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आलिया ने Elvish Yadav को किया सपोर्ट तो स्वरा भास्कर ने लगाई क्लास

Elvish Yadav : बिग बॉस ओटीटी 2 (Bigg boss OTT 2) जीतने के बाद से एल्विश यादव (Elvish Yadav)  और ज्यादा सुर्खियों में बने हुए हैं. जहां कुछ लोग उनके बिग बॉस जीतने का विरोध कर रहे हैं, तो वहीं कुछ लोग उनका समर्थन भी कर रहे हैं. उनके फैंस की लिस्ट में एक नाम बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट का भी है. आलिया ने एल्विश की तारीफ करते हुए एक पोस्ट किया था, जिसके बाद से वह यूजर के निशाने पर आ गई है. साथ ही एक्ट्रेस स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) ने भी आलिया (Alia Bhatt) की क्लास लगाई है.

एल्विश ने आलिया की स्टोरी पर लिखा ”आई लव यू”.

दरअसल, बुधवार को अपने इंस्टाग्राम स्टोरीज पर आलिया के ‘आस्क मी एनीथिंग’ सेशन किया था. इसी सेशन के दौरान उनसे एक फैन ने पूछा था, “एल्विश यादव के बारे में कुछ हो जाए”. इस पर आलिया ने लिखा था, “सिस्टमम.” फिर आलिया की इस स्टोरी का स्क्रीनशॉट एल्विश ने अपनी इंस्टाग्राम स्टोरी पर शेयर किया और लिखा, ”आई लव यू”.

स्वरा ने आलिया को दिखाया आईना

इसके बाद शुक्रवार को ट्विटर पर एक्ट्रेस स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) ने एक पोस्ट को रीट्वीट करते हुए लिखा, “हैलो @आलिया, ये एल्विश यादव हैं, जिनकी आप तारीफ कर रही हैं. महिलाओं के प्रति उसकी पूरी तरह से निंदनीय रवैये पर एक अच्छी नज़र डालें, वह कैसे बेशर्मी से स्वरा के साथ $exual h@rassm€nt में जुड़े हुए है. आप जैसी एक्ट्रेस के लिए ये कितनी बड़ी गिरावट है.”

2021 से जुड़ा है मामला

आपको बता दें कि एल्विश (Elvish Yadav) और स्वरा के बीच साल 2021 में एक राजनीतिक मुद्दे को लेकर तीखी बहस हुई थी. दरअसल, उस समय एल्विश ने एक्ट्रेस का अपमान किया था, जिसके बाद स्वरा ने तथ्यों का हवाला देते हुए एल्विश को गलत साबित किया था.

जिसका जवाब देते हुए एल्विश ने लिखा था, “झूठा झूठा! चड्ढी में आग लग गई!” इसके अलावा उन्होंने एक और तीखा ट्वीट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था, “अत्यधिक m@sturb@tion आपको अंधा बना देता है. ये एक मिथक था लेकिन स्वरा दीदी इसको सही साबित कर सकती है. जीएसटी शब्द का प्रयोग किया मैंने स्वरा?”

तमिल एक्टर Pawan का 25 साल में हुआ निधन, दिल का दौरा पड़ने के कारण गई जान

Tamil TV Actor Pawan Death :  बीते कई समय से देश में कार्डियक अरेस्ट के कारण जान गवाने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है. एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में ही कई लोगों की जान दिल का दौरा पड़ने की वजह से हुई हैं. हालांकि अब इस लिस्ट में एक और एक्टर का नाम जुड़ गया है.

दरअसल, बीते दिन पॉपुलर हिंदी और तमिल टीवी स्टार पवन सिंह (Tamil TV Actor Pawan Death) की महज 25 साल की उम्र में मौत हो गई. उनकी मौत की खबर से साउथ फिल्म इंडस्ट्री को बड़ा झटका लगा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुक्रवार को एक्टर को उनके मुंबई स्थित घर में दिल का दौरा पड़ा था, जिसके बाद उनकी मौत हो गई.

कर्नाटक के रहने वाले थे एक्टर

आपको बता दें कि पवन (Tamil TV Actor Pawan Death) कर्नाटक के मांड्या जिले के रहने वाले थे. लेकिन एक्टर बनने के लिए वह मुंबई आए थे और वो यहां अपने परिवार वालों के साथ रहते थे. मुंबई में उन्हें हिंदी और तमिल भाषा के कई सीरियल्स में काम करने का मौका मिला था, जिसके बाद उनकी तगड़ी फैन फॉलोइंग बन गई थी. हालांकि उनकी अचानक से हुई मौत से उनके परिवार वालों के साथ-साथ उनके फैंस को भी गहरा सदमा पहुंचा है.

कर्नाटक में ही होगा अंतिम संस्कार

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, आज पवन (Tamil TV Actor Pawan Death) का शव मुंबई से उनके पैतृक स्थान कर्नाटक के मांड्या लेकर जाया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा. आपको बता दें कि आज से कुछ दिन पहले एक्टर विजय राघवेंद्र की पत्नी स्पंदना की भी कार्डियक अरेस्ट की वजह से मौत हुई थी. इसके अलावा इससे पहले पॉपुलर कन्नड़ स्टार पुनीथ राजकुमार की भी दिल का दौरा पड़ने के कारण जान गई थी.

यादव, अहीर, कुर्मी : ताकतवर पर अलग थलग

पिछड़ी जातियों में अगड़े अहीर, यादव और कुर्मी अगर एकसाथ मिल कर चलें तो बड़ी राजनीतिक ताकत बन सकते हैं. जातिगत जनगणना का भी लाभ तभी मिलेगा जब पिछड़ी जातियां आपस में एकजुट होंगी. लेकिन इन की आपसी कलह इन के बीच सब से बड़ी रुकावट है जिस का फायदा सवर्ण उठा जाते हैं.

बचपन में सब ने एक कहानी सुनी होगी, जिस में एक किसान अपने बेटों को एकता का पाठ सिखाने के लिए उन को एकएक लकड़ी तोड़ने के लिए देता है. जिसे सब आसानी से तोड़ देते हैं लेकिन उन्हीं लकड़ी का गट्ठर बना कर जब तोड़ने को देता है तो कोई तोड़ नहीं पाता है.

एकता की यह कहानी पिछड़ी जातियों को भी सम?ानी चाहिए. एकता के अभाव में सब से बड़ी जनसंख्या होने के बाद भी वे अलगथलग पड़े हैं. ये आपस में लड़ कर ही खुश हो रहे हैं. केवल अगड़ी जातियां ही नहीं, दलित भी इन से अधिक संगठित हैं, जिस से उन का महत्त्व बना हुआ है. पिछड़ी जातियां आज भी अपनी जनगणना को ले कर संघर्ष कर रही हैं.

जनसंख्या के हिसाब से देखें तो पिछड़ी आबादी 60 प्रतिशत है. जो किसी भी तरह से हर जाति से ज्यादा है, ताकतवर होने के बाद भी पिछड़े एकजुट नहीं हैं. इस कारण अलगथलग पड़े हैं. पिछड़ी जातियों में यादव 19.4 प्रतिशत और कुर्मी 7.46 प्रतिशत हैं. इस के बाद दूसरी पिछड़ी जातियां आती हैं. बड़ी संख्या में होने के बाद भी पिछड़ी जातियां कोई अपना मजबूत जनाधार नहीं बना पाईं. इस की वजह आपस में एकता का न होना है.

इस के उलट, अगर हम अगड़ी जातियों को देखें तो वे अपनी जाति के अंदर उपजातियों में कोई नया वर्ग नहीं बनाते हैं. जैसे, ब्राह्मण वोटबैंक एकजुट हैं. वह वाजपेयी, शुक्ला, मिश्रा और तिवारी में बंटा हुआ नहीं है. इस से कम तादाद के बाद भी यह वोटबैंक अपना महत्त्व बनाए रखने में सफल होता है.

पिछड़ी आबादी के 2 प्रमुख वर्ग यादव और अहीर एक ही बिरादरी में आते हैं. इन का मूल काम पशुपालन था. कुर्मी खेती करने वाली बिरादरी रही है. आजादी के बाद कई सालों तक इस पिछड़े वर्ग को उन का हक नहीं दिया गया. 1989 में मंडल कमीशन लागू होने के बाद पिछड़ी जातियों के हिस्से कुछ अधिकार मिले. यहां भी बंदरबांट शुरू हो गई. इस के कारण पिछड़ा वर्ग कई जातियों सहित अति पिछड़ा वर्ग जैसे समूहों में बंट गया.

इस का परिणाम यह हुआ कि मंडल कमीशन का लाभ पिछड़े वर्ग को नहीं मिल सका. इन में 2 बड़ी जातियां यादव और कुर्मी आपस में लड़ गए. अति पिछड़े वर्ग में आने वाली जातियां अलग छिटक गईं.

जातियों के अलगाव का परिवार तक असर

राजनीति में इन के लड़ने?ागड़ने का प्रभाव इन के घरों पर भी पड़ा. ये घरों में भी एकजुट नहीं हो पाए. उत्तर प्रदेश में इस के 2 उदाहरण मौजूद हैं. पहला यादव वर्ग से लेते हैं, जिस में समाजवादी पार्टी का मुलायम सिंह यादव परिवार आता है. मुलायम सिंह ने अपनी राजनीति पिछड़ा वर्ग और किसानों से जोड़ी थी. उन के राजनीतिक गुरु चौधरी चरण सिंह थे जो जाट बिरादरी से आते थे. मुलायम सिंह यादव कुर्मी और दूसरे पिछड़े वर्ग के नेताओं को ले कर चलते थे. बेनी प्रसाद वर्मा कुर्मी बिरादरी से थे, उन के सब से प्रमुख सहयोगी थे.

मुलायम ने केवल पिछड़ी जातियों को ही नहीं, दलितों की अगुआई करने वाली बसपा से भी तालमेल किया था. मुलायम ने दलित और पिछड़ी जातियों का समूह तैयार किया जिस के कारण ही वे 3 बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने. 2012 में जब अखिलेश यादव ने सरकार बनाई तो वे पिछड़ी जातियों को एकजुट नहीं कर पाए. पहले जातियों में बिखराव हुआ, फिर उन के घर यानी मुलायम परिवार में बिखराव हुआ. मुलायम के भाई शिवपाल यादव ने अलग पार्टी बना ली. अखिलेश जाति और घर दोनों ही नहीं संभाल पाए.

दूसरा उदाहरण कुर्मी वर्ग से आता है. इस के बड़े नेता तो कई हुए पर एक पार्टी बना कर कुर्मियों को एकजुट करने का काम डाक्टर सोने लाल पटेल ने किया. उन की पार्टी अपना दल इस की सब से मजबूत कड़ी थी. यहां भी जैसे ही पार्टी की कमान दूसरी पीढ़ी के हाथ आई, पार्टी और परिवार दोनों ही बिखर गए. डाक्टर सोनेलाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल सब से पहले विधायक बनीं. इस के बाद वे भाजपा के गठबंधन से सांसद बनीं. केंद्र सरकार में मंत्री बन गईं. जाति और पार्टी संभालने का दावा करने वाली अनुप्रिया के साथ उन की मां कृष्णा पटेल का ?ागड़ा शुरू हो गया. ?ागड़ा बढ़ा तो अपना दल 2 हिस्सों में बंट गया.

कृष्णा पटेल और उन की दूसरी बेटी पल्लवी पटेल ने अपनी अलग पार्टी बनाई. उन का गठबंधन समाजवादी पार्टी के साथ हुआ और 2022 के विधानसभा चुनाव में पल्लवी पटेल सिराथू विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुनी गईं. यह अनुप्रिया पटेल और पल्लवी पटेल केवल कुर्मी नेता बन कर रह गईं. डाक्टर सोनेलाल पटेल पूरे पिछड़े समाज की बात करते थे. बिहार में नीतीश कुमार कुर्मी बिरादरी से आते हैं लेकिन वे कुर्मी नेता के रूप में जाने जाते हैं. उन को तमाम दूसरी जातियों का भी समर्थन हासिल है.

यही वजह है कि दूसरे अगड़ेपिछड़े सभी नेता उन के पीछे चलने को मजबूर हैं. नीतीश के समय के ही लालू प्रसाद यादव अपनी जाति के ही नेता बन कर रह गए. अब उन के बेटे तेजस्वी यादव भी उसी तरह से चल रहे हैं. परिणाम यह हुआ कि लालू परिवार में भी आपसी मतभेद उभर आए.

लाभ के लालच में हाशिए पर हिंदी बोली के 2 सब से बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश और बिहार में मुलायम सिंह यादव और लालू प्रसाद यादव सब से बड़े नेता के रूप में उभरे. मंडल कमीशन लागू होने के बाद जो लाभ सभी पिछड़ी जातियों को मिलने वाला था, उस का एक बड़ा हिस्सा यादव और कुर्मी तक ही सीमित रह गया.

दूसरी पिछड़ी जातियों तक इस लाभ को पहुंचने नहीं दिया गया. ऐसे में पिछड़े वर्ग की दूसरी जातियों का लाभ भारतीय जनता पार्टी जैसे दलों ने उठाया. पिछड़े वर्ग यादव, कुर्मी और अति पिछड़ा जैसे कई टुकड़ों में बांट दिया गया. इस के बाद संख्या में ज्यादा होने के बाद भी पिछड़ा वर्ग पिछलग्गू ही बन कर रह गया है.

मंडल कमीशन लागू होने के बाद उस का सब से बड़ा लाभ यादवों के हिस्से में आया. पौराणिक ग्रंथों के हवाले से देखें तो राजा यदु का उल्लेख महाभारत, हरिवंश पुराणों जैसे विष्णु पुराण, भागवत पुराण और गरुड़ पुराण में मिलता है. इन ग्रंथों में राजा यदु को राजा ययाति और रानी देवयानी का सब से बड़ा पुत्र बताया गया है. कहा जाता है कि राजा यदु ने आदेश दिया था कि उन की आने वाली पीढि़यों को यादवों के नाम से जाना जाएगा. उन के वंश को यदुवंश के रूप में जाना जाएगा.

यदुवंशीय भीम सात्वत के वृष्णि आदि 4 पुत्र हुए व इन्हीं की कई पीढि़यों बाद राजा आहुक हुए, जिन के वंशज अभीर या अहीर कहलाए. इस से स्पष्ट होता है कि यादव व अभीर मूलतया एक ही वंश के क्षत्रिय थे. बाद के कालखंड में यादवों को पशुपालन से जोड़ा जाता था और इस कारण ये उस समय प्रचलित जातिव्यवस्था से बाहर थे.

यादव समाज के नेता और बुद्धिजीवी महाराजा यदु और गोपालक योद्धा कृष्ण के वंशज होने का दावा करते हैं. 19वीं शताब्दी के अंत में विट्ठल कृष्णजी सचिन खेडकर नाम के एक स्कूली शिक्षक हुए, जिन्होंने यादवों के इतिहास के बारे में दावा किया है कि यादव अहीर जनजाति के वंशज थे और आधुनिक यादव उसी समुदाय से हैं जिन्हें महाभारत और पुराणों में राजवंशों के रूप में जाना जाता है.

अंतिम अहीर राजवंश के वंशज राव बहादुर बलवीर सिंह के नेतृत्व में 1910 में अहीर यादव क्षत्रिय महासभा की स्थापना की गई थी. अहीर यादव क्षत्रिय महासभा ने दावा किया था कि महाराज यदु और भगवान कृष्ण के वंशज होने होने के नाते यादव वर्णव्यवस्था में क्षत्रिय हैं. यादव एक व्यापक शब्द है जिस में कई उपजातियां शामिल हैं जो विभिन्न प्रदेशों में अलगअलग नाम से जानी जाती हैं और जिन का सामान्य पारंपरिक कार्य चरवाहे, गोपालक और दुग्ध विक्रेता का था.

देशभर में हैं अलगअलग नाम

यादव अलगअलग नामों से पूरे देश में फैले हैं. चूंकि इन में एकता का अभाव है, सो, ये दूसरे लोगों की जानकारी नहीं रखते हैं. सोशल मीडिया से अब जागरूकता आ रही है. कर्नाटक में जब सिद्धारमैया मुख्यमंत्री बने तो लखनऊ के रहने वाले राकेश यादव ने सिद्धारमैया को यदुवंशी चरवाहा जाति का यादव लिखा.

यादव पंजाब और गुजरात में अहीर, गोवा और महाराष्ट्र में गवली, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में गल्ला, तमिलनाडु में कोनर, केरल में मनियार के नाम से जाने जाते हैं. यादवों का पारंपरिक पेशा चरवाहा, गोपालक और दुग्ध विक्रेता माना जाता है. बदलते दौर में आज यादव समुदाय के लोग शिक्षा, कला, प्रशासनिक सेवा, फिल्म और टैलीविजन, खेल, साहित्य, राजनीति, आदि में सक्रिय हैं और अपनी सफलता की कहानी लिख रहे हैं.

यादवों को भारत के राज्यों, जैसे बिहार, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, ?ारखंड, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में अति पिछड़ा वर्ग यानी ओबीसी श्रेणी में शामिल किया गया है. इस के साथ ही साथ, नेपाल और मौरिशस में भी यादवों की आबादी है. पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, ओडिशा, ?ारखंड, दिल्ली हिमाचल प्रदेश आदि में भी यादवों की ठीकठाक आबादी है.

प्रभावशाली रहे हैं यादव नेता

राजनीति में देश की आजादी के बाद यादव वर्ग कांग्रेस के साथ रहा. इस के बाद जयप्रकाश आंदोलन के बाद यादव नेता शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव समाजवादी आंदोलन से जुड़े और कांग्रेस हटाओ मुहिम में जुट गए. इस के बाद 1989 में विश्वनाथ प्रताप सिंह ने मंडल कमीशन लागू किया जिस के बाद आरक्षण का लाभ पिछड़ी जातियों को मिलना शुरू हुआ. इस के बाद यादव नेता शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और मुलायम सिंह यादव बड़ी राजनीतिक ताकत के रूप में उभरे. आज के दौर में केवल यादव नेता होने के कारण उत्तर प्रदेश और बिहार में सत्ता के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव और बिहार में तेजस्वी यादव अपनी जाति से बाहर निकल कर पिछड़ी जातियों का वैसा समूह बनाने में सफल नहीं हो रहे हैं जैसा मुलायम, लालू और शरद यादव ने बनाया था. पिछड़ा वर्ग के दूसरी जातियों के अलग होने से यादवों की ताकत घटी है. पिछड़ा वर्ग की दूसरी सब से बड़ी बिरादरी कुर्मी के साथ इन का संबंध अच्छा नहीं रहा है. जिस के कारण ताकतवर और प्रभावी होने के बाद भी ये कमजोर और अलगथलग पड़े हैं.

मेहनती और ईमानदार हैं कुर्मी

गांव में खेत की फसल को देख कर यह अनुमान लगाना आसान होता है कि यह खेत कुर्मी का है. उस के खेत की फसल अलग ही दिखती है. कुर्मी पूरे देश में अलगअलग जगहों पर अलगअलग पहचान के साथ रह रहे हैं. ?ारखंड और पश्चिम बंगाल में तो इन को दलित वर्ग में शामिल करने का आंदोलन भी चल रहा है. कुर्मी मूलरूप से किसान जाति है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था से जुड़ी है. बदले दौर में यह शहरों में भी रहने लगे हैं. कुर्मी भी तमाम जातियों में बंटे हैं. इस के बाद भी ये यादव के मुकाबले कम कट्टर हैं.

कुर्मी बिरादरी में वर्मा, सचान, गंवार, कटियार, बैसवर, जैसवार, महतो, प्रसाद, सिन्हा, सिंह, प्रधान, बघेल, चौधरी, पाटीदार, कुनबी, कुमार, पाटिल, मोहंती, कनौजिया जैसी उपजातियां भी हैं. बंगाल प्रैसिडैंसी के समय में कुर्मियों और धनुकों जैसी समान जातियों को कृषि गुलामों या दासों के तौर पर खरीदा जाता था. 19वीं और 20वीं शताब्दी में कुर्मी जातियों ने सब से पहले ऊंची जाति के तौरतरीके अपनाने की शुरुआत की थी. कुर्मी शब्द कृषि-कर्मी से हुआ है. एक दूसरा वर्ग मानता है कि कुर्मी कोमी शब्द से बना है जिस का अर्थ है हल चलाने वाला.

इतिहास बताता है कि पश्चिमी बिहार में कुर्मियों ने सत्तारूढ़ उज्जैनिया राजपूतों के साथ गठबंधन किया था. 1712 में मुगलों के खिलाफ विद्रोह करने पर कुर्मी समुदाय के कई नेताओं ने उज्जैनिया राजा कुंवर धीर के साथ कंधे से कंधा मिला कर लड़ाई लड़ी थी. उन के विद्रोह में शामिल होने वाले कुर्मी समुदाय के नेताओं में नीमा सीमा रावत और ढाका रावत शामिल थे.

18वीं शताब्दी में कुर्मियों को मुसलिमों द्वारा काफी सस्ते दाम पर जंगल को साफ कर के खेत बनाने का कार्य मिलता था. जैसे, आजादी के बाद पंजाब के रहने वालों को उत्तर प्रदेश और दूसरे हिस्सों में जमीन दी गई थी. जब जमीन में अच्छे से पैदावार होने लगती थी तब उस जमीन का किराया बढ़ा दिया जाता था. गांव की ऊंची जातियों को हल चलाना पसंद नहीं था. लिहाजा, कुर्मियों की आय बढ़ने लगी और उन में संपन्नता आती गई.

कई कुर्मी ऐसे भी हैं जो सरनेम का इस्तेमाल ही नहीं करते हैं. भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, ओडिशा, महाराष्ट्र, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल, ?ारखंड, गोवा और कर्नाटक में इस समुदाय के लोग हैं. बिहार के अलावा छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कुर्मी समुदाय से आते हैं. कई राज्यों में कुर्मी वर्ग का आरक्षण स्टेटस ओबीसी है. वहीं, गुजरात में कुर्मी सामान्य वर्ग में आते हैं, जहां वे ओबीसी में आने की मांग कर रहे हैं. वहीं, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में कुर्मी को कुड़मी कहा जाता है और वे एसटी में शामिल होना चाहते हैं.

यूपी और बिहार की सिविल सेवाओं और मैडिकल कालेजों व विश्वविद्यालयों में कुर्मी समाज को बेहतर प्रतिनिधित्व मिला है. साथ ही बिहार, यूपी, ओडिशा, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ में कुर्मी वर्ग की राजनीतिक मजबूती भी है. यहां की राजनीति में कुर्मी वर्ग के कई नेता रहे हैं, जिन में शिव पूजन सिंह, पूर्व सांसद और राज्यपाल सिद्धेश्वर प्रसाद, पूर्व मुख्यमंत्री सतीश प्रसाद सिंह आदि शामिल हैं. रामस्वरूप वर्मा यूपी में चौधरी चरण सिंह की पहली सरकार (अप्रैल 1967) में वित्त मंत्री रहे. वहीं, सतीश प्रसाद सिंह

4 दिनों तक प्रदेश के सीएम रहे थे. उत्तर प्रदेश में सोनेलाल पटेल और अब उन की बेटियां केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल और सपा विधायक पल्लवी पटेल अहम नेताओं में से हैं.

उत्तर प्रदेश में कुर्मी समाज के लोग 6 फीसदी हैं, जो ओबीसी में 35 फीसदी के करीब हैं. इन की प्रदेश में 48 विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी समुदाय के मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी समाज का प्रभाव 25 जिलों में है, लेकिन 16 जिलों में 12 फीसदी से अधिक सियासी ताकत रखते हैं. पूर्वांचल से ले कर बुदेलखंड और अवध व रुहेलखंड में ये किसी भी दल का सियासी खेल बनाने या बिगाड़ने की स्थिति में हैं. इस समाज को एक बडी राजनीतिक ताकत के रूप में देखा जाता है.

कुर्मियों को पटेल, गंगवार, सचान, कटियार, निरंजन, चौधरी और वर्मा जैसे उपनाम से जाना जाता है. रुहेलखंड में कुर्मी गंगवार और वर्मा से पहचाने जाते हैं तो कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में कुर्मी, पटेल, कटियार, निरंजन और सचान कहलाते हैं. अवध और पश्चिमी यूपी के क्षेत्र में कुर्मी समाज के लोग वर्मा, चौधरी और पटेल नाम से जाने जाते हैं.

रामपूजन वर्मा, रामस्वरुप वर्मा, बरखू राम वर्मा, बेनी प्रसाद वर्मा, सोनेलाल पटेल, संतोष गंगवार, भगवत चरण गंगवार, ओमप्रकाश सिंह, पंकज चौधरी, राकेश सचान, मुकुट बिहारी वर्मा, लालजी वर्मा, राकेश वर्मा, आर पी सिंह, विनय कटियार, प्रेमलता कटियार, स्वतंत्रदेव सिंह, ज्योति निरंजन, आर के पटेल, बालकुमार पटेल, नरेश उत्तम पटेल, रामपूजन पटेल यूपी की राजनीति में कुर्मी समाज के दिग्गज नेता हैं.

यूपी में संत कबीर नगर, महाराजगंज, कुशीनगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली व लखीमपुर जिलों में इन की ज्यादा आबादी है. यहां की विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय जीतने की स्थिति में है या फिर किसी को जिताने की ताकत रखता है. इस तरह से देखें तो अगर कुर्मी व यादव आपस में मिल जाएं व दूसरी पिछड़ी जातियों को अपने साथ ले लें तो ये सत्ता के प्रमुख दावेदार होंगे.

आपस में नहीं करते शादियां

राजनीतिक रूप से अलग होने के कारण ये सामाजिक और पारिवारिक रूप से भी एकसाथ नहीं रहते हैं. पिछड़ा वर्ग में होने के बाद भी ये आपस में शादी नहीं करते हैं. अगर कोई लड़कालड़की शादी कर भी ले तो उस को जातीय समाज स्वीकार नहीं करता है. यादव और कुर्मी दोनों ही अपनीअपनी जाति के सामूहिक विवाह कराते हैं. अगर कुर्मी यादव से शादी कराना चाहे तो उतनी ही दिक्कत है जितनी अगड़ी और पिछड़ी जाति में होती है.

यादव या कुर्मी अगड़ी जाति में शादी करे तो एक बार स्वीकार हो सकती है. जैसे, अखिलेश यादव की पत्नी पहाड़ी ठाकुर हैं. मुलायम सिंह यादव की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता थीं. कुर्मी, यादव के उदाहरण नहीं मिलते. अगर इन की शादी होती है तो इस को छिपाया भी जाता है.

बिहार के बेतिया में कुर्मी जाति की लड़की कृति ने नितेश यादव के साथ शादी की. यह बात कृति के घर वालों को सहन नहीं हुई. वे नितेश को धमकी देने लगे. पुलिस के हस्तक्षेप के बाद मामला सुल?ा. मधुबनी जिले के मनोज यादव ने कुर्मी जाति की रूबी कुमारी के साथ शादी की तो यहां भी मामला तभी सुल?ा जब पुलिस और कोर्ट ने हस्तक्षेप किया. समाजवादी आंदोलन की शुरुआत जाति छोड़ो अभियान से हुई थी. उस दौर में इंटरकास्ट मैरिज का चलन बढ़ा था. राजनीतिक ताकत भी बढ़ी थी.

मंडल कमीशन के बाद पिछड़ी जातियों में एकदूसरे के बीच श्रेष्ठता का भाव आया, जिस से राजनीतिक ताकत घटी और जातीयता बढ़ी, जिस का प्रभाव घरघर तक पड़ा. यादव और कुर्मी दोनों ही बिरादरियों में कमजोर वर्ग के लड़केलड़कियों के लिए बड़े पैमाने पर सामूहिक विवाह का आयोजन करना पड़ रहा है.

राजनीति का हमारे घर तक असर होता है. जो लोग जातीय रूप से कट्टर होते जाते हैं वे अपने घर में भी कट्टरता करते हैं जिस से लड़केलड़कियों को गैरबिरादरी में शादी की आजादी नहीं है. कई बार अच्छे रिश्तों के लिए कम उम्र में शादियां कर दी जाती हैं. पढ़ीलिखी और थोड़ी बड़ी लड़की के लिए योग्य लड़का अपनी जाति में मिलना कठिन हो जाता है.

विधवा के हक- धर्म या जाति का जोर नहीं

विशाल की पहली पसंद थी, नेहा. दोनों कालेज में साथ पढ़ते थे. पढ़ाई के बाद उन्होंने एक  ही कंपनी में काम शुरू किया. धीरेधीरे उन का प्रेम परवान चढ़ा और परिवारजनों की सहमति से उन्होंने विवाह कर लिया. नेहा विवाह के बाद भी कामकाजी बने रहना चाहती थी किंतु विशाल व उस के घर वालों को यह स्वीकार न था. आखिर नेहा को उन की बात माननी पड़ी. उस ने घरगृहस्थी को ही कैरियर मान लिया. वह घर की सब से बड़ी बहू थी और उसे इस बात का एहसास था. अपेक्षाओं की कसौटी पर वह खरी उतरी. बदले में उसे भी विशाल के परिवार से भरपूर प्यार व सम्मान मिला. सासससुर व देवरों का उस के प्रति अच्छा व्यवहार था. कुल मिला कर सब अत्यंत प्रसन्न व संतुष्ट थे.

अचानक एक दिन दुर्घटना घटी और विशाल चल बसा. सब देखते रह गए. ससुर सदमा बरदाश्त नहीं कर पाए. वे लकवे के शिकार हो गए. नेहा तो मानसिक संतुलन ही खो बैठी थी. वह स्पंदनहीन पत्थर की तरह बन गई. सास ने हालात को संभालते हुए उसे कुछ दिनों के लिए पीहर भिजवा दिया. नेहा को संभलने में कुछ समय लगा. जब वह संभली तो उसे ससुरालजनों की चिंता हुई. उस ने वापस ससुराल लौटने का निर्णय ले लिया ताकि सासससुर की देखभाल कर सके. उस ने योजना बनाई थी कि वह घर पर ही छोटा सा बुटीक खोल लेगी ताकि आत्मनिर्भर हो सके.

नेहा के देवरों को उस का लौट आना पसंद न था. उन्होंने उसे यह कह कर रोक दिया,ख् ‘जब पति ही नहीं रहा तो वापस इस घर में आने से क्या फायदा.’ यह सुन कर नेहा को धक्का लगा. उस के लिए यह दूसरी दुर्घटना थी. नेहा के सासससुर और देवर चाहते थे कि वह अपने पिता की संपत्ति में से हिस्सा ले और हमेशा के लिए पीहर में ही रहे. नेहा नहीं चाहती थी कि बात इतनी आगे बढ़े. उसे सम?ा नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. आखिर उसे सम?ा आया कि विशाल की पत्नी होने के नाते उसे ससुराल से अपने वाजिब अधिकार हासिल करने चाहिए. तब उस ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत ससुराल वालों पर केस दर्ज करवा दिया. वहां ससुराल वालों के तर्क नहीं चले और न्यायालय के आदेश से उन्हें नेहा को उस के हिस्से की संपत्ति व अधिकार देने पड़े.

स्पैशल मैरिज एक्ट की सहूलियत

डाक्टर कमल हिंदू था और उस की पत्नी डाक्टर साहेला मुसलिम थी. वे दोनों साथ पढ़ते थे और उन्होंने विवाह कर लिया. दोनों के परिवारजनों ने इस विवाह का भरपूर विरोध किया. चूंकि उन की शादी काननून पंजीकृत थी, इसलिए वे कुछ भी नहीं कर सके. दोनों ने नौकरी के बजाय चंडीगढ़ में अपना क्लिनिक खोल लिया.

शीघ्र ही उन का क्लिनिक चल निकला. उस का विस्तार करते हुए उन्होंने उसे एक प्रतिष्ठित हौस्पिटल का रूप दे दिया. कुछ दिनों बाद भगवा गैंग वाले आए और हल्ला मचाने लगे पर फिर कोर्ट से और्डर ला कर उन्होंने जता दिया कि धर्म से ज्यादा जरूरी प्यार है. लव जिहाद एक फालतू का शिगूफा है जो बेटों की खातिर उठाया जा रहा है. स्पैशल मैरिज एक्ट में 1956 से ही 2 अलग धर्मों वालों को शादी को विधिवत बताया जा चुका है. हिंदूमुसलिम विवाह का विरोध गुंडेलफंगे कर रहे हैं जिन्हें राजनीतिक रोटियां तोड़नी हैं.

हुआ यह कि दोनों पतिपत्नी कोविड के दिनों में मरीजों की जीजान से सेवा कर रहे थे पर कमल को कोविड हो गया. कमल की मौत हो गई और साहेला को भी स्वस्थ होने में करीब 4 माह का समय लग गया. जब तक वह ठीक हुई, तब तक बहुतकुछ बदल चुका था. कमल के छोटे भाई डाक्टर अनुपम ने 4-5 महीने का समय पा कर अस्पताल पर कब्जा जमा लिया था. भाई और भाभी की अनुपस्थिति में वह उस का मालिक बन बैठा था. अस्पताल के कर्मचारियों को उस ने अपने साथ मिला लिया. उन की सहायता से उस ने साहेला को अस्पताल में प्रवेश तक नहीं करने दिया. बेचारी साहेला ठगी सी रह गई.

वह पुलिस के पास गई पर वहां भी कुछ नहीं हुआ. आखिरकार साहेला ने न्यायालय की शरण ली. वहां अनुपम अस्पताल की मिल्कियत के सुबूत पेश नहीं कर पाया. नतीजतन, दूसरीतीसरी पेशी में ही न्यायालय ने पुलिस और प्रशासन को आदेश दिया कि अनुपम को बेदखल कर, अस्पताल साहेला के सुपुर्द कर दिया जाए.

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हक

इस तरह साहेला ने अस्पताल की जंग तो जीत ली किंतु पुश्तैनी संपत्ति के मामले में अनुपम और उस के घरवालों के तर्क विचित्र थे. उन का कहना था कि साहेला जन्म से मुसलिम है, इस कारण वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत हिस्सा नहीं मांग सकती. कोर्ट ने इस दलील को ठुकरा दिया. उस का कहना था कि यह सही है कि साहेला ने मुसलिम परिवार में जन्म लिया किंतु अब वह डाक्टर कमल की विधवा पत्नी है. उन का विवाह कानून के अनुसार ‘विशेष विवाह अधिनियम’ के अंतर्गत पंजीकृत है और वह पूरी तरह से वैध है. दूसरी ओर कमल ने मुसलिम धर्म स्वीकार नहीं किया था और साहेला उस के साथ पत्नीवत रह रही थी. इस तरह किसी भी दृष्टिकोण से उन्हें मुसलिम दंपती नहीं माना जा सकता. जिस संपत्ति में साहेला ने हिस्सा चाहा है वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में आती है और उस पर उस के पति का वैध अधिकार बनता है. ऐसी स्थिति में उस की पत्नी को किसी भी कानून द्वारा उस के स्वाभाविक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता.

संपत्ति पर विधवा बहू का अधिकार

भारतीय महिलाओं के साथ अकसर ऐसा होता है. यदि पति की मृत्यु हो गई तो बहू को ससुराल में प्रताड़ना मिलने लगती है, जैसे हादसे की जिम्मेदार वह ही हो. ऐसे में पति के हक की संपत्ति की बात करना बेमानी सी लगने लगती है. परिवारजन संपत्ति में पोते को तो हिस्सा देने को तैयार हो जाते है किंतु विधवा बहू को हिस्सा देने से मुकर जाते हैं. उसे यह कह कर टाल दिया जाता है कि ‘तुम हमारे बेटे के पीछे हो, अब जब बेटा ही नहीं रहा तो तुम्हारे को संपत्ति में कैसा अधिकार.’ या वे यह कह देते हैं -संपत्ति पर हमारे बेटे का हक है, तुम्हारा क्या लेनादेना. जाओ, अपने पिता की संपत्ति की वारिस बनो.

कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसे मामलों में विधवा बहू को पति की निजी संपत्ति व पुश्तैनी उत्तराधिकार से बेदखल किए जाने के हर संभव प्रयास किए जाते है. जबकि कानूनी रूप से पति के गुजर जाने के बाद न केवल पति की संपत्ति वरन ससुर की संपत्ति में भी बहू का पूरा अधिकार होता है.

ससुर की संपत्ति के मामले में शर्त यही है कि वह पैतृक संपत्ति होनी चाहिए. यदि वह पैतृक संपत्ति है तो किसी भी हालत में उसे उस पर मिलने वाले अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता. यह अलग प्रश्न है कि उस संपत्ति में से विधवा बहू को कितना अधिकार मिल पाएगा. इस का फैसला परिवार के आकारप्रकार पर निर्भर करता है और वह उतना ही मिल पाएगा जितना अधिकार पति के जीवित रहते उस को मिलता.

जहां तक सासससुर द्वारा स्वयं अर्जित की गई संपत्ति की बात है, उस में भी बहू का अधिकार बनता है. मगर उस की एक अनिवार्य शर्त है. वह यह कि साससुसर ने अपने जीवनकाल में संपत्ति की वसीयत किसी अन्य के नाम से नहीं की हो. ऐसी स्थिति में वह संपत्ति स्वत: पुश्तैनी संपत्ति में परिवर्तित हो जाती है. इस के विपरीत यदि वे अपनी निजी संपत्ति को वसीयत के माध्यम से किसी अन्य को दे देते हैं तो वह संपत्ति उस व्यक्ति को अंतरित हो जाती है चाहे वह व्यक्ति उस परिवार का सदस्य हो अथवा नहीं.

कहने का तात्पर्य यह है कि यदि ससुर या सास जिस के भी नाम से संपत्ति है, यदि मृत्यु से पूर्व उस की वसीयत द्वारा वे किसी अन्य को उस का उत्तराधिकारी नामित कर देते हैं तो वह संपत्ति, पुश्तैनी संपत्ति नहीं रह जाती. यदि वे ऐसा नहीं करते तब ही संपत्ति पुस्तैनी संपत्ति की श्रेणी में मानी जाने योग्य होती है. इस तरह पुत्र अथवा उस की अनुपस्थिति में पुत्र की पत्नी या उस के जन्म लिए हुए पुत्र उस अनामित संपत्ति के उत्तराधिकारी माने जाते हैं.

इस तरह ससुर की अनामित संपत्ति में से विधवा बहू को उस का कितने प्रतिशत हिस्सा मिलेगा, यह उस संपत्ति के आकलन और दावेदारी की संख्या पर निर्भर करता है. यदि बहू के बच्चे हैं तो वे भी संपत्ति के दावेदार माने जाएंगे मगर उन के अधिकार के लिए अलग से दावा पेश करना होगा. जन्मदाता व नैसर्गिक अभिभावक होने के नाते उन के अधिकार की संपत्ति के लिए माता दावेदार बनेगी और वह ही उस संपत्ति की संरक्षिका भी होगी. यदि वह पागल, दिवालिया या कानूनन वर्जित श्रेणी में नहीं है तो उस के होते हुए किसी अन्य को संतति और उस के हिस्से की संपत्ति के संरक्षण का अधिकार नहीं दिया जा सकता.

बच्चे का जन्म लेना अनिवार्य

यही स्थिति मृत पति के भविष्य में जन्म लेने वाले यानी कि अजन्मे बच्चे के मामले में भी है. बस, उस में मुख्य शर्त यह ही रहती है कि वह बच्चा वाकई जन्म ले. उस के जन्म लेने तक उस का हिस्सा न्यायालय सुरक्षित रखना चाहेगा. जन्म से पहले बच्चे के हिस्से को नहीं दिलवाने का मुख्य कारण यह ही है कि बच्चे के नाम पर संपत्ति प्राप्त कर, बाद में कहीं उस की मां गर्भ का समापन (टर्मिनेशन) ही न करवा दे. कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चे का जन्म लेना और जीवित रहना अनिवार्य शर्त है.

यह आवश्यक नहीं है कि पति की मृत्यु के बाद पत्नी ससुराल में रहे तब ही उसे संपत्ति में से हिस्सा मिल पाएगा. पति की मृत्यु के बाद वह कहीं भी जा कर रह सकती है. वैसे भी इस बात की पर्याप्त संभावना बनती है कि रोजगार की तलाश में वह अन्यत्र जाने को विवश हो जाए. इस के अतिरिक्त यह भी संभव है कि पति के नहीं रहने पर वह स्वयं के मातापिता के साथ रहने लग जाए. तात्पर्य यही है कि चाहे जो भी स्थिति हो, यदि विधवा बहू ने दूसरा विवाह नहीं किया है तो उसे ससुराल की संपत्ति में से उस का वाजिब हिस्सा अवश्य मिलेगा. यदि जरूरत हो तो इस के लिए उसे हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत न्यायालय में दावा प्रस्तुत करना चाहिए.

इतना ही नहीं, विधवा बहू ससुर की संपत्ति का विभाजन किए जाने का दावा भी पेश कर सकती है, बशर्ते कि वह परिवार अविभाजित हिंदू परिवार अधिनियम के तहत संचालित हो. यदि उस का दिवंगत पति किसी व्यवसाय व संस्थान में प्रोप्रराइटर अथवा पार्टनर की हैसियत से कार्यरत था तो उस में से भी वह अपना हिस्सा प्राप्त कर सकती है. वह चाहे तो पति की मृत्यु के बाद उस व्यवसाय को विभाजित किए जाने या सा?ोदारी को तोड़ कर अलग होने अथवा नई सा?ादारी बनाए जाने की भी मांग कर सकती है. उसे यह कह कर संपत्ति या व्यवसाय में से हिस्सा देने या उस को विभाजित करने से नहीं रोका जा सकता कि उस के पति की मृत्यु हो गई है और उस पर उस की विधवा पत्नी का अधिकार नहीं रह गया है.

वैध वसीयत की मान्यता

यदि पति और ससुर ने वसीयत छोड़ी है और वह पंजीकृत है अथवा जिसे न्यायालय प्रभावी एवं वैध वसीयत मानता है तो, उस के अनुसार, उस (निजी) संपत्ति अथवा व्यवसाय का बंटवारा होगा. मगर यह स्वायत्तता उन्हें केवल उस संपत्ति के मामले में ही होगी जो स्वअर्जित हो. यदि संपत्ति पति या ससुर को उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है तो उस में से विधवा पत्नी-बहू को उतना हिस्सा अवश्य मिलेगा जिस पर उस के पति का उस के जीवनकाल में अधिकार होता.

सो, यों हार मानने से काम नहीं चलता. पति के न रहने पर भी स्त्री को सम्मानपूर्वक ससुराल में रहने व जीने का अधिकार है पर उपयुक्त यह है कि ससुराल में सब के साथ सामंजस्य बैठा कर रहा जाए. उन्हें इतना प्रेम व सम्मान जरूर दें जिस के वे हकदार हैं. यदि ऐसा किया तो वे विधवा बहू और बच्चों के बिना रहने की बात सपने में भी नहीं सोचेंगे. वे इन्हें बुढ़ापे का सहारा मानने लगेंगे और उन में उन्हें दिवंगत पुत्र की छवि नजर आने लगेगी. इस तरह यदि बहू  ‘बुढ़ापे की लाठी’ बनी तो उसे कभी अधिकार की लड़ाई लड़ने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

अधिकतर देखने में यह आता है कि पति की मृत्यु के बाद बहू स्वयं को ससुराल में बेगानी सम?ाने लगती है. वह बच्चों को ले कर पीहर को आश्रय स्थल बनाने की सोचती है. इस कारण न तो वह ससुराल को आश्रयस्थल बनाती है और न ही उन का आश्रय स्वयं बन पाती है. ऐसी बहुओं को ससुराल में पराएपन से रूबरू होना पड़ता है जिस का दोष वे ससुराल वालों पर थोपती हैं. नतीजतन, वे भी उन्हें उन के अधिकार से वंचित करने की सोचने को विवश हो जाते हैं. आखिर, कोई भी स्वाभिमानी परिवार नहीं चाहता कि घर की बहू स्वामित्व का ?ांडा पीहर में बैठ कर बुलंद करे और उस के माध्यम से उस की संपत्ति उन के हाथों में चली जाए.

Raksha Bandhan : साहिल ने कैसे निभाया अपने भाई होने का फर्ज?

साहिल आज काफी मसरूफ था. सुबह से उठ कर वह जयपुर जाने की तैयारी में लगा था. उस की अम्मी उस के काम में हाथ बंटा रही थीं और समझा रही थीं, ‘‘बेटे, दूर का मामला है, अपना खयाल रखना और खाना ठीक समय पर खा लिया करना.’’

साहिल अपनी अम्मी की बातें सुन कर मुसकराता और कहता, ‘‘हां अम्मी, मैं अपना पूरा खयाल रखूंगा और खाना भी ठीक समय पर खा लिया करूंगा. वैसे भी अम्मी अब मैं बड़ा हो गया हूं और मुझे  अपना खयाल रखना आता है.’’

साहिल को इंटरव्यू देने जयपुर जाना था. उस के दिल में जयपुर घूमने की चाहत थी, इसलिए वह 10-15 दिन जयपुर में रहना चाहता था. सारा सामान पैक कर के साहिल अपनी अम्मी से विदा ले कर चल पड़ा.

अम्मी ने साहिल को ले कर बहुत सारे ख्वाब देखे थे. जब साहिल 8 साल का था, तब उस के अब्बा बब्बन मियां का इंतकाल हो गया था. साहिल की अम्मी पर तो जैसे बिजली गिर गई थी. उन के दिल में जीने की कोई तमन्ना ही नहीं थी, लेकिन साहिल को देख कर वे ऐसा न कर सकीं.

अम्मी ने साहिल की अच्छी परवरिश को ही अपना मकसद बना लिया था. इसी वजह से साहिल को कभी अपने अब्बा की कमी महसूस नहीं हुई थी. तभी तो साहिल ने अपनी अम्मी की इच्छाओं को पूरा करने के लिए एमए कर लिया था और अब वह नौकरी के सिलसिले में इंटरव्यू देने जयपुर जा रहा था.

साहिल को विदा कर के उस की अम्मी घर का दरवाजा बंद कर घर के कामों में मसरूफ हो गईं. उधर साहिल भी अपने शहर के बस स्टैंड पर पहुंच गया.

जयपुर जाने वाली बस आई, तो साहिल ने बस में चढ़ कर टिकट लिया और एक सीट पर बैठ गया. साहिल की आंखों से उस का शहर ओझल हो रहा था, पर उस की आंखोंमें अम्मी का चेहरा रहरह कर सामने आ रहा था.

अम्मी ने साहिल को काफी मेहनत से पढ़ायालिखाया था, इसलिए साहिल ने भी इंटरव्यू के लिए बहुत अच्छी तैयारी की थी. बस के चलतेचलते रात हो गई थी. ज्यादातर सवारियां सो रही थीं. जो मुसाफिर बचे थे, वे ऊंघ रहे थे.

रात के अंधेरे को रोशनी से चीरती हुई बस आगे बढ़ी जा रही थी. एक जगह जंगल में रास्ता बंद था. सड़क पर पत्थर रखे थे. ड्राइवर ने बस रोक दी. तभी 2-3 बार फायरिंग हुई और बस में कुछ लुटेरे घुस आए.

इस अचानक हुए हमले से सभी मुसाफिर घबरा गए और जान बचाते हुए अपना सारा पैसा उन्हें देने लगे. एक लड़की रोरो कर उन से दया की भीख मांगने लगी. वह बारबार कह रही थी, ‘‘मेरे पास थोड़े से रुपयों के अलावा कुछ नहीं है.’’

मगर उन जालिमों पर उस की मासूम आवाज का कुछ असर नहीं हुआ. उन में से एक लुटेरा, जो दूसरे सभी लुटेरों का सरदार लग रहा था, एक लुटेरे से बोला, ‘‘अरे ओ कृष्ण, बहुत बतिया रही है यह लड़की. अरे, इस के पास देने को कुछ नहीं है, तो उठा ले ससुरी को और ले चलो अड्डे पर.’’ इतना सुनते ही एक लुटेरे ने उस लड़की को उठा लिया और जबरदस्ती उसे अपने साथ ले जाने लगा.

वह डरी हुई लड़की ‘बचाओबचाओ’ चिल्ला रही थी, पर किसी मुसाफिर में उसे बचाने की हिम्मत न हुई. साहिल भी चुप बैठा था, पर उस के दिल के अंदर से आवाज आई, ‘साहिल, तुम्हें इस लड़की को उन लुटेरों से छुड़ाना है.’

यही सोच कर साहिल अपनी सीट से उठा और लुटेरों को ललकारते हुए बोला, ‘‘अरे बदमाशो, लड़की को छोड़ दो, वरना अच्छा नहीं होगा.’’ इतना सुनते ही उन में से 2-3 लुटेरे साहिल पर टूट पड़े. वह भी उन से भिड़ गया और लड़की को जैसे ही छुड़ाने लगा, तो दूसरे लुटेरे ने गोली चला दी. गोली साहिल की बाईं टांग में लगी.

साहिल की हिम्मत देख कर दूसरे कई मुसाफिर भी लुटेरों को मारने दौड़े. कई लोगों को एकसाथ आता देख लुटेरे भाग खड़े हुए, पर तब तक साहिल की टांग से काफी खून बह चुका था. लिहाजा, वह बेहोश हो गया.

ड्राइवर ने बस तेजी से चला कर जल्दी से साहिल को एक अस्पताल में पहुंचा दिया. सभी मुसाफिर तो साहिल को भरती करा कर चले गए, पर वह लड़की वहीं रुक गई. डाक्टर ने जल्दी ही साहिल की मरहमपट्टी कर दी.

कुछ देर बाद जब साहिल को होश आया, तो सामने वही लड़की खड़ी थी. साहिल को होश में आता देख कर वह लड़की बहुत खुश हुई. साहिल ने उसे देख राहत की सांस ली कि लड़की बच गई. पर अचानक इंटरव्यू का ध्यान आते ही उस के मुंह से निकला, ‘‘अब मैं जयपुर नहीं पहुंच सकता. मेरे इंटरव्यू का क्या होगा?’’

लड़की उस की बात सुन कर बोली, ‘‘क्या आप जयपुर में इंटरव्यू देने जा रहे थे? मेरी वजह से आप की ये हालत हो गई. मैं आप से माफी चाहती हूं. मुझे माफ कर दीजिए.’’

‘‘अरे नहीं, यह आप क्या कह रही हैं? आप ने मेरी बात का गलत मतलब निकाल लिया. अगर मैं आप को बचाने न आता, तो पता नहीं मैं अपनेआप को माफ कर भी पाता या नहीं. खैर, छोडि़ए यह सब. अच्छा, यह बताइए कि आप यहां क्यों रुक गईं? मुझे लगता है कि सभी मुसाफिर चले गए हैं.’’

लड़की ने कहा, ‘‘जी हां, सभी मुसाफिर रात को ही चले गए थे. आप के पास भी तो किसी को होना चाहिए था. अपनी जान की परवाह किए बिना आप ने मेरी जान बचाई. ऐसे में मेरा फर्ज बनता था कि मैं आप के पास रुकूं. मैं आप की हमेशा एहसानमंद रहूंगी.’’

‘‘यह तो मेरा फर्ज था, जो मैं ने पूरा किया. अच्छा, यह बताइए कि आप कल जयपुर जा रही थीं या कहीं और…?’’

इतना सुनते ही लड़की की आंखों में आंसू आ गए. वह बोली, ‘‘आप ने मेरी जान बचाई है, इसलिए मैं आप से कुछ नहीं छिपाऊंगी. मेरा नाम आरती है. मेरे पैदा होने के कुछ साल बाद ही पिताजी चल बसे थे. मां ने ही मुझे पाला है.

‘‘मेरे ताऊजी मां को तंग करते थे. हमारे हिस्से की जमीन पर उन्होंने कब्जा कर लिया. उन्होंने मेरी मां से धोखे में कोरे कागज पर अंगूठा लगवा लिया और हमारी जमीन उन के नाम हो गई.

‘‘एक महीने पहले मां भी मुझे छोड़ कर चल बसीं. मेरे ताऊजी मुझे बहुत तंग करते थे. उन के इस रवैए से तंग आ कर मैं भाग निकली और उसी बस में आ कर बैठ गई, जो बस जयपुर जा रही थी.

‘‘मैं ने 12वीं तक की पढ़ाई की है. सोचा था कि कहीं जा कर नौकरी कर लूंगी,’’ यह कह कर आरती चुप हो गई.

साहिल को आरती की कहानी सुन कर अफसोस हुआ. कुछ देर बाद आरती बोली, ‘‘अब आप को होश आ गया है, 2-4 दिन में आप बिलकुल ठीक हो जाएंगे. अच्छा तो अब मैं चलती हूं.’’

साहिल ने कहा, ‘‘पर कहां जाएंगी आप? अभी तो आप ने बताया कि अब आप का न कोई घर है, न ठिकाना. ऐसे में आप अकेली लड़की. बड़े शहर में नौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता.

‘‘वैसे, मेरा नाम साहिल है. मजहब से मैं मुसलमान हूं, पर अगर आप हमारे घर मेरी छोटी बहन बन कर रहें, तो मुझे बहुत खुशी होगी.’’

‘‘लेकिन, आप तो मुसलमान हैं?’’ आरती ने कहा. साहिल ने कहा, ‘‘मुसलमान होने के नाते ही मेरा यह फर्ज बनता है कि मैं किसी बेसहारा लड़की की मदद करूं. मुझे हिंदू बहन बनाने में कोई परहेज नहीं, अगर आप तैयार हों, तो…’’

आरती ने साहिल के पैर पकड़ लिए, ‘‘भैया, आप सचमुच महान हैं.’’

‘‘अरे आरती, यह सब छोड़ो, अब  हम अपने घर चलेंगे. अम्मी तो तुम्हें देख कर बहुत खुश होंगी.’’ एक हफ्ते बाद साहिल ठीक हो गया.  डाक्टर ने उसे छुट्टी दे दी.

साहिल आरती को ले कर अपने घर पहुंचा. दरवाजा खटखटाते हुए उस ने आवाज लगाई, तो उस की अम्मी ने दरवाजा खोला.

साहिल को देख कर वे चौंकीं, ‘‘अरे साहिल, सब खैरियत तो है न? तू इतनी जल्दी कैसे आ गया? तू तो 15 दिन के लिए जयपुर गया था. क्या बात है?’’

‘‘अरे अम्मी, अंदर तो आने दो.’’

‘‘हांहां, अंदर आ.’’

साहिल जैसे ही लंगड़ाते हुए अंदर आया, तो उस की अम्मी को और धक्का लगा, ‘‘अरे साहिल, तू लंगड़ा क्यों रहा है? जल्दी बता.’’

साहिल ने कहा, ‘‘सब बताता हूं, अम्मी. पहले मैं तुम्हें एक मेहमान से मिलवाता हूं,’’ कह कर साहिल ने आरती को आवाज दी. आरती दबीसहमी सी अंदर आई. खूबसूरत लड़की को देख कर साहिल की अम्मी का दिल खुश हो गया, पर अगले ही पल अपने को संभालते हुए वे बोलीं, ‘‘साहिल, ये कौन है? कहीं तू ने…

‘‘अरे नहीं, अम्मी. आप गलत समझ रही हैं.’’

अपनी अम्मी से साहिल ने जयपुर सफर की सारी बातें बता दीं.

सबकुछ सुन कर साहिल की अम्मी बोलीं, ‘‘बेटा, तू ने यह अच्छा किया. अरे, नौकरी तो फिर कहीं न कहीं मिल ही जाएगी, पर इतनी खूबसूरत बहन तुझे फिर न मिलती. बेटी आरती, आज से यह घर तुम्हारा ही है.’’

इतना सुनते ही आरती साहिल की अम्मी के पैरों में गिर पड़ी.

‘‘अरे बेटी, यह क्या कर रही हो. तुम्हारी जगह मेरे दिल में बन गई. अब तुम मेरी बेटी हो,’’ इतना कह कर अम्मी ने आरती को गले से लगा लिया.

साहिल एक ओर खड़ा मुसकरा रहा था. अब साहिल के घर में बहन की कमी पूरी हो गई थी. आरती को भी अपना घर मिल गया था. उस की आंखों में खुशी के आंसू छलक आए थे.

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Raksha Bandhan : लौंगलता- बारिश में लीजिए इस मिठाई का स्वाद, हमेशा रहेगा याद

भारत में लौंग की गिनती लोकप्रिय मसालों में होती है. इस की लोकप्रियता का ही प्रमाण इस के नाम पर बनने वाली लौंगलता है. लौंगलता की सब से बड़ी खासीयत उस में लौंग का इस्तेमाल है. लौंगलता को लौंग के जरिए बांधा जाता है, ताकि उस के अंदर भरे मेवे और मसाले बाहर न आ सकें.

बनाने की विधि

लौंगलता के कारीगर रमेशपाल कहते हैं कि 1 किलोग्राम मैदे से 100 के करीब लौंगलता बन जाती हैं.

इसे बनाने के लिए सब से पहले मैदे को ठीक तरह से गूंधा जाता है.

इस के बाद 1 किलोग्राम खोया, 200 ग्राम काजू, 1 ग्राम केसर और 50 ग्राम किशमिश को मिला कर अंदर भरने की सामग्री तैयार की जाती है.

फिर 1 किलोग्राम चीनी ले कर चाशनी तैयार की जाती है.

मैदे से गोल आकार की पूड़ी बना कर उस के अंदर मेवा भर दिया जाता है.

इस के बाद पूड़ी को मोड़ कर सही आकार देते हैं. मोड़ते समय परत दर परत हलका घी लगा देते हैं, जिस से परतें आपस में मिलती नहीं हैं.

परतें खुले नहीं, इस के लिए लौंग से उन्हें फंसा दिया जाता है. 

तैयार लौंगलताओं को घी में हलका भूरा होने तक तल लेते हैं. इस के बाद उन्हें चीनी की चाशनी में डाल कर निकाल लेते हैं.

ऊपर पिस्ता डाल कर लौंगलताओं को सजा देते हैं.

लौंगलता को तलते समय ध्यान रखना चाहिए कि आंच ज्यादा न हो. ज्यादा तेज आंच होने से यह सख्त हो सकती है, जो खाने में सही नहीं लगती है.

जानें इस मिठाई के बारे में…

लौंगलता देशी मिठाई है. पहले यह वाराणसी में सब से ज्यादा मशहूर थी. समय के साथसाथ लखनऊ जैसे दूसरे शहरों में भी यह मिलने लगी. अब सारी दुनिया इस की दीवानी है. इस का जायका लोगों को काफी समय तक याद रहता है.

लखनऊ में जब छप्पनभोग नामक मिठाई की दुकान चालू हुई, तो उस के मालिक रवींद्र गुप्ता ने देशी मिठाइयों को विदेशों में पहचान दिलाने का काम शुरू किया. उन की नजर सब से पहले लौंगलता पर पड़ी. रवींद्र गुप्ता कहते हैं कि लौंगलता ऐसी मिठाई है, जिसे बाहर भेजना आसान होता है. यह आसानी से पैक हो जाती है. इसे कोरियर से बाहर भेजते हैं.

विदेशों में रहने वाले भारतीय मिठाइयों के शौकीन लोग इसे खूब पसंद करते हैं. इसे खाने में मिठाई और मेवे के साथसाथ लौंग का स्वाद भी मिलता है. इसे बनाने में अच्छे किस्म के गेहूं के मैदे का इस्तेमाल किया जाता है. इस में खोया व मेवा भी अच्छी किस्म का इस्तेमाल किया जाता है.

वैसे तो विदेशों में बहुत सारी भारतीय मिठायां खाई जाती हैं, पर लौंगलता अपने रसीले बनारसी टेस्ट के कारण लोगों को बहुत लुभाती है.

विदेशों में रहने वाले लोग ऐसी मिठाई पसंद करते हैं, जिस का स्वाद अच्छा हो, पर उस में चीनी का इतना प्रयोग न हुआ हो, जो नुकसान कर सके. ऐसे में लौंगलता उन के लिए सब से ज्यादा मुफीद होती है. लौंगलता की मांग उन देशों में सब से ज्यादा है, जहां पर भारतीय ज्यादा तादाद में रहते हैं.

अमेरिका, इंगलैंड, मारीशस और सिंगापुर वगैरह ऐसे ही देश हैं. मुसलिम आबादी वाले देशों में भी इस की मांग खूब है. अरब देशों में भी लौंगलता खूब पसंद की जाती है. तमाम भारतीय विदेश वापस जाते समय अपने साथ लौंगलता जरूर ले जाते हैं.

लौंगलता ज्यादा दिनों तक बिना खराब हुए रखी जा सकती है. विदेशों के अलावा मुंबई, दिल्ली और जयपुर के लोग भी इसे खूब पसंद करते हैं. बाहर भेजने के लिए लौंगलता को ऐसे पैक किया जाता है, जिस से इसे ले जाना आसान हो और देखने वाले पर इस का बेहतर असर पड़ सके.

लौंगलता 300 रुपए प्रति किलोग्राम से ले कर 500 रुपए प्रति किलोग्राम तक बिकती है. गरम लौंगलता खाने का अलग मजा होता है. आजकल ज्यादातर घरों में ओवन होता है. लौंगलता खाने से पहले उसे ओवन में एक बार गरम कर लिया जाए तो उस का स्वाद बढ़ जाता है. लौंगलता गुझिया नस्ल की मिठाई है, जिस का स्वाद अब विदेशों तक पहुंच रहा है.

Raksha Bandhan : कजिन्स का बनाएं व्हाट्सऐप ग्रुप

आदत के मुताबिक उस दिन भी सुबह बिस्तर छोड़ने से पहले अपूर्वा ने अपना स्मार्टफोन उठा कर जैसे ही व्हाट्सऐप खोला तो खुद को एक और नए ग्रुप में जुड़ा देख कर ?ाल्ला उठी लेकिन जैसे ही उस ने ग्रुप का नाम देखा तो सुखद आश्चर्य से भर उठी. ग्रुप का नाम था ‘स्वीट कजिन्स’.

ग्रुप में कुल 6 मैंबर थे जिन में से 3 के नंबर तो उस के पास नाम से सेव थे. आदित्य उस का भाई, अनामिका और अंबर उस के बड़े पापा के बच्चे जो उम्र में उस से थोड़े बड़े थे. बाकी 2 को उस ने डीपी देख कर पहचाना कि अरे, यह तो लालिमा है जबलपुर वाली बूआ की बेटी और यह नेहा है इंदौर वाली बूआ की बेटी, जो आजकल यूएस की एक बड़ी कंपनी में जौब कर रही है.

ग्रुप की एडमिन लालिमा थी जिस ने अंगरेजी में अपने वैलकम मैसेज में लिखा था, ‘‘इस नए ग्रुप में आप सभी का हार्दिक स्वागत है. यह कितने हैरत की बात है कि हम इस पीढ़ी के लोग ढंग से एकदूसरे को जानते तक नहीं जबकि हमारे पेरैंट्स ने लंबा वक्त साथ गुजारा है और उन में अभी तक पहले सी ही बौंडिंग व ताजगी है. ऐसा कोई दिन नहीं जाता जब मम्मी, मामा लोग की, मामियों की और विदिशा वाले अपने पुश्तैनी घर की चर्चा न करती हों. नानीनाना की बात करते तो कभीकभी वे भावुक होते रो भी पड़ती हैं.

‘‘इस ग्रुप को बनाने का एक बड़ा मकसद हमारे पेरैंट्स के रिश्ते की मजबूती व उन के स्नेह और यादों को फिर से जिंदा कर हमारे बीच वह आत्मीय परिचय कायम रखना है जो उन की जिंदगी का अटूट हिस्सा है और हमें विरासत में मिला है. मैं उम्मीद करती हूं कि जल्द ही हम एकदूसरे के इतने नजदीक आ जाएंगे कि जब कभी किसी फंक्शन में मिलें तो पूरी अनौपचारिकता, आत्मीयता, जिंदादिली और प्यार से मिलें. मु?ो लगता है कि हमारे पेरैंट्स को इस से उतनी ही खुशी मिलेगी जितना कि कभी एकदूसरे से बिछड़ते वक्त उन्हें दुख हुआ होगा. उन के पास तो कई यादें हैं लेकिन हमारे पास तो वह भी नहीं हैं. यूं तो हम एकदूसरे को नाम से जानते हैं बचपन में मिले भी हैं. संभव है इस ग्रुप के कुछ मैंबर बाद में कभी मिले हों पर अब सैटल होने के बाद मिलने का लुत्फ ही अलग होगा.’’

पोस्ट काफी भावुक और लंबीचौड़ी थी जिस के आखिर में लालिमा ने अपना पूरा परिचय देते सभी का परिचय चाहा था. अपूर्वा भूल गई कि उसे आज जागने में देर हो गई है और जल्द ही उसे कंपनी की जूम मीटिंग जौइन करने लैपटौप खोल कर बैठ जाना है. उस ने तुरंत अपने बारे में सबकुछ बताते लालिमा को इस खुबसूरत पहल के लिए थैंक्स बोला और लंच में फिर मिलने का वादा किया. दोपहर तक सभी ने ग्रुप बनने पर खुशी जाहिर की.

आज सचमुच वह बहुत खुश थी क्योंकि अपने इन सभी कजिन्स से मिले उसे मुद्दत हो गई थी, हां मम्मीपापा से सुनती जरूर रहती थी कि बड़ी बुआ 2 चोटी बना कर कालेज जाती थी तो सहपाठी उन्हें यह कहते चिढ़ाते थे कि दो चोटी वाली लल्लूजी की साली. एक बार बड़े पापा को टाकीज के बाहर सिगरेट पीते देख दादाजी ने रंगे हाथों पकड़ा था और घर तक घसीट कर लाए थे और फिर तबीयत से उन की धुनाई की थी. पापा को इंटर में गणित में कम नंबर मिलने पर मुर्गा बनाया था. फिर तो पापा ने गणित में इतनी मेहनत की थी कि उन्हें राज्य के सब से नामी इंजीनयरिंग कालेज में दाखिला मिला था वह भी स्कौलरशिप के साथ. तब उन का फोटो सभी अखबारों में छपा था जिन की कटिंग्स मम्मी ने आज भी अपनी शादी के एलबम में लगा कर रखी हैं.

छोटी बुआ को जब लड़के वाले यानी फूफाजी के घर वाले देखने आए थे और रिश्ते के लिए हां कर गए थे तो वे उन्हीं के सामने फफकफफक कर बड़े पापा के सीने से चिपक गई थीं कि मैं आप लोगों को छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगी.

इसलिए जरूरी हैं कजिन्स

ऐसी कई बातें अपूर्वा के मन में उमड़घुमड़ रहीं थीं. यह याद करते तो उसे अभी भी हंसी आ गई कि बचपन में ये चारों भाईबहन जब लड़ते थे तो दादी उन्हें ऊपर वाले कमरे में बंद कर कहतीं थीं, ‘अब तुम लोग ही फैसला कर लो खूब एकदूसरे के हाथपैर और सिर फोड़ो पर दरवाजा तुम्हारे पापा के आने के बाद ही खुलेगा. इस पर चारों लड़ाई?ागड़ा छोड़ उन की खुशामद करने लगते थे. कितने अमीर थे वे लोग उस ने सोचा और हम लोग कितने कंगाल हैं जो दिनरात कंपनी की नौकरी में सिर खपाए रहते हैं.

कहने को ही सबकुछ है मसलन अच्छी सैलरी वाली जौब, यारदोस्त, वीकएंड की पार्टियां और सैरसपाटा. फिर भी कुछ खालीपन सा रहता है मन में, यह खालीपन क्या है यह आज उसे सम?ा आ रहा था जब लालिमा ने यह ग्रुप बनाया.

इस बात को 3 साल गुजर चुके हैं पुणे में रह कर एक सौफ्टवेयर कंपनी में नौकरी कर रही अपूर्वा बताती है, ‘‘फिर मानो लाइफ में बहार सी आ गई. पांचों कजिन्स इतने घुलमिल कर बात करते हैं, अपनी रोजमर्राई बातें सा?ा करते हैं जैसे बचपन से साथ खेलेपलेबढ़े हों अब मैं और रोमांचित हूं क्योंकि इसी साल अनामिका दीदी की शादी में एकसाथ होंगे. मैं ने तो सभी के लिए अभी से गिफ्ट खरीदना शुरू कर दिया है यूएस से नेहा भी आ रही है. हम सब ने प्लानिंग भी कर ली है कि कैसेकैसे धमाल शादी में करेंगे. सच स्वीट कजिन्स ग्रुप ने मेरी जिंदगी बदल दी है.’’

आप भी बनाएं

अपूर्वा ने स्वीट कजिन्स ग्रुप के तुरंत बाद एक और कजिन्स ग्रुप बनाया था जिस में मामा और मौसी के बच्चे शामिल किए थे. इस ग्रुप में भी पेरैंट्स और नानानानी से जुड़ी यादें सा?ा होती हैं. बचपन की खट्टीमीठी यादों का रिनुअल होता है. वह बच्चों जैसे खुश हो कर बताती है, ‘‘संडे को अलगअलग दोनों ग्रुप्स में वीडियो कौल भी होता है. अब पहले सी बोरियत नहीं होती और सब से मिलने का मन भी करता है. नहीं तो लगता है कि रिलेशन के नाम पर मम्मीपापा और आदित्य के अलावा कोई और है ही नहीं.

तो देर किस बात की आप भी उठाइए अपना मोबाइल फोन और फटाफट बना डालिए अपने कजिन्स का एक स्वीट सा ग्रुप फिर सम?ा आएगा कि इस भागतीदौड़ती दुनिया और बढ़ती दूरियों में नजदीकी रिश्तों की क्या अहमियत है. हमउम्र कजिन्स के साथ लगभग सारी बातें सा?ा हो जाती हैं जिस से टैंशन और डिप्रैशन दूर करने में मदद मिलती है. कई बार अच्छीखासी उपयोगी चर्चा भी हो जाती है जौब में भी सहायता मिलती है.

यह कम हैरत की बात नहीं कि वजहें कुछ भी हों युवाओं को अपने रिश्तेदारों के बारे में इतनी ही जानकारी है कि फलां आजकल वहां है और अमुक शहर में है कई बार तो कजिन्स एक ही शहर में नौकरी कर रहे होते हैं लेकिन एकदूसरे से कोई वास्ता ही नहीं रखते. 26 वर्षीय अभिनय कोरोनाकाल में जब घर आया तो उसे पता चला कि उस के चाचा का बेटा सार्थक जिस के साथ वह क्रिकेट खेला करता था वह भी मुंबई में ही जौब करता है तो उस ने तुरंत चाचा को फोन कर उस का नंबर लिया और सार्थक से बात की.

अब दोनों महीने के एक किसी वीकएंड में मिल कर साथसाथ एंजौय करते हैं और किसी भी तरह की जरूरत पड़ने पर एकदूसरे के लिए उपलब्ध रहते हैं. इन दोनों की इस दोस्ती से पेरैंट्स भी खुश और बेफिक्र हैं जो अपने जमाने का यह डायलौग दोहराते हैं कि वाकई खून के रिश्तों की अपनी एक अलग कशिश होती है. आज नहीं तो कल खून जोर मारता ही है.

लेकिन ध्यान रखें

कजिन्स का व्हाट्सऐप ग्रुप जरूर बनाएं लेकिन इस में कुछ बातों का ध्यान रखा जाना जरूरी है. मसलन फिजूल की धार्मिक और राजनीतिक पोस्टें न डालें, किसी भी मुद्दे पर जब बहस हो तो अपनी बात पर अड़े न रहें दूसरों की भी सुनें. पोस्ट डालते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि कोई भद्दी, अश्लील बात या वीडियो ग्रुप में न जाए और न ही ऐसा कोई मैसेज डालें जिस से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचे. जोक्स भी स्वस्थ डालना चाहिए. अपनी सैलरी वगैरह का बखान वेवजह नहीं करना चाहिए और न ही किसी को नीचा दिखाने की मंशा रखनी चाहिए.

और सब से अहम बात यह कि पेरैंट्स से जुड़े नएपुराने विवाद अगर कोई हों तो उन की चर्चा नहीं करनी चाहिए कि कब किस ने किस के साथ क्या अच्छाबुरा किया था या धोखा दिया था. याद रखें हर कहीसुनी बात सच नहीं होती और वैसे भी विवादों को जिंदा रखना और ढोना एक फुजूल की बात है जिस के आप की जिंदगी में कोई माने या जगह नहीं होनी चाहिए.

इस से यकीन मानें आप को कई नहीं तो कुछ रियल फ्रैंड्स और वैलविशर मिलेंगे जिन से आप परिचित तो हैं लेकिन एक ऐसी दूरी बीच में आ गई है जिस के बारे में आप ने कभी सोचा भी नहीं होगा. यही कजिन्स आप के सुखदुख में बिना किसी स्वार्थ के साथ देंगे. आप घर में हों या बाहर हों कजिन्स आप को औरों से बेहतर सम?ोंगे. महानगरीय जिंदगी का दंश ?ोल रहे कई युवा तो अकेले रहते इतने हैरानपरेशान हो जाते हैं कि अकसर सोचते हैं कि क्या मतलब ऐसी जिंदगी के जिस में कोई अपना न हो. अपने तो हैं जरूरत है उन्हें एक व्हाट्सऐप ग्रुप में जोड़ कर पेरैंट्स की तरह संबंध बनाने और निभाने की.

बवासीर : ऐसे पाएं नजात

गुदा के अंदर वौल्व की तरह गद्देनुमा कुशन होते हैं, जो मल को बाहर निकालने या रोकने में सहायक होते हैं. जब इन कुशनों में खराबी आ जाती है, तो इन में खून का प्रवाह बढ़ जाता है और ये मोटे व कमजोर हो जाते हैं. फलस्वरूप, शौच के दौरान खून निकलता है या मलद्वार से ये कुशन फूल कर बाहर निकल आते हैं. इस व्याधि को ही बवासीर कहा जाता है.

ऐसा माना जाता है कि कब्ज यानी सूखा मल आने के फलस्वरूप मलद्वार पर अधिक जोर पड़ता है तथा पाइल्स फूल कर बाहर आ जाते हैं. बवासीर की संभावना के कई कारण हो सकते हैं.

क्या हैं कारण

शौच के समय अधिक जोर लगाना, कम रेशेयुक्त भोज्य पदार्थ का सेवन करना, बहुत अधिक समय तक बैठे या खड़े रहना, बहुत अधिक समय तक शौच में बैठे रहना, मोटापा, पुरानी खांसी, अधिक समय तक पतले दस्त लगना, लिवर की खराबी, दस्तावर पदार्थों या एनिमा का अत्यधिक प्रयोग करना, कम पानी पीना और गरिष्ठ भोज्य पदार्थों का अधिक सेवन करना आदि.

आनुवंशिक : एक ही परिवार के सदस्यों को आनुवंशिक गुणों के कारण एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में आना.

बाह्य संरचना :  पाइल्स साधारणतया जानवरों में नहीं पाए जाते, चूंकि मनुष्य पैर के बल पर सीधा खड़ा रहता है, सो, गुरुत्वाकर्षण बल के कारण शरीर के निचले भाग में कमजोर नसों में अधिक मात्रा में रक्त एकत्रित हो जाता है, जिस से नसें फूल जाती हैं और पाइल्स का कारण बनती हैं.

शारीरिक संरचना : गुदा में पाई जाने वाली नसों को मजबूत मांसपेशियों का सहारा नहीं मिलने के कारण ये नसें फूल जाती हैं और कब्ज के कारण जोर लगता है तो फटने के कारण खून निकलना शुरू हो जाता है.

लक्षण पहचानें

शौच के दौरान बिना दर्द के खून आना, मस्सों का फूलना व शौच के दौरान बाहर आना. मल के साथ चिकने पदार्थ का रिसाव होना व बाहर खुजली होना, खून की लगातार कमी के कारण एनीमिया होना तथा कमजोरी आना व चक्कर आना और भूख नहीं लगना इस के प्रमुख लक्षण हैं.

उपाय भी हैं

यदि हम खानपान में सावधानी बरतें तो बवासीर होने से बचने की संभावना होती है. कब्ज न होने दें, भोजन में अधिक रेशेयुक्त पदार्थों का प्रयोग करें, दोपहर के खाने में कच्ची सब्जियों का सलाद लें, अंकुरित मूंगमोठ का प्रयोग करें, गेहूं का हलका मोटा पिसा व बिना छना आटा खाएं, खाना चबाचबा कर खाएं, रात को गाय के दूध में 8-10 मुनक्का डाल कर उबाल कर खाएं. चाय व कौफी कम पीएं, वजन ज्यादा हो तो कम करें, प्रतिदिन व्यायाम करें और सकारात्मक सोच रखें.

इन बातों का रखें ध्यान

जब भी शौच की जरूरत महसूस हो, तो उसे रोका न जाए. शौच के समय जरूरत से ज्यादा जोर न लगाएं. लंबे समय तक जुलाब न लें. बहुत अधिक समय तक एक ही जगह पर न बैठें. शौच जाने के बाद मलद्वार को पानी से अच्छी तरह साफ करें.

एमआईपीएच विधि से इलाज

एमआईपीएच यानी मिनिमली इनवेजिव प्रौसीजर फौर हेमरोहिड्स. इस विधि में एक विशेष उपकरण, जिसे स्टेपलर कहते हैं, काम में लिया जाता है, जो कि सिर्फ एक ही बार काम में आता है. यह विधि गे्रड-1, ग्रेड-2 तथा ग्रेड-3, जोकि दूसरी विधि के फेल हो जाने पर काम में ली जा सकती है.

इस विधि में पाइल्स को काट कर उस के ऊपर मलद्वार में 2-3 इंच की खाल कट जाती है, जिस से पाइल्स अपने सामान्य स्थान पर आ जाते हैं. इस विधि को करने में मात्र 20 मिनट लगते हैं, न के बराबर खून निकलता है, तथा दर्द भी कम ही होता है व मरीज को 24 घंटों से पहले छुट्टी दे दी जाती है. व्यक्ति 24-48 घंटों में काम पर जाने लायक हो जाता है. इस विधि द्वारा उपचार करने के बाद फिर से पाइल्स होने की संभावना 2 से 10 प्रतिशत ही रहती है, निर्भर करता है कि सर्जन कितना अनुभवी है.

(लेखक पाइल्स व गुदा रोग विशेषज्ञ हैं.)

लोगों ने 14 साल बाद इस एक्टर से मांगे फिल्म के रिफंड पैसे, मिला ये मजेदार जवाब

Imran Khan : फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ फेम एक्टर इमरान खान ने भले ही इस समय बड़े पर्दे से दूरी बना रखी है, लेकिन सोशल मीडिया पर वह काफी एक्टिव रहते हैं. यहां तक की वह अपने ज्यादातर फैंस के सवालों का जवाब भी देते हैं. हाल ही में उन्होंने एक यूजर के सवाल का मजाकिया अंदाज में जवाब दिया. जो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

एक्टर से किस फिल्म के लिए मांगे रिफंड पैसे ?

दरअसल, बीते दिन एक्टर इमरान खान (Imran Khan) ने एक पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने लिखा था कि अगर इस पोस्ट पर एक मिलियन लाइक्स आ जाते हैं तो वो बॉलीवुड में कमबैक करेंगे. इस पोस्ट पर लोगों ने जमकर कमेंट किया. एक यूजर ने एक्टर की पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा, ‘एक मिलियन लाइक्स मिल जाएंगे, लेकिन तब, जब आपकी फिल्म ‘किडनैप’ और ‘लक’ देखने के लिए हमने जो पैसे दिए हैं, उसे लौटा दें.’

एक्टर- मुझे ही नहीं मिली पेमेंट

वहीं इस यूजर को इमरान (Imran Khan) ने रिप्लाई भी किया. उन्होंने लिखा, ‘जो पैसे आप देते हैं, वह सबसे पहले थिएटर के मालिक और फिर उसके बाद प्रोड्यूसर्स के पास जाते हैं. चीजें ऐसे ही चलती हैं.’ इसके आगे एक्टर ने लिखा, ‘मुझे ही उस मूवी की अभी तक फाइनल पेमेंट नहीं मिली है. इसलिए यह मुद्दा हम उनके सामने उठा सकते हैं.’

इस फिल्म से रखा था बॉलीवुड में कदम

आपको बता दें कि पिछले कुछ समय से इमरान खान (Imran Khan) बॉलीवुड में कमबैक को लेकर चर्चाओं में बने हुए हैं. कहा जा रहा है कि वो जल्द ही किसी बड़ी फिल्म में नजर आएंगे. वहीं उन्होंने बाल कलाकार के रूप में ‘जो जीता वही सिकंदर’ फिल्म से बॉलीवुड में कदम रखा था. इसके बाद वह 2008 में आई फिल्म ‘जाने तू या जाने ना’ में नजर आए थे, जिसमें उन्होंने लीड एक्टर के तौर पर अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत की थी.

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