“हाय माय स्वीटी, दादू! आज आप इतना डल कैसे दिख रही हो? मैं तो मूड बना कर आया था आप के साथ बैडमिंटन खेलूंगा, लेकिन आप तो कुछ परेशान दिख रही हो”
“अरे बेटा, कुश, बस तेरी इस लाड़ली बहन कुहु की फिक्र हो रही है. ये कुहु अंशुल के साथ अपने रिश्ते में इतना आगे बढ़ चुकी है पर अंशुल के पेरैंट्स इस रिश्ते से खुश नहीं. अब जब तक लड़के के मांबाप खुशीखुशी बहू को अपनाने के लिए राजी नहीं होते, तो भला कोई रिश्ता अंजाम तक कैसे पहुंचेगा. मुझे तो बस यही फिक्र खाए जा रही है. मेरी तो कल्पना से परे है कि आज के जमाने में भी किसी की इतनी पिछड़ी सोच हो सकती है. आजकल जाति में ऊंचनीच भला कौन सोचता है. वे ऊंचे गोत्र वाले ब्राह्मण हैं, तो हम भी कोई नीची जात के तो नहीं.”
“अरे दादू, इकलौते बेटे को नाराज कर वे कहां जाएंगे, मान जाएंगे देरसवेर. आप टैंशन मत लो, वरना नाहक आप का बीपी बढ़ जाएगा. चलो थोड़ी देर बैडमिंटन खेलते हैं, मेरी अच्छी दादू.”
बैडमिंटन खेलतेखेलते भी पोती की चिंता ने आभा जी का पीछा नहीं छोड़ा.
करीबन आधे घंटे खेल कर, तरोताजा हो कर उन्होंने अंशुल को घर बुला कर उस से उस की शादी के मुद्दे पर गंभीर चर्चा की.
“अंशुल, तुम्हारा क्या फैसला है? मैं तो हर तरह से तुम्हारे पेरैंट्स को समझा कर हार गई. अब तो बस एक ही रास्ता बचता है. अगर तुम कुहु के साथ कोर्ट मैरिज कर के उन के सामने जाओ, तो उन्हें मजबूरन तुम्हारी शादी के लिए तैयार होना ही होगा. मुझे तो इस के अलावा कोई और विकल्प नजर नहीं आ रहा.”
“दादी, इस की जरूरत नहीं पड़ेगी. अगर मैं बस उन से यह कह दूं कि मैं कुहू के साथ कोर्ट मैरिज करने के लिए कोर्ट में अर्जी दे रहा हूं तो उन के पास हमारी शादी के लिए हामी भरने के अलावा कोई चारा न बचेगा.”
“ठीक है, बेटा. जैसा तुम चाहो.”
अंशुल ने उसी दिन अपने पेरैंट्स को कोर्ट मैरिज की धमकी दी और उस की सोच के मुताबिक कुहु के साथ उस के विवाह के लिए उन का प्रतिरोध ताश के पत्तों के महल की भांति ढह गया.
आज आभाजी बेहद खुश थीं. आज ही तो कुहु के होने वाले सासससुर अपने बेटे के साथ खुशीखुशी रोके की तिथि निश्चित कर के अभीअभी गए थे.
“दादू, दादू, अब तो खुश? अब तो आप की समस्या हल हो गई न?”
“हां बेटा. आज मैं बहुत खुश हूं. आज कुहु की शादी की मेरी बरसों पुरानी साध पूरी हुई.”
“हां दादू, मैं भी बहुत खुश हूं. आप तो वाकई में अमेज़िंग हो. आप के पास हर समस्या का तोड़ है,” पोते ने लड़ियाते हुए उन की गोद में लेटते हुए कहा.
तभी उन की एक पड़ोसिन वंदिता का फोन उन के पास आया.
“हैलो दीदी, प्रणाम.”
“प्रणाम वंदिता. कहो, कैसे याद किया?”
“दीदी, रुनझुन को ले कर मन में कुछ उलझन थी. तो मैं उसी बाबत आप से सलाह लेना चाह रही थी.”
“हांहां, बोलो. निस्संकोच बोलो.”
“दीदी, रुनझुन को घर आए 3 महीने हो चले, लेकिन वह ससुराल जाने का नाम ही नहीं लेती. जब भी मैं कहती हूं, बेटा, दामाद जी को तुम्हारे बिना परेशानी हो रही होगी, वह कह देती है, ‘अरे मां, आप के दामादजी के पास उन की मां और बहनें हैं न. वे मुझ से ज्यादा उन के साथ खुश रहते हैं. मेरा फिलहाल उन के पास जाने का मन नहीं.’
“अब आप ही बताओ दीदी, शादी के बाद लड़की का इतने इतने दिन मायके में रहना क्या सही है?”
“हूं, तो यह बात है. चलो, शाम को बिटिया को ले कर घर आ जाओ. मैं उसे समझाती हूं.”
आभाजी ने रुनझुन को समझाया, “बेटा, शादी एक बेहद जिम्मेदारीभरा रिश्ता है, जिसे बेहद समझदारी और धैर्य से निभाना पड़ता है. तुम्हें ससुराल या दामाद जी से क्या परेशानी है?”
“ताई जी, ससुराल में मुझे बहुत घुटन महसूस होती है. सुबह 7 प्राणियों का खाना बना कर जाओ और रात को फिर वही रूटीन. इधर आजकल मेरे औफिस में बेहद व्यस्त दिनचर्या चल रही है. वर्षांत होने की वजह से औडिटिंग के सिलसिले में दसदस घंटों की ड्यूटी देनी पड़ रही है. तो सुबह 9 बजे की निकलीनिकली रात के 7 बजे ही घर लौट पाती हूं. अब आप ही बताइए, मैं रसोई का काम कैसे करूं? इतना लेट आने पर सासुजी कलह करती हैं. मुझे नौकरी छोड़ने के लिए धमकाती हैं. तो मैं अभी वापस नहीं जा रही.”
“बेटा, बुरा मत मानना. शादी के बाद घरपरिवार की जिम्मेदारी से मुंह मोड़ना क्या सही है? औफिस के काम की आड़ ले कर अगर तुम मायके से ससुराल जाना ही नहीं चाहो, तो यह तो अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ना हुआ न बेटा?”
“आंटीजी, मैं आप की बात से पूरी तरह सहमत हूं. आप ही बताइए, बारहबारह घंटे घर से बाहर बिता कर मैं रसोई का काम कैसे करूं. मैं अपनी यह इतनी अच्छी नौकरी छोड़ने वाली तो बिलकुल हूं नहीं.”
रुनझुन की ये बातें सुन अम्मा जी ने वंदिता से उस के दामाद अमेय से मिलने की इच्छा जाहिर की.
अगले दिन दामाद अमेय के अपने घर आने पर आभाजी ने औपचारिक कुशलक्षेम के बाद उस से कहा, “अमेयजी, हमारी बिटिया की जिम्मेदारी पूरी तरह से आप के ऊपर है. इसे बस यह गिला है कि 12 घंटे घर बाहर रहने के बाद इस में दोनों वक्त की रसोई निबटाने की हिम्मत नहीं बचती. अब आप ही बताइए, वह पूरी तरह से गलत तो नहीं?”
“आंटीजी, घर के काम की वजह से मायके आ कर बैठ जाना क्या सही है? मैं तो इसे समझासमझा कर हार गया. लेकिन यह घर चलने को तैयार ही नहीं होती.”
इस पर आभा जी ने उसे समझाया कि वह खाना बनाने के लिए एक सहायिका का इंतजाम करे.
घर पहुंच कर अमेय ने यह बात मां के समक्ष रखी. सब की सहमति से यह फैसला हुआ कि एक सहायिका खाना बनाने में रुनझुन की मदद करने के लिए रखी जाएगी.
इस निर्णय को अमेय के मुंह से सुनने के बाद वंदिता ने आभाजी का लाखलाख शुक्रिया अदा किया कि उन के मशवरे से उन की बेटी का घर उजड़ने से बच गया.
आभा जी वंदिता के घर से लौट कर अपने कमरे में आराम ही कर रही थीं, कि तभी उन का बेटा घर में घुसा.
“क्या हुआ बेटा, बेहद थके थके नजर आ रहे हो?”
“अरे मां, औफिस में अकाउंट में भारी गड़बड़ी नजर आ रही है. लेकिन अकाउंटैंट उसे ठीक तरह से समझ नहीं पा रहे. मैं भी सुबह से वही गड़बड़ पकड़ने की कोशिश में लगा हुआ था, लेकिन पकड़ नहीं पाया.”
“ओ बेटा, तूने मुझे क्यों नहीं बुलवा लिया औफिस? तुझे तो पता है, ऐसी गड़बड़ी ढूंढने में मैं माहिर हूं. आखिर मेरी एमकौम की डिग्री कब काम आएगी?”
“मां, अब बारबार आप को औफिस के कामों में उलझाने का मन नहीं करता.”
“अरे बेटा, तू नाहक ही परेशान होता रहता है. ले चल, अभी अपने लैपटौप पर तेरा अकाउंट चैक करती हूं.”
आभाजी ने पूरे दिन लग कर अकाउंट की बारीकी से जांच कर उस में की गई भयंकर हेराफेरी पकड़ ली.
अकाउंट की गहन छानबीन से पता चला कि उन के नए मैनेजर ने बेहद चतुराई से एक बड़ी रकम का गबन किया था.
अम्मा जी ने फौरन ही बेईमान अकाउंटैंट को नौकरी से हटा दिया, और एक नया ईमानदार अकाउंटैंट को नियुक्त कर दिया.
पूरे दिन अकाउंट की जांच करतेकरते अम्माजी पस्त हो आराम कर रही थीं, कि तभी उन की बहू की चचेरी बहन की बिन मांबाप की बेटी सलोनी मुदित मन कहते हुए उन के पास आई, “अम्मू, अम्मू, यह देखो मेरा नीट का रिजल्ट आ गया. मुझे पूरे स्टेट में 5वीं पोजीशन मिली है.” इस बिन मांबाप की बच्ची को उन्होंने बचपन में ही गोद ले कर पाला था.
“ओह, इतनी बढ़िया पोजीशन! सब तेरी कड़ी मेहनत का नतीजा है मेरी लाड़ो. आज तेरी इस शानदार सफलता का जश्न मनाने वृद्धाश्रम चलेंगे. अरे कुश, ओ कुश बेटा, 5 किलो मिठाई ले आना बाज़ार से. सलोनी की यह सफलता कोई मामूली नहीं. पूरे पड़ोस में मिठाई बंटवाऊंगी. ले, ये रुपए ले और जा कर झटपट मिठाई ले आ.”
“हां दादू, हां दादू, तनिक ठंड रखो. अभी बाज़ार जा कर लाता हूं. यह चुहिया अब डाक्टर बनेगी! न बाबा न, मैं तो कभी अपना इलाज इस से नहीं करवाने वाला. इस नीमहकीम की दवाई से कहीं अपना पत्ता ही साफ़ हो गया, तो हो गया अपना बेड़ा गर्क,” कुश ने सलोनी को खिलखिलाते हुए छेड़ा.
“अम्मू, देखो, यह शैतान क्या कह रहा है? बेटू 5वीं पोजीशन आई है मेरी पूरे स्टेट में. कोई छोटीमोटी बात नहीं है यह. मैं तो हार्ट सर्जन बनूंगी.”
“हा…हा…हा…, हार्ट सर्जन! हार्ट खोल कर सिलना भूल जाएगी तो मरीज की तो हो गई छुट्टी!” कुश ने सलोनी को फिर से चिढ़ाया, और वह उसे एक धौल जमाने के लिए उस के पीछेपीछे भागी.
कुछ ही देर में वह नम आंखों से दादी के पास आ कर बैठ गई, और उस ने झुक कर उन के चरण स्पर्श कर लिए. “दादू, अगर आप मुझ अनाथ को अपने घर में ला कर सहारा न देतीं, तो मेरा कुछ न होता.”
“ऐसा नहीं कहते, बेटा.” यह कह कर अम्मा जी ने सलोनी को गले से लगा लिया.
तभी कुश का कोई फोन आया और वह अम्माजी से यह कहते हुए घर से भाग छूटा, “दादू, बहुत जरूरी काम है. मुझे अभी जाना पड़ेगा. लौट कर आते हुए मिठाई लेता आऊंगा.”
“अरे बेटा, यह तो बता दे जा कहां रहा है इतनी जल्दबाजी मैं?”
“आता हूं, दादू. फिर आप को बताता हूं.”
10 बजे घर से गया कुश दोपहर के 3 बजे हैरानपरेशान घर लौटा.
उस का तनावग्रस्त चेहरा देख अम्माजी ने उस से पूछा, “क्या बात है, बेटा? इतने टैंशन में क्यों दिख रहा है?”
“कुछ नहीं, दादू. बस, ऐसे ही,” उस ने बात टालते हुए कहा.
“अपनी दादू को नहीं बताएगा? कोई प्रौब्लम तो जरूर है जो तू इतना टैंशन में दिख रहा है.”
“अरे दादू, वह मेरी फास्ट फ्रैंड रितुपर्णा है न, उस की कुछ प्रौब्लम है. अब मेरी समझ में नहीं आ रहा इसे सौल्व करूं तो कैसे करूं?”
“अरे बेटा, मुझे बता तो सही, तेरी क्या परेशानी है?”
बेहद सकुचातेझिझकते कुश ने अम्मा जी को बताया, “यह रितुपर्णा वैसे तो बहुत अच्छी है, मेरी उस की बहुत पटती है. बस दादू, वह खर्चीली बहुत है. होस्टल में रहती है न. घर से पैसे आते ही वह पहले तो उन्हें नईनई ड्रैसेस व महंगेमहंगे कौस्मेटिक में उड़ा देती है. फिर पैसे खत्म होने पर मुझ से मांगती है. उस पर मेरे नहींनहीं करतेकरते 12 हज़ार रुपए उधार हो गए हैं. अब आप ही बताओ, दादू, पापा मुझे बेहिसाब पैसे तो देते नहीं. वह तो हर महीने अपने रुपए महीने की शुरुआत में ही खर्च कर लेती है. आज भी वह मुझ से जिद कर रही थी कि मैं उस के अगले माह के कालेज ऐक्सकर्शन के लिए रुपए जमा कर दूं. जब मैं ने इस के लिए हामी नहीं भरी, तो उस ने मुझे दस बातें सुना दीं. खूब लड़ीझगड़ी मुझ से.”
“क्या? रुपए न देने की वजह से लड़ीझगड़ी? बातें सुनाई? अरे फिर तो वह सही लड़की नहीं, बेटा. उस से दोस्ती रखना ठीक नहीं. उस से धीरेधीरे दोस्ती तोड़ दे.”
“अरे दादू, उस से दोस्ती तोड़ना आसान नहीं,” कुश ने बेहद मायूसी से कहा.
“क्यों भई? किसी से फ्रैंडशिप रखने की जबरदस्ती थोड़े ही है?”
“अरे दादू, आप समझ नहीं रहीं. वह मेरी खास फ्रैंड है,” इस बार वह तनिक हिचकतेअटकते बोला.
“खास फ्रैंड क्या? तेरा उस से कहीं प्यार व्यार का कोई चक्कर तो नहीं चल रहा?”
“हां दादू. कुछ ऐसा ही समझ लो. पहले तो मुझे उस पर भयंकर क्रश आया हुआ था, लेकिन अब जब से वह मुझ से हर महीने रुपए मांगने लगी है, और नहीं देने पर मुझ से झगड़ने लगी है, तो मेरे प्यार का बुखार उतरने लगा है.”
“वह तो उतरेगा ही, बेटा. हां, एक बात बताओ, तुम मानते हो न कि हर प्यार का अंजाम शादी होना चाहिए?”
“हां दादू, औब्वियसली.”
“साथ ही तुम यह भी मानते हो कि आप को शादी का रिश्ता ऐसे शख्स से जोड़ना चाहिए जिस का वैल्यू सिस्टम पुख्ता हो?”
“यसयस दादू. विदाउट फ़ेल.”
“तुम्हारी इस रितुपर्णा का वैल्यू सिस्टम मुझे बहुत खोखला नजर आ रहा है. जो लड़की बातबात पर अपने बौयफ्रैंड से रुपए मांगती हो. नहीं मिलने पर बुरी तरह से लड़तीझगड़ती हो, उस की वैल्यूज़ में कोई दम नहीं, बेटा. अभी तो तुम्हारी शादी भी नहीं हुई, तो वह किस हक से तुम से रुपए मांगती है और लड़तीझगड़ती है? यह तो उस की बेहद गैरजिम्मेदाराना हरकत है. समझ रहे हो न बेटा, मैं क्या कहना चाह रही हूं?”
“जी दादू. बिलकुल समझ रहा हूं.”
“उस से तू ब्रेकअप कर ले, बेटा. नहीं तो उस से तेरा रिश्ता तुझे जिंदगीभर नासूर की तरह दुख देगा.”
“हां दादू. सोच तो मैं भी यही रहा हूं. पर मैं उस से अपने रिश्ते में इतना आगे बढ़ चुका हूं कि अब पीछे कैसे लौटूं, समझ नहीं पा रहा.”
“तुझे कुछ नहीं करना, बेटा. बस, तू उस से साफसाफ कह दे कि मैं तुम जैसी उड़ाऊ, गैरजिम्मेदार और झगड़ालू लड़की से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहता.”
“अरे दादू. यह इतना आसान नहीं.”
“मुश्किल भी नहीं. बस, तुझे यह कहना होगा कि अगर तुम ने मेरा पीछा नहीं छोड़ा तो मेरी दादी तुम्हारे पेरैंट्स को तुम्हारे ऊपर मेरे 12 हज़ार रुपए की बकाया रकम के बारे में बता देंगी. बस, तेरा इतना कहते ही वह तेरी जिंदगी से दुम दबा कर नौ दो ग्यारह हो जाएगी.”
इस पर कुश ने अम्मा जी के हाथ चूमते हुए कहा, “वाह दादू. मान गया मैं आप को. कितना धांसू आइडिया दिया है आप ने. लव यू, दादू. मैं कल ही उसे साफसाफ लफ्जों में यही कहता हूं और उस से अपनी जान छुड़ाता हूं.”
लाड़ले पोते की यह बात सुन कर अम्माजी की आंखें चमक उठीं. और उन्होंने राहत की सांस ली.
तभी उन की एक सहेली दीपा का फोन आ गया.
“अरे आभाजी, आज कालोनी के मंदिर में कीर्तनभजन का कार्यक्रम रखा है. आप तो कभी इन धर्म के कामों में कोई रुचि ही नहीं लेती हो. घर ही घर में घुसी रहती हो. ऐसी भी क्या व्यस्तता भई, जो बुढ़ापे में परलोक सुधारने की भी सुध न रहे.”
“अरे दीपाजी, परलोक किस ने देखा है? मैं तो अपना यही लोक सुधारने की जुगत भिड़ाने में लगी रहती हूं. घरपरिवार में आएदिन कोई न कोई मसला होता ही रहता है. अब घर की बड़ीबुजुर्ग होने के नाते मेरा ही तो फर्ज है न, उस की उलझनों को सुलझाने का. मुझे तो भई माफ करो. मेरे अपने ही काम बहुत हैं. मेरे पास इन फ़ालतू की चीजों के लिए बिलकुल वक़्त नहीं.”
तभी कुश बाहर से आया और दादी से बोला, “दादू, आप का फ़ौर्मूला तो वाकई हिट रहा. मैं ने जैसे ही उधारी की बात उस के पेरैंट्स को बताने की धमकी दी, वह भीगी बिल्ली बन गई. मैं ने उस से कह दिया, “मैं तुम्हारा नंबर ब्लौक कर रहा हूं. अब कभी मुझे कौंटैक्ट करने की कोशिश मत करना.”
“ओ दादू, लव यू. आप तो वाकई में चमत्कारी हो.”