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मुझे अपनी सेक्रेटरी से प्यार हो गया है, मैं न तो अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता हूं और न ही उसे, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल
मेरी उम्र 28 वर्ष है और मेरी शादी को 3 साल हो गए हैं. मेरी पत्नी काफी अच्छी है. लेकिन पिछले 3 महीनों से मुझे अपनी सहकर्मी से प्यार हो गया है और वह भी मुझ से प्यार करने लगी है जिस से मैं अब अपनी पत्नी को इग्नोर करने लगा हूं. इस बात से वह बहुत दुखी है. मैं न तो अपनी पत्नी को छोड़ना चाहता हूं और न ही उसे. आप ही बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए.

जवाब
देखिए, जिस राह पर आप चल रहे  हैं उस में डूबने की आशंका है क्योंकि आप विवाहित हैं. आप एक नहीं बल्कि कई जिंदगियों से खेल रहे हैं. जब आप की पत्नी अच्छी है, तो आप को बाहर किसी दूसरी महिला की तरफ देखना ही नहीं चाहिए. और अगर आप आकर्षित हो भी गए हैं तो उस महिला को प्यार से समझाएं कि मेरी पत्नी है जिसे मैं ऐसा कर के धोखा दे रहा हूं और तुम्हें भी. इसलिए मुझे मेरी गलती के लिए माफ कर दो और पत्नी को भी भरोसा दिलाएं कि आगे से ऐसा नहीं होगा. वरना आप की एक भूल आप की जिंदगी खराब कर देगी जिस का पछतावा आप को जीवनभर रहेगा.

जनता संपत्ति कमाए व सरकार नजरें गड़ाए, आखिर क्यों

भारत में केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी अपनी संपत्तियों के अलावा आम लोगों की संपत्तियों पर भी दृष्टि जमाए रखती हैं. आज तो आलम यह है कि अपराधियों की संपत्ति को तो वे, बिना कानूनी खानापूर्ति किए ही, बुलडोजर से ध्वस्त करा देती हैं. यह और बात है कि सत्ताधारी पार्टी में शामिल अपराधियों की संपत्ति को कोई छू भी नहीं सकता.

अपराधियों ही नहीं बल्कि अवैध संपत्ति के नाम पर तमाम दूसरे लोगों के मकान भी सरकारों ने ध्वस्त किएहैं और नियमकानून का कोई पालन नहीं हुआ. जिस गलीमहल्ले और कालोनी में बुलडोजर चलता है वहीं पर देखें तो दूसरे तमाम अवैध निर्माण ऐसे भी होते हैं जिनको कोई छूता भी नहीं है. यह मनमानी बताती है कि जिन संपत्तियों पर सरकार की नजर होती है वही गिराई जाती हैं. यह काम करीबकरीब पूरे देश में हो रहा है पर जिन प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा की सरकारेंहैं वहां यह ज्यादा किया जा रहा है.

 ऐसे नजर रखती है सरकार

संपत्ति पर सरकार की नजर का मसला नया नहीं है. इसकी शुरुआत देश के आजाद होने के साथ ही हो गईथी. जनता के हित को बताते हुए कहा गया कि भूमिहीन लोगों को जमीन देने के लिए जिनके पास ज्यादा जमीन है उनसे ली जाएगी. सरकार ने इसके तहत जमीनों का अधिग्रहण शुरू किया. उसी समय सीलिंग एक्ट भी लाया गया था. अलगअलग राज्यों ने अपने राजस्व कानून बनाने शुरू किए.

छोटे किसानों के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सरल नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ने का मतलब लाखों रुपयों का खर्च होना होता है. ऐसे में बहुत सारे किसान चुप रह गए. जमीन उनके मौलिक अधिकार से बाहर हो चुकी थी. संसद को कानून बना कर जमीनों पर प्रयोग बदलने के अधिकार मिल गए थे. इन्हीं का प्रयोग करके मोदी सरकार ने 3 कृषि कानून भी बनाए थे.

केरल के कासरगोड जिले के एडनीर गांव में स्वामी केशवानंद भारती का एक मठ था. उनके पास भी जमीन थी. संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मठों को छूट दी थी कि वे अपने प्रबंधन के खर्च को चलाने के लिए जमीन अपने पास रख सकतेहैं. केरल सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा. उसने मठ की जमीन को भी अपने कब्जे में ले लिया. केशवानंद भारती इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले आए और 1970 में हुए 2 भूमि सुधार अधिनियमों के तहत अपनी संपत्ति के प्रबंधन पर प्रतिबंध लगाने के प्रयासों को चुनौती दी.

संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत सरकार के खिलाफ यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के आगे रखी गई. मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली. दलीलें 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुईं और 23 मार्च, 1973 को समाप्त हुईं. इसके फैसले में 700 पृष्ठ लिखे गए. 13 जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया. केशवानंद के फैसले ने यह परिभाषित किया कि किस हद तक संसद संपत्ति के अधिकारों को सीमित कर सकती है. इस फैसले के बाद सरकार को जमीनों के प्रयोग के तमाम अधिकार प्राप्त हो गए. वैसे, केशवानंद भारती केस इससे अधिक सुप्रीम कोर्ट के ‘संविधान मूलभूत ढांचे’ को परिभाषित करने के लिए अधिक जाना जाता है.

        जेवर और जमीन पर भी हुकूमत की मंशा

सोना और जेवर यानी पहने जाने वाले गहनों पर भी सरकार की नजर है. नोटबंदी के बाद यह बात तेजी से उठी थी कि सरकार जमीन और गहनों को लेकर भी कानून लाने वाली है जिसमें यह बताया जाएगा कि कितने ग्राम सोना बिना टैक्स के रख सकते हैं, कितना अधिक होने पर टैक्स देना पड़ेगा.

इसके पीछे की वजह यह है कि सरकार का मानना है कि कालेधन को रखने का सबसे बड़ा उपाय जेवर और जमीन ही हैं. इसलिए आने वाले दिनों में इसका हिसाब भी वह ले सकती है. सरकार की नजर इस परभी है.

जेवर या गहने जब भी खरीदें उसकी रसीद अपने पास रखें. अगर गहने उपहार में ही मिले हों तो भी कोशिशकरें कि उसकी रसीद आपके पास हो. एक सीमा से अधिक गहने होने पर उसको उपहार समझ कर सरकार छोड़ती नहीं है. 2 लाख से अधिक का जेवर लेने के लिएआधार कार्ड और पैन कार्ड का विवरण देने को कहा गया है. बड़ी ज्वैलरी शौप इसके बिना जेवर नहीं देतीं. इसके अलावा आज हर ज्वैलरी शौप औनलाइन पेमैंट का रास्ता अपनाती है. इसमें आपका फोन नंबर लिखा जाता है. फोन नंबर आधार और पैन से जुड़ा होता है.

ऐसे में फोन नंबर से ही यह पता लगाना सरल हो गया है कि कितनी खरीदारी की गई है. इसी तरह से जब जमीन खरीद रहे होते हैं वहां भी स्टांप फीस औनलाइन जमा की जाती है. अगर 50 लाख रुपए से अधिक की प्रौपर्टी खरीद रहे हैं तो उस पर सरकार की नजर होती है. इस तरह से बिना सरकार की जानकारी के कोई भी संपत्ति आपके पास नहीं हो सकती.

इस प्रकार, सरकार हर तरह से न केवल जनता की संपत्ति पर नजर रख रही, बल्कि उसके जरिए ही उस को परेशान करने का काम भी करती है. ऐसे में जरूरी है कि इन मुद्दों को आप समझें और अपनी संपत्ति को सरकारी लूट से बचाने का उपाय करें वरना आप की संपत्ति भी कहीं किसी ‘अडानी’ की झोली में न चली जाए.

अंजाम-ए-मोहब्बत: बेमानी हुए प्यार का यही नतीजा होता है

अनमोल और योगेश ने भले ही एकदूसरे से प्यार किया था. लेकिन अलगअलग शादी के बंधन में बंध जाने के बाद उन्हें अपने प्यार को भुला देना  चाहिए था. बेमानी हुए  प्यार का कमोबेश यही  नतीजा होता है, जो हुआ.

मौत कभीकभी बिन बुलाए मेहमान की तरह चुपके से आती है और चील की तरह झपट्टा मार कर किसी को भी साथ ले जाती है. ऐसा नहीं है कि मौत आने से पहले दस्तक नहीं देती. असल में मौत दस्तक तो देती है, पर लोग उस पर ध्यान नहीं देते. कोई नहीं जानता कि वक्त कब करवट लेगा और खुशियां गम में बदल जाएंगी. ऐसा ही कुछ योगेश के साथ भी हुआ था.

आगरा के थाना सिकंदरा क्षेत्र में एकगांव है अटूस. राजन अपने परिवार के साथ इसी गांव में रहता था. उस का गांव में ही दूध का व्यवसाय था. वह बाहर से तो दूध खरीदता ही था, उस की अपनी भी कई दुधारू भैंसे थीं. राजन गांव का खातापीता व्यक्ति था. वह अपने बच्चों को खूब पढ़ाना चाहता था.

उस का बड़ा बेटा पढ़ाई में काफी तेज था. इसलिए परिवार को उस से काफी उम्मीदें थीं. राजन के घर से कुछ ही दूरी पर रिटायर्ड फौजी नरेंद्र का घर था. एक ही गांव के होने की वजह से दोनों परिवार के लोगों में आतेजाते दुआसलाम तो हो जाती थी, पर ज्यादा नजदीकियां नहीं थीं. दोनों परिवारों के बच्चे गांव के दूसरे बच्चों की तरह साथसाथ खेल कर बड़े हुए थे. वक्त के साथ फौजी नरेंद्र की बेटी अनमोल जवान हुई तो मांबाप ने उसे समझाने की कोशिश की कि वह लड़की है और लड़की को अपनी मर्यादा में रहना चाहिए.

दरअसल, फौजी की बेटी अनमोल और राजन का बेटा योगेश एक ही कालेज में पढ़ते थे. आए दिन होने वाली मुलाकातों की वजह से दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे थे. धीरेधीरे दोनों में दोस्ती हो गई और उन्हें लगने लगा कि उन के मन में एकदूसरे के लिए कोमल भावनाएं विकसित हो रही हैं.

दोनों बीए में में पढ़ रहे थे. एक दिन अनमोल जब आगरा जाने के लिए सड़क पर किसी वाहन का इंतजार कर रही थी तो योगेश अपनी बुलेट पर वहां आ गया. वह बाइक रोक कर अनमोल से बोला, ‘‘आओ बैठो.’’

‘‘नहीं तुम जाओ, मैं औटो से जाऊंगी.’’ जवाब में अनमोल ने कहा.

‘‘छोड़ो यार, ये क्या बात हुई. मैं भी तो कालेज ही जा रहा हूं.’’ कहते हुए योगेश बेतकल्लुफ हो गया और अनमोल का हाथ पकड़ते हुए बोला, ‘‘बैठो.’’

अनमोल उस के साथ बुलेट पर बैठ गई. उस के लिए यह एक नया अनुभव था, फिर भी वह यह सोच कर डरी हुई थी कि किसी ने देख लिया तो खबर घर तक पहुंच जाएगी. अनमोल इसी सोच में डूबी थी कि योगेश ने काफी शौप के सामने बाइक रोक दी.

‘‘बाइक क्यों रोक दी. कालेज चलने का इरादा नहीं है क्या?’’

‘‘कालेज भी चलेंगे, पहले एकएक कप कौफी पी लें.’’ कहते हुए वह अनमोल को कौफी शौप में ले गया. कौफी पीने के दौरान दोनों के बीच खामोशी छाई रही. अनमोल जहां डरी हुई थी वहीं योगेश उस से वह सब कहना चाहता था, जो काफी दिनों से उस के दिल में था.

अचानक उस ने अनमोल का हाथ पकड़ा तो वह कांप उठी. उस ने गहरी नजरों से योगेश को देखा और अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. योगेश थोड़ा गंभीर हो कर बोला, ‘‘अनमोल मैं तुम से प्यार करने लगा हूं. तुम्हें हर वक्त आंखों के सामने रखना चाहता हूं.’’

अनमोल खिलखिला कर हंसते हुए बोली, ‘‘लगता है, तुम्हारी शामत आने वाली है. जानते हो मेरे पिता फौजी हैं. उन्हें पता चला तो…’’

‘‘जानता हूं, उन्हें छोड़ो तुम्हें तो पता चल गया न, तुम बताओ क्या करने वाली हो?’’

‘‘मैं क्या करूंगी, तुम तो जानते हो कि लड़कियां अपने दिल की बात आसानी से नहीं कह पातीं.’’ कहते हुए अनमोल मुसकराई तो योगेश के दिल की धड़कनें तेज हो गईं.

उस ने कहा, ‘‘मुझे तुम्हारा जवाब चाहिए था, तुम्हें मेरी मोहब्बत कुबूल है न?’’

अनमोल को योगेश अच्छा लगता था. उस ने सहजभाव से योगेश की मोहब्बत कुबूल कर ली. उस दिन के बाद तो जैसे दोनों की दुनिया ही बदल गई.

एक दिन अनमोल और योगेश ताजमहल देखने गए, जहां उन्हें देर तक पासपास बैठने का मौका मिला. उस दिन दोनों ने एकदूसरे से खुल कर बातें कीं. उस दिन के बाद धीरेधीरे दोनों की मोहब्बत परवान चढ़ने लगी.

दोनों समाज की नजरों से छिप कर मिलने लगे. साथसाथ जीनेमरने की कसमें खा कर दोनों ने तय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए दोनों शादी करेंगे और अपनी अलग दुनिया बसाएंगे.

हालांकि अनमोल जानती थी कि उस का फौजी पिता किसी भी सूरत में उन की मोहब्बत को मंजिल तक नहीं पहुंचने देगा. लेकिन अनमोल और योगेश ने तय कर लिया कि जमाना लाख विरोध करे, लेकिन वे अपनी मोहब्बत के रास्ते पर चल कर अपने परिजनों को यह मानने के लिए मजबूर कर देंगे कि वे एकदूसरे के लिए ही बने हैं.

प्यार में बदली दोस्ती

यह प्रेमी युगल की सोच थी लेकिन मोहब्बत की इस राह पर इतने कांटे थे कि उन के लिए मंजिल तक पहुंचना आसान नहीं था. अनमोल के पिता के भाई गांव के पूर्व प्रधान थे. इस नाते इस परिवार का इलाके में काफी दबदबा था. लेकिन उन दोनों की आशिकी को इस से कोई फर्क नहीं पड़ा था.

उन का मिलनाजुलना चलता रहा. एक दिन किसी ने नरेंद्र को बताया कि उस ने उस की बेटी को राजन के बेटे से बातचीत करते देखा है. यह सुनते ही नरेंद्र का खून गर्म हो गया. वह गुस्से में घर पहुंचा और अपनी पत्नी सरोज से अनमोल के बारे में पूछा कि वह कहां है. पत्नी ने बताया कि अनमोल अभी कालेज से नहीं लौटी है.

‘‘पता है तुम्हारी बेटी कालेज जाने के बहाने क्या गुल खिला रही है?’’ नरेंद्र ने सरोज से कहा, तो वह बोली, ‘‘क्या बात है, अनमोल ने कुछ किया है क्या? वह तो सीधीसादी लड़की है, अपनी पढ़ाई पर ध्यान देती है.’’

‘‘जानता हूं, पर आज पता चला है कि वह राजन के बेटे से दोस्ती बढ़ाए हुए है, जानता हूं कालेज में बच्चे एकदूसरे से बातें करते हैं, लेकिन सोचो बात इस से आगे बढ़ गई तो क्या करेंगे?’’

‘‘कुछ नहीं होगा. तुम चाय पियो वह आती ही होगी. पूछ लेना.’’ कह कर सरोज ने चाय का प्याला नरेंद्र के आगे रख दिया. थोड़ी देर में अनमोल आ गई. पिता को देख कर वह अपने कमरे में जाने लगी तो नरेंद्र ने टोका, ‘‘कहां से आ रही हो?’’

‘‘कालेज से.’’ अनमोल ने जवाब दिया.

‘‘ये योगेश कौन है?’’ नरेंद्र ने पूछा तो अनमोल चौंकने वाले अंदाज में बोली, ‘‘कौन योगेश?’’ अनमोल ने कहा, ‘‘पापा, कालेज में तो कई लड़के पढ़ते हें, मुझे हर किसी का नाम थोड़े ही पता है.’’

नरेंद्र समझ गया कि लड़की उतनी भी सीधी नहीं है, जितनी उसे समझा जाता है. लड़की पर ध्यान देना जरूरी है.

अपने कमरे में जा कर अनमोल ने किताबें मेज पर पटकीं और सोचने लगी कि जरूर पिता को शक हो गया है. अब सतर्क रहना होगा. वह काफी तनाव में आ गई.

अनमोल जानती थी कि जाति एक होने के बावजूद उस के मांबाप योगेश को कभी नहीं अपनाएंगे. वजह यह कि हैसियत में उस का परिवार योगेश के परिवार के मुकाबले काफी संपन्न था. देर रात फोन कर के उस ने यह बात योगेश को बता दी. योगेश ने कहा, ‘‘ठीक है, आगे क्या करना है देखेंगे.’’

  • निगाह रखी जाने लगी अनमोल पर

दूसरी ओर नरेंद्र निश्चिंत नहीं था. अगले कुछ दिनों में उसे पता चल गया कि लड़की गलत राह पर जा रही है. इसी के मद्देनजर उस ने सरोज से कहा, ‘‘अनमोल अब घर रह कर ही पढ़ाई करेगी. इम्तिहान आएंगे तो देखेंगे क्या करना है.’’

अनमोल ने पिता की बात का विरोध करते हुए कहा, ‘‘लेकिन मैं ने किया क्या है पापा?’’

‘‘तुम अच्छी तरह जानती हो कि तुम ने क्या किया है. इस से पहले कि तुम समाज में हमारा सिर नीचा करो, मैं तुम्हारे लिए रिश्ता देख कर तुम्हारी शादी कर दूंगा.’’

लेकिन इस से पहले कि नरेंद्र अपने सिर से बोझ उतार पाता, अनमोल और योगेश ने घर मे भाग कर अपनी अलग दुनिया बसाने का फैसला कर लिया. एक दिन रात में जब सब सो रहे थे, अनमोल ने घर छोड़ दिया और योगेश के साथ चली गई. सुबह घर वालों ने देखा तो सन्न रह गए. बाहर वाला दरवाजा खुला था और अनमोल घर से लापता थी.

इस के बाद तमाम जगहों पर फोन किए गए लेकिन अनमोल का कहीं पता नहीं चला. कोई रास्ता न देख नरेंद्र अपने घर वालों के साथ योगेश के पिता राजन से मिला. उन की बात सुन कर राजन हैरान रह गया उसे कुछ भी पता नहीं था. राजन ने विश्वास दिलाया कि वह उन की बेटी को सही सलामत वापस लाएगा.

राजन जानता था कि बेटे की ये हरकत उस के परिवार को मुसीबत में डाल सकती है. उस ने अपनी रिश्तेदारियों में फोन मिलाए तो पता चला कि योगेश और अनमोल उस के एक करीबी रिश्तेदार के घर पर मौजूद हैं. उस ने अपने उस रिश्तेदार को सारी बात बता कर कहा कि वह तुरंत दोनों को साथ ले कर अटूस आ जाए.

ऐसा ही हुआ. अनमोल अपने मांबाप के घर आ गई. वह समझ गई थी कि योगेश के साथ अपनी दुनिया बसाने का सपना अब कभी पूरा नहीं होगा. अब उस पर बंदिशें भी बढ़ गईं. साथ ही नरेंद्र अनमोल के लिए लड़का भी तलाशने लगा. आखिर एक रिश्ता मिल ही गया. अनमोल का रिश्ता गाजियाबाद के भोपुरा निवासी नेत्रपाल से तय कर दिया गया.

नेत्रपाल एक दवा कंपनी का प्रतिनिधि था. 4 साल पहले अनमोल की शादी नेत्रपाल के साथ हो गई. वह रोतीबिलखती खाक हुए अपने प्यार के सपनों की राख समेटे सुसराल चली गई.

  • अनमोल नहीं भूली अपने प्यार को

मांबाप ने सोचा कि चलो सब कुछ ठीक हो गया. लेकिन यह उन की भूल थी. 3 साल के प्रेमसंबंधों को भला प्रेमी प्रेमिका कैसे भूल सकते थे. समाज ने उन्हें जबरन अलग किया था. सीधीसादी दिखने वाली अनमोल अब विद्रोही हो गई थी. ससुराल में उस का मन नहीं लगता था. उसे अपनी स्थिति एक कैदी जैसी लगती थी. मौका पा कर वह योगेश से फोन पर बात कर लेती थी.

अपने काम में व्यस्त रहने वाला नेत्रपाल इस सब से बेखबर था. इसी बीच अनमोल गर्भवती हो गई, लेकिन वह अपने पति के बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार नहीं थी. उस ने एक दिन नेत्रपाल से कहा कि अभी वह बच्चे को जन्म देने की स्थिति में नहीं है. पत्नी बच्चे को जन्म देने की इच्छुक नहीं थी. न चाहते हुए भी नेत्रपाल मान गया. उस ने पत्नी का गर्भपात करा दिया.

अनमोल की शादी के बाद घर वालों के दबाव में योगेश भी एक अन्य लड़की से शादी करने को तैयार हो गया. उस की शादी वंदना के साथ हो गई. वंदना को इस बात की भनक तक नहीं थी कि उस का पति किसी दूसरी लड़की से प्यार करता था और उसे ले कर भाग भी गया था. वह खामोशी के साथ पत्नी धर्म निभाती रही. बाद में वह एक बच्चे की मां भी बनी.

इसी बीच कंपनी ने नेत्रपाल को आगरा क्षेत्र का काम सौंप दिया. नेत्रपाल ने थाना सिकंदरा क्षेत्र की कालोनी शास्त्रीपुरम में किराए का मकान ले लिया और वहीं रहते दवा कंपनी का काम करने लगा. वह सुबह घर से निकलता और शाम को लौटता. अपनी पत्नी के प्यार से वह बेखबर था. उसे नहीं मालूम था कि पत्नी शादी से पहले किसी से प्यार करती थी.

शादी के बाद अनमोल जब तब पति के साथ मायके आती और उस के साथ ही वापस चली जाती. योगेश से मिलने का मौका ही नहीं मिलता था. लेकिन अब शास्त्रीपुरम में पति के काम पर चले जाने के बाद वह घर में अकेली रह जाती थी.

उस का अकेलापन एक ऐसे गुनाह को जन्म देगा, जिस में पूरा परिवार तबाह हो जाएगा, यह अनमोल नहीं समझ पाई. उस ने आगरा आ जाने की खबर अपने प्रेमी योगेश को फोन पर दे दी और अपना पता भी बता दिया. उस ने योगेश से मिलने की इच्छा भी व्यक्त की.

प्रेमिका के आमंत्रण ने योगेश में जोश भर दिया. वह भूल गया कि अब उस की भी शादी हो चुकी है और वह एक बच्ची का पिता है. उस ने तय कर लिया कि वह अपनी प्रेमिका से जरूर मिलेगा.

नरेंद्र ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि बेटी फिर से कोई गुल खिलाने वाली है. बेटा जूनियर डाक्टर था और बेटी की उस ने एक अच्छे परिवार में शादी कर दी थी. जबकि अनमोल इसी सब का फायदा उठाना चाहती थी. एक दिन दोपहर को योगेश अनमोल के पास जा पहुंचा.

  • दोनों ने आगापीछा नहीं सोचा

लंबे अलगाव के बाद अनमोल उस के आगोश में सिमट गई. योगेश ने अनमोल को समझाने की कोशिश की कि अब कुछ नहीं हो सकता. वह एक जिम्मेदार पिता और पति बनना चाहता है. उस ने यह बात कही जरूर लेकिन चाहता वह भी वही था जो अनमोल चाहती थी. नतीजा यह हुआ कि दोनों समाज की आंखों में धूल झोंक कर एक ऐसे रिश्ते को निभाने लगे जिस के कुछ मायने नहीं थे.

अनमोल और योगेश जिस रास्ते पर चल पड़े थे, वह फिसलन भरा था, जो धीरेधीरे दलदल बन गया. ऐसी दलदल जहां से निकल पाना मुश्किल ही नहीं, असंभव था. अनमोल का दिल दिमाग बेकाबू था. वह चाहती थी कि वह नेत्रपाल के साथ वैवाहिक बंधन से मुक्त हो कर एक बार फिर आजाद जिंदगी जिए और योगेश के साथ अपनी दुनिया बसाए.

यह अलग बात थी कि योगेश के पास अपनी निजी आय का कोई साधन नहीं था और न ही वह अपनी पत्नी और बेटी की जिम्मेदारियों से मुक्त हो सकता था. योगेश जानता था कि वह अपनी बेटी और पत्नी का गुनहगार है, लेकिन यह नहीं जानता था कि यह गुनाह उस की जिंदगी ही छीन लेगा.

18 अगस्त, 2018 की रात करीब साढ़े 8 बजे एक युवती बदहवास सी थाना सिकंदरा पहुंची. उस से थानाप्रभारी अजय कौशल से कहा, ‘‘सर, जल्दी चलिए, वो लोग उसे कार में कहीं ले गए हैं और उसे मार डालेंगे.’’ युवती थाना इंचार्ज को समझा नहीं पा रही थी कि कौन किसे मार डालेगा. अजय कौशल ने संतरी को पानी लाने को कहा. युवती ने पानी पी लिया तो अजय कौशल ने पूछा, ‘‘हां, अब बताओ क्या बात है?’’

इस के बाद युवती ने जो कुछ बताया उसे सुन कर थानाप्रभारी के होश उड़ गए. उन्होंने ड्राइवर से तुरंत गाड़ी तैयार करने को कहा और पुलिस टीम के साथ उस युवती को ले कर शास्त्रीपुरम पहुंचे. तब तक रात के साढ़े 9 बज चुके थे. इलाके में गहरा सन्नाटा था. आसपास के मकानों के दरवाजे बंद थे.

अनमोल ने दरवाजा खोला तो अजय कौशल ने अंदर जा कर देखा. कमरे का फर्श गीला था. अनमोल ने बताया कि फर्श का खून उसी ने साफ किया है. अब तक वह सामान्य हो चुकी थी.

उस ने थानाप्रभारी को फिर पूरी कहानी सुनाई कि कालेज के समय से वह योगेश से प्यार करती थी. दोनों शादी भी करना चाहते थे, लेकिन समाज के आगे उन की एक नहीं चली.

योगेश की भी शादी हो चुकी थी. दोनों का मिलनाजुलना मुश्किल हो गया था, पर जब नेत्रपाल का तबादला आगरा हो गया तो हम ने शास्त्रीपुरम में किराए का मकान ले लिया. यहां आ कर योगेश से मिलने का रास्ता भी साफ हो गया था. जब भी मौका मिलता हम मिल लेते थे. नेत्रपाल दोपहर में कम ही आता था. जब उसे आना होता था तो वह फोन करता था.

आगे की पूछताछ में जो बातें पता चलीं, उन के अनुसार, 19 अगस्त, 2018 को अनमोल ने योगेश के वाट्सऐप पर मैसेज भेजा कि वह आ जाए. योगेश अपने लिए नौकरी ढूंढ रहा था. नौकरी के लिए उस ने कई फार्म भी भरे थे. वह दोपहर को घर से यह कह कर निकला कि फार्म भरने आगरा जा रहा है. लेकिन वह गया तो वापस नहीं लौटा उस के घर वाले परेशान थे. बहरहाल, अनमोल ने पुलिस को पूरी बात बता दी. उसी के आधार पर पुलिस ने छानबीन की.

  • आशिक की मौत

हालांकि अनमोल के अनुसार उस ने फर्श से खून साफ कर दिया था, लेकिन दीवारों पर खून के धब्बे थे. पुलिस की क्राइम टीम ने उन धब्बों को उठा लिया.

अनमोल ने आगे जो बताया उस के अनुसार क्राइम की तसवीर कुछ इस तरह बनी.

अनमोल ने योगेश को घर बुला लिया था. जब दोनों प्यार के क्षणों में डूबे थे, तभी नेत्रपाल आ गया. दरअसल उसे पिछले कुछ दिनों से पत्नी पर शक हो गया था. पति को आया देख अनमोल घबरा गई. उस ने योगेश को स्टोररूम में छिपा दिया. नेत्रपाल ने कई बार घंटी बजाई, लेकिन अनमोल ने दरवाजा नहीं खोला. वह काफी घबराई हुई थी, कपड़े अस्तव्यस्त थे.

कुछ देर बाद दरवाजा खुला तो नेत्रपाल ने पूछा, ‘‘दरवाजा खोलने में देर क्यों हुई?’’

‘‘मैं नहा रही थी.’’ अनमोल ने कहा.

‘‘ऐसा लग तो नहीं रहा.’’ नेत्रपाल ने कहा. तभी उस की नजर स्टोर के अधखुले दरवाजे पर पड़ी तो उस का शक बढ़ गया. उस ने स्टोर का दरवाजा खोलने की कोशिश की तो अंदर से जोर लगा कर किसी ने दरवाजा खोलने नहीं दिया. नेत्रपाल समझ गया कि उस का शक सही है.

तभी अनमोल ने कहा, ‘‘उसे छोड़ दो प्लीज, उसे जाने दो वह निर्दोष है. मैं ने ही उसे बुलाया था.’’ गुस्से में भरे नेत्रपाल ने अपने ससुर नरेंद्र को फोन पर सारी बात बताई. कुछ ही देर में नरेंद्र और उस के भाई का बेटा वहां पहुंच गए. इस के बाद योगेश को स्टोर से बाहर निकाला गया. तीनों सरिया और लोहे की रौड से योगेश पर टूट पड़े. अनमोल ने उसे बचाने की कोशिश की तो उस की भी पिटाई की गई. तीनों ने पिटाई से खूनोंखून हुए योगेश को देखा तो उन के होश उड़ गए. वह बेहोश हो गया था. इस बीच अनमोल को एक कमरे में बंद कर दिया गया था. उसे यह पता नहीं था कि योगेश मर गया था या जिंदा था.

8 बजे के करीब तीनों ने जब योगेश को कमरे में डाला तब वह मर चुका था. अब उन्हें पुलिस का डर सताने लगा था. कमरे का दरवाजा खोल कर अनमोल को बाहर निकाला और उस से चुप रहने को कहा गया. फिर वे चले गए. अनमोल ने कमरे से बाहर आ कर खून सना फर्श साफ किया और थाना सिकंदरा पहुंच गई.

उधर राजन और उस का बेटा शिशुपाल योगेश की तलाश कर रहे थे. दूसरी ओर पुलिस को योगेश की बुलेट मोटरसाइकिल पड़ोस के एक घर के सामने मिल गई. रात भर पुलिस तीनों को आगरा की सड़कों पर तलाशती रही. आखिर अगले दिन दोपहर को पुलिस ने एक मुखबिर की सूचना पर नेत्रपाल और नरेंद्र को दबोच लिया. पुलिस ने राजन को भी घटना को सूचना दे दी थी.

आरोपियों ने बताया कि उन्होंने योगेश को मारापीटा और बेहोशी की हालत में उसे जऊपुरा के जंगल में फेंक आए. उन की निशानदेही पर पुलिस ने योगेश का शव जऊपुरा के जंगल से बरामद कर लिया. आरोपियों ने कत्ल में इस्तेमाल सरिया और लोहे की रौड भी बरामद करा दी.

पुलिस ने तीसरे अभियुक्त अनमोल के चचेरे भाई को भी गिरफ्तार कर लिया. बाद में तीनों को अदालत में पेश किया गया. उन के साथ अनमोल को भी अदालत में पेश किया. उस पर सबूत नष्ट करने का आरोप था. इन सभी के खिलाफ राजन ने भादंवि की धारा 302, 201, 364, 34 के अंतर्गत मुकदमा दर्ज करा दिया था. अदालत ने आरोपियों को जेल भेज दिया.

अपनेअपने जीवनसाथियों से असंतुष्ट योगेश और अनमोल ने विवाह के बाद भी टूटे सपनों को फिर से संजोने का प्रयास किया, जो गलत था. इस का नतीजा भी गलत ही निकला. इस चक्कर में कई जिंदगियां बरबाद हो गई.     ?

 -कथा में सरोज नाम बदला हुआ है

Father’s Day 2023: पिता की भूमिका मां से कम नहीं

समाज बदल रहा है, महिलाएं बाहर निकल पुरुषों से कंधे से कंधा मिला रही हैं. ऐसे में पुरुषों को महज वीर्यदान और संसाधन जुटानेभर तक सीमित रखना ठीक नहीं है, उन्हें पितृत्व का एहसास कराया जाना भी जरूरी है.

भारतीय क्रिकेटर विराट कोहली पहली बार पिता बने तो ऐसे में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से ब्रेक लेने का फैसला किया. इस का समर्थन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने भी किया और इस के लिए उस ने उन्हें पितृत्व अवकाश भी दिया. ऐसे ही न्यूजीलैंड टीम के क्रिकेटर केन विलियमसन ने भी पहली बार पिता बनने पर उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से ब्रेक लेने का फैसला किया.

एक गर्भवती औरत बच्चा होने के पहले ही उस के बारे में सोचना शुरू कर देती है. बच्चा होने के बाद उस की चिंता और बढ़ जाती है कि सब कैसे हैंडल करेगी. ऐसे में अगर पिता भी छुट्टियां ले ले और अपनी पत्नी के साथ रहे तो मां की चिंता काफी हद तक कम हो जाती है.

ऐक्टर इमरान खान ने भी कुछ ऐसा ही किया था. जब उन की बेटी पैदा होने वाली थी तब उन्होंने भी कुछ समय के लिए फिल्मों से अवकाश ले लिया था. इमरान के मुताबिक, ऐसी चीजें आप की जिंदगी में एक या दो बार होती हैं. ऐसे में किसी भी कीमत पर ये पल गंवाने नहीं चाहिए.

उन का कहना था कि एक पिता होने के नाते उन्होंने महसूस किया कि बेटी को ले कर वे हमेशा नर्वस रहते थे कि क्या मैं सही कर रहा हूं? क्या मैं गलत कर रहा हूं? क्या मैं ने बच्चे को ठीक से खिलाया? कहीं वह भूखा तो नहीं रह गया? कहीं मैं ने उसे ओवरइटिंग तो नहीं करवा दिया? ऐसे तमाम सवाल उन के मन में आते रहते थे. उन्होंने शिद्दत से महसूस किया कि बच्चा होने के समय एक पति को अपनी पत्नी के पास होना चाहिए. बच्चे पैदा करना एक मां को नए जीवन मिलने जैसा होता है.

रितेश देशमुख की पत्नी जेनेलिया डिसूजा का कहना है, ‘‘रितेश ग्रेट फादर हैं. वे अपने बेटे के डायपर तक चेंज करते थे. उसे नहलाते थे. यहां तक कि रात में उठ कर रोते बच्चे को हाथों में ?ाला ?ालाते थे.’’

यह सही भी है कि अपने बच्चे के प्रति जितनी जिम्मेदारी एक मां की होती है, उतनी पिता की भी होनी चाहिए. फेसबुक के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने भी अपनी बेटी के जन्म के बाद 2 महीने का पितृत्व अवकाश लिया था और अपनी नवजात बच्ची के साथ खुशनुमा पल बिताए थे.

लेकिन क्या एक आम भारतीय पिता ऐसा करने की सोच सकता है? बिल्कुल नहीं, क्योंकि एक बच्चे को पालने की भूमिका तो मां ही अदा करती है, पिता तो परिवार और बच्चों को सुखसुविधा मुहैया कराता है. यह सोच पूरे देश में व्याप्त है कि घरपरिवार और बच्चों की देखभाल तो घर की औरतें ही कर सकती हैं. पुरुषों का काम तो बाहर जा कर कमाना और महत्त्वपूर्ण फैसले लेना है. लेकिन यह मिथ्या है कि एक पिता अपने नवजात बच्चे की उस तरह से देखभाल नहीं कर सकता, जैसे एक मां.

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया रिवर साइड के मनोवैज्ञानिकों ने 18 हजार से ज्यादा लोगों पर रिसर्च की. रिसर्च के मुताबिक, मां की तुलना में पिता बच्चे की देखभाल न केवल बेहतर ढंग से कर पाते हैं, बल्कि वे बच्चों की देखभाल को ले कर अधिक सक्रिय भी होते हैं. यह शोध बतलाता है कि एक पिता भी मां की तरह नवजात बच्चे की देखभाल कर सकता है.

इसराईल के शोधकर्ता रूथफील्डमेन ने अपने शोध में यह पाया कि बच्चे की देखभाल के समय जिस तरह से हार्मोनल बदलाव मां में होते हैं, वैसे पिता में भी देखने को मिले हैं. जब उन का मस्तिष्क यह बात स्वीकार कर लेता है कि बच्चा संभालने का दायित्व उन पर है तो बच्चे के साथ उन का लगाव एक मां जैसा ही होने लगता है.

बच्चे और पिता की ऐसी रिलेशनशिप को ले कर हमेशा से ही रिसर्च होती रही हैं. रिसर्च के अनुसार, पिता और बच्चे की रिलेशनशिप बहुत खास होती है. बच्चे को पालना मांपिता दोनों की जिम्मेदारी होती है. इस से बच्चे के विकास में अच्छा प्रभाव पड़ता है. लेकिन पेरैंटिंग में पिता की भूमिका खास होती है. साइंस भी इस बात की पुष्टि करती है कि जो पिता मां की तरह बच्चे के सारे काम करते हैं, वे आगे चल कर सोशल लाइफ में सक्सैसफुल भूमिका निभाते हैं.

पुराने जमाने में जब महिलाएं मां बनने वाली होती थीं तब उन्हें मायके भेज दिया जाता था. एक प्रथा थी, इस में पिता की कोई भूमिका नहीं रहती. पहले के जमाने में घर में ही दाई के हाथों बच्चे पैदा करवाए जाते थे. कम उम्र में मां बनने के कारण कई बार प्रसूति के दौरान ही महिलाओं की मौत भी हो जाती थी. लेकिन आज ऐसा नहीं है. फिर भी बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी औरतों की ही मानी जाती है.

आज भी समाज के बड़े हिस्से में यह सोच दिखती है कि पिता को बच्चे के पास रहने की क्या जरूरत है? हमारे देश में पितृत्व अवकाश परंपरागत रूप से स्वीकार्य नहीं और न ही इस की आवश्यकता सम?ा जाती है. यह स्पष्ट है कि ऐसा न मानने का कोई तार्किक या वैज्ञानिक कारण नहीं है, सिवा उन सामाजिक व परंपरागत मान्यताओं के जो पुरुषों को यह दायित्व स्वीकार नहीं करने देती हैं.

बच्चों के लिए काम करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ के आंकड़े भी यही दिखाते हैं. यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में दोतिहाई पिता ऐसे हैं जिन्हें बच्चा होने पर एक दिन भी छुट्टी नहीं मिलती. एक साल से कम उम्र के करीब 9 करोड़ बच्चे ऐसे हैं जिन के पिता को ‘पेड लीव’ यानी काम से बिना तनख्वाह कटे छुट्टी नहीं मिली.

ये आंकड़े 92 देशों के हैं. जहां बच्चा होने पर पुरुषों के लिए ‘पेड लीव’ का कोई प्रावधान नहीं है. यूनिसेफ ने इन देशों से गुजारिश की है कि वे परिवार के हक में नीतियां बनाएं.

यूनिसेफ के कार्यकारी निर्देशक हेंरिएटा का कहना है कि शुरू में ही मातापिता का साथ सकारात्मक और सार्थक संपर्क जीवनभर के लिए बच्चों के दिमागी विकास के लिए महत्त्वपूर्ण होता है. इस से वे ज्यादा स्वस्थ और सुखी रह पाते हैं और उन के सीखने की क्षमता भी बढ़ती है.

लेकिन सरकार मातृत्व अवकाश की तरह पितृत्व अवकाश जरूरी नहीं सम?ाती. अगर महिलाओं के लिए छुट्टी के प्रावधान हैं तो पुरुषों को पितृत्व अवकाश न देना एक तरह से जैंडर भेदभाव को बढ़ावा देना है.

बच्चे की देखभाल करना बेशक मां का काम है लेकिन पिता को इस जिम्मेदारी से दूर रखना भी तो गलत है. 4 साल पहले जब मेनका गांधी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय का पदभार संभाल रही थीं तब उन्होंने पितृत्व अवकाश का मजाक उड़ाते हुए कहा था, ‘‘भारतीय पुरुषों के लिए यह छुट्टी मनाने का समय होगा.’’

अगर हम वास्तव में स्त्रीपुरुष समानता चाहते हैं तो हमें यह सोच बदलनी होगी. अभी तक हम यही मान कर चलते आए हैं कि बच्चों को पालना प्राकृतिक रूप से औरतों का काम है और पुरुषों का काम उन्हें इस की सुविधा उपलब्ध कराना है.

आइसलैंड जैसे प्रगतिशील देश इसे बदल रहे हैं. वहां दोनों अभिभावकों को समानरूप से 3 महीने की छुट्टी दी जाती है. इस के अलावा दोनों में से किसी एक को 3 महीने की अतिरिक्त छुट्टी भी मिल सकती है. यह छुट्टी मातापिता दोनों में से कौन लेंगे, मिल कर तय करते हैं. अभिभावकों को बराबर छुट्टियां मिलने से बच्चे का पालनपोषण सही तरीके से हो सकता है.

बहुत जगहों पर बच्चों, बूढ़ों की देखभाल और घर के सारे कामकाज औरतों के ऊपर डाल दिए जाते हैं. लेकिन फिर भी इन कामों को वह दर्जा और सम्मान नहीं मिल पाता है जो बाहर जा कर किए जाने वाले कामों को मिलता है.

मैकिंजी ग्लोबल इंस्टिट्यूट ने अपने एक अध्ययन में पाया था कि भारत में महिलाएं, पुरुषों की तुलना में 10 गुना ज्यादा अवैतनिक काम करती हैं. अगर पुरुषों को भी पितृत्व अवकाश मिलता है तो इस से एक मां को तो भावनात्मक संबल मिलेगा ही, साथ में पुरुषों में सौम्यता और विनम्रता आएगी. पुरुष केवल साधन या सुविधाएं प्रदान करने भर को नहीं रह जाएंगे, बल्कि वे एक जिम्मेदार पिता और पति भी बनेंगे.

वैसे कई मामलों में खुद महिलाएं भी मातृत्व अवकाश लेना नहीं चाहतीं. उन्हें लगता है कि कहीं उस वजह से उन्हें कम पेशेवर या कम स्पर्धी न मान लिया जाए या मातृत्व अवकाश के कारण कहीं ऐसा न सोचने लगें कि उस के बिना काम चल सकता है. कई जगह तो नौकरी छूट जाने का भी डर बना रहता है. लेकिन अगर पतिपत्नी दोनों समान छुट्टियां लें तो यह डर खत्म हो सकता है.

एक भ्रामक धारणा यह है कि लड़कियों को जन्म से ही बच्चे पालना आता है. लड़कियां जब मां बनती  हैं और चीजें उन के सिर पर पड़ती हैं तब वे सारी चीजें सीख जाती हैं. लेकिन बच्चे के जन्म के समय मां भी उतनी ही अनपढ़ और नासम?ा होती है जितना पिता.

वैसे धीरेधीरे पितृत्व अवकाश को ले कर निजी क्षेत्र में भी जागरूकता बढ़ रही है. कुछ साल पहले खबर आई थी कि दिल्ली के एक निजी स्कूल के शिक्षक ने पितृत्व अवकाश की अपनी कानूनी लड़ाई जीत ली थी. इस शिक्षक ने अपने बच्चे पैदा होने पर स्कूल से 15 दिनों की छुट्टी ली थी. लेकिन काम पर लौटने पर पता चला कि उन का 15 दिनों का वेतन काट लिया गया.

पिछले साल ही फूड एग्रीगेटर कंपनी जोमैटो ने पितृत्व अवकाश के मामले में नई पहल की थी. उस ने बच्चे का पिता बनने वालों के लिए 26 दिन पेड लीव देने का निर्णय लिया था. दिलचस्प था कि कंपनी के मुताबिक, यह पितृत्व अवकाश सैरोगेसी, बच्चे गोद लेने और यहां तक कि समलैंगिक शादियों के मामले में भी कायम रहेगा.

अब जमाना पहले जैसा नहीं रह गया, जहां भरापूरा परिवार होता था. जन्म के बाद नवजात बच्चे के पालनपोषण के लिए दादी, चाची, बूआ हुआ करती थीं तो मां को उतनी समस्या नहीं होती थी. आज एकल फैमिली का जमाना है, जहां सिर्फ पति और पत्नी होते हैं और दोनों कामकाजी. इसलिए अब समय आ गया है कि मातृत्व अवकाश की तरह पितृत्व अवकाश के बारे में भी सोचा जाना चाहिए.

पिता को भी उतनी ही छुट्टियां मिलें जितनी मां को मिलती हैं क्योंकि बच्चे को 9 महीने गर्भ में रखने, प्रसव और स्तनपान के अलावा भी असंख्य ऐसे काम होते हैं. अभी तक ज्यादातर पिता सिर्फ वीर्यदान और संसाधन जुटाने में ही अपनी जिम्मेदारी निभाते आए हैं. जबकि बदलते वैश्विक सामाजिक परिवेश में मांएं मातृत्व की जिम्मेदारी निभाने के साथसाथ संसाधन जुटाने में भी अहम भूमिका निभा रही हैं. ऐसे में पिता का भी दायित्व बनता है कि वे भी बच्चों के लालनपालन में अपनी भूमिका तय करें. समाज का भी कर्तव्य बनता है कि इस दायित्व को निभाने में उन की मदद करे.

दुनियाभर में 109 देश ऐसे हैं जहां पैटर्निटी लीव यानी बच्चा होने पर पुरुषों को छुट्टी दी जाती है. जरमनी इन में सब से आगे है. हालांकि, छुट्टी मिलने पर पिताओं को पूरा वेतन नहीं मिलता. कुल 14 महीने की छुट्टी में मातापिता आपस में मिल कर निर्धारित कर सकते हैं कि कौन कितना वक्त दफ्तर से दूर रहना चाहता है.

इस के बाद फिनलैंड, आइसलैंड, नौर्वे, दक्षिण कोरिया और स्वीडन का नंबर आता है. इस के विपरीत अमेरिका में न ही महिलाओं को पेड लीव मिलती है और न ही पुरुषों को. नौकरी से छुट्टी लेने पर मातापिता को वेतन नहीं दिया जाता.

भारत में महिलाओं को 12 हफ्ते की छुट्टी मिला करती थी जिसे साल 2017 में आए मैटरनिटी अमैंडमैंट बिल के बाद इसे बढ़ा कर 26 हफ्ते कर दिया गया है. इस के अलावा महिलाओं को घर से काम करने का विकल्प भी दिया गया है. लेकिन पुरुषों के लिए ऐसी कोई नीति अब तक देश में नहीं बनाई गई है.

Father’s Day 2023: डियर पापा- क्यों पिता से नफरत करती थी श्रेया?

शामके 7 बज चुके थे. सुजौय किसी भी वक्त औफिस से घर आते ही होंगे. मैं ने जल्दी से चूल्हे पर चाय चढ़ाई और दरवाजे की घंटी बजने का इंतजार करने लगी.

ज्यों ही घंटी की आवाज घर में गूंजी मेरे दोनों नन्हे शैतान श्यामली और श्रेयस उछलतेकूदते अपने कमरे से बाहर आ गए और दरवाजे की कुंडी खोलते ही पापापापा चिल्लाते हुए सुजौय की टांगों से लिपट गए.

सुजौय ने मुसकरा कर अपना ब्रीफकेस मुझे थमा दिया और दोनों बच्चों को बांहों में भर कर भीतर आ गए. तीनों के कहकहे सुन कर दिल को सुकून सा मिल रहा था. सुजौय को चाय दे कर मैं भी वहीं उन तीनों के पास बैठ गई. दोनों बच्चे बड़े प्यार से अपने पापा को दिन भर की शरारतें और किस्से सुना रहे थे. सुजौय भी बड़े गर्व से चाय पीते हुए उन दोनों की बातें सुन रहे थे. अपने पापा का पूरा ध्यान खुद पर पा कर बच्चों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.

‘‘पापा, मैं और श्रेयस एक बहुत सुंदर ड्राइंग बना रहे हैं. उसे पूरा कर के आप को दिखाते हैं,’’ कह कर श्यामली ने अपने भाई का हाथ पकड़ा और दोनों भाग कर अपने कमरे में चले गए.

‘‘क्या सोच रही हो मैडम?’’

‘‘कुछ नहीं. आप हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाएं. तब तक मैं खाना गरम कर लेती हूं,’’ सुजौय के टोकने पर मैं ने मुसकरा कर जवाब दिया और फिर उठ कर रसोई की तरफ चल दी.

खाने की मेज पर भी दोनों बच्चे चहकते हुए अपने पापा को न जाने कौनकौन से किस्से सुना रहे थे. खाने के बाद कुछ देर तक सुजौय और मेरे साथ खेल कर बच्चे थक कर सो गए. सारा काम निबटा कपड़े बदलने के बाद जब मैं कमरे में पहुंची तो सुजौय पहले से ही पलंग पर लेटे हुए एकटक छत को निहार रहे थे. बत्ती बुझा कर मैं भी पलंग पर जा कर लेट गई और आंखें बंद कर के सोने की कोशिश करने लगी.

थोड़ी देर बाद सुजौय ने धीमे स्वर में पूछा, ‘‘श्रेया, नींद नहीं आ रही है क्या?’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने गहरी सांस भर कर छोड़ते हुए जवाब दिया.

‘‘कोई टैंशन है?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘श्यामली बता रही थी आज उस की नानी का फोन आया था.’’

‘‘क्या कहा मां ने? कैसी हैं वे?’’

‘‘ठीक हैं. हम सब का कुशलक्षेम पूछ रही थीं.’’

‘‘और साकेत कैसा है? उस की परीक्षा कैसी हुई?’’

‘‘वह भी ठीक है. अच्छी हुई.’’

‘‘सिर्फ इतनी ही बात हुई?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो फिर इतनी खोई हुई, उदास सी क्यों हो?’’

मेरे कोई जवाब न देने पर सुजौय ने मुझे आगोश में भर लिया और फिर मेरा सिर सहलाने लगे. अचानक हुई प्रेम और अपनेपन की अनुभूति से मेरी आंखों से आंसू बह निकले. मैं कस कर सुजौय से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी. सुजौय ने मुझे जी भर कर रोने दिया.

कुछ देर बाद जब आंसू थमे तो मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘कल पापा की बरसी है. मां ने हमें घर बुलाया है.’’

‘‘और तुम हमेशा की तरह वहां जाना नहीं चाहतीं,’’ सुजौय ने कहा.

‘‘आप को सब पता तो है. मैं वहां क्यों नहीं जाना चाहती हूं. मां भी सब जानती हैं. फिर भी हर साल मुझ से घर आने की जिद करती हैं,’’ मैं ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘श्रेया, तुम जानती हो न मां बस पूरे परिवार को एकसाथ खुश देखना चाहती हैं, इसलिए हर बार तुम्हारा जवाब जानते हुए भी तुम्हें पापा की बरसी पर घर आने के लिए कहती हैं.’’

‘‘मैं जानती हूं. मैं मां को दुख नहीं पहुंचाना चाहती हूं. उन्हें दुखी देख कर मुझे भी बहुत दुख होता है. अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं?’’ मैं ने निराश स्वर में पूछा.

‘‘अपने पापा को माफ कर दो.’’

इस से पहले कि मैं विरोध कर पाती सुजौय फिर बोल पड़े, ‘‘देखो श्रेया मैं तुम्हारी हर तकलीफ समझता हूं और तुम्हारे हर फैसले का सम्मान भी करता हूं पर इस तरह दिल में गुस्सा और दर्द दबा कर रखने में किसी का भला नहीं है. तुम अनजाने में ही अपने साथ अपनी मां को भी तकलीफ दे रही हो. अपने अंदर से सारा गुस्सा, सारा गुबार निकाल दो और अपने पापा को माफ कर दो.’’

मुझे समझा कर कुछ देर बाद सुजौय तो सो गए पर मेरी आंखों में नींद का नामोनिशान तक न था. बीते कल की यादें खुली किताब के पन्नों की तरह मेरी आंखों के सामने खुलती चली जा रही थीं…

छोटा सा परिवार था हमारा- पापा, मम्मी, मैं और साकेत. पापा का अच्छाखासा कारोबार था. घर में किसी सुखसुविधा की कोई कमी नहीं थी. बाहर से देखने पर सब कुछ ठीक ही लगता था. पर मेरी मां की आंखों में हमेशा एक उदासी, एक डर नजर आता था. शुरू में मैं मां के आंसुओं की वजह नहीं समझ पाती थी, पर जैसेजैसे बड़ी होती गई वजह भी समझ आती गई.

वजह थे मेरे पापा जो अकसर छोटीछोटी बातों पर या फिर बिना किसी बात के मां पर हाथ उठाते थे. मुझे कभी पापा का बरताव समझ नहीं आया. जब प्यार जताते थे तो इतना कि जिस की कोई सीमा नहीं होती थी और जब गुस्सा करते थे तो वह भी इतना कि जिस की कोई हद नहीं होती थी.

पहले पापा के गुस्से का शिकार सिर्फ मां होती थीं, पर वक्त बीतने के साथ उन के गुस्से की चपेट में आने वाले लोगों का दायरा भी बढ़ता गया. पापा ने मुझ पर भी हाथ उठाना शुरू कर दिया था.

जब पापा ने पहली बार मुझ पर हाथ उठाया था तब मैं ने 2 दिनों तक बुखार के कारण आंखें नहीं खोली थीं. जब पापा मुझे मारते थे तो मां मुझे बचाने के लिए बीच में आ जाती थीं. न जाने कितनी बार मां ने हम दोनों के हिस्से की मार अकेले खाई होगी. छोटी उम्र में इतनी मार खा कर मेरे शरीर पर से कई दिनों तक मार के निशान नहीं जाते थे.

स्कूल जाने पर ऐसा महसूस होता था मानो जैसे मेरे सहपाठी मेरी ओर इशारे कर के मेरा मजाक उड़ा रहे हैं. टीचर निशानों के बारे में पूछती थीं तो झूठ बोलना पड़ता था. न जाने कितनी बार साइकिल से गिरने का बहाना बनाया होगा. अब तो गिनती भी याद नहीं है.

शुरूशुरू में मैं मार खाते वक्त बहुत रोती थी, पर वक्त के साथ मेरा रोना भी कम होता गया और कुछ वक्त बाद तो एहसास होना ही बिलकुल बंद सा हो गया था. मां अब बहुत बीमार रहने लगी थीं. मेरी परी, सुंदर मां निढाल सी रहती थीं.

डाक्टरों को भले ही मां की बीमारी की वजह पता न चल पाई हो पर मैं जानती थी. मेरी मां को एक ही बीमारी थी- मेरे पापा. मैं 8 वर्ष की थी जब साकेत का जन्म हुआ था. कितनी प्यारी मुसकान थी मेरे छोटे भाई की. दुनिया की भलाईबुराई, झूठ, फरेब, संघर्षों और तकलीफों से अनजान मासूम हंसी थी उस की. पापा ने साकेत के जन्म का जश्न मनाने में पूरे शहर को दावत दे डाली थी. मुझे लगा कि अब शायद पापा बदल जाएंगे, हम पर हाथ उठाना और गालीगलौच करना छोड़ देंगे. मगर मैं गलत थी. इनसान की फितरत बदलना नामुमकिन है.

पापा के वहशीपन से मेरा भाई भी नहीं बच पाया. मुझे उस के चेहरे पर भोलेपन की जगह खौफ नजर आता था. जब पापा हमें मार चुके होते थे तब मैं ध्यान से उन का चेहरा देखती थी. हमें गालियां देने, मारने कोसने के बाद पापा के चेहरे पर संतोष के भाव होते थे, ग्लानि नहीं. ऐसा लगता था कि हमें रोते, गिड़गिड़ाते, दर्द से कराहते देखने में पापा को खुशी मिलती थी. खुद पर गरूर होता था. कभी मुझे लगता था कि कहीं पापा किसी मानसिक रोग के शिकार तो नहीं वरना यह उन्हें हम से कैसा प्यार था जो हमारी जान का दुश्मन बना हुआ था.

मैं कई बार मां से पूछती थी कि क्या हम पापा से कहीं दूर नहीं जा सकते हैं. इस पर मां रोते हुए इसे हमारी मजबूरी बता देती थीं.

पापा के परिवार वालों ने उन्हें कभी हमें प्रताडि़त करने से नहीं रोका, बल्कि वे तो पापा को सही बता कर उन का साथ देते थे. पापा कभी अपने परिवार वालों की मानसिकता को समझ ही नहीं पाए. उन के लिए पापा बैंक का वह अकाउंट थे जिस से वे जब चाहें जितने चाहें रुपए निकाल सकते हैं पर अकाउंट कभी खाली नहीं होगा. पापा के भाई और उन के परिवार को मुफ्तखोरी की आदत लग गई थी. पापा को खुश करने के लिए वे लोग हम पर झूठे इलजाम लगाने से भी बाज नहीं आते थे.

मम्मी के परिवार वाले भी कम न थे. वे लोग शुरू से जानते थे कि पापा हमारे साथ क्या करते हैं पर उन्होंने कभी मां का साथ नहीं दिया. वजह मैं जानती थी. मेरे मामा के शौकीन मिजाज के कारण डूबते कारोबार में पापा ही रुपया लगाते थे. पापा की ही तरह उन का पैसा भी हमारा दुश्मन बन गया था.

अब मैं ने किसी से कुछ भी कहनासुनना छोड़ दिया था. पापा के लिए मेरे दिल में गुस्सा और नफरत लावा की तरह बढ़ते जा रहे थे जो अकसर फूट कर बाहर आ जाते थे. मैं अब कामना करती थी कि हमें इस नर्क से मुक्ति मिल जाए.

कुछ सालों तक सब ऐसा ही चलने के बाद अब पापा को शायद उन के कर्मों की सजा मिलनी शुरू हो गई थी. उन के भाई ने उन का सारा कारोबार डुबो दिया. सभी ने पापा का साथ छोड़ दिया था. ऐसे में मां ने अपने सारे गहने और जमापूंजी पापा को दे दिए और दिनरात कोल्हू के बैल की तरह जुत कर काम किया.

इस बीच मारपीट बिलकुल बंद सी ही थी. धीरेधीरे पापा का काम चल निकला. यह मन बड़ा पाजी चोर होता है. बारबार टूटने पर भी उम्मीद नहीं छोड़ना चाहता है. मेरे मन में पापा के बदल जाने की उम्मीद थी जो पापा ने हमेशा की तरह बड़ी बेदर्दी से रौंद डाली थी.

पापा ने फिर से वही रुख अपना लिया था. उन्होंने शायद सांप और बिच्छू की कहानी सुनी ही नहीं थी, इसलिए फिर से अपने धोखेबाज भाई पर भरोसा कर बैठे. बिच्छू ने आदत अनुसार पापा को दोबारा डस लिया और इस बार पापा धोखा बरदाश्त नहीं कर पाए. जब मम्मी एक दिन मुझे और साकेत को स्कूल से ले कर घर लौटीं तो हम ने देखा कि पापा ने आत्महत्या कर ली है.

मम्मी बेहोश हो कर गिर गईं. भाई का रोतेरोते बुरा हाल था पर मेरी आंखों में एक आंसू नहीं आया. पापा हमें रास्ते पर ला कर छोड़ गए थे. जैसा कि मुझे विश्वास था, पापा के घर वालों ने हम से हर नाता तोड़ लिया और मम्मी के घर वाले तो और भी समझदार निकले. उन्हें यह डर सता गया कि कहीं हम उन से वे रुपए न मांग ले जो पापा ने समयसमय पर उन्हें दिए थे.

हर किसी ने हमें देख कर रास्ता बदलना शुरू कर दिया था. मम्मी गहरे अवसाद की गिरफ्त में आती चली गईं. बीमारी के कारण भाई की जान जातेजाते बची.

पाप हम से सब कुछ छीन कर चले गए पर हमारा जीने का हौसला नहीं छीन पाए. बड़ी मुश्किलों से हम ने खुद को संभाला. मां ने दिनरात मेहनत व संघर्ष कर के हमें पाला. हमें कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उन की इसी तपस्या का फल बन कर सुजौय मेरे जीवन में आए.

पेशे से अधिकारी सुजौय को मेरे लिए मां ने ही पसंद किया था. मैं शुरूशुरू में उन पर विश्वास करने से डरती थी कि कहीं मेरा पति मेरे पापा जैसा न हो. पहले सुजौय को जीवनसाथी के रूप में पा कर और फिर श्यामली और श्रेयस के मेरी गोद में आने से मेरे सारे दुखों व संघर्षों पर विराम लग गया.

मां भी अब पहले से अच्छी अवस्था में थीं. साकेत भी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन कर रहा था. ऐसे में दिल में सिर्फ एक कसक थी. मैं अभी तक पापा को माफ नहीं कर पाई थी. मां हर साल पापा की बरसी मनाती थीं. वे हमें भी घर आने को कहती थीं. हमेशा मुझ से कहती थीं कि मैं सब कुछ भुला दूं पर यह मेरे लिए संभव नहीं था. जब मैं सुजौय को अपने बच्चों के साथ देखती हूं तो बहुत खुश होती हूं. लेकिन साथ ही दिल में एक टीस भी उठती है कि क्या मेरे पापा ऐसे नहीं हो सकते थे. सुजौय बहुत अच्छे पति हैं और उस से भी अच्छे पिता हैं. मैं जानती हूं साकेत भी एक दिन अच्छा पति और पिता साबित होगा.

यादों की दुनिया से बाहर निकल कर मैं ने सुजौय की ओर देखा जो गहरी नींद में सो रहे थे. वे ठीक ही तो कहते हैं बीती बातों को दिल में दबाए रख कर खुद को पीड़ा देने से क्या फायदा. मां ने पापा का अत्याचार हम से कहीं ज्यादा सहा. पर फिर भी उन्होंने पापा को माफ कर दिया. अगर माफ नहीं करतीं तो उन के जाने के बाद कभी एक मजबूत चट्टान बन कर हमें सहारा न दे पातीं. सिर्फ एक मां का दिल ही इतना बड़ा हो सकता है.

अब मैं भी तो एक मां हूं फिर मुझ से इतनी बड़ी चूक कैसे हुई. मैं ने यह कैसे नजरअंदाज कर दिया कि मेरे भीतर की घुटन से मेरी मां का दम भी तो घुटता होगा. मैं पापा को सजा देने के नाम पर अनजाने में ही मां को सजा देती आई हूं. कहीं मैं भी पापा की तरह ही तो नहीं बनती जा रही हूं.

फिर मैं ने आंखें बंद कर के गहरी सांस ली और मन में कहा कि डियर पापा, मैं नहीं जानती कि आप ने हमारे साथ वह सब क्यों किया. मैं यह भी नहीं जानती कि आज भी आप को अपने किए का कोई पछतावा है भी या नहीं. मुझे आप से कोई गिलाशिकवा भी नहीं करना. आज मैं पहली और आखिरी बार आप से यह कहना चाहती हूं कि मैं आप से प्यार करती थी, इसलिए आप की मार और गालियां खाने के बाद भी उम्मीद करती थी कि शायद आप बदल जाओगे. खैर, अब इन सब बातों का कोई फायदा नहीं है. मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि मैं आप को माफ करती हूं पर आप के लिए नहीं… अपने लिए और अपने परिवार के लिए. गुडबाय. बहुत सालों बाद मैं खुद को इतना हलका महसूस कर के चैन की नींद सोई.

अगली सुबह जब मैं नाश्ता बना रही थी तो सुजौय माथे पर बल डाले रसोई में आए, ‘‘यह क्या श्रेया… तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं… 8 बज चुके हैं. मुझे दफ्तर जाने में देर हो जाएगी… बच्चों को अभी तक स्कूल के लिए तैयार क्यों नहीं किया तुम ने?’’

‘‘आज बच्चे स्कूल नहीं जाएंगे. आप भी दफ्तर में फोन कर के बता दीजिए कि आज आप छुट्टी ले रहे हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि आज हम सब मम्मी के घर जा रहे हैं. आज पापा की बरसी है न… आप जल्दी से नहा कर तैयार हो जाएं तब तक मैं नाश्ता तैयार कर देती हूं.’’

‘‘श्रेया,’’ सुजौय ने भावुक हो कर मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मेरे हाथ रुक गए.

‘‘तुम अपनी इच्छा से यह कररही हो न… देखो कोई जबरदस्ती नहीं है.’’

मैं ने डबडबाई आंखों से सुजौय की ओर देखा, ‘‘नहीं सुजौय, मां ठीक कहती हैं, आप भी

सही हो. अपने भीतर का यह अंधेरा मुझे खुद ही दूर करना होगा. मैं बीते कल की इन कड़वी यादों को भुला कर आप के और अपने परिवार के साथ नई, खूबसूरत यादें बनाना चाहती हूं. मैं पापा की बरसी में जाऊंगी.’’

सुजौय सहमति में सिर हिला कर मुसकरा दिए. उन की आंखों में अपने लिए गर्व और प्रेम की चमक देख कर मुझे विश्वास हो गया कि मैं ने बिलकुल सही निर्णय लिया है.

कुछ ही देर बाद मैं सुजौय और बच्चों के साथ मां के घर पहुंच गई. बच्चे तो नानी और मामा से मिलने की बात सुन कर ही खुशी से उछल रहे थे. मेरे घंटी बजाने के कुछ क्षणों बाद मां ने दरवाजा खोला. मुझे दरवाजे पर खड़ी पा कर मां चौंक गईं. उन्हें तो सपने में भी आज मेरे घर आने की उम्मीद न थी. उन के मुंह से मेरा नाम आश्चर्य से निकला, ‘‘श्रेया… बेटा तू…’’

‘‘मां मुझे तो यहां आना ही था. आज पापा की बरसी है न.’’

मेरे मुंह से यह सुनते ही मां की आंखें भर आईं और उन्होंने आगे बढ़ कर मुझे अपने गले से लगा लिया. आज बरसों बाद हम मांबेटी लिपट कर फूटफूट कर रो रही थीं और हमारे आंसुओं से सारी पुरानी यादों की कालिख धुलती जा रही थी.

Father’s Day 2023: पिता का दर्द- सुकुमार के बेटे का क्या रहस्य था?

टैलीफोन की घंटी से सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. रिसीवर उठा कर उन्होंने कहा, ‘‘हैलो.’’ ‘‘बाबा, मैं सुब्रत बोल रहा हूं,’’ उधर से आवाज आई. ‘‘हां बेटा, बोलो कैसे हो? बच्चे कैसे हैं? रश्मि कैसी है?’’ एक सांस में सुकुमार ने कई प्रश्न कर डाले. ‘‘बाबा, हम सब ठीक हैं. आप की तबीयत कैसी है?’’ ‘‘ठीक ही है, बेटा. अब इस उम्र में तबीयत का क्या है, कुछ न कुछ लगा ही रहता है. अब तो जिंदगी दवा के सहारे चल रही है. बेटा, बहुत दिन बाद आज मेरी याद आई है?’’ ‘‘बाबा, क्या करूं? इतनी व्यस्तता हो गई है कि समय ही नहीं मिल पाता. रोज ही सोचता हूं, फोन करूं परंतु किसी न किसी काम में व्यस्तता हो जाती है.’’ ‘‘सच कह रहे हो बेटा. जैसेजैसे तुम्हारी पदोन्नति होगी, जिम्मेदारियां भी बढ़ेंगी और व्यस्तता भी.’’ ‘‘बाबा, आप से एक बात कहना चाहता हूं, बुरा तो नहीं मानेंगे?’’

‘‘कहो न, बेटा, बुरा मानने की क्या बात है?’’ ‘‘मैं सोच रहा था, मां के चले जाने के बाद आप बिलकुल अकेले हो गए हैं. आप की तबीयत भी ठीक नहीं रहती है. हम लोग भी आप से मिलने कभीकभार ही कोलकाता आ पाते हैं. अगर आप ठीक समझें तो कोलकाता का मकान बेच कर आप भी अमेरिका चले आएं. यहां गुडि़या और राज के साथ आप का समय भी कट जाएगा और हम लोग भी आप की ओर से निश्ंिचत हो सकेंगे.’’ सुब्रत का प्रस्ताव सुकुमार को ठीक ही लगा. सोचने लगे, ‘नौकरी से रिटायर हुए 10 वर्ष बीत चुके हैं और कितने दिन चलूंगा. किसी दिन आंख बंद हो जाने पर सुब्रत मेरी अरथी को कंधा भी देने नहीं आ पाएगा.’ लिहाजा सुकुमार ने अपनी सहमति दे दी. सुकुमार ने पेपर में विज्ञापन दे कर मकान का सौदा कर लिया और निश्चित समय पर कोलकाता आ कर सुब्रत ने पैसों का लेनदेन कर लिया. पोस्ट औफिस से एमआईएस और बैंक में जो कुछ सुकुमार ने रखा था, उस का भी ड्राफ्ट सुब्रत ने अपने नाम से बनवा लिया. कोलकाता की संपत्ति बेचने के बाद वे लोग अमेरिका जाने के लिए तैयार थे.

निश्चित समय पर वे लोग दमदम एअरपोर्ट पर पहुंच गए. सुब्रत ने कहा, ‘‘बाबा, आप यहां सोफे पर बैठिए. मैं चैकइन कर के आता हूं, फिर आप को ले कर चलूंगा.’’ सोफे पर सुकुमार बैठ गए. उन का मन अतीत में खो गया. जिंदगी के एकएक पन्ने खुलने लगे. जिस मकान को इतने शौक से बनवाया था, उसे बेचते समय मन कचोट रहा था. सर्विस में रहते हुए सुकुमार ने पत्नी चंद्रा से कहा था, ‘तुम्हारी इच्छा हो तो कंपनी का क्वार्टर ले लेते हैं. आराम से रहेंगे,’ परंतु चंद्रा तैयार नहीं थी, कहने लगी, ‘आज हम आराम से रह लेंगे, परंतु रिटायर होने पर फिर तो फुटपाथ पर आना पड़ेगा. बच्चे कहां रहेंगे? चाहे जैसे भी हो, एक छोटामोटा मकान या फ्लैट कंपनी से ऋण ले कर ले लो. कम से कम बुढ़ापे में इधरउधर भटकना तो नहीं पड़ेगा.’

कितने शौक के साथ सुकुमार ने यह मकान बनवाया था. चंद्रा भी तो थोड़े ही दिन मकान में रह पाई. अचानक एक दिन रात को उस की तबीयत ज्यादा खराब हो गई. सुकुमार ने इलाज के लिए उसे अस्पताल में दाखिल करवाया था. उस के कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था. डाक्टरों की लाख कोशिशों के बाद भी चंद्रा को बचाया नहीं जा सका और उस ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया. चंद्रा की मौत के बाद सुब्रत और रश्मि कोलकाता आए और कुछ ही दिनों बाद वे वापस चले गए. उन के जाने के बाद इस बार सुकुमार बिलकुल अकेले हो गए थे. कहीं पर भी मन नहीं लगता था. इतने बड़े घर में अकेले रहना मानो घर काटने के लिए दौड़ता हो. खाना पकाने और झाड़ूपोंछा आदि के लिए एक महिला को पार्टटाइम रखा था, जो घर का सारा कामकाज करती थी.

अचानक सुकुमार का ध्यान भंग हुआ. उन्हें लगा कि काफी देर हो चुकी है. सुब्रत चैकइन कर के अभी तक आया नहीं था, घड़ी पर नजर डाली, तो लगभग 2 घंटे का समय निकल गया था. सुकुमार ने अमेरिका जाने वाली फ्लाइट के काउंटर पर जा कर पूछा, ‘‘मैडम, मेरा नाम सुकुमार बनर्जी है. मेरे बेटे का नाम सुब्रत बनर्जी है. हमें अमेरिका की फ्लाइट पकड़नी थी. वह चैकइन के लिए आया होगा?’’ काउंटर पर कार्यरत महिला ने यात्रियों की लिस्ट देख कर बताया, ‘‘जी हां, सुब्रत बनर्जी नाम के यात्री ने चैकइन किया था.

अमेरिका की फ्लाइट निकले हुए 1 घंटे से अधिक हो गया है.’’ ‘‘परंतु मैडम, उसी फ्लाइट से तो मुझे भी अमेरिका जाना था. ऐसा कैसे हो सकता है कि मुझे बिना लिए ही फ्लाइट चली गई?’’ ‘‘अंकलजी, जितने भी यात्री उस फ्लाइट में जाने वाले थे, सभी गए हैं. कोई यात्री छूटा नहीं है, अन्यथा हमारी ओर से घोषणा जरूर की जाती है,’’ महिला ने कहा. ‘‘तो क्या मुझे बिना लिए ही सुब्रत अमेरिका चला गया? इस का मतलब तो यह हुआ कि उस ने मेरा टिकट लिया ही नहीं था. यह कैसी जालसाजी है?’’

सुकुमार के पैरों तले मानो जमीन ही खिसक गई. वे सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गए. सोचने लगे, ‘सुब्रत क्या इतना निष्ठुर हो सकता है, जिस को पढ़ानेलिखाने में हम ने अपने जीवन के सुनहरे दिन न्योछावर कर दिए. हर तरह की कटौती कर के सुब्रत की पढ़ाईलिखाई में कोई भी कमी हम ने नहीं आने दी. लेदे कर सुब्रत हमारा इकलौता बेटा है. मैं और चंद्रा हमेशा ही उस की सुखसुविधा का खयाल रखते थे. आज जब मुझे उस के सहारे की जरूरत थी तो वह मुझे बेसहारा छोड़ कर धोखा दे गया.’ इसी उधेड़बुन में सुब्रत के बचपन की याद ताजा हो गई और एकएक दृश्य उन के मानसपटल पर प्रतिबिंबित होने लगा. बचपन से ही सुब्रत काफी मेधावी था. अपनी कक्षा में सदैव प्रथम आता. उस की पढ़ाई से सुकुमार और चंद्रा संतुष्ट थे. इसलिए दोनों अपना पूरा ध्यान सुब्रत और उस की पढ़ाई की ओर लगाते थे. उन का एक ही उद्देश्य था कि सुब्रत पढ़लिख कर एक कामयाब इंसान बने. सुब्रत परीक्षाओं में पोजिशन लाता गया और हायर सैकंड्री में तो वह मैरिट लिस्ट में आया. सरकार की ओर से छात्रवृत्ति मिलने पर वह आगे की पढ़ाई करने के लिए कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी जाना चाहता था. सुकुमार की इतनी सामर्थ्य नहीं थी कि उसे पढ़ने के लिए विदेश भेज सकें. सुब्रत को बाहर भेजने के चक्कर में सुकुमार ने क्याक्या पापड़ नहीं बेले? किस के सामने हाथ नहीं पसारे?

तब तो बस एक ही धुन सवार थी कि सुब्रत किसी तरह अमेरिका चला जाए. इसी बात को ले कर उन की छोटे भाई संदीप से झकझक भी हो गई थी. उस ने कोई भी सहायता करने से मना कर दिया था. कहने लगा, ‘जब सामर्थ्य नहीं है, तो क्यों विदेश भेज रहे हो? क्या अपने देश में पढ़ाई नहीं होती? यहां पढ़ कर क्या बच्चे नौकरी नहीं करते? अरे, जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारने चाहिए. मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता.’ संदीप के आचरण से सुकुमार को काफी तकलीफ हुई. उन्होंने मन ही मन ठान लिया कि चाहे जो भी हो, अब मदद के लिए भाई के दरवाजे पर कदम नहीं रखेंगे. तभी से दोनों भाइयों के बीच एक कटुता आ गई थी और आपसी संबंध ही एक तरह से टूट गया. सुकुमार सोचने लगे कि चाहे जैसे भी हो, सुब्रत को बाहर भेजना ही है. कुछ सरकारी छात्रवृत्ति, कुछ पीएफ से ऋण और कुछ अन्य स्रोतों से व्यवस्था कर के आखिर में वे सुब्रत को विदेश भेजने में कामयाब हो गए. कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में भी सुब्रत का एकेडैमिक कैरियर उज्ज्वल रहा, जिस से वहीं पर उसे जौब भी मिल गई और वह अपना ध्यान वहीं लगाने लगा.

सिक्योरिटी कर्मचारी की आवाज सुन कर सुकुमार का ध्यान टूटा. वह पूछने लगा, ‘‘सर, आप को कहां जाना है? मैं देख रहा हूं, काफी समय से आप यहां पर बैठे हुए हैं?’’ ‘‘बेटा, मैं कहां जाऊंगा, यह तो मैं भी नहीं जानता. मुझे बेटे के साथ अमेरिका जाना था, परंतु वह तो मुझे छोड़ कर चला गया है. अब तकदीर मुझे जहां ले जाएगी वहीं जाना पड़ेगा.’’ इतना कह कर सुकुमार खड़े हो गए और सोचने लगे, ‘इस मुसीबत की घड़ी में किस के पास जाऊं? कौन मुझे सहारा देगा?’ उन्होंने दिमाग पर काफी जोर दिया, परंतु कुछ भी सूझ नहीं रहा था. चहलकदमी करते हुए वे एअरपोर्ट से बाहर निकल गए और बस पकड़ने के लिए आगे बढ़ते गए. अचानक उन के जेहन में बचपन के दोस्त दीपंकर की याद आई. दोनों साथसाथ स्कूल व कालेज में पढ़े थे और उन का आपस में पारिवारिक संबंध भी था. वे सोचने लगे, ‘क्या दीपंकर मेरी मदद करेगा? क्या उस ने मुझे माफ कर दिया होगा? वैसे मैं ने तो कोई अपराध नहीं किया था. सिर्फ सुब्रत के कैरियर की वजह से मैं दीपंकर की पत्नीमालिनी की बात नहीं मान सका.

‘मालिनी चाहती थी कि उन की बेटी देवयानी की शादी सुब्रत से हो जाए, ताकि वह अपनी आंखों के सामने बेटी का घर बसता देख ले. मालिनी को मालूम था कि उसे जो बीमारी लग गई है, अब वह ज्यादा दिन की मेहमान नहीं है. उस ने शादी का प्रस्ताव मेरे सामने रखा था परंतु उसी समय सुब्रत विदेश जाने की तैयारी कर रहा था, इसलिए यह प्रस्ताव उसे स्वीकार नहीं था और हम ने इतनी जल्दी में शादी करने से मना कर दिया था.’ फिर भी, दीपंकर के अलावा उसे कोई नहीं सूझ रहा था. सोचा, ‘चल कर देखने में हर्ज ही क्या है. हो सकता है, अब तक उस ने माफ कर दिया हो. उस के सामने रोऊंगागिड़गिड़ाऊंगा और अपनी मजबूरी बताऊंगा तो शायद उस का मन पिघल जाए. एक बार दीपंकर के घर चलता हूं, फिर जैसा होगा देखा जाएगा.’ यह सोचते हुए वे दीपंकर के घर की ओर चल दिए.

थोड़ी ही देर पश्चात दीपंकर के घर वे पहुंच गए और दरवाजे पर लगी कौल बैल का स्विच दबा दिया. कौल बैल की आवाज सुन कर दीपंकर की नौकरानी काजल ने दरवाजा खोला और पूछा, ‘‘किस से मिलना है?’’ ‘‘दीपंकर है घर में?’’ ‘‘जी हां, बाबू तो हैं घर में. पर आप कौन हैं?’’ ‘‘उन से कहो कि उन का दोस्त सुकुमार बनर्जी आया है.’’ काजल ने जा कर दीपंकर से कहा, ‘‘कोई सुकुमार बनर्जी नामक सज्जन आप से मिलना चाहते हैं. उन्होंने आप को अपना मित्र बताया है.’’ सुकुमार बनर्जी का नाम सुनते ही दीपंकर ने कहा, ‘‘उन्हें अंदर बुला कर सोफे पर बैठाओ.’’ जैसे ही दीपंकर ने ड्राइंगरूम में प्रवेश किया, सुकुमार के धैर्य का बांध टूट गया और वे फूटफूट कर रोने लगे. आंखों से अविरल अश्रुधारा बह रही थी. जबान नहीं खुल रही थी. उन का मन अपने बचपन के साथी के सामने जीभर कर रो लेने को कह रहा था. दीपंकर ने पास जा कर सुकुमार के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘सुकुमार, क्या बात है? इस तरह जारजार रोए जा रहे हो? यह क्या हालत बना रखी है?’’ सुकुमार की घिग्घी बंध गई. जबान से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था.

था तो सिर्फ आंसुओं का सैलाब. दीपंकर ने पानी का गिलास पकड़ाते हुए कहा, ‘‘लो, पहले थोड़ा जल पियो. शांत हो. अब तुम मेरे पास हो, अपने जिगरी दोस्त के पास.’’ सुकुमार ने पानी का गिलास ले कर एक ही सांस में पूरा गिलास खाली कर दिया. उन्हें लगा कि उन का तनमन शीतल हो रहा है. तनाव भी धीरेधीरे कम हो रहा है और उन्होंने एक गहरी सांस ली. और बोल उठे, ‘‘यार, मैं क्या बताऊं तुझे. इस उम्र में आ कर मैं अपनों के द्वारा ही छला गया. मैं ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे इस प्रकार का दिन देखना पड़ेगा, जहां चारों तरफ सिर्फ अंधकार ही अंधकार है.’’ ‘‘मैं कुछ समझा नहीं. कुछ खोल कर भी बताओगे या इसी प्रकार सिर्फ पहेलियां ही बुझाते रहोगे. तुम्हारी हालत देख कर मेरे जेहन में तरहतरह के प्रश्न उठने लगे हैं.’’ इस के बाद सुकुमार ने सारी घटना दीपंकर के सामने बयां कर दी. दीपंकर ने गहरी सांस लेते हुए सुकुमार की एकएक बात बड़े ध्यान से सुनी. अब सुकुमार के इस हालत में पहुंचने का कारण स्पष्ट हो चुका था. दीपंकर कहने लगे, ‘‘यह कैसी विडंबना है?

जिस पिता ने अपने बेटे को पढ़ाने और एक अच्छा इंसान बनाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया हो उस के साथ ऐसा सुलूक? उस को उच्च शिक्षा दिलाने के लिए अपनों से भी जिस ने संबंध खराब कर लिए, उसे ऐसा करते हुए जरा सा भी संकोच नहीं हुआ? क्या मांबाप इसी दिन के लिए अपने बच्चों को पालतेपोसते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर उन्हें धोखा मिले? आजकल के बच्चे कितने स्वार्थी हो गए हैं? मांबाप अपने 4 बच्चों को पालपोस कर, पढ़ालिखा कर कामयाब बनाते हैं, परंतु 4-4 बच्चे एक मांबाप की देखभाल नहीं कर सकते. जब उन्हें सहारे की जरूरत होती है तो बच्चे उन के साथ इस तरह का सुलूक करते हैं.’’

दीपंकर का मन ग्लानि से भर गया. सोचने लगे, इस से अच्छी तो लड़कियां होती हैं, जो पराए घर जा कर भी जीवनभर मांबाप के सुखदुख को बांटने की कोशिश करती हैं. उन्हें अपनी बेटी देवयानी की याद आ गई. दूर रहते हुए भी बाबा का हालचाल पूछे बगैर सोती नहीं. फोन पर ही एक हजार हिदायतें देती रहती है-बाबा, नाश्ता व भोजन समय पर कर लेना, दवा समयसमय पर लेते रहना, सुबहशाम पार्क में टहलना जरूर, सेहत का खयाल रखना, खाली समय का उपयोग पुस्तकें पढ़ कर, टीवी देख कर करना, आजकल क्रिकेट का मैच भी हो रहा है, उसे देखना… आदिआदि. सुकुमार कहने लगे, ‘‘दीपंकर, अब मैं क्या करूं, कहां जाऊं? कुछ समझ में नहीं आ रहा है. बेहतर हो मुझे किसी वृद्धाश्रम में भेज दो.’’ ‘‘क्या कह रहे हो, सुकुमार? मेरे रहते तुम्हें वृद्धाश्रम में जाने की जरूरत नहीं है. यहां मैं भी अकेला रहता हूं. शादी के बाद देवयानी के पूना चले जाने से मैं भी तो अकेला हो गया हूं. मेरी मदद करने के लिए काजल है, जो चौबीसों घंटे मेरे सुखदुख का खयाल रखती है. अच्छा है, तुम आ गए हो. अब हम दोनों का समय आराम से कट जाएगा. पुरानी बातें हमें जीवन जीने की प्रेरणा देंगी. मुझे उम्मीद है, तुम ना नहीं करोगे.’’ सुकुमार का सिर कृतज्ञता से झुक गया था. उन्हें लगा कि आकाश के गहन अंधकार में आशा की एक किरण दिखाई दे रही है.

Father’s Day Special- चौथापन: बाबूजी का असली रूप क्या था?

बेटेबहू और पोतेपोतियों की तरफ से उपेक्षित व्यवहार और बारबार वृद्ध होने का एहसास कराए जाने पर बाबूजी टूट चुके थे. लेकिन एक दिन उन्होंने मुन्ना को अपना असली रूप दिखाया तो उस के होश ही उड़ गए.

चावल के आटे से बनाएं पौष्टिक राइस रोल

आज नाश्ते में क्या बनाऊँ ये यक्ष प्रश्न हर गृहिणी के सामने प्रतिदिन सुबह बहुत बड़ी समस्या बनकर खड़ा रहता है. रोज रोज तला भुना खाने से आजकल बड़े ही नहीं बच्चे भी नाक भौं सिकोड़ने लगे हैं. कोरोनाकाल में हर महिला आज अपने परिवार के सदस्यों को पौष्टिकता से भरपूर खाद्य पदार्थ खिलाना चाहती है तो आज हम आपको एक ऐसा ही नाश्ता बनाना बता रहे हैं जो बनाने में बहुत आसान होने के साथ साथ बहुत पौष्टिक भी है. इसे हम चावल के आटे से बनाएंगे. चावल का आटा बाजार में बड़ी ही सुगमता से मिल जाता है परन्तु आप इसे घर पर भी बड़ी आसानी से इस प्रकार बना सकतीं हैं.
ऐसे बनाएं चावल का आटा

1 किलो घर में प्रयोग होने वाले चावल को 2 लीटर पानी में रात भर के लिए भिगो दें. सुबह इनका पानी बदलकर पुनः 2 लीटर पानी डाल कर भिगो दें. रात को भी यही प्रक्रिया दोहराएं. सुबह छलनी से पानी निकालकर चावलों को एक साफ सूती कपड़े पर छांव में ही 2 दिन तक सुखाएं. अब इन्हें मिक्सी में पीसकर चलनी से छान कर एयरटाइट डिब्बे में भरकर प्रयोग करें. चावल का 12 घण्टे बाद पानी बदलना आवश्यक है अन्यथा उनमें बदबू आ जायेगी.

राइस रोल
कितने लोंगों के लिए 6
बनाने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
चावल का आटा 2 कप
घी 1 टेबलस्पून
पानी 1/2 लीटर
नमक 2 टीस्पून
शिमला मिर्च 1 बारीक कटी
किसी गाजर 1
बारीक कटा प्याज 1
कटी हरी मिर्च 4
बारीक कटा टमाटर 1
कटा हरा धनिया 1 टीस्पून
चिली फ्लैक्स 1/2 टीस्पून
जीरा 1/4 टीस्पून
गरम मसाला पाउडर 1/4टीस्पून
अमचूर पाउडर 1/4टीस्पून
तेल 2 टीस्पून

विधि
पानी में 1/2 चम्मच नमक और 1/2 टीस्पून घी डालकर उबालें. अब पानी को चावल के आटे में धीरे धीरे मिलाएं. केवल उतना ही पानी मिलाएं जितने में आटा मुठ्ठी में बंधने लगे. इसे आधा घण्टे के लिए ढककर रख दें.

आधे घण्टे बाद चावल के आटे को शेष घी डालकर हाथों से मसलकर चिकना कर लें. इसमें सभी सब्जियां और मसाले मिलाकर तीन चार मोटे मोटे रोल बना लें. एक भगौने में 2 लीटर पानी गर्म करें. उस पर छलनी रखकर तीनों रोल रख दें. 20 मिनट तक ढककर पकाएं. 20 मिनट बाद इन्हें ठंडा करके आधे आधे इंच के गोल टुकड़ों में काट लें. एक नॉनस्टिक पैन में तेल डालकर इन रोल्स को तेज आंच पर सुनहरा होने तक शैलो फ्राई करें. टिश्यू पेपर पर निकालकर टोमेटो सॉस या हरी चटनी के साथ सर्व करें.

‘लौयन किंग’ में यंग सिंबा को आवाज दे चुके हैं हकलाने वाला आरूष नंद, पढ़ें इंटरव्यू

बहुमुखी प्रतिभा के धनी बाल कलाकार आरूष नंद किसी परिचय के मोहताज नही है. खेलने की उम्र में आरूष नंद ने अपने काम से अंतरराष्ट्रीय ख्याति हासिल कर ली है. उनके घर पर उनका अपना डबिंग व साउंड स्टूडियो है. गंुडेचा हाई स्कूल, ओशिवरा, मंुबई के 12 वर्ष छात्र आरुष नंद ने इतनी कम उम्र में ही आॅस्कर के लिए नामित अंग्रेजी, सिंहली व तमिल भाशी फिल्म ‘‘फनी ब्वाॅय’’ के अलावा ‘परमाणु’,  ‘तान्हाजी’ सहित कई हिंदी व मराठी भाशी फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं.

वह 150 एड फिल्में कर चुके हैं. इतना ही नही वह अब तक हौलीवुड फिल्म ‘‘लॉयन किंग’’ से लेकर फिल्मों, वेब सीरीज व विज्ञापन फिल्मांे सहित 70 फिल्मों के लिए ‘वॉयस ओवर आर्टिस्ट’’ के रूप में अपनी आवाज में डबिंग भी कर चुके हैं.  हाल ही में आरुष नंद ने रोहित शेट्टी के निर्देषन में वेब सीरीज ‘‘इंडियन पोलिस फोर्स’ की शूटिंग पूरी की है.प्रस्तुत है आरुष नंद स हुई बातचीत के अंश. . .

सवाल -वॉयस ओवर और अभिनय की शुरूआत कहां से हुई?

जवाब--सच यह है कि मैने सबसे पहले पांच वर्ष की उम्र में अभिनय करना शुरू किया था और नौ साल की उम्र से वॉयस ओवर व डबिंग करनी शुरू की. अभिनय करना मेरी तकदीर मे लिखा था. तभी तो जब मेरी उम्र लगभग तीन वर्ष की रही होगी, तब षाॅपिंग माॅल में एक कास्टिंग मैनेजर मिला ने मेरी मम्मी से कहा था कि वह मुझसे अभिनय करवाएं. उसने कहा था, ‘इसका चेहरा अच्छा है. खूबसूरत है. बडा होकर यह बहुत बड़ा कलाकार बन सकता है. ’लेकिन तब मेरी मम्मी ने मना कर दिया था. क्योकि मेरी मम्मी नही चाहती थी कि पढ़ाई में कोई व्यवधान आए. वह तो मुझे अच्छी शिक्षा दिलाना चाहती थी. लेकिन मेरी तकदीर में तो अभिनेता बनना व वायस ओवर आर्टिस्ट बनना ही लिखा हुआ था.

इसी वजह से दो वर्ष बाद मतलब जब मेरी उम्र पांच वर्ष की रही होगी,  तब फिर वह मैनेजर मिला. उसने एक बार फिर मम्मी के सामने प्रस्ताव रखा कि अपने बेटे को अभिनय के क्षेत्र मंे डाल दीजिए. मेरी मां द्विविधा में पड़ गयी. उन्होने उससे साफ साफ कहा कि वह मेरी पढ़ाई का नुकसान नहीं कराना चाहती. तब उसने मेरी मम्मी को समझाया कि किस तरह काम करने से पढ़ाई का भी नुकसान नहीं होगा. उसने मेरी मम्मी को इस तरह से सारी बात समझायी. उसने एक टाइम टेबल की बात की. मां को उसकी बात समझ में आ गयी. और फिर मेरी मां ने उसकी बात मान गयी. उसके बाद मैने सबसे पहले एक एड फिल्म की थी. काम करके अच्छा लगा.

सवाल -तो फिर आपने शुरूआत कहां से की?

जवाब-मैने सबसे पहले एक एड फिल्म की थी. इस एड फिल्म में मुझे स्कूटर पर बैठना था. और मुझे स्कूटर पर सोने का अभिनय करना था. इसके बाद मैने ‘ताज’, ‘मर्सडीज’सहित 150 विज्ञापन फिल्में कर चुका हूं. जब मेरी एड फिल्में टीवी पर आने लगी, तो मेरे स्कूल के मेरे साथ पढ़ने वाले बच्चे स्कूल में मेरी तारीफ करने लगे. उनकी बातें सुनकर मुझे अच्छा लगने लगा. इसी के साथ मुझे अभिनय करने में एक अलग तरह का मजा आने लगा. इसलिए अभिनय में मेरी रूचि बढ़ती गयी. एड फिल्म की शूटिंग के दौरान हर बार मैं नए नए लोगों से, नए निर्देषक व नए कैमरामैन से मिलता था, उनसे मेरी बातें हुआ करती थीं.

वह मुझे बहुत कुछ सिखाते थे. कुछ कलाकार भी मिलते थे. वह कलाकार अपने बारे में बताते थे कि उन्होेने अभिनय की शुरूआत कैसे की. मैं हर कलाकार से अभिनय की बारीकियां सीखने लगा. क्योंकि मुझे इस काम में मजा आता था. मजेदार बात यह थी कि हर ऑडिशन में हमें स्क्रिप्ट दी जाती है, जिसे हमें याद करना होता है. इस वजह से मेरी याद करने की क्षमता विकसित हुई, जिसने पढ़ाई में भी मेरी मदद की. पर घर पर व स्कूल में पढ़ाई पर भी ध्यान देता था. पढ़ाई को लेकर मेरी मां बहुत सख्त हैं. फिर मेरे पास वॉयस ओवर और डबिंग के काम भी आने लगे. मैने कुछ लोगों से वॉयस मोडलिंग करना भी सीखा. वॉयस मॉडलिंग करने से मुझे डबिंग में काफी मदद मिलने लगी.

-सवाल आपको वॉयस ओवर का काम किस वजह से मिला?

जवाब-यह काम तो मैने नौ साल की उम्र में ही शुरू किया. सच बात यह है कि पहले मेरी आवाज अच्छी नही थी. मैं हकलाता था. इस कारण मुझे ऐसे एड नही मिल रहे थे, जिनमें मुझे संवाद बोलने होते थे. इस बात ने मुझे परेषान कर दिया. मेरे दोस्त कहते थे कि किसी एड मंे तू बोलते हुए नजर आ. मैं उनसे यह तो नहीं कह सकता था कि हकलाने की मेरी आदत के कारण मुझे संवाद बोलने वाले एड नही मिलते. मैं अपने दोस्तांे से कहता कि अभी शुरूआत है. जल्द ही मैं संवाद भी बोलते हुए नजर आउंगा. फिर कुछ एड में मेरे संवाद किसी अन्य से डब करवाए जाने लगे. यह बात मुझे अच्छी नही लगी. तब मैने अपनी हकलाहट को दूर करने का फैसला लिया. मेरी मां ने भी इसके बारे में कुछ लोगों से बात की. मैने भी एक कलाकार से बात की, तब मुझे राह नजर आयी और मंैने अपने मंुह में पेंसिल रखकर जोर जोर से संवाद बोलने शुरू किए. धीरे धीरे मेरी आवाज साफ हो गयी. हकलाहट दूर हो गयी.

मुझे पहला एड ‘अमरीकन स्टैंडर्ड’ का मिला, जिसमें मेरे अपने संवाद थे. इसके लिए मुझे बाद में अपनी आवाज के लिए डबिंग भी करनी पड़ी थी. तब पहली बार मुझे पता चला कि डबिंग क्या होती है और क्यों की जाती है. इसके बाद मुझे सबसे पहले ‘डिज्नी’ की फिल्म ‘‘लायन किंग’’ के लिए डबिंग करने का काम मिला. इसमें मैने सिम्बा का किरदार निभाया, मतलब सिंबा के किरदार में मेरी आवाज है. यह फिल्म सिनेमाघरांे में और टीवी पर भी आयी. इससे मुझे फायदा हुआ. लोग मुझे जानने लगे. उसके बाद से अब तक मैंने लगभग सत्तर से अधिक फिल्म,  सीरियल, वेब सीरीज के लिए ‘वॉयस ओवर’ कर चुका हूं.

मैने ‘नेटफिलक्स’ के लिए ‘रेजिंग डिओन’ में डिओन को आवाज दी. इसके अलावा ‘लोक एंड की’ में लोक को आवाज दी. डिजनी हॉटस्टार पर ‘‘जो जो रॉबर्ट’ में जो जो को आवाज दी. यह तो जो जो की ऑटोबायोग्राफी है.

सवाल –जब आपको किसी किरदार को आवाज देनी हो या किसी के लिए डबिंग करनी हो तो आप पहले से किस तरह की तैयारी करते हो?

जवाब–हम पहले से कोई तैयारी नही कर सकते. क्योंकि हर फिल्म बहुत ही ज्यादा काॅन्फीडेशियल होती है. इसलिए हमंे पहले से स्क्रिप्ट नहीं मिलती. जब हम डबिंग स्टूडियो पहुंचते हैं, तब पहले वह हमें किरदार के बारे में ेसमझाते हंै, फिर उसे हमें परदे पर दिखाते हैं. उसके बाद फिर से समझाते हैं. फिर हमें स्क्रिप्ट देते हैं. उसके बाद हमें उसकी आवाज सुनाते हैं. तब हमें वहीं पर तैयारी करने के बाद उसकी आवाज से मैच करती हुई आवाज के साथ डबिंग करनी होती है.

सवाल –परदे पर किरदार अंग्रेजी में संवाद बोलता है और आपको उसके हिंदी में दिए गए संवाद बोलने होते हैं, ऐसे में उसके होठों से आपके बोले गए संवाद मैच हों, उसके लिए क्या करते हो?

जवाब-देखिए, अममून तो हम कर लेते हैं. पर जो ज्यादा कठिन होते हैं, उसके वीडियो वह हमें पहले से घर पर भेज देते हैं, तो हम घर बनाए गए अपने स्टूडियो में बैठकर वीडियो चलाते हुए किरदार के होंठों से संवाद के मैच करने की प्रैक्टिस करके जाते हैं.

सवाल –आपने अब तक जिन किरदारों को अपनी आवाज दी, उनमें से किस किरदार में सबसे ज्यादा पसंद किया गया?

जवाब-मुझे सबसे ज्यादा ‘लायन किंग’’ में पसंद किया गया. इस फिल्म की वजह से मेरे इंस्टाग्राम पर फालोवर्स बड़ी तेजी से बढ़ गए थे. मुझे सर्वश्रेष्ठ वाइस ओवर आर्टिस्ट का अवार्ड भी मिला.

सवाल-एड फिल्मों में अभिनय करने से पहचान मिलने के बाद आपने फीचर फिल्मों में अभिनय की शुरूआत की?

जवाब–मैने पहले ही बताया कि एड करते करते मुझे काफी लोकप्रियता मिली. मुझे मजा भी आ रहा था. उधर स्कूल मंे मेरे दोस्त मुझसे कहते थे कि तू फिल्मों में कब अभिनय करेगा? तेरी आवाज के साथ ही तेरा चेहरा भी अच्छा है. तेरा कद भी अच्छा है. तब मैने अपनी मां से बात की. मां ने कुछ कोआॅर्डीनेटरों को संदेष दिया कि आरुष फिल्म में अभिनय करेगा. तब मुझे सबसे पहले आॅडीषन देने के बाद फिल्म ‘‘परमाणु’’ में जाॅन अब्राहम के बेटे का किरदार निभाने का अवसर मिला.  इसकी शूटिंग करने के लिए मैं देहरादून गया था. बहुत इंज्वाॅय किया था. एड फिल्म की शूटिंग तो हम दो दिन के अंदर कर लेते थे. लेकिन फीचर फिल्म की शूटिंग के लिए काफी समय देना पड़ता है. हर सीन बड़ी तन्मयता से फिल्माया जाता है. फिल्म में मुझे अति अनुभवी कलाकार जॉन अब्राहम के साथ काम करने का अवसर मिला,  जिनसे मैने काफी कुछ सीखा.

सवाल-जब आपकी पहली फिल्म ‘‘परमाणु’’ थिएटर में रिलीज हुई,  तब आपके दोस्तों ने क्या कहा?

जवाब-मैं अपने दोस्तों के लिए तो स्टार बन गया था. हर कोई मुझसे मेरा आॅटोग्राफ मांग रहा था. मैने ऑटोग्राफ भी दिए. पर मैने अपने स्कूल के दोस्तों से कहा कि मैं स्टार नहीं हूं. उन्हीं की तरह एक साधारण बच्चा हूं.

सवाल ‘परमाणु’ के बाद कौन फिल्में की?

जवाब-‘परमाणु’ सफल हुई, तो लोगों की नजरों में आ गया. उसके बाद मुझे सामने से निर्देषक फिल्मों के आफर देने लगे. मैने ‘तान्हाजी’ में अजय देवगन व काजोल मैम के बेटे राइबा का किरदार निभाया. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान सेट पर काजोल मैम थी. एक दृष्य में अजय देवगन सर को मुझे उनके कंधे पर उठाना था. काजोल मैम अपनी वैनिटी वैन थी. वह बाहर निकली और मैं उस वक्त ब्रेकफास्ट कर रहा था. यह देखकर उन्होेने मुझसे कहा, ‘‘अरे, आरुष तू नाष्ता क्यों खा रहा है. अब अजय देवगन सर तुझे कैसे उठा पाएंगे? मैं ठहरा बच्चा, तो मैं परेषान हो गया. हो गया. काजोल मैम समझ गयीं और उन्होने कहा, ‘कोई बात नही. अब तू अपना नाष्ता पूरा कर ले. मैं तो मजाक कर रही थी. ’फिर वह हंसने लगी. मुझे भी हंसी आ गयी.

सवाल ‘तान्हाजी’ और ‘द क्वीन आफ झांसी’ में तो घुड़सवारी भी की होगी ?

जवाब-जी हां! जब मैं फिल्म ‘तान्हाजी’ के सेट पर पहली बार अजय देवगन से मिला था, तब उन्होने मुझसे कहा था,  कि इस फिल्म में मुझे घुड़सवारी करनी है, इसलिए घुड़सवारी सीखनी पड़ेगी. उन्हे तो घुड़सवारी आती थी. दो दिन उन्होने घुड़सवारी की प्रैक्टिस की, पर मुझे कई दिन घुड़सवारी सीखनी पड़ी. तलवार बाजी भी सीखनी पड़ी. मैने जिस तरह से कार्टून फिल्मों में देखा था, वैसा कुछ नहीं था. पहले दिन मुझे घोड़े के पाॅर्च पर बैठाया गया और एक आदमी घोडे़ की रस्सी पकड़ कर चलाता रहा. फिर उसने मुझे सिखाया कि रस्सी से कैसे घोड़े को मोड़ते हैं. उसके बाद उन्होने मुझे घुड़सवारी सिखायी. अब तो मैं घुड़सवारी में माहिर हो गया हूं. कार्टून फिल्में देखते देखते मुझे तलवार चलाना तो थोड़ा थोड़ा आता था. पर मैने पेशेवर लोगों से तलवार बाजी सीखी. ‘तान्हाजी’ के समय जो कुछ सीखा था, वह बाद में ‘द क्वीन आफ झांसी’ में काम आया.

सवाल-आपकी मातृभाषा मराठी है, तो आपने मराठी फिल्में की या नहीं?

जवाब-मैने मराठी में दो फिल्में की हैं. एक फिल्म ‘समानांतर’ है, इसमें मैने स्वप्निल जोशी के साथ अभिनय किया. तो वहीं दूसरी फिल्म ‘‘मी वसंतराव’’ की. जो कि वसंतराव देषपांडे की बायोपिक फिल्म है. यह 2019 की बात है. इसकी शूटिंग हमने नागपुर जाकर की थी. इस फिल्म में वसंतराव देषपांडे सर के पौत्र राहुल देषपांडे सर ने ही उनका किरदार निभाया है. मैने उनके बचपन का किरदार निभाया है. मुझे मराठी अच्छी आती है और मैं हर साल कम से कम एक मराठी फिल्म करना चाहता हूं. जब मैं इस फिल्म के लिए ऑडिशन देने गया था, तब तक मुझे वसंतराव देशपांडे के बारे में कुछ भी नहीं पता था.

ऑडीशन से पहले मुझे बताया गया कि वसंतराव देशपांडे मशहूर गायक थे, जिनका 1983 में 63 वर्ष की उम्र में पुणे में निधन हो गया था. मुझे यूट्यूब पर उनसे संबंधित कुछ वीडियो भी दिखाए गए. मुझे बताया गया कि उनका बचपन कैसा था. वह किस तरह से बातें करते थे, किस तरह से गाते थे. वगैरह वगैरह. एक दृष्य में मुझे सिर्फ अपने होंठ चलाने थे. मतलब पृष्ठभूमि में गाना चल रहा था और में अपने होंठ चलाते हुए उसी गाने को गा रहा था. यह मेरे लिए बहुत कठिन था. क्योंकि यह शुद्ध मराठी भाषा का गाना था. जिसमें कई कठिन शब्द थे. इस गाने की मैने पंद्रह दिन तक प्रैक्टिस की थी. एक गायन स्कूल में कुछ दिन ट्रेनिंग ली. तबला बजाना भी सीखा था. पर में तो डबिंग ऑर्टिस्ट भी हूं, इसलिए सब कुछ आसान हो गया. परिणामतः जब लोगो ने फिल्म देखी, तो उन्हे लगा कि मैं वास्तव में परदे पर गा रहा हूं.

सवाल –वसंतराव देशपांडे के बचपन के किरदार को निभाने के बाद आपके अंदर संगीत या गायन के प्रति कोई रूचि पैदा हुई?

जवाब-सच तो यही है कि मुझे गायन या संगीत में कभी रूचि नहीं रही. लेकिन फिल्म ‘मी वसंतराव’ कं अभिनय करने के बाद मेरे अंदर संगीत की थोड़ी सी समझ विकसित हुई. क्येाकिे मैने तबला बजाना और गायन भी सीखा. पर मेरी समझ में आया कि गीत लिखना, उसे गाना, संगीत इंस्ट्यूमेंट आदि बाजाना आसान नही होता.

सवाल-आपने दो हॉलीवुड फिल्मों में भी अभिनय किया है?

-जवाब –जी हां!मैने ऑस्कर अवार्ड के लिए नामित दीपा मेहता के निर्देशन में हॉलीवुउ फिल्म ‘‘फनी ब्वॉय’’ में मैने यंग फनी ब्वॉय का किरदार निभाया है. इस फिल्म की शूटिंग श्रीलंका में हुई थी. इसके लिए मुझे तीन माह तक श्रीलंका में रहना पड़ा था. इसमें मेरे साथ कुछ दूसरे बाल कलाकार भी थे. इसके अलावा कुछ विदेशी कलाकारों के साथ मुझे काम करने का अवसर मिला. उनके अभिनय करने और उनके चेहरे के भाव वगैरह हम लोगों से काफी अलग होते हैं. उनके काम करने की शैली में भी अंतर है. यह फिल्म अंग्रेजी में है, पर कुछ संवाद तमिल,  सिंहला व तेलुगू के भी हैं, तो मुझे तमिल, सिंहला व तेलुगू के कुछ शब्द सीखने को मिले. उसके बाद मैने तमिल व तेलुगु भाषा भी सीखी. यह फिल्म 4 दिसंबर 2020 को प्रदर्शित हुई थी.

सवाल-इसमें कुछ विदेशी कलाकार भी है तो उनसे क्या सीखा?

जवाब–इसमें युवा फनी ब्वाॅय का किरदार ब्रैंडान इंग्राम ने निभाया है. इसके अलावा चेलवा के किरदार में पाकिस्तानी कलाकार अली काजमी हैं. यह बहुत बड़े कलाकार हैं और कनाडा में रहते हैं. इस फिल्म की शूटिंग के दौरान उनसे मेरी अच्छी ट्यूनिंग बन गयी थी. सेट से होटल जाते समय उन्होने मुझे व दूसरे बच्चे को बीप बाॅक्सिंग सिखायी. उन्होने हमें सिखाया कि बड़े बड़े संवाद को बहुत ही साफ तरीके से कैसे बोलना चाहिए. एक सीन में उन्हे हम बच्चों पर चिल्लाना था और हमें डरना था. इस सीन के लिए हम लोगो ने होटल में ही प्रैक्टिस की थी.

सवाल- फिल्म ‘‘फनी ब्वॉय’’ किस बारे में हैं?

जवाब-यह फिल्म श्याम सेल्वदुरई के इसी नाम के 1994 के उपन्यास का फिल्मी रूपांतरण है. यह कहानी श्रीलंका में एक युवा तमिल लड़के अर्जी चेलवरत्नम के बारे में हैं, जो तमिल और सिंहली के बीच बढ़ते तनाव की पृष्ठभूमि के खिलाफ अपनी समलैंगिकता के साथ आता है. मैने अरजी के बचपन और ब्रैंडन इंग्राम ने अरजी के किशोरावस्था के किरदार को निभाया है.  तो वहीं इस फिल्म में निम्मी हरसगामा,  अली काजमी,  अगम दर्शी,  सीमा बिस्वास,  रेहान मुदननायके और शिवंथा विजेसिन्हा जैसे कलाकार भी हैं. मैने बचपन का किरदार निभाया है, तो इसमें दिखाया गया है कि श्रीलंका में चल रहे सिंहली और तमिल के बीच गृहयुद्ध के दौरान किस तरह बच्चे अरजी को चिढ़ाते हैं और कैसे वह श्रीलंका छोड़कर कनाडा पहुंचता है.

यह सीबीसी टेलीविजन पर 4 दिसंबर,  2020 को प्रसारित हुई थी. उसी दिन सीबीसी जेम पर स्ट्रीमिं हो रही है. इसे 93वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ अंतर्राष्ट्रीय फीचर फिल्म के लिए कनाडाई प्रविष्टि के रूप में चुना गया था, लेकिन अकादमी की आवश्यकता को पूरा नहीं करने के कारण एकेडमी ऑफ मोशन पिक्चर आर्ट्स एंड साइंसेज द्वारा उस श्रेणी से अयोग्य घोशित कर दिया गया था कि संवाद का पचास प्रतिशत अंग्रेजी के अलावा किसी अन्य भाषा में है. इससे पहले मैने स्वाती भिसे की हॉलीवुड फिल्म ‘‘द वॉरियर क्वीन आफ झांसी’’ में रानी लक्ष्मीबाई के बेटे का किरदार निभाया था. इसकी शूटिंग जयपुर में की थी.

सवाल-भविष्य में क्या बनना है?

जवाब-मैं बड़ा होकर अभिनेता, डबिंग आर्टिस्ट,  वॉयस ओवर आर्टिस्ट, साउंड इंजीनियर के साथ ही बिजनेसमैन बनना चाहता हूं. मुझे अपना खुद का साउंड स्टूडियो खोलना है. मैं साउंड इंजीनियरिंग को लेकर काफी कुछ सीख रहा हूं. साउंड से जुड़े साफ्ट वेअर की जानकारी ने रहा हूं. मुझे अलग अलग माइक की जानकारी मिल गयी है. वॉयस माॅड्युलेट कैसे करनी होती है, यह सीखा. मसलन एक किरदार तात्या ष्ंिाकु पाध्ये करके है. जो कि मराठी में एक गुड़िया है. मैं उसकी तरह भी बोलता हूं. मैने नौ साल की उम्र में लड़की की आवाज में भी डबिंग की है. पर अब संभव नही है. क्योंकि अब मेरी आवाज बदल चुकी है.

सवाल-बतौर अभिनेता कुछ नया कर रहे हो?

जवाब-फिलहाल तो डबिंग और वायस ओवर में काफी व्यस्त हूं. इस काम मे ज्यादा समय नहीं लगता. मुझे आनंद भी मिलता है. इसके अलावा मैने रोहित शेट्टी के निर्देशन में एक वेब सीरीज ‘‘इंडियन पुलिस फोर्स ’ की है, जिसमें मेंने विलेन के बचपन का किरदार निभा रहा हूं.

बालासोर ट्रेन दुर्घटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से देश का यक्ष प्रश्न

ओडिशा के बालासोर में हुई भीषण ट्रेन दुर्घटना से देश के आम से ले कर खास आदमी का दर्द तो झलका ही, दुनियाभर में रेलवे कुप्रबंधन को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, फिर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से इस्तीफा न मांग कर यक्ष प्रश्न खड़े कर रही है. क्यों?

ओडिशा के बालासोर में हुए रेल हादसे का दर्द पूरे देश में महसूस किया गया और दुनियाभर में यह भारत देश के रेलवे कुप्रबंधन का साक्ष्य बन गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार देश की अत्याधुनिक ट्रेन ‘वंदेमातरम’ का घूमघूम कर शुभारंभ कर रहे हैं, बड़ीबड़ी बातें करने में उन का कोई सानी नहीं है. ऐसे में यह दुर्घटना नरेंद्र मोदी सरकार पर एक प्रश्नचिह्न है, जिस का जवाब देश की जनता मांग रही है.

मगर जैसा कि नरेंद्र मोदी का स्वभाव है, वे बातों को नकारने और घुमाने दोनों में सिद्धहस्त हैं, इसलिए न तो स्वयं अपना इस्तीफा देने की पेशकश की और न ही रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव का इस्तीफा लिया गया. अगर ऐसा हो पाता तो देश में नरेंद्र मोदी की छवि संवेदनशील और प्रभावशाली हो पाती. मगर जिस तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी घटनास्थल पर पहले पहुंच जाती हैं और हकीकत से रूबरू होती हैं, उस से महसूस किया जा सकता है कि केंद्र सरकार और नरेंद्र मोदी रेल दुर्घटना को किस तरह छोटा कर के आंक रहे थे, मगर अंततः राजनीति और भावी आम चुनाव के कारण नरेंद्र मोदी को दुर्घटनास्थल का दौरा करना पड़ा और एक बार वही बातें दुहराई हैं कि दोषियों पर कड़ी कार्यवाही होगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह ‘कड़ी कार्यवाही होगी’ क्या होता है? अगर आप का शासन प्रभावी है तो कड़ा ऐक्शन तो हो जाना चाहिए था. ‘दोषियों को कड़ी सजा देंगे’ बोल कर आप ने यह संदेश दे दिया है कि सरकार दोषियों को क्या छोड़ती भी है? दोषियों को दंड और कड़ी सजा तो मिलनी ही चाहिए, मगर उस से पहले नैतिकता के आधार पर कम से कम रेल मंत्री को इस्तीफा दे देना चाहिए था या फिर उन से आप को इस्तीफा ले लेना चाहिए था.

नरेंद्र मोदी सरकार के 9 वर्ष मनाए जाने के उत्सव के समयकाल में यह दुर्घटना एक ब्रेक बन कर और कई संदेश ले कर आई है, जो मोदी सरकार की विफलताओं का कच्चाचिट्ठा है.

ओडिशा के बालासोर में पिछले दिनों 2 जून, 2023 को हुए भीषण रेल हादसे में मृतकों की संख्या 288 से पार हो गई है और तकरीबन 1,100 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं. रेलवे ने इस हादसे की उच्चस्तरीय जांच शुरू की है, वहीं दूसरी तरफ दुर्घटना के बाद तोड़फोड़ की आशंका के पश्चात केंद्र सरकार ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो से जांच कराने का ऐलान कर दिया है.

यह हादसा आजादी के बाद हुए सब से भीषण हादसों में से एक है. इस हादसे में बैंगलुरुवड़ा सुपरफास्ट ऐक्सप्रैस, शालीमारचेन्नई सैंट्रल कोरोमंडल ऐक्सप्रैस और एक मालगाड़ी शामिल थीं. कोलकाता से तकरीबन 250 किलोमीटर दक्षिण में लासोर जिले के बाहानगा बाजार स्टेशन के पास 2 जून, 2023 की शाम तकरीबन 7 बजे यह हादसा हुआ था.

घटना में मृत लोगों की संख्या और भीषण दृश्य देख कर कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के लिए यह दुर्घटना एक काला अध्याय बन गई है. अगर लाल बहादुर शास्त्री की तरह रेल मंत्री अपना इस्तीफा दे देते तो नरेंद्र मोदी और सरकार के पक्ष में देश की जनता में सकारात्मक भाव जागृत होता. मगर मोदी सरकार इस मोरचे पर भी असफल हो गई.

महत्वपूर्ण बात यह है कि ट्रेन हादसे के कारण जमीन में धंस गए एक डब्बे को 3 जून को क्रेन और बुलडोजर की मदद से ऊपर लाने की कोशिश की गई. इस से पता चलता है कि रेल दुर्घटना कितनी भीषण थी. इस संपूर्ण रेल दुर्घटना में 5,000 कर्मियों के अलावा 200 एंबुलैंस, 50 बस और 45 सचल स्वास्थ्य इकाइयां दुर्घटनास्थल पर काम कर रही हैं. वायु सेना ने गंभीर रूप से घायल यात्रियों के लिए 2 हैलीकौप्टर भेजे. हादसे के कारण 90 ट्रेनें रद्द कर दी गईं और 46 ट्रेनों का मार्ग बदलना पड़ा.

देश में घटित हुई इस घटना के बाद जिस तरह सरकार का रवैया सामने आया है, वह सोचनीय कहा जा सकता है.

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