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बेबसी एक मकान की

एक ट्रंक, एक अटैची और एक  बिस्तर, बस, यही संपत्ति समेट कर वे अंधेरी रात में घर छोड़ कर चले गए थे. 6 लोग. वह, उस की पत्नी, 2 अबोध बच्चे और 2 असहाय वृद्ध जिन का बोझ उसे जीवन में पहली बार महसूस हो रहा था.

‘‘अम्मी, हम इस अंधेरे में कहां जा रहे हैं?’’ जाते समय 7 साल की बच्ची ने मां से पूछा था.

‘‘नरक में…बिंदिया, तुम चुपचाप नहीं बैठ सकतीं,’’ मां ने खीझते हुए उत्तर दिया था.

बच्ची का मुंह बंद करने के लिए ये शब्द पर्याप्त थे. वे कहां जा रहे थे उन्हें स्वयं मालूम न था. कांपते हाथों से पत्नी ने मुख्यद्वार पर सांकल चढ़ा दी और फिर कुंडी में ताला लगा कर उस को 2-3 बार झटका दे कर अपनी ओर खींचा. जब ताला खुला नहीं तो उस ने संतुष्ट हो कर गहरी सांस ली कि चलो, अब मकान सुरक्षित है.

धीरेधीरे सारा परिवार न जाने रात के अंधेरे में कहां खो गया. ताला कोई भी तोड़ सकता था. अब वहां कौन किस को रोकने वाला था. ताला स्वयं में सुरक्षा की गारंटी नहीं होता. सुरक्षा करते हैं आसपास के लोग, जो स्वेच्छा से पड़ोसियों के जानमाल की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते हैं. लेकिन यहां पर परिस्थितियों ने ऐसी करवट बदली थी कि पड़ोसियों पर भरोसा करना भी निरर्थक था. उन्हें अपनी जान के लाले पड़े हुए थे, दूसरों की रखवाली क्या करते. अगर वे किसी को ताला तोड़ते देख भी लेते तो उन की भलाई इसी में थी कि वे अपनी खिड़कियां बंद कर के चुपचाप अंदर बैठे रहते जैसे कुछ देखा ही न हो. फिर ऐसा खतरा उठाने से लाभ भी क्या था. तालाब में रह कर मगरमच्छ से बैर.

कई महीने ताला अपने स्थान पर यों ही लटकता रहा. समय बीतने के साथसाथ उस निर्वासित परिवार के वापस आने की आशा धूमिल पड़ती गई. मकान के पास से गुजरने वाला हर व्यक्ति लालची नजरों से ताले को देखता रहता और फिर अपने मन में सोचता कि काश, यह ताला स्वयं ही टूट कर गिर जाता और दोनों कपाट स्वयं ही खुल जाते.

फिर एक दिन धायं की आवाज के साथ लोहा लोहे से टकराया, महीनों से लटके ताले की अंतडि़यां बाहर आ गईं. किसी अज्ञात व्यक्ति ने अमावस के अंधेरे की आड़ ले कर ताला तोड़ दिया. सभी ने राहत की सांस ली. वे आश्वस्त थे कि कम से कम उन में से कोई इस अपराध में शामिल नहीं है.

ताला जिस आदमी ने तोड़ा था वह एक खूंखार आतंकवादी था, जो सुरक्षाकर्मियों से छिपताछिपाता इस घर में घुस गया था. खाली मकान ने रात भर उस को अपने आंचल में पनाह दी थी. अंदर आते ही अपने कंधे से एके-47 राइफल उतार कर कुरसी पर ऐसे फेंक दी जैसे वर्षों की बोझिल और घृणित जिंदगी का बोझ हलका कर रहा हो. उस के बाद उस ने अपने भारीभरकम शरीर को भी उसी घृणा से नरम बिस्तर पर गिरा दिया और कुछ ही मिनटों में अपनी सुधबुध खो बैठा.

आधी रात को वह भूख और प्यास से तड़प कर उठ बैठा. सामने कुरसी पर रखी एके-47 न तो उस की भूख मिटा सकती थी और न ही प्यास. साहस बटोर कर उस ने सिगरेट सुलगाई और उसी धीमी रोशनी के सहारे किचन में जा कर पानी ढूंढ़ने लगा. जैसेतैसे उस ने मटके में से कई माह पहले भरा हुआ पानी निकाल कर गटागट पी लिया. फिर एक के बाद एक कई माचिस की तीलियां जला कर खाने का सामान ढूंढ़ने लगा. किचन पूरी तरह से खाली था. कहीं पर कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था.

‘‘कुछ भी नहीं छोड़ा है घर में. सब ले कर भाग गए हैं,’’ उस के मुंह से सहसा निकल पड़ा.

तभी उस की नजर एक छोटी सी अलमारी पर पड़ी जिस में कई चेहरों की बहुत सारी तसवीरें सजी हुई थीं. उन पर चढ़ी हुई फूलमालाएं सूख चुकी थीं. तसवीरों  के सामने एक थाली थी जिस में 5 मोटे और मीठे रोट पड़े थे जो भूखे, खतरनाक आतंकवादी की भूख मिटाने के काम आए. पेट की भूख शांत कर वह निश्ंिचत हो कर सो गया.

सुबह होने से पहले उस ने मकान में रखे हुए ट्रंकों, संदूकों और अलमारियों की तलाशी ली. भारीभरकम सामान उठाना खतरे से खाली न था. वह तो केवल रुपए और गहनों की तलाश में था मगर उस के हाथ कुछ भी न लगा. निराश हो कर उस ने फिर घर वालों को एक मोटी सी गाली दी और अपने मिशन पर चल पड़ा.

दूसरे दिन सुरक्षाबलों को सूचना मिली कि एक खूंखार आतंकवादी ने इस मकान में पनाह ली है. उन का संदेह विश्वास में उस समय बदला जब उन्होंने कुंडे में टूटा हुआ ताला देखा. उन्होंने मकान को घेर लिया, गोलियां चलाईं, गोले बरसाए, आतंकवादियों को बारबार ललकारा और जब कोई जवाबी काररवाई नहीं हुई तो 4 सिपाही अपनी जान पर खेलते हुए अंदर घुस गए. बेबस मकान गोलीबारी से छलनी हो गया मगर बेजबानी के कारण कुछ भी बोल न पाया.

खैर, वहां तो कोई भी न था. सिपाहियों को आश्चर्य भी हुआ और बहुत क्रोध भी आया.

‘‘सर, यहां तो कोई भी नहीं,’’ एक जवान ने सूबेदार को रिपोर्ट दी.

‘‘कहीं छिप गया होगा. पूरा चेक करो. भागने न पाए,’’ सूबेदार कड़क कर बोला.

उन्होंने सारे मकान की तलाशी ली. सभी टं्रकों, संदूकों को उलटापलटा. उन में से साडि़यां ऐसे निकल रही थीं जैसे कटे हुए बकरे के पेट से अंतडि़यां निकल कर बाहर आ रही हों. कमरे में चारों ओर गरम कपड़े, स्वेटर, बच्चों की यूनिफार्म, बरतन और अन्य वस्तुएं जगहजगह बिखर गईं. जब कहीं कुछ न मिला तो क्रोध में आ कर उन्होंने फर्नीचर और टीन के टं्रकों पर ताबड़तोड़ डंडे बरसा कर अपने गुस्से को ठंडा किया और फिर निराश हो कर चले गए.

उस दिन के बाद मकान में घुसने के सारे रास्ते खुल गए. लोग एकदूसरे से नजरें बचा कर एक के बाद एक अंदर घुस जाते और माल लूट कर चले आते. पहली किस्त में ब्लैक एंड व्हाइट टीवी, फिलिप्स का ट्रांजिस्टर, स्टील के बरतन और कपड़े निकाले गए. फिर फर्नीचर की बारी आई. सोफा, मेज, बेड, अलमारी और कुरसियां. यह लूट का क्रम तब तक चलता रहा जब तक कि सारा घर खाली न हो गया.

उस समय मकान की हालत ऐसी अबला नारी की सी लग रही थी जिस का कई गुंडों ने मिल कर बलात्कार किया हो और फिर खून से लथपथ उस की अधमरी देह को बीच सड़क पर छोड़ कर भाग गए हों.

मकान में अब कुछ भी न बचा था. फिर भी एक पड़ोसी की नजर देवदार की लकड़ी से बनी हुई खिड़कियों और दरवाजों पर पड़ी. रात को बापबेटे इन खिड़कियों और दरवाजों को उखाड़ने में ऐसे लग गए कि किसी को कानोंकान खबर न हुई. सूरज की किरणें निकलने से पहले ही उन्होंने मकान को आग के हवाले कर दिया ताकि लोगों को यह शक भी न हो कि मकान के दरवाजे और खिड़कियां पहले से ही निकाली जा चुकी हैं और शक की सुई सुरक्षाबलों की तरफ इशारा करे क्योंकि मकान की तलाशी उन्होंने ली थी.

आसपास रहने वालों को ज्यों ही पता चला कि मकान जल रहा है और आग की लपटें अनियंत्रित होती जा रही हैं, उन्हें अपनेअपने घरों की चिंता सताने लगी. वे जल्दीजल्दी पानी से भरी बाल्टियां लेले कर अपने घरों से बाहर निकल आए और आग पर पानी छिड़कने लगे. किसी ने फायर ब्रिगेड को भी सूचना दे दी. उन की घबराहट यह सोच कर बढ़ने लगी कि कहीं आग की ये लपटें उन के घरों को राख न कर दें.

मकान जो पहले से ही असहाय और बेबस था, मूक खड़ा घंटों आग के शोलों के साथ जूझता रहा. …शोले, धुआं, कोयला.

दिल फिर भी मानने को तैयार न था कि इस मलबे में अब कुछ भी शेष नहीं बचा है. ‘कुछ न कुछ, कहीं न कहीं जरूर होगा. आखिर इतने बड़े मकान में कहीं कोई चीज तो होगी जो किसी के काम आएगी,’ दिल गवाही देता.

एक अधेड़ उम्र की औरत ने मलबे में धंसी हुई टिन की जली हुई चादरों को देख लिया. उस ने अपने 2 जवान बेटों को आवाज दी. देखते ही देखते उन से सारी चादरें उठवा लीं और स्वयं सजदे में लीन हो गई. टीन की चादरें, गोशाला की मरम्मत के काम आ गईं. एक और पड़ोसी ने बचीखुची ईंटें और पत्थर उठवा कर अपने आंगन में छोटा सा शौचालय बनवा लिया. जो दीवारें आग और पानी के थपेड़ों के बावजूद अब तक खड़ी थीं, हथौड़ों की चोट न सह सकीं और आंख झपकते ही ढेर हो गईं.

कुछ दिन बाद एक गरीब विधवा वहां से गुजरी. उस की निगाहें मलबे के उस ढेर पर पड़ीं. यहांवहां अधजली लकडि़यां और कोयले दिखाई दे रहे थे. उसे बीते हुए वर्ष की सर्दी याद आ गई. सोचते ही सारे बदन में कंपकंपी सी महसूस हुई. उस ने आने वाले जाड़े के लिए अधजली लकडि़यां और कोयले बोरे में भर लिए और वापस अपने रास्ते पर चली गई.

मकान की जगह अब केवल राख का ढेर ही रह गया था. पासपड़ोस के बच्चों ने उसे खेल का मैदान बना लिया. हर रोज स्कूल से वापस आ कर बैट और विकेटें उठाए बच्चे चले आते और फिर क्रिकेट का मैच शुरू हो जाता.

हमेशा की तरह उस दिन भी 4 लड़के आए. एक लड़का विकेटें गाड़ने लगा. विकेट जमीन में घुस नहीं रहे थे. अंदर कोई चीज अटक रही थी. उस ने छेद को और चौड़ा किया. फिर अपना सिर झुका कर अंदर झांका. सूर्य की रोशनी में कोई चमकीली चीज नजर आ रही थी. वह बहुत खुश हुआ. इस बीच शेष तीनों लड़के भी उस के इर्दगिर्द एकत्रित हो गए. उन्होंने भी बारीबारी से छेद के अंदर देखने की कोशिश की और उस चमकती वस्तु को देखते ही उन की आंखों में चमक आ गई और मन में लालच ने पहली अंगड़ाई ली.

‘हो न हो सोने का कोई जेवर होगा.’ हरेक के मन में यही विचार आया लेकिन कोई भी इस बात को जबान पर लाना नहीं चाहता था.

पहले लड़के ने विकेट की नोक से वस्तु के इर्दगिर्द खोदना शुरू कर दिया. दूसरा लड़का दौड़ कर अपने घर से लोहे की कुदालनुमा एक वस्तु ले कर आ गया और उस को पहले लड़के को सौंप दिया.

पहला लड़का अब कुदाल से लगातार खोदने लगा जबकि बाकी तीनों लड़के उत्सुकता और बेचैनी से मन ही मन यह दुआ मांगते रहे कि काश, कोई जेवर निकल आए और उन को खूब सारा पैसा मिल जाए.

खुदाई पूरी हो गई. इस से पहले कि पहला लड़का अपना हाथ सुराख में डालता और गुप्त खजाने को बाहर निकालता, दूसरे लड़के ने कश्मीरी भाषा में आवाज दी :

‘‘अड़स…अड़स…’’ अर्थात मैं भी बराबर का हिस्सेदार हूं.

क्या आपकी भी किडनी में है पथरी, तो जानें इलाज

पिछले 2 दशक के दौरान किडनी में पथरी और मूत्र रोग के इलाज में भारी विकास हुआ है. फिर भी इस बीमारी में कमी आने के बजाय लगातार बढ़ोतरी हो रही है. पथरी के आपरेशन द्वारा इलाज में कई तरह की आधुनिक विधियों का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिसमें मरीज को कम से कम परेशानियों का सामना करना पड़ता है. पर जहां तक इस के औषधीय इलाज की बात है तो इस के लिए चिकित्सकों को कई तरह की आधुनिक जांच, खानपान और दवाइयों का सहारा लेना पड़ता है. अध्ययन, सर्वेक्षण और अनुसंधान से यह भी पता चल गया है कि शारीरिक चयापचय (मेटाबोलिज्म) की गड़बड़ी को ठीक कर और इस के लिए विभिन्न तरह की दवाओं के प्रयोग से बिना आपरेशन के ही इस रोग से छुटकारा पाया जा सकता है.

20 से 60 वर्ष की अवस्था के बीच करीब 15 से 18 प्रतिशत लोगों में पथरी की शिकायत मिलती है. महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में इस का प्रतिशत दोगुना देखने को मिलता है. एक पथरी होने की स्थिति में करीब 50 प्रतिशत लोगों में 7 साल के अंतराल में दूसरी पथरी होने की शिकायत मिलती है.

यहां हम सब से पहले चर्चा कैल्शियम आक्जलेट की करते हैं. ज्यादातर स्थितियों में यह शारीरिक चयापचय (मेटाबोलिज्म) की गड़बड़ी के कारण होता है किंतु कई बार इस के कारणों का पता ही नहीं चल पाता. पेशाब में कैल्शियम आक्जलेट की मात्रा अधिक होने या फिर साइटे्रट की कमी के कारण इस की मात्रा मूत्र में अधिक हो जाती है जो आगे चल कर किडनी में पथरी के होने का कारण बनता है.

शरीर में इसकी मात्रा बढ़ने के कई कारण हो सकते हैं. मसलन, भोज्य पदार्थों में इस की अधिक मात्रा, आंत में इस के अवशोषण का बढ़ जाना, किडनी द्वारा इस का अवशोषण कम करना जिस की वजह से किडनी  की दीवारों में इस का जमाव बढ़ जाना. मरीज के पानी कम पीने से और किडनी द्वारा पानी का कम उत्सर्जन होने से किडनी में इस का अधिक मात्रा में जमाव होने लगता है जोकि आगे चल कर पथरी का रूप धारण करने लगता है.

शरीर में पारा थार्मोन की अधिकता के चलते भी रक्त में इस की मात्रा बढ़ जाती है जो आगे चल कर पथरी बनने का कारण बनता है. शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता के कारण भी कैल्शियम नामक पथरी का निर्माण होता है. यदि खाने में अधिक मात्रा में आक्जलेट हो और आंत में सूजन की बीमारी हो तो इस का अवशोषण काफी बढ़ जाता है जिस के कारण इस तरह की पथरी होने की आशंका काफी बढ़ जाती है. खाने की वस्तुओं में साइटे्रट की कमी की वजह से यह कैल्शियम के साथ मिल कर इस के निकास को कम कर देता है जो आगे चल कर पथरी बनने का कारण बनता है.

यूरिक एसिड स्टोन का प्रतिशत अत्यधिक कम होता है और मूत्र में यूरिक एसिड के अत्यधिक स्राव होने से भी इस तरह की पथरी का निर्माण होता है.

रोग की पहचान

पथरी रोग से पीडि़त मरीज के पेट में दर्द की शिकायत होती है. पेट की बाईं या दाईं ओर स्थित किडनी में पथरी होती है, एक निश्चित स्थान में दर्द होता है. ऐसे मरीजों के मूत्र में रक्त या फिर मवाद भी पाया जाता है. इस की पहचान मूत्र की जांच से हो जाती है. इस के अलावा पेट का एक्सरे, अल्ट्रासाउंड कराने या फिर एक्स्क्रीटरी यूरोग्राम कराने से भी इस बीमारी का पता चल जाता है. मूत्र में क्रिस्टल की जांच कराने पर भी इस रोग का आसानी से पता चल जाता है.

रोग का इलाज

पथरी हो जाने पर अब कई प्रकार के इलाज उपलब्ध हैं. पथरी बहुत छोटी हो तो कुछ दवाओं के प्रयोग से भी निकल सकती है. ज्यादा संख्या में या बड़े आकार की पथरी को बिना सर्जरी किए लिथोट्रिप्सी द्वारा भी निकाला जा सकता है. इस में नियंत्रित तरीके से पथरी के शौक वेव डाल कर इतने छोटे भागों में तोड़ दिया जाता है कि वे पेशाब के साथ बह कर निकल जाएं. इस वेव का शरीर के अन्य भागों पर असर नहीं पड़ता. अधिक बड़ी पथरी होने पर सर्जरी ही अंतिम उपचार रह जाता है.

जहां तक रोग से बचाव की बात है तो इस के लिए मरीज को काफी मात्रा में पानी पीने की सलाह दी जानी चाहिए. प्रतिदिन इतना पानी पीएं ताकि ढाई लिटर से भी अधिक पेशाब हो. पानी पीने की क्रिया सुबह जगने से ले कर रात को सोने के पहले तक जारी रहनी चाहिए.

यहां लोगों में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि किस तरह के पानी पीने पर पथरी की शिकायत होती है तो इस का आसान सा जवाब है कि साधारणतया नल के पानी पीने से ही इस तरह के रोग होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि काफी और जिन में कैफीन की प्रचुर मात्रा होती है जो पथरी होने की आशंका कम कर देती है और दूसरी ओर चाय इस के बनने की गति को बढ़ा देती है क्योंकि चाय में आक्जलेट की मात्रा ज्यादा होती है.

नियमित रूप से कोल्ड ड्रिंक तथा अंगूर के रस के सेवन करने से पथरी बनने की क्रिया काफी बढ़ जाती है. नारंगी का रस और बीयर से इस के बनने की आशंका कम हो जाती है. ऐसे मरीजों को अधिक दूध पीने की सलाह दी जाती है क्योंकि इस में कैल्शियम की ज्यादा मात्रा पाई जाती है.

पथरी के मरीजों को भोजन में प्रोटीन की मात्रा कम लेने की सलाह दी जाती है. 70 साल की उम्र के मरीज को 50 ग्राम से भी कम प्रोटीन भोजन में लेना चाहिए. ऐसी स्थिति में यह मूत्र में एसिड के स्राव को कम कर देता है जो आगे चल कर साइटे्रट को उत्सर्जन होने से रोकता है. इस कारण मूत्र में कैल्शियम की ज्यादा मात्रा नहीं आ पाती. फलस्वरूप पथरी बनने की आशंका स्वत: कम हो जाती है.

मांसाहारी भोजन के कम सेवन के कारण मूत्र में यूरिक एसिड की मात्रा कम हो जाती है. फलत: किडनी में कैल्शियम की पथरी की भी आशंका घट जाती है. ऐसे मरीजों को मांसाहारी भोजन को छोड़ कर शाकाहारी भोजन की सलाह दी जाती है.

किडनी में पथरी होने की आशंका से बचने के लिए ऐसे मरीजों को कम मात्रा में नमक का सेवन करना चाहिए. एक वयस्क आदमी द्वारा प्रतिदिन 3 ग्राम से भी कम नमक का सेवन स्वास्थ्य के लिए काफी फायदेमंद होता है और पथरी होने की आशंका काफी कम हो जाती है. अधिक मात्रा में साइट्रस फू्रट के सेवन से किडनी में पथरी के बनने की क्रिया काफी कम हो जाती है. ऐसी स्थिति में किडनी से कैल्शियम का स्राव काफी कम हो जाता है जिस से पथरी के होने की आशंका भी काफी कम हो जाती है.

पथरी का औषधीय इलाज

यदि मूत्र में कैल्शियम की मात्रा सामान्य हो तो पोटेशियम साइटे्रट की गोली सुबहशाम लेने से मरीज को काफी राहत मिलती है. पोटेशियम साइट्रेट मूत्र को क्षारीय बनाता है. यदि मूत्र में कैल्शियम का ज्यादा स्राव होता हो तो पोटेशियम साइटे्रट के साथ दूसरी दवा भी लेने की जरूरत पड़ती है जैसे, इंडापामाइड, एमीलोराइड या फिर हाइड्रो क्लोर थायजाइड. एमीलोराइड तथा थायजाइड किडनी में पाई जाने वाली नलियों से कैल्शियम के अवशोषण की गति को बढ़ा देता है. फलत: मूत्र में इस का स्राव कम हो जाता है.

उपरोक्त दवाइयों के साथ कई बार दूसरी दवाइयां लेने की भी जरूरत पड़ती है. जैसे, एलोपीयूरिनोल, पिरिडोक्सीन और कैल्शियम कार्बोनेट. ये सारी दवाइयां डाक्टर की सलाह पर ली जानी चाहिए. बारबार मूत्र नलियों में संक्रमण होने की स्थिति में स्ट्रोवाअ नामक पथरी का निर्माण होता है. इस से बचने के लिए समयसमय पर मूत्र की जांच करानी चाहिए और संक्रमण होने की स्थिति में इस का औषधीय इलाज कराने में किसी भी तरह की कोताही नहीं बरतनी चाहिए. हालांकि इस का निश्चित इलाज आपरेशन नहीं है. इसके अलावा कई ऐसी दवाइयां हैं जिन के लगातार सेवन से किडनी में पथरी बनने की आशंका काफी ज्यादा होती है. इस में सल्फोनामाइड, इफिड्रिन, एमीनोफाइलीन, साइप्रो फ्लोक्सासीन, कैल्शियम, विटामिन-डी और मैग्नेशियम की गोलियां शामिल हैं.

Sapna Choudhary ने अपने स्टाइल में बताया सीमा-सचिन के प्यार का सच, देखें वीडियो

Sapna Choudhary Video : हरियाणवी डांसर से ग्लोबल स्टार बन चुकी सपना चौधरी के लटकों-झटकों पर आज भी उनके फैंस फिदा है. हालांकि सपना भी अपने हर एक फैन का सम्मान करती हैं. सपना सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं. वो अक्सर अपनी फोटोज और डांस वीडियोज अपने फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं. हाल ही में डांसर (Sapna Choudhary video) ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक फनी वीडियो शेयर किया है, जिसमें वह पाकिस्तानी सीमा हैदर और सचिन के प्यार का मजाक उड़ा रही हैं.

सपना ने उड़ाया सीमा-सचिन के प्यार का मजाक

बता दें कि वीडियो (Sapna Choudhary video) में सपना चौधरी ने पर्पल कलर का सूट पहन रखा हैं और वह अपने पीछे बैठे कपल को देख रही हैं. कपल को देख सपना कहती हैं, “सचिन, क्या है सचिन में? लंबू-सा सचिन है. मुंह में से बोलना बा पे आबे ना, बोलता वो है ना. झींगुर सा लड़का, उससे प्यार. खुद को 5वीं पास बता रही है.” सपना का ये वीडियो अब सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है और लोगों को ये फनी वीडियो खूब पसंदा आ रहा हैं.

सपना ने अपने चार बच्चों के साथ लांघी पाकिस्तान की सरहद

आपको बता दें कि 13 मई को सीमा हैदर (Seema haider) पाकिस्तान से भारत अवैध रूप से आई थी. वह पाकिस्तान से भारत अपने चार बच्चों के साथ इसलिए आई थी, क्योंकि वो ग्रेटर नोएडा में रहने वाले सचिन से प्यार करती हैं. हालांकि इसके बाद उनके रिश्ते पर सवाल उठने लगे, क्योंकि उन्होंने अपने पहले पति से तलाक लिए बिना सचिन से शादी की. यहां तक कि उनसे भारतीय खुफिया एजेंसियां भी पूछताछ कर रही हैं क्योंकि कई लोगों को उन पर शक है कि कहीं वो पाकिस्तान की कोई एजेंट तो नहीं हैं.

Anupamaa के सामने आएगा काव्या की प्रेगनेंसी का सच, बेबी शावर में होगा हंगामा

Anupamaa Spoiler alert : रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना स्टारर ‘अनुपमा’ शो अभी भी लोगों की पहली पसंद बना हुआ है. लंबे समय से ये सीरियल टीआरपी लिस्ट में नंबर वन चल रहा है. हालांकि एक बार फिर शो (Anupamaa Spoiler alert) में दर्शकों को एक नया ट्विस्ट देखने को मिलेगा. बीते दिन जहां दिखाया गया कि गुरु मां को बार-बार एक छोटे बच्चे का ख्याल आता है, जिससे वह सहम जाती हैं. तो वहीं दूसरी तरफ अनुपमा को एहसास होता है कि उसके परिवार में कुछ बुरा व गलत होने वाला है.

वनराज को क्या सच बता पाएगी काव्या ?

वहीं आगे (Anupamaa Spoiler alert) दिखाया जाएगा कि काव्या वनराज से अपनी प्रेग्नेंसी से जुड़ा एक बड़ा सच छुपाती है, जिसे लेकर बाद में उसे पछतावा होगा. उसे डर है कि अगर उसने वनराज को सच बता दिया तो कहीं उसका रिश्ता न टूट जाए.

इसके अलावा बेबी शावर में काव्या के साथ-साथ बरखा भी परेशान रहेगी. दरअसल, गोदभराई में अंकुश अपने बेटे को लाने का फैसला करता है, जिससे बरखा को बहुत गुस्सा आएगा. वह अंकुश को कई बार धमकी भी देती है कि वो फंक्शन में अपने बेटे को न लाए पर वह बरखा की बात नहीं मानता.

अनुपमा के सामने सामने गिड़गिड़ाएगी काव्या

हालांकि शो (Anupamaa Spoiler alert) में धमाका तब देखने को मिलेगा जब अनुपमा को काव्या की प्रेग्नेंसी का सच पता चलेगा. सच जानने के बाद अनुपमा सहम जाएगी. वहीं काव्या उसके सामने गिड़गिड़ाएगी कि वो ये बात किसी को भी न बताएं और वह अपनी गलती को सुधारने की पूरी कोशिश करेगी. बहरहाल अनुपमा बाकी घरवालों को कब ये सच बताएगी यह तो आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा.

पश्चाताप की आग

औफिस में घुसते ही सेठ गणपत राव ने सामने कुरसी पर बैठे एकाउंटैंट यशवंत से पूछा, “कोई चैक है?”
“एक नहीं, कई हैं सर,” यशवंत ने मुसकरा कर कहा, “छोटीमोटी रकमों के कुल आधा दर्जन चेक हैं, एक तो काफी बड़ी रकम का है. आखिरकार चौहान ने पैसे दे ही दिए.”

सेठ गणपत राव ने दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में उलझा कर हंसते हुए कहा, “चमत्कार हर युग में हुए हैं. उन्होंने पूरी रकम अदा कर दी है क्या?”

“जी, 50 लाख 59 हजार 6 सौ 40 रुपए का चेक है. पूरी रकम अदा कर दी है.”
“बहुत अच्छा, तब तो तुम बैंक जाने की तैयारी कर रहे होगे? बैंक जा रहे हो तो 20 लाख रुपए निकलवा लेना, मुझे गजेंद्र के यहां जाना है, वहां से लौट कर लोनावला वाली जमीन देखने जाऊंगा. हो सकता है, कुछ एडवांस देना पड़े. चेक पर तुम खुद ही दस्तखत कर लेना. तब तक मैं एक जरूरी काम निपटाए लेता हूं.”
“ठीक है, सर.”

हमेशा से ऐसा ही होता आया था. उन दिनों से जब यशवंत नवयुवक था और यहां काम करने आया था. शुरूशुरू में इस कंपनी में केवल गणपत राव थे और सारा काम वह खुद ही देखते थे. जबकि इस समय उन की कंपनी में काफी लोग काम कर रहे थे. आजकल उन का कारोबार भी काफी अच्छा चल रहा था. वह जिस चीज में हाथ लगा देते थे, वह सोना हो जाती थी.

यशवंत को उन के एकएक पैसे के बारे में पता था. सेठ गणपत राव के पास अरबों की दौलत थी. यशवंत इस बात से हैरान था कि इतनी दौलत का वह करेंगे क्या? दुनिया में उन का एक भी रिश्तेदार नहीं है. आखिर यह दौलत वह किस के लिए जमा कर रहे हैं?

सेठ गणपत राव को कामों से ही फुरसत नहीं थी. वह पैसा कब और कहां खर्च करते? वह तो बस काम करने और व्यस्त रहने के आदी थे. शायद इसीलिए यशवंत को यह कहने में जरा भी हिचक नहीं होती थी कि यह आदमी केवल काम करने के लिए जी रहा है.

गणपत राव के जाते ही यशवंत ने मेज पर पड़े अखबार को उठाया तो उस की नजर सीधे आधे पृष्ठ के एक विज्ञापन पर जा कर ठहर गई, “द फ्लाइंग एज…”

उस ने विज्ञापन की हैडिंग एक बार फिर से पढ़ी, “धूप में चमकते हिंद महासागर पर सुंदर उड़ान… मेडागास्कर की सुंदर धरती की यात्रा, जहां फूलों की सुगंध आप का स्वागत करती हैं, वहां जीवन एक नई छटा बिखेरता है.”

विज्ञापन देख कर यशवंत के दिल में वर्षों से सोई एक चाहत अचानक अंगड़ाई ले कर जाग उठी. विदेश की अनोखी धरती की यात्रा उस की इच्छा ही नहीं थी, बल्कि जीवन का एक सपना था. लेकिन उसे गणपत राव के यहां जो वेतन मिलता था, उस में ऐसी जगहों का सिर्फ सपना ही देखा जा सकता था.

इस वेतन से वह केवल शहर के ही मामूली मनोरंजन स्थलों तक जा सका था. शायद यही वजह थी कि विज्ञापन देख कर उस का मन मचल उठा था. वहां जाने की इच्छा तीव्र हो उठी थी. उस ने हमेशा की तरह इस बार भी इस इच्छा को दबाने की कोशिश की, लेकिन इस बार दबने के बजाय वह उभरती जा रही थी. शायद वह विद्रोह पर उतर आई थी.

वह उसे जितना दबाने की कोशिश कर रहा था, वह उतना ही उग्र होती जा रही थी. आखिर क्यों उस के दिमाग में यह विचार बारबार आ रहा था? क्या वह अपनी यह इच्छा पूरी नहीं कर सकता?

उसे सेठ गणपत राव की ओर से चेक पर दस्तखत करने का अधिकार मिला हुआ था. बूढ़े सेठ को तो यह भी नहीं मालूम था कि उन के किस एकाउंट में कितना पैसा है. उन्होंने न जाने कितने समय से बैंक स्टेटमैंट भी नहीं देखा था. वह इधर सिर्फ तरहतरह की जायदादों में रुचि ले रहे थे या फिर निवेश के बारे में सोचते रहते थे.

यशवंत का मन ज्यादा बेचैन हुआ तो वह उठ कर टहलने लगा. उसे घूमने जाने के लिए जितने पैसों की जरूरत थी, वह उन्हें फितरत से पाना चाहता था, जिसे गबन कहा जाता है. लेकिन यह अपराध था. उस ने सोचा कि जैसे भी हो, उसे हर हालत में अपनी इस इच्छा का गला घोंट देना चाहिए. लेकिन लाख कोशिश के बावजूद वह ऐसा नहीं कर सका.

इच्छा दबने के बजाय और बलवती होती जा रही थी, साथ ही पैसे हासिल करने का तरीका भी उस के दिमाग में आने लगा था. उसे लगा, जैसे कोई उस के कान में कह रहा है कि उसे घूमने जाने में परेशानी क्या है? उसे केवल एक चेक पर दस्तखत ही तो करने हैं और दस्तखत करने का अधिकार उसे सेठ गणपत राव ने दे ही दिया है.

उस ने सोचा कि मोटी रकम निकाल कर वह किसी अंजान शहर में जा कर कोई छोटामोटा कारोबार कर लेगा. इतना तो वह कमा ही लेगा, जितना सेठ गणपत राव देते हैं.

उस के दिल ने कहा कि वह 3 सप्ताह की यात्रा पर जाने के लिए अगर कंपनी के एकाउंट से कुछ लाख रुपए निकाल लेता है तो परेशानी क्या है? लेकिन दिमाग ने कहा, “यह धोखेबाजी होगी. सेठ गणपत राव ने हमेशा उस से अच्छा व्यवहार किया है, आंख मूंद कर विश्वास किया है. उसी का नतीजा है कि चेक पर उसे हस्ताक्षर करने का अधिकार दिया है.”

“लेकिन गधों की तरह काम भी तो लेता है. उसे जितना वेतन मिलना चाहिए, वह भी तो नहीं देता.” दिल ने कहा.

“फिर भी यह गलत है. अगर वह कम वेतन देता है तो उसे उस से कह देना चाहिए. उसे इस तरह चोरी नहीं करना चाहिए.”

“आखिर कुछ लाख रुपए ले लेने से उस का क्या बिगड़ जाएगा?”

“जब स्वाति बीमार हुई थी तो गणपत राव ने उस की कितनी मदद की थी.” दिमाग ने सलाह दी.

“स्वाति? शायद वह भूल रहा है कि उस औरत की चीखों ने उसे कितना दुखी किया था. अच्छी बात यह है कि उस का कोई बच्चा नहीं है, वरना वह क्या करता? उसे इस मौके का फायदा उठा लेना चाहिए. स्वाति से भी पीछा छूट सकता है.” दिमाग ने तर्क किया.

यशवंत की नजरें मेज पर टिकी थीं. उस के दिल और दिमाग में द्वंद्व चल रहा था. लेकिन वह किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा था. आज उसे लग रहा था कि किसी ईमानदार आदमी के लिए किसी को धोखा देना कितना कठिन काम होता है.

अगर सेठ गणपत राव की ओर से चेकों पर दस्तखत करने का अधिकार न मिला होता तो शायद वह उन के फरजी दस्तखत कर के रुपए निकलवा लेता. यही वजह थी कि वह उस के विश्वास की हत्या नहीं करना चाहता था.

मन था कि मान ही नहीं रहा था. उस के तर्क थे कि बस छोटे से खतरे की बात है. इच्छा पूरी करने के लिए छोटामोटा खतरा तो उठाना ही पड़ता है. लेकिन दिमाग का कहना था कि पता चलने पर गणपत राव पुलिस में रिपोर्ट कर देगा. यह भी हो सकता है कि अखबारों में विज्ञापन दे दे कि ‘तुम जहां कहीं भी हो वापस आ जाओ, तुम्हें कुछ नहीं कहा जाएगा.’

यशवंत ने पूरी ताकत से अपने मन में उठी इस इच्छा को दबाना चाहा, तब दिमाग ने कहा, “ठीक है, तुम ऐसा नहीं कर सकते तो कोई बात नहीं, कम से कम ट्रैवेल एजेंसी तक तो जा ही सकते हो. वहां से जो प्रचार सामग्री मिलेगी, उसे तो देख ही लोगे.”

“बहुत अच्छा,” यशवंत धीरे से बुदबुदाया, “मैं ऐसा ही करूंगा.”

उस पूरे सप्ताह वह काफी खुश रहा. उस ने कई ट्रैवेल एजेंसियों के चक्कर लगाए और वहां से तमाम प्रचार सामग्री ले आया. उस ने उन्हें ध्यान से और इतनी बार देखा कि उन के एकएक फोटो उस की आंखों में बस गए. अब उन तसवीरों को देखते ही उसे लगता कि वह वहां घूम रहा है.

एक दिन वह अपनी सीट पर बैठा सीटी बजाते हुए उन प्रचार सामग्री को पलट रहा था कि सेठ गणपत राव उस के सामने आ कर खड़े हो गए. वह एकदम से शांत हो गया. गणपत राव ने उस की पीठ पर हाथ रख कर कहा, “क्या बात है बेटा, आज बहुत खुश नजर आ रहे हो, कहीं से दौलत तो हाथ नहीं लग गई?”
“अभी तो कुछ हाथ नहीं लगा सेठजी.” यशवंत ने झेंपते हुए कहा.
“लौटरी वगैरह के चक्कर में मत पडऩा,” सेठ गणपत राव ने कहा, “अगर तुम्हें दौलत ही चाहिए तो मेहनत से कमाना. सुकून मिलेगा. गलत रास्ते से आने वाली दौलत से कभी सुकून नहीं मिलता.”
यशवंत के दिमाग में गणपत राव की ये बातें गूंजने लगीं. इन बातों से वह नर्वस होने लगा. गणपत राव यह बात अपने स्टाफ के हर आदमी से कह चुके थे. वह मेहनत पर विश्वास करते थे और दूसरों से भी मेहनत करने के लिए कहते थे.
यशवंत बड़बड़ाया, ‘यह आदमी न जाने किस मिट्टी का बना है. हमेशा काम की ही बातें करता है. आखिर कोई आदमी जीवन में कितना काम कर सकता है? इसे तो आदमी नहीं चींटी के रूप में जन्म लेना चाहिए था, जो हमेशा काम में लगी रहती है.’
सेठ गणपत राव के बारे में दिमाग में जैसे ही कड़वाहट पैदा हुई, मन ने कहा, “अरे चेक कैश कराने के बारे में क्या सोचा? मैं कब से समझा रहा हूं कि सीधी अंगुली घी नहीं निकलता.”
“अभी बहुत समय पड़ा है.” दिमाग ने कहा.
“मूर्ख, तुम डर रहे हो, अभी एक चेक भरो और उस पर दस्तखत कर के बैंक से कैश करा लो. आखिर इस में बुराई क्या है?”

“ठीक है, यही करता हूं.” दिमाग ने हार मान ली.

यशवंत का दिमाग राजी हो गया तो वह उचित मौके की तलाश में लग गया. 2 दिनों बाद सेठ गणपत राव को अपने वकील से मिलने जाना पड़ा. यशवंत को लगा, वह इस मौके का फायदा उठा सकता है. उन के आने के पहले वह चैक तैयार कर के कैश करा सकता है. वह औफिस में नहीं रहेंगे तो कोई पूछेगा भी नहीं. किसी को शक भी नहीं होगा कि कुछ गलत हुआ है.

यशवंत ने चेक बुक निकाली. उस पर तारीख डाल कर ‘पे कैश’ लिखा. लेकिन इसी के साथ डर के मारे रीढ़ की हड्डी पर छिपकली सी रेंगती महसूस हुई. क्योंकि उस ने चेक पर पहले कभी यह शब्द नहीं लिखा था. उसे लगा, चेक पर लिखे शब्द उस की विवशता पर हंस रहे हैं. वह चेक मेज पर रख कर उठ खड़ा हुआ. शायद कोई बात उसे विचलित कर रही थी.

वह अपनी केबिन में टहलने लगा. उसे लगा, स्टाफ के लोग उसे घूर रहे हैं. तो क्या उन्हें उस की नीयत का पता चल गया है? उन लोगों को कैसे पता चला कि वह धोखेबाजी करने जा रहा है? उस ने सिर झटका और भ्रम को दूर किया. उस के माथे पर पसीने की बूंदें चुहचुहा आई थीं. एक बार उस ने फिर से चेक को देखा. वह सोचने लगा कि इस में कितनी रकम भरी जाए.

ट्रैवेल एजेंसी से मिली प्रचार सामग्री से पता चल चुका था कि पसंदीदा जगहों पर घूमने के लिए उसे कम से कम 5 लाख रुपए की जरूरत पड़ेगी. उस ने तुरंत चेक में यह रकम भर दी.

“लानत है मुझ पर.” उस ने खुद को कोसा, “मुझे 10 लाख रुपए लिखना चाहिए था, जब बेईमानी ही कर के घूमने जा रहा है तो मौज से घूमना चाहिए.”

उसे हैरानी हो रही थी कि लोग लाखोंकरोड़ों का फ्रौड कैसे कर लेते हैं, जबकि वह केवल 10-5 लाख के बारे में ही सोच रहा है. उसे लगा कि अब उस ने जो रकम भर दी है, उसी में संतोष करना चाहिए. उस ने चेक पर दस्तखत किए और केबिन से बाहर आ गया.

“मैं बैंक जा रहा हूं,” उस ने चलतेचलते साथियों से कहा. औफिस से बाहर आ कर वह पल भर के लिए रुका. बैंक पहुंचने में उसे ज्यादा समय नहीं लगता था, लेकिन आज वह सीधे बैंक जाने के बजाय इधरउधर घूमते हुए बैंक जा रहा था. वह पलटपलट कर देख भी रहा था कि कोई उसे देख तो नहीं रहा है.

उस ने किताबों की दुकान के सामने गाड़ी रोक दी और उस के ऊपर लगे बोर्ड को घूरने लगा. इस के बाद गाड़ी से उतर कर एक खोखे से सिगरेट खरीद कर सुलगाई और धीरेधीरे कश लगाते हुए गाड़ी आगे बढ़ा दी. लेकिन एक अनजान भय उसे घेरे था.

उसे लग रहा था कि लोग उसे घूर रहे हैं. नजरों से ही उस की लानतमलामत कर रहे हैं. उस से कह रहे हैं कि ईमानदार होते हुए भी वह चोरी कर के बहुत बड़ा अपराध करने जा रहा है.

उस के दिमाग में आया कि उसे चेक कैश कराने में देर नहीं करनी चाहिए. जब तक वह चेक कैश नहीं करा लेता, तब तक उस के दिमाग में इसी तरह की बातें चलती रहेंगी. वह लपक कर बैंक पहुंचा. उस ने कैशियर के सामने चेक रख कर उसे नोट गिनते हुए देखने लगा. अचानक उस का दिल उछल कर हलक में आ गया. किसी ने नाम ले कर उसे पुकारा.

बराबर वाले क्लर्क ने उस की ओर इशारा कर के कहा, “आप को मैनेजर साहब बुला रहे हैं.”

यशवंत का पूरा शरीर पसीने से तर हो गया. एक बार तो उस का मन किया कि वह भाग निकले. लेकिन उसे लगा कि उस की टांगों में भागने की ताकत नहीं है. मैनेजर के केबिन की चंद गज की दूरी उसे बहुत लंबी लग रही थी. मन वहां जाने का नहीं हो रहा था.

उसे लगा कि कहीं सेठ गणपत राव को वकील ने यहां किसी फाइल की जरूरत तो नहीं पड़ गई. वह अपना मोबाइल औफिस में ही छोड़ आया था. औफिस में फोन किया होगा तो उन्हें बताया गया होगा कि वह बैंक गया है.

हिम्मत कर के वह मैनेजर की केबिन में दाखिल हुआ. अब तक वह काफी हद तक संभल चुका था. अभी उस ने कैशियर से रुपए लिए नहीं थे, इसलिए वह अपराधी नहीं था. इस बात ने उस का हौसला बढ़ाया. उस के केबिन में दाखिल होते ही मैनेजर ने कहा, “वकील के औफिस में सेठ गणपत राव की तबीयत अचानक खराब हो गई है. आप तुरंत लीलावती अस्पताल पहुंचिए.”

यशवंत जैसे एक भयानक सपने से जागा. उस ने कुछ कहना चाहा, लेकिन जुबान ने साथ नहीं दिया. वह खामोशी से घूमा और दरवाजे की ओर बढ़ा. तभी कैशियर ने कहा, “यशवंत, कैश तो लेते जाइए.”

कैशियर की बात का जवाब दिए बगैर वह कार में जा बैठा. कार तेजी से अस्पताल की ओर चल पड़ी.
अगला एक घंटा उस का बेचैनी से गुजरा. वह अस्पताल पहुंचा तो सेठ गणपत राव की मौत हो चुकी थी. वकील के औफिस में उन्हें हार्टअटैक आ गया था. अस्पताल से उसे वकील के औफिस जाना पड़ा. वहां वह काफी डरा हुआ था. उसे यही लग रहा था कि वकील उसे अर्थपूर्ण नजरों से देख रहा है.

अनायास ही उस का हाथ अपने हैंड बैग की ओर बढ़ा. उस ने इत्मीनान की सांस ली कि उस ने कैशियर से पैसे नहीं लिए थे. अचानक वकील की नजरें बदल गईं. वकील ने कहा, “तुम्हें पता है सेठ गणपत राव आज मेरे औफिस क्यों आए थे?”

“नहीं…” वह थूक निगल कर बोला.

“वह यहां वसीयतनामे पर दस्तखत करने आए थे. जैसे ही उन्होंने दस्तखत किए, उन पर दिल का दौरा पड़ गया. वह अपनी तमाम जायदाद और धनदौलत तुम्हारे नाम कर गए हैं.”

यशवंत को अपना दिल सीने से बाहर आता महसूस हुआ. वह फटीफटी नजरों से वकील को घूरता रह गया. वकील ने उस के कंधे पर हाथ रख कर कहा, “मुझे लगता है, तुम्हें उन की मौत का गहरा सदमा पहुंचा है. लेकिन होनी को कौन टाल सका है.”

यशवंत ने सहमति में सिर हिलाया. वह दिल ही दिल में सोच रहा था कि उस ने बैंक से वे पांच लाख रुपए नहीं लिए, वरना शायद वह जीवन भर पश्चाताप की आग में जलता रहता.

जोड़तोड़ में ‘चिंतित’ भाजपा

हिमाचल प्रदेश और कनार्टक की विधानसभाओं में और पश्चिम बंगाल की पंचायतों में हार के बाद भारतीय जनता पार्टी चिंतित है कि हिंदूमुसलिम विद्वेष की लकड़ी की हांडी में उस की दाल कितने दिन और गलेगी. वैसे, चिंता की कोई खास बात नहीं है उस के लिए क्योंकि धर्म के धंधे से जुड़ा या उस से फायदा उठाने वाला हर जना भाजपा का ‘अवैतनिक प्रचारक’ है ही जो दिल और पैसा लगा कर उस के लिए काम करता रहता है.

कठिनाई यह है कि ज्यादा दिखने वालेज्यादा बोलने वालेज्यादा व्यवहार कुशलज्यादा पैसे वाले ये लोग गिनती में उन के बराबर कहीं नहीं जो अपनी मेहनत का खाते हैंदूसरों के जुल्म सहते हैंपूजापाठ में भी भरोसा करते हैं पर दिल से भाजपा को चाहें, यह जरूरी नहीं.

इन लोगों को अपने में समेटने में भारतीय जनता पार्टी अब जोरशोर से दूसरी पार्टियों को अपने साथ ला रही है चाहे इस चक्कर में कुछ को तोडऩा पड़े या उन में आपसी जोड़ लगाना हो. पुलिसफौजकानूनअदालतेंमीडिया आदि भारतीय जनता पार्टी के अधीन हैं या कह लें कि प्रभाव में हैं. लेकिन इस के बावजूद तमिलनाडूकर्नाटकहिमाचलराजस्थानपश्चिम बंगाल में विपक्ष के सरकारें हैं. इसलिए भाजपा एनडीए को पुनर्जीवित करने में जुट गई है.

फिलहाल दलित नेता चिराग पासवानओ पी राजभरटीडीपी के चंद्रबाबू नायडू और जनता दल यूनाइटेड के देवगौड़ा से बात हो रही है. अगले चुनावों में भारतीय जनता पार्टी यदि हर जाति-धर्म को ले कर चुनाव में आए तो यह देश के लिए अच्छा होगा. राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ ने जोड़ा या नहीं, लेकिन उसने भाजपा को दूसरी पार्टियां को जोडऩे पर मजबूर कर दिया. 2014 से पहले ये पार्टियां अपनेआप नैशनल डैमोक्रेटिक फ्रंट यानी एनडीए का हिस्सा बनी थीं. अब लालच दे कर उन्हें लाया जा रहा है और भारतीय जनता पार्टी की 2-3 पीढिय़ों के कर्मठ नेताओं को चुप बैठने को कहा जा रहा है.

इन पार्टियों को बुला कर लाने का मतलब है कि अब सनातन धर्म कहे जाने पौराणिक हिंदू धर्म में भी पानी पिलाने की जरूरत आ पड़ी है. पिछले 3-4 महीने से प्रधानमंत्री ने किसी बड़े मंदिर काधार्मिक कौरिडोर का उद्घाटन नहीं किया. ससंद भवन का उद्घाटन का धार्मिकीकरण जरूर हुआ था पर उस में भी संविधान ऊपर था, वेदपुराणदेवीदेवता नहीं. चाह कर भी भाजपा नए संसद भवन पर विष्णुब्रह्माशंकर या मनु का 200 फुट ऊंचा स्टैचू नहीं लगवा पाई.

दूसरी पार्टियों को बुला कर लाने का अर्थ यही है कि ज्यादा सीटें होने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी की न चलना जो महाराष्ट्र में हो रहा है. एकनाथ शिंदे वापस न लौट जाएं, यह डर देवेंद्र फडनवीस को हर दम खाए रहता है. इसीलिए अजित पवार को छोड़ा गया है. अब दोनों ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी के लोग भी नाराज हैं.

इस जोड़तोड़ का मतलब है कि नई भारतीय जनता पार्टी कुछकुछ विपक्षी दलों के गठजोड़ की तरह दिखने लगेगी. वैसे भी, अगर वोट सिर्फ में बंटेंगे तो भारतीय जनता पार्टी या उस के सहयोगियों को वोट, शायद, इतने न मिलें जितने वे चाहते हैं. आमतौर पर भारतीय जनता पार्टी जीतती रही है क्योंकि भाजपाविरोधी वोट बंट रहे थे. अब जिन में कटते थे वे भाजपा के साथ चले गए तो कांग्रेस व दूसरी पार्टियों को नुकसान के बदले फायदा हो सकता है. इसीलिए आजकल जब भी बात भविष्य की जाती है तो कहा जाता है कि अगर 2024 में नरेंद्र मोदी जीत जाते हैं तो यह होगा, वह होगा. अगर’ अब बड़ा होता जा रहा है. मगरमच्छों को पालने से अगर’ कमजोर होगाइस में संदेह है.

‘इंडिया’ : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गरिमा…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विपक्ष के गठबंधन के ‘इंडिया’ नाम रखने पर आलोचना के लिए शब्द…. जुमले में वक्तव्य की ड्राफ्टिंग बनातेबनाते लंबा समय लग गया. जैसा कि देश के सामने है, अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेतृत्व में 26 राजनीतिक दलों ने ‘इंडिया’ नामक गठबंधन बनाया है. इस नाम से अगर किसी को सब से ज्यादा पीड़ा हो रही है तो वह है भारतीय जनता पार्टी, क्योंकि वह बातबात में देश और देशभक्ति की बातें करने से पीछे नहीं रहती.

संभवतः देशभक्ति के लिए अपना ट्रेडमार्क करवा रखा है, ऐसे में विपक्ष का अपने गठबंधन का नाम ‘इंडिया’ रख लेना भाजपा के लिए मानो किसी बड़े आघात से कम नहीं है. अब ‘इंडिया’ बनाम ‘एनडीए’ जब देश के सामने है और यह सुर्खियों में है तो प्रथमदृष्टया ही ‘इंडिया’ ‘एनडीए’ पर भारी पड़ने लगा है.

भारतीय जनता पार्टी, जो वर्तमान में केंद्र में सत्तारूढ़ है और आगामी वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में एक बार फिर जीत हासिल करना चाहती है, की छटपटाहट साफ दिखाई दे रही है. ‘इंडिया’ नाम से भाजपा का पसीना निकलने लगा है. शायद यही कारण है कि बहुत सोचविचार कर के स्वयं प्रधानमंत्री 25 जुलाई, 2023 को पार्टी के संसदीय दल की बैठक में विपक्ष पर हमला करने के लिए परदे के पीछे से आ गए और राजनीतिक विपक्ष दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ की आलोचना उन्होंने अपनी नकारात्मक शैली में की. सिर्फ विरोध करने के लिए देश के विपक्षी पार्टियों की तुलना ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ से कर दी और विपक्षी दलों पर अपनी गरिमा से हट कर हमला करते हुए ‘इंडियन मुजाहिदीन’, ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ का हवाला दिया और कहा कि देश की जनता को गुमराह नहीं किया जा सकता है ‘इंडिया’ नाम से.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी गठबंधन इंडियन नैशनल डवलपमैंटल इन्क्लूसिव अलायंस यानी ‘इंडिया’ को देश का अब तक का सब से ‘दिशाहीन’ गठबंधन करार दिया.

साथ ही, नरेंद्र मोदी ने ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ और ‘इंडियन मुजाहिदीन’ जैसे नामों का हवाला देते हुए कहा, “केवल देश के नाम के इस्तेमाल से लोगों को गुमराह नहीं किया जा सकता.”

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का यह वक्तव्य उन की तरफ से जारी नहीं हुआ है. इसे मीडिया में ले कर आए केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी. इस का तात्पर्य है कि नरेंद्र मोदी पहली दफा देश के 26 विपक्षी दलों पर प्रत्यक्ष रूप से खुल कर हमला करने की स्थिति में नहीं हैं. यह हमला उन्होंने एक तरह से परदे के पीछे से किया है, जिस के कई अर्थ आज हमारे सामने हैं. सब से पहला तो यह कि भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी विपक्ष के ‘इंडिया’ नाम रखने से एक तरह से अपनेआप को कमजोर और मजबूर पा रही है कि कहीं ‘इंडिया’ की आलोचना करने से देश की सत्ता हाथ से न चली जाए.

जिस तरह नरेंद्र मोदी ने ‘इंडियन मुजाहिदीन’ और ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ से आज के 26 विपक्षी दलों की एकता और गठबंधन के नाम की तुलना कर के आलोचना की है, वह बताता है कि भाजपा और नरेंद्र मोदी पहली बार कुछ कदम पीछे हट रहे हैं.

‘इंडिया’ से डरी भाजपा

आज भाजपा से सवाल यह है कि विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ का विरोध जिस तरह छुपछुप कर किया जा रहा है, क्या उन के पास जवाब है कि स्वयं उन की पार्टी भारतीय जनता पार्टी में ‘भारतीय’ शब्द का प्रयोग क्यों किया गया है? जब भाजपा का निर्माण हुआ, तो यह कहा जा सकता था कि आप भी ‘भारतीय’ शब्द के माध्यम से यह जताने का प्रयास कर रहे हैं कि भारत के लोग आप के साथ हैं. कांग्रेस या किसी ने भी यह मुद्दा नहीं उठाया, आलोचना नहीं की. संसदीय दल में अपने मुंह मियां मिट्ठू बन मोदी कह रहे थे कि राजग को लगातार तीसरा कार्यकाल मिलना तय है.

केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री प्रह्लाद जोशी ने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष के ‘हताश और निराश’ व्यवहार का उल्लेख किया और कहा कि उस के इस रुख से यह दिखाई पड़ता है कि उस ने आने वाले कई सालों तक विपक्ष में रहने का निर्णय लिया है.

विपक्षी दलों के ‘इंडिया’ (गठबंधन) नाम के बैनर तले लामबंद होने के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम का इस्तेमाल करने वाले कुछ प्रतिबंधित चरमपंथी और आतंकवादी संगठनों सहित कुछ अन्य संगठनों के इतिहास का हवाला दिया और समूह को भ्रष्ट नेताओं और पार्टियों का गठबंधन बताया.

प्रधानमंत्री ने विपक्ष को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि आप देश को तोड़ना चाहते हैं, इसे विभाजित करना चाहते हैं, लोगों को गुमराह करने के लिए ‘इंडिया’ और ‘इंडियन’ जैसे नामों का इस्तेमाल किया है. भारत की जनता अब और परिपक्व हो गई है और इस तरह के नामकरण से गुमराह नहीं होगी. भाजपा की ओर से विपक्षी दलों पर संसद की कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाए जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वे अधिक गैरजिम्मेदार हो गए हैं और इस से सत्तारूढ़ दल के लिए अधिक जिम्मेदारी से व्यवहार करना अनिवार्य हो गया है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि दुनिया भी सोचती है, भारत के लोग भी सोचते हैं कि यह शुरुआत है. इसलिए दुनिया भी इस सरकार के साथ, इस नेतृत्व के साथ आगे बढ़ना चाहती है, इसलिए बहुत महत्त्वपूर्ण समझौते हुए हैं. विश्व में भारत की मान्यता बहुत बढ़ रही है. यह सारे तथ्य बताते हैं कि भारतीय जनता पार्टी और नरेंद्र मोदी की टीम आज किस तरह प्रैशर में है.

जानें उम्र और आई वी एफ की सफलता के सम्बन्ध तथा इसके विकल्प

इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) ने प्रजनन चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांति ला दी है, जिससे प्रजनन संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लाखों जोड़ों को माता-पिता बनने की आशा मिली है। सहायक प्रजनन तकनीक, जिसका आईवीएफ एक हिस्सा है, में नियंत्रित प्रयोगशाला में शरीर के बाहर शुक्राणु के साथ अंडों का निषेचन किया जाता है। इसके बाद, सफलता की उच्चतम संभावना वाले भ्रूण को गर्भाशय में स्थानांतरित कर दिया जाता है।

डॉ. क्षितिज मुर्डिया सीईओ और सह-संस्थापक इंदिरा आईवीएफ का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों में, मुख्य रूप से विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और व्यक्तिगत कारकों के कारण, अधिक उम्र में,आईवीएफ चुनने वाली महिलाओं में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

आईवीएफ के सफलता दर को समझना

आईवीएफ की सफलता दर, इस प्रक्रिया के माध्यम से सफल गर्भावस्था और जीवित बच्चे के जन्म की संभावना को दर्शाता है।ये दरें आईवीएफ पर विचार करने वाले व्यक्तियों या जोड़ों के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इनसे वे उपचार की प्रभावशीलता और संभावित परिणामों के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

महिला प्रजनन क्षमता पर उम्र का प्रभाव

महिलाओं की प्रजनन क्षमता उम्र के साथ कम हो जाती है, खासकर 35 के बाद। अधिक उम्र वाली महिलाओं को ओवेरियन रिजर्व, अंडे की गुणवत्ता और मात्रा में कमी का अनुभव होता है। अंडों में क्रोमोसोमल असामान्यताओं का खतरा भी उम्र के साथ बढ़ता है, जिससे आनुवंशिक विकार और असफल गर्भधारण होता है। हालाँकि, नए शोध से पता चला है कि 35 वर्ष से कम उम्र के लोगों में समय से पहले ओवेरि की उम्र बढ़ने लगती है, जिससे प्राकृतिक गर्भाधान चुनौतीपूर्ण हो जाता है।

आईवीएफ की सफलता को प्रभावित करने वाले आयु-संबंधित कारण

उम्र ओवेरियन उत्तेजना के लिए की गयी दवाओं की प्रतिकिया को प्रभावित करता है, जिसके कारणवश उत्पादित स्वस्थ अंडों की संख्या प्रभावित होती है।बढ़ती उम्र के साथ सफल भ्रूण प्रत्यारोपण की संभावना कम हो जाती है, जिससे समग्र आईवीएफ सफलता दर प्रभावित होती है।इसके अतिरिक्त, किसी भी गर्भावस्था के दौरान गर्भपात का खतरा उम्र के साथ बढ़ता है, जिससे अधिक उम्र वाले जोड़ों के लिए भावनात्मक चुनौतियाँ पैदा होती हैं।

पुरुष आयु और आईवीएफ की सफलता

पुरुष की उम्र भी आईवीएफ की सफलता को प्रभावित कर सकती है, क्योंकि उन्नत पैतृक उम्र शुक्राणु की गुणवत्ता में कमी और संतानों में आनुवंशिक असामान्यताओं के बढ़ने के जोखिम से जुड़ी होती है।
पिछले 45 वर्षों में शुक्राणुओं की संख्या में 51.6% की कमी देखी गई है।

भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पहलू

उम्र से संबंधित प्रजनन संबंधी कठिनाइयों का सामना करने वाले जोड़े अक्सर अपनी आईवीएफ यात्रा के दौरान भावनात्मक उथल-पुथल और तनाव का अनुभव करते हैं।पूरी प्रक्रिया के दौरान सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने के लिए परामर्श और भावनात्मक समर्थन महत्वपूर्ण हैं।
माता पिता बनने के अन्य विकल्प-

उम्र से संबंधित प्रजनन चुनौतियों का सामना करने वालों के लिए आईवीएफ को ही एकमात्र विकल्प नहीं माना जा सकता है। अन्य सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकियाँ, जैसे अंडाणु या शुक्राणु दान, अंतर्गर्भाशयी गर्भाधान, और इंट्रासाइटोप्लाज्मिक शुक्राणु इंजेक्शन, माता-पिता बनने के लिए व्यवहार्य विकल्प प्रदान करती हैं।

आईवीएफ की सफलता दर पर उम्र के प्रभाव को आज के दौर मे समझना महत्वपूर्ण हो जाता है क्यों की आज कल ज्यादा लोग जीवन में बाद में आईवीएफ का विकल्प चुन रहे हैं। उम्र से संबंधित प्रजनन चुनौतियों और भावनात्मक पहलुओं के बारे में जागरूक होने से जोड़ों को सही निर्णय लेने में मदद मिल सकती है।माता-पिता बनने के लिए वैकल्पिक रास्तों पर विचार करने से उम्र से संबंधित प्रजनन संबंधी कठिनाइयों का सामना करने वालों को आशा मिलती हैं। सही सहयोग और जानकारी से परिवार शुरू करने का सपना हकीकत बन सकता है।

विरासत : पाकिस्तान से दादी को किसने फोन किया?

‘‘दादाजी, आप का पाकिस्तान से फोन है,’’ आश्चर्य भरे स्वर में आकर्षण ने अपने दादा नंद शर्मा से कहा.

‘‘पाकिस्तान से, पर अब तो हमारा वहां कोई नहीं है. फिर अचानक…फोन,’’ नंद शर्मा ने तुरंत फोन पकड़ा.

दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘अस्सलामअलैकुम, मैं पाकिस्तान, जडांवाला से जहीर अहमद बोल रहा हूं. मैं ने आप का साक्षात्कार यहां के अखबार में पढ़ा था. मुझे यह जान कर बहुत खुशी हुई कि मेरे शहर जड़ांवाला के रहने वाले एक नागरिक ने हिंदुस्तान में खूब तरक्की पाई है. मैं ने यह भी पढ़ा है कि आप के मन में अपनी जन्मभूमि को देखने की बड़ी तमन्ना है. मैं आप के लिए कुछ उपहार भेज रहा हूं जो चंद दिनों में आप को मिल जाएगा, शेष बातें मैं ने पत्र में लिख दी हैं जो मेरे उपहार के साथ आप को मिल जाएगा.’’

फोन पर जहीर की बातें सुन कर नंद शर्मा भावुक हो उठे. फिर बोले, ‘‘भाई, आज बरसों बाद मैं ने अपने जन्मस्थान से किसी की आवाज सुनी है. आज आप से बात कर के 55 साल पहले का बीता समय आंखों के आगे घूम रहा है. मैं क्या कहूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है. बस, आप की समृद्धि और उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं.’’

इतना कहतेकहते नंद शर्मा की आंखें डबडबा गईं. वह आगे कुछ न कह सके और फोन रख दिया.

14 साल का आकर्षण अपने दादाजी के पास ही खड़ा था. उस ने दादाजी को इतना भावुक होते कभी नहीं देखा था.

आकर्षण कुछ देर वहां बैठा और उन के सामान्य होने का इंतजार करता रहा. फिर बोला, ‘‘दादाजी, आप को अपने पुराने घर की याद आ रही है?’’

‘‘हां बेटा, बंटवारे के समय मैं 17 साल का था. आज भी मुझे वह दिन याद है जब जड़ांवाला में कत्लेआम शुरू हुआ और दंगाइयों ने चुनचुन कर हिंदुओं को गाजरमूली की तरह काटा था. हमारे पड़ोसी मुसलमान परिवार ने हमें शरण दी और फिर मौका पा कर एकएक कर के मेरे परिवार के लोगों को सेना के पास पहुंचा दिया था. मेरे परिवार में केवल मैं ही पाकिस्तान में बचा था. मैं भी मौका देख कर निकलने की ताक में था कि किसी ने दंगाइयों को खबर कर दी कि नंद शर्मा को उस के पड़ोसियों ने पनाह दे रखी है.

‘‘खबर पा कर दंगाई पागलों की तरह उस घर की ओर झपटे. इस से पहले कि वे मेरी ओर पहुंच पाते मुझे छत के रास्ते से उन्होंने भगा दिया.

‘‘मैं एक छत से दूसरी छत को फांदता हुआ जैसे ही सड़क पर पहुंचा कि तभी सेना का ट्रक आ गया और सेना को देख कर दंगाई भाग खड़े हुए. फिर उसी ट्रक से सेना ने मुझे अमृतसर के लिए रवाना कर दिया.

‘‘उस वक्त तक मैं यही समझता था कि यह अशांति कुछ समय की है… धीरधीरे सब ठीक हो जाएगा, मैं फिर अपने परिवार के साथ वापस जड़ांवाला जा पाऊंगा पर यह मेरा भ्रम था. पिछले 55 सालों में कभी ऐसा मौका नहीं आया. मेरा शहर, मेरी जन्मभूमि, मेरी विरासत हमेशा के लिए मुझ से छीन ली गई.’’

इतना कह कर नंद शर्मा खामोश हो गए. आकर्षण का मन अभी और भी बहुत कुछ जानने को इच्छुक था पर उस समय दादा को परेशान करना उचित नहीं समझा.

नंद शर्मा हरियाणा के अंबाला शहर में एक प्रतिष्ठित पत्रकार थे. उन की गिनती वहां के वरिष्ठ पत्रकारों में होती थी. कुछ समय पहले हरियाणा के मुख्यमंत्री ने एक पत्रकार सम्मेलन में उन्हें सम्मानित किया था. उस सम्मेलन में पाकिस्तान से भी पत्रकारों का प्रतिनिधिमंडल आया हुआ था. उस समारोह में नंद शर्मा ने इस बात का जिक्र किया था कि वह विभाजन के बाद जड़ांवाला से भारत कैसे आए थे और साथ ही वहां से जुड़ी यादों को भी ताजा किया.

समारोह समाप्त होने के बाद एक पाकिस्तानी पत्रकार ने उन का साक्षात्कार लिया और पाकिस्तान आ कर अपने अखबार में उसे छाप भी दिया. वह साक्षात्कार जड़ांवाला के वकील जहीर अहमद ने पढ़ा तो उन्हें यह जान कर बहुत दुख हुआ कि कोई व्यक्ति इस कदर अपनी जन्मभूमि को देखने के लिए तड़प रहा है.

जहीर एक नेकदिल इनसान था. उस ने नंद शर्मा के लिए फौरन कुछ करने का फैसला लिया और समाचारपत्र में प्रकाशित नंबर पर उन से संपर्क किया.

नंद शर्मा एक भरेपूरे परिवार के मुखिया थे. उन के 4 बेटे और 1 बेटी थी. सभी विवाहित और बालबच्चों वाले थे. आज के इस भौतिकवादी युग में भी सभी मिलजुल कर एक ही छत के नीचे रहते थे.

आकर्षण ने जब सब को पाकिस्तान से आए फोन के  बारे में बताया तो सब विस्मित रह गए. फिर नंद शर्मा के बड़े बेटे मोहन शर्मा ने पिता के पास जा कर कहा, ‘‘बाबूजी, यदि आप कहें तो हम सब जड़ांवाला जा सकते हैं और अब तो बस सेवा भी शुरू हो चुकी है. इसी बहाने हम भी अपने पुरखों की जमीन को देख आएंगे.’’

‘‘मन तो मेरा भी करता है कि एक बार जड़ांवाला देख आऊं पर देखो कब जाना होता है,’’ इतना कह कर नंद शर्मा खामोश हो गए.

एक दिन नंद शर्मा के नाम एक पार्सल आया. वह पार्सल देखते ही आकर्षण जोर से चिल्लाया, ‘‘दादाजी, आप के लिए पाकिस्तान से पार्सल आया है,’’ और इसी के साथ परिवार के सारे सदस्य उसे देखने के लिए जमा हो गए.

नंद शर्मा आंगन में कुरसी डाल कर बैठ गए. आकर्षण ने उस पैकेट को खोला. उस में 100 से भी अधिक तसवीरें थीं. हर तसवीर के पीछे उर्दू में उस का पूरा विवरण लिखा हुआ था.

नंद शर्मा के चेहरे पर उमड़ते खुशी के भावों को आसानी से पढ़ा जा सकता था. उन्होंने ही नहीं, उन का पूरा परिवार उन तसवीरों को देख कर भावविभोर हो उठा.

एक तसवीर उठाते हुए नंद शर्मा ने कहा, ‘‘यह देखो, हमारा घर, हमारी पुश्तैनी हवेली और यहां अब बैंक आफ पाकिस्तान बन गया है.’’

नंद शर्मा के पोतेपोतियां बहुत हैरान हो उन तसवीरों को देख रहे थे. उन के छोटे पोते मानू और शानू बोले, ‘‘दादाजी, क्या इन में आप का स्कूल भी है?’’

‘‘हां बेटा, अभी दिखाता हूं,’’ कह कर उन्होंने तसवीरों को उलटापलटा तो उन्हें स्कूल की तसवीर नजर आई. अपने स्कूल की तसवीर देख कर उन का चेहरा खिल उठा और वह खुशी से चिल्ला उठे, ‘‘यह देखो बच्चों, मेरा स्कूल और यह रही मेरी कक्षा. यहां मैं टाट पर बैठ कर बच्चों के साथ पढ़ता था.’’

धीरेधीरे जड़ांवाला के बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, खेल के मैदान, सिनेमाघर, वहां की गलियां, पड़ोसियों के घर, गोलगप्पे, चाट वालों की दुकान और वहां की छोटी से छोटी जानकारी भी तसवीरों के माध्यम से सामने आने लगी. अंत में एक छोटी सी कपड़े की थैली को खोला गया. उस में कुछ मिट्टी थी और साथ में एक छोटा सा पत्र था. पत्र जहीर अहमद का था जिस में उस ने लिखा था :

‘नमस्ते, आज यह तसवीरें आप के पास पहुंचाते हुए मुझे बहुत खुशी हो रही है. आप भी सोचते होंगे कि मुझे क्या जरूरत पड़ी थी यह सब करने की. भाईजान, मेरे वालिद बंटवारे से पहले पंजाब के बटाला शहर में रहते थे. अपने जीतेजी वह कभी अपने शहर वापस न आ सके. उन के मन में यह आरजू ही रह गई कि वह अपनी जन्मभूमि को एक बार देख सकें. इसलिए जब मैं ने आप के बारे में पढ़ा तो फैसला किया कि आप की खुशी के लिए जो बन पड़ेगा, जरूर करूंगा.

‘भाईजान, इस पोटली में आप के पुश्तैनी मकान की मिट्टी है जो मेरे खयाल से आप के लिए बहुत कीमती होगी. इस के साथ ही मैं अपने परिवार की ओर से भी आप को पाकिस्तान आने की दावत देता हूं. आप जब चाहें यहां तशरीफ ला सकते हैं. आप अपने बच्चों, पोतेपोतियों के साथ यहां आएं. हम आप की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखेंगे.

‘आप का, जहीर अहमद.’

पत्र पढ़तेपढ़ते नंद शर्मा भावुक हो उठे. उन्होंने फौरन घर की पुश्तैनी मिट्टी को अपने माथे से लगाया और अपने पोते आकर्षण को बुला कर उस मिट्टी से सब के माथे पर तिलक करने को कहा.

‘‘दादाजी, पाकिस्तानी तो बहुत अच्छे हैं,’’ आकर्षण बोला, ‘‘फिर क्यों हम उस देश को नफरत की दृष्टि से देखते हैं. आज जहीर अहमद के कारण ही घरबैठे आप को अपनी विरासत के दर्शन हुए हैं.’’

‘‘ठीक कहते हो बेटा,’’ नंद शर्मा बोले, ‘‘घृणा और नफरत की दीवार तो चंद नेताओं और संकीर्ण विचारधारा वाले तथाकथित लोगों ने बनाई है. आम हिंदुस्तानी और पाकिस्तानी के दिलों में कोई मैल नहीं है. आज अगर मैं तुम्हारे सामने जिंदा हूं तो अपने उस मुसलिम पड़ोसी परिवार के कारण जिन्होंने समय रहते मुझे व मेरे परिवार को वहां से बाहर निकाला.’’

नंद शर्मा अगले कुछ दिनों तक घर आनेजाने वालों को जड़ांवाला की तसवीरें दिखाते रहे. एक दिन शाम को जब वह पत्रकार सम्मेलन से वापस आए तो ‘हैप्पी बर्थ डे टू दादाजी’ की ध्वनि से वातावरण गूंज उठा. उस दिन उन के जन्मदिन पर बच्चों ने उन्हें पार्टी देने का मन बनाया था.

नंद शर्मा को उन के पोतेपोतियों ने घेर लिया और फिर उन्हें उस कमरे की ओर ले गए जहां केक रखा था. वहां जा कर उन्होंने केक काटा और फिर सब ने खूब मस्ती की. फोटोग्राफर को बुलवा कर तसवीरें भी खिंचवाई गईं. बाद में उन में से एक तसवीर जो पूरे परिवार के साथ थी, वह जड़ांवाला भेज दी गई.

वक्त गुजरता रहा. धीरधीरे पत्राचार और फोन के माध्यम से दोनों परिवारों की नजदीकियां बढ़ने लगीं. देखते ही देखते 1 साल बीत गया. एक दिन जहीर अहमद का फोन आया, ‘‘भाईजान, ठीक 1 माह बाद मेरे बड़े बेटे की शादी है. आप सपरिवार आमंत्रित हैं. और हां, कोई बहाना बनाने की जरूरत नहीं है. मैं ने सारा इंतजाम कर दिया है. आप के पुरखों की विरासत आप का इंतजार कर रही है.’’

नंद शर्मा तो मानो इसी पल का इंतजार कर रहे थे. उन्होंने तुरंत कहा, ‘‘ऐसा कभी हो सकता है कि मेरे भतीजे की शादी हो और मैं न आऊं. आप इंतजार कीजिए, मैं सपरिवार आ रहा हूं.’’

रात के खाने पर जब सारा परिवार जमा हुआ तो नंद शर्मा ने रहस्योद्घाटन किया, ‘‘ध्यान से सुनो, हम सब लोग अगले माह जड़ांवाला जहीर के बेटे की शादी में जा रहे हैं. अपनीअपनी तैयारियां कर लो.’’

‘‘हुर्रे,’’ सब बच्चे खुशी से नाच उठे.

‘‘सच है, अपनी जमीन, अपनी मिट्टी और अपनी विरासत, इन की खुशबू ही कुछ और है,’’ कह कर नंद शर्मा आंखें बंद कर मानो किसी अलौकिक सुख में खो गए.

बच्चों की भावना: क्या छोटे बच्चों की परेशानी कोई समझता है?

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