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मैं एक लड़के से प्यार करती हूं, लेकिन वह सिर्फ मेरे शरीर से प्यार करता है, मैं क्या करूं?

सवाल
मैं 17 साल की युवती हूं, एक लड़के से प्यार करती हूं, लेकिन वह सिर्फ मेरे शरीर से प्यार करता है. वह मेरे अलावा और भी कई लड़कियों से संबंध बनाता है. मैं यह सब जानते हुए भी उसे नहीं छोड़ पा रही हूं, जब मेरी उस से बात नहीं होती तो मैं बेचैन हो जाती हूं, लेकिन उस को कोई फर्क नहीं पड़ता. आप ही बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब
प्यार हमेशा उस से किया जाता है जो आप की और आप की फीलिंग्स की कद्र करे, न कि उस से जो आप को सिर्फ यूज करे. ऐसा कर के वह सिर्फ अपने शरीर की भूख को शांत कर रहा है क्योंकि आप उसे अपने शरीर के साथ खेलने की इजाजत जो दे रही हैं.

जब आप के सामने पूरी पिक्चर साफ है तो उस से दूरी बनाने में ही समझदारी है वरना आप को जीवनभर पछताना पड़ सकता है. उसे भूलने के लिए आप उस की यादों को मिटा डालिए. भले ही शुरुआत में ऐसा करना मुश्किल होगा लेकिन धीरेधीरे आप को उस के बिना रहने की आदत पड़ जाएगी.

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सैक्स: मजा न बन जाए सजा

पहले प्यार होता है और फिर सैक्स का रूप ले लेता है. फिर धीरेधीरे प्यार सैक्स आधारित हो जाता है, जिस का मजा प्रेमीप्रेमिका दोनों उठाते हैं, लेकिन इस मजे में हुई जरा सी चूक जीवनभर की सजा में तबदील हो सकती है जिस का खमियाजा ज्यादातर प्रेमी के बजाय प्रेमिका को भुगतना पड़ता है भले ही वह सामाजिक स्तर पर हो या शारीरिक परेशानियों के रूप में. यह प्यार का मजा सजा न बन जाए इसलिए कुछ बातों का ध्यान रखें.

सैक्स से पहले हिदायतें

बिना कंडोम न उठाएं सैक्स का मजा

एकदूसरे के प्यार में दीवाने हो कर उसे संपूर्ण रूप से पाने की इच्छा सिर्फ युवकों में ही नहीं बल्कि युवतियों में भी होती है. अपनी इसी ख्वाहिश को पूरा करने के लिए वे सैक्स तक करने को तैयार हो जाते हैं, लेकिन जोश में होश न खोएं. अगर आप अपने पार्टनर के साथ प्लान कर के सैक्स कर रहे हैं तो कंडोम का इस्तेमाल करना न भूलें. इस से आप सैक्स का बिना डर मजा उठा पाएंगे. यहां तक कि आप इस के इस्तेमाल से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिसीजिज से भी बच पाएंगे.

अब नहीं चलेगा बहाना

अधिकांश युवकों की यह शिकायत होती है कि संबंध बनाने के दौरान कंडोम फट जाता है या फिर कई बार फिसलता भी है, जिस से वे चाह कर भी इस सेफ्टी टौय का इस्तेमाल नहीं कर पाते. वैसे तो यह निर्भर करता है कंडोम की क्वालिटी पर लेकिन इस के बावजूद कंडोम की ऐक्स्ट्रा सिक्योरिटी के लिए सैक्स टौय बनाने वाली स्वीडन की कंपनी लेलो ने हेक्स ब्रैंड नाम से एक कंडोम बनाया है जिस की खासीयत यह है कि सैक्स के दौरान पड़ने वाले दबाव का इस पर असर नहीं होता और अगर छेद हो भी तो उस की एक परत ही नष्ट होती है बाकी पर कोई असर नहीं पड़ता. जल्द ही कंपनी इसे मार्केट में उतारेगी.

ऐक्स्ट्रा केयर डबल मजा

आप के मन में विचार आ रहा होगा कि इस में डबल मजा कैसे उठाया जा सकता है तो आप को बता दें कि यहां डबल मजा का मतलब डबल प्रोटैक्शन से है, जिस में एक कदम आप का पार्टनर बढ़ाए वहीं दूसरा कदम आप यानी जहां आप का पार्टनर संभोग के दौरान कंडोम का इस्तेमाल करे वहीं आप गर्भनिरोधक गोलियों का. इस से अगर कंडोम फट भी जाएगा तब भी गर्भनिरोधक गोलियां आप को प्रैग्नैंट होने के खतरे से बचाएंगी, जिस से आप सैक्स का सुखद आनंद उठा पाएंगी.

कई बार ऐसी सिचुऐशन भी आती है कि दोनों एकदूसरे पर कंट्रोल नहीं कर पाते और बिना कोई सावधानी बरते एकदूसरे को भोगना शुरू कर देते हैं लेकिन जब होश आता है तब उन के होश उड़ जाते हैं. अगर आप के साथ भी कभी ऐसा हो जाए तो आपातकालीन गर्भनिरोधक गोलियों का सहारा लें लेकिन साथ ही डाक्टरी परामर्श भी लें, ताकि इस का आप की सेहत पर कोई दुष्प्रभाव न पड़े.

पुलआउट मैथड

पुलआउट मैथड को विदड्रौल मैथड के नाम से भी जाना जाता है. इस प्रक्रिया में योनि के बाहर लिंग निकाल कर वीर्यपात किया जाता है, जिस से प्रैग्नैंसी का खतरा नहीं रहता. लेकिन इसे ट्राई करने के लिए आप के अंदर सैल्फ कंट्रोल और खुद पर विश्वास होना जरूरी है.

सैक्स के बजाय करें फोरप्ले

फोरप्ले में एकदूसरे के कामुक अंगों से छेड़छाड़ कर के उन्हें उत्तेजित किया जाता है. इस में एकदूसरे के अंगों को सहलाना, उन्हें प्यार करना, किसिंग आदि आते हैं. लेकिन इस में लिंग का योनि में प्रवेश नहीं कराया जाता. सिर्फ होता है तन से तन का स्पर्श, मदहोश करने वाली बातें जिन में आप को मजा भी मिल जाता है, ऐंजौय भी काफी देर तक करते हैं.

अवौइड करें ओरल सैक्स

ओरल सैक्स नाम से जितना आसान सा लगता है वहीं इस के परिणाम काफी भयंकर होते हैं, क्योंकि इस में यौन क्रिया के दौरान गुप्तांगों से निकलने वाले फ्लूयड के संपर्क में व्यक्ति ज्यादा आता है, जिस से दांतों को नुकसान पहुंचने के साथसाथ एचआईवी का भी खतरा रहता है.

यदि इन खतरों को जानने के बावजूद आप इसे ट्राई करते हैं तो युवक कंडोम और युवतियां डेम का इस्तेमाल करें जो छोटा व पतला स्क्वेयर शेप में रबड़ या प्लास्टिक का बना होता है जो वैजाइना और मुंह के बीच दीवार की भूमिका अदा करता है जिस से सैक्सुअल ट्रांसमिटिड डिजीजिज का खतरा नहीं रहता.

पौर्न साइट्स को न करें कौपी

युवाओं में सैक्स को जानने की इच्छा प्रबल होती है, जिस के लिए वे पौर्न साइट्स को देख कर अपनी जिज्ञासा शांत करते हैं. ऐसे में पौर्न साइट्स देख कर उन के मन में उठ रहे सवाल तो शांत हो जाते हैं लेकिन मन में यह बात बैठ जाती है कि जब भी मौका मिला तब पार्टनर के साथ इन स्टैप्स को जरूर ट्राई करेंगे, जिस के चक्कर में कई बार भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है. लेकिन ध्यान रहे कि पौर्न साइट्स पर बहुत से ऐसे स्टैप्स भी दिखाए जाते हैं जिन्हें असल जिंदगी में ट्राई करना संभव नहीं लेकिन इन्हें देख कर ट्राई करने की कोशिश में हर्ट हो जाते हैं. इसलिए जिस बारे में जानकारी हो उसे ही ट्राई करें वरना ऐंजौय करने के बजाय परेशानियों से दोचार होना पड़ेगा.

सस्ते के चक्कर में न करें जगह से समझौता

सैक्स करने की बेताबी में ऐसी जगह का चयन न करें कि बाद में आप को लेने के देने पड़ जाएं. ऐसे किसी होटल में शरण न लें जहां इस संबंध में पहले भी कई बार पुलिस के छापे पड़ चुके हों. भले ही ऐसे होटल्स आप को सस्ते में मिल जाएंगे लेकिन वहां आप की सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं होती.

हो सकता है कि रूम में पहले से ही कैमरे फिट हों और आप को ब्लैकमैल करने के उद्देश्य से आप के उन अंतरंग पलों को कैमरे में कैद कर लिया जाए. फिर उसी की आड़ में आप को ब्लैकमेल किया जा सकता है. इसलिए सावधानी बरतें.

अलकोहल, न बाबा न

कई बार पार्टनर के जबरदस्ती कहने पर कि यार बहुत मजा आएगा अगर दोनों वाइन पी कर रिलेशन बनाएंगे और आप पार्टनर के इतने प्यार से कहने पर झट से मान भी जाती हैं. लेकिन इस में मजा कम खतरा ज्यादा है, क्योंकि एक तो आप होश में नहीं होतीं और दूसरा पार्टनर इस की आड़ में आप के साथ चीटिंग भी कर सकता है. हो सकता है ऐसे में वह वीडियो क्लिपिंग बना ले और बाद में आप को दिखा कर ब्लैकमेल या आप का शोषण करे.

न दिखाएं अपना फोटोमेनिया

भले ही पार्टनर आप पर कितना ही जोर क्यों न डाले कि इन पलों को कैमरे में कैद कर लेते हैं ताकि बाद में इन पलों को देख कर और रोमांस जता सकें, लेकिन आप इस के लिए राजी न हों, क्योंकि आप की एक ‘हां’ आप की जिंदगी बरबाद कर सकती है.

सैक्स के बाद के खतरे

ब्लैकमेलिंग का डर

अधिकांश युवकों का इंट्रस्ट युवतियों से ज्यादा उन से संबंध बनाने में होता है और संबंध बनाने के बाद उन्हें पहचानने से भी इनकार कर देते हैं. कई बार तो ब्लैकमेलिंग तक करते हैं. ऐसे में आप उस की ऐसी नाजायज मांगें न मानें.

बीमारियों से घिरने का डर

ऐंजौयमैंट के लिए आप ने रिलेशन तो बना लिया, लेकिन आप उस के बाद के खतरों से अनजान रहते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि 1981 से पहले यूनाइटेड स्टेट्स में जहां 6 लाख से ज्यादा लोग ऐड्स से प्रभावित थे वहीं 9 लाख अमेरिकन्स एचआईवी से. यह रिपोर्ट शादी से पहले सैक्स के खतरों को दर्शाती है.

मैरिज टूटने का रिस्क भी

हो सकता है कि आप ने जिस के साथ सैक्स रिलेशन बनाया हो, किसी मजबूरी के कारण अब आप उस से शादी न कर पा रही हों और जहां आप की अब मैरिज फिक्स हुई है, आप के मन में यही डर होगा कि कहीं उसे पता लग गया तो मेरी शादी टूट जाएगी. मन में पछतावा भी रहेगा और आप इसी बोझ के साथ अपनी जिंदगी गुजारने को विवश हो जाएंगी.

डिप्रैशन का शिकार

सैक्स के बाद पार्टनर से जो इमोशनल अटैचमैंट हो जाता है उसे आप चाह कर भी खत्म नहीं कर पातीं. ऐसी स्थिति में अगर आप का पार्टनर से बे्रकअप हो गया फिर तो आप खुद को अकेला महसूस करने के कारण डिप्रैशन का शिकार हो जाएंगी, जिस से बाहर निकलना इतना आसान नहीं होगा.

कहीं प्रैग्नैंट न हो जाएं

आप अगर प्रैग्नैंट हो गईं फिर तो आप कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगी. इसलिए जरूरी है कोई भी ऐसावैसा कदम उठाने से पहले एक बार सोचने की, क्योंकि एक गलत कदम आप का भविष्य खराब कर सकता है. ऐसे में आप बदनामी के डर से आत्महत्या जैसा कदम उठाने में भी देर नहीं करेंगी.

पश्चिम बंगाल : न राम न वाम

पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव नतीजों में आंकड़ों से ज्यादा अहमियत चेहरों की है, जहां 2 ही चेहरे थे- पहला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का और दूसरा वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का.

मोदी कट्टर हिंदुत्व का प्रतीक हैं जो हर समय यही राग अलापते रहते हैं कि पश्चिम बंगाल में हिंदुओं को दुर्गा पूजा नहीं करने दी जाती जबकि दुनिया जानती है कि वहां दुर्गा पूजा बड़े जोरशोर से होती है और ममता बनर्जी इस में न केवल बढ़चढ़ कर हिस्सा लेती हैं बल्कि पंडालों के लिए उदारतापूर्वक सरकारी खजाने से पैसा भी देती हैं.

ममता बनर्जी की छवि धर्मनिरपेक्ष नेता की है जो न केवल सियासी, बल्कि सामाजिक तौर पर राज्य के 30% मुसलमानों की अहमियत समझती हैं। लेकिन उन के साथ हिंदुओं की तादाद भी कम नहीं है जो यह मानते और समझते हैं कि राज्य की सुखशांति और भविष्य उन्हीं के हाथों में सुरक्षित है. आएदिन जो हिंसा होती रहती है उस में कट्टर हिंदूवादियों का रोल अहम रहता है, जिन्हें वे भाजपाई गुंडे कहती रहती हैं।

पंचायत चुनाव के दौरान 10 जुलाई की हिंसा सांप्रदायिक थी या नहीं थी यह कह पाना मुश्किल काम है, मगर दुखद यह रहा कि इस हिंसा में तकरीबन 47 लोग मारे गए थे, जिन में अधिकतर टीएमसी के कार्यकर्त्ता थे।

बड़े पैमाने पर हिंसा

छोटे चुनावों में हिंसा आम बात है जो सभी राज्यों में होती है लेकिन पश्चिम बंगाल में इस बार यह बड़े पैमाने पर हुई। चुनाव की तरह हिंसा में भी वाम दलों और कांग्रेस की भूमिका तमाशबीन की ही थी जो मैदान में होने भर को थे। नतीजों पर नजर डालें तो लगता है नंबर 2 पर आई भाजपा के हाथ भी कुछ खास नहीं लगा है. टीएमसी की आंधी ने पूरे विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया है.

एक तरह से यह ममता बनर्जी के प्रति जताया गया भरोसा है जिसे अगले साल लोकसभा और फिर 2026 के विधानसभा चुनाव तक कायम रखना ममता के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा क्योंकि भाजपा चुनाव हारी है हिम्मत अभी नहीं हारी है. पश्चिम बंगाल का माहौल बिगाड़ने की उस की कोशिशें थम जाएंगी, ऐसा कहने की कोई वजह नहीं है.

ममता का जादू चल गया

त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ग्राम पंचायत की कुल 63,229 सीटों में से (घोषित 54,478) टीएमसी ने 35,500 सीटें जीतीं जबकि भाजपा के खातें में महज 9,877 सीटें गईं। सीपीएम गठबंधन ने 3,154 और कांग्रेस ने 2,611 सीटें जीतीं। अन्य और निर्दलीय 3,286 सीटों पर जीते.

पंचायत समिति की 9,730 सीटों में से (घोषित 8460) टीएमसी ने 6,651 सीटें जीतीं जबकि भाजपा ने 1,038 सीटें जीतीं। सीपीएम के खाते में 200 और कांग्रेस के खाते में 273 सीटें गईं. अन्य व निर्दलीयों ने 298 सीटें जीतीं.

सब से अहम थी जिला परिषद की 928 सीटें जिन पर सभी की नजरें थीं। इन में से 880 सीट जीत कर टीएमसी ने अपना दबदबा कायम रखा. भाजपा 31 सीटों पर सिमट कर रह गई तो सीपीएम को महज 2 सीटों से तसल्ली करना पड़ा. कांग्रेस 13 सीटें जीत कर तीसरे नंबर पर रही। अन्य और निर्दलीय 2 सीटों पर जीते।

कुछ सीटों के नतीजे अभी स्पष्ट नहीं हुए हैं लेकिन यह साफ हो गया है कि टीएमसी की झोली मतदाताओं ने 85% सीटों के साथ भर दी है जिसे 70% के लगभग वोट मिले हैं. इस चुनाव में 5 करोड़ 67 लाख वोटर्स में से 81% ने वोट किया था.

भाजपा को झटका

पंचायत चुनाव से भाजपा को उम्मीद थी कि पिछले लोकसभा का ट्रैंड बरकरार रहेगा और वोटर का इरादा अभी बहुत ज्यादा बदला नहीं होगा। गौरतलब है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 42 में से 18 सीटें 40% वोट के साथ मिली थीं जो ममता बनर्जी के लिए खतरे का अलार्म था। तब ऐसा माना जाने लगा था कि कभी श्यामा प्रसाद मुखर्जी का हिंदुत्व खारिज कर देने बाले पश्चिम बंगाल को नरेंद्र मोदी और भाजपा का हिंदुत्व रास आ गया है. लेकिन तब सियासी पंडितों को यह भी समझ आया था कि दरअसल में सीपीएम और कांग्रेस का वोट बैंक भाजपा की तरफ शिफ्ट हो गया है, टीएमसी का तो बरकरार है। लेकिन यह भी बहुत बड़ा खतरा था जिसे ममता बनर्जी नजरंदाज करने की स्थिति में नहीं थीं।

ममता का उपहास भारी पङा

फिर आया 2021 का विधानसभा चुनाव जिस में लोकसभा नतीजों से उत्साहित भाजपा ने खुद को पूरी तरह झोंक दिया था और ममता बनर्जी के कथित मुसलिम तुष्टिकरण को मुद्दा बनाने की कोशिश की जो कि चला नहीं। चुनाव प्रचार के आखिरी चरण में नरेंद्र मोदी का एक खास अपमानजनक और उपहासजनक अंदाज में ममता बनर्जी को “दीदी ओ दीदी….” कहना काफी महंगा साबित हुआ था. भाजपा को तब 292 में से 77 सीटें (38% वोट) मिली थीं लेकिन टीएमसी के खातें में रिकौर्ड 215 सीटें (48% वोट ) गई थीं। लैफ्ट और कांग्रेस जीरो पर सिमट कर रह गए थे। इस चुनाव में भी जाहिर है, भाजपा को वामदलों और कांग्रेस के हिस्से का वोट मिला था।

पंचायत चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया है कि वामदलों और कांग्रेस का जो वोट भाजपा को जा रहा था वह अब टीएमसी की तरफ टर्न हो रहा है जिस के मद्देनजर भाजपा को लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल से बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं लगाना चाहिए क्योंकि मोदी और हिंदुत्व का जादू और प्रभाव दोनों गांवदेहातों तक से खारिज हो चुके हैं। असल में पश्चिम बंगाल के मुसलमान और आदिवासी भाजपा का नया शिगूफा यूसीसी जो धौंस की शक्ल में है, पसंद नहीं कर रहे हैं जिस को ले कर उन का गुस्सा चुनाव में फूटा भी। ये दोनों ही तबके गांवोंकसबों में बड़ी तादाद में रहते हैं।

नहीं चलेगा उत्तर भारतीय हिंदुत्व

कर्णाटक विधानसभा चुनाव नतीजों से ही साबित हो गया था कि राम नामी हिंदुत्व हिंदी भाषी राज्यों के अलावा कहीं और नहीं चलेगा और वहां भी और ज्यादा घिसट पाएगा, ऐसे आसार दिख नहीं रहे. मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का माहौल जहां इस साल के आखिर में चुनाव हैं, देखते लग नहीं रहा कि काठ की यह हांडी चुनावी चूल्हे पर चढ़ पाएगी।

रामनामी हिंदुत्व सनातनी है और वर्ण व्यवस्था पर आधारित है। ऐसा नहीं है कि पश्चिम बंगाल में जातिवाद या जातिगत छुआछूत नहीं है या नहीं थे वहां तो बल्कि और ज्यादा थे। बंगला साहित्य और फिल्में इस की गवाह हैं। लेकिन 60 के दशक में चारू मजूमदार के नक्सली आंदोलन ने भद्र सवर्ण बंगालियों की मुश्कें कस दी थीं। नक्सली आंदोलन मूलतया जमींदारी और शोषण के खिलाफ था जो बाद में दक्षिणी राज्यों सहित ओडिशा, मध्य प्रदेश और बिहार में भी फैला।

धार्मिक इतिहास की छाप

चारू मजूमदार के डेढ़ दशक पहले कट्टर हिंदूवादी नेता डाक्टर श्यामाप्रसाद मुखर्जी ने हिंदू महासभा से अलग हो कर जनसंघ की स्थापना की थी जिस का सावरकर छाप राष्ट्रवाद और हिंदुत्व हिंदी भाषी इलाकों में तो चला लेकिन नक्सल प्रभावित राज्यों में नहीं, क्योंकि इन इलाकों का हिंदू उत्तर भारत के हिंदुओं से अलग है. वह न तो राम का उपासक है और न ही कृष्ण का यानी विष्णु अवतारों को वह नहीं मानता। इसलिए रामायण और गीता भी वहां दैनिक जीवन का हिस्सा नहीं है। व्रतउपवास के दिनों में वहां मांसाहार वर्जित नहीं है. पश्चिम बंगाल के सवर्ण हालांकि कृष्ण को पूजते हैं लेकिन उन का कृष्ण मथुरा, द्वारका और महाभारत के कृष्ण से एकदम अलग है.

इस धार्मिक इतिहास की छाप अभी भी दिखती है. पश्चिम बंगाल में नरेंद्र मोदी अब “जय श्रीराम…” का उद्घोष अब नहीं करते। एकाध बार कोशिश की थी तो ममता बनर्जी ने उस का सार्वजनिक विरोध किया था जिस पर आम लोगों ने कोई एतराज नहीं जताया था क्योंकि वे दुर्गा और काली के उपासक हैं. इसीलिए ममता बनर्जी का चंडी पाठ विधानसभा चुनाव में खासा चर्चित रहा था।

60 के दशक के बाद चारू मजूमदार का नक्सलवादी आंदोलन श्यामाप्रसाद मुखर्जी के राष्ट्रवाद पर इतना भारी पड़ा था कि वहां उस का कोई नामलेवा नहीं बचा था. फिर लंबे वक्त तक वामपंथियों ने पश्चिम बंगाल पर शासन किया. बुद्धदेव भट्टाचार्य के पहले मुख्यमंत्री रहे ज्योति बसु के राजकाज में गरीब मजदूर आंखें मुंदे कम्युनिस्टों को अपना मसीहा मानते रहे.

लेकिन जैसे ही वामपंथियों ने पूंजीपतियों से पींगे बढ़ाना शुरू कीं तो जनता ने ममता बनर्जी को सत्ता सौंप दी जो अभी तक तो उन की उम्मीदों पर खरी उतर रहीं हैं. पंचायत चुनावों में टीएमसी को मिली भारी कामयाबी इस की गवाह है और यह मैसेज भी देती है कि अब वहां न तो राम चलेगा न वाम, इस लिहाज से कांग्रेस कुछ उम्मीदें लगा सकती है, जो इन चुनाव में तीसरे नंबर पर रही है।

अनुपमा के बगैर टूट जाएगा अनुज, छोटी अनु को शाह हाउस ले जाएगी काव्या?

Anupama Upcoming Twist : छोटे पर्द पर इस समय रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना का शो ‘अनुपमा’ खूब सुर्खियां बटोर रहा है. साथ ही सीरियल की टीआरपी रेटिंग भी पहले के मुकाबले दोगुनी हो गई है. शो के करंट ट्रैक की बात करें तो बीते एपिसोड में दिखाया गया था कि अनुपमा दिल पर पत्थर रखकर अमेरिका जाने की फ्लाइट में बैठ जाती है. हालांकि उसे छोटी अनु की चिंता हो रही थी, लेकिन उसे लगा कि अनुज उसका ध्यान रख लेंगे.

वहीं दूसरी तरफ छोटी अपनी मां को ढूंढते हुए पूरे घर में भागती है और जमीन पर गिर जाती है. अनुज के लिए उसे ऐसी हालत में संभालना मुश्किल हो जाता है. इसके अलावा आगामी एपिसोड (Anupamaa New Episode) में एक और ट्विस्ट देखने को मिलेगा, जिसके बाद दर्शक दंग रह जाएंगे.

मां-पापा दोनों का फर्ज निभाएगा अनुज

आज के एपिसोड (Anupamaa New Episode) में दिखाया जाएगा कि अनुज छोटी को समझाता है कि अनुपमा अब यहां कभी वापस नहीं आएगी. हालांकि छोटी अनु के साथ-साथ वह खुद को भी समझाने की कोशिश करता है कि उसे अपनी आगे की जिंदगी अनुपमा के बगैर जीनी सीखनी होगी. वह छोटी से कहता है कि, ‘भले ही आपकी मम्मी यहां नहीं हैं, लेकिन मैं आपको मां और पापा दोनों का प्यार दूंगा.’ इसके बाद दिखाया जाएगा कि, जब एक कमरे में बैठकर अनुज रो रहा होता है तो वहां उसे अनुपमा की झलक दिखाई देती है. जो उसके पास आकर बैठती है और उसके आंसू पोछती है.

अनुपमा को पड़ेगा चाटा

इसके अलावा आगे दिखाया जाएगा कि छोटी अनु को काव्या संभालती है और उसका ध्यान रखती है. वहीं जब सब लोग एक दूसरे को दिलासा दे रहे होते हैं तो घर की घंटी बजती है. जब अनुज गेट खोलता है तो उसे वहां रोती हुई अनुपमा दिखाई देती है. जो अनुज के गले लगकर कहती है कि मैं (Anupamaa New Episode) नहीं रह सकती आपसे दूर. फिर वहां गुरू मां भी पहुंच जाती है, जो अनुपमा को चाटा मारती है और उसे चैलेंज देती है कि वो उसकी जिंदगी बर्बाद कर देंगी. हालांकि इसे देखने के बाद ऐसा लग रहा है कि अब जल्द ही शो में एक नया ट्विस्ट आएगा.

एक छोटी सी अंगूठी : कथा दो चाहने वालों की

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पीर पराई : पक्षियों की निराली दुनिया की कहानी

पक्षियों की अलग ही दुनिया है. कभी सोचती थी कि पक्षी स्वतंत्र हैं, वे हमारी तरह समाज व कानून की जंजीरों से जकड़े हुए नहीं हैं. पर, नजदीक जा कर मामूल हुआ कि उन का भी अपना समाज है, अपनी निराली दुनिया व अनुभूतियां हैं. एक वर्ष बीत गया, पर वह जोड़ा मैं अभी तक नहीं भूल सकी.

मुझे काफी दिनों से मकान की तलाश थी, क्योंकि जिस मकान में हम रह रहे थे, वह मकान कम, दड़बा अधिक जान पड़ता था. खैर, तलाश पूरी हुई. मेरे पतिदेव ने काफी अच्छा फ्लैट तलाश कर लिया. ग्राउंड फ्लोर पर दो कमरे का यह फ्लैट पा कर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई. दिल्ली जैसे शहर में खुला, हवादार व सस्ता मकान सौभाग्य से ही मिलता है.

कुछ दिन यों ही सामान सेट करने में व्यतीत हो गए. लेकिन जब जरा व्यस्तता से फुरसत मिली तो यह देख कर सुकून हुआ कि सामने के पेड़ की एक बड़ी सी टहनी हमारी खिड़की के शीशे को छू रही है. खिड़की कम ही खोली जाती थी, क्योंकि दिल्ली की पौल्यूटेड एयर में एयर कंडीशनर ही चलाना पड़ता है.

एक दिन मैं बाजार जाने के लिए जैसे ही बाहर निकली, ऊपर की पड़ोसनें आपस में बतिया रही थीं. उन्होंने मुझे देखा नहीं था, पर चलतेचलते कुछ शब्द कानों में पड़ ही गए, “अरे, इस में फिर कोई आ गया…”

यह बात हमारे बारे में ही थी, इस में कोई शक नहीं था. मैं सोचने लगी, ‘आखिर इस में लोग ठहरते क्यों नहीं?’

मुझे तो अभी तक कोई दोष नजर नहीं आया. क्या चोरी होती है यहां या फिर किसी भूतप्रेत का चक्कर है? क्योंकि मैं भूतों में विश्वास नहीं रखती, सो मेरे दिमाग से यह विचार शीघ्र ही निकल गया.

दूसरे ही दिन निमंत्रित किए मेहमान की तरह एक जोड़ी मेरी खिड़की के पीछे ठकठक करने लगी. शीशे से भी गुटरगूंगुटरगूं का शोर आने तक एक कबूतरकबूतरी को पेड़ की डाल पर देख मैं ने माथा सिकोड़ लिया. मैं बारबार बाहर जा कर उन्हें उड़ाती, वह फिर हठी बालक से वहीं जम जाते. मुझे लगा कि वे ड्राइव को रोज गंदा करेंगे.
एकाएक मुझे याद आया और मैं ने कहा, “अच्छा बच्चू, अब देखती हूं कि कैसे आते हो?”

मैं ने एक लंबा सा डंडा उठाया और डरा कर टहनी से ही डंडा सटा दिया और फिर इत्मीनान से रसोई का काम निबटाने लगी.

रसोई का काम समाप्त कर सोचा, लेट ही लूं. सचमुच बच्चों के बिना घर कैसा सूना लगता है. काश, मेरे पास कोई नन्हामुन्ना होता.

मैं अपने ही विचारों में डूबनेउतरने लगी.

अभी पलकें बोझिल हो कर मुंदने ही वाली थी कि गुटरगूं की आवाज सुन कर चौक पड़ी. वह जोड़ी फिर उस डाल पर आ गई थी. वहां ऊपर दृष्टि गई तो देखती ही रह गई. शायद शीशे के पीछे उन्हें मेरे वहां होने का अहसास न था.

सलेटी रंग पर काली धारियां लिए वह जोड़ी बहुत ही खूबसूरत लग रही थी. वे जब अपनी चमकीली गरदन मटकाते, उन की भूरी आंखें गजब का आकर्षण पैदा कर देतीं. उसी दिन मुझे विश्वास हुआ कि पक्षियों में सौंदर्य भरपूर होता है.
कबूतर कबूतरी की गरदन पर चोंच मारता और कबूतरी आंख मूंद कर कभी गरदन को इधर और कभी दूसरी ओर फेर लेती. फिर थोड़ी देर बाद कबूतर ने उस के अंगों पर चोंच से गुदगुदी करनी आरंभ की.

अब कबूतरी ने आंखें झपका कर खोल दीं और एकदो बार इधरउधर देखा, बिलकुल उस कामिनी की तरह जो प्रेमी को प्रेम का प्रतिदान देने से पूर्व निश्चित हो जाती है. और फिर वही क्रिया दोहराई कबूतरी ने, कबूतर और कबूतरी पीछे सरकते चले गए और थोड़ी देर बाद सुनाई पड़ने लगा पंखों के फड़फड़ाने का स्वर.

सांझ घिर आई थी. मैं ने जैसे ही परदे डाले, कबूतरकबूतरी उड़ चले बादलों की ओर.

जब पतिदेव पधारे तो सब से पहली बात मैं ने यही बताई, “सुनिए, आज कबूतरों ने नाक में दम कर दिया. सारे ड्राइव पर बीट कर दी. बारबार धोना पड़ा.”

*कबूतरों ने या कबूतरकबूतरी ने. अरे, मनाने दो उन्हें भी हनीमून,” हंस कर वह बोले.

और बात आईगई हो गई.
लेकिन अगले 4 दिनों में मैं परेशान हो गई. कभी देखती, बाहर रखी कुरसी पर बीट पड़ी है, तो कभी गाड़ी पर. उन्होंने चित्रकारी कर दी है, तो अपना काम छोड़छोड़ कर उन्हें भगाती. पर, वे कहां मानने वाले थे.
पहले कुछ दिनों वे शी… शी का स्वर सुन कर भाग भी जाते, लेकिन कुछ दिनों पश्चात वे डरते ही न थे. मैं कई तरह से डरातीधमकाती. वे बड़े मजे से चहलकदमी करते रहते. शायद वे जान गए थे कि मुझ से उन्हें कोई खतरा नहीं है. मुझे बहुत क्रोध आता, पर यह रहा कितने दिन. खिड़की खोल कर भी हटाना चाहा, पर वे माने नहीं. अब डाल काटना तो मेरे बस का था नहीं.

मैं धीरे से परदा हटा कर देखती तो उन का प्रणय दृश्य देख शरमा जाती. दोनों चोंच से चोंच मिलाए मस्त. कभी देखती कबूतर धीरे से पुकारता ‘गुटरगूं’ तो वह उड़ कर उस के पास जा बैठती.

कबूतर मैं ने देखा न हो, ऐसी बात नहीं है. बहुत जगह मैं उस ‘गुटरगूं’ के स्वर से ऊबी हूं, पर उस प्यार की टेर में जो मिठास है, आनंद है, वह वर्णित नहीं किया जा सकता.

उन्हीं दिनों मेरी तबीयत कुछ खराब रहने लगी और जब हम को मालूम हुआ कि मैं मां बनने वाली हूं तो हम दोनों जैसे झूम उठे. सचमुच अच्छी खुशी के सम्मुख मैं उस जोड़े को कई दिनों तक भूले रही.

इतवार का दिन था. यह रसोई में आए और बोले, “देखो, इंदू, तुम्हें एक चीज दिखाऊं.”

“क्या दिखाएंगे, यहीं बता दो न.”

“नहीं, यहां नहीं,” वह बोले और लगभग खींचते हुए बेडरूम में ले गए.

“शी…” इन्होंने उंगली से चुप रहने का इशारा किया और धीरे से कान में बोले, “बाहर डाल पर देखना.”

मैं ने देखा तो शरमा गई, “बड़े बेशर्म हैं आप.”

“अच्छा.”

“कितना प्यार है इन में. शिक्षा लेनी चाहिए इन से,” ऐसा कह कर मैं वहां से भाग आई.

कबूतर डरते तो हैं नहीं, फिर इन के पीछे क्यों समय नष्ट किया जाए, यह सोच कर मैं बेफिक्र सी हो गई. बारबार उठने में आलस्य सा आने लगा. अब जो थोड़ीबहुत झिझक थी, वह भी दूर हो गई. वे बड़े मजे से मेरे गेट के आसपास भी पांव के पास घूमते और शोर ऐसे मचाते जैसे पालतू हों.

कबूतरों को शांतिप्रिय पक्षी कहा जाता है, पर ऐसा नहीं है. जब यह एक जगह कब्जा कर लेते हैं, तो दूसरे को वहां झांकने भी नहीं देते. और यदि कोई दूसरा जोड़ा ऐसा दुस्साहस करता भी है, तो इन में जम कर लड़ाई होती है.

एक बार जब खिड़की खुली थी तो देखा कि एक दूसरा जोड़ा डाल पर आ गया तो उस जोड़े ने उस की ऐसी दुर्गत बनाई कि पूछो मत.

और एक दिन क्या देखती हूं कि साफ किए छोटे से बाग में छोटीछोटी डंडियां बिखरी पड़ी हैं. कुछ समझ में नहीं आया. हार कर… फेंक दीं.

देखते ही देखते कबूतर और कबूतरी ने 8-10 फेरे लगाए. वे हर बार सूखी सी डंडियां लाते और ऊपर रख कर चले जाते. मैं सोचने लगी कि आखिर क्या करेंगे यह इन का.

शाम को जब मैं ने उन्हें बताया, तो उन्हें मेरी भावभंगिमा पर हंसी आ गई. मुझे बहुत खीज हुई, “हूं, मरदों को बस हंसना आता है. नहीं बताते, न सही.”

यह तौलिया उठा कर बाथरूम में चले गए. थोड़ी देर में जब मुंहहाथ धो कर लौटे, तो बोले, “बता दूं.”

“बताना है तो बता दीजिए, नहीं तो रहने दीजिए,” मैं ने भी ऐसे कहा, जैसे मुझे दिलचस्पी न हो.

“तो खिलाओ लड्डू, तुम मौसी बनने वाली हो.”

“क्या कहा…?”

“कबूतरी तुम्हारी बहन, तो तुम मौसी नहीं बनोगी उस के बच्चों की.”

“ठेंगे से,” मैं ने अंगूठा दिखा दिया. नारी को नारी जाति से हमदर्दी हो जाती है, खासकर ऐसी स्थिति में. मैं ने उन पर कोई रुकावट नहीं डाली.

और एक दिन साहब ने फरमाया, “दो बच्चों की मौसी बन गई हो, मुबारक हो.”

“अंडे कहो न, अभी बच्चे कहां से आए. सुनो, मैं भी देख लूं.”

मैं ने खिड़की से परदा हटा कर देखा.

“अरे, क्या बचपना करती हो? ऐसी हालत में खिड़की न खोल देना,” यह बोल उठे.
मैं मन मसोस कर रह गई.

अब कबूतरी रातदिन अंडों को सेती और कबूतर दाना ले कर आता. कितनी तन्मयता थी उन में, यह देख कर ही मालूम होता है. दोनों रातदिन जुटे रहते.

मैं स्वयं कल्पना में खो गई. मैं भी मां बनूंगी. कैसा होगा वह. फिर मैं भी उसे सीने से लगा कर रखूंगी.

कभी सोचती, जब अंडों से बच्चे निकल आएंगे, तब दोनों उसे दाना खिलाएंगे, उड़ना सिखाएंगे और फिर वे भी अपने मांबाप की तरह गुटरगूं का शोर करेंगे.

रातरात भर कबूतरी अंडों को सेती और अपनी चोंच से उन डंडियों को तोड़तोड़ कर गोलाई में रखती, ताकि वे उस घेरे से निकल कर नीचे न गिर जाएं. और वह दिन भी आया, जब अंडों से दो बच्चे निकले, एक नर, एक मादा.

एक बार हम दोनों ने घर भर की सफाई की. पति पेड़ पर चढ़ कर कुछ फालतू डंडिया जो नीचे लटक रही थीं, तोड़ने लगे. मैं ने चिल्ला कर कहा, “देखो, बच्चों को तंग मत करना.”

“बहुत खयाल है मौसी को.”

“हां है. अब बताओ, कैसे हैं दोनों?” मैं अपनी जिज्ञासा को न दबा पाई.

“अरे बाबा, यहां तो बड़ी बदबू है,” पति बोले और फिर एक स्वर सुनाई दिया, “बहुुत शरारती है तू, मेरे घर में मुझे ही आंखें दिखाता है.”

“सुनो, नीचे आ जाओ. कबूतरी आ गई तो समझेगी कि इन्हें उड़ा रहे हैं, कहीं वह चोंच मार दे.” और ये तुरंत नीचे उतर आए.

इस के आगे की घटना दुखद है. मौत कितनी भयावह है, कितने रूप हैं इस के. जीवन का कठोर सत्य है यह. मैं रसोई में थी. इन की आवाज आई, “देखो, क्या हो गया?”

मैं ने देखा तो चीख निकल गई. बाहर के बरामदे में एक बच्चे को बिल्ली मुंह में उठाए सामने से गुजर गई और दूसरा नीचे मरा पड़ा था.

कबूतरी ने करुण स्वर में पुकारा, ‘गुटरगूं.’

मेरे आंसू पलकों पर जम गए. मुझे लगा, कबूतरी की आंखें नम हैं. वह उड़ गई. और थोड़ी देर बाद दोनों कबूतरकबूतरी भयभीत दृष्टि से चारों ओर देख रहे थे. दो दिन वे शायद भ्रम मिटाने के लिए आते रहे और फिर चले गए नियति के मारे.

उन दिनों मेरा जी बहुत खराब रहा. लगा, जैसे किसी निकट परिचित की मौत हो गई हो.

इस के बाद हम दोनों ने निश्चय कर लिया कि अब किसी पक्षी को अपने पेड़ पर आश्रय न लेने देंगे. भला कौन इन की रक्षा कर सकता है. मेरी कल्पनाएं बिखर गईं. मैं सहम गई. अपने होने वाले बच्चे की सुखद अनुभूतियों के बीच एक भय समा गया. ओह, काल के आगे किस की क्या बिसात. इन सब का यही परिणाम हुआ कि मैं चिड़ियों को भी उड़ाती रहती. मैं उन्हें न रहने देती और सारे दिन बाहर ‘शी… शी’ का स्वर गूंजा करता. ऊपर वाली पड़ोसनें मुझे देख कर मंदमंद मुसकराती.

एक दिन सोचा कि गीले कपड़ों को पंखे की हवा में बाहर वाले बरामदे में सुखा लूं. फुलस्पीड पर पंखा चला कर मैं बाल सुलझाने लगी. न जाने कब वही कबूतर टांड पर आ बैठा. हाथ में कंघी लिए जैसे ही मैं ने उसे देखा तो खीज उठी. और मुंह से निकला, ‘शी…शी.’

कबूतर घबरा कर जैसे ही उड़ा तो पंखे से टकरा कर पंख छितराए और नीचे जमीन पर छटपटाने लगा. मेरी चीख घुट कर रह गई. ओह, मेरे पांव में इतनी शक्ति भी नहीं रही कि दो कदम चल सकूं. सिर से पांव तक कंपकपी. कुछ क्षणों में मैं ने अपने पर काबू पाया और भाग कर पानी ले आई और जैसे ही मैं ने कबूतर के मुख में पानी की बूंदें टपकाई, वह खून के कतरे उगल कर शांत हो गया.

तभी कबूतरी डाल पर आ बैठी और चारों तरफ गरदन घुमाघुमा कर देखने लगी और नीचे जैसे ही उस ने अपने साथी को देखा, वही करुण स्वर उभरा- ‘गुटरगूं.’
प्रत्युत्तर न पा कर वह सहम गई.

उस की ऐसी दशा देख कर मेरे आंसू निकल पड़े. मन पुकार उठा, ‘यह ठीक है कि उस की मौत की जिम्मेदार मैं हूं, पर ये सब अनजाने में हुआ. तुम मुझे कोई बददुआ न देना. मैं तुम से माफी चाहती हूं.’ उस की दृष्टि को सहना मेरे बूते से बाहर था. मैं ने नजर झुकाई और वह उड़ गई.

मैं ने इन के सीने से लग कर कहा, “आज मुझे खाना खाने के लिए मजबूर न करो. मेरा मन बहुत खराब है.”

यह समझे कि मैं बुरी तरह भयभीत हो गई हूं. कई तरह से समझायाबुझाया, पर कोई सांत्वना मुझे उस घटना की चोट से उबार न सकी.

कबूतरी कई बार आती. डाल पर मैं खिड़की से देख फिर वह वैसे ही वापस हो जाती, शायद खोए हुए साथी के मिलने की आस बाकी थी.

मुझे उस पर दया आती. उस के लिए यह पेड़ कितना खराब रहा, जहां उसे अपने बच्चे, अपना पति खो देना पड़ा है.

मैं कई बार बाहर ड्राइव वे पर गेहूं के दाने रख देती. उन दोनों को दाने चुगते देख मुझे असीम संतुष्टि का आभास होता.

और एक दिन मैं मोबाइल पर मैसेज पढ़ रही थी. और कबूतरी डाल पर बैठी थी. मैं ने देखा, ऐसा लगा जैसे वह अतीत में खोई है, कितनी स्मृतियां सिमटी हैं इस घर में. काश, जो हो गया वह न होता तो वह किती सुखी और संतुष्ट होती. अचानक जैसे भूकंप आ गया. बिल्ली ने इतनी जोर से झपट्टा मारा था कि कबूतरी विरोध भी न कर सकी. बिल्ली विजय भाव आंखों से मुसकराती कबूतरी की गरदन दबाए भाग गई और मेरे मुंह से निकला, ‘उफ्फ, तेरी कहानी खत्म हो गई.’

लेकिन आज सोचती हूं, नहीं, कहानी खत्म नहीं हुई, वह आज भी ताजा है, मेरे दिलोदिमाग पर.

गोल्डन केज : दौलत के ढेर में दम तोड़ते रिश्तों की कहानी

शीला को शीलो और फिर शीला महतो और अंत में मैडम मेहता बनते मैं ने अपनी आंखों से देखा है. बेईमानी का पैसा फलते देखना हो तो उस के पति श्यामा महतो के दर्शन जरूर करने चाहिए. शादी हुई तो मिलिट्री इंजीनियरिंग सर्विस में एक मामूली मुलाजिम था. उस के डिपार्टमेंट में से बहुत सी मात्रा में डाटा केबल गायब हो जाने के कारण जांचपड़ताल के बाद उसे नौकरी से बरखास्त कर दिया गया. उस ने बहुतेरा कहा कि तारें धूप में पड़ीपड़ी पिघल गई होंगी या पानी के बहाव में गल गई होंगी. उन के बारे में उसे कुछ नहीं मालूम, लेकिन अधिकारियों ने सूरज की गरमी से डाटा केबलों की तारें पिघल कर पृथ्वी में समाते कभी नहीं देखा था, इसीलिए श्यामा महतो के विरुद्ध कार्यवाही करनी आवश्यक थी.

श्यामा महतो था काफी चालाक. कोई ठोस प्रमाण न मिलने के कारण उसे सजा मिली तो केवल नौकरी से निकाले जाने की.
लेकिन कइयों के लिए पत्थर भी फूल बन जाते हैं.

श्यामा महतो का नौकरी से निकाला जाना तो ऐसी बात सिद्ध हुई कि कुबड़े को लात काम आ गई. उस ने अपनी बेईमानी की दौलत को ऐसी शुभ घड़ी में शराब की ठेकेदारी के काले धंधे में लगाया कि दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की हुई. धंधे में तरक्की हुई तो घर में खुशहाली होने लगी.

वह दो कमरों से निकल कर फ्लैट में रहने चला गया. दो साल बाद फ्लैट में अमीरी का दम घुटने लगा, तो शहर की भीड़भाड़ से दूर नई कालोनी में ढंग का बंगला खड़ा हो गया.

फाटक पर गोरखा नियुक्त कर दिया गया, जो हर ऐरेगैरे को अंदर जाने से रोकता था. घर में हर वह चीज मौजूद थी, जो पैसे से खरीदी जा सके. दीवार से दीवार तक सटे गलीचे, मखमली परदे और हीरों की चमक.

नौकरचाकरों का भी मेला लगा रहता था. शीला ने अपनी पुरानी धोतियां अपनी महरी को दे कर उसे एक नई फुलटाइम आया को रख लिया. फिर कुक और सर्वेंट भी रखा गया.

जो काम शीला अपने हाथों से किया करती थी, वह नौकरों से न करवाना अब अपना अपमान समझने लगी. उसे बैठेबैठे हुक्म चलाने की आदत पड़ गई.
पहले साल आई 10 कार खरीदी गई. श्यामानारायण उसे दफ्तर ले जाता था तो शीला को सैरसपाटे, क्लब और काफी पार्टियों में जाने में तकलीफ होती थी. एक दिन श्यामानारायण बोला, ‘‘आज तुम्हारे लिए दूसरी मोटर खरीद देता हूं.’’ और शाम तक डिजायर आ गई.

‘‘इतनी जल्दी कैसे मिल गई नई गाड़ी,’’ शीला ने खुशी और आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्या बात करती हो? पैसा खर्च करो तो क्या नहीं मिलता. तुम कहो तो आकाश के तारे भी खरीद लाऊं,’’ उत्तर में श्यामा महतो ने कहा, तो शीला मुसकरा कर चुप हो गई. श्यामा महतो भी अब श्याम मेहता कहलाते थे.

शायद उसे वे दिन याद आ गए, जब हाथों की मेहंदी भी न उतरी थी कि एक दिन बरतन मांजते हुए उस की आंखों में आंसू आ गए थे. उन्हें पोंछती हुई, सिसक कर उस ने पति से कहा था, ‘‘एक नौकर रख दीजिए, मुझ से इतना काम नहीं होता.’’

तब श्याम ने नाराज हो कर कहा, ‘‘नौकर रख दूं. तुम तो ऐसे कह रही हो, जैसे मुझे बड़ी तनख्वाह मिलती है. नौकर रख कर सारा दिन तुम क्या करोगी. मक्खियां मारोगी क्या…?’’

राकेट में बैठ कर चांद पर पहुंचते देर लगती है, लेकिन श्याम की बेईमानी फलते देर न लगी. उस से उस की किस्मत बदली. उस का दर्जा बदला और उस की पत्नी शीलो से शीला मैडम बन गई.

शीला मैडम या मैडम मेहता हर पार्टी के लिए नया लिबास बनवाती. साथ ही, सफेद लिबास के साथ हीरों के, लाल के साथ पुखराज, हरे पर पन्ना और नीले पर नीलम के जेवर पहने जब वह महफिल में प्रवेश करती, तो लोग उठ खड़े होते थे. उस की खूबसूरती की झूठी प्रशंसा करते और मीठीमीठी बातों से उसे प्रसन्न करते.

क्यों न करते, धनदौलत की चमक ही ऐसी होती है. सब ही उस के साथ रिश्ता जोड़ना चाहते थे. शीला लोगों के झूठे प्रेम और दिखावे से बहकती रही. वह सोनेचांदी की दीवारों में ऐसी कैद हुई कि धीरेधीरे सारे रिश्तेनाते टूट गए. लेकिन उस ने इस की कोई परवाह न की. उसे दौलत का ऐसा नशा चढ़ा कि वह प्रेम और आदर भूल गई. अपनों का सच्चा प्यार भूल गई. उन के सुखदुख में शामिल होना भी अब उस की शान के खिलाफ हो गया.

शीला की पिछली जिंदगी बहुत पीछे रह गर्ई थी. उस की स्मृति इतनी धुंधली पड़ गई कि वह उस का जिक्र तक न करती थी. ज्योंज्यों दौलत बढ़ती गई, त्योंत्यों रिश्तेदारों के साथ उस के प्यार में खाई बढ़ती गई. एकएक कर के सब छूट गए. भाईबहन तक दूर हो गए.

शीला मेरी बचपन की सखी है. मेरे पिता एक छोटे शहर में किराने का व्यवसाय चलाते थे. हमारी पुश्तैनी कोठी के पिछवाड़े कुछ क्वार्टर खाली पड़े रहते थे. उन्हीं में से एक क्वार्टर मां ने उस के पिता को दे दिया था. शीला के पिता जूनियर स्कूल में मास्टर थे और उन की माली हालत ज्यादा अच्छी न होने पर भी मां उन का बड़ा मान करती थी. मुझे और भाई को पढ़ा देने का जिम्मा उन्होंने ले लिया था और उन के कारण हम दोनों के नंबर अच्छे आने लगे थे.

‘‘आप का एहसान कभी नहीं भूलूंगा,’’ शिवदासजी ने कहा था.

‘‘आप ऐसा बिलकुल न सोचें,’’ मां ने जवाब दिया, ‘‘इसे अपना ही घर समझिए.’’

शीला और मैं एकसाथ बड़ी हुईं. खेलतीकूदती और चिड़िया की तरह खूब लड़ती थीं. फिर भी स्कूल एकसाथ जातीं और घर में आया हुआ भोजन मिल कर खाती थीं.

‘‘थोड़ा ज्यादा खाना भेजा करो, मां,’’ मैं घर पर कहती, तो मां पूछती, ‘‘क्यों, बहुत भूख लगती है क्या?’’

‘‘हां, दो के बराबर भूख लगती है,’’ मैं कहती और मां की मंद मुसकराहट से समझ जाती कि उन्हें मालूम है कि मैं खाना शीला के साथ बांट लेती थी.

दो वर्ष हुए मैं शीला से मिलने गई. बीते वर्षों की याद ताजा करने को जी चाह रहा था. मेरे पति तो जाना ही नहीं चाहते थे, कहने लगे, ‘‘तुम हो आओ. मैं तो शीला देवी को जानता भी नहीं और मैं ठहरा गरीब फौजी कैप्टन, वह ठहरी रईस. हमारा क्या मेल.’’

पति की बात मुझे अच्छी नहीं लगी. मैं ने कहा, ‘‘कैसी बातें करते हैं आप? जानने में क्या देर लगती है? शीला तो यों भी अपनी है. दो दिन में अच्छी तरह जान जाओगे.’’

स्टेशन पर गाड़ी रुकी, तो मैं ने उत्सुकतापूर्वक चारों तरफ दृष्टि दौड़ाई. मुझे विश्वास था कि शीला हमें लेने जरूर आई होगी. लेकिन उस के बदले एक वरदीधारी व्यक्ति खड़ा कह रहा था, ‘‘जी, मैं आप के लिए गाड़ी लाया हूं.’’

शीला घर पर नहीं थी. एक अन्य वरदीधारी व्यक्ति ने बताया, ‘‘जी, मेम साहिबा आती ही होंगी. आप का कमरा तैयार है.’’

कमरा बड़ा शानदार था. चीजों को हाथ लगाने में भी मुझे डर लग रहा था कि वे मैली हो जाएंगी.

शीला आई तो उस की चालढाल में जो अभिमान था, वह मुझे अच्छा नहीं लगा. आ कर वह न गले लगी, न बचपन को याद किया. पूछा तो बस इतना, ‘‘तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं हुई. मुझे जरूरी पार्टी में जाना पड़ गया था.’’

कहना तो चाहती थी वह कि तकलीफ तो कोई नहीं हुई. सब ही कुछ तो मौजूद था मेरे स्वागत के लिए. नहीं था तो प्रेम, वह प्यार और आदर, वह सुखद नाता, जिस की खोज में मैं चली आई थी. उसी की कमी थी. हम ने बड़ी मुश्किल से वहां दो दिन काटे. वहां की हर चीज चुभने लगी. उस वातावरण में मेरा दम घुटने लगा.

यही हालत शीला के अपने भाईबहनों की हुई. उन के साथ अपना रिश्ता बताते हुए उसे लाज आती थी. उन के कपड़े, उन का सामान शीला बड़े गौर से देखती. अब कुर्मी परिवारों में ऐसा हर कोई तो नहीं होता कि मोटी खान मिल जाए. जब तक कोई ऐसा अतिथि उन के घर रहता, शीला किसी को अपने घर आमंत्रित न करती. उन्हें अपनी कार में बाहर न जाने देती कि कहीं कोई पहचान न ले कि यह उस की गाड़ी है. उन्हें कमरे में ही भोजन परोस दिया जाता. डाइनिंग हाल में बुलाने की भी वह जरूरत नहीं समझती थी.

लोगों का आनाजाना छूट गया. जो गरीब रिश्तेदार थे, उन्हें भी अपनी इज्जत प्यारी थी, शीला मैडम की दौलत से भी ज्यादा.
लेकिन वह दौलत तो शीला को भी रास न आई. कुछ सालों बाद घर में एक अजीब सा वातावरण हो गया.

श्याम और शीला नदी के दो किनारों के समान हो गए. कई दिनों तक वे एकदूसरे को देख न पाते. श्याम घर आता तो शीला बाहर गई होती. शीला घर होती तो श्यामनारायण गायब होता. भिन्न मित्र और मनोरंजन के अपनेअपने ढंग चुन लिए गए. क्लब इकट्ठे जा कर एकसाथ लौटना जरूरी न होता. श्याम अपने मित्रों के साथ ‘बार’ में चला जाता. उधर शीला अपनी टोली में बैठ कर पीने लगती.

एक दिन दोनों में बहुत तूतू, मैंमैं हुई. नौकरों ने सुना. लोगों में चर्चा हुई. श्याम का अपनी युवा सेक्रेटरी में दिलचस्पी लेना शीला को अच्छा न लगा. उस ने आपत्ति की, तो पति आगबबूला हो उठा, ‘‘मैं जो चाहूं कर सकता हूं. तुम रोकटोक करने वाली कौन होती हो,’’ उस ने तड़प कर कहा, ‘‘और फिर तुम्हें किस बात की कमी है. इतनी दौलत तुम्हारे कदमों में पड़ी है. मैं दो घड़ी दिल बहला लेता हूं तो तुम से वह भी नहीं देखा जाता.’’

उस के बाद श्याम ने समय पर घर आना भी छोड़ दिया, जैसे शीला के जीवन से उसे कोई सरोकार ही न था. पैसा आया तो ऐश बढ़ी. ऐश बढ़ी तो ऐब भी बढ़ने लगे. एक के बाद एक बुरी आदतें पड़ती गईं.

पतिपत्नी में बहुत झगड़ा होने लगा. दोनों मुंह फुलाए रहते. इज्जत करना और करवाना तक भूल गए. इस वातावरण में बच्चे सही पथ से भटक कर गलत रास्तों पर चलने लगे. मांबाप यह भी न देखते कि वे क्या कर रहे हैं. अनिल और वीणा की जेबें पैसों से भरी रहतीं. दिन में घर से गायब रहना और रात में देर से लौटना, उन का नित्य का क्रम बन गया.

यों तो शीला को उन का कोई ध्यान न था, लेकिन भूलेबिसरे कुछ कहती तो वे भी जवाब में सौसौ बात कहते, ‘‘आप को क्या.’’

एक दिन अनिल ने कहा, ‘‘आप को तो कुछ देखने की फुरसत नहीं. हमारा क्या है. हम तो जैसेतैसे इतने बड़े हो गए हैं, आप ने हमारे लिए क्या किया. आप के पास तो समय ही नहीं था, न यह देखने की इच्छा थी कि हमारी आवश्यकताएं क्या हैं.’’

‘‘तुम बहुत बोल रहे हो, अनिल. जानते नहीं, मैं तुम्हारी मां हूं,’’ शीला ने कहा.

‘‘मां जरूर हैं, लेकिन आप ने मां का कर्तव्य कभी नहीं निभाया. क्या दौलत यह सिखाती है कि कोई अपनी जिम्मेदारियां भूल जाए? ऐश्वर्य और विलास को अपनी जिंदगी बना ले. अपनों से नाता तोड़ लें.’’

सत्य कड़वा होता है, उसे निगलना कठिन होता है. अनिल की बातों से शीला तिलमिला उठी, बोली, ‘‘तुम जरूरत से ज्यादा बोल रहे हो, अनिल. बड़ों का मानसम्मान, सब भूल गए क्या,’’ सुन कर हंस पड़ा अनिल. एक दुखभरी हंसी. ‘‘हां, मां, मैं ही भूल गया सबकुछ. यह भी भूल गया कि मां का प्यार कैसा होता है. मां किस तरह अपने बच्चे से लाड़ करती है. गोद में बैठा कर खिलाती है. लोरी सुनाती है. हमें तो नौकरों के सुपुर्द कर दिया गया था. जो सीखा हम ने उन्हीं से सीखा. आप को फुरसत न थी. हमारे आंसू पोंछने तक का समय न था. आप क्लब और पार्टियों में व्यस्त रहती थीं.

“याद है, हमें छोड़ कर आप किस तरह यूरोपअमेरिका की महीनों सैर को चली जाती थीं. हम ने वे दिन कैसे बिताए, आप ने तो कभी पूछा तक न था.’’

और अनिल अपने दिल का दर्द लिए घर से चला गया.

‘‘चला गया है तो जाने दो. हमें उस की परवाह नहीं,’’ श्याम महतो उर्फ मिस्टर मेहता ने गरज कर कहा.

‘‘उसे क्या कमी थी. सबकुछ तो था. ऐशोआराम, नौकरचाकर और यह सारी धनदौलत.’’

श्याम ने अहंकार में यह भी न सोचा कि अनिल को केवल दौलत और झूठे दिखावे की ही जरूरत नहीं, उसे प्यार चाहिए. उसे आलीशान बंगला नहीं, एक घर चाहिए जो छोटा भले ही हो, लेकिन उस में उस का परिवार हो, न कि यंत्रचालित से नौकरचाकर.

अनिल के चले जाने से बेटी वीणा अकेली पड़ गई. एक दिन घबरा कर एक मामूली युवक से उस ने शादी कर ली. न बैंडबाजे, न कोई शोरगुल. श्यामानारायण गरजा, ‘‘इसे भी जाने दो.’’
शीला का कहना था कि वीणा ने उन की नाक काट दी. कहीं मुंह दिखाने योग्य नहीं छोड़ा. ऐसी संतान से तो वह निस्संतान ही अच्छी थी.

वीणा तो प्यार और खुशी की तलाश में थी. दौलत और ऊंची सोसाइटी अगर ये दे सकते तो उस के मांबाप के घर दोनों की बरखा होती. लेकिन वहां तो सोनेचांदी की खनक थी और धनदौलत का अभिमान. मानव और उस के हृदय का कोई मूल्य न था. हर चीज वहां दौलत से तोली जाती थी, इसीलिए प्यार के रिश्तेनाते टूट चुके थे. बच्चे भी मांबाप के प्यार से वंचित पलते रहे. उन्हें यह भी याद नहीं कि कभी किसी ने प्यार भरा हाथ उन के सिर पर रखा हो.

पिछले दिनों अचानक शीला से भेंट हो गई. कोलकाता के न्यू मार्केट से निकल मैं खड़ी टैक्सी का इंतजार कर रही थी कि एक बहुत बड़ी मोटर आ कर मेरे पास रुकी. शीला ने मुझे पहचान लिया, यह देख कर मुझे आश्चर्य हुआ. मेरे न चाहते हुए भी वह मजबूर कर के मुझे अपने घर ले गई. वहां एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी. मोटेमोटे गलीचों पर तो नौकरों के कदमों की आवाज भी नहीं आती. वे चुपचाप अपने काम में लग हुए थे.

श्याम महतो कर्ई दिनों से शहर में नहीं था. कहां गया था, कब लौटेगा, यह भी नहीं मालूम, शीला ने बताया. अनिल और वीणा भी जब से गए हैं, लौट कर नहीं आए.

‘‘मेरे बच्चे हो कर भी उन्हें मुझ से प्यार नहीं,’’ शीला ने कहा.

पता नहीं, उसे कोई दुख है या नहीं. लेकिन, मैं जरूर सोचने लगी कि धनदौलत की चमक से अंधी हो कर शीला ने प्यार और आदर की असली जायदाद को जीवन के पथ पर ही कहीं खो दिया. अमीरी के तूफान में तिनकातिनका हो कर वह कब की बिखर चुकी थी. भरे घर में भी आज कितनी अकेली है वह. वह मेरी गोदी में सिर रख कर रोने लगी, ‘‘मैं ने जिंदगी में बहुत संघर्ष भी देखे, फिर सालों सुख भी भोगा. पर अब क्या होगा, मालूम नहीं.

श्यामा महतो 69 साल के होने लगे हैं और मैं 61 की. बुढ़ापे में हमारी कोई सुध लेगा या नहीं, पता नहीं. हो सकता है कि वे इस घर में तभी आएं, जब इसे फालतू समझ कर बेचना चाहे,’’ कह कर वह फफकफफक कर रोने लगी. मुझे अभी भी विश्वास नहीं था कि ये घड़ियालू आंसू हैं या असली.

मैं एक लड़की से प्यार करता हूं पर अब वो मुझसे दूर चली गई है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 21 साल का हूं और 3 सालों से 19 साल की लड़की से प्यार करता हूं. जब तक वह मेरे करीब थी तो प्यार जताती थी, मगर अब दूर चली गई है तो फोन भी नहीं करती है और न ही मिलने को राजी होती है. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

प्यार मोहब्बत में दिल से ही नहीं, दिमाग से भी काम लेने की जरूरत होती है. आप की गर्लफ्रैंड अब आप से कोई संपर्क नहीं बना रही तो आप भी जरा शांत रहिए. हो सकता है उसे कोई व्यक्तिगत समस्या हो. सो, उसे अपनी समस्या को आप के साथ साझा करने का समय दें.

1-2 महीने तक भी स्थिति ज्यों की त्यों रहे तो स्थिति स्वीकार कर लें और आगे बढ़ें.

अपने जीवन में खुद को महत्त्वपूर्ण बनाएं और अपने शौक व कार्यों के साथ लगातार जुड़े रहें. जब आप उज्ज्वल राह पर चल रहे होंगे तो हो सकता है आप की गर्लफ्रैंड तब आप की ओर आकर्षित हो.

याद रखें कि प्रेम संबंधों में समयसमय पर अड़चनें आती हैं और हमें उन का सामना करना पड़ता है, इसलिए इन को सामान्य मानते हुए अपनी ग्रोथ पर पूरा ध्यान देते रहें. समय के साथ कई अच्छे साथी मिलेंगे.

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सवाल
मैं 40 वर्षीय शादीशुदा पुरुष हूं. शादी के कुछ समय बाद ही मेरा ट्रांसफर दूसरे शहर में हो गया. घर में बुजुर्ग मातापिता की देखभाल करने के चलते मैं पत्नी को अपने साथ ले कर नहीं आया. अपने छोटे भाई, पत्नी और बुजुर्ग मातापिता को छोड़ कर मैं अकेला किराए का मकान ले कर रहता था.

इस बीच पत्नी ने कई दफा मेरे साथ आने की जिद की, पर मैं टालता रहा. इधर कुछ दिनों से मैं ने महसूस किया है कि मेरी पत्नी मेरे छोटे भाई में ज्यादा ही रुचि लेने लगी है. मैं ने इस बारे में कई बार पत्नी से बात करनी चाही पर कर नहीं पाया. मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब
यहां गलती कहीं न कहीं आप की ही है. आप ने अपनी पत्नी को अकेला छोड़ा, तो जाहिर है अपनी शारीरिक व मानसिक जरूरतों के लिए वह स्वाभाविक रूप से आप के छोटे भाई की तरफ आकृष्ट हो गई. लेकिन आप को अपनी पत्नी से इस बारे में खुल कर बात करनी चाहिए. हो सकता है बात करने से और प्यार से समझाने से वह समझ जाए.

आप की कोशिश यही होनी चाहिए कि जल्द से जल्द पत्नी को अपने साथ ले आएं. पत्नी के साथ ज्यादा से ज्यादा समय बिताएं. पुरानी बातों को भूल कर गृहस्थी को प्यार और विश्वास के साथ चलाएं.

ऐसे कहें थायराइड को अलविदा

आजकल थायराइड की समस्या बहुत आम सी हो गयी है. बच्चों से लेकर बड़ों और खास कर महिलाओं में ये समस्या ज्यादा दिख रही है. थायराइड एक एंडोक्राइन ग्लैंड है जो गले में स्थित होती है और इससे थायराइड हार्मोन निकलता है जो मेटाबालिज्म को संतुलित रखता है.

इस थायराइड ग्रंथि से कम या ज्यादा मात्रा में हार्मोन निकलने से थायराइड की समस्या हो जाती है . थायराइड लाइलाज नहीं है बशर्ते कि समय से जांच और दवा के साथ खानपान ठीक से किया जाए.

 कैसे जानें थायराइड पनप रहा है ?

  1. बच्चों में वजन का बढ़ना / शारीरिक और मानसिक विकास का धीमा होना या विकास रुक जाना.
  2. महिलाओं में वज़न का बढ़ना, थकान, सूजन, मासिक धर्म अनियमित होना.
  3. चिड़चिड़ापन, नीद कम आना, घबराहट, हाथ पैरों में कम्पन या धीमी हृदय गति इनमें से कोई भी लक्षण दिखते हैं तो तुरंत अपने डौक्टर से संपर्क करें और उनकी सलाह पर खून की जांच कराए. इसमें T3, T4 और TSH की जांच होती है जिससे पता चलता है कि आपको कौन से प्रकार का (हाइपो, हाइपर) थायराइड है. डौक्टर उसी के हिसाब से आपको दवा और समय समय पर जांच को कहेगा . थायराइड में नियमित खून की जांच होना जरूरी है क्यू कि दवा खाने पर थायराइड का स्तर बैलेंसड होगा और आपकी दवा की मात्रा भी उसके हिसाब से ही होगी .

कई बार कुछ महीने (केवल खाली पेट सुबह एक गोली) दवा खाने से थायराइड की समस्या खत्म हो जाती है मगर तब भी हर तीन या छह महीने पर जांच करानी होती है एतिहातन.. मगर कई बार ताउम्र भी दवा लेनी होती है . ये सब लगातार जांच से पता चलता है कि थायराइड कौन सा और किस स्तर पर है.

कैसे थायराइड को खानपान से संतुलित रखे ?

हरी सब्जियां और फल का सेवन करना चाहिए, इनमें मौजूद एंटी आक्सीडेंट थायराइड का स्तर बढ़ने नहीं देते. ताजे फल का जूस /सूप पीना भी बेहतर होता है.. बच्चों को फास्ट फूड और तैलीय चीजों से दूर रखना बेहतर होगा .

स्वस्थ जीवन शैली अपनाए. अपनी दिनचर्या में शारीरिक श्रम जरूर रखें. अगर आपका काम बैठने का है तो वाक और एक्सरसाइज जरूर करें . सुबह वक़्त न मिलने पर शाम को टहल सकते हैं और वीक ऑफ पर कुछ ज्यादा समय एक्सरसाइज और वॉक पर दे सकते हैं.. अपने साथ बच्चों को भी ले जाए ताकि उन में भी फिटनेस के लिए जागरुकता बनें .

डायट से लेकर एक्सरसाइज तक का चार्ट बना कर फालो करने से आप इस समस्या से मुक्त भी हो सकते हैं.. वैसे कहते हैं कि थायराइड की समस्या खत्म नहीं होती लेकिन शुरुआती दौर में इसकी पहचान होने पर दवा, अच्छे खानपान और बेहतर जीवन शैली से इससे मुक्त हो सकते हैं . बच्चों में भी स्वस्थ खानपान की आदतें विकसित करके उन्हें भी थायराइड की समस्या से मुक्त रख सकती है.. रिसर्च बताती है कि महिलाओं और बच्चों में तेजी से बढ़ रहा है.. वजह असंतुलित खानपान, जीवन शैली, अवसाद का होना है.. और इससे आसानी से दूर रहना भी आपके ही हाथ में है.. “खुद का ध्यान रखे और थायराइड को अलविदा कहें.”

शादी का सपना दरिया में दफन

जमींदार राकेश कासनिया से फोन पर बात कर के टिल्लू खां बेहद खुश था. वजह यह थी कि जमींदार ने उसे अपने खेतों में काम करने के लिए बुलाया था. दरअसल राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के रहने वाले जमींदार राकेश कासनिया के यहां बड़े स्तर पर कपास की खेती होती है.

कपास की चुगाई के लिए वह भरतपुर जिले के कैथवाड़ा गांव के रहने वाले टिल्लू खां और उस के साथियों को बुला लेता था. जो भी मजदूर उस के यहां आते थे, वे परिवार सहित आते थे. इस बार राकेश कासनिया ने टिल्लू खां से यह भी कह दिया था कि वह अपनी जानपहचान वाले कुछ और लोगों को भी साथ ले आए.

जमींदार के खेतों में परिवार सहित काम करने से जहां उन परिवारों को एकमुश्त मजदूरी मिल जाती थी, वहीं मालिक को भी मजदूरों के लिए दरदर भटकना नहीं पड़ता था. मजदूरों के आनेजाने का किराया भी जमींदार ही देता था. इसलिए मजदूर उस के यहां खुशीखुशी आते थे. भरतपुर हनुमानगढ़ से लगभग 450 किलोमीटर दूर है.

टिल्लू खां ने अपने साथ चलने के लिए करीम खां, अख्तर खां और हबीब से बात की. जमींदार राकेश कासनिया ने सारे मजदूरों के किराए के पैसे टिल्लू खां के खाते में औनलाइन जमा करा दिए थे, जिस से मजदूरों को उस के गांव तक आने में परेशानी न हो.

जमींदार राकेश कासनिया के यहां जाने की बात से सारे मजदूर खुश थे. इस की वजह यह थी कि उन के यहां खानेपीने की कोई परेशानी नहीं होती थी. वहां खाने में घी, दूध और छाछ भी मिलती थी. कुल मिला कर बात यह थी कि जमींदार के खेतों में काम करने वाले मजदूरों की मेहमानों की तरह खातिरतवज्जो होती थी. इसलिए टिल्लू ने जिनजिन लोगों से चलने की बात की, वे सब जाने की तैयारी करने लगे.

टिल्लू के परिवार में पत्नी के अलावा 3 बेटियां थीं. बड़ी बेटी खातून महज 14 साल की थी. किसी वजह से इस साल उस की पत्नी उस के साथ जमींदार के यहां नहीं जा पा रही थी. तब टिल्लू ने अपनी तीनों बेटियों के साथ जाने का प्रोग्राम बनाया. अन्य मजदूर अपनी बीवीबच्चों के साथ जा रहे थे.

राजस्थान के श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिले में कपास की खेती बहुत ज्यादा होती है. कपास उत्पादन की वजह से इन दोनों जिलों की श्वेत पट्टी के रूप में पहचान बन चुकी है. देशी व अमेरिकन कपास (नरमा) की फसल पकने पर पौधों से फाहों को अलग कराने का काम मजदूरों से कराया जाता है.

इस प्रक्रिया को चुगाई या चुनाई कहा जाता है. इस साल 5-6 रुपए प्रति किलोग्राम की दर से चुनाई की रकम मजदूरों को अदा की गई थी. इस तरह एक मजदूर दिनभर में चुनाई कर के 500 से 600 रुपए तक कमा लेता है. ज्यादा कमाने के लिए लोग अपने परिवार के साथ यहां काम करने आते थे.

टिल्लू खां अन्य 15 मजदूरों को ले कर जमींदार राकेश कासनिया के गांव जाखड़ावाली पहुंच गया. राकेश के खेतों के पास ही रविन्द्र, रणवीर, देवतराम आदि के भी खेत थे.

राकेश के खेतों का काम निपटा कर इन मजदूरों को इन पड़ोसी किसानों के खेतों की भी कपास की चुगाई करनी थी. जैसे ही टिल्लू खां की मजदूर टोली राकेश कासनिया के घर पहुंची, उन की खूब आवाभगत हुई. सभी राकेश के ही घर ठहरे.

राकेश का घर काफी बड़ा था. घर के पिछवाड़े दरजन भर दुधारू पशु बंधे रहते थे. सुबह का सारा दूध डेयरी पर भिजवा दिया जाता था, जबकि शाम के दूध का दही जमाया जाता था. अगली सुबह मशीनों से दही मथ कर मक्खन व मट्ठा बनाया जाता था. 3 मजदूर इन पशुओं को संभालते थे.

परिवार के मुखिया व राकेश के पिता चौधरी लालचंद की पहल पर पहले दिन सभी मजदूरों को खालिस घी का हलवा व हरी सब्जियों के संग भोजन परोसा गया. सभी मजदूर चौधरी परिवार की मेहमाननवाजी के कायल हो गए.

टिल्लू की बड़ी बेटी खातून तो बेहद खुश थी. खातून को राकेश और उस के भाई कुलदीप की पत्नियां दिखाई नहीं दीं. चुलबुली खातून खोजी निगाहों से उन के घर के कई चक्कर लगा चुकी थी, पर दोनों बहुएं उसे दिखाई नहीं दीं. उसी बीच शोख खातून राकेश की नजरों में जरूर चढ़ गई.

अगली सुबह बड़े चौधरी लालचंद के कहने पर सभी मजदूरों को गांव के ही बृजलाल के खाली पड़े मकान में ठहरा दिया गया. अख्तर की बीवी और खातून खाना बनाने के लिए घर पर रुक गईं, जबकि अन्य सभी नरमा चुगाई के लिए राकेश के साथ ट्रैक्टर से खेतों पर चले गए.

आधे घंटे बाद राकेश अपने खेतों से सब्जियां तोड़वा कर ले आया और उसे अख्तर की बीवी को दे कर कहा, “भाभी, खातून को भेज कर घर से दही और छाछ मंगवा लेना.”

दरअसल, राकेश का मन 14 साल की खातून पर आ गया था. इसलिए वह बहाने से उसे अपने यहां बुलाना चाह रहा था.

“अरे, अंकल ठहरो. मैं दही और छाछ लेने आप के साथ ही चलती हूं. आप के साथ चलने से मुझे सहूलियत रहेगी.”

कह कर खातून डोलची ले कर राकेश के पीछेपीछे चल पड़ी. खातून जैसे ही दालान से बाहर निकली, राकेश ने उसे रोक कर कहा, “खातून, तुम अंकल मत कहो, क्या मैं तुम्हारे अब्बू की उम्र का हूं?”

“गलती हो गई, अब खयाल रखूंगी. भैया कहूं तो चलेगा?” खातून ने कहा, “अरे भैया, एक बात बताओ, दोनों भाभियां दिखाई नहीं दे रही हैं, कहां छिपा दिया है आप ने उन्हें?”

“खातून, मैं ने अपनी बीवी को तलाक दे दिया है. अब दूसरी बीवी की तलाश में हूं. कोई लड़की पसंद आ गई तो शादी कर लूंगा. और हां सुन, अब तू बच्ची नहीं रही, मुझे अंकल या भैया कहा तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा. तुम मुझे राकेश कहो, प्यार से रौकी. समझ गई ना?” इतना कह कर राकेश आगे बढ़ गया.

डोलची उठाए खातून राकेश के पीछेपीछे चल रही थी. घर पहुंच कर राकेश ने खातून की डोलची छाछ से भर दी. खातून डोलची उठाने लगी तो राकेश ने उस का हाथ दबा दिया. इस पर नादान खातून ने मुसकरा दिया.

उस रात न राकेश को नींद आई, न खातून को. दोनों ही सारी रात करवटें बदलते रहे. राकेश शातिर खिलाड़ी था, जबकि खातून प्रेम के इस खेल से अनाड़ी थी. शातिर राकेश ने खातून को फंसाने के लिए शब्दों का जाल बुन लिया. उसे फंसाने के लिए वह उस से लच्छेदार बातें करने लगा. उस की बातों का 14 साल की खातून पर ऐसा असर पड़ा कि वह भी उसे चाहने लगी.

राकेश और उस के बड़े भाई कुलदीप ने उच्चशिक्षा हासिल कर के वैज्ञानिक तरीके से खेती करानी शुरू की थी. जिस से उन्हें अच्छी पैदावार मिलने लगी थी. दोनों की शादी एक ही परिवार में सगी बहनों से हुई थी, लेकिन किन्हीं कारणों से दोनों भाइयों के गृहस्थ जीवन में ऐसी खटास आई कि मामला अदालत की चौखट तक पहुंच गया.

राकेश के परिवार की गिनती इलाके में रसूखदार व प्रभावशाली परिवारों में होती थी. उस के  परिवार का इलाके में अच्छाखासा दबदबा था. परिवार में सभी सुखसुविधाओं के साथ कई लग्जरी गाड़ियां व खेतीबाड़ी के लिए ट्रैक्टर था.

शहरी आबोहवा में पल रही गरीब परिवार की खातून 14 साल की उम्र में अपने तंदुरुस्त शरीर की वजह से जवान दिखती थी. गेहुंआ रंग व गठीले बदन की खातून पर राकेश इस कदर फिदा हुआ कि वह उस के लिए पागल सा हो गया था.

राकेश सुबह के समय खुद ट्रैक्टर चला कर मजदूरों को खेतों पर ले जाता था. खातून राकेश के पास बैठ जाती थी, जबकि अन्य मजदूर पीछे ट्राली में बैठते थे. खातून की छोटी बहन सलमा भी राकेश की सीट के पास मडगार्ड पर बैठती थी. शाम को वापसी में भी ऐसा ही होता था. इस बीच मौका मिलने पर राकेश खातून से हंसीमजाक कर लिया करता था. एक दिन ट्रैक्टर पर आते समय राकेश ने खातून से धीरे से कहा, “आज रात को गली में मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा.”

मजदूरों को जाखड़ावाली आए मात्र 5 दिन ही हुए थे. इस तरह राकेश और खातून ने पलक झपकते ही दूरियां नाप ली थीं. सभी मजदूर थकेमांदे होने के कारण खाना खाने के तुरंत बाद नींद के आगोश में समा जाते थे. खातून ने इसी का फायदा उठाया.

जैसे ही सब लोग सो गए, खातून दबे पांव बाहर निकली. राकेश दीवार की ओट में पहले से ही खड़ा था. खातून के आते ही उस का हाथ पकड़ कर वह रुखीराम के खाली पड़े घर में घुस गया.

एकांत मिलते ही राकेश ने उसे बांहों में भर लिया और उस के साथ छेड़छाड़ करने लगा. खातून ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, “यह आप क्या कर रहे हैं, यह सब ठीक नहीं है?”

“खातून, मैं तुम्हें हर तरह से खुश रखूंगा.” राकेश ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा.

“नहीं, आप शादीशुदा हैं. आप तो मुझे बरबाद कर के चले जाएंगे. मैं जिंदगी भर रोती रहूंगी.” खातून ने कहा.

राकेश ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा, “खातून, मैं ने अपनी पत्नी को तलाक दे दिया है. अब मैं तुम से शादी कर के तुम्हें पत्नी बना कर रखूंगा. तुम मेरी बात पर यकीन करो. अब फैसला तुम्हें करना है कि शादी गुपचुप करोगी या ढोलधमाकों के साथ.”

राकेश की बातों पर खातून ने यकीन कर लिया और उस के सामने समर्पण कर दिया. इच्छा पूरी कर के दोनों अपनेअपने बिस्तरों पर चले गए.

अगली सुबह खातून के बदन का पोरपोर दर्द कर रहा था. देर रात तक जागने से उसे सिरदर्द के साथ तेज बुखार भी हो गया था. जब सभी लोग खेतों में जाने लगे तो खातून ने पिता से कहा, “अब्बू, आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है. मुझे बुखार है, इसलिए आज मैं काम पर नहीं जा पाऊंगी.”

“कोई बात नहीं, तुम घर पर आराम करो. मैं दवा के लिए छोटे चौधरी (राकेश) को बोल दूंगा.” टिल्लू ने कहा.

कुछ देर बाद राकेश ट्रैक्टर ले कर मजदूरों को लेने आया तो टिल्लू ने कहा, “छोटे चौधरी, खातून को बुखार हो रहा है. उसे गांव के डाक्टर से दवा दिलवा देना. आज वह काम पर भी नहीं जा रही है.”

“अंकल, आज गांव के डाक्टर एक शादी में गए हैं. दोपहर के समय मैं शहर जाऊंगा तो वहां से दवा दिला दूंगा.” राकेश ने कहा.

मजदूरों को खेत में छोड़ कर राकेश जल्दी लौट आया और जिप्सी ले कर खातून के पास पहुंच गया. दवा दिलाने के बहाने उस ने खातून को जिप्सी में बैठा लिया. जिप्सी स्टार्ट करते हुए उस ने चुहलबाजी करते हुए कहा, “रानी, तबीयत सचमुच में खराब है या चालाकी से मिलने का उपाय ढूंढ़ा है.”

“देखोजी, आप को मजाक सूझ रहा है और मैं दर्द के मारे मरी जा रही हूं.” खातून ने कहा.

“जानेमन, घबराओ मत, आज ससुरजी की इजाजत ले कर आया हूं. पूरे दिन घुमाऊंगा और तुम्हारे तनमन का दर्द निकाल कर ही दम लूंगा.” राकेश ने कहा.

कई घंटे घूमने के बाद राकेश की जिप्सी पीलीबंगा शहर से लौट आई. शहर में दोनों ने जी भर कर मस्ती की. मानमनुहार कर के राकेश ने खातून को बीयर भी पिला दी थी. राकेश का साथ मिलने पर बिना दवा के ही खातून ठीक हो गई थी.

राकेश की पहल पर खातून ने एक आर्टिफिशियल मंगलसूत्र गले में पड़े पुराने काले धागे में बांध लिया था. खातून की पसंद का एक सुर्ख सूट भी राकेश ने खरीद दिया था.

शहर में बिताए उन पलों में राकेश खातून को यह विश्वास दिलाने में सफल हो गया था कि वह उस का शौहर है और समय आने पर वह उस के साथ रीतिरिवाज से निकाह कर लेगा. राकेश ने यह भी कहा था कि उस की पहली पत्नी के जितने भी गहने हैं, वे सब अब उस के हैं.

इस के अलावा वह उस की पसंद के और गहने बनवा कर उसे गहनों से लाद देगा. इस तरह शातिर राकेश उसे लूटता रहा और शादी का सपना संजोए खातून लुटती रही. राकेश ने उस दिन भी रात में उस से मिलने का वादा करा लिया था.

शाम को टिल्लू लौटा तो खातून ने राकेश द्वारा दिया सूट दिखाते हुए कहा, “अब्बा, यह सूट देखो, बड़ी चौधराइन ने दिया है. आप को पहन कर दिखाऊं.”

सूट बढ़िया और महंगा था. अब्बू के इशारे पर खातून ने सूट पहन लिया. कढ़ाईदार सुर्ख सूट में खातून नईनवेली दुलहन सी लग रही थी.

रात को सभी सो गए तो खातून राकेश से मिलने उसी खाली मकान में जा पहुंची, जहां वह पहले मिली थी. वहां राकेश पहले से ही मौजूद था. उस समय उस के गले में राकेश के नाम का मंगलसूत्र व बदन पर वही सुर्ख सूट था. वह अप्सरा सी लग रही थी.

राकेश ने उस की सुंदरता की तारीफ की तो खातून ने कहा, “देखो रौकी, तुम मुझे धोखा मत देना. ऐसा हुआ तो मैं जीते जी मर जाऊंगी. जहर खा कर अपनी जान दे दूंगी.”

“हट पगली, तू ने ऐसा सोचा भी कैसे? और सुन, शहर से तुझे कल मोबाइल ला कर दे दूंगा.” राकेश ने कहा.

अगले दिन राकेश ने खातून को एक मोबाइल ला कर दे दिया. समय गुजरता रहा. राकेश का जब मन करता, वह खातून को मिसकाल कर देता. साइलैंट मोड पर मोबाइल पर आई मिसकाल के इशारे को खातून समझ जाती. उस के बाद शौच का बहाना कर के वह रणवीर जाट के खेत में बने कोठा में पहुंच जाती. वहां दोनों अपनी इच्छा पूरी करते. इस तरह पूरे महीने उन का यह खेल चलता रहा.

कहते हैं, लाख कोशिशों के बाद भी इस तरह के संबंध छिपाए नहीं छिपते. राकेश और खातून के साथ भी ऐसा ही हुआ. एक रात लघुशंका के लिए अख्तर खां उठा तो उस ने राकेश और खातून को सुनसान पड़े घर में घुसते देख लिया.

हकीकत जानने के लिए छिप कर वह वहीं बैठ गया. घंटे भर बाद दोनों एक साथ बाहर निकले तो अख्तर पूरा मामला समझ गया.

राकेश के बड़े भाई कुलदीप को भी राकेश और खातून के संबंधों को ले कर संदेह हो गया था. एक सुबह खातून नहाने के लिए गुसलखाने में घुसी तो उस के कपड़ों में लिपटा मोबाइल फोन छोटी बहन सलमा के हाथ लग गया. तब खातून ने वह फोन किसी सहेली का बता कर पिंड छुड़ाया. खातून ने यह बात अब्बू को न बताने के लिए सलमा को राजी भी कर लिया.

खातून और राकेश की हरकतों को जान कर अख्तर बेचैन हो उठा. वह पूरी रात इसी उधेड़बुन में लगा रहा. आखिर उस ने यह बात टिल्लू खां को बताने का निश्चय कर लिया. सुबह उठने पर वह टिल्लू को बाहर ले गया और राकेश तथा खातून के बीच पक रही खिचड़ी उसे बता दी.

नाबालिग बेटी की हरकतें जान कर टिल्लू खां चौंका. इस के बाद दोनों ने पूरे मामले पर विचारविमर्श कर के फैसला लिया कि यह बात बड़े चौधरी लालचंद को बताई जाए. टिल्लू ने बहलाफुसला कर खातून से मोबाइल फोन ले कर उसे ईंट से चकनाचूर कर दिया.

अख्तर और टिल्लू खां उसी दिन लालचंद से मिले. उन्होंने कहा, “चौधरीजी, आप का लाडला राकेश मेरी नाबालिग खातून पर डोरे डाल रहा है. वह उस पर गंदी नजर रखता है. हुजूर, मेरी बेटी के साथ कुछ गलत हो गया तो मैं गरीब आदमी बरबाद हो जाऊंगा. आप उसे रोकिए अन्यथा बरबादी की आंच से आप का परिवार भी नहीं बचेगा.”

टिल्लू खां के मुंह से बेटे की करतूतें सुन कर लालचंद को भी चिंता हुई. उन्होंने दोनों को कुछ करने का आश्वासन दे कर भेज दिया.

लालचंद से शिकायत के बाद भी राकेश के व्यवहार में कोई तब्दीली नहीं आई. दीपावली नजदीक आ गई थी. मजदूर टिल्लू खां की इतनी औकात नहीं थी कि वह परदेश में चौधरी के परिवार से कोई पंगा लेता. इसलिए टिल्लू और अख्तर ने अपने गांव लौटने में ही अपनी भलाई समझी.

इस के बाद अख्तर और टिल्लू खां ने राकेश से कहा, “भैया, अब दीवाली नजदीक आ गई है. अब हम गांव जाना चाहते हैं, इसलिए हमारी अब तक की मजदूरी का हिसाब कर दो.”

राकेश ने सभी मजदूरों का हिसाब कर दिया. हिसाब हो जाने के बाद मजदूरों ने जाने की तैयारी कर ली.

हिसाब होने व गांव जाने की बात की जानकारी खातून को हुई तो वह परेशान हो उठी. वह राकेश को किसी भी सूरत में नहीं छोड़ना चाहती थी. राकेश के साथ भले ही उस का विधिवत निकाह नहीं हुआ था, पर राकेश ने उसे पत्नी बना रखा था. उसे मंगलसूत्र भी पहनाया था.

खातून के पास राकेश से बात करने का सहारा मोबाइल था, जिसे उस के अब्बा ने ले कर तोड़ दिया था. अब उस के पास ऐसा कोई जरिया नहीं था कि वह राकेश से मिल कर मन की बात कहती.

उस की नजर में एक ही रास्ता था कि वह तुरंत राकेश से मिल कर इस विषय पर बात करे. एक दिन घर वालों से छिप कर वह राकेश के खेतों की ओर निकल गई. रास्ते में उसे आत्माराम मिला तो उस ने कहा, “अंकल, प्लीज अपना मोबाइल दे दीजिए. मुझे अब्बू से जरूरी बात करनी है.”

आत्माराम ने उसे अपना फोन दे दिया. थोड़ा सा अलग हट कर खातून ने राकेश का नंबर मिला दिया. राकेश ने फोन रिसीव किया तो खातून बोली, “रौकी, मैं नरमा के खेत में जा रही हूं. इस समय मैं बहुत ज्यादा परेशान हूं. मुझे अब्बू गांव ले जाना चाहते हैं, पर मैं आप को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी. तुम तुरंत मुझ से मिलो, नहीं मिले तो तुम्हें पछताना पड़ेगा.”

खातून की चेतावनी सुन कर राकेश सन्न रह गया. वह जानता था कि खातून जिद्दी है, बिना सोचेसमझे वह किसी भी हद तक जा सकती है. वह उस के खिलाफ कोर्टकचहरी भी जा सकती है.

पुलिस और कानूनी काररवाई की बात जेहन में आते ही राकेश परेशान हो उठा. उस का दिमाग घूम गया. परेशानी के इस आलम में उस ने अपने बड़े भाई कुलदीप को बुला लिया.

दोनों भाइयों ने इस जटिल मुद्दे पर बात की, लेकिन उन्हें कोई राह नहीं सूझी. तब राकेश ने अपने जिगरी दोस्तों अशोक और पूनम शर्मा को खेत में बुला लिया. चारों राकेश के गले आ पड़ी इस परेशानी का तोड़ ढूंढने में जुट गए. अंत में चारों ने परेशानी की मूल खातून को ही मिटाने का भयानक निर्णय ले लिया. उन्होंने इस का तरीका भी खोज लिया.

योजना को अंजाम देने के लिए राकेश ने अशोक को भेज कर अपने एक अन्य दोस्त दीनदयाल जाखड़ की बोलेरो जीप मंगवा ली. इस के बाद राकेश ने नरमा के खेत में खातून को आवाज दे कर कोठा पर बुला लिया. वहां 3 अन्य लोगों को देख कर खातून घबरा गई.

राकेश ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “घबराओ मत खातून, ये तीनों मेरे अपने हैं. आज मैं इन की मौजूदगी में तुम से शादी करूंगा. यहां तुम्हारे घर वाले आ सकते हैं, इसलिए दूसरी जगह चलने के लिए गाड़ी मंगवा ली है. आगे वाले गांव में शादी की पूरी व्यवस्था मैं ने करवा ली है, वहीं चल कर शादी कर लेंगे.”

तब तक अंधेरा घिर चुका था. शादी की बात सुन कर खातून बहुत खुश हुई. अंजाम से अंजान खातून खुशीखुशी चारों के साथ बोलेरो में सवार हो गई. अशोक ने गाड़ी एशिया की सब से लंबीचौड़ी इंदिरा गांधी नहर की पटरी पर दौड़ा दी.

लाखुवाली हैड के नजदीक सुनसान पटरी पर चारों ने गाड़ी रोकी. गाड़ी में रखी रस्सी से उन्होंने खातून के हाथपांव बांध दिए और किसी बंडल की तरह उसे नहर में उछाल दिया. मौत को सामने देख खातून रोईगिड़गिड़ाई और असफल विरोध भी किया, पर नौजवानों के आगे भला वह क्या कर सकती थी. नहर में गिरते ही वह अथाह जल में समा गई.

उधर घर में खातून के न मिलने से सभी घबरा गए. सांझ ढलने तक उस के न लौटने पर टिल्लू और अख्तर गांव की पुलिस चौकी पहुंचे और राकेश पर बेटी को भगाने का शक जाहिर करते हुए एक तहरीर दे दी.

वहां उन की बात नहीं सुनी गई तो वे थाना पीलीबंगा पहुंचे और वहां बेटी के अगवा करने का आरोप लगाते हुए राकेश के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करा दी.

नाबालिग बच्ची का मामला था, वह भी सुदूर जिला की रहने वाली थी. मामला काफी संवेदनशील था. इसलिए मामले की जानकारी मिलते ही युवा पुलिस अधीक्षक गौरव यादव ने थानाप्रभारी विजय कुमार मीणा को मामले का खुलासा करने का आदेश दे दिया.

प्रभावी काररवाई का भरोसा मिलने पर रोताबिलखता मजदूर टोला भरतपुर लौट गया. विजय कुमार मीणा ने एएसआई प्रताप सिंह के नेतृत्व में एक टीम गठित की, जिस में कांस्टेबल अमर ङ्क्षसह, ओम नोखवाल, अमनदीप, लक्ष्मण स्वामी और पीरूमल को शामिल किया गया.

मुखबिर द्वारा पता चला कि राकेश और उस के 3 साथी गांव से लापता हैं, इस से ये चारों शक के दायरे में आ गए. मुखबिरों से यह भी पता चला था कि खातून ने आत्माराम के मोबाइल से राकेश से बात की थी. डीएसपी नारायण दान रतनू भी पुलिस काररवाई पर नजर रख रहे थे.

पुलिस को कोई सफलता मिलती, इस से पहले ही नहर से सटे थाना रावला की पुलिस ने नहर से 14-15 साल की एक लड़की की लाश बरामद की. लाश की शिनाख्त के लिए भरतपुर से टिल्लू खां और उस की बेगम को बुलवा लिया गया. मृतक लड़की के पैरों में 6-6 अंगुलियां होने से मांबाप ने उस की शिनाख्त अपनी बेटी खातून के रूप में कर दी.

मुखबिरों की इत्तला पर पुलिस ने राकेश को पकड़ लिया. पूछताछ में उस ने अपना अपराध स्वीकार कर के साथियों के नाम बता दिए. पुलिस ने पीलीबंगा के मुंसिफ कोर्ट में उसे पेश कर पूछताछ के लिए 5 दिनों के रिमांड पर ले लिया.

इस बीच पुलिस ने कुलदीप, राकेश, अशोक और पूनम शर्मा को भी गिरफ्तार कर लिया था. सभी से विस्तार से पूछताछ कर के उन्हें अदालत में पेश किया गया, जहां से उन्हें न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया.

बर्फ : एक दिलचस्प इतिहास

गरमी के मौसम में ठंडीठंडी बर्फ सभी को प्यारी लगती है. बर्फ की बदौलत ही लस्सी, शीतलपेय, आइसक्रीम का स्वाद ठंडाठंडा और मजेदार हो जाता है. आज के दौर में तो फ्रिज की बदौलत घरघर में बर्फ मिल जाती है. एक समय ऐसा भी था जब गरमी के दिनों में बर्फ की बड़ी कद्र की जाती थी. उसे सोने की तरह कीमती समझा जाता था.

हमारे देश में कृत्रिम बर्फ की सिल्लियों का आगमन आज से 180 साल पहले हुआ था. 23 मार्च, 1830 को जब बर्फ की सिल्लियों की पेटियां कोलकाता बंदरगाह पर उतरीं तो इन का गरमजोशी से स्वागत हुआ. कई लोगों ने बर्फ आगमन की खुशी में घरघर दीप जला कर खुशियां मनाईं, एकदूसरे को इत्र लगा कर और जगहजगह मिठाइयां बांटी.

पहली बार आगमन

दरअसल, लोगों ने पहली बार कृत्रिम बर्फ को देखा था. वे बर्फ देख कर हैरान थे और एकदूसरे से पूछने लगे थे, “क्या यह बर्फ सातसमंदर पार के पेड़ों पर उगती है? यदि पेड़ों पर उगती है तो इस के बीज हमें भी अपने खेतों में बोने चाहिए.”

उस समय के कुछ बांगला, इंग्लिश व हिंदी के समाचारपत्रों ने बर्फ पर अपने संपादकीय भी लिखे थे. एक समाचारपत्र ने तो अपने बौक्स कौलम में यह भी छाप दिया, ‘बर्फ कुछ शरमा कर कन्याओं के स्वागत से पानीपानी हो गया.’

लार्ड विलियम वैटिक, जो उन दिनों भारत के गवर्नर जनरल थे, ने बर्फ रखने के लिए जमीन के अंदर स्पैशल कुएं खुदवाए ताकि बर्फ अधिक दिनों तक टिकी रहे. उन दिनों आयात की सब से बड़ी वस्तु बर्फ ही थी.

कोलकाता से जो पोत लद कर वापस अमेरिका गए उन में बोस्टन से बर्फ लाने वाले 46 पोत थे. फ्रैडरिक ट्यूडर का बर्फ का निर्यात उन दिनों इतना बढ़ गया था कि वे न्यू इंगलैंड के बर्फ सम्राट के रूप में मशहूर हो गए थे. 1855 में उस ने कोलकाता को 266 हजार टन बर्फ भेजी थी. यह बर्फ कैंब्रिज (अमेरिका) के फ्रैशपौंड नामक ताल में तैयार की जाती थी. पहले सिल्लियां यहां हाथ से बनाई जाती थीं. बाद में यह काम ऊर्जा से चलने वाले आइस कटर से लिया जाने लगा.

धन कमाने का जरिया

उन दिनों अखबारों में अमेरिकी बर्फ की तारीफ के पुल बंधे रहते थे. अमेरिका से बर्फ का आयात लार्ड विलियम बैटिंग के प्रमुख कारनामों में गिना जाता था. उस समय कई बुद्धिमान लोगों ने बर्फ से धन कमाने का एक तरीका भी खोजा था. उन्होंने लकड़ी के ऐसे हाउस बनाए जहां काले अक्षरों में ‘आओ, बर्फ को नजदीक से देखो, बर्फ देखने की कीमत आधा सेर चावल या आधा सेर चीनी’ लिखा होता था।

कई लोग बर्फ देखने के लिए इन हाउसों में चावल और चीनी ले कर आने लगे और हाथों से बर्फ को छूने भी लगे. लोग बर्फ को छू कर अपनेआप को धन्य समझते.

कुछ मनोरंजक तथ्य

उन दिनों लोग बर्फ का कितना मानसम्मान करते थे. इस सिलसिले के मनोरंजक तथ्य निम्र हैं :

• प्रेमी अपनी रूठी हुई प्रेमिका को मनाने के लिए बर्फ का टुकड़ा मखमल के रूमाल में लपेट कर दिया करता था ताकि प्रेमिका गुस्सा थूक कर बर्फ को बड़े प्यार से चूम सके. बाद में ‘किस’ की हुई इसी बर्फ को प्रेमी चूमता था. कहते हैं, उन दिनों प्रेम करने वाली लड़कियां बर्फ देख कर बहुत खुश हुआ करती थीं.

• अमीर लोग अपने शाहीभोज में बर्फ के टुकड़े भी शामिल करते थे. पत्तलों में पूड़ीसब्जी, मिठाइयों के साथसाथ बर्फ के टुकड़े भी परोसे जाते थे. बर्फ की चोरी करने वाले को 24 घंटे तक भूखेप्यासे ही जेल में रखा जाता था. छोङने पर उस से बर्फ की चोरी न करने का वचन लिया जाता था. उन दिनों कोलकाता के कई होटलों में बर्फ इतनी संभाल कर रखी जाती थी कि मानो वह सोना हो.

• कई होटलों में खाने की मेजें बर्फ के नन्हे टुकड़ों से चमकती थीं. मक्खन के प्यालों में भी बर्फ के टुकड़े तैरते थे. हां, पानीभरे कटोरे ऐसे लगते थे मानो वे छोटेछोटे आर्कटिक सागर हों और उन में ‘आइसबर्ग’ तैर रहे हों.
लोग जब बर्फ खरीद कर लाते थे तो कई लोग उन के घर बधाई देने आ जाया करते और कहा करते कि जरा, बर्फ की एक झलक हमें भी दिखा दो.

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