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मेरे पति की अब सैक्स में रुचि नहीं रही है, वे मेरे करीब आना पसंद नहीं करते, मैं उन की रुचि फिर से सैक्स के प्रति कैसे बढ़ाऊं?

सवाल

मैं 26 साल की विवाहित युवती हूं. पति की उम्र 27 साल है. हमारी 3 महीने की बेटी है. समस्या यह है कि जब से मैं ने कंसीव किया था, पति की सैक्स में बिलकुल भी रुचि नहीं रही. तब मैं यह सोच कर चुप रही कि शायद मैं प्रैग्नैंट हूं इसलिए वे सैक्स संबंध बनाने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं. लेकिन अब डिलीवरी होने के बाद भी वे मेरे करीब आना पसंद नहीं करते हैं. आप ही बताएं कि मैं उन की रुचि फिर से सैक्स के प्रति कैसे बढ़ाऊं ओर कैसे डैवलप करूं?

जवाब
अकसर ऐसा होता है कि प्रैग्नैंसी के दौरान महिलाएं ऐक्स्ट्रा प्रीकौशन बरतने लगती हैं. वे पति को खुद के पास आने, और  छूने के लिए भी मना करने लगती हैं. उन्हें लगता है कि इस से उन के होने वाले बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है. नतीजतन पति खुद को काफी अकेला फील करने के कारण पत्नी से दूरी बना लेते हैं. वे सोचने लगते हैं कि अब आप उन से प्यार नहीं करतीं और यही दूरी धीरेधीरे बढ़ने लगती है.

ऐसे में  आप यदि अपने पति की रुचि फिर से जाग्रत करना चाहती हैं तो अपने बच्चे के साथसाथ पति पर भी पूरा ध्यान दें. उन की जरूरतों को नजरअंदाज न करें. खुद को पहले की तरह आकर्षक रखें और जब भी रोमांस के पल मिलें, खुद से पहल करें ताकि वे आप के करीब आने पर मजबूर हो जाएं. अगर फिर भी वे आप में रुचि न दिखाएं तो उन से इस विषय में खुल कर बात करें ताकि कोई मिसअंडरस्टैंडिंग न रहे.

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अपनी सैक्स लाइफ बनाएं पहले जैसी खुशहाल

विवेक कई दिनों से अपनी पत्नी आशु के साथ अंतरंग संबंध बनाना चाह रहा था, पर आशु कोई न कोई बहाना बना कर टाल देती. रोज की नानुकर से तंग आ कर एक दिन आखिर विवेक ने झल्लाते हुए आशु से कहा कि आशु, तुम्हें क्या हो गया है? मैं जब भी तुम्हें प्यार करना चाहूं, तुम कोई न कोई बहाना बना कर टाल देती हो. कम से कम खुल कर तो बताओ कि आखिर बात क्या है?

यह सुन कर आशु रोते हुए बोली कि ये सब करने का उस का मन नहीं करता और वैसे भी बच्चे तो हो ही गए हैं. अब इस सब की क्या जरूरत है?

यह सुन कर विवेक हैरान रह गया कि उस की बीवी की रुचि अंतरंग संबंध में बिलकुल खत्म हो गई है. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो गया जबकि उस की पत्नी पहले इस सब में बहुत रुचि लेती थी?

यह परेशानी सिर्फ विवेक की ही नहीं है, बल्कि ऐसे बहुत से पति हैं, जो मिडिल ऐज में आने पर या बच्चों के हो जाने पर इस तरह की समस्याओं से जूझते हैं.

कम क्यों हो जाती है दिलचस्पी

सैक्सोलौजिस्ट डा. बीर सिंह का कहना है कि कई बार पतिपत्नी के बीच प्यार में कोई कमी नहीं होती है, फिर भी उन के बीच सैक्स को ले कर समस्या खड़ी हो जाती है. विवाह के शुरू के बरसों में पतिपत्नी के बीच सैक्स संबंधों में जो गरमाहट होती है, वह धीरेधीरे कम हो जाती है. घरेलू जिम्मेदारियां बढ़ने के कारण सैक्स को ले कर उदासीनता आ जाती है. इस की वजह से आपस में दूरी बढ़ने लगती है. इस समस्या से बाहर आने के लिए पतिपत्नी को एकदूसरे से अपने सैक्स अनुभव शेयर करने चाहिए. अपनी सैक्स अपेक्षाओं पर खुल कर बात करनी चाहिए. इस के अलावा उन कारणों को भी ढूंढ़ें जिन की वजह से साथी सैक्स में रुचि नहीं लेता, फिर उन्हें दूर करने की कोशिश करें. ये कारण हर कपल के अलगअलग होंगे. आप को बस उन्हें दूर करना है, तब आप की सैक्स लाइफ फिर से पहले जैसी खुशहाल हो जाएगी.

यह भी एक कारण

उम्र बढ़ने के साथसाथ एक स्त्री कामक्रीड़ा में पहले जैसी दिलचस्पी क्यों नहीं लेती है? अमेरिका में चिकित्सकों और शोधकर्ताओं की पूरी टीम इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने में जुट गई. इस में एक अहम जानकारी सामने आई, जो निश्चित तौर पर एक स्त्री की सैक्स संबंधी दिलचस्पी की पड़ताल करती है. दरअसल, यह सवाल स्त्री की उम्र और सैक्स के रिश्ते से जुड़ा है. कई लोग मानते हैं कि स्त्री की उम्र उस की सैक्स संबंधी दिलचस्पी पर काफी असर डालती है. यह माना जाता है कि उम्र बढ़ने के साथसाथ एक स्त्री कामक्रीड़ा में पहले जैसी दिलचस्पी नहीं लेती.

हालांकि शोध से यह बात साफ हो गई कि मध्य आयुवर्ग की महिलाओं में संभोग के प्रति दिलचस्पी होना अथवा न होना सिर्फ बढ़ती उम्र पर निर्भर नहीं करता. यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन के लाइफपार्टनर का स्वास्थ्य कैसा है? और सैक्स संबंधी गतिविधियों में वे कितनी रुचि लेते हैं.

भावनात्मक कारण

आम धारणा के विपरीत शोध में यह पाया गया कि मध्य आयु में भी महिलाएं न सिर्फ सैक्सुअली सक्रिय होती हैं, बल्कि कई मामलों में उन की दिलचस्पी बढ़ती हुई नजर आई. शोध के दौरान जब यह जानने की कोशिश की गई कि जो महिलाएं सैक्स में सक्रिय नहीं हैं उस के पीछे क्या वजह है तो पता चला कि कई भावनात्मक कारणों से उन की सैक्स और अपने पार्टनर में दिलचस्पी खत्म हो चुकी होती है. पार्टनर में दिलचस्पी घटना या किसी प्रकार की अक्षमता का सीधा असर महिलाओं की यौन सक्रियता पर पड़ता है. ऐसी भी महिलाएं हैं, जिन की सैक्स में दिलचस्पी खत्म होने की और भी वजहें हैं. मगर उन की संख्या कम है.

उम्र से नहीं है कोई संबंध

इस शोध में मध्य आयुवर्ग की सैक्स संबंधी हर दिलचस्पी को शामिल किया गया था, जिस में हस्तमैथुन भी शामिल था. शोध के दौरान महिलाओं का एक बड़ा वर्ग सैक्सुअल ऐक्टिविटीज में उम्र बढ़ने के साथ ज्यादा सक्रिय होता पाया गया. शोध से यह स्पष्ट सामने आया कि किसी भी स्त्री की सैक्स संबंधी सक्रियता का उस की उम्र से कोई सीधा संबंध नहीं है. इस आधार पर मनोवैज्ञानिकों और सैक्स सलाहकारों ने कुछ कारण और सुझाव भी रखे:

– ध्यान दें कि आप का पार्टनर किसी दवा के साइड इफैक्ट की वजह से भी सैक्स में दिलचस्पी खो सकता है. यदि ऐसा है तो डाक्टर से सलाह लें.

– कई महिलाएं मानसिक दबाव के चलते भी सैक्स में रुचि नहीं लेतीं.

– बच्चों में ज्यादा व्यस्त हो जाने और सामाजिक मान्यताओं के चलते महिलाओं को लगता है कि सैक्स में बहुत दिलचस्पी लेना उचित नहीं है.

– कई बार बच्चों के हो जाने के बाद महिलाएं अपने शरीर को ले कर असहज हो जाती हैं और हीनभावना का शिकार हो जाती हैं. इस के चलते भी वे सैक्स से जी चुराने लगती हैं.

– बढ़ती उम्र में घरपरिवार और कामकाज की बढ़ती जिम्मेदारियों के कारण वे थकने लगती हैं और सैक्स के लिए उन में पर्याप्त ऐनर्जी नहीं बचती.

– कई महिलाएं अपने पति के साथ एकांत चाहती हैं और ऐसा न होने पर सैक्स के प्रति उन की रुचि घटने लगती है.

– अगर पतिपत्नी के बीच तनाव रहता है और रिश्ता आपस में सही नहीं है तो इस से भी सैक्स लाइफ पर विपरीत असर पड़ता है.

गाइनोकोलौजिस्ट, डाक्टर अंजली वैश के अनुसार कुछ बीमारियां भी होती हैं, जिन की वजह से सैक्स में रुचि कम हो जाती है. ड्रग्स, शराब, धूम्रपान का सेवन करने से भी सैक्स में रुचि कम हो जाती है, डाइबिटीज की बीमारी भी महिलाओं में सैक्स ड्राइव को घटाती है, गर्भावस्था के दौरान और उस के बाद हारमोन चेंज के कारण सैक्स में महिला कम रुचि लेती है, अगर डिप्रैशन की समस्या हो तो हर समय अवसाद में डूबी रहती हैं. वे ऊटपटांग बातें सोचने में ही अपनी सारी ऐनर्जी लगा देती हैं. सैक्स के बारे में सोचने का टाइम ही नहीं मिलता है.

कई महिलाएं बहुत मोटी हो जाती हैं. मोटापे के कारण सैक्स करने में उन्हें काफी दिक्कत होती है. अत: वे सैक्स से बचने लगती हैं.

दवा भी कम जिम्मेदार नहीं

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, कई ऐसी दवाएं हैं जिन से सैक्स लाइफ पर असर पड़ता है. सैक्स के लिए जरूरी हारमोंस शरीर की जरूरत व संदेशों को मस्तिष्क तक पहुंचाने वाले तत्त्व डोपामाइन व सैरोटोनिन और सैक्स अंगों के बीच तालमेल बहुत जरूरी होता है. डोपामाइन सैक्स क्रिया को बढ़ाता है और सैरोटोनिन उसे कम करता है. जब दवाएं इन हारमोंस के स्तर में बदलाव लाती हैं तो कामेच्छा में कमी आती है. पेनकिलर, अस्थमा, अल्सर की दवा, हाई ब्लडप्रैशर और हारमोन संबंधी दवा से कामेच्छा में कमी हो सकती है.

मगर यह जरूरी नहीं कि आप की सैक्स लाइफ में अरुचि सिर्फ दवा की वजह से ही हो. इसलिए अगर आप को अपनी सैक्स लाइफ में बदलाव महसूस हो रहा है, तो दवा बंद करने से पहले चिकित्सक की सलाह जरूर लें.

सैक्स में रुचि कैसे पैदा करें

सैक्स में जरूरी है मसाज: जब आप पार्टनर के नाजुक अंगों पर हाथों से हौलेहौले तेल लगा कर मसाज करेंगे तो यह उस के लिए बिलकुल नया अनुभव होगा. तेल आप के और पार्टनर के बीच जो घर्षण पैदा करता है उस से प्यार में बढ़ोतरी होती है और सैक्स की इच्छा जाग उठती है. मसाज एक ऐसी थेरैपी है, जिस से न सिर्फ शरीर को आराम मिलता है, बल्कि अपनी बोरिंग सैक्स लाइफ को भी फिर से पहले जैसी बना सकती हैं.

ऐक्सपैरिमैंट कर सकते हैं: अगर आप का पार्टनर सैक्सुअल ऐक्सपैरिमैंट नहीं करता है या ऐक्सपैरिमैंट करने से बचता है तो फेंटैसी की दुनिया में आप का स्वागत है. अगर आप सैक्स के बारे में अच्छी फेंटैसी कर सकती हैं तो अपने बैडरूम से बाहर निकले बिना आप अपने पार्टनर के साथ जंगल में मंगल कर सकती हैं. आप अपने पार्टनर के साथ जो चाहती हैं उसे फेंटैसी के जरीए महसूस करिए. आप की अपने पार्टनर से सारी शिकायतें दूर हो जाएंगी, क्योंकि आप का पार्टनर आप को खयालों में जो मिल गया है.

बारबार हनीमून मनाएं: सैक्स संबंधों में बोरियत न हो, इस के लिए पतिपत्नी को चाहिए कि हर साल वे हनीमून पर जाएं और इसे वे आपस में घूमने जाना न कह कर हनीमून पर जाना कहें. इस से उन के बीच ऐक्साइटमैंट बना रहता है. जब हनीमून पर जाएं तो एकदूसरे को वहां पहली बार बिताए लमहे याद दिलाएं. इस तरह घूमने और हनीमून के बारे में बात करने पर सैक्स संबंधों की याददाश्त ताजा हो जाएगी.

सैक्स में नयापन लाएं: कहीं ऐसा तो नहीं कि आप के सैक्स करने का एक ही तरीका हो और उस तरीके से आप की पत्नी बोर हो गई हो? अत: उस से इस विषय पर बात करें और सैक्स करने के परंपरागत तरीके छोड़ कर नएनए तरीके अपनाएं. इस से सैक्स संबंधों में एक नयापन आ जाएगा.

अपने साथी को समय दें: शादी के कुछ सालों बाद कुछ जोड़ों को लगता है कि सहवास में उन की रुचि कम होती जा रही है. सहवास उन्हें एक डेली रूटीन जैसा उबाऊ कार्य लगता है. इसलिए सहवास को डेली रूटीन की तरह न लें, बल्कि उसे पूरी तरह ऐंजौय करें. रोज करने के बजाय हफ्ते में भले ही 1 बार करें लेकिन उसे खुल कर जीएं और अपने पार्टनर को एहसास दिलाएं कि ऐसा करना और उस के साथ होना आप के लिए कितना खास है.

सैक्स ऐसा जिसे दोनों ऐंजौय करें: सिर्फ आप अपने मन की बात ही पार्टनर पर न थोपते रहें, बल्कि सैक्स में उस की इच्छा भी जानें और उस का सम्मान करें. जिन तरीकों में आप दोनों कंफर्टेबल हों और ऐंजौय कर सकें, उन्हें अपनाएं.

नियमित करें सैक्स: यह सच है कि तनाव और थकान का पतिपत्नी के यौन जीवन पर बुरा असर पड़ता है. मगर वहीं यह भी सच है कि सैक्स ही आप के जीवन में पैदा होने वाले दबावों और परेशानियों से जूझने का टौनिक बनता है. इसलिए कोशिश करें कि सप्ताह में कम से कम 3 बार संबंध जरूर बनाएं. इस से सैक्स लाइफ में मधुरता बनी रहेगी.

एकदूसरे के प्रति प्यार को बढ़ावा दें : अधिकतर जोड़ों के शादी के बाद कुछ सालों तक संबंध अच्छे रहते हैं, लेकिन जैसेजैसे समय बीतता जाता है वैसे काम व अन्य कारणों से उन के बीच दूरी बढ़ती जाती है, जिस से उन्हें आपस में प्यार करने का मौका नहीं मिलता. इस से उन के बीच सैक्स संबंधों में खटास आने लगती है. वैवाहिक जीवन में उत्पन्न हुई इस तरह की समस्याओं से बचने के लिए आवश्यक है कि पतिपत्नी आपस में बातचीत करने के लिए कुछ समय निकालें. एकदूसरे से अच्छी बातें करें और एकदूसरे की बातों को सुनें, शिकायतों को दूर करने की कोशिश करें. एकदूसरे का सम्मान करें, इस से सैक्स लाइफ भी काफी बेहतर होगी.

पहल करें: अकसर महिलाएं सैक्स के लिए पहल करने में हिचकिचाती हैं, इसलिए आप द्वारा पहल करने में कोई बुराई नहीं है, बल्कि आप का पहल करना महिला को सुखद एहसास में डुबो देता है. यदि बच्चे छोटे हैं तो सैक्स लाइफ में मुश्किलें तो आती ही हैं और महिलाएं इतनी खुली व रिलैक्स भी नहीं रह पातीं. ऐसे में बच्चों के सोने का इंतजार करने से अच्छा है कि जब मौका मिले प्यार में खो जाएं.

फिटनैस का भी खयाल रखें: अच्छी सैक्स लाइफ के लिए शारीरिक व मानसिक रूप से फिट रहना भी जरूरी है. इस के लिए बैलेंस्ड डाइट लें. थोड़ीबहुत ऐक्सरसाइज करें. भरपूर नींद लें. सिगरेट, शराब का सेवन न करें.

कल्पना करें: अगर आप को सैक्स करते समय किसी और पुरुष की या फिर किसी बौलीवुड ऐक्टर आदि की कल्पना उत्तेजित करती है और सैक्स का आनंद बढ़ाती है तो ऐसा करें. इस के लिए मन में किसी तरह का अपराधबोध न आने दें. ऐसा करना गलत नहीं है क्योंकि सब का सैक्स करने और उस के बारे में सोचने का तरीका अलग होता है.

फ्रैश मूड में आनंद उठाएं: अगर पतिपत्नी दोनों वर्किंग हैं, व्यस्त हैं, रात को देर से आते हैं, तो उन की सैक्स लाइफ न के बराबर होती है और महिला ऐसे में इसे बोझ की तरह लेती है. इसलिए अगर वह थकी हुई है तो जबरदस्ती न करें. सुबह उठ कर फ्रैश मूड में सैक्स का आनंद उठाएं.

गंदी बातें अच्छी हैं: सैक्स के लिए मूड बनाने के लिए कुछ भी किया जा सकता है. आप को लगता है कि कहीं आप की डर्टी टौक्स और डार्क फेंटैसी सुन कर पार्टनर का मूड न बिगड़ जाए, इसलिए आप चाहते हुए भी उन से यह सब शेयर नहीं करते हैं तो जान लें कि ऐसा नहीं है. सच तो यह है कि हर लड़की अपने पार्टनर से ऐसी बातें सुनने के लिए बेकरार रहती है. इसलिए बेझिझक उन से ऐसी बातें करें. जैसे ही आप की बातें शुरू होंगी उन की बेचैनी भी बढ़ती जाएगी.

सैक्स लाइफ का अंत नहीं है बच्चे का आना

अगर आप का मानना है कि बच्चे के आने के बाद सैक्स लाइफ खत्म हो जाती है तो जरा रुकिए. दुनिया भर में हो रही स्टडी के मुताबिक मां बनने के कुछ समय बाद कामेच्छा स्वाभाविक रूप से लौट आती है. आमतौर पर बच्चे के जन्म के 6 हफ्ते बाद डाक्टर महिलाओं को सैक्स संबंध बनाने की इजाजत दे देते हैं. लेकिन इतने समय में भी सब महिलाएं सहज नहीं हो पातीं. कई महिलाओं की सैक्स संबंध इच्छा को लौटने में साल भर तक का समय लग जाता है. शुरू में अंतरंग पलों के लिए समय निकालना मुश्किल होता है. लेकिन धीरेधीरे गाड़ी ट्रैक पर लौटने लगती है, इसलिए बच्चे का होना सैक्स पर पूर्णविराम नहीं है, बल्कि एक नई शुरुआत है.

रिसर्च बताती है कि बच्चों के जन्म के बाद क्लाइमैक्स की तीव्रता बढ़ जाती है. इस का कारण है नर्व एंडिंग का ज्यादा सैंसिटिव होना.

बनाएं पत्नी का मूड ऐसे

– महिलाओं की पीठ काफी सेंसिटिव होती है. थोड़ा सा अंधेरा कीजिए, म्यूजिक प्ले कीजिए और पत्नी की पीठ पर हौलेहौले हाथ फिराते हुए मसाज कीजिए. फिर आगे का जादू खुद ही चल जाएगा.

– पार्टनर के कानों से खेलिए और हौले से कुछ कहिए. एकदम से यह न कहें कि आप का करने का मन है.

– गले में गुदगुदी कीजिए. देखिएगा कुछ ही देर में पत्नी आंहें भर रही होगी.

– फुट मसाज दीजिए. पत्नी के पैरों को सहलाते हुए बताएं कि आप उन से कितना प्यार करते हैं. बस वह एकदम से आप को बांहों में भर लेगी और उस के लिए पत्नी का तुरंत मूड बन जाएगा.

सोने का घाव : मलीहा और अलीना के बीच क्या थी गलतफहमी?

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तेलंगाना : टमाटर की सुरक्षा में लगी पुलिस फोर्स

क्या आप ने कभी सोचा है कि टमाटर को भी सुरक्षा देनी पड़ेगी? अगर नहीं तो अब सोचिए क्योंकि बढ़ती महंगाई को देखते हुए अब टमाटर भी सिक्योरिटी में रहता है क्योंकि टमाटर के दाम में कोई कमी आती नहीं दिख रही. कीमत क्या बढ़ी टमाटर मानो सोना हो गया है. बाजारा में हाहाकार मचा है. सड़क पर ऐक्सीडैंट के बाद पुलिस टमाटर को सुरक्षा दे रही है.

मामला क्या है?

दरअसल, मामला तेलंगाना का है, जहां सड़क पर टमाटर से भरा ट्रक पलट गया और लोग टमाटर को लूटने न आएं या कहीं टमाटर चोरी न हो जाए इस के लिए सुरक्षा दी गई।

महंगाई और मामले की गंभीरता को देखते हुए पुलिस ने टमाटर को प्रोटैक्ट किया और सुरक्षा में लगाई गई पुलिस फोर्स क्योंकि आजकल टमाटर की कीमत बढ़ने से टमाटर सोनेचांदी सा प्रतीत हो रहा है.

टमाटर का अपहरण

इस से पहले भी तमिलनाडु में एक दंपति को हादसे का नाटक कर ढाई टन टमाटर से लदे ट्रक का अपहरण करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.

दरअसल, तेलंगाना में जब टमाटर से भरा हुआ ट्रक सड़क पर पलटा, तो कहीं टमाटर चोरी न हो इस के डर से ही ट्रक मालिक ने पुलिस से संपर्क किया और पुलिस से सुरक्षा की अपील की. मालिक की गुहार पर पुलिसकर्मी घटनास्थल पर भेजे गए और उन्हीं की निगरानी में टमाटर इकट्ठे किए गए.

टमाटर से भरा ट्रक पलटा

बता दें कि टमाटर से भरा हुआ यह ट्रक तेलंगाना के कोमाराम भीम में पलटा. यह घटना ऐसे समय में हुई जब देशभर में टमाटर की कीमतें आसमान छू रही हैं और नौबत यहां तक आ गई है कि जगहजगह टमाटर की चोरी हो रही है. ड्राइवर ने बताया कि कार को रास्ता देने की कोशिश में ट्रक ने अपना संतुलन खो दिया था.

टमाटर की कीमतें आमतौर पर जुलाईअगस्त और अक्तूबरनवंबर की अवधि के दौरान बढ़ती हैं। इन महीनों में टमाटर का उत्पादन कम होता है। मौनसून के कारण भी टमाटर की कीमतों में भारी बढ़ोत्तरी हुई है.

देखा जाए तो आजकल टमाटर को ले कर घरों में घमासान, तो कहीं चोरीडकैतियां जैसी घटनाएं सामने आने लगी हैं. इतना ही नहीं, अब तो लोग टमाटर पर रील्स भी बनाने लगे हैं. एक रील में तो लड़की बर्गर खाने जाती है और उस के बीच में से टमाटर निकाल कर घर ले जाती है. कोई टमाटर को तिजोरी में रखने का रील बना रहा. ऐसे कई रील्स और मीम्स हैं जो आजकल बन रहे हैं.

टमाटर के दाम बढ़े हैं तो भाव भी बढ़ेंगे. हालांकि आजकल दाम में थोड़ी कमी आई है लेकिन फिर भी मिडिल क्लास परिवारों के लिए टमाटर अभी भी महंगे ही हैं.

kiara advani क्यों बनना चाहती हैं मां? वजह जानकर सिद्धार्थ भी होंगे हैरान

kiara advani pregnancy : बॉलीवुड एक्ट्रेस कियारा आडवाणी और सिद्धार्थ मल्होत्रा की जोड़ी को पावर कपल माना जाता हैं. दोनों ने इसी साल फरवरी में शादी की हैं. आए दिन दोनों को एक साथ स्पॉट भी किया जाता है. वैसे तो कियारा-सिद्धार्थ की शादी को कुछ ही महीने हुए है, लेकिन अपनी प्रेग्नेंसी का प्लान कियारा शादी के पहले ही बना चुकी थी.

दरअसल शादी से पहले दिए एक इंटरव्यू में कियारा (kiara advani pregnancy) ने बताया था कि वो प्रेग्नेंट क्यों होना चाहती हैं? तो आइए जानते हैं एक्ट्रेस ने इंटरव्यू में क्या कहा था, जिसे जानने के बाद आपके साथ-साथ सिद्धार्थ मल्होत्रा (sidharth malhotra) भी हैरान हो जाएंगे.

कियारा क्यों होना चाहती हैं प्रेग्नेंट?

आपको बता दें कि अपनी फिल्म गुड न्यूज के प्रमोशन के दौरान एक्ट्रेस कियारा (kiara advani pregnancy) ने अपनी प्रेग्नेंसी प्लानिंग को लेकर बात की थी. उन्होंने कहा था कि, ‘मैं सिर्फ इसलिए प्रेग्नेंट होना चाहूंगी ताकि मैं फिर से वो सब खा सकूं जो भी मैं खाना चाहती हूं.’ इसके अलावा जब उनसे पूछा गया था कि क्या वो ट्विन्स चाहती हैं? तो इस पर उन्होंने कहा था, ‘मैं एक लड़का और एक लड़की चाहती हूं और वो दोनों बस स्वस्थ हो.’

कियारा-सिद्धार्थ इन-इन फिल्मों में आएंगे नजर

इसके अलावा कियारा (kiara advani) के वर्क फ्रंट की बात करें तो हाल ही में उनकी फिल्म ‘सत्यप्रेम की कथा’ रिलीज हुई थी, जिसमें उनके साथ एक्टर कार्तिक आर्यन लीड रोल में थे. इसके बाद अब वह तेलुगु फिल्म ‘गेम चेंजर’ में नजर आएंगी, जिसमें उनके साथ राम चरण अहम किरदार में हैं. वहीं सिद्धार्थ मल्होत्रा (sidharth malhotra) जल्द ही फिल्म ‘योद्धा’ में नजर आएंगे, जिसमें उनके साथ दिशा पाटनी और राशी खन्ना लीड रोल में हैं.

यूजर्स ने लगाई Anupamaa के मेकर्स की क्लास, एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स नाम रखने को कहा

Anupamaa Makers Troll : छोटे पर्द पर इस समय रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना का सीरियल ‘अनुपमा’ खूब सुर्खियां बटोर रहा है. लंबे समय से शो टीआरपी रेटिंग में पहले नंबर पर बना हुआ है. शो के करंट ट्रैक की बात करें तो आने वाले एपिसोड में कई राजों से पर्दा उठेगा. आज के एपिसोड में दिखाया जाएगा कि, काव्या खुद अपनी प्रेग्नेंसी का राज अनुपमा को बताएगी. काव्या अनुपमा को बताती है कि वो वनराज के बच्चे की नहीं बल्कि अनिरुद्ध के बच्चे की मां बनने वाली है और वो ये सच वनराज को नहीं बता सकती है. क्योंकि अगर वनराज को ये बात पता चल जाएगी तो सब बर्बाद हो जाएगा.

हालांकि काव्या का सच जानने के बाद अनुपमा (Anupamaa Makers Troll) क्या करेगी ये तो आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा लेकिन, इससे पहले सोशल मीडिया पर यूजर्स भड़क गए हैं.

वनराज को बेचारा बना दिया- यूजर 

दरअसल जब से लोगों को पता चला है कि काव्या (Anupamaa Makers Troll) वनराज के नहीं बल्कि अनिरुद्ध के बच्चे की मां बनने वाली है तब से शो के फैंस नाराज है. यूजर्स सोशल मीडिया पर सीरियल अनुपमा का नाम बदलने की गुजारिश कर रहे हैं. जहां एक यूजर ने लिखा, ‘काव्या के किरदार को इतने अच्छे तरीके से बुना गया था लेकिन मेकर्स ने इसे भी बर्बाद कर दिया. काव्या ने वनराज को धोखा दिया है, जिस कारण अब वनराज को बेचारा बना दिया जाएगा.’

वहीं एक अन्य यूजर ने लिखा, ‘जब काव्या को पता था कि वनराज, अनुपमा पर डोरे डाल रहा है तो वह उसके पास वापस क्यों आई? और अनिरुद्ध के पास क्यों नहीं गई? काव्या ने एक बार फिर अनिरुद्ध को धोखा दिया?’

मेकर्स पर भड़के यूर्जस

इसके अलावा एक और यूजर ने लिखा, ‘अनुपमा (Anupamaa Makers Troll) का करियर और वीमेन एम्पावरमेंट पर ध्यान देने की जगह मेकर्स एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स पर ध्यान दे रहे हैं.’ वहीं एक यूजर ने तो शो का नाम बदलने की ही बात कह दी. उसने लिखा, ‘इस शो का नाम अनुपमा नहीं बल्कि एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स होना चाहिए. ‘

कुरसी के लिए कुछ भी

जो काम रूस के व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन पर हमला कर के सारे यूरोप और दक्षिणपूर्व एशिया, जापान, आस्ट्रेलिया को एक कर के कर दिखाया वही भारत में हो रहा है. अपनी ताकत दिखाने के चक्कर में पुतिन ने रूस को यूक्रेन से युद्ध करने में झोंक दिया और उन की परेशानी यह रही कि वहां वोलोडिमिर जेलेंस्की जैसा पूर्व कौमेडियन नेता रातोंरात एक हिम्मती सैनिक जनरल बन गया. आज यूरोप के वे देश, जो नाटो संगठन में रूस को नाराज करने के डर के कारण हिचक रहे थे, नाटो हैडक्वार्टर्स के सामने अप्लीकेशन लगाए खड़े हैं.

भारत में चक्रवर्ती बनने के चक्कर में भारतीय जनता पार्टी के मोदीशाह (नरेंद्र मोदी और अमित शाह) ने हरियाणा, मध्य प्रदेश, गोवा, कनार्टक में तोडफ़ोड कर के सरकारें बनाईं. इन सरकारों ने काम तो कुछ नहीं किया पर यह सबक पढ़ा दिया कि ईडी, सीबीआई के बड़े फायदे हैं. और ईडी, सीबीआई का खेल पश्चिम बंगाल व महाराष्ट्र में खेला भी गया. फिलहाल महाराष्ट्र में भाजपा के साथ शिवसेना के एकनाथ शिंदे और नैशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी के अजित पवार का ताज़ा गठबंधन सत्ता में है लेकिन यह गठजोड़ कितने समय तक चलेगा, कुछ पता नहीं.

सब से बड़ी आफत हुई है मणिपुर जैसे छोटे से पूर्व के सुदूर राज्य में जहां भाजपा समर्थक मैत्री समुदाय ने ईसाई बहुल कुकी को समाप्त करने का बीड़ा उठाया और इंफाल घाटी के गांवोंशहरों में उन पर हमले शुरू कर दिए. पहाड़ी कुकी बदले में हिंसा पर उतर आए और नतीजा यह है कि 4 महीने से मणिपुर जल रहा है और हजारों घर जला दिए गए हैं.

अब दुनियाभर में भारत सरकार की थूथू हो रही है. जब जी-20 की अध्यक्षता का ढिंढोरा पीटने का मौका मिला तो पता चला कि वहां से तो कुकी बचाओ, अल्पसंख्यक बचाओ के नारे निकले जो दुनियाभर में गूंजने लगे हैं.

पहले कर्नाटक विधानसभा चुनाव, फिर पश्चिम बंगाल पंचायतों के चुनावों में बुरी हार के बाद विश्व पटल पर भाजपा और नरेंद्र मोदी की जो आलोचना हो रही है उस ने भक्तों का मुंह बंद करना शुरू कर दिया है. उत्तर प्रदेश में बुलडोजर चलने कम हो गए हैं. सडक़ों पर गौरक्षकों के आतंक के समाचार कम हो गए हैं. यहां तक कि भाजपाइयों ने अब धर्म प्रचारक से संबंधित विज्ञापन प्रकाशित कराने बंद कर दिए हैं.
मोदी सरकार अब रोजगार देने वाले, चंद्रयान, सस्ते खाने के विज्ञापन दे रही है, पहले इस घाट या उस धार्मिक कौरिडोर या फलां मूर्ति स्थापना के विज्ञापन होते थे. अब न बात गंगा आरतियों की हो रही है न पटेल के स्टैचू की. न देशवासी पूरी तरह इन के कायल हुए हैं, न ही दुनिया वाले.

भारत की आर्थिक प्रगति ठीकठाक है तो इसलिए कि हम दुनिया के सब से ज्यादा जनसंख्या वाले देश हैं न कि हमारे नागरिक अमीर हैं. हमारे धन्ना सेठ अंबानीअडानी अमीर हैं पर आम भारतीय पूजापाठ के अलावा कोई हुनर नहीं जानता. यूरोपीय पार्लियामैंट ने बहुत सी बातें नहीं कही हैं पर उस ने जो प्रस्ताव पास किया उस का लब्बोलुआब यही है कि मोदी जी फ्रांस में आप का स्वागत है पर आप जो अपने देश में कर रहे हैं वह सही नहीं है. आप अल्पसंख्यक नागरिकों को हिंदू न होने के कारण प्रताड़ित या दंडित नहीं कर सकते. यह बात सारे अमीर देशों में गूंज रही है. उन देशों तक में भी जहां भारतीय मूल के लोग शासन की बागडोर संभाल रहे हैं.

पहले मेरे जीजा जी ने मेरे साथ संबंध बनाएं और अब मेरे बौयफ्रैंड ने, अब मुझे क्या करना चाहिए?

सवाल

मैं 22 साल की हूं. जब मैं 14 साल की थी, तब मेरे जीजा ने मेरे साथ हमबिस्तरी की थी. ऐसा उन्होंने कई बार किया. हर बार सैक्स करने के बाद वे मुझे एक टैबलेट खिलाते थे. अब मेरे बौयफ्रैंड ने मेरे साथ जिस्मानी संबंध बनाया, तो मैं ने उसे जीजा के बारे में बता दिया.

मैं पिछले 8 सालों से अपने जीजा से दूर हूं, पर वे मैसेज कर के मुझे परेशान करते हैं. वे फिर से संबंध बनाने की बात करते हैं और मना करने पर घर वालों को बताने की धमकी देते हैं. मैं क्या करूं?

जवाब

हमबिस्तरी वाकई मजेदार होती है, इसीलिए तो 14 साल की उम्र में आप ने जीजा को मौका दिया और अब बौयफ्रैंड को खेलने दे रही हैं. खुद को खिलौना न बनने दें और शादी के बाद हमबिस्तरी करने की सोचें. जीजा से डरने की कोई जरूरत नहीं है. वह अपनी करतूत किसी को नहीं बताएगा. वह कुछ कहेगा, तो खुद ही फंसेगा.

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क्या आप भी मन मार कर सेक्स करते हैं

आप दिन भर के थके हुए घर लौटे हैं और आपके मन में सेक्स का ख्याल दूर दूर तक नहीं हैं. लेकिन जैसे ही आप बिस्तर पर लेटते हैं, यह साफ हो जाता है कि आपके साथी के मन में आज सेक्स के अलावा कुछ भी नहीं है. उसको मना करने के बजाय आप अनमने मन से उसके साथ सेक्स कर लेते हैं. शायद आप यह उसकी खुशी के लिए करते हैं, या शायद इसलिए क्यूंकि आपको पता है कि मना करने से उसका मूड खराब हो जाएगा.

अपना मन मारना

मन ना होने पर भी सेक्स करने को शोधकर्ताओं ने ‘अनुवर्ती सेक्स’ का नाम दिया है. अध्ययन से पता चला है कि पुरुषों की तुलना में ऐसा महिलाएं ज्यादा करती हैं. अनुवर्ती सेक्स और जबरदस्ती करे जाने वाले सेक्स में फर्क है. इसमें आप इसलिए यौन सम्बन्ध नहीं बनाते क्यूंकि आपका साथी आपके साथ जोर जबरदस्ती करता है, बल्कि यहां तो आपके साथी को यह पता ही नहीं चलता कि आप सेक्स नहीं करना चाहते और केवल उसका मन रखने के लिए कर रहे हैं, चाहे अपना मन मार कर ही सही.

तो ऐसा महिलाएं क्यों करती हैं? यह जानने के लिए अमेरिकी शोधकर्ताओं के एक समूह ने विश्विद्यालय में पढ़ने वाली 250 लड़कियों से संपर्क किया. उन्हें औनलाइन एक सर्वे भरने को कहा गया जिसमें उन्हें अपने उस समय के अनुभव के बारे में बताना था जब उन्होंने अपना मन मार कर सेक्स किया. यहां सेक्स का मतलब था प्रवेशित सेक्स, गुदा और मुख मैथुन. शोधकर्ता यह भी जानना चाहते थे कि सेक्स करते हुए उनका व्यक्तित्व कैसा रहता है और अपने रिश्ते में वो अपने साथी से किस तरह से पेश आती हैं.

परिणाम आने के बाद शोधकर्ताओं को पता चल चुका था कि लगभग आधी महिलाओं ने कभी ना कभी मन मार कर सेक्स किया है. 30 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थी जिन्होंने यह अपने वर्तमान साथी के साथ किया था या फ़िर उस साथी के साथ जिसके साथ उनका रिश्ता सबसे लंबा चला था.

60 प्रतिशत महिलाओं का कहना था कि उन्होंने यह किया तो है लेकिन उनका मानना था कि ऐसा बहुत कम होता है. लेकिन चार में से एक महिला ऐसी भी थी जिन्होंने लगभग 75 प्रतिशत से ज़्यादा बार अपना मन मार कर सेक्स किया था.

तो यह लोग ऐसा क्यों कर रहे थे? इसका एक कारण तो यह था कि उनकी नज़र में ऐसा करने से उनका रिश्ता बेहतर और मजबूत होगा. एक महिला अपने साथी के साथ केवल इसलिए सेक्स के लिए तैयार हो जाती है क्योंकि उसे पता है कि उसे लगे ना लगे उसके साथी को यह अच्छा लगेगा. एक और कारण जो इतना सामान्य नहीं है, वो यह है कि महिलाओं को लगता है कि सेक्स करने से उनका रिश्ता चलता रहेगा – उन्हें यह डर रहता है कि कहीं उनके मना करने से उनका साथी उन्हें छोड़ कर ना चला जाए.

सेक्स संवाद!

अध्ययन से यह भी पता चला कि जो महिलाएं अपने साथी को अपनी कामुक पसंद और नापसंद के बारे में बता कर रखती थी, उनके अनुवर्ती सेक्स करने की संभावना कम थी क्योंकि जब उनका सेक्स करने का मूड नहीं होता था तब भी वो मन मारने के बजाय, वो बात अपने साथी को बता देती थी.

अगर यह सब आपको जाना पहचाना लग रहा है तो शायद आपको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि कैसे आप अपनी यौन इच्छाओं को अपने साथी को बता सके और उस बारे में भी, जब आप सेक्स नहीं करना चाहते हों. इससे आपको बेहद फायदा होगा.

पुरुष भी इस का ख्याल रख सकते हैं. अगली बार सेक्स करते हुए ध्यान दें कि क्या आपका साथी पूर्ण रूप से कामोत्तेजक है और क्या उसे सच में मज़ा आ रहा या फ़िर वो केवल आपका मन रखने के लिए यौन क्रिया में लिप्त हो रही है. यह जानने का सबसे आसान तरीका जानते हैं क्या है? सीधा पूछ लो मेरे भाई! शानदार सेक्स की ओर यह आपका पहला कदम होगा.

अपने हुए पराए

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सहायक प्रबंधक : खुशालनगर कैसे पहुंचे नेकचंद?

चींटी की गति से रेंगती यात्री रेलगाड़ी हर 10 कदम पर रुक जाती थी. वैसे तो राजधानी से खुशालनगर मुश्किल से 2 घंटे का रास्ता होगा, पर खटारा रेलगाड़ी में बैठे हुए उन्हें 6 घंटे से अधिक का समय हो चुका था.

राजशेखरजी ने एक नजर अपने डब्बे में बैठे सहयात्रियों पर डाली. अधिकतर पुरुष यात्रियों के शरीर पर मात्र घुटनों तक पहुंचती धोती थी. कुछ एक ने कमीजनुमा वस्त्र भी पहन रखा था पर उस बेढंगी पोशाक को देख कर एक क्षण को तो राजशेखर बाबू उस भयानक गरमी और असह्य सहयात्रियों के बीच भी मुसकरा दिए थे.

अधिकतर औरतों ने एक सूती साड़ी से अपने को ढांप रखा था. उसी के पल्ले को करीने से लपेट कर उन्होंने आगे खोंस रखा था. शहर में ऐसी वेशभूषा को देख कर संभ्रांत नागरिक शायद नाकभौं सिकोड़ लेते, महिलाएं, खासकर युवतियां अपने विशेष अंदाज में फिक्क से हंस कर नजरें घुमा लेतीं. पर राजशेखरजी उन के प्राकृतिक सौंदर्य को देख कर ठगे से रह गए थे. उन के परिश्रमी गठे हुए शरीर केवल एक सूती धोती में लिपटे होने पर भी कहीं से अश्लील नहीं लग रहे थे. कोई फैशन वाली पोशाक लाख प्रयत्न करने पर भी शायद वह प्रभाव पैदा नहीं कर सकती थी. अधिकतर महिलाओं ने बड़े सहज ढंग से बालों को जूड़े में बांध कर स्थानीय फूलों से सजा रखा था.

तभी उन के साथ चल रहे चपरासी नेकचंद ने करवट बदली तो उन की तंद्रा भंग हुई.

‘यह क्या सोचने लगे वे?’ उन्होंने खुद को ही लताड़ा था. कितना गरीब इलाका है यह? लोगों के पास तन ढकने के लिए वस्त्र तक नहीं है. उन्होंने अपनी पैंट और कमीज पर नजर दौड़ाई थी…यहां तो यह साधारण वेशभूषा भी खास लग रही थी.

‘‘अरे, ओ नेकचंद. कब तक सोता रहेगा? बैंक में अपने स्टूल पर बैठा ऊंघता रहता है, यहां रेल के डब्बे में घुसते ही लंबा लेट गया और तब से गहरी नींद में सो रहा है,’’ उन के पुकारने पर भी चपरासी नेकचंद की नींद नहीं खुली थी.

तभी रेलगाड़ी जोर की सीटी के साथ रुक गई थी.

‘‘नेकचंद…अरे, ओ कुंभकर्ण. उठ स्टेशन आ गया है,’’ इस बार झुंझला कर उन्होंने नेकचंद को पूरी तरह हिला दिया.

वह हड़बड़ा कर उठा और खिड़की से बाहर झांकने लगा.

‘‘यह रहबरपुर नहीं है साहब, यहां तो गाड़ी यों ही रुक गई है,’’ कह कर वह पुन: लेट गया.

‘‘हमें रहबरपुर नहीं खुशालनगर जाना है,’’ राजशेखरजी ने मानो उसे याद दिलाया था.

‘‘रहबरपुर के स्टेशन पर उतर कर बैलगाड़ी या किसी अन्य सवारी से खुशालनगर जाना पड़ेगा. वहां तक यह टे्रन नहीं जाएगी,’’ नेकचंद ने चैन से आंखें मूंद ली थीं.

बारबार रुकती और रुक कर फिर बढ़ती वह रेलगाड़ी जब अपने गंतव्य तक पहुंची, दिन के 2 बज रहे थे.

‘‘चलो नेकचंद, शीघ्रता से खुशालनगर जाने वाली किसी सवारी का प्रबंध करो…नहीं तो यहीं संध्या हो जाएगी,’’ राजशेखरजी अपना बैग उठा कर आगे बढ़ते हुए बोले थे.

‘‘हुजूर, माईबाप, ऐसा जुल्म मत करो. सुबह से मुंह में एक दाना भी नहीं गया है. स्टेशन पर सामने वह दुकान है… वह गरम पूरियां उतार रहा है. यहां से पेटपूजा कर के ही आगे बढ़ेंगे हम,’’ नेकचंद ने अनुनय की थी.

‘‘क्या हुआ है तुम्हें नेकचंद? यह भी कोई खाने की जगह है? कहीं ढंग के रेस्तरां में बैठ कर खाएंगे.’’

‘‘रेस्तरां और यहां,’’ नेकचंद हंसा था, ‘‘सर, यहां और खुशालनगर तो क्या आसपास के 20 गांवों में भी कुछ खाने को नहीं मिलेगा. मैं तो बिना खाए यहां से टस से मस नहीं होने वाला,’’ इतना कह कर नेकचंद दुकान के बाहर पड़ी बेंच पर बैठ गया.

‘‘ठीक है, खाओ, तुम्हें तो मैं साथ ला कर पछता रहा हूं,’’ राजशेखरजी ने हथियार डाल दिए थे.

‘‘हुजूर, आप के लिए भी ले आऊं?’’ नेकचंद को पूरीसब्जी की प्लेट पकड़ा कर दुकानदार ने बड़े मीठे स्वर में पूछा था.

राजशेखरजी को जोर की भूख लगी थी पर उस छोटी सी दुकान में खाने में उन का अभिजात्य आड़े आ रहा था.

‘‘मेरी दुकान जैसी पूरीसब्जी पूरे चौबीसे में नहीं मिलती साहब, और मेरी मसालेदार चाय पीने के लिए तो लोग मीलों दूर से चल कर यहां आते हैं,’’ दुकानदार गर्वपूर्ण स्वर में बोला था.

‘‘ठीक है, तुम इतना जोर दे रहे हो तो ले आओ एक प्लेट पूरीभाजी. और हां, तुम्हारी मसालेदार चाय तो हम अवश्य पिएंगे,’’ राजशेखरजी भी वहीं बैंच पर जम गए थे.

नेकचंद भेदभरे ढंग से मुसकराया था पर राजशेखरजी ने उसे अनदेखा कर दिया था.

कुबेर बैंक में सहायक प्रबंधक के पद पर राजशेखरजी की नियुक्ति हुई थी तो प्रसन्नता से वह फूले नहीं समाए थे. किसी वातानुकूलित भवन में सजेधजे केबिन में बैठ कर दूसरों पर हुक्म चलाने की उन्होंने कल्पना की थी. पर मुख्यालय ने उन्हें ऋण उगाहने के काम पर लगा दिया था. इसी चक्कर में उन्हें लगभग हर रोज दूरदराज के नगरों और गांवों की खाक छाननी पड़ती थी.

पूरीसब्जी समाप्त होते ही दुकानदार गरम मसालेदार चाय दे गया था. चाय सचमुच स्वादिष्ठ थी पर राजशेखरजी को खुशालनगर पहुंचने की चिंता सता रही थी.

बैलगाड़ी से 4 मील का मार्ग तय करने में ही राजशेखर बाबू की कमर जवाब दे गई थी. पर नेकचंद इन हिचकोलों के बीच भी राह भर ऊंघता रहा था. फिर भी राजशेखर बाबू ने नेकचंद को धन्यवाद दिया था. वह तो मोटरसाइकिल पर आने की सोच रहे थे पर नेकचंद ने ही इस क्षेत्र की सड़कों की दशा का ऐसा हृदय विदारक वर्णन किया था कि उन्होंने वह विचार त्याग दिया था.

कुबेर बैंक की कर्जदार लक्ष्मी का घर ढूंढ़ने में राजशेखरजी को काफी समय लगा था. नेकचंद साथ न होता तो शायद वहां तक कभी न पहुंच पाते. 2-3-8/ए खुशालनगर जैसा लंबाचौड़ा पता ढूंढ़ते हुए जिस घर के आगे वह रुका, उस की जर्जर हालत देख कर राजशेखरजी चकित रह गए थे. ईंट की बदरंग दीवारों पर टिन की छत थी और एक कमरे के उस घर के मुख्यद्वार पर टाट का परदा लहरा रहा था.

‘‘तुम ने पता ठीक से देख लिया है न,’’ राजशेखरजी ने हिचकिचाते हुए पूछा था.

‘‘अभी पता चल जाएगा हुजूर,’’ नेकचंद ने आश्वासन दिया था.

‘‘लक्ष्मीलताजी हाजिर हों…’’ नेकचंद गला फाड़ कर चीखा था मानो किसी मुवक्किल को जज के समक्ष उपस्थित होने को पुकार रहा हो. उस का स्वर सुन कर आसपास के पेड़ों पर बैठी चिडि़यां घबरा कर उड़ गई थीं पर उस घर में कोई हलचल नहीं हुई. नेकचंद ने जोर से द्वार पीटा तो द्वार खुला था और एक वृद्ध ने अपना चश्मा ठीक करते हुए आगंतुकों को पहचानने का यत्न किया था.

‘‘कौन है भाई?’’ अपने प्रयत्न में असफल रहने पर वृद्ध ने प्रश्न किया था.

‘‘हम कुबेर बैंक से आए हैं. लक्ष्मीलताजी क्या यहीं रहती हैं?’’

‘‘कौन लता, भैया?’’

‘‘लक्ष्मीलता.’’

‘‘अरे, अपनी लक्ष्मी को पूछ रहे हैं. हां, बेटा यहीं रहती है…हमारी बहू है,’’ तभी एक वृद्धा जो संभवत: वृद्ध की पत्नी थीं, वहां आ कर बोली थीं.

‘‘अरे, तो बुलाइए न उसे. हम कुबेर बैंक से आए हैं,’’ राजशेखरजी ने स्पष्ट किया था.

‘‘क्या भैया, सरकारी आदमी हो क्या? कुछ मुआवजा आदि ले कर आए हो क्या?’’ वृद्ध घबरा कर बोले थे.

‘‘मुआवजा? किस बात का मुआवजा?’’ राजशेखरजी ने हैरान हो कर प्रश्न के उत्तर में प्रश्न ही कर दिया था.

‘‘हमारी फसलें खराब होने का मुआवजा. सुना है, सरकार हर गरीब को इतना दे रही है कि वह पेट भर के खा सके.’’

‘‘हुजूर, लगता है बूढ़े का दिमाग फिर गया है,’’ नेकचंद हंसने लगा था.

‘‘यह क्या हंसने की बात है?’’ राजशेखरजी ने नेकचंद को घुड़क दिया था.

‘‘देखिए, हम सरकारी आदमी नहीं हैं. हम बैंक से आए हैं. लक्ष्मीलताजी ने हमारे बैंक से कर्ज लिया था. हम उसे उगाहने आए हैं.’’

‘‘क्या कह रहे हैं आप? जरा बुलाओ तो लक्ष्मी को,’’ वृद्ध अविश्वासपूर्ण स्वर में बोला था.

दूसरे ही क्षण लक्ष्मीलता आ खड़ी हुई थी.

‘‘लक्ष्मीलता आप ही हैं?’’ राजशेखरजी ने प्रश्न किया था.

‘‘जी हां.’’

‘‘मैं राजधानी से आया हूं, कुबेर बैंक से आप के नाम 82 हजार रुपए बकाया है. आप ने एक सप्ताह के अंदर कर्ज नहीं लौटाया तो कुर्की का आदेश दे दिया जाएगा.’’

‘‘क्या कह रहे हो साहब, 82 हजार तो बहुत बड़ी रकम है. हम ने तो एकसाथ 82 रुपए भी नहीं देखे. हम ने तो न कभी राजधानी की शक्ल देखी है न आप के कुबेर बैंक की.’’

‘‘हमें इन सब बातों से कोई मतलब नहीं है. हमारे पास सब कागजपत्र हैं. तुम्हारे दस्तखत वाला प्रमाण है,’’ नेकचंद बोला था.

‘‘लो और सुनो, मेरे दस्तखत, भैया किसी और लक्ष्मीलता को ढूंढ़ो. मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है. अंगूठाछाप हूं मैं. रही बात कुर्की की तो वह भी करवा ही लो. घर में कुछ बर्तन हैं. कुछ रोजाना पहनने के कपड़े और डोलबालटी. यह एक कमरे का टूटाफूटा झोपड़ा है. जो कोई इन सब का 82 हजार रुपए दे तो आप ले लो,’’ लक्ष्मीलता तैश में आ गई थी.

अब तक वहां भारी भीड़ एकत्रित हो गई थी.

‘‘साहब, कहीं कुछ गड़बड़ अवश्य है. लक्ष्मीलता तो केवल नाम की लक्ष्मी है. इसे बैंक तो छोडि़ए गांव का साहूकार 10 रुपए भी उधार न दे,’’ एक पड़ोसी यदुनाथ ने बीचबचाव करना चाहा था.

‘‘देखिए, मैं इतनी दूर से रेलगाड़ी, बैलगाड़ी से यात्रा कर के क्या केवल झूठ, आरोप लगाने आऊंगा? यह देखिए प्रोनोट, नाम और पता इन का है या नहीं. नीचे अंगूठा भी लगा है. 5 वर्ष पहले 10 हजार रुपए का कर्ज लिया था जो ब्याज के साथ अब 82 हजार रुपया हो गया है,’’ राजशेखरजी ने एक ही सांस में सारा विवरण दे दिया था.

वहां खड़े लोगों में सरसराहट सी फैल गई थी. आजकल ऐसे कर्ज उगाहने वाले अकसर गांव में आने लगे थे. अनापशनाप रकम बता कर कागजपत्र दिखा कर लोगों को परेशान करते थे.

‘‘देखिए, मैनेजर साहब. लक्ष्मीलता ने तो कभी किसी बैंक का मुंह तक नहीं देखा. वैसे भी 82 हजार तो क्या वह तो आप को 82 रुपए देने की स्थिति में नहीं है,’’ यदुनाथ तथा कुछ और व्यक्तियों ने बीचबचाव करना चाहा था.

‘‘अरे, लेते समय तो सोचा नहीं, देने का समय आया तो गरीबी का रोना रोने लगे? और यह रतन कुमार कौन है? उन्होंने गारंटी दी थी इस कर्ज की. लक्ष्मीलता नहीं दे सकतीं तो रतन कुमार का गला दबा कर वसूल करेंगे. 100 एकड़ जमीन है उन के पास. अमीर आदमी हैं.’’

‘‘रतन कुमार? इस नाम को तो कभी अपने गांव में हम ने सुना नहीं है. किसी और गांव के होंगे.’’

‘‘नाम तो खुशालनगर का ही लिखा है पते में. अभी हम सरपंचजी के घर जा कर आते हैं. वहां से सब पता कर लेंगे. पर कहे देते हैं कि ब्याज सहित कर्ज वसूल करेंगे हम,’’ राजशेखरजी और नेकचंद चल पड़े थे. सरपंचजी घर पर नहीं मिले थे.

‘‘अब कहां चलें हुजूर?’’ नेकचंद ने प्रश्न किया था.

‘‘कुछ समझ में नहीं आ रहा. क्या करें, क्या न करें. मुझे तो स्वयं विश्वास नहीं हो रहा कि उस गरीब लक्ष्मीलता ने यह कर्ज लिया होगा,’’ राजशेखरजी बोले थे.

‘‘साहब, आप नए आए हैं अभी. ऐसे सैकड़ों कर्जदार हैं अपने बैंक के. सब मिलीभगत है. सरपंचजी, हमारे बैंक के कुछ लोग, कुछ दादा लोग. किसकिस के नाम गिनेंगे. यह रतन कुमार नाम का प्राणी शायद ही मिले आप को. जमीन के कागज भी फर्जी ही होंगे,’’ नेकचंद ने समझाया था. निराश राजशेखर लौट चले थे.

बैंक पहुंचते ही मुख्य प्रबंधक महोदय की झाड़ पड़ी थी.

‘‘आप तो किसी काम के नहीं हैं राजेशखर बाबू, आप जहां भी उगाहने जाते हैं खाली हाथ ही लौटते हैं. सीधी उंगली से घी नहीं निकलता, उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है. पर आप कहीं तो गुंडों की धमकी से डर कर भाग खड़े होते हैं तो कभी गरीबी का रोना सुन कर लौट आते हैं. जाइए, विपिन बाबू से और कर्जदारों की सूची ले लीजिए. कुछ तो उगाही कर के दिखाइए, नहीं तो आप का रिकार्ड खराब हो जाएगा.’’

उन्हें धमकी मिल गई थी. अगले कुछ माह में ही राजशेखर बाबू समझ गए थे कि उगाही करना उन के बस का काम नहीं था. वह न तो बैंक के लिए नए जमाकर्ता जुटा पा रहे थे और न ही उगाही कर पा रहे थे.

एक दिन इसी उधेड़बुन में डूबे अपने घर से निकले थे कि उन के मित्र निगम बाबू मिल गए थे.

‘‘कहिए, कैसी कट रही है कुबेर बैंक में?’’ निगम बाबू ने पूछा था.

‘‘ठीक है, आप बताइए, कालिज के क्या हालचाल हैं?’’

‘‘यहां भी सब ठीकठाक है… आप को आप के छात्र बहुत याद करते हैं पर आप युवा लोग कहां टिकते हैं कालिज में,’’ निगम बाबू बोले थे.

राजशेखर बाबू को झटका सा लगा था. कर क्या रहे थे वे बैंक में? उन ऋणों की उगाही जिन्हें देने में उन का कोई हाथ नहीं था. जिस स्वप्निल भविष्य की आशा में वह व्याख्याता की नौकरी छोड़ कर कुबेर बैंक गए थे वह कहीं नजर नहीं आ रही थी.

वह दूसरे ही दिन अपने पुराने कालिज जा पहुंचे थे और पुन: कालिज में लौटने की इच्छा प्रकट की थी.

प्रधानाचार्य महोदय ने खुली बांहों से उन का स्वागत किया था. राजशेखरजी को लगा मानो पिंजरे से निकल कर खुली हवा में उड़ने का सुअवसर मिल गया हो.

बहुओं की मारी सासें बेचारी

गृहस्थी की सत्ता की लड़ाई में सास अब हारकर हथियार डालने लगी है. ऐसे किस्से सुन कर उतना ही बुरा लगता है जितना कल को यह सुन कर लगता था कि सास ने बहू को प्रताडि़त किया, उसे खाना नहीं दिया, मारापीटा, बेटे के पास नहीं जाने दिया और कमरे में बंद कर दिया या धक्का दे कर घर से बाहर निकाल दिया वगैरावगैरा.

अब जमाना बदल रहा है. ललिता पवार टाइप क्रूर सासें फैमिली पिक्चर से गायब हो रही हैं. जमाना स्मार्ट और तेजतर्रार बहुओं का है. वे अपनी अलग दुनिया बसाना चाहती हैं जिस में उन के साथ ससुराल वाला कोई न हो, खासतौर से सास तो बिलकुल नहीं. सिर्फ पति हो. यह इच्छा आसानी से पूरी नहीं होती तो वे तरहतरह के हथकंडे अपनाती हुई सासों को घर से धकेलती या खुद अपना अलग साम्राज्य स्थापित करती नजर आ रही हैं. वे अपनी मंशा में कामयाब भी हो रही हैं क्योंकि अब काफीकुछ उन के हक में है.

भोपाल के महिला थाने के परामर्श केंद्र में सुनवाई और इंसाफ के लिए आए इन दिलचस्प और अनूठे मामलों को जानने से पहले इस शाश्वत सवाल का जवाब खोजा जाना जरूरी है कि घर किस का, सास का या बहू का. सास स्वभाविक रूप से समझती है कि घर उस का है क्योंकि यह उस की सास ने विरासत में उसे सौंपा था जिसे व्यवस्थित करने और सहेजने में उस ने अपनी जिंदगी लगा दी. इधर, बहू को सास के कथित त्याग, तपस्या और समर्पण से कोई लेनादेना नहीं होता. वह फुजूल की इन फिल्मी और किताबी फलसफों के पचड़ों में नहीं पड़ना चाहती. कई मामलों में तो वह घर पर अपनी दावेदारी भी नहीं जता रही जो संघर्ष की पहली सीढ़ी है. वह बगैर लड़े जीतना चाहती है.

बहुओं को आजादी चाहिए. वे किसी बंधन में नहीं रहना चाहतीं. उन्हें इस बात चिंता भी नहीं कि आखिरकार इस का अंत और नतीजा क्या होगा. जिस संयुक्त परिवार व्यवस्था का हम दम भरते थकते नहीं, वह अब निहायत ही गलत तरीके से दम तोड़ रही है.

बेचारी सासें

1 जनवरी से ले कर 15 जून तक भोपाल के परिवार परामर्श केंद्र में 765 शिकायतें दर्ज हुईं. इन में से 165 शिकायतें ऐसी थीं जिन में सास या ससुराल वालों ने यह कहा था कि उन की बहू साथ नहीं रहना चाहती जबकि वे चाहते हैं कि वह उन के साथ रहे और इस के लिए वे उस की हर बात व शर्त मानने को तैयार हैं.

आइए, ऐसी कुछ शिकायतों पर नजर डालते हैं जिन से सास की पीड़ा और बेबसी झलकती है–

  1.  दानिश कुंज, कोलार रोड निवासी कांता शर्मा ने परिवार परामर्श केंद्र में फरियाद की है कि उन की छोटी बहू उन के साथ संयुक्त परिवार में नहीं रहना चाहती. उस ने बेटे को धमकी दी है कि अगर वह घर से अलग नहीं हुआ तो वह घर छोड़ कर चली जाएगी. इस मामले में सासबहू की काउंसिलिंग लंबित है.
  2. एक और मामले में सास व बहू के बीच लिखित समझौता हुआ कि सास कांति वर्मा अपना खाना खुद बना लेंगी क्योंकि उन की क्रिश्चियन बहू एनी साफ कह चुकी है कि वह घर का कोई काम नहीं करेगी. कांति के बेटे ने एनी से लवमैरिज की थी. होशंगाबाद रोड स्थित आदर्श नगर के इस परिवार में अब समझौते के मुताबिक, सास सुबहशाम दोनों वक्त पहले अपना खाना बनाती है. उस के अपने बरतन व सामान समेटने के बाद वहां बहू खुद का व पति का खाना बनाती है. घर के बाकी काम नौकरानी करती है.
  3. पुराने भोपाल के चौक में रहने वाली सरिता शाक्य की छोटी बहू ने ऐलान कर दिया कि वह अलग रहना चाहती है. इस पर झगड़ा होने लगा तो सरिता ने परिवार परामर्श केंद्र में अपील की कि वे बहू की हर शर्त मानने को तैयार हैं. बस, उसे घर छोड़ कर जाने से रोका जाए. पर बात नहीं बनी तो एक दिन सरिता ने भी घोषणा कर दी कि वे उस वक्त तक अन्न ग्रहण नहीं करेंगी जब तक बहू मान न जाए. सासबहू के बीच महिला थाने में 2 दिनों तक स्पैशल काउंसिलिंग चली क्योंकि मामला भी स्पैशल था. बीच का रास्ता यह निकाला गया कि छोटी बहू ऊपर की मंजिल में रहेगी और उस के यहां सिवा उस के पति के कोई और नहीं जाएगा. चूंकि सास 2 चूल्हे के खिलाफ थी, इसलिए लिखित समझौते में यह शर्त भी दर्ज की गई कि खाना एक ही किचन में बनेगा. छोटी बहू भले ही कोई काम न करे और ऊपर रहे पर खाना नीचे ही खाएगी. इस मामले की निगरानी चल रही है. बहू समझौते पर सहमत हुई, तभी सरिता ने अपना अनशन तोड़ा.

ऐसे मामले अब अपवाद नहीं रहे हैं, बल्कि नियम बनते जा रहे हैं, जिन में पत्नियां ससुराल वालों के साथ नहीं रहना चाहतीं. बहू साथ रहे, इस के लिए उस की शर्तें कुछ भी हों, सास मान रही है तो उस के पीछे कहीं न कहीं उस का स्वार्थ है और मजबूरी भी. अधिकांश विवादों में बहू की आपत्ति घर के कामकाज और खाना बनाने को ले कर है, जिन्हें बहुत गंभीर या वजनदार नहीं कहा जा सकता. दरअसल, हो यह रहा है कि एकल होते परिवारों में अब मायके में ही बेटी को अच्छी बहू बनने के लिए प्रशिक्षित नहीं किया जाता, न ही उसे घर के कामकाज सिखाए जाते.

फर्क हालात का

दरअसल, लड़कियों का अधिकांश वक्त अब कठिन होती पढ़ाई में लग रहा है. अलावा इस के, वे कामकाजी व नौकरीपेशा हो कर आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी हो रही हैं. इसलिए ससुराल उन के लिए पहले की तरह मजबूरी में रहने वाली जगह नहीं रह गई है. न ही उन के ससुराल में न रहने से मायके की प्रतिष्ठा पर कोई फर्क पड़ता है.

बहू अपनी मरजी से जिए, इस में कतई हर्ज की बात नहीं, हर्ज की बात सास और ससुराल वालों से बेवजह की एलर्जी है. जाहिर है नए जमाने की ये आजादखयाल बहुएं अपने भविष्य के बारे में नहीं सोच पा रही हैं जो अभी लगभग 30 वर्ष की आयु में स्वस्थ व कमाऊ हैं. इन्हें लगता है कि सास को खामखां ढो कर चूल्हेचौके में जिंदगी क्यों जाया की जाए. यह फर्क भी चिंताजनक है कि अब जो बहू घर के कामकाज नहीं जानती, वह ज्यादा होशियार मानी जाती है. पहले होता यह था कि जो ज्यादा कामकाज जानती थी, वह होशियार और जिम्मेदार मानी जाती थी. जाहिर है औरत होने के माने बदल रहे हैं. जिस का खमियाजा 60 पार की सासों को भुगतना पड़ रहा है जो संयुक्त परिवार और सहयोग का मतलब समझती हैं.

एक राष्ट्रीय बैंक में कार्यरत सुषमा का कहना है, ‘‘दरअसल जिंदगी बहुत जटिल होती जा रही है. युवतियां 12 घंटे नौकरी करें और उस के तनाव भी झेलें. ऐसे में उन से खाना बनाने, बरतन साफ करने और झाड़ूपोंछे की उम्मीद करना ज्यादती नहीं बल्कि कू्ररता भी है. वे कमा रही हैं, इसलिए नौकरों का भुगतान भी कर सकती हैं. ऐसे में सासों की उन्हीं से काम कराने की जिद कौन सी समझदारी की बात है.’’

सुषमा गलत नहीं कह रही है पर जिंदगीभर तकलीफें झेलती रही सास ही खाना बनाए, घर के कामकाज करे और समाज व रिश्तेदारी की जिम्मेदारियां भी उठाए, क्या यह उस के साथ ज्यादती नहीं. इस पर भी तुर्रा यह कि सास ने जरा भी कुछ कहा तो बहू अपना बोरियाबिस्तर समेट कर पलायन करने को तैयार. यह कौन सी बुद्धिमानी है. बुढ़ापे में कौन सी मां अपने बेटेबहू और नातीपोतों का सुख नहीं चाहेगी जो उस की स्वाभाविक इच्छा और प्राकृतिक अधिकार है. गौर से देखा जाए तो खाना कौन बनाए, यह सवाल बहुत मामूली है जिस का अलगाव की हद तक पहुंचना और सास का बहू के सामने झुकना बताता है कि बड़ी गलती बहू की है जो एक मामूली बात को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना बैठती है. मुमकिन है इस फसाद की जड़ कोई पूर्वाग्रह या कुंठा हो, जो न दिखती है और न ही समझ आती है, एक पुरुष पर अधिकार की लड़ाई की वजह भी इसे कहा जा सकता है. पति बेचारा 2 पाटों के बीच पिस कर बिखर जाता है और इन दोनों को इस का एहसास नहीं होता.

नौकरानी नहीं, सहायिका समझें

बहुएं समझती हैं कि सास के हाथपैर अगर चल रहे हैं तो वह पहले की तरह खाना बनाती रहे और घर के कामकाज करती रहे तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा. पहाड़, तय है, अभी नहीं टूटेगा. वह तब टूटेगा जब सास का साथ छोड़ दिया जाएगा क्योंकि वह हमेशा नौकरों की तरह काम करने तैयार नहीं. लेकिन बहू अगर अलग होने की धमकी दे और जिस की तैयारी भी कर रही हो तो एक लिहाज से यह नैतिकता, समर्पण और प्रतिष्ठा के पैमाने पर बहुओं की जीत नहीं, बल्कि हार है.

बेहतर होगा कि बहुएं सास को नौकरानी नहीं, बल्कि अपनी सहायिका समझें. सास अगर खाना बना रही है तो सब्जी काट देने या किचन में जा कर मसाले का डब्बा उसे दे कर बहू काम को आसान बना सकती है. आजकल की सासें, बहुओं को पहले से बेहतर समझने लगी हैं और उन का खयाल भी रखती हैं पर बहुएं उस का बेजा फायदा उठाते बातबात में अलग होने की धमकी दें तो वे भूल रही हैं कि खुद की बढ़ती उम्र के चलते उन्हें भी एक सहारे की जरूरत है. कल को उन की बहू भी अगर यही बरताव करेगी तो उन पर क्या गुजरेगी. इस का अंदाजा वे लगा पाएं तो उन्हें अपनी गलती समझ आएगी. सास के पास अनुभव होता है जो कदमकदम पर बहुओं का साथ देता है.

कानूनी और सामाजिक दबावों के चलते पत्नी के साथ जाना पति की मजबूरी हो गई है लेकिन अकसर वह पत्नी पर ताने कसता रहता है जिस से दांपत्य की मिठास कड़वाहट में बदलने लगती है. हर एक बेटा चाहता है कि बूढे़ मांबाप की सेवा करे, उन के साथ रहे. पर पत्नी की जिद की वजह से ऐसा नहीं हो पाता तो वह ग्लानि से भर उठता है और अकसर अनियंत्रित भी हो जाता है. भोपाल की एक प्रोफैसर अब पछता रही हैं. सास से इसी तरह मामूली बात पर अलग हुई थीं पर जल्द ही पति शराब पीने लगे क्योंकि मां का डर या लिहाज खत्म हो गया था. अब इस प्रोफैसर को लगता है कि दोनों बच्चों को भी दादादादी की जरूरत है. पतिपत्नी दोनों नौकरी करते हैं, इसलिए बच्चों को उतना वक्त नहीं दे पाते जितना उन्हें देना चाहिए.

इसलिए बहुओं को चाहिए कि वे हर संभव कोशिश सास और ससुराल के साथ रहने की करें. आजकल सभी के कमरे अलग होते हैं. अगर विवाद बड़ा और गंभीर हो तो एक ही छत के नीचे 2 किचन किए जा सकते हैं जैसा कि भोपाल के कुछ मामलों में हुआ. सास या ससुराल छोड़ना आखिरी विकल्प होना चाहिए, वह भी उस सूरत में जब सास वाकई क्रूर और अत्याचारी हो जो आजकल कम ही होती हैं. महज अपने झूठे अहं और सुखसुविधाओं के लिए सास से अलग हो जाना फायदे का सौदा नहीं. बहुओं की मारी सासें अगर परिवार की प्रतिष्ठा, जिस पर वे नाज करती हैं, को भूलती हुई परिवार परामर्श केंद्र जा रही हैं और बहू साथ रहे, इस बाबत उस की हर शर्त मंजूर कर रही हैं तो वे बहुत ज्यादा गलत नहीं लगतीं, गलत होतीं तो लिखित समझौते न करतीं. संभवतया इस झुकने में उन्हें बेटे का सुख और सुकून दिखता है. इसे अगर पत्नी नहीं देखती तो वह ज्यादा दोषी कही जाएगी.

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