‘‘मेरी मां से आप की कब बात हुई, सर?’’ प्रिया ने चौंक कर प्रश्न किया.
‘‘तुम्हारे घर से निकलने के बाद उन्होंने मु झे फोन किया था.’’
‘‘आई एम सौरी, सर. मैं ने उन्हें आप को कभी भी फोन करने से मना कर रखा है, फिर भी क्या कहा उन्होंने…?’’ प्रिया अपने गुस्से को मुश्किल से नियंत्रण में रख पा रही थी.
‘‘तुम्हारे जीजा का दोस्त रवि 10 दिनों बाद मुंबई से आ रहा है. अब रेलें चलने लगी हैं न. वे चाहती हैं कि इस बार तुम दोनों के बीच शादी की बात आगे बढ़े. कम से कम रोका हो जाए, ऐसी उन की इच्छा है.’’
‘‘और क्या कहा उन्होंने?’’
‘‘मैं तुम से दूर हो जाऊं, ऐसी प्रार्थना करते हुए बद्दुआएं भी दे रही थीं. प्रिया, क्या मैं ने तुम्हें अपनी दौलत, अपनी अमीरी, अपने रुतबे और ओहदे के बल पर अपने साथ जोड़ रखा है? क्या मैं तुम्हारे साथ खिलवाड़ कर रहा हूं?’’ ये सवाल पूछते हुए मल्होत्रा साहब की आवाज में पीड़ा के भाव पैदा हुए.
‘‘ऐसे आरोप मां ने लगाए आप पर?’’
‘‘हां. उन के मन की चिंता मु झे गलत भी नहीं लगी, प्रिया. हमारा रिश्ता रवि के साथ तुम्हारी शादी होने की राह में बिलकुल रुकावट बन सकता है.’’
‘‘मेरी और रवि की शादी होगी, ऐसा फैसला अभी किसी ने नहीं किया है, सर. फिलहाल उस की बात जीजा ने चलाई है. मां ने आप से अपने मन का डर बताया है.’’
‘‘लेकिन, कल को तुम दोनों शादी करने का फैसला कर सकते हो, प्रिया. और तब हमारे बीच का संबंध तुम दोनों के बीच मनमुटाव व अलगाव पैदा करने का कारण बन सकता है. मैं यह कभी नहीं चाहूंगा कि वह मु झ से कभी आ कर झगड़ा करे.’’
‘‘सर, आप पहले मेरी बात सुनिए,’’ प्रिया ने टोक कर अपने मन की बात कहनी शुरू कर दी, ‘‘जिस दिन रवि और मैं शादी करने का फैसला करेंगे, उस दिन से या उस से पहले ही हमारे बीच सैक्स संबंध समाप्त हो जाएंगे, क्योंकि तब न आप का और न मेरा दिल और बदन ऐसा करने की इजाजत हमें देंगे.’’
‘‘यह सच है कि पापा की कोविड में मौत के बाद हमें माली संकट से उबारने में आप ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है. अब फ्लैट की किस्तें मु झे नहीं देनी पड़तीं. कार की किस्त अटके या किसी अन्य खर्च के अचानक सिर पर आ पड़ने की स्थिति में आप मेरी हैल्प करते हो. हम साथ घूमते हैं तो भी आप का बहुत खर्चा होता है. हमारे लोगों में यह सुख भी थोड़ों को ही मिला है.
‘‘लेकिन, मेरे देखे यह सब खर्चा तो आप खुशीखुशी करते आए हैं. मु झे कहने की जरूरत नहीं पड़ती और आप पहले से ही मेरी जरूरत सम झ जाते हैं. आप की दौलत नहीं, बल्कि प्रेम ने मु झे आप के साथ जोड़ा हुआ है. मेरी सोच किसी वेश्या की सोच नहीं है.’’
‘‘बेकार की ऐसी बातें सोच कर परेशान मत हो, प्रिया,’’ उसे यों सम झाते हुए मल्होत्रा साहब खुद परेशान नजर आ रहे थे.
‘‘सर, मेरी कोशिश तो आज हम दोनों को बेकार के अपराधबोध की पकड़ से मुक्त करने की है,’’ खुद को शांत करते हुए प्रिया ने आगे बोलना जारी रखा, ‘‘आप अपनी दौलत के मालिक हैं और मैं अपने शरीर की. इन का हम क्यों अपनी मनमरजी से उपयोग नहीं कर सकते?’’
‘‘प्रिया, समाज कुछ रिश्तों को गलत मानता है.’’
‘‘सर, किसी पंडितपुजारी ने फेरे नहीं कराए हैं तो क्या हमारे बीच सैक्स संबंध नाजायज और अनैतिक बन जाएगा? क्या वारिस पैदा करने के लिए ही स्त्रीपुरुष के बीच सैक्स संबंध बने? सारे पांडव भी अपने बाप की औलादें नहीं थीं.’’
मल्होत्रा साहब की सम झ में नहीं आया कि वे प्रिया को क्या जवाब दें तो उस ने अपना तर्क आगे बढ़ाया, ‘‘आज की तारीख में आप की पत्नी नहीं, बल्कि मैं आप की सुखदुख की साथिन हूं. आप अगर मेरा ध्यान रखते हैं और झुक कर अपनी कमाई खर्च करते हैं तो इस में क्या बुराई है, क्या गलत है?
‘‘रही बात हमारे बीच उम्र के बड़े अंतर की तो प्रेम संबंध की मजबूती आपसी सम झ, तालमेल व चाहत के भावों पर निर्भर करती है, न कि प्रेमियों की उम्र पर. हर उम्र के इंसान का दिल प्रेम देना और पाना चाहता है और इस के लिए उचित प्रेम पात्र का मिलना सब से महत्त्वपूर्ण है. पंडित, पुजारी और समाज में नैतिकता को ले कर शोर मचाने वाले ठेकेदार 2 इंसानों के बीच मजबूत प्रेम संबंध पैदा कराने की गारंटी कभी नहीं दे सकते. हमारे गांव का पंडित ऊंचीनीची जाति की हर लड़की पर हाथ मारने की कोशिश करता रहता है. कभी बात बनती है, कभी नहीं.’’
‘‘हम दोनों एकदूसरे के साथ बहुत खुश और सुखी हैं. मैं जानती हूं कि वक्त के साथ हमारा यह रिश्ता भी रूप बदलेगा और मैं उस के लिए तैयार हूं.
‘‘अब सवाल यह है कि क्या लोगों की बातों पर ध्यान दे कर आप मु झे व अपनेआप को व्यर्थ के तनाव, उल झन और अपराधबोध का शिकार बना कर अभी इस रिश्ते को समाप्त करना चाहोगे?’’
मल्होत्रा साहब ने बेहिचक गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘प्रिया, तुम अगर आज मेरी जिंदगी से चली जाओ तो मेरी जिंदगी बेहद नीरस हो जाएगी. बु झेबु झे अंदाज में अकेले जीवन बड़ा बो िझल साबित होगा.’’
‘‘तब व्यर्थ की बातें सोचना और कहनासुनना बंद कर दीजिए,’’ प्रिया उन की छाती से लग गई, ‘‘एकदूसरे का सुखदुख बांटते हुए हम खुश हैं और यही बात सिद्ध करती है कि हम जीने के व्यावहारिक तल पर सही और सफल हैं.’’
‘‘तुम उम्र में छोटी होते हुए भी मुझ से ज्यादा समझदार हो, कहीं ज्यादा प्रैक्टिकल हो,’’ मल्होत्रा साहब पहली बार सहज ढंग से मुसकरा उठे थे.
‘‘थैंक यू सर,’’ प्रिया ने उन के गाल पर प्यारभरा चुंबन अंकित कर दिया.
‘‘तुम्हें भूख नहीं लग रही है क्या?’’
‘‘बहुत जोर से लग रही है.’’
‘‘बोलो, कहां चलें?’’
‘‘वहां,’’ प्रिया ने मल्होत्रा साहब का हाथ थामा और शरारती अंदाज में हंसतीमुसकराती बैडरूम की तरफ
भाग चली. उस के साथ भागते हुए मल्होत्रा साहब अपनी सारी परेशानी व अपराधबोध को भुला कर, स्वयं को जोश व ताजगी से भरे नौजवान सा फिट महसूस कर रहे थे.