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क्या आपको पता है नमक के साइड इफेक्ट्स

सत्रहवीं शताब्दी के एक अंगरेज कवि जार्ज हर्बर्ट ने एक बार लिखा था कि सभी सुगंधों में ब्रेड की महक और जीवन के सभी स्वादों में नमक का स्वाद सर्वोपरि होता है. नमक डालते ही किसी भी पकवान के स्वाद में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन आ जाता है, लेकिन स्वाद का यह संतुलन नमक के संतुलन पर ही निर्भर करता है. एक ओर जहां जरा सा ज्यादा नमक किसी भी भोजन के स्वाद को बिगाड़ देता है वहीं दूसरी ओर नमक जरा सा कम हुआ तो सब मुंह बिचकाने लगते हैं. रसोईघर की इस महत्त्वपूर्ण चीज से एक वैज्ञानिक पहलू भी जुड़ा हुआ है. अनेक वैज्ञानिक प्रयोगों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि अत्यधिक नमक हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक होता है और यह कुछ मामलों में जानलेवा भी साबित हो सकता है.

इस संदर्भ में हमें अपने एक परिचित से जुड़ी एक घटना याद आ रही है. वे योग के बहुत बड़े प्रशंसक थे और उन का जीवन भी बहुत संयमित था. एक दिन उन की छाती में बहुत जोर का दर्द हुआ, साथ ही उन्हें उबकाई भी आ रही थी. उन्होंने सोचा कि शायद गैस व अपच के कारण ऐसा हो रहा था, इसलिए उन्होंने 4 गिलास गरम पानी ले कर उस में थोड़ा नमक मिलाया और वमन क्रिया करने के इरादे से पूरा पानी पी गए. नमक का पानी पीते ही वे चक्कर खा कर गिर गए और कुछ ही क्षणों में उन के प्राण पखेरू उड़ गए.

डाक्टर ने बताया कि असल में उन्हें दिल का दौरा पड़ा था, जिस की वजह से उन का रक्तचाप भी बढ़ गया था और उन्हें उल्टी होने को हो रही थी. ऐसे में नमक ने जहर का काम किया और उन का रक्तचाप काबू से बाहर हो गया. सही समय पर डाक्टर की सहायता न मिलने पर उन्हें अपनी जान गंवानी पड़ी. यानी नीम हकीम, खतरे जान.

लेकिन ऐसी बात नहीं है कि नमक से केवल नुकसान होता है और उस से कोई फायदा नहीं होता. वैज्ञानिकों का मानना है कि नमक हमारे शरीर में तरल पदार्थ को संयमित रखने में और मांसपेशियों व शिराओं के सुचारु रूप से कार्य करने में मदद करता है. इस के अलावा सोडियम क्लोराइड पाचक रस पैदा करने में भी सहायक होता है. ये पाचक रस हमारे भोजन को पचाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं.

पिसा हुआ नमक, जिस का इस्तेमाल हम अपने प्रतिदिन के भोजन में करते हैं, उस में 40 प्रतिशत सोडियम होता है. नमक के शुद्धिकरण के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाती है, उस में उस के ज्यादातर खनिज पदार्थ नष्ट हो जाते हैं और केवल बहुत थोड़ी मात्रा में मैग्नीशियम व कैल्शियम रह जाते हैं. यह मात्रा इतनी कम होती है कि हमारे शरीर को इस का अधिक लाभ नहीं मिल पाता. हमारे बुजुर्ग पुराने जमाने में मोटे नमक का इस्तेमाल किया करते थे. उस में सोडियम की मात्रा ज्यादा हुआ करती थी, जिस की वजह से कई रोगों के होने की संभावना बढ़ जाती थी. लेकिन अब सोडियम के खतरों से बचने के लिए बाजार में कम मात्रा में सोडियम वाले व आयोडीनयुक्त नमक मिलने लगे हैं.

1 हृदय रोग और नमक

सोडियम एक ऐसे स्पंज की तरह काम करता है जो शरीर में पानी की मात्रा बढ़ा देता है. जितना हम अधिक नमक खाएंगे उतना ही ज्यादा पानी हमारे शरीर में रुका रह जाएगा. इस अधिक पानी के कारण हमारे खून का आयतन बढ़ जाता है, जिस से रक्त की धमनियों पर काम का बो?ा बढ़ जाता है और उन के ऊपर रक्त का दबाव बढ़ जाता है. यह कुछ ऐसा ही है कि आप के नल में अगर पानी तेज दबाव से आता है तो वह नल के वाल्व को खराब कर के अनियंत्रित रूप से बहने लगता है. यही हाल हमारी शिराओं का भी होता है. शिराओं में दबाव बढ़ने के साथ ही हमारे दिल को भी ज्यादा पंपिंग करनी पड़ती है. इस प्रक्रिया से उच्च रक्तचाप का रोग शरीर को घेर लेता है और हमारे दिल की धड़कनें बढ़ने लगती हैं.

रक्त के बढ़े हुए दबाव से हमारी धमनियों की भीतरी सतह क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिस से ऐसे रासायनिक तत्त्व पैदा होते हैं जिन से धमनियों में सूजन पैदा हो जाती है. अब जब रक्त इन क्षतिग्रस्त धमनियों से हो कर गुजरता है तो खून का कोलैस्ट्रौल धमनियों की दीवारों में जमा होने लगता है और वे संकरी होने लगती हैं. कई बार ये धमनियां पूरी तरह से अवरुद्ध हो जाती हैं, जिस के कारण हम हृदय रोग व लकवे के शिकार हो जाते हैं.

सिंगापुर के एक सुप्रसिद्ध हृदय रोग विशेषज्ञ डा. रूथ का कहना है कि इन गंभीर स्थितियों से बचने का केवल एक ही उपाय है कि भोजन में नमक की मात्रा कम से कम कर दी जाए. उन के अनुसार, हृदय रोगियों के लिए नमक एक सफेद जहर है और उन्हें दिनभर में अपने भोजन में एक चम्मच नमक से ज्यादा का सेवन नहीं करना चाहिए.

हमारे शरीर से अनावश्यक तत्त्वों को बाहर निकालने में किडनी यानी गुर्दे  महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ये हमारे शरीर में नमक व पानी का संतुलन भी बनाए रखते हैं. लगातार उच्च रक्तचाप रहने से गुर्दे की रक्त शिराएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिस के कारण गुर्दे ठीक से काम नहीं कर पाते. ज्यादा नमक खाने से गुर्दे में पथरी होने का खतरा भी बढ़ जाता है. अतिरिक्त सोडियम के कारण पेशाब में कैल्शियम की मात्रा बढ़ जाती है और यही कैल्शियम अन्य तत्त्वों के साथ मिल कर पथरियां पैदा कर देता है. इसलिए पथरियों से बचने के लिए भी नमक का सेवन कम करना चाहिए.

2. यह बात भी जान लें कि कभीकभार नमक ज्यादा खा लेने से शरीर पर कोई खतरनाक प्रभाव नहीं पड़ता. हमारे स्वस्थ गुर्दे इस अतिरिक्त सोडियम को पेशाब के रास्ते शरीर से बाहर निकालने में सक्षम हैं, लेकिन लगातार ज्यादा नमक खाने से गुर्दे भी रोगी रहने लगते हैं और उन में इतनी क्षमता नहीं रहती कि वे अतिरिक्त सोडियम को शरीर से बाहर निकाल सकें.

3. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिन के शरीर में नमक खाते ही प्रतिक्रिया होने लगती है और उन का रक्तचाप बढ़ने लगता है. ऐसे लोगों के लिए भी नमक किसी सफेद जहर से कम नहीं है. उन्हें नमक कम से कम खाना चाहिए.

4. अधिक नमक खाने का एक नुकसान यह भी है कि खून में प्लैटलेट्स बनने कम हो जाते हैं. उल्लेखनीय है कि प्लैटलेट्स की वजह से ही चोट लगने पर खून में गाढ़ापन आता है, जिस से खून बहना अपनेआप ही कम हो जाता है. अगर खून में प्लैटलेट बनने बंद हो जाएं तो चोट लगने पर खून बहना बंद ही नहीं होगा और व्यक्ति मौत का ग्रास बन जाएगा. इस के विपरीत, प्लैटलेट की मात्रा अधिक होनी भी शरीर के लिए खतरनाक हो सकती है और उस से कैंसर जैसा गंभीर रोग पनप सकता है.

नमक की जगह इस्तेमाल करें ये चीजें…

जाहिर है कि आप को अपने प्रतिदिन के भोजन में ज्यादा सोडियम वाली चीजों का सेवन कम से कम करना चाहिए.

भोजन बनाने में भी नमक कम से कम डालें.

भोजन में स्वाद पैदा करने के लिए आप नीबू का रस, अदरक, लहसुन व प्याज का इस्तेमाल करें.

फल व सब्जियों का इस्तेमाल भी ज्यादा से जयादा करें, इन से आप को कुदरती नमक और स्वास्थ्यवर्द्धक तत्त्व मिलेंगे, जो आप के शरीर को पौष्टिक बनाए रखेंगे.

फलों व सब्जियों में नमक की मात्रा बहुत कम होती है. एक सेब में बिलकुल भी नमक नहीं होता, जबकि एक केले में केवल 1 मिलीग्राम ही सोडियम होता है.

घर के सभी लोगों का स्वास्थ्य हमारे रसोईघर पर ही निर्भर करता है, इसलिए गृहिणियां आवश्यक वैज्ञानिक तथ्यों से अवगत रहें, ताकि वे अपने परिवार के सदस्यों को जानलेवा रोगों से दूर रख सकें.

यह कोई मुश्किल काम नहीं है, धीरेधीरे हमारी चटोरी जीभ कम नमक की अभ्यस्त हो जाएगी और वह कम नमक वाले भोजन में भी स्वाद ढूंढ़ने लगेगी.

तलाक के बाद कैसे करें बच्चों की परवरिश?

सुषमा और वैभव का वैवाहिक जीवन  शुरू से ही तनावों से भरा था. धीरेधीरे दोनों के बीच वैचारिक मतभेद इतने बढ़ गए कि उन्होंने तलाक के लिए अदालत में आवेदन कर दिया. लगभग 7-8 माह तक अदालती काररवाई चलने के बाद अदालत ने तलाक की डिगरी पारित कर दी. वैभव को अपने बेटे अभिनव से बड़ा लगाव था. तलाक के समय अभिनव 2 साल का था. सुषमा किसी भी कीमत पर अभिनव को छोड़ना नहीं चाहती थी, जबकि वैभव बेटे को अपने पास रखना चाहता था.

तलाक के 1 साल बाद तक अभिनव अपनी मां सुषमा के साथ रहा. इस दौरान वैभव ने बच्चे को हासिल करने के लिए सामाजिक स्तर पर कई प्रयास किए लेकिन उसे सफलता नहीं मिली. बच्चे की संरक्षता हासिल करने के लिए वैभव ने अदालत का दरवाजा खटखटाया. अदालत ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैसला दिया कि 5 साल की उम्र तक अभिनव अपनी मां सुषमा के पास ही रहेगा. अब 5 साल तक वैभव के पास इंतजार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था. उधर सुषमा पर तलाकशुदा होने का ठप्पा लग चुका था. वह हाई सोसाइटी की औरतों के बीच में इस की वजह से अपमानित होने लगी थी. उस के धनी पिता का दोबारा विवाह करने का दबाव भी उस पर बढ़ता जा रहा था. बेचारा अभिनव, निर्दोष होने के बावजूद पिता के प्यार और माता की असमंजस स्थिति के बीच पिस रहा था. अब अभिनव के सामने समस्या यह आएगी कि जब 5 साल की आयु को पूरा करने के बाद वह पिता की संरक्षता में जाएगा तब उस के लिए एक नए जीवन की शुरुआत होगी. नानानानी के साथ पीछे बिताए गए समय में जो स्नेह उस परिवार से बन गया था, उस से अलग होना उस के दिमाग पर गलत असर डालेगा. पिता के परिवार में दादादादी, चाचाचाची के साथ रिश्तों की नई शुरुआत भी अभिनव को करनी होगी.

कानून में तलाक की प्रक्रिया इतनी धीमी है कि पक्षकारों के बच्चे होने पर उन का भविष्य प्रभावित होता है. तलाक के बाद यदि बच्चा मां के साथ रहता है और मां के पास उस के भरणपोषण के लिए आय नहीं है तो वह अपने पूर्व पति से स्वयं और संतान के जीवन निर्वाह के लिए भरणपोषण की मांग कर सकती है. 500 रुपए की यह रकम महंगाई को देखते हुए अब 2,500 रुपए तक बढ़ा दी गई है. जब अक्षय और सुधा का तलाक हुआ तब मोना 3 साल की थी. सुधा और अक्षय ने तलाक के समय ही यह तय कर लिया था कि मोना सुधा के पास रहेगी. सुधा उस समय एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करती थी. उस के वेतन से मोना की पढ़ाई और घर का खर्च आसानी से चल जाता था. 1 साल बाद वह कंपनी बंद हो गई, जिस में सुधा काम करती थी. भागदौड़ के बाद दूसरी कंपनी में सुधा को नौकरी तो मिल गई पर वेतन बहुत कम था. अब मोना को स्कूल में दाखिल कराने के लिए सुधा को पैसे की जरूरत पड़ी तो उस ने अक्षय से संपर्क कर अपनी परेशानी बताई. अक्षय ने यह कहते हुए उस की किसी भी तरह की आर्थिक मदद करने से मना कर दिया कि मोना को अपने पास रखने का फैसला तुम ने खुद लिया था और फिर तलाक हो जाने के बाद तुम्हारे और मोना के प्रति मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती है.

सुधा यह मामला अदालत में ले गई और वहां यह तथ्य सामने आया कि सुधा ने अभी तक दोबारा विवाह नहीं किया है. अदालत ने सुधा की तत्कालीन आय को जीवन निर्वाह के लिए अपर्याप्त मानते हुए उसे बच्चे के लिए अक्षय से 700 रुपए मासिक प्राप्त करने का हकदार माना. तलाक के बाद आय का जो जरिया पत्नी और संतान के पास मौजूद है यदि वह जीवन जीने के लिए  पर्याप्त न हो तो पत्नी अपने पति से गुजाराभत्ता प्राप्त कर सकती है. यह रकम कितनी होगी, इस के लिए कोई नियम नहीं बनाया गया है लेकिन मामले के तथ्यों, परिस्थितियों और वैवाहिक जीवन स्तर के आधार पर यह रकम तय की जा सकती है.

ऐसा ही एक मामला सतीश और प्रज्ञा का था. प्रज्ञा की कोई स्थायी आय नहीं थी. वह बच्चों को ट्यूशन पढ़ाती थी जबकि सतीश का अपना व्यापार था और उन का बेटा विजय उस समय नर्सरी में पढ़ता था. तलाक के बाद विजय अपनी मां प्रज्ञा के साथ रहने लगा. चूंकि विजय छोटी कक्षा में पढ़ता था इसलिए प्रज्ञा की आय से उस का स्कूल खर्च पूरा हो जाता था. विजय जब छठी कक्षा में आया और उसे दूसरे स्कूल में प्रवेश दिलवाया गया तो स्कूल की फीस और विजय की पढ़ाई के साथ जुटे दूसरे खर्चे पूरे कराने के बाद प्रभा के पास कुछ बचता ही नहीं था. उस ने एक वकील से राय ली और फिर सतीश को नोटिस दिया. नोटिस का सतीश पर कोई असर नहीं हुआ. मजबूर हो कर प्रभा ने अदालत की शरण ली. अदालत में सतीश की आमदनी 1 लाख रुपए सालाना प्रमाणित हुई. अदालत ने यह भी पाया कि वैवाहिक जीवन में वे उच्चस्तरीय रहनसहन के आदी हो गए थे. स्कूल के बढ़ते खर्च और प्रभा की अस्थायी आय स्रोत को देखते हुए सतीश को आदेश दिया गया कि वह अपनी तलाकशुदा पत्नी व बेटे के खर्च के लिए 2 हजार रुपए मासिक भुगतान करे. यह कानूनी स्थिति है कि यदि पत्नी की आय से उस का तथा संतान का गुजारा होना संभव नहीं है तो वह अदालत के जरिए भरणपोषण की रकम पूर्व पति से प्राप्त कर सकती है और जैसे ही औलाद बड़ी हो कर आय का स्रोत प्राप्त करती है, इस मासिक रकम को अदालत के जरिए बंद कराया जा सकता है.

जहां पर पिता संतान को अपने साथ रख कर उस का भरणपोषण करने के लिए तैयार हो वहां तलाकशुदा महिला केवल खुद के लिए ही भरणपोषण प्राप्त करने की हकदार रह जाती है. इस प्रकार तलाक के बाद संतान की परवरिश तथा खर्च तय करने में उन के भविष्य को ध्यान में रखा जाता है.

एक रात का सफर: क्या हुआ अक्षरा के साथ?

 बस के हौर्न देते ही सभी यात्री जल्दीजल्दी अपनीअपनी सीटों पर बैठने लगे. अक्षरा ने बंद खिड़की से ही हाथ हिला कर चाचाचाची को बाय किया. उधर से चाचाजी भी हाथ हिलाते हुए जोर से बोले, ‘‘मैं ने कंडक्टर को कह दिया है कि बगल वाली सीट पर किसी महिला को ही बैठाए और पहुंचते ही फोन कर देना.’’

बस चल दी. अक्षरा खिड़की का शीशा खोलने की कोशिश करने लगी ताकि ठंडी हवा के झोंकों से उसे उलटी का एहसास न हो, मगर शीशा टस से मस नहीं हुआ तो उस ने कंडक्टर से शीशा खोल देने को कहा. कंडक्टर ने पूरा शीशा खोल दिया.

अक्षरा की बगल वाली सीट अभी भी खाली थी. उधर कंडक्टर एक दंपती से कह रहा था, ‘‘भाई साहब, प्लीज आप आगे वाली सीट पर बैठ जाएं तो आप की मैडम के साथ एक लड़की को बैठा दूं, देखिए न रातभर का सफर है, कैसे बेचारी पुरुष के साथ बैठेगी?’’

अक्षरा ने मुड़ कर देखा, कंडक्टर पीछे वाली सीट पर बैठे युवा जोड़े से कह रहा था. आदमी तो आगे आने के लिए मान गया पर औरत की खीज को भांप अक्षरा बोली, ‘‘मुझे उलटी होती है, उन से कहिए न मुझे खिड़की की तरफ वाली सीट दे दें.’’

‘‘वह सब आप खुद देख लीजिए,’’ कंडक्टर ने दो टूक लहजे में कहा तो अक्षरा झल्ला कर बोली, ‘‘तो फिर मुझे नहीं जाना, मैं अपनी सीट पर ही ठीक हूं.’’

कंडक्टर भी अव्वल दर्जे का जिद्दी था. वह तुनक कर बोला, ‘‘अब आप की बगल में कोई पुरुष आ कर बैठेगा तो मुझे कुछ मत बोलिएगा, आप के पेरैंट्स ने कहा था इसलिए मैं ने आप के लिए महिला के साथ की सीट अरेंज की.’’

तभी झटके से बस रुकी और एक दादानुमा लड़का बस में चढ़ा और लपक कर ड्राइवर का कौलर पकड़ कर बोला, ‘‘क्यों बे, मुझे छोड़ कर भागा जा रहा था, मेरे पहुंचे बिना बस कैसे चला दी तू ने?’’

ड्राइवर डर गया. मौका   देख कर कंडक्टर ने हाथ जोड़ते हुए बात खत्म करनी चाही, ‘‘आइए बैठिए, देखिए न बारिश का मौसम है इसीलिए, नहीं तो आप के बगैर….’’ उस ने लड़के को अक्षरा की बगल वाली सीट पर ही बैठा दिया.

अक्षरा समझ गई कि कंडक्टर बात न मानने का बदला ले रहा था. उस ने खिड़की की तरफ मुंह कर लिया.

बारिश शुरू हो चुकी थी और बस अपनी रफ्तार पकड़ने लगी थी. टेढ़ेमेढ़े घुमावदार पहाड़ी रास्तों पर अपने गंतव्य की ओर बढ़ती बस के शीशों से बारिश का पानी रिसरिस कर अंदर आने लगा. सभी अपनीअपनी खिड़कियां बंद किए हुए थे. अक्षरा ने भी अपनी खिड़की बंद करनी चाही, लेकिन शीशा अपनी जगह से टस से मस नहीं हुआ. उस ने इधरउधर देखा, कंडक्टर आगे जा कर बैठ गया था. पानी रिसते हुए अक्षरा को भिगा रहा था.

तभी बगल वाले लड़के ने पूछा, ‘‘खिड़की बंद करनी है तो मैं कर देता हूं.’’

अक्षरा ने कोई उत्तर नहीं दिया. फिर भी उस ने उठ कर पूरी ताकत लगा कर खिड़की बंद कर दी. पानी का रिसना बंद हो गया, बाहर बारिश भी तेज हो गई थी.

अक्षरा खिड़की बंद होते ही अकुलाने लगी. उमस और बस के धुएं की गंध से उस का जी मिचलाने लगा था. बाहर बारिश काफी तेज थी लेकिन उस की परवाह न करते हुए उस ने शीशे को सरकाना चाहा तो लड़के ने उठ कर फुरती से खिड़की खोल दी.

अक्षरा उलटी करने लगी. थोड़ी देर तक उलटी करने के बाद वह शांत हुई मगर तब तक उस के बाल और कपड़े काफी भीग चुके थे.

बगल में बैठे लड़के ने आत्मीयता से पूछा, ‘‘आप की तबीयत तो ठीक है, मैं पानी दूं, कुल्ला कर लीजिए.’’

अक्षरा अनमने भाव से बोली, ‘‘मेरे पास पानी है.’’

वह फिर बोला, ‘‘आप अकेली ही जा रही हैं, आप के साथ और कोई नहीं है?’’

अक्षरा इस सवाल से असहज हो उठी, ‘‘क्यों मेरे अकेले जाने से आप को क्या लेना?’’

‘‘जी, मैं तो यों ही पूछ रहा था,’’ लड़के को भी लगा कि शायद वह गलत सवाल पूछ बैठा है, लिहाजा वह दूसरी तरफ देखने लगा.

थोड़ी देर तक बस में शांति छाई रही. बस के अंदर की बत्ती भी बंद हो चुकी थी. तभी ड्राइवर ने टेपरिकौर्डर चला दिया. कोई अंगरेजी गाना था, बोल तो स्पष्ट नहीं थे पर कानफोड़ू संगीत गूंज उठा.

तभी पीछे से कोई चिल्लाया, ‘‘अरे, ओ ड्राइवरजी, बंद कीजिए इसे. अंगरेजी समझ में नहीं आती हमें. कुछ हिंदी में बजाइए.’’

कुछ देर बाद एक पुरानी हिंदी फिल्म का गाना बजने लगा.

रात काफी बीत चुकी थी, बारिश कभी कम तो कभी तेज हो रही थी. बस पहाड़ी रास्ते की सर्पीली ढलान पर आगे बढ़ रही थी. सड़क के दोनों तरफ उगी जंगली झाडि़यां अंधेरे में तरहतरह की आकृतियों का आभास करवा रही थीं. बारिश फिर तेज हो उठी. अक्षरा ने बगल वाले लड़के को देखा, वह शायद सो चुका था. वह चुपचाप बैठी रही.

पानी का तेज झोंका जब अक्षरा को भिगोते हुए आगे बढ़ कर लड़के को भी गिरफ्त में लेने लगा तो वह जाग गया, ‘‘अरे, इतनी तेज बारिश है आप ने उठाया भी नहीं,‘‘ कहते हुए उस ने खिड़की बंद कर दी.

थोड़ी देर बाद बारिश थमी तो खुद ही उठ कर खिड़की खोल भी दी और बोला, ‘‘फिर बंद करनी हो तो बोलिएगा,’’ और आंखें बंद कर लीं.

अक्षरा ने घड़ी पर नजर डाली, सुबह के 3 बज रहे थे, नींद से उस की आंखें बोझिल हो रही थीं. उस ने खिड़की पर सिर टेक कर सोना चाहा, तभी उसे लगा कि लड़के का पैर उस के सामने की जगह पर फैला हुआ है. उस ने डांटने के लिए जैसे ही लड़के की तरफ सिर घुमाया तो देखा कि उस ने अपना सिर दूसरी तरफ झुका रखा था और नींद की वजह से तिरछा हो गया था और उस का पैर अपनी सीट के बजाय अक्षरा की सीट के सामने फैल गया था. अक्षरा उस की शराफत पर पहली बार मुसकराई.

सुबह के 6 बजे बस गंतव्य पर पहुंची. वह लड़का उठा और धड़धड़ाते हुए कंडक्टर के पास पहुंचा, ‘‘उस लड़की का सामान उतार दे और जिधर जाना हो उधर के आटो पर बैठा देना. एक बात और सुन ले जानबूझ कर तू ने मुझे वहां बैठाया था, आगे से किसी भी लड़की के साथ मेरे जैसों को बैठाया तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. फिर वह उतर कर तेज कदमों से चला गया.’’

अक्षरा के मस्तिष्क में कई सवाल एकसाथ कौंध गए. उसे जहां उस लड़के की सहायता के बदले धन्यवाद न कहने का मलाल था, वहीं इस जमाने में भी इंसानियत और भलाई की मौजूदगी का एहसास.

धर्मेंद्र से शादी करने के बाद भी क्यों अलग घर में रहती हैं Hema Malini?

Hema Malini & Dharmendra Story : बॉलीवुड एक्टर धर्मेंद्र और ड्रीमगर्ल हेमा मालिनी की जोड़ी को दर्शकों का खूब प्यार मिलता हैं. शादी के 43 साल बाद भी दोनों का प्यार बरकरार है, लेकिन दोनों के फैंस को एक बात को लेकर हमेशा सवाल रहता है कि शादीशुदा होने के बावजूद भी दोनों अलग-अलग घर में क्यों रहते हैं? क्या दोनों के बीच किसी बात को लेकर लड़ाई होती है? आदि-आदि.

हालांकि, इस सवल पर पहली बार हेमा मालिनी (Hema Malini) ने चुप्पी तोड़ी है. उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया कि आखिर क्यों वह धर्मेंद्र के साथ एक ही घर में नहीं रहती हैं.

क्यों हेमा ने धर्मेंद्र से बनाई दूरी?

हाल ही में एक इंटरव्यू में हेमा मालिनी (Hema Malini) ने अपनी पर्सनल लाइफ पर खुलकर बात की है. जब उनसे सवाल पूछा गया कि आज के समय में उन्हें फेमिनिस्ट आइकन के तौर पर देखा जाता है. जो खुद के अलग घर में रहती हैं. तो इस सवाल पर हेमा ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘फेमिनिज्म सिंबल? मेरा मानना है कि कोई भी इस तरह का बनना नहीं चाहता है. ये तो बस खुद-ब-खुद हो जाता है.’

इसके आगे उन्होंने कहा, ‘कोई भी इस तरह की जिंदगी नहीं चाहता है. हर किसी को अपने परिवार और बच्चों के साथ रहना पसंद आता है. आखिर कैसे कोई अपने परिवार से दूर रहकर खुश हो सकता है? हर एक औरत को पति, बच्चे और एक नॉर्मल लाइफ चाहिए ही होती है, लेकिन कुछ कारणों से मैंने खुद को इन चीजों से अलग किया.’

क्या धर्मेंद्र से दूर रहने पर हेमा को होता है दुख?

वहीं जब उनसे (Hema Malini) बच्चों और पति से दूर रहने पर सवाल किया गया तो इस पर उन्होंने बड़ी बेबाकी से जवाब दिया. उन्होंने कहा, ‘इस बात का बिल्कुल भी दुख नहीं है. मैं खुश हूं कि मैंने अपने दोनों बच्चों को पाला, उन्हें बड़ा किया.’ इसके आगे हेमा ने कहा, ‘बिल्कुल, धर्मेंद्र मेरे साथ हर जगह पर रहते थे. उन्हें अपने बच्चों की शादी की चिंता भी होती थी. हालांकि मैं उनसे हर बार कहती थी कि सब हो जाएगा.’

ड्रीमगर्ल को कब दिल दे बैठे थे धर्मेंद्र ?

आपको बता दें कि, साल 1980 में हेमा और धर्मेंद्र शादी के बंधन में बंधे थे. हालांकि शादी के लिए उन्होंने (Hema Malini & Dharmendra Story) अपना धर्म भी बदला था. दरअसल हेमा से धर्मेंद्र की ये दूसरी शादी थी. 19 साल की उम्र में उनकी प्रकाश कौर से पहली शादी हुई थी, जिनसे उनके चार बच्चे हैं. लेकिन जब धर्मेंद्र ने बॉलीवुड में कदम रखा तो वह हेमा मालिनी को दिल दे बैठे, जिसके बाद दोनों ने शादी करने का फैसला किया. धर्मेंद्र और हेमा की दो बेटियां ईशा और अहाना हैं और दोनों की ही शादी हो चुकी हैं.

Anupama Upcoming Episode : छोटी की हालात हुई खराब, क्या बेटी को छोड़कर जा पाएगी अनुपमा?

Anupama Upcoming Twist : रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ शो की कहानी में रोजाना नया मोड़ देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ इस पर सस्पेंस बना हुआ है कि अनुपमा अमेरिका जाएगी या नहीं? तो वहीं दूसरी तरफ छोटी अनु की तबीयत खराब हो रही है.

बीते दिन के एपिसोड (Anupama Upcoming Episode) में भी दिखाया गया था कि छोटी अनु की हालत दिन-प्रतिदिन बद से बदतर होती जा रही है. हालांकि अनुपमा छोड़ी की हालात से अंजान है, लेकिन उसे बार-बार आभास हो रहा है कि कपाड़िया हाउस में सब कुछ ठीक नहीं है. वहीं आने वाले एपिसोड में एक नया ट्विस्ट देखने को मिलेगा, जिसे देखने के बाद दर्शक हैरान हो जाएंगे.

क्या अपनी बेटी को छोड़कर चली जाएगी अनुपमा?

आज के एपिसोड (Anupama Spoiler Alert) में दिखाया जाएगा कि छोटी अनु की हालत और ज्यादा बद से बदतर हो जाएगी. यहां तक कि अनुज और डॉक्टर भी उसे संभाल नहीं पाएंगे. वह बार-बार बस एक की ही जिद्द करती है कि उसे मम्मी से मिलना है. वहीं अनुज छोटी के कहने पर अनुपमा को कॉल करेगा. इसके बाद दिखाया जाएगा कि अनुपमा अनुज का कॉल उठाती है और अनुज से कहती है, ”सब ठी है न?” फिर अनुज कहता है, ”मैं तुम्हे रोकना नहीं चाहता, लेकिन.” इतने में ही छोटी अनु चिल्लाते हुए कहती है, ”मम्मी आई नीड यू.” इसके बाद फोन कट जाता है.

हालांकि अभी भी इस पर सस्पेंस बना हुआ है कि अनुपमा अमेरिका जाएगी या नहीं? बहरहाल इन सभी सवालों के जवाब तो आने वाले एपिसोड में ही मिलेंगे.

इन बातों का रखें ख्याल, स्वस्थ्य रहेंगी आंखें

प्रदूषण, लगातार कंप्यूटर, स्मार्टफोन का इस्तेमाल और पोषण में कमी जैसे कारण आंखों में होने वाली समस्या के प्रमुख कारण हैं. इससे धुंधली नजर, आंखों में जलन और सिरदर्द जैसी परेशानियां होती हैं. इस खबर में हम आपके लिए कुछ ऐसी टिप्स बताएंगे जिन्हें अपना कर आप अपनी आंखों का तनाव दूर कर सकेंगे.

आंखों को दे रिलैक्स

पामिंग आंखों को रिलैक्स करने का सबसे आसान तरीका है. इस लिए आप दोनों हथेलियों को 10-15 मिनट तक धीरे-धीरे रगड़ें और आंखों पर रखे रहें. गर्म हथेलियों को आंखों की हर ओर हल्का हल्का सहलाते रहें.

झपकाएं पलकें

आंखों के तनाव को दूर करने का आसान तरीका है पलकों को झपकाना. तीन-चार सेकेंड्स तक लगातार पलकों को झपकाने से आंखों को काफी आराम मिलता है. जब आप लगातार टीवी देखते हैं, मोबाइल फोन का इस्तेमाल करते हैं, तो आंखों के लिए ये तरीका बेहद जरूरी हो जाता है. इस लिए जरूरी है कि आप कुछ कुछ देर पर पलकें झपकाते रहें.

सलहज को प्यार, साले को मौत का उपहार

उत्तर प्रदेश के जिला मथुरा के थाना यमुनापार के गांव ढहरुआ में रहता था भागचंद. उस की गिनती गांव के खुशहाल लोगों में होती थी. उस के 7 बेटे और 3 बेटियां थीं. उस ने सभी बच्चों को खूब पढ़ाना चाहा था, लेकिन उस का कोई भी बेटा ज्यादा नहीं पढ़ सका, तब उस ने सभी को उन की मरजी के मुताबिक काम सिखवा दिए.

उस के 3 बेटे शटर बनाने का काम करने लगे. बच्चे कमाने लगे तो भागचंद की मौज हो गई. बच्चे जो भी कमाते थे, वह उसी को देते थे. जैसे जैसे बच्चे जवान होते गए, वह उन की शादियां करता गया.

भागचंद ने अपने बेटे भूरा की शादी मथुरा से और उस से छोटे खन्ना की शादी जिला आगरा के गांव मितावली इंकारपुर की कुसुमा से की थी.

कुसुमा के पिता की मौत हो चुकी थी. इस के बाद घर में मां मनिया के अलावा 3 बहनें और एक भाई था. खन्ना अपनी कमाई से जो पैसे पिता को देता था, शादी के बाद देने बंद कर दिए थे. उन पैसों से अब वह अपनी गृहस्थी चलाने लगा था.

कुसुमा खन्ना के साथ बहुत खुश थी. उन्हीं दिनों भागचंद ने अपनी बेटी पिंकी की शादी राजस्थान के कस्बा कुम्हेरपुर के रामवीर के साथ कर दी. रामवीर भी खातेपीते परिवार का था. पिंकी को ससुराल में किसी तरह की कोई परेशानी नहीं थी.

रामवीर का छोटा भाई श्यामवीर भी शादी लायक था. भागचंद को श्यामवीर छोटी बेटी किन्ना के लिए ठीक लगा तो उस के पिता देवी सिंह से बात की.

देवी सिंह का परिवार पिंकी से काफी खुश था, इसलिए उन्हें इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं था. इस के बाद किन्ना की शादी श्यामवीर के साथ हो गई. इस तरह भागचंद की दोनों बेटियों की शादी एक ही घर में हो गई.

सब कुछ ठीकठाक चल रहा था. समय के साथ कुसुमा 2 बच्चों की मां बन गई. खन्ना का शटर बनाने का काम बढिय़ा चल रहा था. पिंकी अपने पति रामवीर के साथ जल्दीजल्दी मायके आती रहती थी. रामवीर मजाकिया स्वभाव का था, इसलिए अपनी सलहज कुसुमा से वह खूब मजाक करता था.

यह बात उस के साले खन्ना को अच्छी नहीं लगती थी. कभीकभी खन्ना अपने बहनोई रामवीर के मजाक करने पर ऐतराज कर दिया करता था. तब रामवीर कहता, “साले साहब, सलहज से हमारा मजाक करने का हक है, इस में आप को क्यों बुरा लगता है. भाभी को तो कोई ऐतराज नहीं है.”

खन्ना कहता, “मजाक का भी कोई समय होता है. हर समय हंसीमजाक अच्छा नहीं लगता. उस की भी एक सीमा होती है, लेकिन आप हैं कि मानते ही नहीं.”

मगर खन्ना की बातों का रामवीर पर कोई असर नहीं पड़ा. वह जब तक ससुराल में रहता, खन्ना परेशान रहता. खन्ना ने कई बार अपने पिता से भी कहा, “आप जीजाजी को समझाते क्यों नहीं, वह इतने फूहड़ मजाक करते हैं.”

भागचंद दामाद के बजाय उसे ही समझाता, “बेटा, दामाद से इस तरह की बात करना ठीक नहीं है. फिर वह मजाक ही तो करता है. वह यहां महीनों तो रहता नहीं, एकदो दिन रह कर चला जाता है. इस बात को ले कर उसे नाराज नहीं करना चाहिए, हम ने उसे बेटी दी है, बेटी की वजह से हमें चुप रहना चाहिए.”

रामवीर को किसी की कोई परवाह नहीं थी. वह जब भी ससुराल आता, कुसुमा के आगेपीछे मंडराता रहता और हंसीमजाक करता रहता. जब वह चला जाता तो खन्ना इस बात को ले कर कुसुमा से खूब झगड़ता.

एक दिन भागचंद को खबर मिली कि उस की बेटी बीमार है. यह खबर सुन कर वह परेशान हो उठा. उसे देखने के लिए वह बेटे खन्ना के साथ उस की ससुराल कुम्हेरपुर पहुंचा. वहां जा कर पता चला कि पिंकी की हालत बहुत नाजुक है.

बेहतर इलाज के लिए वह बेटी को एक बड़े अस्पताल ले गया, लेकिन वहां भी उस की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ. लाख कोशिशों के बाद भी डाक्टर पिंकी को नहीं बचा पाए.

पिंकी की मौत उस के मायके वालों के लिए एक बड़ा सदमा थी. उस के बच्चों को पालने की जिम्मेदारी पिंकी की छोटी बहन किन्ना ने ले ली. पत्नी की मौत के बाद भी रामवीर जबतब अपनी ससुराल आता रहता था. ससुराल में अब भी उस की पहले की ही तरह इज्जत होती थी. कुसुमा उस की पहले की ही तरह खातिरदारी करती थी.

खन्ना को अब रामवीर का आना बिलकुल भी नहीं अच्छा लगता था. उसी की वजह से अब उस के और कुसुमा के बीच तनाव रहने लगा था. खन्ना की बात पर घर में कोई ध्यान नहीं देता था और न ही कोई उस के मानसिक तनाव को समझने की कोशिश करता था.

जबकि सच्चाई यह थी कि कुसुमा रामवीर की तरफ आकॢषत होती जा रही थी, जिस की वजह से उस के दांपत्य में दरार पडऩे लगी थी. रामवीर और कुसुमा के बीच वे बातें भी होने लगीं, जो दोनों को एकदूसरे के करीब लाने वाली थीं.

एक दिन रामवीर ने कुसुमा को मथुरा में मिलने को कहा, लेकिन कुसुमा ने कहा कि घर के सभी लोग शादी में जा रहे हैं, इसलिए घर में अकेली होने की वजह से वह वहां नहीं आ सकती. उस ने रामवीर को अपने यहां आने को कहा. तब रामवीर की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि ऐसे में वह उस के घर आ सकता था.

मौके का फायदा उठाने के लिए रामवीर अपनी ससुराल पहुंच गया और एकांत का फायदा उठा कर दोनों ने उस दिन मर्यादाएं लांघ कर इच्छा पूरी कर ली. रामवीर ने साले के दांपत्य में सेंध लगा दी. खन्ना को बीवी की बेवफाई का पता नहीं चला. कुसुमा को भी अपनी बेवफाई पर कोई ग्लानि नहीं हुई.

उस दिन के बाद से कुसुमा का पति के प्रति व्यवहार बदलने लगा. खन्ना जब कभी उस से झगड़ता, वह मायके जाने की धमकी देने लगती. खन्ना समझ नहीं पा रहा था कि कुसुमा अब इस तरह की बातें क्यों करती है. वह अंदर ही अंदर तनाव में घुटने लगा. दूसरी ओर कुसुमा को किसी बात की परवाह नहीं थी.

उसी बीच मथुरा में रामवीर और कुसुमा की मुलाकात हुई तो कुसुमा ने उस से कहा कि खन्ना को अब उस पर शक हो गया है. वह छोटीछोटी बात पर उस की पिटाई करने लगा है. तब रामवीर ने कहा, “मैं खन्ना से बात करूंगा.”

“नहीं, तुम उस से कुछ मत कहना. अब मेरे घर भी मत आना. जब कभी मिलना होगा, हम बाहर ही मिल लिया करेंगे. लेकिन इस समस्या का कोई हल तो ढूंढऩा ही होगा. आखिर मैं कब तक उस से पिटती रहूंगी.” कुसुमा ने कहा.

कुसुमा की बात पर रामवीर गंभीर हो गया. उसे लगा कि कुछ तो करना ही होगा. कुसुमा ने कहा, “चलो, हम कहीं भाग चलते हैं.”

“नहीं, इस से बड़ी गड़बड़ हो जाएगी. तुम्हें यह तो पता ही है कि मेरा छोटा भाई श्यामवीर भी उस घर का दामाद है. जब मैं घर में नहीं रहूंगा तो खन्ना को पूरा विश्वास हो जाएगा कि मैं ही तुम्हें भगा कर ले गया हूं. तब ससुराल वालों से श्यामवीर के संबंध खराब हो जाएंगे. मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से श्यामवीर की गृहस्थी बिगड़े.”

रामवीर ने कुसुमा को भरोसा दिया कि वह इस बारे में कुछ न कुछ जरूर करेगा. अगर जरूरत पड़ी तो खन्ना को रास्ते से हटा कर हमेशा की टेंशन खत्म कर देगा.

होली पर रामवीर बिना बुलाए मेहमान की तरह भागचंद के घर पहुंच गया. खन्ना को उस का आना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा. लेकिन वह खामोश रहा. होली के बहाने रामवीर ने कुसुमा को अपनी बाहों में भर लिया. रामवीर की इस हरकत से नाराज हो कर खन्ना ने रामवीर की पिटाई कर दी.

रामवीर अपनी सफाई में यही कहता  रहा कि वह तो सलहज के साथ होली खेल रहा था. लेकिन खन्ना का गुस्सा कम होने का नाम नहीं ले रहा था. आखिर में घर वालों ने बीचबचाव कर के रामवीर को छुड़ाया.

इस घटना से रंग में भंग पड़ चुका था. खन्ना ने तय किर लिया था कि अब वह रामवीर को किसी भी कीमत पर अपने घर नहीं आने देगा.

रामवीर की पिटाई से कुसुमा भी डर गई थी. उस ने पहली बार पति का ऐसा गुस्सा देखा था. खन्ना ने उसे भी चेतावनी दी थी कि वह संभल जाए वरना बहुत पछताएगी. उस दिन कुसुमा को लगा कि अब वह रामवीर से कभी नहीं मिल पाएगी.

लेकिन रामवीर ने तो कुछ और ही सोच लिया था. वह खन्ना से अपने अपमान का बदला लेना चाहता था. वह सोचने लगा कि ऐसा क्या किया जाए, जिस से वह खन्ना से बदला भी ले ले और कुसुमा भी हासिल हो जाए.

खन्ना को लगा कि रामवीर इतने अपमान के बाद अब उस के घर नहीं आएगा. वह अपने काम में मन लगाने लगा. कुसुमा का व्यवहार भी उसे सामान्य लगने लगा था. इस तरह वह बेफिक्र हो गया.

लेकिन उस की यही लापरवाही आगे चल कर उस की मुसीबत बनने वाली थी. उस ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि पत्नी की आशिकी उसे कभी मौत की सौगात दे जाएगी.

रामवीर और खन्ना के बीच हुए झगड़े के बाद कुसुमा भी सतर्क हो गई थी. उस का रामवीर से भले ही मिलना नहीं हो रहा था, पर वह उस से फोन पर बातें करती रहती थी. जब कभी उसे मौका मिलता, वह फोन पर बात कर के निश्चित जगह पर उस से मिल भी लेती थी.

27 अगस्त, 2015 को सवेरे शटङ्क्षरग ठेकेदार अजीत चौधरी ने खन्ना के घर का दरवाजा खटखटाया. खन्ना ने दरवाजा खोला तो अजीत ने कहा कि उसे अभी उस के साथ चलना होगा, क्योंकि पार्टी को अभी काम पूरा कर के देना है. अगर समय पर उस के शटर बना कर नहीं दिए तो परेशानी हो जाएगी.

खन्ना ने कहा, “ठीक है, तुम 2 मिनट ठहरो, मैं अभी तैयार हो कर आता हूं.”

इस के बाद खन्ना ठेकेदार अजीत चौधरी के साथ चला गया. उस दिन अजीत चौधरी के साथ गया खन्ना फिर कभी वापस नहीं लौटा.

खन्ना देर रात तक वापस नहीं लौटा तो घर वालों ने अजीत को फोन किया, क्योंकि वह उसी के साथ गया था. अजीत ने बताया कि खन्ना तो शाम को ही काम खत्म कर के घर चला गया था.

जब काम खत्म कर के घर के लिए चला था तो रास्ते से कहां गायब हो गया? घर वालों ने रात में ही खन्ना की खोजबीन शुरू कर दी. लेकिन वह नहीं मिला. घर वाले रात भर उस की ङ्क्षचता में परेशान रहे. जैसेतैसे उन की रात बीती. सवेरा होते ही वे सब फिर खन्ना को तलाशने लगे.

किसी ने चैतन्य अस्पताल के सामने खाली पड़े प्लौट में खन्ना की लाश देखी तो उस के घर वालों को बता दिया. वे वहां पहुंच गए. भागचंद ने जब बेटे की लाश देखी तो फूटफूट कर रोने लगा.

खबर मिलने पर थाना यमुनापार के थानाप्रभारी संतोष कुमार पुलिस टीम के साथ मौके पर पहुंच गए. पुलिस ने लाश का मुआयना किया तो उस के शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं मिला. गले में बनियान बंधा था. इस से अंदाजा लगाया गया कि इसी बनियान से उस का गला घोंटा गया था.

भागचंद का शक शटङ्क्षरग ठेकेदार अजीत चौधरी पर था, क्योंकि वही उसे अपने साथ घर से लिवा कर ले गया था. मौके की काररवाई निपटाने के बाद पुलिस ने खन्ना के शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. इस के बाद पुलिस ने भागचंद की तरफ से रिपोर्ट दर्ज कर ली.

उन्होंने अपना शक अजीत चौधरी पर जताया था. अजीत चौधरी थाना मांट के कुढ़वारा गांव का रहने वाला था. दबिश दे कर पुलिस ने उसे उस के घर से हिरासत में ले लिया.

पुलिस ने अजीत से पूछताछ की तो उस ने खुद को बेकसूर बताया. उस ने कहा कि खन्ना लंबे समय से उस के साथ काम कर रहा था. उस के साथ उस के काफी अच्छे संबंध थे. कोई ऐसी वजह नहीं थी, जिस से वह उस की हत्या करता.

पुलिस ने उस से कई तरह से पूछताछ की. लेकिन कोई हल नहीं निकला. इस पूछताछ में अनुभवी थानाप्रभारी को वह वास्तव में बेकसूर लगा. उन्होंने उसे छोड़ दिया.

मृतक खन्ना के परिवार वालों को जब इस बात का पता चला तो वे हंगामा करते हुए थाने पहुंच गए और अजीत को जेल भेजने की मांग करने लगे.

इस हंगामे में रामवीर बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहा था. थानाप्रभारी ने मृतक के परिजनों को समझाया कि वह खन्ना के हत्यारे को पकड़ कर जेल जरूर भेजेंगे.

इस के बाद पुलिस ने खन्ना के मोबाइल फोन की काल डिटेल्स निकलवाई. काल डिटेल्स का अध्ययन करने पर पता चला कि उस के मोबाइल पर आने वाली आखिरी काल खन्ना के बहनोई रामवीर की थी.

पुलिस ने रामवीर के बारे में छानबीन शुरू की तो गांव वालों से पता चला कि होली वाले दिन रामवीर ने खन्ना की बीवी को छेड़ा था, तब खन्ना ने उस की पिटाई कर दी थी.

इस बात की पुष्टि के लिए पुलिस ने खन्ना के घर वालों से पूछताछ की तो उन्होंने कहा कि रामवीर के साथ खन्ना का झगड़ा तो हुआ था, लेकिन वह झगड़ा ऐसा नहीं था कि रामवीर खन्ना की हत्या कर देता. फिर होली के बाद रामवीर उन के यहां आया भी नहीं था.

पुलिस को अब तक पता चल चुका था कि खन्ना की बीवी कुसुमा से रामवीर का कोई चक्कर था. इस के बाद पुलिस के सामने तसवीर साफ हो गई.

दूसरी ओर रामवीर को किसी तरह पता चल गया कि पुलिस को उस पर शक हो गया है तो वह फरार हो गया. उस के फरार होने की जानकारी पुलिस को मिल गई. लिहाजा 2 सिपाहियों को उस के घर पर लगा दिया गया. जैसे ही वह घर लौटा, पुलिस ने उसे दबोच लिया.

पुलिस रामवीर को पकड़ कर थाने ले आई और पूछताछ शुरू कर दी. रामवीर ने पहले तो पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन पुलिस की सख्ती के आगे वह टूट गया. उस ने स्वीकार कर लिया कि उसी ने अपने साले खन्ना की हत्या की थी और उस की लाश को चैतन्य अस्पताल के सामने खाली पड़े प्लौट में फेंक दिया था.

रामवीर ने यह भी स्वीकार किया कि उस की सलहज कुसुमा से उस के नाजायज संबंध थे. कुछ समय तक तो सब कुछ ठीकठाक चला, लेकिन कुछ दिनों बाद खन्ना को उस पर शक होने लगा और उसे उस का आनाजाना अखरने लगा.

वह किसी भी कीमत पर कुसुमा से संबंध तोडऩा नहीं चाहता था. कुसुमा भी अपने पति की पिटाई से तंग आ गई थी. वह हमेशा के लिए पति से छुटकारा चाहती थी. इस के बाद दोनों ने खन्ना को ठिकाने लगाने की योजना बना ली.

उस के बाद रामवीर खन्ना का विश्वास जीतने की कोशिश करने लगा. जब उसे उस पर विश्वास हो गया तो रामवीर ने घटना वाले दिन खन्ना को फोन कर के शाम का खाना किसी होटल में खाने की बात कही.

खन्ना रामवीर को अपना दुश्मन नहीं बनाना चाहता था. उस ने सोचा कि अगर रामवीर सुधर रहा है तो उसे एक मौका अवश्य देना चाहिए. उस ने सोचा कि खाना खाते समय वह रामवीर को समझाएगा.

उस दिन सुबह ही वह ठेकेदार अजीत चौधरी के साथ काम पर निकला था. काम खत्म करने के बाद वह शाम को रामवीर की बताई जगह पर पहुंच गया. रामवीर उसे एक ढाबे पर ले गया, जहां दोनों ने खाना खाया और शराब पी.

रामवीर ने खन्ना को खूब शराब पिलाई. जब खन्ना नशे में धुत हो गया तो वह उसे एक टैंपो में डाल कर सुनसान जगह पर ले गया और अपनी बनियान से उस का गला घोंट दिया.

चूंकि उस दिन अजीत चौधरी खन्ना को घर से बुला कर ले गया था, इसलिए घर वालों का शक अजीत पर ही गया. पर पुलिस ने असली अपराधी को खोज निकाला.

रामवीर से पूछताछ के बाद पुलिस ने कुसुमा को भी उस के घर से गिरफ्तार कर लिया. कुसुमा के घर वालों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कुसुमा ने ही अपने पति को मरवाया है. कुसुमा यही कहती रही कि न उस के रामवीर से संबंध हैं और न ही उस ने पति को मरवाया है.

बहरहाल, पुलिस ने रामवीर और कुसुमा को गिरफ्तार कर के कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया. कथा लिखने तक दोनों जेल में थे.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

समय चक्र : बिल्लू भैया ने क्या लिखा था पत्र में?

शिमला अब केवल 5 किलोमीटर दूर था…यद्यपि पहाड़ी घुमाव- दार रास्ते की चढ़ाई पर बस की गति बेहद धीमी हो गई थी…फिर भी मेरा मन कल्पनाओं की उड़ान भरता जाने कितना आगे उड़ा जा रहा था. कैसे लगते होंगे बिल्लू भैया? जो घर हमेशा रिश्तेदारों से भरा रहता था…उस में अब केवल 2 लोग रहते हैं…अब वह कितना सूना व वीरान लगता होगा, इस की कल्पना करना भी मेरे लिए बेहद पीड़ादायक था. अब लग रहा था कि क्यों यहां आई और जब घर को देखूंगी तो कैसे सह पाऊंगी?

जैसे इतने वर्ष कटे, कुछ और कट जाते. कभी सोचा भी न था कि ‘अपने घर’ और ‘अपनों’ से इतने वर्षों बाद मिलना होगा. ऐसा नहीं था कि घर की याद नहीं आती थी, कैसे न आती? बचपन की यादों से अपना दामन कौन छुड़ा पाया है? परंतु परिस्थितियां ही तो हैं, जो ऐसा करने पर मजबूर करती हैं कि हम उस बेहतरीन समय को भुलाने में ही सुकून महसूस करते हैं. अगर बिल्लू भैया का पत्र न आया होता तो मैं शायद ही कभी शिमला आने के लिए अपने कदम बढ़ाती. 4 दिन पहले मेरी ओर एक पत्र बढ़ाते हुए मेरे पति ने कहा, ‘‘तुम्हारे बिल्लू भैया इतने भावुक व कमजोर दिल के कैसे हो गए?

मैं ने तो इन के बारे में कुछ और ही सुना था…’’ पत्र में लिखी पंक्तियां पढ़ते ही मेरी आंखों में आंसू आ गए, गला भर आया. लिखा था, ‘छोटी, तुम लोग कैसे हो? मौका लगे तो इधर आने का प्रोग्राम बनाना, बड़ा अकेलापन लगता है…पूरा घर सन्नाटे में डूबा रहता है, तेरी भाभी भी मायूस दिखती है, टकटकी लगा कर राह निहारती रहती है कि क्या पता कहीं से कोई आ जाए…’ सम?ा में नहीं आ रहा था कि कैसे आज बिल्लू भैया जैसा इनसान एक निरीह प्राणी की तरह आने का निमंत्रण दे रहा है और वह भी ‘अकेलेपन’ का वास्ता दे कर. यादों पर जमी परत पिघलनी शुरू हुई. वह भी बिल्लू भैया के प्रयास से क्योंकि यदि देखा जाए तो यह परत भी उन्हीं के कारण जमानी पड़ी थी.

बचपन में बिल्लू भैया जाड़ों के दिनों में अकसर पानी पर जमी पाले की परत पर हाकी मार कर पानी निकालते और हम सब ठंड की परवा किए बिना ही उस पानी को एकदूसरे पर उछालने का ‘खेल’ खेलते. एक बार बिल्लू भैया, बड़े गर्व से हम को अपनी उपलब्धि बता ही रहे थे कि अचानक उन से बड़े कन्नू भैया ने उन का कान जोर से उमेठ कर डांट लगाई… ‘अच्छा, तो ये तू है, जो मेरी हाकी का सत्यानाश कर रहा है…मैं भी कहूं कि रोज मैच खेल कर मैं अपनी हाकी साफ कर के रखता हूं और वह फिर इतनी गंदी कैसे हो जाती है.’ और बिल्लू भैया भी अपमान व दर्द चुपचाप सह कर, बिना आंसू बहाए कन्नू भैया को घूरते रहे पर ‘सौरी’ नहीं कहा.

बचपन से ही वे रोना या अपना दर्द दूसरे से कहना अच्छा नहीं सम?ाते थे, कभीकभी तो वे नाटकीय अंदाज में कहते थे, ‘आई हेट टियर्स…’ दूसरों से निवेदन करना जो इनसान अपनी हेठी सम?ाता हो आज वह इस तरह…इस स्थिति में. कितना अच्छा समय था. जब हम छोटे थे और एकता के धागे से बंधा कुल मिला कर लगभग 20 सदस्यों का हमारा संयुक्त परिवार था, जिस में दादी, एक विधवा व निसंतान चचेरी बूआ, हमारे पिता, उन से बड़े 3 भाई, सब के परिवार, हम 10 भाईबहन जोकि अपनीअपनी उम्र के भाईबहनों के साथ दोस्त की तरह रहते थे. सगे या चचेरे का कोई भाव नहीं, ताऊजी की दुकान थी…

जहां पर ग्राहक को सामान से ज्यादा ताऊजी की ईमानदारी पर विश्वास था. मेरे पिता, ताऊजी के साथ दुकान पर काम करते थे और उन के अन्य 2 भाइयों में से एक स्थानीय डिगरी कालेज में तथा एक आयकर विभाग में क्लर्क के पद पर थे जोकि निसंतान थे. कन्नू व बिल्लू भैया ताऊजी के बेटे थे. उस के बाद नन्हू व सोनू भैया थे. हम 3 बहनें, 1 भाई थे. अध्यापन का कार्य करने वाले ताऊजी के 2 बच्चे अभी छोटे थे क्योंकि वे उन की शादी के लगभग 10 साल बाद हुए थे.

आयकर विभाग वाले ताऊजी निसंतान थे. समय के साथ घर में परिवर्तन आने शुरू हुए, दादी व बूआ की मौत एक के बाद एक कर हो गई. घर के लड़के शहर छोड़ कर बाहर जाने लगे. कोई डाक्टरी की पढ़ाई के लिए, तो कोई नौकरी के लिए. मेरी भी बड़ी बहनों की शादी हो चुकी थी. बिल्लू भैया की भी नागपुर में एक दवा की कंपनी में नौकरी लग गई, जब वे भी चले गए तब अचानक एक दिन ताऊजी पापा से बोले, ‘छोटे, अच्छा हुआ कि सभी अपने पैरों पर खड़े हो रहे हैं, मैं चाहता भी नहीं था कि आने वाले समय में नई पीढ़ी यहां बसे. हम ने तो निभा लिया पर ये बच्चे हमारी तरह साथ नहीं रह सकते.

बड़ी मुश्किल से परिवार जुड़ता है और उस में किसी एक का योगदान नहीं होता बल्कि सभी का धैर्य, निस्वार्थ त्याग, स्नेह व समर्पण मिला कर ही एकतारूपी मजबूत धागे की डोर सब को जोड़ पाती है, वर्षों लग जाते हैं…यह सब होने में.’ वैसे तो दूसरे लोग भी घर से गए थे पर ताऊजी ने यह बात बिल्लू भैया के जाने के बाद ही क्यों कही? यह विचार मेरे मन में कौंधा और उस का उत्तर मु?ो मात्र 6 महीने बाद ही मिल गया. वह भी एक तीव्र प्रहार के रूप में. ऐसी चोट मिली कि आज तक उस की कसक अंदर तक पीड़ा पहुंचा देती है. बात यह हुई कि मात्र 6 महीने बाद ही बिल्लू भैया नौकरी छोड़ कर घर वापस आ गए. ‘मैं भी दुकान संभाल लूंगा क्योंकि मुझे लगता है कि बुढ़ापे में आप लोग अकेले रह जाएंगे, आप लोगों की देखभाल के लिए भी तो कोई चाहिए,’ कहते हुए जब बिल्लू भैया ने अपना सामान अंदर रखना शुरू किया तो घर के सभी सदस्य बहुत खुश हुए किंतु ताऊजी अपने चेहरे पर निर्लिप्त भाव लिए अपना कार्य करते रहे. मु?ो जीवन की कड़वी सचाइयों का इतना अनुभव न था अन्यथा मैं भी सम?ा जाती कि यह चेहरा केवल निर्लिप्तता लिए हुए नहीं है बल्कि इस के पीछे आने वाले तूफान के कदमों की आहट पहचानने की चिंता व्याप्त है और यही सत्य था.

तूफान ही तो था, जिस का प्रभाव आज तक महसूस होता रहा. धमाका उस दिन महसूस हुआ जब मैं अलसाई सी अपने बिस्तर पर आंखें मूंदे पड़ी थी कि एक तेज आवाज मेरे कानों में पड़ी : ‘चाचाजी, कभीकभी मु?ो लगता है कि आप अपने फायदे के लिए हमारे पिताजी के साथ रह रहे हैं. आप को अपनी बेटियों की शादी के लिए पैसा चाहिए न इसीलिए…’ यह क्या, मैं ने आंखें खोल कर देखा तो अपने पापा के सामने बिल्लू भैया को खड़ा देखा… ‘यह क्या कह रहे हो? हमारे बीच में ऐसी भावना होती तो हम इतने वर्षों तक कभी साथ न रह पाते. संयुक्त परिवार है हमारा, जहां हमारेतुम्हारे की कोई जगह नहीं.

इतनी छोटी बात तुम्हारे दिमाग में आई कैसे?’ पापा लगभग चिल्लाते हुए बोले. पापा की एक आवाज पर थर्राने वाले बिल्लू भैया की आज इतनी हिम्मत हो गई कि उम्र का लिहाज ही भूल गए थे. मैं सिहर कर चुपचाप पड़ी सोने का नाटक करने लगी पर ताऊजी के उस वाक्य का अर्थ मेरी सम?ा में आ गया था. नई पीढ़ी का रंग सामने आ रहा था. पिता होने के नाते वे अपने बेटे की नीयत जानते थे और अपने संयुक्त परिवार को हृदय से प्यार करने वाले ताऊजी इस की एकता को हर खतरे से बचाना चाहते थे. हतप्रभ से मेरे पापा ने जब यह बात मेरे ताऊजी से कही तो वे केवल एक ही वाक्य बोल पाए, ‘शतरंज की बाजी में, दूसरे के मजबूत मोहरे पर ही सब से पहले वार किया जाता है. वही हो रहा है.

तुम मु?ा पर विश्वास रखोगे तो कुछ नहीं बिगड़ेगा.’ कही हुई बात इतनी कड़वी थी कि उस की कड़वाहट धीरेधीरे घर के वातावरण में घुलने लगी…उस का प्रभाव धीरेधीरे अन्य लोगों पर भी दिखने लगा और एक अदृश्य सी सीमारेखा में सभी परिवार सिमटने लगे. एक ताऊजी कालेज के वार्डन बन कर वहीं होस्टल में बने सरकारी घर में चले गए. दूसरे भी मन की शांति के लिए घर के पीछे बने 2 कमरों में रहने लगे. अपमान से बचने के लिए उन्होंने रसोई भी अलग कर ली. अलगाव की सीमारेखा को मिटाने वाले सशक्त हाथ भी उम्र के साथ धीरेधीरे अशक्त होते चले गए. ताऊजी को लकवा मार गया और पापा भी अपने सबल सहारे को कमजोर पा कर परिस्थितियों के आगे ?ाकने को मजबूर हो गए, परंतु अंत समय तक उन्होंने ताऊजी का साथ न छोड़ा. अब घर बिल्लू भैया व उन की पत्नी के इशारे पर चलने लगा, समय आने पर मेरी भी शादी हो गई और मैं शिमला के अपने इस प्यारे से घर को भूल ही गई. ताऊजी, ताईजी, पापा का इंतकाल हो गया.

मां मेरे भाई के पास आ गईं. अब मेरे लिए उस घर में बचपन की यादों के सिवा कुछ न था. समय का चक्र अविरल गति से घूम रहा था…और आज बिल्लू भैया भी उम्र के उसी पड़ाव पर खड़े थे, जिस पड़ाव पर कभी मेरे पापा अपमानित हुए थे, पर उन्होंने ऐसा पत्र क्यों लिखा? क्या कारण होगा? अचानक कानों में पति के स्वर पड़े तो मेरी तंद्रा भंग हुई थी. ‘‘तुम शिमला क्यों नहीं चली जातीं, तुम्हारा घूमना भी हो जाएगा और उन का अकेलापन भी दूर होगा…चाहे थोड़े दिनों के लिए ही सही,’’ अचानक अपने पति की बातें सुन कर मैं ने सोचा कि मु?ो जाना चाहिए…और मैं तैयारी करने लग गई थी. शिमला पहुंचते ही, मैं अपनी थकान भूल गई. तेज चाल से अपने मायके की ओर बढ़ते हुए मु?ो याद ही नहीं रहा कि दिल्ली में रोज मु?ो अपने घुटनों के दर्द की दवा खानी पड़ती है.

कौलबेल पर हाथ रखते ही, बिल्लू भैया की आवाज सुनाई पड़ी, मानो वे मेरे आने के इंतजार में दरवाजे के पीछे ही खड़े थे… ‘‘छोटी, तू आ गई…बहुत अच्छा किया.’’ मु?ो ऐसा लगा मानो ताऊजी सामने खड़े हों. ‘‘तेरी भाभी तो तेरे लिए पकवान बनाने में व्यस्त है…’’ तब तक भाभीजी भी डगमग चाल से चल कर मु?ा से लिपट गईं. सच कहूं तो उन के प्यार में आज भी वह आकर्षण नहीं था, जो किसी ‘अपने’ में होता है. आज हम सब को अपने पास बुलाना उन की मजबूरी थी. अकेलेपन के अंधेरे से बाहर निकलने का एक प्रयास मात्र था…उस में अपनापन कहां से आएगा. ‘‘चलचल, अंदर चल,’’ बिल्लू भैया मेरा सामान अंदर रखने लगे, घर में घुसते ही मेरी आंखें भर आईं. यों तो चारों ओर सुंदरसुंदर फर्नीचर व सामान सजा हुआ था. पर सबकुछ निर्जीव सा लगा. काश, बिल्लू भैया व भाभीजी सम?ा पाते कि रौनक इनसानों से होती है, कीमती सामान से नहीं. घर से हमारे बचपन की यादें मिट चुकी थीं.

आज मां के हाथ के बने आलू की खुशबू, मात्र कल्पना में महसूस हो रही थी. मकान की शक्ल बदल चुकी थी… दुकान से मिसरी, गुड़, किशमिश गायब थी. बिल्लू भैया भी तो वे बिल्लू भैया कहां थे? ‘‘कितना बदल गया सबकुछ…’’ मेरे मुंह से अचानक ही निकल गया. ‘‘सच कहती है तू…वाकई सब बदल गया, देख न, तनय, जिसे बच्चे की तरह गोद में खिलाया था…आज मु?ा से कितनी ऊंची आवाज में बात करने लगा,’’ बिल्लू भैया के मन का गुबार मौका मिलते ही बाहर आ गया. ‘‘तनय, कन्नु भैया का बेटा… क्यों, क्या हो गया?’’ ‘‘कहता है, मैं जायदाद पर अपना अधिकार जमाने के लिए, नौकरी छोड़ कर यहां आया था,’’ बता भला, मैं ऐसा क्यों करने लगा. जानता है न कि मैं कमजोर हो गया हूं तो जो चाहे कह जाता है, अपना हिस्सा मांग रहा है… कौन सा हिस्सा दूं और लोग भी तो हैं,’’ कहतेकहते बिल्लू भैया हांफने लगे, ‘‘बंटवारे का चक्कर होगा तो मैं और तेरी भाभी कहां जाएंगे.’’ विनी (भैया की बेटी) भी अमेरिका में बस गई थी. असुरक्षा व भय का भाव भैया की आवाज में साफ ?ालक रहा था.

मेरे कदम जम गए… कानों में दोनों आवाजें गूजने लगीं… एक जो मेरे पापा से कही गई थी और दूसरी आज ये बिल्लू भैया की. कितनी समानता है. न्याय मिलने में सालों तो लगे पर मिला. शायद इसीलिए परिस्थितियों ने बिल्लू भैया से मु?ो ही चिट्ठी लिखवाई, क्योंकि उस दिन अपने पापा को मिलने वाली प्रत्यक्ष पीड़ा की प्रत्यक्षदर्शी गवाह मैं ही थी. इसीलिए आज न्याय प्राप्त होने की शांति भी मैं ही महसूस कर सकती थी. आंखें बंद कर मन ही मन मैं ने ऊपर वाले को धन्यवाद दिया. आज बिल्लू भैया को इस स्थिति में देख कर मु?ो अपार दुख हो रहा था… बचपन के सखा थे वे हमारे. ‘‘भैया, हम आप के साथ हैं.

हमारे होते हुए आप अकेले नहीं हैं. मैं वादा करती हूं कि तीजत्योहारों पर और इस के अलावा भी जब मौका लगेगा हम एकदूसरे से मिलते रहेंगे,’’ मैं ने अपनी आवाज को सामान्य करते हुए कहा क्योंकि मैं किसी भी हालत में अपने हृदय के भाव भैया पर जाहिर नहीं करना चाहती थी. मेरे इतने ही शब्दों ने भैया को राहत सी दे दी थी…उन के चेहरे से अब तनाव की रेखाएं कम होने लगी थीं. आखिर मेरे चलने का दिन आ गया. पूरे घर का चक्कर लगा कर एक बार फिर अपने मन की उदासी को दूर करने का प्रयास किया पर प्रयास व्यर्थ ही गया. बस स्टैंड पर भैया की आंखों में आंसू देख कर मेरे सब्र का बांध टूट गया क्योंकि ये आंसू सचाई लिए हुए थे. पश्चात्ताप था उन में, पर अब खाइयां इतनी गहरी थीं कि उन को पाटने में वर्षों लग जाते… ताऊजी की सहेजी गई अमानत अब पहले जैसा रूप कैसे ले सकती थी.

बस चल पड़ी और भैया भी लौट गए. मन में एक टीस सी उठी कि काश, यदि बिल्लू भैया जैसे लोग कोई भी ‘दांव’ लगाने से पहले समय के चक्र की अविरल गति का एहसास कर लें तो वे कभी भी ऐसे दांव लगाने की हिम्मत न करें… यह अटल सत्य है कि यही चक्र एक दिन उन्हें भी उसी स्थिति पर खड़ा करेगा जिस पर उन्होंने दूसरे व्यक्ति को कमजोर सम?ा कर खड़ा किया है. इस तथ्य को भुलाने वाले बिल्लू भैया आज दोहरी पीड़ा ?ोल रहे थे… निजी व पश्चात्ताप की.

मैं तलाकशुदा हूं, मुझे एक लड़के से प्यार हो गया जिससे मैंने शादी कर ली, अब वह पीछा छुड़ाना चाहता है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं तलाकशुदा हूं और मेरे 3 बच्चे हैं. मुझे एक लड़के से प्यार हो गया, वह भी मुझ से प्यार करने लगा और हम दोनों ने चुपके से शादी कर ली जबकि वह मुझ से 4 साल छोटा है. लेकिन अब वह मुझ से दूर भागता है. इस वजह से मैं काफी परेशान रहती हूं और मन करता है कि आत्महत्या कर लूं, लेकिन फिर एक पल बच्चों का खयाल आ जाता है. मेरे पास जो भी पैसे वगैरा थे मैं ने सब उसे दे दिए हैं. लेकिन अब वह मुझ से पीछा छुड़ाना चाहता है.

जवाब
आप की बातें तो इसी ओर इशारा कर रही हैं कि उस लड़के ने आप से सिर्फ पैसों की खातिर ही शादी की है वरना सारी स्थिति से तो वह पहले ही वाकिफ था. अब आप से पीछा छुड़ाने का क्या मतलब. आप उसे डराएं कि विवाह करना आसान है पर तोड़ना नहीं, वह आप से अलग रहेगा तो भी उसे आप को अपनाना होगा. उसे वास्तविकता के ठोस  धरातल का एहसास दिलाएं.

कब किसी को किसी से प्यार हो जाए, इस पर तो किसी का बस नहीं चलता लेकिन आप ने उस पर विश्वास कर उसे अपने सारे पैसे सौंप दिए, यह आप की सब से बड़ी भूल थी. अकसर महिलाएं व लड़कियां भावनाओं में जल्दी बह जाती हैं, तभी धोखा खाती हैं और आप के साथ भी यही हुआ है. आप ने यह सोच कर उस पर विश्वास किया कि वह जितना मुझे प्यार करता है उतना ही मेरे बच्चों को भी करेगा, लेकिन वह तो सिर्फ आप के पैसों से प्यार करता था. अपने मकसद में सफल होने के बाद अब वह आप से दूरदूर भाग रहा है.

भले ही वह आप को ऐसा कर के मानसिक रूप से प्रताडि़त करे लेकिन फिर भी आप हिम्मत नहीं हारें, बल्कि अपने बच्चों की खातिर जिएं, उन्हें हर खुशी दें. उस का आप से पीछा छुड़ाने का कारण जानें और जब आप को समझ आ जाए कि उस ने सिर्फ लालच में आप से शादी की थी तो फिर आप उसे ऐसा सबक सिखाएं कि वह फिर किसी के साथ ऐसा करने की हिम्मत न जुटा पाए. यह आप के लिए भी सबक है कि आप आगे से किसी पर अंधा विश्वास न करें.

विश्वास की आन : क्या मृदुला का सिद्धार्थ पर भरोसा करना सही था?

‘‘दिल संभल जा जरा, फिर मुहब्बत करने चला है तू…’’ गाने की आवाज से मृदुला अपना फोन उठाने के लिए रसोई से भागी, जो ड्राइंगरूम में पड़ा यह गाना गा रहा था. नंबर पर नजर पड़ते ही उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. नाम फ्लैश नहीं हो रहा था, पर जो  नंबर चमक रहा था वह उसे अच्छी तरह याद था. वह नंबर तो शायद वह सपने में भी न भूल पाए.

रोहन अपने कमरे से चिल्ला रहा था, ‘‘मौम, आप का फोन बज रहा है.’’

मृदुला ने झटके से फोन उठाया. एक नजर उस ने कमरे में टीवी देखने में व्यस्त ऋषि पर डाली और दूसरी नजर रोहन पर जो अपने कमरे में पढ़ रहा था. वह फोन उठा कर बाहर बालकनी की ओर बढ़ गई.

‘‘हैलो… हाय… क्या हाल हैं?’’

‘‘अब ठीक हूं,’’ उधर से आवाज आई.

‘‘क्यों? क्या हुआ?’’

‘‘बस तुम्हारी आवाज सुन ली बंदे का दिन अच्छा हो गया.’’

‘‘अच्छा, तो यह बात है… अच्छा बताओ फोन क्यों किया? आज मेरी याद कैसे आ गई? तुम अच्छे से जानते हो आज शनिवार है. ऋषि और रोहन दोनों घर पर होते हैं… ऐसे में बात करना मुश्किल होता है,’’ मृदुला जल्दीजल्दी कह रही थी.

‘‘मैं ने तो बस यह बताने के लिए फोन किया कि अब मुझ से ज्यादा सब्र नहीं होता. मैं अगले हफ्ते दिल्ली आ रहा हूं तुम से मिलने. प्लीज तुम किसी होटल में मेरे लिए कमरा बुक करवा दो जहां बस तुम हो और मैं और हो तनहाई,’’ सिद्धार्थ ने अपना दिल खोल कर रख दिया.

‘‘होटल? न बाबा न मैं होटल में मिलने नहीं आऊंगी.’’

‘‘तो फिर हम कहां मिलेंगे? मैं 1500 किलोमीटर मुंबई से दिल्ली सिर्फ तुम्हें मिलने आ रहा हूं ओर एक तुम हो जो होटल तक नहीं आ सकतीं.’’

मृदुला बातों में खोई हुई थी. उसे एहसास ही न हुआ कि कब रोहन अपने कमरे से निकल कर बाहर बालकनी में उस के पीछे आ खड़ा हो गया था.

रोहन पर नजर पड़ते ही मृदुला ने कहा, ‘‘अच्छा, मैं बाद में बात करती हूं,’’ और फिर फोन काट दिया.

‘‘किस का फोन था मौम?’’ रोहन ने पूछा.

‘‘वो… वो मेरी फ्रैंड का फोन था.’’ कह वह फोन ले कर रसोई में चली गई और सब्जी काटने लगी.

वैसे तो वह रसोई में काम कर रही थी पर दिलोदिमाग मुंबई में सिद्धार्थ के पास पहुंच चुका था. दिल जोरजोर से धड़क रहा था. बस एक मिलने की आस में वह पिछले 8 सालों से जल रही थी. अब समझ नहीं पा रही थी कि कहां, कब और कैसे मिलेगी.

जिंदगी में कब कोई आ जाए, इनसान जान ही नहीं पाता. कोई दिल के इतने करीब पहुंच जाता है कि बाकी सब से दूर हो जाता है.

यों तो मृदुला की जिंदगी में कोई कमी न थी. प्यार करने वाला पति ऋषि था. होशियार और समझदार 16 साल का बेटा रोहन था पर फिर सिद्धार्थ, औनलाइन फ्रैंड बन कर उस की जिंदगी में आ गया था और फिर सब उलटपुलट हो गया था.

वह बेटे और पति से छिपछिप कर कंप्यूटर से बहुत मेल और चैट करती थी और फोन भी बहुत करती थी. उस की जिंदगी का हर खुशीगम तब तक अधूरा होता जब तक वह उसे सिद्धार्थ से बांट न लेती.

दोस्ती एक जनून बन गई थी. वह उस से एक दिन भी बिना बात किए न रहती थी. रोज बात करना दोनों की दिनचर्या का अभिन्न अंग था. ऐसा ही कुछ हाल सिद्धार्थ का भी था.

यों तो मृदुला पति के औफिस और बेटे के स्कूल जाने के बाद बात करती थी, फिर भी रोहन गूगल की हिस्ट्री में जा कर कई बार पूछता था कि मम्मी यह सिद्धार्थ कौन है? और वह कुछ जवाब नहीं दे पाती थी सिवा इस के कि पता नहीं.

रोहन को कुछकुछ अंदाजा होता जा रहा था कि मम्मी कुछ ऐसा कर रही हैं, जिसे वे छिपा रही हैं. कई बार गुस्से और आक्रोश में वह अपनी परेशानी का इजहार भी करता पर ज्यादा कुछ कह न पाता.

अब मृदुला क्या करेगी, सिद्धार्थ से मिलने की तमन्ना को दबा लेगी? या फिर होटल जाएगी उस से मिलने? यही सब सोचसोच कर वह परेशान थी.

फिर अचानक उस ने अपना मन बना दिया और सिद्धार्थ को फोन मिला लिया,

‘‘सिद्धार्थ, मैं पहले ही जिंदगी में काफी डरडर कर तुम से बात करती हूं… मैं अब इस डर के साथ और नहीं जीना चाहती. मेरे मन में कोई खोट नहीं है और न ही तुम्हारे मन में, तो क्यों न तुम मेरे घर आ जाओ. मैं तुम से मिलने होटल नहीं आ पाऊंगी और न ही मैं तुम से मिलने का मौका गंवाना चाहती हूं.’’

मृदुला की बात सुन कर सिद्धार्थ हड़बड़ा गया, ‘‘पागल हो गई हो क्या? तुम्हारा पति और रोहन क्या कहेंगे? नहीं यह ठीक नहीं होगा.’’

‘‘क्या ठीक नहीं होगा? क्या यह मेरा घर नहीं है जहां मैं किसी को अपनी मरजी से बुला सकूं? मेरे मन में कोई खोट नहीं है. मैं ने तुम से दोस्ती की तो क्या गलत किया? और अगर ऋषि, रोहन कोई परेशानी हैं तो ठीक है हम इस चैप्टर को अभी हमेशा के लिए बंद कर देते हैं… पर मुझे एक बार तो तुम से मिलना ही है. बहुत बेताब है यह दिल तुम से मिलने को… तुम आओगे न मेरे घर?’’ एक सांस में मृदुला सब बोल गई.

‘‘मुझे थोड़ा वक्त दो सोचने का,’’ उस ने गंभीर होते हुए कहा.

‘‘बस घबरा गए? यों तो बहुत दलीलें देते थे कि मैं तुम्हारे एक बार बुलाने पर दौड़ा चला आऊंगा… अब क्या हुआ? देख ली तुम्हारी फितरत… तुम मुझे होटल में बुला कर मेरा नाजायज फायदा उठाना चाहते थे,’’ उस की आवाज ऊंची हो गई थी.

‘‘चुप करो,’’ सिद्धार्थ बोला, ‘‘ठीक है मैं 20 तारीख को 12 बजे वाली फ्लाइट से

दिल्ली आऊंगा और वह शाम तुम्हारे और तुम्हारी फैमिली के नाम… पर प्लीज, ऋषि मुझे मारेगा तो नहीं?’’

‘‘ठीक है, मैं इंतजार करूंगी,’’ कह कर फोन काट दिया.

मृदुला ने उसे अपने घर बुला तो लिया पर फिर  उलझन में पड़ गई कि ऋषि और रोहन को क्या बताएगी कि सिद्धार्थ कौन है?

ऋषि तो फिर भी समझ जाएगा पर न जाने रोहन कैसे रिएक्ट करेगा… उस की क्या इज्जत रह जाएगी उस के सामने…

इंतजार के 7 दिन एक इम्तिहान की तरह गुजरे जिन में पलपल वह अपने  निर्णय पर अफसोस करती रही, पछताती रही.

मृदुला के अंदर चल रहे तूफान की बाहर किसी को भनक न थी. इन 7 दिनों में मिलने की दिली चाहत को दिमाग में चल रहे प्रश्न ‘अब क्या होगा’ ने दबा दिया था. अब मृदुला को मिलने की तीव्र इच्छा से ज्यादा इस बात की टैंशन थी कि 20 तारीख को वह ऐसा क्या करे ताकि सब अच्छी तरह से निबट जाए?

सुबह उठती तो इसी आस के साथ कि काश 20 तारीख को ऋषि और रोहन अपने दोस्तों से मिलने चले जाएं और वह सिद्धार्थ से बिना टैंशन के मिल सके. पर अकसर लोग जो सोचते हैं वह होता नहीं. उन दोनों का भी ऐसा कोई प्रोग्राम नहीं बना.

आखिरकार 20 तारीख आ ही गई. इस दौरान वह सिद्धार्थ से कोई बात न कर पाई. सारी रात करवटें बदलतेबदलते निकाल दी उस ने कि कल का दिन न जाने क्या तूफान ले कर आएगा उस की जिंदगी में.

कई मरतबा उस ने अपनेआप को कोसा भी कि क्यों ऐसा निर्णय लिया, पर तीर कमान से निकल चुका था. यह भी नहीं कह सकती थी कि वह न आए.

न जाने किस रौ और विश्वास में बह कर उस ने सिद्धार्थ को इतनी दूर से बुला लिया था. घर में शांति थी. सब अपनेअपने काम में लगे थे. तूफान से पहले ऐसा ही सन्नाटा होता है.

ठीक 3 बजे सिद्धार्थ का फोन आ गया, ‘‘मैं एअरपोर्ट पहुंच चुका हूं.’’

मृदुला का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. आंखें खुशी से चमकने लगीं और चेहरा उत्तेजना से लाल हो गया.

‘‘एक बार फिर सोच लो, कहीं और मिल लेते हैं?’’ सिद्धार्थ ने घबराते हुए पूछा.

‘‘नहीं, अब जो होगा देखा जाएगा. मैं पीछे नहीं हटूंगी,’’ कह उस ने उसे मैट्रो से घर आने का रास्ता बताया और फिर फोन काट दिया.

अब मारे घबराहट के उस के हाथपैर फूलने लगे थे. ऋषि और रोहन अपनेअपने कमरे में थे. अचानक घंटी बजी. धड़कते दिल से उस ने दरवाजा खोला तो एक स्मार्ट, आकर्षक, लंबा, सांवला 38 वर्षीय युवक उस के सामने खड़ा था, जिसे देख उस का मुंह खुला का खुला रह गया.

वही चिरपरिचित हाय सुन कर वह चहक उठी और फिर अपने सूखे गले से धीरे से कहा, ‘‘हाय, आओ अंदर आओ.’’

डरतेडरते सिद्धार्थ ने अंदर कदम रखा, तो झट से रोहन अपने कमरे से बाहर ड्राइंगरूम में आ गया.

‘‘बेटा, ये सिद्धार्थ अंकल हैं.’’

मृदुला के मुंह से सिद्धार्थ नाम बड़ी मुश्किल से निकला, जिसे सुन कर रोहन थोड़ा सकपका गया और फिर अपना गुस्सा छिपाता जल्दी से नमस्ते कर के अपने कमरे में चला गया.

अपनी बेचैनी, घबराहट को छिपाते मृदुला ने हलकी मुसकान से सिद्धार्थ को देखा और सोफे पर बैठने को कहा.

ऋषि के कमरे में कोई हलचल नहीं थी. वहां रोज की तरह टीवी चल रहा था. ऋषि टीवी के सामने बैठे थे. वह कमरे में गई और बोली, ‘‘कोई आया है.’’

‘‘कौन?’’

‘‘सिद्धार्थ.’’

‘‘सिद्धार्थ कौन?’’ चौंकते हुए ऋषि ने पूछा.

‘‘मेरा दोस्त,’’ एक झटके में उस ने बोल दिया और अब वह तैयार थी किसी भी परिणाम के लिए. उस ने निर्णय कर लिया था कि अगर ऋषि नहीं चाहेगा तो वह वहां नहीं रहेगी और सिद्धार्थ के साथ तो कतई नहीं. वह जानती थी कि वह उस का अच्छा दोस्त तो हो सकता है पर अच्छा हमसफर नहीं.

10 मिनट तक ऋषि ने न तो कोई जवाब दिया और न ही अपनी जगह से हिला.

मृदुला रसोई में जा कर कौफी बनाने लगी. बीचबीच में अकेले बैठे सिद्धार्थ से भी बतियाती रही.

अचानक रोहन रसोई में आया और अपना आक्रोश निकालते हुए घर से बाहर चला गया.

कौफी बना कर लाई तो मृदुला ने देखा कि ऋषि कमरे से बाहर आया और फिर बड़े आराम से सिद्धार्थ से हाथ मिला कर उस के पास बैठ गया. उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा कि न जाने अब क्या हो. यह उन दोनों के रिश्ते की मजबूती थी कि कभी भी अपने आपसी झगड़े, गलतफहमी और शिकवेशिकायत को किसी के सामने नहीं आने दिया. यह सब कुछ बैडरूम के बाहर नहीं आता था. चाहे कितनी भी लड़ाई हो बैडरूम के बाहर वे नौर्मल पतिपत्नी ही होते थे. 10 मिनट बैठ कर बात करने से माहौल की बोझिलता थोड़ी कम हो गई थी. फिर वह मृदुला और सिद्धार्थ को अकेले छोड़ कर वापस अपने कमरे में चला गया.

पूरी तरह से संभालने में मृदुला को थोड़ा वक्त लगा. जैसेजैसे वक्त बीतता गया. उस का खोया विश्वास लौटने लगा आधे घंटे बाद रोहन वापस आया और सीधा रसोई में चला गया. वह उस के पीछेपीछे रसोई में गई तो देखा रोहन समोसे और जलेबियां ले कर आया था.

मृदुला ने आश्चर्य से उस की तरफ देखा तो वह बोला, ‘‘मां, आप के दोस्त के लिए. जब मेरे दोस्त आते हैं तब आप भी तो बाजार जा कर हमारे लिए पैप्सी और चिप्स लाती हो हमारी पसंद का, तो मैं भी आप की पसंद का आप के फ्रैंड के लिए लाया हूं… क्या आप को हक नहीं है दोस्त बनाने का?’’

मृदुला की आंखों में खुशी के आंसू भर आए और फिर वह खुशीखुशी प्लेट में समोसे और जलेबियां डालने लगी.

करीब 2 घंटे बाद सिद्धार्थ 7 बजे की फ्लाइट से मुंबई लौट गया.

सिद्धार्थ के जाने के बाद मृदुला को डर लग रहा था कि न जाने अब ऋषि क्या बखेड़ा करेगा. डर के मारे वह उस के सामने जाने से कतरा रही थी.

रात का खाना खाने के बाद जब वह बिस्तर पर लेटी तो ऋषि ने पूछा, ‘‘सिद्धार्थ

चला गया?’’

‘‘हां, चला गया.’’

‘‘तुम्हारा सच्चा दोस्त लगता है, तभी इतनी दूर से तुम से मिलने चला आया.’’

‘‘आप को बुरा लगा कि मैं ने एक आदमी से दोस्ती की? मुझे अपना घर दोस्त से ज्यादा प्यारा है और आज की इस हरकत के लिए आप जो चाहो मुझे सजा दे सकते हो.’’

‘‘सजा? कैसी सजा? तुम ने कुछ गलत तो नहीं किया… मैं 1 हफ्ते पहले से ही जानता था कि तुम्हारा दोस्त आने वाला है.’’

मृदुला यह सुन कर चौंक गई. फिर बोली, ‘‘तो आप ने मुझे कुछ कहा क्यों नहीं?’’

‘‘देखो मृदुला, मैं ने 20 साल तुम्हारे साथ काटे हैं… तुम्हारी रगरग से वाकिफ हूं. तुम चाहतीं तो उस से बाहर भी मिल सकती थीं पर तुम ने ऐसा नहीं किया…

कहीं अंदर तुम्हें भी मुझ पर हमारे रिश्ते पर विश्वास था… मैं उन पतियों में से नहीं हूं जो पत्नी को इनसान नहीं समझते… दोस्ती तो किसी से और कभी भी हो सकती है… हफ्ता भर पहले जब तुम ने उसे फोन पर घर आने का न्यौता दिया था तभी मैं ने तुम्हारी सारी बातें सुन ली थीं और मैं तुम्हारे विश्वास को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता था. विश्वास की आन तो मुझे रखनी ही थी,’’ पति की बातें सुन कर मृदुला की आंखों से खुशी की आंसू बहने लगे.

‘‘और हां रही बात यह कि एक आदमी और एक औरत कभी दोस्त नहीं हो सकते, उस में मैं समझता हूं कि मैं ने आज तक तो तुम्हें कभी शिकायत का मौका नहीं दिया… क्यों ठीक कह रहा हूं न मैं?’’

पति की आखिरी बात का मतलब समझते हुए मृदुला शर्म से लाल हो गई और फिर लजाती हुई पति की बांहों में समा गई.

 

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