर खरीदा है. जो कि जुहू स्कीम के एनएस रोड नंबर 7 पर सिद्धि विनायक बिल्डिंग में दूसरी मंजिल पर है. एक्टर का ये नया घर 1,593.61 वर्ग फुट के एरिया में फैलै है. खास बात ये है कि कार्तिक ने जहां ये प्रॉरर्टी खरीदी है, वो पूरा इलाका सबसे महंगी प्रॉपर्टी में से एक है.

एक बिल्डिंग में दो अपार्टमेंट के मालिक बने कार्तिक

आपको बता दें कि, इस बिल्डिंग की आठवीं मंजिल का एक अपार्टमेंट पहले से ही कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan) के परिवार के पास है. इसी साल कार्तिक की मां डॉ. माला तिवारी ने अभिनेता शाहिद कपूर से ये अपार्टमेंट 7.5 लाख रुपये प्रति माह पर किराए पर लिया था.

गौरतलब है कि जुहू में घर खरीदना लंबे समय से बॉलीवुड सेलेब्स की पहली पसंद बना हुआ है. यहां पर अमिताभ बच्चन से लेकर अनिल कपूर, हेमा मालिनी, शत्रुघ्न सिन्हा, जितेंद्र और सोनाक्षी सिन्हा आदि जैसे कलाकारों के भी घर हैं.

‘‘नीयतः लेखकों व निर्देशक की गलत नीयत का प्रतिफल..’’

रेटिंग: पांच में से एक स्टार

निर्माताः विक्रम मल्होत्रा

लेखकः गिरवानी ध्यानी, अनु मेनन, अद्वैत काला और प्रिया वेंकटरमन

निर्देशकः अनु मेनन

कलाकारः विद्या बालन, राम कपूर, राहुल बोस, नीरज काबी, अमृता पुरी,  शशांक अरोड़ा, निकी वालिया और प्राजक्ता कोली व अन्य

अवधिः दो घंटे

निर्माता विक्रम मल्होत्रा, निर्देषक अनु मेनन और अभिनेत्री विद्या बालन की तिकड़ी ‘‘शकुंतला’’ के तीन वर्षों बाद अब अगाथा क्रिस्टी शैली की रहस्य व रोमांच प्रधान फिल्म ‘‘नीयत’’ लेकर आयी है. सात जुलाई को सिनेमाघरों में पहुंची यह फिल्म काफी निराश करती है. फिल्म की कहानी के केंद्र में स्कॉटलैंड का प्राचीन ‘स्कॉटिष महल’ है और कहानी एक हत्या/आत्महत्या को सुलझाने को लेकर है. इंग्लैंड में रहने वाली निर्देषक अनु मेनन का दावा है कि इंग्लैंड में ज्यादातर प्राचीन महल भारतीयों के स्वामित्व में हैं. एक बार फिर यह फिल्म इस बात की ओर इशारा करती है कि जब फिल्मकार को उसकी फिल्म के लिए सरकार की तरफ से सब्सिडी मिल रही हो तो वह अच्छी फिल्म बनाने में यकीन नही करता. इस फिल्म को इंग्लैंड सरकार से सब्सिडी मिली है.

कहानीः फिल्म की कहानी स्कॉटलैंड में समुद्री किनारे पर स्थित स्कॉटिश महल के अंदर घटित होती है. जहां भारतीय किरदारों का जमावड़ा है. इस आलीशान ब्रिटिश महल के मालिक आषीष कुमार (राम कपूर) मूलतः भारतीय अरबपति हैं. उन्होने अपने जन्मदिन पर एक भव्य पार्टी का आयोजन किया है. जिसमें शामिल होने वाले सभी मेहमान भी भारतीय ही हैं. यहां का चीफ ऑफ स्टाफ तनवीर (दानिष रजवी) भारतीय है और वह गोरों की कमान संभालता है. एके की दूसरी विश्वसनीय कर्मचारी के (अमृता पुरी) हैं. ए के के मेहमानों में डॉं. संजय (नीरज काबी), उनकी पत्नी व बेटा, एके की पूर्व प्रेमिका नूर (दीपानिता शर्मा अटवाल), तांत्रिक कार्य कर ए के का उपचार करने वाली जारा (निकी अनेजा), आषीष कपूर की वर्तमान प्रेमिका लिसा (शहाना गोस्वामी), रयान कपूर की गर्ल फ्रेंड गीगी (प्राजक्ता कोली), आशीष कपूर के समलैंगिक साले जिमी मिस्त्री (राहुल बोस) हैं.

अपने जन्मदिन का केक काटने से पहले आशीष कुमार उर्फ एके यह घोषणा कर हर किसी को स्तब्ध कर देते हैं कि वह भारत सरकार, भारतीय सीबीआई अफसर के सामने आत्म समर्पण कर देगें. क्योंकि उन्हें अपने खिलाफ 20,000 करोड़ के वित्तीय धोखाधड़ी मामले में न्याय मिलने का भरोसा है. भारी वित्तीय नुकसान के अलावा, एके को उन सात निवेशकों की आत्महत्याओं के लिए भी दोषी ठहराया गया है, जिन्होंने अपनी मेहनत की कमाई उनकी कंपनी को दे दी थी. बहरहाल, सीबीआई ऑफिसर मीरा राव (विद्या बालन), आशीष कपूर को भारत ले जाने के लिए आती हैं. एके और उसके

अनयंत्रित नशीली दवाओं का सेवन करने वाले बेटे रयान (शशांक अरोडा़) के बीच एक घिनौना विवाद शुरू हो जाता है, यहां तक कि रयान के पिता की नाक पर भी चोट लगती है. क्रोधित एके अपने महल से बाहर जाने से पहले अपने बेटे और अन्य मेहमानों को जोंक करार देता है. जल्द ही मेहमान आशीष कपूर को चट्टान के नीचे देखकर दंग रह जाते हैं. ए के का हस्तलिखित पत्र देखकर सभी इसे आत्महत्या बताते हैं. मगर मीरा राव का मानना है कि यह कोई आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है

बहरहाल, इंटरवल के बाद आशीष कपूर की हत्या कैसे हुई,  इसकी पड़ताल ही फिल्म की धुरी बन जाती है, जिसके चारों तरफ इसके किरदार चक्कर काटने लगते हैं. मीरा राव एक एक कर गुत्थियां सुलझाने की कोशिश करती है. शक के दायरे में पार्टी का हर मेहमान है और हर मेहमान के दिल में छुपी बातें भी इस हत्या का आधार बनाने की तरफ इशारा भी करती हैं.

लेखन व निर्देषनः गिरवानी ध्यानी, अनु मेनन, अद्वैत काला और प्रिया वेंकटरमन ने संयुक्त रूप से फिल्म का लेखन करते हुए फिल्म का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कहानी में कुछ भी नयापन नही है. इस तरह की सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं. फिल्मकार ने कहानी का कैनवास तो फैला दिया, पर उसे समेटना नही आया. क्योकि किसी भी लेखक ने अपने दिमाग का उपयोग ही नहीं किया. आशीष कुमार जो कि शून्य से अरबपति बने हैं, उन्हे लोगों को ठगने व मूर्ख बनाने में महारत हासिल है, तब भी वह मीरा राव की असलियत नही समझ पाते. हर किरदार भूल जाता है कि हाथ में बंदूक लेते ही जिसके हाथ कांपने लगे, वह सीबीआई अफसर कदापि नहीं हो सकता. उपर से हास्यास्पद पहलू यह है कि इस सीबीआई अफसर को केमिस्टी यानी कि रासायनिक पदार्थों व उसके उपयोग आदि का बहुत बेहतीन ज्ञान है. मीरा राव के महल में पहुंचते ही हमारे जैसे दर्शक समझ जाते है कि यह नकली है, पर चार चार लेखक व एक निर्देशक इस बात को नहीं समझ पाती…वाह..क्या फिल्मकार हैं….कहानी व पटकथा अति लचर व अति सुस्त है. इंटरवल से पहले फिल्म धीमी गति से चलती है, पर किरदारों का परिचय जिस तरह से होता है, उससे कुछ उम्मीदे बंधती हैं. मगर इंटरवल के बाद फिल्म जिस तरह से

आगे बढ़ती है उसे देखते हुए अहसास होता हे कि लेखक व निर्देषक ने सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया. जब आप मौलिक सोच की बजाय नकल के भरोसे रहते हैं, तब ऐसा ही होता है. इस फिल्म के कई दृश्य विदेषी सीरीज व फिल्मों की भी याद दिलाते हैं. तो वहीं मेहमान भी अमीरों की धारणा पर सवाल उठाते हैं. लेखकों व निर्देषक अनु मेनन को सीबीआई के काम करने के तरीकों, उनकी चाल -सजयाल आदि की कोई समझ ही नही है. क्या संदिग्ध अमीर किरदार किसी सीबीआई अफसर के साथ मारपीट कर सकता है? ए के का साला जिम्मी मिस्त्री अपने भांजे रॉयन के मन में पिता आषीष कपूर के खिलाफ इतना जहर भर देता है कि रॉयन पार्टी में सभी के सामने अपने पिता पर घंूसा चला देता है.

आखिर फिल्मसर्जक इस दृष्य के माध्यम से युवा पी-सजय़ी को क्या संदेष देना चाहती हैं? क्या वह अपने पिता के साथ ऐसा ही व्यवहार करती रही हैं? फिल्म के सभी किरदार अमीर व सभ्य समाज का हिस्सा हैं,मगर संवाद टपोरी वाले हैं. निर्देषक अनु मेनन को समलैंगिक’ रिष्तों व गे समुदाय से कुछ ज्यादा ही प्यार हो गया है. उनके निर्देषन में बनी फिल्म ‘षकुंतला’ में शकुंतला के पति ‘गे’ थे. तो वहीं ‘नीयत’ में आषीष कपूर और जिम्मी मिस्त्री गे हैं. दोनों के बीच समलैंगिक संबंध हैं. वही विद्या बालन भी समलैंगिक हैं. मगर फिल्मसर्जक ‘गे’ किरदार या समलैंगिक संबंधों का भी चित्रण सही-सजयंग से करने में विफल रही हैं. कुल मिलाकर फिल्म ‘‘नीयत’ की कमजोर कड़ी हैं इसके लेखक व इसकी निर्देषक. कहानी व पटकथा में अनगिनत त्रुतियां हैं.

अभिनयः इस फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी विद्या बालन हैं, जिन्होनें सीबीआई अफसर मीरा राव का किरदार निभाया है.इस फिल्म में अपने अभिनय से विद्या बालन ने साबित कर दिया कि शादी के बाद न सिर्फ वह पत्रकारों के संग अपने रिश्तों को भूल चुकी हैं,बल्कि अभिनय की एबीसीडी भी भूल गयी हैं. हर दृष्य में वह अपने सपाट चेहरे के साथ मौजूद रहती हैं.माना कि लेखकों ने मीरा राव के किरदार का सही चित्रण नही किया है, मगर बतौर अदाकारा उन्होने क्या किया. वास्तव में अनु मेनन के निर्देषन में फिल्म ‘‘शकुंतला’’ से उनके अभिनय में ढ़लान शुरू हुआ था. उसके बाद ‘शेरनी’ व ‘जलसा’ में भी उनके अभिनय में कोई सुधार नजर नही आया था.अब ‘नीयत’ से तो लगता है कि विद्या बालन ने स्वयं ने अपनी अभिनय यात्रा पर विराम लगाना चाहती हैं.इस बार तो विद्या बालन के धुर प्रशंसक भी स्तब्ध हैं. आखिर ‘डर्टी पिक्चर’ वाली या ‘बौबी जासूस’ वाली अभिनेत्री विद्या बालन कहां गायब हो गयीं? अषीष कपूर के किरदार में राम कपूर को फिल्मकार ने विजय माल्या वाला लुक दे दिया है,पर लगता है कि उन्होने बेमन काम किया है .अन्यथा इस किरदार में उनके पास अपनी अभिनय क्षमता के नए आयाम विखेरने के अवसर थे. दीपानिता शर्मा, शशांक अरोड़ा, शहाना गोस्वामी, नीरज काबी, अमृता पुरी, प्राजक्ता कोली, निकी अनेजा वालिया की परफार्मेंस में भी कुछ खास बात नजर नहीं आती. अति सूक्ष्म किरदार में शेफाली छाया अवष्य अपनी छाप छोड़ जाती हैं.

फिसलता सुप्रीम कोर्ट

देश में बहुत इस गलतफहमी में थे कि ‘किंग कैन डू नो रौंग’ यानी राजा गलती नहीं कर सकता. यह भ्रामक, झूठा अत्याचारी, अनचाही, अलोकतांत्रिक कथन 1950 में संविधान के हथौड़े से जमीन में कहीं गहरे कीलों से ठोंक कर ढक दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने एनफोर्समैंट डायरैक्टोरेट के मामले अपने बुलडोजर से उसे निकाल ही दिया, सरकार के हर कार्यालय पर मोटे अक्षरों से फिर लिख दिया.

सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों ने फैसला दिया है कि सरकार गलत हो ही नहीं सकती चाहे वह किसी की भी संपत्ति छीने, किसी को जेल में बंद करे, साथ ही, उसे अपने ‘शिकार’ को यह बताने की आवश्यकता भी नहीं है कि उस का कुसूर क्या है. सुप्रीम कोर्ट ने नागरिक स्वतंत्रताओं को उस जगह गाड़ दिया है जहां 1950 में ‘किंग कैन डू नो रौंग’ का कथन गाड़ा गया था.

अब एक नागरिक की आजादी सरकारी हाथों में है. सरकार उस से खुश है तो वह घर में परिवार के साथ रह सकता है, अपना काम कर सकता है, जहां चाहे आ-जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कह दिया है कि अगर सरकार के पास न खुश रहने के कारण हैं तो उस की आजादी, उस की संपत्ति छीनी जा सकती है. यह फैसला अमेरिका के रो वर्सेस वेड मामले के फैसले से भी ज्यादा भयंकर है जिस में एक औरत से उस का अपने बच्चे, जिस ने जन्म ही नहीं लिया, को मारने का हक था. 3 भारतीय जजों ने वही किया जो अमेरिका के जार्ज बुश और डोनाल्ड ट्रंप के नियुक्त जजों ने किया.

यह सरकार की मेहरबानी पर अब निर्भर है कि कोई नागरिक या भारत में मिला विदेशी जेल में रहेगा या बाहर. कोई सरकार सारे देश को जेल में बंद नहीं कर सकती पर जिस के पास भी सरकार की खामी निकालने के तथ्य व हिम्मत हो, उसे बंद करने का अर्थ है सब के मन में दहशत पैदा कर देना.

यह मामला क्या था, जजों ने क्या, क्यों कहा, इस पर न जाइए. मुख्य बात यह है कि आम नागरिक के संवैधानिक अधिकार अब सरकार के पास गिरवी रखे जा चुके हैं. सुप्रीम कोर्ट, जिस का काम नागरिकों को किसी भी सरकार को आतंकवादी बनने से रोकता था, ने सरकार के हाथों में मशीनगन पकड़ा दी हैं जो देश के दुश्मनों के साथ सरकार के अपने दुश्मनों पर आसानी से चलाई जा सकती है.

सरकार सब जानती है. सरकार सिर-माथा है. सरकार मेहरबान तो जी जहान जैसी सोच फिर वापस आ गई है. सुप्रीम कोर्ट ने व्याख्या दी है कि सरकार चाहे केंद्र की हो या राज्यों की, नागरिकों के साथ जैसी मरजी वैसा व्यवहार कर सकती है.

जीवन चलते रहने का नाम है

जीवन की तुलना हमेशा बहने वाली नदी से की जाती है. एक नदी अविरल बहती है, समुद्र में लहरें लगातार गतिशील रहती हैं, हवा एक पल के लिए भी नहीं रुकती. मौसम एक निश्चित अवधि पर बदलता है. शीत, ग्रीष्म, शरद, शिशिर, बसंत आदि ऋतुएं एक निश्चित प्रारूप के अनुसार बदलती रहती हैं. सूर्य, चंद्रमा, तारे अपनेअपने निश्चित समय पर उदय और अस्त होते हैं. उसी प्रकार जीवन भी निरंतर आगे बढ़ने का नाम है.

जीवन की निर्बाध गति के मार्ग को समस्याएं अवरुद्ध करती हैं लेकिन यही समस्याएं जीवनरूपी मार्ग को और भी सुदृढ़ करती हैं और आगे चलने को प्रेरित भी करती हैं. कठिनाइयों के पर्वतों से टकरा कर कहीं मनुष्य टूट न जाए, निराशा की अंधकारमय खाई में कहीं वह खो न जाए, समस्याओं के समुद्र में डूब न जाए बल्कि सफलताओं की चोटी पर सदैव चढ़ता रहे, इसी का नाम जीवन है.

जीवनरूपी पथ पर फूल मिले या कांटे, दुख या सुख, आशा या निराशा, जीवन सदैव चलता रहता है. दुविधा के चौराहे पर रुकना या किसी लक्ष्य के अभाव में पीछे मुड़ जाना जीवन का उद्देश्य नहीं है क्योंकि जीवन का एकमात्र उद्देश्य है निरंतर चलना.

मनुष्य के जीवन में कई मोड़ ऐसे भी आते हैं जब वह परेशानियों के सामने टूट जाता है. वह सोचने लगता है कि वह थक चुका है और परेशानियों के सामने घुटने टेक देने चाहिए. लेकिन ऐसे कठिन समय पर मनुष्य को धैर्य के साथ मुश्किलों का डट कर सामना करना चाहिए. जीवन कहता है कि रुकना नहीं है, निरंतर चलते रहना है.

जीवन संघर्ष का दूसरा नाम है. यह संघर्ष तब तक चलता रहता है जब तक सांसें चलती रहती हैं. संघर्ष से बच कर कहीं भी भागा नहीं जा सकता. आदिम अवस्था में गुफा में निवास करने वाला मनुष्य संघर्ष से ही सभ्यता के ऊंचे दुर्ग पर पहुंच सका. संघर्ष के मार्ग से ही हमें जीत की चोटियां मिलीं तो कहीं पराजय की अथाह गहराइयों में भी आशा का इंद्रधनुष मिला, तो कहीं निराशा के गहरे बादल भी मिले. प्रकृति और प्रतिकूल परिस्थितियों के विरुद्ध युद्ध करते हुए मनुष्य ने समाज और परिवार की नींव डाली, पृथ्वी के आंचल पर अन्न के दाने उगाए, भाषा और अग्नि का आविष्कार किया और आखिरकार मनुष्य सभ्य कहलाया.

मनुष्य अज्ञान और अंधकार में लिपटा हुआ है. वह समस्याओं के जंजाल में जकड़ा हुआ है. वह मोह, भ्रम, आशानिराशा के जाल में फंसा हुआ है. जीवन मनुष्य को सदैव इस से आगे निकलने की प्रेरणा देता है. इसी प्रेरणा के कारण ही वह आगे बढ़े, ऊपर उठे यही जीवन का मूल मंत्र है.

जीवन का सब से महान आदर्श रहा है अंधकार से प्रकाश की ओर चलना, मृत्यु के भय से अमरता की ओर चलना, बुराइयों और असत्य के चक्रव्यूह से निकल कर अच्छाई और सत्य की ओर चलना. इस प्रकार जीवन सदैव आगे बढ़ने का नाम है.

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7 ऐसे संकेत जो बताते हैं कि आपकी शादी टूटने वाली है

आजकल शादी के 2-3 साल के भीतर ही तलाक होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. व्यवहार विशेषज्ञों, मनोवैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों की मानें तो सगाई से शादी के बीच के 2-3 महीनों और विवाह के शुरुआती 3 महीनों में भावी दंपती या विवाहित जोड़े की कंपैटिबिलिटी का पता चल जाता है. भावी या हो चुके पतिपत्नी अपने इस गोल्डन पीरियड में आपस में कैसे बातें करते हैं और एकदूसरे के साथ कैसे पेश आते हैं, इस पर रिश्ते के सफल या असफल होने का दारोमदार होता है. विशेषज्ञों के मुताबिक ये निम्न बातें यह संकेत बहुत जल्दी दे देती हैं कि यह रिश्ता टिकने वाला नहीं और यदि टिक भी गया, तो इस में सिवा कड़वाहट के कुछ नहीं रहने वाला:

व्यक्तित्व को कम कर के आंकना: साइकोथेरैपिस्ट एवं लेखिका एबी रोडमैन का मानना है कि जब भावी पति या पत्नी एकदूसरे के व्यक्तित्व को कम कर के आंकते हैं, उन के पेशे या व्यवसाय को घटिया या दोयम दर्जे का समझते हैं या फिर किसी दूसरे को उस के बारे में बताने में संकोच महसूस करते हैं, तो ये लक्षण रिश्ते के लिए अच्छे नहीं माने जाते. ऐसे जोड़े जिंदगी भर अपने पार्टनर को कमतर समझ कर उस से खराब व्यवहार करते हैं. बारबार पार्टनर को घटिया पेशे में होने का एहसास करा कर उस का जीना दूभर कर देते हैं, उस के मन में हीनभावना भर देते हैं. नतीजतन घर में आए दिन कलह रहने लगती है और फिर जल्द ही संबंधों के तार ढीले पड़ जाते हैं.

सोच और शौक हैं अलगअलग: लड़का और लड़की हर बात पर अलग राय रखते हैं, उन के शौक अलग हैं, पहनावे का अंदाज अलग है, सोच अलग है, तो शुरूशुरू की छिटपुट तकरार और छींटाकशी के धीरेधीरे मनमुटाव और फिर बडे़ झगड़े में तबदील होने में ज्यादा देर नहीं लगती. जहां लड़की का जरूरत से ज्यादा मौडर्न और बिंदास होना लड़के को अखरता है, वहीं लड़के की सरल जीवनशैली लड़की की नजर में उसे भोंदू और बैकवर्ड समझने के लिए काफी है. लड़का या लड़की में से कोई एक मांसाहारी हो और दूसरा शुद्ध शाकाहारी, तो भी इस गाड़ी के रास्ते में अटकने का खतरा बढ़ जाता है. पौलिटिकल सोच और मतभेद भी अनबन की वजह बन सकते हैं.

एकदूसरे को स्पेस न देना: मनोविज्ञानी डा. अमरनाथ मल्लिक कहते हैं, ‘‘लड़का और लड़की जब एकदूसरे के साथ शादी के बंधन में बंधने का निर्णय लेते हैं, तो आपसी प्यार जताना, एकदूसरे पर अधिकार जमाना आदि सामान्य बातें हैं. लेकिन जब लड़का या लड़की एकदूसरे के मिनटमिनट का हिसाब चाहने लगें, दिन भर खुद से ही बातें और खुद पर ही ध्यानाकर्षण की चाह करने लगें और ऐसा न हो पाने पर ताने कसें, उलाहने दें, झगड़ा करने लगें, तो समझ जाना चाहिए कि इस संबंध का लंबा खिंचना मुश्किल है. कई बार तो देखा जाता है कि लड़का या लड़की सवाल पूछ कर नाक में दम कर देती है. कहां थे, क्या कर रहे थे, फोन क्यों नहीं किया आदि. अगर पिंड छुड़ाने के लिए कोई जवाब दे दिया जाए, तो उस की क्रौस वैरीफिकेशन करते हैं, जिस से मामला और बिगड़ जाता है.’’

रूखा और अशिष्ट व्यवहार: मैरिज ऐंड फैमिली थेरैपिस्ट कैरिल मैकब्राइड कहते हैं, ‘‘सगाई के बाद लड़का और लड़की घूमनेफिरने भी जाते हैं और रेस्तरां में डिनर या लंच भी करते हैं. ऐसे में लड़के या लड़की का दूसरे लोगों के साथ व्यवहार, उस के स्वभाव का सही परिचायक होता है. कोई व्यक्ति खुद से आर्थिक, सामाजिक रूप से कमजोर लोगों के साथ कैसा व्यवहार करता है यह देख कर आप आसानी से अंदाजा लगा सकते हैं कि लौंगटर्म में वह आप के साथ और होने वाले बच्चों के साथ कैसा व्यवहार करेगा. अगर लड़का या लड़की रेस्तरां में वेटर के साथ, टैक्सी ड्राइवर या रिकशाचालक के साथ, किसी हौकर या सेल्समैन के साथ बेअदबी से बात करे, तो समझ जाएं कि यही उस का असली व्यवहार है.’’

डेटिंग ऐक्सपर्ट मरीना सबरोची इस बात की पुष्टि करते हुए कहती हैं, ‘‘रिश्ते के शुरुआती चरण में लड़का और लड़की एकदूसरे का दिल जीतने की कोशिश करते हैं, इसलिए बढ़चढ़ कर एकदूसरे के साथ कृत्रिम व्यवहार भी कर सकते हैं, लेकिन दूसरों के साथ उन के व्यवहार को देख कर ही उन का वास्तविक स्वभाव सामने आता है.’’

हर बात की आलोचना: ‘मैरिड पीपल: स्टेइंग टुगैदर इन द ऐज औफ डाइवोर्स’ की लेखिका फ्रांसिन क्लैग्सब्रुन ने अपनी किताब के रिसर्च वर्क के दौरान ऐसे 87 जोड़ों से बातचीत की जो 15 या ज्यादा साल से सुखी और सफल वैवाहिक जीवन जी रहे थे. फ्रांसिन ने उन से विवाह की सफलता के महत्त्वपूर्ण तत्त्व जानने के लिए सवाल किए तो जवाब में जो सब से महत्त्वपूर्ण तत्त्व सामने आया वह था- एकदूसरे का आदर करना और पार्टनर को उस की आदतों के साथ स्वीकार करना.

फ्रांसिन कहती हैं, ‘‘आदर करना प्यार की एक कला है, जो हर दंपती को आनी चाहिए. समझदार और व्यावहारिक दंपती एकदूसरे की कमियां नहीं, बल्कि खूबियां खोजते हैं, जबकि नासमझ जोड़े बातबात में एकदूसरे की आलोचना करते हैं, आदतों में खोट निकालते हैं और जानेअनजाने अपने पार्टनर की भावनाओं को आहत करते हैं. जाहिर है ऐसे जोड़ों का रिश्ता ज्यादा समय तक नहीं टिक पाता.’’

घर के दूसरे सदस्यों को महत्त्व न देना: मनोविज्ञान सलाहकार डा. रूपा तालुकदार बताती हैं, ‘‘शादी होने पर पत्नी को पति के घर के दूसरे सदस्यों से तालमेल भी बैठाना होता है और उन्हें मानसम्मान भी देना पड़ता है. इसी प्रकार पति को भी पत्नी के मायके के सदस्यों के प्रति सम्मान भी जताना चाहिए और उन की भावनाओं की कद्र भी करनी चाहिए. लेकिन

पति या पत्नी अगर एकदूसरे के परिवार के सदस्यों की चर्चा से चिढ़ते हों, उन के लिए सम्मानसूचक शब्दों का इस्तेमाल न करते हों और बातबात में उन के विचारों, पहनावे और आदतों का मखौल उड़ाते हों, तो यह समझना कठिन नहीं है कि यह रिश्ता लंबे समय तक निभना मुश्किल हो सकता है, क्योंकि शादी के बाद सिर्फ पतिपत्नी तक ही दुनिया सीमित नहीं रहती.’’

हाइजीन मैंटेन न करना: डा. अमरनाथ मल्लिक बताते हैं, ‘‘जो लड़केलड़कियां साफसुथरे नहीं रहते और हाइजीन मैंटेन नहीं करते उन के अलगाव की संभावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं. वजह साफ है कि जो शुरुआती दौर इंप्रैशन जमाने का होता है उसी में अगर यह हाल है, तो आगे चल कर तो इस से भी ज्यादा लापरवाही झलकने वाली है. जरा सोचिए कि जिस व्यक्ति के पास आप को चौबीसों घंटे रहना है, उस के साथ बिस्तर शेयर करना है और शारीरिक संबंध स्थापित करने हैं, वह अगर साफसुथरा नहीं रहता, शरीर से बदबू आती है, कपड़े बेतरतीब रहते हों, तो आप उस के साथ कैसे जीवन निर्वाह कर सकते हैं  आखिर सैक्स संबंध और निकटता तो वैवाहिक जीवन की महत्त्वपूर्ण धुरी है.’’

महत्त्वपूर्ण बातें शेयर न करना: डा. अमरनाथ मल्लिक के अनुसार, ‘‘भावी पतिपत्नी के जीवन की कोई महत्त्वपूर्ण घटना हो, जैसे नौकरी छूट गई, नई जौब मिली,

बिजनैस में बड़ा नुकसान हुआ, घर में किसी का जन्मदिन है या ऐसी ही कोई और बात जिस के बारे में आप को अपने पति या पत्नी से पता न चले, बल्कि उस के फेसबुक स्टेटस या म्यूचुअल फ्रैंड्स से पता चले, तो भावनाओं का आहत होना तय है. इस से यह भी पता चलता है कि पार्टनर की नजर में आप बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं हैं या आप पर खास कौन्फिडैंस नहीं है.’’

ध्यान रखें, इन्हीं खामियों की वजह से रिश्तों की नींव बुरी तरह हिल जाती है.

डिप्रेशन से कैसे करें डील ?

WHO के अनुसार, अवसादग्रस्तता विकार (जिसे डिप्रेशन भी कहा जाता है) एक सामान्य मानसिक विकार है। इसमें उदास मनोदशा या लंबे समय तक गतिविधियों में आनंद या रुचि की हानि शामिल है।
डिप्रेशन किसी को भी हो सकता है। जो लोग दुर्व्यवहार, गंभीर नुकसान या अन्य तनावपूर्ण घटनाओं से गुज़रे हैं उनमें अवसाद विकसित होने की संभावना अधिक होती है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अवसाद होने की संभावना अधिक होती है।

डिप्रेशन के कुछ लक्षण, जिनमें शामिल हो सकते हैं:

– कमज़ोर एकाग्रता
– कम आत्मसम्मान की भावनाएँ
– भविष्य के प्रति निराशा
– मरने या आत्महत्या के बारे में विचार
– नींद में खलल
– भूख या वजन में परिवर्तन
– बहुत अधिक थकान या ऊर्जा की कमी महसूस होना।

डिप्रेशन या अवसाद से कुछ इस तरह लड़ा जा सकता है:

  • किसी थेरेपिस्ट से बात करें-

एक चिकित्सक के साथ काम करना अक्सर डिप्रेशन को सफलतापूर्वक प्रबंधित करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। मनोचिकित्सा लोगों को उनकी जीवनशैली को संभव तरीकों से समायोजित करने, उनके तनाव को कम करने और तनाव से निपटने में मदद करने पर ध्यान केंद्रित करती है। जिन मुद्दों को आप मिलकर संबोधित कर सकते हैं उनमें ये हैं कि अपने आत्म-सम्मान को कैसे सुधारें, नकारात्मक से सकारात्मक सोच की ओर कैसे जाएं और तनाव प्रबंधन का अभ्यास कैसे करें।

  • लेखन में स्वयं को अभिव्यक्त करें –

जर्नल में लिखना एक बेहतरीन थेरेपी है और यह अवसाद को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है। आप अपने लेखन में अपने विचारों, भावनाओं और चिंताओं के बारे में खुलकर बात करके तनाव से राहत पा सकते हैं। अपनी निजी पत्रिका में पूरी तरह ईमानदार रहें। अवसाद से जुड़ी अपनी भावनाओं और चुनौतियों को लिखने से दबी हुई भावनाएं दूर हो सकती हैं। आप यह देखकर आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि हर दिन बस कुछ मिनटों के लिए कागज पर कलम रखने के बाद आप कितना बेहतर महसूस करते हैं।

  • अपनी आत्म-छवि को बढ़ावा दें –

स्ट्रेस और डिप्रेशन से ग्रस्त लोग अक्सर कम आत्मसम्मान का अनुभव करते हैं, इसलिए अपने बारे में बेहतर महसूस करने के तरीके ढूंढना उपचार का एक महत्वपूर्ण पहलू है। अपने विचारों को अपने सर्वोत्तम गुणों पर केंद्रित करके सकारात्मक सोच का अभ्यास करें। आप जीवनशैली में बदलाव भी कर सकते हैं जो आपके आत्म-सम्मान में सुधार कर सकता है, जैसे स्वस्थ आहार खाना, नियमित व्यायाम करना और उन दोस्तों के साथ समय बिताना जो आपको अच्छा महसूस कराते हैं।

  • शामिल रहें –

यदि आप अवसाद का अनुभव कर रहे हैं, तो आपको ऐसा महसूस हो सकता है कि आप कम आत्मसम्मान या रुचि की कमी के कारण सामाजिक रूप से अलग हो जाना चाहते हैं और अपने तक ही सीमित रहना चाहते हैं। लेकिन याद रखें कि सामाजिक जीवन महत्वपूर्ण है। अपने दोस्तों के साथ जुड़े रहने के लिए खुद को प्रेरित करें। सामाजिक संपर्क आपको गहरे डिप्रेशन में जाने से और अकेले होने से बचाने में मदद कर सकता हैं। फ़िल्म देखने जाएँ, सैर करें, या बस किसी करीबी दोस्त से मिलें या बाहर डिनर करने चले जाएं, इससे आपका उत्साह बढ़ेगा और आप बेहतर महसूस करेंगे।

  • दूसरों पर निर्भर रहना –

जब अवसाद आपको उदास कर देता है तो परिवार और दोस्त आपको अपने बारे में बेहतर महसूस करने में मदद कर सकते हैं। जब आपको प्रियजनों की आवश्यकता हो तो स्वयं को उन पर निर्भर रहने दें। वे आपको अपनी उपचार योजना का पालन करने, व्यायाम करने, स्वस्थ आहार खाने और आम तौर पर अपना ख्याल रखने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। आप अन्य लोगों से बात करने के अवसर के लिए अवसादग्रस्त लोगों के लिए एक सहायता समूह में भी शामिल हो सकते हैं जो समझते हैं कि आप किस दौर से गुजर रहे हैं।

  • भोजन और मनोदशा का संबंध बनाएं –

कुछ अध्ययनों से पता चला है कि ओमेगा-3 का उच्च दैनिक सेवन, जो आपको सैल्मन जैसी मछली से या मछली के तेल की खुराक के माध्यम से मिल सकता है, मूड में सुधार कर सकता है। आहार के तत्वों और अच्छे पोषण और डिप्रेशन के बीच कई संबंध हैं। स्वस्थ आहार खाने से आप स्वस्थ, फिट और आकर्षक महसूस कर सकते हैं, जिससे आपका मूड लाइट होगा और साथ ही आत्म-सम्मान में सुधार भी होता है, जबकि अस्वस्थ महसूस करने से डिप्रेशन बढ़ सकता है और नकारात्मक आत्म-धारणा हो सकती है।

  • व्यायाम करें –

व्यायाम शारीरिक लाभ प्रदान करता है जो स्ट्रेस, एंजाइटी या डिप्रेशन से गुजर रहे लोगों की मदद कर सकता है। शारीरिक गतिविधि तनाव से राहत दिलाती है और आपको अच्छा महसूस करा सकती है। साथ ही, एक आकर्षक और चुनौतीपूर्ण कसरत को पूरा करने से आपको जो संतुष्टि मिलती है, वह आपके आत्म-सम्मान को बढ़ा सकती है क्योंकि आप मजबूत और शारीरिक रूप से अधिक फिट हो जाते हैं। जब आप नियमित व्यायाम से अवसाद से लड़ते हैं, तो आप भावनात्मक और शारीरिक रूप दोनो से ही बेहतर महसूस करेंगे।

  • शराब को कहें ना –

जब आप अवसाद से जूझ रहे हों तो शराब कोई समाधान नहीं है, लेकिन कई लोग प्रोब्लम से दूर भागने के लिए शराब का सहारा लेते हैं। हालाँकि, शराब पीने से अवसाद के लक्षण और भी बदतर हो सकते हैं, और इसको नियंत्रित करने के लिए आप जो दवाएँ ले रहे हैं, उन पर शराब का नकारात्मक प्रभाव भी पड़ सकता है। अवसाद को प्रबंधित करने के लिए एक स्वस्थ जीवन शैली की आवश्यकता होती है, और नशीली दवाओं और शराब से बचना एक स्वस्थ जीवन शैली की कुंजी है।

महाराष्ट्र: अजित पवार – राजनीति के औरंगजेब

महाराष्ट्र में राजनीतिक उठापटक का जो खेल देश ने देखा है वह एक तरह से पिछले साल शिव सेना में हुए राजनीतिक खेले का सिर्फ दोहराव भर है. इस के साथ ही भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर यह सवालिया निशान लग गया है कि विपक्ष को खत्म करने के लिए वे हरहथकंडा अपनाने के लिए तैयार हैं, क्योंकि केंद्र की सत्ता के आशीर्वाद के बगैर अजित पवार उपमुख्यमंत्री नहीं बन सकते थे.

सब से हैरानी की बात तो यह है कि देश के लोकतंत्र में निर्वाचन आयोग, देश का सुप्रीम कोर्ट और देश की जनता यह सब नाटक देखते हुए चुप है. सच तो यह है कि महाराष्ट्र में शरद पवार के खिलाफ अजित पवार अगर भाजपा और शिव सेना की सरकार में उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लिए बगैर बगावत करते और कहते कि चाचाजी, अब आप रिटायर हो जाएं और हमें प्रदेश की सेवा करने का आशीर्वाद दें तो इसे मर्दानगी कहा जा सकता था. मगर जिस तरह दिल्ली में बैठ कर के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह राजनीति के खेल खिला रहे हैं, उस से न तो भाजपा और खुद इन नेताओं की साफ इमेज बन रही है और न ही इन ‘खिलौनों’ की जो किसी की डोर से बंधे राजनीति के मैदान में डांस कर रहे हैं.

दरअसल, अजित पवार ने जोकुछ महाराष्ट्र में किया है और जिस भाषा में वे बयान दे रहे हैं, उन्हें आज राजनीति का औरंगजेब कहा जाए तो बड़ी बात नहीं होनी चाहिए, जिन्होंने सत्ता के लिए यही सब तो किया था. इतिहास जानने वाले आप को बता सकते हैं कि किस तरह औरंगजेब ने सत्ता पाने के लिए अपने बुजुर्ग पिता शाहजहां को जेल में बंद करवा दिया था. इस के बाद औरंगजेब ने अपने भाई दारा शिकोह को देशद्रोह के आरोप में सूली पर चढ़ा दिया. दूसरे भाई मुराद को भी जहर दे कर मरवा दिया. उस ने परिवार के कई लोगों की हत्या कर के राजगद्दी हासिल की. आज राजनीति में यह सब मुमकिन नहीं है, मगर उस का एक छोटा सा रूप यदाकदा दिखाई देता है, जो यह बताता है कि हम इनसानों का स्वभाव इतनी जल्दी नहीं बदलता और ‘सत्ता’ के लिए कोई भी कुछ भी कर सकता है.

आज महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजित पवार अपने चाचा शरद पवार की तुलना में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के ज्यादा विधायकों का समर्थन होने से संख्या के इस खेल में उन से आगे नजर आ रहे हैं. दोनों गुटों ने अपना शक्ति प्रदर्शन करने के लिए अलगअलग बैठकें की हैं.

अजित पवार गुट द्वारा बुलाई गई बैठक में राकांपा के 53 में से 32 विधायक शामिल हुए, जबकि राकांपा प्रमुख द्वारा आयोजित बैठक में 18 विधायक उपस्थित थे. इस तरह साफ है कि जो पटकथा केंद्र में बैठे भाजपा के बड़े नेता लिख रहे हैं, उस के मुताबिक आने वाले समय में शरद पवार को यह दिन भी देखने पड़ सकते हैं, जिस की उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.

दरअसल, अजित पवार के नेतृत्व वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने निर्वाचन आयोग को सूचित किया है कि उन्हें पार्टी का ‘राष्ट्रीय अध्यक्ष’ चुना गया है. अजित पवार ने बिना किसी गुरेज के कहा कि वे मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं ने 5 बार उपमुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की है. यह एक कीर्तिमान है, लेकिन गाड़ी यहीं ठहर गई है, आगे नहीं बढ़ रही. मुझे तहेदिल से ऐसा लगता है कि मुझे राज्य का प्रमुख (मुख्यमंत्री) बनना चाहिए. मेरे पास कुछ चीजें हैं, जिन्हें मैं कार्यान्वित करना चाहता हूं और उस के लिए प्रमुख (मुख्यमंत्री) बनना जरूरी है.’

इस तरह अजित पवार ने बिना किसी झिझक के दिखा दिया है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए सत्ता के लिए वे कुछ भी कर सकते हैं.

दरअसल, यह आज की भारतीय राजनीति का वह चेहरा है, जो हर कहीं मुफीद बैठता है. आज राजनीति में चरित्र, निष्ठा, ईमानदारी ढूंढ़े नहीं मिलते हैं.

मुख्यमंत्री पद की अपनी इच्छा नहीं छिपाने वाले अजित पवार 63 साल की टिप्पणी निश्चित तौर पर वर्तमान मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को भी परेशान करने वाली हो सकती है.

शिंदे की शिवसेनाभाजपा गठबंधन सरकार ने पिछले हफ्ते ही एक साल पूरा किया है, जिस में भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस भी उपमुख्यमंत्री हैं. अब आने वाले समय में भाजपा अपना खेल दिखाएगी और मुमकिन है कि चुनाव आतेआते भाजपा का चेहरा मुख्यमंत्री हो और एकनाथ शिंदे हाशिए पर.

विनविन सिचुएशन : सोमेश घर परिवार से क्यों परेशान रहने लगा था?

‘‘विनविनसिचुएशन वह होती है जिस में सभी पक्ष फायदे में रहें. जैसे हम ने किसी सामान को बनाने में क्व50 लगाए और उसे क्व80 में बेच दिया, तो यह हमारे लिए फायदे का सौदा हुआ. लेकिन अगर वही सामान कोई व्यक्ति पहले क्व90 में खरीदता था और अब हमारी कंपनी उसे क्व80 में दे रही है, तो यह उस का भी फायदा हुआ यानी दोनों पक्षों का फायदा हुआ. इसे कहते हैं विनविन सिचुएशन,’’ सोमेश कंपनी के नए स्टाफ को समझा रहा था.

12 साल हो गए सोमेश को इस कंपनी में काम करते हुए. अब नए लोगों को ट्रेनिंग देने का काम वही संभालता था. 12 सालों में पद, कमाई के साथसाथ परिवार भी बढ़ गया था उस का. हाल ही में वह दूसरी बार बाप बनने के गौरव से गर्वित हुआ था, लेकिन खुशी से ज्यादा एक नई जिम्मेदारी बढ़ने का एहसास हुआ था उसे. सालोंसाल वही जिंदगी जीतेजीते उकता गया था वह. उस की पत्नी रूमी बच्चों में ही उलझी रहती थी.

लंच टाइम में सोमेश जब खाना खाने बैठा, तो टिफिन खोलते ही उस ने बुरा सा मुंह बनाया, ‘‘लगता है आज फिर भाभीजी ने टिंडों की सब्जी बनाई है,’’ नमनजी के मजाक में कहे ये शब्द उसे तीर की तरह चुभ गए, क्योंकि सचमुच रूमी ने टिंडों की ही सब्जी दी थी टिफिन में.

कुछ खीजता हुआ सोमेश यों ही कैंटीन के काउंटर की ओर बढ़ गया.

‘‘सर, आप अपना टिफिन खुला ही भूल आए मेज पर,’’ एक खनकती हुई आवाज पर उस ने मुड़ कर देखा. कंपनी में नई आई हुई लड़की रम्या उस का टिफिन उठा कर उस के पास ले आई थी. यों कंपनी में और भी लड़कियां थीं, लेकिन सोमेश उन सब पर थोड़ा रोब बना कर ही रखता था. इतने बेबाक तरीके से कोई लड़की उस से कभी बात नहीं करती थी.

‘‘सर, यह लीजिए मैं इसी टेबल पर आप का टिफिन रख देती हूं.’’

‘‘सर, आप अगर बुरा न मानें तो मैं भी इधर ही खाना खा लूं? उस बड़ी वाली मेज पर तो जगह ही नहीं है.’’सोमेश ने बड़ी टेबल की ओर नजर दौड़ाई. सचमुच नए लोगों के आ जाने से बड़ी टेबल पर खाली जगह नहीं बची थी. उस ने सहमति में सिर हिलाया.

टिफिन रखते हुए रम्या के मुंह से निकल गया, ‘‘वाह, मेरी पसंदीदा टिंडों की सब्जी,’’

और फिर सोमेश की ओर देख कर कुछ ठिठक गई और चुपचाप अपना टिफिन खोल कर खाना खाने लगी.

बरबस ही सोमेश की नजर भी रम्या के टिफिन में रखे आलू के परांठों पर पड़ गई. रम्या बेमन से आलू के परांठे खा रही थी और सोमेश भी किसी तरह सूखी रोटियां अचार के साथ निगल रहा था.

‘‘सर, आप सब्जी नहीं खा रहे?’’ आखिरकार रम्या बोल ही पड़ी.

‘‘मुझे टिंडे पसंद नहीं, सोमेश ने बेरुखी से कहा तो रम्या ने उस की ओर आश्चर्य से देखा.’’

रम्या की निगाहों से साफ जाहिर था कि उस की पसंदीदा सब्जी की बुराई सुन कर उसे अच्छा नहीं लगा.

‘‘खाना फेंकना नहीं चाहिए सर,’’ रम्या ने किसी दार्शनिक की तरह कहा तो सोमेश को हंसी आ गई, ‘‘अच्छा, तो तुम ही खा लो यह टिंडों की सब्जी.’’

‘‘सच में ले लूं सर?’’ रम्या को जैसे मनचाही मुराद मिल गई.

‘‘हांहां, ले लो और तुम क्या मुझे आलू का परांठा दोगी?’’ रम्या की बेफिक्री से सोमेश भी थोड़ा बेतकल्लुफ हो गया था.

‘‘अरे बिलकुल सर, मैं तो बोर हो गई हूं आलू के परांठे खाखा कर. सुबह जल्दी में ये आसानी से बन जाते हैं. सब्जी बनाने के चक्कर में देर होने लगती है.’’

‘‘तुम खुद ही खाना बनाती हो क्या?’’

‘‘जी सर, अकेली रहती हूं तो खुद ही बनाना पड़ेगा न.’’

‘‘तुम अकेली रहती हो?’’

‘‘जी सर, मां को इलाज के लिए मामाजी के पास छोड़ा हुआ है.’’

सोमेश रम्या से अनेक सवाल पूछना चाहता था, लेकिन तभी कैंटीन में लगी बड़ी सी घड़ी की ओर उस का ध्यान गया. लंच टाइम खत्म होने वाला था. लंच के बाद उस की मैनेजर के साथ मीटिंग थी. उस ने अपना टिफिन रम्या की ओर खिसका दिया. बदले में रम्या ने भी 4 परांठों का डब्बा उस की ओर बढ़ा दिया.

लंच के बाद मीटिंग में मैनेजर ने उस से नए स्टाफ की जानकारी ली और पूछा कि इन में से किस नए मैंबर को तुम अपनी टीम में शामिल करना चाहते हो. चूंकि सभी नए लोगों की योग्यता एक सी ही थी और किसी को भी काम करने का पुराना अनुभव नहीं था, इसलिए उसे किसी के भी अपनी टीम में जुड़ने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था.

‘‘जैसा आप ठीक समझें सर,’’ सोमेश ने औपचारिक अंदाज में कहा.

‘‘तो फिर मैं रम्या को तुम्हारी टीम में दे रहा हूं, क्योंकि नमनजी ने दीपक को लिया है, जो उन का कोई दूर का रिश्तेदार लगता है. और देवेंद्र का स्वभाव तो तुम जानते ही हो कि उस के साथ कोई लड़की काम करना ही नहीं चाहती,’’ मैनेजर साहब ने जैसे पहले से ही सोच रखा था.

‘‘ठीक है सर,’’ सोमेश ने स्वीकृति में सिर हिलाया.

अगले दिन से रम्या सोमेश की टीम से जुड़ गई. थोड़ा और बेतकल्लुफ होते हुए अब रम्या उस के टिफिन से मांग कर खाना खाने लग गई.

‘‘आज शाम को जल्दी आ जाना, छोटे बेटे को टीका लगवाने जाना है,’’ औफिस के लिए निकलते हुए सोमेश को पीछे से रूमी की आवाज सुनाई दी. आज्ञाकारी पति की तरह सिर हिलाते हुए सोमेश ने गाड़ी स्टार्ट की.

शाम को औफिस से निकलते समय बारिश हो रही थी. सोमेश जल्दी से पार्किंग में खड़ी गाड़ी की ओर बढ़ा, लेकिन कुछ बूंदें उस पर पड़ ही गईं. गाड़ी में बैठ कर वह थोड़ा ही आगे बढ़ा था कि उस की नजर सामने एक दुकान के पास बारिश से बचने की कोशिश में किनारे खड़ी रम्या पर पड़ी.

इंसानियत के नाते उस ने गाड़ी उधर रोक दी और अंदर बैठे हुए ही रम्या को आवाज लगाई, ‘‘गाड़ी में आ जाओ वरना भीग जाओगी. अकेली रहती हो, बीमार हो गई तो देखभाल कौन करेगा?’’

बारिश से बचतीबचाती रम्या आ कर उस की गाड़ी में उस की बगल में बैठ गई. उस के सिर से पानी टपक रहा था.

‘‘ओह तुम तो काफी भीग गई हो,’’ सोमेश ने संवेदना दिखाते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा घर कहां है?’’

‘‘पास ही है सर, पैदल ही आ जाती हूं. आज बारिश हो रही थी वरना आप को कष्ट नहीं देती.’’

बातों ही बातों में दोनों ने एकदूसरे को अपने परिवार के बारे में बता डाला. सोमेश

को यह जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पिता के होते हुए भी अपनी बीमार मां की देखभाल का जिम्मा रम्या के ऊपर है.

‘‘क्या तुम्हारे पिताजी साथ में नहीं रहते?’’ सोमेश को रम्या के प्रति गहरी संवेदना हो आई.

‘‘नहीं सर, पिताजी मां के पूर्व सहपाठी उमेश अंकल को उन का प्रेमी मान कर उन पर शक करते हैं.’’

‘‘अच्छा, अगर रिश्तों में इतनी कड़वाहट है, तो वे तलाक क्यों नहीं ले लेतीं? कम से कम उन्हें अपने खर्च के लिए कुछ पैसे तो मिलेंगे.’’

‘‘वही तो सर, मां की इसी दकियानूसी बात पर तो मुझे गुस्सा आता है. पति साथ न दे तब भी वे उन्हें परमेश्वर ही मानेंगी.’’

बातोंबातों में वे रम्या के घर से आगे निकल गए. इसी बीच रूमी का फोन आ गया, ‘‘सुनो, बाहर बारिश हो रही है, ऐसे में बच्चे को बाहर ले कर जाना ठीक नहीं. हम कल चलेंगे उसे टीका लगवाने’’ जल्दीजल्दी बात पूरी कर रूमी ने फोन काट दिया.

‘‘सर, आप को वापस मोड़ना पड़ेगा, मेरा घर पीछे रह गया.’’

‘‘कोई बात नहीं, कह कर सोमेश ने गाड़ी मोड़ ली. वैसे भी अब घर जल्दी जा कर करना ही क्या था.’’

तभी रम्या को जोर की छींक आई.

‘‘बारिश में बहुत भीग गई हो, लगता है तुम्हें जुकाम हो गया है,’’ सोमेश को रम्या की चिंता होेने लगी.

रम्या का घर आ गया था. उस ने शिष्टाचारवश कहा, ‘‘सर, 1 कप चाय पी

कर जाइए.’’

ऐसी बारिश में सोमेश को भी चाय की तलब हो आई थी. अत: रम्या के पीछे उस के छोटे से कमरे वाले घर में चला गया.

‘‘मैं अभी आई,’’ कह कर रम्या सामने लगे दरवाजों में एक के अंदर चली गई. कुछ देर तक वापस नहीं आई तो सोमेश खुद ही उधर जाने लगा. कुछ आगे जाने पर उसे दरवाजे की दरार में से रम्या नजर आई. अचानक ही रम्या की निगाहें भी उस से टकरा गईं. उस ने जल्दी से दरवाजा बंद किया, लेकिन कपड़े बदलती रम्या की एक झलक सोमेश को मिल चुकी थी.

‘‘माफ कीजिएगा सर, दरवाजे की चिटकनी खराब है… अकेली रहती हूं, इसलिए सही करवाने का समय ही नहीं मिलता.’’

फिर नजरें झुकाए हुए ही वह चाय बना

कर ले आई. चाय का कप लेते हुए एक बार फिर सोमेश की निगाहें रम्या से चार हो गईं. इस बार रम्या ने नजरें नहीं झुकाईं, बल्कि खुद को आवेश के पलों में बहक जाने दिया.

अरसे का तरसा सोमेश रम्या का खुला निमंत्रण पा कर पागल ही हो बैठा.

कुछ पलों को वह यह भी भूल गया कि वह शादीशुदा है और उस के 2 बच्चे भी हैं.

जब तक वह कुछ सोचसमझ पाता, तीर कमान से निकल चुका था. वह खुद से नजरें नहीं मिला पा रहा था. रम्या ने उसे संयत किया. ‘‘इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है सर, यह तो शरीर की स्वाभाविक जरूरत है. मेरा पहले भी एक बौयफ्रैंड था… आज का अनुभव मेरे लिए कोई नया नहीं है. आप कहें तो मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगी.’’

रम्या की बात सुन कर सोमेश ने किसी तरह खुद को संभाला और बिना कुछ कहे अपने घर का रास्ता लिया.अब सोमेश हर पल बेचैन रहने लगा.

रम्या की उपस्थिति में उस की यह बेचैनी और भी बढ़ जाती जबकि रम्या बिलकुल सामान्य रहती. वह रम्या के सान्निध्य के बहाने ढूंढ़ता रहता.

घर छोड़ने के बहाने वह कई बार रम्या के घर गया. रम्या बड़ी सहजता से उस की ख्वाहिश पूरी करती रही. बदले में सोमेश भी उसे कंपनी में तरक्की पर तरक्की देता रहा और देता भी क्यों नहीं? रम्या पूरी तरह से  विनविन सिचुएशन का मतलब जो समझ चुकी थी.

मुझे पड़ोस की विधवा चाची से प्यार हो गया है, अब मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 18 साल का हूं और 5 सालों से हस्तमैथुन कर रहा हूं. अब मैं पड़ोस की 36 साला विधवा चाची के साथ सोना चाहता हूं. मैं उन के अंदरूनी कपड़े चुरा कर उन में हस्तमैथुन करता हूं. मुझे सही सलाह दें?

जवाब

आप हस्तमैथुन या हमबिस्तरी के चक्कर में पड़ने के बजाय अपनी पढ़ाई व कैरियर पर ध्यान दें. दोगुनी उम्र की चाची के चक्कर में आप तबाह हो सकते हैं. एक बार कुछ बन गए, तो जिंदगी में सोने के बहुत मौके मिलेंगे. बेहतर होगा कि सिर्फ खेलकूद व पढ़ाई वगैरह में ही ध्यान दें.

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उत्तर प्रदेश के जिला औरैया का एक कस्बा है अजीतमल. यहीं का रहने वाला धर्मेंद्र वन विभाग में चौकीदार की नौकरी करता था. उस की शादी मैनपुरी की रहने वाली सुनीता से हुई थी. दोनों ही खुश थे. उन की घरगृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी. इसी दौरान सुनीता 2 बच्चों की मां बन गई. इस के बाद तो घर की खुशियों में और इजाफा हो गया. लेकिन ये खुशियां ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकीं.

सुनीता बीमार हो गई और बीमारी के चलते एक दिन उस की मौत हो गई. पत्नी की मौत के बाद धर्मेंद्र जब नौकरी पर जाता, घर पर बच्चों की देखभाल करने वाला कोई नहीं रहता था. इस परेशानी को देखते हुए कुछ समय बाद वह अपने दोनों बच्चों को उन की ननिहाल में छोड़ आया और खुद रहने के लिए अपने मामा मुकेश के यहां चला गया.

मुकेश जिला मैनपुरी के गांव फैजपुर गढि़या में रहता था. वह एक फैक्ट्री में काम करता था. उस की शादी रीना से हुई थी, जिस से एक बेटा भी था. चूंकि धर्मेंद्र मुकेश का सगा भांजा था, इसलिए मुकेश ने उसे अपने घर के सदस्य की तरह रखा.

पत्नी की मौत के बाद धर्मेंद्र एकदम खोयाखोया सा रहता था. मामा के यहां रह कर वह एकाकी जीवन काट रहा था. धीरेधीरे माया ने उस की पीड़ा को समझा और वह उस का मन लगाने की कोशिश करने लगा.

धीरेधीरे वह घुलमिल कर रहने लगा तो उस की बोरियत दूर हो गई. साथ ही वह पत्नी की मौत का गम भी भूल गया. मामाभांजे दोनों अपनेअपने काम से लौट कर आते तो साथ मिल कर इधरउधर की खूब बातें करते थे.

दोनों की आपस में खूब बनती थी. धर्मेंद्र अपनी तनख्वाह से घर खर्च के कुछ पैसे अपनी मामी को दे देता था, जिस से घर का खर्च ठीक से चलने लगा. इसी बीच रीना एक और बेटे की मां बन गई, जिस का नाम प्रियांशु रखा गया.

28 साल की मामी रीना से धर्मेंद्र की खूब पटती थी. मामीभांजे के बीच हंसीठिठोली भी होती थी. धर्मेंद्र को मामी की सुंदरता और अल्हड़पन बहुत भाता था. कभीकभी वह उसे एकटक प्यारभरी नजरों से देखा करता था. अपनी ओर टकटकी लगाए देखते समय जब कभी रीना की नजरें उस से टकरा जातीं तो दोनों मुसकरा देते थे. धर्मेंद्र रीना के पति मुकेश से ज्यादा सुंदर और अच्छी कदकाठी का था. इस से रीना का झुकाव धर्मेंद्र के प्रति बढ़ता गया.

धर्मेंद्र रीना को दिल ही दिल चाहने लगा.  चूंकि वे मामीभांजा थे, इसलिए दोनों के साथसाथ रहने पर मुकेश को कोई शक नहीं होता था. मुकेश सीधेसरल स्वभाव का था, पत्नी और भांजे के बीच क्या खिचड़ी पक रही है, इस की मुकेश को कोई जानकारी नहीं थी. समय का चक्र घूमता रहा, धीरेधीरे दोनों एकदूसरे के करीब आते गए.

एक दिन धर्मेंद्र ने जब मजाकमजाक में मामी को बांहों में भर लिया तो रीना ने विरोध नहीं किया, बल्कि उस ने दोनों हाथों से धर्मेंद्र को जकड़ लिया. धर्मेंद्र ने इस मूक आमंत्रण का फायदा उठाते हुए उस पर चुंबनों की झड़ी लगा दी. इस के बाद अपनी मर्यादाओं को लांघते हुए दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कीं.

धर्मेंद्र चूंकि वहीं रहता था, इसलिए कुछ दिनों तक तो दोनों का खेल इसी तरह से चलता रहा. मुकेश को पता तक नहीं चला कि उस के पीछे घर में क्या हो रहा है. एक दिन मुकेश अचानक घर आया तो उस ने दोनों को आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया. लेकिन मौके की नजाकत को भांपते हुए रीना और धर्मेंद्र ने उस से माफी मांग ली.

मुकेश ने रहम करते हुए दोनों से कुछ नहीं कहा और उन्हें माफ कर दिया. इस के कुछ दिनों तक तो रीना और धर्मेंद्र ठीक रहे, लेकिन मौका मिलने पर वे अपनी हसरतें पूरी कर लेते थे. मामा के सीधेपन की वजह से धर्मेंद्र की हिम्मत बढ़ गई थी. अब धर्मेंद्र अपनी मामी रीना से शादी करने के ख्वाब देखने लगा.

एक दिन उस ने अपने मन की बात रीना से कही. चूंकि रीना भी उसे प्यार करती थी, इसलिए 2 बच्चों की मां होने के बावजूद वह भांजे से शादी करने के लिए तैयार हो गई. किसी तरह शादी वाली बात मुकेश को पता चली तो वह परेशान हो गया.

उस ने इस का विरोध किया. लेकिन जब रीना नहीं मानी तो उस ने रीना की पिटाई कर दी. रीना के सिर पर तो इश्क का जुनून सवार था, ऐसे में वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थी. लेकिन मुकेश के लिए यह बड़ी बदनामी वाली बात थी.

थकहार कर मुकेश ने गांव में पंचायत बैठाई. रीना ने पंचायत में भी स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह पति मुकेश को छोड़ सकती है लेकिन धर्मेंद्र को नहीं छोड़ेगी. वह उस से शादी जरूर करेगी. रीना की जिद के आगे मुकेश व उस के घर वालों को झुकना पड़ा.

घर वालों की इस रजामंदी के बाद पंचायत में तय हुआ कि रीना मुकेश और धर्मेंद्र दोनों की पत्नी के रूप में रहेगी. इस के बाद रीना और धर्मेंद्र ने कोर्टमैरिज कर ली. शादी करने के बाद भी रीना मुकेश के घर में ही रहती रही. यह बात लगभग 7 साल पहले की है.

इस के बाद रीना अपने पहले पति मुकेश और भांजे से दूसरा पति बने धर्मेंद्र के साथ दोनों की पत्नी बन कर रहने लगी. समय धीरेधीरे बीतने लगा. रीना दोनों पतियों के दिलों पर राज करती थी. वह चाहती थी कि उन दोनों से वह ज्यादा कमाई कराए. क्योंकि नौकरी से तो बस बंधीबधाई तनख्वाह मिलती थी, जिस से रीना संतुष्ट नहीं थी.

एक दिन धर्मेंद्र, मुकेश व रीना ने बैठ कर तय किया कि क्यों न यहां के बजाय शिकोहाबाद जा कर कोई दूसरा धंधा शुरू किया जाए. शिकोहाबाद में कबाड़ का व्यवसाय काफी बड़े पैमाने पर होता है, इसलिए उन्होंने वहां जा कर कबाड़ का काम करने का फैसला लिया. करीब ढाई साल पहले मुकेश और धर्मेंद्र गांव से जिला फिरोजाबाद के शहर शिकोहाबाद चले गए. उन्होंने लक्ष्मीनगर मोहल्ले में प्रमोद कुमार का मकान किराए पर ले लिया.

फिर वे पत्नी रीना व बच्चों को भी शिकोहाबाद ले आए. यहां रह कर मुकेश और धर्मेंद्र मिल कर कबाड़ का कारोबार करने लगे. इसी दौरान रीना एक और बेटे की मां बन गई. धर्मेंद्र भले ही रीना का पति बन गया था, लेकिन वह अपने बच्चों से उसे भैया ही कहलवाती थी.

रीना दोनों पतियों के साथ सामंजस्य बना कर रह रही थी. दोनों ही उस से खुश थे. कहते हैं, समय बहुत बलवान होता है, उस के आगे किसी की नहीं चलती.

इस परिवार में भी यही हुआ. जब दोनों का काम अच्छा चलने लगा, आमदनी बढ़ी तो धर्मेंद्र शराब पीने लगा. रीना इस का विरोध करती तो धर्मेंद्र उसे डांट देता. कभीकभी वह उस पर हाथ भी उठा देता था.

रीना अब उस से डरीडरी सी रहने लगी. शराब की लत जब बढ़ गई तो धर्मेंद्र ने काम पर जाना भी बंद कर दिया. वह दिन भर घर पर रह कर शराब पीता रहता. लड़झगड़ कर वह रीना से पैसे ले लेता था. जब रीना पैसे नहीं देती तो वह घर में रखे पैसे चुरा लेता था. एक दिन तो वह रीना की सोने की झुमकी और चांदी की पायल तक चुरा कर ले गया. इस पर रीना और मुकेश ने उसे घर से निकाल दिया.

2 महीने धर्मेंद्र इधरउधर भटकता रहा. बाद में वह रीना के पास ही लौट आया. उस ने मुकेश और रीना से शराब न पीने तथा ढंग से चलने का वादा किया. इस पर रीना ने उस पर दया दिखाते हुए उसे फिर से घर में रख लिया.

मकान मालिक प्रमोद कुमार और वहां रहने वाले अन्य किराएदारों ने रीना से धर्मेंद्र को फिर से साथ रखने को मना किया, क्योंकि वह आए दिन घर में झगड़ता रहता था. इस पर रीना ने कहा कि वह अकेला कहां धक्के खाएगा.

थोड़े दिन सब कुछ ठीक रहा, लेकिन धर्मेंद्र को शराब की जो लत लग गई थी, उस के चलते वह फिर से शराब पीने लगा. रीना ने धर्मेंद्र को समझाने की बहुत कोशिश की, लेकिन उस ने अपनी आदतों में कोई सुधार नहीं किया. इस से घर में आए दिन लड़ाई होने लगी.

10 अगस्त, 2018 की रात करीब साढ़े 8 बजे की बात है. मुकेश के कमरे से अचानक शोरशराबे की आवाज आने लगी. बच्चे चिल्ला रहे थे, ‘मम्मी मर गईं, मम्मी मर गईं.’

शोर सुन कर प्रमोद के मकान के नीचे के हिस्से में रह रहे मकान मालिक प्रमोद कुमार व उन के परिवार के लोगों को लगा कि शायद खाना बनाते समय कमरे में आग वगैरह लग गई है. इसलिए वे पानी की बाल्टी ले कर ऊपर पहुंचे.

ऊपर पहुंच कर उन्होंने जो नजारा देखा, उसे देख कर आंखें फटी की फटी रह गईं. रीना कमरे की देहरी पर मरी पड़ी थी, उस के सिर व चेहरे से खून बह कर कमरे में फैल गया. पता चला कि रीना के दूसरे पति धर्मेंद्र ने ही रीना की हत्या की थी.

हत्या करने के बाद जब धर्मेंद्र भागने को था, तभी अन्य किराएदारों ने उसे पकड़ लिया था. वह उसे वहीं दबोचे खड़े रहे. प्रमोद ने इस की सूचना पुलिस को दे दी.

थानाप्रभारी विजय कुमार गौतम, सीओ संजय रेड्डी मय पुलिस टीम के कुछ ही देर में वहां पहुंच गए. लोगों ने पकड़े गए हत्यारोपी धर्मेंद्र को पुलिस के हवाले कर दिया. पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

मृतका के बड़े बेटे सनी ने बताया कि हम लोग अंदर टीवी देख रहे थे. मम्मी ने पापा से खाना खाने के लिए कहा. इतने में भैया (धर्मेंद्र) ने अंदर ले जा कर कुल्हाड़ी से मम्मी को मार डाला. उस ने बताया कि दोपहरी में भैया ने कहा था कि लाओ कुल्हाड़ी पर धार लगा लें. लकडि़यां काट कर लाएंगे.

पुलिस ने जब धर्मेंद्र से पूछताछ की तो पता चला कि घटना के समय रीना कमरे के बाहर चूल्हे पर रोटी बना रही थी और उस के तीनों बच्चे खाना खा कर कमरे में टीवी देख रहे थे. कमरे में ही मुकेश चारपाई पर लेटा हुआ था.

रात को अचानक धर्मेंद्र नशे में सीढि़यां चढ़ कर ऊपर आया. रीना धर्मेंद्र से कुछ नहीं बोली, उस ने अपने बेटे बेटे सनी को आवाज देते हुए कहा, ‘‘पापा से कह दे, खाना खा लें.’’

रीना द्वारा धर्मेंद्र से खाना खाने के लिए न कहने से धर्मेंद्र बौखला गया. उस के तनबदन में आग लग गई. उस ने रीना के साथ गालीगलौज करते हुए कहा कि हम से खाना खाने के लिए नहीं पूछा. अभी खबर लेता हूं तेरी. कह कर वह गुस्से में कमरे में घुसा जहां बच्चों के साथ मुकेश मौजूद था.

उस ने कमरे में रखी कुल्हाड़ी उठाई और चूल्हे पर रोटी बना रही रीना के बाल पकड़ कर उसे कमरे की देहरी पर ले जा कर लिटा दिया. फिर उस के सिर व चेहरे पर कई प्रहार कर उस की नृशंस हत्या कर दी. कमरे में चारों ओर खून फैल गया. अपनी आंखों के सामने मां को मारते देख बच्चे चिल्लाए, ‘‘मम्मी मर गई, मम्मी मर गई.’’

शोर सुन कर अन्य किराएदार वहां आ गए. धर्मेंद्र के हाथ में खून सनी कुल्हाड़ी देख कर वे सारा माजरा समझ गए. किसी तरह किराएदारों ने धर्मेंद्र को दबोच लिया, जिसे बाद में उन्होंने पुलिस के हवाले कर दिया.

पुलिस ने मुकेश की तहरीर पर धर्मेंद्र के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर के अगले दिन उसे न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया.

अपनी भावनाओं पर अंकुश न लगा पाने वाली रीना रिश्तों की मर्यादा को लांघ गई थी. वह धर्मेंद्र के प्यार में इस कदर डूबी कि उसे अपने पति, बच्चों व समाज तक की परवाह नहीं रही. उस ने अपने भांजे से अवैध संबंध बनाने के बाद उस से कोर्टमैरिज तक कर ली. इस की कीमत उसे अपनी जान दे कर चुकानी पड़ी.

   —कथा पुलिस सूत्रों व जनचर्चा पर आधारित

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