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पत्थर दिल : किताबों के लेनदेन से शुरू हुई प्रेम कहानी

मैंने मोबाइल में समय देखा. 6 बजने में 5 मिनट बाकी थे. सुधा को अब तक आ जाना चाहिए था,

वह समय की बहुत पाबंद थी. मेरी नजर दरवाजे पर टिकी थी. डेढ़, पौने 2 साल से यही क्रम चला आ रहा था. इस का क्या परिणाम होगा, मैं भी नहीं जानता था. फिर भी मैं सावधान रहता था. जो भी हो रहा था, वह उचित नहीं था, यह जानते हुए भी मैं खुद को रोक नहीं पा रहा था.

माना कि वह मुझ पर मुग्ध थी, पर शायद मैं कतई नहीं था. मेरा हराभरा, भरापूरा संसार था. सुंदर, सुशील, गृहस्थ पत्नी, 2 बच्चे, प्रतिष्ठित रौबदाब वाली नौकरी.

15 साल के वैवाहिक जीवन में पत्नी से कभी किसी तरह की कोई किचकिच नहीं. यह अलग बात है कि कभी पल, 2 पल के लिए किसी बात पर तूतूमैंमैं हो गई हो. फिर भी अंदर से व्यवहारिक गृहस्थ कट रहा था कि अभी समय है, यहीं रुक जाओ, वापस लौट आओ.

वैसे सुधा के साथ मेरे जो संबंध थे, वे इतने छिछोरे नहीं थे कि एक झटके में तोड़े जा सकें या अलग हुआ जा सके. सब से बड़ी बात यह थी कि हम ने कभी मर्यादा लांघने की कोशिश नहीं की. हमारे रिश्ते पूरी तरह स्वस्थ और समझदारी भरे थे. कुछ हद तक मेरे बातचीत करने के लहजे और कलात्मक स्वभाव की वजह से वह मेरी ओर आकर्षित हुई थी. इस में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं था.

आप से 10 साल छोटी युवती आप से जबरदस्त रूप से प्रभावित हो और आप संन्यासी जैसा व्यवहार करें, यह संभव नहीं है. मैं ने भी खुद को काबू में रखने की कोशिश की थी, पर मेरी यह कोशिश बनावटी थी, क्योंकि शायद मैं उस से दूर नहीं रह सकता था. कोशिश की ही वजह से आकर्षण घटने के बजाय बढ़ता जा रहा था. लगता था कि यह छूटेगा नहीं. उस की नौसिखिया लेखकों जैसी कहानियां को मैं अस्वीकृत कर देता, वह शरमाती और निखालिस हंसी हंस देती. फिर फटी आंखों से मुझे देखती और अपनी कहानी अपने ही हाथों से फाड़ कर कहती, ‘‘दूसरी लिख कर लाऊंगी.’’

कह कर चली जाती. हमारे बीच किताबों का लेनदेन होने लगा था. उस की दी गई किताबें ज्यादातर मेरी पढ़ी होती थीं. कुछ मुझे पढ़ने जैसी नहीं लगती थीं, मैं उन्हें वापस कर देता था.

वह मेरे अहं को झकझोरती रहती थी. शायद मैं उसे हैरान करने वाली युक्तियों से ठंडक पहुंचाता रहता था. क्योंकि मैं पुरुष था. हमारे संबंध यानी रिश्ते भले ही चर्चा में नहीं थे, पर खुसरफुसर तो होने ही लगी थी. यहां एक बात स्पष्ट कर दूं कि हमारे बीच किसी भी तरह का शारीरिक संबंध नहीं था. इस तरह के रिश्ते के बारे में हम ने कभी सोचा भी नहीं था.

सुधा से इस तरह की मैं ने कभी अपेक्षा भी नहीं की थी. न ही मेरा कोई इरादा था. उस से मेरा रिश्ता मानसिक स्तर का था. जिस तरह लोगों के बीच समान स्तर का होता है, उसी तरह मेरा और उस का बौद्धिक रिश्ता था. ऐसा शायद समाज के डर से था, पर मैं उस से रिश्ता तोड़ने से घबरा रहा था. हमारा समाज स्त्रीपुरुष की दोस्ती को स्वस्थ नजरों से नहीं देखता. यह सत्य भी है, पर ये रिश्ते स्थूल थे. धरातल के थे. यह मान लेना चाहिए कि मेरे और सुधा के बीच रिश्ते पवित्र थे. उस के मन में मेरे प्रति जो आदर था, उसे मैं सस्ते में नहीं ले सकता था. इस बात पर मुझे जरा भी विश्वास नहीं था. कल शाम उस का फोन आया, ‘‘सर, कल शाम को 6 बजे मिल सकते हैं?’’

मना करने का मन था, इसलिए मैं ने पूछा, ‘‘ऐसा क्या काम है?’’

‘‘काम हो तभी मिल सकते हैं क्या सर?’’

‘‘ऐसा तो नहीं है, पर… ओके मिलते हैं, बस.’’ कह कर मैं ने फोन रख दिया.

मेरे फोन रखते ही पत्नी ने पूछा, ‘‘कौन था?’’

मैं कुछ जवाब दूं, उस के पहले ही बोली, ‘‘सुधा ही होगी?’’

‘‘हां, मिलना चाहती है.’’

‘‘तुम नहीं मिलना चाहते?’’ बेधड़क सवाल. पत्नी के इस सवाल का जवाब हां या न में नहीं दिया जा सकता था.

मैं ने कहा, ‘‘डरता हूं सुरेखा, वह भी मेरी तरह लेखक बनना चाहती है. स्त्रीपुरुष का भेद किए बगैर मुझे उस की मदद करनी चाहिए, पर…’’

‘‘वह स्त्री है और सुंदर भी, इसीलिए तुम उदार बन रहे हो न? अगर ऐसा है तो घमंडी कहलाओगे.’’ कह कर पत्नी हंस पड़ी. 10वीं पास गांव की पत्नी का अलग ही रूप.

मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या करूं?’’

‘‘मिलने के लिए तो कह चुके हो, अब पूछ रहे हो?’’

‘‘मैं उस अर्थ से नहीं पूछ रहा, मैं पूछ रहा हूं कि उस के साथ के रिश्ते को कैसे रोकूं सुरेखा. मुझे मेरी नहीं, उस की चिंता है. उसकी अभी नईनई शादी हुई है, वह मुझ पर मुग्ध है. उस की यह मुग्धता उस के दांपत्य में आग लगा सकती है. आई एम रियली कंफ्यूज्ड सुरेखा. वह बहुत ही प्यार करने वाली है.’’

‘‘स्पष्ट और सख्ती से कह दो, तुम्हें फोन न करे. जितना हो सके, उतना दूर रहो उस से.’’ पत्नी की सलाह व्यवहारिक थी.

मेरे भीतर का व्यवहारकुशल आदमी उस की बात से सहमत था पर बवाली मन? वह नहीं चाहता था. उसे इस बात में बिलकुल विश्वास नहीं था. वह सोच रहा था, जो तुम्हें पवित्रता से चाहे, तुम्हारा आदर करे, तुम्हारी दोस्ती के बदले गर्व महसूस करे, उस का अपमान, उस की उपेक्षा ठीक नहीं. इस तरह के आदमी की फिक्र तो सामान्य आदमी भी नहीं करता, तुम तो लेखक हो. लेखक तो समाज से ऊपर उठ कर सोचता है.

उस रात नींद नहीं आई. पूरी रात करवटें बदलता रहा. दिन में औफिस के समय बेध्यान हो जाता. पौने 6 बजे डायरेक्टर से अनुमति ले कर कौफी हाउस के लिए निकल पड़ता. कौफी हाउस नजदीक ही था. मैं गाड़ी से 5 मिनट में पहुंच गया. 6 बजने में 5 मिनट बाकी थे. मैं ने 2 कप कौफी का और्डर कर दिया.

‘अभी तक आई क्यों नहीं?’ मैं ने घबरा कर मोबाइल देखा. मुझे वहां आए करीब 10 मिनट हो गए थे. कोई मुश्किल तो नहीं आ गई. आजकल के पतियों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता. जबरदस्त नजर रखते हैं पत्नियों पर. मोबाइल पर रिसीव्ड और डायल्ड नंबर चैक करते हैं. वाट्सऐप और फेसबुक पर फ्रैंड लिस्ट के साथ मैसेंजर चैक करते हैं. कोई गलत संदेश तो नहीं भेज रहा.

मैं ने माथे का पसीना पोंछा. दरवाजे की तरफ देखा. खिड़की की तरफ ताका तो शाम की गुलाबी धूप छंटने लगी थी. मैं ने सामान्य हो कर बैठने की कोशिश की. आनेजाने वाले असहजता भांप सकते. आखिर 6 बज कर 10 मिनट पर सुधा आई. ब्लैक टीशर्ट और गाढ़ी नीली जींस में आकर्षक लग रही थी. मैं ने मन को लताड़ा, ‘‘तू तो कहता है कि शारीरिक आकर्षण नहीं है, मानसिक दोस्ती है तो फिर…’’

‘‘सौरी सर, आई एम लेट.’’

‘‘बैठो, मैं ने कौफी का और्डर कर दिया है.’’

‘‘थैंक्स सर, सब कुछ ठीक तो है न?’’

‘‘पर ज्यादा समय तक नहीं रहेगा.’’

वातावरण भारी हो उठा. इतना कह कर मैं चुप हो गया था. वह भी चुप थी. थोड़ी देर बाद उस ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘मैं आप को परेशान करती हूं न? सौरी सर, न चाहते हुए भी मैं ने आप को फोन किया. बात यह है कि एक सप्ताह के लिए मैं बाहर घूमने जा रही हूं, इसलिए सोचा कि सर को…’’

‘‘कहां जा रही हो?’’

‘‘जी गुजरात. द्वारिकाधीश.’’

‘‘पति के साथ जा रही हो, साथ में और कौनकौन जा रहा है?’’ मैं ने पूछा.

इसी के साथ मैं ने लंबी सांस छोड़ी. बेयरा 2 कप कौफी रख गया था. एक कप अपनी ओर खिसका कर दूसरा कप उस की ओर खिसका दिया. उसे कौफी ठंडी कर के पीने की आदत थी. मैं ने अपना कप उठा कर मुंह से लगाया.

कप टेबल पर रखते हुए कहा, ‘‘एंजौय करने का टाइम है, करो.’’

‘‘ईर्ष्या हो रही है क्या? मैं तो वही करना चाहती हूं, जो आप को अच्छा लगे. पर पास रहती हूं तो भी आप को अच्छा नहीं लगता और दूर जा रही हूं तो भी आप को अच्छा नहीं लग रहा. आखिर मैं करूं तो क्या करूं, मर जाऊं?’’

‘‘कौफी अच्छी है.’’ कह कर मैं ने चुस्की ली.

वह वैसे ही बैठी रही. वह कौफी ठंडी कर रही थी. मैं अपनी कौफी पी गया. कप टेबल पर रख कर उस की ओर देखा. पत्नी की याद आ गई. मन में आया कि कह दूं कि यह हमारी अंतिम मुलाकात है. अब हम आगे से नहीं मिलेंगे. तुम अपने परिवार में मन लगाओ, मैं अपने परिवार के साथ खुश सुखी हूं. तुम भी अपने परिवार के साथ खुश और सुखी रहो.

अब हमारी उम्र तुम्हारे साथ फाग गाने की नहीं रही. तुम मेरी आंखों के नीचे गड्ढे देख सकती हो. फैलते रेगिस्तान जैसा मेरा सिर. अब इस की विशालता पर गर्व महसूस नहीं किया जा सकता. मेरी बदरूपता का ढिंढोरा पीटता मेरा यह पेट…यह सब तो ठीक है, पर मैं एक जिम्मेदार व्यक्ति हूं सुधा.

‘‘कुछ मंगाना है गुजरात से? नमकीन, किताबें या कुछ और?’’

‘‘नहीं, कुछ नहीं मंगाना.’’

‘‘कोई ख्वाहिश…मन्नत..?’’

‘‘कौन पूरी करेगा?’’

‘‘द्वारिकाधीश.’’ कहते हुए उस की आंखों में सावित्री की श्रद्धा थी.

मैं खिलखिला कर हंस पड़ा. पर उस की श्रद्धा की ज्योति जरा भी नहीं डगमगाई.

‘‘आप को हंसी आ रही है?’’ उस ने एकदम शांति से पूछा, धैर्य खोए बिना. एकदम अलग रूप. उस समय उस की आधुनिकता अदृश्य थी. मेरी नास्तिकता से वह अंजान नहीं थी. फिर भी उस का इस तरह से कहना मुझे हंसने के लिए प्रेरित कर रहा था. इस में कुछ अस्वाभाविक भी नहीं था. पढ़ीलिखी महिलाओं की इस तरह की इच्छाओं को मैं हंसी में उड़ाता था.

‘‘बोलो, क्या चाहते हो?’’ वह अभी भी पहले की ही तरह गंभीर थी.

मुझे मजाक सूझा, ‘‘मांगूं?’’

उस ने आंखों से ही ‘हां’ कहा.

‘‘सुधा, तुम मुझे पसंद नहीं या तुम्हारे प्रति आकर्षण नहीं, यह कह कर मैं खुद के साथ छल नहीं करूंगा. भगवान के प्रति मुझे जरा भी श्रद्धा नहीं है, पर तुम्हारी श्रद्धा की भी हंसी उड़ाने का मुझे कोई हक नहीं है. मुझे अब कोई लालसा नहीं है. मुझे जो मिला है, वह बहुत है. पत्नी, बच्चे, प्रतिष्ठा, पैसा और…’’

‘‘…और?’’

‘‘तुम्हारी जैसी सहृदय मित्र. आखिर और क्या चाहिए? बस, मुझे तुम से एक वचन चाहिए.’’

‘‘क्या?’’

‘‘हमारे बीच यह पवित्रता इसी तरह बनी रहे. हमारी इस विरल मित्रता के बीच शरीर कभी न आए. मित्रता की पवित्रता हम इसी तरह बनाए रखें. हमारे बीच नासमझी की दीवार न खड़ी हो. बोलो, यह संभव है?’’

मेरे इतना कहतेकहते उस की आंखें भर आईं. कौफी का कप खिसका कर वह बोली, ‘‘मुझ पर विश्वास नहीं है सर, आप ने मुझे बहुत सस्ती समझा. स्त्री हूं न, इसीलिए. पर चिंता मत कीजिए, मैं वचन देती हूं कि…’’

इस के बाद बची कौफी एक बार में पी कर बोली, ‘‘आप लेखक हैं. हैरानी हो रही है कि आप लेखक हो कर भी कितने कठोर हैं. लेखक तो बहुत कोमल होता है. आप की तरह पत्थर दिल नहीं.’’

मैं सन्न रह गया. शायद अस्वस्थ भी. मैं ने अपना हाथ छाती पर रख कर देखा, दिल धड़क रहा है या नहीं.

कैसे बनें पत्नी नंबर 1

आजकल अगर आप पत्नियों से यह पूछें कि पति पत्नी से क्या चाहता है तो ज्यादातर पत्नियों का यही जवाब होगा कि सौंदर्य, वेशभूषा, मृदुलता, प्यार. जी हां, काफी हद तक पति पत्नी से नैसर्गिक प्यार का अभिलाषी होता है. वह सौंदर्य, शालीनता, बनावट और हारशृंगार भी चाहता है. पर क्या केवल ये बातें ही उसे संतुष्ट कर देती हैं? जी नहीं. वह कभीकभी पत्नी में बड़ी तीव्रता से उस की स्वाभाविक सादगी, सहृदयता, गंभीरता और प्रेम की गहराई भी ढूंढ़ता है. कभीकभी वह चाहता है कि वह बुद्धिमान भी हो, भावनाओं को समझने वाली योग्यता भी रखती हो.

बहलाने से नहीं बनेगी बात

पति को गुड्डे की तरह बहलाना ही पत्नी के लिए पर्याप्त नहीं. दोनों के मध्य गहरी आत्मीयता भी जरूरी है. ऐसी आत्मीयता कि पति को अपने साथी में किसी अजनबीपन की अनुभूति न हो. वह यह महसूस करे कि वह उसे सदा से जानता है और वह उस के दुखसुख में हमेशा उस के साथ है. पतिपत्नी के प्यार और वैवाहिक जीवन में यह आत्मिक एकता जरूरी है. पत्नी का कोमल सहारा वास्तव में पति की शक्ति है. यदि वह सहृदयता और सूझबूझ से पति की भावनाओं का साथ नहीं दे सकती, तो वह सफल पत्नी नहीं कहला सकती. पत्नी भी मानसिक तृष्णा अनुभव करती है. वह भी चाहती है कि वह पति के कंधे पर सिर रख कर जीवन का सारा बोझ उतार फेंके.

बहुतों का जीवन प्राय: इसलिए कटु हो जाता है कि वर्षों के सान्निध्य के बावजूद पति और पत्नी एकदूसरे से मानसिक रूप से दूर रहते हैं और एकदूसरे को समझ नहीं पाते हैं. बस यहीं से शुरू होती है दूरी. यदि आप चाहती हैं कि यह दूरी न बढ़े, जीवन में प्रेम बना रहे तो निम्न बातों पर गौर करें:

यदि आप के पति दार्शनिक हैं तो आप दर्शन में अपनी जानकारी बढ़ाएं. उन्हें कभी शुष्क या उदास मुखड़े से अरुचि का अनुभव न होने दें.

– यदि आप कवि की पत्नी हैं, तो समझिए वीणा के कोमल तारों को छेड़ते रहना आप का ही जीवन है. सुंदर बनी रहें, मुसकराती रहें और सहृदयता से पति के साथ प्रेम करें. उन का दिल बहुत कोमल और भावुक है, आप की चोट सहन न कर पाएगा.

– आप के पति प्रोफैसर हैं तो आटेदाल से ले कर संसार की प्रत्येक समस्या पर हर समय व्याख्यान सुनने के लिए प्रसन्नतापूर्वक तैयार रहें.

– यदि आप के पति धनी हैं, तो उन के धन को दिमाग पर लादे न घूमें. धन से इतना प्रभावित न हों कि पति यह विश्वास करने लगे कि सारी दिलचस्पी का केंद्र उस की दौलत है. आप दौलत से बेपरवाह हो कर उन के व्यक्तित्व की उस रिक्तता को पूरा करें जो हर धनिक के जीवन में होती है. विनम्रता और प्रतिष्ठतापूर्वक दौलत का सही उपयोग करें और पति को अपना पूरा और सच्चा सान्निध्य दें.

– यदि आप के पति पैसे वाले न हों तो उन्हें केवल पति समझिए गरीब नहीं. आप कहें कि आप को गहनों का तो बिलकुल शौक नहीं है. साधारण कपड़ों में भी अपना नारीसौंदर्य स्थिर रखें. चिंता और दुख से बच कर हर मामले में उन का साथ दें.

हमेशा याद रखें कि सच्चा सुख एकदूसरे के साथ में है, भौतिक सुखसुविधाएं कुछ पलों तक ही दिल बहलाती हैं.

जैक डोर्सी के इंटरव्यू पर उठते सवाल

69 वर्षीय पवन कुमार वर्मा के बारे में राजनीति में बहुत ज्यादा दिलचस्पी रखने वाले लोग ही जानते हैं कि वे कई अहम किताबें लिख चुके हैं और 2014 में जनता दल यूनाइटेड की तरफ से राज्यसभा भी भेजे गए थे लेकिन पार्टी के खिलाफ बयानबाजी करने के चलते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इस के बाद उन्होंने ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस जौइन कर ली थी लेकिन नामालूम वजहों के चलते उसे भी छोड़ दिया. हालांकि, उन्होंने सामयिक मुद्दों पर लिखना और बोलना नहीं छोड़ा. अप्रैल के तीसरे हफ्ते में उन्होंने अपने एक कौलम में लिखा था-

मीडिया प्लेटफौर्म्स को धमकाना, उन पर दबाव बनाना, उन्हें सजा देना, विज्ञापन न देना लोकतंत्र की सीमारेखा को लांधने वाली गतिविधि कहलाएगी. तो, क्या सरकार ने यह सीमारेखा लांघी है. हां और न दोनों, यह तो कोई भी नहीं कह सकता कि भारत में स्वतंत्र मीडिया नहीं है लेकिन यह भी नहीं कहा जा सकता कि उस पर अंकुश लगाने की कोशिशें नहीं हुई हैं.

हाल के समय में कुछ परेशान कर देने वाले ट्रैंड्स उभरे हैं जिन की अनदेखी नहीं की जा सकती. पहला तो यही कि सरकार की किसी भी तरह की आलोचना को तुरंत राष्ट्रविरोधी या राष्ट्रीय सुरक्षा के विरुद्ध करार दिया जाता है.

पवन कुमार वर्मा की बातों को राजनेता या लेखक होने के अलावा इस नजरिए या पहलू से भी देखा जाना जरूरी है कि वे लंबे समय तक विदेश सेवा के अधिकारी, विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता और भूटान में भारत के राजदूत भी रहे हैं. उन की राजनीतिक आस्था चलायमान हो सकती है लेकिन मीडिया की स्वतंत्रता को ले कर उन की चिंता पर शक नहीं किया जा सकता जो वे मौजूदा सरकार की पीठ पर तकिया बांध कर लठ मारने से नहीं चूकते. नंगी पीठ पर प्रहार करने से शायद इसलिए कतराते हैं कि अंदर से वे हिंदू धर्म के हिमायती हैं जिस के चलते नीतीश कुमार उन से खफा हो गए थे.

जैक डार्सी का छलका दर्द

पवन कुमार का यह कहना कि, मीडिया प्लेटफौर्म्स को धमकाया जाता है, 2 महीने बाद बीती 14 जून को एक बड़े बवाल की शक्ल में सामने आया जब ट्विटर के संस्थापक रहे जैक डार्सी ने भारत सरकार पर कई गंभीर आरोप लगाए. जैक डार्सी ने यूट्यूब के एक शो ‘ब्रेकिंग पौइंट्स विद क्रिस्टल एंड सागर’ को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि किसान आंदोलन के दौरान भारत सरकार ने ट्विटर पर दबाव बनाया था. सरकार कुछ ऐसे ट्विटर अकाउंट बंद करने को कह रही थी जिन में किसान आंदोलन को ले कर केंद्र सरकार की आलोचना की जा रही थी. यह बात न मानने पर सरकार ने ट्विटर को बंद करने और कर्मचारियों के घरों पर छापे मारने की धमकी दी थी.

जब बात किसी खरबपति मीडिया कारोबारी की हो, तो बात क्या कही गई, इस से ज्यादा अहम यह हो जाता है कि बात कब कही गई. खासतौर से, जब कहने वाला जैक डार्सी जैसा कामयाब कारोबारी हो तो इस से बचा नहीं जा सकता.

असल में इस इंटरव्यू के कुछ दिनों पहले ही अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को अमेरिका के मियामी की अदालत से गोपनीय दस्तावेजों से छेड़छाड़ के आरोप में गिरफ्तार किया गया था और उस के भी कुछ दिनों पहले कांग्रेसी नेता राहुल गांधी अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान भारत में दलितों और अल्पसंख्यकों की बदहाली के साथसाथ वाशिंगटन के नैशनल प्रैस क्लब में मीडिया की दुर्दशा पर भी खुल कर बोले थे कि भारत में मीडिया की ताकत कमजोर हो रही है.

इस सीरीज या घटनाक्रम के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि यह दक्षिणपंथियों पर वामपंथियों का श्रृंखलाबद्ध हमला था जो पूर्वनियोजित नहीं था. वामपंथी विचारधारा के जैक डार्सी बोलने की आजादी, खुलेपन और वैचारिक उदारता के पक्षधर हैं. यह बात साल 2018 में एक अमेरिकी न्यूज चैनल सीएनएन को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने स्वीकारी भी थी, हालांकि, उन्होंने यह सफाई भी दी थी कि इस से उन की कंपनी की पौलिसी प्रभावित नहीं होती. ट्विटर द्वारा लिए गए फैसलों के बारे में भी उन्होंने स्पष्ट किया था कि ट्विटर राजनीतिक चश्मे से फैसले नहीं लेता बल्कि फैसले कंटैंट के हिसाब से लिए जाते हैं.

यह वह वक्त था जब एपल से ले कर स्पोटीफाई जैसी नामी और दिग्गज टैक कंपनियों पर सार्वजानिक विचारों को प्रभावित करने का आरोप लगा था. इस विवाद के दौर में ही ट्विटर ने एक दक्षिणपंथी टौक शो होस्ट करने वाले एलेक्स जोन्स का अकाउंट सस्पैंड कर दिया था. इस से भी पहले ट्विटर ने राष्ट्रपति रहते डोनाल्ड ट्रंप का भी अकाउंट अस्थाई रूप से बंद कर दिया था. तभी से यह कहा जाने लगा था कि ट्विटर मोदीविरोधी है क्योंकि तब डोनाल्ड ट्रंप और नरेंद्र मोदी की दोस्ती के चर्चे दुनियाभर में चटखारे ले कर होने लगे थे. सोशल मीडिया के ‘वीर’ तो मजाक में उन की तुलना ‘शोले’ फिल्म के जय और वीरू की दोस्ती से करने लगे थे.

मुमकिन है, यह सीरीज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान उन्हें असहज कर देने की कोशिश हो लेकिन इस सच को नकारा नहीं जा सकता कि किसान आंदोलन में आंदोलनकारियों ने सरकार की मनमानी के आगे घुटने नहीं टेके थे और काले कानूनों पर उसे झुकने पर मजबूर कर दिया था. यह नरेंद्र मोदी और उन की सरकार की पहली बड़ी और करारी  शिकस्त थी जिसे वे कभी याद नहीं करना चाहेंगे.

सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने जैक डार्सी के बयान का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने 2020 से ले कर 22 तक बारबार भारतीय कानूनों को तोड़ा है लेकिन इस दौरान न तो कोई जेल गया और न ही भारत में ट्विटर का शटडाउन हुआ. जनवरी 2021 में विरोध प्रदर्शनों के दौरान कई गलत सूचनाओं को हटाने को सरकार को बाध्य होना पड़ा.

लेकिन जब किसान आंदोलन याद दिला ही दिया गया तो सरकार के घाव फिर हरे हो गए और जवाब में जैक डार्सी के पांव उन्हीं के गले में उलझाने की नाकाम कोशिश की गई जिस से असल मुद्दे यानी जैक डार्सी की मंशा पर लोगों का ध्यान न जाए. बात कायदे, कानूनों और नियमों की भी की गई जिस के जैक डार्सी आदी हैं और ऐसे हालात से बच कर निकलने के हुनर में माहिर हैं. हालांकि ब्रेकिंग पौइंट का इंटरव्यू देख फौरीतौर पर ऐसा लगता है कि वे प्रसंगवश और यों ही तुर्की के साथसाथ भारत का जिक्र कर बैठे थे लेकिन यह एक खुशफहमीभर है क्योंकि इस बयान में उन का दर्द, बेबसी व खीझ तीनों एकसाथ छलक रहे थे.

कहासुनी और कानूनों का अर्धसत्य

विवाद 2 साल से भी ज्यादा पुराना यानी किसान आंदोलन के दौरान का है जब 4 फरवरी, 2021 को केंद्र सरकार के कहने पर ट्विटर ने 500 से भी ज्यादा अकाउंट्स पर रोक लगा दी थी जबकि सरकार ने उसे 1,178 अकाउंट्स की लिस्ट दी थी. इस बात की जानकारी ट्विटर ने इन शब्दों के साथ 11 फरवरी, 2021 को एक ब्लौग के जरिए दी भी थी कि, भारत सरकार द्वारा देश में कुछ अकाउंट्स को बंद करने के निर्देश के तहत उस ने कुछ अकाउंट्स पर रोक लगाई है. नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं, राजनीतिज्ञों एवं मीडिया के ट्विटर हैंडल को ब्लौक नहीं किया गया है क्योंकि ऐसा करने से अभिव्यक्ति की आजादी के मूल अधिकार का उल्लंघन होता.

ट्विटर ने यह भी कहा था कि वह भारतीय कानूनों के तहत ट्विटर एवं प्रभावित खातों दोनों के लिए विकल्प तलाश करने की सक्रियता से कोशिश कर रहा है. विवादित अकाउंट्स के बारे में सरकार की दलील यह थी कि उन का जुड़ाव पाकिस्तानी और खालिस्तानी समर्थकों के साथ पाया गया है और जिन से किसानों के प्रदर्शन के संबंध में भ्रामक और भड़काऊ सामग्री शेयर की गई. इस से पहले भी सरकार ने किसान आंदोलन के संबंध में हुए ट्वीट्स को ले कर 257 अकाउंट्स पर रोक लगाने के लिए कहा था. असल फसाद की जड़ यही अकाउंट्स थे जिन्हें ट्विटर ने कुछ घंटों के लिए तो रोका लेकिन ये अकाउंट्स फिर से ऐक्टिव हो गए.

अपने हुक्म की तामील न होते देख सरकार हत्थे से उखड़ गई और ट्विटर को कानूनी नोटिस दे दिया. सरकार ने आईटी एक्ट की धारा 69 ए (3) का हवाला दिया जिस के तहत ट्विटर के अधिकारियों को 7 साल की जेल की सजा हो सकती थी. इस पर भी ट्विटर ने ब्लौगपोस्ट के जरिए कहा कि नुकसानदेह सामग्री वाले हैशटैग की दृश्यता घटाने के लिए उस ने कदम उठाए हैं जिन में ऐसे हैशटैग को ट्रैंड करने से रोकना एवं सर्च के दौरान इन्हें देखने की सिफारिश नहीं करने देना है. उस ने यह सूचना इलैक्ट्रौनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को देते यह भी स्पष्ट किया कि अकाउंट्स बंद करने के आदेश में चिन्हित अकाउंट्स के एक हिस्से पर हमारी विषयवस्तु नीति के तहत केवल भारत में रोक लगाई गई है. ये अकाउंट्स भारत के बाहर उपलब्ध रहेंगे.

ट्विटर ने सरकार की मनमानी पर बेहद विनम्र लहजे में अपनी यह बात भी रखी कि हम नहीं मानते कि जिस तरह की कार्रवाई के हमें निर्देश दिए गए हैं वे भारतीय कानून और अभिव्यक्ति की रक्षा करने के हमारे सिद्धांत के अनुरूप हैं. बात अब बोलने और लिखने की आजादी को ले कर अपनीअपनी परिभाषाओं, पैमानों और सिद्धांतों की हो गई थी जिस पर ट्विटर भारी पड़ा क्योंकि जहांजहां उसे आपत्तिजनक सामग्री दिखी वहांवहां उस ने सरकार की बात मानी लेकिन जहां उसे लगा कि यह सामग्री आपत्तिजनक या भड़काऊ नहीं है वहां उस ने, खासतौर से, मीडिया, राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपनी बात कहने दी.

ट्विटर का यह कहना भी सरकार को नागवार गुजरा कि अहम यह है कि लोग समझें कि कैसे सामग्री में संतुलन और दुनियाभर की सरकारों से संवाद वह बढ़ाती है. स्वतंत्र इंटरनैट एवं अभिव्यक्ति के पीछे के मूल्यों पर पूरी दुनिया में खतरा बढ़ रहा है. ट्विटर उन आवाजों को ताकत देने के लिए है जिन्हें सुना जाना चाहिए.

लेकिन सरकार को सलाहमशवरे की नहीं बल्कि किसानों के समर्थन में उठ रही आवाजें बंद करने की दरकार थी. इस बाबत देसी मीडिया तो हमेशा की तरह मैनेज था लेकिन विदेशी सोशल मीडिया पकड़ में नहीं आ रहा था. लिहाजा, उसे कानून का डंडा दिखाया गया. इस से बात बनी तो, लेकिन आधीअधूरी बनी, क्योंकि ट्विटर ने बेहद सधे लहजे में भारतीय कानूनों की व्याख्या अदालत से बाहर ही कर दी थी कि वह सरकार की मंशा या स्वार्थसिद्धि का साधन नहीं बन सकते. साबित यह भी हो गया कि सरकार ने ट्विटर पर दबाव बनाया था और वक्तवक्त पर दूसरे अकाउंट्स बंद करने का दबाव वह ट्विटर पर बनाती रही है.

एक मामले में 22 मार्च, 2022 को दिल्ली हाईकोर्ट ने एक हिंदू देवी काली के बारे में लगातार ईशनिंदा करने वाले नास्तिक संगठन को ब्लौक न किए जाने पर ट्विटर की आलोचना की थी. इस मामले पर लंबीचौड़ी बहस अदालत में हुई थी लेकिन उस से यह साफ नहीं हो पाया था कि ट्विटर किस हद तक भारतीय कानूनों को मानने के लिए बाध्य है और क्या सरकार के कहने पर उसे किसी अकाउंट पर बिना सोचेसमझे रोक लगा देनी चाहिए. इसी तरह पौप सिंगर रौबिन रिहाना के एक शूट के दौरान उस के गले में गणेश का पेंडेट लटका देख भी हिंदूवादियों ने जम कर बवाल काटा था और ट्विटर के खिलाफ दिल्ली और मुंबई पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

मामला कारवां का

ऐसा ही एक मामला दिल्ली प्रैस की लोकप्रिय इंग्लिश मैगजीन ‘कारवां’ का है जिस का ट्विटर अकाउंट ब्लौक कर दिया गया था. एक स्वतंत्र खोजी पत्रकार सृष्टि अग्रवाल ने जब इस संबंध में आरटीआई के तहत जानकारी मांगी तो मामला कानून के मकड़जाल में उलझ कर रह गया और सृष्टि को चाही गई जानकारी नहीं मिली. उन्होंने 30 अप्रैल, 2021 को इलैक्ट्रौनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के सामने एक आरटीआई दायर कर उन सभी उपयोगकर्ताओं के नाम और हैशटैग की लिस्ट मांगी थी जिन्हें केंद्र सरकार ने ट्विटर को ब्लौक करने का निर्देश दिया था.

इन में से एक हैशटैग मोदी प्लानिंग फार्मर जिनोसाइड भी था, यह भी ब्लौक कर दिया गया था. इस के पीछे आईटी मंत्रालय का कहना यह था कि यह लिंक विरोधों के बारे में गलत सूचना फैला रहा था जो देश में सार्वजनिक व्यवस्था की स्थिति को प्रभावित करने वाली आसन्न हिंसा को जन्म देने की क्षमता रखती हैं. ‘कारवां’ ने किसान आंदोलन के दौरान दिल्ली में एक किसान नवप्रीत सिंह की मौत की सूचना दी थी.

नवप्रीत की मौत पर खासा बवंडर उस वक्त मचा था जिस पर कारवां ने पड़ताल की थी. इस मौत के बारे में चश्मदीदों, नवप्रीत के घर वालों और पोस्टमौर्टम करने वाले फौरेंसिक विशेषज्ञों ने ‘कारवां’ को बताया था कि नवप्रीत की गोली मार कर हत्या की गई थी. उलट इस के, दिल्ली पुलिस का दावा यह था कि यह मौत तेज रफ़्तार से ट्रैक्टर चलाने से हुए हादसे के चलते हुई.

इस के बाद तो देशभर से ‘कारवां’ के संपादक, मालिकान और पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की होड़ सी लग गई थी, मानो एक किसान की मौत की खबर देने की अपनी जिम्मेदारी निभा कर उन्होंने कोई संगीन गुनाह कर दिया हो. हैरानी की बात यह भी कि ‘कारवां’ ने उक्त हैशटैग का इस्तेमाल ही नहीं किया था.

बहरहाल, सृष्टि की आरटीआई इस आधार पर खारिज कर दी गई कि ‘कारवां’ के ट्विटर अकाउंट को आईटी एक्ट की धारा 69 के तहत ब्लौक किया गया था जो राष्ट्रीय सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता से ताल्लुक रखते मुद्दों से जुड़ी है और आईटी अधिनियम की ही धारा 8 (1) (ए) के तहत इसे उजागर नहीं किया जा सकता. सृष्टि ने हार नहीं मानी और लगातार कानूनों के तहत ही कार्रवाई करती रहीं और सरकार ने हर बार गोपनीयता की आड़ ले कर उन्हें टरका देने में ही अपनी भलाई समझी.

किसलिए हैं ये कानून

धारा 8 (1) (ए) सरकार के लिए ढाल का काम ज्यादा करती है. आम लोगों के भले या हित से इस का कोई लेनादेना नहीं. जो जानकारी सरकार छिपाना चाहती है उस की वजह झट से इस कानून को बता देती है, जबकि ‘कारवां’ के मामले में स्थिति बहुत साफ थी कि उस ने किसी को भड़काया या उकसाया नहीं था, बस, एक किसान की मौत की खबर दी थी. मुमकिन है इस के पीछे सरकार के अपने पूर्वाग्रह रहे हों क्योंकि दिल्ली प्रैस पत्रिकाएं किसी के भी गलत का लिहाज नहीं करती हैं.

मोदी सरकार की नोटबंदी के दौरान भी साल 2018 में भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी धारा के सहारे दायर हुई आरटीआई याचिकाएं खारिज की थीं और कोविड-19 वैक्सीन मूल्य निर्धारण नीति पर दायर याचिकाओं पर भी इसे ढाल बनाया था. ऐसी ही एक याचिका खारिज करते कहा यही गया था कि जानकारी का खुलासा करना राज्य के रणनीतिक, वैज्ञानिक और आर्थिक हितों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.

इसी अधिनियम का हवाला दे कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री की मांग खारिज कर दी जाती है जिस के पीछे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फिर हाथ धो कर पीछे पड़ गए हैं. जैक डार्सी ने अपने इंटरव्यू में यों ही भारतीय लोकतंत्र पर कटाक्ष नहीं कर दिया बल्कि इस की अपनी वजहें भी हैं कि आप अपने देश के मुखिया की शक के दायरे में आ गई डिग्री भी नहीं मांग सकते. अब उस से कैसे देश की अखंडता, संप्रभुता, गोपनीयता को खतरा है, यह सरकार जाने. यह मामला न तो आर्थिक है, न वैज्ञानिक है और न ही रणनीतिक है. कमोबेश दूसरे मामले भी इस से बहुत ज्यादा भिन्न नहीं हैं.

इस तरह के उदहारण बहुत हैं जिन में सरकार अपने ही देश के नागरिकों को जानकारी देने से कतराती और डरती रही है. भारतीय वायुसेना के लड़ाकू विमानों राफेल की विवादस्पद खरीदी हो या फिर विदेशों से वापस आए कालेधन की तथाकथित वापसी की जिज्ञासा हो, आप को इन पर भी जानने का हक नहीं. बिलाशक हर किसी को कानूनों का पालन करना चाहिए लेकिन यह भी देखा जाना जरूरी है कि उन से जनता को कोई सुविधा मिल रही है और सुरक्षा हो रही है या फिर वे सरकार की नाकामी व मनमानी छिपाने के लिए हैं, जैक डार्सी के इंटरव्यू ने यही परदा उठाया है.

आप को छूट और अधिकार सिर्फ देश में जगहजगह हो रहीं रामकथाओं और भागवद कथा सुनने के लिए हैं. आप कलश यात्राओं और कांवड़ यात्राओं में नंगेपांव चलने के भी अधिकारी हैं जिन से आप के लोकपरलोक दोनों सुधरते हैं. बाबाओं को चढ़ोत्री देते रहने से आप मोक्ष के हकदार हो जाते हैं. बाकी ट्विटर, मीडिया, बोलने की आजादी वगैरह सब मिथ्या बातें हैं. सरकार जो भी करती रहे, कहती रहे उसे खामोशी से देखते और सुनते रहिए. उस की हां में हां मिलाते रहिए, वही इस नश्वर जीवन का सार और सार्थकता व देशभक्ति भी है. इस पर भी जी न भरे, तो जीभर कर दिनरात हिंदूमुसलमान करने की भी सहूलियत है जो 8 साल से देश में इफरात से हो रहा है.

आजादी पर आंच

जैक डार्सी ने अपने इंटरव्यू के जरिए जो इशारा किया वह मीडिया की बदहाली की तरफ ज्यादा  था. देश के अधिकतर न्यूज चैनल भगवा गैंग के हाथों बिके माने जाते हैं. बीती 3 मई को वर्ल्ड प्रैस फ्रीडम यानी विश्व प्रैस स्वतंत्रता सूचकांक की रिपोर्ट में भारत का स्थान 180 देशों में 161वें नंबर पर है जो पिछले साल 150 नंबर पर था. साल 2002 में जब पहली बार यह सिलसिला शुरू हुआ था तब मीडिया की आजादी के मामले पर भारत 80वें नंबर पर था. मीडिया की हालत इसी से समझी जा सकती है कि न्यूजरूम में छाता पकड़ कर ऐक्टिंग की जा रही है. यानी, मीडिया की आजादी सालदरसाल छिनती गई. मोदी सरकार के राज में तो इस की और भी दुर्गति हो रही है.

यह रिपोर्ट कुछ तयशुदा पैमानों पर आरएसएफ यानी ‘रिपोर्टर्स विदाउट बौर्डर्स’ नाम की संस्था, जो कि अंतर्राष्ट्रीय एनजीओ है, तैयार करती है. इस रिपोर्ट की एक टिप्पणी में यह भी कहा गया है कि भारत में पत्रकारों के खिलाफ हिंसा राजनीतिक तौर पर पक्षपाती मीडिया, कुछ लोगों के हाथ में मीडिया का मालिकाना हक, यह दिखाता है कि 2014 से भारतीय जनता पार्टी के नेता और राष्ट्रवादी हिंदू विचारधारा से जुड़े नरेंद्र मोदी शासित दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र में प्रैस की आजादी खतरे में है.

प्रिंट मीडिया के लिहाज से भी आरएसएफ की इस टिप्पणी से असहमत नहीं हुआ जा सकता जहां अखबारों का धंधा पुश्तैनी है. जो अखबार दादा देखता था, उस की कमान अब उस पोते के हाथ में है जिस की प्रतिबद्धता हमेशा सत्तापक्ष के साथ रही है. इन से निष्पक्ष पत्रकारिता की उम्मीद पूरी न होना उतनी दिक्कत की बात नहीं जितनी यह है कि ये सब सिरे से चाटुकार हो गए हैं.

भारत में अभी भी प्रिंट मीडिया ज्यादा भरोसेमंद माना जाता है लेकिन अकेले सत्तापक्ष का गुणगान कैसे पाठकों को भ्रमित और गुमराह कर एक पूर्वाग्रह से ग्रस्त कर देता है, इसे सुप्रीम  कोर्ट के एक फैसले में दी गई इस टिप्पणी से समझना ज्यादा अहम होगा. यह टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने मलयालम न्यूजचैनल ‘मीडिया वन’ के लाइसैंस के नवीनीकरण की सुनवाई के दौरान बीती 5 अप्रैल को दी थी. इस चैनल पर सरकार ने पाबंदी लगा दी थी-

एक मजबूत लोकतांत्रिक गणराज्य के कामकाज के लिए एक आजाद प्रैस चाहिए लोकतांत्रिक समाज में प्रैस की भूमिका अहम है. राज्य काम कैसा कर रहा है, प्रैस इस पर रोशनी डालती है. प्रैस का कर्तव्य है कि वह सच बोले और नागरिकों के सामने तथ्य रखे ताकि लोकतंत्र सही दिशा में चले. प्रैस की आजादी पर अगर प्रतिबंध लग जाए तो सभी नागरिक एक ही तरह से सोचने लगेंगे और अगर समाज सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तौर पर एक ही तरह की विचारधारा रखने लगे तो इस से प्रजातंत्र को गंभीर खतरे पैदा होंगे.

गौरतलब है कि ‘मीडिया वन’ चैनल के लाइसैंस का नवीनीकरण न करने पर भी राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला दिया गया था. इस पर कोर्ट ने दो टूक कहा था कि सरकार की नीतियों के खिलाफ चैनल के आलोचनात्मक विचारों को देशविरोधी नहीं कहा जा सकता. मीडिया की आजादी पर मंडराते इसी खतरे से अगर जैक डार्सी ने आगाह किया है तो कौन सा गुनाह कर दिया. यह तो देश के हित और भले की बात है.

जानिए ट्विटर और जैक डार्सी को

अमेरिका के सैंट लुईस में जन्मे 46 वर्षीय जैक डार्सी ने बहुत कम उम्र में ही उम्मीद से ज्यादा दौलत और शोहरत यों ही हासिल नहीं कर ली है, इस के पीछे उन के खुराफाती दिमाग और उन की रिस्क लेने की क्षमता शामिल है . बिलाशक प्रतिभाशाली तो वे हैं ही. वे साल 2006 का एक कोई दिन था जब एक शाम की पार्टी में उन के 2 दोस्तों बिज स्टोन और नोआ ग्लास की बातचीत में ट्विटर के आइडिए पर चर्चा हुई थी. तब मकसद यह था कि एक ऐसा प्लेटफौर्म या वैबसाइट बनाई जाए जिस पर लोग अपने दिलोदिमाग में आ रही बातें शेयर कर सकें.

इस के बाद हर कभी इस पर चर्चा होने लगी और आइडिए को ट्विटर नाम दिया गया. माइक्रोब्लौगिंग प्लेटफौर्म ट्विटर के वजूद में आते ही पहला ट्वीट 22 मार्च, 2006 को जैक डार्सी ही ने किया था. जैक डार्सी की विलासी जिंदगी अकसर सुर्ख़ियों में रही. वे आलीशान मकान में रहते हैं, स्पोर्ट्स कारों व डेटिंग के शौक़ीन हैं और माडल्स के प्रति उन का झुकाव है. हालांकि, वे एक वक्त ही खाना खाते हैं और नहाते बर्फ से हैं जो कोई असामान्य बात नहीं है, बल्कि यह एक खास किस्म की स्टाइल है, जिस की आलोचना भी अमेरिका में होती रही थी.

जैक डार्सी कोई रईस घराने के नही हैं. उन के पिता टिम डार्सी मध्यवर्गीय थे, वे एक कंपनी में काम करते थे. कैथोलिक परिवेश में पलेबढ़े इस किशोर ने कामचलाऊ माडलिंग भी की थी और पैसा कमाने के लिए वे मालिश भी करते थे. यह साल 2002 की बात है जब उन्होंने अमेरिकी कानून के मुताबिक मालिश करने का लाइसैंस लिया था. लेकिन महज 14 साल की उम्र में उन्होंने टैक्सी

डिस्पैचिंग सौफ्टवेयर बना कर इस कहावत को चरितार्थ कर दिया था कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं. सौफ्टवेयर में बढ़ती दिलचस्पी और कुछ लापरवाह मिजाज ने उन्हें कालेज की पढ़ाई पूरी नहीं करने दी, सो, उन्होंने ओडियो नाम की एक पौडकास्टिंग कंपनी में नौकरी कर ली. ट्विटर चल निकला, तो 2015 में उन्हें उस का सीइओ बना दिया गया. साल 2021 को उन्होंने यह पद छोड़ दिया जिसे भारतीय मूल के पराग अग्रवाल ने संभाला.

अच्छे मैनेजर और बिजनैसमन साबित हुए जैक डार्सी के साथ विवादों की भी लंबी फेरहिस्त है. इस की शुरुआत उस वक्त हुई थी जब उन्होंने अपने साथी  नोआ ग्लास को बाहर का रास्ता दिखा दिया था. 2013 में ट्विटर जब लोकप्रिय होने लगा और इसे इस्तेमाल करने वालों की तादाद बढ़ने लगी तो रूढ़ियों के विरोधी जैक डार्सी सुर्ख़ियों में रहने लगे क्योंकि उन पर लक्ष्मी बरसने लगी थी. उस साल तक उन की संपत्ति 2.2 अरब डौलर की आंकी गई थी जो अब लगभग 4.3 बिलियन डौलर है. उन्हीं के कार्यकाल में डोनाल्ड ट्रंप का अकाउंट सस्पैंड किया गया था जिस की चर्चा दुनियाभर में हुई थी और पहली बार घोषिततौर पर उन पर लेफ्ट यानी वामपंथी होने का ठप्पा लगा था जिस पर उन्होंने कभी एतराज नहीं जताया, उलटे, खुद को वामपंथी कहे जाने पर फख्र ही महसूस करते रहे.

अपने सीईओ रहते उन्होंने एक आर्थिक जोखिमभरा फैसला यह भी लिया था कि ट्विटर पर राजनीतिक विज्ञापन नहीं लिए जाएंगे. 2011 में राष्ट्रपति बराक ओबामा का उन का लिया इंटरव्यू भी चर्चित रहा था जो उस वक्त ट्विटर की शब्दसीमा 140 का था. साल 2020 में ट्विटर पर सौ से भी ज्यादा अकाउंट हैक हुए थे, जिन में से एक बराक ओबामा का भी था, तब भी खासा बबाल मचा था.

ट्विटर के मुखिया रहते उन की पूछपरख स्वाभाविक रूप से थी. दुनियाभर के जिन देशों के प्रमुखों से वे मिले, उन में नरेंद्र मोदी का नाम प्रमुखता से शामिल है जिन से साल 2018 में वे मिले थे. तब जैक डार्सी ने नरेंद्र मोदी के साथ अपना एक फोटो शेयर करते यह भी लिखा था कि ट्विटर के लिए सुझाव देने का धन्यवाद. ट्विटर छोड़ने के बाद उन्होंने अपनी कंपनी ब्लैक इंक और ब्लू स्काई नाम का एप बनाया जिसे ट्विटर का ही संस्करण कहा जाता है, लेकिन दोनों आज भी ट्विटर के सामने कहीं नहीं ठहरते

जैक डार्सी की भारत यात्रा भी विवादों से घिरी रही थी. 19 नवंबर, 2018 को एक तसवीर में उन के हाथ में एक पोस्टर दिखा था जिस पर लिखा था- ‘ब्राह्मण पितृसत्ता का नाश हो’ इस पर भी खूब हल्ला मचा था. तब सवाल यह भी पूछा गया था कि आप क्या केवल लेफ्ट विंग वालों के लिए ही भारत आए थे. असल में वह महिला लेखकों, एक्टिविस्टों और पत्रकारों का एक आयोजन था और ब्राह्मणविरोधी प्लेकार्ड स्वाति अर्जुन नाम की पत्रकार ने उन्हें पकड़ा दिया था. लेकिन ऐसा लगता नहीं कि जैक डार्सी जैसे चतुर कारोबारी ने यों ही नादानी या अनजाने में उसे पकड़ लिया होगा.

ट्विटर को खड़ा करने वाले जैक डार्सी ने कम वक्त में ही दुनिया की राजनीति और हालात समझ लिए हैं और उन्हें भुनाने का कोई मौका वे नही छोड़ते. जब ट्विटर को एलन मस्क ने 44 अरब रुपए में खरीदा था तो हर किसी को समझ आ गया था कि यह एक विचारधारा का नकद के एवज में स्थानांतरण है. एलन मस्क घोषिततौर पर दक्षिणपंथी हैं, इसीलिए उन्होंने ट्विटर की कमान संभालते ही सब से पहले डोनाल्ड ट्रंप व उन के साथियों के अकाउंट बहाल किए थे. अमेरिका में ट्विटर के सब से ज्यादा 9 करोड़ 54 लाख यूजर हैं, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि उस का प्रभाव वहां आने वाले चुनावों पर नहीं पड़ेगा. भारत में यह संख्या 3 करोड़ छूने वाली है, इसलिए ट्विटर का असर 2024 के लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा. लेकिन यह अब ट्विटर की नई सीईओ लिंडा पर निर्भर करेगा जिन का रुख अभी साफ़ नहीं हुआ है.

नया क्षितिज: जानें क्या हुआ जब फिर आमने सामने आए वसुधा-नागेश?

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Anupamaa Spoiler: क्या तड़पती बेटी को देख अमेरिका नहीं जाएगी अनुपमा !

Anupamaa Spoiler : टीवी सीरियल ‘अनुपमा’ में आए दिन नए-नए ट्विस्ट देखने को मिल रहे हैं.  रोजाना शो की टीआरपी बढ़ती जा रही है. वहीं शो के नए प्रोमो वीडियो को देखने के बाद ये लग रहा है कि अभी चीजें और ज्यादा कॉम्पलैक्स होने वाली हैं. साथ ही इस बात की भी कनफ्यूजन बनी रहेगी कि अनुपमा अमेरिका जा पाएगी या नहीं? तो आइए जानते हैं आने वाले एपिसोड में दर्शकों को क्या कुछ नया देखने को मिलेगा.

क्या स्वीटी अनुपमा को बतादेगी सच्चाई?

मंगलवार के एपिसोड (Anupamaa Spoiler) में दिखाया जाएगा कि स्वीटी अपनी मां यानी अनुपमा को विदा करने के लिए कपाड़िया हाउस से अपनी मां के घर जाती है. जहां स्वीटी को रोते देख अनुपमा परेशान हो जाएगी. अनुपमा पाखी से पूछती है, ‘छोटी ठीक तो है ना ?’ पाखी ये सुनकर इमोशनल हो जाती हैं और वह कहती है, ‘हां वह ठीक है, सो रही थी.’

हर हिंट को क्यों नजरअंदाज करेगी अनुपमा?

आपको बता दें कि मेकर्स ने प्रोमो वीडियो (Anupamaa Spoiler) में पूरे अपकमिंग वीक का हिंट दे दिया है. इसमें दिखया गया कि जब अनुपमा अपने घर से बाहर कदम रखती है तो तभी उसके पैर पर किसी का फोन गिर जाता है. एक बार फिर अनुपमा इसे भगवान का इशारा मानकर सोच में पड़ जाती है. इसके बाद अनुपमा की मां, उसका भाई और शाह परिवार के सभी सदस्य बहुत स्नेह से अनुपमा को विदा करते हैं और उसे गले लगाते हैं. वहीं लीला अनुपमा को दही शक्कर खिलाती है.

छोटी को लगेगी चोट 

दूसरी तरफ कपाड़िया (Anupamaa Spoiler) मेंशन में कुछ ऐसा होगा, जिससे सब परेशान हो जाएंगे. दरअसल छोटी बार-बार जिद्द करती है कि उसे मम्मी चाहिए. हालांकि अनुज उसे समझाता है कि ऐसा मत करों, नहीं तो आपकी तबीयत बिगड़ जाएगी, लेकिन छोटी किसी की भी बात नहीं सुनती है और बिस्तर से उठकर दौड़ने लगती है. भागते वक्त छोटी का पैर फिसल जाता है और वह जमीन पर बुरी तरह से गिर जाती है.

इसे देखने के बाद दर्शकों के मन में कई सवाल खड़े हो गए है कि क्या छोटी के कारण अनुपमा अमेरिका नहीं जाएगी? क्या अनुज-अनुपमा फिर से एक हो जाएंगे. हालांकि इन सभी सवालों के जवाब तो आने वाले एपिसोड में ही मिलेंगे.

Priyanka से लेकर Ayesha तक Naagin 7 में हो सकती है इन 9 एक्ट्रेस की एंट्री!

Naagin 7 : एकता कपूर के शो नागिन के हर सीजन को दर्शकों का खूब प्यार मिलता है. इसी वजह से इस शो की टीआरपी हमेशा टॉप पर रहती है. हालांकि अब जल्द ही ‘नादिन 6’ खत्म होने वाला है, जिसके साथ ही मेकर्स ने ‘नागिन 7’ के शुरू होने की हिंट दे दी है.

दरअसल शो से जुड़ा एक टीजर वीडियो जारी किया गया है. टीजर के सामने आने के बाद से ही दर्शक शो में प्रियंका चाहर चौधरी और आयशा सिंह के जुड़ने की अटकलें लगा रहे हैं, लेकिन इन दोनों के अलावा भी टीवी की कई हसीनाओं के नान नागिन (Naagin 7) के रोल से जोड़े जा रहे हैं. तो आइए जानते हैं उन हॉट एक्ट्रेस के नमों के बारे में-

  • प्रियंका चाहर चौधरी (Priyanka Chahar Choudhary)

‘बिग बॉस 16’ के बाद से ही एक्ट्रेस प्रियंका चाहर चौधरी को लेकर कहा जा रहा है कि वह ‘नागिन 7’ में नागिन का रोल निभा सकती हैं. हालांकि अभी तक प्रियंका ने इस मामले में कुछ नहीं कहा है.

  • आयशा सिंह (Ayesha Singh)

‘नागिन 7’ (Naagin 7) में नागिन के रोल को लेकर खबर आई थी कि एकता कपूर ने शो के लिए आयशा सिंह को अप्रोच कर लिया है, लेकिन आधिकारिक तौर पर इस मामले पर न तो अभिनेत्री और न ही एकता ने कुछ कहा है.

  • निमृत कौर आहलुवालिया (Nimrit Kaur Ahluwalia)

निमृत की एक्टिंग का हर कोई दीवाना है. यहां तक कि ‘बिग बॉस 16’ में एकता कपूर ने खुद एक्ट्रेस की एक्टिंग की तारीफ की थी. इसी वजह से कहा जा रहा है कि निमृत एकता कपूर के शो में कदम रख सकती हैं.

  • सुंबुल तौकीर खान (Sumbul Touqeer Khan)

‘नागिन 7’ (Naagin 7) शो से सुंबुल तौकीर खान का नाम भी जोड़ा जा रहा है, लेकिन अभी तक इसकी  आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.

  • एलिस कौशिक (Alice Kaushik)

‘पंड्या स्टोर’ फेम एक्ट्रेस एलिस कौशिक की एक्ट्रिंग का हर कोई दीवाना है. हालांकि अब उन्होंने इस शो को अलविदा कह दिया है, जिसके बाद अब फैंस उनके अपकमिंग प्रोजेक्ट का बेस्रबी से इंतजार कर रहे हैं. इसलिए कहा जा रहा है कि अभिनेत्री नागिन (Naagin 7) बनकर छोटे पर्दे पर धमाल मचा सकती हैं.

  • जेनिफर विंगेट (Jennifer Winget)

जेनिफर विंगेट का नाम भी ‘नागिन 7’ (Naagin 7) से जोड़ा जा रहा है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, कहा जा रहा है कि एकता कपूर के शो में एक्ट्रेस की धांसू एंट्री हो सकती है.

  • टीना दत्ता (Tina Datta)

एकता कपूर के ‘नागिन 7’ (Naagin 7) में नागिन के रोल के लिए कुछ फैंस ने एक्ट्रेस टीना दत्ता का नाम भी सुझाया है, लेकिन इस समय वह ‘हम’ सीरियल में नजर आ रही है, जिसमें उनके किरदार को दर्शकों का खूब प्यार मिल रहा है.

  • क्रिस्टल डिसूजा (Krystal D’Souza)

एकता कपूर के ‘ब्रह्मारक्षस’ का हिस्सा बन चुकी क्रिस्टल डिसूजा के भी ‘नागिन 7’ में शामिल होने की अटकलें लगाई जा रही हैं.

  • श्रीजिता डे (Sreejita De)

नागिन के रोल के लिए श्रीजिता डे का भी नाम सामने आ रहा है, क्योंकि उनके एक्सप्रेशंस और अंदाज लोगों को खूब पसंद आते हैं.

हाई कोलेस्ट्रॉल के मरीजों को नींबू पानी पीने से मिलते हैं ये 3 फायदे

Lemonade benefits in high cholesterol : हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या तेजी से लोगों में बढ़ रही है. जो अगर लंबे समय तक रहती है तो गंभीर रूप भी ले सकती है. आमतौर पर ये समस्या धमनियों में बैड फैट लिपिड्स के बढ़ने के कारण होती है, जिससे शरीर में ब्लॉकेज होने लगता है. इससे हाई बीपी की परेशानी भी हो सकती है.

ऐसे में हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या (Lemonade benefits in high cholesterol) से बचने में ही सावधानी है. बता दें कि डाइट में नींबू पानी को शामिल करने से इस समस्या से बचा जा सकता है. तो आइए जानते हैं नींबू पानी पीने के फायदों के बारे में-

हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या में पिएं नींबू पानी

  1. रोजाना सुबह खाली पेट एक गिलास नींबू पानी (Lemonade benefits in high cholesterol) पीने से शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है. दरअसल, नींबू में साइट्रिक एसिड फैट के कण होते है. जो धमनियों में लो डेंसिटी वाले फैट को चिपकने से रोकते हैं. साथ ही ब्लड वेसेल्स को अंदर से साफ करते हैं.
  2. आपको बता दें कि, नींबू पानी शरीर में क्लींजर का काम करता है, जिससे शरीर में फैट जमा नहीं होता है. साथ ही ये ((Lemonade benefits in high cholesterol)) बॉडी में जमा होने भी नहीं देता. इससे हाई कोलेस्ट्रॉल की समस्या के साथ-साथ मोटापा और डायबिटीज जैसी बीमारियों के होने का खतरा भी कम हा जाता हैं.
  3. नींबू पानी में विटामिन सी की उच्च मात्रा होती है. जो धमनियों को साफ करने के साथ-साथ ब्लड सर्कुलेशन को भी बेहतर बनाता है. इससे ((Lemonade benefits in high cholesterol)) ब्लड सर्कुलेशन सही होता है. इसके अलावा ये शरीर में ट्राइग्लिसराइड की मात्रा को भी कम करता है.

देश में स्वर्णिम मूत्रकाल का दौर : क्या अब आदिवासी पर पेशाब करने से विश्वगुरु बनेगा देश?

भाजपा सरकार में देश स्वर्णिम मूत्रकाल से गुजर रहा है. दलित आदिवासियों के मुंह पर थूक दो, पेशाब कर दो क्या फर्क पड़ता है. मध्य प्रदेश के सीधी जिले में भाजपा नेता के प्रतिनिधि प्रवेश शुक्ला ने तो, बस, आदिवासी दशमत रावत के मुंह पर पेशाब करने का अपराध या पौराणिक भाषा में कहें तो कर्तव्य दोहराया है लेकिन हकीकत यह है कि यह कोई नया अपराध नहीं है.

इस घटना के बाद भले मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान पीड़ित के पैर धोए या आरोपी प्रवेश शुक्ला पर कार्यवाही की, लेकिन घटना के बाद जिस तरह पीड़ित दशमत ने आरोपी को माफ करने की बात कही उस से यही साबित होता है कि पौराणिकता कहीं न कहीं पीड़ित को मजबूर कर रही है कि वह इसे सह ले, और गुनाहगार को माफ कर दे.

यह घटना जातीय दंभ से भरे लोगों के लिए ऐसा करना कोई अनोखी बात भी नहीं है, क्योंकि ऐसा करने की प्रेरणा उन्हें वही धर्मशास्त्र रोज देते हैं जिन का गुणगान सुबहशाम उठतेबैठते वे करते रहते हैं. ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में लिखा है कि शूद्र यदि वेद/पुराण पढ़ता है तो आंख फोड़ दो, सुनता है तो कान में पिघला सीसा डाल दो और उच्चारण करता है तो जीभ काट दो.

इसी देश के गांव में ‘चप्पल प्रथा’ क्या इस की गवाही नहीं जहां कथित सवर्णों के घरों से निकलने पर दलितों को अपने सिर पर चप्पल रख कर निकलना पड़ता था. बात कोई पुरानी नहीं है. दलित को जबरन जूते से पानी पिलाना यहीं की ही बात है. ऊना कांड कोई पिछली सदी की बात नहीं, जहां बीच सड़क पर नंगा कर दलितों पीटा गया, और हाथरस में दलित की बेटी से सवर्णों ने बलात्कार किया और उस का बचाव सब भगवाइयों ने किया.

हिंदू राष्ट्र की मांग पर नाचनेथिरकने वाले क्या ऐसा ही देश बनाना चाह रहे हैं, जहां मुसलामानों के प्रति नफरती उबाल के लिए तो सब हिंदू हो जाएंगे लेकिन बात जब खुद के धर्म की आएगी तो कोई सवर्ण होगा, कोई दलित, कोई आदिवासी?

इसी जातीय दंभ से भरे समाज में क्या ऐसी प्रथाएं नहीं रहीं जिन में दलितों को सूर्योदय के समय व सूर्यास्त के समय बाहर निकलने की मनाही थी ताकि उस की लंबी छाया किसी स्वर्ण पर न पड़ जाए. नीची जाति वालों को अपनी कमर में झाड़ू लगा कर चलना पड़ता था कि जिस रास्ते वे जाएं वह रास्ता साफ़ होता जाए, और अपने पेट में टोकरी ले कर चलनी पड़ती थी कि अगर थूक आए या पसीना टपके तो जमीन पर न थूकें उसी टोकरी में थूकें.

‘“पूजयें विप्र सकल गुण हीना . शूद्र ना पूजिये ज्ञान प्रवीणा ..‘” यह श्लोक कहीं आसमान से नहीं टपका. भगवा कट्टरपंथी जिस मनुस्मृति को आंबेडकर के संविधान की जगह देश का विधिविधान बनाना चाहते हैं वहीं से यह आया है. क्या है इस का अर्थ, “ब्राह्मण चाहे कितना भी व्यभिचारी हो, पूजा जाना चाहिए, क्योंकि शास्त्र उसे ब्रह्मा के मुख से आया बताते हैं. वहीं, नीची जाति वाला चाहे कितना ही ज्ञानी हो, उसे नहीं पूजना चाहिए.”

ऐसे ही रामचरितमानस में कहा गया है,

“पद पखारि जलुपान करि आपु सहित परिवार

पितर पारु प्रभुहि पुनि मुदित गयउ लेइ पार

अर्थात – भगवान श्रीराम के चरण धो कर उसे चरणामृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गया, बल्कि उस ने अपने पूर्वजों को भी तार दिया.

तुलसीदास ने सिर्फ़ रामचरितमानस में ब्राह्मणों को कम से कम 30 स्थानों पर भूसुर और महिसुर यानी “धरती का देवता” लिखा है. पूरी रामचरितमानस में किसी भी ब्राह्मण ने राम के पैर नहीं छुए हैं. राम ने दर्जनों बार ब्राह्मणों के पैर छुए और चरणामृत लिया है. मतलब जो भगवान राम से खुद की चरण वंदना करवाने का अधिकार समझते हैं वो तो किसी निचली जाति के दीनहीन पर कुछ भी करें कहें, उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला.

पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आदिवासियों को वनवासी कहा, मतलब जंगलों में रहने वाला. अब चूंकि आदिवासी जंगल में रहता है तो प्रवेश शुक्ला को भला वह शहर में कैसे हजम हो पाता.

इस घटना के बाद सरकार ने प्रवेश शुक्ला का घर बुलडोजर से ढहा दिया, उस पर एनएसए लगा दिया. इस से यह बात तो साबित हो जाती है कि जिस नफरत से दूसरों के घर जलाए जा रहे थे उस आग में खुद के भी हाथ जलते ही हैं. यह सबक भगवाई कार्यकर्ताओं को समझ आएगी. लेकिन फिर भी सवाल यह कि क्या इस का इलाज बस यही है क्योंकि यह महज दर्ज हुआ अपराध है. ऐसे बेनाम अदर्ज अपराध हर रोज किसी गांव, शहर में हो रहे हैं. हाथ का पानी न पी कर, किसी खास समुदाय से कचरा/गंदगी साफ करवाना, जाति सुनते ही मुंहनाक सिकोड़ने आदि का अपराध पूरा समाज कर ही रहा है.

रूस में आधीअधूरी म्यूटिनी, कट्टरपंथियों को सही संदेश

24 जून की सुबह ‘वैगनर ग्रुप’ के कमांडरों ने 25 हजार सैनिकों के काफिले के साथ मास्को की तरफ कूच कर दिया. टैंको और बख्तरबंद वाहनों पर सवार इन सैनिकों को देख कर लगा जैसे मास्को पर कोई दुश्मन चढ़ाई कर रहा हो. इस ग्रुप के प्रमुख प्रिगोजिन ने मास्को से 200 किलोमीटर दूर इस विद्रोही काफिले को रोक दिया. इस को देख पूरी दुनिया को लगा कि रूस में सैनिक विद्रोह हो जाएगा. रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने इन हालात को जल्द संभाल लिया लेकिन जिस तरह के हालात हैं उस से लगता नहीं की यह आग पूरी तरह बुझ गई है. पुतिन ने सपने में भी ऐसे विद्रोह की कल्पना न की होगी.

वैगनर ग्रुप ने पूरी दुनिया को यह समझाने का काम किया है कि वह अपनों के खिलाफ भी वही व्यवहार कर सकता है जो विरोधियों के खिलाफ सत्ताधारी करते हैं. इस की असल वजह यह है कि वैगनर ग्रुप भगोड़ों का एक ग्रुप है जो अपने घरपरिवार और करीबियों से दूर हैं. उन के अंदर भावनाएं नहीं हैं. उन को केवल पैसे चाहिए जिस से वे ऐयाशी कर सकें. पैसों के लिए वे किसी के भी खिलाफ हथियार उठाने से नहीं चूकते. वैगनर ग्रुप जैसे ग्रुपों को तैयार करने से पहले सौ बार सोचने की जरूरत है वरना किसी की भी हालत रूस के राष्ट्रपति पुतिन जैसी हो सकती है.

रूस में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के सहयोग से बने ‘वैगनर ग्रुप’ ने उन के ही खिलाफ विद्रोह कर दिया. इस से पूरी दुनिया के तानाशाहों को संदेश मिला है कि भाड़े के गैंग, चाहे भगवा हों या रशिया, अपनों को कभी भी दगा दे सकते हैं. पुतिन के खिलाफ 20 साल में यह सब से बड़ी चुनौती है. इस से पूरी दुनिया में उन की साख गिरी है. एक बहुत पुरानी कहावत है, ‘सांप को कितना भी दूध पिला लो वह मौका पाते ही डंसने का काम करेगा जरूर.’ प्राइवेट सेना, निजी आर्मी, कट्टरवादी समर्थक भी ऐसे ही मुसीबत खड़ी करने का काम कर सकते हैं.

रूस की प्राइवेट आर्मी कहे जाने वाले वैगनर ग्रुप ने विद्रोह कर दिया. रोस्तोव और वोरोनेझ शहरों पर कब्जा करने के बाद वैगनर ग्रुप का इरादा मास्को पर कब्जे का था. यह रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को चुनौती देने वाला कदम ही नहीं था बल्कि इस से पुतिन की छवि खराब भी हुई. वे कमजोर दिखने लगे हैं. पूरी दुनिया में यह सवाल पूछा जा रहा था कि एक प्राइवेट आर्मी के खिलाफ पुतिन इतना कमजोर कैसे पड़ रहे हैं.

वैगनर ग्रुप के चीफ और पुतिन के साथी रहे येवगेनी प्रिगोजिन ने कहा कि वे रूस के सैन्य नेतृत्व को उखाड़ कर ही दम लेंगे. इस के चलते मास्को में ‘नौन वर्किंग डे’ घोषित कर दिया गया. नागरिकों से कहा गया कि जहां तक संभव हो, वे यात्रा न करें. रूस में वैगनर ग्रुप के सैनिक ने नागरिकों को हिरासत में लिया तो इस को देख पड़ोसी देश भी घबरा गए. फ्रांस ने सभी तरह की उड़ानों को रूस की यात्रा न करने की सलाह दी. लिथुआनिया और पोलैंड ने अपनी सीमा पर सुरक्षा और कड़ी कर दी.

वैगनर ग्रुप के चीफ येवगेनी प्रिगोजिन ने कहा, ‘हम देशभक्त हैं. राष्ट्रपति गलती कर रहे हैं. यह कोई सैन्य तख्तापलट नहीं था. यह न्याय के लिए मार्च था. हमारे लड़ाके सरैंडर नहीं करेंगे क्योंकि हम नहीं चाहते कि देश भ्रष्टाचार, धोखे और नौकरशाही के चंगुल में फंसा रहे.’ प्रिगोजिन कुछ भी कहें पर पूरी दुनिया और खुद रूसी राष्ट्रपति पुतिन यह मानने को तैयार नहीं हैं कि बात इतनी सरल थी. वे इसे विदेशी ताकतों के बहकावे में आ कर किया गया विद्रोह मान रहे हैं.

रूस की इस हालत पर यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की ने कहा, ‘जो कोई बुराई का रास्ता चुनता है वह खुद को नष्ट कर लेता है. रूस अपने सैनिकों को यूक्रेन में जितने लंबे समय तक रखेगा उसे उतना ही दर्द होगा.’

यूक्रेन के खिलाफ प्राइवेट आर्मी का प्रयोग यह बताता है कि रूस की सेना उस खतरनाक तरह से यूक्रेन में युद्ध करने के लिए मानसिक रूप से सक्षम नहीं थी जिस तरह से प्राइवेट आर्मी युद्ध कर सकती थी.

यही कारण है कि यूक्रेन में लड़ाई के संचालन को ले कर प्राइवेट आर्मी और रूसी सेना के बीच मतभेद था. यूक्रेन भी रूस का हिस्सा रहा है. ऐसे में रूसी सेना की रणनीति कुछ और थी और वैगनर ग्रुप इसे किसी और ही तरह से लड़ना चाहता था. वैगनर ग्रुप के इस कदम को बगावत कहें या कुछ और, बहरहाल इस ने रूस की सेना के खिलाफ मोरचा खोल दिया.

यूक्रेन की लड़ाई किस तरह से लड़ी जाए, इस,को ले,कर वैगनर ग्रुप और सेना के बीच एक राय नहीं बन रही थी. इस बगावत के पीछे केवल यही कारण नहीं है. प्राइवेट आर्मी की बगावत पुतिन के लिए अच्छी बात नहीं है. वैगनर ग्रुप का मानना है कि अगर उस की योजना के हिसाब से लड़ाई लड़ी गई होती तो यूक्रेन युद्ध इतना लंबा न खिंचता. सेना नियम और अनुशासन के हिसाब से लड़ाई लड़ती है और वैगनर ग्रुप जैसों का काम मरना और मारना होता है.

वैगनर ग्रुप ने रूसी जेलों में बंद सजायाफ्ता कैदियों को माफी दिलवाने का वादा कर के यूक्रेन के भीतर जाने के लिए राजी किया था. वैगनर ग्रुप के चीफ येवगेनी प्रिगोजिन का आरोप है कि रूसी रक्षा मंत्री सजेंई षोएगू और सेना प्रमुख वेलेरी जिरासोमोव ने लड़ाई के दौरान वैगनर के जवानों को वक्त पर गोलाबारूद और अन्य जरूरी रसद नहीं पहुंचाई जिस से 10 हजार वैगनर सैनिकों की मौत हो गई. प्रिगोजिन ने वैगनर और सरकारी सेना के सैनिकों के बीच भेदभाव का भी आरोप लगाया.

क्या है ‘वैगनर ग्रुप’?

रूस में प्राइवेट आर्मी का विद्रोह सुन कर हर कोई यह जानना चाहता है कि यह ‘वैगनर ग्रुप’ क्या है? यह एक प्राइवेट मिलिट्री ग्रुप है. वैगनर की प्राइवेट सेना में करीब 50 हजार सैनिक है. इन में से 25 हजार सैनिक यूक्रेन से लड़ने के लिए भेज दिए गए थे. इस ग्रुप के वर्तमान प्रमुख येवगेनी प्रिगोजिन डकैती के आरोप में 12 साल जेल में रहे हैं. इस के बाद उन्होंने सेंट पीटर्सबर्ग में एक कौफी रैस्तरां खोला था. रूसी राष्ट्रपति पुतिन उस समय वहां के डिप्टी मेयर होते थे. वे वहां अकसर आतेजाते रहते थे. वहीं से दोनों की जानपहचान हुई. पुतिन के कहने पर ही प्रिगोजिन ने मीडिया बिजनैस में भी हाथ डाला. इस के बाद एक सुरक्षा कंपनी भी खोली, जिस ने देशविदेश में अपना विस्तार किया.

वैगनर ग्रुप के सैनिकों और एजेंटो का प्रयोग पुतिन ने प्राइवेट सेना की तरह से किया. यह ग्रुप रूसी सरकार के कंधे से कंधा मिला कर काम करने लगा. आरोप यह है कि रूसी सरकार के पूरी दुनिया में चलने वाले अभियानों में गुप्त रूप से लड़ाई लड़ने वालों में वैगनर ग्रुप सब से आगे रहता था. अक्टूबर 2015 से लेकर 2018 तक वैगनर ग्रुप ने सीरिया में रूसी सेना और बशर अल असद की सरकार के साथ मिल कर लड़ाई लड़ी.

दिमित्री उत्कींन ने 2014 में वैगनर ग्रुप की शुरुआत की थी. तब से वे इस के साथ जुड़े हैं. दिमित्री उत्कींन ने 1993 से ले कर 2013 तक रूसी सेना में नौकरी की. इस समय वैगनर ग्रुप की कमान येवगेनी प्रिगोजिन के हाथ में है. वैगनर ग्रुप पर लीबिया, माली सहित पूरे अफ्रीका में मानवाधिकारों के उल्लंघन का आरोप लगा है.

यूक्रेन युद्ध में भी इस की भूमिका अपराध करने वाली रही है. इस ने कीव नागरिकों को मारने का काम किया. जरमन खुफिया विभाग ने कहा कि इन सैनिकों ने मार्च 2022 में बुचा में नागरिकों का संहार किया. 2020 में इन भाड़े के सैनिकों पर लीबिया में बारूदी सुरंगों के विस्फोट का आरोप लगा है.

वैगनर ग्रुप ने 2022 में बड़े पैमाने पर लड़ाकों की भरती करने के लिए शुरुआत की. 80 फीसदी लड़के जेल से भरती किए गए. रूसी शहरों में पोस्टर लगा कर खुलेआम भरती की गई थी. अब इन पोस्टरों को वंहा से हटाया गया है. वैगनर ग्रुप के विद्रोह को ले कर यह सवाल बारबार उठ रहा है कि इस को मदद कहां से मिल रही है. कुछ लोगों की राय यह है कि इस को रूस के बाहर के देशों से मदद मिल रही है. दूसरी राय यह है कि रूसी आर्मी चीफ और डिफैंस मिनिस्टर से नाराज खेमा सहयोग कर रहा है.

वैगनर ग्रुप के प्रमुख येवगेनी प्रिगोजिन के अपने कोई राजनीतिक विचार नहीं हैं. वे अधिक पढ़ेलिखे भी नहीं हैं. लिहाजा, उन के सोचने का नजरिया नेता की तरह का नहीं, एक भगोड़े सैनिक की तरह का है जो केवल मरनेमारने पर यकीन रखता है. जिस रूसी राष्ट्रपति ने उन को सहयोग किया, उसी के खिलाफ उन्होंने बगावत कर दी.

20 साल के राज में पुतिन पर उठ रहे सवाल

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के लिए यह बड़ा संकट है. पुतिन ने निजी महत्त्वाकांक्षाओं को रूसी राष्ट्र के हितों को महत्त्व दिया. वैसे पुतिन ने वैगनर ग्रुप से उपजे सकंट को हल कर लिया है. इस मसले को हल करने का काम बेलारूस के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने किया.

वैगनर ग्रुप के साथ बातचीत कर के विद्रोह को फिलहाल रुकवा दिया गया है. अलेक्जेंडर लुकाशेंको रूसी राष्ट्रपति पुतिन के पुराने दोस्त हैं. पुतिन के लिए परेशानी की बात यह है कि उन को अब कमजोर समझा जाएगा. 70 साल के पुतिन के लिए यह सब से कठिन दौर है. पुतिन के आलोचक यह मानते हैं कि यह उन के अंत की शुरुआत है.

हालफिलहाल भले ही पुतिन खामोश हो गए हों पर वे इस का बदला ले सकते हैं. पुतिन विद्रोह करने वालों को माफ नहीं करेंगे. वे और अधिक तानाशाह हो सकते हैं. पुतिन की निगाहें एक बार फिर से 2024 के चुनाव जीतने पर हैं. जिस तरह से पुतिन के सहयोग से बने वैगनर ग्रुप उन के ही खिलाफ विद्रोह कर बैठा, उस के बाद यह कहा जा सकता है कि यह ग्रुप अपनों को भी दगा दे सकता है. वैगनर ग्रुप ने पूरी दुनिया के कट्टरपंथियों को सबक सिखाया है कि ऐसे ग्रुप वाले उन के खिलाफ भी बगावत कर सकते हैं जो उन की मदद करते हैं.

और देश भी सर्तक रहें

वैगनर ग्रुप जैसे समर्थक दूसरे नेता और देशों में भी हैं. ऐसे में ही एक बड़ा नाम ‘तालिबानी’ है. अफगानिस्तान और पासपड़ोस के देशों में सब से बड़ी आशांति का कारण तालिबानी ही हैं. वे अपने मनमाने कानून को लागू करने के लिए आंतक पैदा करते हैं. भारत में भी ऐसे कट्टरवादी दल हैं. 2014 में जब नरेंद्र मोदी भारत के प्रधानमंत्री बने तो कट्टरपंथियों ने ‘गौ हत्या’ रोकने के नाम पर जिस तरह से मौब लिचिंग शुरू की उस ने देश और प्रधानमंत्री की छवि को न केवल खराब किया बल्कि समाज में अलगाव की नींव खींच दी.

विश्व हिंदू परिषद और हिंदू युवा वाहिनी, रामसेना जैसे संगठन भी समयसमय पर सरकार के सामने असहज हालात पैदा करते रहते हैं. गाय को ले कर जब पूरे देश में खूब विवाद होने लगे तो प्रधानमंत्री को अपने भाषण में इस की आलोचना करनी पड़ी.

मणिपुर में हिंसा का दौर भी ऐसे की कट्टरपंथियों का चल रहा है. कट्टरपंथियों का काम सरकार चलाना नहीं होता. लिहाजा, वे हर जगह अपनी मनमानी करने का प्रयास करते हैं. उन के उद्देश्य और काम करने का तरीका अलगअलग हो सकता है. अपने कामों से वे अपने ही लोगों के लिए परेशानी का सबब बनते हैं.

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