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डर : भाग 2

‘‘तो कोई डर नहीं है?

‘‘मौत से सब को डर लगता है, लेकिन इस डर से कोईर् फौज में न जाए यह एकदम गलत है. दूसरे, सुरेश के इतने नंबर नहीं हैं कि  वह हर जगह अप्लाई कर सके. कंपीटिशन इतना है कि अगर किसी को एमबीए मिल रहे हैं तो एमए पास को कोई नहीं पूछेगा. एकएक नंबर के चलते नौकरियां नहीं मिलती हैं. बीकौम 54 प्रतिशत नंबर वाले को तो बिलकुल नहीं. सुरेश अच्छी जगहों के लिए अप्लाई कर ही नहीं सकता. तुम्हें अब तक इस का अनुभव हो गया होगा शकुन, इसलिए उसे जाने दो.’’

‘‘जी, वहां नंबरों का चक्कर तो नहीं पड़ेगा.’’

‘‘अच्छा एकेडैमिक कैरियर हर जगह देखा जाता है. परंतु सेना के अपने मापदंड हैं. उसी के अनुसार सिलैक्शन किया जाता है. वहां कोईर् आरक्षण का चक्कर नहीं होता. वहां उन को औलराउंडर चाहिए जो आत्मविश्वास से भरा हो, तुरंत निर्णय लेने की क्षमता रखता हो, दिमाग और शरीर से स्वस्थ हो. और हर तरह का काम करने में समर्थ हो. फिर वे उन को अपनी ट्रेनिंग से सेना के अनुसार ढाल लेते हैं. मेरी सुरेश से बात करवाओ. मैं उसे बताऊंगा कि कैसे करना है,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां, जी.’’

‘‘दिल्ली के एस एन दासगुप्ता कालेज ने अमृतसर में कोचिंग ब्रांच खोली है जो आईएएस, आईपीएस, सेना में अफसर बनने के लिए इच्छुक नौजवानों को कोचिंग देता है. वह यूपीएससी की अन्य परीक्षाओं की भी तैयारी करवाता है. तुम्हें पता है, आजकल सब औनलाइन होता है. वहां चले जाओ. वे इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर के लिए औनलाइन अप्लाई करवा देंगे. वहीं तुम्हें इस की लिखित परीक्षा के लिए कोचिंग लेनी है. अगर लिखित परीक्षा पास कर लेते हो तो वहीं इंटरव्यू की तैयारी की कोचिंग भी लेनी है. वे तुम्हें इस प्रकार तैयारी करवाएंगे कि तुम्हारे 99 प्रतिशत सफल होने के चांस रहेंगे.’’

‘‘पर फूफाजी, मेरे पास उन का पता नहीं है.’’

‘‘यार, आजकल सारी सूचनाएं गूगल पर मिल जाती हैं. गूगल पर सर्च मारो, सब पता चल जाएगा. फिर मुझे बताना कि क्या हुआ.’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

कुछ दिनों बाद सुरेश का फोन आया, ‘‘फूफाजी, मुझे पता चल गया था. मैं ने औनलाइन अप्लाई कर दिया है. कोचिंग सैंटर ने अप्लाई और लिखित परीक्षा की तैयारी के लिए 10 हजार रुपए लिए हैं और साथ में यह गारंटी भी दी है कि लिखित परीक्षा वह अवश्य क्लीयर कर ले.’’

‘‘सुरेश, यह उन का व्यापार है. ऐसा वे सब से कहते होंगे जो उन के पास परीक्षा की तैयारी के लिए जाते हैं. यह औल इंडिया बेस की परीक्षा है. इस में सब से अधिक तुम्हारी खुद की मेहनत रंग लाएगी. तुम से अच्छे भी होंगे और खराब भी. बस, रातदिन तुम्हें मेहनत करनी है बिना यह सोचे कि तुम्हारा एकेडैमिक कैरियर कैसा था. यदि तुम ने लिखित परीक्षा पास कर ली तो समझो 50 प्रतिशत मोरचा फतेह कर लिया.’’

‘‘जी, फूफाजी. मैं ईमानदारी से मेहनत करूंगा. लो एक सैकंड पापा से बात करें.’’

‘‘नमस्कार, जीजाजी.’’

‘‘नमस्कार, कैसे हो विपिन?’’

‘‘ठीक हूं, जीजाजी. यह जो सुरेश के लिए सोचा गया है, क्या वह ठीक रहेगा.’’

‘‘बिलकुल ठीक रहेगा. अगर सुरेश सिलैक्ट हो जाता है तो उस की जिंदगी बन जाएगी. वह लैफ्टिनैंट बन कर निकलेगा. क्लास वन गैजेटेड अफसर. सेना की सारी सुविधाएं उसे प्राप्त होगी. उन सुविधाओं के प्रति आम आदमी सोच भी नहीं सकता. ट्रेनिंग के दौरान ही उसे 20 हजार रुपए भत्ता मिलेगा, रहनाखाना फ्री. पासिंगआटट के बाद इस की

55 हजार रुपए से ऊपर सैलरी होगी. वहीं साथ में कई तरह के भत्ते भी मिलेंगे. सारी उम्र न केवल आप को बल्कि पूरे परिवार के रहनेखाने की चिंता नहीं रहेगी, यानी रोटी, कपड़ा और मकान की चिंता नहीं रहेगी.’’

‘‘वह सब तो ठीक है, जीजाजी, बस एक ही डर है, बेमौत मारे जाने का.’’

‘‘मैं शकुन को सबकुछ समझा चुका हूं, मानता हूं, यह डर उस समय भी था जब मैं सेना में गया था. सेना की इस सेवा के दौरान मैं ने 2 लड़ाइयां भी लड़ीं. मुझे  कुछ नहीं हुआ. जिस की आई होती है, वही मरता है. मैं आप को अपने जीवन की एक घटना बताना चाहता हूं. 65 की लड़ाई में हम सियालकोट सैक्टर से पाकिस्तान में घुसे थे. सारा स्टोर 2 गाडि़यों में ले कर चल रहे थे. एक गाड़ी में मैं और मेरा ड्राइवर था. दूसरी गाड़ी में एक बंगाली लड़का और उस का ड्राइवर था. पाकिस्तान में हम आसानी से घुसते चले गए. लड़ाई हम से कोई 10 किलोमीटर आगे चल रही थी. हम लोगों को केवल हवाई हमलों का डर था और वही हुआ.

‘‘जैसे ही हम ने पाकिस्तान के चारवा गांव को क्रौस किया, हम पर हवाई हमला हुआ. गाडि़यों से निकल कर जिस को जहां जगह मिली लेट गया. मेरे बराबर में मेरा ड्राइवर और उस के बराबर में वह बंगाली लड़का लेटा था. ऊपर से गन का ब्रस्ट आया और गोलियां ड्राइवर के शरीर से इस प्रकार निकल गईं जैसे कपड़े की सिलाई की गई हो. उस ने चूं भी नहीं की. उसी वह मर गया. हम लोगों पर भी खून और मिट्टी पड़ी थी.

‘‘मैं ने आप को डराने के लिए यह घटना नहीं सुनाई है बल्कि यह बताने के लिए कि जिस की मौत आनी होती है, वही शहीद होता है और यह रिस्क हर जगह रहता है. आप यहां सिविल में भी घर से निकलो तो जिंदगी का कोई भरोसा नहीं होता. फिर भी सब अपनेअपने कामों पर घरों से निकलते हैं. इसलिए उसे जाने दो.’’

‘‘ठीक है जीजाजी, पर सुना है, सेना में वही लोग जाते हैं जो भूखे और गरीब हैं, जिन के पास सेना में जाने के अलावा कोई चारा नहीं होता.’’

‘‘यह बात सही है विपिन. जिन के घरों में गरीबी है, दालरोटी के लाले पड़े हैं, अकसर वही लोग सेना में जाते हैं और जब तक यह गरीबी रहेगी, दालरोटी के लाले रहेंगे, देश को सैनिकों की कमी नहीं रहेगी.

‘‘किसी नेता या अभिनेता के बच्चे कभी सेना में नहीं जाते हैं. यहां तक कि जम्मूकश्मीर के अलगांववादी नेताओं के बच्चे भी सेना में नहीं जाते. वे भी विदेशों में पढ़ते हैं. यह देश के लिए दुख की बात है. आज की ही खबर है कि 8वीं पास सिपाही चाहिए और उस के लिए दौड़ रहे हैं डाक्टर, इंजीनियर और एमबीए. पर तुम्हें सुरेश को ले कर यह बात नहीं सोचनी है. उस का भविष्य बनने दो. कुछ देर के लिए समझ लो, तुम भी गरीब हो. इस से अधिक और मैं कुछ नहीं कह सकता.’’

‘‘ठीक है, जीजाजी. अब मैं उसे नहीं रोकूंगा.’’

मैं भूल चुका था कि सुरेश किसी परीक्षा की तैयारी कर रहा है. मुझे कुछ देर पहले ही पता चला कि उस ने परीक्षा दे दी है. उस के भी कोई 4 महीने बाद सुरेश का फोन आया कि उस ने इन्वैंट्री कंट्रोल अफसर की लिखित परीक्षा पास कर ली है. इस की  सूचना मुझे ईमेल और डाक द्वारा दी गई है. अब उसे एसएसबी क्लीयर करनी है.

‘‘बधाई हो, सुरेश, एसएसबी के लिए तुम्हें 2-3 महीने मिलेंगे. कोचिंग सैंटर में ऐडमिशन लो और तैयारी में जुट जाओ. उसे पूरा विश्वास है कि तुम एसएसबी भी क्लीयर कर लोगे.’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

फिर 3 महीने बाद उस का फोन आया. वह बहुत खुश था. उस की आवाज में खुशी थी. ‘‘मैं ने एसएसबी क्लीयर कर ली है, फूफाजी. 25 में से 4 लड़के सिलैक्ट हुए थे. वहां भी सभी का मैडिकल हुआ था. सभी ने क्लीयर कर लिया था. अब क्या होगा, फूफाजी?’’

‘‘कुछ नहीं. मार्च में शुरू होगा

यह कोर्स.’’

‘‘जी, मार्च के पहले सोमवार से.’’

‘‘ठीक है. देश के सभी एसएसबी केंद्रों से इस कोर्स के लिए चुने गए उम्मीदवारों की लिस्ट सेना मुख्यालय को भेजी जाएगी. वह इसे कंसौलिडेट करेगा. फिर सभी को दिसंबर के पहले हफ्ते तक इस की सूचना ईमेल और डाक द्वारा दी जाएगी. उस सूचना के अनुसार जो प्रमाणपत्र और डौक्युमैंट्स उन को चाहिए होंगे उन की फोटोकौपी अटैस्ट करवा कर जिस पते पर उन्होंने भेजने के लिए लिखा होगा, उस पर भेजनी होगी. ईमेल और डाक द्वारा फिर सारे डौक्युमैंट्स चैक करने के बाद आप का मिलिटरी अस्पताल में डिटेल्ड मैडिकल होगा, इस की सूचना समय रहते आ जाएगी. एक बात बताओ सुरेश, तुम ने अभी दाढ़ीमूंछ रखी हुई है?’’

‘‘जी, फूफाजी.’’

‘‘मैं तुम्हें बता दूं, सेना के लोग, चाहे वे किसी भी विभाग के हों, मूंछें तो पसंद करते हैं परंतु दाढ़ी बिलकुल नहीं. इसलिए मैडिकल के लिए सेना अस्पताल जाओ तो मूंछें ट्रिम करवा कर जाना और दाढ़ी बिलकुल साफ होनी चाहिए. चिकना बन कर जाना. कटिंग करवा कर जाना. छोटेछोटे बाल होने चाहिए. ऊपर से ले कर नीचे तक साफसुथरा. तुम्हारे शरीर के एकएक अंग का निरीक्षण होगा. मेरे कहे अनुसार चलोगे तो मैडिकल में फेल होने के कम चांस रहेंगे. मैडिकल करने वाले डाक्टरों पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा. वे समझेंगे, लड़का सच में अफसर बनने लायक है.’’

एक महीने बाद सुरेश का फोन आया. ‘‘फूफाजी, आज मैं मिलिटरी अस्पताल, अमृतसर मैडिकल के लिए जा रहा हूं. आप के कहे अनुसार चिकना बन गया हूं. वहां से आ कर मैं आप को बताऊंगा.’’

दो चेहरे वाले लोग : भाग 2

देखो रश्मि, मैं ने अपनी बेटी को बेटे की तरह पाला है. उसे उस की काबिलीयत का पैसा मिल रहा है. इतने सालों की उस की कड़ी मेहनत, मेरा मार्गदर्शन अब जा कर रंग लाया है. वह सब किसी दूसरे के लिए क्यों फुजूल में फेंक दिया जाए?’

मैं स्तब्ध रह गई, जीजी की कितनी ही चीजें जीजाजी की बहनें मांग कर ले जाती थीं. हम लोगों की तरफ से दिए गए उपहार ‘उफ’ तक मुंह से न निकालते हुए जीजी ने अपने देवरों को उन के मांगने पर दे दिए थे. मां कभी पूछतीं, ‘आरती, वह पेन कहां गया, जो तुम्हें पिछली दीवाली में भैया ने दिया था.’

जीजी बेहद विनम्रता के साथ कहतीं, ‘रमन भैया ने परीक्षा के लिए लिया था… पसंद आ गया तो पूछा कि मैं रख लूं भाभी. मैं मना कैसे करती, मां.’

एक बार भैया दीदी के लिए भैयादूज पर एक बढ़िया धानी साड़ी लाए थे. तब जीजी की सहेली अरुणा दीदी भी उन से मिलने के लिए आई थीं. उन्होंने छूटते ही कहा, ‘मत दो इस पगली को कुछ भी. साड़ी भी ननद ने मांग ली तो दे देगी.’
तब जीजी ने अपनी मुसकान बिखेरते हुए कहा था, ‘वे भी तो मेरे अपने हैं. जैसे मेरे भैया, मेरी रश्मि… मेरी अरुणा…’

अब उसी जीजी की बेटी को पिता से क्या सीख मिल रही थी. मैं ने जीजा की ओर देखा. वह काम में मगन थीं. जैसे उन्होंने सुना ही न हो.
मुकुंद कहते हैं, ‘मैं कुछ ज्यादा ही आशावादी हूं, दीवार से सिर टकराने के बाद भी दरवाजे की टोह लेती रहती हूं. जीजी के बारे में मैं कुछ ज्यादा भावुक भी तो हूं. शिवानी, हालांकि कुछ नकचढ़ी है, फिर भी बचपन से उसे देखने के कारण उस से लगाव भी तो हो गया है. इसलिए बारबार प्रस्ताव ले कर आती हूं.’

‘क्या रश्मि, तुम ने बताया था न पता… वहां चिट्ठी भेजी थी,’ एक दिन जीजाजी बोले, ‘कौन, वह बंगलौर वाला.’ मैं कुछ उत्साहित हो गई. बोली,
‘हां, वही महाशय, उन की यह लंबीचौड़ी चिट्ठी आर्ई है… मैं इसे पढ़ कर तुम्हें सुना देता, पर ऐसी मुर्खता भरी बातों का मैं फिर से उच्चारण नहीं करना चाहता.’

‘इस में उन की क्या गलती है,’ जीजी ने पहली बार चर्चा में भाग लिया, ‘वे लोग चाहते हैं कि उन की बहू को गाना आना चाहिए. वे सब गाते हैं…’

‘तुम चुप रहो, आरती,’ जीजाजी की आवाज में कड़वाहट थी, ‘शिवानी को गाना ही सीखना होता तो कंप्यूटर इंजीनियर क्यों बनती. अरे, घंटेभर के गाने के लिए 1,000-1,200 रुपए दे कर वह जब चाहे 10-12 गाने वालों का गाना सुनवा सकती है. तुम भी आरती…’

‘लेकिन जीजाजी, उन्होंने तो अपनी अपेक्षाएं आप को बता दी हैं. वह भी आप ने संपर्क किया तब,’ मैं ने कहा.

‘तुम दोनों बहनें पूरी गंवार मनोवृत्ति वाली बन रही हो,’ शिवानी ने कहा, ‘लड़की है, इसलिए उसे रंगोली बनाना, गाना गाना, खाना बनाना आदि आना ही चाहिए. यह सब विचार कितने दकियानूसी भरे हैं. अब हम लड़कियां बैंक, औफिस आदि हर जगह मर्दों की तरह कुशलता से सबकुछ संभालती हैं, तो सिलाईबुनाई अब मर्द क्यों नहीं सीखते.’

‘शिवानी, अगर तुम्हें कोई लड़का पसंद नहीं है तो मना कर दो, पर किसी की अपेक्षाओं की खिल्ली उड़ाना कहां तक उचित है,’ जीजी का स्वर जरा ऊंचा था.

‘तुम मेरी बेटी पर किसी तरह का दबाव नहीं डालोगी,’ जीजाजी ने एकएक शब्द अलग करते हुए सख्त आवाज में कहा, ‘मैं ने देखा है, रश्मि साथ होती है तब तुम्हें कुछ ज्यादा ही शब्द सूझते हैं.’

मैं दंग रह गई और जीजी चुप. हम क्या शिवानी की या जीजी के ससुराल वालों की दुश्मन थीं, जो दोनों साथ मिल कर शब्दयुद्ध छेड़तीं.

मुकुंद को मैं ने यह सब बताया ही नहीं. शायद वह जीजी के घर से संबंध कम करने के लिए कहते. जीजी की दुनिया में मैं शीतल छाया बन कर रहना चाहती थी. कितना कुछ झेला होगा जीजी ने आज तक. जीजाजी के सभ्य, सुसंस्कृत चेहरे के पीछे इतना जिद्दी, इतना स्वकेंद्रित व्यक्ति होगा यह किसे पता था? मेरी जीजी से सारे परिवार के लिए स्वेटर बुनवाने वाले जीजाजी अपनी बेटी के बारे में इतना अलग दृष्टिकोण क्यों अपनाते होंगे. आएदिन अपने दोस्तों के लिए मेहमाननवाजी के बहाने जीजी को रसोई में व्यस्त रखते थे जीजाजी. क्या खाना बनाना सुशिक्षित लड़कियों के लिए ‘बिलो डिग्निटी’ है.

जीजी भी तो पढ़ीलिखी हैं. पढ़ाने की क्षमता रखती हैं. अपने बच्चों की पढ़ाई में कई सालों तक सहायता करती रहती हैं. बाहर की दुनिया में कदम रखते ही अगर औरत ही घर को भुला देगी तो घर सिर्फ ईंटों का, लोहे का, सीमेंट का एक ढांचा ही तो रहेगा. उस का घरपन कैसे टिक पाएगा?
करीब 2 साल के बाद शिवानी का विवाह हो गया. ससुराल के लोग बड़े अच्छे हैं. दामाद तो हीरा है. पर अमेरिका में नौकरी कर रहा है, जहां शिवानी को खाना भी बनाना पड़ता है. झाड़ू, बरतन, कपड़े सबकुछ करती है वह. उस से अधिक पढ़ेलिखे, अधिक कमाने वाले जमाई राजा भी उस का हाथ बंटाते हैं. सुखी दांपत्य के लिए पतिपत्नी को एकदूसरे के कामों में हाथ तो बंटाना ही पड़ता है. जीजाजी जा कर सबकुछ देख आए हैं. मैं ने एक दिन नौकरों के बारे में पूछ ही लिया.

‘क्या पागलों जैसे सवाल करती हो रश्मि,’ उन्होंने डांटा, ‘वहां नौकर नहीं मिलते. हर व्यक्ति को अपना काम स्वयं करना पड़ता है. भई, अपना काम खुद करने में वहां के लोग संकोच नहीं करते. उन का मानना है कि व्यक्ति को आत्मनिर्भर होना चाहिए. फिर मेरे दामाद मदद भी तो करते हैं, अमेरिका में महिलाओं की बड़ी इज्जत है.’

मैं ने चुप रहना ही उचित समझा. अमेरिका में महिलाओं की इज्जत किस प्रकार होती है, इस बारे में कौन क्या कह सकता है. काम में हाथ बंटा कर, वक्त आने पर पत्नियों को मारने वाले, पत्नी को छोड़ कर दूसरी स्त्री के साथ जाने वाले या छोटे से कारण से तलाक देने वाले अमेरिकी पतियों की संख्या के बारे में कौन जानता है. फिर उन की संस्कृति की प्रशंसा करने वाले जीजाजी अपने घर में एक गिलास पानी भी खुद हाथों से ले कर नहीं पीते, यह क्या मैं ने देखा नहीं. खैर, दो चेहरे वाले लोगों के झंझट में कौन सिर खपाए.

‘अविनाश के लिए अब ढेरों रिश्ते आ रहे हैं,’ चाय पीते हुए जीजाजी बोले, ‘लड़की वालों को पता है कि ऐसा अच्छा घरवर और कहीं तो बड़ी मुश्किल से मिलेगा.’

उन्होंने गर्व से जीजी की तरफ देखा. जीजी प्लेट में बिसकुट सजाने में मगन थीं.
‘आप की बात सौ फीसदी सच है, जीजाजी,’ मैं ने कहा, ‘रुण, गुण, शिक्षा, वैभव क्या कुछ नहीं है हमारे अविनाश के पास. और जीजी जैसी ममतामयी सास,’ इतना कह कर मैं ने प्यार से जीजी के गले में अपनी बांहें डाल दीं.

‘क्या चाहिए, रश्मि,’ जीजा ने पूछा, ‘इतना मस्का क्यों लगा रही हो जीजी को.’

‘अविनाश की तसवीर और बायोडाटा दे दो. तुम्हारे लिए 2-4 अच्छी बहुएं लाऊंगी, जिन में से शायद एक तुम्हें पसंद भी आ जाए.’

‘जरा देखपरख के लाना रिश्ते,’ जीजाजी ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘आजकल की लड़कियां बहुत तेजतर्रार हो गई हैं.’

‘मतलब…’

‘अरे, 4 दिन पहले एक लड़की के मातापिता मिलने आए थे. वैसे तो वह हैदराबाद किसी की शादी में आए थे, लेकिन जब अविनाश के बारे में उन्हें पता चला तो अपनी बेटी के लिए रिश्ता ले कर मिलने आ गए.’

‘अच्छी थी लड़की,’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

‘फोटो लाए नहीं, पर हां, जानकारी तो प्रभावित करने वाली थी,’ जीजाजी ने बताया, ‘उन की बेटी ने एमबीए किया है और पिछले 6 सालों से पुणे में नौकरी कर रही है. अगर अविनाश पुणे में कोई नौकरी कर ले तो काम हो सकता है.’

‘अच्छा, और अविनाश का यहां का काम.’

‘वही तो मैं कह रहा हूं. आजकल तो लड़की वालों के बातविचार ही समझ में नहीं आते. उन की लड़की एक एमबीए डिगरी को छोड़ कर और किसी चीज में निपुण नहीं है और 8 साल से यहां काम जमा कर बैठा हुआ मेरा बेटा शहर छोड़ कर वहां जाए.’

‘मना कर देते आप,’ जीजी ने धीरे से कहा.

‘वही तो किया. लेकिन आरती, इन इंजीनियर, डाक्टर लड़कियों के मातापिता सोचते हैं कि उन्होंने जैसे आकाश छू लिया है. अगर लड़की उन्नीस है तो लड़का भी तो बीस या इक्कीस वाला ही ढूंढ़ेंगे न? फिर इतनी शर्तें, इतना घमंड क्यों.’

पति नहीं सिर्फ दोस्त : स्वाति का क्यों नहीं आया था फोन ?

3 दिन हो गए स्वाति का फोन नहीं आया तो मैं घबरा उठी. मन आशंकाओं से घिरने लगा. वह प्रतिदिन तो नहीं मगर हर दूसरे दिन फोन जरूर करती थी. मैं उसे फोन नहीं करती थी यह सोच कर कि शायद वह बिजी हो. कोई जरूरत होती तो मैसेज कर देती थी. मगर आज मुझ से नहीं रहा गया और शाम होतेहोते मैं ने स्वाति का नंबर डायल कर दिया. उधर से एक पुरुष स्वर सुन कर मैं चौंक गई. हालांकि फोन तुरंत स्वाति ने ले लिया मगर मैं उस से सवाल किए बिना नहीं रह सकी.

‘‘फोन किस ने उठाया था स्वाति?’’

‘‘मां, वह रोहन था… मेरा दोस्त’’, स्वाति ने बेहिचक जवाब दिया.

‘‘मगर तुम तो महिला छात्रावास में रहती हो ना. क्या वहां पुरुष मित्रों को भी आने की इजाजत है? वह भी इस वक्त?’’  मैं ने थोड़ा कड़े लहजे में पूछा.

‘‘मां अब मैं होस्टल में नहीं रहती. मैं रोहन के साथ रह रही हूं उस के फ्लैट में. रोहन मेरे साथ ही कालेज में पढ़ता है.’’

‘‘क्या? कहीं तुम ने हमें बताए बिना शादी तो नहीं कर ली?’’

‘‘नहीं मां, हम लिवइन रिलेशनशिप में रह रहे हैं.’’

‘‘स्वाति, तुम्हें पता है तुम क्या कर रही हो? अभी तुम्हारी उम्र अपना कैरियर बनाने की है. और तुम्हारी ही उम्र का रोहन…वह क्या तुम्हारे प्रति अपनी जिम्मेदारी समझता है?’’

‘‘मां, हम दोनों सिर्फ दोस्त हैं.’’

‘‘लड़कालड़की दोस्त होने से पहले एक लड़की और लड़का होते हैं. कुछ नहीं तो कम से कम अपने और परिवार की मर्यादा का तो खयाल रखा होता. हम ने तुझे आधुनिक बनाया है, इस का मतलब यह तो नहीं कि तू हमें यह दिन दिखाए. लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे?’’ मैं पूरी तरह से तिलमिला गई थी.

‘‘मां, समाज और बिरादरी की बात न ही करो तो अच्छा है. वैसे भी आप की दी गई शिक्षा ने मुझे अच्छेबुरे का फर्क तो समझा ही दिया है.

‘‘रोहन उन छिछोरे लड़कों की तरह नहीं है जो सिर्फ मौजमस्ती के लिए लिवइन में रहते हैं और न ही मैं वैसी हूं. हम दोनों एकदूसरे की पढ़ाई में भी मदद करते हैं और कैरियर के प्रति भी हम पूरी तरह से जिम्मेदार हैं.’’

‘‘लेकिन बेटा, कल को अगर रोहन ने तुम्हें छोड़ दिया तो…तुम्हारी मानसिक स्थिति…’’ मैं अपनी बेटी के भविष्य को ले कर कोई सवाल नहीं छोड़ना चाहती थी.

‘‘मां, हम दोनों पतिपत्नी नहीं हैं, इसलिए ‘छोड़ने’ जैसा तो सवाल ही नहीं उठता. और अगर कभी हमारे बीच में कोई प्रौब्लम होगी तो हम एकदूसरे के साथ नहीं रहेंगे और उस के लिए हम दोनों मानसिक रूप से तैयार हैं,’’ स्वाति पूरे आत्मविश्वास से बोल रही थी.

‘‘और यदि तुम दोनों के बीच बने दैहिक संबंधों के कारण…’’ मैं ने हिचकते हुए सब से मुख्य सवाल भी पूछ ही लिया.

‘‘यह महानगर है, मां, तुम चिंता मत करो. मैं ने इस के लिए भी डाक्टर और काउंसलर दोनों से बात कर ली है.’’

‘‘अच्छा, तभी इतनी समझदारी की बात कर रही हो. ठीक है मैं भी जल्दी ही आती हूं तुम्हारे रोहन से मिलने.’’

‘‘सब से बड़ी समझदारी तो आप के संस्कारों और मेरे प्रति आप के विश्वास ने दी है मगर एक बात आप लोग भी याद रखिएगा, मां…कि आप उस से सिर्फ मेरा दोस्त समझ कर मिलिएगा, मेरा पति समझ कर नहीं.’’

स्वाति से बात कर मैं सोफे पर बैठ गई. स्वाति की बातें सुन यह महसूस हो रहा था कि बचपन से ही बच्चों की जड़ों में सुसंस्कारों और मर्यादित आचरण

का खादपानी देना हम मातापिता की जिम्मेदारी है. इन्हीं आदर्शों को स्वयं

में संचित कर ये बच्चे जब अपनी सोचसमझ से कोई निर्णय या अपनी इच्छा के अनुरूप चलना चाहते हैं, तब मातापिता का उन्हें अपना सहयोग देना समझदारी है.

स्वाति के चेहरे पर अब निश्चिंतता के भाव थे.

ये कैसी बेबसी : भाग 1

सर्पीली सड़कों पर अरुण को गाडि़यां दौड़ाने में बहुत मजा आता है. मगर नागालैंड की जंगली-पहाड़ी सड़कें कुछ इस तरह खतरनाक मोड़ लिए होती हैं कि देखने से ही भय लगता है. कब अचानक चढ़ाई शुरू हो जाए या ढलान आ जाए, पता ही नहीं चलता. तिस पर लैड स्लाइडिंग के कारण अकसर ही सड़कों पर मिट्टी-पत्थर बिखरे पड़े मिलते हैं. बारिश तो यहां जैसे बारहों मास होती है, जिस से सड़क भी गीली रहेगी या कीचड़-मिट्टी से लिथड़ी मिलेगी और इसी से फिसलने का डर बना रहता है.

मैं ने अरुण से बहुत कहा कि जरा ढंग से और आहिस्ता गाड़ी चलाया करो. यहां दिल्ली जैसी व्यस्तता और भागमभाग तो है नहीं, जो किसी प्रकार की हड़बड़ी हो. मगर वह कब किसी की सुनता है. आज कालेज में जल्दी छुट्टी हो गई थी और वह प्रिंसिपल लेपडंग आओ से जीप मांग लाया था. बेचारे अपनी भलमनसाहत की वजह से कभी इनकार नहीं कर पाते. एक तो यहां ढंग के प्रोफैसर नहीं मिलते. तिस पर साईंस के प्रोफैसर तो और मुश्किल से मिलते हैं. फिर अरुण बात भी कुछ इस प्रकार करता है कि कोई चाह कर भी मना न कर पाए. जीप में बैठेबैठे ही हौर्न बजाते शोर मचाने लगा था, ‘‘जल्दी करो, आउटिंग पर जाना है.’’

सच पूछिए तो मुझे भी यहां नागालैंड का प्राकृतिक सौंदर्य काफी भला और मोहक लगता है. दूरदूर तक जहां नजर जाती, काले-नीले पहाड़ों की शृंखलाएं और उन में पसरी पड़ी सघन हरी वनस्पतियों से भरे जंगल. इन सब्ज-श्याम रंगीनियों के बीच रूई के विशालकाय फाहों जैसे तैरते हुए बादलों के ?ांड. सूर्य की तेज किरणें जब इस प्राकृतिक सुषमा पर पड़ती है तो जैसे अनुपम सौंदर्य की सृष्टि सी होती है.

अभी थोड़ी देर पहले बारिश हुई थी. पर्वतों की कोख से जैसे असंख्य जलधार फूट कर सड़क पर प्रवाहमान हो चली थीं. जीप मोकोकचुंग शहर से निकल कर अब धुली हुई काली चौड़ी सड़क पर दौड़ने लगी थी. पेड़पौधों के पत्ते पानी से धुल कर जैसे और सब्ज और सजीव बन चमकने लगे थे.

उन से आंखमिचौनी सी खेलती सूर्य की रश्मियां बहुत ही प्यारी लग रही थीं. जीप अब ढलान की ओर बढ़ रही थी. यहां से दूर बहती हुई नदी किसी केंचुए के समान पतली, पाताल में धंसी सी दिख रही थी. कहीं सड़क मोड़ों के बीच गायब सी हो जाती तो कहीं दूर तक घाटियों में कुंडली मारे सर्पाकृति सी दिखती.

मोकोकचुंग शहर से असम जाने वाले हाईवे पर पहुंचते ही अरुण ने जीप की स्पीड बढ़ाते हुए कहा, ‘‘हुमसेन आओ बहुत दिनों से हमें बुला रहा था. आज उसी के घर चुचुइमलांग जाएंगे. मिलना भी हो जाएगा और घूमना भी.’’

‘‘वह तो ठीक है,’’ मैं भय से सिहरते हुए बोली, ‘‘मगर तुम गाड़ी की स्पीड तो कम करो. देखते नहीं, रास्ता कितना खतरनाक है. मेरी तो जान निकली जा रही है.’’

‘‘मेरे रहते तुम्हारी जान निकल ही नहीं सकती, दिव्या,’’ वह ठहाके लगाते हुए बोला, ‘‘देखोदेखो, उस हिरण को, कैसे भागा जा रहा है.’’

सचमुच एक हिरण तेजी से रास्ता पार करते दिखा, जो हमारे देखतेदेखते जंगलों में गुम हो गया. रास्ते में कुछ और जीवजंतु मिले. एक तेंदुए का बच्चा बिलकुल सड़क के किनारे ?ारने के पास अपनी प्यास बु?ाता दिखा. सांप तो खैर हर मीलदोमील पर रेंगते हुए मिल ही जाते थे. पक्षियों का शोर भी सुनाई पड़ रहा था. जंगली जीवों को नजदीक से देखनासुनना कितना सुखद है, इस का एहसास अब हो रहा था.

सड़क के एक तरफ ऊंचेऊंचे पहाड़ तो दूसरी तरफ पाताल सी नजर आतीं गहरीगहरी घाटियां थीं. बांस-बेंत से ले कर अन्य कई प्रजातियों के विशालकाय वृक्षों की टहनियां सड़क पर छितराईं अपनी छाया दे रही थीं. प्राकृतिक सौंदर्य के उस अनंत संसार में मनमस्तिष्क टहल ही रहा था कि अचानक अरुण की घबराई आवाज आई, ‘‘दिव्या, देखो तो क्या हो गया. लगता है ब्रेक फेल हो गया है.’’

मौत यदि सामने हो तो कितनाकुछ याद आने लगता है. मांबाप, भाईबहन, सगेसंबंधी और अन्य प्रियजन भी. सभी एकएक कर सामने आते जा रहे थे. कालेज का वह विशाल भवन और फिर वह हौल, जिस में हम डेढ़ सौ छात्रछात्राएं बैठा करते थे. गंगा नदी का वह घाट, वह किनारा और फिर वह पुल, जिस की रेलिंग के सहारे मैं अरुण के पास खड़ी या बैठी रह कर घंटों बात किया करती थी. सब्जी-बाजार, सुपर मार्केट, सिनेमा हौल, रेलवे स्टेशन, बसअड्डा और बुक स्टौल. क्या मैं कोई फिल्म देख रही थी या कोई स्वप्न. नहीं तो, नहीं तो, फिर यह क्या है. हम कहां हैं, कहां हैं हम. क्या हम मौत के शिकंजे में कसते जा रहे हैं. क्या हमारी मृत्यु सुनिश्चित हो चुकी. जंगल-पहाड़ का वह सारा सौंदर्य कपूर की मानिंद जाने कहां उड़ गया था और अब सवाल ही सवाल सामने थे. सब से बड़ा जिंदगी और मौत का सवाल.

जीप तेजी से सड़क पर सरकती जा रही थी. अरुण जीप के एकएक कलपुर्जे को ठोंकपीट रहा था. बदहवासी में उस का चेहरा लाल हो चुका था. ठुड्डियां कस गई थीं. अगर जीप घाटी में गिरी तो क्या पता चलेगा कि यहां कोई नवविवाहित जोड़ा मरखप गया है. 4 माह तो हुए ही इस विवाह को. अभी तो न हाथों से मेहंदी की महक गई है और न ही पैरों का महावर छूटा है. अभी तो ठीक से जीवन का आनंद भी नहीं लिया. वहां सभी चहक रहे थे- ‘जा रही हो पिया के साथ नागों के देश में. वहां तुम्हारा आंचल मणि-मुक्ताओं से भर जाएगा. समय की बड़ी बलवान हो तुम, जो साथ जा रही हो.’

उन्हें क्या पता होगा कि हम यहां नागालैंड में मौत का आलिंगन करने जा रहे हैं. सरिता तो कानों में फुसफुसा कर बोली थी, ‘देखो, तुम वहां थोड़ा जादूटोना भी सीख लेना. अरुण को वश में करने में बहुत काम आएगा तुम्हारे.’

चलो, सरिता का कहना सही हुआ. ऐसा वश में हुआ अरुण कि इस दुनिया से साथ ही जाना पड़ रहा है.

वह शादी की पार्टी और चहलपहल, वह खनकती हुई सी हंसी के फौआरे व ठहाके, मदभरी मस्तियां और चुहल, हंसीमजाक की बातें आज, अभी ही इसी वक्त क्यों याद आने लगी हैं तो क्या मौत इतनी जल्द आ जाएगी. हां, आनी ही है. आएगी ही अब. मोकोकचुंग में सभी कितना मना करते थे, ‘अनजान जगह, अनजान लोग और आप लोगों को सदैव घूमना ही सू?ा करता है. न यहां की भाषा जानते हैं, न भाव. क्या जरूरत है आउटिंग की. आप के घर के बाहर से ही तो दिखता है सबकुछ. लंबी पर्वत शृंखलाएं, गहरी घाटियां और घने जंगलों की हरियाली, सब यहीं से बैठेबैठे देख लो. क्या जरूरत है खतरा मोल लेने की. आप अरुण को मना तो क्या करतीं, उलटे खुशीखुशी उस के साथ बाहर घूमने निकल जाती हैं…’

और आज जब खतरा सामने था तो होशहवाश गुम थे. अचानक जीप को एक जोरदार ठोकर लगी और वह रुक गई. शायद सड़क पर लैंडस्लाइडिंग से गिरा कोई बड़ा सा पत्थर था, जिस से टकरा कर जीप रुक गई थी. जीप को ठोकर लगते ही मैं बाहर की ओर फिंका गई. गनीमत यही रही कि मैं ?ाडि़यों के बीच घास पर गिरी और विशेष चोट नहीं लगी. मौत से तो बालबाल बची थी मैं.

अचानक मु?ो होश आया तो जीप की तरफ देखा. वह एक तरफ पलटी पड़ी थी. वहीं स्टेयरिंग के सहारे अरुण बेहोश पड़ा था. मुंह और माथे से खून बह रहा था. उसे तुरंत सीधा किया और चोट की जगह को कस कर अपनी हथेली से दबा दिया.

शोर सुन कर कुछ स्थानीय लोग जमा हो गए थे. सूखी लकडि़यां, फलसब्जी, बांस की कोंपलें आदि लाने, खेती का काम और शिकार करने स्थानीय लोग प्रतिदिन जंगल का रुख करते ही हैं. रास्ते में उन्होंने जो जीप को दुर्घटनाग्रस्त होते देखा तो अपनी बास्केट-थैले और भाला-दाव एवं दूसरे सामान आदि फेंकफांक कर इधर ही दौड़े चले आए थे. अपनी स्थानीय आओ भाषा में जाने क्या कुछ कह रहे थे, जो मेरी सम?ा के बाहर था. इतना अवश्य था कि वे हमारी सहायता करने और अस्पताल पहुंचाने की बात कर रहे थे. मु?ो भी चोटें आई थीं और मैं मूर्च्छित सी हो रही थी कि एक नागा युवती ने मु?ो सहारा दिया. एक नागा युवक ने अरुण के माथे की चोट पर अपना रंगीन नागा शौल बांध दिया.

अचानक मैं अचेत हो गई. फिर तो कुछ याद न रहा. बस, इतना स्मरण भर रहा कि एक बुजुर्ग नागा किसी पौधे की पत्तियां तोड़ लाया था और उसे अपनी हथेलियों पर मसल कर उस की बूंदें अरुण के मुंह में टपका रहा था. एक दूसरी युवती उस के चेहरे पर पानी की छींटे मार रही थी.

यह दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है : भाग 1

क्लासरूम में जैसे ही चैताली आई, ओनीर ने मुंह बना कर अपने साथी धवन को इशारा किया, आ गई. चैताली रोज़ से अलग कुछ अच्छे मूड में थी. बाकी स्टूdainडैंट्स ने चैताली को विश किया. ये सब मुंबई के इस कालेज में इतिहास में पीएचडी कर रहे स्टूडैंट्स थे. ओनीर ने यों ही एक नज़र सहर पर भी डाली, मन में सोचा, हद्द है यह लड़की. इतना सुंदर कौन होता है, काश…

चैताली ने मुसकराते हुए कहा, “जानती हूं, अब आप को बेसब्री से इंतज़ार होगा कि कब आप के नाम के आगे डाक्टर लगे. है न?” सब स्टूडैंट्स ने हंसते हुए ‘हां’ में गरदन हिला दी.

चैताली की आदत थी, वह एकदम से किसी मशीनी तरीके से लैक्चर की शुरुआत नहीं करती थी, पहले कुछ सामयिक मुद्दों पर थोड़ी बात करती थी, फिर काम की बातों पर आती थी. आज भी उस ने पूछ लिया, “पेपर पढ़ा आप लोगों ने या वह वीडियो देखा जिस में दलित मांबेटी को ज़िंदा जला दिया गया? पता नहीं, देश में यह हो क्या रहा है.”

युवान सोशल मीडिया की सारी ख़बरों पर बात कर सकता था. उस के पास अथाह नौलेज थी. वैसे तो ये सारे स्टूडैंट्स इस समय शिक्षा के क्षेत्र में सब से ऊंची डिग्री लेने जा रहे थे. सभी खूब ज्ञानी थे. इतिहास यों भी पिछली घटनाओं, उन के परिणामों और आधुनिक समाज पर प्रभाव का अध्ययन है. युवान ने कहा, “मैम, हां, देखा, दुख होता है.”

“आप लोगों को भी लगता है कि पिछले कुछ समय में ऐसी घटनाएं बढ़ी हैं?”

ओनीर के संस्कार और परवरिश ने उसे हिंदू राष्ट्र का अंधसमर्थक बना दिया था. वह खड़ा हो गया. उसे जब भी गुस्सा आता, बैठ कर आराम से बात करना उस के हाथ में न रहता, यह अब तक सब जान गए थे. चैताली भी अनुभवी थी, समझ गई कि बात अब कहां जाएगी. ओनीर ने कहा, “क्यों मैम, इस से पहले देश में कभी किसी के साथ अन्याय हुआ ही नहीं था?”

“मैं वर्तमान की बात कर रही हूं.”

”मैं नहीं मानता.”

“तुम्हारे मानने, न मानने से कुछ बदलने वाला नहीं है. इतिहास के स्टूडैंट हो, तर्क और तथ्य के साथ बात किया करो. कल किसी कालेज में प्रोफैसर बनोगे, स्टूडैंट्स को सही पाठ पढ़ाना तुम्हारा फ़र्ज़ होगा, व्हाट्सऐप वाला ज्ञान उन के दिमाग से निकालना होगा.”

ओनीर हमेशा उन की व्हाट्सऐप वाली बात पर बहुत चिढ़ता था, अब भी चिढ़ गया.

“मैं प्रोफैसर नहीं बनना चाहता. मैं इतिहासकार या जर्नलिस्ट बनूंगा. इतिहास के वो पन्ने ढूंढ़ढूंढ़ कर सब के सामने रखूंगा कि लोग जानें कि मुगलों ने हिंदुओं पर कितने अन्याय किए हैं, एक राजनीतिक पार्टी जौइन करूंगा जो हिंदू राष्ट्र की समर्थक है. लोगों को दलितों पर हुए अन्याय दिखते हैं, जो इतिहास में हमारे साथ हुआ, उस की बात कोई नहीं करता. दलित लोग अपना तमाशा खुद ही ज़्यादा बनाते रहते हैं. उन के दिलदिमाग में ही हीनभावना भरी रहती है.”

“तुम्हारे जैसे स्टूडैंट्स मेरी क्लास में हैं, दुख होता है. इतना पढ़लिख कर भी…

“तो आप भी तो इतना पढ़लिख कर सिर्फ आज की न्यूज़ में किसी दलित की ही न्यूज़ लाईं, मैम. आप को भी तो अपनी जाति से सहानुभूति रहती है, मैं क्यों नहीं अपनी जाति पर गर्व कर सकता?”

ओनीर चैताली के साथ अशिष्टता कर रहा था, सबको दिख रहा था. पर कोई कुछ बोला नहीं क्योंकि ओनीर सब पर एक अकड़ के साथ हावी रहता था. पर जब सहर उठ कर खड़ी हुई, ओनीर के लिए फिर बस वहां हर तरफ सहर ही थी. वह सबकुछ भूल गया, अपलक सहर को देखने लगा. सहर उदार विचारों की लड़की थी, सब उसे पसंद करते. उस ने आहिस्ता से ओनीर को जैसे सोते से जगाया, “ओनीर, मैम से इस तरह आप का बात करना बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा है. वे हमारी प्रोफैसर हैं, उन की रिस्पैक्ट करना हमारा फ़र्ज़ है.”

मलयालम एक्ट्रेस Aparna Nair का 31 साल की उम्र में हुआ निधन, संदिग्ध हालत में मिला शव

Aparna Nair Death : गुरुवार देर रात मलयालम टीवी एक्ट्रेस अपर्णा नायर (Aparna Nair) का निधन हो गया. उनका शव उनके करमना स्थित घर में संदिग्ध हालत में लटका हुआ पाया गया. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, एक्ट्रेस अपर्णा का शव देखते ही उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां जांच के बाद डॉक्टर ने उन्हें मृत घोषित कर दिया. वहीं पुलिस ने अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज कर लिया है. साथ ही जांच भी की जा रही है.

टीवी का जाना-माना चेहरा थी अपर्णा

आपको बता दें कि 31 साल की अपर्णा (Aparna Nair Death) ने अथमासखी और चंदनमाझा जैसे कई पॉपुलर शो में काम किया है. अपर्णा ने मुधुगौव, मेघतीर्थम, कल्कि, कडालू परांजा कड़ा और अन्य कई बड़ी फिल्मों में भी अहम रोल निभाया है. इसके अलावा वह मलयालम फिल्म इंडस्ट्री का जाना-माना चेहरा भी हैं. एक्ट्रेस की मौत की खबर से उनके फैंस के साथ-साथ पूरी इंडस्ट्री को तगड़ा झटका लगा है.

मौत से कुछ घंटे पहले किया था ये पोस्ट

एक्ट्रेस अपर्णा नायर (Aparna Nair Death) अपने पति संजीत और दो बेटियां थ्रया और कृतिका के साथ करमना में रहती थी. इसके अलावा वह सोशल मीडिया पर भी काफी एक्टिव रहती थी. मौत से कुछ घंटे पहले ही उन्होंने अपनी बेटी का एक वीडियो अपने फैंस के साथ शेयर किया था.

Pratyusha Banerjee को आत्महत्या के लिए राहुल ने किया था मजबूर, कोर्ट ने लिया फैसला

Pratyusha Banerjee Suicide Case Update : टीवी के सबसे पॉपुलर सीरियल ‘बालिका वधू’ की आनंदी यानी प्रत्युषा बनर्जी (Pratyusha Banerjee) ने मात्र 24 साल की उम्र में आत्महत्या कर ली थी. उन्होंने मुंबई के गोरेगांव इलाके में अपने फ्लैट पर 1 अप्रैल, 2016 को फांसी लगाकर आत्महत्या की थी. एक्ट्रेस प्रत्युषा की मौत की खबर से उनके फैंस के साथ-साथ बॉलीवुड सेलेब्स को भी बड़ा झटका लगा था. हालांकि प्रत्युषा की आत्महत्या का केस अभी भी कोर्ट में चल रहा है.

दरअसल, एक्ट्रेस की मां ने अपनी बेटी के बॉयफ्रेंड राहुल राज सिंह (Rahul Raj Singh) पर आरोप लगाया था कि उसके उकसाने पर ही प्रत्युषा ने आत्महत्या की थी. वहीं अब इस केस को लेकर मुंबई कोर्ट में सुनवाई हुई. जहां कोर्ट ने ये माना है कि प्रत्युषा बनर्जी के बॉयफ्रेंड राहुल ने ही उन्हें आत्महत्या करने के लिए मजबूर किया था.

31 अगस्त को जारी किया गया आदेश

आपको बता दें कि 14 अगस्त 2023 को राहुल राज सिंह (Rahul Raj Singh) की आरोपमुक्ति याचिका को खारिज करते हुए कोर्ट ने अपना फैसला लिया था. हालांकि कोर्ट का विस्तृत आदेश बीते दिन यानी 31 अगस्त को उपलब्ध कराया गया. इसमें बताया गया है कि मुंबई की एक अदालत ने एक्ट्रेस प्रत्युषा बनर्जी को आत्महत्या करने के लिए उकसाने के आरोपा में राहुल राज सिंह द्वारा दायर आरोपमुक्ति की अर्जी को खारिज कर दिया है.

जानें कोर्ट ने क्या कहा?

साथ ही कोर्ट ने कहा, ‘प्रत्युषा बनर्जी (Pratyusha Banerjee Suicide Case) के बॉयफ्रेंड राहुल राज सिंह द्वारा किए गए उत्पीड़न के कारण ही एक्ट्रेस आत्महत्या के बारे में सोचने पर मजबूर हुई थी. ऐसे में ये स्पष्ट है कि राहुल द्वारा शारीरिक, भावनात्मक, वित्तीय उत्पीड़न और शोषण के चलते ही एक्ट्रेस डिप्रेशन में गई थी.’ इसके अलावा कोर्ट ने ये भी कहा कि, राहुल राज सिंह ने एक्ट्रेस प्रत्युषा की समस्याओं को कम करने में उनकी कोई मदद नहीं की थी. ऐसे में राहुल राज सिंह साफ तौर से अभिनेत्री प्रत्युषा बनर्जी को आत्महत्या के लिए उकसाने के दायरे में आते हैं.

कैप्टन नीरजा गुप्ता : भाग 1

लेह से मेरी नई पोस्टिंग श्रीनगर की एकवर्कशौप में हुई थी. मैं श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरीतो मुझे वीआईपी लाउंज में पहुंच कर यूनिट केएडजूडेंट कैप्टन नसीर एहमद को फोन करना था, हालांकि, अधिकारिक तौर पर उन को मेरे आने की सूचनाथी.

मैं ने नसीर साहब को फोन किया, ‘सर, गुडमौर्निंग. मैं कैप्टन नीरजा गुप्ता बोल रही हूंश्रीनगर ऐयरपोर्ट से. इस समय मैं वीआईपी लाउंज मेंहूं.’ ‘गुडमौर्निग, कैप्टन नीरजा. श्रीनगर में आप कास्वागत है. आप वीआईपी लाउंज में ही बैठें. मैंएस्कार्टड गाड़ी भेज रहा हूं. आधा घंटा लग जाएगा. तब तक आप वीआईपी लाउंज में रिफ्रैशमैंट कालुत्फ उठाएं.’ ‘ओके, थैंकस, सर.’ मुझे लेह से ही वीआईपी लाउंज का कूपन मिलगया था. मैं ने ब्रैड मक्खन लिया और खाने लगी.

चाय, मैं तेज गरम पीती हूं, इसलिए उसे बाद में लेने के लिएकहा. चाय के बाद मैं गाड़ी का इंतजार करने लगी. कुछदेर बाद फोन की घंटी बजी.‘हैलो.’‘जय हिंद, मैंडम. मैं हवलदार चतर सिंह बोल रहा हूं. आप को लेने आया हूं. आप मैडम सामान लेने वाली जगह पर पहुंचें. हम आप को वहीं मिलेंगे.’‘ओके, मैं आ रही हूं.’थोड़ी देर में मैं गंतव्य स्थान पर पहुंचगई. मैं यूनिफौर्म में थी, इसलिए मुझे पहचानने में मुश्किल नहीं हुई. सभी ने मुझे सैल्यूट किया.

सामान लिया और मेरे लिए आई गार्ड के साथ मैं चल पड़ी. हम 3गाड़ियों में चल रहे थे. एक गाड़ी हथियार लिए जवानों के साथ आगे चल रही थी. बीच की गाड़ी मेंमैं थी और एक गाड़ी हथियार लिए जवानों के साथ हमारे पीछे चल रही थी.जम्मू कश्मीर में जबरदस्त आतंकवाद के चलते किसी अफसर को लाने, ले जाने के लिए यही व्यवस्था थी. आधे घंटे में हम यूनिट में पहुंच गए. गाड़ी सीधे मेरे लिए तय कमरे के सामने खड़ी की गई. सामान उतारा और कमरे में रख दिया गया.

जाने से पहले हवलदार चतर सिंह ने कहा, ‘‘मैडम, इंटरकौम से आप मै समें बता दें. नंबरों की लिस्ट लगी है. वे आप के लिएनाश्ता भिजवा देंगे.”मैं ने इंटरकौम किया. मैस हवलदार ने फोन उठाया.“मैं कैप्टन नीरजा गुप्ता बोल रही हूं. आप की यूनिट मेंनई पोस्टिंग पर आई हूं. आप मेरे लिए ब्रेक फास्ट भिजवाएंगे? मैं अफसर मैस के रूम नंबर 2 में ठहरी हूं. ब्रेकफास्ट आप 1 घंटे बाद भेजें. पहले मुझे एक लार्जकप तेज गरम चाय चाहिए.”‘‘जय हिंद मैंम, ठीक है. मैम, मैं चाय अभी भिजवाता हूं. आप बताएं कि आप वेजिटेरियन हैं, ऐग ईटर यानौनवेज ईटर?’’ “मैं ऐग ईटर हूं. मैं चाय बहुत तेज पीती हूं.

उसे थरमस में भिजवाना.’’ ‘‘ठीक है, मैम.’’ चाय आई, पी और वाशरूम में घुस गई. फ्रैश हो कर बाहर आई. ब्रेकफास्ट आया, आराम से बैठ करखाने लगी. ब्रेडआमलेट था. चाय गरम और स्वादिष्ठथी. जो जवान बरतन लेने आया, मैं ने उसे अपना मूवमैंट और्डर दे दिया. शाम को बताया गया कि मेरा इंटरव्यू है, पहले बटालियन कमांडर से होगा, फिर कमांडिंग अफसर से. मेरेलिए एक सहायक डिटेल हो गया. केरल का एक दुबलापतलासिपाही नांबियर था. चुपचाप आता. सारे काम कर के चलाजाता. मैं ने उस से पूछा, “आप हिंदी बोलते और समझतेहैं?”उस ने कहा, ‘‘कुंजम-कुंजम, यानीथोड़ाथोड़ा.

आप कुछ भी बोलेंगी तो मैं समझ जाऊंगा. मैं ने कल के इंटरव्यू के लिए यूनिफौर्मतैयार कर दी है. आप देखें, इस में कोई कमी है तोबतांए.’’वह अच्छी हिंदी बोल रहा था. साऊथ के लड़के हिंदी बहुत जल्दी सीखते हैं जबकि हम उन की भाषा सीख नहीं पाते हैं. मैं ने यूनिफौर्म को अच्छी तरहदेखा. यहां लेह की तरह सर्दी नहीं थी. लेकिन ठंडी पैंट, गरम कमीज और उस के ऊपर वूलन जर्सी पहननी थी.

टाइटल सोलडर और कपडे़ के स्टार उस ने ठीक लगाए थे. बूट पोलिश उस ने शानदार की थी. बूट की टोमें से अपना चेहरा देख सकते थे. बैल्ट भी अच्छी पोलिश की गई थी. मैं ने उस से कहा, “नांबियर, सब ठीक है. आप जाओ.”“जय हिंद” कर के वह चला गया. 8 बजे ड्रिंक के लिए बारखुलने का टाइम था. मैं समय से 5 मिनट पहले वहां थी.वहां 2 अफसर बैठे थे.

सावधान ! शादी के नाम पर ठगी जारी है

अखबार और मैट्रीमोनियल वेबसाइटों पर दिए जाने वाले आकर्षक विज्ञापनों को पढ़ कर कुछ महिलाएं इतनी प्रभावित हो जाती हैं कि वे विज्ञापन में दिए तथ्यों की छानबीन किए बिना ही शादी जैसा महत्त्वपूर्ण फैसला ले लेती हैं.

अखबार और मैट्रीमोनियल वेबसाइटों पर शादी के विज्ञापनों में दिए गए तथ्यों की जांच किए बिना ही कई लोग महत्त्वपूर्ण फैसला ले लेते हैं. जल्दबाजी में उठाए गए ऐसे कदमों की वजह से उन्हें जिंदगी भर पछताना भी पड़ जाता है. फरजी विज्ञापनों के जाल में फंस कर कई लोग ठगी का शिकार भी हो जाते हैं. जब तक उन्हें हकीकत पता चलती है तब तक उन का बहुत कुछ लुट चुका होता है. शादी के विज्ञापन के जरिए अनुष्का और शालिनी भी शातिर ठगों के जाल में ऐसी फंसीं कि उन्हें अपनी कमाई के लाखों रुपयों से हाथ धोना पड़ा.

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के गीतानगर की रहने वाली अनुष्का एक उच्चशिक्षित परिवार से ताल्लुक रखती थी. उस के यहां किसी चीज की कोई कमी नहीं थी, इसलिए उस का पालनपोषण बड़े ही नाजों में हुआ था. उस की पढ़ाईलिखाई भी अच्छे स्कूल, कालेज में हुई थी. उच्च शिक्षा पूरी करतेकरते अनुष्का जवान हो चुकी थी. तब पिता ने उस की शादी अपनी ही हैसियत वाले परिवार में कर दी. शादी के बाद अनुष्का पति के घर चली गई.

कहते हैं कि शादी के बाद लड़की के नए जीवन की शुरुआत अपने पति के संग होती है. वहां उसे ससुराल के मुताबिक ही खुद को ढालना होता है. अनुष्का ने भी ऐसा ही किया. अपने गृहस्थ जीवन से वह खुश थी. इसी बीच वह एक बेटी की मां बनी. बेटी के जन्म के बाद उस की खुशी और बढ़ गई. लेकिन उस की यह खुशी ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी.

पति से उस के मतभेद हो गए. हालत यह हो गए कि उस का ससुराल में रहना दूभर हो गया तो वह मायके आ गई. हर मांबाप चाहते हैं कि उन की बेटी ससुराल में हंसीखुशी के साथ रहे. अनुष्का गुस्से में जब मायके आई तो मांबाप ने उसे व दामाद को समझाया. समझाबुझा कर उन्होंने बेटी को ससुराल भेज दिया.

उन्होंने अनुष्का को ससुराल भेजा तो इसलिए था कि गिलेशिकवे दूर होने के बाद उस की गृहस्थी की गाड़ी सही ढंग से चलेगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. कुछ दिनों बाद ही पति के साथ उस का तलाक हो गया. यह करीब 20 साल पहले की बात है.

पति से तलाक होने के बाद अनुष्का बेटी के साथ मायके में ही रहने लगी. अनुष्का पढ़ीलिखी थी इसलिए अब अपने पैरों पर खड़े होने की ठान ली. उस ने तय कर लिया कि वह आत्मनिर्भर बन कर बेटी को ऊंची तालीम दिलाएगी. इधरउधर से पैसों की व्यवस्था कर के उस ने रेडीमेड गारमेंट का बिजनैस शुरू कर दिया. कुछ सालों की मेहनत के बाद उस का बिजनैस जम गया और उसे अच्छी कमाई होने लगी.

अनुष्का अपनी बेटी की पढ़ाई की तरफ पूरा ध्यान दे रही थी. वह चाहती थी कि बेटी को पढ़ालिखा कर इस लायक बनाए कि उस का भविष्य उज्ज्वल बन सके. उस की बेटी इस समय मुंबई के एक नामी इंस्टीट्यूट से एमबीए कर रही है. अनुष्का भी अब 47 साल की हो चुकी थी. अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने के लिए उसे कभीकभी जीवनसाथी की जरूरत महसूस होने लगी थी. इस के लिए उस ने वैवाहिक विज्ञापनों की वेबसाइट जीवनसाथी डौटकौम पर नवंबर, 2013 में अपना रजिस्ट्रेशन भी करा दिया था.

वैवाहिक विज्ञापनों की इसी साइट पर राजीव यादव नाम के एक आदमी ने भी रजिस्ट्रेशन करा रखा था. 58 वर्षीय राजीव यादव ने अपनी पर्सनल डिटेल में खुद को आईपीएस बताया था. वह भी अपने लिए जीवनसंगिनी तलाश कर रहा था. राजीव रोजाना जीवनसाथी डौटकौम साइट पर अपनी पसंद की महिला की तलाश करने लगा. साइट सर्च के दौरान उस की नजर अनुष्का की प्रोफाइल पर ठहर गई.

उस ने जल्दी ही अनुष्का को ईमेल भेज कर बात करने की इच्छा जाहिर की. अनुष्का ने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. तब राजीव यादव ने उस से खुद को आईपीएस अफसर बताते हुए कहा कि उस की पोस्टिंग भारत के नार्थईस्ट इलाके मिजोरम में डीआईजी के पद पर है और वह वहां अकेला रहता है.

राजीव ने जब अपने बारे में बताया तो अनुष्का को लगा कि उस की बाकी जिंदगी राजीव के साथ ठीक से कट जाएगी. कुल मिला कर राजीव उसे अच्छा लगा. सोचविचार कर अनुष्का ने भी राजीव को अपना परिचय दे दिया और कहा कि पहले पति से उस की एक बेटी है, जो मुंबई में एमबीए की पढ़ाई कर रही है. राजीव ने उस की बेटी को भी अपनाने की हामी भर ली.

इस के बाद दोनों के बीच फोन पर बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया. इसी दौरान राजीव ने बताया कि जब वह छोटा था कि उस के मांबाप की मौत हो गई थी. एक छोटा भाई था जो भारतीय सेना में ब्रिगेडियर था. उस की पोस्टिंग जम्मूकश्मीर में थी. लेकिन वहां हुए एक बम विस्फोट में उस की मौत हो चुकी है.

कुछ दिनों की बातचीत के बाद राजीव और अनुष्का ने शादी की बात फाइनल कर ली. उन्होंने तय कर लिया कि वे 13 दिसंबर, 2013 को शादी कर लेंगे. राजीव यादव ने कहा कि वह मिजोरम से 13 दिसंबर को कानपुर पहुंच जाएगा और परिवार के नजदीकी लोगों के बीच एक सादे समारोह में उसी दिन शादी कर के वापस लौट आएगा.

अनुष्का की यह दूसरी शादी थी इसलिए वह भी शादी के समय कोई बड़ा दिखावा और तामझाम नहीं चाहती थी. इसलिए उसे राजीव का प्रस्ताव पसंद आ गया.

शादी करने से 3 दिन पहले 10 दिसंबर को राजीव ने अनुष्का से फोन पर बात की. बातचीत के दौरान उस ने बताया कि उस का पर्स कहीं गिर गया है. उस में एटीएम कार्ड व अन्य कार्ड थे.

अनुष्का ने राजीव की इस बात को सीरियसली नहीं लिया क्योंकि आए दिन तमाम लोगों के एटीएम कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस आदि महत्त्वूपर्ण सामान चोरी होते रहते हैं या कहीं खो जाते हैं. इसलिए उस ने राजीव से यह कहा कि जो एटीएम कार्ड पर्स में थे, उन्हें लौक जरूर करा दें ताकि कोई उन का दुरुपयोग न कर सके.

अनुष्का ने अपने होने वाले पति को यह सुझाव दे तो दिया लेकिन उसे यह पता नहीं था कि राजीव यह छोटी सी सूचना दे कर उसे ऐसे जाल में फांसने जा रहा है, जहां से निकलना उस के लिए आसान नहीं होगा.

दोनों की फोन पर रोजाना ही बातचीत होती थी. अनुष्का उस की बातों से इतनी प्रभावित हो गई थी कि उस पर आंखें मूंद कर विश्वास करने लगी थी. 13 दिसंबर की दोनों की शादी होने वाली थी इसलिए अब केवल 2 दिन ही बचे थे. 2 दिनों बाद वे एकदूसरे से पहली बार मिलने जा रहे थे. अनुष्का की खुशी बढ़ती जा रही थी. ये 2 दिन उसे 2 साल से भी ज्यादा लंबे लग रहे थे. एकएक पल का वह बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही थी.

इस से पहले कि अनुष्का राजीव यादव के साथ शादी के बंधन में बंध पाती, उसे ऐसी खबर मिली कि उस के पैरों तले जैसे जमीन ही खिसक गई.

11 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा, ‘‘अनुष्का, मेरे साथ एक वाकया हो गया है. कल रात बदमाशों से हुई मुठभेड़ के दौरान मेरे पैर में गोली लग गई है. इस के अलावा मेरे कूल्हे की हड्डी में भी फ्रैक्चर हो गया है. इस समय मैं मिजोरम के एक प्राइवेट अस्पताल में हूं.’’

यह खबर सुनते ही अनुष्का घबरा गई. वह फोन पर ही इस घटना पर दुख जताने लगी. तभी राजीव बोला, ‘‘अनुष्का, तुम मेरी चिंता मत करो. जल्दी ही ठीक हो जाऊंगा. लेकिन तुम्हें तो मालूम ही है कि कल मेरा एटीएम कार्ड कहीं गिर गया था. यहां अस्पताल में कुछ पैसों की जरूरत है. यदि संभव हो सके तो कुछ पैसे औनलाइन ट्रांसफर कर दो. ठीक होने के बाद मुझे विभाग से सारा पैसा मिल जाएगा, तब मैं तुम्हारे पैसे लौटा दूंगा. मैं अपने बौडीगार्ड का एकाउंट नंबर मैसेज कर रहा हूं. उसी में डाल देना. बौडीगार्ड बैंक से पैसे ला कर अस्पताल में जमा करा देगा.’’

कुछ ही देर बाद अनुष्का के फोन पर राजीव द्वारा भेजा गया मैसेज मिला. उस ने मैसेज में बैंक का खाता नंबर भेजा था. अनुष्का ने 12 दिसंबर 2013 को राजीव के भेजे गए कार्पोरेशन बैंक के खाता नंबर 124800101003359 में 75 हजार रुपए औनलाइन ट्रांसफर कर दिए.

अनुष्का कामना करने लगी कि राजीव जल्द ठीक हो जाए. चूंकि राजीव उस का होने वाला पति था इसलिए उस का ध्यान उस की तरफ ही लगा हुआ था. वह दिन में कईकई बार फोन कर के उस का हालचाल मालूम करती रहती थी.

19 दिसंबर, 2013 को राजीव ने अनुष्का को फोन कर के कहा कि उस की हालत ठीक न होने की वजह से उसे चेन्नई के अपोलो अस्पताल ले जाया जा रहा है. वहां उस के औपरेशन वगैरह पर मोटा पैसा खर्च होने की उम्मीद है. उस ने उस से और पैसे भेजने को कहा.

अनुष्का नहीं चाहती थी कि राजीव को कुछ हो जाए, इसलिए उस ने उसी दिन उस के द्वारा भेजे गए खाता नंबर में सवा 4 लाख रुपए जमा करा दिए. 13 दिसंबर जो शादी की तारीख मुकर्रर की गई थी, वह अचानक आई विपदा की वजह से निकल गई. धीरेधीरे 2013 बीत कर नया साल 2014 भी आ गया. अनुष्का का मन कर रहा था कि अस्पताल जा कर वह राजीव को देख आए लेकिन बिजनैस और अन्य वजहों से वह चेन्नई नहीं जा सकी. वह फोन पर जरूर उस के संपर्क में रही.

अनुष्का ने राजीव से कह दिया था कि वह इलाज की चिंता न करे. जितना भी संभव हो सकेगा वह उस की मदद करेगी. एक दिन राजीव ने उस से कहा, ‘‘डाक्टरों ने बताया है कि इलाज लंबा चलेगा, जिस में पैसों की भी जरूरत पड़ेगी. मेरे ठीक होने तक तुम जरूरत के मुताबिक पैसे देती रहना. ठीक होने पर मैं तुम्हारे सारे पैसे वापस कर दूंगा.’’

‘‘आप पैसों की चिंता न करें, बस अपना खयाल रखें.’’ अनुष्का बोली.

‘‘अनुष्का मेरे एक दोस्त हैं अजय सिंह यादव जो यहीं पर डीआईजी हैं. मैं उन का आईसीआईसीआई बैंक का खाता नंबर एसएमएस कर रहा हूं. तुम उस में भी पैसे भेज सकती हो. पैसे भेजने के बाद तुम मुझे फोन जरूर कर देना.’’ राजीव ने बताया.

इस तरह 12 दिसंबर, 2013 से 7 फरवरी, 2014 तक अनुष्का अलगअलग बैंक खातों में राजीव यादव के साढ़े 24 लाख रुपए भेज चुकी थी. इसी बीच राजीव ने उसे बताया कि उस का ब्लड प्रेशर लगातार बढ़ रहा है और कूल्हे का औपरेशन करने के लिए उसे चेन्नई से हैदराबाद के अपोलो अस्पताल भेजा जा रहा है.

राजीव की हालत दिनप्रतिदिन बिगड़ने की बात सुन कर अनुष्का को और ज्यादा चिंता होने लगी. उस ने राजीव को अस्पताल जा कर देखने का प्रोग्राम बना लिया. 21 फरवरी, 2014 को वह हैदराबाद के अपोलो अस्पताल पहुंच गई. अस्पताल पहुंचने पर उसे जो सूचना मिली, उसे सुन कर उस के होश ही उड़ गए.

अस्पताल से उसे जानकारी मिली कि राजीव यादव नाम का कोई पुलिस अधिकारी अस्पताल में भरती ही नहीं है. जबकि राजीव ने उसे उसी अस्पताल में भरती होने की बात कही थी.

जब वह इस अस्पताल में नहीं है तो कहां गया? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसे किसी और अस्पताल भेज दिया हो? यह सोच कर उस ने उसी समय राजीव को फोन मिलाया. उस का फोन स्विच्ड औफ आ रहा था. कई बार फोन मिलाने के बाद भी फोन स्विच्ड औफ मिलता रहा तो निराश हो कर वह कानपुर लौट आई.

घर लौटने के बाद उस ने राजीव को फिर से फोन मिलाया. इस बार फोन मिलने पर बात हुई तो राजीव ने अपनी सफाई में कहा कि सुरक्षा कारणों से वह अस्पताल में दूसरे नाम पर भरती हुआ है.

राजीव ने उस से पैसों की और डिमांड की तो अनुष्का ने उसे अब पैसे न होने का बहाना बना दिया. अनुष्का ने जब उस से पूछा कि वह अस्पताल में किस नाम से भरती है तो उस ने वह नाम नहीं बताया बल्कि उस ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया.

इस से अनुष्का को राजीव की बातों पर शक होने लगा था. उस ने राजीव को आईसीआईसीआई, ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स और कार्पोरेशन बैंक के जिन खातों में पैसे भेजे थे. वह अपने स्तर से यह पता लगाने में जुट गई कि यह खाते किन नामों पर हैं.

उसे पता चला कि आईसीआईसीआई बैंक और ओरियंटल बैंक औफ कौमर्स के खाते अजय सिंह यादव के थे, जो ग्रेटर कैलाश पार्ट-2, नई दिल्ली का रहने वाला था जबकि कार्पोरेशन बैंक का खाता अमित चौहान का निकला जो नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला था. जिस वोडाफोन मोबाइल नंबर से राजीव यादव बात करता था वह भी अमित चौहान के नाम पर लिया गया था.

इसी बीच 26 फरवरी, 2014 को अनुष्का को राजीव यादव ने फोन कर के बताया कि वह अस्पताल से डिस्चार्ज हो रहा है. डिस्चार्ज होने के कुछ दिनों बाद उसे आईएएस एकेडमी मसूरी भेजा जाएगा. वह वहां कुछ दिनों इंस्ट्रक्टर के रूप में काम करेगा.

राजीव ने अस्पताल का बिल चुकाने के लिए अनुष्का से कुछ पैसे और भेजने को कहा. चूंकि अनुष्का को राजीव पर शक हो गया था इसलिए उस ने उस की बात को फोन में रिकौर्ड करना शुरू कर दिया था. अपनी मजबूरी बताते हुए उस ने उसे और पैसे देने में असमर्थता जता दी.

और पैसे न मिलने की बात सुन कर राजीव यादव ने फोन फिर से स्विच्ड औफ कर लिया. इस के बाद वह फोन औन नहीं हुआ. शादी के जाल में फंस कर अनुष्का राजीव को साढ़े 24 लाख रुपए दे चुकी थी. और पैसे न मिलने की बात पर जिस तरह राजीव यादव ने अपना फोन स्विच्ड औफ कर लिया था, उस से अनुष्का को लगा कि उस के साथ कोई बड़ा फ्रौड हुआ है.

अपने स्तर से जानकारी पाने के लिए वह दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 में उस पते पर गई जहां वह रहता था, जिस के खातों में उस ने मोटी रकम ट्रांसफर की थी. राजीव ने अजय यादव को मिजोरम का डीआईजी बताया. लेकिन पड़ोसियों से बात करने पर पता चला कि वहां कोई पुलिस अधिकारी नहीं रहता.

अनुष्का का शक गहरा गया. वह दिल्ली पुलिस क्राइम ब्रांच के अतिरिक्त पुलिस आयुक्त रविंद्र यादव से मिली और उन्हें अपने साथ घटी पूरी कहानी बता दी. रविंद्र यादव को यह मामला काफी गंभीर लगा. उन्होंने अनुष्का को क्राइम ब्रांच के पुलिस उपायुक्त भीष्म सिंह के पास भेज दिया साथ ही डीसीपी को निर्देश दिए कि वह जल्द से जल्द जरूरी काररवाई करें.

डीसीपी ने अनुष्का की शिकायत पर थाना क्राइम ब्रांच में 7 मार्च, 2014 को राजीव यादव, अजय यादव, अमित चौहान आदि के खिलाफ धोखाधड़ी करने की रिपोर्ट दर्ज करा दी. साथ ही उन्होंने एसीपी होशियार सिंह के नेतृत्व में एक पुलिस टीम बनाई जिस में तेजतर्रार सबइंसपेक्टर विनय त्यागी, अतुल त्यागी, हेडकांस्टेबल संजीव कुमार, जुगनू त्यागी, नरेश पाल, राजकुमार, उपेंद्र, कांस्टेबल राजीव सहरावत, विपिन, संदीप आदि को शामिल किया गया.

जिस फोन नंबर से राजीव अनुष्का से बात करता था, वह उस ने बंद कर रखा था. पुलिस टीम ने उस नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई और उस काल डिटेल्स का अध्ययन कर के यह जानने में जुट गई कि राजीव यादव की ज्यादातर किन फोन नंबरों पर बातें होती थीं. इस के अलावा जिन बैंक खातों में अनुष्का ने साढ़े 24 लाख रुपए जमा कराए थे, उन की भी जांचपड़ताल शुरू कर दी.

इस जांच से पुलिस को यह जानकारी मिल गई कि राजीव यादव का असली नाम अजय यादव है और जिस अमित चौहान को उस ने अपना बौडीगार्ड बताया था, वह उस का ड्राइवर है. खुफिया तरीके से जांच करने पर पता चला कि अमित चौहान नोएडा के छलेरा गांव का रहने वाला है और अजय यादव दिल्ली के ग्रेटर कैलाश पार्ट-2 का. ये दोनों ही अपने घरों से फरार थे. उन की तलाश के लिए मुखबिर भी लगा दिए.

इसी बीच 21 मार्च, 2014 को पुलिस टीम को सूचना मिली कि अजय यादव आज अपनी होंडा सिटी कार डीएल4सीएएच 9066 से गुड़गांव-आयानगर जाएगा. यह खबर मिलते ही पुलिस टीम बौर्डर पर पहुंच गई और उधर से गुजरने वाली कारों पर नजर रखने लगी. उसी दौरान पुलिस को उक्त नंबर की होंडा सिटी कार आती दिखी तो उस ने उसे रोक लिया. उस समय कार में ड्राइवर के अलावा अधेड़ उम्र का एक आदमी बैठा हुआ था.

कार रुकते ही ड्राइवर बोला, ‘‘आप को पता नहीं गाड़ी किस की है?’’

‘‘नहीं, बताओ तभी तो पता चलेगा.’’ एक पुलिसकर्मी बोला.

‘‘ये गाड़ी डीआईजी साहब की है जो गाड़ी में ही बैठे हुए हैं.’’ ड्राइवर ने बताया.

इस से पहले कि पुलिस कुछ कहती, कार में बैठे शख्स ने ड्राइवर से बात कर रहे पुलिसकर्मी को इशारे से अपने पास बुलाया. पास में खड़े एसआई विनय त्यागी कार में बैठे उस शख्स के पास पहुंचे तो उस शख्स ने खुद को डीआईजी इंटेलीजेंस ब्यूरो बताया.

एसआई विनय त्यागी को यह जानकारी मिल ही चुकी थी कि अजय यादव बहुत ही शातिर किस्म का है. इसलिए उन्होंने उस से आइडेंटिटी कार्ड मांगा तो वह आईडी कार्ड तो क्या ऐसी कोई चीज नहीं दिखा सका जिस से साबित हो सके कि वह पुलिस में है. लिहाजा वह उन दोनों को क्राइम ब्रांच औफिस ले आए.

औफिस में जब उन दोनों से सख्ती से पूछताछ की गई तो उन्होंने अपने नाम अजय यादव उर्फ राजीव यादव व अमित चौहान बताए. इन के खिलाफ ही अनुष्का ने रिपोर्ट दर्ज कराई थी.

पूछताछ में पता चला कि अजय यादव बहुत अच्छे परिवार से है. उस के पिता आईएएस औफीसर थे. प्रतिष्ठित परिवार का अजय यादव एक ठग कैसे बना, इस बारे में जब उस से पूछताछ की गई तो उस के शातिर ठग बनने की एक दिलचस्प कहानी सामने आई.

अजय सिंह यादव के पिता जय नारायण सिंह आईएएस अधिकारी थे. वह सन 1979 में दिल्ली में एमसीडी के कमिश्नर रह चुके थे. अजय सिंह ने दिल्ली के किरोड़ीमल कालेज से 1976 में ग्रैजुएशन पूरा किया. पिता चाहते थे कि वह भी भारतीय प्रशासनिक सेवा की तैयारी करे. इस के लिए दिनरात एक करना होता है. यह सब करने के लिए अजय तैयार नहीं था. तब जयनारायण सिंह ने अपने प्रभाव से अजय की नौकरी फल एवं सब्जीमंडी आजादपुर में प्रवर्तन अधिकारी के पद पर लगवा दी.

चूंकि अजय की शुरू से ही खुले हाथों से पैसे खर्च करने की आदत थी. इसलिए नौकरी से उसे जो पैसे मिलते थे, वह उस की आंख तले नहीं आते थे. इस के अलावा उस की नौकरी बड़ी आसानी से लगी थी इसलिए उस नौकरी पर उस का मन नहीं लगा. 5-6 साल बाद ही उस ने वह नौकरी छोड़ दी.

उस का मानना था बिजनैस में मोटी कमाई होती है इसलिए अब वह किसी बिजनैस में हाथ आजमाना चाहता था. उसे चूंकि बिजनैस का कोई अनुभव नहीं था इसलिए पिता ने उसे बिजनैस करने को मना किया, लेकिन वह नहीं माना.

उस ने एक नामी ब्रांड के रिफाइंड तेल की डिस्ट्रीब्यूशनशिप ले ली. राजस्थान में उस ने अपना कारोबार शुरू कर दिया. लेकिन घाटा होने की वजह से उस ने इस कारोबार को बंद कर दिया.

अजय यादव तेजतर्रार और पढ़ालिखा युवक था. पिता के प्रभाव की वजह से उस के कुछ राजनीतिज्ञों से भी अच्छे संबंध हो गए थे. रिफाइंड तेल का बिजनैस बंद करने के बाद वह केंद्र सरकार के तत्कालीन कृषि मंत्री का पीए बन गया. वहां उस की मुलाकात तमाम अधिकारियों से होती रहती थी. वहां रह कर वह पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की बात और काम करने की शैली सीख गया था.

अजय यादव अविवाहित था. प्रशासनिक अधिकारी का बेटा होने की वजह से उस के लिए अच्छे परिवारों से रिश्ते आने लगे. सन 1981 में राजस्थान सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री की बेटी से उस की शादी हो गई.

कालेज के दिनों से ही वह खर्चीली लाइफस्टाइल जीने का शौकीन था. यही आदत उस की अब भी बनी हुई थी. मंत्री का पीए बनने के बाद वह जो कमा रहा था, उस कमाई से भी वह संतुष्ट नहीं था. लिहाजा उस ने मंत्री के पीए की नौकरी भी छोड़ दी.

उसी दौरान उस ने दिल्ली में कुछ ब्लूलाइन बसें चलवाईं. बसों से उसे जो आमदनी होती थी, उस से ज्यादा उस के खर्चे थे. ऊपर से बसों की मेंटीनेंस में उस के मोटे पैसे खर्च हो जाते थे लिहाजा उस ने वे भी बेच दीं. सन 1990 में अजय ने देहरादून स्थित अपने बंगले में होटल खोला, लेकिन उस से भी उसे अपेक्षा के मुताबिक इनकम नहीं मिली.

अजय के खर्चे बढ़ते जा रहे थे, लेकिन आमदनी का कोई स्थाई स्रोत नहीं था. लिहाजा वह परेशान रहने लगा. तब उस ने दिल्ली और हरियाणा की रीयल एस्टेट कंपनियों में नौकरियां कीं. नौकरी में उस की भागदौड़ ज्यादा हो गई थी जिस की वजह से उसे शुगर, उच्च रक्तचाप और अन्य कई बीमारियों ने घेर लिया. 2008-09 में वह पूरी तरह बेरोजगार हो गया तो उसे पैसों की तंगी होने लगी.

अजय परेशान था कि ऐसा क्या काम करे कि उसे मोटी कमाई हो. तभी उस के दिमाग में उच्च परिवार की तलाकशुदा ऐसी महिलाओं को ठगने का आइडिया आया जो फिर से शादी करना चाहती हों. इस के लिए उस ने जीवनसाथी डौटकौम वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करा कर अपनी आकर्षक प्रोफाइल बनाई.

प्रोफाइल में उस ने अपना नाम बदल कर राजीव यादव लिखा और अपनी जगह किसी दूसरे का फोटो लगा दिया. नोएडा के छलेरा गांव के रहने वाले युवक अमित चौहान को उस ने मोटी तनख्वाह पर नौकरी पर रख लिया था.

प्रभाव जमाने के लिए अजय ने खुद को आईपीएस अफसर और मिजोरम में डीआईजी के पद पर तैनात बताया. इस आकर्षक प्रोफाइल को देख कर ही अनुष्का उस के जाल में फंसी थी. जिस से उस ने साढ़े 24 लाख रुपए ठग लिए थे.

पुलिस ने जालसाज अजय यादव उर्फ राजीव यादव और अमित चौहान को गिरफ्तार कर न्यायालय में पेश कर जेल तो भेज दिया. लेकिन इस के बाद भी अनुष्का की मुश्किलें कम नहीं हुई हैं. अब अदालत की काररवाई में उसे कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं.

अनुष्का की ही तरह शालिनी भी शादी के विज्ञापन की वेबसाइट के जरिए एक ऐसे

व्यक्ति के चंगुल में फंसी कि उस युवक ने उस के 6 लाख रुपए बड़ी आसानी से ठग लिए.

दिल्ली के कृष्णानगर इलाके के रहने वाला वरुण बीए सेकेंड ईयर किए हुए है. उस ने दरजनों संस्थानों में जौब की, लेकिन कहीं भी टिक नहीं पाया. इसी दौरान उस ने टीवी पर एक क्राइम शो देखा. शो में दिखाया गया था कि एक शख्स मैट्रीमोनियल साइट्स पर एकाउंट बना कर किस तरह महिलाओं को ठगता था. उसी टीवी शो से प्रेरित हो कर वरुण पाल ने भी मैट्रीमोनियल साइट्स के जरिए ठगी करने की योजना बनाई.

योजना के तहत उस ने मैट्रीमोनियल की 3 बड़ी वेबसाइट्स पर अपने कई एकाउंट बनाए और फेसबुक में हैंडसम दिखने वाले लड़कों की तसवीरें लगा दीं. अपनी प्रोफाइल में उस ने खुद को माइक्रोसाफ्ट कंपनी का आईटी मैनेजर बताया.

अपना प्रभाव जमाने के लिए वरुण ने अपनी फेसबुक में कुछ अच्छे बंगलों की तसवीरें भी अपलोड कर दीं. उन बंगलों को वह अपने बताता था. खुद को रसूख वाला प्रोजैक्ट करने के बाद कई महिलाएं उस के जाल में फंसीं.

महिलाओं को अपने जाल में फांसने के बाद वह उन से मुलाकात करता और किसी तरह उन के न्यूड फोटोग्राफ हासिल कर लेता था. इस के बाद वरुण का ठगी का खेल शुरू हो जाता था. वह बिजनैस में मोटा घाटा होने की बात कह कर उन से मोटी रकम ऐंठता. जब कोई महिला पैसे देने में आनाकानी करती तो वह न्यूड तसवीरों के जरिए उसे ब्लैकमेल करता.

शालिनी भी मैट्रीमोनियल साइट के जरिए वरुण पाल के जाल में फंस गई. वरुण ने शालिनी को शादी के जाल में फांस कर 6 लाख रुपए ठग लिए थे.

शालिनी से जब वरुण ने और पैसों की डिमांड की तो शालिनी को अहसास हो गया कि उसे ठगा जा रहा है. उस ने और पैसे देने से मना कर दिया तो वरुण ने उसे धमकी दी कि यदि पैसे नहीं दिए तो वह उस के न्यूड फोटो इंटरनेट पर डाल देगा.

शालिनी अब समझ चुकी थी कि जिसे वह अपना जीवनसाथी चुनने जा रही थी, वह बहुत शातिर ठग है. उस ने उसे सबक सिखाने के लिए दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच में लिखित शिकायत कर दी.

आर्थिक अपराध शाखा के डीसीपी एस.डी. मिश्रा ने इस मामले में त्वरित काररवाई करते हुए एक पुलिस टीम बनाई. पुलिस टीम ने 8 अगस्त, 2014 को आरोपी वरुण पाल को गिरफ्तार कर लिया.

मैट्रीमोनियल साइटों पर आज भी तमाम फरजी एकाउंट एक्टिव हैं. जिन लोगों ने ऐसे एकाउंट बना रखे हैं, उन का मकसद भोलीभाली लड़कियों, महिलाओं को अपने जाल में फंसा कर उन का आर्थिक और शारीरिक शोषण करना होता है.

ऐसे विज्ञापनों के जरिए शादी के बंधन में बंधने वालों को पहले अच्छी तरह से छानबीन कर लेनी चाहिए कि उस ने अपने प्रोफाइल में जो कुछ दे रखा है, वह सही है या नहीं. यदि बिना जांच किए शादी का प्रपोजल स्वीकार कर लिया तो अनुष्का और शालिनी की तरह पछताना पड़ सकता है.

– कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित (अनुष्का और शालिनी नाम परिवर्तित हैं.)

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