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रोजगार के क्षेत्र में लड़कियों का दबदबा

साल 2016 में ‘दंगल’ फिल्म आई थी. इस में एक डायलौग था, ‘म्हारी छोरियां छोरों से कम है के…’ यह डायलौग सिर्फ डायलौग नहीं था बल्कि आज के भारत का आईना था जहां लड़कियां बहुत से मामलों में आगे निकल रही हैं.

इस साल जून में नीट का रिजल्ट घोषित हुआ. नैशनल टैस्ंिटग एजेंसी ने जो रिजल्ट पेश किया उस ने यह तो साबित कर दिया कि लड़कियां आज न सिर्फ लड़कों के कंधे से कंधा मिला कर आगे बढ़ रही हैं बल्कि अगर उन्हें बेहतर माहौल और मौका मिले तो वे बहुत जगहों पर आगे भी निकल सकती हैं क्योंकि जो रिजल्ट सामने आया उस में पश्चिम बंगाल की कौस्तव बाउरी व पंजाब की प्रांजल अग्रवाल ने टौप 10 रैंकिंग में अपनी जगह बनाई.

हाल ही में यूपीएससी का रिजल्ट घोषित हुआ जिस में इषिता किशोर ने पहली रैंकिंग हासिल की. वहीं दूसरे व तीसरे स्थान पर गरिमा लोहिया व उमा हरि थीं जिन्होंने दूसरी व तीसरी रैंक हासिल की.

यही कारण भी है कि उच्च पदों के अलावा लड़कियां अब पढ़ाई से ले कर जौब तक हर क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ा रही हैं. एक जमाना था जब रोजगार की दुनिया में पूरी तरह से पुरुषों का कब्जा था. अगर किसी क्षेत्र में गिनीचुनी महिलाएं होती भी थीं तो वे पुरुषों के दबदबे वाली इस दुनिया में अजीब सी लगती थीं. लेकिन आज यह तसवीर पूरी तरह से बदल चुकी है. आज किसी भी क्षेत्र में लड़कियों की मौजूदगी अजूबा नहीं है. आज लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. यही नहीं, कुछ क्षेत्र तो ऐसे हैं, जहां लड़कियों की उपस्थिति तेजी से बढ़ी है.

कुछ जगह ऐसी हैं जो मेल फ्री जोंस में खास हैं- नर्सिंग, पीआर, कौल सैंटर, इंटीरियर डिजाइनिंग तथा नर्सरी टीचिंग. दरअसल, रोजगार और अर्थव्यवस्था की दुनिया में जैसेजैसे सेवा क्षेत्र का दबदबा बढ़ा है, वैसेवैसे लड़कियों का दबदबा भी बढ़ा है क्योंकि सेवा क्षेत्र में लड़कियां लड़कों के मुकाबले ज्यादा सफल हैं.

कुछ साल पहले सिडनी रिक्रूटमैंट फर्म द्वारा किए गए एक ताजा सर्वेक्षण ने इस बात

का खुलासा किया है कि महिलाओं की कई क्षेत्रों में बढ़ती एकल मौजूदगी कई तरह से नुकसानदायक भी है. यही नहीं, व्यावहारिक रूप से देखा जाए तो पुरुषों की मौजूदगी भी उतनी ही जरूरी है जितनी कि महिलाओं की. इसलिए सिर्फ मेल जोन या सिर्फ फीमेल जोन दोनों ही किसी भी क्षेत्र के लिए नुकसानदायक होते हैं. लेकिन पहले के समय लड़कियों को बाहर काम करने देने की तो छोड़ो बाहर निकलने की भी मनाही थी. उन्हें बस साजोसामान समझने लायक पढ़ालिखा कर शादी करा दी जाती थी.

विशेषज्ञों के मुताबिक लिंग असंतुलन कंपनी के लिए किसी भी माने में फायदेमंद नहीं हो सकता. यह वास्तव में एक खराब स्थिति होती है.

कंपनी की सोच

हालांकि जिन क्षेत्रों में लड़कियों की प्रधानता हो जाती है, उन का मैनेजमैंट लड़कों को कम महत्त्व देता है, जोकि कंपनी के विकास के लिए सही नहीं है. बात सिर्फ इतनी ही नहीं है. दरअसल लड़कियां हर जगह और हर समय फैसला लेने वाले के रूप में उभर कर सामने नहीं आ पातीं. कई जगह आक्रामक होना पड़ता है तो कई जगहों पर तुरंत फैसले लेने पड़ते हैं. ऐसे मामलों और जगहों में लड़कियां अभी भी काफी पीछे हैं.

उन का आत्मविश्वास अब तक कमजोर ही साबित हुआ है. हालांकि भविष्य में क्या होगा, यह कहना मुश्किल है, लेकिन फिलहाल बाजार की स्थिति को देखते हुए फीमेल की अकेली प्रधानता किसी भी कंपनी के लिए अच्छी बात नहीं है.

इस के अलावा भी कई और नुकसान हैं जो फीमेल डोमिनैंस कंपनी को ?ोलने पड़ सकते हैं. हर महिला सही समय पर मां बनना चाहती है. इस में कोई बुराई भी नहीं है. अगर व्यावसायिक दृष्टि से देखें तो फीमेल प्रैग्नैंसी कंपनी की प्रगति में कई बार बाधक बन जाती है, क्योंकि इस के चलते कई महीनों तक न चाहते हुए भी लड़की को कामकाज की सक्रिय भागीदारी से अपनेआप को अलग करना पड़ता है. ऐसी स्थिति में किसी भी कंपनी का मैनेजमैंट गड़बड़ा सकता है.

जरूरी है संतुलन

कुछ ऐसी भी समस्याएं हैं, जिन पर महिलाओं का कोई वश नहीं चलता और उन की वजह से कंपनी को घाटा उठाना पड़ता है. मसलन, कोई भी कंपनी अगर किसी अविवाहित लड़की पर काफी हद तक निर्भर हो जाती है और अचानक उस की शादी हो जाती है तो हो सकता है कि उसे नौकरी छोड़नी पड़ जाए या शहर छोड़ना पड़ जाए. ऐसा होने पर कंपनी के लिए अचानक परेशानी की स्थिति आ जाती है.

पुरुषों के साथ आमतौर पर ऐसा नहीं होता. शादी करने के बाद कम से कम भारत में पुरुषों को बहुत दुर्लभ मौकों पर ही अपना घर या शहर बदलना पड़ता है. यही नहीं, एक तरफ जहां शादी के बाद महिलाओं पर किसी कंपनी की निर्भरता खतरनाक हो सकती है, वहीं पुरुष कंपनी के मामले में ज्यादा जिम्मेदार हो जाता है.

कुल मिला कर किसी भी कंपनी या किसी भी रोजगार क्षेत्र का पूरी तरह से महिलाओं पर निर्भर हो जाना जहां कामकाज के लिहाज से जोखिम भरा हो जाता है, वहीं वर्क कल्चर और वर्किंग माहौल की नजर से भी उबाऊ हो जाता है.

एक प्राइवेट कंपनी में कार्यरत 39 वर्षीय पूर्णिमा का कहना है, ‘‘कंपनी में सिर्फ महिलाओं का काम करना या फिर सिर्फ पुरुषों का होना, दोनों ही अपनीअपनी जगह गलत हैं. पुरुषप्रधानता भी खराब है और महिलाप्रधानता भी. दोनों में संतुलन बना रहना बहुत जरूरी है, क्योंकि कंपनी का माहौल भी उस के विकास के लिए एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है.

जहां सिर्फ महिलाएं होती हैं या सिर्फ पुरुष, वहां कामकाज का माहौल रुचिकर नहीं रह जाता. यही नहीं, ऐसी जगहों में काम बो?ा में तबदील हो जाता है. इसलिए दोनों का ही कंपनी में होना बहुत जरूरी है.’’

कामकाज में फर्क

जहां कई फैसले सिर्फ पुरुष ही कर सकते हैं तो कई काम सिर्फ महिलाओं के जिम्मे ही छोड़े जा सकते हैं. वहीं महिला और पुरुष दोनों मिल कर ज्यादा काम भी कर सकते हैं और वह भी बिना बोर हुए.

मजे की बात यह है कि जिस औफिस में पुरुषमहिला दोनों होते हैं, वहां कर्मचारियों को अगले दिन औफिस पहुंचने का बेसब्री से इंतजार रहता है, जबकि सिर्फ पुरुष या महिलाप्रधानता वाले क्षेत्र में ऐसा देखने को नहीं मिलता.

विशेषज्ञ इस बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि महिलाप्रधान होने से कंपनी में ठहराव आ सकता है और पुरुषप्रधान होने पर भी ऐसी आशंका बनी रहती है. इसलिए कामकाज में मैच्योर कंपनियां दोनों का संतुलन चाहती हैं. वर्कप्लेस पर दोनों की मौजूदगी वास्तव में व्यावहारिक है.

30 वर्षीय अजीत का कहना है, ‘‘कंपनी में सिर्फ पुरुषों का होना या फिर महिलाओं का होना बिलकुल गर्ल्स स्कूल या बौयज स्कूल की तरह होना है. जिस तरह बौयज अकसर छुट्टी के बाद गर्ल्स स्कूल के बाहर पहरा देते नजर आते हैं, उसी प्रकार दफ्तरों में भी देखने को मिल सकता है. हालांकि कर्मचारी बचकानी हरकतें नहीं करेंगे. लेकिन गौर करने की बात यह है कि दफ्तर में आने की उन की ललक खत्म हो जाएगी. इतना ही नहीं, महिलाएं और पुरुष मिल कर नएनए आइडिया विकसित कर सकते हैं, नएनए प्रयोग कर सकते हैं.’’

कुल मिला कर उचित यही है कि वर्कप्लेस पर लड़केलड़कियों दोनों का होना जरूरी है. दोनों में से किसी एक की भी प्रधानता कामकाज का माहौल बिगाड़ती है और कामकाज की मात्रा व गुणवत्ता में भी फर्क लाती है.

रोजगार की दुनिया में महिलाओं का महत्त्व

हालांकि रोजगार के क्षेत्र में लड़कियों का होना देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी अच्छा संकेत है. विभिन्न रोजगार स्थितियों का पता देने वाली एजेंसियों के आंकड़ों पर भरोसा करें तो आने वाले सालों में रोजगार की दुनिया में महिलाओं का महत्त्व पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा होगा. यह बात सिर्फ हिंदुस्तान या चीन जैसे देशों में लागू नहीं होती, बल्कि विकास के मामले में सैच्युरेटिंग पौइंट पर पहुंच चुके यूरोप और अमेरिका में भी महिलाओं के रोजगार का भविष्य पुरुषों के मुकाबले कहीं ज्यादा उज्ज्वल नजर आता है. भारत में तो खासतौर पर महिलाओं के लिए अगले एक दशक में तमाम क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर नौकरियों की बाढ़ आने वाली है.

भारतीय नर्सों की मांग : ऐसे क्षेत्रों में सब से पहला और विशेष क्षेत्र है नर्सिंग का. हालांकि मैडिकल साइंस का कोई भी क्षेत्र यह नहीं कहता कि नर्सिंग यानी तीमारदारी महज लड़कियों के लिए है, लेकिन यह भी सच है कि सालों से बल्कि आधुनिक मैडिकल व्यवस्था के अस्तित्व में आने के बाद से ही सब से ज्यादा महिलाएं नर्सें ही देखने को मिलती हैं.

द्वितीय विश्वयुद्ध के समय यूरोप में जरूर बड़े पैमाने पर पुरुष नर्सों का चलन शुरू हुआ था, लेकिन जब तक युद्ध में घायल लोगों की बड़ी तादाद रही थी तब तक ही पुरुष बतौर नर्स कामयाब रहे. जैसे ही स्थितियां सामान्य हो गईं, नर्स बने पुरुषों के अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा, क्योंकि महिला नर्स पुरुष नर्स से बेहतर तीमारदारी कर सकती है.

महिलाएं न सिर्फ स्वाभाविक रूप से कोमल हृदय होती हैं, अपितु उन का स्पर्श भी कहीं ज्यादा सांत्वना भरा होता है. इस वजह से मैडिकल साइंस भी परोक्ष रूप से तीमारदारी का काम पुरुषों के बजाय महिला नर्सों को देने के पक्ष में रहता है. भारतीय महिला नर्सें तो वैसे भी पूरी दुनिया में अपने सेवाभाव के लिए जानी जाती हैं. यही कारण है कि पूरी दुनिया में भारतीय नर्सों की जबरदस्त मांग है. जो अमेरिका, जो किसी भी क्षेत्र के प्रोफैशनल तक को इन दिनों ग्रीन कार्ड देने से बचने की कोशिश कर रहा है, भारतीय महिला नर्सों के लिए पलकपांवड़े बिछाए रहता है.

पिछले साल आई ‘इंटरनैशनल काउंसिल औफ नर्सेज’ की माने तो दुनियाभर में 1.30 करोड़ नर्सों की जरूरत है. अभी भारत समेत दुनियाभर के देश नर्सों की कमी से जूझ रहे हैं. ग्रैंड प्यू रिसर्च कहती है कि वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल स्टाफिंग क्षेत्र सालाना 6.9 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है.

कोरोना जैसी चुनौतियों को देखते हुए देश स्वास्थ्य व्यवस्थाएं मजबूत बनाने पर जोर दे रहे हैं. माना जा रहा है कि 2030 तक इस क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए 5.17 लाख करोड़ रुपए तक खर्च किए जाएंगे.

2021 में राज्यसभा में पेश की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल 37 लाख पंजीकृत नर्सें हैं यानी 1,000 लोगों पर नर्सों की संख्या 1.7 के लगभग है जबकि 1,000 के मुताबिक होनी जरूरी है. इस माने इस क्षेत्र में महिलाओं के पास काफी स्कोप है.

आंकड़े कहते हैं अमेरिका में 5 लाख से ज्यादा नर्सों की जरूरत है, जिस में 90 प्रतिशत तक की आपूर्ति दूसरे देशों की नर्सों से होती है. इस माने में भारतीय नर्सों का पूरी दुनिया में कोई मुकाबला नहीं है, क्योंकि भारतीय नर्सें स्वाभाविक रूप से अपनी तीमारदारी की कला में निपुण होती हैं.

यही हाल यूरोप का भी है. यूरोप में भी बड़े पैमाने पर भारतीय नर्सों की मांग है. ऐसोचेम के एक अध्ययन के मुताबिक, 2020 तक यूरोप में 7 लाख से ज्यादा भारतीय नर्सों की मांग हो सकती है. लेकिन रोजगार के लिए भारतीय नर्सें विदेश न जाना चाहें तो भी उन के लिए हिंदुस्तान में रोजगार की कोई कमी नहीं है.

  1. मैडिकल उद्योग : जिस तरह से भारत में मध्यवर्ग की स्वास्थ्य संबंधी सम?ा में दिनोंदिन  इजाफा हो रहा है और स्वास्थ्य के लिए सजगता बढ़ रही है, उस को देखते हुए भारत में भी मैडिकल उद्योग आने वाले सालों में फलेफूलेगा. फिलहाल मैडिकल उद्योग 20 प्रतिशत की रफ्तार से बढ़ रहा है, जो खतरनाक ढंग से डराने वाली औद्योगिक विकास दर और मंदी के भंवर में फंस रही अर्थव्यवस्था के लिए एक खुशखबरी है. विभिन्न उद्योग संगठनों के सा?ो अध्ययनों को अगर एकसाथ मिला दें तो 2020 तक भारत में 17 लाख से ज्यादा नर्सों की जरूरत पड़ेगी. इस तरह देखा जाए तो नर्सिंग के क्षेत्र में आने वाले सालों में रोजगार ही रोजगार हैं. नर्सिंग की ही तरह नर्सरी टीचिंग के क्षेत्र में भी भारतीय महिलाओं के लिए रोजगार की जबरदस्त संभावनाएं बन गई हैं.
  2. मीडिया जगत : मीडिया वह क्षेत्र है जिस में एक जमाने में पुरुषों का वर्चस्व हुआ करता था. लेकिन 90 के दशक में लड़कियों ने धीरेधीरे इस क्षेत्र में अपने कदम बढ़ा दिए. आज मीडिया के क्षेत्र में लड़कियों की अच्छीखासी तादाद है. कुछ क्षेत्र तो खासतौर पर महिलाओं के वर्चस्व वाले हो गए हैं. उन में समाचारों की दुनिया की बात करें तो विजुअल मीडिया लड़कियों के लिए रोजगार के बड़े क्षेत्र के रूप में उभरा है. लेकिन अगर हम कहें कि मीडिया का एक क्षेत्र ऐसा है जो, मीडिया कम, व्यवसाय ज्यादा है, जिस में लड़कियों की मौजूदगी लड़कों के मुकाबले कहीं ज्यादा दिख रही है तो वह क्षेत्र है पीआरओ. पब्लिक रिलेशन औफिसर ऐसी पोस्ट है, जिस में 90 प्रतिशत लड़कियां हैं. पीआरओ का क्षेत्र मीडिया का ऐसा क्षेत्र है जहां लड़कियों का पूर्ण वर्चस्व है.
  3. ज्वैलरी डिजाइनिंग : वैसे तो डिजाइनिंग एक जमाने तक विशुद्ध रूप से पुरुषों का क्षेत्र था, लेकिन हाल के सालों में इस क्षेत्र में महिलाओं ने बहुत व्यवस्थित ढंग से अपने कदम जमाए हैं. डिजाइनिंग में खासतौर पर ज्वैलरी डिजाइनिंग और इंटीरियर डैकोरेशन में महिलाओं ने पुरुषों से बाजी मार ली है. ऐसे ही 2 दर्जन से ज्यादा और ऐसे क्षेत्र हैं जहां महिलाएं नियोजक की पहली प्राथमिकता बन गई हैं. नतीजतन, यह कहने में किसी को जरा भी गुरेज नहीं होना चाहिए कि आने वाले सालों में म?िहलाएं नौकरी के लिए पहली पसंद होंगी.
  4. सेना में दमखम : भारतीय सेना और अर्धसैनिक बलों में भी अब महिलाओं का बोलबाला है. बीएसएफ ने तो बंगलादेशभारत सीमा पर महिलाओं की एक बटालियन तैनात की है.
  5. टीचर के रूप में रोजगार : जब से 14 साल तक के हर बच्चे के लिए सरकार की तरफ से अनिवार्य व मुफ्त पढ़ाई की सुविधा का कानूनी प्रावधान हुआ है, तब से महिलाओं की अध्यापिका के रूप में रोजगार की जबरदस्त संभावनाएं पैदा हो गई हैं. वैसे भी आने वाले 7-8 सालों में भारत को 40 लाख से ज्यादा नए शिक्षकों की जरूरत पड़ेगी और वह भी छोटी कक्षाओं को पढ़ाने के लिए. पूरी दुनिया में छोटे बच्चों को पढ़ाने के लिए महिलाएं सब से उपयुक्त मानी जाती हैं.

भारत में जिस तरह से लोगों की खासकर मध्यवर्ग की क्रय शक्ति में इस महंगाई के बावजूद 7 प्रतिशत का सालाना इजाफा हो रहा है, उस से आने वाले सालों में पढ़ाई के लिए चाहत और कोशिशें और बढ़ेंगी. इस से पढ़ने वालों की संख्या बढ़ेगी तो रोजगार भी बढ़ेगा और चूंकि महिलाएं बच्चों को पढ़ाने में विशेषज्ञ मानी जाती हैं तो उन के लिए शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार की सब से ज्यादा संभावनाएं हैं.

‘‘मैं क्या कोई भी कलाकार अमरीश पुरी को छू तक नहीं सकता…’’-मनीष वाधवा

टैलीविजन सीरियल ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ में चाणक्य का किरदार निभा कर शोहरत बटोरने वाले अभिनेता मनीष वाधवा वर्ष 1999 से अभिनय जगत में सक्रिय हैं. मूलतः अंबाला, हरियाणा के बाशिंदे मनीष वाधवा को कला का माहौल घर में ही मिला. उन की मां गायिका थीं.

मनीष वाधवा ने दर्जनभर से अधिक टैलीविजन सीरियलों के अलावा ‘शबरी’, ‘राहुल’, पठान’ सहित कई फिल्मों में अपने अभिनय का जलवा दिखाया है.

इन दिनों मनीष वाधवा 11 अगस्त को रिलीज हो रही फिल्म ‘गदर 2’ को ले कर काफी चर्चा में हैं. वे।इस फिल्म में मुख्य खलनायक हैं. फिल्म ‘गदर 2’ में मनीष वाधवा को लोग पाकिस्तानी आर्मी जनरल हामिद इकबाल के किरदार में देखेंगे.

कुछ लोग उन्हें इस फिल्म में अमरीष पुरी का रिप्लेसमैंट भी बता रहे हैं, पर मनीष वाधवा खुद ऐसा नहीं मानते हैं.

पेश हैं, मनीष वाधवा से हुई बातचीत के खास अंश :

  • आज आप अभिनेता बन कर कैसा महसूस करते हैं?

मैं अभिनय में विशेषज्ञ होने का दावा नहीं करता. लेकिन हां, मुझे इस बात पर गर्व जरूर है कि मैं इस खूबसूरत कला की मदद से अपना जीवनयापन करता हूं.

मेरा मानना है कि यदि आप अपने जीवन की सभी समस्याओं और दुखों को भूलना चाहते हैं, तो हर दिन सुबह उठें और कोई और बन जाएं. मैं कालेज के समय से ही थिएटर कर रहा हूं. हालांकि थिएटर मेरे दिल के करीब है, पर मैं यह कहूंगा कि अभिनय मेरा पहला प्यार है. मैं ने अब तक थिएटर, टैलीविजन सीरियल और फिल्में की हैं. मैं ने टीवी सीरियलों में कई तरह के किरदार निभाए हैं. किरदारों के भीतर की विविधता ही मुझे सब से ज्यादा आकर्षित करती है. मुझे गजल के साथसाथ रोमांटिक गानों को भी गाने का शौक है.

  • अपनी अब तक की यात्रा पर रोशनी डालेंगे?

वर्ष 1999 में मेरी अभिनय यात्रा शुरू हुई. यह यात्रा काफी दिलचस्प है. मेरा जन्म 1972 में हरियाणा के अंबाला जिले में हुआ था. फिर मेरा परिवार 1983 में मुंबई चला आया. अभिनय का जुनून तो बचपन से ही था. मुंबई में मैं ने सब से पहले अपने पिता की ही फिल्म में बाल कलाकार के रूप में अभिनय किया था. पर यह फिल्म बीच में ही बंद हो गई थी. उस के बाद मैं थिएटर करता रहा. थिएटर से ही टीवी सीरियल व फिल्में मिलती गईं और आज यहां तक पहुंच गया.

पहले फिल्मों में प्रवेश पाने के इच्छुक लोग थिएटर को एक सीढ़ी के तौर पर मान कर थिएटर से शुरुआत किया करते थे. क्या आप भी इसी वजह से थिएटर कर रहे थे?

जी नहीं. मेरी थिएटर से जुड़ने की वजह यह कदापि नहीं थी. मैं अपनेआप को ‘पौलिश’ करने के लिए थिएटर से जुड़ा हुआ था. मैं एक नाटक कर घर की तरफ जा रहा था, तो मेरे कालेज के प्रोफैसर रास्ते में मिल गए. उन्होंने पूछ लिया कि बेटे क्या कर रहे हो? तो मैं ने कह दिया कि एक नाटक कर के आ रहा हूं. तो उन्होंने कहा कि हमारे कालेज में 3 दिन बाद एक समारोह होने वाला है, उस में एक नाटक कर के हमें भी दिखाना.

मैं ने कालेज में नाटक किया, तो प्रोफैसर साहब को अहसास हुआ कि इस बच्चे में कुछ तो प्रतिभा है. तब उन्होंने बाहर से एक निर्देशक की नियुक्ति की, जो हमें नाटक के लिए ट्रेनिंग देते थे. हर साल मुझे उस में काम करने व नाटक करने का अवसर मिलता गया.

मुझे कालेज के दिनों में ही कई सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के अवार्ड मिल गए. बलराज साहनी ट्राफी मिली. इस तरह धीरेधीरे अभिनय की गाड़ी आगे बढ़ती रही.

  • वर्ष 1999 से अब 2023 तक के अपने कैरियर को आप किस तरह से देखते हैं?

धीरेधीरे ही सही, पर मेरा कैरियर निरंतर ग्रो हुआ है.
हर बार नए पड़ाव आते गए. मसलन, वर्ष 2005 में जब मैं ने मैगा सीरियल ‘कोहिनूर’ किया. इस सीरियल के ही चलते मुझे राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘शबरी’ मिली. अफसोस की बात यह रही कि इस फिल्म की शूटिंग वर्ष 2005 में हुई थी, मगर यह फिल्म 2012 में सिनेमाघरों में पहुंची थी. इस से पहले वर्ष 2001 में मैं प्रकाश झा के साथ फिल्म ‘राहुल’ कर चुका था.

मुझे यह फिल्म डाक्टर मुक्ता देखने के बाद मिली थी. ‘शबरी’ के प्रदर्शन में देरी के चलते ही मुझे पुनः टीवी सीरियलों की तरफ मुड़ना पड़ा. आप भी जानते हैं कि बौलीवुड में सबकुछ फिल्म की सफलता के इर्दगिर्द ही
घूमता है. इसी कारण हर शुक्रवार कलाकार, निर्देशक सभी की जिंदगी बदल जाती है. यह अजीब सी विडंबना है. आप ने फिल्म में खराब अभिनय किया है अथवा उत्कृष्ट अभिनय किया है, इस पर ध्यान फिल्म की सफलता के बाद ही दिया जाता है.

फिल्म की सफलता का मतलब कलाकार का अभिनय सही नहीं है. जब फिल्म चलती है, तभी कलाकार चलता है. फिर टीवी सीरियल ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ में मुझे चाणक्य का किरदार निभाने का अवसर मिला, जिस से मेरे कैरियर को अचानक बहुत बड़ा बूस्टअप मिल गया. यहीं से मेरा कैरियर एकदम से बदल गया. इस किरदार को निभाने के लिए मैं ने अपने सिर के बाल मुंडा कर टकला हुआ था. आज 12 वर्ष हो गए, मुझे खुद को गंजा ही रखना पड़ रहा है, क्योंकि तब से मुझे लगातार ऐसे ही किरदार मिल रहे हैं.

मुझे कई सीरियलों में उत्कृष्ट कलाकार के पुरस्कार भी मिले. मैं ने सीरियल ‘परमावतार श्रीकृष्ण’ में नैगेटिव किरदार यानी कृष्ण के मामा कंस का किरदार निभाया. बीच में ‘देवों के देव महादेव’ में रावण का किरदार निभाया. इसे बीच में बीमारी की वजह से छोड़ना पड़ा था, तो इस तरह बीचबीच में मैं ने काफी अच्छे किरदार निभाए.

  • सीरियल हो या फिल्म, आप ने पीरियोडिक या हिस्टोरिकल किरदार ही ज्यादा निभाए. इस की कोई खास वजह?

ऐसा सभी को लगता है. अगर आप मेरे सीरियलों पर नजर दौड़ाएंगे, तो मैं ने अब तक बमुश्किल 10 या 11 सीरियल ही किए हैं. लेकिन वह सीरियल और उन के किरदार इतने सराहे गए कि क्या कहें. देखिए, मैं ने ‘चंद्रगुप्त मौर्य’ या ‘पेशवा’ जैसे सीरियल किए. मैं ने वहीं पर ‘इसे क्या नाम दूं’ जैसा सामाजिक सीरियल भी किया. इस में भी मुझे बहुत प्यार मिला. लोग इस सीरियल के मेरे किरदार निरंजन को अभी भी याद करते हैं. टीवी श्रृंखला ‘मानो या ना मानो’ में विक्रम भार्गव और विनीत भार्गव के रूप में भी अभिनय किया है. ‘टाइम मशीन’ में मैं ने मुख्य हीरो का किरदार निभाया, जो कि वैज्ञानिक है. फिर ‘महाकुंभ’ में भी
शोहरत मिली. तो मैं ने हर तरह के किरदार निभाए.

अब मैं ने फिल्म ‘गदर 2’ में मुख्य खलनायक हामिद इकबाल का किरदार निभाया है. मेरा मानना है कि मैं एक शिक्षार्थी हूं और सीखने की प्रक्रिया अभी भी जारी है.

  • फिल्म ‘गदर 2’ से जुड़ना कैसे हुआ?

मैं ने दक्षिण भारत में फिल्म ‘शाम सिंह रौय’ की है, जिस में मेरा विलेन का किरदार था. इस फिल्म के फाइट मास्टर ने ही फिल्म ‘गदर 2’ के निर्देशक अनिल शर्मा को मेरे बारे में बताया. उस वक्त अनिल शर्मा को एक प्रतिभाशाली कलाकार की तलाश थी. वे 10-12 कलाकारों से मिले थे, पर बात नहीं बनी थी.

बहरहाल, अनिल शर्मा ने मुझे बुलाया. मेरे कदकाठी व भाषा पसंद आई. तब वह मुझे सनी देओल से मिलाने ले गए. उन से जिम्मेदारी की बात हुई. उन्होंने मुझ से कहा कि आप ने अमरीश पुरी को पूरी तरह से देखा नहीं है. फिल्म ‘गदर’ के अलावा उन की दूसरी फिल्में भी देखे लें. हम चाहते हैं कि अमरीश पुरी की ही तरह का सशक्त विलेन नजर आए. सनी देओल मुझ से बातें कर संतुष्ट हुए और मैं ‘गदर 2’ का हिस्सा बन गया.

  • आप ने इस के लिए किस तरह की तैयारी की?

-लेखक शक्तिमान ने पटकथा लिखी थी. उसी के अनुरूप पहले कुछ लुक टैस्ट वगैरह किए गए. उस के बाद मेरी मुलाकात लेखक से हुई. उन से मुझे पूरी कहानी समझ आई और अपना किरदार समझ आया और फिर इतनी अच्छी टीम थी कि सबकुछ अपनेआप होता चला गया.

फिल्म ‘पठान’ में भी आप ने पाकिस्तानी चरित्र निभाया. अब ‘गदर 2’ में भी. यह महज इत्तिफक है या…?

मैं ने दोनों फिल्मों की शूटिंग लगभग एकसाथ ही की. वैसे, मैं ने ‘पठान’ के बाद ‘गदर 2’ साइन की थी. दोनों फिल्में कोरोना के समय की हैं. दोनों में पाकिस्तानी आर्मी जनरल का किरदार निभाना मेरे लिए एक्साइटिंग और चुनौतीपूर्ण रहा. फर्क यह है कि ‘पठान’ का आर्मी जनरल 2023
का है और ‘गदर 2’ का आर्मी जनरल 1971 का है. 1971 का जनरल देसी है.

  • क्या आप को नहीं लगता कि साल 1971 में पाकिस्तान में धर्म बहुत ज्यादा हावी नहीं था, लेकिन अब।2023 आतेआते वहां धर्म बहुत ज्यादा हावी हो गया है?

नहीं, 1947 की ‘गदर’ में भी आप देख चुके हैं कि वहां भी धर्म हावी था. मुझे ऐसा लगता है कि मजहब की दीवार होनी नहीं चाहिए. लेकिन अगर है तो या आज से नहीं शुरू से चलती आ रही है. यह बंटवारा भी अपनेआप में मजहब की दूरियां हैं.

  • आप को अमरीश पुरी का रिप्लेसमैंट कहा जा रहा है?

नहीं… नहीं, ऐसा नहीं है. पहली बात तो फिल्म में मेरा किरदार सकीना के पिता का नहीं है, जो कि अमरीश पुरी का किरदार था. यदि ऐसा होता, तब तो आप यह बात कह सकते थे अथवा तब आप अमरीश पुरी से तुलना कर सकते थे. दूसरी बात अमरीश पुरी की ऐक्टिंग का कोई सानी नहीं था. उन्हें कोई रिप्लेस नहीं कर सकता.

अभिनय में जितनी बड़ी ऊंचाई अमरीश पुरी ने छुई थी, उसे तो कोई नहीं छू सकता. मुझे तो इस फिल्म में सिर्फ एक विलेन की भूमिका करनी थी. फिल्म में हामिद इकबाल का मेरा किरदार एकदम अलग है. एक अलग विलेन से मतलब है कि अलग किरदार है.

  • आप ‘गदर 2’ के अपने किरदार पाकिस्तानी आर्मी जनरल हामिद इकबाल को ले कर क्या कहेंगे?

बहुत ही क्रूर है. निर्दयी है. वह किसी के बारे में नहीं सोचता है. उस का अपना एक गोल है. वह भारत, तारा सिंह व जीते को खत्म करना चाहता है. इन में से भी तारा सिंह तो उस का सब से बड़ा दुश्मन है.

  • एक कलाकार किसी भी किरदार को निभाने के लिए 2 चीजों का इस्तेमाल करता है. अपनी कल्पनाशक्ति और जीवन के अनुभव. आप किस का कितना उपयोग करते हैं?

दोनों का मिश्रण जरूरी है. हर कलाकार हर किरदार को निभाते समय अपने निजी अनुभव के आधार पर ही नींव रखता है. उस ने जो देखा है,एनजो सीखा है, उसी के साथसाथ वह अपनी सोच व कल्पना का उपयोग करते हुए निर्देश के वीजन को साकार करने की कोशिश करता है. यही मेरा भी तरीका है.

  • आप इतना फिट कैसे रहते हैं?

मैं सुबह व्यायाम और योग करने के लिए समय निकालता हूं और बस यह सुनिश्चित करता हूं कि रात में भारी आहार न लूं. बाकी सबकुछ अपनेआप होता है.

महिलाओं में होने वाली जानलेवा बीमारी

आज के युग में जितनी ज्यादा सुविधाएं है उतनी ही ज्यादा  बीमारियां भी हमें  घेरे हुए हैं चाहे वो पुरुषो में हो या महिलाओं में. लेकिन हम आज बात कर रहे है महिलाओं मे होने वाली कुछ ऐसी बीमारियों की जो उनकी मौत का कारण तक बन रही हैं.

ह्रदय रोग

ह्रदय रोग पुरुषो की ही मौत की वजह नहीं बना हुआ है बल्कि महिलाओं की मौत का कारण भी बना  हुआ  है. हमारे विशेषज्ञ डा. पवन बताते है  महिलाओं में ३० की उम्र क बाद दिल की  बीमारी का खतरा अधिक बढ़ जाता है साथ ही बहुत सी  ऐसी तकलीफ जैसे सीढ़ियाँ चढ़ने मे असमर्थ होना, सांस लेने मे  तकलीफ होना, दिल की बीमारी इनकी सभी छमताओं को नष्ट कर  देती है.

लक्षण– सीने मे दर्द ,या कभी कभी बिना दर्द के  ही हार्ट अटक की गुंजाईश रहती है, उलटी, पसीना आना, जी मिचलाना, गर्दन मे दर्द, कमर मे दर्द होना, पेट में दर्द होना.

सावधानियां 

नामक और चीनी का सेवन कम करे, व्यायाम अवश्य करे, स्ट्रैस  न ले.

रेगुलर चकअप कराये.

स्तन कैंसर: यह एक ऐसी बीमारी है जो दिन प्रतिदिन एक गंभीर रूप लेती जा रही है  स्तन कोशिकाओं में होने वाली अनियंत्रित वृद्धि, स्तन कैंसर का मुख्य कारण है. कोशिकाओं में होने वाली लगातार वृद्धि एकत्र होकर गांठ का रूप ले लेती है, जिसे कैंसर ट्यूमर कहते हैं.

हमारे यहां आज भी लोग कैंसर से डरते हैं लेकिन पश्चिम देशों मे इसका इलाज  बहुत ही आराम से किया जा रहा है ,हमारे यहां लोगों में जानकारी और जागरूकता का आभाव है .

लक्षण 

स्तन के आकार में बदलाव महसूस होना, स्तन या बाह के नीचे की ओर टटोलने पर गांठ महसूस होना, स्तन को दबाने पर दर्द होना, कोई तरल या चिपचिपा पदार्थ स्त्रावित होता, निप्पल के अग्रभाग का मुड़ना एवं रंग लाल होना, स्तनों में सूजन आ जाना.

सावधानियां

  • व्यायाम  करें
  • नमक का अत्यधिक सेवन न करें
  • रेड मीट के अधिक सेवन से बचें
  • सूर्य के तेज किरणों के प्रभाव से बचें
  • अधिक मात्रा में धूम्रपान और नशीले पदार्थों का सेवन न करें
  • .आटोइम्यून डिसिज : 75  प्रतिशत आटोइम्यून डिसिज महिलाओं  मे पायी जाती है. इस बीमारी मे इम्यून सिस्टम हमारे शरीर पर अटैक कर टिश्यू को नष्ट कर देता है. इस श्रेणी में लगभग 80 से भी ज्यादा गंभीर क्रानिक बीमारियां  हैं जिसमें ल्यूपस, मल्टीपल स्किलरोइसिस और मधुमेह आदि भी शामिल हैं.

लक्षण :जोड़ों में दर्द होना,मांसपेशियों में दर्द और कमजोरी होना,वजन में कमी होना,अनिद्रा की शिकायत होना,दिल की धड़कन अनियंत्रित होना,त्वचा का अतिसंवेदनशील होना, त्वचा पर धब्बे पड़ना,दिमाग ठीक से काम न करना, ध्यान केंद्रित करने में समस्या.

सावधानियां : खानपान में बदलाव करें, और ऐसे आहार का सेवन करें जो आपकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हों.

एनीमिया : भारत आज भी पुरुष प्रधान देश है आज भी महिलाएं परिवार के खाने के बाद बचा हुआ खाना खाती हैं . और अपने खान पान  का बिलकुल भी ध्यान नहीं रखती है एनीमिया के  मुख्य २ कारण है  पोषक तत्वों की कमी और दूसरा पीरियड के दौरान बहुत ज्यादा खून बह जाना . हमारे देश मे २० से ३० प्रतिशत महिलाओं  की मृत्यु का कारण है  एनीमिया.

लक्षण : कमजोरी, आलस, थकान, पीरियड के दौरान बहुत  ज्यादा खून निकलना .

सावधानियां :ज्यादा से ज्यादा हरी सब्जियां, सोया, पनीर, दूध आधी खाना और पीना चाहिए . नॉन वेजिटेरिएन लोग चिकन या मीट भी खा सकते हैं .

एंडोमेट्रोसिस:

यह समस्या अधिकतर  18 से 35 की उम्र के बीच की महिलायों को  होती  है .इसमे गर्भाशय (एंडोमेट्रियम) के अंदर की ऊतक गर्भाशय  के बाहर बढ़ने लगती है. एंडोमेट्रोसिस आमतौर पर श्रोणि, फैलोपियन ट्यूब और हमारे अंडाशय को अस्तर में ऊतक शामिल करता है. एंडोमेट्रोसिस के दौरान, एंडोमेट्रियल ऊतक टूट जाते हैं और आमतौर पर खून बहता  हैं.यह  गर्भधारण करने के दौरान समस्याएं पैदा कर सकती है.

लक्षण :

निचले पेट में दर्द

मासिक धर्म अनियमितताओं.

सावधानियां :परेशानी होने पर डा. से  परमर्श अवश्य ले.

26 जनवरी स्पेशल : वही परंपराएं – 50 साल बाद जवान की जिंदगी में क्या आया बदलाव ?

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ईमानदार : अनुराग की पत्नी ने क्या रास्ता निकाला था?

राष्ट्रीय कृषक बैंक के अध्यक्ष जयगोपाल अपने केबिन में बैठे एक पत्र पढ़ रहे थे. आंखों के सामने से गुजरती पंक्तियों के साथ उन के चेहरे का तनाव बढ़ता जा रहा था. पत्र पढ़ कर उन्होंने एक ओर रखा और इंटरकौम का बटन दबा कर अपनी सैके्रेटरी नीलिमा से कहा, ‘‘नीलिमा, हमारी श्यामगंज शाखा में कोई अनुराग ठाकुर है. रिकौर्ड देख कर उस की पोजीशन पता करो और बताओ मुझे, जल्दी.’’

थोड़ी देर बाद नीलिमा हाथ में एक फाइल थामे राजगोपाल साहब के सामने खड़ी थी. वह फाइल देख कर बताने लगी, ‘‘सर, अनुराग ठाकुर वैसे तो कैशियर हैं, लेकिन फिलहाल एक्टिंग मैनेजर का काम देख रहे हैं. दरअसल, पूर्व मैनेजर राजेश की मौत के बाद वहां किसी की पोस्टिंग नहीं हुई है. इसलिए अस्थाई तौर पर मैनेजर का काम उन्हीं को सौंप दिया गया था. वैसे भी वहां कोई ज्यादा काम नहीं है.’’

जयगोपाल साहब ने मेज पर रखा लेटर नीलिमा की तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘पढ़ो इसे, है तो गुमनाम, पर श्यामगंज से ही किसी ने भेजा है. हम इस लेटर को इग्नोर नहीं कर सकते.’’

नीलिमा फाइल साहब की मेज पर रख कर पत्र पढ़ने लगी. पत्र अध्यक्ष राजगोपाल के ही नाम आया था. लिखा था, ‘महोदय, हम खेतीबाड़ी कर के अपने खूनपसीने की कमाई आप के बैंक में जमा करते हैं. सुनने में आया है कि बैंक दिवालिया होने वाला है. वैसे भी यहां जो कुछ हो रहा है, उस के बाद यह तो होना ही था. पता चला है कि यहां के कैशियर अनुराग ठाकुर ने पिछले कुछ महीनों में लाखों का गबन किया है और वह गबन की रकम को शहर से बाहर ले जाने वाला है. जब तक इस तरफ आप का ध्यान जाएगा तब तक बैंक का दीवाला निकल चुका होगा.’ पत्र पढ़ कर नीलिमा ने कहा, ‘‘सर, यकीन नहीं होता. लेकिन…’’

‘‘लेकिनवेकिन कुछ नहीं, एक लेटर बना कर लाओ, मैं आदेश जारी कर देता हूं. कल ही एक औडिटर को श्यामगंज रवाना करना है. छानबीन के बाद वह सीधे मुझे रिपोर्ट करेगा.’’

नीलिमा चली गई. उस ने बौस के आदेश का पालन किया. लेटर तैयार होते ही आदेश जारी हो गया. अगले दिन एक औडिटर को श्यामगंज भेज दिया गया. क्योंकि मामला अमानत में खयानत का था.

अचानक औडिटर को आया देख अनुराग ठाकुर को आश्चर्य हुआ. थोड़ा गुस्सा भी आया. उन्होंने तल्खी से कहा, ‘‘मेरे रिकौर्ड और लेजर की जांच करनी है? आखिर क्यों? महीने के बीच में ऐसा होता है क्या? न कोई नोटिफिकेशन, न कोई सूचना. यह कानून के खिलाफ है. ऐसी कौन सी आफत आ गई? अधिकारियों को कोई शक है तो मुझे हटा दें, तबादला कर दें.’’

औडिटर ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘मिस्टर अनुराग, परेशानी की कोई बात नहीं है. समयसमय पर हम ऐसा करते रहते हैं. पहले भी कई शाखाओं में ऐसा हुआ है. वैसे आप चाहे तो अध्यक्ष का आदेश देख सकते हैं. यह रुटीन की काररवाई है. मुझे ज्यादा से ज्यादा 2 घंटे लगेंगे.’’

‘‘मैं आप की बात से सहमत हूं.’’ अनुराग ठाकुर बोले, ‘‘लेकिन लोगों को पता लगेगा तो मैं तो बदनाम हो जाऊंगा. इस कस्बे की छोटी सी बैंक है ये, मुझे सब लोग जानते हैं. बात फैलते देर नहीं लगेगी. लोग सोचेंगे, जरूर मैं ने कोई हेराफेरी की होगी.’’

‘‘नहीं, किसी को पता नहीं चलेगा.’’ औडिटर ने शांत भाव से कहा, ‘‘बस आप किसी को मत बताना. मैं सब कुछ चुपचाप निपटा दूंगा.’’

औडिटर की विनम्रता देख कर अनुराग ठाकुर ने मूक स्वीकृति दे दी. औडिटर 1 घंटे में अपना काम निपटा कर लौट गया.

अगले दिन उस ने अपनी रिपोर्ट अध्यक्ष राजगोपाल के सामने रख दी. रिपोर्ट के हिसाब से सब कुछ ठीक था. कहीं भी एक पैसे की हेराफेरी नहीं पाई गई थी. रिपोर्ट देख कर राजगोपाल बोले, ‘‘एक गुमनाम पत्र को हमें इतनी अहमियत नहीं देनी चाहिए थी.’’ बात वहीं खत्म हो गई.

सब कुछ ठीक चल रहा था. एक महीना ठीक से गुजर गया. महीना भर बाद बैंक अध्यक्ष राजगोपाल को फिर एक पत्र मिला. इस बार पत्र किसी दूसरे आदमी ने और दूसरी जगह से लिखा था. इस शिकायती पत्र में भी अनुराग ठाकुर को निशाना बना कर हेराफेरी की बात दोहराई गई थी. पत्र लिखने वाले ने दावा किया था कि बैंक के खातों की जांच ठीक से नहीं की गई थी.

कैशियर ने औडिटर को या तो बेवकूफ बना दिया था या फिर कुछ दे दिला कर संतुष्ट कर दिया था. आप को इस बात का अहसास तब होगा जब तीर कमान से निकल जाएगा. हो सकता है, आप इस अजनबी के खत पर ध्यान न दें. पर एक बार सोचें जरूर कि क्या इस मामले की दोबारा इंक्वायरी करानी चाहिए.

पत्र पढ़ कर राजगोपाल सोच में पड़ गए. वह दोबारा इंक्वायरी के पक्ष में नहीं थे. लेकिन उन के सामने पड़ा पत्र उन्हें बारबार सोचने को मजबूर कर रहा था. उन के मन में आया भी कि श्यामगंज ब्रांच में इंक्वायरी कर के आए औडिटर से पूछताछ करें. लेकिन उन के जहन में सवाल उठा कि उस ने कुछ गलत किया होगा तो वह सच क्यों बोले? यह भी संभव है कि अनुराग ठाकुर चतुर चालाक रहा हो और उस ने औडिटर को हिसाबकिताब में कुछ इस तरह उलझाया हो कि वह उस की चाल को पकड़ ही न पाया हो.

किसी ब्रांच में अगर कोई गड़बड़ी होती, वह भी आगाह करने के बाद तो इस की जिम्मेदारी राजगोपाल की ही बनती थी. अपनी इमेज बचाए रखने और संभावित गड़बड़ी से बचने के लिए दोबारा इंक्वायरी कराने में कोई हर्ज नहीं था. वैसे भी यह इंटरनल इंक्वायरी थी. इसलिए सोचविचार कर उन्होंने इस बार इस मामले को पूरी तरह खत्म करने के लिए 3 जिम्मेदार औडिटरों की टीम से जांच कराने का फैसला किया.

अध्यक्ष राजगोपाल ने उसी वक्त अपनी सेक्रैटरी नीलिमा को बुला कर आदेश का लेटर तैयार कराया और उस पर हस्ताक्षर कर दिए. अगले ही दिन 3 चुनिंदा औडिटरों की टीम श्यामगंज के लिए रवाना हो गई. औडिटरों ने श्यामगंज ब्रांच में पहुंच कर अनुराग ठाकुर को अपने आने का मकसद बताया तो वह नाराजगी भरे स्वर में बोले, ‘‘मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि आखिर मामला क्या है? क्यों मेरी ईमानदारी पर प्रश्नचिन्ह लगाया जा रहा है?’’

‘‘आप नाराज न हों मिस्टर अनुराग, कोई खास बात नहीं है.’’ एक औडिटर ने उन्हें समझाने की कोशिश की, ‘‘इस से कोई फर्क नहीं पड़ेगा. हम अपना काम कर के चुपचाप चले जाएंगे.’’

अनुराग को गुस्सा तो आ रहा था, लेकिन ऊपरी आदेश था इसलिए चुप होना पड़ा. एक औडिटर अनुराग के साथ बैठ गया और बाकी 2 अपने काम में जुट गए. इस बार एकएक चीज का बारीकी से निरीक्षण किया गया. इस काम में पूरे 7 घंटे लगे. अनुराग चुपचाप देखने के अलावा कुछ न कर सके.

औडिटरों की टीम अपना काम कर के हेड औफिस लौट गई. इस टीम को हिसाबकिताब में कहीं कोई गड़बड़ी नहीं मिली थी.

एक सप्ताह बाद राष्ट्रीय कृषक बैंक अध्यक्ष राजगोपाल अपने केबिन में बैठे थे. तभी नीलिमा ने आ कर कहा, ‘‘सर, श्यामगंज ब्रांच से मिस्टर अनुराग ठाकुर आए हैं और आप से मिलना चाहते हैं.’’ राजगोपाल ने नीलिमा से कहा कि उन्हें तुरंत अंदर भेज दें.

अनुराग अंदर आए तो अध्यक्ष राजगोपाल ने अपनी आदत के विपरीत उठ कर उन का स्वागत किया, उन से गर्मजोशी से हाथ मिलाया. लेकिन इस के बावजूद अनुराग ने खुशी का कोई इजहार नहीं किया. उन के चेहरे पर नागवारी के भाव साफ नजर आ रहे थे. औपचारिकता के बाद अनुराग ने एक लेटर राजगोपाल की ओर बढ़ाते हुए कहा, ‘‘सर, मैं अपने पद से इस्तीफा देना चाहता हूं. ये रहा मेरा रिजाइन लेटर.’’

राजगोपाल चौंके. फिर उन्हें बैठने का इशारा करते हुए पूछा, ‘‘क्यों, इस्तीफा देने की क्या जरूरत पड़ गई. यह फैसला किस लिए?’’

‘‘सर, पिछले डेढ़ महीने से मुझ पर शक किया जा रहा है. मेरी ईमानदारी पर अंगुलियां उठ रही हैं. मैं इसे बरदाश्त नहीं कर सकता. मुझे इस से दिमागी तौर पर बहुत तकलीफ पहुंची है. मेरी साख खत्म हो गई है. बीवीबच्चे तक शक की नजरों से देखने लगे हैं.’’

‘‘मैं समझ सकता हूं.’’ अध्यक्ष राजगोपाल की बातों से गलती का अहसास साफ झलक रहा था. वह कुछ देर तक चुप बैठे गहराई से सोचते रहे. फिर अनुराग के चेहरे पर नजरें जमाते हुए बोले, ‘‘हेड औफिस से जो गलती हुई है, उसे हम सुधार देते हैं. श्यामगंज ब्रांच में मैनेजर का पद अभी खाली पड़ा है. आप उसे स्थाई तौर पर संभाल लीजिए. आप की साख खुदबखुद बन जाएगी. पद भी बढ़ेगा और वेतन भी. ईमानदार आदमी यूं ही नहीं मिलते. हम आप का इस्तीफा मंजूर नहीं कर सकते मिस्टर अनुराग. फाड़ कर फेंक दीजिए इसे.’’

अनुराग ने मैनेजर के हाथ से इस्तीफा लेते हुए हैरानी से पूछा, ‘‘क्या आप इस मामले में वाकई संजीदा हैं सर?’’ ‘‘बिलकुल, मैं अभी सारी काररवाई पूरी करा देता हूं.’’ कह कर राजगोपाल ने इंटरकाम का बटन दबा कर अपनी सैके्रटरी नीलिमा को बुलाया.

मैनेजर बनने की खुशखबरी के साथ अनुराग ठाकुर श्यामगंज लौट आए. घर लौट कर उन्होंने यह खुशखबरी अपनी पत्नी को सुनाई. फिर सोफे पर पसरते हुए बोले, ‘‘पिछले 20 सालों से अपनी ईमानदारी को अपने ही कंधों पर उठाए घूम रहा था. कोई जानता ही नहीं था कि मैं ईमानदार हूं. क्या फायदा ऐसी ईमानदारी का? लेकिन मेरे बारे में अब सब जान गए कि मैं कितना ईमानदार हूं. अध्यक्ष तक को पता लग गया.’’

मिसेज अनुराग का चेहरा खुशी से दमक रहा था. अनुराग पत्नी का हाथ थाम कर बोले, ‘‘कमाल का दिमाग है तुम्हारा. आखिर तुम्हारे लेटर वाले आइडिए ने अपना कमाल दिखा ही दिया.’’

‘‘कमाल ही नहीं दिखाया, आप को मैनेजर भी बनवा दिया. ईमानदार मैनेजर.’’ कह कर मिसेज अनुराग खिलखिला कर हंस पड़ीं.

Elvish Yadav का इवेंट हुआ रद्द, 1 लाख से ज्यादा लोग हुए थे शामिल

Elvish Yadav Event : बॉलीवुड एक्टर सलमान खान (Salman Khan) का फेमस रियलिटी शो ‘बिग बॉस ओटीटी 2’ (Bigg Boss OTT 2) अपने आखिरी दौर में पहुंच चुका है. सिर्फ चार दिन बाद शो के विनर के नाम से पर्दा उठ जाएगा. फिलहाल विनर बनने की रेस में एल्विश यादव, अभिषेक मल्हान, पूजा भट्ट, मनीषा रानी और बेबिका आगे चल रहे हैं. सभी कंटेस्टेंट जनता का दिल जीतने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.

हालांकि घर के बाहर कंटेस्टेंट के घरवाले भी अपने-अपने बच्चे को विनर बनाने के लिए जोर-शोर से प्रचार कर रहे हैं. इसी कड़ी में एल्विश यादव (Elvish Yadav Event) के परिवार वालों ने भी उनके लिए एक इवेंट का आयोजन किया था, लेकिन अब उस इवेंट को रद्द करना पड़ा है.

‘बिग बॉस खबरी’ ने ट्वीट कर दी जानकारी

दरअसल एल्विश यादव के लिए आयोजित इस इवेंट में एक लाख से ज्यादा लोग इकट्ठा हो गए थे, जिसको देखते हुए इवेंट (Elvish Yadav Event) को कैंसिल कर दिया गया है. इस बात की जानकारी ‘बिग बॉस खबरी’ (Bigg Boss Khabri) ने ट्वीट कर दी है. ‘बिग बॉस खबरी’ ने ट्वीट कर लिखा, “भारी भीड़ की वजह से एल्विश यादव का इवेंट रद्द कर दिया गया है. बताया जा रहा है कि इस इवेंट में 1 लाख से अधिक लोग इकट्ठा हो गए थे. कई लोग सड़कों पर भी आ गए थे जिसके कारण इवेंट को रद्द करना पड़ा.”

14 अगस्त को स्ट्रीम होगा शो का ग्रैंड फिनाले

इस बार ‘बिग बॉस ओटीटी 2’ (Bigg Boss OTT 2) 17 जून से शुरू हुआ था, जिसमें करीब 13 कंटेस्टेंट्स ने भाग लिया था. लेकिन अब घर में केवल 5 कंटेस्टेंट एल्विश, (Elvish Yadav) अभिषेक, पूजा भट्ट, मनीषा और बेबिका बचे हैं. आपको बता दें कि शो का ग्रैंड फिनाले जियो सिनेमा पर 14 अगस्त को रात 9 बजे से स्ट्रीम होगा.

YRKKH Spoiler : आरोही के फैसले से क्या बच जाएगी अभिनव की जान ?

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier alert : सीरियल “ये रिश्ता क्या कहलाता है” में इस समय खूब सारा ड्रामा देखने को मिल रहा है. इस बात पर अभी भी सस्पेंस बना हुआ है कि अभिनव की मौत होगी या नहीं. वहीं आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि डॉक्टर्स बार-बार कहते हैं कि अभिनव की कंडीशन क्रिटिकल है, जिसे सिर्फ और सिर्फ अभिमन्यु संभाल सकता है. लेकिन अक्षरा और मुस्कान, अभिमन्यु को अभिनव के पास जाने भी नही देती. उन्हें लगता है कि अभिमन्यु ने अभिनव की जान लेनी की कोशिश की है.

किसी को नहीं होगा मुस्कान की बात पर यकीन

कल के एपिसोड (YRKKH Spoiler) में दिखाया गया था कि मुस्कान, अभिमन्यु को अभिनव के पास जाने नहीं देती है. वहीं आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि मुस्कान, अभिमन्यु का कॉलर पकड़कर उसे धकेलती है. ये देख अक्षरा और कायरव हैरान रह जाते हैं और उस पर गुस्सा करते हैं. लेकिन मुस्कान बार-बार कहती है कि वो अभिमन्यु को अभिनव के पास नहीं जाने देगी, क्योंकि अभिमन्यु ने जानबूझकर अभिनव को खाई में धक्का दिया है. हालांकि कोई भी मुस्कान की बात पर यकीन नहीं करता है.

बड़े पापा की बात सुन हैरान हो जाएगी अक्षरा 

इसी बीच बड़े पापा (YRKKH Spoiler) की एंट्री होती है. बड़े पापा सभी से कहते हैं कि उन्होंने खुद अपनी आंखों से देखा है, कि अभिमन्यु, अभिनव को खाई में धक्का देता है. ये बात सुनकर सभी हैरान हो जाते हैं. आगे मुस्कान कहती है कि, उसने देखा था कि अभिमन्यु अभिनव को शराब पिलाने के लिए पहाड़ी पर लेकर जाता है. इसके बाद आरोही, अभिमन्यु से सवाल करती है कि, ‘क्या तुम शराब के नशे में ऑपरेशन करने वाले थे?’ तभी सुरेखा कहेंगी, ‘अभिमन्यु को देखकर ये साफ-साफ पता चल रहा है कि अभी उसने शराब नहीं पी रखी है.’

अभिमन्यु को गिरफ्तार करेगी पुलिस

इसके बाद सभी लोग अभिमन्यु (YRKKH Spoiler) पर इल्जाम लगाएंगे, लेकिन मंजरी बार-बार सबको समझाने की कोशिश करती है कि अभिमन्यु कभी भी ऐसा नहीं कर सकता है. इसके बाद दिखाया जाएगा कि अक्षरा अभिमन्यु को खरीखोटी सुनाएगी. वहीं कायरव पुलिस को फोन कर देगा, जिसके बाद कुछ ही समय में पुलिस वहां आती है और अभिमन्यु को अभिनव की हत्या करने के इल्जाम में गिरफ्तार कर अपने साथ लेकर जाती है.

आरोही लेगी ये फैसला

हालांकि पुलिस स्टेशन जाने से पहले अभिमन्यु, अक्षरा से सवाल करेगा कि, ‘क्या उसे भी यही लगता है कि उसने ही अभिनव (YRKKH Spoiler) का खून किया है?’ अक्षरा, अभिमन्यु के किसी भी सवाल का जवाब नहीं देती है. इसके बाद पुलिस, अभिमन्यु को पुलिस स्टेशन लेकर चली जाएगी. वहीं आरोही, किसी दूसरे हार्ट सर्जन का इंतजाम करती है, जिससे अभिनव की जान बच सकें. ऐसे में उम्मीद जताई जा रही हैं कि अभिनव की जान बच सकती है.

राहुल को राहत

कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मामले ने एक बार फिर साफ किया है कि देश की निचली अदालतों में न्याय कैसा मिलता है. गुजरात के सूरत शहर में स्थित जिले की अदालत के एक मजिस्ट्रेट ने जिस तरह से राहुल के एक रैली में बयान कि, सारे मोदी- नीरव मोदी, ललित मोदी वगैरह चोर क्यों हैं, पर भारतीय जनता पार्टी
के एक विधायक की अवमानना यानी डिफामेशन अर्जी पर 2 साल की सजा सुनाई, वह चौंकाने वाली थी.

जहां इस तरह के मामले 10 साल तक पड़े रहते हैं, वैस्ट सूरत कोर्ट के न्यायिक मजिस्ट्रेट बी एच कपाड़िया ने 16 जुलाई, 2019 को 13 अप्रैल की रैली में दिए गए कांग्रेस नेता राहुल गांधी के भाषण पर मामला संज्ञान में लिया और 23 मार्च, 2023 को उन्हें अपराधी घोषित कर दिया वह भी अधिकतम 2 साल की सजा देने के साथ, जबकि राहुल गांधी ने शिकायत करने वाले पूर्णेश मोदी का नाम तक नहीं  लिया था और जिन के नाम लिए थे उन की ओर से कोई शिकायत दर्ज नहीं कराई गई थी. जज महोदय ने अपील के लिए जेल से तो जमानत दे थी पर अपराध पर स्टे नहीं लगाया.

उच्च न्यायालय में यह सुनवाई जुलाई 2023 में शुरू हुई और 4 अगस्त को गुजरात, जहां से नरेंद्र मोदी और अमित शाह लोकसभा सांसद है, के उच्च न्यायालय ने राहुल गांधी की पुनर्याचिका को ठुकरा दिया. न्यायमूर्ति हेमंत प्रच्छक ने अहमदाबाद स्थित हाईकोर्ट में कहा कि कोई कारण नहीं बनता कि निचली अदालत के फैसले पर रोक लगाई जाए.

ज्यूडीशियल मजिस्ट्रेट बी एच कपाड़िया ने 2 साल की जो सुनाई वह अप्रत्याशित थी क्योंकि शिकायतकर्ता का नाम तक राहुल गांधी ने नहीं लिया था. यह सजा इंडियन पीनल कोड की डिफामेशन की धारा के एससी/एसटी एक्ट के अंतर्गत किसी दलित समुदाय को अपशब्द कहने जैसी है पर उस में भी शिकायत उस व्यक्ति को करनी होती है जिसे अपशब्द कहा गया हो. कई मामले दायर हुए हैं जिन में दूसरों ने भी शिकायत की है मगर उन में सजा यदाकदा ही होती है. वैसे, अपमानजनक टिप्पणी से होने वाली प्रतिष्ठा की हानि पर 2 साल की सजा  अपनेआप में सही नहीं लगती और अब तो सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा भी दी है.

निचली अदालतों के मजिस्ट्रेटों के पास भारत में वही अधिकार हैं जो सुप्रीम कोर्ट के जज के पास हैं. जब तक अपील न हो, सब से निचली अदालत का फैसला पत्थर की लकीर होता है पर जिस तरह निचली अदालतों के फैसलों को पलटा जाता है, उस से साफ है कि निचली अदालतों के फैसले पूरी तरह तार्किक नहीं होते. देश की न्याय व्यवस्था की जड़ में यह सब से बड़ी कड़ी है पर अफसोस कि यह सब से कमजोर कड़ी है. जैसे, ‘जौली एलएलबी’ फिल्म में दिखाया गया था.

निचली अदालतों में मामले वर्षों लटके रहते हैं और जज स्थानीय लोगों से प्रभावित न होते हों, यह माना नहीं जा सकता. हाल के सालों में न्यायालय परिसर और उन में जजों को रहने की व्यवस्था बनने लगी है जो एक अच्छी बात है. वहीं, जब तक पहले जज को ही जनता अंतिम जज न मान ले, न्याय व्यवस्था को
मजबूत नहीं माना जा सकता.

निचली अदालतों के फैसले ऐसे होने चाहिए कि ऊपरी अदालतों को उन में न राजनीति या भेदभाव की गंध आए और न अधकचरेपन की. ट्रायल कोर्ट सही फैसले दें जिन्हें चुनौती दी जाए तो कुछ न हो, तभी देश की न्याय व्यवस्था ठीक होगी.

राहुल गांधी को मिली सजा के बाद सभी को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट राहत देगी. ऐसी उम्मीद, दरअसल, निचली अदालतों पर भरोसा न रहना जताती है. ट्रायल कोर्ट के फैसलों के बाद अपील केवल तब नहीं होती जब सजा पाने वाले के पास वकीलों को देने के लिए पैसे नहीं होते. देश में कानून व्यवस्था की यह स्थिति
ठीक नहीं है.

एक्सपर्ट से जानें क्या होते हेपेटाइटिस के लक्षण, परीक्षण और बचाव

हेपेटाइटिस एक ऐसी संक्रामक समस्या है, जिसकी वजह से लिवर प्रभावित होता है. हेपेटाइटिस वायरल संक्रमणों का एक समूह है, जो मुख्य रूप से हमारे लिवर को प्रभावित करता है.
हेपेटाइटिस संक्रमण विभिन्न प्रकार के होते हैं, जैसे ए, बी, सी, डी और ई. यह सभी संक्रमण के विभिन्न प्रकार हैं, जो लिवर को अलग तरह से प्रभावित कर सकता है.

डॉ. विज्ञान मिश्रा, लैब प्रमुख, न्यूबर्ग डायग्नोस्टिक्स बता रहे हैं हेपेटाइटिस के लक्षण, परीक्षण और बचाव-

हेपेटाइटिस के लक्षण क्या हैं?

हेपेटाइटिस के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन कुछ सामान्य लक्षणों में थकान महसूस होना, स्किन का रंग पीला पड़ना (पीलिया), पेट में दर्द, बीमार जैसा महसूस होना और बुखार इत्यादि हैं. हालांकि, कुछ लोगों में हेपेटाइटिस के कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे में स्थिति गंभीर होने की संभावना रहती है.

हेपेटाइटिस का कैसे होता है परीक्षण?

हेपेटाइटिस की जांच करने के लिए आमतौर डॉक्टर ब्लड टेस्ट कराने की सलाह देते हैं. इस ब्लड टेस्ट में आपके शरीर से थोड़ा सा ब्लड लिया जाता है, जिसका लैब में परीक्षण किया जाता है. इस परीक्षण में पता लगाने की कोशिश कि जाती है कि आपके ब्लड में हेपेटाइटिस का संक्रमण है या नहीं, अगर है तो यह किस प्रकार का है.

  1. हेपेटाइटिस ए टेस्ट : इस परीक्षण में एंटीबॉडी की तलाश की जाती है और पता लगाया जाता है कि आपको पहले संक्रमण हुआ था या किसी तरह का टीका लगाया गया था या नहीं.
  2. हेपेटाइटिस बी : इस टेस्ट के जरिए ब्लड में विशिष्ट सतह एंटीजन और एंटीबॉडी की जाती है. यदि ब्लड में एंटीजन पाया जाता है, तो डॉक्टर आपको कुछ अन्य टेस्ट करवाने की सलाह दे सकते हैं.
  3. हेपेटाइटिस सी : इस परीक्षण में वायरस के प्रति एंटीबॉडी की जांच की जाती है और यदि वायरस सकारात्मक है, तो इस स्थिति में डॉक्टर संक्रमण की पुष्टि करने के लिए एक और परीक्षण कराने की सलाह दी जा सकती है.
  4. विंडो पीरियड : आपके लिए ये जानना जरूरी है कि हेपेटाइसिस के कुछ टेस्ट में संक्रमण का तुरंत पता लगाना मुश्किल हो जाता है, ऐसी स्थिति को “विंडो पीरियड” कहा जाता है. इसलिए अगर आप हाल ही में किसी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आए हैं, तो कुछ सप्ताह बाद ही हेपेटाइटिस की जांच कराएं.

कैसे करें बचाव?

कुछ प्रकार के हेपेटाइटिस के लिए टीके उपलब्ध हैं, जैसे हेपेटाइटिस ए और बी के लिए। इन वैक्सीनेशन के जरिए हेपेटाइसिस से बचाव किया जा सकता है। अन्य स्थिति में आपको डॉक्टर से अपने स्थिति के बारे में जानने की कोशिश करनी चाहिए.

सावधान रहें, कहीं रिश्तों से दूर न कर दे दोस्ताना

आजकल युवाओं में अपने सगे रिश्तों को दरकिनार कर दोस्तोंसहेलियों को महत्त्व देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. यह सच है कि दोस्ती का रिश्ता बेमिसाल होता है और अगर समझदारीपूर्वक निभाया जाए तो जीवनपर्यंत बना रहता है. किंतु खेद इस बात का है कि आज हम अपने इर्दगिर्द इकट्ठे हो गए कुछ चेहरों को ही अपना मित्र मानने लगे हैं और इन मात्र दिखावटी और टाइमपास मित्रों के लिए न केवल अपनों की अनेदेखी कर रहे हैं, बल्कि अपनों के प्रति निभाने वाली जिम्मेदारियों से भी मुंह मोड़ते जा रहे हैं.

अवंतिका अपने बेटे की जन्मदिन पार्टी का आमंत्रण देने के लिए रिश्तेदारों की सूची तैयार कर रही थी तो उसे देख कर बेटा पलाश बोल पड़ा, ‘‘अरे अम्मी, ये इतने रिश्तेदारों की सूची क्यों तैयार कर रही हैं? क्या करना है सब को बुला कर? मैं इस बार अपना बर्थडे अपने दोस्तों के साथ मनाऊंगा.’’

‘‘दोस्तों को तो हम हर साल बुलाते हैं, इस साल भी बुलाएंगे पर तुम रिश्तेदारों को बुलाने से क्यों मना कर रहे हो?’’

अवंतिका ने आश्चर्य से पूछा. इस पर पलाश ने कहा, ‘‘मम्मी, रिश्तेदार तो आप लोगों के होते हैं. उन के बीच मैं बोर हो जाता हूं. इस बार अपना बर्थडे मैं केवल अपने दोस्तों के साथ किसी मौल या रैस्टोरैंट में ही सैलिब्रेट करूंगा.’’

दोस्त हमारे रिश्तेदार तुम्हारे

पलाश के मुंह से ऐसी बातें सुन कर अवंतिका खामोश हो गई. ‘रिश्तेदार तो आप लोगों के होते हैं’ यह वाक्य काफी देर तक उस के कानों में गूंजता रहा और वह सोचती रही कि क्या अब बच्चों की दुनिया सिर्फ उन के दोस्तों तक ही सिमट कर रह जाएगी? बच्चों को चाची, बूआ, मौसी, भाभी जैसे रिश्तों से कोई लेनादेना नहीं रह गया है? अब वे केवल हमारे रिश्तेदार हैं?

दिल्ली की सुमन ने जब अपनी भतीजी से जोकि दिल्ली में ही किसी कंपनी में जौब करती है से पूछा कि वह न्यू ईयर पर अपने घर बनारस जा रही है या नहीं? तो उस ने जवाब दिया कि वह नहीं जा रही है, क्योंकि अगले ही महीने उस की एक सहेली का जन्मदिन है और इस बार वे सारी सहेलियां उस का जन्मदिन मनाने शिमला जाने वाली हैं. अत: अगर उस ने न्यू ईयर पर छुट्टी ले ली तो फिर सहेली के जन्मदिन में जाने के लिए उसे छुट्टी नहीं मिल पाएगी. इसलिए उस ने न्यू ईयर पर घर जाने का विचार त्याग दिया. यह सुन कर सुमन को क्रोध तो बहुत आया पर उस ने कहा कुछ नहीं, उस के सामने अपने भैयाभाभी का चेहरा घूम गया कि वे कितनी उत्सुकता से त्योहार पर बेटी के घर आने का इंतजार कर रहे हैं पर उस के न आने की खबर सुन कर वे कितने मायूस हो जाएंगे.

विरोधाभास क्यों

युवाओं के अलावा विवाहित महिलाओं और पुरुषों में भी आजकल पारिवारिक सदस्यों को दरकिनार कर तथाकथित दोस्तोंसहेलियों को अहमियत देने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है. मैं अपनी एक पड़ोसिन की शादी की 25वीं सालगिरह में जब पहुंची तो वहां मौजूद लोगों में केवल सहेलियों और पड़ोसियों को देख कर मुझे बहुत आश्चर्य हुआ और मैं उन से पूछ बैठी कि तुम्हारा कोई रिश्तेदार नजर नहीं आ रहा है?

तब उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘तुम लोग किसी रिश्तेदार से कम हो क्या? यार जितनी मस्ती हम दोस्तों के साथ मिल कर कर रहे हैं उतनी क्या रिश्तेदारों के साथ हो पाती है? उन्हें बुलाती तो हजार समस्याएं होतीं. पहले तो उन्हें 1-2 दिन ठहराने और खिलानेपिलाने की व्यवस्था करनी पड़ती. पूरा समय आवभगत में लगा रहना पड़ता. उस के बाद तरहतरह के नखरे उठाने पड़ते वे अलग.’’

दोस्तों की अहमियत कितनी

मैं मन ही मन सोचने लगी कि इतनी बड़ी खुशी, लाखों का खर्च और इस खुशी में शरीक होने के लिए किसी अपने को कोई आमंत्रण नहीं. यह कैसा समय आ गया है? बिना पारिवारिक सदस्यों के कोई खुशी मनाने से अच्छा तो न ही मनाओ.

सारिका ने अपनी सोसायटी में किट्टी जौइन की. शुरूशुरू में उसे वहां नईनई सखियों के साथ बैठना और उन से बातें करना बहुत अच्छा लगा. वह सोचने लगी कि उसे बहुत अच्छी सहेलियां मिल गई हैं. लेकिन धीरेधीरे उस ने देखा कि उस की उन कथित सहेलियों के लिए अपनों से ज्यादा किट्टी पार्टी में शामिल होने वाली सहेलियों की अहमियत है.

सारिका ने देखा कि एक दिन उस की एक किट्टी मैंबर आयशा किट्टी में नहीं पहुंची. उस ने मैसेज भेजा था कि उस की सास की तबीयत खराब हो गई है, इसलिए वह नहीं आ पाएगी. सारिका यह देख हैरान रह गई कि आयशा के साथ सहानुभूति जताने और फोन कर के उस की सास का हाल पूछने के बजाय किट्टी में उस के खिलाफ बातें होने लगीं कि अरे, उस की सास तो रोज ही बीमार रहती है, यह तो किट्टी में न आने का एक बहाना है. आयशा आना चाहती तो दवा दे कर आ जाती.

धीरेधीरे सारिका यह नोट करने लगी कि उस की किट्टी से किस तरह महिलाएं अपने परिवारजनों की उपेक्षा कर के पहुंचती हैं और फिर उस बात को इस तरह बताती हैं जिस से यह सिद्घ हो सके कि उस की नजर में सहेलियों की अहमियत कितनी ज्यादा है जिन से मिलने वह अपने परिवारजनों से झूठ बोल कर आ गई.

सिक्के का दूसरा पहलू

दोस्त बनाना और दोस्ती करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन दोस्तों के आगे परिवारजनों की उपेक्षा व उन की अनदेखी करना बहुत ही घातक है. हमारे आसपास दोस्तों की भीड़ भले ही नजर आए पर उन में सच्चा दोस्त एक भी हो यह कहना बहुत मुश्किल होता है. दोस्तों के साथ बैठना हंसनाहंसाना, समय व्यतीत करना अच्छा तो लगता है पर क्या इन चीजों से वे हमारे इतने अपने हो जाते हैं कि उन के आगे रिश्तों का महत्त्व नगण्य कर दिया जाए?

मोबाइल, व्हाट्सऐप और फेसबुक की आदी दुनिया के इस दौर में मित्रों की एक फौज तैयार कर लेना बहुत आसान हो गया है. घर बैठे दिनरात उन से चटरपटर करते रहने से मन में यह गलतफहमी बन जाती है कि हम बहुत अच्छे मित्र बन चुके हैं और फिर वही मित्र अपने सच्चे हितैषी लगने लगते हैं. जबकि हकीकत यह है कि ऐसे मित्र खुशियों में तो बहुत बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं, किंतु जब कभी मित्रता की कसौटी पर खरा उतरने का समय आता है तब टांयटांय फिस हो जाते हैं. दुखपरेशानी के समय में ऐसे मित्र 2-4 दिन तो साथ देते हैं, पर उस के बाद रिश्तेदारों का ही मुंह ताकने लगते हैं कि कब वे आएं और उन्हें छुट्टी मिले.

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