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शादी के बाद इन 7 तरीकों से करें खुद को एडजस्ट

जी हां अक्सर शादी के बाद लड़कियां खुद को एडजस्ट नहीं कर पाती हैं क्योंकि उन्हें अचानक से  दूसरे घर में जाकर हमेशा के लिए रहना होता है और ऐसे में जब उन्हें दिक्कत होती है, उनके मन मुताबिक चीजें नहीं हो पाती या नहीं मिल पाती हैं तो वो अपने पति पर दबाव बनाती हैं कहीं बाहर रहने के लिए और परिवार से दूर अलग रहने के लिए. ऐसे में परिवार भी टूटता है और घर में रिश्ते भी खराब होते हैं. खटास आ जाती है रिश्तों में. ऐसे में अगर आप चाहती हैं कि सब कुछ ठीक रहे तो अपनाए ये 7 तरीकें.

  1. सबसे पहले पति के परिवार को अपना ही परिवार समझे क्योंकि शादी के बाद वो आपका परिवार होता है जब तक आप उसे अपना नहीं समझेंगी तब तक उस परिवार को अपना नहीं पाएंगी और अनकंफर्टेबल फील करेंगी. इसलिए घर के हर सदस्य को जाने समझे उनके तौर तरीके समझें, कौन कैसा है उससे बात करके ही आपको पता चलेगा उन्हें भी अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करें. इस तरह आप परिवार में एडजस्ट जल्दी हो जाएंगी.
  2. जब आप परिवार में एडजस्ट हो जाएंगी तो आपको उस घर में सारे तौर-तरीके समझने में कोई दिक्कत नहीं होगी.फिर आप सब खुद समझने लगेंगी कि आपको क्या करना है और क्या नहीं और परिवार से आपका संबंध भी अच्छा बनेगा.

3. अगर आपको कोई दिक्कत है तो अपनी सास से भाभी से जेठानी से शेयर करें अगर आपको कुछ पता नहीं है या आप कुछ भी अपने हिसाब से चाहती हैं जो आपको मन मुताबिक नहीं मिल रहा है तो आप उनसे कहिए वे बेशक आपकी मदद करेंगी और आप और भी ज्यादा अच्छे से एडस्ट हो पाएंगी.

4. कभी भी घर में एक-दूसरे की किसी से बुराई न करें वरना आपकी छवि उस घर में अच्छी नहीं बनेगी और साथ ही पति से भी कभी उसके परिवार की बुराई न करें वरना वो तंग आकर आपके परिवार को भी ताने मारने से पीछे नहीं हटेगा और फिर आपके ही रिश्ते में खटास आएगी और आपको ही परेशानी होगी.

5. अपने ससुराल की बातें मायके में और मायके की बातें ससुराल में न करें…कभी भी शिकायत न करें इससे रिश्ते बिगड़ते हैं…इसलिए रिश्तों को संभालना सीखे ये सीखे की कैसे रिश्तों को जोड़ना है.तभी आपकी जिंदगी भी खुशहाल बनी रहेगी.

6. पति से कभी उसके परिवार से दूर जाकर रहने के लिए दबाव न बनाएं.वरना उसके मन में भी यही बात आएगी की ये मुझे मेरे परिवार से दूर रहने को कह रही है भले ही आपका वो इंटेशन न हो आप भले ही परिवार से प्यार करती हों लेकिन पति ये बात नहीं समझेगा.

7. पति के बेडरूम में भी अपनी एक खास जगह बनाएं साथ ही अपने पति के रिश्तेदारों से भी अपना व्यवहार बना कर रखें ताकि वो भी कभी ये न समझें कि पता नहीं कैसी बहू आयी है.

ये सारे तरीके अपना कर आप शादी के बाद अपने ससुराल में खुद को आसानी से एडजस्ट कर सकती हैं और फिर आपको किसी भी तरीके की परेशानी का सामना नहीं करना पड़ेगा.

मेरे पति मुझे बहुत चाहते हैं, पर उनका संबंध दूसरी औरत के साथ है, मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 38 वर्षीय गृहिणी हूं. शादी को 11 साल हो चुके हैं, एक बेटा है जिसकी उम्र 8 साल है . अभी तक हमारा वैवाहिक जीवन ठीक ठाक गुजर रहा था लेकिन पिछले 6-7 महीनों से बहुत परेशान और तनाव में हूं. क्योंकि मेरे पति का संबंध उनकी ही अकेली रह रही एक विधवा सहकर्मी  हैं . उसके पति ने 2 साल पहले आत्महत्या कर ली थी. जिसकी  असली वजह आजतक किसी को पता नहीं है लेकिन मैंने सुना है कि इसकी वजह पत्नी की चरित्रहीनता थी. उसके दूसरे पुरुष से संबंध थे .

मेरी समस्या यह है कि मेरे पति अब देर रात गए घर लौटते हैं और पूछने पर साफ साफ कह देते हैं कि उसी के पास था. इस बात को लेकर हम दोनों में आए दिन कलह होती रहती है. पति का स्पष्ट कहना है कि इससे मेरे अधिकारों पर कोई डाका नहीं पड़ रहा है और वे आज भी मुझे उतना ही चाहते हैं. जितना कि पहले चाहते थे लेकिन किसी भी कीमत पर उसके यहां आना जाना नहीं छोड़ सकते.

यह सुनकर मुझ पर क्या गुजरती है इसका अंदाजा कोई नहीं लगा सकता.  मैं अपने पति को बहुत चाहती हूं और उन्हें खोना नहीं चाहती. क्या करूं कि उन्हें उस डायन से छुटकारा भी मिल जाये और हमारी बदनामी भी न हो. मुझे लगता है मेरे पति पूरी तरह उसके जाल में फंस गए हैं. कृपया सही रास्ता सुझाएं, मैं आपकी एहसानमंद रहूंगी क्योंकि अब मेरे मन में भी कभी कभी आत्महत्या का विचार आने लगा है पर बेटे का मुंह देखकर मन मसोस कर रह जाती हूं .

जवाब

आपकी समस्या वाकई बहुत गंभीर है लेकिन इतनी भी नहीं कि आप आत्महत्या की बात सोचने लगें. यह तो सरासर बुझदिली और परेशानी के सामने घुटने टेक देने वाली बात होगी. इसलिए यह खयाल तो दिलो दिमाग से निकाल ही दें. दरअसल मैं आपके तनाव की एक बड़ी वजह इस मामले में आपकी कुछ न कर पाने की बेबसी और पति का साफतौर पर यह मान लेना है कि वे उसे किसी भी कीमत पर छोड़ नहीं सकते.

आमतौर पर जवान और वे विधवाएं जिन पर कोई पारिवारिक और सामाजिक अंकुश नहीं होता उस पुरुष से अपनी शारीरिक और भावनात्मक जरूरतें पूरी करने उसका सहारा लेती हैं जो आसानी से उन्हें मिल जाता है. आपके शब्दों में कहें तो फंस जाता है. अगर वह पुरुष शादीशुदा हो तो परेशानी उसकी पत्नी को होती हो जैसे कि आप को हो रही है. बेहतर होगा कि आप धैर्य से काम लें और इस मसले पर अब पति से कलह बिलकुल न करें क्योंकि इससे बात बनने के बजाय और बिगड़ेगी.

यह भी ठीक है कि ऐसी हालत में आप पति से सहज नहीं रह सकती लेकिन अब आपको एक्टिंग इसी बात की करनी होगी कि आपको पति और उनकी विधवा सहेली का यह संबंध मंजूर है. धीरे धीरे मन मसोस कर ही सही उसमें दिलचस्पी लें और कभी कभार पति के साथ उसके यहां आना जाना भी शुरू करें या उसे अपने यहां इन्वाइट करें. इससे उन दोनों को परेशानी होगी जो आपके फायदे की बात होगी  मुमकिन है पति इस के लिए तैयार न हों क्योंकि उन्हें यह एहसास तो है कि वे गलत कर रहे हैं जो आपके साथ ज्यादती ही है.

एक रास्ता यह भी है कि अगर हो सकता हो तो अपने लेबल पर कोशिश कर पति का तबादला कहीं और करा लें लेकिन यह काम इस तरह करें कि किसी को कानोकान खबर न लगे. ऐसा भी न हो पाये तो चुपचाप कुढ़ते किलपते ही सही इस संबंध के खत्म होने का इंतजार करें क्योंकि इस तरह के सम्बन्धों की मियाद अक्सर ज्यादा नहीं होती. इस बात की चिंता बिलकुल न करें कि उसके लिए पति आपको छोड़ देंगे क्योंकि उन्हें भी इज्जत और परिवार की चिंता और डर होगा यही स्थिति उनकी सहेली की भी होगी. इस तरह के संबंध आमतौर पर शारीरिक जरूरत और आकर्षण वाले होते हैं इसलिए अपने आप में भी आकर्षण पैदा करें और कोशिश करें कि किसी भी बहाने से पति के साथ लंबे सैर सपाटे के लिए जाएं.

Gadar 2 के ट्रेलर लॉन्च पर सकीना ने तारा सिंह पर लुटाया प्यार, देखें वीडियो

Sunny Deol & Ameesha Patel Viral Video : बॉलीवुड एक्टर सनी देओल (Sunny Deol) और एक्ट्रेस अमीषा पटेल (Ameesha Patel) की फिल्म ‘गदर 2’ (Gadar 2) बड़े पर्द पर धमाल मचाने को पूरी तरह से तैयार हैं. बीते दिन यानी 26 जुलाई को फिल्म का ट्रेलर रिलीज किया गया, जिसे लोगों का खूब प्यार मिल रहा है. वहीं, फिल्म से पहले ‘गदर 2’ के ट्रेलर लॉन्च इवेंट का एक वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. इस वीडियो में सकीना यानी अमीषा पटेल तारा सिंह उर्फ सनी देओल पर जमकर प्यार लुटा रही हैं.

सकीना-तारा की दिखी खास बॉन्डिंग

दरअसल सेलिब्रिटी फोटोग्राफर विरल भयानी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक्टर सनी और अमीषा का एक वीडियो (Sunny Deol & Ameesha Patel Viral Video) शेयर किया है. ये वीडियो फिल्म ‘गदर 2’ के ट्रेलर लॉन्च का है. जहां सनी देओल येलो कुर्ते और सिर पर पग बांधे हुए है, तो वहीं अमीषा पिंक कलर के शरारे में बहुत खूबसूरत लग रही हैं.

इस वायरल वीडियो की खास बात ये है कि इसमें साफ-साफ देखा जा सकता है कि अमीषा पटेल सनी देओल (Sunny Deol) पर जमकर प्यार लुटा रही हैं. जहां पहले अमीषा सनी देओल के गाल पर हाथ लगाती हैं तो फिर उसके बाद उनके गले लग जाती हैं. लोगों को सनी-अमीषा की ये बॉन्डिंग काफी इंप्रेस कर रही हैं.

इस दिन रिलीज होगी ‘गदर 2’

आपको बता दें कि सनी देओल और अमीषा पटेल (Ameesha Patel) की फिल्म ‘गदर 2’ 11 अगस्त को बड़े पर्दे पर रिलीज होगी, जिसमें गदर : एक प्रेम कथा की कहानी को आगे दिखाया जाएगा. इस रोमांटिक फिल्म में सनी और अमीषा के अलावा उनके बेटे का रोल निभा रहे उत्कर्ष शर्मा और बहू सिमरत कौर भी अहम भूमिका में है.

Kavya : सुंबुल तौकीर खान ने IAS ऑफिसर बन जीता दिल

Sumbul Touqeer Khan New Show : छोटे पर्दे की मशहूर एक्ट्रेस सुंबुल तौकीर खान एक बार फिर अपनी एक्टिंग से टीवी पर धमाल मचाने को तैयार है. दरअसल इस बार उनके हाथ एक बड़ा टीवी शो ‘काव्या: एक जज्बा एक जुनून’ (Kavya- Ek Jazbaa Ek Junoon Promo) हाथ लगा है, जिसमें वह आईएएस ऑफिसर का किरदार निभाएंगी. बीते दिन अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर सुंबुल (Sumbul Touqeer Khan) ने खुद इस शो का प्रोमो वीडियो जारी किया है. प्रोमो में सुंबुल का एक दम नया अवतार देखने को मिला और उनके इस नए अवतार से उनके फैंस काफी इंप्रेस हुए हैं.

सुंबुल के तेवर देख दंग हुए लोग

आपको बता दें कि, सुंबुल तौकीर खान (Sumbul Touqeer Khan) का अपकमिंग शो ‘काव्या: एक जज्बा एक जुनून’ सोनी टीवी पर आएगा. शो (Kavya- Ek Jazbaa Ek Junoon Promo) का प्रोमो वीडियो भी सोनी टीवी ने अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर रिलीज किया है.

प्रोमो में दिखाया गया है कि काव्या यानी सुंबुंल के पिता को सरकारी ऑफिसर्स के सामने गिड़गिड़ाना पड़ता है बावजूद इसके वो उसके पिता की बात नहीं सुनते हैं. इसे देख काव्या आईएएस ऑफिसर बनने का फैसला करती है और जब लोग उससे मिलने के लिए आते हैं तो काव्या उनकी मदद तो करती ही है. साथ ही उन्हें अपने गले से भी लगाती है.

शो का प्रोमो देख फैंस हुए खुश

बहरहाल सुंबुल (Sumbul Touqeer Khan) के शो का प्रोमो वीडियो देखने के बाद उनके फैंस काफी खुश है और सोशल मीडिया पर उनकी तारीफों के पुल बांध रहे हैं. एक यूजर ने सुंबुल की तारीफ करते हुए लिखा, “ये कहानी बिल्कुल नई लग रही है, जो बाकी प्लॉट्स से काफी अलग है. एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘सुंबुल आप शानदार हो. काव्या की आंखों में चमक और एक औदा, आप जबरदस्त एक्ट्रेस हैं.’

मणिपुर हिंसा : स्वघोषित राजा खामोश क्यों

देश में संभवतया ऐसा पहली दफा हो रहा है जब मणिपुर में भयावह स्थिति बनी हुई है. आज भी हिंसा और पलायन जारी है. हालात कुछ ऐसे दिखाई दे रहे हैं मानो भारतपाकिस्तान का विभाजन हुआ है और मारकाट मची हुई है, बलात्कार हो रहे हैं, पलायन हो रहा है.

देश के विभाजन के समय हुई त्रासदी के लिए अगर हम अंगरेजों को माफ नहीं कर सकते तो फिर आजाद भारत की लोकतांत्रिक चुनी हुई सरकार तो क्या देश माफ कर देगा?

दरअसल, केंद्र में एक सक्षम और मजबूत सरकार बैठी हुई है जो यह मानती है कि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दुनिया पीछे चलने के लिए तैयार है। ऐसे में मणिपुर में जो कुछ हो रहा है अगर वह केंद्र सरकार और भाजपा की राज्य सरकार के संरक्षण में नहीं चल रहा, तो यह कैसे माना जा सकता है? क्या कारण था कि अगर कोई विपक्ष का बड़ा नेता मणिपुर जाना चाहता है, लोगों से मिलना चाहता है तो उसे मिलने नहीं दिया जाता? अगर दुनिया में कहीं चर्चा शुरू हो जाती है तो कहा जाता है कि यह तो हमारा आंतरिक मामला है मगर इन सब के बाद भी केंद्र और राज्य सरकार मणिपुर पर हाथ पर हाथ धरे हुए बैठे हुए हैं तो इस का स्पष्ट कारण यह है कि केंद्र और राज्य का संबल मिला हुआ है उपद्रवियों को.

आवाज दबाने की गंदी कोशिश

विपक्ष जाता है कि संसद में चर्चा हो मगर बेहद चालाकी से सत्ता यह कह रही है कि हम तो बातचीत के लिए तैयार हैं, ऊपर से बातचीत नहीं करना चाहता। यह घातप्रतिघात देश देख रहा है और निश्चित रूप से इस का खमियाजा भारतीय जनता पार्टी को उठाना पड़ेगा.

अगर हम मणिपुर के घटनाक्रम पर नजर डालें तो स्पष्ट है कि कुछ तथ्य ऐसे हैं जो विचलित करने वाले हैं जैसे कि 49 दिन बाद प्राथमिकी, 77 दिन बाद गिरफ्तारी.

  • 3 मई : मणिपुर में कुकीमैतेई समुदाय में हिंसा फैली.
  • 4 मई : थोबल में महिलाओं के साथ भीड़ ने दरिंदगी की. इस का वीडियो बनाया. कुकी समुदाय की 2
  • महिलाओं को नंगा कर सड़कों पर घुमाया गया. सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल
  • 18 मई : शिकायत दर्ज कराई गई थी.
  • 21 जून : प्राथमिकी दर्ज हुई
  • 19 जुलाई : वीडियो वायरल होने के बाद हंगामा.
  • 20 जुलाई : मामले के मुख्य आरोपी की गिरफ्तारी हुई.

यह तो अच्छा है कि आज वीडियो तकनीक हमारे पास उपलब्ध है। अगर यह वीडियो उपलब्ध नहीं होता तो भाजपा के बड़ेबड़े चेहरे यह मानने के लिए तैयार ही नहीं होते कि मणिपुर में महिलाओं के साथ दरिंदगी का खेल हुआ है। आश्चर्य तो यह भी है कि वीडियो को इन लोगों ने मान कैसे लिया? ये लोग यह भी कह सकते थे कि वीडियो प्रमाणित नहीं है और अभी हम इस की जांच कराएंगे और भक्तगण इस पर भी तालियां बजाते. यह सब देखसमझ कर कर सिर शर्म से झुक जाता है कि आज देश नैतिकताविहीन, कमजोर, झूठे लोगों के हाथों में है जो हमारा नेतृत्व कर रहे हैं.

उच्चतम न्यायालय की दृष्टि

सुकून की बात यह है कि आज देश में उच्चतम न्यायालय लाठी दिशानिर्देश दे रही है. मणिपुर में 2 महिलाओं को नंगा कर घुमाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से तत्काल काररवाई को कहा. सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो का संज्ञान लेते हुए देश के उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश, धनंजय यशवंत चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने नाराजगी भरे लहजे में कहा, “मणिपुर में महिलाओं के साथ जो हुआ वह पूरी तरह अस्वीकार्य है. सरकार इस मामले में तुरंत काररवाई करे.”

देश की केंद्र सरकार और मणिपुर की राज्य सरकार के लिए यह आजतक का सब से काला दिन कहा जाएगा जब इन दोनों ही सरकारों पर सुप्रीम कोर्ट में सवालिया निशान लग गया.

मणिपुर में महिलाओं को निर्वस्त्र घुमाने के वीडियो का संज्ञान लेते हुए प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अगुआई वाली पीठ ने कहा, “वहां महिलाओं के साथ जो हुआ वह पूरी तरह अस्वीकार्य है. क्षेत्र में महिलाओं को किसी वस्तु की तरह इस्तेमाल करना संविधान का उल्लंघन है.”

कहां है सरकार

न्यायमूर्ति चंद्रचूड ने यहां तक कहा कि अगर सरकार इस पर काररवाई नहीं करती है, तो हम करेंगे. उन्होंने कहा,”घटना का जो वीडियो प्रसारित हो रहा है, वह काफी परेशान करने वाला है. हम सरकार को थोड़ा समय दे रहे हैं. अगर आगे जमीन पर कुछ नहीं होता है तो हम खुद काररवाई करेंगे.”

यह सब देश आज देख रहा है और चिंतन कर रहा है कि मणिपुर किस दिशा में अग्रसर है. बातें तो बड़ीबड़ी की जा रही हैं मगर जमीनी स्तर पर आज महिलाओं के साथ जो अत्याचार व दरिंदगी हो रही है, वह किसी भी हालात में माफी लायक नहीं है.

गवर्नरों का दुरुपयोग

जैसे पौराणिक कथाओं में बारबार कहा जाता है कि देवताओं के राजा हर समय दस्युओं के राजाओं को समाप्त करने की तरकीबें लगाते रहते थे. ब्राह्मणों द्वारा छल, कपट, प्रपंचझूठफरेबषडयंत्रऔरतों आदि के जरिए अच्छेभले चलते दस्युओं के राजाओं को ब्राह्मणमयी बनाने के लिए संघर्ष चलता रहता था. आज वैसा ही कृत्य भारतीय जनता पार्टी अपने विपक्षियों के खिलाफ हर समय करती रहती है.

संविधान में हर राज्य में केंद्र द्वारा नियुक्त एक राज्यपाल या गवर्नर की व्यवस्था दर्ज है जो असल में नाम का मुख्य अधिकारी है जैसा राष्ट्रपति होता है. भाजपा के नेतृत्व वाली मौजूदा केंद्र सरकार उन्हें हर समय गैरभाजपा सरकारों के पीछे पगलाए कुत्तों की तरह दौड़ाए रखती है. दिल्ली के उपराज्यपाल से ले कर तमिलनाडू के राज्यपाल तक किसी भी गैरभाजपा सरकार के अपने राज्य के गवर्नर से अच्छे संबंध नहीं हैं.

दिल्ली के राज्यपाल तो खुद को बादशाह मानते है और मुख्यमंत्री को चपरासी. वहीं, दूसरे गैरभाजपा शासित राज्यों के राज्यपाल यह चाहते हैं कि वहां की दूसरी पार्टियां परेशान हो कर जल्द से जल्द भाजपा मुखिया के कदमों में सिर रखने आ जाएं. जनता ने किसे वोट दे कर चुना, इस से उन्हें कोई मतलब नहीं. दरअसल, इन गवर्नरों का खयाल यह है कि वह जनता मूर्ख ही है जो भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं देती और ऐसे में अगर सरकार व गवर्नर विवाद में वह पिस रही है तो यह उस के पापों का फल है.

देश के फैडरल स्ट्रक्चर, जिस में राज्य लगभग स्वतंत्रतापूर्वक अपना काम कर सकते हैं, को बुरी तरह बिगाड़ दिया गया है. संविधान की आत्मा है संघीय संरचना तथा अलगथलग भाषाओं व इतिहास के लोग अपनी मरजी के नेता चुन सकें और सारा देश सफेद टोपी या भगवा दुपट्टे वालों के अधीन न हो.

एकदो राज्यों में यदि गवर्नर-मुख्यमंत्री विवाद होता तो समझा जा सकता था कि दोनों में से एक गलत है पर जब सभी गैरभाजपा शासित राज्यों के राज्यपालों के मुख्यमंत्रियों से मतभेद हों जबकि भाजपाशासित राज्यों में किसी भी राज्यपाल का मुख्यमंत्री से किसी तरह का मतभेद न हो तो यह स्पष्ट है कि समस्या के पीछे केंद्र में शासन कर रही पार्टी है जो अपने विरोध में खड़े किसी को भी चक्रवर्ती बनने से रोक रही है.

यह बीमारी कैंसर है जो बुरी तरह फैल सकती है और ऐसा न हो कि चक्रवर्ती बनने के चक्कर में देश के ही टुकड़ेटुकड़े होने लगें. हमारे देश के ही ज्ञात इतिहास में ऐसी घटनाएं हुई हैं जिन में किसी दोषी राजा ने अपने राज के विस्तार के चक्कर में युद्ध थोपे और पता चला कि साम्राज्य ढह गया. पाकिस्तान के टुकड़े इसी कारण हुए थे कि पंजाबी शासक बंगाली नेताओं को हर समय कुरेदते रहते थे और उन्हें बंगाली प्रधानमंत्री स्वीकार्य नहीं था. आज पाकिस्तान फिर टूटने की कगार पर है जबकि पिछड़ा बंगलादेश लगातार उन्नति कर रहा है.

सिसकता शैशव : मन के वो अनगिनत सवाल

जिस उम्र में बच्चे मां की गोद में लोरियां सुनसुन कर मधुर नींद में सोते हैं, कहानीकिस्से सुनते हैं, सुबहशाम पिता के साथ आंखमिचौली खेलते हैं, दादादादी के स्नेह में बड़ी मस्ती से मचलते रहते हैं, उसी नन्हीं सी उम्र में अमान ने जब होश संभाला, तो हमेशा अपने मातापिता को लड़तेझगड़ते हुए ही देखा. वह सदा सहमासहमा रहता, इसलिए खाना खाना बंद कर देता. ऐसे में उसे मार पड़ती. मांबाप दोनों का गुस्सा उसी पर उतरता. जब दादी अमान को बचाने आतीं तो उन्हें भी झिड़क कर भगा दिया जाता. मां डपट कर कहतीं, ‘‘आप हमारे बीच में मत बोला कीजिए, इस से तो बच्चा और भी बिगड़ जाएगा. आप ही के लाड़ ने तो इस का यह हाल किया है.’’

फिर उसे आया के भरोसे छोड़ कर मातापिता अपनेअपने काम पर निकल जाते. अमान अपने को असुरक्षित महसूस करता. मन ही मन वह सुबकता रहता और जब वे सामने रहते तो डराडरा रहता. परंतु उन के जाते ही अमान को चैन की सांस आती, ‘चलो, दिनभर की तो छुट्टी मिली.’

आया घर के कामों में लगी रहती या फिर गपशप मारने बाहर गेट पर जा बैठती. अमान चुपचाप जा कर दादी की गोद में घुस कर बैठ जाता. तब कहीं जा कर उस का धड़कता दिल शांत होता. दादी के साथ उन की थाली में से खाना उसे बहुत भाता था. वह शेर, भालू और राजारानी के किस्से सुनाती रहतीं और वह ढेर सारा खाना खाता चला जाता.बीचबीच में अपनी जान बचाने को आया बुलाती, ‘‘बाबा, तुम्हारा खाना रखा है, खा लो और सो जाओ, नहीं तो मेमसाहब आ कर तुम्हें मारेंगी और मुझे डांटेंगी.’’

अमान को उस की उबली हुई सब्जियां तथा लुगदी जैसे चावल जहर समान लगते. वह आया की बात बिलकुल न सुनता और दादी से लिपट कर सो जाता. परंतु जैसेजैसे शाम निकट आने लगती, उस की घबराहट बढ़ने लगती. वह चुपचाप आया के साथ आ कर अपने कमरे में सहम कर बैठ जाता. घर में घुसते ही मां उसे देख कर जलभुन जातीं, ‘‘अरे, इतना गंदा बैठा है, इतना इस पर खर्च करते हैं, नित नए कपड़े लाला कर देते हैं, पर हमेशा गंदा रहना ही इसे अच्छा लगता है. ऐसे हाल में मेरी सहेलियां इसे देखेंगी तो मेरी तो नाक ही कट जाएग.’’ फिर आया को डांट पड़ती तो वह कहती, ‘‘मैं क्या करूं, अमान मानता ही नहीं.’’

फिर अमान को 2-4 थप्पड़ पड़ जाते. आया गुस्से में उसे घसीट कर स्नानघर ले जाती और गुस्से में नहलातीधुलाती. नन्हा सा अमान भी अब इन सब बातों का अभ्यस्त हो गया था. उस पर अब मारपीट का असर नहीं होता था. वह चुपचाप सब सहता रहता. बातबात में जिद करता, रोता, फिर चुपचाप अपने कमरे में जा कर बैठ जाता क्योंकि बैठक में जाने की उस को इजाजत नहीं थी. पहली बात तो यह थी कि वहां सजावट की इतनी वस्तुएं थीं कि उन के टूटनेफूटने का डर रहता और दूसरे, मेहमान भी आते ही रहते थे. उन के सामने जाने की उसे मनाही थी.

जब मां को पता चलता कि अमान दादी के पास चला गया है तो वे उन के पास लड़ने पहुंच जातीं, ‘‘मांजी, आप के लाड़प्यार ने ही इसे बिगाड़ रखा है, जिद्दी हो गया है, किसी की बात नहीं सुनता. इस का खाना पड़ा रहता है, खाता नहीं. आप इस से दूर ही रहें, तो अच्छा है.’’

सास समझाने की कोशिश करतीं, ‘‘बहू, बच्चे तो फूल होते हैं, इन्हें तो जितने प्यार से सींचोगी उतने ही पनपेंगे, मारनेपीटने से तो इन का विकास ही रुक जाएगा. तुम दिनभर कामकाज में बाहर रहती हो तो मैं ही संभाल लेती हूं. आखिर हमारा ही तो खून है, इकलौता पोता है, हमारा भी तो इस पर कुछ अधिकार है.’’ कभी तो मां चुप  हो जातीं और कभी दादी चुपचाप सब सुन लेतीं. पिताजी रात को देर से लड़खड़ाते हुए घर लौटते और फिर वही पतिपत्नी की झड़प हो जाती. अमान डर के मारे बिस्तर में आंख बंद किए पड़ा रहता कि कहीं मातापिता के गुस्से की चपेट में वह भी न आ जाए. उस का मन होता कि मातापिता से कहे कि वे दोनों प्यार से रहें और उसे भी खूब प्यार करें तो कितना मजा आए. वह हमेशा लाड़प्यार को तरसता रहता.

इसी प्रकार एक वर्र्ष बीत गया और अमान का स्कूल में ऐडमिशन करा दिया गया. पहले तो वह स्कूल के नाम से ही बहुत डरा, मानो किसी जेलखाने में पकड़ कर ले जाया जा रहा हो. परंतु 1-2 दिन जाने के बाद ही उसे वहां बहुत आनंद आने लगा. घर से तैयार कर, टिफिन ले कर, पिताजी उसे स्कूटर से स्कूल छोड़ने जाते. यह अमान के लिए नया अनुभव था. स्कूल में उसे हमउम्र बच्चों के साथ खेलने में आनंद आता. क्लास में तरहतरह के खिलौने खेलने को मिलते. टीचर भी कविता, गाना सिखातीं, उस में भी अमान को आनंद आने लगा. दोपहर को आया लेने आ जाती और उस के मचलने पर टौफी, बिस्कुट इत्यादि दिला देती. घर जा कर खूब भूख लगती तो दादी के हाथ से खाना खा कर सो जाता. दिन आराम से कटने लगे. परंतु मातापिता की लड़ाई, मारपीट बढ़ने लगी, एक दिन रात में उन की खूब जोर से लड़ाई होती रही. जब सुबह अमान उठा तो उसे आया से पता चला कि मां नहीं हैं, आधी रात में ही घर छोड़ कर कहीं चली गई हैं.

पहले तो अमान ने राहत सी महसूस की कि चलो, रोज की मारपीट  और उन के कड़े अनुशासन से तो छुट्टी मिली, परंतु फिर उसे मां की याद आने लगी और उस ने रोना शुरू कर दिया. तभी पिताजी उठे और प्यार से उसे गोदी में बैठा कर धीरेधीरे फुसलाने लगे, ‘‘हम अपने बेटे को चिडि़याघर घुमाने ले जाएंगे, खूब सारी टौफी, आइसक्रीम और खिलौने दिलाएंगे.’’  पिता की कमजोरी का लाभ उठा कर अमान ने और जोरों से ‘मां, मां,’ कह कर रोना शुरू कर दिया. उसे खातिर करवाने में बहुत मजा आ रहा था, सब उसे प्यार से समझाबुझा रहे थे. तब पिताजी उसे दादी के पास ले गए. बोले, ‘‘मांजी, अब इस बिन मां के बच्चे को आप ही संभालिए. सुबहशाम तो मैं घर में रहूंगा ही, दिन में आया आप की मदद करेगी.’’ अंधे को क्या चाहिए, दो आंखें, दादी, पोता दोनों प्रसन्न हो गए.

नए प्रबंध से अमान बहुत ही खुश था. वह खूब खेलता, खाता, मस्ती करता, कोई बोलने, टोकने वाला तो था नहीं, पिताजी रोज नएनए खिलौने ला कर देते, कभीकभी छुट्टी के दिन घुमानेफिराने भी ले जाते. अब कोई उसे डांटता भी नहीं था. स्कूल में एक दिन छुट्टी के समय उस की मां आ गईं. उन्होंने अमान को बहुत प्यार किया और बोलीं, ‘‘बेटा, आज तेरा जन्मदिन है.’’ फिर प्रिंसिपल से इजाजत ले कर उसे अपने साथ घुमाने ले गईं. उसे आइसक्रीम और केक खिलाया, टैडीबियर खिलौना भी दिया. फिर घर के बाहर छोड़ गईं. जब अमान दोनों हाथभरे हुए हंसताकूदता घर में घुसा तो वहां कुहराम मचा हुआ था. आया को खूब डांट पड़ रही थी. पिताजी भी औफिस से आ गए थे, पुलिस में जाने की बात हो रही थी. यह सब देख अमान एकदम डर गया कि क्या हो गया.

पिताजी ने गुस्से में आगे बढ़ कर उसे 2-4 थप्पड़ जड़ दिए और गरज कर बोले, ‘‘बोल बदमाश, कहां गया था? बिना हम से पूछे उस डायन के साथ क्यों गया? वह ले कर तुझे उड़ जाती तो क्या होता?’’ दादी ने उसे छुड़ाया और गोद में छिपा लिया. हाथ का सारा सामान गिर कर बिखर गया. जब खिलौना उठाने को वह बढ़ा तो पिता फिर गरजे, ‘‘फेंक दो कूड़े में सब सामान. खबरदार, जो इसे हाथ लगाया तो…’’  वह भौचक्का सा खड़ा था. उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या? क्यों पिताजी इतने नाराज हैं?

2 दिनों बाद दादी ने रोतरोते उस का सामान और नए कपड़े अटैची में रखे. अमान ने सुना कि पिताजी के साथ वह दार्जिलिंग जा रहा है. वह रेल में बैठ कर घूमने जा रहा था, इसलिए खूब खुश था. उस ने दादी को समझाया, ‘‘क्यों रोती हो, घूमने ही तो जा रहा हूं. 3-4 दिनों में लौट आऊंगा.’’ दार्जिलिंग पहुंच कर अमान के पिता अपने मित्र रमेश के घर गए. दूसरे दिन उन्हीं के साथ वे एक स्कूल में गए. वहां अमान से कुछ सवाल पूछे गए और टैस्ट लिया गया. वह सब तो उसे आता ही था, झटझट सब बता दिया. तब वहां के एक रोबीले अंगरेज ने उस की पीठ थपथपाई और कहा, ‘‘बहुत अच्छे.’’ और टौफी खाने को दी. परंतु अमान को वहां कुछ अच्छा नहीं लग रहा था. वह घर चलने की जिद करने लगा. उसे महसूस हुआ कि यहां जरूर कुछ साजिश चल रही है. उस के पिताजी कितनी देर तक न जाने क्याक्या कागजों पर लिखते रहे, फिर उन्होंने ढेर सारे रुपए निकाल कर दिए. तब एक व्यक्ति ने उन्हें स्कूल और होस्टल घुमा कर दिखाया. पर अमान का दिल वहां घबरा रहा था. उस का मन आशंकित हो उठा कि जरूर कोई गड़बड़ है. उस ने अपने पिता का हाथ जोर से पकड़ लिया और घर चलने के लिए रोने लगा.

शाम को पिताजी उसे माल रोड पर घुमाने ले गए. छोटे घोड़े पर चढ़ा कर घुमाया और बहुत प्यार किया, फिर वहीं बैंच पर बैठ कर उसे खूब समझाते रहे, ‘‘बेटा, तुम्हारी मां वही कहानी वाली राक्षसी है जो बच्चों का खून पी जाती है, हाथपैर तोड़ कर मार डालती है, इसलिए तो हम लोगों ने उसे घर से निकाल दिया है. उस दिन वह स्कूल से जब तुम्हें उड़ा कर ले गई थी, तब हम सब परेशान हो गए थे. इसलिए वह यदि आए भी तो कभी भूल कर भी उस के साथ मत जाना. ऊपर से देखने में वह सुंदर लगती है, पर अकेले में राक्षसी बन जाती है.’’ अमान डर से कांपने लगा. बोला, ‘‘पिताजी, मैं अब कभी उन के साथ नहीं जाऊंगा.’’ दूसरे दिन सवेरे 8 बजे ही पिताजी उसे बड़े से गेट वाले जेलखाने जैसे होस्टल में छोड़ कर चले गए. वह रोता, चिल्लाता हुआ उन के पीछेपीछे भागा. परंतु एक मोटे दरबान ने उसे जोर से पकड़ लिया और अंदर खींच कर ले गया. वहां एक बूढ़ी औरत बैठी थी. उस ने उसे गोदी में बैठा कर प्यार से चुप कराया, बहुत सारे बच्चों को बुला कर मिलाया, ‘‘देखो, तुम्हारे इतने सारे साथी हैं. इन के साथ रहो, अब इसी को अपना घर समझो, मातापिता नहीं हैं तो क्या हुआ, हम यहां तुम्हारी देखभाल करने को हैं न.’’ अमान चुप हो गया. उस का दिल जोरजोर से धड़क रहा था. फिर उसे उस का बिस्तर दिखाया गया, सारा सामान अटैची से निकाल कर एक छोटी सी अलमारी में रख दिया गया. उसी कमरे में और बहुत सारे बैड पासपास लगे थे. बहुत सारे उसी की उम्र के बच्चे स्कूल जाने को तैयार हो रहे थे. उसे भी एक आया ने मदद कर तैयार कर दिया.

फिर घंटी बजी तो सभी बच्चे एक तरफ जाने लगे. एक बच्चे ने उस का हाथ पकड़ कर कहा, ‘‘चलो, नाश्ते की घंटी बजी है.’’ अमान यंत्रवत चला गया, पर उस से एक कौर भी न निगला गया. उसे दादी का प्यार से कहानी सुनाना, खाना खिलाना याद आ रहा था. उसे पिता से घृणा हो गई क्योंकि वे उसे जबरदस्ती, धोखे से यहां छोड़ कर चले गए. वह सोचने लगा कि कोई उसे प्यार नहीं करता. दादी ने भी न तो रोका और न ही पिताजी को समझाया. वह ऊपर से मशीन की तरह सब काम समय से कर रहा था पर उस के दिल पर तो मानो पहाड़ जैसा बोझ पड़ा हुआ था. लाचार था वह, कई दिनों तक गुमसुम रहा. चुपचाप रात में सुबकता रहा. फिर धीरेधीरे इस जीवन की आदत सी पड़ गई. कई बच्चों से जानपहचान और कइयों से दोस्ती भी हो गई. वह भी उन्हीं की तरह खाने और पढ़ने लग गया. धीरेधीरे उसे वहां अच्छा लगने लगा. वह कुछ अधिक समझदार भी होने लगा. इसी प्रकार 1 वर्ष बीत गया. वह अब घर को भूलने सा लगा था. पिता की याद भी धुंधली पड़ रही थी कि एक दिन अचानक ही पिं्रसिपल साहब ने उसे अपने औफिस में बुलाया. वहां 2 पुलिस वाले बैठे थे, एक महिला पुलिस वाली तथा दूसरा बड़ी मूंछों वाला मोटा सा पुलिस का आदमी. उन्हें देखते ही अमान भय से कांपने लगा कि उस ने तो कोई चोरी नहीं की, फिर क्यों पुलिस पकड़ने आ गई है.

वह वहां से भागने ही जा रहा था कि प्रिंसिपल साहब ने प्यार से उस की पीठ सहलाई और कहा, ‘‘बेटा, डरो नहीं, ये लोग तुम्हें तुम्हारे मातापिता के  पास ले जाएंगे. तुम्हें कुछ भी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे. इन के पास कोर्ट का और्डर है. हम अब कुछ भी नहीं कर सकते, तुम्हें जाना ही पड़ेगा.’’ अमान ने रोतेरोते कहा, ‘‘मेरे पिताजी को बुलाइए, मैं इन के साथ नहीं जाऊंगा.’’ तब उस पुलिस वाली महिला ने उसे प्यार से गोदी में बैठा कर कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे पिताजी की तबीयत ठीक नहीं है, तभी तो उन्होंने हमें लेने भेजा है. तुम बिलकुल भी डरो मत, हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे. पर यदि नहीं जाओगे तो हम तुम्हें जबरदस्ती ले जाएंगे.’’ उस ने बचाव के लिए चारों तरफ देखा, पर कहीं से सहारा न पा, चुपचाप उन के साथ जाने को तैयार हो गया. होस्टल की आंटी उस का सामान ले आई थी.  कलकत्ता पहुंच कर पुलिस वाली आंटी अमान के बारबार कहने पर भी उसे पिता और दादी के पास नहीं ले गई. उस का मन भयभीत था कि क्या मामला है? रात को उन्होंने अपने घर पर ही उसे प्यार से रखा. दूसरे दिन पुलिस की जीप में बैठा कर एक बड़ी सी इमारत, जिस को लोग कोर्ट कह रहे थे, वहां ले गई. वहां उस के मातापिता दोनों दूरदूर बैठे थे और काले चोगे पहने बहुत से आदमी चारों तरफ घूम रहे थे. अमान सहमासहमा बैठा रहा. वह कुछ भी समझ नहीं पा रहा था कि यह सब क्या हो रहा है? फिर ऊंची कुरसी पर सफेद बालों वाले बड़ी उम्र के अंकल, जिन को लोग जज कह रहे थे, ने रोबदार आवाज में हुक्म दिया, ‘‘इस बच्चे यानी अमान को इस की मां को सौंप दिया जाए.’’

पुलिस वाली आंटी, जो उसे दार्जिलिंग से साथ लाई थी, उस का हाथ पकड़ कर ले गई और उसे मां को दे दिया. मां ने तुरंत उसे गोद में उठाया और प्यार करने लगीं. पहले तो उन का प्यारभरा स्पर्श अमान को बहुत ही भाया. परंतु तुरंत ही उसे पिता की राक्षसी वाली बात याद आ गई. तब उसे सचमुच ही लगने लगा कि मां जरूर ही एक राक्षसी है, अभी तो चख रही है, फिर अकेले में उसे खा जाएगी. वह घबरा कर चीखचीख कर रोने लगा, ‘‘मैं इस के साथ नहीं रहूंगा, यह मुझे मार डालेगी. मुझे पिताजी और दादी के साथ अपने घर जाना है. छोड़ दो मुझे, छोड़ो.’’ यह कहतेकहते डर से वह बेहोश हो गया. जब उस के पिता उसे लेने को आगे बढ़े तो उन्हें पुलिस ने रोक दिया, ‘‘कोर्ट के फैसले के विरुद्ध आप बच्चे को नहीं ले जा सकते, इसे हाथ भी न लगाएं.’’तब पिता ने गरज कर कहा, ‘‘यह अन्याय है, बच्चे पर अत्याचार है, आप लोग देख रहे हैं कि बच्चा अपनी मां के पास नहीं जाना चाहता. रोरो कर बेचारा अचेत हो गया है. आप लोग ऐसे नहीं मानेंगे तो मैं उच्च न्यायालय में याचिका दायर करूंगा. बच्चा मुझे ही मिलना चाहिए.’’ जज साहब ने नया फैसला सुनाया, ‘‘जब तक उच्च न्यायालय का फैसला नहीं होता है, तब तक बच्चा पुलिस की संरक्षण में ही रहेगा.’’

4 वर्ष का बेचारा अमान अकेला घर वालों से दूर अलग एक नए वातावरण में चारों तरफ पुलिस वालों के बीच भयभीत सहमासहमा रह रहा था. उसे वहां किसी प्रकार की तकलीफ नहीं थी. खाने को मिलता, पर कुछ खाया ही न जाता. टीवी, जिसे देखने को पहले वह सदा तरसता रहता था, वहां देखने को मिलता, पर कुछ भी देखने का जी ही न चाहता. उसे दुनिया में सब से घृणा हो गई. वह जीना नहीं चाहता था. उस ने कई बार वहां से भागने का प्रयत्न भी किया, पर बारबार पकड़ लिया गया. उस का चेहरा मुरझाता जा रहा था, हालत दयनीय हो गई थी. पर अब कुछकुछ बातें उस की समझ में आने लगी थीं. करीब महीनेभर बाद अमान को नहलाधुला कर अच्छे कपड़े पहना कर जीप में बैठा कर एक नए बड़े न्यायालय में ले जाया गया. वहां उस के मातापिता पहले की तरह ही दूरदूर बैठे हुए थे. चारों तरफ पुलिस वाले और काले कोट वाले वकील घूम रहे थे. पहले के समान ही ऊंची कुरसी पर जज साहब बैठे हुए थे.

पहले पिता के वकील ने खड़े हो कर लंबा किस्सा सुनाया. अमान के मातापिता, जो अलगअलग कठघरे में खड़े थे, से भी बहुत सारे सवाल पूछे. फिर दूसरे वकील ने भी, जो मां की तरफ से बहस कर रहा था, उस का नाम ‘अमान, अमान’ लेले कर उसे मां को देने की बात कही. अमान को समझ ही नहीं आ रहा था कि मातापिता के झगड़े में उस का क्या दोष है. आखिर में जज साहब ने अमान को कठघरे में बुलाया. वह भयभीत था कि न जाने अब उस के साथ क्या होने वाला है. उसे भी मातापिता की तरह गीता छू कर कसम खानी पड़ी कि वह सच बोलेगा, सच के सिवा कुछ भी नहीं बोलेगा. जज साहब ने उस से प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, सोचसमझ कर सचसच बताना कि तुम किस के पास रहना चाहते हो… अपने पिता के या मां?’’ सब की नजरें उस के मुख पर ही लगी थीं. पर वह चुपचाप सोच रहा था. उस ने किसी की तरफ नहीं देखा, सिर झुकाए खड़ा रहा. तब यही प्रश्न 2-3 बार उस से पूछा गया तो उस ने रोष से चिल्ला कर उत्तर दिया, ‘‘मुझे किसी के भी साथ नहीं रहना, कोई मेरा अपना नहीं है, मुझे अकेला छोड़ दो, मुझे सब से नफरत है.’’

मैं पिछले कई वर्षों से सिगरेट पी रहा हूं, क्या मुझे मुंह का कैंसर होने की संभावना है?

सवाल

मैं पिछले कई वर्षों से तंबाकू का सेवन और सिगरेट पीता रहा हूं. अब मैं मुंह का कैंसर होने की आशंका से चिंतित हूं?

जवाब

सिगरेट पीना मुंह के कैंसर की एक वजह है, लेकिन तंबाकू खाना सिगरेट पीने से कहीं ज्यादा हानिकारक है. तंबाकू की आदत मजदूरों में ज्यादा होती है, जो इस का इस्तेमाल न केवल नशे के लिए करते हैं, बल्कि नींद भगाने या भूख को दबाने अथवा अच्छा महसूस करने के लिए भी करते है यह हानिकारक है. इस की वजह से मुंह का कैंसर हो सकता है, जिस से मुंह में गंभीर विरूपण आ सकता है और बड़ी सर्जरी करानी पड़ सकती है. आप के सवाल के जवाब में मुंह के कैंसर के निम्न सामान्य लक्षण प्रस्तुत हैं:

– तंबाकू का सेवन करने वालों को हर 2-3 महीने में अच्छी रोशनी में अपने मुंह की खुद जांच करने की आदत डालनी चाहिए. रंगों में किसी तरह के बदलाव या किसी तरह की असामान्यता तलाशनी चाहिए.

– होंठों, मसूड़ों या मुंह के अंदर किसी भी हिस्से में सूजन, गांठ, पपड़ी या कटा क्षेत्र नजर आए तो यह चेतावनी का संकेत है.

– अगर लंबे समय से अल्सर ठीक नहीं हो रहा हो, तो तत्काल डाक्टर को दिखाना चाहिए. जरूरत पड़ने पर बायोप्सी करानी चाहिए.

– मुंह के म्यूकोसा में पैच या मखमली सफेद या लाल धब्बे दिखना.

– मुंह से अनायास या रुकरुक कर खून आना.

– चेहरे या मुंह के किसी भी हिस्से की अचानक संवेदनशीलता खत्म होना.

– मुंह में लगातार घाव होना, जिस से अकसर खून निकलता हो और 2 हफ्तों तक भी ठीक न हो.

– गले में जकड़न महसूस होना.

– चबाने, निगलने, बोलने, जबड़ों या जीभ को घुमाने में कठिनाई महसूस होना.

– आवाज बैठना, गले में क्रौनिक खराश या आवाज में बदलाव.

– दांतों के मिलने या उन के आपस में फिट होने के तरीके में बदलाव.

अगर आप को इन में से कोई भी बदलाव नजर आए, तो तत्काल डैंटल सर्जन से संपर्क करना चाहिए.

औरत एक पहेली

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आज की युवा पीढ़ी : माता-पिता बन रहे हैं दोस्त

‘‘बात जब युवा पीढ़ी की हो तो मेरा मन अनकही ऊर्जा से भर उठता है. अपने युवा बच्चों के साथ समय बिताना मेरा सब से प्रिय काम है. मैं उन की हर बात पर ध्यान देती हूं, उन्हें क्या अच्छा लगता है और क्या बुरा, सब पर ध्यान जाता है मेरा.’’ एक मां का कहना है.

आज की युवा पीढ़ी पुराने समय की युवा पीढ़ी से अत्यधिक जागरूक, समझदार और परिपक्व है. इस का सारा श्रेय आज की टैक्नोलौजी को जाता है. इंटरनैट ने उन की ज्ञान की बढ़ोतरी में बहुत सहयोग दिया है. उन की सोच अपने मातापिता के लिए भी बहुत बदल गई है. वे उन्हें भी अपने जमाने के अनुसार ढालने में उन की जीवनशैली में बदलाव लाने में पूरी कोशिश करते हैं. शिक्षित होने के कारण पहले से अधिक स्वावलंबी और स्वतंत्र हैं. लड़कियां भी अपने जीवनयापन के लिए किसी पर निर्भर नहीं हैं.

आज की युवा पीढ़ी के अपने मातापिता से दोस्ताना संबंध हैं. क्या आज की युवा पीढ़ी अपने मातापिता से सब बातें शेयर कर सकती है? इस विषय पर कई मांओं से चर्चा की गई. पूनम अहमद कहती हैं, ‘‘आज के युवा अपने मातापिता के साथ पिछली पीढ़ी की तुलना में अधिक मित्रवत हैं. मेरी बेटी हो या बेटा, दोनों मुझ से हर विषय पर काफी बातें कर सकते हैं. मैं भी उन से बात कर के उन के साथ समय बिता कर, काफी कुछ सीख सकी हूं.’’

हैदराबाद की लेखिका सुधा कसेरा का मानना भी यही है, ‘‘वे सब बातें शेयर करेंगे यदि मातापिता और बच्चों में दोस्ताना व्यवहार होगा.’’

इंदौर निवासी, 2 बेटियों की मां पूनम पाठक का कहना है, ‘‘युवा पीढ़ी को तैयार करने में हमारा भी पूरा सहयोग रहा है. यह बात सही है कि आज के भटके युवाओं को रास्ता दिखाना हमारा नैतिक कर्तव्य है, परंतु इस से पहले हमें ईमानदारी से अपने भीतर भी झांकना होगा कि क्या हम ने उन्हें वह सही माने में दिया है जिस की उम्मीद हम उन से कर रहे हैं. क्योंकि बच्चे वह नहीं सीखते जो हम सिखाते हैं, बल्कि हम जो रोजाना करते हैं वही वे सीखते हैं. वैसे भी आज के युवा जीवन की आधी से ज्यादा बातें टीवी, इंटरनैट और दोस्तों से सीखते हैं. जरूरी यही है कि हम उन्हें बचपन से ही सही व गलत में फर्क करना सिखाएं. तभी हम देश और दुनिया को एक बेहतर युवा दे पाएंगे.’’

कई बार प्रश्न यह भी उठता है कि क्या बच्चों के साथ सख्ती बरतनी चाहिए? इस बारे में सुधा कसेरा का कहना है, ‘‘आज की युवा पीढ़ी को आलोचनात्मक तरीके से न देख कर, सहयोगात्मक तरीके से ट्रीट करना होगा. आजकल भटकने के रास्ते बहुत हैं. युवा अधिकतर मातापिता से दूर रहते हैं, इसलिए उन की सीमाओं का मार्गदर्शन तो हमें ही करना है, और अगर हम ऐसा नहीं करेंगे या सख्ती करेंगे तो वे चोरीछिपे गलत काम करेंगे, इसलिए उन्हें सही व गलत की पहचान कराना  हमारा कर्तव्य है.’’

वहीं, अमिता का कहना है कि अपने बच्चों पर विश्वास व्यक्त करना बहुत जरूरी है. समयसमय पर अपने प्यार के साथसाथ उन्हें यह भी भरोसा दिलाना होगा कि हर कठिन वक्त में हम उन के साथ हैं.

सुधा कसेरा ने इस चर्चा को आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘आजकल युवा पीढ़ी पर संस्कारों से भी अधिक समाज के वातावरण का प्रभाव है. इसलिए हमारा कर्तव्य है कि उस की गतिविधियों पर चुपचाप नजर रखें. सही मार्गदर्शन के अभाव में ही इतने आत्महत्या के केस हो रहे हैं. युवा पीढ़ी आज बहुत कन्फ्यूज्ड और भावुक है. इसलिए मातापिता उन्हें भावनात्मक संबल दें, उन पर अपने विचार न थोपें. मातापिता उन की भावनाओं और इच्छाओं की कद्र करें. यदि उन की मांगें उचित नहीं हैं तो हमें उन को प्रताडि़त करने के स्थान पर उन्हें समझाना होगा.

‘‘आज माहौल कुछ बदला तो है. युवा पीढ़ी से बात करना अच्छा लगता है. वह काफी दृढ़ निश्चय और साहसी है. सुनहरे भविष्य के लिए युवाओं को खुले विशाल गगन में उड़ान भरने दें पर उन्हें इस बात का विश्वास हो कि वे गिरे तो मातापिता उन्हें संभाल लेंगे.’’

चेन्नई से रोचिका कहती हैं, ‘‘बच्चों पर विश्वास रखें पर उन की गतिविधियों को नजरअंदाज न करें क्योंकि वे जिस उम्र में हैं, उन्हें जानकारी तो है, पर तजरबा नहीं. मातापिता के पास तजरबा है, इसलिए वे बच्चों को टोकते हैं, जिसे वे दखलंदाजी समझते हैं.’’

युवाओं को मातापिता के मार्गदर्शन, विश्वास, भावनात्मक संबल की अधिक आवश्यकता है, तभी वे हमारी अपेक्षाओं पर खरे उतरेंगे, नहीं तो भटक कर इस दुनिया की भीड़ में खो जाएंगे.

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